RBSE Class 6 Hindi अपठित गद्यांश

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 6 Hindi अपठित गद्यांश Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 6 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 6 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Here is visheshan worksheet for class 6 to learn grammar effectively and quickly.

RBSE Class 6 Hindi अपठित गद्यांश

निर्देश :-निम्नलिखित अपठित को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1) यह अनुभव किया गया है कि जीवन की कठिन से कठिन बात बालचर्य के खेलों में सहज ही सिखा दी जाती है, क्योंकि बालक स्वभावतः खेलना पसन्द करते हैं। शिक्षक और शिष्य एवं शासक और शासित के सम्बन्ध का ज्ञान यहाँ के खेलों में हर समय होता है। बालकों की शिक्षा के उपयुक्त स्थान बन्द कमरे नहीं, बल्कि पर्वतों के मनोहर शिखर, नदी के कछार, सुन्दर उपवन, रम्य वाटिकाएँ और खुले मैदान हैं। ऐसे शान्त व सुरम्य स्थानों पर बालकों की मनोवृत्तियाँ विकसित होकर उच्च बनती हैं। 

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए। 
प्रश्न 2. बालचर्य का किसमें विशेष महत्त्व है? 
प्रश्न 3. बालकों की मनोवृत्तियाँ कहाँ पर विकसित होती हैं? 
प्रश्न 4. अंवतरण का सार लिखिये। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'बालचर्य का महत्त्व'।
2. जीवन की कठिन-से-कठिन बात सिखाने में बालचर्य का विशेष महत्त्व है। 
3. बालकों की मनोवृत्तियाँ नदी के तट, सुन्दर उपवन और खुले मैदान व शान्त्र वातावरण में विकसित होती हैं। 
4. सार-बालचर्य से कठिन बात आसानी से सीखी जाती है। बालक को खेल के द्वारा शिक्षा दी जा सकती है। प्रकृति के रमणीय स्थानों पर बालकों की मनोवृत्तियों का अच्छा विकास होता है।

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(2) आत्मबल मनुष्य की बड़ी भारी शक्ति है। यों तो वह सभी प्राणियों में होता है, किन्तु अन्य प्राणी अब मनुष्य की भाँति अनुभूति नहीं कर पाते। सिंह आत्मबल से ही वन का राजा बना हुआ है। चींटी आत्मबल से ही बड़े-बड़े आक्रमणकारियों का सामना कर लेती है। उसी बल से वह ऐसे संगठन में रहती है कि उसे देखकर मनुष्यसमाज भी विस्मित हो सकता है। उसका ऐश्वर्य, उसकी शासन-व्यवस्था और उसका सामाजिक ढाँचा हमारे से कहीं ठोस है। यह सब कैसे? इसलिए कि उसमें आत्मबल 

प्रश्न 2. मनुष्य समाज के लिए किसकी शासन-व्यवस्था का ढाँचा आदर्श बताया गया है? 
प्रश्न 3. सिंह किस गुण से वन का राजा बना हुआ है? 
प्रश्न 4. अवतरण का सार लिखिए। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'आत्मबल का महत्त्व'।
2. मनुष्य-समाज के लिए चींटियों की शासन-व्यवस्था का ढाँचा आदर्श बताया गया है। 
3. 'आत्मबल' के गुण से सिंह वन का राजा बना हुआ है। 
4. सार-आत्मबल मनुष्य की बड़ी भारी शक्ति है। पशुओं में सिंह भी आत्मबल से वन का राजा कहलाता है। चीटियों में भी पर्याप्त आत्मबल होता है। जीवन में आत्मबल का विशेष महत्त्व होता है।

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(3) इसमें सन्देह नहीं कि विज्ञान के विकास के साथ मनुष्य के जीवन का विकास हुआ है, उसकी सुख-सुविधा के साधन बढ़े हैं, रोगों पर विजय प्राप्त की जा रही है, आयु बढ़ती जा रही है, कठिन श्रम की आवश्यकता कम होती जा रही है। शायद ऐसा भी समय आ जाये जब मनुष्य को परिश्रम करना ही न पड़े।

