Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 5 Hindi Rachana निबंध लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
प्रश्न :
निम्न में से एक विषय पर अपने शब्दों में निबंध लिखिए।
1. मेरा विद्यालय
2. परोपकार का महत्त्व
3. मेरा मित्र (मित्र-लाभ)
4. गणतंत्र दिवस
5. मेरे प्रिय शिक्षक
6. मेले का वर्णन
7. प्रिय नेता
8. विद्यालय का वार्षिकोत्सव
9. हमारा नगर
10. दीपावली
11. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त)
12. होली।
1. मेरा विद्यालय
मेरे विद्यालय का नाम राजकीय प्राथमिक विद्यालय, - लक्ष्मणगढ़ है। मेरा विद्यालय सड़क के किनारे स्थित है। इसमें पाँच कमरे हैं। एक कमरे में विद्यालय के प्रधानाध्यापकजी का कार्यालय है। चार कमरों में कक्षाएँ लगती हैं। मेरे विद्यालय के चारों ओर बाउंड्री बनी है। बाउंड्री के बीच में लोहे का एक गेट लगा है। विद्यालय में अंदर घुसते ही बहुत बड़ा लॉन है, जिसमें अनेक क्यारियाँ हैं। उनमें अनेक प्रकार के फल लगे हैं। पास में ही एक हैंडपंप लगा है।
मेरे विद्यालय में 200 छात्र हैं। आठ अध्यापक और एक प्रधानाध्यापकजी हैं। हमारे गुरुजन हमको बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं। प्रधानाध्यापक जी हमको गणित पढ़ाते हैं। वे हमको बहुत अच्छी तरह समझाते हैं, जिससे हमारे विद्यालय का परीक्षा परिणाम प्रतिवर्ष बहुत अच्छा रहता है। हमारे विद्यालय के कमरों के पीछे खेल का मैदान है, जहाँ शाम को छुट्टी के बाद कबड्डी, खो-खो, रूमालझपट्टा आदि खेल खेलते हैं। मेरे विद्यालय में अनुशासन बहुत अच्छा है। सभी गुरुजी बहुत प्यार करते हैं। हम उनका बहुत सम्मान करते हैं। मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है।
2. परोपकार का महत्त्व
परोपकार का अर्थ है - दूसरों पर उपकार अर्थात् भलाई। जब हम दूसरों की भलाई का कोई काम करते हैं तो उसे परोपकार कहते हैं। जो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए ही जीवित रहता है, उसकी सभी बुराई करते हैं। हमारे देश में परोपकार की भावना संतों-महापुरुषों में प्राचीनकाल से ही रही है। रंतिदेव ने जो कई दिनों से भूखे थे, अपने सामने आये भोजन को भूखे अतिथियों को दे दिया। महाराज शिवि ने, एक पक्षी की रक्षा के लिए अपने शरीर का माँस काट-काटकर दे दिया।
प्रकृति भी हमको पग-पग पर परोपकार का उपदेश देती है। मनुष्य वही है जो स्वयं कष्ट उठाये और दूसरों की भलाई करे। वह मनुष्य नहीं देवता है, संत है। परोपकारी मनुष्य दूसरों का प्रिय होता है। तुलसीदास ने भी बताया है कि दूसरों की भलाई करने के समान अन्य कोई दूसरा धर्म नहीं है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा है कि 'मनुष्य वही है, जो मनुष्य के लिए मरे।' अतः मनुष्य को अपने स्वार्थ को त्यागकर दूसरों की भलाई करनी चाहिए।
3. मेरा मित्र (मित्र-लाभ)
मैं राजकीय गाँधी नेशनल स्कूल, अलवर में कक्षा-5 में पढ़ता हूँ। मेरे विद्यालय में सभी छात्रों के अपनेअपने मित्र हैं। मित्रता मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। चाहे कोई कितना धनवान या बलवान क्यों न हो, उसे भी विश्वस्त साथी की आवश्यकता होती है, जिससे वह अपने मन की बात कह सके और संकट के समय उसके साथ हाथ बँटा सके। अच्छा मित्र पाना बहुत कठिन होता है। मित्र के चुनाव में बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए।
