RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना will give a brief overview of all the concepts.

RBSE Class 12 Political Science Chapter 5 Notes कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती

  • 27 मई 1964 ई. को नेहरूजी की मृत्यु के बाद नेहरूजी के राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर कई अनुमान सन् 1960 के दशक को 'खतरनाक दशक' कहा जाता है क्योंकि गरीबी, असमानता, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल भी अनसुलझे थे। जिस कारण लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के बिखरने की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी। 
  • नेहरूजी की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज ने अपनी पार्टी के नेताओं तथा सांसदों से विचार-विमर्श किया। सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस संसदीय दल के निर्विरोध नेता चुने गए तथा इस तरह वे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने। 
  • शास्त्रीजी सन् 1964 से 1966 ई० तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस पद पर वे बड़े कम दिनों तक रहे परन्तु इसी छोटी अवधि में देश ने दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया। भारत, चीन युद्ध के कारण पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयों से उबरने का प्रयत्न कर रहा था। साथ ही मानसून की असफलता से देश में सूखे की स्थिति थी। 
  • शास्त्रीजी ने 'जय जवान - जय किसान' का नारा दिया, जिससे इन दोनों चुनौतियों से निपटने के उनके दृढ़ संकल्प का पता चलता है। शास्त्रीजी की मृत्यु के बाद कांग्रेस के सामने पुनः राजनीतिक उत्तराधिकारी का सवाल उठ खड़ा हुआ। इस बार मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच कड़ा मुकाबला था। मोरारजी देसाई बंबई प्रान्त (वर्तमान महाराष्ट्र व गुजरात) के मुख्यमंत्री के पद पर रह चुके थे। 
  • कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं ने इंदिरा गांधी को समर्थन देने का मन बनाया, परन्तु इंदिरा गांधी के नाम पर सर्वसम्मति स्थापित नहीं की जा सकी। फैसले के लिए कांग्रेस के सांसदों ने गुप्त मतदान किया। इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को पराजित किया। उन्हें कांग्रेस पार्टी के दो-तिहाई से अधिक सांसदों ने अपना मत दिया था। 
  • कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संभवतः यह सोचकर उनका समर्थन किया होगा कि प्रशासनिक व राजनीतिक मामलों में विशेष अनुभव न होने के कारण समर्थन और दिशा-निर्देशन के लिए इंदिरा गांधी उन पर निर्भर रहेंगी। प्रधानमंत्री बनने के एक वर्ष के भीतर ही इंदिरा गांधी को लोकसभा के चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करना पड़ा। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ चौथा आम चुनाव

  • भारत के राजनीतिक व चुनावी इतिहास में सन् 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। सन् 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का जो राजनीतिक दबदबा कायम था। वह सन् 1967 के चुनावों में समाप्त हो गया। 
  • फरवरी 1967 के चतुर्थ आम चुनाव में कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया लेकिन उसको प्राप्त मतों के प्रतिशत एवं सीटों की संख्या में भारी कमी आयी। 
  • कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। दो अन्य राज्यों में दल-बदल के कारण यह पार्टी सरकार नहीं बना सकी।
  • मद्रास प्रांत में एक क्षेत्रीय पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पाने में सफल रही। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) हिन्दी-विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करके सत्ता में आई थी।

→ गठबंधन

  • सन् 1967 के चुनावों में गठबंधन की परिघटना सामने आई। चूँकि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, इसलिए अनेक गैर कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण दन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। 
  • पजाब में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार को 'पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट' की सरकार कहा गया। इसमें उस वक्त के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल-संत ग्रुप और मास्टर ग्रुप शामिल थे। 

→ दल-बदल

  • सन् 1967 से देश की राजनीति में 'दल-बदल' तथा 'आया राम-गया राम' की राजनीति प्रारम्भ हुई। बाद के समय में दल-बदल रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। 
  • राज्यों में बनी अधिकतर गैर-कांग्रेसी गठबंधन की सरकारें अधिक दिनों तक नहीं टिक पाईं। इन सरकारों ने बहुमत खोया और उन्हें या तो नए सिरे से गठबंधन बनाना पड़ा या केन्द्र को वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। 

→ कांग्रेस में विभाजन

  • इंदिरा गांधी को वास्तविक चुनौती विपक्ष से नहीं बल्कि अपनी पार्टी के भीतर से मिली। उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा। "सिंडिकेट' कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। 'सिंडिकेट' ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 
  • सिंडिकेट और इंदिरा गांधी के बीच की गुटबाजी सन् 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई। इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद उस वर्ष सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवाने में सफलता पाई। 
  • सन् 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी स्वतंत्र उम्मीदवार वी.वी. गिरि से चुनाव हार गये।
  • राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से कांग्रेस पार्टी टूट गयी। कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। 
  • सन् 1969 के नवंबर तक सिंडिकेट के नेतृत्व वाले कांग्रेस खेमे को कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) कहा जाने लगा। इन दोनों दलों को क्रमशः 'पुरानी कांग्रेस' और 'नई कांग्रेस' भी कहा जाता था। 
  • इंदिरा गांधी ने 'प्रिवीपर्स' को समाप्त करने जैसी बड़ी नीति की घोषणा की। यह भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार था, जिसके अंतर्गत प्रावधान था कि रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार होगा। 

