Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Important Questions Chapter 3 पर्यावरण और समाज Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sociology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Sociology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Sociology Notes to understand and remember the concepts easily.
बहुविकल्पात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानवीय हस्तक्षेप के कारण निम्न में से किस प्राकृतिक कारक की उत्पत्ति नहीं हुई है?
(अ) बंजर
(ब) बाढ़ की स्थिति
(स) विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि
(द) पहाड़ों का निर्माण
उत्तर:
(द) पहाड़ों का निर्माण
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में किसका संसाधनों की क्षीणता से सम्बन्ध नहीं है?
(अ) पेट्रोलियम का
(ब) पानी का
(स) प्रदूषण का
(द) भूमि की ऊपरी परत का
उत्तर:
(स) प्रदूषण का
प्रश्न 3.
वन, घास के मैदान आदि जैविक विविध आवास निम्न में से किस कारण से आज समाप्ति के कगार पर खड़े हैं?
(अ) ध्वनि प्रदूषण के कारण
(ब) पेट्रोलियम के अत्यधिक दोहन के कारण
(स) वायु प्रदूषण के कारण
(द) बढ़ती कृषि भूमि के कारण
उत्तर:
(द) बढ़ती कृषि भूमि के कारण
प्रश्न 4.
मानव-निर्मित पर्यावरण विनाश का उदाहरण है
(अ) 1984 की भोपाल गैस रिसाव आपदा
(ब) भूकम्प
(स) ज्वालामुखी
(द) मरुस्थलीकरण
उत्तर:
(अ) 1984 की भोपाल गैस रिसाव आपदा
प्रश्न 5.
निम्न में किस गाँव में पानी की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यहाँ की महिलाओं को प्रतिदिन 15
किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है?
(अ) यवतमाल में
(ब) बाजार गाँव में
(स) शेगाँव में
(द) अमरावती में।
उत्तर:
(ब) बाजार गाँव में
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
1. पर्यावरण के प्राकृतिक कारक जैसे अकाल या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति ............. हस्तक्षेप के कारण होती है।
2. जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है ठीक उसी प्रकार से ............. भी प्रकृति को आकार देता है।
3. संसाधनों पर नियंत्रण तथा स्वामित्व, श्रम विभाजन और ............. से संबंधित है।
4. बढ़ने ............. के कारण संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर अत्यन्त तीव्र गति से हो रहा है।
5. आज हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का प्रयोग हम करते हैं जिनके बारे में हमें पूरी ........... नहीं है।
6. ग्रामीण तथा शहरी इलाकों में .......... एक मुख्य समस्या है जिससे श्वास सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं।
7. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2012 में करीब ............. लोगों की मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण था।
उत्तर:
1. मानवीय
2. समाज
3. उत्पादन की प्रक्रिया
4. औद्योगीकरण
5. समझ
6. वायु प्रदूषण
7.70 लाख
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये-
1. पारिस्थितिकी प्रत्येक समाज का आधार होती है।
2. समानता और न्याय के समाजवादी मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोषित किया है।
3. पूँजीवादी मूल्यों ने कई देशों में बड़े-बड़े जमींदारों से उनकी जमीनों को छीन उन्हें भूमिहीन किसानों में बाँट दिया
4. पारिवेशिक कारकों से प्रभावित होकर 'प्रकृति पोषण विवाद' होते हैं।
5. बढ़ते औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण के साथ मनुष्य के सम्बन्धों की जटिलता बढ़ गई है।
6. ध्वनि प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
7. जल प्रदूषण से ध्रुवों की हिम की परतें पिघल रही हैं।
8. भिन्न सामाजिक वर्गों की अपनी-अपनी रुचियाँ और विचारधाराएँ पर्यावरण सम्बन्धी मतभेद पैदा कर देती हैं।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. असत्य
4. सत्य
5. सत्य
6. असत्य
7. असत्य
8. सत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. नर्मदा बचाओ आंदोलन |
(अ) सुन्दरलाल बहुगुणा |
2. चिपको आंदोलन |
(ब) मुर्र बुचकिन |
3. राजनीतिक, दार्शनिक तथा सामाजिक पारिस्थितिकी संस्था के संस्थापक |
(स) ध्वनि प्रदूषण |
4. लाउड स्पीकर, वाहनों के हार्न से होने वाला प्रदूषण |
(द) ग्लोबल वार्मिंग |
5. जलवायु में उतार-चढ़ाव व अनियमितता |
(य) अरुन्धती राय |
उत्तर:
1. नर्मदा बचाओ आंदोलन |
(य) अरुन्धती राय |
2. चिपको आंदोलन |
(अ) सुन्दरलाल बहुगुणा |
3. राजनीतिक, दार्शनिक तथा सामाजिक पारिस्थितिकी संस्था के संस्थापक |
(ब) मुर्रे बुचकिन |
4. लाउड स्पीकर, वाहनों के हार्न से होने वाला प्रदूषण |
(स) ध्वनि प्रदूषण |
5. जलवायु में उतार-चढ़ाव व अनियमितता |
(द) ग्लोबल वार्मिंग |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्कूल की वर्दी, फर्नीचर, बैग, बिजली आदि का स्रोत क्या है?
