These comprehensive RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि will give a brief overview of all the concepts.
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→ मानव द्वारा भूमि का उपयोग फसलें उगाने, इमारतें बनाने, चारागाह, सड़कें, पार्क, खेल के मैदान एवं विभिन्न प्रकार के मनोरंजन कार्यों आदि के लिए किया जाता है।
→ भूमि उपयोग वर्गीकरण
→ भारत में भू-उपयोग परिवर्तन
→ साझा संपत्ति संसाधन
→ भारत में कृषि भू-उपयोग
→ भारत में फसल ऋतुएँ
→ कृषि के प्रकार
→ खाद्यान्न फसल
→ भारत में कृषि विकास
→ कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा प्रौद्योगिकी का विकास
पिछले 50 वर्षों में भारत के कृषि उत्पादन तथा प्रौद्योगिकी के विकास में निम्नलिखित सुधार अनुभव किये गये
→ भारतीय कृषि की समस्याएँ
1960 के दशक में हरित क्रान्ति के पश्चात् भारतीय कृषि ने अभूतपूर्व उन्नति की। लेकिन इसके बावजूद भारतीय कृषि को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जो निम्नलिखित हैं.
→ संसाधन (Resources):
पृथ्वी पर विद्यमान समस्त उपयोगी तत्व जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक होते हैं, संसाधन कहलाते हैं।
→ अभिलेख (Records):
पिछले आँकड़ों का लिखित संग्रह अभिलेख कहलाता है।
→ कृषि (Agriculture):
मृदा को जोतने, फसलें उगाने तथा पशुओं के पालन-पोषण का विज्ञान व कला।
→ भूमि उपयोग (Land Use):
भूमि उपयोग भू प्रयोग की वह शोषण प्रक्रिया है जिसमें कृषि का व्यावहारिक उपयोग किसी निश्चित उद्देश्य से किया जाता है।
→ बंजर व व्यर्थ भूमि (Barren and Waste Lands):
वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती।
→ साझा सम्पत्ति संसाधन (Common Property Resources):
ग्राम पंचायतों या राज्यों के स्वामित्व वाली भूमि को साझा सम्पत्ति संसाधन कहा जाता है। ऐसे संसाधनों के उपयोग पर समाज के सभी सदस्यों का अधिकार होता है।
→ तरु फसल (Miscellaneous Tree Crops):
विविध किस्मों के वृक्षों की फसल।
→ कृषि योग्य व्यर्थ भूमि (Culturable Waste Land):
वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषि विहीन रहती है।
→ वर्तमान परती भूमि (Current Fallow):
वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय तक कृषि विहीन रहती है।
→ पुरातन परती भूमि (Fallow other Than Current Fallow):
वह कृषि योग्य भूमि जो एक वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्षों से कम समय तक कृषि विहीन रहती है।
→ निवल बोया गया क्षेत्र (Net Sown Area):
वह भूमि जिस पर फसलें उगायी व काटी जाती हैं।
→ फसल चक्र (Crop-Rotations):
एक ही खेत में फसलों को अदल-बदल कर बोने की पद्धति को फसल चक्र या शस्यावर्तन कहते हैं।
→ सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन (Community's Natural Resources):
इन्हें साझा सम्पत्ति संसाधन भी कहा जाता है। इन संसाधनों पर किसी विशेष व्यक्ति का सम्पत्ति अधिकार नहीं होता तथा समाज के सभी व्यक्तियों को इनके उपयोग का अधिकार होता है।
→ कृषि गहनता (Cropping Intensity):
एक निश्चित कृषि क्षेत्र पर एक फसल वर्ष में कितनी बार फसलों को उत्पादित किया जाता है। कृषि फसलों की यही आवृत्ति कृषि गहनता अथवा फसल गहनता कहलाती है।
→ रबी (Rabi):
अक्टूबर-नवम्बर में (शरद ऋतु में) प्रारम्भ होकर मार्च-अप्रैल में समाप्त होने वाली भारत की एक फसल ऋतु।
→ खरीफ (Kharif):
जून से प्रारम्भ होकर सितम्बर माह में समाप्त होने वाली भारत की एक फसल ऋतु ।
→ जायद (Zaid):
एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु, जो रबी की कटाई के पश्चात् प्रारम्भ होती है।
→ शुष्क भूमि कृषि (Dry Land Farming):
सामान्यतया 75 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होने वाली कृषि।
→ आर्द्र भूमि कृषि (Wet Land Farming):
फसलों की आवश्यकता से अधिक होने वाली वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि।
→ मृदा (Soil):
पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण से बनी होती है और पेड़-पौधों एवं फसलों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।
→ मृदा अपरदन (Soil Erosion):
मृदा के कटाव एवं बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।
→ औस, अमन व बोरो (Aus, Aman and Boro):
पश्चिमी बंगाल के किसान एक वर्ष में चावल की तीन फसलें उत्पादित करते हैं जिन्हें औस, अमन व बोरो कहा जाता है।
→ पिजन पी (Pigeon Pea):
अरहर को तुहर, लाल चना एवं पिजन पी. के नाम से जाना जाता है। यह एक दलहनी फसल है।
→ नरमा (Narma):
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में अमेरिकन कपास को नरमा कहा जाता है।
→ अरेबिका, रोबस्ता तथा लिबेरिका (Arabica, Robusta and Liberica):
भारत में उगायी जाने वाली कॉफी की तीन किस्में।
→ गहन कृषि (Intensive Farming):
कृषि, जिसमें अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रति इकाई क्षेत्र में पूँजी और श्रम की बड़ी मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
→ हरित क्रान्ति Green Revolution):
नवीन कृषि प्रौद्योगिकी तथा सिंचाई हेतु निश्चित जल आपूर्ति द्वारा खाद्यान्नों के उत्पादन में होने वाली अभूतपूर्व वृद्धि।
→ मानसून (Monsoon):
मानसून शब्द अरबी भाषा के 'मौसिम' शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौसम या ऋतु। मानसूनी पवनें वस्तुतः मौसमी हवाएँ हैं जो वर्ष में 6 माह स्थल की ओर से तथा शेष 6 माह जल की ओर से चलती हैं।
→ चकबंदी (Consolidation):
आसपास के कई खेतों को आपस में मिलाकर उनका एक चक (भाग) बनाना।
→ भू-निम्नीकरण (Land Degradation):
मानवीय क्रियाकलापों के कारण भूमि की गुणवत्ता का कम हो जाना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।
→ जलक्रांतता (Water Logging):
अधिक सिंचाई से भूमि का दलदली होना।
→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile):
पृथ्वी की ऊपरी परत से नीचे की ओर मृदा का ऊर्ध्वाधर खण्ड जिससे कि मृदा की परतों के अनुक्रम की जनक सामग्री तक पता चलता है।
→ सीमान्त भूमि (Marginal Land):
वह भूमि जो कठिनाई से जुताई के योग्य होती है। ऐसी भूमि में उपज भी बहुत कम होती है।
→ अवनालिका अपरदन (Gully Erosion):
तीव्र ढाल एवं भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में तीव्र गति से बहता हुआ जल जब मिट्टी में कटाव करके नालियाँ बना देता है तो उसे अवनालिका या नालीदार अपरदन कहते हैं।
→ वायु अपरदन (Wind Erosion):
वायु द्वारा मिट्टी का कटाव वायु अपरदन कहलाता है।
→ मृदा लवणता (Salinisation of Soils):
मृदा में घुलनशील लवणों जैसे नमक (सोडियम क्लोराइड तथा सल्फेट) का अवक्षेप मृदा लवणता कहलाता है।
→ सिल्ट (Silt):
मृदा के कणों से कुछ बड़े किन्तु बारीक रेत की कणों से बारीक खनिज कणों, जिनका व्यास 0.002 से 0.06 मिमी. होता है, से निर्मित मृत्तिका सिल्ट या गाद कहलाती है।