These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 Notes क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
→ क्षेत्र और राष्ट्र
- 1980 के दशक में देश के कई हिस्सों में स्वायत्तता की माँग उठी। यों तो सरकार ने इन मांगों को दबाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। स्वायत्तता की माँग को लेकर चले अधिकांश संघर्ष लम्बे समय तक जारी रहे और अंततः केन्द्र सरकार को स्वायत्तता के आन्दोलन की अगुवाई कर रहे समूहों से समझौते करने पड़े।
- भारतीय राष्ट्रवाद ने एकता और विविधता के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया है। लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र-विरोधी नहीं मानता। लोकतांत्रिक राजनीति में इस बात के भी पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल व समूह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा या किसी विशेष क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं का नेतृत्व करें।
→ तनाव के दायरे
स्वतंत्रता के तुरन्त बाद हमारे देश को विभाजन, विस्थापन, देसी रियासतों के विलय और राज्यों के पुनर्गठन जैसे कठिन मसलों से जूझना पड़ा। आजादी के तुरन्त बाद जम्मू-कश्मीर का मसला सामने आया। इसी तरह पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। दक्षिण भारत में भी द्रविड़ आन्दोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठायी थी।
→ जन आन्दोलन
- अलगाव के इन आंदोलनों के अलावा देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग करते हुए जन आंदोलन चले। मौजूदा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात ऐसे ही आंदोलनों वाले राज्य हैं। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों विशेषकर तमिलनाडु में हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ विरोध आंदोलन चला।
- सन् 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध से पंजाबी भाषी लोगों ने अपने लिए एक अलग राज्य बनाने की आवाज उठानी प्रारम्भ कर दी। उनकी माँग आखिरकार मान ली गई और सन् 1966 में पंजाब और हरियाणा नाम से राज्य बनाए गए। बाद में छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) व तेलंगाना का गठन हुआ।
→ जम्मू एवं कश्मीर
- जम्मू और कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। जहाँ तक प्रदेश को स्वायत्तता देने की बात थी, यह निर्णय लिया गया कि जम्मू-कश्मीर की नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण के द्वारा होगा। अंततः भारत इसकी स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दे दिया गया।
- जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति बाहरी व आंतरिक दोनों कारणों से विवादग्रस्त और संघर्षयुक्त रही। 1947 से कश्मीर का मामला भारत और पाकिस्तान के बीच द्वंद का मुख्य मुद्दा बना रहा।
- जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रधानमंत्री (तब राज्य के मुखिया को मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री कहा जाता था) का पद संभालने के बाद शेख अब्दुल्ला ने भूमि सुधार की बड़ी मुहिम चलाई। उन्होंने इसके साथ-साथ जन-कल्याण की कुछ नीतियाँ भी लागू कीं। इन सबसे यहाँ की जनता को लाभ हुआ।
- सन् 1953 में केन्द्र सरकार एवं शेख अब्दुल्ला के बीच मतभेद हो जाने के कारण उन्हें बर्खास्त कर दिया गया तथा कई वर्षों तक उन्हें नजरबंद रखा गया।
- सन् 1953 से लेकर 1974 के बीच अधिकांश समय इस राज्य की राजनीति पर कांग्रेस का प्रभाव रहा। कमजोर हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस (शेख अब्दुल्ला के बिना) कांग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में वह कांग्रेस में मिल गई। .
