RBSE Class 6 Hindi Rachana निबंध-लेखन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 6 Hindi Rachana निबंध-लेखन Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 6 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 6 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Here is visheshan worksheet for class 6 to learn grammar effectively and quickly.

RBSE Class 6 Hindi Rachana निबंध-लेखन

1. स्वतंत्रता दिवस
अथवा 
15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)
अथवा 
राष्ट्रीय पर्व-स्वतंत्रता दिवस 

प्रस्तावना-15 अगस्त, सन् 1947 का दिन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन देश को आजादी मिली। हमारे देश में विदेशी सत्ता का अन्त हुआ। 

मनाने के कारण-15 अगस्त के दिवस को मनाने का मूल कारण आजादी के लिए जो लोग शहीद हुए हैं, उन्हें श्रद्धांजलि देना तथा आजादी की रक्षा के लिए शपथ लेना है। प्रतिवर्ष यह दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में सम्पूर्ण देश में उल्लास से मनाया जाता है। 

विभिन्न कार्यक्रम - यह राष्ट्रीय पर्व प्रतिवर्ष सरकार एवं जनता द्वारा धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। स्कूलों तथा कॉलेजों में इस दिन प्रात:काल से ही विभिन्न प्रकार के रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। गाँवों में प्रभात-फेरियाँ निकाली जाती हैं तथा देशभक्ति के गीत गाये जाते हैं।

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राज्यों की राजधानियों एवं देश की राजधानी दिल्ली में यह दिवस विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। राज्यों के मुख्यमंत्री राष्ट्रीय ध्वज को फहराते हैं। लाल किले की प्राचीर पर तिरंगे को लहरा कर प्रधानमंत्री महोदय वहाँ उपस्थित विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए भाषण देते हैं। रात्रि के समय शहरों एवं राज्यों की राजधानियों में रोशनी भी की जाती है। 

उपसंहार-भारतीय इतिहास में यह दिन हमेशा अमर रहेगा। प्रतिवर्ष यह दिवस देशवासियों के लिए नवीन प्रेरणा एवं उत्साह लेकर आता है।

2. गणतंत्र दिवस
अथवा 
26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)
अथवा 
राष्ट्रीय पर्व-गणतंत्र दिवस 

प्रस्तावना-26 जनवरी के दिन हमारे देश में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। इसी दिन भारत को गणतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया और हमारा संविधान लागू हुआ। 

'मनाने का ढंग-26 जनवरी के दिन राष्ट्रभर में एक प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। इस दिन प्रातः से सायंकाल तक प्रत्येक नगर में उत्सव मनाये जाते हैं और ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनमें देश के निवासी सामूहिक रूप से भाग लेकर आनन्द मना सकें। विद्यालयों में भी कोई न कोई ऐसा कार्यक्रम रखा जाता है जिसमें सब अध्यापक और विद्यार्थी मिलकर भाग लेते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन गाँवों और नगरों में प्रभातफेरी निकाली जाती है। राज्यों की राजधानियों में राज्यपाल राष्ट्रीय झण्डे को फहराते हैं। 

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देश की राजधानी दिल्ली में यह दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ हमारे औद्योगिक विकास, सैन्य कुशलता तथा देश की सांस्कृतिक विविधता की गौरवपूर्ण एवं मनोरम झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। सायंकाल भी अनेक कार्यक्रम होते उपसंहार-यह दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि हमें अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए। हमें अनुशासन में रहकर सभ्य नागरिक की तरह आचरण करना चाहिए।

3. दीपावली
अथवा 
हमारा प्रिय त्योहार
अथवा 
दीपों का त्योहार-दीपावली 

प्रस्तावना-दीपावली भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की दृष्टि से मनाया जाने वाला त्योहार है। सम्पूर्ण देश में सभी नागरिक अत्यन्त प्रसन्नता और उल्लास के साथ बड़ी धूमधाम से इसे मनाते हैं। 

मनाने का समय-दीपावली का त्योहार कार्तिक मास में मनाया जाता है। धनतेरस से भाईदूज तक यह त्योहार मनाया जाता है। अमावस्या की रात को लक्ष्मीपूजन किया जाता है और दीपों की कतारें सजाई जाती हैं। 

मनाने का कारण-हिन्दू जनता के मतानुसार वनवास से चौदह वर्ष उफ्रान्त राम अयोध्या लौटे तो लोगों ने दीपों से अपने घरों को सजाकर उनका स्वागत किया। कुछ लोग इसका सम्बन्ध कृष्ण द्वारा नरकासुर वध की कथा से जोड़ते हैं। जैन धर्म वाले महावीर स्वामी से सम्बन्धित कोई कथा कहते हैं तो कुछ लोग इस दिन हनुमान की जयन्ती बताते मनाने की विधि-इस त्योहार को मनाने से पहले सभी व्यक्ति अपने-अपने घरों व दुकानों की सफाई करते हैं और मकानों को सजाते हैं।

