RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

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RBSE Class 12 Geography Chapter 5 Notes प्राथमिक क्रियाएँ

→ आर्थिक क्रियाएँ 
मानव के वे समस्त क्रियाकलाप जिनसे आय की प्राप्ति होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। 
आर्थिक क्रियाओं को मुख्य रूप से पाँच वर्गों में विभाजित किया जाता है -प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक, चतुर्थक एवं पंचमक क्रियाएँ।

→ प्राथमिक क्रियाएँ:
मानव की प्राथमिक क्रियाएँ सीधे पर्यावरण, से जुड़ी क्रियाएँ हैं जिनमें आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, खनन, कृषि, कुक्कुट पालन, वस्तु संग्रहण एवं शहद एकत्रीकरण जैसे मानवीय क्रियाकलाप सम्मिलित हैं।

→ आखेट एवं भोजन संग्रह
आखेट तथा भोजन संग्रह मानव द्वारा की जाने वाली प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ हैं।

  • वर्तमान में आखेट तथा भोजन संग्रह जैसी आर्थिक क्रियाएँ प्रमुख रूप से आदिमकालीन समाज द्वारा कठोर जलवायुविक व प्रतिकूल धरातलीय दशाओं वाले क्षेत्रों में की जा रही हैं।
  • अपने जीवनयापन के लिए की जाने वाली इन आर्थिक क्रियाओं में प्रति व्यक्ति उत्पादकता कम होती है।
  • वर्तमान में भोजन संग्रह का कार्य उच्च अक्षांशीय तथा निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों में किया जा रहा है। यद्यपि इनमें से कुछ
  • भागों में भोजन संग्रह का कार्य उच्च तकनीक की सहायता से व्यापारिक स्तर पर भी किया जा रहा है।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 

→ पशचारण
भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान समय में पशुचारण व्यवसाय के दो प्रमुख वर्ग हैं
(i) चलवासी पशुचारण (निर्वाहन)

  • चलवासी पशुचारण के व्यवसाय में मानव अपने पालतू पशुओं के साथ पानी व चारे की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित होता रहता है।
  • चलवासी पशुचारण का क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तरी अफ्रीका के अटलांटिक तट से लेकर अरब प्रायद्वीप व मंगोलिया से होता हुआ मध्य चीन, यूरोप व एशिया के टुण्ड्रा प्रदेश व दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका तथा मेडागास्कर द्वीप पर फैला है। भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ जनजातियों के समूह आज भी चलवासी पशुचारण व्यवसाय के कार्य में संलग्न हैं।

(ii) वाणिज्य पशुधन पालन (व्यापारिक):

  • वाणिज्य पशुधन पालन का कार्य व्यवस्थित रूप में विशाल फार्मों पर पर्याप्त पूँजी व्यय कर के किया जाता है।
  • वाणिज्य पशुधन पालन में पशुओं की संख्या चारागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है।
  • वाणिज्य पशुधन पालन व्यवसाय में केवल एक ही प्रकार के पशुओं का पालन किया जाता है तथा पशुओं से प्राप्त विभिन्न उत्पादों को आधुनिक तकनीकों के माध्यम से विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है।
  • न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, उरुग्वे तथा संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों में वाणिज्य पशुधन पालन व्यवसाय प्रमुख रूप से किया जाता है। कृषि भूपर्पटीय सतह पर की जाने वाली फसलोत्पादन, पुष्पोत्पादन, पशुपालन एवं फलोत्पादन की प्रक्रिया कृषि कहलाती है जो एक मानवीय कला है।
  • विश्व में पायी जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं।
  • इसी प्रभाव के कारण वर्तमान में कृषि की विभिन्न प्रणालियाँ प्रचलन में हैं
    • निर्वाह कृषि
    • रोपण कृषि
    • विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
    • मिश्रित कृषि
    • डेरी कृषि
    • भूमध्य सागरीय कृषि
    • बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि
    • सहकारी कृषि
    • सामूहिक कृषि।

(i) निर्वाह कृषि:
इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले लोग स्थानीय उत्पादों का सम्पूर्ण उपयोग करते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है
(अ) आदिम कालीन निर्वाह कृषि:
इसे स्थानान्तरित कृषि या कर्त्तन एवं दहन कृषि भी कहा जाता है। वन क्षेत्रों में की जाने वाली इस कृषि में किसी भू-भाग में उस अवधि तक कृषि की जाती है जब तक उसमें उर्वरा शक्ति बनी रहती है। मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त होने पर कृषक नए क्षेत्र में वनों को जलाकर उस पर कृषि कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है।

(ब) गहन निर्वाह कृषि:
यह कृषि मानसूनी एशिया के सघन बसे देशों में निम्न दो रूपों में की जाती है
(क) चावल प्रधान गहन जीवन निर्वाह कृषि
(ख) चावल रहित गहन जीवन निर्वाह कृषि।

(ii) रोपण कृषि:
यह कृषि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कुछ फसलों का पौध रोपण कर अधिक पूँजी, उच्च तकनीक व वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से व्यापारिक स्तर पर की जाती है।