मित्र की सबसे बड़ी कसौटी विश्वसनीयता होती है। विश्वासपात्र मित्र से कभी हानि नहीं हो सकती। सच्चा मित्र ही उन्नति के पथ पर अग्रसर कर सकता है और हर मुसीबत में साथ देकर सच्चे रास्ते पर ले जा सकता है। मेरे मित्र बनने के लिए बहुत से छात्र थे, परंतु मैंने अरुण को अपना मित्र बनाया। वह मेरी कक्षा का ही छात्र है। उसके पिताजी साधारण व्यापारी हैं। वह पढ़ने में तेज है। वह नियमित रूप से विद्यालय आता है और समय से अपना काम करता है। वह सदैव दूसरों के दुःख में साथ देता है। वह सत्यवादी और ईमानदार है। इसलिए मैंने उसे अपना मित्र चुना।
4. गणतंत्र दिवस
हमारे राष्ट्रीय पर्यों में 'स्वतंत्रता-दिवस' एवं गणतंत्रदिवस प्रमुख हैं। 'गणतंत्र' का अभिप्राय है-गण = समूह, तंत्र = व्यवस्था, अर्थात् समूह द्वारा शासन को संचालित करने की व्यवस्था। सन् 1947 ई. में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी, 1950 से देश में गणतंत्रात्मक पद्धति से शासन का संचालन आरंभ किया गया। देश के शासन को चलाने के लिए एक संविधान बनाया गया, यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। हमारा देश उसी दिन से गणतंत्र राष्ट्र बन गया।
इसी खुशी की अभिव्यक्ति के लिए पूरा राष्ट्र 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में धूमधाम के साथ मनाता गणतंत्र दिवस का समारोह पूरे देश में अत्यंत उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस विशेष रूप से मनाया जाता है। महीनों पहले से गणतंत्र दिवस की तैयारियाँ चलती रहती हैं। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। विदेशों से अनेक सम्मानित अतिथि गणतंत्र दिवस समारोह देखने के लिए दिल्ली आते हैं। इस दिन प्रात: 8 बजे के बाद इंडिया गेट के पास सेना के तीनों अंगों द्वारा महामहिम राष्ट्रपति को सलामी दी जाती है।
राष्ट्रपति ध्वजारोहण करते हैं। उसी समय तोपें चलाई जाती हैं। अनेक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। देश की प्रगति दिखाने के लिए देश के प्रत्येक राज्य की भव्य झाँकियाँ निकाली जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ प्रदेशों की राजधानियों में भी भव्य समारोह होते हैं। स्कूल-कॉलेजों में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। उपसंहार-गणतंत्र दिवस के साथ हमारी भावनाएँ जुड़ी हैं। हम इस दिन आजादी की रक्षा का संकल्प लेते हैं तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने में जिन वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था, उन्हें याद करके स्वयं को गौरवान्वित करते हैं।
5. मेरे प्रिय शिक्षक
हमारे देश में शिक्षकों का सदैव से सम्मान होता रहा है। प्राचीनकाल में शिक्षा आश्रमों में दी जाती थी। आश्रमों में गुरुओं का बहुत आदर व मान होता था। राजा भी गुरु का सम्मान करता था। गुरु को गोविंद से भी ऊँचा माना गया है। संत कबीर ने कहा है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपणे, गोविंद दियो मिलाय।। मेरे प्रिय शिक्षक आनंद मोहन जी हैं। वे हिंदी विषय के विद्वान हैं। उन्होंने एम. ए., एम. एड. किया है। लगभग 35 वर्ष की अवस्था वाले तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी मेरे शिक्षक महोदय की अनेक विशेषताएँ हैं।
