RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

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RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 Notes जन आंदोलनों का उदय

→ जन आन्दोलनों की प्रकृति:
सन् 1970 के दशक में विभिन्न सामाजिक वर्गों, जैसे-महिला, विद्यार्थी, दलित और किसानों को यह महसूस हुआ कि लोकतांत्रिक राजनीति उनकी आवश्यकताओं और माँगों पर ध्यान नहीं दे रही है। जिस कारण इस प्रकार के समूहों ने विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग से आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए। 

→ चिपको आन्दोलन

  • भारत के पर्यावरणीय आन्दोलनों में 'चिपको आन्दोलन' एक विश्व प्रसिद्ध आन्दोलन था। आन्दोलन की शुरुआत सन् 1973 में उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँवों से हुई थी। गाँव वालों ने वन विभाग से कहा कि खेतीबाड़ी के औजार बनाने के लिए हमें अंगू के पेड़ (Ash tree) काटने की अनुमति दी जाए। वन विभाग ने अनुमति देने से इंकार कर दिया तथा खेल सामग्री बनाने वाली एक कम्पनी को जमीन का यह टुकड़ा आवंटित कर दिया। चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। 
  • गाँव के लोगों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए पेड़ों को अपनी बाँहों में घेर लिया ताकि उन्हें कटने से बचाया जा सके। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ सामाजिक आन्दोलन

  • औपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर भी विचार मंथन चला जिससे अनेक स्वतंत्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ, जैसे-जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठन के आन्दोलन। ये आन्दोलन बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में अस्तित्व में आए। 
  • मुम्बई, कोलकाता और कानपुर जैसे बड़े शहरों के औद्योगिक मजदूरों के बीच मजदूर संगठनों के आन्दोलन का बड़ा जोर था। आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में किसान तथा खेतिहर मजदूरों ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अपना विरोध जारी रखा। 
  • राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा चुनावी राजनीति से उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने जनता को संगठित करना शुरू किया। 
  • मध्य वर्ग के युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी संगठन या स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन कहा गया। स्थानीय अथवा क्षेत्रीय स्तर पर ये संगठन न तो चुनाव लड़े और न ही इन्होंने किसी एक राजनीतिक दल को अपना समर्थन दिया। 

→ दलित आन्दोलन

  • दलित समुदाय अपने लिए एक सुन्दर भविष्य की आशा से भरा हुआ था- एक ऐसा भविष्य जिसे दलित समुदाय स्वयं अपने हाथों से गढ़े। सातवें दशक के शुरुआती वर्षों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठाई। 
  • दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन 'दलित पैंथर्स' बना। आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की ऐसी नीतियों का कुशलतापूर्वक क्रियान्वयन इनकी प्रमुख माँग थी। 
  • इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून बनाया। इस कानून के अन्तर्गत दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। 
  • आपातकाल के बाद के दौर में दलित पैंथर्स ने चुनावी समझौते किए। उसमें कई विभाजन भी हुए और यह संगठन राजनीतिक पतन का शिकार हुआ। बैकवर्ड एण्ड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन (बामसेफ) ने दलित पैंथर्स की अवनति से उत्पन्न रिक्त स्थान की पूर्ति की।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ किसान आन्दोलन

  • जनवरी 1988 में उत्तर प्रदेश के एक शहर मेरठ में लगभग बीस हजार किसान एकत्रित हुए। ये किसान सरकार द्वारा बिजली की दरों में की गयी वृद्धि का विरोध कर रहे थे। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धरना था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस-पास के गाँवों से उन्हें निरन्तर राशन-पानी मिलता रहा। 
  • महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आन्दोलन को 'इण्डिया' की ताकतों (शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ 'भारत' (ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम घोषित किया। 
  • सरकार पर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव डालने के क्रम में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो अभियान का सहारा लिया। इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उसके आसपास के क्षेत्रों के गाँवों के हजारों किसानों ने भाग लिया।
  • सन् 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों के संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। 

