These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 Notes दो ध्रुवीयता का अंत
→ बर्लिन की दीवार पूँजीवादी दुनिया एवं साम्यवादी दुनिया के मध्य विभाजन का प्रतीक थी जिसे जनता ने 9 नवम्बर, 1989 को तोड़ दिया। पश्चिमी बर्लिन को पूर्वी बर्लिन से अलग करने वाली यह दीवार सन् 1961 में बनी थी।
→ सोवियत प्रणाली
- समाजवादी सोवियत गणराज्य (रूस) सन् 1917 की समाजवादी क्रान्ति के पश्चात् अस्तित्व में आया।
- सोवियत राजनीतिक प्रणाली का आधार-स्तम्भ कम्युनिस्ट पार्टी थी।
- सोवियत गणराज्य की अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध एवं राज्य के नियन्त्रण में थी।
- दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात् पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गए।
- इन सभी देशों की राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तरह ही ढाला गया।
- इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश अथवा दूसरी दुनिया कहा गया।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सोवियत संघ एक महाशक्ति के रूप में उभरा।
- संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर शेष विश्व की तुलना में सोवियत गणराज्य की अर्थव्यवस्था कहीं अधिक विकसित थी। लेकिन सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का नियन्त्रण स्थापित होता चला गया।
- धीरे-धीरे साम्यवादी प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में रूसी गणराज्य का प्रत्येक मामले में प्रभुत्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता उपेक्षित एवं दमित
- महसूस करती थी।
- रूस को सोवियत राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की स्थाई सीट मिली।
- सोवियत संघ में अन्तर्राष्ट्रीय करार और सन्धियों को निभाने की जिम्मेदारी रूस को सौंपी गयी।
→ सोवियत संघ का विघटन
- सोवियत संघ के विघटन के बाद के समय में पूर्ववर्ती गणराज्यों के मध्य एकमात्र परमाणु शक्ति सम्पन्न देश का दर्जा रूस को ही प्राप्त हुआ।
- सन् 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप की वजह से सोवियत संघ की व्यवस्था कमजोर पड़ गयी।
- मिखाइल गोर्बाचेव 1980 के दशक के मध्य में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने।
- गोर्बाचेव ने पश्चिम के देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने एवं वहाँ सुधार करने का फैसला किया।
- गोर्बाचेव के इन फैसलों का व्यापक प्रभाव पड़ा जिसका अनुमान किसी को भी नहीं था।
- सोवियम खेमे के पूर्वी यूरोप के देशों की जनता ने अपनी सरकारों एवं सोवियत नियन्त्रण का विरोध करना शुरू कर दिया
- जिससे पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें गिर गयीं। . इस घटनाक्रम से सोवियत गणराज्य की विघटन की गति भी तीव्र हो गयी।
- सन् 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों-रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की।
- परवर्ती सोवियत गणराज्यों ने पूँजीवाद एवं लोकतन्त्र को अपना आधार बनाया।
- इन्होंने स्वतन्त्र देशों के राष्ट्रकुल का गठन किया तथा शेष गणराज्यों को राष्ट्रकुल का संस्थापक सदस्य बनाया।
- सोवियत संघ के पतन का मुख्य कारण यह रहा कि सोवियत संघ की राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाएँ अन्दरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाएँ पूरी नहीं कर सकीं।
- सोवियत संघ के विघटन का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य चल रहा था।
- सोवियत संघ के पतन के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन बैठा।
→ शॉक थेरेपी
- 'शॉक थेरेपी' की सर्वोपरि मान्यता 'मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा' थी।
- वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता तथा मुक्त व्यापार की नीति को पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया।
- साम्यवाद के पतन के पश्चात् सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य एवं पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर रुख कर एक विशेष मॉडल अपनाया, जिसे 'शॉक थेरेपी' कहा गया।
- विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएँ विभिन्न देशों की मुख्य सलाहकार बन गईं।
- 'नए देशों का उदय' भी सोवियत खेमे के अन्त का एक अर्थ था। इनमें से कुछ देश मुख्यतः बाल्टिक तथा पूर्वी यूरोप के देश 'यूरोपीय संघ' से जुड़ना तथा उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होना चाहता था।
→ शॉक थेरेपी के परिणाम
- 1990 में 'शॉक थेरेपी' जनता को उपभोग के उस 'आनन्दलोक तक नहीं ले गई जिसका उसने वादा किया।
- शॉक थेरेपी से सम्पूर्ण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गयी और इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी।
- रूस सहित अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का आधार बना-खनिज तेल, प्राकृतिक गैस एवं धातु जैसे प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात।
→ पूर्व साम्यवादी देश और भारत
- पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र हैं।
- मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान में दस वर्षों तक (2001 तक) गृह युद्ध चला।
- मध्य एशियाई गणराज्यों में हाइड्रोकार्बनिक (पेट्रोलियम) संसाधनों का विशाल भण्डार है।
→ संघर्ष और तनाव
