These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 Notes समकालीन विश्व में सरक्षा
→ सुरक्षा का अर्थ
- सामान्यतया दूसरे महायुद्ध के पश्चात् की दुनिया को समकालीन विश्व की उपमा (संज्ञा) दी जाती है।
- सुरक्षा का अभिप्राय खतरे से आजादी है, जिसका सम्बन्ध जीवन के केन्द्रीय मूल्यों के खतरे से है।
- सुरक्षा की दो धारणाएँ-पारम्परिक तथा अपारम्परिक होती हैं।
- सुरक्षा को पारम्परिक अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है।
- सुरक्षा की पारम्परिक धारणा के दो रूप हैं-बाह्य सुरक्षा और आन्तरिक सुरक्षा।
- बाह्य सुरक्षा की पारम्परिक नीतियों में आत्मसमर्पण, अपरोध, रक्षा, शक्ति सन्तुलन व गठबन्धन बनाना है।
- बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं-आत्मसमर्पण करना, दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अथवा युद्ध से होने वाले विनाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला न करे या युद्ध ठन जाए तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने उद्देश्य में सफल न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना।
- सुरक्षा की परम्परागत धारणा में किसी देश की सुरक्षा को प्रमुख खतरा देश की सीमा के बाहर से होता है।
- सुरक्षा की परम्परागत धारणा में आन्तरिक सुरक्षा के खतरे शीतयुद्ध जनित संघर्ष, उपनिवेशों में चलने वाले स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा देश के भीतर अलगाववादी आन्दोलनों की वजह से होते हैं।
→ सुरक्षा के पारम्परिक तरीके
- सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में माना जाता है कि हिंसा का इस्तेमाल यथासम्भव सीमित होना चाहिए। इसका सम्बन्ध युद्ध के लक्ष्य तथा साधन दोनों से है।
- सुरक्षा की तीन परम्परागत विधियाँ नि:शस्त्रीकरण, अस्त्र नियन्त्रण तथा देशों के बीच विश्वास की बहाली हैं।
- जैविक तथा रासायनिक हथियारों को रखने तथा बनाने को प्रतिबन्धित करने वाली सन् 1972 की जैविक हथियार सन्धि (बॉयोलॉजिकल वीपन्स कन्वेन्शन-BWC) पर 155 से अधिक देशों ने हस्ताक्षर किए हैं जबकि सन् 1992 की रासायनिक हथियार सन्धि (केमिकल वीपन्स कन्वेन्शन-CWC) पर 181 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
- सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सन्धि (ABM) ने अमेरिका तथा सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा-कवच के रूप में इस्तेमाल करने तथा इनके व्यापक उत्पादन से रोक दिया।
→ सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा
- सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में सैन्य खतरे ही नहीं बल्कि मानवीय अस्तित्व पर प्रहार करने वाले व्यापक खतरों एवं आशंकाओं को सम्मिलित किया जाता है। मानवता की सुरक्षा का विचार राज्य की सुरक्षा से अधिक जनता-जनार्दन की सुरक्षा को मानता है।
- सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के अन्तर्गत अभाव तथा भय से मुक्ति पर जोर दिया जाता है।
- विश्वव्यापी खतरे जैसे वैश्विक तापवृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा एड्स, बर्ड फ्लू व सार्स जैसी महामारियों के कारण 1990 के दशक में विश्व सुरक्षा की धारणा उभरी।
→ खतरे के नए स्रोत
- सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के दो पक्ष हैं- मानवता की सुरक्षा तथा विश्व सुरक्षा। ये दोनों सुरक्षा के सन्दर्भ में खतरों की परिवर्तित होती प्रकृति पर जोर देते हैं।
- अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स एवं बर्ड फ्लू तथा कोरोना जैसी महामारियाँ, ग्लोबल वार्मिंग, मानवाधिकार उल्लंघन, गरीबी-असमानता तथा शरणार्थियों एवं विस्थापितों की समस्या इत्यादि सुरक्षा के नवीन खतरे है।
→ सहयोगमूलक सुरक्षा
- वर्तमान सन्दर्भ में सहयोगमूलक सुरक्षा पर जोर दिया जाता है।
- सुरक्षा पर मैंडराते अनेक अपारम्परिक खतरों से निपटने के लिए सैन्य संघर्ष की अपेक्षा आपसी सहयोग की आवश्यकता है।
- विभिन्न देशों के मध्य सहयोग द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महादेशीय अथवा वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह सहयोग खतरे की प्रकृति पर निर्भर करेगा। सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर की अन्य संस्थाएँ; जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, स्वयंसेवी संगठन, निजी संगठन, दानदाता संस्थाएँ, चर्च, धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन, व्यावसायिक संगठन, निगम तथा जानीमानी हस्तियाँ सम्मिलित हो सकती हैं।
- सुरक्षात्मक मूलक सुरक्षा में अन्तिम उपाय के रूप में बल प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यह बल प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से एवं सामूहिक रूप में होना चाहिए।
→ भारत-सुरक्षा की रणनीतियाँ
- भारत को पारम्परिक (सैन्य) एवं अपारम्परिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अन्दर से भी उभरे हैं एवं बाहर से भी।
- भारत की सुरक्षा नीति के चार प्रमुख घटक हैं-सैन्य क्षमता को मजबूत करना, अन्तर्राष्ट्रीय नियमों एवं संस्थाओं को मजबूत करना देश की आन्तरिक सुरक्षा-समस्याओं से निबटने की तैयारी व आर्थिक विकास की रणनीति।
- भारत के लिए अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करना अति आवश्यक है क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों से हमले होते रहे हैं।
- भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण एवं निशस्त्रीकरण के प्रयासों का प्रबल समर्थन किया।
- भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने के लिए लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है।
- यह व्यवस्था विभिन्न समुदाय एवं जनसमूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने एवं सत्ता में भागीदारी करने का अवसर प्रदान करती है।
→ शक्ति सन्तुलन:
आपात स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए युद्ध की परिस्थिति उत्पन्न होने पर अपने सम्भावित दुश्मन से टक्कर लेने के लिए पहले ही अन्य देशों का सहयोग प्राप्त करके उसे अपने पक्ष में बनाये रखना शक्ति सन्तुलन कहलाता है ताकि शत्रु को करारा जवाब दिया जा सके।
→ अपरोध नीति:
युद्ध की आशंका को रोकने की सुरक्षा नीति को अपरोध नीति कहा जाता है।
→ रक्षा:
रक्षा से आशय युद्ध को सीमित रखना अथवा उसको समाप्त करने से है।
→ गठबन्धन:
यह प्रारम्भिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिसमें अनेक देश सम्मिलित होते हैं तथा वह सैन्य आक्रमण को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए उचित कदम उठाते हैं।
→ आन्तरिक सुरक्षा:
देश के भीतर कानून एवं व्यवस्था कायम रखना जिससे जनसाधारण के जान-माल तथा सम्मान की रक्षा की जा सके।
→ न्याय युद्ध:
इसका तात्पर्य सीमित हिंसा का प्रयोग अथवा आत्मरक्षा के लिए ही युद्ध करना अथवा दूसरे अन्य लोगों को जनसंहार से बचाने हेतु युद्ध करना है।
→ निशस्त्रीकरण:
इसका तात्पर्य हथियारों के निर्माण अथवा उनको प्राप्त करने पर अंकुश लगाना है।
→ अस्त्र नियन्त्रण:
इसका अभिप्राय कुछ विशेष हथियारों के प्रयोग से परहेज करना है।
→ आतंकवाद:
आतंकवाद का आशय राजनीतिक हिंसा से है जो जानबूझकर की जाती है। इसका निशाना नागरिक होते हैं ताकि समाज में दहशत पैदा की जा सके।
→ शरणार्थी:
वे नागरिक जो युद्ध, प्राकृतिक आपदा, राजनीतिक अशान्ति अथवा किसी अन्य संघर्ष के कारण स्वदेश या अपना निवास क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं, उन्हें शरणार्थी कहा जाता है।
→ आप्रवासी:
अपनी इच्छा से स्वदेश छोड़ने वाले लोग आप्रवासी कहलाते हैं।
→ मानव अधिकार:
मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को नस्ल, जाति, धर्म तथा वंश, रंग, लिंग व भाषा आदि के भेदभाव के बिना मिलने चाहिए।
→ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
- सन् 1962: चीन ने भारत पर हमला किया।
- सन् 1967: पहले परमाणु हथियार बना लिए गये थे, उनका परीक्षण कर लिया गया था, NTP के अन्तर्गत रखने का अधिकार।
- सन् 1972: 155 से अधिक देशों ने जैविक हथियार सन्धि (BWC) पर हस्ताक्षर किये। एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सन्धि हुई, जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने से रोका।
- सन् 1974: भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
- सन् 1992: 181 देशों ने रासायनिक हथियार सन्धि (CWC) पर हस्ताक्षर किये।
- सन् 1997: भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए।
- सन् 1998: भारत ने द्वितीय परमाणु परीक्षण किया।
- सन 2001: 11 सितम्बर, 2001 को आतंकवादियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला किया।