उत्तर:
स्कूल की वर्दी, फर्नीचर, बैग, बिजली आदि वस्तुओं का स्रोत प्रकृति है।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पारिस्थितिकी शब्द से अभिप्राय ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है। पारिस्थितिकी का तात्पर्य है पर्यावरण से अनुकूलन करना।
प्रश्न 3.
मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में आने वाले किन्हीं दो परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
ऐसे दो उदाहरण दीजिये जहाँ पारिस्थितकीय परिवर्तन के लिए मानवीय हस्तक्षेप तथा प्राकृतिक कारण दोनों का योग है
उत्तर:
प्रश्न 5.
पारिस्थितिकी परिवर्तन के ऐसे. चार उदाहरण दीजिये जो पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निर्मित हैं।
उत्तर:
प्रश्न 6.
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव कैसे होता है?
उत्तर:
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैव-भौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है।
प्रश्न 7.
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पर्यावरण का तात्पर्य जैविक तथा भौगोलिक दशाओं से है। इसे समग्र जीवन के ताने-बाने के रूप में समझा जाता रहा है।
प्रश्न 8.
सामाजिक पारिस्थितिकी से क्या आशय है? ।
उत्तर:
सामाजिक पारिस्थितिकी किसी क्षेत्र के भौतिक, जैविक तथा सांस्कृतिक लक्षणों के अन्त:सम्बन्धों की विषय-वस्तु का अध्ययन है।
प्रश्न 9.
नगरीय पारिस्थितिकी का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नगरों, व्यक्तियों तथा पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन करने वाले शास्त्र को नगरीय पारिस्थितिकी कहते हैं।
प्रश्न 10.
सामाजिक पर्यावरण दो-तरफा प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है, ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। इससे स्पष्ट होता है कि सामाजिक पर्यावरण दो-तरफा प्रक्रिया है।
प्रश्न 11.
स्पष्ट कीजिये कि पारिस्थितिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्कृति को आकार देती है।
उत्तर:
सिंध-गंगा के मैदान में जहाँ मनुष्य गहन-कृषि कर अतिरिक्त उत्पादन कर आगे गैर-कृषि क्रियाकलाप कर जटिल समाज व राज्य का निर्माण करता है वहीं राजस्थान के मरुस्थल में वह पशुपालन के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकता रहता है।
प्रश्न 12.
ग्रीन हाउस से क्या आशय है?
उत्तर:
ग्रीन हाउस का अर्थ है-पौधों को जलवायु की अति, मुख्यतः अत्यधिक ठंड से बचाने हेतु ढंका हुआ ढाँचा; हरित गृह जिसमें बाहर के मुकाबले अन्दर का तापमान अधिक होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमण्डल की क्रियाओं का प्रभाव पड़ता है। इसे उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमण्डल की क्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव-जन्तु अपने आपको वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप; जैसे-कम वर्षा, पथरीली अथवा रेतीली मिट्टी तथा अत्यधिक तापमान में अपने आपको ढाल लेते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिकीय कारक इस बात का निर्धारण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग कैसे रहेंगे?
प्रश्न 2.
'मनुष्य की क्रियाओं द्वारा भी पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। इसे सोदाहरण स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
समय के साथ-साथ मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पर्यावरण के प्राकृतिक कारक, जैसे-बंजर या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण हुई है। नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुंध कटाई से नदियों में बाढ़ की स्थिति बनी है। इसी तरह विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि का कारण पर्यावरण में मनुष्य का हस्तक्षेप है, इसके कारण भी जलवायु में परिवर्तन आया है।
प्रश्न 3.
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव कैसे होता है?
उत्तर:
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैव-भौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है। यह दो-तरफा प्रक्रिया है। जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है, ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। उदाहरण के लिए गंगा-सिंधु के बाढ़ के मैदान की उपजाऊ भूमि गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। यह मैदान प्रकृति द्वारा दिया गया है। अपनी उत्पादक क्षमता के कारण यह घनी आबादी का क्षेत्र बन जाता है तथा अतिरिक्त उत्पादन तथा गैर-कृषि क्रियायें आगे चलकर जटिल समाज व राज्य को जन्म देते हैं। इस प्रकार प्रकृति या पारिस्थितिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्कृति को आकार देती है। इसी तरह पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, प्रादेशिक झगड़े, तेल के लिए युद्ध तथा विश्वव्यापी तापमान वृद्धि आदि ने पर्यावरण को प्रभावित किया है।
प्रश्न 4.
सामाजिक संस्थाओं के द्वारा किस प्रकार पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान किया जाता है?
उत्तर:
सामाजिक संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान किया जाता है। इसे अग्र प्रकार स्पष्ट किया गया है
(i) सम्पत्ति के सम्बन्ध यह निर्धारित करते हैं कि कैसे तथा किसके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जायेगा?
(ii) भूमि तथा जल संसाधन के व्यक्तिगत स्वामित्व इस बात का निर्धारण करेंगे कि क्या अन्य लोगों को इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार होगा और यदि हाँ, तो किन नियमों तथा शर्तों के अन्तर्गत? संसाधनों पर नियंत्रण तथा स्वामित्व, श्रम विभाजन तथा उत्पादन की प्रक्रिया से सम्बन्धित है।
प्रश्न 5.
