RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

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RBSE Class 12 Geography Chapter 5 Notes भूसंसाधन तथा कृषि

→ मानव द्वारा भूमि का उपयोग फसलें उगाने, इमारतें बनाने, चारागाह, सड़कें, पार्क, खेल के मैदान एवं विभिन्न प्रकार के मनोरंजन कार्यों आदि के लिए किया जाता है।

→ भूमि उपयोग वर्गीकरण

  • भारत में भूमि-उपयोग संबंधी अभिलेख भू राजस्व विभाग रखता है।
  • भारत में भू राजस्व विभाग द्वारा भूमि उपयोग को निम्नलिखित 9 वर्गों में रखा गया है
    • वनों के अधीन क्षेत्र
    • गैर कृषि-कार्यों में प्रयुक्त भूमि
    • बंजर एवं व्यर्थ-भूमि
    • स्थायी चारागाह क्षेत्र
    • विविध तरु-फसलों व उपवनों के अन्तर्गत क्षेत्र
    • कृषि योग्य व्यर्थ-भूमि
    • वर्तमान परती-भूमि
    • पुरातन परती-भूमि
    • निवल बोया क्षेत्र। 

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 

→ भारत में भू-उपयोग परिवर्तन

  • किसी भी क्षेत्र में आर्थिक क्रियाओं के परिवर्तित होने से भू-उपयोग में भी परिवर्तन होता है।
  • भूमि उपयोग को अर्थव्यवस्था में होने वाले निम्नलिखित परिवर्तन प्रभावित करते हैं
    • अर्थव्यवस्था का आकार
    • समय के साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन
    • कृषि-भूमि पर बढ़ता दबाव।
  • वर्ष 1950-51 तथा 2014-15 के दौरान भूमि उपयोग के पाँच संवर्गों-वन, गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि तथा वर्तमान परती भूमि, स्थायी चारागाह भूमि, निवल बोये गये क्षेत्र के अनुपात में वृद्धि हुई है। 
  • जबकि भूमि उपयोग के चार संवर्गों-बंजर व व्यर्थ भूमि, फसल वृक्षों के अधीन क्षेत्र, कृषि योग्य व्यर्थ-भूमि तथा वर्तमान परती के अतिरिक्त परती भूमि के क्षेत्रीय अनुपात में गिरावट अनुभव की गयी।
  • गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त क्षेत्र में वृद्धि दर अधिकतम है।
  • कृषि हेतु कृषि योग्य व्यर्थ भूमि के उपयोग के कारण निवल बोए गए क्षेत्र में वृद्धि एक वर्तमान घटना है।

→ साझा संपत्ति संसाधन

  • स्वामित्व के आधार पर भूसम्पत्ति को दो मुख्य वर्गों में बाँटा गया है
    • निजी सम्पत्ति एवं
    • साझा सम्पत्ति संसाधन ।
  • निजी भू-सम्पत्ति किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों की निजी सम्पत्ति होती है।
  • साझा सम्पत्ति पर राज्यों का अधिकार होता है तथा इसे सामुदायिक उपयोग के लिए रखा जाता है।
  • साझा सम्पत्ति पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग के लिए ईंधन, लकड़ी एवं साथ ही अन्य वन उत्पाद; जैसे—फल, रेशे, गिरी व औषधीय पौधे आदि उपलब्ध कराती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन छोटे कृषकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों तथा ग्रामीण महिलाओं के जीवनयापन के लिए साझा सम्पत्ति विशेष महत्व रखती है।
  • साझा संपत्ति संसाधनों को सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन भी कहते हैं।

→ भारत में कृषि भू-उपयोग 

  • भूमि उपयोग का महत्व प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न लोगों के लिए अधिक होता है। भूमि का प्रयोग कृषि में आधारभूत कारक है।
  • मिट्टी की गुणवत्ता कृषि का सबसे बड़ा नियंत्रक कारक है। ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक एवं सामाजिक स्वरूप मृदा से जुड़ा होता है।
  • सन् 1950-51 तथा 2014-15 के दौरान भारत के कुल रिपोर्टिंग क्षेत्र से कृषि योग्य भूमि के प्रतिशत में कमी आई है।
  • भारत जैसे देश में भूमि की कमी तथा श्रम की अधिकता है, ऐसी स्थिति में फसल-सघनता या कृषि-गहनता भूमि उपयोग हेतु तो वांछित है, साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी जैसी समस्या को कम करने के लिए भी आवश्यक है।

→ भारत में फसल ऋतुएँ 

  • भारत में निम्नलिखित तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ होती हैं
    • खरीफ-जून से सितम्बर तक की अवधि में उगायी जाने वाली फसलें; जैसे-चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा व अरहर।
    • रबी-अक्टूबर से मार्च तक की अवधि में उगायी जाने वाली फसलें; जैसे-गेहूँ, चना तथा सरसों।
    • जायद-अप्रैल से जून तक उगायी जाने वाली फसलें; जैसे-तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, सब्जियाँ तथा चारा फसलें।
  • भारत के दक्षिणी राज्यों में केवल एक फसल ही तीन ऋतुओं में उगायी जाती है।

 
→ कृषि के प्रकार

  • आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोतों के आधार पर भारतीय कृषि को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
    • सिंचित कृषि
    • वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि।
  • वर्षा पर निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में विभक्त किया गया है :
    (अ) शुष्क भूमि कृषि
    (ब) आर्द्र भूमि कृषि।
  • शुष्क भूमि कृषि में वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम होती है जबकि आर्द्र कृषि में जल की अधिकता पायी जाती है।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

→ खाद्यान्न फसल

  • अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को अनाज तथा दालों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • भारत विश्व का लगभग 11 प्रतिशत अनाज उत्पन्न करता है।
  • भारत में कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 54 प्रतिशत भाग पर अनाज फसलें बोयी जाती हैं। चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा तथा मक्का भारत में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख अनाज फसलें हैं।
  • देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 11 प्रतिशत भाग पर दालें बोयी जाती हैं। चना तथा अरहर भारत की प्रमुख दलहनी फसलें हैं।
  • देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर तिलहन फसलें बोई जाती हैं।
  • भारत की प्रमुख तिलहन फसलों में मूंगफली, तोरिया, सरसों, सोयाबीन तथा सूरजमुखी सम्मिलित हैं।
  • कपास और जूट भारत की प्रमुख रेशेदार फसलें हैं जो वस्त्र, थैला, बोरा व अन्य कई प्रकार के सामान बनाने के लिए रेशा प्रदान करती हैं।
  • गन्ना, चाय तथा कॉफी भारत की अन्य महत्त्वपूर्ण फसलें हैं जो भारत के विभिन्न भागों में बोयी जाती हैं।

→ भारत में कृषि विकास

  • कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। 
  • भारत ने आजादी के बाद अनेक समस्याओं के बावजूद कृषि में उल्लेखनीय विकास किया है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारतीय कृषि मुख्य रूप से जीविकोपार्जी थी जिसके अन्तर्गत किसान बड़ी मुश्किल से अपने परिवार के सदस्यों के लिए ही फसलें उगा सकते थे।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने खाद्यान्नों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई उपाय किये जो निम्नलिखित हैं
    • व्यापारिक फसलों के स्थान पर खाद्यान्नों की कृषि को प्रोत्साहन देना।
    • कृषि गहनता में वृद्धि करना।
    • कृषि योग्य बंजर एवं परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना।
  • 1950 के दशक के प्रारम्भ में देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिये गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारम्भ किये गये।
  • 1960 के दशक के मध्य में देश में खाद्यान्न उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने के उद्देश्य से हरित-क्रांति का सूत्रपात किया गया जिसमें देश के सिंचाई वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद के साथ उच्च उत्पादकता करने वाले बीजों की किस्मों (HYV) का प्रयोग कर अधिकाधिक कृषि पर बल दिया गया।
  • 1980 के दशक में भारतीय योजना आयोग ने देश के वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि समस्याओं पर ध्यान दिया जबकि 1990 के दशक की उदारीकरण नीति तथा उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने भारतीय कृषि के विकास को भी प्रभावित किया।

→ कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा प्रौद्योगिकी का विकास
पिछले 50 वर्षों में भारत के कृषि उत्पादन तथा प्रौद्योगिकी के विकास में निम्नलिखित सुधार अनुभव किये गये

  • भारत की अधिकांश कृषि फसलों, सब्जियों तथा दूध के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • पिछले 40 वर्षों में रासायनिक उर्वरकों की खपत में 15 गुने से अधिक की वृद्धि हुई।

→ भारतीय कृषि की समस्याएँ
1960 के दशक में हरित क्रान्ति के पश्चात् भारतीय कृषि ने अभूतपूर्व उन्नति की। लेकिन इसके बावजूद भारतीय कृषि को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जो निम्नलिखित हैं.

  • अनियमित मानसून पर निर्भरता
  • कृषि फसलों की निम्न उत्पादकता
  • वित्तीय संसाधनों की बाध्यताएँ तथा ऋणग्रस्तता 
  • भूमि सुधारों में कमी
  • खेतों का छोटा आकार तथा विखण्डित जोत
  • वाणिज्यीकरण का अभाव
  • व्यापक अल्प बेरोजगारी
  • कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

→ संसाधन (Resources):
पृथ्वी पर विद्यमान समस्त उपयोगी तत्व जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक होते हैं, संसाधन कहलाते हैं।

→ अभिलेख (Records):
पिछले आँकड़ों का लिखित संग्रह अभिलेख कहलाता है। 

→ कृषि (Agriculture):
मृदा को जोतने, फसलें उगाने तथा पशुओं के पालन-पोषण का विज्ञान व कला।

→ भूमि उपयोग (Land Use):
भूमि उपयोग भू प्रयोग की वह शोषण प्रक्रिया है जिसमें कृषि का व्यावहारिक उपयोग किसी निश्चित उद्देश्य से किया जाता है।

→ बंजर व व्यर्थ भूमि (Barren and Waste Lands):
वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती।

→ साझा सम्पत्ति संसाधन (Common Property Resources):
ग्राम पंचायतों या राज्यों के स्वामित्व वाली भूमि को साझा सम्पत्ति संसाधन कहा जाता है। ऐसे संसाधनों के उपयोग पर समाज के सभी सदस्यों का अधिकार होता है।

→ तरु फसल (Miscellaneous Tree Crops):
विविध किस्मों के वृक्षों की फसल।

→ कृषि योग्य व्यर्थ भूमि (Culturable Waste Land):
वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषि विहीन रहती है।

→ वर्तमान परती भूमि (Current Fallow):
वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय तक कृषि विहीन रहती है।

→ पुरातन परती भूमि (Fallow other Than Current Fallow):
वह कृषि योग्य भूमि जो एक वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्षों से कम समय तक कृषि विहीन रहती है।

→ निवल बोया गया क्षेत्र (Net Sown Area):
वह भूमि जिस पर फसलें उगायी व काटी जाती हैं।

→ फसल चक्र (Crop-Rotations):
एक ही खेत में फसलों को अदल-बदल कर बोने की पद्धति को फसल चक्र या शस्यावर्तन कहते हैं।

→ सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन (Community's Natural Resources):
इन्हें साझा सम्पत्ति संसाधन भी कहा जाता है। इन संसाधनों पर किसी विशेष व्यक्ति का सम्पत्ति अधिकार नहीं होता तथा समाज के सभी व्यक्तियों को इनके उपयोग का अधिकार होता है।

→ कृषि गहनता (Cropping Intensity):
एक निश्चित कृषि क्षेत्र पर एक फसल वर्ष में कितनी बार फसलों को उत्पादित किया जाता है। कृषि फसलों की यही आवृत्ति कृषि गहनता अथवा फसल गहनता कहलाती है।
RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 1

→ रबी (Rabi):
अक्टूबर-नवम्बर में (शरद ऋतु में) प्रारम्भ होकर मार्च-अप्रैल में समाप्त होने वाली भारत की एक फसल ऋतु।

→ खरीफ (Kharif):
जून से प्रारम्भ होकर सितम्बर माह में समाप्त होने वाली भारत की एक फसल ऋतु ।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

→ जायद (Zaid):
एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु, जो रबी की कटाई के पश्चात् प्रारम्भ होती है।

→ शुष्क भूमि कृषि (Dry Land Farming):
सामान्यतया 75 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होने वाली कृषि।

→ आर्द्र भूमि कृषि (Wet Land Farming):
फसलों की आवश्यकता से अधिक होने वाली वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि।

→ मृदा (Soil):
पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण से बनी होती है और पेड़-पौधों एवं फसलों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion):
मृदा के कटाव एवं बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

→ औस, अमन व बोरो (Aus, Aman and Boro):
पश्चिमी बंगाल के किसान एक वर्ष में चावल की तीन फसलें उत्पादित करते हैं जिन्हें औस, अमन व बोरो कहा जाता है।

→ पिजन पी (Pigeon Pea):
अरहर को तुहर, लाल चना एवं पिजन पी. के नाम से जाना जाता है। यह एक दलहनी फसल है।

→ नरमा (Narma):
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में अमेरिकन कपास को नरमा कहा जाता है।

→ अरेबिका, रोबस्ता तथा लिबेरिका (Arabica, Robusta and Liberica):
भारत में उगायी जाने वाली कॉफी की तीन किस्में।

→ गहन कृषि (Intensive Farming):
कृषि, जिसमें अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रति इकाई क्षेत्र में पूँजी और श्रम की बड़ी मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

→ हरित क्रान्ति Green Revolution):
नवीन कृषि प्रौद्योगिकी तथा सिंचाई हेतु निश्चित जल आपूर्ति द्वारा खाद्यान्नों के उत्पादन में होने वाली अभूतपूर्व वृद्धि।

→ मानसून (Monsoon):
मानसून शब्द अरबी भाषा के 'मौसिम' शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौसम या ऋतु। मानसूनी पवनें वस्तुतः मौसमी हवाएँ हैं जो वर्ष में 6 माह स्थल की ओर से तथा शेष 6 माह जल की ओर से चलती हैं।

→ चकबंदी (Consolidation):
आसपास के कई खेतों को आपस में मिलाकर उनका एक चक (भाग) बनाना।

→ भू-निम्नीकरण (Land Degradation):
मानवीय क्रियाकलापों के कारण भूमि की गुणवत्ता का कम हो जाना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।

→ जलक्रांतता (Water Logging):
अधिक सिंचाई से भूमि का दलदली होना।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile):
पृथ्वी की ऊपरी परत से नीचे की ओर मृदा का ऊर्ध्वाधर खण्ड जिससे कि मृदा की परतों के अनुक्रम की जनक सामग्री तक पता चलता है।

→ सीमान्त भूमि (Marginal Land):
वह भूमि जो कठिनाई से जुताई के योग्य होती है। ऐसी भूमि में उपज भी बहुत कम होती है।

→ अवनालिका अपरदन (Gully Erosion):
तीव्र ढाल एवं भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में तीव्र गति से बहता हुआ जल जब मिट्टी में कटाव करके नालियाँ बना देता है तो उसे अवनालिका या नालीदार अपरदन कहते हैं।

→ वायु अपरदन (Wind Erosion):
वायु द्वारा मिट्टी का कटाव वायु अपरदन कहलाता है।

→ मृदा लवणता (Salinisation of Soils):
मृदा में घुलनशील लवणों जैसे नमक (सोडियम क्लोराइड तथा सल्फेट) का अवक्षेप मृदा लवणता कहलाता है।

→ सिल्ट (Silt):
मृदा के कणों से कुछ बड़े किन्तु बारीक रेत की कणों से बारीक खनिज कणों, जिनका व्यास 0.002 से 0.06 मिमी. होता है, से निर्मित मृत्तिका सिल्ट या गाद कहलाती है।

Prasanna
Last Updated on Jan. 4, 2024, 9:19 a.m.
Published Jan. 3, 2024