RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 6 जल-संसाधन

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RBSE Class 12 Geography Chapter 6 Notes जल-संसाधन

→ जल पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भू-भाग जल से आच्छादित है परन्तु अलवणीय जल कुल जल का लगभग 3 प्रतिशत ही है।

→ भारत के जल संसाधन

  • भारत विश्व के कुल धरातलीय क्षेत्र का लगभग 2.45 प्रतिशत भाग है, जबकि इस देश में विश्व के जल संसाधनों का
  • 4 प्रतिशत तथा विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत भाग मिलता है। • देश में कुल उपयोगी जल संसाधनों की मात्रा 1122 घन किमी है।

→ धरातलीय जल संसाधन 

  • धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-नदियाँ, झील, तलैया और तालाब।
  • भारत के धरातलीय जल स्रोतों में नदियाँ सर्वप्रमुख हैं।
  • भारत के सभी नदी बेसिनों में औसत अनुमानित वार्षिक प्रवाह 1869 घन किमी. है जिसका केवल 32 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जा सकता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा बराक नदियों में देश के कुल धरातलीय जल संसाधनों का लगभग 60 प्रतिशत भाग मिलता है। 

→ भौम जल संसाधन 

  • देश में कुल पुनः पूर्ति योग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन किमी. है। उत्तरी-पश्चिमी प्रदेश और दक्षिणी भारत के कुछ भागों में नदी बेसिनों में भौम जल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है।
  • पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा तमिलनाडु राज्यों में भौमजल का उपयोग बहुत अधिक है, जबकि छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा केरल अपने यहाँ की भौमजल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं। 

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 6 जल-संसाधन 

→ लैगून और पश्च जल 
केरल, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के तट बहुत दंतुरित (कटे-फटे) होने के कारण अनेक लैगूनों तथा झीलों से युक्त मिलते हैं जिनका उपयोग मत्स्य पालन के साथ-साथ चावल व नारियल की सिंचाई में किया जाता है।

→ जल की माँग तथा उपयोग 

  • भारत के कुल धरातलीय जल के 89 प्रतिशत भाग तथा भौमजल के 92 प्रतिशत भाग का उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है।
  • कुल धरातलीय जल का 9 प्रतिशत भाग घरेलू क्षेत्र में तथा 2 प्रतिशत भाग औद्योगिक क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है, जबकि कुल भौमजल का केवल 5 प्रतिशत भाग औद्योगिक क्षेत्र में प्रयुक्त होता है। 

→ सिंचाई के लिए जल की माँग तथा सम्भावित जल समस्या

  • कृषि में जल का उपयोग प्रमुख रूप से सिंचाई कार्यों में होता है।
  • देश के कृषि क्षेत्रों में वर्षा की स्थानिक सामयिक परिवर्तनशीलता के कारण सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
  • सिंचाई की उपलब्धता बहुफसलीकरण के साथ-साथ कृषि उत्पादकता पर भी अनुकूल प्रभाव डालती है।
  • सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता के कारण ही पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित-क्रांति की रणनीति अधिक सफल हुई है। 
  • पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नलकूपों तथा कुओं द्वारा भूमिगत जलीय संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से भूमिगत जल का स्तर सतत् रूप से गिरता जा रहा है।

नोट:
2011 की जनगणना के अनुसार भारत विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 17.5% भाग समाहित किये हुए है।

→ भारत में जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने तथा जल प्रदूषण का अनुपात बढ़ने से उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता में समय के साथ-साथ कमी आती जा रही है।

→ जल के गुणों का ह्रास 
जल में बाहरी पदार्थों (सूक्ष्मजीवों, रासायनिक पदार्थों एवं औद्योगिक अपशिष्टों) के मिश्रण से जल प्रदूषित होता है। गंगा तथा यमुना भारत की अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं। 

→ जल संरक्षण और प्रबन्धन 
भारत में स्वच्छ जल की घटती उपलब्धता तथा बढ़ती माँग के कारण जल संरक्षण व प्रबन्धन के लिये प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही जल प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी अपेक्षित हैं।

→ जल प्रदूषण का निवारण

  • नदियों में प्रदूषकों का संकेन्द्रण गर्मी के मौसम में बहुत अधिक होता है क्योंकि उस समय जल का प्रवाह कम होता है ।
  • केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPC) जल संसाधन की गुणवत्ता की मानीटरिंग करते हैं। 
  • भारत में जल प्रदूषण के निवारण के लिए जल अधिनियम 1974, जल उपकर अधिनियम 1977 तथा पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 बनाये गये हैं। जिनको प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। 
  • साथ ही जल के महत्व तथा जल प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता का प्रचार व प्रसार करना भी आवश्यक है।

→ जल का पुनः चक्र और पुनः उपयोग 

  • जल के पुनः चक्र तथा पुनः उपयोग की विधियों द्वारा अलवणीय जल की उपलब्धता तथा गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है।
  • कम गुणवत्ता वाले जल जैसे शोधित अपशिष्ट जल का उपयोग उद्योगों में शीतलन व अग्निशमन के लिए किया जा सकता है। नगरीय क्षेत्रों में स्नान एवं बर्तन व वाहन धोने में प्रयुक्त जल को बागवानी के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाले जल का पीने के उद्देश्य के लिए संरक्षण किया जा सकता है।

→ जल संभर प्रबन्धन

  • धरातलीय तथा भौमजल संसाधनों का कुशलतापूर्वक किया गया प्रबन्धन जल संभर प्रबन्धन कहलाता है।
  • केन्द्रीय व राज्य सरकारों के साथ-साथ कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा जल संभर विकास व प्रबन्धन कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं जिनमें नीरू-मीरू कार्यक्रम (आन्ध्र प्रदेश) तथा अरवारी पानी संसद (राजस्थान के अलवर जिले में) उल्लेखनीय हैं। 
  • हरियाली केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 6 जल-संसाधन

→ वर्षा जल संग्रहण

  • वर्षा जल संग्रहण एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा वर्षा के जल को विभिन्न उपयोगों हेतु रोका व संग्रह किया जाता है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण के लिए परम्परागत रूप से झीलों तथा तालाबों का उपयोग किया जाता है।

→ जल संसाधन (Water Resources):
धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आंतरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल भण्डारों को जल संसाधन कहते हैं।

→ अलवणीय जल (Fresh Water):
नमक रहित अर्थात् मीठे जल को अलवणीय जल कहा जाता है।

→ धरातलीय जल (Surface Water):
धरातल पर स्थित विभिन्न जल स्रोतों नदियाँ, झीलों, नहरों, तालाबों आदि में उपलब्ध जल।

→ झील (Lakes):
स्थलीय भाग पर अवस्थित जल से भरा विस्तृत गर्त जो आकार, विस्तार तथा गहराई आदि के अनुसार पर्याप्त भिन्नताएँ रखता है, झील कहलाता है।

→ नदी बेसिन (River Basin):
कोई नदी अपनी सहायक नदियों के साथ जिस क्षेत्र का जल लेकर आगे बढ़ती है, उसका प्रवाह क्षेत्र नदी बेसिन या जल संग्रहण क्षेत्र कहलाता है।

→ भौमजल (Ground Water):
धरातलीय सतह के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में पाया जाने वाला जल। जिसे कुओं तथा अन्य साधनों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

→ भौमजल स्तर (Ground water Level):
संस्तर की ऊपरी परतें जिसमें सभी छिद्रित स्थान या दरारें पूर्णतया जल से भरी होती हैं।

→ लैगून (Lagoons):
जब किसी सागरीय तट की ओर निकले दो शीर्ष भू-भागों को या खाड़ी के अग्र सिरों को कोई रोधिका इस तरह जोड़ती है कि तट तथा रोधिका के मध्य सागरीय जल का आवागमन लगभग बन्द हो जाता है तो ऐसी आकृति लैगून कहलाती है।

→ पश्च जल (Back Water):
जल को उसके मार्ग में बाँध बनाकर अवरुद्ध किया जाना तथा बाँध के पीछे के एकत्रित जल को पश्च जल कहते हैं।

→ दंतुरित (Indented):
कटा-फटा अथवा दाँतेदार।

→ सिंचाई (Irrigation):
वर्षा की कमी या अभाव के कारण शुष्क मौसम में खेतों को कृत्रिम ढंग से जल आपूर्ति की प्रक्रिया सिंचाई कहलाती है।

→ संखिया (Arsenic):
एक प्रकार का विष, जहर।

→ सतत पोषणीय विकास (Sustainable Development):
पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए किए जाने वाला विकास। इसमें वर्तमान विकास प्रक्रिया का निर्धारण भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

→ सागर (Sea):
सामान्यतः पृथ्वी तल पर खारे पानी के विस्तृत गर्तीय क्षेत्र को सागर या समुद्र कहते हैं।

→ महासागर (Ocean):
लवणीय जल की एक वृहत् संहति, जो भूमंडल की भू-संहतियों को घेरे हुए है। महासागर कहलाती है।

→ जलसंभर (Water Shed):
जलसंभर भूमि की एक प्राकृतिक भू-जलीय इकाई है जिसमें जल एकत्रित होता है और एक सरिता तंत्र द्वारा सामान्य स्थान से बह जाता है। भूमि की यह इकाई कुछ हेक्टेयरों का छोटा क्षेत्र हो सकता है अथवा गंगा नदी बेसिन के समान सैकड़ों वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भी हो सकता है।

→ जल संरक्षण (Water Conservation):
मनुष्य से प्रभावित अथवा निर्मित परितंत्रों में जल संतुलन बनाये रखने के समस्त प्रयास जल संरक्षण कहलाते हैं।

→ वर्षा जल संग्रहण (Rain Water Harvesting):
वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षा जल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों; जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल को भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

→ जल प्रदूषण (Water Pollution):
प्राकृतिक जल में अवांछित बाह्य पदार्थों के मिलने से उसकी गुणवत्ता में आयी कमी को जल प्रदूषण कहते हैं।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 6 जल-संसाधन

→ जलसंभर प्रबन्धन (Water Shed Management):
मुख्य रूप से धरातलीय और भूमिगत जलीय संसाधनों का कुशल प्रबन्धन। 

→ जलभृत (Aquifers):
एक संतृप्त भूवैज्ञानिक इकाई (उदाहरणार्थ बालू, बजरी, विभंजित चट्टान) जिनके द्वारा कुएँ की क्षमता के अनुसार जल उपलब्ध होता है।

→ पुनर्भरण (Recharge):
चट्टानों में पानी का रिसाव होने पर पानी भरना पुनर्भरण कहलाता है।

→ कुंड अथवा टाँका (Kund or Tanka):
वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बनाया गया भूमिगत टैंक कुंड या टांका कहलाता है।

→ अजैव संसाधन (Abiotic Resources):
वे संसाधन जिनमें एक निश्चित जीवन क्रिया का अभाव होता है अर्थात् निर्जीव वस्तुओं से बने होते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। जैसे—लोहा, ताँबा, चाँदी, कोयला व चट्टानें आदि।

→ जैव संसाधन (Biotic Resources):
वे संसाधन जिनका जैव मंडल में एक निश्चित जीवन चक्र होता है। जैव संसाधन कहलाते हैं। जैसे—मनुष्य, पशु, पक्षी, वनस्पति, वन्य-प्राणी, मछली आदि।

→ अनवीकरणीय संसाधन (Non Renewable Resources):
वे समस्त संसाधन जिनको एक बार उपयोग में लाने के पश्चात् पुनः विकसित किया जाना सम्भव नहीं है, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। ये संसाधन सीमित मात्रा में होते हैं। जैसे--कोयला, खनिज तेल आदि।

→ चक्रीय संसाधन (Cyclic Resources):
वे संसाधन जिनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है। चक्रीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे—लोहा, सोना, चाँदी आदि। इन धातुओं को बार-बार पिघलाकर विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है। जल भी एक चक्रीय संसाधन है।

Prasanna
Last Updated on Jan. 4, 2024, 9:19 a.m.
Published Jan. 3, 2024