'पर्यावरण और समाज के सम्बन्ध उसके सामाजिक मूल्यों में प्रतिबिंबित होते हैं।' स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
पर्यावरण और समाज के सम्बन्ध उसके सामाजिक मूल्यों में प्रतिबिंबित होते हैं । यथा
(1) पूँजीवादी मूल्य-पूँजीवादी सामाजिक मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने के विचार को पोषित कर दिया है। इस विचार ने प्रकृति को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया है जिसे लाभ के लिए खरीदा या बेचा जा सकता है। उदाहरण के लिए नदी के बहुविकल्पीय सांस्कृतिक अर्थों; जैसे--पारिस्थितिकीय, उपयोगितावादी, धार्मिक तथा सौन्दर्यपरकता के महत्त्व को समाप्त कर इसे मात्र एक उद्यमकर्ता के लिए पानी को हानि या लाभ की दृष्टि से बेचने का कारोबार बना दिया है।
(2) समाजवादी मूल्य-समानता तथा न्याय के समाजवादी मूल्यों ने कई देशों में बड़े-बड़े जमींदारों से उनकी जमीनों को छीन उन्हें पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया है।
प्रश्न 6.
पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्धों को साम्राज्यवाद ने किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
साम्राज्यवाद ने पर्यावरण तथा समाज से सम्बन्धित ज्ञान का प्रसार किया ताकि ये संसाधन साम्राज्यवादी ताकतों को उपलब्ध होते रहें। साम्राज्यवादी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कई नए विषय तैयार किये गये, जैसे-भूगोल, जीव-विज्ञान वनस्पति, वानिकी, भूगर्भ विज्ञान तथा द्रवचालित अभियांत्रिकी। इन विषयों को संस्थागत रूप में तैयार किया गया ताकि ये साम्राज्यवादी आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को आसान बना सकें।
प्रश्न 7.
पर्यावरण प्रबंधन एक कठिन कार्य क्यों है?
उत्तर:
पर्यावरण प्रबंधन एक कठिन कार्य है, क्योंकि
प्रश्न 8.
वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई कुछ प्रमुख गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा अन्य गैसें) सूर्य की रोशनी को रोककर तथा उसे वापस वायुमण्डल में न जाने देकर 'ग्रीन हाउस प्रभाव' का निर्माण करती हैं। इससे विश्व के तापमान में वृद्धि होती है। वैश्विक तापमान में वृद्धि होने के कारण ध्रुवों के हिम की परतें पिघल रही हैं जिसके कारण समुद्रतल की ऊँचाई बढ़ती जा रही है। इससे समुद्रों के किनारे पर स्थित प्रदेश जल में निमग्न हो जायेंगे तथा पारिस्थितिकी संतुलन पर भी प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप जलवायु में उतार-चढ़ाव तथा अनियमितता के प्रभाव को विश्व में देखा जा सकता है।
प्रश्न 9.
जैनेटिकली मोडिफाइड आर्गेनिजम्स से क्या आशय है? इसके प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैज्ञानिक जीन-स्पेलसिंग की नयी तकनीकों के द्वारा एक किस्म के गुणों को दूसरी किस्म में डालते हैं ताकि बेहतरीन गुणों से भरपूर वस्तु का निर्माण किया जा सके। जैनेटिक मोडिफिकेशन आर्गेनिजम्स का उपयोग कम समय में पैदावार, फसल का आकार तथा उनकी समय-सीमा को घटाने के लिए भी किया जा सकता है। कृषि उद्योग में इसके प्रयोग द्वारा किसान अनुर्वरक बीजों के निर्माण तथा उनके पुनः उपयोग से बच सकते हैं और साथ ही साथ उन्हें इस बात की गारण्टी भी मिल सकती है कि वे उनकी गुणवत्ता को बनाए रखेंगे ताकि किसान उन बीजों पर निर्भर रह सकें।
प्रश्न 10.
जल रहित विदर्भ में जल के मनोरंजन एवं क्रीड़ास्थलों की बढ़ती संख्या के दुष्प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जल रहित विदर्भ में, जहाँ गाँवों को पानी कभी-कभी पन्द्रह दिन में एक बार मिलता है, जहाँ पानी की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यहाँ की महिलाओं को प्रतिदिन 15 कि.मी. की दूरी तय करनी पड़ती है; जो पानी की भीषण कमी से जूझ रहा है, मनोरंजन तथा क्रीड़ास्थलियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन क्रीड़ास्थलियों में 24 घंटे बिजली सरकार द्वारा मुहैया करायी जाती है। इन जलक्रीड़ा-स्थलियों में पानी का प्रयोग जलक्रीड़ा के लिए, बाग-बगीचों के रख-रखाव के लिए, सफाई तथा दर्शकों के प्रयोग के लिए किया जाता है।
इस क्षेत्र में पिछले दस सालों में पेयजल तथा सिंचाई से सम्बन्धित कोई भी वृहद् स्तरीय कार्य सरकार ने पूरा नहीं किया है। पानी की कमी के कारण किसानों को पेयजल तथा सिंचाई की कमी से अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। विवश होकर किसानों ने आत्महत्यायें भी की हैं। ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में क्रीड़ा-स्थलियों की बढ़ती संख्या से पानी का संकट और बढ़ रहा है। ये क्रीडास्थलियाँ पानी का दुरुपयोग कर रही हैं, धन को बर्बाद कर रही हैं, जनता के संसाधनों का प्रयोग निजी लाभ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है, जबकि सार्वजनिक हित की उपेक्षा की जा रही है।
प्रश्न 11.