(iii) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि:
इस प्रकार की कृषि विश्व के मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों के आंतरिक अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में वृहद् आकार के कृषि फार्मों पर आधुनिक यंत्रों के माध्यम से की जाती है।

(iv) मिश्रित कृषि:
विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में मध्यम आकार के खेतों में कृषि फसलों की आधुनिक पद्धति से की जाने वाली कृषि जिसमें पशुपालन का कार्य साथ-साथ किया जाता है।

(v) डेरी कृषि:
पर्याप्त पूँजी, आधुनिक यंत्र, गहन श्रम तथा आधुनिक पशु स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता से दुधारू पशुओं से व्यावसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करने का कार्य डेरी कृषि के अंतर्गत शामिल किया जाता है।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

(vi) भूमध्य सागरीय कृषि:
विश्व के भूमध्य सागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में खट्टे रसदार फलों तथा सब्जियों की कृषि भूमध्य सागरीय कृषि के अंतर्गत की जाती है।

(vii) बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि:
इस प्रकार की कृषि में अधिक आर्थिक लाभ देने वाली फसलों, जैसे-सब्जियों, फलों व पुष्पों की कृषि नगरीय क्षेत्रों की आपूर्ति के उद्देश्य से की जाती है। इस कृषि में गहन श्रम एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

(viii) सहकारी कृषि:
जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपनी स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य किए जाते हैं तो उसे सहकारी कृषि कहा जाता है। डेनमार्क में इस प्रकार की कृषि को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है।

(ix) सामूहिक कृषि:
इस प्रकार की कृषि में कृषि उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। रूस में इस कृषि को कोलखहोज अथवा कोलखोज कहा जाता है। .

→ खनन

  • व्यापारिक दृष्टि से पृथ्वी के बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति से जुड़ी आर्थिक क्रिया को खनन कहा जाता है। उपलब्धता की
  • दशा एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन निम्नलिखित दो प्रकार का होता है
    • धरातलीय या विवृत खनन
    • भूमिगत या कूपकी खनन। 
  • अधिक श्रम लागत आने के कारण विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं। विकासशील देश अपनी विशाल श्रम शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के जीवन-स्तर को उच्च बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में खनन कार्य कर रहे हैं।

→ आर्थिक क्रियाएँ (Economic Activities):
वे मानवीय क्रियाकलाप जिनसे आय की प्राप्ति होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।

→ प्राथमिक क्रियाएँ (Primary Activities):
प्रकृति द्वारा प्रदत्त दशाओं में मानव के द्वारा की जाने वाली कृषि, मत्स्यन, वानिकी, आखेट, खनन एवं भोजन संग्रहण अथवा उन्हें उपलब्ध कराने से संबंधित क्रियाएँ।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

→ प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources):
खनिज निक्षेप, मिट्टी की उर्वरता, इमारती लकड़ी, ईंधन, जल, संभाव्य जल शक्ति, मत्स्य और वन्य जीवन जैसे प्रकृति प्रदत्त संसाधन।

→ पर्यावरण (Environment):
हमारे चारों ओर फैले हुए आवरण को ही पर्यावरण कहा जाता हैं जिसमें जैविक, अजैविक व सांस्कृतिक घटक समाहित होते हैं।

→ लाल कॉलर श्रमिक (Red Collar Workers):
प्राथमिक क्रियाकलाप करने वाले लोग। इनका कार्यक्षेत्र घर से बाहर होने के कारण ये लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।

→ चिकल (Chicle):
च्युंगम को चूसने के पश्चात् शेष बचे भाग को चिकल कहते हैं।

→ पशुचारणता (Pastoralism):
एक अर्थव्यवस्था जो केवल पशुओं पर निर्भर करती है।

→ ऋतु प्रवास (Transhumance):
ऋतुओं के अनुसार पालतू पशुओं के साथ पशुपालकों के स्थान परिवर्तन को ऋतु प्रवास कहा जाता है।

→ चलवासी पशुचारण (Nomadic Pastoralism):
लोगों के जीवन का ढंग जिसमें उन्हें अपने पशुओं तथा अपनी अर्थव्यवस्था के आधार के लिए चरागाहों की तलाश में बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने निवास को स्थानांतरित करना पड़ता है।

→ वाणिज्यिक पशुधन पालन (Commercial Livestock Rearing):
एक विशिष्ट कृषि पद्धति जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं।

→ रैंच (Ranch):
पशुओं के लिए निर्मित बड़े-बड़े फार्म, जिनमें बाड़ लगी होती है, जहाँ वाणिज्यिक स्तर पर पशुओं का प्रजनन और पालन किया जाता है। ये मुख्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका में पाए जाते हैं।

→ कृषि (Agriculture):
मृदा को जोतने, फसलें उगाने और पशुओं के पालन-पोषण का विज्ञान एवं कला।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

→ निर्वाह कृषि (Subsistence Agriculture):
कृषि का वह प्रकार जिसमें कृषि क्षेत्र में रहने वाले लोग स्थानीय उत्पादों का सम्पूर्ण अथवा अधिकांश का अपने घर पर ही उपयोग करते हैं।

