RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1. 
सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य क्यूबा का मिसाइल संकट उत्पन्न हुआ था। 
(अ) अप्रैल, 1945 से 1990 तक
(ब) दिसम्बर, 1960 से 1961 तक 
(स) जून, 1958 से 1962 तक
(द) अक्टूबर, 1962 से नवम्बर, 1962 तक। 
उत्तर:
(द) अक्टूबर, 1962 से नवम्बर, 1962 तक। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर 

प्रश्न 2. 
द्वितीय विश्वयुद्ध की समयावधि थी। 
(अ) 1914 - 1918
(ब) 1939 - 1945 
(स) 1945 - 1990
(द) 1990 - 1999.
उत्तर:
(ब) 1939 - 1945 

प्रश्न 3. 
द्वितीय विश्वयुद्ध के अन्त के फलस्वरूप जिन दो महाशक्तियों का उदय हुआ, वे थीं। 
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ 
(ब) भारत एवं चीन 
(स) चीन व सोवियत संघ
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका व भारत। 
उत्तर:
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ 

प्रश्न 4. 
अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे। 
(अ) अगस्त, 1914 में
(ब) अगस्त, 1945 में 
(स) अक्टूबर, 1918 में
(द) अगस्त, 1947 में। 
उत्तर:
(ब) अगस्त, 1945 में 

प्रश्न 5. 
नाटो की स्थापना हुई थी। 
(अ) सन् 1945 में
(ब) सन् 1949 में 
(स) सन् 1956 में
(द) सन् 1990 में। 
उत्तर:
(ब) सन् 1949 में 

प्रश्न 6. 
वारसा सन्धि का स्थापना वर्ष है। 
(अ) सन् 1955
(ब) सन् 1956 
(स) सन् 1975
(द) सन् 1999. 
उत्तर:
(अ) सन् 1955

प्रश्न 7. 
प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन बेलग्रेड में हुआ था। 
(अ) सन् 1956 में
(ब) सन् 1960 में 
(स) सन् 1961 में
(द) सन् 2006 में। 
उत्तर:
(स) सन् 1961 में

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प्रश्न 8. 
तीसरी दुनिया से क्या अर्थ है। 
(अ) अज्ञात और शोषित देशों का समूह
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह 
(स) सोवियत गुट के देशों का समूह
(द) अमेरिकी गुट के देशों का समूह। 
उत्तर:
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह। 

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
क्यूबा मिसाइल संकट के समय सोवियत संघ के नेता कौन थे? 
उत्तर:
निकिता खुश्चेव। 

प्रश्न 2. 
सोवियत रूस द्वारा क्यूबा में परमाणु मिसाइलें कब तैनात की गयीं? 
उत्तर:
सन् 1962 में सोवियत रूस द्वारा क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात की गयीं। 

प्रश्न 3. 
शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था? 
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट। 

प्रश्न 4. 
शीतयुद्ध का सम्बन्ध किन-किन गुटों से था? 
उत्तर:
शीतयुद्ध का सम्बन्ध अमेरिका एवं सोवियत संघ से था। 

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प्रश्न 5. 
अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबन्धन की विचारधारा क्या है? 
उत्तर:
पूँजीवादी। 

प्रश्न 6. 
अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के किन - किन शहरों पर परमाणु बम गिराये थे? 
अथवा 
निम्नलिखित वाक्य को अर्थपूर्ण बनाने के लिए पूरा कीजिए।
द्वितीय विश्वयुद्ध तब समाप्त हुआ जब अमेरिका ने जापान के ........... और ............. नामक शहरों पर दो परमाणु बम गिराए।
उत्तर:

  1. हिरोशिमा, 
  2. नागासाकी। 

प्रश्न 7. 
शीतयुद्ध काल के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ की विचारधाराओं में कोई एक अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका की विचारधारा पूँजीवादी थी, जबकि सोवियत संघ की विचारधारा साम्यवादी थी। 

प्रश्न 8. 
अगस्त 1945 में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये बमों को क्या गुप्त नाम प्रदान किया? 
उत्तर:
लिटिल ब्वॉय एवं फैटमैन। 

प्रश्न 9. 
उत्तरी अटलांटिक संधि संघ को पश्चिमी गठबन्धन भी क्यों कहा गया?
उत्तर:
क्योंकि इसमें शामिल अधिकांश देश पश्चिमी यूरोप के थे। 

प्रश्न 10. 
उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) की स्थापना कब हुई? 
उत्तर:
अप्रैल 1949 में। 

प्रश्न 11. 
नाटो का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन (North - Atlantic Treaty Organisation)। 

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प्रश्न 12. 
सोवियत संघ के नेतृत्व में बने पूर्वी गठबन्धन को किस नाम से जाना गया? 
उत्तर:
वारसा सन्धि। 

प्रश्न 13. 
'वारसा सन्धि' की स्थापना का मुख्य कारण था?
उत्तर:
वारसा सन्धि की स्थापना का मुख्य कारण 'नाटो' में सम्मिलित देशों का यूरोप में मुकाबला करना था। 

प्रश्न 14. 
वारसा सन्धि को 'पूर्वी गठबन्धन' भी क्यों कहा गया?
उत्तर:
क्योंकि इसमें शामिल अधिकांश देश पूर्वी यूरोप के थे। 

प्रश्न 15. 
'सीटो' (SEATO) का विस्तृत रूप क्या है?
उत्तर:
दक्षिण - पूर्व एशियाई सन्धि संगठन (South - East Asian Treaty Organisation)। 

प्रश्न 16. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने क्या किया? 
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने नव - स्वतन्त्र राष्ट्रों को दो-ध्रुवीय विश्व की गुटबाजी से अलग रहने का मौका दिया। 

प्रश्न 17. 
साम्यवाद के प्रसार को रोकने हेतु अमेरिका ने क्या कदम उठाए? 
उत्तर:
अमेरिका ने ट्रमैन सिद्धान्त, मार्शल योजना तथा आइजन हॉवर सिद्धान्त बनाए। 

प्रश्न 18. 
मार्शल योजना से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन हेतु जो जबरदस्त सहायता की, वह मार्शल योजना के नाम से जानी जाती है। 

प्रश्न 19. 
एन.पी.टी. तथा एल.टी.बी.टी. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
एन.पी.टी: परमाणु अप्रसार सन्धि; (Treaty on the Non - Proliferation of Nuclear Weapons) एल.टी.बी.टी.-सीमित परमाणु परीक्षण सन्धि (Limited Test Ban Treaty)। 

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प्रश्न 20. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोल के संस्थापकों के नाम लिखिए।
अथवा 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के किन्हीं चार संस्थापकों तथा उनके देशों के नाम लिखिए। 
अथवा 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक के रूप में पहचाने जाने वाले किन्हीं दो विदेशी नेताओं के नाम तथा उनके देश लिखिए।
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो (युगोस्लाविया), जवाहरलाल नेहरू (भारत), गमाल अब्दुल नासिर (मिस्र), सुकर्णो (इंडोनेशिया) तथा वामे एनक्रमा (घाना)।

प्रश्न 21. 
युगोस्लाविया में एकता स्थापित करने वाले नेता कौन थे? 
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो। 

प्रश्न 22. 
सोवियत राजनीतिक प्रणाली किस विचारधारा पर आधारित थी? 
उत्तर:
सोवियत राजनीतिक प्रणाली समाजवादी तथा साम्यवादी विचारधारा पर आधारित थी। 

प्रश्न 23. 
गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुकरण करने वाले किन्हीं चार देशों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
भारत, मिस्र, घाना तथा इंडोनेशिया। 

प्रश्न 24. 
इण्डोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे? 
उत्तर:
सुकर्णो। 

प्रश्न 25. 
प्रथम गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में कितने देश सम्मिलित हुए थे? 
उत्तर:
पच्चीस। 

प्रश्न 26. 
सन् 2019 में अजरबेजान में हुए 18वें गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में कितने देश सम्मिलित हुए? 
उत्तर:
120 सदस्य देश एवं 17 पर्यवेक्षक देश। 

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प्रश्न 27. 
गुटनिरपेक्षता का अर्थ बताइए। 
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ है किसी भी गुट में सम्मिलित न होना तथा अपनी स्वतन्त्र नीति का अनुपालन करना। 

प्रश्न 28. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश देशों को किस तरह का दर्जा मिला? 
उत्तर:
अल्प - विकसित देश। 

प्रश्न 29. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन द्वारा नव स्वतन्त्र देशों को दिए गए प्रमुख योगदान का आकलन कीजिए।
उत्तर:
युद्ध की सम्भावना को समाप्त करने तथा चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रयास करना।

प्रश्न 30. 
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (एन.आई.ई.ओ.) को बनाए रखने के प्रयास, 1980 के दशक के अन्त तक क्यों मन्द पड़ गए?
उत्तर:
क्योंकि विकसित देश इसका तेज विरोध कर रहे थे। 

प्रश्न 31. 
1960 के दशक में दोनों महाशक्तियों ने कौन - कौन से प्रमुख समझौते हस्ताक्षरित किए थे? 
उत्तर:

  1. परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि, 
  2. परमाणु अप्रसार सन्धि, 
  3. परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन सन्धि। 

प्रश्न 32. 
परमाणु अप्रसार सन्धि कब हुई?
उत्तर:
1 जुलाई, 1968 को। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न SA1:

प्रश्न 1. 
शीतयुद्ध के काल में किन दो विचारधाराओं में तनाव चल रहा था और क्यों? 
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में उदारवादी लोकतन्त्र व पूँजीवादी विचारधारा और समाजवादी व साम्यवादी विचारधारा के मध्य तनाव चल रहा था। यह तनाव इस बात को लेकर था कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौन सा है।

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प्रश्न 2. 
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं? अथवा शीतयुद्ध से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शीतयुद्ध से हमारा अभिप्राय उस अवस्था से है जब दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण तो हो, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के बीच युद्ध तो नहीं हुआ, लेकिन युद्ध जैसी स्थिति बनी रही। यह स्थिति शीतयुद्ध के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 3. 
शीतयुद्ध शुरू होने का मूल कारण क्या था?
उत्तर:
परस्पर विरोधी खेमों की समझ में यह बात थी कि प्रत्यक्ष युद्ध खतरों से परिपूर्ण है, क्योंकि दोनों पक्षों को भारी नुकसान की प्रबल सम्भावनाएँ थीं। इसमें वास्तविक विजेता का निर्धारण सरल कार्य न था। यदि एक गुट अपने शत्रु पर हमला करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने का प्रयास करता है, तब भी दूसरे गुट के पास उसे बर्बाद करने लायक अस्त्र बच जायेंगे। यही कारण था कि तीसरा विश्वयुद्ध न होकर शीतयुद्ध के रूप में युद्ध की स्थिति बनी रही।

प्रश्न 4. 
मित्र व धुरी राष्ट्रों की अगुवाई किन - किन देशों ने की? 
उत्तर:
मित्र राष्ट्र की अगुवाई वाले देश-अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ्रांस। धुरी राष्ट्र की अगुवाई वाले देश-जर्मनी, इटली और जापान। 

प्रश्न 5. 
किस घटना के पश्चात् द्वितीय विश्वयुद्ध का समापन हुआ?
उत्तर:
अगस्त 1945 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के दो शहरों-हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराये। जिस कारण जापान को घुटने टेकने पड़े। इन बमों को गिराने के पश्चात् ही द्वितीय विश्वयुद्ध का समापन हो गया।

प्रश्न 6. 
शीतयुद्ध किनके मध्य एवं किस रूप में जारी रहा? .
उत्तर:
शीतयुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ तथा इनके सहयोगी देशों के मध्य प्रतिद्वन्द्विता, तनाव एवं संघर्ष की एक लम्बी श्रृंखला के रूप में जारी रहा। सौभाग्य से इन तनावों तथा संघर्षों ने तीसरे विश्वयुद्ध का रूप नहीं लिया। इसमें जोर आजमाइश, सैनिक गठबन्धन, शक्ति सन्तुलन एवं वैचारिक संघर्ष जारी रहा, जो 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् समाप्त हुआ।

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प्रश्न 7. 
महाशक्तियों के मध्य गहन प्रतिद्वन्द्विता के बावजूद शीतयुद्ध रक्तरंजित युद्ध का रूप क्यों नहीं ले सका? कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध प्रारम्भ होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की स्थिति में दोनों ही पक्षों-संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें विजेता कौन है, यह तय करना भी असम्भव होगा। यदि कोई अपने शत्रु पर आक्रमण करके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जायेंगे इसलिए कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था।

प्रश्न 8. 
अपरोध से क्या आशय है?
अथवा 
अपरोध की स्थिति से क्या अभिप्राय है? 
अथवा 
परमाणु अस्त्रों के होने के बावजूद महाशक्तियों को एक-दूसरे के विरुद्ध पूर्ण युद्ध छेड़ने से कौन रोकता है?
उत्तर:
परमाणु युद्ध होने की स्थिति में विजेता देश या गुट का निर्णय करना असम्भव हो जाता। यदि एक गुट दूसरे गुट पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नष्ट करने का प्रयास करता है, तब भी विरोधी गुट के पास इतने परमाणु हथियार रहते हैं जिससे वह विरोधी देश पर आक्रमण करके उसे तहस-नहस कर सकता है। इस प्रकार की स्थिति को अपरोध की स्थिति कहते हैं। इस प्रकार यह स्थिति परमाणु अस्त्रों के होने के बावजूद, महाशक्तियों को एक-दूसरे के विरुद्ध पूर्ण युद्ध छेड़ने से रोकती

प्रश्न 9. 
उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन का निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में 1949 में किया गया। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ के विस्तार को रोकना था। इस संगठन में 12 देश सम्मिलित थे जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, इटली, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, नार्वे, डेनमार्क व फिनलैंड थे।

प्रश्न 10. 
वारसा सन्धि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वारसा सन्धि शीतयुद्ध के दौरान नाटो के जवाब में पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों द्वारा सन् 1955 में की गयी। इस संगठन में सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रूमानिया व बुल्गारिया जैसे साम्यवादी देश सम्मिलित थे। सोवियत संघ ने इस संगठन का नेतृत्व किया। इस संगठन का प्रमुख कार्य नाटो में सम्मिलित देशों का यूरोप में मुकाबला करना था। 

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प्रश्न 11. 
शीतयुद्ध के किन्हीं दो सैनिक लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा 
शीतयुद्ध की किन्हीं दो प्रमुख सैन्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध की दो सैन्य विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं।

  1. नाटो, सिएटो, सेंटो तथा वारसा पैक्ट इत्यादि सैन्य गठबन्धनों का निर्माण करना तथा इनमें अधिकाधिक देशों को सम्मिलित करना।
  2. शस्त्रीकरण करना तथा अत्याधुनिक परमाणु मिसाइलें निर्मित करके उन्हें युद्ध के महत्त्व के बिन्दुओं पर स्थापित करना। 

प्रश्न 12. 
छोटे देशों ने शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों के साथ अपने आपको क्यों जोड़ा? कोई दो कारण लिखिए। 
उत्तर:
छोटे देशों ने स्वयं को निम्न कारण से महाशक्तियों के साथ जोड़ा था। 

  1. छोटे देश असुरक्षा की भावना से ग्रसित थे। वे स्वयं को बड़ी शक्तियों से जोड़कर स्वयं की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते थे।
  2. कुछ देशों की सोच यह थी कि यदि वे महाशिक्तियों के साथ जुड़ेंगे तो उन्हें अपनी सुरक्षा हेतु अधिक सैन्य व्यय नहीं करना होगा और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उन्हें आवश्यक सहायता बिना किसी देरी के मिलेगी।

प्रश्न 13. 
शीतयुद्ध के दायरे से आपका क्या अभिप्राय है? कोई एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दायरे का अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है जहाँ विरोधी गुटों में विभक्त देशों के मध्य संकट के अवसर आए, युद्ध हुए अथवा इनके होने की प्रबल सम्भावनाएँ उत्पन्न हुईं। कोरिया, वियतनाम तथा अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों में व्यापक जनहानि हुई परन्तु विश्व परमाणु युद्ध से बचा रहा। अनेक बार ऐसी परिस्थितियाँ भी बनीं जब दोनों महाशक्तियों के मध्य राजनीतिक वार्ताएँ नहीं हुईं फलस्वरूप इससे दोनों के बीच की गलतफहमियाँ बढ़ी। 

प्रश्न 14. 
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए। 
1. घाना - गमाल अब्दुल नासिर 
2. युगोस्लाविया - जवाहरलाल नेहरू 
3.  भारत - वामे एनक्रमा 
4. मिस्र - जोसेफ ब्रॉज टीटो 
उत्तर:

  1. घाना - वामे एनक्रमा 
  2. युगोस्लाविया - जोसेफ ब्रॉज टीटो 
  3. भारत - जवाहरलाल नेहरू 
  4. मिस्र - गमाल अब्दुल नासिर

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प्रश्न 15. 
गुटनिरपेक्षता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ है: दोनों महाशक्तियों - संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ में से किसी भी गुट में सम्मिलित न होना तथा इन गुटों के सैनिक गठबन्धनों व सन्धियों से अलग रहना। गुटनिरपेक्षता का यह भी अर्थ है कि महाशक्तियों के गुटों से अलग रहकर देश अपनी नीति का निर्धारण स्वतन्त्र रूप से करेगा न कि किसी गुट के दबाव में आकर।

प्रश्न 16. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ में चल रहे शीतयुद्ध के दौरान हुआ। गुटनिरपेक्षता का मुख्य उद्देश्य भी स्वयं को शीतयुद्ध से अलग रखना था। भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का एक संस्थापक देश है। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर एवं युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रॉज टीटो गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक थे। 

प्रश्न 17. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने द्वि-ध्रुवीयता को कैसे चुनौती दी थी? 
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान द्वि - ध्रुवीय विश्व को सबसे बड़ी चुनौती गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से प्राप्त हुई। इस आन्दोलन ने एशिया, अफ्रीका एवं अमेरिका के नव स्वतन्त्र देशों को दोनों गुटों-अमेरिकी गुट व सोवियत संघ गुट से अलग रहने का विकल्प प्रदान किया। इसके अतिरिक्त गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व में शान्ति व स्थिरता के लिए दोनों गुटों के बीच मध्यस्थता का कार्य भी किया।

प्रश्न 18.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के कोई चार उद्देश्य बताइए। 
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के चार प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं। 

  1. सदस्य देशों को महाशक्तियों के गुटों से अलग रखना। 
  2. सदस्य देशों में आपसी सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना। 
  3. विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ावा देना। 
  4. सम्पूर्ण विश्व से उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद को समाप्त करना। 

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प्रश्न 19. 
"गुटनरिपेक्षता का आशय न तो बराबर दूरी और न ही तटस्थता है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ है: किसी भी शक्ति गुट में सम्मिलित न होना तथा शक्ति गुटों में से सैनिक समझौतों एवं अन्य सन्धियों से दूर रहना। गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ बराबर दूरी भी रखना नहीं है क्योंकि गुटनिरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में उस गुट या देश का पक्ष लेते हैं जिसको वे ठीक समझते हैं। 

प्रश्न 20. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का महत्त्व बताइए।
अथवा 
गुटनिरपेक्ष देशों ने शीतयुद्ध संघर्षों को कम करने की भूमिका कैसे अदा की?
उत्तर:

  1. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने सदस्य देशों को शीतयुद्ध से दूर रखा है। 
  2. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने सदस्य देशों में आर्थिक व सामाजिक सहयोगों को बढ़ावा दिया है। 
  3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विकासशील देशों के सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि की है। 
  4. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने उपनिवेशवाद की समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

प्रश्न 21. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका को संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:

  1. भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का एक संस्थापक देश है। 
  2. भारत ने गुटनिरपेक्ष देशों का ध्यान निःशस्त्रीकरण की ओर खींचा। 
  3. भारत ने गुटनिरपेक्ष देशों को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। 

प्रश्न 22. 
शीतयुद्ध के काल में भारत दोनों महाशक्तियों के गुटों में से किसी एक में भी सम्मिलित क्यों नहीं हुआ?
अथवा 
भारत ने अपने आपको, दोनों महाशक्तियों के गुटों से क्यों अलग रखा?
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में भारत दोनों महाशक्तियों-संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ में से किसी एक भी गुट में इसलिए सम्मिलित नहीं हुआ, क्योंकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपना रखा था। वह इस नीति के चलते दोनों गुटों से दूर रहना चाहता था। 

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प्रश्न 23. 
गुटनिरपेक्षता की नीति से भारत को मिलने वाले दो लाभ बताइए। 
अथवा 
गटनिरपेक्षता की नीति ने कम-से-कम दो तरह से भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया-स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
आपके विचार में, भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति को चुनना कहाँ तक न्यायसंगत है? (उ.मा.शि.बो. राज., 2018)
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता की नीति से भारत को मिलने वाले दो लाभ निम्न हैं। 

  1. गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले और पक्ष ले सका जिससे उसका हित सधता हो न कि महाशक्ति और उनके खेमे के देशों का।
  2. गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि एक महाशक्ति उसके विपरीत जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के निकट आने की कोशिश करे।

अतः भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति को चुनना काफी हद तक न्यायसंगत है। 

प्रश्न 24. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आलोचना किन आधारों पर की जाती है? किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. विकसित देशों को चुनौती देने में असफल: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से विकसित देशों को कोई कठोर चुनौती नहीं दे पाया है।
  2. सिद्धान्त विहीन नीति: आलोचकों ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को एक सिद्धान्त विहीन नीति माना है। 

प्रश्न 26. 
द्वि - ध्रुवीय विश्व की समाप्ति के पश्चात् गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की क्या प्रासंगिकता है?
अथवा 
शीतयुद्ध के अन्त व सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर:
द्विध्रुवीय विश्व की समाप्ति के पश्चात् भी गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता विकासशील देशों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के सन्दर्भ में बनी हुई है। विश्व के अधिकांश विकासशील देश गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य हैं तथा इस संगठन के माध्यम से अपना आर्थिक एवं सामाजिक विकास कर रहे हैं। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न SA2:

प्रश्न 1. 
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? इस संकट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दो विश्वविख्यात नेताओं के नाम लिखिए।
अथवा 
'क्यूबा मिसाइल संकट' शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था। संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
अथवा 
क्यूबा के मिसाइल संकट से क्या अभिप्राय है?
अथवा 
'क्यूबा मिसाइल संकट' क्या था? 
उत्तर:
अप्रैल, 1961 में सोवियत संघ के नेताओं को संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा पर हमला किए जाने का डर था। सोवियत संघ क्यूबा को कूटनीतिक तथा आर्थिक मदद देता था। 1962 में निकिता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी जिससे सोवियत संघ पहले की अपेक्षाकृत अब अमेरिका के मुख्य भू-भाग के लगभग दुगने ठिकानों अथवा शहरों पर आक्रमण कर सकता था। 

सोवियत संघ द्वारा क्यूबा में परमाणु हथियार तैनात करने की जानकारी अमेरिकियों को तीन सप्ताह के उपरान्त ज्ञात हो सकी थी। चूँकि अमेरिकी परमाणु युद्ध नहीं चाहते थे अतः बाद में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिकी लड़ाकू बेड़ों को आगे करके क्यूबा की ओर जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए। इस कार्यवाही द्वारा अमेरिका सोवियत संघ को मामले के प्रति अपनी गम्भीरता की चेतावनी देना चाहता था। इस परिस्थिति से ऐसा आभास होने लगा था कि युद्ध होकर ही रहेगा। इस घटना - क्रम को ही 'क्यूबा मिसाइल संकट' के रूप में जाना जाता है। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2. 
शीतयुद्ध क्या है? इसके प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
शीतयुद्ध - उदारवादी, लोकतान्त्रिक एवं पूँजीवादी अमेरिका तथा साम्यवादी सोवियत संघ के मध्य सैन्य युद्ध न होकर गठबन्धन, शक्ति सन्तुलन के साथ - साथ विचारधारा के स्तर पर भी वास्तविक संघर्ष शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता है।
शीतयुद्ध के प्रमुख कारण: परस्पर विरोधी गुटों की समझ में यह बात थी कि प्रत्यक्ष युद्ध खतरों से परिपूर्ण है क्योंकि दोनों पक्षों को भारी नुकसान की प्रबल सम्भावनाएँ थीं। इसमें वास्तविक विजेता का निर्धारण सरल कार्य न था। यदि एक गुट अपने शत्रु पर हमला करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने का प्रयास करता है, तब भी दूसरे गुट के पास उसे बर्बाद करने लायक अस्त्र बच जायेंगे। यही कारण था कि तीसरा विश्वयुद्ध न होकर शीतयुद्ध की स्थिति बनी।

प्रश्न 3. 
शीतयुद्ध के काल में अपरोध की स्थिति ने युद्ध तो रोका, लेकिन दोनों महाशक्तियों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को क्यों नहीं रोक सकी? 
उत्तर:
शीतयुद्ध काल में अपरोध की स्थिति महाशक्तियों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को निम्न कारणों से रोकने में असफल रही:

  1. महाशक्तियों से जुड़े देश यह जानते थे कि परस्पर युद्ध अत्यन्त ही खतरों से भरा हुआ है क्योंकि परमाणु हथियारों का प्रयोग किए जाने की स्थिति.में सम्पूर्ण विश्व का विनाश हो जाएगा। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि दोनों ही गुटों के पास परमाणु बमों का भारी भण्डारण था।
  2. आपसी प्रतिद्वन्द्विता न रुक पाने का एक अन्य कारण दोनों महाशक्तियों की अलग-अलग तथा विपरीत विचारधाराएँ थीं।
  3. दोनों महाशक्तियाँ औद्योगीकरण के चरम विकास की अवस्था में थीं और उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विश्व के अल्प-विकसित देशों से ही प्राप्त हो सकता था। एक प्रकार से यह उन देशों के लिए की गई छीना-झपटी अथवा प्रतिस्पर्धा थी। 

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प्रश्न 4. 
महाशक्तियाँ छोटे राज्यों के साथ सैनिक गठबन्धनों के लिए उन्हें प्रेरित क्यों करती थीं? 
अथवा 
शीतयुद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने क्यों आकर्षित किया? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
छोटे देशों के साथ महाशक्तियों द्वारा सैन्य गठबन्धन रखने के मुख्यतः निम्नांकित तीन कारण थे:

  1. महत्त्वपूर्ण संसाधन प्राप्त करना: महाशक्तियों को छोटे देशों से तेल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि प्राप्त होता था।
  2. भू - क्षेत्र - महाशक्तियाँ इन छोटे देशों के यहाँ अपने हथियारों की बिक्री करती थीं और इनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सेना का संचालन करती थीं। .
  3. सैनिक ठिकाने - छोटे देशों में अपने सैनिक ठिकाने बनाकर दोनों महाशक्तियाँ परस्पर एक-दूसरे गुट की जासूसी करती थीं।
  4. विचारधारा का प्रसार: छोटे देश विचारधारा की वजह से महाशक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण थे। गुटों में सम्मिलित देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध भी जीत रही हैं। गुटों में सम्मिलित हो रहे देशों के आधार पर वे सोच सकती थीं कि उदारवादी लोकतन्त्र तथा पूँजीवाद, समाजवाद एवं साम्यवाद से अधिक श्रेष्ठ है अथवा समाजवाद एवं साम्यवाद, उदारवादी लोकतन्त्र तथा पूँजीवाद की अपेक्षाकृत बेहतर है। 

प्रश्न 5. 
तटस्थता एवं गुटनिरपेक्षता में क्या अन्तर है?
अथवा 
क्या गुट गुटनिरपेक्षता और तटस्थता का अभिप्राय एक ही है? बताइए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का आशय तटस्थता का धर्म निभाना नहीं है। मुख्यतया तटस्थता का तात्पर्य युद्ध में सम्मिलित न होने की नीति का पालन करना है। तटस्थता की नीति का परिपालन करने वाले देशों हेतु यह आवश्यक नहीं है कि वह युद्ध को समाप्त करने में सहायता करें। ऐसे देश युद्ध में संलग्न नहीं होते हैं और न ही युद्ध के उचित अथवा अनुचित होने के सम्बन्ध में उनका कोई पक्ष होता है। हालाँकि विभिन्न कारणों की वजह से गुटनिरपेक्ष देश युद्ध में सम्मिलित भी हुए हैं तथा इन देशों ने अन्य देशों के बीच युद्ध को रोकने हेतु भरसक प्रयत्न भी किए हैं।

गुटनिरपेक्षता की नीति का अभिप्राय किसी देश अथवा राष्ट्र का अन्य विभिन्न देशों द्वारा निर्मित सैनिक गुटों में सम्मिलित न होना तथा किसी भी गुट अथवा राष्ट्र के कार्य की सराहना अथवा आलोचना बिना सोचे-विचारे न करना है। जब कोई देश किसी गुट में सम्मिलित हो जाता है तो उसे गुट के प्रत्येक क्रियाकलाप को उचित ही बताना पड़ता है चाहे वह अनुचित ही क्यों न हो। असल में  गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने वाला देश अपनी एक स्वतन्त्र विदेश नीति निर्धारित करता है वह उचित अथवा अनुचित का फैसला किसी गुट अथवा बड़े राष्ट्र के दबाव में न करके स्वविवेक से करता है।
 
प्रश्न 6. 
"गुटनिरपेक्ष आन्दोलन द्विध्रुवीय विश्व के समक्ष एक चुनौती था।" इस कथन को न्यायोचित ठहराइए। 
उत्तर:
उक्त कथन को निम्न बिन्दुओं के द्वारा न्यायोचित ठहराया जा सकता है:

  1. विश्व की दोनों महाशक्तियाँ नव: स्वतन्त्रता प्राप्त तीसरे विश्व के अल्पतम विकसित देशों को लालच देकर, दबाव बनाकर तथा समझौतों का प्रलोभन देकर उनको अपने - अपने गुट में मिलाने हेतु लालायित थे।
  2. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक सदस्यों में एश्यिा के पण्डित जवाहरलाल नेहरू तथा सुकर्णो एवं अफ्रीका के वामे एनक्र्मा थे। ये सभी तीसरी दुनिया के प्रतिनिधि देश थे और इन्होंने परतन्त्रता की त्रासदी झेली थी।
  3. शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा पश्चिम के अनेक देशों पर हमले किए गए थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को अनवरत. चलाए रखना स्वयं में बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य था।
  4. पाँच सदस्य देशों से अपना सफर शुरू करने वाले गुटनिरपेक्ष देशों ने अपनी सदस्य संख्या 120 कर ली है। इतनी भारी संख्या में अपने समर्थक बनाना भी अत्यन्त चुनौतीपूर्ण कार्य है। 

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प्रश्न 7. 
गुटनिरपेक्ष देशों में सम्मिलित अधिकांश देशों को 'अल्प-विकसित देशों' का दर्जा क्यों दिया गया?
अथवा 
शीतयुद्ध के दौरान अधिकांश गुटनिरपेक्ष देशों को न्यूनतम विकसित देशों की श्रेणी में क्यों रखा गया था?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश राष्ट्रों को अल्प - विकसित अथवा न्यूनतम विकसित देशों का दर्जा इस वजह से दिया गया क्योंकि वे आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त ही पिछड़े हुए थे। इन देशों की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे निवास करती थी। यहाँ जनसाधारण का जीवन-स्तर बहुत ही निम्न श्रेणी का था। इन देशों के समक्ष प्रमुख चुनौती आर्थिक रूप से और अधिक विकास करने तथा अपने निवासियों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना था।

नए स्वतन्त्र हुए देशों की आजादी के दृष्टिकोण से भी आर्थिक विकास महत्त्वपूर्ण था। स्थायी विकास के अभाव में कोई भी देश सही अर्थों में स्वतन्त्र नहीं रह सकता। उसे पूँजीपति देशों पर आश्रित रहना पड़ता, इससे वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था। नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा भी इसी कारण से विकसित हुई।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य देश द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व किसी - न - किसी विकसित देश अथवा औपनिवेशिक शक्ति के उपनिवेश थे। उनके समस्त संसाधनों का जमकर दोहन किया गया और उन्हें औद्योगिक विकास से वंचित रखा गया। अतः वे अल्प-विकसित अथवा विकासशील देश कहलाए। 

प्रश्न 8. 
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य लिखिए। 
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नवत् हैं:

  1. विश्व की अर्थव्यवस्था की अन्त:निर्भरता का अधिक कुशलता एवं न्यायपूर्ण प्रबन्धन हो।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष तथा विश्व बैंक की व्यवस्था में संरचनात्मक सुधार हो जिससे विकासशील देशों को अधिकाधिक लाभ प्राप्त हो सके।
  3.  विदेशी स्रोतों से वित्तीय सहायता के अतिरिक्त नवीन प्रौद्योगिकी भी उपलब्ध हो।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लगी व्यापारिक रुकावटों को हटाया जाए और वस्तुओं का निर्यात करने में विकासशील देशों को अधिक अनुकूल शर्ते प्रदान की जाएँ।
  5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्य संचालन के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आचार-संहिता लागू की जाए। 
  6. विकसित देश विकासशील देशों में अपनी पूँजी का निवेश करें।
  7. विकासशील देशों को न्यूनतम ब्याज शर्तों पर ऋण दिलाए जाएँ और उनके पुनर्भुगतान की शर्ते भी अत्यधिक लचीली रखी जाएँ।

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प्रश्न 9. 
भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के प्रमुख कारण बताइए। 
उत्तर:
भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं:

  1. राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु: भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को इसलिए अपनाया ताकि वह. स्वतन्त्र रूप से ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सके जिससे उसका हित सधता हो न कि महाशक्तियों एवं उनके गुटों के देशों का। 
  2. दोनों महाशक्तियों से सहयोग प्राप्त करने हेतु: भारत ने दोनों महाशक्तियों-संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ से सम्बन्ध व मित्रता स्थापित करते हुए दोनों से सहयोग लेने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी। 
  3. भारत की प्रतिष्ठा वृद्धि हेतु: समस्त विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।
  4. स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्धारण करने हेतु: भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए किया ताकि वह स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्धारण कर सके।
  5. आर्थिक पुनर्निर्माण हेतु: भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए अपनायी ताकि वह अपना आर्थिक पुनर्निर्माण कर सके तथा सभी देशों से सहायता प्राप्त कर सके।

प्रश्न 10. 
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति को 'अनियमित' तथा 'सिद्धान्तहीन' कहा जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं, क्यों?
उत्तर:
हम उक्त विचार से असहमत हैं। आलोचकों द्वारा एकपक्षीय अवलोकन करके ही गुटनिरपेक्ष नीति पर उक्त टिप्पणी की गई है। सन् 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय पाकिस्तान को चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हथियार और आर्थिक सहायता दिए जाने के कारण भारत की अस्मिता तथा राष्ट्रीय सम्प्रभुता पर संकट उत्पन्न हो गया था। पाकिस्तानी मामले में हस्तक्षेप करने वाली एक साम्यवादी तथा दूसरी पूँजीवादी शक्ति की इस कुचेष्टा को निरुत्साहित करने के लिए भारत का सोवियत संघ के साथ मित्रता .का हाथ बढ़ाना तत्कालीन परिस्थितियों में सर्वथा उचित था।

गुटनिरपेक्षता की नीति इस बात को देखते हुए बनाई गई थी कि दो महाशक्तियाँ नए आजाद हुए देशों की सम्प्रभुता में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। भारत ने गुटनिरपेक्ष किसी भी सदस्य देश को ऐसी विषम परिस्थिति में कूटनीति अपनाने से कभी भी नहीं रोका अपितु अपेक्षित सहायता ही दी है। दक्षिण एशिया का 'आसियान' संगठन भी गुटनिरपेक्ष नीति का ही परिणाम है। 

प्रश्न 11. 
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता 'साल्ट - प्रथम' कब, किसके बीच व क्या थी?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। दोनों महाशक्तियाँ - संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ ने एक-दूसरे के प्रति संदेह की स्थिति में भरपूर हथियार जमा किए एवं निरन्तर युद्ध की तैयारी करते रहे। इस तरह की स्थिति से परेशान होकर सन् 1968 में दोनों महाशक्तियों ने अस्त्र नियन्त्रण द्वारा हथियारों की होड़ पर लगाम कसने का फैसला किया ताकि उनमें स्थायी शक्ति संतुलन लाया जा सके, फलस्वरूप दोनों महाशक्तियों ने नि:शस्त्रीकरण की दिशा में कई प्रयत्न किए, जिनमें से सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता 'साल्ट प्रथम' प्रमुख है। यह 5 मार्च 1970 से प्रभावी हुई। 

निबन्धात्मक प्रश्न: 

प्रश्न 1. 
क्यूबा मिसाइल संकट पर विस्तार से एक लेख लिखिए।
अथवा 
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? इस संकट की समाप्ति कैसे हुई?
अथवा 
क्यूबा मिसाइल संकट के घटनाक्रम को विस्तारपूर्वक बताइए।
(i) क्यूबा का सोवियत संघ से लगांव: क्यूबा का अपने समीपवर्ती देश संयुक्त राज्य अमेरिका की अपेक्षा सोवियत संघ से लगाव था क्योंकि क्यूबा में साम्यवादियों का शासन था। सोवियत संघ उसे कूटनयिक एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता था।

 (ii) सोवियत संघ के नेताओं की चिन्ता: अप्रैल 1961 में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिन्ता सता रही थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक पूँजीवादी देश है जो विश्व में साम्यवाद को पसन्द नहीं करता है। अतः वह साम्यवादियों द्वारा शासित क्यूबा पर आक्रमण कर राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का तख्ता पलट कर सकता है। क्यूबा संयुक्त राज्य अमेरिका की शक्ति के आगे एक शक्तिहीन देश है।

(iii) क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइलें तैनात करना: सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा पर आक्रमण की आशंका को दृष्टिगत रखते हुए क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदलने का निर्णय किया। सन् 1962 में खुश्चेव मे क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी। 

(iv) संयुक्त राज्य अमेरिका का नजदीकी निशाने की सीमा में आना: सोवियत संघ द्वारा क्यूबा में परमाणु मिसाइलों की तैनाती से पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका नज़दीकी निशाने की सीमा में आ गया। मिसाइलों की तैनाती के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध सोवियत संघ की शक्ति में वृद्धि हो गई। सोवियत संघ पहले की तुलना में अब संयुक्त राज्य अमेरिका के मुख्य भू - भाग के लगभग दुगुने ठिकानों अथवा शहरों पर हमला कर सकता था।

(v) संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सोवियत संघ को चेतावनी दिया जाना-क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइलें तैनात करने की जानकारी संयुक्त अमेरिका को लगभग तीन सप्ताह बाद प्राप्त हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी व उनके सलाहकार दोनों देशों के मध्य परमाणु युद्ध नहीं चाहते थे फलस्वरूप उन्होंने संयम से काम लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी चाहते थे कि खुश्चेव क्यूबा से परमाणु मिसाइलों व अन्य हथियारों को हटा लें।

उन्होंने अपनी सेना को आदेश दिया कि वह क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत संघ के जहाजों को रोकें, इस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ को मामले के प्रति अपनी गम्भीरता की चेतावनी देना चाहता था। इस तनावपूर्ण स्थिति से ऐसा लगने लगा कि दोनों महाशक्तियों के मध्य भयानक युद्ध निश्चित रूप से होगा। सम्पूर्ण विश्व चिन्तित हो गया। इसे ही 'क्यूबा मिसाइल संकट' के नाम से जाना गया।

(vi) दोनों महाशक्तियों द्वारा युद्ध को टालने का फैसला: संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ ने युद्ध की भयावहता को दृष्टिगत रखते हुए युद्ध को टालने का फैसला किया। दोनों पक्षों के इस फैसले से समस्त विश्व की जनता ने चैन की साँस ली। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली अथवा वापसी का रुख कर लिया। इस प्रकार क्यूबा का मिसाइल संकट टल गया, लेकिन इसने दोनों महाशक्तियों के मध्य शीतयुद्ध प्रारम्भ कर दिया जो सोवियत संघ के विघटन तक जारी रहा। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2. 
शीतयुद्ध के उदय के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए। 
अथवा 
शीतयुद्ध क्या है? इसके कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लघु उत्तरात्मक प्रश्न SA1 में प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखिए।
शीतयुद्ध के उदय के कारण शीतयुद्ध के उदय के प्रमुख कारणों को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
(i) परस्पर सन्देह एवं भय: दोनों गुटों के देशों के बीच शीतयुद्ध का कारण परस्पर सन्देह, अविश्वास तथा डर का व्याप्त होना था, क्योंकि पाश्चात्य देश वोल्शेविक क्रान्ति से काफी भयभीत हुए थे जिसने आपस में अविश्वास तथा भय की खाई को और चौड़ा कर दिया था।

(ii) विरोधी विचारधारा: दोनों महाशक्तियों के अनुयायी देश परस्पर विरोधी विचारधारा वाले देश थे। जहाँ एक पूँजीवादी लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था वाला देश था, वहीं दूसरा साम्यवादी विचारधारा से ओत-प्रोत था। विश्व में दोनों ही अपना - अपना प्रभुत्व अधिकाधिक क्षेत्र पर स्थापित करना चाहते थे। 

(iii) जर्मनी का घटना: चक्र - द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मन दो भागों में विभक्त हो गया। पूर्वी जर्मनी में साम्यवादी शक्तियों ने सत्ता सम्भाली, जबकि पश्चिमी हिस्से में संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन तथा फ्रांस की साम्यवादी विरोधी शक्तियों ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले रखी थी। इस वजह से स्थितियाँ लगातार तनावपूर्ण होती चली गईं। 

(iv) याल्टा समझौते की अवहेलना: शीतयुद्ध के उदय का एक अन्य कारण यह भी था कि सोवियत संघ याल्टा समझौते की अवहेलना कर रहा था तथा वह पोलैण्ड में साम्यवादी सरकार स्थापित कराने में सहायक सिद्ध हो रहा था।

(iv) प्रौद्योगिक विकास: शीतयुद्ध के कारण समस्त विश्व में परमाणु शक्ति के क्षेत्र में प्रौद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिला।

(2) शीतयुद्ध के नकारात्मक प्रभाव: शीतयुद्ध के नकारात्मक प्रभावों को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।
(i) विश्व का दो गुटों में विभाजन: शीतयुद्ध के कारण विश्व का दो गुटों में विभाजन हो गया। एक गुट संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हो गया तो दूसरा गुट सोवियत संघ के साथ हो गया। इन गुटों के निर्माण से दोनों गुटों में सम्मिलित देशों को अपनी स्वतन्त्र विदेशनीति के साथ समझौता करना पड़ा तथा जो किसी गुट में सम्मिलित नहीं हुए; उन पर अपने गुट में सम्मिलित होने हेतु दोनों महाशक्तियों द्वारा दबाव डाला गया।

(ii) सैनिक गठबन्धनों की उत्पत्ति: शीतयुद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गठबन्धनों की उत्पत्ति हई।
संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्षधर गठबन्धन को पश्चिमी गठबन्धन तथा सोवियत संघ के पक्षधर गठबन्धन को पूर्वी गठबन्धन कहा गया। पश्चिमी गठबन्धन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया, जिसे नाटो कहा गया। पूर्वी गठबन्धन को वारसा-सन्धि के नाम से जाना गया। इन सैनिक गठबन्धनों को शीतयुद्ध के साधन के रूप में प्रयोग किया जाने लगा।

(iii) शस्त्रीकरण को बढ़ावा: शीतयुद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर यह नकारात्मक प्रभाव डाला कि इसके कारण शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला।

(iv) निःशस्त्रीकरण की असफलता: शीतयुद्ध के निरन्तर तनाव भरे वातावरण से मुक्ति प्राप्त करने हेतु विभिन्न देशों द्वारा निःशस्त्रीकरण के प्रयास किए गए, लेकिन असफलता ही हाथ लगी। अस्त्रों की प्रतियोगिता ने इसे अप्रभावी बना दिया।

(v) भय तथा सन्देह के वातावरण का जन्म: शीतयुद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भय और सन्देह के वातावरण का जन्म हुआ, जो शीतयुद्ध की समाप्ति तक निरन्तर बना रहा।

(vi) परमाणु युद्ध का भय: जिस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान पर परमाणु बमों का प्रयोग किया था इसी होड़ के कारण सोवियत संघ ने भी परमाणु अस्त्रों का विकास किया। इससे यद्यपि दोनों महाशक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन स्थापित हुआ, लेकिन उनके बीच सैन्य स्पर्धा भी अत्यधिक बढ़ने लगी। क्यूबा मिसाइल संकट के समय समस्त विश्व को यह लगने लगा कि दोनों महाशक्तियों के मध्य परमाणु युद्ध अवश्यम्भावी है, लेकिन यह संकट टल गया। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 4. 
गुटनिरपेक्ष क्या है? गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका को विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन (नाम) के पाँच संस्थापक नेताओं तथा उनके देशों के नाम लिखिए। बेलग्रेड में 1961 में हुआ गुटनिरपेक्ष सम्मेलन किन कारकों की परिणति था? 
अथवा
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को सजीव तथा प्रासंगिक बनाए रखने में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय: गुटनिरपेक्षता का अर्थ है-दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहना। यह दोनों , महाशक्तियों के गुटों में सम्मिलित न होने एवं अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्धारण करते हुए विश्व राजनीति में शान्ति व स्थिरता के लिए क्रियाशील रहने का आन्दोलन है। यह उचित अथवा अनुचित का फैसला किसी गुट अथवा बड़े राष्ट्र के दबाव में न करके स्वविवेक से करता है। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष का अर्थ पृथकतावाद अथवा तटस्थता नहीं है बल्कि गुटों से अलग रहकर स्वतन्त्र रूप से राष्ट्रहित में निर्णय लेने से है।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।
(i) गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक सदस्य: भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्षता की नीति लागू करने का श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू को है। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने युगोस्लाविया के नेता जोसेफ ब्रॉज टीटो व मिस्र के नेता गमाल अब्दुल नासिर के साथ मिलकर गुटनिरपेक्षता की नीति का प्रतिपादन किया। इण्डोनेशिया के सुकर्णो व घाना के वामे एनक्र्मा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पाँचों नेता गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक कहलाए। एक सक्रिय सदस्य के रूप में भारत ने सदैव गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का सम्मान व समर्थन किया।

(ii) स्वयं को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखना: शीतयुद्ध के दौरान भारत ने दोनों महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ की खेमेबन्दी से स्वयं को दूर रखा तथा अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखा।

(iii) विश्व शान्ति एवं स्थिरता के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को सक्रिय बनाये रखना: भारत ने शान्ति और स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों प्रतिद्वन्द्वी गुटों-संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया।

(iv) नव स्वतन्त्र देशों को गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित होने हेतु प्रेरित करना: भारत ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नेता के रूप में औपनिवेशिक शक्तियों के चंगुल से मुक्त हुए नव स्वतन्त्र देशों को दोनों महाशक्तियों के गुटों से दूर रहकर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित होने हेतु प्रेरित किया। इस प्रकार भारत ने नव स्वतन्त्र देशों के समक्ष तीसरा विकल्प प्रस्तुत किया।

बेलग्रेड में 1961 में हुआ गुटनिरपेक्ष सम्मेलन: बेलग्रेड में 1961 में पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन हुआ, जो निम्नलिखित तीन बातों की परिणति था

  1. इन पाँच देशों के मध्य सहयोग, 
  2. शीतयुद्ध का प्रसार तथा इसके बढ़ते हुए दायरे, तथा
  3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नव-स्वतन्त्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय रूप से उदय। 1960 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ में 16 नए अफ्रीकी देश सदस्य के रूप में सम्मिलित हो चुके थे। 

प्रश्न 5. 
पृथकतावाद, तटस्थता तथा गुटनिरपेक्षता से आपका क्या अभिप्राय है? गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के विकास का परीक्षण कीजिए।
अथवा 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पृथकतावाद का अभिप्राय स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय घटना: चक्र से अलग रखना है। 1787 से संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतन्त्रता की लड़ाई प्रारम्भ हुई थी। इसके बाद से प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत तक अमेरिका ने स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से दूर रखा अर्थात् उसने पृथकतावाद की विदेशनीति का परिपालन किया था।

तटस्थता का अभिप्राय मुख्यतः युद्ध में सम्मिलित न होने की नीति का परिपालन करना होता है। तटस्थता की नीति का अनुसरण करने वाले देश के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह युद्ध को समाप्त करने में सहायता करे। इस नीति का अनुसरण करने वाले देश युद्ध में संलग्न नहीं होते हैं और न ही युद्ध के उचित अथवा अनुचित होने के सम्बन्ध में उनका कोई दृष्टिकोण होता है। 

गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय किसी देश अथवा राष्ट्र का अन्य बहुत से देशों द्वारा निर्मित किए गए सैनिक गुटों में सम्मिलित न होना और किसी भी गुट अथवा राष्ट्र के कार्य की सराहना अथवा आलोचना बिना सोचे - समझे न करना है। जब कोई देश अथवा राष्ट्र किसी गुट में सम्मिलित हो जाता है तो उसे सम्बन्धित गुट की प्रत्येक कार्यवाही को उचित ही बताना पड़ता है चाहे वह अनुचित क्यों न हो। जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने वाला देश किसी गुट अथवा राष्ट्र के दबाव में न आकर अच्छाई - बुराई अथवा उचित - अनुचित का निर्णय स्वयं अपने स्वविवेक से करता है।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का विकास दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात् उपनिवेशवाद की समाप्ति तथा नए स्वतन्त्र हुए देशों के अस्तित्व में आने के साथ एक नवीन समस्या उत्पन्न हुई। यह समस्या इन नवगठित देशों के आर्थिक तथा राजनीतिक विकास की थी। शीतयुद्ध के दौरान इन नवोदित देशों की रुचि किसी भी गुटबाजी से दूर रहकर अपने आर्थिक एवं राजनीतिक ढाँचे के विकास में थी। एक समान विचारधारा की वजह से इन विकासशील देशों के नेताओं ने एक सार्थक तटस्थता की नीति के सम्बन्ध में विचार - विमर्श प्रारम्भ किया।

सन् 1955 के बांडुग सम्मेलन में इस आशय के प्रस्ताव को घोषित किया गया। सन् 1956 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने मिलकर यह बात दोहराई और इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो तथा घाना के वामे एनक्र्मा ने इसका प्रबल समर्थन किया। इनके प्रयासों से सन् 1961 में पहला गुटनिरपेक्षता शिखर सम्मेलन बेलग्रेड में आयोजित किया गया, जिसमें 25 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया। अभी तक गुटनिरपेक्ष देशों के 18 शिखर सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। आन्दोलन की सफलता इस बात में निहित है कि जहाँ सन् 1961 में इसकी सदस्य संख्या 25 थी, वहीं 2019 में अजरबेजान में आयोजित 18वें सम्मेलन में 120 सदस्य देशों तथा 17 पर्यवेक्षक देशों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

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प्रश्न 6. 
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म कैसे हुआ? इसकी स्थापना हेतु विभिन्न स्तरों पर क्या प्रयास हुए? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा 
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा किए गए प्रयासों को विस्तार से बताइए।
अथवा 
1972 में यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एण्ड डेवलपमेंट (अंकटाड) के द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट (टुवार्डस अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट) में प्रस्तावित किन्हीं चार सुधारों की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
अल्पविकसित देशों के विकास के लिए नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) के विचार को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) की धारणा को जन्म देने वाली परिस्थितियों को उजागर कीजिए। इस प्रयास को कमजोर बनाने वाले किन्हीं दो कारकों की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से क्या अभिप्राय है? वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार लाने के लिए अंकटाड द्वारा 1972 में प्रस्तावित किन्हीं चार सुझावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था-गुटनिरपेक्षता आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश देशों को 'अल्प-विकसित देश' का दर्जा प्राप्त था। इनमें से अधिकांश देश निर्धन थे। इन देशों के समक्ष मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और अधिक विकास करने एवं अपने देश की जनता को निर्धनता से मुक्त करने की थी। नव स्वतन्त्र देशों की स्वतन्त्रता की दृष्टि से भी आर्थिक विकास महत्त्वपूर्ण था। टिकाऊ विकास के अभाव में कोई भी देश सही रूप से स्वतन्त्र नहीं रह सकता, उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता। इसी सोच के कारण नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ।

नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किए गए प्रयास: नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रयास हुए, जो निम्नलिखित हैं।

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर: सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से सम्बन्धित सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस कान्फ्रेंस ऑन ट्रेड एण्ड डवलपमेंट, अंकटाड) में 'टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट' नामक शीर्षक से रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी; जिसमें वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि

  1. सुधारों से अल्प - विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
  2. इससे अल्प - विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजारों तक होगी, वे अपना सामान बेच सकेंगे। इस प्रकार निर्धन देशों के लिए व्यापार का यह प्रकार लाभप्रद रहेगा।
  3. इस प्रकार के सुधारों से पश्चिमी देशों से मँगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी। 
  4. अल्प - विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं की भूमिका में निश्चित रूप से वृद्धि होगी।

2. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के स्तर पर: 1970 के दशक में गुटनिरपेक्षता की प्रकृति में भी धीरे - धीरे परिवर्तन आया तथा इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्षता आन्दोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। 

प्रश्न 7. 
शीतयुद्ध के प्रति भारत की प्रतिक्रिया क्या थी? व्याख्या कीजिए।
अथवा 
शीतयुद्ध में भारत की क्या भूमिका रही? गुटनिरपेक्षता की नीति ने किस प्रकार भारत का हित-साधन किया?
अथवा 
जवाहरलाल नेहरू ने क्यों कहा कि गुटनिरपेक्षता कोई पलायन की नीति नहीं है?
अथवा 
शीतयुद्ध काल में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई? व्याख्या कीजिए।
अथवा 
गुटनिरपेक्षता की नीति भारत के लिए अपने हित साधने की दृष्टि से कैसे सहायक रही? 
उत्तर:
शीतयुद्ध में भारत की प्रतिक्रिया गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नेता के रूप में शीतयुद्ध के काल में भारत ने दो स्तरों पर अपनी भूमिका का निर्वहन किया। प्रथम स्तर पर, भारत ने सजग तथा सचेत रूप से अपने आपको दोनों महाशक्तियों की गुटबन्दी से अलग रखा। द्वितीय स्तर पर, हमारे देश भारत ने उपनिवेशों के पंजों से मुक्त हुए नए आजाद देशों के महाशक्तियों के गुटों में सम्मिलित होने का पुरजोर विरोध किया। भारतीय नीति न तो नकारात्मकता की थी और न ही निष्क्रियता की। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने सम्पूर्ण विश्व को स्मरण कराया कि गुटनिरपेक्षता कोई पलायन की नीति नहीं है। इसके विपरीत भारत शीतयुद्ध के दौरान प्रतिद्वन्द्विता की जकड़ को ढीला करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करने का प्रबल हिमायती भी था। 

भारत ने दोनों महाशक्तियों के बीच विद्यमान मतभेदों को घटाने का भरसक प्रयास किया और इस तरह उसने इन मतभेदों को पूर्णव्यापी युद्ध का स्वरूप धारण करने से रोका। भारतीय राजनयिकों तथा नेताओं का उपयोग प्रायः शीतयुद्ध के दौर के प्रतिद्वन्द्वियों के मध्य वार्ताओं के नए दौर चलाने और बीच-बचाव करने के लिए हुआ। उदाहरणार्थ; 1950 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में कोरियाई युद्ध के दौरान इसका सफल प्रयोग किया गया था।

यहाँ यह तथ्य स्मरणीय है कि भारत ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित अन्य सदस्य देशों को भी ऐसे कार्यों में संलग्न रखा था। शीतयुद्ध के दौरान भारत ने निरन्तर उन क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को सक्रिय बनाए रखने का प्रयत्न किया जो अमेरिकी अथवा सोवियत संघ के गुटों से नहीं जुड़े थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतन्त्र तथा परस्पर सहयोगी राष्ट्रों के एक सच्चे राष्ट्रकुल के ऊपर अटूट विश्वास व्यक्त किया जो शीतयुद्ध को समाप्त तो नहीं कर पाया, लेकिन उसकी पकड़ को कमजोर करने में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन अवश्य ही कर पाया।

गुटनिरपेक्षता तथा भारत का हित - साधन विभिन्न विद्वानों का मत है कि गुटनिरपेक्षता अन्तर्राष्ट्रीयता का एक उदार आदर्श है, लेकिन यह आदर्श भारत के वास्तविक हितों से तालमेल नहीं रखता है। गुटनिरपेक्षता की नीति ने कम - से-कम निम्न दो प्रकार से भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित - साधन किया।
(1) गुटनिरपेक्षता की वजह से भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय निर्णय तथा पंक्ष ले सका जिससे उसका हित सधता हो न कि महाशक्तियों तथा उनके गुटों के देशों का। 

(2) भारत सदैव इस स्थिति में रहा है कि एक महाशक्ति उसके विरुद्ध जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के नज़दीक आने का प्रयास करे। यदि भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी उपेक्षा कर रहा है अथवा किसी तरह का अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रास्ता मोड़ सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही किसी तरह की दादागिरी झाड़ सकता था। 

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प्रश्न 8. 
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा 
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक बिन्दुओं को विस्तार से लिखिए।
अथवा 
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति ने किन दो तरीकों से हमारे राष्ट्रीय हितों की रक्षा की? इस नीति की आलोचना के कोई दो आधार भी लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने दोनों महाशक्तियों: संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ से समान दूरी बनाए रखते हुए गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को अपनाया तथा स्वतन्त्र निर्णय लिए।
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के लाभ (सकारात्मक पक्ष): गुटनिरपेक्षता की नीति ने अग्रलिखित क्षेत्रों में भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया है।
(i) राष्ट्रीय हित के अनुरूप फैसले लेना: भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले तथा पक्ष ले सका जिससे उसका हित सधता था न कि महाशक्तियों एवं उनके गुटों के देशों का।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने महत्त्व को बनाए रखने में सफल: गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के कारण भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने महत्त्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की। भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि यदि एक महाशक्ति उसके विरुद्ध हो जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के निकट आने की कोशिश करे। यदि भारत को महसूस हो कि दोनों महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है अथवा अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत को लेकर न तो निश्चिन्त हो सकता था और न ही उस पर कोई अपना प्रभाव जमा सकता था।

भारत की गुटनिरपेक्षता नीति की आलोचना: भारत की गुटनिरपेक्षता नीति की निम्मलिखित कारणों से आलोचना की गई।
(i) सिद्धान्त विहीन नीति: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के सम्बन्ध में आलोचकों का तर्क यह है कि भारत की यह नीति सिद्धान्त विहीन है। कहा जाता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर अक्सर महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा है। 

(ii) नीति में अस्थिरता: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति अस्थिर रही है। अनेक बार भारत की स्थिति विरोधाभासी रही है। महाशक्तियों के गुटों में सम्मिलित होने वाले दूसरे देशों की आलोचना करने वाले भारत ने स्वयं अगस्त 1971 में सोवियत संघ के साथ अपनी मित्रता की सन्धि हस्ताक्षरित की। विदेशी पर्यवेक्षक इसे भारत की सोवियत गुट में सम्मिलित होना मानते हैं। इस सन्दर्भ में भारतीय दृष्टिकोण था कि बांग्लादेश संकट के दौरान उसे राजनीतिक एवं सैनिक सहायता की अत्यन्त आवश्यकता थी और यह समझौता उसे संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य देशों से अच्छे एवं मधुर सम्बन्ध बनाए रखने से नहीं रोकता।

प्रश्न 9. 
शीतयुद्ध काल के दौरान दोनों महाशक्तियों द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में किए प्रयासों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
अथवा 
सीमित परमाणु परीक्षण सन्धि के बारे में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए। (उ.मा.शि.बो. राज., 2015)
अथवा 
1960 के दशक के प्रारम्भ में दोनों महाशक्तियों के बीच हुए समझौतों में से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। दोनों महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ ने एक दूसरे के प्रति सन्देह की स्थिति में भरपूर हथियार जमा किए तथा लगातार युद्ध के लिए तैयारी करते रहे। इस तरह की स्थिति से परेशान होकर सन् 1960 के दशक में दोनों महाशक्तियों ने अस्त्र नियन्त्रण द्वारा हथियारों की होड़ पर लगाम कसने का फैसला किया ताकि उनमें स्थायी सन्तुलन लाया जा सके, फलस्वरूप दोनों महाशक्तियों ने नि:शस्त्रीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रयत्न किए।
(i) सीमित परमाणु परीक्षण सन्धि (एलटीबीटी), 1963: वायुमण्डल, बाहरी अन्तरिक्ष एवं पानी के भीतर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु यह सन्धि 5 अगस्त, 1963 को संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन एवं सोवियत संघ के मध्य मास्को में की गई। यह सन्धि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हुई। 

(ii) परमाणु अप्रसार सन्धि (एनपीटी), 1967:  यह सन्धि 1 जुलाई, 1968 को की गयी। इस सन्धि की परिभाषा के अनुसार पाँच देशों-संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ (वर्तमान रूस), ब्रिटेन, फ्रांस व चीन को परमाणु शक्ति से सम्पन्न माना गया। वाशिंगटन, लंदन और मास्को में हस्ताक्षरित यह सन्धि 5 मार्च, 1970 से प्रभावी हुई।

यह सन्धि केवल परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों को ही एटमी हथियार रखने की अनुमति प्रदान करती है तथा शेष देशों को इस प्रकार के हथियार प्राप्त करने से रोकती है। इस सन्धि के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए उन देशों को परमाणु शक्ति-सम्पन्न देश माना गया जिन्होंने 1 जनवरी, 1967 से पूर्व किसी परमाणु हथियार अथवा अन्य विस्फोटक परमाणु का निर्माण एवं विस्फोट किया हो। इस सन्धि को सन् 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया।

(iii) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता - I (साल्ट - I): सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का प्रथम चरण नवम्बर 1969 से. प्रारम्भ हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन एवं सोवियत संघ के नेता लियोनेद ब्रेझनेव ने 26 मई, 1972 को मास्कों में निम्नलिखित समझौतों पर हस्ताक्षर किए; जो 3 अक्टूबर 1972 से प्रभावी हुए।
(अ) परमाणु मिसाइल परिसीमन सन्धि। 
(ब) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता।

(iv) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता - II (साल्ट - II): सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का द्वितीय चरण नवम्बर 1972 में प्रारम्भ हुआ। इसके तहत् संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर एवं सोवियत संघ के नेता लियोनेद ब्रेझनेव ने वियना में 18 जून, 1979 को सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन से सम्बन्धित सन्धि पर हस्ताक्षर किये।

(v) सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि - I (स्टार्ट - 1): सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन एवं उनकी संख्या में कमी लाने से सम्बन्धित सन्धि पर 31 जुलाई, 1991 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) एवं सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने हस्ताक्षर किए। 

(vi) सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि - II (स्टार् - II): सामरिक रूप से घातक हथियारों की मात्रा को सीमित करने व कमी करने से सम्बन्धित इस सन्धि पर 3 जनवरी, 1993 को मास्को में रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) ने हस्ताक्षर किए।

स्त्रोत पर आधारित प्रश्न: 

प्रश्न 1. 
नीचे दिए गए अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
"क्यूबा मिसाइल संकट' शीत युद्ध का चरम बिन्दु था। शीत युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ तथा उनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा। सौभाग्य से इन तनावों और संघर्षों ने 'पूर्णव्यापी रक्तरंजित युद्ध' का रूप नहीं लिया।
(i) पूर्णव्यापी रक्तरंजित युद्ध' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ii) क्यूबा मिसाइल संकट' को शीत युद्ध के चरम बिन्दु के रूप में क्यों समझा जाता था?
(iii) "विचारधारात्मक संघर्ष भी शीत युद्ध का एक कारण था।" आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:

  1. पूर्णव्यापी रक्तरंजित युद्ध का अर्थ यहाँ दो शक्तियों (संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ) के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध है।
  2. क्यूबा मिसाइल संकट को शीत युद्ध के चरम बिन्दु के रूप में इसलिए समझा जाता है क्योंकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ एवं इनके मित्र देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव तथा टकराव की श्रृंखला की प्रतियोगिताओं को संदर्भित करता है। 
  3. शीतयुद्ध के दौरान लोकतंत्रवादी पूँजीवादी विचारधारा तथा समाजवादी एवं साम्यवादी विचारधाराओं में तनाव चल रहा था। अत: यह कथन काफी हद तक सही है।

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प्रश्न 2. 
दिए गए अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए शीत युद्ध सिर्फ ज़ोर-आज़माइश, सैनिक गठबन्धन अथवा शक्ति सन्तुलन का मामला भर नहीं था, बल्कि इसके साथ-साथ विचारधारा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था। विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौन-सा था?
(i) युद्ध जैसी परिस्थिति को शीत युद्ध क्यों कहते हैं? 
(ii) प्रतिद्वंद्वियों में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए प्रत्येक महाशक्ति द्वारा किए गए एक-एक सैनिक समझौते की पहचान कीजिए। 
(iii) विरोधी गुटों द्वारा अपनायी गई विचारधाराओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1.  शीत युद्ध के दौर में दोनों गुट आमने - सामने थे। दोनों गुट युद्ध की परिस्थिति के बाद होने वाले नुकसान को भलीभाँति जानते थे। इस कारण कोई भी गुट युद्ध का खतरा उठाना नहीं चाहता था। अतः युद्ध की परिस्थिति बन जाने के बाद भी. युद्ध न होने की स्थिति को शीत युद्ध कहा गया है।
  2. (क) पश्चिमी गठबन्धन (अमेरिका) - नाटो
    (ख) पूर्वी गठबन्धन (सोवियत संघ)-वारसा सन्धि
  3. पश्चिमी गठबन्धन अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी विचारधारा को अपनाने पर बल देता था। यह गुट उदारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का समर्थक था। वहीं, पूर्वी गठबन्धन सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी विचारधारा को अपनाने पर बल देता था। यह गुट समाजवादी व्यवस्था का समर्थक था। 

प्रश्न 3. 
निम्नलिखित उद्धरण का ध्यानपूर्वक अध्ययन कीजिए तथा उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
परस्पर विरोधी गटों के अपेक्षाकत छोटे देशों ने महाशक्तियों के साथ अपने - अपने जडाव का इस्तेमाल निजी हित में किया। इन देशों को स्थानीय प्रतिद्वंद्वी देश के खिलाफ सुरक्षा का वायदा मिला, हथियार और आर्थिक मदद मिली। इन देशों की अपने पड़ोसी देशों से होड़ थी। महाशक्तियों के नेतृत्व में गठबन्धन की व्यवस्था से पूरी दुनिया के दो खेमों में बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया। यह विभाजन सबसे पहले यूरोप में हुआ। पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमेरिका का पक्ष लिया जबकि पूर्वी यूरोप सोवियत खेमे में शामिल हो गया। इसलिए ये खेमे 'पश्चिमी' और 'पूर्वी गठबन्धन भी कहलाते हैं।
(i) पश्चिमी तथा पूर्वी गठबन्धनों से सम्बद्धं एक - एक संगठन का नाम लिखिए। 
(ii) छोटे - छोटे देश महाशक्तियों के गठबन्धनों में क्यों शामिल होना चाहते थे? 
(iii) 'गठबन्धन प्रणाली' किस प्रकार विश्व को विभाजित करने के लिए एक ख़तरा बन गई? 
उत्तर:
(i) पश्चिमी गठबन्धन से संबद्ध संगठन: नाटो (उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन)। पूर्वी गठबन्धन से संबद्ध संगठन-वारसा सन्धि।

(ii) छोटे - छोटे देश अपने - अपने निजी हितों के परिप्रेक्ष्य में महाशक्तियों के गठबन्धन में शामिल होना चाहते थे। इन सभी देशों की अपने पड़ोसी देशों से कई तरह की प्रतिस्पर्धा थी। गठबन्धन में शामिल हो जाने पर उन्हें अपने प्रतिद्वन्द्वी देश के खिलाफ सुरक्षा का भरोसा मिलता था। साथ ही हथियार तथा आर्थिक सहायता भी मिलती थी।

(iii) 'गठबन्धन प्रणाली' से महाशक्तियों के नेतृत्व में पूरी दुनिया के दो खेमों में बँट जाने का खतरा पैदा हो गया, क्योंकि इन गठबन्धनों में शामिल देश हथियारों आदि की होड़ में लग गए। क्षेत्रीय स्तर पर भी तनाव की स्थिति उत्पन्न होने लगी थी। महाशक्ति के साथ होने के भरोसे से छोटे-छोटे देश भी अपने पड़ोसी देशों से लड़ने - झगड़ने के लिए तैयार दिखाई देते थे। इस प्रकार पूरा विश्व दो प्रतिद्वन्द्वी दुश्मनों के रूप में सामने आ सकता था।

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प्रश्न 4. 
निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िए और अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
यहाँ यह याद रखना भी जरूरी है कि भारत ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल अन्य देशों को भी तनाव कम करने के कामों में संलग्न रखा। शीत युद्ध के दौरान भारत ने लगातार उन क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को सक्रिय बनाए रखने की कोशिश की जो अमेरिका अथवा सोवियत संघ के खेमे से नहीं जुड़े थे। नेहरू ने 'स्वतन्त्र और परस्पर सहयोगी राष्ट्रों के एक सच्चे राष्ट्र कुल' के ऊपर गहरा विश्वास जताया जो शीत युद्ध को खत्म करने में न सही, पर इसकी जकड़ ढीली करने में ही सकारात्मक भूमिका निभाए।
(i) शीत युद्ध का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 
(ii) उस समय चल रहे शीत युद्ध के प्रति भारत की सोच को स्पष्ट कीजिए। 
(iii) भारत की गुट - निरपेक्ष नीति की किन्हीं दो विशेषताओं को उजागर कीजिए।
उत्तर:
(i) शीतयुद्ध का अर्थ वह अवस्था है, जिसमें दो देशों या दो से अधिक देशों के बीच तनावपूर्ण वातावरण तो होता है, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध नहीं होता है।

(ii) (क) भारत ने दोनों महाशक्तियों से समान दूरी बनाए रखी। 
(ख) भारत ने नवगठित देशों के खिलाफ इन गठबन्धनों का हिस्सा न बनने के लिए आवाज उठायी। 

(iii) (क) भारत ने दोनों महाशक्तियों के बीच सन्तुलन बनाए रखा। 
(ख) गुटनिरपेक्षता ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय फैसले लेने की मंजूरी प्रदान की।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये इस अध्याय से सम्बन्धित: 

प्रश्न 1. 
तीन प्रमुख राजनेता कौन थे जिन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को आरम्भ किया?
(अ) जवाहरलाल नेहरू, अनबर सादत, सुकर्णो 
(ब) जवाहरलाल नेहरू, चाउ एन-लाई, वामे एनक्रमा
(स) जवाहरलाल नेहरू, फिदेल कास्त्रो, मार्शल टीटो 
(द) जवाहरलाल नेहरू, गमाल अब्दुल मार्शल, टीटो 
उत्तर:
(द) जवाहरलाल नेहरू, गमाल अब्दुल मार्शल, टीटो 

प्रश्न 2. 
द्वितीय विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्र कौन थे?
(अ) पोलैण्ड, जापान, जर्मनी
(ब) इटली, जापान, ब्रिटेन 
(स) जर्मनी, इटली, फ्रांस
(द) जर्मनी, इटली, जापान 
उत्तर:
(द) जर्मनी, इटली, जापान 

प्रश्न 3. 
NATO का पूरा रूप क्या है?
(अ) नॉर्थ अफ्रीकन ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन
(ब) नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन
(स) नॉर्थ एशियन ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन
(द) नॉर्थ अमेरिकन ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन 
उत्तर:
(ब) नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन

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प्रश्न 4. 
शान्ति कार्यक्रम के लिए नाटो की भागीदारी का उद्देश्य था:
(अ) भूतपूर्व पूर्वी गुट के राज्यों को इस संगठन में शामिल करना 
(ब) बोस्निया में सों की समस्या सुलझाना 
(स) युगोस्लाविया के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई करना
(द) सीरिया में अल असद शासन के विरुद्ध कार्रवाई करना 
उत्तर:
(अ) भूतपूर्व पूर्वी गुट के राज्यों को इस संगठन में शामिल करना 

प्रश्न 5. 
पहली बार परमाणु बम कहाँ फेंका गया था?
(अ) नागासाकी
(ब) हिरोशिमा 
(स) टोक्यो
(द) हांगकांग 
उत्तर:
(ब) हिरोशिमा 

प्रश्न 6. 
गुटनिरपेक्षता का मूल से क्या अभिप्राय है?
(अ) अपनी नीति चुनना
(ब) शक्ति गुटों के प्रति तटस्थता 
(स) विश्व में शान्ति और एकता लाना
(द) तीसरी दुनिया की शक्ति होना 
उत्तर:
(ब) शक्ति गुटों के प्रति तटस्थता 

प्रश्न 7. 
शीतयुद्ध की समाप्ति पर फ्रांसिस फूकुयामा ने इतिहास का अन्त' का विचार दिया, जिसका अर्थ है
(अ) विश्व में अप्रकट घटनाएँ अब नहीं होंगी 
(ब) वैश्विक स्तर पर तनाव तथा टकराव अब नहीं होगा 
(स) सैद्धान्तिक संघर्ष अब समाप्त हो चुका
(द) सैद्धान्तिक संघर्ष नए उत्साह के साथ होगा।
उत्तर:
(स) सैद्धान्तिक संघर्ष अब समाप्त हो चुका

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 8. 
द्वितीय विश्वयुद्ध किस वर्ष में प्रारम्भ हुआ?
(अ) 1940
(ब) 1939 
(स) 1941
(द) 1942 
उत्तर:
(ब) 1939 

प्रश्न 9. 
सन् 1945 में परमाणु बमों के गिराये जाने से तबाह हुए शहर 'नागासाकी' और 'हिरोशिमा' किस देश में स्थित हैं?
(अ) कोरिया
(ब) चीन 
(स) जापान
(द) सिंगापुर 
उत्तर:
(स) जापान

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित में से क्या गुटनिरपेक्षता की विशेषता नहीं है?
(अ) गुटनिरपेक्षता राष्ट्रों के समुदायों में बहुलवाद और लोकतान्त्रिक समानता का पक्षधर है। 
(ब) यह नस्लवाद और भेदभाव की सभी ताकतों का विरोध करता है और मौलिक स्वतन्त्रता का समर्थक है। आर्थिक और सामाजिक न्याय गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य है। 
(स) गुटनिरपेक्षता इस धारणा पर आधारित है कि राष्ट्रीय सुरक्षा राष्ट्रों की राष्ट्रीय शक्ति से जुड़ी हुई है। 
(द) गुटनिरपेक्षता इस बात पर विश्वास करता है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति राष्ट्रीय आकांक्षाओं को प्राप्त करने और सार्वभौम स्वतन्त्रता के उपयोग के लिए एक असंबद्ध पूर्वापेक्षा है।
उत्तर:
(स) गुटनिरपेक्षता इस धारणा पर आधारित है कि राष्ट्रीय सुरक्षा राष्ट्रों की राष्ट्रीय शक्ति से जुड़ी हुई है। 

प्रश्न 11. 
किसने कहा था "शीतयुद्ध का अन्त आदर्श राज्य और उदारवाद पूँजीवाद के विजय का प्रतिनिधित्व करता है।" 
(अ) माइकल डोयता
(ब) थॉमस डन 
(स) फ्रांसिस फूकुयामा
(द) सैमुअल हंटिंग्टन 
उत्तर:
(स) फ्रांसिस फूकुयामा

प्रश्न 12. 
निम्नलिखित में से किस कारक ने शीतयुद्ध के पश्चात् 'नव शिथिलता' के विकास में योगदान दिया?
(अ) गुटनिरपेक्ष आन्दोलन द्वारा दबाव 
(ब) रीगन और गोर्बाचेव द्वारा आई.एन.एफ. ट्रीटी (मध्यवर्ती परमाणु बल सन्धि) पर हस्ताक्षर। 
(स) मुक्त अफ्रीकी राष्ट्र के रूप में नामीबिया का उदय।
(द) फारस की खाड़ी में RDF (त्वरित परिनियोजित बल) का परिनियोजन। 
उत्तर:
(ब) रीगन और गोर्बाचेव द्वारा आई.एन.एफ. ट्रीटी (मध्यवर्ती परमाणु बल सन्धि) पर हस्ताक्षर। 

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प्रश्न 13. 
नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के लिए बार माँग कब की गई?
(अ) तेहरान शिखर सम्मेलन में
(ब) डरबन शिखर सम्मेलन में 
(स) कुआलालम्पुर शिखर सम्मेलन में
(द) अल्जीअर शिखर सम्मेलन में। 
उत्तर:
(द) अल्जीअर शिखर सम्मेलन में। 

प्रश्न 14. 
शीतयुद्ध का अभिप्राय क्या है?
(अ) पूर्व और पश्चिम के बीच तनाव
(ब) पूँजीवादी और साम्यवादी दुनिया के बीच वैचारिक दुश्मनी 
(स) महाशक्तियों के बीच तनाव 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

Prasanna
Last Updated on Jan. 16, 2024, 9:20 a.m.
Published Jan. 15, 2024