वे छात्रों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं। मेरे प्रिय शिक्षक की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि वे प्रत्येक छात्र को समान समझते हैं। कक्षा में उनके द्वारा पढ़ाया हुआ पाठ सहज ही समझ में आ जाता है। वे किसी को पीटते नहीं हैं। शरारत करने पर वे समझाते हैं। वे हमारे साथ खेलते भी हैं। सभी छात्रों का वे पूरा ध्यान रखते हैं। कक्षा का प्रत्येक छात्र उनका सम्मान करता है। विद्यालय के प्रधानाचार्य जी भी उनका आदर करते हैं। यही सब कारण हैं कि मेरे प्रिय शिक्षक का सभी मन से सम्मान करते हैं। मेरे प्रिय शिक्षक योग्य, कर्मठ, परिश्रमी एवं व्यवहारकुशल हैं। वे अनुशासनप्रिय हैं। वे पूरे विद्यालय में ही नहीं, बल्कि हमारे नगर में भी लोकप्रिय हैं। मेरी आकांक्षा है कि वे हमें अगली कक्षाओं में भी पढ़ाते रहें।
6. मेले का वर्णन
अथवा
राजस्थान का प्रसिद्ध मेला : गणगौर
राजस्थान लोक-परंपराओं एवं लोक-संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में अग्रणी रहा है। यहाँ पूरे वर्ष अनेक उत्सव व त्योहार मनाये जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है-"म्हारो रंग रंगीलो राजस्थान"। राजस्थान में अनेक मेले लगते हैं। इन मेलों में गणगौर के मेले का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रत्येक मेले के पीछे कोई-न-कोई लोककथा रहती है। पार्वती (गौरी) ने शिव को पति रूप में पाने के लिए व्रत रखा था।
इस गणगौर मेले का सूत्र इसी पौराणिक लोककथा से जुड़ा है। गौरी की मिट्टी की प्रतिमाएँ बनाकर घर में रखी जाती हैं तथा सोलह दिन तक उन प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है। इन प्रतिमाओं का विसर्जन करना ही गणगौर मेले का उद्देश्य है। गणगौर का प्रसिद्ध मेला जयपुर में लगता है। यह मेला राजस्थान का प्रसिद्ध मेला है। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज और चौथ को जयपुर के मुख्य मार्ग त्रिपोलिया बाजार, गणगौरी बाजार और चौगान में धूमधाम के साथ लगता है।
जयपुर के गणगौर मेले को देखने के लिए देश-विदेश से दर्शक आते हैं। राजस्थान के विभिन्न गाँवों से आने वाले लोग रंग-बिरंगी पोशाकें पहने हुए मेले में सम्मिलित होते हैं। स्त्रियों की टोलियाँ लोकगीत गाते हुए चलती हैं। संध्या को निश्चित समय पर जयपुर के त्रिपोलिया दरवाजे से गणगौर की सवारी धूमधाम से निकलती है। सवारी में आगे-आगे हाथी, ऊँट, रथ होते हैं। उनके पीछे पुलिस एवं बैंड चलते हैं। गणगौर की सवारी सुंदर पालकी में चलती है।
मेले का यह जुलूस त्रिपोलिया बाजार से छोटी चौपड़ होता हुआ गणगौरी दरवाजे तक जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के मनोरंजन के साधन तथा खाने-पीने के सामान के स्टॉल होते हैं। मेले में भीड़ का समुद्र-सा उमड़ पड़ता है। मेलों के आयोजन से हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ जीवंत रहती हैं। इनसे हमें अपनी संस्कृति एवं लोक-परंपराओं की जानकारी होती है। मेलों में विभिन्न समाजों के लोग आपस में मिलते हैं। यद्यपि आधुनिकता के प्रभाव से मेलों का आयोजन सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, व्यापारिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
7. प्रिय नेता (महात्मा गाँधी)
हमारे देश में अनेक नेता एवं महापुरुष हुए हैं। उन सबमें मेरे प्रिय नेता महापुरुष महात्मा गाँधी हैं। गाँधीजी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात में काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। गाँधीजी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हई। हाईस्कूल करने के बाद वह बैरिस्ट्री पढ़ने इंग्लैंड गये। वहाँ से 'बैरिस्ट्री की शिक्षा प्राप्त कर भारत में आकर वकालत करने लगे। एक बार आप दक्षिण अफ्रीका गये और वहाँ भारतीयों पर होने वाले अत्याचार को देखकर आपका हृदय द्रवित हो गया। आपने उनका विरोध किया।