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शहरों में लोग बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी से घरों व दुकानों को सजाते हैं। धनतेरस को गृहिणियाँ नये बर्तन खरीदना शुभ मानती हैं। दीपावली के दिन प्रत्येक घर में लक्ष्मी-पूजन होता है। दूसरे दिन गोवर्धन-पूजा की जाती है। 'भाई-दूज' को बहिनें अपने भाइयों के ललाट पर तिलक लगाती हैं। इस प्रकार यह त्योहार पाँच दिन तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। 

उपसंहार-हिन्दुओं के त्योहारों में दीपावली का विशेष महत्त्व है। यह हमारी सामूहिक मंगलेच्छा का प्रतीक है। इस दिन लक्ष्मी-पूजन करके सबकी उन्नति और समृद्धि की कामना की जाती है।

4. होली
अथवा हमारा प्रिय त्योहार
अथवा
रंगों का त्योहार-होली 

प्रस्तावना-भारतवर्ष में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें होली के त्योहार का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

विशिष्ट त्योहार-होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उसी रात को अथवा दूसरे दिन अत्यन्त शीघ्र प्रातःकाल प्रत्येक गाँव तथा नगर में स्थान-स्थान पर होलिका जलाई जाती है। इसकी आग से प्रत्येक सनातनधर्मी (हिन्दू) के घर में छोटी-छोटी होलियाँ प्रज्वलित की जाती हैं। मनाने का तरीका-इस अवसर पर नये पके हुए अन्न को होली की आग में भूनते हैं और इस भुने हुए अन्न अर्थात् आखतों को आपस में वितरित करते हैं। कुछ लोग इस त्योहार का सम्बन्ध प्रह्लाद की बुआ 'होलिका' से स्थापित करते हैं। 

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होली खेलना-होलिका-दहन के उपरान्त लोग रंग और गुलाल से होली खेलते हैं। अपरान्ह में स्नान, भोजन इत्यादि करने के पश्चात् सभी लोग साफ अथवा नवीन वस्त्र धारण करके एक-दूसरे के यहाँ जाते हैं और एकदूसरे से मिलते हैं। इस अवसर पर शत्रु भी मित्र के समान परस्पर मिलते हैं। 

उपसंहार-ब्रज में आठ दिनों तक रंग की होली होती है और होली नामक गीत बड़े प्रेम के साथ गाया जाता है। ब्रज की होली प्रसिद्ध है; परन्तु किसी-किसी प्रदेश में पंचमी के दिन होली खेली जाती है।

5. रक्षाबन्धन 

प्रस्तावना - रक्षाबन्धन भाई-बहन के प्रेम का त्योहार है। आज भारत के सभी निवासी इस त्योहार को बड़ी खुशी के साथ मनाते हैं। 

मनाने का समय और कारण-रक्षाबन्धन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षाबन्धन त्योहार को मनाने के पीछे अनेक दन्तकथाएँ प्रचलित हैं। राजस्थान में यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। बहिनें नवीन वस्त्र तथा आभूषण धारण कर अपने भाई के ललाट पर मंगल का टीका लगाती हैं,

मिठाई खिलाती हैं तथा हाथ में राखी बांधती हैं। यह त्योहार भाई-बहिन के पवित्र सम्बन्धों का त्योहार है। रक्षाबन्धन का महत्त्व-रक्षाबन्धन एक सांस्कृतिक त्योहार ही नहीं है, अपितु सामाजिक महत्त्व का त्योहार भी है। यह भाईचारा बढ़ाने वाला त्योहार है। कहा जाता है कि रानी कर्णवती ने अपनी रक्षा के लिए मुसलमान बादशाह हुमायूँ को अपना 'राखी-बन्ध' भाई बनाया था, जिसने मुसीबत के समय रानी की सहायता की थी। उपसंहार-इस प्रकार रक्षाबन्धन त्योहार प्रेम-भाव बढ़ाता है। इस दिन भाई व बहिन परस्पर स्नेह-बन्धन की परम्परा को स्वीकार करते हैं तथा अपना कर्तव्य पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। 

6. राजस्थान का प्रसिद्ध मेला
अथवा
तीज का मेला 

प्रस्तावना-राजस्थान सांस्कृतिक दृष्टि से रंगीला प्रदेश है। यहाँ वर्ष-भर अनेक उत्सव और त्योहार मनाये जाते हैं। राजस्थान में प्रदेश तथा क्षेत्रीय स्तर पर अनेक मेले लगते हैं। क्षेत्रीय स्तर पर लगने वाले मेलों में 'गणगौर' और 'तीज' का मेला अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। मेले का स्थान-तीज का मेला प्रतिवर्ष श्रावण मास की तीज को बड़ी धूमधाम से लगता है। जयपुर नगर में ,यह मेला तीज और चौथ को त्रिपोलिया बाजार, गणगौरी बाजार । तथा चौगान में लगता है। इस मेले में आस-पास के गांवों से तथा विदेशों से भी हजारों लोम भाग लेने आते हैं। 

