These comprehensive RBSE Class 11 Sociology Notes Chapter 5 समाजशास्त्र-अनुसन्धान पद्धतियाँ will give a brief overview of all the concepts.
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→ परिचय-समाजशास्त्रियों को समाज के अन्य लोगों से अलग बनाती हैं-उनकी वे पद्धतियाँ या कार्यविधियाँ जिनके द्वारा ज्ञान एकत्रित होता है। समाजशास्त्र में पद्धति विशेष महत्त्व दिया गया है। . समाजशास्त्र की लोगों के जीवन अनुभवों में गहरी रुचि है। समाजशास्त्री सिर्फ प्रेक्षणीय लोगों का प्रेक्षण ही नहीं करते बल्कि इसमें शामिल लोगों की भावनाओं तथा विचारों को भी जानने का प्रयत्न करते हैं। वे विश्व को उनकी आँखों से देखना चाहते हैं। समाजशास्त्र में अध्ययन पद्धति को विशेष महत्त्व इस कारण दिया जाता है क्योंकि इसमें अध्ययन में शामिल लोगों तथा अध्ययन में नहीं शामिल लोगों, दोनों के विचारों को समझने की आवश्यकता होती है।
→ कुछ पद्धतिशास्त्रीय मुद्दे 'पद्धतिशास्त्र' शब्द का आशय अध्ययन की पद्धति से है। इसमें उन तरीकों को सम्मिलित किया जाता है जिनसे समाजशास्त्री वह वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है।
→ समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता तथा व्यक्तिपरकता
सभी विज्ञानों से वस्तुनिष्ठ होने' व केवल तथ्यों पर आधारित पूर्वाग्रह रहित ज्ञान उपलब्ध कराने की आशा की जाती है, परन्तु प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में सामाजिक विज्ञानों में ऐसा करना बहुत कठिन है। इसका कारण यह है कि समाज-विज्ञानी उस संसार का अध्ययन करते हैं जिसमें वे स्वयं रहते हैं—जो मानव सम्बन्धों की सामाजिक दुनिया है। इससे समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता की विशेष समस्या उत्पन्न होती है।
समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता के सम्बन्ध में निम्नलिखित समस्यायें उत्पन्न होती हैं
इन कठिनाइयों के कारण समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता एक बहुत कठिन तथा जटिल वस्तु बन जाती है।
लेकिन वर्तमान में समाजशास्त्री परम्परागत 'वस्तुनिष्ठता' की धारणा को भ्रामक मान रहे हैं। वे अब वस्तुनिष्ठता को पहले से प्राप्त अंतिम परिणाम के स्थान पर लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतर चलती रहने वाली प्रक्रिया के रूप में सोचने पर बल दे रहे हैं।
→ बहुविधि पद्धतियाँ तथा पद्धतियों का चयन
समाजशास्त्र में अनेक सच्चाइयाँ तथा दृष्टिकोण होने के साथ-साथ बहुविध (अनेक) पद्धतियाँ भी हैं। प्रत्येक पद्धति का अपना महत्त्व तथा अपनी सीमाएँ हैं। इसलिए इस बात पर अधिक महत्त्व दिया जाता है कि पूछे जा रहे प्रश्न का उत्तर देने के लिए कौनसी पद्धति का चयन सबसे उपयुक्त रहेगा।
→ पद्धतियों का वर्गीकरण
समाजशास्त्रियों द्वारा सामान्यतया प्रयोग की जाने वाली विभिन्न पद्धतियों का वर्गीकरण या श्रेणीकरण निम्न आधारों पर किया जाता है
समष्टि पद्धतियाँ वे हैं जो बड़े पैमाने पर अधिक शोधकर्ताओं के द्वारा अध्ययन करती हैं; जैसे—सर्वेक्षण अनुसंधान आदि।
विभिन्न पद्धतियों को अनुपूरक की तरह प्रयोग करना संभव है।
पद्धति का चयन-सामान्यतः पद्धति का चयन अनुसंधान के प्रश्नों की प्रकृति, अनुसंधानकर्ताओं की प्राथमिकताओं तथा समय और/या संसाधनों के प्रतिबन्धों के आधार पर किया जाता है। सामाजिक विज्ञान में वर्तमान प्रवृत्ति अनुकूल बिन्दुओं से समान अनुसंधान समस्या पर बहुविधि पद्धतियों का प्रयोग करने की है।
→ सहभागी प्रेक्षण (अवलोकन)
समाजशास्त्र में सहभागी प्रेक्षण का आशय उस विशेष पद्धति से है जिसके द्वारा समाजशास्त्री अध्ययन किये जाने वाले समाज, संस्कृति तथा लोगों के बारे में सीखता है।
(अ) सामाजिक मानव विज्ञान में क्षेत्रीय कार्य
→ समुदाय में घुल-मिलकर वह समुदाय की भाषा सीखता है, उसके जीवन का प्रेक्षण करता है। वह त्यौहारों, धार्मिक तथा अन्य सामूहिक घटनाओं, आजीविका के साधनों, पारिवारिक सम्बन्धों, बच्चों के पालन-पोषण के साधनों पर जानने का प्रयत्न करता है। उसे एक बच्चे की तरह हमेशा क्यों, क्या तथा अन्य प्रश्न पूछते रहना चाहिए। वह अधिकांश सूचना हेतु सूचनादाताओं पर निर्भर होता है। इसके अतिरिक्त मानव-विज्ञानी क्षेत्रीय कार्य के दौरान विस्तत क्षेत्रीय नोट लेता है, जो महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त एक दैनिक डायरी भी लिखी जाती है।
इस प्रकार क्षेत्रीय कार्य की प्रक्रिया में समुदाय की
→ ब्रोनिस्लाव मैलिनोवस्की ने क्षेत्रीय कार्य को सामाजिक मानव विज्ञान की एक विशेष पद्धति के रूप में स्थापित किया। मैलिनोवस्की ने दक्षिणी प्रशांत के ट्रोब्रियांड द्वीपों में डेढ़ वर्ष व्यतीत किया तथा वहाँ रहकर वहाँ के निवासियों के साथ गहन अन्तःक्रिया कर उनकी भाषा तथा संस्कृति को सीखा। अपने अवलोकनों का विस्तृत रिकॉर्ड रखा तथा दैनिक डायरी बनायी। इसके आधार पर इन्होंने ट्रोबियांड संस्कृति पर किताबें लिखीं जो शीघ्र लोकप्रिय हुईं। उन्होंने यह स्थापित | किया कि अभ्यासकर्ता को क्षेत्र में रहकर क्षेत्रीय भाषा सीखकर, वहाँ के लोगों से गहन अन्तःक्रिया कर ही उस क्षेत्र की संस्कृति के बारे में सही तथा प्रामाणिक सूचना प्राप्त की जा सकती है।
→ क्षेत्रीय कार्य के अन्य कुछ प्रसिद्ध उदाहरण हैं
(ब) समाजशास्त्र में क्षेत्रीय कार्य-समाजशास्त्री जब क्षेत्रीय कार्य करते हैं तो सामान्यतः समान तकनीकों (सामाजिक मानव विज्ञान के क्षेत्रीय कार्य की तकनीकों) का उपयोग करते हैं। यथा
→ ग्रामीण अध्ययन-भारतीय समाजशास्त्र में ग्रामीण अध्ययनों में क्षेत्रीय कार्य पद्धतियों का प्रयोग किया गया। गाँव एक 'सीमित समुदाय' था। समाजशास्त्री गाँव में लगभग प्रत्येक को जान सकता था तथा वहाँ के जीवन का पता लगा सकता था। गाँव पर किए गए अध्ययन इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि उन्होंने भारतीय समाजशास्त्र को एक ऐसा विषय उपलब्ध कराया जो स्वतंत्र भारत में अत्यन्त रुचिकर था। सरकार की रुचि विकासशील ग्रामीण भारत में थी। गाँव ऐसी जगह थी जहाँ अधकांश भारतीय रहते थे। ग्रामीण समाज का अध्ययन करने के लिए क्षेत्रीय कार्य पद्धतियाँ अत्यन्त अनुकूल थीं।
→ गाँवों में अध्ययन करने की विभिन्न शैलियाँ-सन् 1950 तथा 1960 के दशकों में गाँवों का अध्ययन करना भारतीय समाजशास्त्र का मुख्य पेशा बन गया। 1950 के अध्ययनों की एक शैली थी
(अ) परम्परागत सामाजिक मानवविज्ञानी शैली, सीमित समुदाय आदि। प्रमुख क्षेत्रीय कार्य थे
(ब) ग्रामीण अध्ययन की दूसरी शैली थी—ग्रामीण समाज तथा संस्कृति का बहु-विषयक अध्ययन। यह शैली थी–सन् 1950 में किए गए कोरनेल विलेज स्टडी प्रोजेक्ट। इसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनेक गाँवों का अध्ययन किया गया।
सहभागी प्रेक्षण के गुण (महत्त्व)
→ सहभागी प्रेक्षण की सीमाएँ
→ सर्वेक्षण
सर्वेक्षण क्षेत्रीय कार्य के लिए अब तक ज्ञात सबसे अच्छी समाजशास्त्रीय पद्धति है। आज इसका समाजशास्त्र में विश्वभर में सभी संदर्भो में प्रयोग किया जा रहा है। चुनाव परिणामों का पूर्वानुमान लगाना, उत्पादों को बेचने के लिए विपणन नीतियाँ बनाना आदि इसके प्रमुख विषय हैं।
→ सर्वेक्षण पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ
→ प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया व्यापक रूप में प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया दो मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित है
(1) जनसंख्या में सभी महत्त्वपूर्ण उपसमूहों को पहचाना जाये तथा प्रतिदर्श में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाये। जनसंख्या में स्पष्ट उप-श्रेणियाँ होती हैं । जैसे—शहरी जनसंख्या, ग्रामीण जनसंख्या, गाँवों के आकार में अन्तर, एक गाँव की जनसंख्या का वर्ग, जाति, लिंग, आयु, धर्म आदि के आधार पर बंटा होना आदि। . प्रतिदर्श का प्रतिनिधित्व दी गई जनसंख्या के सभी सम्बद्ध स्तरों (श्रेणियों) की विशेषताओं को दर्शाने की सक्षमता पर निर्भर है। किस प्रकार के प्रतिदर्शों को प्रासंगिक माना जाए यह अनुसंधान के अध्ययन के विशिष्ट उद्देश्यों पर निर्भर है।
(2) प्रतिदर्श चयन का दूसरा सिद्धान्त है--वास्तविक इकाई का चयन पूर्णतया अवसर आधारित होना चाहिए। इसे यादृच्छीकरण कहा जाता है। यह स्वयं संभाविता की संकल्पना पर आधारित है। अवसर या संभाविता सभी इकाइयों के लिए एक समान होती है। इस प्रकार के अवसरों को यादृच्छिक अवसर कहा जाता है।
हम एक प्रतिदर्श को चुनने में समान अवसर के विचार का उपयोग करते हैं। अतः प्रतिदर्श में चयन होना लाटरी जीतने की तरह किस्मत की बात है। सार यह है कि जनसंख्या से सम्बन्धित स्तरों का पता लगाने के बाद प्रतिदर्श घरों या उत्तरदाताओं का वास्तविक चयन पूर्णतया संयोग के आधार पर होना चाहिए। इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, जैसे
वास्तविक अनुसंधान अध्ययनों में सामान्यतः अधिक जटिल रूपरेखा होती है जिसमें प्रतिदर्श चयन प्रक्रिया अनेक चरणों में विभाजित होती है तथा इसमें अनेक स्तर शामिल होते हैं। लेकिन मूल सिद्धान्त समान रहता है—एक लघु प्रतिदर्श का सावधानीपूर्वक चयन किया जाए ताकि यह पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर सके। - प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रतिदर्श के निर्धारण के बाद प्रतिदर्श का अध्ययन किया जाता है और इससे प्राप्त परिणामों का सामान्यीकरण कर इसे सम्पूर्ण जनसंख्या पर लागू किया जाता है।
सर्वेक्षण पद्धति के लाभ
→ सर्वेक्षण की सीमाएँ (कमजोरियाँ)
→ साक्षात्कार
साक्षात्कार मूलतः शोधकर्ता तथा उत्तरदाता के बीच निर्देशित बातचीत होती है। साक्षात्कार, सर्वेक्षण में प्रयोग की गई संरक्षित प्रश्नावली तथा सहभागी प्रेक्षण पद्धति की तरह पूर्णरूप से खुली अंतःक्रियाओं के बीच महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
लाभ - (1) प्रारूप का अत्यधिक लचीलापन का होना।
हानि - (1) अविश्वसनीय तथा अस्थिर प्रारूप। साक्षात्कार लेने की शैलियाँ-साक्षात्कार लेने की शैलियाँ हैं
→ साक्षात्कार रिकार्ड करने के तरीके हैं
→ प्रकाशन के लिए साक्षात्कार के तरीकों में भिन्नताएँ