आजकल प्राकृतिक संसाधन तेजी से क्यों घट रहे हैं ?
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से घटने के कारण-प्राचीन समय में प्राकृतिक संसाधनों की कमी की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन आधुनिक काल में प्राकृतिक संसाधन तेजी से घटते जा रहे हैं क्योंकि
(1) जनसंख्या में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों के हमारे उपभोग की दर में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि प्रकृति द्वारा सृजन तथा पुनर्सजन की दर से अधिक हो गई है।
(2) औद्योगीकरण, नगरीकरण, पर्यावरण प्रदूषण आदि के कारण भी प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढ़ा है तथा इनके लिए प्राकृतिक साधनों, जैसे वनों, कृषि क्षेत्र को नष्ट किया गया है। इससे प्राकृतिक संसाधनों में तेजी से कमी आयी है।
इन कारणों से प्राकृतिक संसाधनों के भंडार तेजी से घट रहे हैं।
प्रश्न 12.
वायु प्रदूषण की हानियों का वर्णन कीजिये। उत्तर-वायु प्रदूषण की हानियाँ-वायु प्रदूषण की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं
(1) वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड तथा मीथेन आदि गैसों की वृद्धि होने के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। इससे ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगी है। यदि वैश्विक तापमान की यह वृद्धि जारी रही तो ध्रुवों की बर्फ की चादर पिघलकर समुद्र में मिल जायेगी जिससे समुद्र के पानी की सतह एक मीटर ऊपर उठ जायेगी। फलस्वरूप समुद्र के तटीय प्रदेश पानी में डूब जायेंगे।
(2) वायु प्रदूषण से श्वास तथा सेहत सम्बन्धी दूसरी बीमारियाँ तथा मृत्यु भी हो सकती है।
(3) वायु प्रदूषण से ओजोन परत में 3% से 4% तक कमी आई है। ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती हैं। पराबैंगनी किरणों से त्वचा के रोग, कैंसर आदि अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है ? पर्यावरण का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
पर्यावरण से आशय-वायुमण्डल, जलमण्डल और स्थलमण्डल मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं। इन तीनों मंडलों के मध्य में स्थित पेड़-पौधों तथा मानव, जीव-जन्तुओं की एक संकरी पट्टी में क्रिया व अन्तःक्रिया होती रहती है। इस संकरी पट्टी को जैवमण्डल कहा जाता है। जीवन पूर्णरूपेण इसी पट्टी में विद्यमान हैं। ये तीनों परिमंडल (वायुमण्डल, जलमण्डल और स्थलमण्डल) हर समय मिलकर कार्य करते हैं। सौर ऊर्जा के कारण जल में वाष्पीकरण होता है। वाष्प वायुमण्डल में पहुँचकर संघनन प्रक्रिया को जन्म देती है। इससे वायुमण्डल में आर्द्रता बढ़ जाती है।
वायुमण्डल की यह आर्द्रता वर्षा के रूप में स्थलमण्डल पर पहुँचती है। इस प्रकार जल परिसंचरण का चक्र पूरा हो जाता है। इसी कारण जैवमण्डल में जीवों का अस्तित्व बना रहता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राणी या जैवमण्डल के चारों ओर जो कुछ भी है, वह उसका पर्यावरण है। पर्यावरण एक जटिल प्रघटना है। वे सब परिस्थितियाँ जो मनुष्य को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं, पर्यावरण कही जाती हैं। रॉस के अनुसार, "कोई भी बाह्य शक्ति जो हमें प्रभावित करती है, पर्यावरण कहलाती है।" मैकाइवर के शब्दों में, "सम्पूर्ण पर्यावरण से हमारा तात्पर्य उस 'सब कुछ' से है जिसका अनुभव सामाजिक मनुष्य करता है, जिसका निर्माण करने में व्यक्ति सक्रिय रहता है तथा उससे स्वयं भी प्रभावित होता है।" पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि
(1) जीवित रहने तथा विकास हेतु-हम अपने जीवित रहने तथा विकास के लिए सभी संसाधन प्राकृतिक पर्यावरण से ही प्राप्त करते हैं। स्वच्छ जल, वायु तथा पौष्टिक भोजन की पूर्ति हमें पर्यावरण से होती है। यदि पर्यावरण को प्रदूषित किया जायेगा तो जल तथा वायु प्रदूषित होकर हमारे अनेक रोगों का कारण बन जायेंगे। अतः मनुष्य को जीवित रहने तथा विकास हेतु पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता है।
(2) मानव तथा प्राणियों के अस्तित्व की रक्षा हेतु आवश्यक-जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगीकरण, नगरीकरण के कारण प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उनके अविवेकपूर्ण उपभोग के कारण पानी तथा भूमि में क्षीणता बहुत तेज गति से आ रही है। वन, घास के मैदान और आर्द्र भूमि जैसे विविध प्रकार के जैविक आवास बढ़ती कृषि भूमि के कारण समाप्ति के कगार पर खड़े हैं। इससे हमारी भावी पीढ़ियों के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं बचेंगे। अतः न तो हमें पीने के लिए पानी मिलेगा, न खाने के लिए भोजन और न शुद्ध वायु । ऐसी स्थिति में जैव- मण्डल में प्राणियों का जीवित रहना असंभव हो जायेगा और पृथ्वी के धरातल से मानव सहित प्राणियों का अस्तित्व खत्म हो सकता है। अतः मानव तथा प्राणियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है।
(3) उत्तम कोटि के प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता-हमें जीवित रहने तथा निरन्तर विकास करने के लिए वायु, जल, मृदा आदि प्राकृतिक संसाधनों की एक न्यूनतम मौलिक गुणवत्ता की आवश्यकता है। इसके लिए पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना आवश्यक है।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी से क्या आशय है ? पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाले तत्वों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