मेले का दृश्य-तीज के मेले में सभी नर-नारी, बालकवृद्ध अपनी आकर्षक वेशभूषा पहनकर इसमें सम्मिलित होते हैं। गाँव के लोग स्थान-स्थान पर झुण्ड बनाकर लोक-गीत गाते हैं। त्रिपोलिया एवं गणगौरी बाजार की छतें तथा बरामदे लोगों से भर जाते हैं। संध्या को तीज माता की सवारी पूरे लवाजमे के साथ निकलती है।

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पुलिस तथा स्थानीय बैण्ड सवारी के आगे-आगे चलते हैं। तीज माता की सवारी पालकी में निकलती है। यह जुलूस छोटी चौपड़ का चक्कर लगाकर गणगौरी दरवाजे से चौगान के रास्ते तालकटोरे तक जाता है। चौगान में मेला भरता है। वहाँ पर युवतियाँ झूले झूलती हैं। वहाँ पर कई तरह के तमाशे दिखाये जाते हैं। दुसर दिन भी इसी प्रकार का मेला भरता है।

उपसंहार-तीज के मेले से लोगों का काफी मनोरंजन होता है। इस प्रकार मेले सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

7. दशहरा का मेला 

प्रस्तावना-हिन्दुओं के प्रसिद्ध एवं प्रमुख त्योहारों में दशहरा अथवा विजयादशमी का विशेष महत्त्व है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक दशहरा का त्योहार होता है। यह अन्याय पर न्याय की जीत का त्योहार है। मनाने का कारण-दशहरा मनाने के कई कारण हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान् राम ने लंका के राजा रावण को मारकर सीताजी को मुक्त कराया था। यह शरद् ऋतु के आगमन का तथा किसानों की फसल पकने की खुशी का सूचक त्योहार भी है। 
मनाने का ढंग-हमारे देश में कई स्थानों पर दशहरे के मेले लगते हैं। कोटा का दशहरा मेला भी काफी लोकप्रिय है। दशहरा से पहले जगह-जगह रामलीलाएँ होती हैं। विजयादशमी के दिन राजपूत लोग तथा सैनिक अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते हैं। साथ में शमी वृक्ष की भी पूजा की जाती है। भगवान् राम की सवारी निकलती है, उस जुलूस में कई झाँकियाँ और बैण्ड-बाजे रहते हैं। 

मेले का दृश्य-हमारे कस्बे में भी दशहरे का मेला लगता है। इस दिन गाँव के बाहर रामलीला मैदान में दोपहर से ही भीड़ जमा हो जाती है। मैदान के बाहर कई दुकानें भी लग जाती हैं जिनमें खिलौने, सजावटी सामान, मिठाइयाँ तथा अन्य उपयोगी सामग्री रहती है। संध्या के समय पहले तो रावण-वध का दृश्य दिखाया जाता है।

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इसके साथ ही रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के बड़े-बड़े पुतले जलाये जाते हैं, रंग-बिरंगी आतिशबाजी की जाती है और अन्त में भगवान् राम की जय-जयकार की जाती है। इस मेले में कस्बे के सभी लोग सहर्ष भाग लेते हैं। उपसंहार-दशहरा अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है। इससे हमें बुराइयों को दूर करने की प्रेरणा मिलती है।

8. राजस्थान के प्रमुख त्योहार 

प्रस्तावना- भारत के विभिन्न प्रदेशों में राजस्थान का विशिष्ट महत्त्व है। यहाँ पर रक्षाबन्धन, दशहरा, होली, दीपावली आदि त्योहार एवं पर्व मनाये जाते हैं, परन्तु इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे पर्व व मेले हैं, जो केवल राजस्थान में ही मनाये जाते हैं। इनमें राजस्थानी जन-जीवन की झांकी देखने को मिलती है।

राजस्थान के प्रमुख पर्व-त्योहार- 'गणगौर' राजस्थान का प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार चैत्र माह के पहले दिन से चैत्र सुदी चार तक चलता है। कुंवारी कन्याएँ अच्छा वर पाने के लिए तथा विवाहित स्त्रियाँ अखण्ड सौभाग्य के लिए गणगौर की पूजा करती हैं। चैत्र सुदी तीन तथा चार को जगह-जगह गणगौर की सवारी पूरे लवाजमे के साथ निकाली जाती है। इस अवसर पर मनोरंजन के अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। राजस्थान में गणगौर और तीज के अलावा अन्य कई पर्व आते हैं। यहाँ शीतलाष्टमी का पर्व भी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 

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इसे राजस्थानी में 'बास्योडा' भी कहा जाता है। राजस्थान में बैसाख शुक्ला तृतीया को आखातीज (अक्षय तृतीया) का त्योहार भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन किसान नई फसल का स्वागत करते हैं। काश्तकारों के घरों में ज्यादातर विवाह भी इसी दिन होते हैं। इस त्योहार का भी राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन में अत्यधिक महत्त्व है।

उपसंहार-पर्वो, त्योहारों एवं मेलों की दृष्टि से राजस्थान का विशिष्ट स्थान है। भारत में हिन्दू समाज में जो प्रसिद्ध त्योहार मनाये जाते हैं, उनको यहाँ भी उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। परन्तु गणगौर, तीज, शीतलाष्टमी आदि कुछ ऐसे त्योहार हैं, जिन्हें केवल राजस्थान के लोग ही मनाते हैं।

