RBSE Class 11 Sociology Notes Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

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RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 Notes समाजशास्त्र एवं समाज

→ समाजशास्त्रीय कल्पनाएँ : व्यक्तिगत समस्याएँ एवं जनहित के मुद्दे-व्यक्ति और समाज एक-दूसरे से | घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्रीय कल्पना हमें इतिहास और जीवन-कथा को समझने एवं समाज में इन दोनों के सम्बन्ध को समझाने में सहायता करती है। समाजशास्त्र का एक प्रमुख कार्य व्यक्तिगत समस्या और जनहित के मुद्दे के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट करना है।

→ समाजों में बहुलताएँ एवं असमानताएँ-समकालीन विश्व में हम एक से ज्यादा समाजों से जुड़े हैं। जैसेभारतीय समाज तथा अन्तर्राष्ट्रीय जगत के अन्य विविध समाज। इसके अतिरिक्त भारतीय समाज में भाषा, समुदाय, धर्म, जाति एवं जनजाति के आधार पर विविधताएँ हैं। यह विविधता इस बात का निर्णय करने में कठिनाई पैदा करती है कि हम किस समाज की बात कर रहे हैं। भारतीय समाज में अनेक रूप में सामाजिक असमानता व्याप्त है। इसके प्रमुख कारक हैं—जाति, धन (पूँजी), शिक्षा, आय के स्रोत, राजनीतिक शक्ति, स्वास्थ्य आदि।

→ समाजशास्त्र का परिचय-समाजशास्त्र मानव समाज का एक अन्तःसम्बन्धित समग्र के रूप में अध्ययन करता है। यह व्यक्तिगत समस्या और जनहित के मुद्दे के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करता है। समाज की आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थाएँ अन्तःसम्बन्धित हैं और व्यक्ति इनसे घनिष्ठ रूप से बंधा हुआ है तथापि कुछ सीमा तक इसको बदल भी सकता है। अतः समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन, समूहों और समाजों का अध्ययन है और व्यक्ति का सामाजिकव्यवहार इसकी विषय-वस्तु है।

  • एक विषय के रूप में समाजशास्त्र का एक समाज के बारे में प्रेक्षण एवं विचार दार्शनिक अनुचिन्तनों एवं सामान्य बौद्धिक समझ से हटकर है। - समाजशास्त्र का सरोकार मानकों और मूल्यों के प्रति है, लेकिन इसकी मुख्य दृष्टि उस तरीके के अध्ययन से है जिसके तहत वे वास्तविक समाजों में कार्य करते हैं।
  • समाजशास्त्र स्वयं को विज्ञान की तरह समझता है। यह वैज्ञानिक कार्यविधियों से बँधा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि जिन कथनों पर समाजशास्त्री पहुँचता है, वह कथन साक्ष्य के निश्चित नियमों के प्रेक्षणों द्वारा प्राप्त किये हुए। होने चाहिए ताकि दूसरे व्यक्ति उनकी जाँच कर सकें। अतः समाजशास्त्रीय ज्ञान ईश्वर मीमांसीय प्रेक्षणों तथा दार्शनिक प्रेक्षणों से अलग है।

RBSE Class 11 Sociology Notes Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज 

→ समाजशास्त्र और सामान्य बौद्धिक ज्ञान-समाजशास्त्रीय ज्ञान सामान्य बौद्धिक प्रेक्षणों से भी अलग है। यथा
(1) सामान्य बौद्धिक वर्णन प्रायः प्रकृतिवादी या व्यक्तिवादी वर्णनों पर आधारित होता है जो कि व्यवहार के प्राकृतिक कारणों पर बल देता है।
दूसरी तरफ समाजशास्त्र में अर्थपूर्ण और असंदिग्ध सम्पर्कों तक केवल सामान्य सम्पर्कों की छानबीन द्वारा पहुँचा जाता है। इसमें संकल्पनाओं, पद्धतियों और आँकड़ों का एक पूरा तन्त्र है। यह सामान्य बौद्धिक ज्ञान से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।

(2) सामान्य बौद्धिक ज्ञान अपरावर्तनीय है क्योंकि यह अपने उद्गम के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछता है; दूसरी तरफ समाजशास्त्री अपने स्वयं तथा अपने किसी भी विश्वास के बारे में प्रश्न पूछने के लिए सदैव तैयार रहता है।
अतः स्पष्ट है कि समाजशास्त्र के दोनों ही उपागम-

  • व्यवस्थित उपागम और
  • प्रश्नकारी उपागमवैज्ञानिक खोज की एक विस्तृत परम्परा से निकले हैं।

→ बौद्धिक विचार जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है-प्राकृतिक विकास के वैज्ञानिक सिद्धान्तों और प्राचीन यात्रियों द्वारा पूर्व आधुनिक सभ्यताओं की खोज से प्रभावित होकर उपनिवेशी प्रशासकों, समाजशास्त्रियों एवं सामाजिक वैज्ञानिकों ने सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों को पहचानने हेतु समाजों का विभिन्न प्रकारों, जैसे

  • शिकारी टोलियाँ एवं संग्रहकर्ता;
  • चरवाहे एवं कृषक;
  • कृषक एवं गैर-औद्योगिक सभ्यताएँ तथा
  • आधुनिक औद्योगिक समाज आदि में वर्गीकरण किया। इस विकास क्रम के आधार पर यह कहा गया कि पश्चिमी समाज, गैर-पश्चिमी समाज से ज्यादा प्रगतिशील एवं सभ्य था।

→ डार्विन के जीव विकास के विचारों का प्रारम्भिक समाजशास्त्रियों के विचारों पर दृढ़ प्रभाव पड़ा। इन समाजशास्त्रियों के बौद्धिक विचारों की समाजशास्त्र की रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

→ ज्ञानोदय ने 17वीं तथा 18वीं सदी में कारण और व्यक्तिवाद पर बल दिया। इसने इस विचार को बल दिया कि प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों द्वारा मानवीय पहलुओं का अध्ययन किया जा सकता है। अतः सामाजिक सर्वेक्षण और वर्गीकरण पर बल दिया। समाजशास्त्र के संस्थापक आगस्त कॉम्टे ने कहा कि समाजशास्त्र मानव कल्याण में योगदान करेगा।

→ भौतिक मुद्दे जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है-पूँजीवाद पर आधारित औद्योगिक क्रान्ति में बाजारों ने उत्पादनकारी जीवन में प्रमुख साधन की भूमिका अदा की। माल, सेवाएँ और श्रम वस्तुएँ बन गईं।

  • औद्योगीकरण से पूर्व अंग्रेजों का मुख्य व्यवसाय कृषि करना एवं कपड़ा बुनना था। समाज छोटा था, स्तरीकृत था, विभिन्न लोगों-कृषक, भूस्वामी, लोहार, चमड़ा श्रमिक, जुलाहे, कुम्हार, चरवाहे, मद्य-निर्माता आदि-की प्रस्थिति एवं उनकी वर्ग की स्थिति स्पष्ट परिभाषित थी। प्रत्यक्ष सामाजिक सम्बन्धों की बहुलता थी। लेकिन औद्योगीकरण के साथ ही ये सारी विशेषताएँ बदल गईं।
  • नई व्यवस्था में श्रम की प्रतिष्ठा कम हो गई। नगरीय केन्द्रों का विकास और विस्तार हुआ, औद्योगिक नगरों में वायु प्रदूषण, श्रमिक वर्ग की भीड़भरी बस्तियाँ, गंदगी का विस्तार हुआ तथा नए प्रकार की सामाजिक अन्तःक्रिया सामने आई। साथ ही घड़ी के अनुसार समय का महत्त्व सामाजिक संगठन का आधार बना।

→ हमें यूरोप में समाजशास्त्र के आरम्भ और विकास को क्यों पढ़ना चाहिए? भारतीय होने के नाते हमारा अतीत अंग्रेजी पूँजीवाद और उपनिवेशवाद के इतिहास से गहरा जुड़ा हुआ है। पश्चिम में पूँजीवाद विश्वव्यापी विस्तार पा गया था। यूरोप में औद्योगीकरण और पूँजीवाद के आगमन के कारण जो परिवर्तन आये, जैसे-नगरीकरण तथा कारखानों के उत्पादन आदि सभी आधुनिक समाजों के लिए प्रासंगिक थे। 

→ भारत में समाजशास्त्र का विकास
यद्यपि उपनिवेशवाद आधुनिक पूँजीवाद और औद्योगीकरण का आवश्यक हिस्सा था और पश्चिमी समाजशास्त्रियों का पूँजीवाद तथा आधुनिक समाज पर लेखन भारत के सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए प्रासंगिक है; तथापि यह आवश्यक नहीं है कि औद्योगीकरण का प्रभाव भारत में भी पश्चिमी समाज जितना ही हुआ हो क्योंकि दोनों समाजों की अपनी-अपनी अलग-अलग विशिष्ट विशेषताएँ भी थीं, जो दोनों समाजों की असमानता को व्यक्त करती थीं। अतः भारतीय समाजशास्त्र के विकास के प्रमुख चरण इस प्रकार रहे

  • भारत में समाजशास्त्र को भारतीय समाज के बारे में पश्चिमी लेखकों द्वारा लिखित दस्तावेजों और विचारों से जूझना पड़ा, जो हमेशा सही नहीं होते थे। जैसे—इन्होंने भारतीय गाँव को समाज की शैशवावस्था कहा।
  • भारत में समाजशास्त्र और सामाजिक मानव विज्ञान के बीच कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं है, जो पाश्चात्य देशों के समाजों की यह एक प्रमुख विशेषता है।
  • भारत में सामाजिक मानव विज्ञान 'आदिम लोगों के अध्ययन' से आगे बढ़कर किसानों, सजातीय समूहों, सामाजिक वर्गों, प्राचीन सभ्यताओं के विभिन्न पक्षों तथा विशेषताओं तथा आधुनिक औद्योगिक समाज के अध्ययन तक आ गया था।

→ समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसके सम्बन्ध-समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय-क्षेत्र काफी व्यापक है। सामाजिक अन्तःक्रिया का विश्लेषण, राष्ट्रीय सामाजिक मुद्दे, वैश्विक सामाजिक प्रक्रियाएँ इसके अध्ययन के केन्द्र-बिन्दु हो सकते हैं।

→ समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों के समूह का एक हिस्सा है, जिसमें मानव विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान एवं इतिहास शामिल हैं। इसलिए इसके अध्ययन के लिए अन्त:विषयक उपागम पर बल दिया जा रहा है।

→ समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र-अर्थशास्त्र वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और वितरण का अध्ययन करता है। शास्त्रीय आर्थिक उपागम में अर्थशास्त्र का अध्ययन 'आर्थिक क्रियाकलाप' के संकुचित दायरे तक रहा। राजनीतिकआर्थिक उपागम आर्थिक क्रियाकलापों को स्वामित्व के रूप में उत्पादन के साधनों के साथ सम्बन्धों के विस्तृत दायरे में समझने का प्रयास करते हैं। समाजशास्त्रीय उपागम आर्थिक व्यवहार को सामाजिक, मानकों, मूल्यों, व्यवहारों और हितों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखता है।

RBSE Class 11 Sociology Notes Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

→ समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान-परम्परागत राजनीति विज्ञान मुख्यतः दो तत्त्वों पर केन्द्रित था-राजनीतिक | सिद्धान्त और सरकारी प्रशासन। समाजशास्त्र समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र सरकार सहित संस्थाओं के बीच अन्तःसम्बन्धों पर बल देता है जबकि राजनीति विज्ञान सरकार में विद्यमान प्रक्रियाओं पर ध्यान देता
राजनीतिक समाजशास्त्र का केन्द्र राजनीतिक व्यवहार का वास्तविक अध्ययन है। आधुनिक राजनीति विज्ञान भी मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल दे रहा है।

→ समाजशास्त्र एवं इतिहास-इतिहासकार अतीत का अध्ययन करते हैं जबकि समाजशास्त्री समकालीन समाज या कुछ ही पहले के अतीत में ज्यादा रुचि रखते हैं। इतिहासकार अतीत की वास्तविक घटनाओं का चित्रण करते हैं जबकि समाजशास्त्री असामयिक सामाजिक सम्बन्धों को स्थापित करने पर ध्यान देते हैं । इतिहास ठोस विवरणों का और समाजशास्त्र ठोस वास्तविकताओं का अध्ययन करता है।

आजकल इतिहास काफी हद तक समाजशास्त्रीय हो गया है क्योंकि यह सामाजिक-इतिहास में सामाजिकप्रतिमानों, लिंग-सम्बन्धों, लोकाचार, प्रथाओं और प्रमुख संस्थाओं का भी अध्ययन करता है।

→ समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान-मनोविज्ञान मुख्यतः व्यक्ति से सम्बन्धित है तथा मानव-व्यवहार का विज्ञान है। यह व्यक्ति की बौद्धिकता, सीखने की प्रवृत्ति, अभिप्रेरणाओं, तन्त्रिका प्रणाली, प्रतिक्रिया का समय, आशाओं और डर में रुचि रखता है।

→ सामाजिक मनोविज्ञान-समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच एक पुल है। यह सामाजिक समूहों में सामाजिक तौर पर व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों के साथ किये जाने वाले व्यवहार का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज में संगठित व्यवहार को समझने का प्रयास करता है। समाज के विभिन्न पक्षों द्वारा व्यक्तित्व को किस प्रकार आकार मिलता है, यह समाजशास्त्र का विषय है।

→ समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानव विज्ञान-समाजशास्त्र आधुनिक जटिल समाजों का अध्ययन है जबकि सामाजिक मानव विज्ञान सरल आदिम समाजों का अध्ययन है। सामाजिक मानव विज्ञान की प्रवृत्ति सरल समाज के सभी पक्षों का एक समग्र में अध्ययन करने की होती थी। सामाजिक-मानव विज्ञान की विशेषताएँ थीं-लम्बी क्षेत्रीय कार्य परम्परा; अध्ययन किये जाने वाले समाज में रहना तथा नृजाति-अध्ययन पद्धतियों का उपयोग। वर्तमान में अनेक परिवर्तनों ने समाजशास्त्र और सामाजिक मानव-विज्ञान की प्रकृति को पुनः परिभाषित किया है। आधुनिकता में छोटे से छोटा गाँव भी भूमण्डलीय प्रक्रियाओं से प्रभावित हुआ है। परम्परा और आधुनिकता के मिलन में गाँव-शहर, जाति-जनजाति, वर्ग-समुदाय का एक जटिल मिश्रण हुआ है। अब समाजशास्त्र जनजातियों का भी एक समग्र रूप में अध्ययन करने लगा है। पद्धतियों एवं तनकीकों को दोनों विषयों से लिया जाता है। राज्य और वैश्वीकरण के मानव विज्ञानी अध्ययन किये गए हैं जो सामाजिक मानव विज्ञान की परम्परागत विषय-वस्तु से एकदम अलग हैं। इस प्रकार वर्तमान में दोनों विषयों की घनिष्ठता बढ़ी है, दोनों के विषय-क्षेत्र तथा विषय-वस्तुओं का विस्तार हुआ है।

Prasanna
Last Updated on Sept. 1, 2022, 11:04 a.m.
Published Sept. 1, 2022