RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1. 
निम्न में से किस राजनेता ने 'सम्पूर्ण क्रान्ति' का आह्वान किया था। 
(अ) जयप्रकाश नारायण 
(ब) जॉर्ज फर्नान्डिस 
(स) चारू मजूमदार 
(द) इंदिरा गाँधी। 
उत्तर:
(अ) जयप्रकाश नारायण 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट 

प्रश्न 2. 
भारत में आपातकाल की घोषणा हुई। 
(अ) 25 जून, 1974 को 
(ब) 25 जून, 1975 को 
(स) 26 जनवरी, 1960 को 
(द) 27 दिसम्बर 1986 को। 
उत्तर:
(ब) 25 जून, 1975 को 

प्रश्न 3. 
आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान का कौन-सा संशोधन पारित हुआ। 
(अ) 42वाँ संविधान संशोधन 
(ब) 44वाँ संविधान संशोधन 
(स) 94वाँ संविधान संशोधन
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(अ) 42वाँ संविधान संशोधन 

प्रश्न 4. 
निम्न में से किस दल ने सन् 1977 के आम चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। 
(अ) समाजवादी पार्टी 
(ब) जनसंघ
(स) जनता पार्टी 
(द) कांग्रेस पार्टी। 
उत्तर:
(स) जनता पार्टी 

प्रश्न 5. 
सन् 1977 में बनी प्रथम गैर-काँग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया। 
(अ) अटल बिहारी बाजपेयी ने
(ब) चरण सिंह ने 
(स) जयप्रकाश नारायण ने
(द) मोरारजी देसाई ने। 
उत्तर:
(द) मोरारजी देसाई ने। 

प्रश्न 6. 
निम्न में से किस राजनेता ने लोकदल की स्थापना की। 
(अ) चरण सिंह 
(ब) जगजीवन राम 
(स) मोरारजी देसाई 
(द) इंदिरा गाँधी। 
उत्तर:
(अ) चरण सिंह 

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प्रश्न 7. 
सन् 1980 के आम चुनावों के पश्चात् केन्द्र में किस दल की सरकार बनी। 
(अ) जनता पार्टी की 
(ब) कांग्रेस पार्टी की 
(स) जनसंघ की 
(द) कम्युनिस्ट पार्टी की। 
उत्तर:
(ब) कांग्रेस पार्टी की 

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
सन् 1971 के आम चुनावों में कांग्रेस ने कौन - सा नारा दिया था? 
उत्तर:
सन् 1971 के आम चुनावों में कांग्रेस ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था। 

प्रश्न 2. 
बिहार आन्दोलन का प्रसिद्ध नारा क्या था? 
उत्तर:
सन् 1974 के बिहार आन्दोलन का प्रसिद्ध नारा था, 'सम्पूर्ण क्रान्ति अब नारा है - भावी इतिहास हमारा है।' 

प्रश्न 3. 
बिहार आन्दोलन के कुछ मुख्य कारण बताइए। 
उत्तर:
सन् 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न का अभाव, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इस आन्दोलन के मुख्य कारण थे। 

प्रश्न 4. 
लोकनायक जयप्रकाश नारायण किस विचारधारा से प्रभावित थे? 
उत्तर:
लोकनायक जयप्रकाश नारायण गाँधीवादी विचारधारा के साथ - साथ समाजवाद तथा मार्क्सवाद से प्रभावित थे। 

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प्रश्न 5. 
चारू मजूमदार कौन था? 
उत्तर:
चारू मजूमदार एक कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी तथा नक्सलवादी आन्दोलन के जनक थे। 

प्रश्न 6. 
जनता के संसद मार्च का नेतृत्व कब व किसने किया?
उत्तर:
सन् 1975 ई. में जनता के संसद मार्च का नेतृत्व जयप्रकाश नारायण ने किया। 

प्रश्न 7. 
'जेपी' के नाम से मशहूर राजनेता कौन थे? 
उत्तर:
लोकनायक जयप्रकाश नारायण। 

प्रश्न 8. 
1974 की रेल हड़ताल के प्रमुख नेता कौन थे? 
उत्तर:
जॉर्ज फर्नान्डिस। 

प्रश्न 9. 
25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा किसने की थी? 
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण ने। 

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प्रश्न 10. 
किस उच्च न्यायालय ने लोकसभा के लिए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया था? 
उत्तर:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने। 

प्रश्न 11. 
आपातकाल लागू करने का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के लोकसभा हेतु निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करना एवं विपक्षी दलों द्वारा उनसे त्यागपत्र की माँग करना।

प्रश्न 12. 
भारत में आपातकाल के समय देश का राष्ट्रपति कौन था? 
उत्तर:
फखरुद्दीन अली अहमद। 

प्रश्न 13. 
सन् 1975 में आपातकाल संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत लगाया गया था?
अथवा 
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा संविधान के किस अनुच्छेद के तहत की गई?
उत्तर:
अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत। 

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प्रश्न 14. 
भारतीय राजनीति का सर्वाधिक विवादास्पद प्रकरण कौन - सा है? 
उत्तर:
1975 में लगाया गया आपातकाल भारतीय राजनीति का सर्वाधिक विवादास्पद प्रकरण है। 

प्रश्न 15. 
आन्तरिक अशान्ति की दशा में उद्घोषित आपातकाल के कोई दो प्रभाव बताइए। 
उत्तर:

  1. संसद के सभी कार्य स्थगित रहते हैं। 
  2. प्रेस की स्वतंत्रता पर भी रोक लगाई जा सकती है। 

प्रश्न 16. 
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के किन्हीं दो परिणामों को बताइए। 
उत्तर:

  1. मौलिक अधिकारों का हनन। 
  2. संवैधानिक उपचारों का अधिकार एवं न्यायालय द्वारा सरकार विरोधी घोषणाएँ। 

प्रश्न 17. 
प्रेस सेंसरशिप क्या है?
उत्तर:
प्रेस सेंसरशिप के अन्तर्गत समाचार पत्रों में कोई भी खबर छापने से पहले उसकी अनुमति सरकार से लेनी होती है।

प्रश्न 18. 
सन् 1979 में जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल के दिनों में की गई कार्रवाइयों की जाँच हेतु किस जाँच आयोग का गठन किया ?
अथवा 
भारत में आपातकाल की जाँच करने के लिये किस आयोग का गठन किया गया? 
उत्तर:
जे.सी. शाह जाँच आयोग का। 

प्रश्न 19. 
18 मई 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने न्यायाधीश जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग का गठन क्यों किया?
उत्तर:
1977 में शाह जाँच आयोग, आपातकाल के दौरान हुए गलत कार्यों की जाँच के लिए बनाया गया था। 

प्रश्न 20. 
प्राकृतिक चिकित्सा और निग्रह के प्रतिपादक कौन थे? 
उत्तर:
मोरारजी देसाई। 

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प्रश्न 21. 
सन् 1977 का आम चुनाव विपक्ष ने किस नारे पर लड़ा था? 
उत्तर:
सन् 1977 का आम चुनाव विपक्ष ने 'लोकतंत्र बचाओ' के नारे पर लड़ा था।

प्रश्न 22. 
'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' से अभिप्राय है कि न्यायपालिका शासक दल और उसकी नीतियों के प्रति निष्ठावान रहे। 

प्रश्न 23. 
सन् 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी एवं उसके सहयोगी दलों ने लोकसभा में कितनी सीटें जीतीं? 
उत्तर:
सन् 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी एवं उसके सहयोगी दलों ने लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें जीती। 

प्रश्न 24. 
भारत में 1977 के चुनाव के बाद किसे प्रधानमंत्री बनाया गया था ?
उत्तर:
मोरारजी देसाई। 

प्रश्न 25. 
मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार के गिर जाने के मूल कारण का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
सरकार में आपसी मतभेद और भविष्य के लिए दृष्टि के अभाव के कारण मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई। 

प्रश्न 26. 
स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री कौन थे ?
उत्तर:
जगजीवन राम। 

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प्रश्न 27. 
'इंदिरा इज इन्डिया, इन्डिया इज इंदिरा' का नारा किसने दिया ?
उत्तर:
देवकान्त बरूआ ने। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA1): 

प्रश्न 1. 
सन् 1971-72 के समय देश की सामाजिक-आर्थिक दशा किस प्रकार की थी?
उत्तर:
सन् 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था। सन् 1971 - 72 के बाद के सालों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में विशेष सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे। इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। इसी अवधि में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई। इससे व्यापक महँगाई व बेरोजगारी का वातावरण व्याप्त हो चुका था।

प्रश्न 2. 
गुजरात और बिहार में व्यापक रूप से छात्र आन्दोलन क्यों हुए?
उत्तर:
गुजरात और बिहार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। यहाँ के छात्र आन्दोलन से इन दोनों प्रदेशों की राजनीति पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हुए। सन् 1974 के जनवरी माह में गुजरात व मार्च 1974 में बिहार के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिर्या । छात्र-आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शामिल हो गयीं और इस तरह छात्र-आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया।

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प्रश्न 3. 
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन ने किस प्रकार राष्ट्रव्यापी रूप धारण कर लिया?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में सम्पूर्ण क्रान्ति' का आह्वान किया ताकि 'सच्चे लोकतंत्र' की स्थापना की जा सके। आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन के साथ ही साथ रेलवे के कर्मचारियों ने भी एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।

प्रश्न 4. 
नक्सलवादी आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवाड़ी पुलिस थाने के इलाके में सन् 1967 में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस विद्रोह का नेतृत्व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय कॉडर के लोग कर रहे थे। नक्सलवाड़ी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आन्दोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आन्दोलन को नक्सलवादी आन्दोलन के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 5. 
चारू मजूमदार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
चारू मजूमदार का जन्म 1918 को हुआ। वे भारत के इतिहास में कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी और नक्सलवादी बगावत के नेता थे। आजादी से पहले तेभागा आन्दोलन में भागीदार रहे। उन्होंने सी.पी.आई. छोड़ी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना की। यह पार्टी नक्सलवादी आन्दोलन की प्रेरणास्रोत बनी। चारू मजूमदार माओवादी पंथ में विश्वास करते थे तथा क्रान्तिकारी हिंसा के समर्थक थे। इनकी मृत्यु सन् 1972 में पुलिस हिरासत में हुई।

प्रश्न 6. 
सन् 1974 में किन कारणों से रेलवे कर्मचारियों ने हड़ताल का आह्वान किया?
उत्तर:
बोनस और सेवा से जुड़ी शर्तों के सम्बन्ध में अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए रेलवे कर्मचारियों द्वारा जार्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में हड़ताल का यह आह्वान किया गया था। सरकार इन माँगों के खिलाफ थी। ऐसे में भारत के इस सबसे बड़े सार्वजनिक उद्यम के कर्मचारी सन् 1974 के मई महीने में हड़ताल पर चले गये। रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल से मजदूरों के असंतोष को बढ़ावा मिला।

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प्रश्न 7. 
भारत में सन् 1975 में आपातकाल लागू करने के कोई दो कारण बताइए। 
उत्तर:
भारत में सन् 1975 में आपातकाल लागू होने के दो कारण निम्नलिखित थे। 

  1. आन्तरिक गड़बड़ी की आशंका के आधार पर सन् 1975 ई० में आपातकाल घोषित किया गया।
  2. इंदिरा गाँधी के लोकसभा हेतु निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करना तथा विपक्षी दलों द्वारा उनसे त्यागपत्र की माँग करना।

प्रश्न 8. 
आपातकाल की स्थिति में सरकार को कौन-कौन सी विशेष शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सरकार को आपातकाल की स्थिति में विशेष शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। आपातकाल की घोषणा के साथ ही शक्तियों के बँटवारे का संघीय ढाँचा व्यावहारिक तौर पर निष्प्रभावी हो जाता है तथा समस्त शक्तियाँ केन्द्र सरकार के हाथ में आ जाती हैं। दूसरे, सरकार चाहे तो ऐसी स्थिति में किसी एक अथवा सभी मौलिक अधिकारों पर रोक लगा सकती है अथवा उनमें कटौती कर सकती है। इस प्रकार सरकार को आपातकाल की स्थिति में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। 

प्रश्न 9. 
स्तंभ 'A' में दिए गए नामों का, स्तंभ 'B' में दी गई जानकारी से सार्थक मेल कीजिए :

स्तंभ A

स्तंभ B

(a) इंदिरा गाँधी

(i) 1952 से लेकर अपनी मृत्यु तक सांसद बने रहे

(b) राम मनोहृर लोहिया

(ii) 1975 के आपातकाल में विरोध का प्रतीक

(c) जयप्रकाश नारायण

(iii) बैंकों का राष्ट्रीयकरण

(d) जगजीवन राम

(iv) नेहरू के विरुद्ध अपने कटु प्रहारों के लिए विख्यात

उत्तर:
(a) - (iii), (b) – (iv), (c) - (ii), (d) – (i) 

प्रश्न 10. 
स्तंभ 'A' में दिए गए पदों का, स्तंभ 'B' में दिए गए नामों से मिलाकेर अर्थपूर्ण जोड़े बनाइए: 

(A)

(B)

(a) जाँच आयोग का अध्यक्ष

(i) चौधरी चरण सिंह

(b) 1967 - 1969 तक भारत के उप-प्रधानमंत्री

(ii) जगजीवन राम

(c) 1979 - 80 तक भारत के प्रधानमंत्री

(iii) जे. सी. शाह

(d) 1952 से 1977 तक भारत के केन्द्रीय मंत्री

(iv) मोरारजी देसाई

उत्तर:
(a) - (iv), (b) - (ii), (c)- (i), (d) - (iii)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित का सही मिलान कीजिए

(A)

(B)

(a) राजनीति से प्रेरित विवादास्पद नियुक्ति

(i) चारु मजूमदार

(b) 1974 में रेलवे की हड़ताल का नेतृत्व किया

(ii) जयप्रकाश नारायण

(c) नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने से इंकार

(iii) जार्ज फर्जान्डिस

(d) पुलिस हिरासत में मौत

(iv) न्यायमूर्ति ए.एन.रे.

उत्तर:
(a) - (iv), (b) - (ii), (c)- (i), (d) - (iii)

प्रश्न 13. 
42वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत किए गए प्रमुख संवैधानिक बदलावों में से किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर:
आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ। इस संशोधन के जरिए संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए। 42वें संशोधन के जरिए हुए अनेक बदलावों में एक था - देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 से बढ़ाकर 6 वर्ष करना। यह व्यवस्था मात्र आपातकाल की अवधि भर के लिए नहीं की गयी थी। इसे आगे के दिनों में भी स्थायी रूप से लागू किया जाना था।

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प्रश्न 14. 
शाह जाँच आयोग क्या था? इसके प्रति सरकार की प्रतिक्रिया बताइए।
उत्तर:
शाह जाँच आयोग की नियुक्ति मई 1977 में जनता पार्टी की सरकार द्वारा की गयी। इस आयोग का मुख्य कार्य आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा किए गए असंवैधानिक कार्यों एवं मानवाधिकार के हनन की जाँच करना था। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों एवं तीसरी व अन्तिम रिपोर्ट की सिफारिशों, पर्यवेक्षणों व निष्कर्षों को स्वीकार किया था।

प्रश्न 15. 
आपातकाल के दौरान सरकार ने किन मसलों पर आधारित बीस सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान सरकार गरीबों के हित के कार्यक्रम लागू करना चाहती थी। इस उद्देश्य से सरकार ने एक बीस-सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की और इसे लागू करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराया। बीस-सूत्री कार्यक्रम में भूमि-सुधार, भू-पुनर्वितरण, खेतिहर मजदूरों के पारिश्रमिक पर पुनर्विचार, प्रबन्धन में कामगारों की भागीदारी, बंधुआ मजदूरी की समाप्ति आदि मुद्दे शामिल थे।

प्रश्न 16. 
सन् 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की विजय प्राप्ति के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
सन् 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की विजय प्राप्ति के निम्नलिखित कारण थे
(i) जयप्रकाश नारायण का व्यक्तित्व: जयप्रकाश नारायण इस दौर के सबसे करिश्माई व्यक्तित्व थे। उन्हें अपार जन-समर्थन प्राप्त था। जनता पार्टी को जिताने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।

(ii) इंदिरा गाँधी की घटती लोकप्रियता: इंदिरा गाँधी के गरीबी हटाओ के नारे के बावजूद सन् 1971 - 72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। इंदिरा गाँधी की घटती हुई लोकप्रियता व उनकी हठधर्मिता, न्यायपालिका से उनका टकराव आदि ऐसे कारण थे जिनसे इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता घटी।

प्रश्न 17. 
सन् 1977 के चुनावों में कौन-कौन से राजनीतिक बदलाव सामने आए?
उत्तर:
मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए, ऐसे में विपक्ष को चुनावी तैयारी का बड़ा कम समय मिला, लेकिन राजनीतिक बदलाव की गति बड़ी तीव्र थी। आपातकाल लागू होने के पहले ही बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक - दूसरे के नजदीक आ रही थीं। चुनाव के ठीक पहले इन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक नया दल बनाया। नई पार्टी ने जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकार किया। इस समय कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो चुकी थी।

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प्रश्न 18. 
मोरारजी देसाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मोरारजी देसाई का जन्म सन् 1896 ई. में हुआ। वे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी रहे। वे एक गाँधीवादी नेता थे। अतः खादी, प्राकृतिक चिकित्सा और निग्रह के प्रतिपादक रहे। वे बॉम्बे प्रान्त के मुख्यमंत्री रहे। सन् 1967 से 1969 के बीच देश के उप-प्रधानमंत्री रहे। पार्टी में टूट के बाद कांग्रेस (ओ) में शामिल हुए। सन् 1977 से 1979 तक एक गैर-कांग्रेसी दल की ओर से प्रधानमंत्री रहे। सन् 1995 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 19. 
चौधरी चरण सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इनका जन्म 1902 में हुआ था। ये एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे तथा उत्तर प्रदेश की राजनीति में इनकी सक्रिय भूमिका रही थी। इन्होंने ग्रामीण व कृषि विकास का समर्थन किया था। इन्होंने 1967 में भारतीय क्रांति दल का गठन किया था। उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बने तथा 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। लोकदल की भी स्थापना की थी। जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक ये भारत के प्रधानमंत्री रहे।

प्रश्न 20. 
जगजीवन राम पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जगजीवन राम का जन्म सन् 1908 में हुआ। वे भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और बिहार राज्य के उच्च कोटि के काँग्रेसी नेता थे। वे स्वतंत्र भारत के पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बने। सन् 1952 से लेकर सन् 1986 तक सांसद रहे। सन् 1977 से 1979 तक की अवधि में देश के उप-प्रधानमंत्री रहे।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):

प्रश्न 1. 
सन् 1960 के पश्चात् किन-किन आर्थिक संदर्भो ने असंतोष तथा आपातकाल की पृष्ठभूमि तैयार की थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन् 1960 के पश्चात् निम्नलिखित आर्थिक संदर्भो ने असंतोष तथा आपातकाल की पृष्ठभूमि तैयार की थी।
(i) देश की सामाजिक-आर्थिक दशा: सन् 1971 - 72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक - आर्थिक दशा में विशेष सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे। इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। युद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को प्रत्येक प्रकार की सहायता देना बंद कर दिया। इसी अवधि में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई। इससे विभिन्न वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ीं।

(ii) बेरोजगारी में वृद्धि: औद्योगिक विकास की दर बहुत कम थी और बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी थी। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी तीव्र गति से बढ़ी थी। खर्चे को कम करने के लिए सरकार ने अपने कर्मचारियों के वेतन को रोक लिया। इससे सरकारी कर्मचारियों में बहुत असंतोष उत्पन्न हुआ। सन् 1972 - 73 के वर्ष में मानसून असफल रहा। इससे कृषि की पैदावार में भारी गिरावट आई। खाद्यान्न का उत्पादन 8 प्रतिशत कम हो गया। आर्थिक स्थिति की बदहाली को लेकर पूरे देश में असंतोष का माहौल था।

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प्रश्न 2. 
गुजरात आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जनवरी 1974 में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। छात्र आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी सम्मिलित हो गईं और इस आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसी स्थिति में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।

विपक्षी दलों ने राज्य की विधानसभा के लिए पुनः चुनाव कराने की माँग की। कांग्रेस (ओ) के प्रमुख नेता मोरारजी देसाई ने कहा कि यदि राज्य में नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए गए तो मैं अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाऊँगा। मोरारजी देसाई अपने कांग्रेस के दिनों में इंदिरा गाँधी के मुख्य विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्पित छात्र आन्दोलन के गहरे दबाव में जून 1975 में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस इन चुनावों में हार गई।

प्रश्न 3. 
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संक्षिप्त परिचय: 'जेपी' के नाम से प्रसिद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म सन् 1902 में हुआ था। वे गाँधीवादी विचारधारा के साथ - साथ समाजवाद एवं मार्क्सवाद से प्रभावित थे। वस्तुतः वे युवावस्था में मार्क्सवादी थे। उन्होंने स्वराज्य के संघर्ष के दिनों में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी तथा कालान्तर में सोशलिस्ट पार्टी की नींव रखी। वे इस दल के महासचिव के पद पर रहे।

महत्त्वपूर्ण कार्य व उपलब्धियाँ: वे सन् 1942 में गाँधीजी द्वारा छेड़े गए भारत छोड़ो आन्दोलन के महानायक बन गए। उन्हें स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया। उन्होंने विनोबा भावे के भू-आन्दोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें कई बार नेहरू मंत्रिमण्डल में शामिल होने के लिए कहा गया, परन्तु उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वे एक लोकनायक थे।

उन्होंने सन् 1955 ई. में सक्रिय राजनीति का त्याग कर दिया। उन्होंने नागा विद्रोहियों से सरकार की ओर से सुलह की बातचीत की। उन्होंने कश्मीर में शान्ति के प्रयास किए। उन्होंने चम्बल घाटी के डकैतों से सरकार के समक्ष आत्म-समर्पण कराया। उन्होंने सन् 1970 के बाद लाए गए बिहार आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। वे इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के घोर विरोधी बन गये थे। उन्होंने जनता पार्टी के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1979 में उनका निधन हो गया।

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प्रश्न 4. 
सन् 1974 की रेल हड़ताल क्यों हुई ? इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
सन् 1974 की रेल हड़ताल के कारण-सन् 1974 में रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से सम्बन्धित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। बोनस और सेवा से जुड़ी शर्तों के सम्बन्ध में अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दवाब बनाने के लिए इस हड़ताल का आह्वान किया गया था। सरकार इन माँगों के खिलाफ थी। ऐसे में भारत के इस सबसे बड़े सार्वजनिक उद्यम के कर्मचारी मई 1974 में हड़ताल पर चले गए।

रेल हड़ताल के परिणाम-रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल से मजदूरों के असंतोष को बढ़ावा मिला। इस हड़ताल से मजदूरों के अधिकार जैसे मसले तो उठे ही, साथ ही यह सवाल भी उठा कि आवश्यक सेवाओं से जुड़े हुए कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर सकते हैं या नहीं। सरकार ने इस हड़ताल को अवैधानिक करार दिया। सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों की माँगों को मानने से इन्कार कर दिया। उसने इसके कई नेताओं को गिरफ्तार किया और रेल लाइनों की सुरक्षा में सेना को तैनात कर दिया। ऐसे में 20 दिन के बाद यह हड़ताल बिना किसी समझौते के वापस ले ली गई।

प्रश्न 5. 
विरोधी दलों के विरोध और कांग्रेस की टूट ने आपातकाल की पृष्ठभूमि किस प्रकार तैयार की?
उत्तर:
सन् 1967 ई. के पश्चात् से भारतीय राजनीति में अत्यधिक बदलाव आ रहे थे। इंदिरा गाँधी एक मजबूत नेता के रूप में उभरी थी तथा उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी। इस दौर में दलगत प्रतिस्पर्धा कहीं अधिक तीखी तथा ध्रुवीकृत हो चली थी। इस अवधि में न्यायपालिका और सरकार के आपसी रिश्तों में भी तनाव आए।

कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे, उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर इस्तेमाल किया जा रहा है और राजनीति एक सीमा से अधिक व्यक्तिगत होती जा रही है। कांग्रेस की टूट से इंदिरा गाँधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गये थे। जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन के साथ ही साथ रेलवे के कर्मचारियों ने भी एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। 

इससे देश के दैनिक कामकाज के ठप्प हो जाने का खतरा पैदा हो गया। सन् 1975 ई. में जेपी ने जनता के 'संसद मार्च' का नेतृत्व किया। जयप्रकाश नारायण को अब भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी जैसे-गैर-कांग्रेसी दलों का समर्थन मिला। इन दलों ने जेपी को इंदिरा गाँधी के विकल्प के रूप में पेश किया। गुजरात और बिहार दोनों ही राज्यों के आन्दोलन को कांग्रेस विरोधी आन्दोलन माना गया। इंदिरा गाँधी का मानना था कि ये आन्दोलन उनके प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित है। ये कारण ही आपातकाल की पृष्ठभूमि के निर्माण में सहायक हुए।

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प्रश्न 6. 
आपातकाल का क्या अर्थ है? आंतरिक अशान्ति के कारण जिस आपातकाल की घोषणा की गयी थी, उसके किसी एक प्रभाव को लिखिए।
उत्तर:
आपातकाल का अर्थ: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में वर्णित भारतीय लोकतंत्र की राजनीति के प्रसंग में आपातकाल लोकतंत्र की व्यवस्था का संकट है। आपातकाल भारत के महामहिम राष्ट्रपति की उद्घोषणा से उस समय लागू किया जाता है जब अकस्मात् अशान्ति के कारण यह माना जाता है कि देश या इसके किसी हिस्से की प्रतिरक्षा खतरे में पड़ गयी है। संसद द्वारा प्रत्येक छः माह का आपातकाल पूरा होने के पश्चात् अगले छ: माह तक का प्रस्ताव पारित किया जाता है।

हमारे देश में आपातकाल सन् 1975 में लागू किया गया था। उस समय देश में आर्थिक संकट चल रहा था। बेरोजगारी थी। इस कारण जगह-जगह आंदोलन चल रहे थे, जिससे सरकारी काम-काज में अड़चनें पैदा हो रही थीं। इसके अलावा कांग्रेस सरकार को अपना राजनीतिक अस्तित्व भी खतरे में लग रहा था। इसके लिए आपातकाल की घोषणा की रणनीति अपनाई गई।

आपातकाल की घोषणा के प्रभावों में से एक प्रभाव यह है कि संविधान के अनुच्छेद 19 में दी गयी नागरिकों के मूल अधिकार की गारण्टी का प्रत्याहरण कर लिया जाता है या इसको न्यून प्रभावी बना दिया जाता है। आर्थिक संकट की स्थिति में कर्मचारियों के वेतन - भत्तों आदि में कटौती की जा सकती है।

प्रश्न 7. 
सन् 1975 में आपातकालीन घोषणा से क्या उलझाव सामने आए? उनका सुधार कैसे किया गया?
उत्तर:
आपातकाल की घोषणा: 25 जून, 1975 की रात्रि में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति ने तुरन्त यह उद्घोषणा कर दी। अर्द्ध रात्रि के पश्चात् सभी बड़े समाचार पत्रों के कार्यालयों की बिजली काट दी गयी। प्रातः बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई। 26 जून की सुबह 6 बजे एक विशेष बैठक में मंत्रिमण्डल को इन बातों की सूचना दी गयी, परन्तु तब तक बहुत कुछ हो चुका था। आपातकाल की घोषणा के साथ ही शक्तियों के विभाजन का संघीय ढाँचा व्यावहारिक तौर पर निष्प्रभावी हो जाता है।

घोषणा से उलझाव:

  1. देश के शीर्ष 676 नेताओं को गिरफ्तार किया गया। 
  2. प्रेस पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाई गईं। 
  3. सभी समाचार-पत्रों के कार्यालयों की बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई। 
  4. इस काल के दौरान पुलिस की यातनाएँ व पुलिस हिरासत में लोगों की मौतों की घटनाएँ बढ़ गईं।

उलझावों के सुधारों का प्रयास:

  1. आपातकाल की समाप्ति की घोषणा करके सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया गया।
  2. परिवार नियोजन कार्यक्रम को त्याग दिया गया। 
  3. शीघ्र ही नए आम चुनावों की घोषणा की गई। जिनमें कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई। 
  4. आपातकालीन ज्यादतियों की जाँच के लिए जनता पार्टी की सरकार द्वारा शाह आयोग का गठन किया गया।


प्रश्न 8. 
सन् 1975-76 में आपातकाल के दौरान की प्रमुख घटनाओं का बिन्दुवार उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
सन् 1975-76 में आपातकाल के दौरान की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. इंदिरा सरकार ने गरीबों के हित हेतु बीस सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की तथा उसे तेजी से लागू करने का प्रयास किया। इस कार्यक्रम में भूमि - सुधार, भू - पुनर्वितरण, खेतिहर मजदूरों के पारिश्रमिक पर पुनर्विचार, प्रबन्धन में कामगारों की मौजूदगी तथा बंधुआ मजदूरी की समाप्ति आदि मामले शमिल थे।
  2. देश के बड़े 676 नेताओं को गिरफ्तार किया गया परन्तु कालांतर में शाह आयोग के आकलन से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 1 लाख 11 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
  3. आपातकाल में प्रेस पर कई तरह की रोक लगाई गईं।
  4. 26 जून, 1975 को सभी समाचार पत्रों की बिजली आपूर्ति काट दी गयी जिसे दो-तीन दिन बाद बहाल किया गया। इसी दौरान प्रेस सेंसरशिप का बड़ा ढाँचा तैयार किया गया। 
  5. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी ने बिना किसी आधिकारिक पद पर कार्यरत होते हुए भी देश के प्रशासन पर मनमाने ढंग से नियंत्रण रखा। सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप किया।
  6. इस काल के दौरान पुलिस की यातनाएँ तथा पुलिस हिरासत में लोगों की मौत की घटनाएँ बढ़ गयीं। अनिवार्य रूप से नसबंदी के कार्यक्रम चलाये गये।

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प्रश्न 9. 
सन् 1975 की आंतरिक आपातकालीन घोषणा के संदर्भ में संविधान में किए गए किन्हीं चार संशोधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सन् 1975 की आंतरिक आपातकालीन घोषणा के संदर्भ में संविधान में किए गए चार संशोधन निम्नलिखित हैं।

  1. संसद ने संविधान के समक्ष कई नई चुनौतियाँ खड़ी की। इंदिरा गाँधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से बचाव के लिए इस आशय का संशोधन कराया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। 
  2. आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ। इस संशोधन के द्वारा देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 से बढ़ाकर 6 साल किया गया। इसे आगे के दिनों में भी स्थायी रूप से लागू किया जाना था।
  3. इसके अतिरिक्त अब आपातकाल के दौरान चुनाव को एक वर्ष के लिए स्थगित किया जा सकता था। इस तरह सन् 1977 के बाद सन् 1978 में चुनाव करवाये जा सकते थे।
  4. राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों को मूल अधिकारों से अधिक कानूनी बल देने के लिए संशोधन किया गया। इस संशोधन में नागरिकों के मूल कर्त्तव्य नामक एक नया अध्याय अंततः स्थापित किया गया तथा व्यक्ति या समूहों के राष्ट्र-विरोधी कार्यों के लिए दण्ड के नए उपबन्ध प्रविष्ट किए गए।

प्रश्न 10. 
भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल के कोई चार दुष्प्रभाव बताइए। 
उत्तर:
सन् 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की गयी। भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल में निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़े
(i) राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी: आपातकाल के दौरान राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया तथा हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। अनेक लोगों की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई। 

(ii) प्रेस पर पाबन्दी: आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस की स्वतत्रंता पर रोक लगा दी। समाचार पत्रों को कुछ भी छापने से पहले सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक था। 

(iii) मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर रोक लगा दी गयी। वे निष्प्रभावी हो गये। लोगों के पास यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। 

(iv) जनसंख्या नियन्त्रण की अनिवार्यता की मंजूरी: जनसंख्या नियन्त्रण के अति उत्साह में सरकार ने लोगों को अनिवार्य रूप से नसबंदी के लिए मजबूर किया। 

(v) दलीय प्रणाली पर दुष्प्रभाव: आपातकाल का भारत की दलीय प्रणाली पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश विरोधी दलों को किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति नहीं थी, आजादी के समय से लेकर 1975 तक भारत में वैसे भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्त्व रहा तथा संगठित विरोधी दल उभर नहीं पाया, वहीं आपातकाल के दौरान विरोधी दलों की स्थिति और भी खराब हो गयी।

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प्रश्न 11. 
भारत में सन् 1975 में आपातकाल की घोषणा के सम्बन्ध में उठे विवादों का आँकलन कीजिए।
अथवा 
क्या 1975 में आपातकाल की घोषणा जरूरी थी ?
अथवा
क्या आपातकाल जरूरी था? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
भारत में सन् 1975 के आपातकाल की घोषणा के सम्बन्ध में उठे विवाद-आपातकाल के बाद शाह आयोग ने अपनी जाँच में पाया कि इस अवधि में बहुत अधिक 'अति' हुई। इसके अतिरिक्त भारत में लोकतंत्र पर अमल के लिहाज से आपातकाल से क्या-क्या सबक सीखे जा सकते हैं-इस पर भी अलग-अलग मत दिए जाते हैं।

क्या आपातकाल की घोषणा जरूरी थी: इस विषय में सरकार का तर्क था कि भारत में लोकतंत्र और इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वे निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति का सहारा नहीं लिया जा सकता।

इससे अस्थिरता पैदा होती है तथा प्रशासन का ध्यान विकास के कार्यों से भंग हो जाता है। सम्पूर्ण शक्ति कानून व्यवस्था की बहाली पर लगानी पड़ती है। इंदिरा गाँधी ने शाह आयोग को एक पत्र में लिखा कि षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में बाधायें डाल रही हैं। आपातकाल के आलोचकों का तर्क था कि आजादी के आन्दोलन से लेकर लगातार भारत में जन आन्दोलन का एक सिलसिला रहा है। लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप्प करके 'आपातकाल' लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की आवश्यकता बिल्कुल न थी।

प्रश्न 12. 
आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी का प्रयोग किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़ी मात्रा में प्रयोग किया गया। इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत, इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं। सरकार ने आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी अधिनियमों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की।

जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे। गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष से अन्य लोगों ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, लेकिन सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों की गिरफ्तारी का कारण बताना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है। अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गयी ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

प्रश्न 13. 
नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर आपातकाल का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए। उनके पास अब यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।

इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत, इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं। सरकार ने इन प्रावधानों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे।

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प्रश्न 14. 
1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने किस प्रकार 1977 में लगाए गए आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दे दिया? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने निम्नलिखित तरीकों से आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दे दिया।
(i) आपातकाल की घोषणा होने से पहले ही विरोधी दलों में नजदीकी बढ़ रही थी। 1977 के चुनावों से पहले इन दलों ने जनता पार्टी का निर्माण किया। कांग्रेस के अनेक नेता जो आपातकाल के विरुद्ध थे, वे जनता पार्टी में शामिल हो गए।

(ii) जनता पार्टी ने 1977 के आम चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दे दिया। जनता पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र तथा आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों को उजागर किया।

(iii) प्रेस पर सेंसरशिप तथा हजारों लोगों की गिरफ्तारी के कारण जनमत कांग्रेस के खिलाफ था। जनता पार्टी के गठन ने यह बात साफ कर दी थी कि गैर-कांग्रेसी वोटों का ध्रुवीकरण होगा। यह कांग्रेस के सामने राजनीतिक चुनौती थी।

(iv) 1977 के चुनाव परिणाम चौकाने वाले साबित हुए। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पहली बार लोकसभा का चुनाव हार गई। उत्तर भारत में चुनावी वातावरण कांग्रेस के विरुद्ध था जबकि दक्षिण भारत में कांग्रेस का विजय रथ चलता रहा। इस प्रकार आपातकाल का प्रभाव सम्पूर्ण देश पर एक समान नहीं था। उत्तर भारत में मध्यम वर्ग कांग्रेस से दूर जाने लगा। इस प्रकारा आपातकाल के चुनावों पर मतदाताओं की प्रतिक्रिया तमाम देश में एकसमान नहीं थी। लेकिन आपातकाल की ज्यादतियों के प्रति मतदाताओं में नाराजगी अवश्य थी।

प्रश्न 15. 
सन् 1977 के चुनाव के बाद बनी जनता सरकार के कार्यक्रमों व कार्यशैली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मार्च 1977 में आम चुनाव हुए। ऐसे में विपक्ष को चुनावी तैयारी का बहुत कम समय मिला। आपातकाल लागू होने के पहले ही बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक दूसरे के नजदीक आ रही थीं। चुनाव के ठीक पहले इन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक दल बनाया। नई पार्टी ने जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकार किया। सन् 1977 के चुनावों के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार में कोई विशेष तालमेल नहीं था।

चुनाव के बाद नेताओं के बीच प्रधानमंत्री के पद के लिए होड़ मची। इस होड़ में मोरारजी देसाई, चरण सिंह और जगजीवन राम शामिल थे। बहरहाल मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन इससे जनता पार्टी के भीतर सत्ता की खींचतान खत्म न हुई। 

आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए ही एकजुट रख सका। इस पार्टी के आलोचकों ने कहा कि जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व अथवा एक साझे कार्यक्रम का अभाव था। जनता पार्टी की सरकार कांग्रेस द्वारा अपनाई गयी नीतियों में कोई बुनियादी बदलाव नहीं ला सकी।

जनता पार्टी बिखर गयी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में ही अपना बहुमत खो दिया। कांग्रेस पार्टी के समर्थन पर दूसरी सरकार चरण सिंह के नेतृत्व में बनी लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस लेने का निर्णय लिया। इस वजह से चरण सिंह की सरकार मात्र चार महीने तक सत्ता में रह पायी।

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प्रश्न 16. 
"आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ समय के लिए एकजुट रख सका।" इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1977 के चुनावों के पश्चात् बनी जनता पार्टी की सरकार में कोई खास तालमेल नहीं था। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ ही दिनों के लिए एकजुट रख सका। इस पार्टी के आलोचकों ने कहा कि जनता पार्टी के पास किसी दिशा नेतृत्व अथवा एक साझे कार्यक्रम का अभाव था। जनता पार्टी की सरकार कांग्रेस द्वारा अपनाई गयी नीतियों में कोई बुनियादी बदलाव नहीं ला सकी। जनता पार्टी बिखर गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में ही अपना बहुमत खो दिया।

कांग्रेस पार्टी के समर्थन पर दूसरी सरकार चरण सिंह के नेतृत्व में बनी, लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस लेने का फैसला किया। इस वजह से चरण सिंह की सरकार मात्र चार महीने तक सत्ता में रह पायी। सन् 1980 के जनवरी में लोकसभा के लिए नए सिरे से चुनाव हुए। इस चुनाव में जनता पार्टी बुरी तरह परास्त हुई।

जनता पार्टी को उत्तर भारत में करारी शिकस्त मिली, जबकि सन् 1977 के चुनाव में उत्तर भारत में इस पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली थी। इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने, सन् 1980 के चुनाव में एक बार फिर सन् 1971 के चुनावों वाली कहानी दुहराते हुए भारी सफलता हासिल की। 

निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
1975 में आंतरिक आपातकाल क्यों घोषित किया गया ? इस दौरान कौन-कौन से परिणाम महसूस किये गये? स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा से किन्हीं छः परिणामों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा 
सन् 1975 की आपातकालीन घोषणा और क्रियान्वयन से देश के राजनैतिक माहौल, प्रेस, नागरिक अधिकारों, न्यायपालिका के निर्णयों और संविधान पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। राजनारायण की याचिका पर यह कार्रवाई की गई। अब एक बड़े राजनैतिक संघर्ष के लिये मैदान तैयार हो चुका था। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंदिरा गाँधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। जयप्रकाश नारायण ने इसे लेकर राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। उन्होंने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें।

सरकार ने इन घटनाओं को देखते हुए 25 जून 1975 के दिन आपातकाल की घोषणा कर दी। 25 जून, 1975 के आपातकाल की घोषणा के परिणाम निम्नांकित थे।
(i) राजनीतिक वातावरण पर प्रभाव: आपातकाल की घोषणा से सरकार विरोधी आन्दोलन रुक गया, हड़तालों पर रोक लगा दी गयी। अनेक विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। राजनीतिक माहौल में एक तनावपूर्ण गहरा सन्नाटा छा गया।

(ii) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं जमात: ए-इस्लामी पर प्रतिबन्ध-सामाजिक व साम्प्रदायिक गड़बड़ी की आशंका को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस. एस.) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबन्ध लगा दिया। धरना, प्रदर्शन एवं हड़ताल की भी अनुमति नहीं थी। इन दोनों संगठनों के हजारों निष्ठावान सक्रिय कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया गया।

 (iii) प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभाव: आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी। समाचार पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पूर्व सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।

(iv) मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए। उनके पास अब यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। सरकार ने निवारक नजरबंदी अधिनियमों का व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया। इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं।

(v) संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा न्यायालय द्वारा सरकार विरोधी घोषणाएँ-जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे। गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष के अन्य लोगों ने उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, परन्तु सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों को गिरफ्तारी का कारण बताना आवश्यक नहीं है।

अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गयी ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

(vi) संवैधानिक प्रभाव:

  1.  संसद ने संविधान के सामने कई नई चुनौतियाँ खड़ी की। इंदिरा गाँधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संविधान में संशोधन हुआ। इस संशोधन के द्वारा प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  2. आपातकाल के दौरान पारित 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान के अनेक भागों में परिवर्तन किए गए। एक परिवर्तन यह था कि देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 से बढ़ाकर 6 साल करना। इसके अतिरिक्त अब आपातकाल के दौरान चुनाव को एक साल के लिए स्थगित किया जा सकता था।

(vii) अन्य प्रभाव:

  1. आपातकाल के प्रतिरोध में कई घटनाएँ घटीं। प्रारम्भ में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गए थे वे 'भूमिगत' हो गये तथा सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया।
  2. 'इण्डियन एक्सप्रेस' और 'स्टेट्समैन' जैसे समाचार पत्रों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छापने से रोका जाता था उनकी जगह ये समाचार पत्र खाली छोड़ देते थे। 'सेमीनार' और 'मेनस्ट्रीम' जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने के स्थान पर बंद होना उचित समझा।
  3. पद्मभूषण से सम्मानित कन्नड़ लेखक शिवराम कारंत तथा पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने लोकतंत्र के दमन के विरोध में अपनी-अपनी पदवी लौटा दी।

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 2. 
सन् 1975 के आपातकाल की घोषणा आवश्यक थी या अनावश्यक? इस कथन पर दो विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार कीजिए।
उत्तर:
भारत में सन् 1975 के आपातकाल की घोषणा के बारे में दो विभिन्न दृष्टिकोण निम्न प्रकार हैं।

(i) आपातकाल की घोषणा आवश्यक थी: भारतीय राजनीतिक इतिहास में जून 1975 के आपातकाल की घोषणा सबसे बड़ा विवादास्पद प्रकरण है। आपातकाल की घोषणा के समर्थक विद्वानों का तर्क है कि जून 1975 में आपातकाल लगाना बहुत आवश्यक था। इस बारे में सरकार का तर्क यह था कि भारत में लोकतंत्र है और इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वे निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें।

इंदिरा गाँधी के समर्थकों का मत यह भी था कि लोकतंत्र में सरकार पर निशाना साधने के लिए लगातार गैर-संसदीय राजनीति का आश्रय नहीं लिया जा सकता। इससे अस्थिरता उत्पन्न होती है तथा प्रशासन का ध्यान विकास के कार्यों से भंग हो जाता है और सम्पूर्ण शक्ति कानून व्यवस्था की बहाली पर व्यय करनी पड़ती है। इंदिरा गाँधी के द्वारा शाह आयोग को भेजे पत्र में लिखा गया कि 'षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में व्यवधान उत्पन्न कर रही थी और मुझे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थीं।'

(ii) आपातकाल की घोषणा अनावश्यक थी: आपातकाल की घोषणा के सम्बन्ध में दूसरा दृष्टिकोण यह था कि आपातकाल की घोषणा अनावश्यक थी। इस दृष्टिकोण के समर्थकों का विचार था कि स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर लगातार भारत में जन-आन्दोलन का एक सिलसिला रहा है।

जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के अन्य नेताओं के विचारानुसार लोकतंत्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप्प करके “आपातकाल" लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।  बिहार व गुजरात में चले विरोध आन्दोलन अधिकांशत: अहिंसक और शान्तिपूर्वक रहे। देश के भीतरी मामलों की देख-रेख का उत्तरदायित्व गृह मंत्रालय का होता है। गृह मंत्रालय ने भी कानून और व्यवस्था हेतु कोई चिन्ता नहीं जतायी थी।

देश में यदि संकटकाल से पूर्व चल रहे कुछ आन्दोलन अपनी सीमा रेखा से बाहर जा रहे थे, तो सरकार के पास अपनी रोजमर्रा की अमल में लाने वाली इतनी शक्तियाँ थीं कि वह ऐसे आन्दोलनों को नियंत्रण में ला सकती थी। लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप्प करके "आपातकाल" लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं थी।
वे अन्त में तर्क देते हैं कि वस्तुतः खतरा देश की एकता तथा अखण्डता को नहीं, बल्कि शासक दल तथा स्वयं प्रधानमंत्री को था।

आलोचक कहते हैं कि देश को बचाने के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग इंदिरा गाँधी ने निजी अस्तित्व को बचाने के लिए किया। उपरोक्त दोनों दृष्टिकोणों में हम दूसरे से अधिक सहमत हैं। आपातकाल की कोई अवाश्यकता नहीं थी। लोकतंत्र में किसी भी आन्तरिक संकट से निपटने के लिए कई प्रावधान मौजूद हैं। आपातकाल तो तानाशाही का ही दूसरा रूप है।

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प्रश्न 3. 
1975 में लगाए गए आपातकाल से असहमति तथा विरोध के रूप में घटित गतिविधियों को उजागर कीजिए। आपकी राय में, इन गतिविधियों का जनमत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1975 में लगाए गए आपातकाल से असहमति तथा विरोध के रूप में कई गतिविधियाँ हुईं। इस फैसले से एक बड़े राजनीतिक संघर्ष के लिए मैदान भी तैयार हुआ। कुछ विशेष घटनाएँ निम्नवत हैं।
(i) लोकप्रिय नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने इंदिरा गाँधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। इन दलों ने 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल प्रदर्शन किया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गाँधी से इस्तीफे की माँग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। देश का राजनीतिक मिजाज अब पहले से कहीं ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ हो गया।

(ii) पहली लहर में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गए थे वे भूमिगत हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलायी।

(iii) इंडियन एक्सप्रेस' और 'स्टेट्समैन' जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छपने से रोका जाता था उनकी जगह अखबार में खाली छोड़ दी जाती थी।

(iv) 'सेमिनार' और 'मेनस्ट्रीम' जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने के स्थान पर बंद होना ज्यादा अच्छा माना।

(v) पद्मभूषण से सम्मानित लेखक शिवराम कारंत और पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने लोकतंत्र दमन के विरोध में अपनी - अपनी पदवी लौटा दी। मेरी राय में इन गतिविधियों के कारण जनमत पर 'आपातकाल के विरोध' में खड़े होने की मानसिक और नैतिक इच्छाशक्ति मजबूत हुई। इन्हीं गतिविधियों ने 1977 के चुनाव में जनमत को निर्णायक रूप से कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने की स्थिति पैदा की। एक मतदाता के रूप में जनता ने लोकतंत्र विरोधी आपातकाल लागू करने वाली सरकार को भारी दंड दिया। भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को इन गतिविधियों ने पुख्ता किया।

प्रश्न 4. 
"25 जून, 1975 को घोषित किए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र पर धब्बा माना जाता है।" इस घोषणा के भारतीय दलीय प्रणाली पर पड़े प्रभाव का आकलन कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल की घोषणा : भारतीय लोकतंत्र एवं भारत की दलीय प्रणाली पर प्रभाव-लोकतंत्रीय ढंग से चुनी गई इंदिरा गाँधी की सरकार द्वारा 25 जून, 1975 को जयप्रकाश नारायण व उसके अनुयायी छात्र संघों व विरोधी दलों द्वारा कार्य न करने देने की आड़ में आपातकाल की घोषणा की गयी। यह आपातकालीन घोषणा भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बे के समान मानी गई। इसकी कई प्रकार से भर्त्सना तथा आलोचना की गई। इसके कई अग्रलिखित कारण थे।

(i) आपातकाल की घोषणा तब की जाती है जब देश संकट की विशेष परिस्थितियों का सामना कर रहा हो। परन्तु सन् 1975 में देश में ऐसे घोर संकट नहीं थे। जिन कारणों का हवाला देकर आपातकाल की घोषणा की गई थी उन मुद्दों को सरकार अपनी साधारण शक्तियों से भी समाप्त कर सकती थी। परन्तु इस घोषणा के पीछे सरकार का अपनी सत्ता को बचाने का निजी स्वार्थ
था।

(ii) सरकार ने कहा कि आपातकाल के माध्यम से वह कानून-व्यवस्था ठीक करना चाहती थी तथा गरीबों के हित में कार्यक्रम लागू करना चाहती थी। उसने बीस सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की और उसे लागू करने का संकल्प दोहराया। परन्तु सरकार अधिकांश वादों को पूरा करने में सफल नहीं हो सकी। उसने वादों का सहारा लेकर अपनी ज्यादतियों की ओर से जनता का ध्यान बँटाया। इसके अतिरिक्त आपातकाल में जनता पर घोर अत्याचार किये गये।

विरोधी नेताओं को जेलों में बिना कारण बताए बंद किया गया। प्रेस पर कई प्रकार की पाबंदी लगायी गयी। जनता के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। सरकारी अधिकारियों का वेतन कम कर दिया गया तथा अन्य तरीकों से भी आर्थिक शोषण किया गया। नसबंदी अभियान को जबरदस्ती थोपा गया। इसीलिए हम कह सकते हैं कि आपातकाल की घोषणा भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बा है। क्योंकि लोकतंत्र में अनुशासन में रहते हुए नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। इस घोषणा के भारतीय दलीय प्रणाली पर पड़े प्रभाव इस प्रकार हैं।

प्रभाव - इसके अन्तर्गत निम्नांकित बिन्दुओं को सम्मिलित किया जा सकता है।
(i) उत्तर भारत में विपक्ष ने 'लोकतंत्र बचाओ' के नारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। कांग्रेस को लोकतंत्र - विरोधी मानकर जनता ने सन् 1977 के चुनावों में भारी पराजय दिलाई।

 (ii) 18 माह के आपातकाल के पश्चात् जनवरी सन् 1977 में सरकार ने चुनाव कराने का निर्णय लिया। सन् 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में कांग्रेसी सरकार के अलोकतांत्रिक चरित्र एवं आपातकाल के दौरान की गयी ज्यादतियों पर बल दिया। जनता पार्टी के गठन के कारण यह सुनिश्चित हो गया कि गैर-कांग्रेसी वोट एक ही जगह पड़ेंगे।

कांग्रेस के लिए अब बड़ी मुश्किल आ पड़ी थी। लोकसभा की मात्र 154 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। उसे 35% से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें प्राप्त हुईं। जनता पार्टी स्वयं 295 सीटों पर जीत गयी थी और उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। उत्तर भारत में चुनावी वातावरण कांग्रेस के बिल्कुल खिलाफ था। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब में एक भी सीट प्राप्त न कर सकी। राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में उसे केवल एक - एक सीट प्राप्त हुई। इंदिरा गाँधी रायबरेली से व उनके पुत्र संजय गाँधी अमेठी से चुनाव हार गए।
 
(iii) सन् 1977 के चुनावों ने एकदलीय प्रभुत्व के दौर को समाप्त कर दिया।

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प्रश्न 5. 
"जिन सरकारों को लोकतंत्र विरोधी माना जाता है, मतदाता उन्हें भारी दण्ड देते हैं।" सन् 1975 - 77 की आपातकालीन स्थिति के संदर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
आपातकाल के संदर्भ में विवादों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल की घोषणा के संदर्भ में विद्वानों में विवाद अथवा मतभेद-जून 1975 के आपातकाल की घोषणा भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी विवादास्पद घटना है। इसका कारण यह है कि दो विभिन्न प्रमुख दृष्टिकोणों वाले विद्वानों के समूह अथवा उनकी विचारधारा हमारे समक्ष आती हैं। इसका कारण यह भी है कि इंदिरा सरकार ने संविधान के अन्तर्गत दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग करके लोकतांत्रिक कामकाज को पूरी तरह ठप्प कर दिया था। दोनों दृष्टिकोणों पर निम्नलिखित अनुच्छेदों में विचार किया जा रहा है।

(i) आपातकाल की घोषणा के समर्थन में-इंदिरा सरकार तथा उसके समर्थक विद्वानों का यह तर्क है कि जून 1975 में आपातकाल लगाना अति आवश्यक था। सरकार का तर्क था कि भारत में लोकतंत्र है तथा इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वह निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। सरकार का मानना था कि बार-बार का धरना, प्रदर्शन तथा सामूहिक कार्यवाही लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

इंदिरा गाँधी के समर्थक यह भी मानते थे कि लोकतंत्र में सरकार पर निशाना साधने के लिए लगातार गैर संसदीय राजनीति का सहारा नहीं लिया जा सकता। इससे अस्थिरता पैदा होती है व प्रशासन का ध्यान विकास के कार्यों से भंग हो जाता है। सम्पूर्ण ताकत कानून व्यवस्था की बहाली पर लगानी पड़ती है। इंदिरा गाँधी ने शाह आयोग को पत्र में लिखा कि षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में रुकावटें डाल रही थीं तथा मुझे गैर-संवैधानिक साधनों के बल पर सत्ता से हटाना चाहती थीं।

(ii) आपातकाल की घोषणा के विरोध में-आपातकाल की घोषणा के आलोचकों का तर्क था कि आजादी के आन्दोलन से लेकर लगातार भारत में जन-आन्दोलन का एक क्रम रहा है। जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के दूसरे नेताओं का विचार था कि लोकतन्त्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। बिहार व गुजरात में चले विरोध-आन्दोलन अधिकतर समय अहिंसक व शान्तिपूर्ण रहे।

जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उन पर कभी भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ था। राष्ट्र के भीतरी मामलों की देख-रेख की जिम्मेदारी गृह - मंत्रालय की होती है। गृह - मंत्रालय ने भी कानून और व्यवस्था हेतु कोई चिन्ता नहीं जतायी थी। यदि देश में संकटकाल से पूर्व चल रहे कुछ आन्दोलन अपनी सीमा से बाहर जा रहे थे, तो सरकार के पास अपनी नियमित व्यवहार में आने वाली इतनी शक्तियाँ र्थी कि वह ऐसे आन्दोलनों को नियंत्रण में ला सकती थी। लोकतांत्रिक कार्य-प्रणाली को ठप्प करके 'आपातकाल' लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

(iii) आपातकाल के सबक: आपातकाल से भारतीय लोकतंत्र की शक्तियों व कमजोरियाँ सामने आ गयीं। बहुत से पर्यवेक्षकों के अनुसार आपातकाल के दौरान भारत लोकतांत्रिक देश नहीं रह गया था, लेकिन कुछ समय पश्चात् देश फिर से लोकतांत्रिक ढर्रे पर लौट आया। यह आपातकाल का प्रथम सबक था कि भारत से लोकतंत्र को समाप्त कर पाना बहुत कठिन है। दूसरा-संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों में कुछ उलझनें भी प्रकट हुईं जिन्हें बाद में सुधारा गया। तीसरा-आपातकाल से प्रत्येक नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत हुआ।

(iv) आपातकाल का चुनावों पर प्रभाव: उत्तर भारत में आपातकाल का प्रभाव सबसे अधिक महसूस किया गया था। विपक्ष ने 'लोकतंत्र बचाओ' के नारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। जिन सरकारों को जनता ने लोकतंत्र विरोधी माना उसे मतदाता के रूप में उसने भारी दण्ड दिया। सन् 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली थीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिली।

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प्रश्न 6. 
1975 के आपातकाल ने किस प्रकार भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लाभान्वित किया?
उत्तर:
आपातकाल के लाभ।
(1) आपातकाल से एक बारगी भारतीय लोकतंत्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हो गईं। हालांकि बहुत-से पर्यवेक्षक मानते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत लोकतांत्रिक नहीं रह गया था, लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि थोड़े ही दिनों के अंदर कामकाज फिर से लोकतांत्रिक ढर्रे पर लौट आया। इस तरह आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतंत्र को विदा कर पाना बहुत कठिन है।

(2) दूसरे, आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए जिन्हें बाद में सुधार लिया गया है। अब 'अंदरूनी गड़बड़ी' आपातकाल सिर्फ 'सशस्त्र विद्रोह' की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में दे।

(3) तीसरे, आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभायी। न्यायपालिका आपातकाल के वक्त नागरिक अधिकारों की कारगर तरीके से रक्षा नहीं कर पाई थी। इसे महसूस करके अब वह नागरिक अधिकारों की रक्षा में तत्पर हो गई। आपातकाल के बाद नागरिक अधिकारों के कई संगठन वजूद में आए।

(4) आपातकाल का वास्तविक क्रियान्वयन पुलिस और प्रशासन के जरिए हुआ। ये संस्थाएँ स्वतंत्र होकर काम नहीं कर पाईं। इन्हें शासक दल ने अपना राजनीतिक औजार बनाकर इस्तेमाल किया। शाह कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस और प्रशासन राजनीतिक दबाव की चपेट में आ गए थे यह समस्या आपातकाल के बाद भी खत्म नहीं हुई।

(5) जैसे ही आपातकाल खत्म हुआ और लोकसभा के चुनावों की घोषणा हुई, वैसे ही आपातकाल का सबसे जरूरी और कीमती सबक राजव्यवस्था ने सीख लिया। 1977 के आम चुनाव एक तरह से आपातकाल के अनुभवों के बारे में जनमत संग्रह थे। उत्तर भारत में तो खासतौर पर, क्योंकि यहाँ आपातकाल का असर सबसे ज्यादा महसूस किया गया। विपक्ष ने 'लोकतंत्र बचाओ' के नारे पर चुनाव लड़ा। 

(6) जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। सबक एकदम साफ था और कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी स्थिति यही रही। जिन सरकारों को जनता ने लोकतंत्र विरोधी माना उसे मतदाता के रूप में उसने भारी दण्ड दिया। इस अर्थ में देखें तो 1975-1977 के अनुभवों की एक परिणति भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को पुख्ता बनाने में हुई।

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प्रश्न 7. 
निम्न बिन्दुओं का वर्णन आपातकाल 1975 की पृष्ठभूमि के संदर्भ में कीजिए : (राजस्थान बोर्ड 2014) (अ) गुजरात व बिहार आन्दोलन, (ब) सरकार व न्यायपालिका में संघर्ष ।
उत्तर:
(अ) गुजरात व बिहार आन्दोलन: गुजरात व बिहार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। यहाँ के छात्र-आन्दोलनों ने इन दोनों प्रदेशों की राजनीति पर गहरा असर डाला ही, साथ ही राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हुए। 1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। छात्र आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं और इस आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। इस स्थिति में वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 

1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आन्दोलन छेड़ दिया। आन्दोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा, उन्होंने इसे इस शर्त पर स्वीकार किया कि यह आन्दोलन अहिंसक होगा तथा यह अपने को केवल बिहार तक सीमित न रखेगा। इस आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हो गया।

(ब) सरकार व न्यायपालिका में संघर्ष - 1970 के दशक से पहले ही इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार और देश की न्यायपालिका के संबंधों में अनेक बार टकराव उत्पन्न हुए। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की गतिविधियों को देश के संविधान के विरुद्ध माना वहीं कांग्रेस ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका का दृष्टिकोण प्रगतिशील नहीं है। यह यथास्थिति वादी संस्था है और यह संस्था गरीबों को लाभ पहुँचाने वाले कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करने की राह में अवरोध उत्पन्न कर रही है। 

इन दोनों के बीच तीन प्रमुख संवैधानिक मसले उठे थे, क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है? क्या संसद संविधान में संशोधन करके संपत्ति के अधिकार में काट-छाँट कर सकती है? इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि सरकार संविधान में इस तरह का संशोधन नहीं कर सकती कि अधिकारों में कटौती हो जाए। संसद ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन किया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को प्रभावकारी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है। 

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया। इससे सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। इस संकट की परिणति केशवानंद भारती के प्रसिद्ध मुकदमे के रूप में सामने आई। इसके अतिरिक्त सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए.एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बन गया क्योंकि सरकार ने जिन तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी इस मामले में की थी उन्होंने सरकार के इस कदम के विरुद्ध फैसला दिया। इस संघर्ष का चरमबिन्दु तब आया जब एक उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये इस अध्याय से सम्बन्धित प्रश्न:

प्रश्न 1. 
जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न से कब सम्मानित किया गया? 
(अ) 1999 
(ब) 1998
(स) 1997
(द) 1996 
उत्तर:
(ब) 1998

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प्रश्न 2. 
किस अनुच्छेद के अनुसार भारत के राष्ट्रपति द्वारा 'राष्ट्रीय आपातकाल' की घोषणा की जा सकती है?
(अ) अनुच्छेद 352 
(ब) अनुच्छेद 370 
(स) अनुच्छेद 371 
(द) अनुच्छेद 395। 
उत्तर:
(द) अनुच्छेद 395। 

प्रश्न 3. 
गैर कांग्रेसी सरकार का प्रथम प्रधानमंत्री कौन था?
(अ) मोरारजी देसाई 
(ब) आई.के. गुजराल 
(स) चरण सिंह 
(द) वी.पी. सिंह। 
उत्तर:
(अ) मोरारजी देसाई 

प्रश्न 4. 
लोकनायक के नाम से किस भारतीय राजनेता को जाना जाता है? 
(अ) महात्मा गाँधी 
(ब) जयप्रकाश नारायण 
(स) सुभाषचन्द्र बोस 
(द) बाल गंगाधर तिलक।
उत्तर:
(द) बाल गंगाधर तिलक।

प्रश्न 5. 
दल विहीन प्रजातंत्र की अवधारणा किसकी है? 
(अ) राममनोहर लोहिया 
(ब) जयप्रकाश नारायण 
(स) महात्मा गाँधी 
(द) भीमराव अम्बेडकर। 
उत्तर:
(ब) जयप्रकाश नारायण 

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प्रश्न 6. 
लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं की अवधि 5 से 6 साल तक बढ़ाई गयी थी
(अ) 42वें संशोधन द्वारा 
(ब) 44 वें संशोधन द्वारा 
(स) 45 वें संशोधन द्वारा 
(द) 46 वें संशोधन द्वारा। 
उत्तर:
(अ) 42वें संशोधन द्वारा 

प्रश्न 7. 
निम्नलिखित में से कौन सी रिट (याचिका) मानव स्वतंत्रता की सर्वोत्कृष्ट अग्रदूत है?
(अ) प्रतिषेध 
(ब) अधिकार-पृच्छा 
(स) बन्दी प्रत्यक्षीकरण 
(द) परमादेश।
उत्तर:
(ब) अधिकार-पृच्छा 

प्रश्न 8. 
भारतीय संविधान का 42 वाँ संशोधन निम्नलिखित में से किस एक प्रधानमंत्री के समय में किया गया था?
(अ) लाल बहादुर शास्त्री 
(ब) इंदिरा गाँधी 
(स) मोरारजी देसाई 
(द) चौ. चरण सिंह। 
उत्तर:
(द) चौ. चरण सिंह। 

प्रश्न 9. 
संविधान का संरक्षक कौन है?
(अ) राष्ट्रपति 
(ब) विधि मंत्रालय
(स) सर्वोच्च न्यायालय 
(द) संसद। 
उत्तर:
(स) सर्वोच्च न्यायालय 

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प्रश्न 10. 
भारतीय संविधान ने नागरिकों को कुल कितने मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं?
(अ) 6. 
(ब) 7
(स) 8
(द) 5. 
उत्तर:
(अ) 6. 

प्रश्न 11. 
भारतीय नागरिक को मौलिक कर्त्तव्य संविधान के भाग में निहित हैं 
(अ) संविधान के भाग एक में
(ब) संविधान के भाग तीन में 
(स) संविधान के भाग तीन-अ में
(द) संविधान के भाग चार - अ में। 
उत्तर:
(ब) संविधान के भाग तीन में 

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प्रश्न 12. 
'सम्पूर्ण क्रान्ति' का नारा किसने दिया?
(अ) डॉ. लोहिया 
(ब) पं. नेहरू
(स) जयप्रकाश नारायण 
(द) अम्बेडकर।
उत्तर:
(स) जयप्रकाश नारायण 

Prasanna
Last Updated on Jan. 17, 2024, 9:27 a.m.
Published Jan. 16, 2024