→ अन्य जन आन्दोलन

  • सन् 1980 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में आर्थिक उदारीकरण की नीति की शुरुआत हुई तो बाध्य होकर मछुआरों के स्थानीय संगठनों ने अपना एक राष्ट्रीय मंच बनाया। इसका नाम 'नेशनल फिश वर्कर्स फोरम' रखा गया। इस संगठन ने सन् 1997 में केन्द्र सरकार के साथ अपनी पहली कानूनी लड़ाई लड़ी और उसे सफलता मिली। 
  • आन्ध्र प्रदेश में महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। इसे राज्य में 'ताड़ी-विरोधी आन्दोलन' के रूप में जाना गया। शराबखोरी से क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही थी। परिवारों में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा। ताड़ी विरोधी आन्दोलन का नारा था-'ताड़ी की बिक्री बंद करो।
  • ताड़ी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच एक गहरा सम्बन्ध बन गया था। महिलाएँ घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुले तौर पर चर्चा करने लगी। इस तरह ताड़ी विरोधी आन्दोलन महिला आन्दोलन का एक हिस्सा बन गया। 
  • संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अन्तर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया। इस व्यवस्था को राज्यों की विधानसभाओं तथा संसद में भी लागू करने की माँग की जा रही है। 
  • नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आन्दोलन ने बाँधों के निर्माण का विरोध किया।
  • नर्मदा बचाओ आन्दोलन इन बाँधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाता रहा है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का गुजरात जैसे राज्यों में तीव्र विरोध हुआ है परन्तु अब सरकार और न्यायपालिका दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि लोगों को पुनर्वास मिलना चाहिए। सरकार द्वारा सन् 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आन्दोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। 
  • जन आन्दोलनों का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को ठीक ढंग से समझने में मदद देता है। सामाजिक-आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे। 
  • जन आन्दोलनों द्वारा लामबंद की जाने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से सम्बन्ध रखती है। 
  • सूचना के अधिकार का आन्दोलन जन आन्दोलनों की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। यह आन्दोलन सरकार से एक बड़ी माँग को पूरा कराने में सफल रहा है। इस आन्दोलन की शुरुआत सन् 1990 में हुई तथा इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया। 
  • सन् 1996 में मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया। इस कार्यवाही का लक्ष्य सूचना के अधिकार को राष्ट्रीय अभियान का रूप देना था। 
  • सन् 2002 में 'सूचना की स्वतंत्रता' नाम का एक विधेयक पारित हुआ था। यह एक कमजोर अधिनियम था और इसे अमल में नहीं लाया गया। जून 2005 में 'सूचना का अधिकार' विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी। 
  • आन्दोलन का अभिप्राय केवल धरना-प्रदर्शन या सामूहिक कार्यवाही नहीं होता। इसके अन्तर्गत किसी समस्या से पीड़ित लोगों का धीरे-धीरे एकजुट होना और समान अपेक्षाओं के साथ एक-सी माँग उठाना जरूरी है।

→ जन आन्दोलन:
ऐसे आन्दोलन जो दलगत राजनीति से दूर एवं जन सामान्य के हित में चलाये जाते हैं, उन्हें जन आन्दोलन कहा जाता है, जैसे-चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन, भारतीय किसान यूनियन आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन आदि। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ चिपको आन्दोलन:
यह आन्दोलन पेड़ों या वनों की कटाई को रोकने वाला एक पर्यावरणीय आन्दोलन था। यह आन्दोलन सन् 1973 में उत्तराखण्ड राज्य के कुछ गाँवों से प्रारम्भ हुआ था। इसके अन्तर्गत अंगू के वृक्षों को बचाने के लिए महिलाएँ
पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो जाती थीं। 

→ दल-आधारित आन्दोलन:
जो आन्दोलन किसी राजनीतिक दल के सहयोग से प्रारम्भ किये जाते हैं उन्हें दल-आधारित आन्दोलन कहते हैं। उदाहरणार्थ-सन् 1885 से 1947 तक का भारत का स्वाधीनता आन्दोलन तथा सन् 1977 का जनता पार्टी का राजनीतिक आन्दोलन।

→ सामाजिक आन्दोलन:
ऐसे आन्दोलन जो मुख्य रूप से किसी भी संगठन द्वारा सामाजिक समस्याओं पर चलाये जाते हैं तथा इनसे समाज को एक नई दिशा मिलती है। ऐसे आन्दोलन हैं-19वीं शताब्दी के जाति प्रथा, सती प्रथा या नारी मुक्ति
आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन आदि। 

→ आर्थिक आन्दोलन:
ऐसे आन्दोलन जो मुख्य रूप से किसी आर्थिक समस्या से जुड़े हुए हों; जैसे-किसान आन्दोलन, मजदूर आन्दोलन, नेशनल फिश वर्कर्स फोरम का आन्दोलन आदि। ऐसे आन्दोलनों के द्वारा मजदूर व श्रमिक वर्ग प्रायः अपने आर्थिक हितों के लिए संघर्ष करते हैं। 

→ राजनीतिक दलों से स्वतंत्र आन्दोलन:
जो आन्दोलन स्वयंसेवी संगठनों, स्थानीय लोगों, छात्रों द्वारा किसी समस्या से पीड़ित होने के कारण शुरू किये जाते हैं, उन्हें राजनीतिक दलों से स्वतंत्र जन आन्दोलन कहते हैं। जैसे- दलित पैंथर्स, ताड़ी विरोधी आन्दोलन। 

→ स्वयंसेवी संगठन:
मध्य वर्ग के युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन .. चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन कहा गया। ऐसे स्वयंसेवी संगठनों ने अपने को दलगत राजनीति से दूर रखा।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ दलित पैंथर्स:
सातवें दशक के शुरुआती वर्षों में शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठाई। इनमें अधिकांशतः शहर की झुग्गी-बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन 'दलित पैंथर्स' बना। आरक्षण का कानून तथा सामाजिक न्याय इनकी प्रमुख माँगें थीं।