परन्तु इस भौतिक विकास के साथ मानवोचित नैतिक गुणों का, सदाचार का, वास्तविक ज्ञान का, नैतिकता और आध्यात्मिकता का कितना विकास हो रहा है, यह कहना कठिन है। मनुष्य ने मशीन को अपनी सेवा के लिए बनाया था, परन्तु अब वह स्वयं मशीनों का दास बनता जा रहा है। विज्ञान की इस प्रगति को रोका नहीं जा सकता। परन्तु यदि इसके कारण मनुष्यत्व का ही लोप हो गया तो विज्ञान क्या, यह सारी सभ्यता ही नष्ट हो जायेगी। 

प्रश्न 1. उक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिये। 
प्रश्न 2. मनुष्य के सुख-सुविधा के साधन किससे बढ़े हैं? 
प्रश्न 3. अब मनुष्य किनका दास बनता जा रहा है? 
प्रश्न 4. अवतरण का सार लिखिये। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'विज्ञान का विकास'। 
2. विज्ञान के विकास से मानव के सुख-सुविधा के साधन बढ़े हैं। 
3. अब मनुष्य मशीनों का दास बनता जा रहा है। 
4. सार-विज्ञान के विकास के साथ मनुष्य के जीवन में सुख-सुविधा, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था बढ़ती जा रही है और अब मनुष्य ज्यादातर काम मशीनों से करने लग गया है। वह स्वयं मशीनों का दास बनता जा रहा है। इससे मानव में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होने से मानवता का और हमारी सभ्यता का विनाश हो सकता है।

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(4) थोड़ी-थोड़ी करके की गई बचत निजी आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होगी, वही व्यापक रूप में राष्ट्रीय बचत का अंग भी बनेगी। बचत राशि का उपयोग अधिकाधिक अन्न उपजाने, नये उद्योग-धन्धे लगाने, चिकित्सालय व सड़कें बनाने, विद्यालय व महाविद्यालय खुलवाने और बेरोजगारों को रोजगार दिलवाने जैसे विभिन्न सार्वजनिक हित के कार्यों में होता है। इस प्रकार हम अपनी बचत की आदत से अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र की सेवा भी करते हैं। 

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। 
प्रश्न 2. बचत की राशि का उपयोग कहाँ-कहाँ कर सकते हैं ? 
प्रश्न 3. बचत की आदत से हम किसकी सेवा कर सकते हैं ? 
प्रश्न 4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
1. शीर्षक-'बचत का महत्त्व और उपयोग'। 
2. बचत की राशि का उपयोग हम अन्न उपजाने, उद्योगधन्धे लगाने, चिकित्सालय व सड़कें बनाने, विद्यालय व महाविद्यालय खुलाने, बेरोजगारों को रोजगार दिलाने तथा राष्ट्रहित में कर सकते हैं। 
3. बचत की आदत से हम अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र की सेवा भी करते हैं। 
4. सारांश-बचत की आदत हमारे लिए महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। इसके माध्यम से अधिकाधिक अन्न उपजाने के साथ सार्वजनिक हित के कार्यों में ही नहीं राष्ट्र सेवा के कार्यों में भी इसका उपयोग कर सकते हैं। 

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(5) देश-प्रेम का भाव एक पवित्र भाव है । इस पवित्र भाव से पूर्ण मानव का जीवन आदर्श और अनुकरणीय होता है। देश-प्रेमी व्यक्ति सदा अपने देश का हित सोचता है । वह उसे विश्व का शिरोमणि बना देना चाहता है। वह मनसा, वाचा, कर्मणा ऐसा व्यवहार करता है जिससे देश गौरवान्वित हो। उसे हर समय देशहित की चिन्ता रहती है। ऐसा देश-प्रेम ही हमें संकीर्ण धरातल से ऊपर उठाता है। 

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। 
प्रश्न 2. देश-प्रेमी मानव का जीवन आदर्श और अनुकरणीय क्यों बनता है ? 
प्रश्न 3. रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए। 
प्रश्न 4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'देश-प्रेम'।
2. देश-प्रेम से देश-प्रेमी व्यक्ति का जीवन आदर्श और अनुकरणीय बनता है। 
3. शिरोमणि-सर्वश्रेष्ठ ।संकीर्ण - संकुचित। 
4. सारांश-देश-प्रेम के पावन भाव से पूरित मनुष्य हमेशा देशहित में सोचता है। वह उसे विश्व का शिरोमणि बना देना चाहता है जिससे देश गौरवान्वित हो । देश-प्रेम मनुष्य को संकीर्ण धरातल से ऊपर उठाता है।

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(6) कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफी है। पर खेलकूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक काम करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता, वरन् मनुष्य भी बनता है। खिलाड़ी वे बातें अनायास ही सीख जाते हैं जो उसे आगे चलकर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए। 
प्रश्न 2. कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में क्या विचार है? 
प्रश्न 3. खेल-कूद के द्वारा कौन से गण सीखे जा सकते
प्रश्न 4. उपर्युक्त गद्यांश का सार लिखिए। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'खेल और स्वास्थ्य'। 
2. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। 
3. खेल-कूद के द्वारा सहयोग से काम करना, अभिमान न करना, साहस न छोड़ना और नियमपूर्वक काम करना आदि गुण सीखे जा सकते हैं। 
4. सार-कुछ लोगों के अनुसार स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम ही काफी है, पर वास्तव में खेल-कूद के द्वारा स्वास्थ्य रक्षा के साथ-साथ मनुष्यता के गुण भी सीखे जा सकते हैं, जो मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में सहायक हैं।

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(7) धन के बिना मनुष्य ऊपर उठ सकता है। विद्या बिना भी उन्नति कर सकता है, पर चरित्र के बिना वह सर्वथा पंगु है। किसी अन्य गुण से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। निर्धन और धनवान, अशिक्षित और शिक्षित प्रत्येक मनुष्य के लिए चरित्र-बल आवश्यक है। निर्धन की तो यह एक मात्र पूँजी है। धनवान के लिए निर्धन की अपेक्षा चरित्र की अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि प्रलोभन व वासना के जाल में फंसे रहना, धनवान के लिए अधिक संभव है। चरित्रहीन धनवान, चरित्रहीन निर्धन की अपेक्षा कहीं अधिक भयंकर होता है। 

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए। 
प्रश्न 2. चरित्रबल की किसके लिए अधिक आवश्यकता बतायी गई है। 
प्रश्न 3. चरित्रबल को किसकी एकमात्र पूँजी बताया गया है? 
प्रश्न 4. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। 
उत्तर-
1. शीर्षक-'चरित्र-बल'। 
2. धनवान के लिए चरित्र-बल की अधिक आवश्यकता बतायी गयी है। 
3. चरित्र-बल को निर्धन व्यक्ति की एक मात्र पूँजी बताया गया है। 
4. सारांश-निर्धन और धनवान, शिक्षित और अशिक्षित प्रत्येक मनुष्य के लिए चरित्र-बल आवश्यक है। लेकिन धनवान व्यक्ति के लिए चरित्र-बल की अधिक आवश्यकता है, क्योंकि वह प्रलोभन और वासना से भरा रहता है।

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(8) चिन्तारहित खेलना खाना, 
वह फिरना निर्भय स्वच्छन्द। 
कैसे भूला जा सकता है, 
बचपन का अतुलित आनन्द ॥ 

रोना और मचल जाना भी, 
क्या आनन्द दिखाते थे। 
बड़े-बड़े मोती से आँसू, 
जयमाला पहनाते थे ॥ 

प्रश्न 1. कविता का शीर्षक दीजिए। 
प्रश्न 2. इस कविता में किसको नहीं भूलने का वर्णन किया गया है? 
प्रश्न 3. जयमाला किसे कहा गया है? 
उत्तर-
1. शीर्षक-'बचपन की यादें। 
2. कविता में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने बचपन के आनन्द को नहीं भूल पाता है। इस कविता में इसी बात का वर्णन किया गया है।
3. आँखों से नीचे गिरने वाले बड़े-बड़े आँसुओं को मोतियों की जयमाला कहा गया है।

Bhagya
Last Updated on July 2, 2022, 12:01 p.m.
Published June 30, 2022