- भारत ने साम्यवादी रह चुके समस्त देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित किए हैं लेकिन भारत के रूस के साथ सम्बन्ध सबसे अधिक गहरे हैं।
- रूस तथा भारत दोनों देशों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।
- सन् 2001 में भारत-रूस के. मध्य 80 द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षेप हुए हैं।
- भारतीय सेना को अधिकांश हथियार रूस से प्राप्त होते हैं। आज भारत व रूस विभिन्न वैज्ञानिक परियोजनाओं में साझीदार हैं।
→ यू. एस. एस. आर:
यूनियन ऑफ सोशलिस्ट सोवियत संघ रिपब्लिक अथवा सोवियत समाजवादी गणराज्य को संक्षेप में यू. एस. एस. आर. के नाम से जाना जाता था।
→ बर्लिन की दीवार:
पूँजीवादी तथा साम्यवादी विश्व के मध्य विभाजन का प्रतीक सन् 1961 में निर्मित 150 किमी. से भी अधिक लम्बी दीवार जो पश्चिमी तथा पूर्वी बर्लिन को अलग-अलग कस्ती थी।
→ ध्रुवीकरण:
इसका अभिप्राय सैन्य शक्ति के केन्द्रों से है।
→ दो ध्रुवीयता:
इसका तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें दो शक्तियों का अस्तित्व होता है।
→ बहुध्रुवीय विश्व:
बहुध्रुवीय विश्व से आशय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई शक्तियों के मौजूद होने से है।
→ शॉक थेरेपी:
इसका अभिप्राय आघात पहुँचाकर उपचार करना है। विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल के अन्तर्गत पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाकर पाश्चात्य देशों को जोड़ा गया।
→ मिखाइल गोर्बाचेव:
सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति रहे। इन पर सोवियत संघ के विघटन का आरोप लगा।
→ बोरिस येल्तसिन:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अलग हुए देश रूस के प्रथम राष्ट्रपति बने।
→ ब्लादिमीर लेनिन (1870-1924):
ये बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे। इन्होंने 1917 की क्रान्ति का सफल नेतृत्व किया। ये सम्पूर्ण विश्व में साम्यवाद के प्रेरणास्रोत थे।
→ जोजेफ स्टालिन (1879-1953):
लेनिन के उत्तराधिकारी थे। इन्होंने खेती का बलपूर्वक सामूहिकीकरण किया। इन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत का श्रेय दिया गया।
→ निकिता खुश्चेव (1894-1971):
ये सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे। इन्होंने हंगरी के जन विद्रोह का दमन किया तथा क्यूबा के मिसाइल संकट में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
→ लिओनिद ब्रेझनेव (1906-1982):
ये सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे। इन्होंने चेकोस्लोवाकिया के जन विद्रोह का दमन किया था।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
- सन् 1917 ई. : समाजवादी क्रान्ति के पश्चात् समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू. एस. एस. आर.) की स्थापना होना।
- सन् 1971 ई.: सोवियत संघ ने पाकिस्तान से युद्ध के दौरान भारत की मदद की।।
- सन् 1979 ई.: सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करना।
- मार्च 1985 ई.: मिखाइल गोर्बाचेव का सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव चुना जाना, बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया गया, सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला का प्रारम्भ होना।
- सन् 1988 ई.: लिथुआनिया में स्वतन्त्रता हेतु आन्दोलन प्रारम्भ तथा इस आन्दोलन का एस्टोनिया व लताविया में भी फैलना।
- अक्टूबर 1989 ई.: सोवियत संघ द्वारा घोषणा की गई कि 'वारसा समझौते' के सदस्य देश अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतन्त्र हैं।
- 9 नवम्बर 1989 ई.: पूर्वी जर्मनी की जनता द्वारा बर्लिन की दीवार को गिराया जाना। यह दीवार पूँजीवादी दुनिया एवं साम्यवादी दुनिया के मध्य विभाजन का प्रतीक थी।
- फरवरी 1990 ई: मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संसद 'ड्यूमा' के चुनाव हेतु बहुदलीय राजनीति की शुरुआत की। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।
- मार्च 1990 ई.: लिथुआनिया स्वतन्त्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।
- जून 1990 ई: रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा की।
- सन् 1991 ई: युगोस्लाविया कई प्रान्तों में टूट गया और इसमें शामिल बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।
- जून 1991 ई: बोरिस येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा व रूस का राष्ट्रपति बनना।
- अगस्त 1991 ई: कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने मिखाइल गोर्बाचेव के विरुद्ध एक असफल तख्तापलट किया।
- सितम्बर 1991 ई.: एस्टोनिया, लाटविया व लिथुआनिया संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बने। मार्च 2004 में उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन में शामिल।
- दिसम्बर 1991 ई: रूस, बेलारूस व युक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से सम्बद्ध सन्धि को समाप्त करने का फैसला किया तथा स्वतन्त्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। माल्दोवा, आर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिस्तान व उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल में सम्मिलित हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की स्थाई सीट रूस को प्राप्त हुई।
- 25 दिसम्बर 1991 ई.: मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया। सोवियत संघ का विघटन।