These comprehensive RBSE Class 11 Sociology Notes Chapter 3 पर्यावरण और समाज will give a brief overview of all the concepts.
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→ पारिस्थितिकी (Ecology)
पारिस्थितिकी प्रत्येक समाज का आधार होती है। 'पारिस्थितिकी' शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियायें घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है। पर्वत तथा नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव-जन्तु ये सब पारिस्थितिकी के अंग हैं।
→ सामाजिक पर्यावरण
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैव भौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है। यह दो-तरफा प्रक्रिया है। जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है, ठीक उसी तरह से समाज भी प्रकृति को आकार देता है।
→ सामाजिक संगठन
सामाजिक संगठन के द्वारा पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान किया जाता है। यथा
→ सामाजिक मूल्य तथा प्रतिमान
पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्ध उसके सामाजिक मूल्यों तथा प्रतिमानों की व्यवस्था में भी प्रतिबिंबित होते हैं।। यथा
→ पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्धों के परिप्रेक्ष्य
→ पर्यावरण की प्रमुख समस्यायें और जोखिम
पर्यावरण से संबंधित निम्नलिखित समस्याओं को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया है
(अ) संसाधनों की क्षीणता (कमी)-अस्वीकृत प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना पर्यावरण की एक गंभीर समस्या है।
(ब) प्रदूषण-प्रदूषण के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं
(स) वैश्विक तापमान वृद्धि-पृथ्वी द्वारा छोड़ी गयी कुछ प्रमुख गैसों...कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा अन्य गैसों-सूर्य की रोशनी को रोककर तथा उसे वापस वायुमण्डल में न जाने देकर 'ग्रीनहाउस प्रभाव' का निर्माण करती हैं। इससे विश्व के तापमान में वृद्धि हो रही है। इससे ध्रुवों की हिम की परतें पिघल रही हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, तटीय बस्तियों के डूबने का खतरा पैदा हो रहा है। दूसरे, इससे दुनिया की जलवायु में उतार-चढ़ाव तथा अनियमितता बढ़ी है।
(द) जैनेटिकली मोडिफाइड आर्गेनिजम्स-वैज्ञानिक जीन-स्पेलसिंग की नयी तकनीकों के द्वारा एक किस्म के गुणों को दूसरी किस्म में डालते हैं ताकि बेहतरीन गुणों से भरपूर वस्तु का निर्माण किया जा सके। इसका उपयोग कम समय में पैदावार, फसल का आकार व उनकी समय सीमा को घटाने या बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। इसके प्रयोग द्वारा किसान अनुर्वरक बीजों के निर्माण एवं उनके पुनः उपयोग से बच सकते हैं। साथ ही उनकी गुणवत्ता को बनाए रखने की गारंटी भी मिलेगी।
(य) प्राकृतिक तथा मानव निर्मित पर्यावरण विनाश-1984 में भोपाल आपदा तथा 2004 की सुनामी आपदाएँ इसकी प्रमुख उदाहरण हैं।
→ पर्यावरण की समस्यायें सामाजिक समस्यायें क्यों हैं?
(अ) सामाजिक असमानता में वृद्धि-सामाजिक पर्यावरण की समस्यायें सामाजिक असमानताओं को बढ़ा देती
(ब) सामाजिक पारिस्थितिकी-सामाजिक पारिस्थितिकी की विचारधारा यह बताती है कि सामाजिक सम्बन्ध, मुख्य रूप से संपत्ति तथा उत्पादन के संगठन पर्यावरण की सोच तथा प्रयास को एक आकार देते हैं। भिन्न सामाजिक वर्ग भिन्न प्रकार से पर्यावरण संबंधी मामलों को देखते तथा समझते हैं । उनकी अपनी-अपनी रुचियाँ तथा विचारधाराएँ पर्यावरण सम्बन्धी मतभेद पैदा कर देती हैं। इस अर्थ में पर्यावरण संकट की जड़ें सामाजिक असमानताओं में देखी जा सकती हैं।
अतः पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने का एक तरीका पर्यावरण तथा समाज के आपसी सम्बन्धों में परिवर्तन है। विभिन्न समूहों के बीच सम्बन्धों में परिवर्तन विभिन्न ज्ञान व्यवस्थाओं और भिन्न ज्ञान तंत्र को जन्म देगा जो पर्यावरण का प्रबंधन सुचारु रूप से कर करेगा।
→ वर्षा नहीं, परन्तु बर्फ और पानी के क्रीड़ास्थल-जलरहित विदर्भ में जल के मनोरंजन एवं क्रीड़ास्थलों की बढ़ती संख्या; फन एंड फूड विलेज, वॉटर एण्ड एम्युजमैंट पार्क–बाजार, गांव, ग्राम पंचायत, नागपुर (देहात) जिला--पानी की भीषण कमी से जूझते हुए विदर्भ क्षेत्र में इस प्रकार की मनोरंजन तथा क्रीड़ास्थली की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिन गाँवों में ये क्रीड़ास्थल हैं, वे गाँव स्वयं पानी की भीषण कमी से जूझ रहे हैं।
पानी की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यहाँ की महिलाओं को प्रतिदिन 15 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है। यहाँ बिजली मिलने की स्थिति भी खराब है। इससे लोगों के काम-काज तथा स्वास्थ्य पर काफी खराब असर पड़ा है। लेकिन ये मनोरंजन तथा क्रीड़ास्थल गांव की इन दशाओं से अप्रभावित रहते हैं। यहाँ 24 घंटे बिजली मिलती है तथा पानी की कोई कमी नहीं रहती है। पानी का प्रयोग जलक्रीड़ा के साथ-साथ, बाग-बगीचों के रख-रखाव, सफाई तथा दर्शकों के प्रयोग के लिए किया जाता है। यह पानी तथा धन की बर्बादी है। एक तरफ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी की कोई व्यवस्था सरकार द्वारा नहीं की गई है और दूसरी तरफ जनता के इन संसाधनों का प्रयोग निजी लाभ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है।
इस कारण इन सूखाग्रस्त कृषि इलाकों के किसान अपना जीवन अत्यधिक विपदाओं से घिरा पा रहे हैं। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के हजारों किसानों ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली।
→ किसानों की चिंताजनक स्थिति के कारण किसानों की चिंताजनक स्थिति के लिए मुख्यतः दो कारण उत्तरदायी हैं
(1) पर्यावरण का गलन-पर्यावरण के गलन के कारण प्रदेश में पानी की अत्यधिक कमी हो गई है। पर्याप्त वर्षा न होने के कारण जलस्तर नीचे चला गया है। किसानों के लिए सिंचाई की कीमत बढ़ती जा रही है।
(2) आर्थिक कारण-किसान विश्व के बाजारों के उतार-चढ़ाव के सीधे चपेट में आ गया है। इससे छोटे किसानों को दी जाने वाली सहायता (मुक्त बाजार नीतियों के कारण) कम होती जा रही है। कपास की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता है, इसमें कीड़े लगने की संभावना भी रहती है। इसलिए सिंचाई तथा कीटनाशकों की आवश्यकता है। ये दोनों वस्तुएँ काफी कीमती हो गई हैं। बड़े किसानों ने गहरी खुदाई कर पानी के स्तर को नीचा कर दिया है। अतः छोटे किसानों को इनके लिए व्यापारियों से ऋण लेना पड़ रहा है। ऐसे में यदि पैदावार नष्ट हो जाती है तो न तो वे ऋण की रकम वापस कर पाते हैं और न पारिवारिक दायित्वों को पूरा कर पाते हैं। फलतः वे आत्महत्या को मजबूर हो जाते हैं।
→ शहरी पर्यावरण-दो शहरों की कहानी
एक तरफ उत्तरी दिल्ली का अशोक विहार का पॉश इलाका है और दूसरी तरफ वजीरपुर झुग्गी-झोंपड़ियों की बस्ती है। इन दोनों क्षेत्रों के बीच एक पार्क है। अशोक विहार के निवासी इसे साफ-सुथरा, हरा-भरा सैर-सपाटे के लए उपयुक्त स्थान बनाना चाहते हैं तो वजीरपुर की बस्ती के लोगों के लिए शौचालय के रूप में इसकी आवश्यकता है। इसी बात को लेकर दोनों बस्तियों के लोगों में आये दिन संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि
जैसे-जैसे नगरों का विस्तार होता जा रहा है, वैसे-वैसे स्थान के लिए मतभेद और बढ़ते जा रहे हैं। यथा