9. मेरे प्रिय शिक्षक
अथवा मेरे प्रिय गुरुजी
अथवा
मेरा प्रिय अध्यापक 

प्रस्तावना-मानव-जीवन में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज शिक्षा विद्यालय और महाविद्यालयों में दी जाने लगी है। इनमें शिक्षा देने वाले गुरुजन शिक्षक कहलाते हैं। 

मेरे प्रिय शिक्षक-मैं राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ता हूँ। मेरे विद्यालय में पन्द्रह शिक्षक हैं। वे सभी विद्वान और अच्छे हैं। इन्हीं शिक्षकों में एक शिक्षक श्री सुशील शर्मा हैं, जो मेरे प्रिय शिक्षक हैं। 

प्रियता के कारण-मेरे प्रिय शिक्षक हमारी कक्षा में हिन्दी विषय पढ़ाते हैं। वे हमें इतनी अच्छी तरह से पढ़ाते हैं कि हम सभी को उनका पढ़ाया हुआ शीघ्र ही समझ में आ जाता है। वे मेहनती, ईमानदार और अनुशासनप्रिय शिक्षक हैं। कक्षा में हमेशा समय पर आते हैं। सभी छात्रों को पुत्रवत् स्नेह करते हैं। गरीब छात्रों को अपने पास से पुस्तकें देते हैं और उनकी हर तरह से सहायता करते हैं। वे प्रतिदिन विद्यालय में समय पर आते हैं और विद्यालय के प्रत्येक कार्यक्रम में पूरी ईमानदारी के साथ सहयोग करते हैं। 

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उनकी अच्छी आदतों और गुणों का हम सभी सम्मान करते हैं। वे विद्यालय का और सभी छात्रों का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं। यही कारण है कि वे मेरे प्रिय शिक्षक हैं। उपसंहार-वे अपने गुणों के कारण हमारे कस्बे में भी लोकप्रिय हैं। जब तक वे मेरे स्कूल में रहेंगे, हमें इसी प्रकार पढ़ाते और स्नेह देते रहेंगे और हम उनका सम्मान करते रहेंगे।

10. हमारा विद्यालय 
अथवा
मेरा विद्यालय 

प्रस्तावना-विद्या प्राप्त करने का स्थान होने से विद्यालय - का विशेष महत्त्व है। हमारा विद्यालय नगर के दक्षिण में स्थित है। इसका नाम महात्मा गाँधी राजकीय माध्यमिक विद्यालय है। इसमें लगभग एक हजार छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं। 

विद्यालय-भवन-हमारे विद्यालय का भवन विशाल है। इसमें चालीस कमरे हैं। पुस्तकालय एवं वाचनालय का विशाल कक्ष है, विज्ञान की प्रयोगशाला का भी अलग कक्ष है। एक कक्ष कार्यालय का और कर्मचारियों का है। इनके अलावा ठण्डे पानी की छोटी कोठरी एवं शौचालय आदि की समुचित व्यवस्था है। विद्यालय भवन के सामने खेल का विशाल मैदान है तथा पीछे की तरफ सुन्दर बगीचा है। 

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स्थिति एवं कार्यक्रम-हमारा विद्यालय नगर एवं जिले का आदर्श विद्यालय माना जाता है। इसमें पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था है। हमारे विद्यालय में लगभग तीस शिक्षकशिक्षिकाएँ हैं। एक प्रधानाध्यापकजी, एक व्यायाम शिक्षक, तीन कार्यालय कर्मचारी और चार चपरासी (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी) हैं। व्यायाम एवं खेलकूद की इसमें पूरी सुविधा है। प्रत्येक शनिवार को बाल-सभा होती है। हमारे विद्यालय के सभी शिक्षक छात्रों से स्नेह रखते हैं और सदा अच्छीअच्छी बातें सिखाते हैं।

उपसंहार-हमारे विद्यालय में पढ़ाई का अच्छा वातावरण है। इस कारण सभी छात्र मन लगाकर पढ़ते हैं और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होते हैं। हमें हमारा विद्यालय बहुत ही अच्छा लगता है।

11. विद्यालय का वार्षिक उत्सव 

प्रस्तावना-श्रेष्ठ विद्यालयों में पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियों को भी महत्त्व दिया जाता है। विद्यालयों में होने वाले उत्सव भी इसी प्रकार पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियों में से एक हैं। उनमें भाग लेकर छात्रों को उसके आयोजन करने, संगठन करने तथा उसको पूरा करने आदि का अनुभव होता है। 

खेल-कूद का आयोजन-हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष पन्द्रह दिसम्बर को वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। वार्षिकोत्सव के पहले खेलकूद होते हैं। विद्यालय के ज्येष्ठ और कनिष्ठ छात्रों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है। इसमें अनेक प्रकार के खेल होते हैं। उत्सव का आयोजन-इस बार भी पन्द्रह दिसम्बर को दोपहर में विद्यालय का वार्षिक उत्सव सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ हुआ। इसके पश्चात् स्वागत गान हुआ, मुख्य अतिथि को माला पहनाकर प्रधानाचार्यजी ने अभिनन्दन किया। 