पारिस्थितिकी से आशय-पारिस्थितिकी प्रत्येक समाज का आधार होती है। इसके अन्तर्गत मानव समूह, पशु-समूह, पेड़-पौधों तथा पर्यावरण को सम्मिलित किया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से पारिस्थितिकी समुदायों तथा पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों के जाल को कहा जाता है, पर्यावरण के साथ मानव तथा प्राणी जगत के अनुकूलन को ही पारिस्थितिकी कहते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिकी अवधारणा के अन्तर्गत पृथ्वी पर मनुष्य के पर्यावरण के साथ सम्पूर्ण जीवन के ताने-बाने का नाम है। दूसरे शब्दों में, पारिस्थितिकी शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक तथा जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियायें घटित होती हैं। मनुष्य, पर्वत, नदियाँ, मैदान, सागर और जीव-जन्तु, पेड़-पौधे सब पारिस्थितिकी के अंग हैं।
किसी स्थान की पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाले तत्त्व
किसी स्थान की पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(1) भूगोल तथा जल मण्डल की अंतःक्रियाएँ-किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमण्डल की अन्तःक्रियाओं का प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव-जन्तु अपने आपको वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप, जैसे-कम वर्षा, रेतीली मिट्टी तथा अत्यधिक तापमान में अपने आपको ढाल लेते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिकी प्रकृति के अनुरूप जीवों के अनुकूलन की क्रिया है और भूगोल तथा जलमण्डल की अन्तःक्रियायें इसे प्रभावित करती हैं।
(2) मानवीय हस्तक्षेप-समय के साथ-साथ प्रकृति में मानवीय हस्तक्षेप के द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। पर्यावरण के प्राकृतिक कारक; जैसे-बंजर या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है। उदाहरण के लिए नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुंध कटाई नदियों में बाढ़ की स्थिति को बढ़ा देती है। पर्यावरण में मनुष्य के हस्तक्षेप का एक अन्य उदाहरण विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि के कारण जलवायु में आने वाला परिवर्तन भी है। कृषि भूमि जहाँ मिट्टी तथा पानी के बचाव कार्य चल रहे हैं, खेती और पालतू पशु, कृत्रिम खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग, नगरीकरण आदि सब स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा प्रकृति में लाये गये परिवर्तन हैं।
प्रश्न 3.
सामाजिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं? सामाजिक संस्थाएँ और सामाजिक मूल्य के द्वारा पर्यावरण और समाज की अन्तःक्रिया को किस प्रकार आकार दिया जाता है ?
उत्तर:
सामाजिक पर्यावरण से आशय-सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैव-भौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है। यह दो-तरफा प्रक्रिया है। जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। उदाहरण के लिए, सिंधु-गंगा के बाढ़ के मैदान की उपजाऊ भूमि गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण वह घनी आबादी का क्षेत्र बन जाता है तथा अतिरिक्त उत्पादन और गैर-कृषि क्रियाकलाप आगे चलकर जटिल समाज तथा राज्य को जन्म देते हैं।
ठीक इसके विपरीत, राजस्थान के मरुस्थल केवल पशुपालकों को ही सहारा देते हैं जो अपने पशुओं के चारे की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकते रहते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्कृति को आकार देती है। दूसरी तरफ पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है। जिसकी निजी परिवहन व्यवस्था ने जीवन तथा भू-दृश्य को बदला है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, प्रादेशिक झगड़े, तेल के लिए युद्ध तथा विश्वव्यापी तापमान वृद्धि आदि पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों को दिखाते हैं। अतः स्पष्ट है कि बढ़ता हुआ मानवीय हस्तक्षेप पर्यावरण को बदलने में सक्षम है।
(अ) सामाजिक संस्थाओं द्वारा पर्यावरण और समाज की अन्तःक्रिया पर प्रभाव-सामाजिक संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान किया जाता है। यथा
(i) सम्पत्ति-सम्पत्ति के सम्बन्ध यह निर्धारित करते हैं कि कैसे तथा किसके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जायेगा। उदाहरण के लिए, यदि वनों पर सरकार का आधिपत्य है तो यह अधिकार भी उसे ही होगा कि वह यह निर्णय ले कि क्या वह इसे पट्टे पर किसी लड़की का कारोबार करने वाली कंपनी को देना चाहेगी अथवा ग्रामीणों को जंगलों से प्राप्त होने वाले वन्य उत्पादों को संग्रहित करने का अधिकार देगी।
(ii) भूमि तथा जल संसाधन का व्यक्तिगत स्वामित्व-भूमि तथा जल संसाधन का व्यक्तिगत स्वामित्व यह निर्धारण करेंगे कि अन्य लोगों को इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार होगा या नहीं। यदि हाँ; तो किन नियमों तथा शर्तों के अन्तर्गत? संसाधनों पर नियंत्रण और स्वामित्व, श्रम-विभाजन और उत्पादन प्रक्रिया को प्रभावित करता है। विभिन्न सामाजिक समूह किस प्रकार अपने आपको पर्यावरण से जोड़ते हैं? इसका निर्धारण करने में सामाजिक संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(ब) सामाजिक मूल्यों का पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्धों पर प्रभाव -पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्ध उसके सामाजिक मूल्यों में भी प्रतिबिंबित होते हैं। यथा-
(i) पूँजीवादी मूल्य-पूँजीवादी मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोषित किया है, जहाँ प्रकृति को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है, जिसे लाभ के लिए खरीदा या बेचा जा सकता है। उदाहरण के लिए एक उद्यमकर्ता के लिए नदी के पानी को हानि या लाभ की दृष्टि से बेचने का कारोबार बना दिया है।
(ii) समाजवादी मूल्य-समानता और न्याय के समाजवादी मूल्यों में कई देशों में बड़े-बड़े जमींदारों से उसकी जमीनों को छीनकर उसे पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया गया है।
(iii) धार्मिक मूल्य-धार्मिक मूल्य धार्मिक हितों तथा विभिन्न वर्गों को संरक्षण देने के लिए यह दृष्टिकोण विकसित करते हैं कि उन्हें अपने हितों के लिए पर्यावरण में परिवर्तन करने का दैवीय अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 4.
सामाजिक पारिस्थितिकी से क्या आशय है? सामाजिक पारिस्थितिकी के विभिन्न पहलुओं (Aspects) का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
सामाजिक पारिस्थितिकी का अर्थ-सामाजिक पारिस्थितिकी की विचारधारा यह बताती है कि सामाजिक सम्बन्ध, मुख्य रूप से सम्पत्ति और उत्पादन के संगठन, पर्यावरण की सोच तथा प्रयास को एक आकार देते हैं । भिन्नभिन्न सामाजिक वर्ग भिन्न-भिन्न प्रकार से पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों को देखते और समझते हैं। ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, सामाजिक पारिस्थितिकी समुदायों तथा पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन है। उदाहरण के लिए वन्य विभाग, जो अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने के लिए अधिक मात्रा में बांस का निर्माण उद्योग के लिए करेगा।
वह इसे बांस के टोकरे बनाने वाले कारीगर के बाँस के उपयोग से भिन्न रूप में देखेगा। इस अर्थ में उसका दृष्टिकोण कारीगर के दृष्टिकोण से अलग होगा हालांकि दोनों बाँस का प्रयोग कर रहे हैं। इस प्रकार भिन्न-भिन्न रुचियाँ तथा विचारधारा पर्यावरण के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण का विकास करती हैं। इससे समाज के भिन्न-भिन्न समुदायों तथा वर्गों में पर्यावरण के सम्बन्ध में परस्पर मतभेद पैदा होते हैं। सामाजिक पारिस्थितिकी के अन्तर समुदायों तथा पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन इन सभी दृष्टिकोणों से किया जाता है।
इन दृष्टिकोणों की भिन्नता का प्रमुख कारण सामाजिक असमानताओं में निहित है। सामाजिक पारिस्थितिकी के अन्तर्गत एक ओर तो व्यक्ति अपना अनुकूलन भौगोलिक और सांस्कृतिक पर्यावरण के अनुसार करता है और दूसरी ओर वह अपनी जरूरतों के अनुसार पर्यावरण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण तथा नगरीय समाज पर्यावरण के साथ सामञ्जस्य करते हुए लगातार विकास की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं।
सामाजिक पारिस्थितिकी के पहलू सामाजिक
पारिस्थितिकी के प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं-
(1) जनसंख्या-जनसंख्या तथा पर्यावरण के बीच पारस्परिक सम्बन्ध पाया जाता है। जनसंख्या के बढ़ने तथा घटने से इन सम्बन्धों पर प्रभाव पड़ता है।
(2) पर्यावरण-पर्यावरण व उसकी दशाओं का जनसंख्या पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में मानव जीवन के लिए अनुकूल पर्यावरणिक दशाएँ होती हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अधिक पाया जाता है। जैसे-भारत में गंगा-सिंधु का बाढ़ का मैदान। जिन क्षेत्रों में मानव-जीवन के अनुकूल पर्यावरणिक दशाएँ नहीं होती हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है। जैसे-राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र। दूसरे, पर्यावरण के अनेक पक्ष, जैसे-भौगोलिक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण आदि भी जनसंख्या पर प्रभाव डालते हैं। ब्लैश के अनुसार, "खाद्यान्न पूर्ति मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के बीच निकटतम कड़ी है।" इस सम्बन्ध में हटिंगटन ने कहा है कि "प्रत्येक कारक के प्रति मानव प्रतिक्रिया उस स्थिति के अनुसार बदलती रहती है जो सभ्यता द्वारा प्राप्त की जाती है।"
(3) प्रौद्योगिकी-प्रौद्योगिकी के द्वारा पर्यावरण से अनुकूलन सुगमतापूर्ण किया जा सकता है। प्रौद्योगिकी का विकास बढ़ती हुई जनसंख्या की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करता है। इसके द्वारा सामाजिक संगठन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया जाता है। प्रौद्योगिकी समाज को, हमारे पर्यावरण को परिवर्तित कर, परिवर्तित करती है। इन परिवर्तनों के साथ मनुष्य अनुकूलन करते हैं। इससे सामाजिक प्रथाओं तथा परम्पराओं में भी परिवर्तन होता है।
(4) सामाजिक संगठन (समाज)-विश्व में अनेक प्रकार के समाज पाये जाते हैं, जैसे-
औद्योगिक समाज। ये समाज पर्यावरण के साथ अनुकूलन करते आ रहे हैं और पर्यावरण में आ रहे परिवर्तनों के अनुरूप इनमें भी निरन्तर परिवर्तन आ रहे हैं। ये सामाजिक संगठन भी पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान करते हैं। पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है।
प्रश्न 5.