वहाँ से लौटने के बाद भारत में अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित भारतीय जनता के उद्धार का व्रत आपने लिया। आपने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजी शासन को हिला दिया। आप कई बार जेल गये और अनेक प्रकार की यातनाएँ सहीं। आपने नमक कानून तोड़ा और 1921 में 'असहयोग आंदोलन' चलाया। 1942 में 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' का नारा लगाया। गाँधीजी द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर अनेक व्यक्ति उनके साथ हो गये। अंत में उनके नेतृत्व में 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश आजाद हो गया। हरिजनोद्धार में उनकी विशेष रुचि थी। इस प्रकार देश को नई दिशा प्रदान करते हुए 30 जनवरी, 1948 को वे सदा-सदा के लिए शहीद हो गये।
8. विद्यालय का वार्षिकोत्सव
हमारा विद्यालय भरतपुर नगर के मध्य स्थित है। हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष 23 जनवरी को सुभाष जयंती के दिन वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव को मनाने से पूर्व विद्यालय की पुताई, रँगाई एवं सफाई आदि होती है। विद्यालय में प्रतिवर्ष मुख्य अतिथि के रूप में सरपंच या पुलिस अधीक्षक महोदय को बुलाया जाता है। इस वर्ष हमारे विद्यालय में पुलिस अधीक्षक आये। प्रारंभ में हमारे विद्यालय के प्रधानाध्यापकजी ने विद्यालय प्रांगण में ध्वजारोहण किया। छात्रों ने अनेक महापुरुषों तथा भारतमाता की जय के गगनभेदी नारे लगाये।
इसके बाद सभा का आयोजन हुआ। सभा में छात्रों ने देशभक्ति से संबंधित गीत, कविताएँ एवं भाषण सुनाए। छात्रों द्वारा अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। विभिन्न प्रकार के खेलकूद के कार्यक्रम भी किये गये। कबड्डी के खेल में हमारी टीम प्रथम विजयी घोषित की गई। बाद में विद्यालय के प्रधानाध्यापक जी ने विद्यालय की वार्षिक प्रगति-आख्या प्रस्तुत की। इस अवसर पर विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक और खेलकूद कार्यक्रमों में प्रथम आने वाले छात्रों को मुख्य अतिथि द्वारा पुरस्कार बाँटे गये। अंत में मुख्य अतिथि का भाषण हुआ। उन्होंने सभी छात्रों को अच्छी आदतें और जीवन में मेहनत को अपनाने की प्रेरणा दी तथा विजयी छात्रों का उत्साहवर्धन करते हुए अन्य छात्रों की भी प्रेरित किया। सभा की समाप्ति पर सभी छात्रों को लिफाफों में मिठाई बाँटी गई।
9. हमारा नगर
हमारे राजस्थान प्रदेश में अनेक प्रसिद्ध नगर जैसे - उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर, भरतपुर, जैसलमेर आदि हैं। इन प्रसिद्ध नगरों में जयपुर सबसे अधिक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर 'गुलाबी नगर' के नाम से भी जाना जाता है। जयपुर नगर हमारे राजस्थान प्रदेश की राजधानी और प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है। महाराजा सवाई जयसिंह ने इस नगर की स्थापना की थी। यह नगर चारों ओर से विशाल परकोटे से घिरा हुआ है। इसमें अधिकतर मकान एवं भवन गुलाबी रंग से पुते हुए हैं। इसके परकोटे में बड़े-बड़े सात पोल हैं। इस नगर की बनावट व बसावट विशेष प्रकार की है।
