These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 Notes नियोजित विकास की राजनीति
→ राजनीतिक फैसले व विकास
- लौह अयस्क के अधिकांश भण्डार उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में थे जिनका दोहन होना अभी शेष था।
- इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ने से निवेश की दृष्टि से उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) एक महत्त्वपूर्ण स्थान के रूप में उभरा है। इस राज्य की सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग से लाभ प्राप्त करना चाहा।
- उड़ीसा सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय इस्पात-निर्माताओं व राष्ट्रीय स्तर के इस्पात-निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। आदिवासियों को डर है कि यदि यहाँ उद्योग स्थापित हो गए तो उन्हें अपने घर से विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी।
- पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन व उद्योग से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होगी वहीं केन्द्र व राज्य सरकार को लगता है कि यदि उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) के लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्रों में उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गयी तो इससे एक गलत परम्परा की शुरुआत होगी और देश में पूँजी निवेश में बाधा उत्पन्न होगी।
→ राजनीतिक टकराव
- विकास से जुड़े फैसलों में एक सामाजिक समूह के हितों को दूसरे सामाजिक समूह के हितों की तुलना में तोला जाता है। साथ ही वर्तमान पीढ़ी के हितों और आने वाली पीढ़ी के हितों को भी लाभ-हानि के तराजू पर तोलना पड़ता है।
- किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार के फैसले जनता द्वारा लिए जाने चाहिए या इन फैसलों पर विशेषज्ञों की स्वीकृति होनी चाहिए। खनन, पर्यावरण और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की राय जानना आवश्यक है परन्तु अंतिम निर्णय निश्चित रूप से जन प्रतिनिधियों को ही लेना चाहिए।
- देश के आर्थिक विकास सम्बन्धी मामले को व्यवसायी, उद्योगपति तथा किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। सरकार को इस मसले पर महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना होता है।
→ विकास की धारणा
- जनता के विभिन्न वर्गों के लिए 'विकास' के अर्थ अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, इस्पात संयंत्र लगाने की योजना बना रहे उद्योगपति, इस्पात के किसी शहरी उपभोक्ता और इस्पात संयंत्र के लिए प्रस्तावित क्षेत्र में निवास कर रहे किसी आदिवासी के लिए 'विकास' का अर्थ अलग-अलग होगा। इसी कारण 'विकास' से जुड़ी कोई भी चर्चा' विवादों से दूर नहीं होती। स्वतंत्रता से पूर्व लोग 'विकास' की बात आते ही 'विकास' का पैमाना पश्चिमी देशों को मानते थे। विकास का अर्थ था-अधिक से अधिक आधुनिक होना तथा आधुनिक होने का अर्थ-पश्चिमी औद्योगिक देशों के समान होना।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के सामने विकास के दो मॉडल थे। पहला उदारवादी-पूँजीवादी मॉडल था। यूरोप के अधिकांश देशों और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मॉडल अपनाया गया था।
- दूसरा समाजवादी मॉडल था जिसे सोवियत संघ ने अपनाया था। इन दोनों महाशक्तियों (सोवियत संघ व संयुक्त राज्य अमेरिका) के बीच 'शीत युद्ध' का दौर चल रहा था। उस समय भारत में अनेक लोग विकास के सोवियत मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित थे।
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई थी कि गरीबी को समाप्त करने व सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण के कार्य का प्रमुख दायित्व सरकार का होगा। नेताओं में इन बातों को लेकर बहस की शुरुआत हुई। कुछ औद्योगीकरण को उचित मार्ग मानते थे तो कुछ की दृष्टि में कृषि का विकास करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी को दूर करना अति आवश्यक था।
→ नियोजन की प्रक्रिया व योजना आयोग
- सभी एक ही बिन्दु पर सहमत थे कि विकास का कार्य निजी हाथों में नहीं सौंपना चाहिए और सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह विकास की एक योजना तैयार करे। अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन के विचार को सन् 1940 और सन् 1950 के दशक में सम्पूर्ण विश्व में जनसमर्थन प्राप्त हुआ था।
- सोवियत संघ ने सन् 1930 तथा सन् 1940 के दशक में भारी कठिनाइयों के बीच बहुत अधिक आर्थिक प्रगति की थी। यह सब नियोजन से ही सम्भव हुआ। इस प्रकार योजना आयोग कोई आकस्मिक आविष्कार नहीं था।
- सन् 1944 में भारत में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। जिसे 'बॉम्बे प्लान' के नाम से जाना जाता है। 'बॉम्बे प्लान' की इच्छा थी कि सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्रों में बड़े कदम उठाए।
- इस प्रकार भारत में दक्षिणपंथी और वामपंथी सभी चाहते थे कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था के मार्ग पर चलकर आगे बढ़े। देश के स्वतन्त्र होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने।
→ पंचवर्षीय योजनाएँ व विवाद
- सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं के विकल्प का चयन किया।
- सन् 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ तथा इसी वर्ष नवम्बर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज भी जारी किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल कृषि-क्षेत्र पर दिया गया था। इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में भी निवेश किया गया।
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक दल ने यह योजना तैयार की।
- सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में पर्याप्त सहायता प्राप्त हुई। औद्योगीकरण पर दिए गए बल ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।
- जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर बल दिया गया था। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात अत्यन्त सुविचारित और सशक्त ढंग से उठाई थी।
- कई लोगों का मत था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तीव्र किए बिना गरीबी से छुटकारा नहीं मिल सकता। इनका तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अपनाई गयी थी लेकिन औद्योगिक विकास की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये।
- विकास के दोनों मॉडल पूँजीवादी व समाजवादी मॉडल की कुछ बातों को ले लिया गया तथा भारत में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' कहा जाता है।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की आलोचना दक्षिणपंथी तथा वामपंथी, दोनों वर्गों ने की।
- नियोजित विकास के प्रारम्भिक प्रयासों को देश के आर्थिक विकास और समस्त नागरिकों की भलाई के लक्ष्य में आंशिक सफलता प्राप्त हुई। प्रारम्भिक दौर में ही इस दिशा में बड़े कदम न उठा पाने की अक्षमता एक राजनीतिक समस्या के रूप में उभर कर सामने आई।
→ नियोजन के परिणाम
- नियोजित विकास के इसी दौर में भारत के आगामी आर्थिक विकास की बुनियाद पड़ी। भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में प्रारम्भ हुईं, जैसे-भाखड़ा-नांगल परियोजना व हीराकुंड परियोजना।
- सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग, जैसे-इस्पात संयंत्र, तेल-शोधक कारखाने, विनिर्माण इकाइयाँ, रक्षा-उत्पादन आदि इसी अवधि में प्रारम्भ हुए।
- सन् 1960 के दशक में कृषि की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी। बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे अधिक विकराल रूप धारण किए हुए था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो गयी थी। बिहार के सभी जिलों में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न का अभाव उत्पन्न हो गया था।
→ हरित क्रांति
- खाद्यान्न संकट की इस हालत में देश पर बाहरी दबाव पड़ने की आशंका बढ़ गयी थी। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने खाद्य सहायता देने के बदले भारत पर आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए जोर डाला।
- सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। सरकार ने उन क्षेत्रों पर अधि क ध्यान देने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा उपलब्ध थी।
- सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। यही उस घटना की शुरुआत थी जिसे 'हरित क्रान्ति' के नाम से जाना जाता है।
- हरित क्रान्ति से देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई। पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि से समृद्ध हो गये। कृषि में मध्यम श्रेणी के किसानों का उभार हुआ।
→ बदलाव का दौर
- सन् 1967 के बाद की अवधि में निजी क्षेत्र के उद्योगों पर और बाधाएँ आईं। 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। सन् 1950-1980 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था 3-3.5% वार्षिक की धीमी गति से आगे बढ़ी।
- भारत सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर अब एक नई संस्था की स्थापना की है जिसका नाम नीति आयोग ( दीय भारत परिवर्तन संस्था) है। यह संस्था 1 जनवरी सन् 2015 से अस्तित्व में आई है।
→ वामपंथ:
वामपंथ शब्द किसी राजनीतिक दल या समूह के बारे में प्रकट होता है। 'वामपंथ' से मुख्यतः उन लोगों की ओर संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह को महत्व प्रदान करते हैं तथा इन वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।
→ दक्षिणपंथ:
'दक्षिणपंथी' रुझान वाली विचारधारा से उन लोगों की ओर इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है-अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
→ विकास:
विकास का अर्थ अधिक से अधिक आधुनिक होना और आधुनिक होने का अर्थ था, पश्चिमी औद्योगिक देशों के समान होना। विकास के लिए हर देश को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
→ नियोजन :
नियोजन का अर्थ कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने से है।
→ पूँजीवाद:
पूँजीवाद शब्द से तात्पर्य उस आर्थिक प्रणाली से है जिसमें कारखानों एवं खेतों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है तथा वे संग्रहित पूँजी का उपयोग अपने लिए करते हैं।
→ उदारवाद:
प्रशासकीय नियंत्रणों को कम करके स्वतंत्र व्यापार की नीतियों को अपनाना उदारवाद कहलाता है। विश्व के अनेक देशों में विश्व बाजार को उदार बनाने पर सहमति हुई। इस नीति से भारत अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन गया।
→ समाजवाद:
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सामाजिक स्वामित्व होता है। समाजवादी प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण होता है।
→ औद्योगीकरण:
औद्योगीकरण के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। ये क्रियाएँ किसी कारखाने या घर में हो सकती हैं। औद्योगीकरण पर दिये गये जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को नया आयाम दिया।
→ शीत युद्ध:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व में दो महाशक्तियाँ रह गयीं-सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् इन दोनों राष्ट्रों में तीव्र मतभेद उत्पन्न हो गये। इसी संघर्ष को 'शीत-युद्ध' कहा जाता है। यह विचारधाराओं का युद्ध था जो सोवियत संघ के विघटन के साथ ही समाप्त हो गया।
→ योजना आयोग:
योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में भारत सरकार ने एक सामान्य प्रस्ताव के माध्यम से की थी। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है तथा इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमण्डल उन्हें मंजूर करे।
→ बॉम्बे प्लान:
सन् 1944 ई. में भारत में उद्योगपतियों का एक वर्ग बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में एकत्रित हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था को चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे 'बॉम्बे प्लान' कहा जाता है। 'बॉम्बे प्लान' की इच्छा थी कि सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए।
→ बजट:
सरकारी आय-व्यय का वार्षिक विवरण बजट कहलाता है।
→ गैर-योजना व्यय:
गैर-योजना व्यय के अन्तर्गत वार्षिक आधार पर दैनिक मदों पर खर्च किया जाता है। यह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बजट का हिस्सा होता है।
→ योजना-व्यय:
केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट का दूसरा हिस्सा योजना-व्यय का होता है। योजना में तय की गयी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे पाँच वर्ष की अवधि में खर्च किया जाता है।
→ नीति आयोग:
इसका आशय राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था (National Institution for Transforming India) से है। इसकी स्थापना योजना आयोग के स्थान पर 1 जनवरी 2015 को की गयी थी।
→ पंचवर्षीय योजना:
भारतीय योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। इसके अन्तर्गत विचार था कि भारत सरकार अपनी ओर से एक दस्तावेज तैयार करेगी, जिसमें अगले पाँच वर्षों के लिए उसकी आय और व्यय की योजना होगी। सन् 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ।
→ केरल मॉडल:
केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे 'केरल मॉडल' कहा जाता है। इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण तथा गरीबी उन्मूलन पर बल दिया जाता रहा है।
→ हरित क्रान्ति:
हरित क्रान्ति से आशय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि की नयी नीति अपनाने के कारण हुई है। 'हरित क्रान्ति' के अन्तर्गत सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना प्रारम्भ किया। सरकार ने किसान को इस बात की भी गारंटी प्रदान की कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा।
→ कृषि-आधारित उद्योग:
भारत कृषि प्रधान देश है। गेहूँ, चावल, मक्का, गन्ना, कपास आदि उत्पादनों का प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है, जैसे-गन्ने को चीनी उद्योग में, कपास को सूती वस्त्र उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन्हें कृषि-आधारित उद्योग कहते हैं।
→ मिश्रित अर्थव्यवस्था:
भारत ने विकास के दो मॉडलों पूँजीवादी व समाजवादी की कुछ मुख्य बातों को ले लिया तथा अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' कहा जाता है।
→ जोनिंग या इलाकाबंदी:
बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे अधिक विकराल था। बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें काफी बढ़ी। अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दोगुने दामों में बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त जोनिंग या इलाकाबंदी की नीति अपना रखी थी। इसकी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नहीं हो पा रहा था।
→ अमूल:
'मिल्कमैन ऑफ इण्डिया' के नाम से प्रसिद्ध वर्गीज कूरियन ने 'गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपणन परिसंघ' के विकास में मुख्य भूमिका निभाई और अमूल की स्थापना की। गुजरात के 'आणंद' शहर में सहकारी दुग्ध उत्पादक संस्था 'अमूल' आज भी कार्यरत है। श्वेत क्रान्ति-ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से 'अमूल' नाम की सहकारी संस्था एक अनूठा और कारगर मॉडल है। इस 'मॉडल' के विस्तार को श्वेत क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
→ ऑपरेशन फ्लड:
सन् 1970 में 'ऑपरेशन फ्लड' के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ था। ऑपरेशन फ्लड के अन्तर्गत सहकारी दुग्ध उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया था जिससे ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों।
→ पी.सी.महालनोबिस (1893-1972):
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद। इन्हें भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना का योजनाकार माना जाता है। ये तीव्र औद्योगीकरण एवं सार्वजनिक क्षेत्र की सक्रिय भूमिका के समर्थक थे।
→ जे.सी.कुमारप्या (1892-1960):
इन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने की कोशिश की तथा योजना आयोग के सदस्य के रूप में योजना प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया।
→ वर्गीज कुरियन:
मिल्कमैन ऑफ इण्डिया के नाम से प्रसिद्ध, गुजरात में सहकारी दुग्ध व विपणन परिसंघ के विकास में मुख्य भूमिका निभायी व अमूल की शुरुआत की।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियों एवं सम्बन्धित घटनाएँ
- सन् 1931: भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना।
- सन् 1944: इस वर्ष उद्योगपतियों का एक वर्ग एकजुट हुआ जिसने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था के संचालन का संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव को 'बॉम्बे प्लान' के नाम से जाना जाता है।
- सन् 1950: मार्च माह में एक प्रस्ताव के तहत भारत सरकार द्वारा योजना आयोग की स्थापना।
- सन् 1951-56: प्रथम पंचवर्षीय योजना के क्रियान्वयन की अवधि।
- सन् 1956-61: द्वितीय पंचवर्षीय योजना के क्रियान्वयन की अवधि।
- सन् 1961-66: तृतीय पंचवर्षीय योजना के क्रियान्वयन की अवधि।
- सन् 1965-67: इस अवधि के दौरान देश के अनेक भागों में भयंकर सूखा पड़ा।
- सन् 1970: 'ऑपरेशन फ्लड' के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ। इसके अन्तर्गत सहकारी दुग्ध उत्पादन को उत्पादन एवं विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।
- सन् 1987-91: केरल सरकार ने इस अवधि में 'नव लोकतांत्रिक पहल' नाम से एक अभियान का संचालन किया जिसके अन्तर्गत विकास के अभियान चलाये गए।
- सन् 2015: नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था) की स्थापना।