→ स्थानांतरी कृषि (Shifting Cultivation):
खेती की ऐसी विधि जिसमें कुछ वर्षों की अवधि तक एक भू-खंड पर खेती की जाती है तथा जब तक मिट्टी की उर्वरता आंशिक रूप से समाप्त नहीं हो जाती अथवा उस पर खरपतवार नहीं उग जाते। इसके पश्चात् भूमि को प्राकृतिक वनस्पति के लिए छोड़ दिया जाता है, जबकि कृषि कहीं और की जाती है। समय के अंतराल पर जब प्राकृतिक वनस्पति उर्वरता की पुनर्स्थापना कर देती है तो मूल-भू-खंड पर पुनः कृषि की जाती है।

→ अमिंग (Jhuming):
भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में की जाने वाली स्थानांतरी कृषि को झूमिंग कहा जाता है।

→ गहन कृषि (Intensive Agriculture):
कृषि, जिसमें अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रति इकाई क्षेत्र में पूँजी और श्रम की बड़ी मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

→ रोपण कृषि (Plantation Agriculture):
फैक्ट्री उत्पादन से मिलती-जुलती बड़े पैमाने की एकल फसली कृषि। यह प्रायः बड़ी संपदा, भारी पूँजी निवेश और फसलों को उगाने की आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीक और व्यापार से सम्पन्न होती है।

→ फेजेंडा (Fazendas):
ब्राजील में कहवा के बागानों को फेजेंडा कहा जाता है।

→ मिश्रित कृषि (Mixed Farming):
कृषि का एक प्रकार जिसमें एक साथ कई फसलों को उगाया और पशुओं को पाला जाता है। ये दोनों क्रियाएँ अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

→ शस्यावर्तन (Crop-rotation):
मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए एक ही खेत पर भिन्न-भिन्न मौसमों में विभिन्न फसलों को बदल-बदल कर उगाना। इसे फसल चक्रण भी कहते हैं।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

→ डेरी कृषि (Dairy Farming):
कृषि का वह प्रकार जिसमें मुख्य ध्यान दुधारू पशुओं के प्रजनन और पालन-पोषण पर दिया जाता है। कृषि फसलें मुख्यतः इन पशुओं को खिलाने के लिए उगाई जाती हैं।

→ अंतर फसली कृषि (Inter-cropping):
एक ही मौसम में एक ही खेत पर दो या अधिक फसलों को साथ-साथ उगाने की प्रक्रिया।

→ रासायनिक उर्वरक (Chemical Fertilisers):
पौधों के जीवन के लिए आवश्यक फास्फोरस, पोटैशियम और नाइट्रोजन जैसे रासायनिक तत्त्वों से युक्त प्राकृतिक अथवा कृत्रिम मूल के पदार्थ। इन्हें मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए डाला जाता है।

→ ट्रक कृषि (Truck Farming):
नगरीय केंद्रों के चारों ओर लोगों की दैनिक माँगों को पूरा करने के लिए सब्जियों का उगाना ट्रक कृषि कहलाता है। यह बाजार और फार्म के बीच एक ट्रक द्वारा एक रात में तय की गई दूरी द्वारा नियंत्रित होता है।

→ सहकारी कृषि (Co-operative Farming):
कृषकों के एक समूह द्वारा स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से कृषि कार्य करना।

→ सामूहिक कृषि (Collective Farming):
कृषकों के एक समूह द्वारा अपने समस्त संसाधनों (जैसे-भूमि, पशु धन एवं श्रम) को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से करना।

→ बागवानी (उद्यान कृषि) (Horticulture):
खेतों में फसलें उगाने की तुलना में, प्रायः छोटे-छोटे भू-खंडों पर सब्जियों और फलों का उत्पादन करना।

→ खनन (Mining):
पृथ्वी से वाणिज्यिक दृष्टि से बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति से जुड़ी एक आर्थिक क्रिया।

→ विवृत खनन (Surface Mining):
एक स्थान, जहाँ मिट्टी और उसके बाहरी आवरण को पहले हटाया जाता है और खनन करके खनिज अथवा अयस्क को प्राप्त किया जाता है। एक प्रकार से यह बड़े पैमाने पर खनन है। खनन की यह विधि विवृत खनन या धरातलीय खनन कहलाती है।

→ कूपकी खनन (Underground Mining):
विभिन्न खनिजों को खोदने के लिए पृथ्वी में गहरा भूमिगत छिद्र करना। ऐसी खानों में ऊर्ध्वाधर और तिर्यक शैफ्ट और विभिन्न स्तरों पर क्षैतिज सुरंगें होती हैं। इसे भूमिगत खनन भी कहा जाता है।

RBSE Class 12 Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

→ खनिज (Mineral):
पृथ्वी की भू-पर्पटी में पाया जाने वाला पदार्थ, जिनका अधिकांश चट्टानों के विपरीत अपना एक रासायनिक संयोजन होता है।

→ खनिज अयस्क (Mineral Ores):
अपनी कच्ची अवस्था में पृथ्वी से प्राप्त धातु या अधातु पदार्थ।

Prasanna
Last Updated on Jan. 3, 2024, 9:23 a.m.
Published Jan. 2, 2024