These comprehensive RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Political Science Chapter 1 Notes शीतयुद्ध का दौर
→ क्यूबा का मिसाइल संकट
- अमेरिका के तट से लगे छोटे से देश क्यूबा का लगाव सोवियत संघ से था। वह उसे कूटनयिक और आर्थिक सहायता देता था।
- सोवयत संघ के नेता नीकिता खुश्चेव द्वारा क्यूबा में सैनिक अड्डा स्थापित करने तथा वहाँ परमाणु मिसाइलें तैनात करने (1962 में) से अमेरिका चिंतित हो गया। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के अमेरिकी जंगी बेड़ों को आगे कर क्यूबा की ओर जाने वाले सोवियत संघ के जहाजों को रोकने के आदेश से युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई जिसे 'क्यूबा मिसाइल संकट' कहा गया। हालांकि दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का फैसला कर लिया।
- 'क्यूबा मिसाइल संकट' शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था।
→ शीतयुद्ध
- शीतयुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ एवं उनके साथी देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता, तनाव तथा संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा।
- 1945 में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में मित्र-राष्ट्रों की अगुवाई अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन तथा फ्रांस द्वारा की गई जबकि जर्मनी, इटली तथा जापान ने धुरी-राष्ट्रों की अगुवाई की। → 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। इसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध का अन्त हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
→ दो-ध्रुवीय विश्व का आरंभ
- द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के फलस्वरूप विश्व में दो महाशक्तियों का उदय हुआ। ये महाशक्तियाँ थीं-संयुक्त राज्य अमेरिका व समाजवादी सोवियत गणराज्य।
- प्रथम महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका तथा द्वितीय महाशक्ति सोवियत संघ ने विश्व के देशों को क्रमशः पूँजीवादी तथा - साम्यवादी विचारधाराओं में विभक्त कर दिया।
- शीतयुद्ध का प्रमुख कारण संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में परस्पर एक-दूसरे के सम्मुख प्रतिस्पर्धा में खड़े होना था।
- पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्षधर थे जबकि पूर्वी यूरोपीय देश सोवियत संघ के गुट में सम्मिलित थे। इस कारण इन गुटों को पश्चिमी तथा पूर्वी गठबन्धन भी कहा गया।
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अप्रैल, 1949 में उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) की स्थापना की गयी, जिसमें 12 सदस्य देश सम्मिलित थे।
- 'नाटो' में सम्मिलित देशों से मुकाबले हेतु, सोवियत संघ के नेतृत्व में सन् 1955 में 'वारसा सन्धि' की स्थापना की गई। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य नाटो में सम्मिलित देशों का यूरोप में सामना करना था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना वर्चस्व बढ़ाने हेतु पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया में गठबन्धन का तरीका अपनाया।
- इन गठबन्धनों को दक्षिण-पूर्व एशियाई सन्धि संगठन 'सिएटो' (SEATO) केन्द्रीय सन्धि संगठन 'सेन्टों' (CENTO) के नाम से जाना जाता है।
→ गुटनिरपेक्षता
- भारत जैसे विकासशील देशों ने दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की।
- जोसेफ ब्रॉज टीटो (यूगोस्लाविया), पण्डित जवाहरलाल नेहरू (भारत) तथा गमाल अब्दुल नासिर (मिस्र) ने सन् 1956 में एक बैठक के दौरान गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आधारशिला रखी।
- इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो एवं घांना के प्रधानमन्त्री वामे एनक्र्मा ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जोरदार समर्थन किया।
- प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित हुआ जिसमें 25 सदस्य देश सम्मिलित हुए।
- गुटनिरपेक्ष-आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश देश विकासशील देश थे जिनके समक्ष प्रमुख चुनौती अपने देश का आर्थिक विकास करना था।
- दूसरी ओर, सोवियत संघ और साम्यवादी चीन ने इस क्षेत्र के वियतनाम, उत्तरी कोरिया तथा इराक जैसे देशों के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत किया।
- 'गुटनिरपेक्ष आन्दोलन' का विकास 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध की एक महत्त्वपूर्ण घटना है जिसने नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को दो-ध्रुवीय विश्व की गुटबाजी से अलग रहने का अवसर प्रदान किया।
- जवाहरलाल नेहरू जो कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के एक प्रमुख नेता थे, ने उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया के मध्य मध्यस्थता कराने में अहम भूमिका निभाई, वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने कांगो संकट में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में दोनों महाशक्तियों ने 'अस्त्र-नियन्त्रण' द्वारा हथियारों की होड़ पर अंकुश लगाने तथा स्थायी सन्तुलन बनाने के प्रयास शुरू किए।