पर्यावरण प्रदूषण के मानव-जनित प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालते हुए इसके प्रभाव लिखिये।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण पर्यावरण प्रदूषण के मानवजनित प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) मल-मूत्र तथा घरेलू कचरा-मानव जनित बहि:स्राव, जैसे-मल-मूत्र तथा घरेलू कचरा आदि तथा कृषिकार्यों में प्रयुक्त पशुओं के मल-मूत्र आदि से पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न होता है।
(2) औद्योगिक इकाइयों से प्रवाहित प्रदूषण-औद्योगिक इकाइयों से प्रवाहित किया जाने वाला अपशिष्ट तरल पदार्थ तथा नदियों में छोड़ा जाने वाला अपशिष्ट पदार्थ तथा वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसों के निष्कासन से क्रमशः थल, जल और वायु में प्रदूषण बढ़ता है। इससे पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न होता है
(3) आणविक तथा रासायनिक प्रदूषण-रासायनिक अपशिष्टों तथा अणुशक्ति संयंत्रों से निकले कचरे से नदियाँ व झीलें प्रदूषित होती हैं । अणुबमों के समय-समय पर किये जाने वाले परीक्षणों से वायुमण्डल प्रदूषित होता है। इससे वायुमण्डल में रेडियोधर्मी धूल फैलने का खतरा पैदा हो जाता है।
(4) परिवहन के साधनों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण-परिवहन के विभिन्न साधनों के द्वारा पर्यावरण, विशेषकर वायुमण्डल, प्रदूषित होता रहता है। यह समस्या विशेषकर नगरों एवं महानगरों में अधिक है।
(5) घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी व कोयले का प्रयोग-घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा कोयले के प्रयोग से उत्पन्न धुएँ से भी आन्तरिक प्रदूषण बढ़ता है। यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की अधिक है जहाँ खाना बनाने के लिए हरीभरी लकड़ियों का प्रयोग, अनुपयुक्त चूल्हे तथा हवा के निष्कासन के अभाव से पैदा होती है।।
(6) कृषिगत प्रदूषण-कृषि के अन्तर्गत कीटनाशक औषधियों तथा कृत्रिम खाद के प्रयोग से ये तत्त्व यहाँ की मिट्टी में घुल-मिल जाते हैं। वर्षा के समय जब इन खेतों से पानी बहकर बाहर जाता है तो उसके साथ ये तत्व भी घुलकर चले जाते हैं, जो जल-प्रदूषण का कारण बनते हैं।
(7) वनों की कटाई-बिना सोचे-समझे अंधाधुंध वनों के काटने से जहाँ एक तरफ बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है और कार्बन डाइऑक्साइड का शोषण कम होने से इसकी मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार वायु-प्रदूषण बढ़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव
पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(1) स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव-प्रदूषण के विविध प्रकारों का प्रभाव मानव तथा जंतुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल पड़ता है। वायु प्रदूषण से जहाँ एक तरफ श्वास तथा सेहत सम्बन्धी बीमारियाँ हो जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ रेडियोधर्मी धूल के प्रभाव स्वरूप कुष्ठ, अंधापन, लंगड़ापन, कुरूपता आदि रोग हो जाते हैं। श्वसन के द्वारा कार्बन मोनो ऑक्साइड शरीर के अन्दर प्रवेश कर रक्त का थक्का जमने लगता है। इससे हृदय गति रुक जाती है और मृत्यु हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने वाला ईंधन ग्रामीण महिलाओं की सेहत पर बुरा असर डालते हैं। भारत में घरेलू प्रदूषण से प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
(2) जलवायु पर कुप्रभाव-पर्यावरण प्रदूषण का मौसम और जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई कुछ प्रमुख गैसों (कार्बन डाइ- ऑक्साइड, मीथेन तथा अन्य) सूर्य की रोशनी को रोक कर तथा उसे वापस वायुमण्डल में न जाने देकर 'ग्रीन हाउस प्रभाव' का निर्माण करती हैं। इससे विश्व के तापमान में वृद्धि हो रही है और इसके कारण ध्रुवों के हिम की परतें पिघल रही हैं, जिसके कारण समुद्रतल की ऊँचाई बढ़ती जा रही है। इससे समुद्रों के तटों पर स्थित प्रदेशों के समुद्री जल में डूब जाने का खतरा मंडरा रहा है। दूसरे, इसका पारिस्थितिक संतुलन पर भी असर पड़ रहा है और जलवायु में उतार-चढ़ाव तथा अनियमितता बढ़ रही है।
(3) वनस्पति पर प्रभाव-पर्यावरण प्रदूषण से पौधों की शारीरिक प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है तथा पौधों के गुणों में परिवर्तन आता है। इससे पौधों का विकास रुक जाता है और उनकी उत्पादकता कम हो जाती है।'
प्रश्न 6.
