These comprehensive RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन will give a brief overview of all the concepts.
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→ खनिज
खनिज एक निश्चित रासायनिक व भौतिक गुणधर्मों के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति का एक प्राकृतिक पदार्थ होता है।
→ खनिज संसाधनों के प्रकार
→ भारत में खनिजों का वितरण
→ लौह खनिज
→ अलौह खनिज
बॉक्साइट एवं ताँबा प्रमुख अलौह खनिज हैं। बॉक्साइट को छोड़कर अन्य सभी अलौह खनिजों के सम्बन्ध में भारत की स्थिति संतोषजनक नहीं है।
→ बॉक्साइट
→ ताँबा
ताँबा के निक्षेप प्रमुख रूप से झारखण्ड, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों में मिलते हैं।
→ अधात्विक खनिज
→ ऊर्जा संसाधन
→ प्राकृतिक गैस को समस्त खनिज तेल क्षेत्रों में तेल के साथ प्राप्त किया जाता है।
→ अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा तथा जैव ऊर्जा आदि प्रमुख अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत हैं।
→ नाभिकीय ऊर्जा
→ खनिज संसाधनों का संरक्षण
→ आग्नेय चट्टान (शैल) (Igneous Rocks):
प्राथमिक चट्टानें जिनका निर्माण पृथ्वी के तप्त व तरल मैग्मा के शीतल होकर ठोस हो जाने पर हुआ है।
→ खनिज (Mineral):
निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति के प्राकृतिक पदार्थ को खनिज कहा जाता है।
→ अवसादी चट्टान (Sedimentry Rocks):
ऐसी शैल (चट्टान) जो पूर्व की शैलों अथवा जैव मलबे से निर्मित होती है तथा जो परतों में जमा होती जाती है।
→ कायांतरित चट्टान (Metamorphic Rocks):
वे शैल जो मूल रूप से आग्नेय अथवा अवसादी थीं परन्तु दाब और ताप के कारण उनके रूप व गुण परिवर्तित हो गये हैं, कायान्तरित चट्टानें (शैलें) कहलाती हैं।
→ जलोढ़ मैदान (Alluvial Plain):
नदी निक्षेप से बना मैदान अथवा नदी के बहते जल द्वारा जमा तलछट से निर्मित मैदान जलोढ़ मैदान कहलाता है।
→ धात्विक खनिज (Metallic Mineral):
वे खनिज जिनमें धातु प्राप्त होती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-लौह अयस्क, ताँबा, मैगनीज आदि।
→ अधात्विक खनिज (Non-metallic Mineral):
वे खनिज जिनमें धातु नहीं होती है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं; जैसे-चूना पत्थर, डोलोमाइट, अभ्रक आदि।
→ लौह खनिज (Ferrous Mineral):
ऐसे खनिज जिनमें लौह धातु के अंश होते हैं, लौह खनिज कहलाते हैं : जैसे-निकिल, मैगनीज, टंगस्टन आदि।
→ अलौह खनिज (Non Ferrous Mineral):
जिन खनिजों में लोहे के अंश नहीं होते उन्हें अलौह खनिज कहते हैं; जैसे-ताँबा, अयस्क, टिन, सोना, चाँदी आदि।
→ ईंधन खनिज (Fuels Mineral):
यह अधातु खनिज होते हैं, जिनकी उत्पत्ति जीवाश्मों से होती है तथा यह जलाने पर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इनमें कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस सर्वप्रमुख हैं।
→ क्रिस्टलीय शैल (Crystalline Rock):
रवेदार चट्टान।
→ अयस्क (Ore):
अयस्क जमाव के वे हिस्से होते हैं जो आर्थिक दृष्टि से निष्कर्षण या खनन योग्य होते हैं, अतः अयस्कों में कार्यात्मकता का गुण होता है।
→ खान (खदान) (Mines):
कोयला, लौह अयस्क और बहुमूल्य पत्थर जैसे खनिजों को निकालने के लिए पृा में की गई खुदाई। खुले खनन को छोड़कर खान का अभिप्राय सामान्यतया भूमिगत खनन से लिया जाता है।
→ अपतटीय क्षेत्र (Off Coast):
सागर तट से दूर स्थित क्षेत्र को अपतटीय क्षेत्र कहते हैं।
→ खनन (Mining):
पृथ्वी से वाणिज्यिक दृष्टि से बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति से जुड़ी एक आर्थिक क्रिया।
→ निक्षेप (जमाव) (Deposits):
जमाव प्राकृतिक विज्ञान का एक शब्द है जो भौतिक तथ्यों एवं निष्क्रिय तत्वों (Neutral Stuffs) से सम्बन्धित है। खनिजों की ज्ञात भौतिक उपस्थिति ही जमाव कहलाती है। इसमें कार्यात्मकता नहीं होती है।
→ आरक्षित भंडार (संचित राशि) (Reserves):
संचित राशि से आशय भूगर्भ में उपस्थित पदार्थ की उस मात्रा से है जिसका आकलन किया जा चुका है, साथ ही वर्तमान परिस्थितियों में आर्थिक दृष्टि से उस आकलित की गई मात्रा का उपयोग लाभप्रद हो।
→ परम्परागत ऊर्जा स्रोत (Conventional Energy Sources):
कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कहा जाता है। ये समाप्य संसाधन होते हैं।
→ गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत (Non Conventional Energy Sources):
सौर, पवन, जल, भूतापीय तथा जैव ऊर्जा को ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत कहा जाता है। यह ऊर्जा स्रोत नवीनीकरण योग्य होने के साथ-साथ अधिक टिकाऊ, पारिस्थितिक अनुकूल तथा सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
→ तरल सोना (Liquid Gold):
अपनी दुर्लभता एवं विविध उपयोगों के लिए पेट्रोलियम को तरल सोना कहा जाता
→ नवीकरण योग्य स्रोत (Renewable Energy Sources):
वे समस्त संसाधन जिनको भौतिक रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, नवीकरण योग्य स्रोत या संसाधन कहलाते हैं; जैसे-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि।
→ नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy):
परमाणु खनिजों के उपयोग से प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा कहलाती है।
→ पुलिन/बीच (Beach):
समुद्र तट के सहारे सागरीय जल द्वारा जल के निक्षेप से बना स्थल रूप।
→ सौर ऊर्जा (Solar Energy):
सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं।
→ पवन ऊर्जा (Wind Energy):
पवन चक्कियों के माध्यम से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं।
→ स्थायी पवन (Permanent Wind):
पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्षभर चलने वाली पवन को स्थायी पवन कहते हैं।
→ सन्मार्गी पवन (Trade Wind):
उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्धों से भूमध्यरेखीय निम्न दाब कटिबन्ध की ओर चलने वाली स्थायी पवनों को सन्मार्गी पवन कहते हैं।
→ पछुआ पवन (Westerlies Wind):
उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्धों से उपबन्धीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर चलने वाली पवनों को पछुआ पवन कहते हैं।
→ मानसून पवन (Monsoon Wind):
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मॉसिम शब्द से हुई है। जिसका अभिप्राय ऋतु से है। अतः मानसून पवन वे पवनें हैं जिनकी दिशा ऋतु के अनुसार बिल्कुल उलट जाती है। ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के छः माह में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु के छः माह में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
→ स्थानीय हवाएँ (Local Winds):
वे पवनें जो तापमान और वायुदाब के स्थानीय अंतर से चलती हैं और बहुत ही छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं, स्थानीय पवनें कहलाती हैं। ये पवन क्षोभमंडल की निचली परतों तक ही सीमित होती हैं। उदाहरण-फोहन, चिनूक, मिस्ट्रल, बोरा, लू आदि।
→ जलीय पवन (Sea Breezes):
दिन के समय समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली आर्द्र एवं ठण्डी पवन को जलीय पवन या समुद्र समीर कहते हैं।
→ स्थलीय पवन (Land Breezes):
रात्रि के समय स्थल से समुद्र की ओर चलने वाली पवनों को स्थलीय पवन या स्थलीय समीर कहते हैं।
→ ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा (Tidal and Wave Energy):
समुद्री ज्वार व तरंगों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा कहते हैं।
→ भूतापीय ऊर्जा (Geo-thermal Energy):
पृथ्वी के उच्च भूगर्भीय ताप से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।
→ मैग्मा (Magma):
भूपर्पटी के नीचे पाया जाने वाला गर्म, तरल व चिपचिपा शैल पदार्थ, मैग्मा कहलाता है। जिसके ठोस हो जाने पर आग्नेय शैल बनती हैं। मैग्मा में गैस और कुछ खनिज हो सकते हैं।
→ गीजर कूप (Gyser Well):
गर्म स्थल के ऐसे स्रोत जिसके मुख से रुक-रुक कर गर्म जल के फुहारे तथा वाष्प छूटती रहती है, गीजर कूप कहलाते हैं।
→ जैव ऊर्जा (Bio-Energy):
जैविक उत्पादों से प्राप्त ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं।
→ छाजन (Scrap):
विभिन्न खनिजों की कतरन, टुकड़े अथवा छोजत के रूप में प्राप्त सामग्री।