छात्रों ने मनोहर गीत गाये, हृदय को आकर्षित करने वाले हिन्दी तथा अंग्रेजी के अनेक प्रहसन हुए। छात्रों के कार्यक्रम के पश्चात् प्रधानाचार्यजी ने विद्यालय का प्रगति विवरण प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् माननीय अतिथि महोदय शिक्षा मन्त्री का अत्यन्त ही ओजस्वी और सारगर्भित भाषण हुआ। उन्होंने देश और विदेशों से प्राप्त अपने अनुभव बतलाये और छात्रों को कर्तव्य-पालन करने की प्रेरणा दी। भाषण के पश्चात् उन्होंने क्रीड़ाओं, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, बालमेले के श्रेष्ठ दुकानदारों तथा कक्षाओं में प्रथम और द्वितीय आने वाले छात्रों को पुरस्कार वितरित किये। 

उपसंहार-इसी समय कुछ व्यक्तियों ने छात्रों के मिष्टान्न के लिये भी धनराशि प्रदान की। अन्त में, राष्ट्रीय गान के पश्चात् उत्सव समाप्त हो गया। उत्सव की प्रसन्नता में एक दिन का अवकाश घोषित किया गया।

12. विद्यालय में प्रथम 

दिवस प्रस्तावना-आज से आठ वर्ष पहले मेरे पिताजी मुझे उँगली पकड़कर विद्यालय में ले गये थे, उस क्षण की धुमिल स्मृति अभी भी मेरे मन में आनन्द का संचार करती है। वस्तुतः विद्यालय में जाने का प्रथम दिवस मेरे जीवन का महत्त्वपूर्ण अवसर था। विद्यालय का प्रथम दिवस-जब मैं लगभग चार वर्ष का था, तो वसन्त पंचमी के दिन मुझे नहला-धुलाकर नये कपड़े पहनाये गये।

पिताजी ने मेरा पाटी-बस्ता तैयार किया। फिर दादीजी व माताजी ने मुझे प्यार से पुचकार कर पिताजी के साथ विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिये भेज दिया। प्रधानाध्यापक के निर्देश पर पिताजी मुझे प्रारम्भिक कक्षा में ले गये और मुझे अध्यापक के सुपुर्द कर वापस आ गये। 

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कक्षा का पहला दिन-कक्षा में टाट-पट्टियाँ बिछी थीं। अध्यापकजी ने मुझे प्यार से एक स्थान पर बैठने के लिये कहा । वहाँ कक्षा में मेरी उम्र के पन्द्रह-बीस बच्चे बैठे हुए थे। गुरुजी ने प्यार से मेरा नाम पूछा। इसके बाद हम सभी अबोध शिष्यों को एक कहानी सुनाई तथा प्रारम्भिक दो अक्षरों 'अ, आ' का ज्ञान कराया।

पहले ही दिन अक्षरज्ञान तो अच्छी तरह नहीं हुआ, परन्तु सुनाई गई कहानी अच्छी लगी। दूसरी घण्टी में दूसरे अध्यापकजी आये। उन्होंने हमें पहले तो सफाई से रहने का उपदेश दिया, फिर गणित के दो अंक लिखने सिखाये। अन्त में छुट्टी हुई। पिताजी मुझे लेने आ गये थे। मैं उनके साथ प्रसन्नतापूर्वक घर आ गया। 

उपसंहार-इस तरह विद्यालय का पहला दिन मेरे लिये संकोच और उल्लास का रहा। आज भी विद्यालय के प्रथम दिवस की याद आने पर मैं मन ही मन प्रसन्न हो जाता हूँ।

13. पर्यावरण स्वच्छता 

प्रस्तावना-हमारी धरती और आकाश में मौजूद पानी, हवा, धूप, मिट्टी, पेड़-पौधे आदि सभी को पर्यावरण कहा जाता है। शरीर के स्वच्छ रहने पर जैसे उसे रोग का संक्रमण नहीं होता है, वैसे ही पर्यावरण के स्वच्छ रहने से समस्त प्राणियों एवं प्राकृतिक परिवेश का जीवन स्वस्थ रहता है। लेकिन वर्तमान में सारे विश्व का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, यह सभी के लिए चिन्ता का विषय है। 

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या - वर्तमान में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि, बड़े उद्योगों की स्थापना तथा नगरों-कस्बों के विस्तार के कारण हरे-भरे वन एवं चरागाह उजड़ रहे हैं। यातायात के लिए सड़कें बनाई जा रही हैं। उद्योगों का गन्दा पदार्थ और पेट्रोल-डीजन का धुआँ सब ओर फैल रहा है। इस कारण नदी-तालाब, हवा, मिट्टी आदि में प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है। 

पर्यावरण स्वच्छता की जरूरत- पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेक तरह के असाध्य रोग फैल रहे हैं। हरे-भरे वनों एवं वृक्षों को काट देने से मौसम पर असर पड़ रहा है और अब संसार का तापमान लगातार बढ़ने लगा है। इन सब कुप्रभावों से बचने के लिए पर्यावरण की स्वच्छता की जरूरत है। 