1984 की भोपाल यूनियन कार्बाइड दुर्घटना क्या थी? इस दुर्घटना के लिए राज्य सरकार तथा यूनियन कार्बाइड कम्पनी की कौन-कौन सी कमियाँ जिम्मेदार थीं?
अथवा
1984 की भोपाल यूनियन कार्बाइड औद्योगिक दुर्घटना के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भोपाल औद्योगिक दुर्घटना, 1984 3 दिसम्बर, 1984 की रात, भोपाल में जानलेवा गैस से 4000 लोगों की मृत्यु तथा 2 लाख व्यक्ति हमेशा के लिए अपंग हो गए। यह गैस मिथाइल आइसोसाइनेट थी जो गलती से यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से शहर में फैली थी। भोपाल औद्योगिक दुर्घटना, 1984 के कारण 3 दिसम्बर, 1984 की रात भोपाल यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री दुर्घटना के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे
(1) सरकार द्वारा सुरक्षा के नियमों तथा चेतावनियों को नजरअंदाज करना-एम.आई.सी. प्लांट प्रारंभ से ही कठिनाइयों से भरा था और कई बार गैस रिस चुकी थी तथा जिसमें इस भीषण विनाश के पहले एक गैस ऑपरेटर की मृत्यु भी हो चुकी थी। लेकिन सरकार ने तत्परतापूर्वक इससे सम्बन्धित चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया। इन चेतावनियों में सबसे प्रमुख था-
(i) भोपाल म्युनिसिपल कॉरपोरेशन द्वारा यूनियन कार्बाइड को 1975 में भोपाल से बाहर निकल जाने का दिया जाने वाला नोटिस। इस नोटिस के बाद नोटिस देने वाले अधिकारी का स्थानान्तरण कर दिया गया।
(ii) मई 1982 में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन, अमेरिका के तीन कर्मचारियों ने यहाँ आकर इस कारखाने की सुरक्षा व्यवस्था से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण कमियों को उजागर किया। स्थानीय साप्ताहिक पत्रिका 'रपट' में इन तथ्यों को प्रकाशित किया गया, लेकिन सरकार ने इसे पैगम्बरी लेखमाला समझकर इसे नजरअंदाज कर दिया।
(iii) कारखाने की कर्मचारी यूनियन ने केन्द्रीय मंत्रियों तथा मुख्यमंत्री को इन परिस्थितियों से आगाह करते हुए पत्र । लिखे। लेकिन राज्य श्रममंत्री ने विधायकों को अनेक बार आश्वासन दिया कि कारखाना पूरी तरह सुरक्षित है। केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को इस विषय पर उनके ढुलमुल रवैये के लिए आड़े हाथों लिया। इस प्रकार राज्य सरकार ने इस प्लांट को जारी रखने की अनुमति देकर न केवल प्लांट के सुरक्षा के अभिलेखों का उल्लंघन किया, बल्कि पर्यावरण विभाग के नियमों की भी अनदेखी की।
(2) सरकारी नेताओं तथा नौकरशाहों द्वारा इस कम्पनी से अपने हितों को साधना-सुरक्षा के नियमों तथा चेतावनियों को नजरअंदाज करने के पीछे सरकार के शक्तिशाली नेताओं और नौकरशाहों के हित थे। इस कंपनी ने शक्तिशाली नेताओं तथा नौकरशाहों को अपने यहाँ नौकरी दी थी। कंपनी का भव्य अतिथिगृह हमेशा नेताओं के लिए खुला रहता था। मुख्यमंत्री की पत्नी ने अपने अमेरिका प्रवास के दौरान कंपनी के भव्यतम स्वागत-सत्कार का लाभ उठाया।
(3) यूनियन कारबाइड कॉरपोरेशन की कमियाँ-यूनियन कारबाइड कॉरपोरेशन की निम्नलिखित कमियाँ भी दुर्घटना की प्रमुख कारण थीं
प्रश्न 7.
निम्नलिखित का
उत्तर:
लिखिये
उत्तर:
1. नगरों में प्रवासी काम की तलाश में शहर आते हैं और कानूनी तौर पर रहने का सीमित स्थान उनके सामर्थ्य के बाहर होता है, फलतः वे सरकारी जमीन पर झुग्गियों में बसने के लिए मजबूर होते हैं।
2. नगरों में जनसंख्या की निरन्तर हो रही वृद्धि के कारण जमीन की मांग काफी बढ़ गयी। समृद्ध वर्ग ने लाभ कमाने की दृष्टि से यहाँ बड़ी-बड़ी बहुमंजिली दुकानें, होटल तथा दर्शनीय स्थलों के निर्माण के लिए जमीनों पर अपना नियंत्रण कर लिया। इस प्रकार नगरों में पूँजीपति वर्ग, बिल्डर, प्रॉपर्टी डीलर आदि के समूह जमीन-जायदाद तथा आवास को नियंत्रित करते हैं।
3. नगरों में बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण तथा सरकारी नीतियों की प्राथमिकताएँ आदि व्यक्ति की जल तथा स्वच्छता की आपूर्ति को प्रभावित करते हैं।