RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

Rajasthan Board RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन Important Questions and Answers. 

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Psychology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Psychology Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन 

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1. 
कौन-सा कथन सत्य है : 
(अ) चिंतन मनुष्य का एक मौलिक गुण है 
(ब) चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है 
(स) चिंतन की प्रक्रिया में विभिन्न प्रतीकों का मानसिक प्रहस्तन किया जाता है। 
(द) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं। 

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 2. 
वैध चिंतन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं
(अ) प्रबल प्रेरणाएँ 
(ब) रुचि एवं ध्यान
(स) पर्याप्त समय 
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

प्रश्न 3. 
चिंतन का विषय चिन्तक के सम्मुख होने की स्थिति में होने वाले चिंतन को कहते हैं : 
(अ) तार्किक चिंतन 
(ब) प्रत्ययात्मक चिंतन
(स) कल्पनात्मक चिंतन 
(द) प्रत्यक्षात्मक चिंतन। 
उत्तर:
(द) प्रत्यक्षात्मक चिंतन। 

प्रश्न 4. 
कुछ समय के लिए चिंतन की सक्रिय प्रक्रिया को स्थगित करके उसे मस्तिष्क में रखने को कहते हैं
(अ) चिंतन का अभाव 
(ब) गुप्त चिंतन 
(स) गर्भीकरण 
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) गर्भीकरण 

प्रश्न 5.
कौन-सा तत्व प्रामाणिक चिंतन में बाधक है
(अ) विभिन्न प्रकार के सुझाव 
(ब) संवेगों का प्रभाव 
(स) पूर्वाग्रहों का प्रभाव
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 6. 
निम्नलिखित में से कौन-सा तत्व चिंतन में बाधक नहीं है
(अ) अन्धविश्वास 
(ब) प्रेरणाएँ 
(स) पूर्वाग्रह
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(ब) प्रेरणाएँ 

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 7. 
गणित में प्रयुक्त '+' अथवा '+' के चिह्न को चिंतन के संदर्भ में क्या कहते हैं
(अ) प्रतिमा 
(ब) सम्प्रत्यय
(स) प्रतीक 
(द) उपर्युक्त में से कुछ नहीं 
उत्तर:
(स) प्रतीक 

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
चिंतन की प्रक्रिया से क्या आशय है ?
उत्तर : 
चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्बन्धित समस्या के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण किया जाता है तथा कार्यकरण सम्बन्धों की श्रृंखला को जानने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 2. 
चिंतन की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर : 
"चिंतन एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें मन किसी विचार को नियन्त्रित करता है अथवा प्रयोजनात्मक रूप में उसकी गति का नियमन करता है।"

प्रश्न 3. 
चिंतन के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : 
चिंतन के मुख्य प्रकार हैं- 
1. प्रत्यक्षात्मक चिंतन, 
2. कल्पनात्मक चिंतन, 
3. प्रत्ययात्मक चिंतन तथा 
4. तार्किक चिंतन।

प्रश्न 4. 
चिंतन के विषय में नियमों का प्रतिपादन किस मनोवैज्ञानिक ने किया है ?
उत्तर : 
चिंतन के विषय में स्पीयरमैन ने नियमों का प्रतिपादन किया है।

प्रश्न 5. 
वैध चिंतन में सहायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : 
वैध चिंतन में सहायक कारक निम्नलिखित हैं- 

  • प्रबल प्रेरणाएँ. 
  • रुचि एवं ध्यान, 
  • बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र, 
  • पर्याप्त समय, 
  • सतर्कता और लचीलापन तथा 
  • गर्भीकरण।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 6. 
चिंतन की प्रक्रिया पर सुझावों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : 
सामान्य रूप से सुझावों का चिंतन की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सुझावों के परिणामस्वरूप चिंतन में पक्षपात आ जाता है तथा उसकी तटस्थता समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 7. 
चिंतन की प्रक्रिया पर पूर्वाग्रहों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : 
पूर्वाग्रहों की दशा में व्यक्ति का चिंतन तटस्थ नहीं रह पाता तथा पक्षपातपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 8. 
चिंतन की प्रक्रिया पर अंधविश्वासों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : 
सभी प्रकार के अंधविश्वास प्रामाणिक चिंतन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अंधविश्वास से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य तथा तटस्थ रूप से चिंतन नहीं कर पाता है।

प्रश्न 9. 
चिंतन की प्रक्रिया किन माध्यमों द्वारा चलती है ?
उत्तर : 
चिंतन की प्रक्रिया वस्तुओं के प्रतीकों, प्रतिमाओं तथा प्रत्ययों के माध्यम से चलती है।

प्रश्न 10. 
प्रबल संवेगावस्था में व्यक्ति का चिंतन किस प्रकार का होता है ?
उत्तर : 
प्रबल संवेगावस्था में व्यक्ति का चिंतन अस्त-व्यस्त हो जाता है। उसकी तटस्थता एवं तार्किकता प्रायः समाप्त हो जाती है।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)

प्रश्न 1. 
चिंतन के मुख्य प्रकारों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन के प्रकार : चिंतन के मुख्य प्रकार निम्नलिखित

1. प्रत्यक्षात्मक चिंतन : इस प्रकार के चिंतन में सामान्य रूप से चिंतन का विषय चिंतक के सम्मुख उपस्थित रहता है। यह एक निम्न स्तर का तथा सरल प्रकार का चिंतन होता है। उदाहरण के लिए, किसी इमारत को देखकर उसके विषय में होने वाला चिंतन प्रत्यक्षात्मक चिंतन कहलाता है।

2. कल्पनात्मक चिंतन : यह चिंतन कल्पना प्रधान होता है। इस प्रक्रिया में प्रत्यक्षों एवं प्रतिमानों के आधार पर भविष्य के विषयों एवं परिस्थितियों का चिंतन किया जाता है।

3. प्रत्ययात्मक चिंतन : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह चिंतन प्रत्ययों के आधार पर चलता है।

4. तार्किक चिंतन : जब कोई गंभीर समस्या उठ खड़ी होती है, तब उस समस्या के समाधान के लिए किया जाने वाला चिंतन तार्किक चिंतन होता है। यह एक जटिल प्रकार का चिंतन है तथा इस प्रकार की चिंतन प्रक्रिया में चिंतन के अन्य प्रकार भी सम्मिलित रहते हैं।

प्रश्न 2. 
चिंतन की प्रक्रिया पर सुझावों का क्या प्रभाव पड़ता है ?.
उत्तर : 
चिंतन की प्रक्रिया पर सुझावों का प्रभाव : सामान्य रूप से चिंतन को एक व्यक्तिगत प्रक्रिया ही मानना चाहिए, परन्तु अनेक बार चिंतन के दौरान अन्य व्यक्तियों के सुझाव भी लिए जाते हैं। यदि इस प्रकार से ग्रहण किए गए सुझाव चिंतन के लिए सहायक हैं तो उन्हें अनुकूल समझा जाता है अन्यथा सुझावों से चिंतन की प्रक्रिया प्रभावित होती है। सुझावों के परिणामस्वरूप चिंतन में पक्षपात आ जाता है तथा तटस्थता समाप्त हो जाती है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि सुझाव ग्रहणशीलता चिंतन की राह में बाधक होती है। जो व्यक्ति अन्य लोगों के सुझावों को जितना अधिक ग्रहण करता है उसका चिंतन उतना ही अधिक पक्षपातपूर्ण हो जाता है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की बात को बिल्कुल न माने परन्तु उसे अपनी बुद्धि का प्रयोग करके यह देखना चाहिए कि दूसरों का सुझाव कहाँ तक सही है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 3. 
चिंतन की प्रक्रिया पर संवेगों के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन पर संवेग का प्रभाव : चिंतन एक तटस्थ प्रक्रिया है। चिंतन के समय व्यक्ति को हर प्रकार से शान्त एवं सन्तुलित होना चाहिए। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि संवेगावस्था में सही चिंतन नहीं हो सकता। संवेगावस्था में व्यक्ति हिल जाता है। उसके मन एवं शरीर में उथल-पुथल मच जाती है तथा वह किसी विशेष दिशा की ओर उन्मुख हो जाता है। संवेग व्यक्ति को उत्तेजित कर देते हैं। ऐसी स्थिति में वैध चिंतन सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए, कोई भी व्यक्ति अपनी प्रेमिका के प्रेम में वशीभूत होकर सही सोच-विचार अर्थात् चिंतन नहीं कर सकता।

प्रश्न 4. 
चिंतन पर पूर्वाग्रहों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
चिंतन पर पूर्वाग्रहों का प्रभाव : प्रत्येक व्यक्ति में कुछ पूर्वाग्रह होते हैं। पूर्वाग्रहों के कारण हम कुछ विषयों के प्रति अपने विशिष्ट विचार रखते हैं। ये पूर्वाग्रह वैध या प्रामाणिक चिंतन की राह में बाधा उत्पन्न करते हैं। पूर्वाग्रहों के कारण हम सही ढंग से चिंतन नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में हमारा चिंतन पक्षपातपूर्ण हो जाता है। जीवन के अनेक क्षेत्रों में हमारे निर्णय केवल इसलिए गलत हो जाया करते हैं क्योंकि हम पहले से पूर्वाग्रहों के शिकार होते हैं। उदाहरण के लिए, हमारा एक पूर्वाग्रह है कि अमुक बस्ती या मुहल्ले में अपराधी या दुराचारी व्यक्ति रहते हैं। इसके बाद यदि हमें उस बस्ती का कोई अच्छा व्यक्ति भी मिलता है तो हम उसे सन्देह की दृष्टि से देखते हैं। यह पूर्वाग्रह का ही परिणाम होता है।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)

प्रश्न 1. 
चिंतन पर अन्धविश्वासों का क्या प्रभाव पड़ता
उत्तर : 
चिंतन पर अन्धविश्वासों का प्रभाव : सामान्य जीवन में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी अन्धविश्वास से अवश्य प्रभावित रहता है। अन्धविश्वास का शिकार व्यक्ति सामान्य तथा तटस्थ रूप से विचार नहीं कर सकता। अन्धविश्वास की स्थिति में चिंतन की प्रक्रिया स्वतः ही अन्धविश्वास के अनुकूल चलने लगती है। उदाहरण के लिए, भारतीय समाज में एक सामान्य अन्धविश्वास है कि यदि जाते समय बिल्ली रास्ता काट जाए तो कुछ न कुछ अशुभ होता है तथा संयोगवश बिल्ली उसकी राह में आ चुकी होती है, तो वह बार-बार बिल्ली को ही उस क्षति के लिए उत्तरदायी ठहराता है। ऐसी स्थिति में उसका चिंतन सही दिशा में चल ही नहीं पाता है। स्पष्ट है कि सभी प्रकार के अंधविश्वास प्रमाणित चिंतन के लिए प्रतिकूल कारक होते हैं। मुक्त एवं तटस्थ चिंतन के लिए व्यक्ति को हर प्रकार के अंधविश्वासों से मुक्त होना चाहिए।

प्रश्न 2. 
चिंतन में प्रतीकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन में प्रतीकों का महत्त्व : चिंतन की प्रक्रिया प्रतीकों के माध्यम से भी चलती है। प्रायः वस्तुओं की अनुपस्थिति में अनेक प्रतीकों के ही सहारे चिंतन चलता है। उदाहरण के लिए, यदि चिंतन की प्रक्रिया में आपके किसी मित्र का प्रसंग आता है तो उस समय आपके मित्र का प्रतीक ही आपके मस्तिष्क में होगा। मित्र का यह प्रतीक एक विशेष अर्थ का प्रतिपादन करता है।

प्रतीक सदैव सामान्य होते हैं। उदाहरण के लिए, रात में सीटी बजना, चौकीदार या पुलिस का प्रतीक होता है। स्कूल में दो घंटे बजाना दूसरे पीरियड के प्रारंभ होने का प्रतीक होता है तथा यदि अनेक घंटे लगातार बज जाएँ तो यह छुट्टी का प्रतीक होता है। चिंतन की प्रक्रिया मुख्य रूप से इन्हीं प्रतीकों के आधार पर चलती है। चिंतन की प्रक्रिया प्रतीकों के माध्यम से सरल हो जाती है। इसके अतिरिक्त इनके फलस्वरूप समय एवं शक्ति की भी बचत हो जाती है।

प्रश्न 3. 
चिंतन में प्रतिभाओं के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन में प्रतिमाओं का महत्त्व : प्रतीकों के समान ही प्रतिमाओं का भी चिंतन की प्रक्रिया में एक विशेष स्थान है। सामान्य शब्दों में किसी भी प्रत्यक्ष की धूमिल पुनरावृत्ति को प्रतिमा कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध किसी गत अनुभव से होता है। गत अनुभव की प्रतिमाएँ मस्तिष्क में चक्कर काटा करती हैं। ये ऐच्छिक और अनैच्छिक दोनों ही प्रकार की हो सकती हैं। कभी-कभी कुछ प्रतिमाएँ प्रत्यक्ष के समान स्पष्ट होती हैं। प्रतिमाएँ दृश्यजन्य, श्रवण, स्वाद, गन्ध तथा स्पर्शजन्य हो सकती हैं। 

किसी अच्छे गीत की प्रतिमा लम्बी अवधि तक बनी रहती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रक्रिया में विभिन्न प्रतिमाओं का विशेष योगदान होता है। आधुनिक युग के कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह विचार प्रकट किया है कि चिंतन में प्रतिमाओं का अधिक महत्त्व नहीं है। वास्तव में चिंतन विधि की भिन्नता के कारण प्रतिमाओं में भी अन्तर आ जाता है। अतः भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के चिंतन के लिए प्रतिमाओं का महत्त्व भी भिन्न-भिन्न होता है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 4. 
चिंतन की प्रक्रिया के सन्दर्भ में प्रत्यय तथा प्रतिमा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन की प्रक्रिया में प्रत्ययों तथा प्रतिमाओं का विशेष महत्त्व होता है। कभी-कभी भ्रमवश प्रत्यय तथा प्रतिमा को समान अर्थों में इस्तेमाल कर लिया जाता है, परन्तु वास्तव में इन दोनों में कुछ स्पष्ट अन्तर है। प्रत्यय तथा प्रतिमा में मुख्य अन्तर का विवरण निम्नलिखित है -

  • प्रत्यय अमूर्त व सामान्य होता है, जबकि प्रतिमा मूर्त व विशेष होती है।
  • चिंतन के लिए प्रत्यय का होना आवश्यक है, जबकि प्रतिमा के अभाव में भी चिंतन किया जा सकता है।
  • एक प्रत्यय बहुत सी वस्तुओं का प्रतीक अथवा प्रतिमा हो सकता है जबकि एक प्रतिमा एक ही वस्तु पर आधारित होती
  • प्रतिमा की तुलना में प्रत्यय का विकास एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। प्रत्ययों का विकास धीरे-धीरे होता है।
  • प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया प्रतिमा के निर्माण की प्रक्रिया की तुलना में अधिक जटिल होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
चिंतन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन मनुष्य का एक मौलिक गुण है। विश्व के सभी प्राणियों में से केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो चिंतन करता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवनपर्यन्त चिंतन की आवश्यकता होती है। व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सभी समस्याओं का समाधान चिंतन द्वारा ही सम्भव होता है। चिंतन के अभाव में किसी भी सभ्य व्यक्ति का जीवन सुचारु रूप से नहीं चल सकता। चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है अतः ममोविज्ञान में इस प्रत्यय का व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया जाता है।

चिंतन का अर्थ एवं परिभाषा : 'चिंतन' अथवा 'सोचना' (Thinking) एक मानसिक प्रक्रिया है। जब किसी व्यक्ति के सामने किसी प्रकार की समस्या उठ खड़ी होती है तब उसे चिंतन की आवश्यकता होती है। चिंतन द्वारा समस्या का हल निकाला जाता है। चिंतन की प्रक्रिया के अन्तर्गत समस्या के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण किया जाता है तथा कार्य-कारण सम्बन्धों की श्रृंखला को जानने का प्रयास किया जाता है। चिंतन की प्रक्रिया उस समय तक चलती रहती है, जब तक समस्या का कोई सन्तोषजनक हल नहीं मिल जाता है। समस्या का हल मिल जाने पर चिंतन की प्रक्रिया स्थगित हो जाती है। यह एक आन्तरिक प्रक्रिया है, जो वस्तुओं के प्रतीकों (Symbols) के माध्यम से चलती है।

चिंतन के इस अर्थ को जान लेने के बाद इस सन्दर्भ में प्रमुख विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाओं को जान लेना भी आवश्यक है। मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं--
(i) वुडवर्थ : वुडवर्थ ने चिंतन की अति सरल परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है “किसी बाधा पर विजय प्राप्त करने का एक तरीका ही चिंतन है।"

(ii) बी. एन. झा : बी. एन. झा ने चिंतन को एक सक्रिय एवं नियमित प्रक्रिया के रूप में प्रतिपादित किया है। उनके अनुसार, "चिंतन एक सक्रिय प्रक्रिया है, जिसमें मन एक उद्देश्यपूर्ण ढंग से विचार की गति को नियन्त्रित और नियमित करता है।"

(iii) रॉस : जे. रॉस ने चिंतन की अति संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, "चिंतन ज्ञानात्मक रूप में एक मानसिक प्रक्रिया है।"

(iv) कोलिन्स तथा ड्रेवर : कोलिन्स तथा ड्रेवर ने चिंतन के विषय में कहा है, "चिंतन में इस प्रकार वर्णित परिस्थिति के प्रति जीव द्वारा चेतन समायोजन कर सकते हैं। चिंतन स्पष्ट मानसिक जीवन के समस्त स्तरों पर हो सकता है। जैसे- प्रत्यक्षानुभव, विचारात्मक तथा प्रत्यानुभव।" उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर 'चिंतन' का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। चिंतन में विभिन्न प्रतीकों का मानसिक प्रहस्तन किया जाता है। चिंतन की प्रक्रिया का एक उद्देश्य सम्बन्धित समस्या का हल प्राप्त करना होता है। 

इस प्रक्रिया में मुख्यतः प्रयत्न एवं भूल की विधि को अपनाया जाता है। चिंतन की प्रक्रिया अनेक बार बहुत लम्बी भी चल सकती है। इस प्रकार की प्रक्रिया का लक्ष्य कोई अनुसंधान अथवा आविष्कार करना हो सकता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि चिंतन सदैव मानसिक अनुसंधान ही होता है, न कि गत्यात्मक अनुसंधान। इससे समय एवं शक्ति का अपव्यय बच जाता है। वास्तव में सम्बन्धित वस्तुओं के अभाव में चिंतन की प्रक्रिया सम्बन्धित वस्तुओं के प्रतीकों द्वारा ही सम्पन्न होती है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

प्रश्न 2. 
चिंतन की प्रक्रिया के संदर्भ में प्रतीक, प्रतिमा तथा प्रत्यय के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। प्रत्यय-निर्माण की प्रक्रिया का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है और इस मानसिक प्रक्रिया में वस्तुओं के स्थान पर उनके प्रत्ययों, प्रतीकों एवं प्रतिमाओं का प्रहस्तन होता है। चिंतन की वास्तविक प्रक्रिया इन्हीं के माध्यमों से चलती है। इन सबका चिंतन की प्रक्रिया में विशेष महत्त्व होता है। प्रतीक, प्रतिमा एवं प्रत्यय का अर्थ :

1. प्रतीक : किसी भी वस्तु, दृश्य अथवा स्थान आदि की अनुपस्थिति में उन पर प्रतीकों के माध्यम से ही चिंतन किया जाता है। इनके आधार पर चिंतन की प्रक्रिया अत्यन्त सरल हो जाती है। कोई भी शब्द, चित्र, चिह्न अथवा किसी भी प्रकार की आकृति प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हो सकती है। प्रतीक और चिह्न का परस्पर निकट सम्बन्ध होता है। वस्तुतः प्रतीक ही चिह्न बन जाते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि प्रत्येक चिह्न किसी-न-किसी तथ्य का प्रतीक हो सकता है। भाषा, विज्ञान और गणित में इन प्रतीकों का प्रचुरता के साथ उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए: गणित में '+' का अर्थ जोड़ना और '+' का अर्थ भाग करना है। इसी प्रकार भाषा के क्षेत्र में प्रत्येक अक्षर किसी-न-किसी विशिष्ट प्रकार की ध्वनि का प्रतीक होता है।

2. प्रतिमाएँ : यद्यपि चिंतन के लिए प्रतिमाओं का प्रयोग अनिवार्य रूप से आवश्यक नहीं है, तथापि उत्तम कोटि के चिंतन के लिए प्रतिमाओं का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। प्रतिमाएँ व्यक्ति के विगत अनुभवों पर आधारित होती हैं और प्रायः इतनी स्पष्ट होती हैं कि उनमें और किसी प्रत्यक्ष में बहुत कम अन्तर परिलक्षित होता है। यही कारण है कि सामान्यत: किसी भी प्रत्यक्ष की धूमिल पुनरावृत्ति को ही प्रतिमा के रूप में परिभाषित किया जाता है। प्रतिमाएँ केवल दृष्टिजन्य ही नहीं होतीं, वरन् व्यक्ति की किसी भी इन्द्रिय से सम्बन्धित हो सकती हैं। उदाहरण के लिएकिसी पर्वतीय स्थल पर पर्याप्त समय रहने के उपरान्त वहाँ के किसी विशेष आकर्षक दृश्य की प्रतिमा बार-बार मस्तिष्क में आ सकती है। इसी प्रकार किसी मधुर गीत की स्वर-लहरियाँ पर्याप्त समय तक कानों में गूंज सकती हैं और श्रवण-प्रतिमा के रूप में निर्मित हो सकती है।

3. प्रत्यय : प्रत्यय संवेदना और प्रत्यक्षीकरण के बाद की मानसिक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया व्यक्ति के पूर्व अनुभवों से सम्बन्धित होती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी न किसी रूप में शैशवावस्था से ही प्रारंभ हो जाती है। प्रत्येक बालक अपने निरीक्षण के आधार पर विभिन्न वस्तुओं, व्यक्तियों, दृश्यों आदि के सम्बन्ध में अपने प्रत्ययों का निर्माण कर लेता है और उसे यह ज्ञात हो जाता है कि यह हाथी है, यह मेज है, यह उसका भाई है आदि। किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, दृश्य, विचार आदि का सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस मानसिक योग्यता को ही प्रत्यय के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया : प्रत्यय का निर्माण पाँच प्रमुख मानसिक प्रक्रियाओं पर आधारित होता है। इन मानसिक प्रक्रियाओं का संक्षिप्त परिचय निम्नवत् है

1. प्रत्यक्ष : प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया का सर्वप्रथम चरण प्रत्यक्ष का निर्माण है। एक वस्तु के प्रत्यक्ष निर्माण से पूर्व उस वस्तु का पर्याप्त निरीक्षण आवश्यक होता है। व्यापक निरीक्षण के आधार पर उस वस्तु से सम्बन्धित अनेक विचार हमारे मन में आते हैं और इन समस्त विचारों के योग से ही वस्तु से सम्बन्धित प्रत्यक्ष का निर्माण होता है।

2. विश्लेषण : यह प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया से सम्बन्धित दूसरा पद है। इस पद के अन्तर्गत किसी प्रत्यय के गुणों का विश्लेषण करके उसकी विशेषताओं को पहचाना जाता है। किसी भी वस्तु, व्यक्ति आदि की स्पष्ट पहचान के लिए उनकी विशिष्टताओं का समुचित विश्लेषण नितान्त आवश्यक होता है।

3. तुलना : इस मानसिक प्रक्रिया के अन्तर्गत दो अथवा दो से अधिक प्रत्ययों की तुलना की जाती है और एक ही वस्तु अथवा एक ही जाति के विभिन्न प्राणियों के मध्य तुलना के आधार पर यह ज्ञात किया जाता है कि उनमें कौन-सी समानताएँ अथवा कौन-सी विभिन्नताएँ हैं।

4. संश्लेषण : इस प्रक्रिया के अन्तर्गत एक ही जाति अथवा समूह से सम्बन्धित व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के असमान गुणों को छोड़कर उनके समान गुणों का सामान्यीकरण कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, कई रंग की बिल्लियों को देखकर इस तथ्य का सामान्यीकरण किया जा सकता है कि सभी बिल्लियों में उनके रंग के अतिरिक्त और कोई अन्तर नहीं होता। इस प्रकार का सामान्यीकरण ही किसी वस्तु आदि के समान गुणों का संश्लेषण करने में सहायक होता है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

5. नामकरण : प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया से सम्बन्धित अन्तिम चरण प्रत्यय का नामकरण करना है। प्रत्यय का नाम एक प्रकार से प्रत्यय का प्रतीक होता है और इस नाम के आधार पर ही एक प्रत्यय को दूसरे प्रत्यय से पृथक् किया जाता है। नाम से ही किसी प्रत्यय की पहचान भी होती है और कोई भी नाम लेते ही हमारे चेतन मस्तिष्क में उस नाम से सम्बन्धित प्रत्यय का चित्र स्पष्ट हो जाता है।

उदाहरण के लिए- 'हाथी' शब्द कहते ही हमारे मस्तिष्क में हाथी का प्रत्यक्ष स्पष्ट होने लगता है अर्थात् वह जीव जो विशालकाय शरीर वाला, दो कान, एक लम्बी लटकती हुई | सूंड तथा चौड़े मस्तक वाला है, जो धीमी गति से चलने वाला तथा अपनी सूंड से पानी पीने वाला है आदि। इन समस्त विचारों के योग से निर्मित प्रत्यय को हम मात्र एक शब्द 'हाथी' कह देने से ही अपने मस्तिष्क में देखने लगते हैं। इस प्रकार प्रत्यय का संश्लेषण करने के उपरांत उसका नामकरण करना भी परम आवश्यक होता है।

प्रश्न 3. 
चिंतन की प्रक्रिया में भाषा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
मनुष्य की लौकिक शक्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान विकसित भाषा-शक्ति का है। भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मानव-समूहों में विभिन्न सदस्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं तथा सामाजिक अन्त:क्रियाओं को स्थापित करते हैं। भाषा शाब्दिक होती है तथा प्रतीकों द्वारा अपना कार्य पूरा करती है। मनुष्य की एक अन्य विशिष्ट शक्ति चिंतन की शक्ति है। चिंतन की प्रक्रिया को आन्तरिक सम्भाषण (Inner speech) या आत्म-भाषण भी कहा जाता है। मानवीय चिंतन से भिन्न पशुओं के चिंतन में भाषा का योगदान नहीं होता, इसीलिए पशुओं का चिंतन पर्याप्त विकसित या व्यवस्थित नहीं होता है। इस तथ्य को विभिन्न प्रयोगों द्वारा गैस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों ने सत्यापित किया

चिंतन की प्रक्रिया तथा भाषा : मानवीय चिंतन की प्रक्रिया में भाषा के स्थान एवं योगदान के विषय में निम्नलिखित तथ्य उल्लेखनीय हैं|

1. अधिकांश मनोवैज्ञानिक स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि वयस्क व्यक्तियों में चिंतन की प्रक्रिया शब्दों अर्थात् भाषा के माध्यम से चलती है। इस क्षेत्र में मार्गन तथा गिनीलैण्ड का योगदान सराहनीय है। अपने विचार प्रस्तुत करना तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किए गए विचारों को ग्रहण करके उनके प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कार्य भी भाषा द्वारा होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि भाषा में चिह्नों के प्रयोग के कारण यह विचारों का माध्यम है। इस प्रकार शब्द-विन्यास विचारों के संकेत के रूप में कार्य करते हैं।

2. चिंतन की प्रक्रिया में भाषा का एक अन्य योगदान भी है। विचारों की स्मृति के निर्माण का कार्य भी भाषा द्वारा होता है। हमारे मस्तिष्क में मानसिक संस्कारों के रूप में विचार स्थान ले लेते हैं। आवश्यकता पड़ने पर ये संस्कार भाषा के आधार पर सरलता से स्मरण हो आते हैं।

3. चिंतन की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति भाषा द्वारा ही होती है। हम जानते हैं कि व्यक्ति अपने समस्त विचार भाषा के ही माध्यम से अभिव्यक्त करता है। यदि व्यक्ति अपने विचारों को लिखित रूप दे देता है तो उन्हें कभी भी पढ़कर स्मरण किया जा सकता है। व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान भी भाषा के ही माध्यम से करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि चिंतन के लिए आवश्यक विचारों की अभिव्यक्ति मुख्य रूप से भाषा के ही माध्यम से होती है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

4. चिंतन के क्षेत्र में समय की मितव्ययिता भी भाषा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। भाषा द्वारा चिंतन के लिए आवश्यक विचारों में कमी लाई जा सकती है। भाषा द्वारा ही विचारों के सागर को गागर में सीमित किया जाता है।

5. चिंतन एवं भाषा का विकास एक-दूसरे पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे हमारे विचार समृद्ध होते हैं, वैसे-वैसे हमारा चिंतन भी विकसित होता है। इसी प्रकार चिंतन एवं विचारों के विकास के साथ भाषा का विकास होता है।

6. चिंतन के क्षेत्र में एक अन्य प्रकार से भी भाषा का योगदान होता है। भाषा के माध्यम से ही लेख, कविता, कहानियाँ तथा निबन्ध आदि साहित्यिक रचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। इन साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से अन्य व्यक्तियों की चिंतन क्षमता एवं चिंतन के प्रति रुचि को प्रोल्साहन मिलता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भाषा द्वारा ही चिंतन को प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

प्रश्न 4. 
अभिसारी चिंतन क्या है ? अपसारी चिंतन का महत्त्व लिखिए ?
उत्तर : 
सर्जनात्मकता शोध के अग्रणी, जे. पी. गिलफर्ड (J.P. Gulford) ने चिंतन के दो प्रकार बताए हैं : अभिसारी तथा अपसारी। अभिसारी चिंतन वह चिंतन है जिसकी आवश्यकता वैसी समस्याओं को हल करने में पड़ती है जिनका मात्र एक सही उत्तर होता है। मन सही उत्तर की ओर अभिमुख हो जाता है। इसे समझने के लिए निम्न प्रश्नों को ध्यान से देखें। यह अंक श्रृंखला पर आधारित है जिसमें आपको अगले अंक को बताना है। मात्र एक सही उत्तर अपेक्षित है।
प्रश्न : 3, 6,9... अगला अंक क्या होगा? 
उत्तर : 12
अब आप कुछ ऐसे प्रश्नों पर विचार करें जिनके लिए कोई एक नहीं बल्कि अनेक सही उत्तर होते हैं। इस तरह के कुछ प्रश्न नीचे दिए गए हैं

  • कपड़ों के कौन-कौन से उपयोग हैं ? 
  • आप एक कुर्सी में क्या सुधार सुझाएँगे जिससे कि वह अधिक आरामदेह और सौंदर्य की दृष्टि से सुखद बन जाए? 
  • यदि विद्यालयों से परीक्षा समाप्त कर दी जाए तो क्या होगा? 

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 8 चिंतन

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर के लिए अपसारी चिंतन की आवश्यकता होती है जो एक मुक्त चिंतन है जहाँ व्यक्ति अपने अनुभवों के आधार पर प्रश्नों या समस्याओं के अनेक उत्तर सोच सकता है। इस प्रकार का चिंतन नवीन एवं मौलिक विचारों को उत्पन्न करने में सहायक होता है। 
अपसारी चिंतन योग्यताओं के अंतर्गत सामान्यतया चिंतन प्रवाह, लचीलापन, मौलिकता एवं विस्तारण आते हैं। 
 

Bhagya
Last Updated on Sept. 27, 2022, 10:14 a.m.
Published Sept. 27, 2022