These comprehensive RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 Notes भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास
→ नियोजन एक सोच-विचार कर सम्पन्न की जाने वाली प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु गतिविधियों के क्रियान्वयन को सम्मिलित किया जाता है।
- सामान्यतया नियोजन खण्डीय एवं प्रादेशिक स्तर पर किया जाता है।
- खण्डीय नियोजन के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों; जैसे-कृषि, सिंचाई, ऊर्जा, विनिर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना एवं सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाकर उनको लागू किया जाता है।
- प्रादेशिक नियोजन के अन्तर्गत विकास के असमान प्रतिरूप से उत्पन्न प्रादेशिक असन्तुलन को कम करने के लिए योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
- भारत में केन्द्रीकृत नियोजन है और नियोजन का कार्य योजना आयोग को सौंपा गया है। 1 जनवरी, 2015 से योजना आयोग का स्थान 'नीति आयोग' ने ले लिया है।
- नीति (योजना) आयोग एक वैधानिक संस्था है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसमें एक उपाध्यक्ष व सदस्य होते हैं।
→ लक्ष्य क्षेत्र नियोजन
- क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से भारत के नीति आयोग ने 'लक्ष्य क्षेत्र' तथा 'लक्ष्य समूह' जैसे कार्यक्रमों को लागू किया है।
- 'कमान नियन्त्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम', 'सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम' तथा 'पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम' लक्ष्य क्षेत्र से सम्बन्धित देश के महत्त्वपूर्ण विकास कार्यक्रम हैं। लघु कृषक विकास संस्था तथा सीमांत किसान विकास संस्था लक्ष्य समूह कार्यक्रम के उदाहरण हैं।
→ पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- देश के अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए देश में पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में लागू किया गया था।
- पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए तैयार की गई विकास योजनाओं में सम्बन्धित क्षेत्र की स्थलाकृति, पारिस्थितिकी, सामाजिक व आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखा गया है।
→ सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- सूखा सम्भावी कार्यक्रम का प्रारम्भ चौथी पंचवर्षीय योजना में किया गया।
- देश के शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में संचालित किये गये इस विकास कार्यक्रम में सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चारागाह विकास तथा आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना के साथ-साथ पारिस्थितिकी सन्तुलन जैसे कार्यक्रमों को लागू करने पर बल दिया गया है।
- भारत के सूखा संभावी क्षेत्रों में मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, मराठवाड़ा, रायलसीमा, तेलंगाना पठार, कर्नाटक के पठार एवं तमिलनाडु के उच्चभूमि क्षेत्रों को शामिल करते हैं।
→ भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम
- हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की भरमौर व होली तहसील में गद्दी नामक जनजाति निवास करती है।
- गद्दी जनजाति कृषि के अलावा ऋतु प्रवास के माध्यम से भेड़ व बकरी पालन करती रही है तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से अति पिछड़ी अवस्था में जीवन-यापन करती है।
- सन् 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत इस क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास परियोजना को प्रारम्भ किया गया।
- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत इस क्षेत्र के विकास के लिए परिवहन व संचार, कृषि सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को प्राथमिकता प्रदान की गई जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र में साक्षरता दर में तीव्र वृद्धि, लिंगानुपात में सुधार तथा बाल विवाह में कमी अनुभव की गई है।
- कृषि तकनीक व उत्पादन में सुधार तथा ऋतु प्रवास में उल्लेखनीय कमी इस कार्यक्रम की सफलता के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
→ सतत पोषणीय विकास
- विकास की संकल्पना गतिक है। इस संकल्पना का उद्भव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ।
- 1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण सम्बन्धी विषयों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत पोषणीय अवधारणा का विकास हुआ।
- सतत पोषणीय विकास की संकल्पना सन् 1987 में लोकप्रिय हुई, जब पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती हुई चिंता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD) का गठन किया।