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पर्यावरण स्वच्छता के उपाय-पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने के लिए वनों की कटाई रोकी जाए, जगह-जगह वृक्षों को रोपा जाए और हरियाली बढ़ाई जाए। कारखानों एवं गन्दे नालों से निकलने वाले दूषित पानी को स्वच्छ करने के उपाय किये जाएँ। जलाशयों एवं नदियों को स्वच्छ रखा जावे और जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाकर पर्यावरण की स्वच्छता के लिए जन-जागरण किया जाए। उपसंहार-मानव-सभ्यता की भलाई के लिए पर्यावरण स्वच्छता जरूरी है। हम सब को पर्यावरण की रक्षा के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।

14. कोरोना महामारी 

प्रस्तावना-कोरोना वाइरस कई प्रकार के विषाणुओं का एक समूह है। इस वाइरस पर मुकुट जैसी संरचना पाई जाती है जिसके कारण इसको कोरोना वाइरस कहा गया

रोग का प्रारम्भ - इसका प्रारम्भ चीन के वूहान, हुबई के पशु-मांस मण्डी से हुआ। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम यह रोग चमगादड़ से मनुष्य में फैला। कारण जो भी हो। यह एक महामारी है जो संसार के कई देशों में कोविड-19 के नाम से फैली है। 
प्रसारण एवं लक्षण - इसका प्रसारण मुख्य रूप से 6 फीट की सीमा के भीतर खाँसी व छींकों के माध्यम से रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में होता है। इसके सामान्य मुख्य लक्षण लार का बनना, साँस लेने में तकलीफ, गले में खराश, सिर दर्द, ठण्ड लगना, जी मिचलाना, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द आदि हैं। 

रोकथाम व बचाव के उपाय-
(1) यात्रा करने से बचना चाहिए, घर में ही रहना चाहिए। 
(2) मास्क का उपयोग करना चाहिए।
(3) हाथों को बार-बार लगभग 20 सैकण्ड तक साबुन से धोते रहना चाहिए तथा दूरी बनाकर रहना चाहिए। 
(4) बार-बार आँख, नाक, मुँह को छूने से बचना चाहिए। 

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रोग का उपचार-इस रोग से बचने के लिए - 
(1) पूरे दिन गर्म एवं गुनगुना पानी पीना चाहिए। 
(2) 30 मिनट योगासन, प्राणायाम और ध्यान करना चाहिए। 
(3) भोजन पकाने में हल्दी, जीरा, धनिया, लहसुन, अदरक आदि का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए।
(4) मादक पदार्थों से दूर रहना चाहिए। 
(5) सुपाच्य भोजन करना चाहिए। 
(6) ठण्डी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। 
(7) डॉक्टर की सलाह अनुसार दवा लेनी चाहिए। 
उपसंहार-कोरोना एक महामारी है। इससे मृत्यु दर बढ़ी है। अब इसके इलाज के लिए भारत सहित संसार के अन्य देशों ने वैक्सीन की खोज कर ली है। वैक्सीन के माध्यम से अब इसका उपचार भी प्रारम्भ हो गया है।

15. मेरे जीवन का लक्ष्य 

प्रस्तावना-मनुष्य कल्पनाशील प्राणी है। इस कारण वह अनेक प्रकार के स्वप्न देखा करता है। महत्त्वाकांक्षी प्राणी होने के कारण उसकी प्रबल इच्छा होती है कि वह कोई ऐसा काम करे जिससे उसका मान-सम्मान हो तथा नाम हो। इस कारण वह अपने जीवन का कोई न कोई लक्ष्य मन में संजो लेता है और उसकी प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहता है। मेरे जीवन का लक्ष्य-मैंने जीवन का लक्ष्य बनाया है कि मैं डॉक्टर बनूँ। वैसे तो कई व्यवसाय हो सकते हैं जिनमें मैं धन कमा सकता हूँ लेकिन डॉक्टर बनकर मैं धन कमाने के साथ-साथ मानवता के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति भी कर पाऊँगा। ऐसा मेरा मानना है। 

लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास-डॉक्टर बनने के लिए मुझे बहुत पढ़ना होगा। डॉक्टरी हेतु मुझे प्रवेश परीक्षा भी पास करनी होगी। बहुत धन भी खर्च करना होगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी आराम और सुविधाओं का भी त्याग करना होगा। यह सब मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। लेकिन मैं अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़-संकल्प हूँ और उसे पाकर ही रहूँगा। 

उपसंहार-मैं मानता हूँ कि यदि मेरी तरह अन्य युवक भी डॉक्टर बनने का लक्ष्य निर्धारित कर लें तो हमारे देश में जो डॉक्टरों की कमी बताई जा रही है, वह सहज ही दूर हो जाएगी और हमारे देश से बीमारियों का प्रकोप समाप्त हो सकेगा। सभी नीरोगी और स्वस्थ रहकर देश की उन्नति में अपनी अहम् भूमिका निभा सकेंगे।