- तत्पश्चात् एक दशक के अन्दर ही दोनों महाशक्तियों ने परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि, परमाणु अप्रसार सन्धि तथा परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन सन्धि (एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी) जैसे तीन अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। अस्त्र परिसीमन हेतु दोनों महाशक्तियों के मध्य अनेक दौर की वार्ताओं के दौरान हथियारों पर अंकुश लगाने हेतु विभिन्न समझौते किए गए।
- विकासशील देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने के लिए नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया।
- गुटनिरपेक्ष-आन्दोलन एवं नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ने दो ध्रुवीय विश्व को सशक्त ढंग से चुनौती प्रदान की।
→ भारत और शीतयुद्ध
- भारत ने जहाँ गुटनिरपेक्षता का मार्ग चुना वहीं शीतयुद्ध की समयावधि में हमने विकासशील देशों को दोनों गुटों (महाशक्तियों) से अलग रहने हेतु प्रेरित किया।
- सन् 1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में शीतयुद्ध का अन्त एवं सोवियत संघ का विखण्डन हुआ। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आज भी प्रासंगिकता है।
- यह आन्दोलन वर्तमान समय की असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व-व्यवस्था बनाने एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतन्त्रधर्मी बनाने के संकल्प पर टिका हुआ है।
- नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा निजीकरण की पक्षधर है।
→ शीतयुद्ध:
इसका अभिप्राय ऐसी अवस्था से है-जब दो अथवा दो से अधिक देशों के मध्य वातावरण उत्तेजित एवं तनावपूर्ण हो लेकिन वास्तविक रूप से कोई युद्ध न लड़ा जाए।
→ दो महाशक्तियाँ:
दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ दो शक्तिशाली देशों के रूप में उभर कर आए; जिन्हें दो महाशक्तियाँ कहा गया।
→ शीतयुद्ध काल:
सन् 1945 से सन् 1990 तक की समयावधि को शीतयुद्ध काल के रूप में जाना जाता है।
→ मित्र राष्ट्र:
द्वितीय विश्वयुद्ध में ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस तथा सोवियत संघ को मित्र राष्ट्र कहकर सम्बोधित किया गया।
→ धुरी-राष्ट्र:
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी, इटली तथा जापान को धुरी-राष्ट्र कहा गया।
→ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन:
गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने वाले देशों द्वारा दोनों महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने तथा अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाते हुए विश्व राजनीति में शान्ति और स्थिरता के लिए सक्रिय रहने का आन्दोलन 'गुटनिरपेक्ष आन्दोलन' कहलाता है।
→ निःशस्त्रीकरण:
इसका अभिप्राय समस्त प्रकार के हथियारों को न बनाना तथा विस्फोटक शस्त्रों को कम करने अथवा नियन्त्रण करने पर बल देना है।
→ सीमित परमाणु परीक्षण सन्धि (LTBT):
संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ द्वारा मास्को में 5 अगस्त, 1963 को हस्ताक्षरित वायुमण्डल, बाहरी अन्तरिक्ष तथा जल के भीतर परमाणु हथियारों के परीक्षण को प्रतिबन्धित करने वाली यह सन्धि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हुई।
→ परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT):
5 मार्च, 1970 से प्रभावी यह सन्धि सिर्फ परमाणु-शक्ति सम्पन्न देशों को एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है तथा शेष देशों को ऐसे हथियार रखने से रोकती है। इस सन्धि की परिभाषा के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ (वर्तमान रूस), ब्रिटेन, फ्रांस एवं चीन को परमाणु शक्ति से सम्पन्न माना जाता है।
→ सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-I (SALT-I):
सोवियत नेता लियोनिद ब्रेझनेव तथा अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के मध्य इस वार्ता का प्रथम चरण 1969 के नवम्बर में शुरू हुआ। 26 मार्च, 1972 को हस्ताक्षरित यह समझौता 3 अक्टूबर, 1972 से प्रभावी हुआ।
→ सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-II (SALT-II):
नवम्बर 1972 में प्रारम्भ वार्ता के द्वितीय चरण के अन्तर्गत सोवियत नेता ब्रेझनेव ने अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के साथ वियना में 18 जून, 1979 को सामरिक रूप से घातक हथियारों के . परिसीमन से सम्बन्धित सन्धि पर हस्ताक्षर किए।
→ सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि-I (स्टार्ट-I):
सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाचेव तथा अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) ने 31 जुलाई, 1991 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।
→ सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि-II (स्टार्ट-11):
इस सन्धि पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तथा अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश (सीनियर) ने मास्को में 3 जनवरी, 1993 को हस्ताक्षर किए।
