These comprehensive RBSE Class 12 Geography Notes Practical Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन will give a brief overview of all the concepts.
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→ आँकड़े कई प्रकार के होते हैं; जैसे-समाचार के अन्त में मुख्य शहरों के तापमान, जनसंख्या की वृद्धि और वितरण, भूमि उपयोग, किसी वस्तु के उत्पादन, उपभोग, आयात अथवा निर्यात के आँकड़े, जलवायु सम्बन्धी आँकड़े, किसी परीक्षा में परीक्षार्थियों द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों के आँकड़े, खनिजों एवं औद्योगिक उत्पादों सम्बन्धी आँकड़े आदि।
→ आँकड़े क्या हैं ?
आँकड़ों को संख्याओं के रूप में लिखा जाता है जिसकी आधार सामग्री माप होती है; जैसे-बाड़मेर की औसत वार्षिक वर्षा 20 सेमी., दिल्ली-मुम्बई की दूरी 1305 किलोमीटर है। यह संख्यात्मक सूचना आँकड़ा कहलाती है।
→ आँकड़ों की आवश्यकता:
भूगोल के अध्ययन में मानचित्र की तरह आँकड़े भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। पृथ्वी की सतह पर घटित घटनाओं के मध्य आपसी सम्बन्ध होते हैं जिनकी व्याख्या मात्रात्मक रूप में हो सकती है। उदाहरणार्थ किसी क्षेत्र में एक नगर के विकास के अध्ययन के लिए कुल जनसंख्या, क्षेत्रफल, घनत्व, प्रवासियों की संख्या, लोगों के व्यवसाय, उनके वेतन, यातायात और संचार के साधनों से सम्बन्धित आँकड़े अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त आँकड़े रेखाचित्रों एवं मानचित्रों की रचना को भी आधार प्रदान करते हैं। इसलिए आँकड़े भौगोलिक विश्लेषण के लिए आवश्यक माने जाते हैं।
→ आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण:
तथ्यों और आकार को जानने के लिए आँकड़ों को एकत्र करना जितना आवश्यक होता है, उतना ही आवश्यक आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण भी होता है। वर्तमान समय में सांख्यिकीय विधियों का उपयोग और विश्लेषण आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए विश्लेषणात्मक साधन और तकनीकें, विषय को अत्यन्त तार्किक और परिशुद्ध बनाये रखने के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गये हैं।
→ आँकड़ों के स्त्रोत:
आँकड़े दो मुख्य स्रोतों से एकत्रित किये जाते हैं
(i) प्राथमिक स्रोत-जो आँकड़े प्रथम बार व्यक्तिगत रूप से अथवा व्यक्तियों के समूह, संस्था या संगठन द्वारा एकत्रित किये जाते हैं, आँकड़ों के प्राथमिक स्रोत कहलाते हैं।
(ii) द्वितीयक स्रोत-जो आँकड़े किसी प्रकाशित अथवा अप्रकाशित साधनों द्वारा एकत्रित किये जाते हैं, आँकड़ों के द्वितीयक . स्रोत कहलाते हैं।
→ आँकड़ों के संग्रह की विधियाँ:
आँकड़ों के संग्रह की विभिन्न विधियाँ हैं, जो कि निम्न प्रकार हैं
→ आँकड़ों के प्राथमिक स्रोत (विधियाँ):
आँकड़ों के प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत व्यक्तिगत प्रेक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावली अनुसूची तथा अन्य विधियाँ सम्मिलित की जाती हैं।
→ आँकड़ों के द्वितीयक स्रोत (विधियाँ):
द्वितीयक स्रोतों के अन्तर्गत आँकड़ों के प्रकाशित और अप्रकाशित स्रोत आते हैं।
→ प्रकाशित स्रोत या साधन:
प्रकाशित स्रोत से तात्पर्य उन सांख्यिकी प्रतिवेदनों, सांख्यिकीय सारांशों और पुस्तकों से है जिनके द्वारा विभिन्न विषयों से सम्बन्धित आँकड़ों का अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक स्तर पर प्रकाशन होता है। इन स्रोतों को कई भागों में विभाजित किया जा सकता है
→ अप्रकाशित स्त्रोत या साधन;
द्वितीयक आँकड़े प्राप्त करने के अप्रकाशित स्रोत प्रायः अभिलेखों तथा अप्रकाशित शोधप्रबन्धों के रूप में होते हैं। इन स्रोतों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
→ आँकड़ों का सारणीयन:
प्राथमिक और द्वितीयक साधनों से प्राप्त आँकड़े कच्चे आँकड़े कहे जाते हैं जो आसानी से कम समझ में आते हैं। इसलिए उपयोग में लाने के लिए कच्चे आँकड़ों के सारणीयन और वर्गीकरण को महत्त्व दिया जाता है। सांख्यिकीय सारणी द्वारा आँकड़ों को कॉलम और पंक्तियों के माध्यम से सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इस सारणी के द्वारा लोगों को सूचना आसानी से मिल जाती है।
→ आँकड़ों का संग्रह और प्रस्तुतीकरण:
आँकड़ों का संग्रह, सारणीयन और सारणी रूप में प्रस्तुतीकरण या तो निरपेक्ष रूप से प्रतिशत में अथवा संकेत सूची के रूप में होता है।
→ निरपेक्ष आँकड़े:
जब आँकड़े अपने मूल रूप में पूर्णांक की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं तो उन्हें निरपेक्ष आँकड़ा कहते हैं। सूचकांक-सूचकांक चर अथवा एक सांख्यिकीय माप है।
→ आँकड़ों का वर्गीकरण:
कच्चे आँकड़ों के वर्गीकरण के लिए श्रेणियों की संख्याओं को निर्धारित कर अपरिष्कृत आँकड़े अपने अन्तराल के साथ वर्गीकृत किये जाते हैं। वर्ग अन्तराल का चुनाव और वर्गों की संख्या अपरिष्कृत आँकड़ों के परिसर और वर्गीकरण के उद्देश्यों पर निर्भर करते हैं।
→ आवृत्ति:
आवृत्ति का साधारण भाषा में अर्थ पुनरावृत्ति है। किसी पदमाला में किसी चर मूल्य की कितनी बार पुनरावृत्ति हुई है, यह संख्या उस चर की आवृत्ति कहलाती है।
→ आवृत्ति वितरण:
किसी समग्र में प्रदर्शित विभिन्न चर मूल्यों के समक्ष आवृत्तियों का क्रम विन्यास आवृत्ति वितरण कहलाता है। अन्य शब्दों में, चर मूल्यों के अनुसार आवृत्तियों के विन्यास को आवृत्ति वितरण कहते हैं।
→ मिलान चिह्न:
आवृत्ति वितरण में चर मूल्यों की संख्या (आवृत्ति) की गणना में खड़ी व तिरछी रेखाओं को मिलान या टैली चि कहते हैं। प्रत्येक चर मूल्य की एक आवृत्ति को एक टैली द्वारा प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी चर मूल्य की आवृत्तियों की संख्या 5 है तो उसके सामने चार खड़ी रेखाएँ (HI) खींचकर एक रेखा काटती हुई (N) बनाते हैं।
→ आवृत्ति के प्रकार:
आवृत्ति दो प्रकार की होती है
(i) साधारण आवृत्ति-प्रत्येक पद या वर्ग की संख्या को साधारण आवृत्ति कहते हैं, जिसे द्विारा प्रदर्शित करते हैं।
(ii) संचयी आवृत्ति-प्रत्येक पद या वर्ग में दी गई क्रमिक साधारण आवृत्ति को पहले पद या वर्ग की आवृत्ति के साथ जोड़कर प्राप्त की गई संख्या को संचयी आवृत्ति कहते हैं। इसे cf से प्रदर्शित करते है।
→ वर्गों को तैयार करने की विधि:
प्रत्येक सामान्य आवृत्ति इसके समूह अथवा वर्ग से सम्बन्धित होती है। समूहों पर वर्गों को तैयार करने के लिए दो विधियाँ हैं
(i) अपवर्ती विधि: इस विधि में एक वर्ग की उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा होती है। जैसे एक वर्ग (20-30) को उच्च सीमा 30 है जो कि अगले वर्ग (30-40) की निम्न सीमा है। 30 उसी वर्ग में रखा जाएगा जिसमें यह निम्न सीमा है। इस विधि को अपवर्ती विधि कहते हैं।
(ii) समावेशी विधि: इस विधि में एक मूल्य जो वर्ग की उच्च सीमा के मूल्य के समान होता है, उसे उसी वर्ग में रखा जाता है। इसलिए इस विधि को समावेशी विधि कहते हैं। इसमें वर्ग की उच्च सीमा में अगले वर्ग की निम्न सीमा से 1 का अन्तर होता है। उदाहरण-30-39, 40-49, 50-59.
→ आवृत्ति बहुभुज:
आवृत्तियों के वितरण का ग्राफीय रेखांकन आवृत्ति बहुभुज के नाम से जाना जाता है। यह दो या दो से अधिक आवृत्ति वितरण की तुलना में सहायक होता है।
→ ओजाइव:
संचयी आवृत्ति द्वारा प्राप्त किये गये वक्र को ओजाइव कहते हैं। ओजाइव निर्माण की दो विधियाँ हैं
(i) से कम विधि: इस विधि में वर्गों की उच्च सीमा से शुरुआत करते हैं और आवृत्ति को जोड़ते जाते हैं। इन आवृत्तियों के द्वारा एक उभरता हुआ वक्र प्राप्त होता है।
(ii) से अधिक विधि: इस विधि में वर्गों की निम्न सीमा से शुरुआत करके संचयी आवृत्ति से प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति को घटाकर एक गिरता हुआ वक्र प्राप्त होता है।