16. अनुशासन का महत्त्व 

अनुशासन का अर्थ-अनुशासन शब्द 'अनु' व 'शासन' इन दोनों शब्दों के मेल से बना है। 'अनु' का अर्थ है पीछे या अनुकरण तथा 'शासन' का अर्थ है-व्यवस्था, नियंत्रण अथवा संयम। इस प्रकार अनुशासन का शाब्दिक अर्थ हुआ नियंत्रण एवं संयमपूर्वक रहना। 

RBSE Class 6 Hindi Rachana निबंध-लेखन

अनुशासन सफलता की कुंजी-अनुशासन जीवन के विकास और सफलता की कुंजी है। इसलिए अनुशासन सभी के लिए जरूरी है। चाहे वह नागरिक हो, नेता हो, नौकरी पेशा हो, या विद्यार्थी हो । अनुशासन से देश चलता है, विकास और उन्नति होती है। प्रकृति में अनुशासन-प्रकृति भी एक अनुशासन से बंधी है। समय पर सूर्य उदित व अस्त होता है। एक-क्रम में ऋतुएँ आती-जाती हैं। ज्वार-भाटा के बीच भी सागर मर्यादित रहता है। एक निश्चित गति से पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। 

यदि एक क्षण के लिए भी यह व्यवस्था शिथिल हो जाए तो सृष्टि में महाप्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाए। समाज और राष्ट्र में अनुशासन-प्रकृति की यह बात व्यक्ति, समाज और राष्ट्र पर भी लागू होती है। अनुशासनहीन व्यक्ति न तो अपना भला कर सकता है न समाज अथवा राष्ट्र का। समाज के नियमों को मानना सामाजिक अनुशासन है। यदि उनका पालन न किया जाए तो सर्वत्र अराजकता फैल सकती है। युद्ध-क्षेत्र में तो अनुशासन का महत्त्व सबसे बढ़कर है। 

उपसंहार-अनुशासन एक ऐसी प्रवृत्ति या संस्कार है जिसको अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। इससे अनेक गुणों का विकास होता है। अनुशासन से ही राष्ट्र की प्रगति होती है। इसलिए अनुशासन एक ओर बंधन है तो दूसरी ओर मुक्ति भी।

17. समय का सदुपयोग 

प्रस्तावना-'समय' जीवन का अनमोल रत्न है। जिस प्रकार बहता हुआ पानी लौटाया नहीं जा सकता है, उसी प्रकार बीता हुआ समय भी वापस नहीं लाया जा सकता है। समय की उपयोगिता हमारे लिए अवर्णनीय है। इसलिए हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। उसके महत्त्व को समझना चाहिए। 

समय के सदुपयोग की जरूरत-जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में ही छिपा हुआ है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन की सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग ही रहा है। महात्मा गाँधी और नेहरू आदि समय के बहुत पाबन्द थे। वे एक-एक क्षण का बहुत ध्यान रखते थे। समय रुकता नहीं है, वह निरन्तर चलता ही रहता है।

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समय के सदुपयोग से लाभ और हानि-समय के सदुपयोग से अनेक लाभ मिलते हैं। प्रत्येक काम उचित समय पर करने से पछताना नहीं पड़ता है। समय के सदुपयोग की आदत पड़ने से दैनिक जीवनचर्या सुव्यवस्थित हो जाती है। किसी भी काम के लिए हानि या नुकसान नहीं उठाना पड़ता है। समय का दुरुपयोग करने से व्यक्ति आलसी, निकम्मा, नासमझ और कर्तव्यहीन हो जाता है। उसका कोई सम्मान नहीं करता है।

उपसंहार-वर्तमान में प्रायः भारतीयों को समय का महत्त्व न समझने वाला माना जाता है। समय का सदुपयोग करने से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का हित होता है। समय का सदुपयोग ही सफलताओं का मूल मंत्र है।

18. हमारे प्रिय नेता-महात्मा गाँधी 

प्रस्तावना-हमारे देश में समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है। इनमें महात्मा गाँधी का नाम प्रमुख है। अपने गुणों के कारण ही गाँधीजी एक बैरिस्टर होकर भी महात्मा कहलाये। आज सारा विश्व इस महापुरुष को देवता सदृश स्मरण करता है। 

जन्म एवं शिक्षा परिचय-महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई. को गुजरात राज्य के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गाँधी और माता का नाम श्रीमती पुतलीबाई था। जीवन की घटनाएँ-गाँधीजी पोरबन्दर की एक फर्म के मुकदमे में सन् 1893 ई. में दक्षिणी अफ्रीका गये। वहाँ भारतीयों के साथ गोरे लोग बड़ा बुरा व्यवहार करते थे। यह देखकर गाँधीजी को बहुत दुःख हुआ। ऐसे अमानवीय व्यवहारों से पीड़ित होकर गाँधीजी ने सत्याग्रह किया और सत्याग्रह में विजयी होकर स्वदेश वापस आये। 

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विजय की भावना से प्रेरित होकर देश को स्वतंत्र करने की अभिलाषा जागृत हुई । सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर किया। गाँधीजी ने सन् 1930 ई. में नमक कानून के विरोध में सत्याग्रह किया। सन् 1942 ई. में महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस दौरान गांधीजी को अनेक बार जेल जाना पड़ा। इनके प्रयत्नों से 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत पूर्णरूप से स्वतंत्र हो गया। 

उपसंहार-स्वतंत्र भारत के निर्माता होने से हम उन्हें 'बापू' और 'राष्ट्रपिता' के सम्बोधन से आदर देते हैं। 30 जनवरी, सन् 1948 ई. को दिल्ली में संध्या के समय नाथूराम विनायक गोडसे नामक एक युवक ने प्रार्थना सभा में गाँधीजी को पिस्तौल से गोली मार दी। पूरा देश इस पर स्तब्ध रह गया।

19. दूरदर्शन या टेलीविजन 

प्रस्तावना-वर्तमान काल में अनेक वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं। इनमें दूरदर्शन या टेलीविजन काफी चमत्कारी आविष्कार है। इससे घर बैठे ही दूर के दृश्य एवं समाचार साक्षात् देखे-सुने जाते हैं। यह मनोरंजन के साथ ही शिक्षा-प्रचार और ज्ञान-प्रसार का श्रेष्ठ साधन है। 

दूरदर्शन की उपयोगिता-हमारे देश में सन् 1959 ई. से दूरदर्शन का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। वर्तमान में कृत्रिम उपग्रह के द्वारा सारे भारत में दूरदर्शन का प्रसारण हो रहा है। दूरदर्शन के सैकड़ों चैनलों से अनेक तरह के कार्यक्रम, सीरियल एवं फिल्में प्रसारित होती हैं। इनसे तुरन्त घटित या आँखों देखा प्रसारण भी होता है। दूरदर्शन की सबसे बड़ी उपयोगिता मनोरंजन के कार्यक्रमों के साथ समाचारों का तत्काल प्रसारण है। इससे शिक्षा का प्रसार होता है तथा रोजगार के साधनों का ज्ञान कराया जाता है। इस तरह जनचेतना को जागृत करने में तथा प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में दूरदर्शन विशेष उपयोगी माना जाता है। 

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दूरदर्शन का प्रभाव-दूरदर्शन या टेलीविजन से अनेक लाभ हैं, परन्तु इससे कुछ हानियाँ भी हैं। बालक दूरदर्शन से चिपके रहते हैं, इससे उनकी आँखें कमजोर हो जाती हैं और पढ़ने में रुचि नहीं रखते हैं। युवक दूरदर्शन के दृश्यों की नकल करके गलत आचरण करने लगते हैं। दूरदर्शन का वर्तमान नयी पीढ़ी पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। उपसंहार-आज के युग में दूरदर्शन की विशेष उपयोगिता - है। जनता में जागृति लाने का यह श्रेष्ठ साधन है। परन्तु बालकों एवं युवाओं को इससे होने वाली हानि से बचाये रखना चाहिए।

20. पुस्तकालय 

प्रस्तावना-मनुष्य स्वभावतः प्रत्येक वस्तु का अधिक से अधिक ज्ञान चाहता है और इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करता है। पुस्तकालय ज्ञान प्राप्त करने का सुन्दर साधन है। 

पुस्तकालयों का योगदान-पुस्तकालय सच्चे अर्थों में माता सरस्वती के पूजा-गृह हैं। अतः ज्ञान प्राप्ति में अधिकांश योगदान देने के लिए पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाती है। इन स्थानों में विभिन्न विषयों एवं विभिन्न देशों से सम्बन्धित बातों की पुस्तकें सहज ही सुलभ हो सकती हैं। 

लाभ-मूल्यवान तथा अधिक पुस्तकें पढ़ने की सुविधाएँ पुस्तकालयों में ही सुलभ हो सकती हैं। पुस्तकालय हमारे भीतर पढ़ने की रुचि उत्पन्न करते हैं। जब हम वहाँ पर जाकर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तकें देखते हैं तो पढ़ने की स्वतः ही इच्छा होने लगती है। उपयोगिता-विद्यालयों में शिक्षण सुविधा के लिए अच्छे पुस्तकालय की व्यवस्था होना परम आवश्यक है।

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वास्तविक रूप में पुस्तकालय ही विद्यालयों की समस्त क्रियाओं के केन्द्र होते हैं। बहुत अच्छा हो यदि विद्यालयों में केन्द्रीय पुस्तकालयों के अतिरिक्त कक्षा पुस्तकालयों का भी प्रबन्ध किया जाए तो ये अधिक उपयोगी हो सकते हैं। 

उपसंहार-वर्तमान काल में हमारे देश में पुस्तकालयों की दशा अत्यन्त ही चिंतनीय है। न तो उनके पास अच्छे सुविधाजनक भवन ही हैं और न पुस्तकें। पर जहाँ पर अच्छे पुस्तकालय हैं, वहाँ पर निःसंदेह माँ सरस्वती की सुचारु रूप से प्रार्थना हो रही है। .


 

 

Bhagya
Last Updated on June 30, 2022, 12:32 p.m.
Published June 30, 2022