- सन् 1974 में इंदिरा गांधी के साथ शेख अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस को फिर से खड़ा किया और सन् 1977 के राज्य विधानसभा के चुनाव में बहुमत से निर्वाचित हुए।
- 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद उनके पुत्र फारुख अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन वहाँ के लोग उनसे संतुष्ट नहीं थे।
- सन् 1980 के दशक में जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक वातावरण उग्र होने लगा था और 1989 तक यह राज्य उग्रवादी आंदोलन की गिरफ्त में आ चुका था। इस आंदोलन में लोगों को अलग कश्मीर राष्ट्र के नाम पर लामबंद किया जा रहा था। उग्रवादियों को पाकिस्तान ने नैतिक, भौतिक और सैन्य सहायता दी। कई वर्षों तक इस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहा।
- 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया और राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश- जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख कर दिए गए।
- जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख भारत में बहुलवादी समाज के जीते-जागते उदाहरण हैं। वहाँ न केवल समस्त प्रकार की, यथा-धार्मिक, सांस्कृतिक, जातीय, भाषीय और जनजातीय की विविधताएँ हैं बल्कि वहाँ विविध प्रकार की राजनीतिक और विकास की आकांक्षाएँ हैं, जिन्हें नवीनतम अधिनियम द्वारा प्राप्त करने की इच्छा की गई है।
→ द्रविड़ आन्दोलन
द्रविड़ आन्दोलन क्षेत्रीयतावादी भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था। दक्षिण भारत में चले इस आन्दोलन का नेतृत्व ई. वी. रामास्वामी नायकर ने किया था।
→ पंजाब : राजनीतिक संदर्भ
- सन् 1966 में पंजाबी-भाषी प्रांत 'पंजाब' का निर्माण हुआ। सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में सन् 1920 के दशक में अकाली दल का गठन हुआ। अकाली दल ने 'पंजाबी सूबा' के गठन का आंदोलन चलाया।
- सन् 1970 के दशक में अकालियों के एक वर्ग ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठाई। सन् 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ। इस प्रस्ताव में सिख "कौम" की आकांक्षाओं पर बल देते हुए सिखों के 'बोलबाला' (प्रभुत्व या वर्चस्व) का ऐलान किया गया।
- धार्मिक नेताओं के एक वर्ग ने स्वायत्त सिख पहचान की बात उठाई। कुछ चरमपंथी वर्गों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान' नामक देश बनाने की वकालत की। शीघ्र ही आंदोलन का नेतृत्व नरमपंथी अकालियों के हाथ से निकलकर चरमपंथी तत्वों के हाथ में चला गया और आंदोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया।
- जून 1984 में भारत सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' चलाया। यह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई का कूट नाम था। इस सैन्य-अभियान में सरकार ने उग्रवादियों को तो मार गिराया लेकिन ऐतिहासिक स्वर्ण-मंदिर को क्षति भी पहुँची।
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 के दिन उनके आवास के बाहर उन्हीं के अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। ये अंगरक्षक सिख थे और ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना चाहते थे। इस घटना से उत्तर भारत के कई हिस्सों में सिख समुदाय के विरुद्ध हिंसा भड़क उठी।
- सन् 1984 के चुनावों के बाद सत्ता में आने पर नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नरमपंथी अकाली नेताओं से बातचीत की शुरुआत की। अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ जुलाई 1985 में एक समझौता हुआ। इस समझौते को राजीव गांधी लोंगोवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता कहा जाता है।
- पंजाब में सुरक्षा बलों ने उग्रवाद को आखिरकार दबा दिया है और यहाँ की राजनीति अब धर्मनिरपेक्षता की राह पर चल पड़ी है।
→ पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
- पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ सन् 1980 के दशक में एक निर्णायक मोड़ पर आ गई थीं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात राज्य हैं और इन्हें 'सात बहनें' कहा जाता है। 22 किमी. लम्बी एक पतली-सी राहदारी-(रास्ता) इस इलाके को शेष भारत से जोड़ती है।
- पूर्वोत्तर के पूरे इलाके का व्यापक स्तर पर राजनीतिक पुनर्गठन हुआ है। नगालैण्ड को सन् 1963 में राज्य बनाया गया। मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा सन् 1972 में राज्य बने जबकि अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को सन् 1987 में राज्य का दर्जा दिया गया।
- आजादी के बाद मिजो पर्वतीय क्षेत्र को असम के भीतर ही एक स्वायत्त जिला बना दिया गया था। सन् 1966 में मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की माँग करते हुए सशस्त्र अभियान प्रारम्भ किया। इस प्रकार भारतीय सेना और मिजो विद्रोहियों के मध्य लड़ाई की शुरुआत हुई। मिजो नेशनल फ्रंट ने गुरिल्ला युद्ध किया। दो दशकों तक चली बगावत में प्रत्येक पक्ष को हानि उठानी पड़ी।
- सन् 1986 में राजीव गांधी और लालडेंगा के बीच एक शांति समझौता हुआ। समझौते के अन्तर्गत मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और उसे कुछ विशेष अधिकार दिए गए। लालडेंगा मुख्यमंत्री बने।
- सन् 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन बाहरी लोगों के बिरुद्ध चले आंदोलनों का सबसे अच्छा उदाहरण है। असमी लोगों को संदेह था कि बांग्लादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई है।
- सन् 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू-AASU) ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। 'आसू' - एक छात्र संगठन था और इसका जुड़ाव किसी भी राजनीतिक दल से नहीं था।
- छह साल की सतत् अस्थिरता के बाद राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली सरकार ने 'आसू' के नेताओं से बातचीत शुरू की। इसके परिणामस्वरूप सन् 1985 में एक समझौता हुआ। समझौते के अंतर्गत तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश युद्ध के दौरान अथवा उसके बाद के वर्षों में असम आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा।
- अप्रैल 1975 में सिक्किम विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के तहत सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना।
→ समाहार और राष्ट्रीय अखण्डता
- आजादी के सात दशक बाद भी राष्ट्रीय अखंडता के कुछ मसलों का समाधान पूरी तरह से नहीं हो पाया। कभी कहीं से पृथक राज्य बनाने की माँग उठी तो कहीं आर्थिक विकास का मसला उठा। कहीं-कहीं से अलगाववाद के स्वर उभरे।
- क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। ग्रेट ब्रिटेन जैसे छोटे देश में भी स्कॉटलैण्ड, वेल्स और उत्तरी आयरलैण्ड में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभरी हैं। स्पेन में बास्क लोगों और श्रीलंका में तमिलों ने अलगाववादी माँग की।
- भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ विभिन्नताएँ भी बड़े पैमाने पर हैं। अतः भारत को क्षेत्रीय आकांक्षाओं से निपटने की तैयारी निरन्तर रखनी होगी।
- क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है। विभिन्न क्षेत्रों के दलों और समूहों को केन्द्रीय राजव्यवस्था में हिस्सेदार बनना भी आवश्यक होता है।
- दिसम्बर 1961 में भारत सरकार ने गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराकर केन्द्रशासित प्रदेश बना दिए। 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।
→ कश्मीर मुद्दा:
कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा मुद्दा रहा है। सन् 1947 से पूर्व जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिन्दू शासक महाराजा हरिसिंह भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे और उन्होंने अपने स्वतंत्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों को अपनी ओर से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराजा भारतीय सेना से सहायता माँगने को विवश हुए। भारत ने सैन्य सहायता उपलब्ध कराई तथा कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा।
→ नेशनल कांफ्रेंस:
नेशनल कांफ्रेंस जम्मू एवं कश्मीर की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी है। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला इसके प्रमुख नेता थे।
→ द्रविड़ आंदोलन:
भारतीय राजनीति में द्रविड़ आंदोलन क्षेत्रीयतावादी भावनाओं की सर्वप्रथम तथा सबसे प्रबल अभिव्यक्ति थी। इसका नारा था 'उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन-दिन घटता जाए।' इस आंदोलन का नेतृत्व-तमिल समाज सुधारक ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार' के हाथों में था। इस आंदोलन से एक राजनीतिक संगठन 'द्रविड़ कषगम' का सूत्रपात हुआ।
→ आजाद कश्मीर:
सन् 1947 में जम्मू एवं कश्मीर राज्य में पाकिस्तान ने कबायली हमला करवाया था। इसके फलस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियंत्रण में आ गया। भारत ने दावा किया कि यह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को 'आजाद कश्मीर' कहा।
→ उग्रवादी आंदोलन:
जम्मू और कश्मीर में उठे घोर राजनीतिक संकट ने राज्य में जारी उग्रवाद के बीच गंभीर रूप धारण किया। सन् 1989 तक यह राज्य उग्रवादी आंदोलन की गिरफ्त में आ चुका था। इस आंदोलन में लोगों को अलग कश्मीर राष्ट्र के नाम पर लामबंद किया जा रहा था। उग्रवादियों को पाकिस्तान ने नैतिक, भौतिक और सैन्य सहायता दी।