→ बामसेफ:
आपातकाल के बाद के दौर में दलित पैंथर्स ने चुनावी समझौते किए। उसमें कई विभाजन भी हुए और यह संगठन राजनीतिक पतन का शिकार हुआ। बैकवर्ड एण्ड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन (बामसेफ) ने दलित पैंथर्स की अवनति से उत्पन्न रिक्त स्थान की पर्ति की। 

→ भारतीय किसान यूनियन अथवा बीकेयू:
बीकेयू पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का एक संगठन था। यह सन् 1980 के दशक के किसान आन्दोलन के अग्रणी संगठनों में से एक था। सरकार पर अपनी माँगों को मानने के लिए दबाव डालने के क्रम में बीकेयू ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो अभियान का सहारा लिया। देश की राजधानी दिल्ली में भी बीकेयू ने रैली का आयोजन किया। 

→ शेतकारी संगठन:
महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आन्दोलन को 'इण्डिया' की ताकतों (यानि शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ 'भारत' (यानि ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम करार दिया। 

→ नेशनल फिश वर्कर्स फोरम:
यह संगठन सन् 1980 के मध्य के बाद से शुरू होने वाली उदारवादी नीति के अन्तर्गत विदेशी कम्पनियों को भारत में पूर्वी तथा पश्चिमी तट पर लाइसेंस देकर देशी मछुआरों की जीविका के लिए उत्पन्न खतरों से 'बॉटम ट्राऊलिंग'(समुद्र तली से मछली का शिकार करने की तकनीक) जैसी प्रौद्योगिकी के उपयोग की केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमति के विरुद्ध गठित किया गया।

→ ताड़ी-विरोधी आन्दोलन (शराब विरोधी आन्दोलन):
आन्ध्र प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। इस आन्दोलन ने ऐसा रूप धारण किया कि इसे राज्य में ताड़ी-विरोधी आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। 

→ नर्मदा बचाओ आन्दोलन:
नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आन्दोलन ने बाँधों के निर्माण का विरोध किया। नर्मदा बचाओ आन्दोलन बाँधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाता रहा है। 

→ जाति पंचायत:
वह पंचायत जो जाति विशेष की समस्याओं को ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में उठाए और उनके समाधान के लिए जाति मंच का प्रयोग करें। 

→ सूचना के अधिकार का आन्दोलन:
सूचना के अधिकार का आन्दोलन जन आन्दोलनों की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। इस आन्दोलन की शुरुआत सन् 1990 में हुई तथा इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया। इस मुहिम के तहत ग्रामीणों ने प्रशासन से अपने वेतन और भुगतान के बिल उपलब्ध कराने को कहा। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ 'सूचना की स्वतंत्रता' विधेयक:
सन् 2002 में 'सूचना की स्वतंत्रता' नाम का एक विधेयक पारित हुआ था। यह एक कमजोर अधिनियम था और इसे अमल में नहीं लाया गया। जून 2005 में 'सूचना के अधिकार' के विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त हुई। 

→ नामदेव ढसाल:
मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि। इन्होंने अनेक रचनाएँ लिखी जिनमें से 'गोलपीठ की मराठी कविता' प्रसिद्ध है। 

→ महेन्द्रसिंह टिकैत:
भारतीय किसान यूनियन (बी. के. यू.) के अध्यक्ष रहे। बी. के. यू. पश्चिमी उत्तर प्रदेश व हरियाणा के किसानों का एक संगठन था। यह संगठन वर्तमान में भी संचालित है।

→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ

  • 1973 ई.: उत्तराखण्ड के एक गाँव के लोगों ने एकजुट होकर वनों की व्यावसायिक कटाई का विरोध किया। 
  • 1988 ई.: जनवरी माह में किसानों ने बिजली की दरों में वृद्धि के विरोध में मेरठ (उत्तर प्रदेश) में एक विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया। 
  • 1989 ई.: सरकार द्वारा दलितों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए एक व्यापक कानून का निर्माण किया गया। 
  • 1990 ई.: सूचना के अधिकार के आन्दोलन की शुरुआत हुई। 
  • 1992 ई.: ताड़ी (शराब) की बिक्री के विरोध में हैदराबाद की महिलाओं का विरोध प्रदर्शन। 
  • 1996 ई.: मजदूर किसान शक्ति संगठन ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया। 
  • 2002 ई.: जुलाई माह में मछुआरों के संगठन नेशनल फिशवर्कर्स फोरम (एन.एफ.एफ.) ने एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। 'सूचना की स्वतंत्रता' नाम का एक विधेयक पारित हुआ।
  • 2003 ई.: सरकार ने राष्ट्रीय पुनर्वास नीति की घोषणा की।
  • 2004 ई.: सूचना के अधिकार के विधेयक को संसद में रखा गया।
  • 2005 ई.: जून माह में सूचना के अधिकार विधेयक को राष्ट्रपति से स्वीकृति प्राप्त हुई।
Prasanna
Last Updated on Jan. 19, 2024, 9:20 a.m.
Published Jan. 18, 2024