इस नगर की सड़कें बहुत चौड़ी तथा लंबी हैं। जयपुर नगर का अब खूब विस्तार हो गया है और इसके कई उपनगर बस गये हैं। जयपुर के पास ही आमेर नामक स्थान प्रसिद्ध है। जयपुर में सरकार के सभी विभागों के कार्यालय हैं। यहाँ राज्य का विधानसभा भवन है और उच्च न्यायालय भी है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें जंतर-मंतर, चंद्रमहल, हवामहल, रामबाग, सिसौदिया गार्डन, गलता जी का मंदिर, चिड़ियाघर, संग्रहालय आदि प्रसिद्ध हैं। इन दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए प्रतिवर्ष देश-विदेश से अनेक यात्री यहाँ आते हैं। रँगाई-छपाई, मूर्तिकला, लाख की चूड़ियों और कला-कौशल के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
10. दीपावली
हमारा देश त्योहारों का देश है। इन त्योहारों में होली, दशहरा, रक्षाबंधन एवं दीपावली प्रमुख हैं। इन सभी त्योहारों में दीपावली का अपना विशेष महत्त्व है। यह त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास भोगकर अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में अयोध्या नगर में घी के दीपक जलाये गये। दीपावली से पूर्व घरों की सफाई, रँगाई एवं पुताई होती है। दीपावली पर दुकानों को सजाया जाता है, पटाखे व आतिशबाजी चलाई जाती है। घरों में रात को गणेश-लक्ष्मी का पूजन होता है। पूजन के बाद खील, खिलौने व मिठाई खाई जाती हैं। व्यापारी लोग अपने बही-खातों का पूजन करते हैं। कुछ व्यक्ति इस दिन जुआ भी खेलते हैं और अपने भाग्य की आजमाइश करते हैं जो बहुत बुरी बात है। हमको दीपावली का त्योहार मंगलकामना की दृष्टि से मनाना चाहिए।
11. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त)
15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था। तभी से यह दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। इसे राष्ट्रीय पर्व या राष्ट्रीय त्योहार के नाम से भी पुकारा जाता है। सैकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद अनेक भारतीय नेताओं, महापुरुषों और वीर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलायी। इस दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराते हैं और देश की उन्नति के लिए देशवासियों को संदेश देते हैं।
सभी सरकारी भवनों पर झंडे फहराये जाते हैं और कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। सभी विद्यालयों में भी प्रतिवर्ष 15 अगस्त का कार्यक्रम बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। विद्यालयों में प्रधानाध्यापक झंडा फहराते हैं और साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम, राष्ट्रीयता से संबंधित भाषण, गीत, कविताएँ, नाटक, नृत्य आदि होते हैं। अंत में मिष्ठान्न वितरण होता है। इस प्रकार 15 अगस्त हँसी-खुशी से मनाया जाता है।
12. होली
होली हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार हिरण्यकशिपु नामक राजा था। उसके एक पुत्र था प्रह्लाद। वह भगवान का भक्त था। राजा को उसकी भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। अतः उसने प्रहलाद को मारने के अनेक प्रयास किये। अंत में अपनी बहिन होलिका की गोद में बैठाकर आग से जलाने का प्रयत्न किया। परंतु होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों में मिठाइयाँ और पकवान बनाते हैं। शाम को होली जलायी जाती है। उसमें गेहूँ की बालियों को भूना जाता है।
दूसरे दिन धुलैंडी होती है। इस दिन सभी एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं तथा मिठाइयाँ खाते हैं। सभी अपने आपसी बैर को भूलकर गले मिलते हैं। कुछ खराब लोग इस दिन कीचड़ उछालकर तथा शराब पीकर इस त्योहार का रंग फीका कर देते हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। होली आपसी प्रेम-भाव और भाईचारे का संदेश देने वाला रंगों का त्योहार है।