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→ 1971 का चुनाव और कांग्रेस का पुनर्स्थापन:

  • इंदिरा गाँधी की सरकार ने दिसम्बर 1970 में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की। लोकसभा के लिए पाँचवें आम नाव फरवरी 1971 में सम्पन्न हुए।
  • इस चुनाव में सभी बड़ी गैर-साम्यवादी और गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। इसे 'ग्रैंड अलायंस' कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और कठिन हो गई।
  • इंदिरा गांधी ने लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा तथा इसे अपने प्रसिद्ध नारे 'गरीबी हटाओ' के जरिए स्वरूप प्रदान किया। 'गरीबी हटाओ' का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गांधी की राजनीतिक रणनीति थी। 
  • 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ।
  • सन् 1971 के चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संकट पैदा हो गया तथा भारत-पाक के मध्य युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना। सन् 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में इंदिरा गांधी की पार्टी को व्यापक सफलता मिली।
  • इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित जरूर किया, लेकिन कांग्रेस-प्रणाली की प्रकृति को बदलकर। कांग्रेस प्रणाली के भीतर हर तनाव और संघर्ष को झेलने की क्षमता थी। कांग्रेस प्रणाली को इसी विशेषता के कारण जाना जाता था। कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत की और इंदिरा गांधी की राजनीतिक हैसियत अप्रत्याशित रूप से बढ़ी।

→ खतरनाक दशक:
सन् 1960 के दशक को 'खतरनाक दशक' कहा जाता है क्योंकि गरीबी, असमानता, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी अनसुलझे थे। संभव था कि इन सभी कठिनाइयों के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना असफल हो जाती अथवा देश ही बिखर जाता। 

→ जय जवान-जय किसान:
लाल बहादर शास्त्री जी सन् 1964 से 1966 ई. तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस छोटी अवधि में देश ने दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया। कई जगहों पर खाद्यान्न का गंभीर संकट आ पड़ा था फिर सन् 1965 में पाकिस्तान के साथ भी युद्ध करना पड़ा। शास्त्री ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया। ताकि इन दोनों चुनौतियों से निपटा जा सके।

→ द्रविड़ मुनेत्र कषगम:
द्रविड़ मुनेत्र कषगम एक क्षेत्रीय पार्टी थी। सन् 1967 के चुनावों में मद्रास प्रांत में एक क्षेत्रीय पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पाने में सफल रही। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) हिन्दी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करके सत्ता में आई थी। चुनावी इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी गैर-कांग्रेसी दल को किसी राज्य में पूर्ण बहुमत मिला था।

→ गैर-कांग्रेसवाद:
कांग्रेस की विरोधी पार्टियों ने महसूस किया कि उनके वोट बँट जाने के कारण ही कांग्रेस सत्तासीन है। इन दलों को लगा कि इंदिरा गांधी की अनुभवहीनता और कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ लगा है। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने इस रणनीति को 'गैर-कांग्रेसवाद' का नाम दिया। 

→ राजनीतिक भूकंप:
सन् 1967 के चुनाव के परिणामों से कांग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा। कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, लेकिन उसको प्राप्त मतों के प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई थी। तत्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणामों को "राजनीतिक भूकंप" की संज्ञा दी।

→ गठबंधन सरकार:
सन् 1967 के चुनावों से गठबंधन की परिघटना सामने आई। चूँकि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। अतः अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया।

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→ पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट:
सन् 1967 के चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था अतः अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया। पंजाब में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार को 'पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट' की सरकार कहा गया। इसमें उस वक्त के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल-संत ग्रुप और मास्टर ग्रुप शामिल थे। 

→ दल-बदल:
कोई जनप्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव लड़े और जीत जाए तथा चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाए, तो इसे दल-बदल कहते हैं। 

→ आया राम-गया राम:
विधायकों द्वारा तुरत-फुरत पार्टी छोड़कर दूसरी-तीसरी पार्टी में शामिल होने की घटना से राजनीतिक शब्दकोश में 'आया राम-गया राम' का मुहावरा सम्मिलित हुआ। इस शब्द को लेकर बहुत से चुटकुले और कार्टून बने। बाद के समय में दल-बदल को रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। 

→ कांग्रेस सिंडिकेट:
'सिंडिकेट' कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। ‘सिंडिकेट' ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसी ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस संसदीय दल की नेता के रूप में चुना जाना सुनिश्चित किया था। सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी उनकी सलाहों पर ध्यान देंगी। 

→ कामराज योजना:
के. कामराज एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा कांग्रेस के नेता थे। सन् 1963 में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि अपेक्षाकृत युवा पार्टी कार्यकर्ता कमान संभाल सकें। यह प्रस्ताव कामराज योजना के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

→ किंगमेकर:
राजा/सम्राट या प्रधानमंत्री आदि नेताओं के पदों पर बिठाने वाले प्रभावशाली नेतागणों को 'किंगमेकर' की संज्ञा दी जाती है। जैसे 'सिंडिकेट' ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

→ दस-सूत्री कार्यक्रम:
इंदिरा गांधी द्वारा सन् 1967 में कांग्रेस की लोकप्रियता की पुनर्स्थापना के लिए घोषित और पार्टी द्वारा अपनाया गया आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम दस सूत्री कार्यक्रम कहलाया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार आदि प्रावधान शामिल थे। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ प्रिवीपर्स:
देसी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी सम्पति रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिए जायेंगे। इस व्यवस्था को 'प्रिवीपर्स' कहा गया।

→ ग्रैंड अलायंस:
सन् 1971 के पाँचवें आम चुनावों में सभी बड़ी गैर-साम्यवादी और गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। इसे 'ग्रैंड अलायंस' कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और कठिन हो गई। 'ग्रैंड अलायंस' के पास कोई सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। 

→ गरीबी हटाओ का नारा:
इंदिरा गांधी ने देशभर में लोगों के सामने 'गरीबी हटाओ' का एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा। 'गरीबी हटाओ' के नारे से इंदिरा गांधी ने वंचित वर्गों विशेषकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। 

→ लाल बहादुर शास्त्री :
पं० जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात् देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। 10 जनवरी, 1966 को इनका ताशकंद में अचानक निधन हो गया। इन्होंने 'जय जवान-जय किसान' का नारा दिया था। 

→ इंदिरा गाँधी : 
पं० जवाहरलाल नेहरू की पुत्री। लाल बहादुर शास्त्री के अचानक निधन के पश्चात् देश की प्रधानमंत्री बनीं। इन्होंने प्रिवीपर्स की समाप्ति की एवं गरीबी हटाओ का नारा दिया। 31 अक्टूबर, 1984 को इनकी हत्या कर दी गयी। 

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→ राम मनोहर लोहिया :
स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी नेता एवं विचारक। ये गैर-काँग्रेसवाद के रणनीतिकार थे। इन्होंने पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए जाने का समर्थन किया। 

→ सी.नटराजन अन्नादुरई :
चर्चित पत्रकार, लेखक एवं वक्ता। इन्होंने हिन्दी विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री रहे। 

→ के.कामराज : 
स्वतंत्रता सेनानी एवं कांग्रेस के नेता। इन्होंने मद्रास प्रान्त के मुख्यमंत्री रहते हुए स्कूली बच्चों के 'दोपहर के भोजन' देने की योजना लागू की। युवाओं को पार्टी में स्थान देने के पक्षधर थे। 

→ एस.निजलिंगप्पा : 
संविधान सभा के सदस्य रहे तथा 1968-71 के दौरान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे। इन्हें आधुनिक कर्नाटक का निर्माता' माना जाता है।

→ कर्पूरी ठाकुर :
स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजवादी नेता। बिहार के मुख्यमंत्री रहे एवं अंग्रेजी भाषा के प्रयोग का विरोध किया। 

→ वी.वी.गिरि : 
आन्ध्र प्रदेश के मजदूर नेता। भारत गणराज्य के राष्ट्रपति के चुनाव में इन्दिरा गाँधी के समर्थन से विजयी हुए।

→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ

  • 1952 ई.: 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक दबदबा कायम था। 1967 के चुनावों में इस प्रवृत्ति में गहरा बदलाव आया। 
  • 1964 ई.: 27 मई को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हुई। लाल बहादुर शास्त्री देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने। 
  • 1965 ई.: भारत का पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ। 
  • 1966 ई.: 10 जनवरी को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद (तत्कालीन सोवियत संघ)में मृत्यु हुई
  • 1967 ई.: फरवरी माह में लोकसभा के चतुर्थ आम चुनाव सम्पन्न हुए। गठबंधन की राजनीति का उद्भव हुआ। केन्द्र में कांग्रेस की सत्ता स्थापित हुई। काँग्रेस कार्य समिति ने दस सूत्री कार्यक्रम अपनाया। 
  • 1969 ई.: राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी.वी. गिरि ने नीलम संजीव रेड्डी को पराजित किया।
  • 1970 ई.: भारत सरकार ने प्रिवीपर्स की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए संविधान में संशोधन के प्रयास किए लेकिन राज्यसभा में यह विधेयक मंजूर नहीं हो पाया। 
  • 1970 ई.: दिसम्बर में इंदिरा गाँधी सरकार ने लोकसभा भंग करने की सिफारिश की। 
  • 1971 ई.: फरवरी माह में लोकसभा के पाँचवें आम चुनाव सम्पन्न हुए। पूर्वी पाकिस्तान में एक बड़ा राजनीतिक एवं सैन्य संकट उत्पन्न हो गया।
  • 1972 ई.: राज्य विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को व्यापक सफलता प्राप्त हुई।
Prasanna
Last Updated on Jan. 19, 2024, 9:19 a.m.
Published Jan. 18, 2024