→ अकाली दल:
सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में सन् 1920 के दशक में अकाली दल का गठन हुआ था। मास्टर तारा सिंह अकाली आंदोलन के प्रमुख नेता थे। अकाली दल को पंजाब के हिन्दुओं के बीच कुछ विशेष समर्थन हासिल नहीं था। सन् 1980 में अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया।
→ 'पंजाबी सूबा' के गठन का आंदोलन:
अकाली दल ने 'पंजाबी सूबा' के गठन का आंदोलन चलाया। पंजाबी-भाषी सूबे में सिख बहुसंख्यक हो गए। पंजाबी सूबे के पुनर्गठन के बाद अकाली दल ने यहाँ सन् 1967 व इसके बाद सन् 1977 में सरकार बनाई। दोनों ही बार गठबंधन सरकार बनी।
→ आनंदपुर साहिब प्रस्ताव:
सन् 1970 के दशक में अकालियों के एक वर्ग ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठायी। सन् 1973 ई. में, आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का एक प्रस्ताव पारित हुआ। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठाई गई थी। प्रस्ताव की माँगों में केन्द्र-राज्य संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की बात भी शामिल थी।
→ खालिस्तान की माँग:
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिख समुदाय पर बड़ा कम असर पड़ा। अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया। धार्मिक-नेताओं के एक समूह ने स्वायत्त सिख पहचान की बात उठाई। कुछ चरमपंथी तत्वों ने भारत से अलग होकर 'खालिस्तान' बनाने की वकालत की।
→ चरमपंथी:
पंजाब में चल रहे आंदोलन का नेतृत्व नरमपंथी अकालियों के हाथ से निकलकर चरमपंथी तत्वों के हाथ में चला गया और आंदोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। उग्रवादियों ने अमृतसर स्थित सिखों के तीर्थ स्वर्ण मंदिर में अपना मुख्यालय बनाया।
→ ऑपरेशन ब्लू स्टार:
जून सन् 1984 में भारत सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' चलाया। यह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई का कूट नाम था। इस सैन्य अभियान में सरकार ने उग्रवादियों को तो सफलतापूर्वक मार भगाया लेकिन सैन्य कार्रवाई से ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर को भी क्षति पहुँची। इससे सिखों की भावनाओं को गहरी चोट लगी।
→ राजीव गाँधी-लोंगोवाल समझौता:
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ जुलाई 1985 में एक समझौता हुआ। इसे राजीव गांधी, लोंगोवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता कहा जाता है। समझौता पंजाब में शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस बात पर सहमति हुई कि चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाएगा और पंजाब तथा हरियाणा के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक पृथक् आयोग की नियुक्ति होगी।
→ पूर्वोत्तर के सात राज्य अथवा 'सात बहनें':
पूर्वोत्तर में सात राज्य हैं-अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा। इन राज्यों को 'सात बहनें' कहा जाता है।
→ ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन:
गैर-असमी लोगों को जब लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस इलाके से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। पूरे राज्य में असमी भाषा को लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। बड़े जनजाति समुदाय के लोगों ने 'ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन' का गठन किया जो 1960 में कहीं ज्यादा व्यापक 'ऑल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस' में परिवर्तित हो गया।
→ मिजो नेशनल फ्रंट:
सन् 1959 में मिजो पर्वतीय क्षेत्र में भारी अकाल पड़ा। असम की सरकार इस अकाल में समुचित प्रबंध करने में नाकाम रही। इसी के बाद अलगाववादी आंदोलन को जनसमर्थन मिलना शुरू हुआ। मिजो लोगों ने नाराज होकर लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट बनाया।
→ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन या (आसू-AASU):
सन् 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू-AASU) ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। 'आसू' एक छात्र-संगठन था और इसका जुड़ाव किसी भी राजनीतिक दल से नहीं था। 'आसू का आंदोलन अवैध अप्रवासी, बंगाली और अन्य लोगों के दबदबे तथा मतदाता सूची में लाखों अप्रवासियों के नाम दर्ज कर लेने के खिलाफ था।
→ असम गण परिषद्:
'आसू' और असम गण संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर अपने को एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में संगठित किया। इस पार्टी का नाम 'असम गण परिषद्' रखा गया। असम गण परिषद् सन् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आई थी कि विदेशी लोगों की समस्या को सुलझा लिया जाएगा और एक 'स्वर्णिम असम' का निर्माण किया जाएगा।
→ ई.वी.रामास्वामी नायकर :
पेरियार के नाम से प्रसिद्ध। इन्होंने द्रविड़ कषगम की स्थापना की तथा हिन्दी व उत्तर भारतीय वर्चस्व का विरोध किया।
→ शेख मोहम्मद अब्दुल्ला :
भारत में विलय के पश्चात् जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने। इन्होंने जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता एवं धर्म-निरपेक्षता का समर्थन किया।
→ मास्टर तारा सिंह :
सिखों के प्रमुख धार्मिक एवं राजनैतिक नेता। इन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात् अलग पंजाब राज्य के निर्माण का समर्थन किया तथा अकाली आन्दोलन का नेतृत्व किया।
→ संत हरचन्द सिंह लोंगोवाल :
सिखों के प्रमुख धार्मिक एवं राजनैतिक नेता। इन्होंने अकालियों की प्रमुख माँगों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के साथ समझौता किया।
→ लालडेंगा :
मिजो नेशनल फ्रंट के संस्थापक व नेता। इन्होंने भारत के विरुद्ध दो दशक तक सशक्त संघर्ष का नेतृत्व किया तथा नव-निर्मित मिजोरम राज्य के मुख्यमंत्री बने।
→ अंगमी जापू फिजो :
नगालैंड की स्वतंत्रता आन्दोलन के नेता। इन्होंने भारत सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की।
→ काजी लैंदुप दोरजी खांगसरपा :
सिक्किम के लोकतंत्र बहाली आन्दोलन के नेता। इन्होंने सिक्किम के भारत में विलय का समर्थन किया।
→ राजीव गाँधी :
सन् 1984 से 1989 के मध्य देश के प्रधानमंत्री रहे। इन्होंने पंजाब के आतंकवादियों, मिजो विद्रोहियों एवं असम में छात्र संघ से समझौता किया।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ ।
- 1947 ई.: अक्टूबर माह में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों को कश्मीर पर कब्जा करने भेजा।
- 1948 ई.: मार्च माह में शेख अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रधानमंत्री बने।
- 1951 ई.: नगा लोगों के एक वर्ग ने अंगमी जापू फिजो के नेतृत्व में अपने को भारत से स्वतंत्र घोषित कर दिया।
- 1953 ई.: जम्मू और कश्मीर में शेख अब्दुल्ला की सरकार बर्खास्त। 1961 ई. गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्ति मिली।
- 1963 ई.: नगालैण्ड राज्य का गठन हुआ।
- 1965 ई.: जम्मू और कश्मीर के संविधान में परिवर्तन कर राज्य के प्रधानमंत्री का पदनाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया।
- 1966 ई.: पंजाब एवं हरियाणा राज्यों का गठन किया गया। मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की माँग करते हुए सशस्त्र अभियान प्रारम्भ किया।
- 1967 ई.: तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डी.एम.के.) को सफलता प्राप्त हुई।
- 1972 ई.: मेघालय, मणिपुर एवं त्रिपुरा राज्य का गठन हुआ।
- 1973 ई.: आनन्दपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में पंजाब की स्वायत्तता का प्रस्ताव पारित हुआ।
- 1974 ई.: इन्दिरा गाँधी एवं शेख अब्दुल्ला के मध्य एक समझौता हुआ। 1975 ई. सिक्किम भारतीय संघ में राज्य के रूप में सम्मिलित हुआ।
- 1979 ई.: ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने विदेशियों के विरोध में एक आन्दोलन चलाया।
- 1982 ई.: शेख अब्दुल्ला की मृत्यु।
- 1984 ई.: जून माह में भारत सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया। 31 अक्टूबर को इन्दिरा गाँधी की गोली मारकर हत्या।
- 1985 ई.: असम गण परिषद सत्ता में इस वायदे के साथ आई कि विदेशी लोगों की समस्या को सुलझा लिया जाएगा और एक 'स्वर्णिम असम' का निर्माण किया जायेगा। जुलाई में पंजाब में शांति स्थापना हेतु
- 1986 ई.: प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोगोंवाल के मध्य समझौता हुआ।
- 1987 ई.: अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया। 1996 ई. राज्य विधानसभा के चुनाव हुए, फारुख अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार बनी, जम्मू-कश्मीर ने स्वायत्तता की माँग की।
- 1997 ई.: अकाली दल (बादल) और भाजपा के गठबंधन को बड़ी विजय मिली।
- 2000 ई.: छत्तीसगढ़, झारखण्ड एवं उत्तरांचल (उत्तराखण्ड) राज्य का गठन हुआ।
- 2002 ई.: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए। नेशनल कांफ्रेंस को बहुमत नहीं मिल पाया। इस चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस और कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई।
- 2019 ई.: 5 अगस्त को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया और राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश- जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख बना दिए गए।