→ इन्दिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र
- भारत के सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक इंदिरा गाँधी नहर है जिसे पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था।
- इंदिरा गाँधी नहर परियोजना की शुरुआत 31 मार्च, 1958 से हुई थी।
- पंजाब राज्य में हरिके बैराज बाँध से निकली राजस्थान नहर पाकिस्तान सीमा के समानान्तर 40 किमी. की औसत दूरी पर बहती है।
- इंदिरा गाँधी नहर के चरण-I का कमान क्षेत्र गंगानगर, हनुमानगढ़ तथा बीकानेर जिले के उत्तरी भाग में पड़ता है, जबकि चरण II का कमान क्षेत्र बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर तथा चुरू क्षेत्रों में पड़ता है।
- चरण I के कमान क्षेत्र में सिंचाई की शुरुआत 1960 के दशक के प्रारंभ में जबकि चरण II में 1980 के दशक के मध्य में हुई थी।
- उक्त कमान क्षेत्रों में नहर सिंचाई के प्रसार से इन क्षेत्रों में वनीकरण, चारागाह विकास कार्यक्रम, कृषि उत्पादन तथा पशुधन उत्पादकता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं।
→ सतत् पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले उपाय
- यह एक मान्य तथ्य है कि इन्दिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत् पोषणीय विकास के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रमुख रूप से पारिस्थितिकीय सतत् पोषणता पर बल देना होगा।
- इसके लिए जल प्रबन्धन, चारागाह विकास व कृषि के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान, बागाती कृषि, नहरों को पक्का करना, जलाक्रांत व लवण प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार, वनीकरण, निर्धन कृषकों की वित्तीय व संस्थागत सहायता तथा कृषि से सम्बन्धित अन्य क्षेत्रों का विकास आवश्यक है।
→ नियोजन (Planning):
देश के आर्थिक साधनों का विस्तृत सर्वेक्षण करके देश की आवश्यकताओं के अनुसार उनका सर्वोत्तम उपयोग निर्धारित करना नियोजन कहलाता है।
→ रोलिंग प्लान (Rolling Plans):
यह पंचवर्षीय योजनाओं के मध्य की वह अवधि है जिसमें वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं, इसे योजना अवकाश भी कहा जाता है।
→ खण्डीय नियोजन (Sectoral Planning):
अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उन्हें लागू कराना खण्डीय नियोजन कहलाता है।
→ प्रादेशिक नियोजन (Regional Planning):
स्थानिक परिप्रेक्ष्य के सन्दर्भ में विकास में प्रादेशिक असन्तुलन को कम करने सम्बन्धी नियोजन को प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।
→ ऋतुप्रवास (Trans-humance):
मौसमी प्रवास का प्रचलन प्रारूप जिसके अन्तर्गत ग्रीष्म ऋतु में चरवाहे समुदाय दूसरे चारागाहों में प्रवास कर जाते हैं। शीत ऋतु में यह समुदाय अपने स्थायी निवास पर लौट आते हैं।
→ सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development):
एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किये बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना शामिल है।
→ कमान क्षेत्र (Command Area):
वह क्षेत्र जिसमें सिंचाई व अन्य कार्यों के लिए जल आपूर्ति नहर तन्त्र द्वारा होती है।
→ कृषि योग्य कमान क्षेत्र (Culturable Command Area):
नहर तन्त्र द्वारा सिंचित कृषि योग्य भूमि। यह सकल कमान क्षेत्र से भिन्न होता है। सकल कमान क्षेत्र में अकृषि योग्य भूमि सहित नहर तन्त्र द्वारा सिंचित सम्पूर्ण क्षेत्र सम्मिलित होता है।
→ प्रवाह तन्त्र (Flow System):
एक नहर प्रणाल जिसमें गुरुत्व के प्रभाव से जल प्रवाहित होता है।
→ लिफ्ट तन्त्र (Lift System):
एक नहर प्रणाल जिसके अन्तर्गत उत्थापन पद्धति द्वारा जल भूमि के ढाल के विपरीत प्रवाहित किया जाता है।
→ सघन सिंचाई (Intensive Irrigation):
सिंचाई विकास की एक रणनीति, जिसके अन्तर्गत प्रति इकाई जल का उपयोग अधिक होता है।
→ विस्तृत सिंचाई (Extensive Irrigation):
सिंचाई विकास की एक रणनीति, जिसके अन्तर्गत एक बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई जल उपलब्ध कराने पर बल दिया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रति इकाई जल का उपयोग कम होता है।
→ जलभराव (Water Logging):
जलोढ़ में जल तल का ऊपर आना जिससे संतृप्तता का क्षेत्र पौधों की जड़ों के क्षेत्र तक आ जाता है। जलभराव या जलक्रांति कहलाता है।
→ मृदा लवणता (Soil Salinity):
मिट्टी में खारेपन का होना। यह खारापन मिट्टी में नमक (सोडियम क्लोराइड तथा सल्फेट) की उपस्थिति के कारण होता है।
→ वारबन्दी पद्धति (Warabandi System):
यह नहर निकास क्षेत्र के कमान क्षेत्र में जल के एक समान वितरण की पद्धति है।
→ रक्षण मेखला (Shelter Belt):
फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना, रक्षण मेखला कहलाता है।
→ भंगुर (Fragile):
कमजोर/कोमल।