These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 9 वैश्वीकरण will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 Notes वैश्वीकरण
→ वैश्वीकरण का परिचय
- एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण का अभिप्राय प्रवाह से है।
- प्रवाह कई प्रकार के हो सकते हैं-विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्से में पहुँचना, पूँजी का एक से अधिक स्थानों पर जाना, वस्तुओं का कई देशों में पहुँचना व उनका व्यापार तथा उत्तम आजीविका की तलाश में विश्व के विभिन्न भागों में लोगों का आवागमन।
- इस प्रकार के प्रवाहों की निरन्तरता से विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव उत्पन्न हुआ है जो आज भी कायम है।
→ वैश्वीकरण की अवधारणा
- वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आयाम हैं।
- वैश्वीकरण की प्रवृत्ति 20वीं सदी के अन्त में प्रबल हुई तथा 21वीं शताब्दी के शुरू में इसने ठोस आधार प्राप्त किया।
→ वैश्वीकरण के कारण
- हालाँकि वैश्वीकरण हेतु सिर्फ कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं है, फिर भी प्रौद्योगिकी का विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
- संचार क्षेत्र में क्रान्ति लाने वाले साधनों में टेलीग्राफ, टेलीफोन तथा माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कार का उल्लेख किया जा सकता है।
- छपाई (मुद्रण) की तकनीक ने राष्ट्रवाद की आधारशिला रखी।
- विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवागमन की सरलता प्रौद्योगिकी के विकास के कारण सम्भव हुई हैं
→ वैश्वीकरण के प्रभाव
- विश्व के विभिन्न देशों पर वैश्वीकरण के राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव पड़े हैं।
- वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता में कमी आती है। लोक-कल्याणकारी राज्य के स्थान पर अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।
- कुछ अर्थों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है। अब राज्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बल पर अपनी जनता के बारे में सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं। इन सूचनाओं के आधार पर राज्य अच्छे ढंग से कार्य कर सकता है।
- वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव को आर्थिक वैश्वीकरण के नाम से भी जाना जाता है। आर्थिक वैश्वीकरण में विश्व के विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक प्रवाह तीव्र हो जाता है।
- वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है।
- वस्तुओं के आयात-निर्यात एवं पूँजी के आवागमन पर राज्यों के प्रतिबन्ध में कमी आयी है।
- वैश्वीकरण के कारण विश्व के अलग-अलग भागों में सरकारों ने एक जैसी आर्थिक नीतियों को अपनाया है, लेकिन विश्व के विभिन्न भागों में इसके परिणाम अलग-अलग हुए हैं। आर्थिक वैश्वीकरण के कई नकारात्मक परिणाम हमारे समक्ष आए हैं, जिनमें प्रमुख हैं-सम्पूर्ण विश्व में जनमत का बड़ी गहराई से विभाजित हो जाना, सरकार द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से अपने हाथ खींचना आदि ।
- वैश्वीकरण के विरोध में अनेक आन्दोलन संचालित हुए हैं। ऐसे आन्दोलनों ने बलपूर्वक किए जा रहे वैश्वीकरण पर रोक लगाने की आवाज लगायी है क्योंकि इससे निर्धन देश आर्थिक रूप से बर्बादी के कगार पर पहुँच जायेंगे।
- कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व के पुन: उपनिवेशीकरण की संज्ञा दी है। आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है, व्यापार में वृद्धि होती है, जिसका सम्पूर्ण विश्व को लाभ मिलेगा।
- वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का मत है कि वैश्वीकरण ने हमारे समक्ष चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं जिनका सजग होकर पूरी बुद्धिमानी से सामना करना चाहिए। वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लाता है, लेकिन इस सांस्कृतिक समरूपता में विश्व संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है।
- वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव का सकारात्मक पक्ष यह है कि कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसन्द-नापसन्द का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार भी होता है।
- वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव के दो पहलू हैं। इसका एक प्रभाव जहाँ सांस्कृतिक समरूपता है तो दूसरा प्रभाव सांस्कृतिक विभिन्नीकरण है।
→ भारत और वैश्वीकरण
- औपनिवेशिक काल में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं तथा कच्चे माल का निर्यातक और बने-बनाये सामानों का आयातक देश था।
- भारत ने सन् 1991 में वित्तीय संकट से उबरने एवं उच्च आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया प्रारम्भ की।
→ वैश्वीकरण का प्रतिरोध
- वैश्वीकरण के वामपंथी आलोचकों का तर्क है कि वर्तमान वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक विशेष अवस्था है जो धनिकों को और अधिक धनी (एवं इनकी संख्या में कमी) तथा गरीबों को और अधिक गरीब बनाती है।
- वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिन्तित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिन्ता है। इनका मत है कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता व संरक्षणवाद का दौर पुनः स्थापित हो तथा सांस्कृतिक सन्दर्भ में इनकी चिन्ता है कि परम्परागत संस्कृति को हानि होगी और लोग अपने प्राचीन जीवन मूल्य व तौर-तरीकों को खो देंगे।
- अनेक वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं हैं। बल्कि वैश्वीकरण के किसी विशेष कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।
- सन् 1999 में सिएट्ल में हुई विश्व व्यापार संगठन की मंत्री-स्तरीय बैठक के दौरान यहाँ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन विरोध प्रदर्शनों को आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों को अपनाये जाने का विरोध करने के लिए किया गया।
- वर्ल्ड सोशल फोरम (WSP) नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्व-व्यापी मंच है। इसकी पहली बैठक सन् 2001 में ब्राजील के पोर्टो अलगेरे शहर में हुई थी।
- भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई क्षेत्रों में हो रहा है। इनमें वामपंथी राजनीतिक दल, इण्डियन सोशल फोरम, औद्योगिक श्रमिक एवं किसान संगठन आदि शामिल हैं।
→ वैश्वीकरण:
विचार, पूँजी, वस्तु एवं सेवाओं का विश्वव्यापी प्रवाह वैश्वीकरण कहलाता है।
→ बहुराष्ट्रीय निगम:
वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में एक साथ अपनी आर्थिक गतिविधियाँ (पूँजी निवेश, उत्पादन, वितरण अथवा व्यापार इत्यादि) चलाती है।
→ सांस्कृतिक समरूपता:
इसका तात्पर्य विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है अथवा शेष विश्व पर तीव्रता से अपना प्रभाव छोड़ रही है। यह प्रभाव खानपान, पहनावे तथा सोच पर देखा जा सकता है।
→ सांस्कृतिक विभिन्नीकरण:
वैश्वीकरण से प्रत्येक संस्कृति अलग एवं विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक विभिन्नीकरण कहते हैं। मैक्डोनाल्डीकरण-इसका तात्पर्य है कि संसार की विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने आप को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं।
→ संरक्षणवाद-यह विचारधारा जो उदारीकरण तथा वैश्वीकरण का विरोध करती है और देशी उद्योगों एवं उत्पादित वस्तुओं को विदेशी सामानों की प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए चुंगी तथा तटकर इत्यादि का पक्ष लेती है।
→ विश्व व्यापार संगठन-एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन जो विभिन्न देशों के मध्य व्यापार को प्रोन्नत करने हेतु गठित किया गया, जिसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के समान रूप से खुले रूप में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना है।
→ व्यापार:
उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक वस्तुओं का प्रवाह, व्यापार कहलाता है।
→ व्यापार सन्तुलन:
किसी देश के कुल आयात तथा निर्यात मूल्यों का अन्तर व्यापार सन्तुलन है। यदि निर्यात मूल्य, आयात मूल्य से अधिक है तो व्यापार सन्तुलन देश के अनुकूल है और आयात मूल्य, निर्यात मूल्य से अधिक होने पर व्यापार सन्तुलन देश के प्रतिकूल होता है।
→ सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.):
एक दिए गए समय में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य अथवा मौद्रिक मापदण्ड।
→ सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जी.एन.पी.):
सकल घरेलू उत्पाद तथा विदेशों से प्राप्त आय मिलकर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाते
→ साम्राज्यवाद:
जब कोई देश अपनी सीमा से बाहर के क्षेत्र के लोगों के आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन पर अपना आधिपत्य स्थापित करता है तो ऐसी स्थिति को साम्राज्यवाद कहते हैं।
→ वर्ल्ड सोशल फोरम:
नव उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच 'वर्ल्ड सोशल फोरम' है। इस मंच के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा एवं महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर नव उदारवादी वैश्वीकरण का पुरजोर विरोध करते हैं।
→ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
- सन् 1991: भारत ने वित्तीय संकट से उबरने एवं उच्च आर्थिक वृद्धि दर पर प्राप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की योजना प्रारम्भ की।
- सन् 1999: सिएट्ल में विश्व व्यापार संगठन की मन्त्री स्तरीय बैठक सम्पन्न हुई।
- सन् 2001: ब्राजील के पोर्टो अलगेरे में नव उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध में वर्ल्ड सोशल फोरम की प्रथम बैठक हुई।
- सन् 2004: मुम्बई में वर्ल्ड सोशल फोरम की चौथी बैठक हुई।
- जनवरी 2007: नैरोबी (कीनिया) में वर्ल्ड सोशल फोरम की सातवीं बैठक सम्पन्न हुई।
- मार्च 2018: ब्राजील में वर्ल्ड सोशल फोरम की बैठक सम्पन्न हुई।