These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 6 Notes लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
→ आपातकाल की पृष्ठभूमि
- सन् 1967 के पश्चात् से भारतीय राजनीति में इंदिरा गाँधी एक मजबूत नेता के रूप में उभरी थीं तथा उनकी लोकप्रियता अपने उच्चतम स्तर पर थी। इस दौर में दलगत प्रतिस्पर्धा कहीं अधिक तीखी व ध्रुवीकृत हो चली थी। इस अवधि में न्यायपालिका तथा सरकार के परस्पर रिश्तों में भी तनाव आए।
- 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। सन् 1971-72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में कुछ विशेष सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे।
- सन् 1972-73 के वर्ष में मानसून असफल रहा। इससे कृषि की पैदावार में अत्यन्त गिरावट आई। आर्थिक स्थिति की बदहाली को लेकर पूरे देश में असंतोष का माहौल था। इस स्थिति में गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने बड़े कारगर तरीके से जन-विरोध का नेतृत्व किया।
- इस अवधि में कुछ मार्क्सवादी समूहों की सक्रियता भी बढ़ी। इन समूहों ने वर्तमान राजनीतिक प्रणाली तथा पूँजीवादी व्यवस्था को खत्म करने के लिए हथियार उठाये व राज्य विरोधी तकनीकों का सहारा लिया। ये समूह मार्क्सवादी-लेनिनवादी (अब माओवादी) अथवा नक्सलवादी के नाम से जाने गए।
- गुजरात और बिहार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। जनवरी 1974 में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया।
→ गुजरात व बिहार के आंदोलन
- मोरारजी देसाई अपने कांग्रेस के दिनों में इंदिरा गाँधी के प्रमुख विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्थित छात्र-आन्दोलन के गहरे दबाव में जून 1975 में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस इस चुनाव में हार गई।
- मार्च 1974 में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आन्दोलन छेड़ दिया। आन्दोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा। आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना प्रारम्भ हुआ।
- सन् 1975 में जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने जनता के 'संसद मार्च' का नेतृत्व किया। देश की राजधानी में अब तक इतनी बड़ी रैली नहीं हुई थी। जय प्रकाश नारायण को अब भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी जैसे, गैर-कांग्रेसी दलों का समर्थन मिला।
→ न्यायपालिका से संघर्ष
- सन् 1974 में रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से संबंधित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। बोनस और सेवा से जुड़ी शर्तों के सम्बन्ध में अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए इस हड़ताल का आह्वान किया गया था।
- इस दौर में न्यायपालिका के सरकार और शासक दल के गहरे मतभेद उभरे। केशवानन्द भारती के मशहूर केस में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान का एक बुनियादी ढाँचा है और संसद इन ढाँचागत विशेषताओं में संशोधन नहीं कर सकती है।
- सन् 1973 में केशवानन्द भारती के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने के तुरन्त बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हुआ। सन् 1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके इनसे कनिष्ठ न्यायमूर्ति ए.एन.रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बन गया।
→ आपातकाल की घोषणा
- 12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। यह फैसला समाजवादी नेता राजनारायण द्वारा दायर एक चुनाव याचिका के मामले में सुनाया गया था।
- 24 जून, 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर आंशिक स्थगनादेश सुनाते हुए कहा कि जब तक इस फैसले को लेकर की गई अपील की सुनवाई नहीं होती तब तक इंदिरा गाँधी सांसद बनी रहेंगी, लेकिन लोकसभा की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकती हैं।
- 25 जून, 1975 के दिन सरकार ने घोषणा की कि देश में गड़बड़ी की आशंका है और इस तर्क के साथ उसने संविधान के अनुच्छेद 352 को लागू कर दिया। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत प्रावधान किया गया है कि बाहरी या अन्दरूनी गड़बड़ी की आशंका होने पर सरकार आपातकाल लागू कर सकती है।
- आपातकाल की घोषणा के साथ ही शक्तियों के बँटवारे का संघीय ढाँचा व्यावहारिक तौर पर निष्प्रभावी हो जाता है और समस्त शक्तियाँ केन्द्र सरकार के हाथ में चली जाती हैं। दूसरे, सरकार चाहे तो ऐसी स्थिति में किसी एक अथवा सभी मौलिक अधिकारों पर रोक लगा सकती है अथवा उनमें कटौती कर सकती है।
- आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेना जरूरी है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।
→ परिणाम
- सरकार ने निवारक नजरबंदी को बड़े पैमाने पर प्रयोग किया। इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को गिरफ्तार इसलिए नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है बल्कि इसके विपरीत, इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं।
- इंदिरा गाँधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संशोधन हुआ। इस संशोधन के द्वारा प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ।
- 42वें संशोधन के जरिये अनेक बदलाव हुए, उन बदलावों में से एक था- देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 से 6 वर्ष करना।
→ आपातकाल के संदर्भ में विवाद
- मई 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन 25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गयी कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं की जाँच के लिए किया गया था।
- आपातकाल की घोषणा के बाद शुरुआती महीनों में मध्य वर्ग इस बात से बड़ा खुश था कि विरोधी आन्दोलन समाप्त हो गया और सरकारी कर्मचारियों पर अनुशासन लागू हुआ। समाज के विभिन्न वर्गों की अलग-अलग अपेक्षाएँ थीं और इस कारण आपातकाल को लेकर उनके दृष्टिकोण भी अलग-अलग थे।
- आपातकाल की घोषणा के कारण का उल्लेख करते हुए संविधान में बड़े सादे ढंग से 'अंदरूनी गड़बड़ी' जैसे शब्द का व्यवहार किया गया है। 1975 से पहले कभी भी 'अंदरूनी गड़बड़ी' को आधार बनाकर आपातकाल की घोषणा नहीं की गई थी।
- राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और प्रेस पर लगी पाबंदी के अतिरिक्त आपातकाल का बुरा प्रभाव आम लोगों को भी भुगतना पड़ा। आपातकाल के दौरान पुलिस हिरासत में मौत और यातना की घटनाएँ घर्टी। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ठप्प पड़ने पर लोगों पर क्या गुजरती है।
→ आपातकाल के बाद की राजनीति
- आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतंत्र को समाप्त कर पाना बहुत कठिन है। दूसरे आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिनमें बाद में सुधार कर लिया गया।
- 18 महीने के आपातकाल के बाद जनवरी 1977 में सरकार ने चुनाव कराने का फैसला किया। इसी के तहत सभी नेताओं व राजनैतिक कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया। मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए। ऐसे में विपक्ष को चुनावी तैयारी का बड़ा कम समय मिला, परन्तु राजनीतिक बदलाव की गति बड़ी तेज थी।
→ जनता सरकार
- सन् 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी ने चुनाव-प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गयी ज्यादतियों पर जोर दिया।
- चुनाव के अन्तिम परिणामों ने सबको चौंका दिया। स्वतंत्रता के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गयी। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली थीं। जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं।
- सन् 1977 के चुनावों के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार में कोई विशेष सामंजस्य नहीं था। चुनाव के बाद नेताओं के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए होड़ मची। इस होड़ में मोरारजी देसाई, चरण सिंह तथा जगजीवन राम आदि नेता शामिल थे।
- मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन इससे जनता पार्टी के भीतर सत्ता की खींचतान खत्म न हुई। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ ही दिनों के लिए एकजुट रख सका। इस पार्टी के आलोचकों ने कहा कि जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व अथवा एक साझे कार्यक्रम का अभाव था। जनता पार्टी बिखर गयी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में ही अपना बहुमत खो दिया।
- तत्पश्चात् कांग्रेस पार्टी के समर्थन से चरण सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार मात्र चार माह ही सत्ता में रह पायी।
- जनवरी 1980 में लोकसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 353 सीटें मिलीं और वह सत्ता में आई और इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं।
→ विरासत
- सन् 1977 और 1980 के चुनावों के बीच दलगत प्रणाली में नाटकीय बदलाव आए। सन् 1969 के बाद से कांग्रेस का सबको समाहित करके चलने वाला स्वभाव बदलना शुरू हुआ। सन् 1969 से पहले तक कांग्रेस विविध विचारधारात्मक नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक रूप में समेट कर चलती थी।
- अप्रत्यक्ष रूप से सन् 1977 के बाद पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होना शुरू हुआ। सन् 1977 में कई राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद उत्तर भारत के राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं। इन सरकारों के बनने में पिछड़ी जाति के नेताओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आपातकाल और इसके आसपास की अवधि को हम संवैधानिक संकट की अवधि के रूप में भी देख सकते हैं। संसद और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को लेकर छिड़ा संवैधानिक संघर्ष भी आपातकाल के मूल में था।
→ आपातकाल:
आपातकाल का आशय शासन के द्वारा राष्ट्र पर घोषित आपत्ति के काल से है। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की अवधि के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल माना जाता है। जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।
→ नक्सलवादी आन्दोलन:
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवाड़ी पुलिस थाने के क्षेत्र में सन् 1967 ई. में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस विद्रोह की नेतृत्व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय काडर के लोग कर रहे थे। नक्सलवाड़ी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आन्दोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आन्दोलन को नक्सलवादी आन्दोलन के रूप में जाना जाता है।
→ सम्पूर्ण क्रान्ति:
सम्पूर्ण क्रांति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गाँधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया था।
→ गुरिल्ला युद्ध:
थोड़े से लोगों द्वारा बड़ी सैन्य शक्ति के विरुद्ध छुपकर लड़ने की युद्ध नीति को गुरिल्ला युद्ध कहा जाता है। सी.पी. आई. (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पार्टी ने क्रान्ति करने के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई।
→ प्रेस सेंसरशिप:
आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार-पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेना आवश्यक है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।
→ निवारक नजरबंदी:
आपातकाल के दौरान सरकार ने निवारक नजरबंदी का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया। इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को गिरफ्तार इसलिए नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत, इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराधं कर सकते हैं।
→ बंदी प्रत्यक्षीकरण:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए यह लेख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इस प्रकार अनुचित एवं गैर-कानूनी रूप से बंदी बनाए गए व्यक्ति बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख के आधार पर स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं। दोनों पक्षों की बात सुनकर न्यायालय इस बात पर निर्णय करता है कि नजरबंदी वैध है या अवैध।
→ 42वाँ संविधान संशोधन:
आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ। इस संशोधन के जरिए संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए। 42वें संशोधन के जरिए हुए अनेक बदलावों में से एक था देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 से बढ़ाकर 6 साल करना। यह व्यवस्था मात्र आपातकाल की अवधि भर के लिए नहीं की गयी थी। इसे आगे के दिनों में भी स्थायी रूप से लागू किया जाना था।
→ शाह जाँच आयोग:
मई 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जे.सी.शाह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन '25 जून 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गयी कार्यवाही तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं' की जाँच के लिए किया गया था।
→ चारू मजूमदार :
कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी एवं नक्सली नेता। इन्होंने क्रान्तिकारी हिंसा का नेतृत्व किया। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना करने वाले मजूमदार की पुलिस हिरासत में मौत हो गयी।
→ लोकनायक जयप्रकाश नारायण :
जेपी के नाम से प्रसिद्ध । सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के नायक। बिहार आन्दोलन के नेता। आपातकाल का विरोध किया।
→ मोरारजी देसाई :
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री। स्वतंत्रता सेनानी एवं गाँधीवादी नेता के रूप में प्रसिद्ध।
→ चौधरी चरण सिंह :
मोरारजी देसाई के पश्चात् देश के प्रधानमंत्री बने। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
→ जगजीवन राम :
स्वतंत्रता सेनानी तथा बिहार के कांग्रेसी नेता। देश के उप प्रधानमंत्री रहे।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
- 1971 ई.: इस वर्ष के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था।
- 1974 ई.: जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों व उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिहार के छात्रों ने आन्दोलन छेड़ दिया। मई माह में जार्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल की।
- 1975 ई.: जून माह में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय हुई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लोकसभा के लिए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने जनता के संसद मार्च का नेतृत्व किया। 25 जून की रात्रि में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपात काल लागू करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति ने तुरन्त यह उद्घोषणा कर दी।
- 1977 ई.: जनवरी माह में सरकार ने लोकसभा चुनाव कराने का फैसला किया मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार के गठन।
- 1979 ई.: जुलाई माह में मोरारजी देसाई के स्थान पर चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
- 1980 ई.: कांग्रेस को आम चुनाव में विजय प्राप्त हुई और इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं।