Rajasthan Board RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 7 मानव स्मृति Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Psychology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Psychology Notes to understand and remember the concepts easily.
बहुविकल्पी प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तम स्मृति के मुख्य लक्षण हैं :
(अ) स्थायी धारणा
(ब) उत्पादकता
(स) यथार्थ पुनःस्मरण
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है :
(अ) निरर्थक सामग्री का विस्मरण कम होता है
(ब) सार्थक सामग्री का विस्मरण कम होता है
(स) सार्थक या निरर्थक सामग्री के विस्मरण की दर समान होती है।
(द) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।
उत्तर:
(ब) सार्थक सामग्री का विस्मरण कम होता है
प्रश्न 3.
आधुनिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत स्मृति की कितनी व्यवस्थाएँ मानी जाती हैं :
(अ) दो
(ब) एक
(स) तीन
(द) अनेक
उत्तर:
(स) तीन
प्रश्न 4.
स्मृति की प्रक्रिया के तत्त्व हैं :
(अ) सीखना तथा धारणा
(ब) प्रत्यास्मरण
(स) प्रत्यभिज्ञा
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 5.
एबिंगहॉस ने विस्मरण को कैसी मानसिक प्रक्रिया स्वीकार किया है
(अ) सक्रिय
(ब) निष्क्रिय
(स) सक्रिय एवं निष्क्रिय दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) निष्क्रिय
प्रश्न 6.
“जो कुछ अप्रिय है उसे स्मृति से दूर करने की प्रवृत्ति ही विस्मरण है।" यह कथन किस मनोवैज्ञानिक का है:
(अ) मैक्डूगल
(ब) फ्रायड
(स) मन
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) फ्रायड
प्रश्न 7.
किस विद्वान ने अल्पकालीन स्मृति पर सर्वप्रथम व्यवस्थित अध्ययन किया था ?
(अ) क्रो तथा क्रो ने
(ब) पीटरसन तथा पीटरसन ने
(स) शैरिफ तथा शेरिफ ने
(द) फ्रायड ने
उत्तर:
(ब) पीटरसन तथा पीटरसन ने
प्रश्न 8.
अल्पकालीन स्मृति में सामग्री के भंडारण का ह्रास कितने समय में होता है :
(अ) 2 मिनट में
(ब) एक घंटे में
(स) 1 मिनट में
(द) 5 मिनट में
उत्तर:
(स) 1 मिनट में
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्मृति की एक सरल एवं स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
घटनाओं की उस रूप में कल्पना करना जिस प्रकार भूतकाल में उनका अनुभव किया गया और उन्हें अपने ही अनुभव के रूप में पहचानना ही स्मृति है।
प्रश्न 2.
स्मृति के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। इसके चार तत्त्व हैं - सीखना, धारणा, प्रत्यास्मरण या पुनः स्मरण तथा प्रत्यभिज्ञा या पहचाना
प्रश्न 3.
उत्तम स्मृति के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. सही ढंग से सीखना,
2. स्थायी धारणा,
3. व्यर्थ के तत्त्वों का विस्मरण,
4. उत्पादकता तथा
5. यथावत् पुनः स्मरण।
प्रश्न 4.
स्मरण करने की मिश्रित विधि से क्या आशय है ? इस विधि को किस प्रकार के विषय को याद करने के लिए अपनाया जाता है ?
उत्तर :
स्मरण करने की मिश्रित विधि में पूर्ण एवं आंशिक विधियों को एक साथ अपनाया जाता है। सामान्य रूप से किसी लम्बे विषय को याद करने के लिए इस विधि को अपनाया जाता है।
प्रश्न 5.
उत्तम स्मृत्ति के मुख्य लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
1. स्थायी धारणा,
2. उत्पादकता,
3. यथार्थ पुनः स्मरण।
प्रश्न 6.
स्मृति की प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व कौन से हैं ?
उत्तर :
1. सीखना तथा धारणा,
2. प्रत्यास्मरण,
3. प्रत्यभिज्ञा।
प्रश्न 7.
आधुनिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत स्मृति की कितनी व्यवस्थाएँ मानी जाती हैं ?
उत्तर :
तीन।
प्रश्न 8.
अल्पकालीन स्मृति में सामग्री के भंडारण का हास कितने समय में होता है ?
उत्तर :
1 मिनट में।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)
प्रश्न 1.
अल्पकालीन स्मृति की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
अल्पकालीन स्मृति की विशेषताएँ : अल्पकालीन स्मृति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं :
1. धारणा का तीव्र ह्रास : अल्पकालीन स्मृति की एक विशेषता है कि इसमें धारणा का ह्रास तीव्र दर से होता है अर्थात् विस्मरण की गति तीव्र होती है। विभिन्न अध्ययनों के आधार पर स्पष्ट किया गया है कि अधिगम के 12 सेकेण्ड उपरान्त लगभग 75% तक विस्मरण हो जाता है। 18 सेकेण्ड के उपरान्त केवल 10% धारणा बच जाती है अर्थात् 90% तक विस्मरण हो जाता है। विस्मरण सम्बन्धी ये निष्कर्ष पीटरसन तथा पीटरसन ने प्राप्त किए तथा मर्डाक ने अपने प्रयोगों के आधार पर इनकी पुष्टि की थी।
2. इस स्मृति में सीखने की मात्रा कम होती है : इस प्रकार की स्मृति की एक विशेषता यह है कि इसके द्वारा कम मात्रा में सीखना होता है। इसका कारण यह है कि इस विधि में अनुभव की मात्रा कम होती है।
3. अग्रोन्मुखी तथा पृष्ठोन्मुखी
व्यतिकरण : विभिन्न परीक्षणों के आधार पर अल्पकालीन स्मृति की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इस प्रकार की स्मृति पर अग्रोन्मुखी तथा पृष्ठोन्मुखी दोनों प्रकार के व्यतिकरणों का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 2.
अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन की विक्षेप प्रविधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन की विक्षेप प्रविधि : अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रविधि को 'विक्षेप प्रविधि, (Distraction Technique) कहा जाता है। इस विधि द्वारा अल्पकालीन स्मृति का अध्ययन करने वाले मुख्य वैज्ञानिक हैं - पीटरसन तथा पीटरसन। इस विधि के अन्तर्गत प्रयोज्य के सम्मुख किसी विषय को अनुभव कराने के लिए एक बार प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद प्रयोज्य को किसी अन्य विषय में संलग्न कर दिया जाता है जिससे वह तुरन्त पूर्व सीखे विषय को मन ही मन दोहरा सके।
इस अन्तराल के उपरांत उसे पुनः पूर्व-विषय दिखाया जाता है तथा उसकी धारणा को ज्ञात किया जाता है। इस विधि को अपनाकर पीटरसन तथा पीटरसन ने एक प्रयोग का आयोजन किया। उन्होंने तीन अक्षरों वाले एक त्रिपद को विषय-सामग्री के रूप में चुना। उन्होंने इस त्रिपद को प्रयोज्य के सम्मुख आठ अंकों की एक अन्य संख्या प्रस्तुत की गई तथा प्रयोज्य को कहा गया कि वह उस संख्या को उलटकर गिने। कुछ समय तक इस प्रकार की गिनती करवाने के उपरांत प्रयोज्य को, पूर्व प्रस्तुत किए गए त्रिपद को पुनः स्मरण करने के लिए कहा गया। इस प्रयोग के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किया गया कि त्रिपद के प्रारंभिक अध्ययन के तुरन्त पश्चात् धारणा में तेजी से हास होता है तथा 18 सेकेण्ड के उपरांत यह धारणा घटकर 10% तक ही रह जाती है।
प्रश्न 3.
अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन के लिए अपनाई जाने वाली छानबीन प्रविधि का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन की छानबीन प्रविधि : अल्पकालीन स्मृति के अध्ययन के लिए अपनाई जाने वाली एक मुख्य विधि 'छानबीन प्रविधि, (Probe Technique) | है। इस विधि को अपनाकर अनेक विद्वानों ने अध्ययन किए तथा अभीष्ट निष्कर्ष भी प्राप्त किए। इस प्रविधि के अन्तर्गत कुछ सार्थक, निरर्थक या युग्मित सहचर पद चुन लिए जाते हैं तथा इन चुने हुए पदों को क्रमिक रीति से प्रयोज्य के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है।
इस प्रक्रिया में पद प्रस्तुत करते हुए कुछ समय के उपरान्त पूर्व प्रस्तुत किए गए पद के किसी एक शब्द को प्रस्तुत करके प्रयोज्य से उसके बाद के शब्द को पुनः स्मरण करने के लिए कहा जाता है। इससे धारणा को ज्ञात कर लिया जाता है। इस विधि द्वारा अध्ययन करते समय प्रयोज्य को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि उसकी धारणा की परीक्षा ली जा रही है। अत: यह एक तटस्थ अध्ययन होता है।
प्रश्न 4.
विस्मरण के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण का महत्त्व :
विस्मरण के अर्थ सम्बन्धी - विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि विस्मरण भी हमारे जीवन के लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। वास्तव में नए विषयों के स्मरण के लिए आवश्यक है कि कुछ निरर्थक विषयों को भुला दिया जाए। इसी प्रकार दुःखद एवं कटु अनुभवों को भूल जाना भी हमारे लिए विशेष रूप से आवश्यक है। समाज में प्रायः अनेक शत्रुतापूर्ण, अप्रिय तथा जघन्य घटनाएँ घटित होती रहती हैं। इस प्रकार की घटनाओं को भूल जाना हमारे लिए वरदान तुल्य होता है। यदि व्यक्ति में भूलने की प्रवृत्ति न हो तो उसका जीवन अत्यधिक दुष्कर एवं अप्रिय हो जाए। विस्मरण के अभाव में स्मृतियों के अम्बार एकत्र हो जाते हैं जिन्हें सहन कर पाना तथा संभाल पाना अत्यन्त कठिन होता है।
प्रश्न 5.
विस्मरण के अनुप्रयोग सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण का अनुप्रयोग सिद्धान्त : विस्मरण के एक मुख्य सिद्धान्त को अनुप्रयोग का सिद्धान्त कहा जाता है। इस सिद्धान्त के नाम से ही यह स्पष्ट है कि हम जिस स्मृति संस्कार को उपयोग में नहीं लाते, वह धीरे-धीरे धूमिल पड़ जाता है तथा समय के साथ-साथ मिट भी जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार स्मरण किए गए विषय को समय-समय पर याद करना या दोहराना आवश्यक होता है। यदि याद किए गए विषय को दोहराना छोड़ दिया जाए तो याद किया गया विषय भी विस्मृत हो जाता है।
प्रश्न 6.
विस्मरण के दमन सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण का दमन सिद्धान्त : प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार विस्मरण एक सक्रिय मानसिक प्रक्रिया है। "हम भूलते हैं, क्योंकि हम भूलना चाहते हैं" - इस सिद्धान्त के अनुसार हम अप्रिय तथा दुःखद अनुभवों का चेतन मन से दमन करके उन्हें अचेतन मन में ले जाते हैं। हमारा मानसिक संघर्ष भी पुरातन अनुभवों की विस्मृति का कारण सिद्ध होता है। अनेक मनोवैज्ञानिक इस सिद्धान्त से सहमत नहीं हैं, क्योंकि बहुत-सी बातों का प्रयास करने पर भी विस्मरण हो जाता है। उदाहरणार्थ, विद्यार्थी परीक्षा के समय न चाहते हुए भी पाठ्यवस्तु के किसी अंश को भूल जाता है।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)
प्रश्न 1.
स्मृति के संदर्भ में धारणा को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
धारणा को प्रभावित करने वाले कारक : स्मृति का मुख्य तत्त्व धारणा है। धारणा एक ऐसी क्षमता है जो विभिन्न तत्त्वों पर निर्भर करती है। धारणा को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक या तत्त्व निम्नलिखित हैं :
1. स्वास्थ्य : अन्य सभी मनोदैहिक क्रियाओं के ही समान धारणा भी स्वास्थ्य से प्रभावित होती है। अस्वस्थता की स्थिति में धारणा शक्ति क्षीण पड़ जाती है।
2. मस्तिष्क की बनावट : धारणा का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से है। अच्छी संरचना वाले मस्तिष्क में प्रबल धारणा की क्षमता रहती है तथा मस्तिष्क में अधिक समय तक बनी रहती है। इसके विपरीत, कमजोर मस्तिष्क में धारणा भी निर्बल होती है तथा अधिक दिन तक नहीं रह पाती। मस्तिष्क की यह बनावट सम्बन्धी भिन्नता जन्मजात होती है।
3. रुचि : अन्य मानसिक क्रियाओं के समान ही धारणा पर भी रुचि का प्रभाव पड़ता है। रुचिकर विषय की धारणा प्रबल होती है तथा अधिक दिन तक स्थायी रहती है। इसके विपरीत अरुचिकर विषय की धारणा शीघ्र मिटने वाली तथा कमजोर होती
4. सम्बन्धित विषय का स्वरूप : प्रत्येक धारणा किसी एक विषय से सम्बन्धित होती है। यह विषय यदि सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण होता है तो धारणा प्रबल रहती है। इसके विपरीत निरर्थक विषय की धारणा भी कमजोर रहती है तथा अधिक दिन | तक नहीं चल पाती। ।
5. सीखने की विधि : उत्तम एवं सही विधि के माध्यम से सीखे गए विषय की धारणा प्रबल एवं अधिक दिन तक रहने वाली होती है। इसके विपरीत दोषपूर्ण ढंग से सीखे गए विषय की धारणा कमजोर होती है तथा अधिक नहीं चल पाती।
6. धारणा शक्ति की सीमा : धारणा वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित क्षमता है। कुछ व्यक्तियों की धारणा शक्ति जन्म | से ही प्रबल होती है। अन्य व्यक्तियों की धारणा शक्ति अपेक्षाकृत रूप से कमजोर होती है।
7. अनुभूति : धारणा में अनुभूति का बड़ा महत्त्व है। यही कारण है कि सुखद अनुभव बहुत दिनों तक याद रहते हैं, जबकि दु:खद अनुभव हम बहुत जल्दी भूल जाते हैं।
8. निद्रा : बहुत बार हमने यह देखा है कि यदि हम कुछ याद करते हुए सो जाते हैं तो हमें वह स्वप्न में दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि विषय के अध्ययन के बाद भी उसकी धारणा में कुछ समय लगता है और याद करके सो जाने के बाद धारण किए गए तत्त्व अधिक पुष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
प्रत्यास्मरण को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
प्रत्यास्मरण को प्रभावित करने वाले कारक : प्रत्यास्मरण वास्तव में स्मृति का एक आवश्यक तत्त्व है।
प्रत्यास्मरण को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं :
1. प्रसंग एवं परिवेश : प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया में अनुकूल प्रसंग एवं परिवेश विशेष रूप से सहायक सिद्ध होते हैं। सामाजिक दृष्टि से अनुकूल तथ्यों का प्रत्यास्मरण शीघ्र एवं अच्छा होता है। इसके अतिरिक्त संकेत, सम्बन्धित घटना अथवा विषय के अनुकूल प्रसंग द्वारा भी प्रत्यास्मरण अच्छा होता है।
2. संकेत : प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया कुछ सहायक संकेतों से भी प्रभावित होती है। प्रत्यास्मरण के समय विषय की वास्तविक उत्तेजना तो अनुपस्थित रहती है, परन्तु उस उत्तेजना से मिलती-जुलती कोई उत्तेजना प्रायः प्रत्यास्मरण के लिए संकेत का कार्य करती है।
3. साहचर्य : साहचर्य का अर्थ है किसी अन्य तत्त्व का साथ-साथ चलना। प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया में साहचर्य भी एक सहायक कारक के रूप में उपयोगी सिद्ध होता है। कुछ विषयों का प्रत्यास्मरण सम्बन्धित साहचर्यों द्वारा भी हो जाता है। उदाहरण के लिए, किसी विशिष्ट वाटिका का प्रत्यास्मरण किसी फूल द्वारा हो सकता है।
4. मानसिक तत्परता : प्रत्येक मानसिक क्रिया को मानसिक तत्परता से विशेष सहायता मिलती है। हम जिस क्रिया के लिए भी मानसिक रूप से तत्पर होते हैं वह क्रिया शीघ्र एवं अच्छी प्रकार से होती है। यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए प्रत्येक प्रकार से तैयार है तो निश्चित रूप से वह कार्य हो जाएगा तथा अपेक्षाकृत अच्छे ढंग से होगा। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होता तो निश्चित रूप से वह कार्य ठीक नहीं होता। इस प्रकार मानसिक तत्परता प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया को सफल बनाने में विशेष सहायक है।
5. संवेग : प्रत्यास्मरण की क्रिया संवेगों से भी प्रभावित होती है। अनुकूल संवेगावस्था से सम्बन्धित विषयों का प्रत्यास्मरण सरलता से होता है। उदाहरण के लिए. किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर वहाँ उपस्थित लोगों को अपने परिवार के विभिन्न सदस्यों की मृत्यु के दृश्य का प्रत्यास्मरण हो आता है। यह प्रत्यास्मरण शोक के संवेग के कारण ही होता है। यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि विपरीत संवेग की स्थिति में प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है। उदाहरण के लिए, उपर्युक्त वर्णित शोक की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को रोमांस की बातें याद नहीं आतीं।
प्रश्न 3.
उत्तम स्मृति के मुख्य लक्षणों अथवा विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
उत्तम स्मृति के लक्षण : उत्तम संस्कृति से आशय पहले सीखे हुए विषय को यथासमय ज्यों का त्यों मानस पटल पर ले आना है। अच्छी स्मृति की निम्न प्रमुख विशेषताएँ हैं :
1. सही ढंग से सीखना : स्मृति का एक तत्त्व सीखना है। यदि सीखने की प्रक्रिया सही होती है तो सम्बद्ध विषय की स्मृति भी उत्तम होती है। इस प्रकार उत्तम स्मृति की एक विशेषता सही ढंग से सीखना भी है।
2. स्थायी धारणा : अच्छी स्मृति के लिए प्रबल धारणा आवश्यक है। प्रबल धारणा वाला विषय शीघ्र स्मरण हो आता है। इस प्रकार स्थायी धारणा भी अच्छी स्मृति का एक लक्षण है।
3. व्यर्थ के तत्त्वों का विस्मरण : प्रत्येक विषय को सीखते । समय कुछ व्यर्थ की बातें भी उस विषय के साथ-साथ जुड़ जाती हैं। स्मृति की अच्छी प्रक्रिया उसे कहा जाता है, जिसमें इन व्यर्थ की बातों को विस्मृत कर दिया जाए। अच्छी स्मृति हेतु केवल सार्थक एवं आवश्यक बातों को ही याद रखा जाता है।
4. समयानुकूल : वही स्मृति उत्तम कहलाएगी जो उचित अवसर पर अथवा आवश्यकता पड़ने पर चेतना के स्तर पर आ जाए। यदि अवसर चूक जाने के बाद कोई बात याद आती है तो उसे अच्छी स्मृति नहीं कहा जाएगा।
5. यथावत् पुनः स्मरण : अच्छी स्मृति की एक विशेषता यथावत् पुनः स्मरण है। यदि कोई व्यक्ति विगत अनुभव को ज्यों का त्यों याद कर लेता है तो कहा जा सकता है कि उसकी स्मृति उत्तम है।
प्रश्न 4.
विस्मरण के बाधा सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण का बाधा सिद्धान्त : विस्मरण के बाधा सिद्धान्त के अनुसार विस्मरण की प्रक्रिया एक सक्रिय मानसिक प्रक्रिया है। सामान्य मान्यता के अनुसार हम जिस विषय-वस्तु को सीखते हैं, उसके संस्कार हमारे मस्तिष्क पर पड़ जाते हैं। इन संस्कारों को ही धारणा कहा जाता है। समय आने पर इन्हीं स्मति संस्कारों का प्रत्यास्मरण होता है। विस्मरण के बाधा सम्बन्धी सिद्धान्त के अनुसार हमारे मस्तिष्क पर निरन्तर विभिन्न संस्कार पडते रहते हैं। ये संस्कार स्मति-पटल को क्रमशः ढकते या आच्छादित करते हैं।
इस प्रकार किसी एक संस्कार या स्मृति चिह्न को दूसरा स्मृति चिह्न रोक लेता है। स्मृति-चिह्नों के मध्य होने वाली इसी रुकावट के कारण अनेक बार प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया रुक जाती है, अर्थात् हम विषय को भूल जाते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि एक स्मृति संस्कार को दूसरा स्मृति संस्कार रोक देता है। इस सिद्धान्त के सत्यापन के लिए निद्रा का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है।
हम यदि किसी विषय को याद करने के बाद गहन निद्रा में सो जाते हैं, तो हमारे स्मृति चिह्न गहरे एवं स्थायी हो जाते हैं तथा हम उस विषय को सरलता से नहीं भूल पाते हैं। इसके विपरीत यदि किसी विषय को याद करने के बाद कोई अन्य महत्त्वपूर्ण अथवा जटिल विषय याद कर लिया जाए तो सामान्य रूप से पहले याद किया गया विषय भूल जान की संभावना बनी रहती है।
प्रश्न 5.
विस्मरण को रोकने के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण रोकने के उपाय : यह सत्य है कि मानव जीवन में विस्मरण का विशेष स्थान एवं महत्त्व है तथा इस स्वाभाविक प्रक्रिया से अनेक लाभ भी हैं, परन्तु जब विस्मरण की प्रक्रिया असामान्य रूप धारण कर लेती है, तब अनेक बार चाहते हुए भी, अनेक आवश्यक विषय भी याद नहीं रह पाते। ऐसी स्थिति में विस्मरण की प्रक्रिया एक समस्या का रूप ग्रहण कर लेती है तथा इससे अनेक हानियाँ होने लगती हैं। ऐसी स्थिति में विस्मरण को रोकना आवश्यक हो जाता है। इस असामान्य स्थिति को रोकने के लिए विभिन्न उपाय खोजे गए हैं।
विस्मरण को रोकने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं :
1. सम्बन्धित विषय को बार-बार दोहराना।
2. शरीर एवं मस्तिष्क को प्रत्येक प्रकार से स्वस्थ रखना तथा मानसिक आघातों से बचना।
3. सम्बन्धित विषय को पूर्ण रूप से याद करना।
4. विभिन्न प्रकार के नशों से बचना।
5. सम्बन्धित विषय को याद करने के बाद आराम करना अथवा सो जाना।
6. स्मरण की इच्छा से नया ज्ञान सीखना।
7. सीखने की विधि पर भली-भाँति ध्यान देना।
8. अवकाश देकर विषय-वस्तु को सीखना।
9. सीखते समय स्मृति-प्रतिमाओं का प्रयोग करना।
10. सीखे हुए ज्ञान का अन्य ज्ञान से साहचर्य करना।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
स्मृति से आप क्या समझते हैं ? अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। स्मृति के आवश्यक तत्त्वों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
स्मृति मानव की एक अद्वितीय मानसिक विशेषता है। मानव जीवन में स्मृति का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्मृति के आधार पर व्यक्ति अपने सभी कार्य करता है। हमारी संस्कृति एवं सभ्यता भी स्मृति के ही परिणामस्वरूप विकसित हुई है। स्मृति ही हमारे सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। स्मृति के अभाव में किसी भी तरह के कार्य का सम्पादन अथवा किसी भी प्रकार की कल्पना कर पाना नितान्त असम्भव है।
स्मृति क्या है ? स्मृति मूलभूत रूप से एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के भूतकालीन अनुभवों को उसके मानस पटल पर पुनः उपस्थित कर देती है। हमारे सभी अनुभव हमारे मस्तिष्क में संस्कार के रूप में निहित रहते हैं। अनुभव रूपी ये सभी संस्कार हमारे अर्द्धचेतन मस्तिष्क में संगृहीत रहते हैं। अर्द्धचेतन मन से पुनः चेतन स्तर पर आना ही स्मरण की प्रक्रिया है।
स्मृति की परिभाषाएँ : विभिन्न विद्वानों ने स्मृति को परिभाषित करने का प्रयास किया है। स्मृति के अर्थ से सम्बन्धित मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं :
(i) स्टाउट : स्टाउट ने स्मृति को घटनाओं की पुनरावृत्ति के रूप में परिभाषित किया है। उनके शब्दों में, “स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है, जिसमें अनुभव की वस्तुएँ यथासम्भव मूल घटना के क्रम और ढंग से पुनर्स्थापित होती है।"
(ii) वुडवर्थ : वुडवर्थ ने स्मृति की अति सरल परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, “विगत समय में सीखी हुई बातों को याद करना स्मृति है।"
(iii) जे. एस. रॉस : “स्मृति पूर्व-अनुभव द्वारा निर्धारित मानसिक व्यवस्था से निश्चित किया गया नवीन अनुभव है, दोनों के बीच का सम्बन्ध स्पष्टतया समझ जाता है।"
(iv) मैक्डूगल : मैक्डूगल ने स्मृति की परिभाषा इन शब्दों में व्यक्त की है, “घटनाओं की उस रूप में कल्पना करना जिस प्रकार भूतकाल में उनका अनुभव किया गया और उन्हें अपने ही अनुभव के रूप में पहचानना ही स्मृति है।" उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्मृति की प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि स्मृति वह जटिल मानसिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने विगत अनुभवों को अपने चेतना स्तर पर पुनः अनुभव करता है।
स्मृति के तत्त्व : स्मृति एक जटिल प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया विभिन्न तत्त्वों या क्रियाओं के संगठन के परिणामस्वरूप ही संपन्न होती है। स्मृति की प्रक्रिया के ये तत्त्व अग्रलिखित हैं :
(अ) सीखना : स्मृति की जटिल प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रथम तत्त्व 'सीखना' (Learning) है। प्रत्येक अनुभव सीखने से ही प्राप्त होता है। स्मृति की प्रक्रिया में सीखने की प्रक्रिया का विशेष महत्त्व है। सीखने की प्रक्रिया के अभाव में स्मति की प्रक्रिया हो ही नहीं सकती, क्योंकि स्मृति वास्तव में सीखे हुए अनुभव का पुनरुत्पादन ही है। इस सन्दर्भ में 'वुडवर्थ' का कथन है, "पहले जो कुछ सीखा गया है, उसे याद करना ही स्मृति के अन्तर्गत आता है।"
(ब) धारणा : स्मृति की प्रक्रिया में सीखने की प्रक्रिया के बाद धारणा (Retention) की प्रक्रिया होती है। हम जिस विषय को सीखते हैं, उस विषय के संस्कार हमारे मस्तिष्क में बन जाते हैं। इन्हें 'स्मृति चिह्न' भी कहा जाता है। इस रूप में सीखे हुए विषयों का मस्तिष्क में संगृहीत रहना ही धारणा कहलाती है। जिस विषय की धारणा जितनी प्रबल होगी, उस विषय की स्मृति उतनी ही अच्छी एवं प्रबल होगी।
भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की धारणा की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है, अतः प्रबल धारणा शक्ति वाले व्यक्ति की स्मरण शक्ति भी प्रबल होती है। धारणा एक मनोदैहिक क्रिया है और मस्तिष्क का स्वस्थ होना धारणा में विशेष सहायक होता है। यही कारण है कि मस्तिष्क के सम्बन्धित भाग में किसी प्रकार का आघात लग जाने की धारणा भी नष्ट हो सकती है।
(स) प्रत्यास्मरण या पुनः स्मरण : स्मृति की प्रक्रिया का तीसरा तत्त्व प्रत्यास्मरण या पुनः स्मरण (Recall) है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस प्रक्रिया में अनुभवों को पुनः स्मृति पटल पर लाया जाता है। सामान्य रूप से देखा गया है कि प्रत्यास्मरण के समय मूल विषय के कुछ अंश छूट जाया करते हैं अर्थात् प्रत्यास्मरण कभी भी पूर्ण नहीं हो पाता। प्रत्यास्मरण के विषय में प्रसिद्ध विद्वान कुहलमन (Kuhlmann) ने इस प्रकार कहा है, "प्रत्यास्मरण बहुत अंशों में बिल्कुल भी प्रत्यास्मरण नहीं होता और उसके मूल की नकल करने में तो आधी सत्यता भी नहीं रह जाती। वस्तुतः यह पुनर्रचना नहीं बल्कि एक रचना है; किसी ऐसे फल की रचना है, जो मूल वस्तु के स्थान पर स्वीकृत कर ली जाती है तथा पूर्व प्रत्यक्षीकरण की पुनर्रचना से बहुत भिन्न होती
(द) प्रत्यभिज्ञा या पहचान : स्मृति की प्रक्रिया का चौथा एवं अन्तिम तत्त्व प्रत्यभिज्ञा या पहचान (Recognition) है। प्रत्यभिज्ञा वह क्रिया है, जिसके अन्तर्गत प्रत्यास्मरण किए गए विषय की पहचान की जाती है। इस क्रिया द्वारा विषय को नाम दिया जाता है। उदाहरण के लिए - एक व्यक्ति हमारे पास आता है तथा हम स्मरण करते हैं- “अच्छा आप श्री शर्मा हैं"- यह कहना ही प्रत्यभिज्ञा है। प्रत्यभिज्ञा भी तीन प्रकार की होती है। इन तीनों प्रकार की प्रत्यभिज्ञा का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है
1. निश्चित प्रत्यभिज्ञा : जब प्रत्यभिज्ञा पूर्ण रूप से सही होती है; अर्थात् गत अनुभव के पूर्ण विवरण का पूर्णतया स्मरण हो जाता है; तब प्रत्यभिज्ञा को 'निश्चित प्रत्यभिज्ञा' कहा जाता है।
2. अनिश्चित प्रत्यभिज्ञा : जिस प्रत्यभिज्ञा में अनुभव की गई विषय-वस्तु की परिस्थिति, स्थान एवं समय आदि का निश्चित स्मरण नहीं हो पाता, उसे सामान्य रूप से 'अनिश्चित प्रत्यभिज्ञा' कहा जाता है।
3. असत्य प्रत्यभिज्ञा : कभी-कभी हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी विषय-वस्तु को हमने पहले कभी अनुभव किया है, परन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं। इस प्रकार की प्रत्यभिज्ञा को 'असत्य प्रत्यभिज्ञा' (False Recognition) कहा जाता है।
प्रश्न 2.
स्मरण करने की उत्तम विधियाँ कौन-कौन सी
उत्तर :
हम जानते हैं कि स्मरण एक मानसिक प्रक्रिया है। वैसे तो स्मृति अथवा स्मरण शक्ति मनुष्य के लिए प्रदत्त शक्ति है जो मनुष्य के स्वभाव में ही निहित है तथापि स्मरण अथवा याद करने की प्रक्रिया को उत्तम एवं सरल बनाने के लिए अनेक पद्धतियों को अपनाया जाता है। इस स्थिति में स्मरण प्रक्रिया को अच्छा एवं मितव्ययी रूप प्रदान करने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रयोग किए हैं, इन प्रयोगों के आधार पर स्मरण की अनेक विधियों का आविष्कार किया गया है। इनमें से प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं:
1. दोहराने की विधि : स्मरण अथवा कंठस्थीकरण की यह एक सरल एवं अत्यधिक लोकप्रिय विधि है। इस विधि द्वारा जिन विषयों को याद करना होता है, उन्हें बार-बार दोहराया जाता है। उदाहरण के लिए, छोटे बच्चे कविता अथवा दोहे याद करने के लिए मुख्य रूप से इस विधि को ही अपनाया करते हैं। इस विधि में सम्बन्धित विषयों को मन-ही-मन में बार-बार दोहराया जाता है। बार-बार इस प्रकार दोहराने से उस विषय के संस्कार मस्तिष्क में गहरे हो जाते हैं तथा स्मृति स्थायी रूप ग्रहण कर लेती है। इस विधि द्वारा सार्थक विषयों को अधिक सुगमतापूर्वक स्मृत किया जा सकता है। सामान्य जीवन में कंठस्थीकरण के लिए इस विधि को सर्वाधिक अपनाया जाता है।
2. पूर्ण विधि : कंठस्थीकरण की एक विधि 'पूर्ण विधि' (Whole Method) के नाम से भी प्रचलित है। इस विधि की मान्यतानुसार किसी विषय को याद करने के लिए पूरे विषय को एक साथ याद करना चाहिए। उदाहरण के लिए- यदि आप किसी कविता को याद करना चाहते हैं तो उस कविता को समग्र रूप में ही याद करना चाहिए। कुछ विद्वानों ने विभिन्न प्रयोगों के आधार पर स्पष्ट किया है कि पूर्ण विधि के आधार पर कोई भी विषय शीघ्र एवं सरलता से | याद होता है। एक मनोवैज्ञानिक लोट्टी स्टीफेन्स (Lotti Steffens) ने इस विधि पर आधारित अपने प्रयोग के दौरान कुछ व्यक्तियों को कुछ सामग्री याद करने के लिए कहा। इस प्रयोग के आधार पर यह परिणाम निकाला गया कि पूर्ण विधि द्वारा याद करने में आंशिक विधि की अपेक्षा 15% कम समय लगा।
3. आंशिक विधि : यह विधि पूर्ण विधि के विपरीत विधि है। इस विधि के अनुसार यदि आप किसी विषय को याद करना चाहते हैं तो पूरे विषय को कुछ भागों में बाँट लेना चाहिए, इसके बाद अलग-अलग भागों को अलग-अलग याद करना चाहिए। इस प्रकार भागों अथवा अंशों में याद किया गया विषय भली-भाँति याद हो जाता है। पूर्ण विधि के ही समान विद्वानों द्वारा आंशिक विधि के महत्त्व को भी दर्शाया गया है। पेचस्टाइन (Pechstein) ने आंशिक एवं पूर्ण विधि के तुलनात्मक अध्ययन के लिए कुछ निरर्थक पदों को छह-छह व्यक्तियों को याद करने के लिए दिया। प्रथम छह व्यक्तियों को आंशिक विधि द्वारा तथा द्वितीय छह व्यक्तियों को पूर्ण विधि द्वारा निरर्थक पदों को याद करवाया गया। इस प्रयोग से प्राप्त निष्कर्ष के अनुसार आंशिक विधि को उत्तम पाया गया, क्योंकि आंशिक विधि द्वारा विषय को याद करने में अपेक्षाकृत कम समय लगा।
4. मिश्रित विधि : इस विधि के अन्तर्गत उपर्युक्त दोनों विधियों अर्थात् पूर्ण एवं आंशिक विधि को एक साथ अपनाया जाता है। मिश्रित विधि को उस समय अपनाया जाता है, जब याद करने वाला विषय काफी लम्बा होता है। इस विधि के अन्तर्गत पहले पूरे-के-पूरे विषय को एक साथ याद करने का प्रयास किया जाता है, उसके बाद पूरे विषय को छोटे-छोटे खंडों में बाँटकर आंशिक विधि द्वारा दोहराया जाता है। अनेक बार मिश्रित विधि; पूर्ण तथा आंशिक दोनों विधियों से उत्तम सिद्ध होती है।
5. व्यवधान सहित विधि : स्मरण की प्रक्रिया में थकान तथा आराम का भी विशेष महत्त्व है। इस तत्त्व को ध्यान में रखते हुए व्यवधान सहित विधि में सम्बन्धित विषय को भी विभिन्न समय अंतरालों के उपरान्त पुनः स्मृत करने का प्रयास किया जाता है। इससे जहाँ एक ओर मस्तिष्क को आराम मिल जाता है, वहीं साथ-ही-साथ मस्तिष्क में स्मृति-चिह्न भी स्थायी हो जाते हैं। सामान्य रूप से लम्बे विषय को याद करने के लिए यह विधि अधिक उपयोगी मानी जाती है। व्यवधान सहित विधि द्वारा किसी विषय को याद करने पर जहाँ एक ओर मस्तिष्क पर अधिक जोर नहीं पड़ता, वहीं दूसरी ओर विषय सरलता से याद भी हो जाता
6. व्यवधान,रहित विधि : यह विधि व्यवधान सहित विधि से भिन्न है। इस विधि में सम्पूर्ण विषय को एक ही समय में याद करने का प्रयास किया जाता है। याद करने की प्रक्रिया में व्यवधान या रुकावट नहीं डाली जाती। यह एक निरन्तर विधि होती है अर्थात् जब तक सम्बन्धित विषय याद नहीं हो जाता, तब तक उसे निरन्तर याद किया जाता है। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि छोटे विषय अर्थात् आठ-दस पंक्तियों वाले विषय व्यवधान रहित विधि द्वारा शीघ्र एवं अच्छी प्रकार से याद हो जाते हैं।
7. सक्रिय विधि : स्मरण की यह विधि शरीर की सक्रियता पर आधारित है। सक्रिय विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित विषय को उच्च स्वर में बोल-बोलकर याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति किसी विषय को याद करते समय शरीर के विभिन्न भागों को भी हिलाते-डुलाते रहते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि यह एक उपयोगी विधि है। एबिंगहास तथा उसके कुछ अनुयायियों ने सक्रिय विधि को एक उत्तम विधि माना है। सक्रिय विधि द्वारा याद करते समय विषय के प्रति रुचि बनी रहती है। कभी-कभी सक्रिय विधि में लयात्मकता भी उत्पन्न हो जाती है। इससे भी याद करने में लाभ होता है।
8. निष्क्रिय विधि : यह सक्रिय विधि की विपरीत विधि है। इस विधि के अनुसार सम्बन्धित विषय को मन-ही-मन में याद किया जाता है। इसमें न तो उच्च स्वर में विषय को बोला जाता है और न ही शरीर को हिलाया-डुलाया जाता है। सामान्य रूप से निष्क्रिय विधि को एक कम उपयोगी विधि के रूप में माना जाता है, तथापि अनेक बार सक्रिय विधि के साथ-ही-साथ इस विधि को भी अपनाया जाता है। पहले एक-दो बार निष्क्रिय विधि से विषय को पढ़ा जाता है, उसके बाद सक्रिय विधि से विषय को स्मृत करने का प्रयास किया जाता है।
9. बोधपूर्ण विधि : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है; इस विधि के अंतर्गत सम्बन्धित विषय को सप्रयास समझकर याद किया जाता है। बोधपूर्ण विधि द्वारा याद किया गया विषय अधिक दिन तक याद रहता है तथा विषय का पूर्ण बोध भी हो जाता है। बोधपूर्ण विधि द्वारा याद किए गए विषय के संस्कार मस्तिष्क में स्थायी रूप से रहते हैं।
10. बोध रहित विधि : यह विधि बोधपूर्ण विधि के विपरीत है। इस विधि द्वारा करते समय सम्बन्धित विषय को समझने का प्रयास नहीं किया जाता। इस विधि में बिना सोचे-समझे यूँ ही बार-बार विषय को रटने का प्रयास किया जाता है। यह विधि सामान्य रूप से अच्छी नहीं समझी जाती। बोध रहित विधि से याद किया गया विषय शीघ्र ही विस्मृत हो जाता है। इस विधि को यान्त्रिक विधि भी कहा जाता है; अर्थात् इस विधि में मनुष्य यन्त्र की भाँति कार्य करता है।
प्रश्न 3.
स्मृति की अनुकूल परिस्थितियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
स्मृति की अनुकूल परिस्थितियाँ : स्मृति एक जटिल प्रक्रिया है, जो चार अन्य क्रियाओं के आधार पर पूर्ण होती है। अतः स्मृति की अनुकूल परिस्थितियों को जानने के लिए इन चार क्रियाओं की अनुकूल परिस्थितियों को अलग-अलग ढंग से जानना आवश्यक है। इन चारों क्रियाओं अर्थात् सीखना, धारणा, प्रत्यास्मरण एवं प्रत्यभिज्ञा की अनुकूल परिस्थितियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है : सीखने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ : 'सीखना' स्मरण की प्रक्रिया का प्रथम तत्त्व है। अच्छी स्मति के लिए आवश्यक है कि सम्बन्धित विषय को अच्छे ढंग से सीखा गया हो। सीखने की प्रक्रिया में विभिन्न कारक सहायक होते हैं। सीखने में सहायक समस्त कारकों को मुख्य रूप से पाँच वर्गों में बाँटा जाता है। ये वर्ग हैं
(i) शरीर सम्बन्धी कारक,
(ii) भौतिक कारक,
(iii) मनोवैज्ञानिक कारक,
(iv) सामाजिक कारक तथा
(v) शैक्षिक कारक।
ये सभी कारक यदि अनुकूल होते हैं तो सीखने की प्रक्रिया उत्तम होती है। उत्तम प्रक्रिया द्वारा सीखे गए विषय की स्मृति भी उत्तम तथा अधिक स्थायी होती है।
धारणा के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ :
स्मरण की प्रक्रिया से सम्बन्धित द्वितीय महत्त्वपूर्ण तत्व धारणा है। अच्छी स्मृति के लिए अच्छी एवं स्थायी धारणा आवश्यक है। अच्छी धारणा के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ अथवा कारक सहायक होते हैं
1. विषय-सामग्री का अनुकूल स्वरूप : स्थायी एवं सुदृढ़ धारणा के लिए सम्बन्धित विषय-सामग्री का अनुकूल स्वरूप विशेष सहायक होता है। ऐसी स्थिति में उचित धारणा के लिए उत्तेजनाओं का अनुकूल स्वरूप अनिवार्य है। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि तीव्र एवं स्पष्ट उत्तेजनाएँ स्थायी धारणा के लिए सहायक कारक के रूप में सिद्ध होती हैं। इसके अतिरिक्त, सार्थक उत्तेजनाएँ, निरर्थक उत्तेजनाओं की अपेक्षा अच्छी धारणा बनाती हैं। यदि किसी उत्तेजना की एक से अधिक बार आवृत्ति हो तो भी सामान्य रूप से सुदृढ़ धारणा बनती है। उत्तेजनाओं के ये सब स्वरूप धारणा के लिए अनुकूल परिस्थिति के रूप में कार्य करते हैं।
2. विषय-सामग्री की मात्रा : प्रबल एवं स्थायी धारणा के लिए विषय-सामग्री की मात्रा एक अनुकूल कारक के रूप में सिद्ध होती है। विभिन्न विद्वानों के मतानुसार लम्बे एवं दीर्घ विषय की धारणा छोटे विषय की धारणा की अपेक्षा अधिक प्रबल होती है। लम्बे विषय को भली-भाँति याद करने के लिए अधिक एवं निरन्तर प्रयास करना पड़ता है तथा इस प्रकार प्रयास द्वारा सीखे गए विषय की धारणा प्रबल एवं स्थायी होती है। शीघ्र एवं कम प्रयास द्वारा सीखे गए विषय की धारणा प्रायः कमजोर एवं अल्पकालिक होती है।
3. सीखने की मात्रा : विषय-सामग्री की मात्रा के साथ-ही-साथ सीखने की मात्रा भी धारणा को प्रभावित करती है। अल्प मात्रा में सीखे गए विषय की धारणा क्षीण होती है। इसके विपरीत अधिक अथवा पूर्ण रूप से सीखे गए विषय की धारणा प्रबल एवं स्थायी होती है। वास्तव में पूर्ण रूप से सीखे गए विषय के स्मृति चिह्न इतने गहरे हो जाते हैं कि उनका धूमिल पड़ना अथवा समाप्त हो जाना सम्भव नहीं होता।
4. सीखने की गति : किसी विषय की धारणा को सुदृढ़ता एवं स्थायित्व के लिए सीखने की गति का भी विशेष महत्त्व होता है। सामान्य रूप से तीव्र गति से सीखे गए विषय की धारणा धीमी गति से सीखे गए विषय की धारणा से अधिक प्रबल एवं स्थायी होती है।
5. सीखने की अनुकूल विधियाँ : धारणा की प्रबलता एवं स्थायित्व सीखने की विधियों पर भी निर्भर करता है। उत्तम विधियों द्वारा सीखे गए अथवा याद किए गए विषय की धारणा प्रबल एवं स्थायी होती है।
6. ध्यान : धारणा की प्रबलता एवं स्थायित्व के लिए ध्यान का विशेष महत्त्व होता है। जिस विषय के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं है, उस विषय को न तो हम याद ही रख सकते हैं और न ही उस विषय की धारणा स्थायी रहती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी विषय को सीखते समय उस विषय में लगाया गया ध्यान भी धारणा के लिए अनुकूल कारक सिद्ध होता है।
7. निद्रा : धारणा की प्रबलता एवं स्थायित्व के लिए निद्रा भी एक सहायक परिस्थिति अथवा कारक के रूप में प्रचलित है। यदि किसी विषय को सीखने अथवा याद करने के बाद कछ समय के लिए सो लिया जाए तो निश्चित रूप से उस विषय की धारणा सुदृढ़ हो जाती है। वास्तव में ऐसा करने से विषय की धारणा में किसी प्रकार का कोई विघ्न नहीं आता। इससे स्पष्ट है कि निद्रा भी धारणा के लिए एक प्रमुख अनुकूल कारक है।
8. अनुभूतियाँ : कुछ विद्वानों ने अनुभूतियों को भी धारणा के लिए एक सहायक कारक के रूप में माना है। इन विद्वानों के अनुसार अनुभूत किए गए विषय की धारणा अनुभूतिशून्य विषय की धारणा की अपेक्षा अधिक प्रबल होती है। यही नहीं, अनुभूतियों की भिन्नता भी धारणा को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती है। सुखद अनुभूतियों से सम्बद्ध विषयों की धारणा अधिक दिन तक रहती है। इसके विपरीत दुःखद अथवा अप्रिय अनुभूतियुक्त विषय की धारणा शीघ्र ही मिट जाती है।
9. मानसिक तत्परता : मानसिक तत्परता भी धारणा के लिए एक अनुकूल परिस्थिति है। जिन विषयों को सीखने के लिए हम तत्पर रहते हैं, उन विषयों की धारणा अधिक प्रबल होती है।
प्रश्न 4.
प्रत्यास्मरण के लिए अनुकूल परिस्थितियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्रत्यास्मरण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ : अच्छी धारणा ही प्रत्यास्मरण के लिए सर्वाधिक अनुकूल कारक के रूप में सिद्ध होती है। यदि धारणा प्रबल तथा स्थायी होगी तो निश्चित रूप से प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया भी उत्तम एवं दोष-मुक्त होगी। ऐसी स्थिति में प्रत्यास्मरण के लिए अनुकूल परिस्थितियों में उन सब परिस्थितियों को सम्मिलित किया जा सकता है, जिनका वर्णन धारणा के सन्दर्भ में किया जा चुका है। परन्तु वास्तव में इन कारकों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारक भी प्रत्यास्मरण की क्रिया को प्रभावित करते हैं। इन कारकों अथवा परिस्थितियों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है
1. मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य : प्रत्यास्मरण के लिए मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। किसी भी प्रकार की अस्वस्थता की स्थिति में प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो सकती है। अत्यधिक थकान, सिरदर्द अथवा किसी अन्य रोग की स्थिति में धारणा होते हुए भी किसी विषय का प्रत्यास्मरण नहीं हो पाता है। इसके विपरीत, स्वस्थ एवं प्रफुल्लचित्त होने पर कमजोर धारणा का भी प्रत्यास्मरण हो जाता है। इस प्रकार अच्छी पहचान के लिए मानव का मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है।
2. पर्याप्त संकेत : प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया में कुछ संकेत विशेष रूप में सहायक होते हैं। प्रायः सम्बद्ध विषय की कोई-न-कोई विशेषता उसके लिए संकेत की भूमिका निभाती है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति के स्वभाव की कोई विशेष बात उसके प्रत्यास्मरण के लिए संकेत का कार्य करती है। इस प्रकार यदि किसी विषय से सम्बन्धित पर्याप्त संकेत उपस्थित हों तो प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया सरलता से हो जाती है।
3. प्रसंग : अनेक बातें किसी विशेष प्रसंग से सम्बद्ध होती हैं। ऐसी बातों के प्रत्यास्मरण के लिए ये प्रसंग भी सहायक परिस्थिति अथवा कारक का कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, जब भी भारत-पाक से युद्ध का प्रसंग छिड़ता है तो स्वतः ही इस युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों का प्रत्यास्मरण हो आता है। इसी प्रकार एक वक्ता को भाषण देते समय अपने जीवन, समाज अथवा राष्ट्र से सम्बन्धित अनेक बातों का प्रत्यास्मरण हो आता
4. प्रेरणाएँ : प्रत्यास्मरण के लिए विभिन्न प्रेरक भी सहायक कारकों की भूमिका निभाते हैं। जिस समय जो प्रेरणा प्रबल होती है, उस समय उससे सम्बन्धित विषय का प्रत्यास्मरण सरलता से हो जाता है। .
5. प्रयत्न : प्रत्यास्मरण की क्रिया में सही प्रकार का प्रयत्न भी विशेष सहायक होता है। अनेक बार देखा गया है कि मस्तिष्क पर जोर डालने से अनेक बातें याद आ जाती हैं परन्तु प्रयत्न की भी एक सीमा होती है। क्षमता से अधिक दबाव डालने पर मस्तिष्क भी कार्य करना बन्द कर देता है।
6. अवरोध का अभाव : अवरोध के अभाव में प्रत्यास्मरण शीघ्र होता है। यदि प्रत्यास्मरण के अनन्तर किसी प्रकार का अवरोध आता रहता है तो सामान्य रूप से प्रत्यास्मरण भी कमजोर पड़ जाता है। इस प्रकार अवरोध प्रत्यास्मरण के लिए एक बाधक के रूप में सामने आता है।
प्रश्न 5.
स्मरण और साहचर्य में क्या सम्बन्ध है? साहचर्य के नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
स्मृति की प्रक्रिया की पूर्ण व्याख्या के लिए साहचर्य को जानना नितान्त आवश्यक है। सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि जब किसी एक विषय अथवा वस्तु को देखकर या जानकर, किसी अन्य विषय-वस्तु की याद आ जाती है तो अन्य विषय-वस्तु को स्मृत कर लेने की वह क्रिया साहचर्य के परिणामस्वरूप ही होती है। उदाहरण के लिए, ताजमहल को देखते ही मुमताज तथा शाहजहाँ की याद आ ही जाती है। इसी प्रकार किसी अनाथ बच्चे को देखकर उसके स्वर्गीय माँ-बाप की याद आना स्वाभाविक ही है। ताला देखकर चाबी की याद आ जाना भी साहचर्य का एक उदाहरण है। कुछ मनोवैज्ञानिक जैसे स्पियरमैन आदि साहचर्य को स्मृति के समान ही मानते हैं।
साहचर्य की परिभाषा : साहचर्य का सामान्य परिचय एवं उदाहरण प्रस्तुत करने के बाद इसकी एक व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करना भी आवश्यक है। बी. एन. झा ने साहचर्य का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “विचारों का साहचर्य एक विख्यात सिद्धान्त है, जिसके द्वारा कुछ विशिष्ट सम्बन्धों के कारण एक विचार दूसरे से सम्बन्धित होने की प्रवृत्ति रखता है।" साहचर्य की स्थापना मस्तिष्क ही करता है। मस्तिष्क में साहचर्य का भी एक क्षेत्र होता है। यह साहचर्य क्षेत्र ही विभिन्न संस्कारों को परस्पर जोड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न विचारों में जो सम्बन्ध स्थापित होता है, वही साहचर्य कहलाता है।
साहचर्य के नियम : सामान्य रूप से साहचर्य के नियमों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है। प्रथम वर्ग में साहचर्य के मुख्य अथवा प्राथमिक नियम सम्मिलित किए जाते हैं। द्वितीय प्रकार या वर्ग के साहचर्य नियमों को गौण नियम कहा जाता है। साहचर्य के प्राथमिक नियम चार हैं-
(1) समीपता का नियम,
(2) सादृश्यता का नियम,
(3) विरोध का नियम तथा
(4) क्रमिक रुचि का नियम।
इसके अतिरिक्त साहचर्य के पाँच गौण नियम भी हैं। ये गौण नियम हैं-
(1) प्राथमिकता का नियम,
(2) नवीनता का नियम,
(3) पुनरावृत्ति का नियम,
(4) स्पष्टता का नियम तथा
(5) प्रबलता का नियम। इन नियमों का संक्षिप्त विवेचन यहाँ प्रस्तुत है।
(क) साहचर्य के प्राथमिक नियम :
साहचर्य के प्राथमिक नियमों को मौलिक नियम भी कहा जाता है। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
1. समीपता का नियम : साहचर्य का एक मुख्य नियम 'समीपता का नियम' (Law of Contiguity) है। इस नियम के अनुसार अनेक वस्तुएँ एवं विषय ऐसे हैं, जिनका ज्ञान एक साथ प्राप्त होता है, अर्थात् सामान्य रूप से ये सदैव एक साथ या एक-दूसरे के समीप रहते हैं। ऐसी विषय वस्तुओं में समीपता का साहचर्य स्थापित हो जाता है। समीपता का साहचर्य दो प्रकार का होता है। प्रथम प्रकार की समीपता देशिक (Spatial) समीपता होती है।
उदाहरण के लिए- पेन तथा उसके ढक्कन में देशिक समीपता पाई जाती है। दूसरे प्रकार की समीपता कालिक (Temporal) समीपता होती है। उदाहरण के लिए, बादल का गरजना तथा वर्षा का होना कालिक समीपता है। समीपता के नियमानुसार जिन दो या दो से अधिक विषय-वस्तुओं के बीच यह सम्बन्ध होता है, उनमें से किसी एक को अलग से देखकर दूसरे तत्त्वों की याद स्वतः ही आ जाती है। उदाहरण के लिए कबीर के किसी दोहे की प्रथम पंक्ति को पढ़कर द्वितीय पंक्ति की याद स्वतः ही आ जाती है। द्वितीय पंक्ति की याद समीपता के नियम के कारण ही आ जाती है। सुले (Sulley) के अनुसार, " प्रस्तुतीकरण जो एक समय अथवा एक के बाद एक क्रम में घटते हैं, एक-दूसरे को सुझाते (स्मरण कराते) हैं।"
2. सादृश्यता का नियम : साहचर्य का दूसरा मुख्य नियम "सादृश्यता का नियम" (Law of Similarity) है। कुछ विषयवस्तुओं अथवा व्यक्तियों में अत्यधिक सादृश्यता या समानता होती है। इनके प्रत्यक्षीकरण के परिणामस्वरूप हमारा मस्तिष्क इनमें एक प्रकार का सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। यह सम्बन्ध सादृश्यता का सम्बन्ध होता है। ऐसा सम्बन्ध होने के पश्चात् जब कभी हम इन तत्वों में से किसी एक को देखते अथवा सुनते हैं तो स्वतः ही उसके सदृश अन्य तत्त्वों का स्मरण भी हो जाता है। उदाहरण के लिए. दो जुड़वाँ भाइयों की शक्ल-सूरत बिल्कुल एक सी होती है।
इनमें से एक को देखकर दूसरे की याद आ जाना स्वाभाविक ही है। यह स्मृति सादृश्यता के नियम के परिणामस्वरूप होती है। एक से नाम वाले व्यक्तियों में भी यह सादृश्यता का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। उदाहरण के लिए, राम तथा श्याम दो मित्रों में से एक मित्र को देखते ही दूसरे की याद आ जाती है। ड्रमण्ड एवं मैलोन के अनुसार, “मन की कोई स्थिति जो पुरानी स्थिति के समान है, घटित होने पर उसको पुनः उत्पन्न कर देती है।"
3. विरोध का नियम : तीसरा मुख्य नियम विरोध का नियम' (Law of Contrast) है। इस नियम के अनुसार कुछ विषय-वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनमें परस्पर स्पष्ट विरोध होता है। ऐसी वस्तुओं से इसी विरोध के आधार पर सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। उदाहरण के लिए- गोरा तथा काला परस्पर विरोधी रंग हैं। इनमें एक निश्चित एवं स्थायी सम्बन्ध है।
इस नियम अर्थात् विरोध के नियम के अनुसार एक तत्त्व को याद करते ही उसके विरोधी तत्त्व की याद स्वतः ही आ जाती है। विरोध का यह नियम जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। यही कारण है कि सुख की कामना करते हुए हमें दुःख की याद आ जाती है। इसी प्रकार मिलन के साथ ही वियोग की भी धारणा उपस्थित रहती है।
4. क्रमिक रुचि का नियम : व्यक्ति की रुचि के अनुसार प्राप्त हुए अनुभव एक दूसरे से जुड़ जाते हैं तथा ये अनुभव मानसिक संस्कार का निर्माण करते हैं। अत: रुचि स्मृति को प्रभावित करने लगती है। उदाहरणार्थ, यदि किसी की रुचि क्रिकेट के खेल में है तो खेल का नाम सुनते ही उसे क्रिकेट के खेल का स्मरण हो जाएगा।
प्राथमिक नियमों में सम्बन्ध : साहचर्य के उपर्युक्त चारों प्राथमिक नियमों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। ये नियम एक-दूसरे से सम्बन्धित होने के साथ-ही-साथ परस्पर आश्रित भी होते हैं।
(ख) साहचर्य के गौण नियम :
साहचर्य के उपरिवर्णित प्राथमिक नियमों के अतिरिक्त कुछ गौण नियम भी हैं। मुख्य गौण नियमों का संक्षिप्त परिचय निम्नवत् है :
1. प्राथमिकता का ज्ञान : स्मृति में प्राथमिकता का विशेष महत्त्व माना गया है, अर्थात् स्मृति-पटल पर जिस विषय के संस्कार सबसे पहले पड़ते हैं, वे अधिक प्रबल होते हैं तथा अधिक दिन तक स्थायी रहते हैं। इसी कारण बचपन की स्मृतियाँ अधिक गहरी एवं स्थायी रहती हैं।
2. नवीनता का नियम : यह भी साहचर्य का एक गौण नियम है। इस नियम के अनुसार अन्य सभी दशाएँ समान होते हुए भी हम उसी विषय को अधिक याद रखते हैं जो निकट भूतकाल में सुना या देखा गया हो। इस नियम के ही कारण प्राय: कहानी का अन्त अधिक समय तक याद रहता है।
3. पुनरावृत्ति का नियम : इस नियम के अनुसार जिस विषय की बार-बार आवृत्ति होती है, अर्थात् जो विषय बार-बार दोहराया जाता है, वह अधिक याद रहता है।
4. स्पष्टता का नियम : यदि कुछ विषयों में अन्य सभी दशाएँ समान हों तो वह विषय अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक याद रहता है। यही कारण है कि जो विषय अधिक स्पष्ट हो जाता है, वह अस्पष्ट विषय की अपेक्षा अधिक दिन तक याद रहता है।
5. प्रबलता का नियम : प्रबल संवेगों पर आधारित अनुभव स्थायी मानसिक संस्कार बनाते हैं और उनका स्मरण सरलता से हो जाता है। इसी के फलस्वरूप कोई दु:खद घटना हमें अन्य अनुभवों की अपेक्षा कम समय में स्मरण हो आती है।
प्रश्न 6.
स्मृति के विभिन्न प्रकारों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
स्मृति के विभिन्न प्रकार स्वीकार किए गए हैं। स्मृति के प्रकारों के निर्धारण में धारणा (Retention) को मुख्य आधार स्वीकार किया गया है। इस आधार पर कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के दो प्रकारों का उल्लेख किया है, जिन्हें क्रमशः अल्पकाल स्मृति (Short Term Memory: S.T.M.) तथा दीर्घकालीन स्मृति (Long Term Memory: L.T.M) कहा गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है कि किसी विषय को सीखने के अल्प समय (कुछ मिनट) के उपरांत धारणा के परीक्षण से ज्ञात धारणा की मात्रा को अल्पकालीन स्मृति कहा जाता है। इससे भिन्न किसी विषय को सीखने के कुछ घंटों अथवा कुछ दिनों के उपरांत यदि धारणा का परीक्षण लिया जाए तो उस परीक्षण से प्राप्त धारणा की मात्रा को दीर्घकालीन स्मृति कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त स्मृति के एक अन्य रूप या प्रकार का भी उल्लेख किया गया है, जिसे संवेदी स्मृति कहा जाता है। वास्तव में ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर पंजीकृत सूचनाओं को ज्यों का त्यों कुछ क्षणों तक भंडारित रहने की क्रिया को संवेदी स्मृति कहा जाता है। वैसे कुछ विद्वानों ने तो अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में कोई मौलिक अन्तर नहीं माना है। उनके अनुसार इन दोनों में कोई मौलिक अन्तर न होकर केवल मात्रा का अन्तर है। इनका अन्तर गुणात्मक अन्तर नहीं बल्कि केवल मात्रात्मक अन्तर है, पस्तु कुछ विद्वानों ने अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को बिल्कुल भिन्न प्रणालियों के रूप में स्वीकार किया है। आधुनिक मान्यताओं के अनुसार इन दोनों में अंतर माना गया है।
स्मृति के प्रकार
1. संवेदी स्मृति : संवेदी स्मृति का सम्बन्ध स्मृति प्रक्रिया के दैहिक सक्रियता स्तर से है। व्यक्ति के शरीर की विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर पंजीकृत सूचनाओं का ज्यों-का-त्यों कुछ क्षण तक भंडारित रहना ही संवेदी स्मृति कहलाता है। वास्तव में हम कह सकते हैं कि व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर बाहरी उद्दीपकों के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं का पंजीकरण तथा उन पंजीकृत सूचनाओं का ज्ञानेन्द्रियों में कुछ क्षण के लिए रुका रहना ही प्रत्यक्षीकरण का आधार है। यह एक सत्यापित तथ्य है कि सांवेदिक भंडार में पंजीकृत सूचना अपने मौलिक रूप में केवल कुछ ही क्षणों के लिए संचित रहती है। विद्वानों ने यह अवधि एक सेकेण्ड ही मानी है। संवेदी स्मृति को एक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
मान लीजिए, किसी पीतल के घंटे पर प्रहार किया जाए तो उससे ध्वनि उत्पन्न होगी। इस ध्वनि की गूंज कुछ क्षण के लिए कानों में बनी रहती है। यही संवेदी स्मृति है। इसे हम श्रवण सम्बन्धी संवेदी स्मृति कहते हैं। भिन्न-भिन्न ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न प्रकार की संवेदी स्मृति होती है। मनोविज्ञान में मुख्य रूप से चाक्षुष संवेदी तथा श्रवणात्मक स्मृति का व्यवस्थित अध्ययन किया गया है। इन दोनों प्रकार की संवेदी स्मृतियों को नाइस्सेर नामक मनोवैज्ञानिकों ने क्रमशः प्रतिचित्रात्मक (Icomic) तथा प्रतिध्वन्यात्मक (Echoic) स्मृति कहा है।
हम जानते हैं कि समस्त चाक्षष उद्दीपक आँख के पटल पर ही प्रतिबिम्बित होते हैं। इन उद्दीपकों के अक्षिपटल से यथार्थ में हट जाने के उपरांत भी कुछ क्षण के लिए इनकी छाप या प्रतिचित्र अक्षिपटल पर बना रहता है। इसी से उनको प्रत्यक्षीकरण तथा अल्पकालिक स्मृति में भंडारण के लिए प्रक्रमित किया जाता है। इस प्रकार यथार्थ उद्दीपक के हट जाने के उपरांत भी अक्षिपटल पर कुछ क्षण के लिए उद्दीपन का बना रहना ही चाक्षुष संवेदी स्मृति कहलाता है। चाक्षुष संवेदी स्मृति के समान ही श्रवणात्मक संवेदी स्मृति भी होती है। श्रवणात्मक संवेदी स्मृति में ध्वनि सम्बन्धी उद्दीपकों से उद्दीप्त प्रतिध्वनि अथवा अनुगूंज का भंडारण होता है।
2. अल्पकालीन स्मृति : धारणा के एक मुख्य प्रकार को अल्पकालीन स्मृति (Short Term Memory-S.T.M.) कहा जाता है। जब किसी विषय को सीखने या याद करने के कुछ ही मिनटों (अल्पकाल) के उपरांत ही धारणा का परीक्षण किया जाए तो उस स्थिति में धारणा की जो मात्रा ज्ञात होती है, उसे अल्पकालीन स्मृति कहते हैं। सामान्य रूप से अल्पकालीन स्मृति का सम्बन्ध एक बार के अनुभव के सीखने से संचित हुई सामग्री से होता है। विभिन्न परीक्षणों के आधार पर कड़ा गया है कि अल्पकालीन स्मृति एक प्रकार की जैव-वैद्युतिक प्रक्रिया है तथा इसका स्थायित्व अधिक-से-अधिक 30 सेकेण्ड तक होता है।
3. दीर्घकालीन स्मृति : स्मृति की दूसरी व्यवस्था दीर्घकालीन (Long Term Memory-L.T.M.) है। दीर्घकालीन स्मृति किसी सामग्री या अनुभव की हुई घटना का वह पुनः स्मरण है जो सीख लेने के उपरांत कुछ मिनटों, कुछ घंटों, कुछ दिनों या कुछ वर्षों के उपरांत होता है। दीर्घकालीन स्मृति की धारणा का ह्रास कम दर से होता है; अर्थात् विस्मरण देर से तथा कम होता है। इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि अधिगम की गई विषय सामग्री का मस्तिष्क में होने वाला संचय, जीव-रसायन प्रतिमानों पर आध रित होता है। दीर्घकालीन स्मृति का सम्बन्ध मस्तिष्क के सेरिबेलर कार्टेक्स (Cerebellar Cortex) के भूरे पदार्थ के गैंगलिओनिक कोषों से होता है। दीर्घकालीन स्मृति के विषय में स्पष्ट किया गया है कि जैसे-जैसे अधिगम में अभ्यास बढ़ता है, वैसे-वैसे धारणा में होने वाला हास घटता जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि अभ्यास के साथ-साथ धारणा प्रबल होती जाती है।
प्रश्न 7.
स्मृति (धारणा) के मापन की विभिन्न विधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
स्मृति के लिए धारणा (Retention) का सर्वाधिक महत्त्व है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की धारणा शक्ति भिन्न-भिन्न होती है। प्रबल धारणा वाले व्यक्ति किसी विषय को शीघ्र लेते हैं तथा याद रखते हैं। इसके विपरीत मंद धारणा वाले व्यक्तियों को किसी विषय को याद करने में अधिक समय लगता है तथा उनकी स्मृति भी अच्छी नहीं मानी जाती।
धारणा (स्मृति) मापन की विधियाँ : धारणा के मापन के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता हैं:
1. धारणा मापन की पुनः स्मरण विधि : धारणा (स्मृति) के मापन के लिए अपनाई जाने वाली विधियों में यह विधि सबसे सरल तथा अधिक प्रचलित विधि है। इस विधि को सक्रिय पुनः स्मरण विधि भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि किसी विषय को सीख लेने या याद कर लेने के कुछ समय उपरान्त व्यक्ति उस विषय के कितने भागों को ज्यों-का-त्यों याद कर लेता है। इस बात की जाँच के लिए याद किए गए विषय को लिखकर अथवा बोलकर सुनाया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक समय दस वस्तुओं के नाम याद करता है तथा पाँच दिन के उपरान्त वह उनमें से केवल 6 वस्तुओं के नाम ही सुना पाता है, तो इस स्थिति में व्यक्ति की धारणा 60% मानी जाएगी।
2. धारणा मापन की पहचान विधि : धारणा मापन की एक विधि पहचान विधि' (Recognition Method) भी है। इस विधि के अन्तर्गत प्रयोज्य द्वारा पहले याद किए गए विषयों में कुछ ऐसे विषयों का समावेश कर दिया जाता है, जिन्हें वह पहले से नहीं जानता था। इस प्रकार से जोड़े गए विषयों सहित समस्त विषय प्रयोज्य के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं तथा प्रयोज्य से कहा जाता है कि वह अपने पूर्व-परिचित विषयों को इनमें से पहचान ले। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जिन विषयों को बाद में जोड़ा जाता है, ये प्रयोज्य द्वारा याद किए गए विषयों से मिलते-जुलते ही होते हैं। अब यह देखा जाता है कि प्रयोज्य अपने पूर्व सीखे हुए विषयों में से कितने विषयों को पहचान पाता है। इसी के आधार पर धारणा की माप की जाती है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र को अपनाया जाता है --
पहचान प्राप्तांक प्रतिशत : \(\frac{\mathrm{R}-\mathrm{W}}{\mathrm{N}} \times 100\)
इस सूत्र में :
R प्रयोज्य द्वारा पहचाने गए शुद्ध पदों की संख्याः
w = प्रयोज्य द्वारा पहचाने गए शुद्ध पदों की संख्या, तथा
N = मूल सूची में पदों की कुल संख्या। उदाहरण के लिए : कुल पद (पुराने तथा नए)
N = 80 प्रयोज्य द्वारा शुद्ध पहचाने गए पद R - 40 प्रयोज्य द्वारा गलत पहचाने गए पद W - 10 इस स्थिति में,
पहचान प्राप्तांक प्रतिशत = \(\frac{40-10}{80} \times 100=37.5 \%\)
इस विधि द्वारा धारणा की माप करते समय दो सीमाओं का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। यह भी हो सकता है कि प्रयोज्य किए गए विषयों की पहचान केवल दैवयोग के ही परिणामस्वरूप कर रहा है। दूसरी बात यह है कि पदों की पहचान पदों की समजातीयता पर निर्भर करती है।
3. धारणा मापन की बचत विधि : धारणा मापन की एक विधि बचत विधि (Saving Method) भी है। इसे 'पुनः अधिगम विधि' भी कहा जाता है। इस विधि के अन्तर्गत प्रयोज्य को किसी विषय-सामग्री को भली-भाँति याद करने के लिए कहां जाता है। इस प्रकार पूरी तरह विषय-सामग्री को याद करने में प्रयोज्य को जितने प्रयास करने पड़ते हैं, उन्हें नोट कर लिया जाता है। इसके बाद कुछ समय के अन्तराल के उपरान्त प्रयोज्य को वही विषय-सामग्री को याद करने में जितने प्रयास करने पड़ते हैं, उनकी संख्या को भी नोट कर लिया जाता है। निश्चित रूप से दूसरी बार याद करने में कम प्रयास करने पड़ते हैं, अर्थात् प्रयासों में बचत होती है। दोनों बार किए जाने वाले प्रयासों के अन्तर को ज्ञात कर लिया जाता है। ये दोनों तथ्य ज्ञात करे इनके आधार पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्रतिशत बचत ज्ञात कर ली जाती है :
प्रतिशत बचत = \(\frac{\text { OLT-RLT }}{\text { OLT }} \times 100\)
इस सूत्र में :
OLT = मूल अधिगम में लगे प्रयासों की संख्या; तथा
RLT = दूसरी बार अधिगम में लगे प्रयासों की संख्या।
उदाहरण के लिए : किसी विषय को प्रथम बार याद करने के लिए प्रयोज्य को 30 प्रयास करने पड़े हों तथा दूसरी बार याद करने में केवल 10 प्रयास करने पड़े हों तो इस स्थिति में:
प्रतिशत बचत = \(\frac{30-10}{30} \times 100=66.66 \%\)
इस विधि द्वारा धारणा का मापन करते समय एक दोष का समावेश हो जाता है। इस विधि में सैद्धान्तिक रूप से यह समझा जाता है कि दूसरी बार याद करने में लगने वाले कम प्रयासों का कारण धारणा है, परन्तु वास्तव में इसका एक अन्य कारण भी होता है। दूसरी बार याद करते समय प्रयोज्य के लिए विषय-सामग्री पूर्व-परिचित होती है तथा पूर्व-परिचित विषय सामग्री को अधिक कुशलतापूर्वक याद किया जाता है।
4. धारणा मापन की पुनर्रचना विधि : इस विधि द्वारा धारणा की माप करने के लिए प्रयोज्य को कोई विषय-सामग्री दी जाती है, तथा उसका समन-रूप में अधिगम कराया जाता है। इसके उपरान्त वही सामग्री प्रयोज्य के सम्मुख समग्र रूप में प्रस्तुत न करके अंशों तथा अक्रमित रूप में प्रस्तुत की जाती है तथा प्रयोज्य को कहा जाता है कि वह अस्त-व्यस्त विषय सामग्री को मूल रूप में व्यवस्थित करे। प्रयोज्य जिस हद तक सामग्री को व्यवस्थित करने में सफल होता है, उसी के आधार पर उसकी धारणा का मापन किया जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस विधि द्वारा केवल उसी विषय-सामग्री की धारणा की माप की जा सकती है, जिसे सरलता से अंशों में विभक्त किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
विस्मरण से आप क्या समझते हैं ? विस्मरण के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विस्मरण या भूल जाना भी एक मानसिक प्रक्रिया है। मानव-जीवन में विस्मरण का एक विशेष स्थान है। व्यक्ति के लिए भूल जाना कभी लाभदायक सिद्ध होता है तो कभी हानिकारक किसी आवश्यक बात को समय पर भूल जाने से अनेक प्रकार के दुष्परिणाम हो सकते हैं। जैसे-परीक्षा में किसी प्रश्न के उत्तर को भूल जाना हानिकारक सिद्ध होता है। इससे भिन्न अनेक बातों को भूल जाना ही अच्छा होता है। उदाहरण के लिए- दुःखद घटनाओं एवं कटु अनुभवों को भूल जाना ही हितकर होता है। इसके अतिरिक्त एक अन्य दृष्टिकोण से भी भूल जाना लाभदायक होता है। विशेषकर नवीन विषयों को याद करने के लिए कुछ विषयों को भूलना आवश्यक है। स्पष्ट है कि भूलना अथवा विस्मरण एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
विस्मरण का अर्थ एवं परिभाषा : विस्मरण या भूलना एक मानसिक प्रक्रिया है। यह स्मरण या याद रखने की विरोधी प्रक्रिया है। किसी गत अनुभव या याद किए गए विषय का चेतना के स्तर पर न आना ही भूल जाना है। अर्थात् प्रत्यास्मरण का अभाव ही विस्मरण है।
1. फ्रायड : फ्रायड ने विस्मरण की प्रक्रिया की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इसे इन शब्दों में परिभाषित किया है, “जो कुछ अप्रिय है, उसे स्मृति से दूर करने की प्रवृत्ति ही विस्मरण है।"
2. मन : मन ने विस्मरण की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, “जो कुछ सीखा गया है उसे धारण न कर सकना ही विस्मरण है।" उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं के आधार पर भूलने का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। भूलने की प्रक्रिया आंशिक भी हो सकती है तथा पूर्ण भी। विस्मरण के कारण : विस्मरण के उपर्युक्त वर्णित सिद्धान्तों की व्याख्या के बाद विस्मरण के कारणों का उल्लेख करना भी आवश्यक है।
विस्मरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :
1. स्मरण के अभ्यास का अभाव : विस्मरण या भूल जाने का एक मुख्य कारण स्मरण का अभ्यास न होना है। यदि हम याद किए गए विषय को समय पर दोहराते नहीं हैं तो वह याद किया गया विषय भी शनैः-शनैः विस्मृत हो जाता है।
2. सीखने की दोषपूर्ण विधि : स्मरण या विस्मरण का सीधा सम्बन्ध सीखने की विधि से होता है। यदि हम किसी विषय को दोषपूर्ण विधि से सीखते हैं तो अनेक बार उस विषय को शीघ्र ही भूल जाने की संभावना होती है।
3. समय का प्रभाव : कुछ विद्वानों के अनुसार समय बीतने के साथ-ही-साथ स्मृति भी स्वाभाविक रूप से मन्द पड़ती जाती है। इस मत के अनुसार समय के प्रभाव से ही मस्तिष्क के स्मृति-चिह्न क्रमशः धूमिल पड़ने लगते हैं तथा एक समय पर पूर्णत: नष्ट हो जाते हैं। स्मृति-चिह्नों का पूर्ण नष्ट होना ही पूर्ण विस्मरण होता है।
4. संवेगों का प्रभाव : हम जानते हैं कि विभिन्न प्रबल संवेग हमारे अन्तर में उथल-पुथल मचा देते हैं। इस उथल-पुथल से हमारा मन एवं शरीर उत्तेजित हो उठता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही यह कहा जाता है कि यदि किसी विषय को याद करने के बाद किसी प्रबल संवेग का अनुभव किया जाए तो अनेक बार याद किए गए विषय को भूल जाने की संभावना रहती है। इस प्रकार संवेग भी विस्मरण के कारण सिद्ध हो सकते हैं।
5. मानसिक रोग : विभिन्न मानसिक रोगों की स्थिति में व्यक्ति का मस्तिष्क एवं शरीर असन्तुलित अवस्था में रहता है, अतः स्वाभाविक रूप से मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति सीखे हुए ज्ञान को शीघ्र ही भूल जाता है।
6. प्रत्यास्मरण में इच्छा का अभाव : व्यक्ति ऐसी विषय-वस्तु को शीघ्र ही भूल जाता है, जिसका स्मरण रखने की इच्छा उसे नहीं होती।
7. मादक पदार्थों का सेवन : विभिन्न प्रकार के नशे भी स्मरण-शक्ति को क्षीण बनाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक नशा करता है तो सम्भव है कि वह अनेक विषयों को भूल जाए। इस प्रकार स्पष्ट है कि नशे की अधिकता भी विस्मरण का एक प्रमुख कारण है।
8. विषय की निरर्थकता : कुछ सर्वेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि विस्मरण का एक कारण विषय की निरर्थकता भी है। सामान्य रूप से सार्थक विषय की अपेक्षा निरर्थक विषय शीघ्र विस्मृत हो जाते हैं।
9. अल्प अधिगम : यदि कोई विषय पूर्ण रूप से सीखा अथवा याद नहीं किया जाता, तो अनेक बार वह विषय शीघ्र ही विस्मृत हो जाता है। इस प्रकार अल्प अधिगम (सीखना) भी विस्मरण का एक कारण माना जा सकता है।
10. नींद की कमी : नींद की कमी से भी स्मृति धूमिल पड़ जाती है तथा विस्मरण की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है। वास्तव में नींद एवं विश्राम की कमी की दशा में पहले सीखे गए विषयों द्वारा मस्तिष्क में निर्मित चिहनों के संयोजक क्रमशः कमजोर पड़ जाते हैं तथा वे टूटने लगते हैं। इससे स्मृति-लोप या विस्मरण हो जाता
11. मन्द गति से सीखना : कुछ विद्वानों ने विस्मरण का एक कारण मन्द गति से सीखना भी माना है। जो विषय मन्द गति से याद किया जाता है, वह उस विषय की अपेक्षा शीघ्र विस्मृत हो जाता है, जो तीव्र गति से याद किया जाता है।
12. मस्तिष्क आघात : विस्मरण का एक मुख्य कारण मस्तिष्क आघात भी है। मस्तिष्क के किसी एक भाग में लगने वाली चोट अनेक स्मृतियों को भंग कर देती है। अनेक बार देखा गया है कि किसी दुर्घटनावश मस्तिष्क में आई चोट के परिणामस्वरूप व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण स्मृति ही खो बैठते हैं। ऐसे व्यक्ति अपना नाम तक भूल जाते हैं।
13. पृष्ठोन्मुख अवरोध : स्मरण करने तथा पुनः स्मरण करने के अन्त:काल में घटित क्रियाएँ भी पुनः स्मरण में बाधा पहुंचाती हैं। पूर्व ज्ञान तथा विक्षेप-शिक्षण में समानता, पूर्वज्ञान एवं विक्षेप-शिक्षण की मात्रा में अन्तर, विक्षेप क्रियाओं का आपसी सम्बन्ध तथा व्यक्ति की आयु एवं बुद्धि इस प्रकार के अवरोध के कारण सिद्ध होते हैं।
14. वृद्धावस्था : विस्मरण का एक कारण वृद्धावस्था भी है। वृद्धावस्था में शरीर के विभिन्न अंग शिथिल पड़ जाते हैं तथा व्यक्ति की विभिन्न क्षमताएँ क्षीण पड़ जाती हैं। इसीलिए उसकी स्मृति या स्मरण शक्ति भी क्षीण पड़ जाती है। स्मरण-शक्ति के क्षीण पड़ जाने से ही विस्मरण होता है।