→ जवाहरलाल नेहरू (1889-1964):
स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री रहे। इन्होंने एशिया महाद्वीप में एकता स्थापित करने, अनौपनिवेशीकरण एवं निरस्त्रीकरण के प्रयास किये। इसके अतिरिक्त इन्होंने विश्व-शान्ति के लिए शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देने के प्रयास किए। ये गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक सदस्य रहे।
→ जोसेफ ब्रॉज़ टीटो (1892-1980):
ये यूगोस्लाविया के शासक रहे। इन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी तथा सोवियत संघ से भी दूरी बनाए रखी।
→ गमाल अब्दुल नासिर (1918-1970):
मिस्र के शासक रहे। इन्होंने साम्राज्यवादी ताकतों का विरोध किया तथा गुटनिरपेक्ष-आन्दोलन को शक्ति प्रदान की। इन्होंने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किया, जिसके कारण सन् 1956 में अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष हुआ।
→ सुकर्णो (1901-1970):
इण्डोनेशिया के प्रथम-राष्ट्रपति रहे। इन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को ताकत प्रदान की। ये आजीवन समाजवाद और साम्राज्यवाद विरोध के लिए प्रतिबद्ध रहे।
→ वामे एनकूमा (1909-1972):
ये घाना के प्रथम प्रधानमन्त्री रहे। ये अफ्रीकी एकता तथा समाजवाद व गुटनिरपेक्षता के पक्षधर रहे। इन्होंने नव उपनिवेशवाद का विरोध किया। सैनिक षड्यन्त्र में इनका तख्ता पलट हुआ।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ :
- सन् 1914-18: इस अवधि के बीच प्रथम विश्वयुद्ध हुआ।
- सन् 1945: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों-हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया।
- सन् 1945: मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के मध्य दूसरे विश्व युद्ध की (1939-1945) समाप्ति हुई।
- सन् 1947: साम्यवाद के विस्तार को रोकने के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रमैन ने एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
- सन् 1947-52: पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मार्शल-योजना के तहत सहायता दी गयी।
- सन् 1948-49: सोवियत संघ द्वारा बर्लिन शहर की घेराबन्दी करना। अमेरिका व उसके सहयोगी देशों द्वारा पश्चिमी बर्लिन के निवासियों को भेजी गयी सामग्री को सोवियत संघ द्वारा अपने कब्जे में लेना।
- सन् 1949: संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थक पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना।
- सन् 1950-53: कोरियाई युद्ध-38वीं समानान्तर रेखा के द्वारा कोरिया का उत्तरी कोरिया व दक्षिणी कोरिया में विभाजन।
- सन् 1954: दायन बीयन फू में वियतनामियों के हाथों फ्रांस की हार; जेनेवा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए; 17वीं समानान्तर रेखा द्वारा वियतनाम का विभाजन किया गया; सिएटो (SEATO) का गठन किया।
- सन् 1954-75: वियतनाम में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हस्तक्षेप करना।
- सन् 1955: बगदाद समझौते पर हस्ताक्षर; बाद में सेन्टो (CENTO) के नाम से जाना गया, सोवियत संघ के नेतृत्व में वारसा सन्धि।
- सन् 1956: सोवियत संघ द्वारा हंगरी में हस्तक्षेप किया जाना। टीटो (यूगोस्लाविया), नेहरू (भारत) एवं नासिर (मिस्र) के मध्य गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से सम्बन्धित बैठक का आयोजन।
- सन् 1961: सोवियत संघ इस बात से चिन्तित था कि अमेरिका साम्यवादियों द्वारा शासित क्यूबा पर आक्रमण कर देगा।
- सन् 1961: क्यूबा में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रायोजित 'बे ऑफ पिग्स' आक्रमण, बर्लिन दीवार का निर्माण, प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन का बेलग्रेड में आयोजन।
- सन् 1962: सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव द्वारा क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात किया जाना।
- सन् 1965: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा डोमिनियन रिपब्लिक में हस्तक्षेप किया जाना।
- सन् 1968: सोवियत संघ द्वारा चेकोस्लोवाकिया में हस्तक्षेप किया जाना।
- सन् 1969: साम्यवादी चीन एवं सोवियत संघ के मध्य एक भू-भाग पर आधिपत्य को लेकर एक छोटा-सा युद्ध हुआ।
- सन् 1972: संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा।
- सन् 1978-89: वियतनाम द्वारा कम्बोडिया में हस्तक्षेप किया जाना।
- सन् 1979-89: सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया जाना।
- सन् 1985: मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति निर्वाचित। आर्थिक सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ।
- सन् 1989: बर्लिन दीवार का गिराया जाना। पूर्वी यूरोप की सरकारों के विरुद्ध जनता का प्रदर्शन।
- सन् 1990: जर्मनी का एकीकरण हुआ।
- सन् 1991: सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध की समाप्ति।
- सन् 2019: अजरबेजान में 18वें गुटनिरपेक्ष सम्मेलन का आयोजन। इसमें 120 सदस्य देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए।