Rajasthan Board RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 2 मनोविज्ञान में जाँच की विधियाँ Important Questions and Answers.
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बहुविकल्पी प्रश्न
प्रश्न 1.
अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताएँ हैं
(अ) विश्वसनीयता तथा वैधता
(ब) व्यापकता
(स) वस्तुनिष्ठता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
आर्मी अल्फा और बीटा परीक्षण किस प्रकार के परीक्षण थे
(अ) शाब्दिक व्यक्ति-बुद्धि परीक्षण
(ब) शाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षण
(स) क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) शाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षण
प्रश्न 3.
व्यक्तिगत एवं सामूहिक परीक्षणों में अंतर है :
(अ) व्यक्तिगत परीक्षण द्वारा एक समय में केवल एक व्यक्ति का तथा सामूहिक परीक्षण द्वारा पूरे समूह का परीक्षण किया जाता है।
(ब) व्यक्तिगत परीक्षण पर अधिक धन तथा अधिक समय लगता है, जबकि सामूहिक परीक्षण पर कम धन तथा कम समय लगता है।
(स) व्यक्तिगत परीक्षण अधिक विश्वसनीय तथा प्रामाणिक होते हैं, जबकि सामूहिक परीक्षण कम विश्वसनीय तथा कम प्रामाणिक होते हैं।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
शाब्दिक समूह बुद्धि परीक्षणों की मुख्य कठिनाइयाँ
(अ) प्रयोज्य के सहयोग की समस्या
(ब) प्रयोज्य की वास्तविक स्थिति के प्रति अज्ञान
(स) नकल करने की समस्या
(द) उपर्युक्त सभी कठिनाइयाँ
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी कठिनाइयाँ
प्रश्न 5.
पिण्टनर तथा पैटर्सन द्वारा तैयार किया गया परीक्षण कैसा परीक्षण है:
(अ) शाब्दिक बुद्धि परीक्षण
(ब) क्रियात्मक व्यक्ति बुद्धि परीक्षण
(स) क्रियात्मक समूह बुद्धि परीक्षण
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) क्रियात्मक व्यक्ति बुद्धि परीक्षण
प्रश्न 6.
अशाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षण उपयोगी होते हैं -
(अ) अनपढ़ व्यक्तियों के लिए
(ब) बच्चों के परीक्षण के लिए
(स) मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए
(द) उपर्युक्त सभी उपयोगिताएँ
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी उपयोगिताएँ
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में अन्तर्दर्शन विधि का क्या स्थान है ? .
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के लिए अपनाई जाने वाली एक मुख्य विधि अन्तर्दर्शन विधि है। यह विधि मनोविज्ञान की एक मौलिक विधि है तथा कुछ विषयों का अध्ययन करने की दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है। कुछ मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के लिए अन्तर्दर्शन विधि पूर्णतः व्यर्थ सिद्ध होती है। उदाहरण के लिए मानसिक रोगियों, पागलों, बच्चों तथा पशुओं के व्यवहार के अध्ययन के लिए इस विधि को कदापि नहीं अपनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि अन्तर्दर्शन विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अपेक्षाकृत कम तथ्यात्मक एवं वस्तुनिष्ठ होता है।
प्रश्न 2.
निरीक्षण विधि तथा प्रयोग विधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निरीक्षण विधि तथा प्रयोग विधि में अन्तर :
निरीक्षण विधि |
प्रयोग विधि |
1. इस विधि में उपकल्पना का निर्माण नहीं किया जाता है। |
1. इस विधि में उपकल्पना का निर्माण किया जाता है। |
प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा सामान्य पाठ्यक्रम परीक्षाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा सामान्य पाठ्यक्रम परीक्षाओं में अन्तर : पाठ्यक्रम सम्बन्धी परीक्षाओं में निर्धारित पाठ्यक्रम तथा निर्धारित पुस्तकों के आधार पर प्रश्न-पत्र का निर्माण किया जाता है तथा उनका उत्तर विद्यार्थियों को देना होता है। वे वर्ष भर अपनी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं तथा निर्धारित परीक्षा-प्रणाली के अनुसार परीक्षा के लिए तैयारी करते हैं, परन्तु मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का न तो कोई पाठ्यक्रम निर्धारित होता है और न ही उनके लिए किसी प्रकार की पूर्व तैयारी की जाती है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा बालकों की सामान्य योग्यता आदि की जाँच एवं मापन किया जाता है।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)
प्रश्न 1.
नैदानिक विधि की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
नैदानिक विधि की विशेषताएँ : नैदानिक विधि की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख निम्नवत् किया जा सकता है:
(i) मनोवैज्ञानिक अध्ययन की इस विधि को मुख्य रूप से मानसिक रोगियों तथा हर प्रकार के असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन के लिए अपनाया जाता है।
(ii) यह विधि एक व्यक्तिगत विधि है। इस विधि द्वारा एक समय में केवल एक ही व्यक्ति का व्यवस्थित अध्ययन किया जा सकता है अर्थात् इस विधि को सामूहिक रूप से नहीं अपनाया जा सकता।
(iii) इस विधि द्वारा किए गए अध्ययन का विशिष्ट उद्देश्य होता है। सामान्य रूप से सम्बन्धित व्यक्ति के रोग के कारणों का निदान तथा उपचार ही इस विधि का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 2.
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में नैदानिक विधि का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में नैदानिक विधि का महत्त्व : नैदानिक निरीक्षण विधि का प्रयोग मुख्य रूप से चिकित्सा मनोविज्ञान के क्षेत्र में किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति के व्यवहार का व्यापक अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति के निजी व्यवहार का अध्ययन करने के
अतिरिक्त उसके मित्रों, साथ पढ़ने या कार्य करने वालों तथा रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों से भी उसके सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रकार इस विधि के आधार पर व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन-वृत्त का अध्ययन किया जाता है। इस समस्त अध्ययन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के असामान्य व्यवहार का कारण खोज निकालना होता है। बच्चों के विशिष्ट व्यवहार, स्कूल से भाग जाना, झगड़ा करना, चोरी करना एवं अनुशासन भंग करना आदि समस्याओं के निदान के लिए इसी विधि को अपनाया जाता है।
प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग में अन्तर :
(i) मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक प्रकार की परीक्षा होती है, जिसका मुख्य उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी योग्यताओं एवं विशेषताओं को ज्ञात करना होता है। इससे भिन्न, मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का उद्देश्य विभिन्न मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं नियमों को ज्ञात करना अथवा उन्हें सत्यापित करना होता है।
(ii) इसके अतिरिक्त परीक्षण का सम्बन्ध केवल मनुष्यों तक सीमित होता है जबकि प्रयोग सभी प्राणियों तथा निर्जीव वस्तुओं से भी सम्बन्धित हो सकता है।
प्रश्न 4.
अशाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षणों की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(i) विभिन्न समूहों की तुलना : इन परीक्षणों द्वारा विभिन्न प्रकार के समूहों के बुद्धि-स्तर की तुलना की जा सकती है। ये समूह भिन्न-भिन्न भाषा व संस्कृति से सम्बन्धित हो सकते हैं। शाब्दिक परीक्षणों द्वारा सामान्य रूप से इस प्रकार की तुलना नहीं की जा सकती है।
(ii) अनपढ़ व्यक्तियों के लिए उचित : अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण बेपढ़े-लिखे व्यक्तियों के बुद्धि परीक्षण हेतु भी प्रयुक्त किए जा सकते हैं।
(iii) बच्चों का परीक्षण : बच्चों को भाषा का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता, अतः शाब्दिक परीक्षण द्वारा उनका बुद्धि परीक्षण नहीं हो सकता है। इनके परीक्षण के लिए अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण ही उचित समझा जाता है।
(iv) मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों का परीक्षण : मानसिक रूप से पिछड़े अथवा रोगी बालकों का बुद्धि परीक्षण भी अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण के आधार पर ही किया जा सकता
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)
प्रश्न 1.
व्यक्तित्व परीक्षण साक्षात्कार विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए आजकल सबसे सामान्य तथा सर्वाधिक प्रयुक्त की जाने वाली विधि, साक्षात्कार विधि मानी जाती है। व्यक्तित्व के सामान्य मूल्यांकन के लिए यह एक उत्तम विधि मानी जाती है। विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी पदों के लिए व्यक्तियों की नियुक्ति करने हेतु इसी विधि द्वारा उनकी व्यक्तित्व सम्बन्धी योग्यताओं का परीक्षण किया जाता है।
इस विधि के अन्तर्गत साक्षात्कारकर्ता सम्बन्धित परीक्षार्थी से बातचीत करता है तथा उससे कुछ प्रश्न भी पूछता है। इन प्रश्नों के अतिरिक्त, साक्षात्कारकर्ता अपनी सूक्ष्म दृष्टि द्वारा परीक्षार्थी के बाहरी व्यक्तित्व तथा उसकी भाव-भंगिमाओं की जाँच भी कर लेता है। देखने में तो यह विधि पर्याप्त सरल मालूम पड़ती है, परन्तु वास्तव में यह विधि बहुत जटिल है। इस विधि द्वारा शुद्ध परिणाम प्राप्त करने के लिए साक्षात्कारकर्ता का एक कुशल मनोवैज्ञानिक होना आवश्यक है।
प्रश्न 2.
निरीक्षण विधि तथा अन्तर्दर्शन विधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निरीक्षण विधि तथा अन्तर्दर्शन विधि में अंतरः
निरीक्षण विधि |
अन्तर्दर्शन विधि |
1. इसमें निरीक्षक बाह्य परिस्थिति का अध्ययन करता है। |
1. अन्तर्दर्शन में मनुष्य स्वयं का अध्ययन करता है। |
प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में अपनाई जाने वाली नैदानिक विधि से क्या आशय है ?
उत्तर :
नैदानिक विधि का आशय : मनोवैज्ञानिक अध्ययन की एक विधि “नैदानिक विधि" अथवा नैदानिक परीक्षण (Clinical Observation) भी है। यह विधि निरीक्षण पर आधारित होते हुए भी सामान्य निरीक्षण से भिन्न होती है। इस विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति के असामान्य व्यवहार या मानसिक रोग के निदान के लिए उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। यह विधि केवल चिकित्सा के क्षेत्र तक ही सीमित है और इस क्षेत्र में इस विधि का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया जाता है।
विभिन्न मनोविकारों के लिए उत्तरदायी कारणों की वस्तुनिष्ठ खोज ही इस विधि का प्रमुख उद्देश्य है।। नैदानिक विधि की उचित परिभाषा प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक 'मर्फी' ने इन शब्दों में प्रस्तुत की है, “नैदानिक विधि व्यक्ति के उस मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन करती है, जिसमें उसके जीवन की प्रसन्नता एवं उसके प्रभावपूर्ण सामंजस्य का कार्य निर्भर करता है। यह विधि उसकी क्षमताओं तथा परिसीमाओं, सफलता और असफलता के कारण तथा जीवन की समस्याओं का अध्ययन करती है। इस विधि में उन कारणों का अध्ययन सम्मिलित है जो व्यक्ति के जीवन का निर्माण करते हैं या उसे बिगाड़ देते हैं।"
प्रश्न 4.
निरीक्षण विधि तथा नैदानिक विधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निरीक्षण तथा नैदानिक विधि में अन्तर : निरीक्षण एवं नैदानिक निरीक्षण में पर्याप्त अन्तर है। नैदानिक निरीक्षण किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाता है। यह चिकित्सा के क्षेत्र में ही प्रयुक्त किया जाता है। अतः इसका क्षेत्र सामान्य निरीक्षण की अपेक्षा सीमित है। सामान्य निरीक्षण किसी भी व्यवहार के अध्ययन के लिए किया जा सकता है। नैदानिक निरीक्षण के अन्तर्गत समस्या के निदान के उपरान्त व्यवहार सम्बन्धी समस्या के समाधान या असामान्य व्यवहार के उपचार के उपाय भी सुझाए जाते हैं परन्तु सामान्य निरीक्षण का इस प्रकार के नैदानिक सुझावों में कोई सरोकार नहीं होता। निरीक्षण एवं नैदानिक निरीक्षण के अन्तर को कुछ उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर किसी विद्यार्थी का व्यवहार कैसा होता है, जानने के लिए साधारण निरीक्षण विधि को ही अपनाया जाता है तथा सम्बन्धित विद्यार्थी के हाव-भाव एवं उल्लास भरे कथनों को नोट किया जाता है।
इससे भिन्न, यदि कोई विद्यार्थी कक्षा से प्रायः भाग जाता है तो उसके अध्ययन के लिए नैदानिक निरीक्षण विधि को अपनाया जाएगा। इस केस में सम्बन्धित विद्यार्थी की समस्त गतिविधियों, शैक्षिक स्तर अध्ययन में रुचि, पारिवारिक परिस्थितियों, मित्रमंडली आदि का विशिष्ट अध्ययन करना होगा, क्योंकि हो सकता है कि वह विद्यार्थी गृह-कार्य करके न लाता हो, अतः दंड से बचने के लिए कक्षा से भाग जाता हो। इसके अतिरिक्त यह भी हो सकता है कि उस विद्यार्थी की मित्रता कुछ बाल-अपराधियों से हो तथा उनके साथ वह व्यर्थ ही घूमता रहता हो। इनमें से अथवा इनके अतिरिक्त जो भी सही कारण हो, उसे ज्ञात करके विद्यार्थी के सुधार के लिए उपाय भी सुझाए जाते हैं।
प्रश्न 5.
परीक्षण के उद्देश्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(i) बुद्धि परीक्षण : यह बुद्धि की परीक्षा करने वाला परीक्षण है। इस परीक्षण द्वारा व्यक्ति अथवा समूह की बौद्धिक योग्यता का मापन किया जाता है। विभिन्न प्रयोजनों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के बुद्धि परीक्षण प्रयुक्त किए जाते हैं।
(ii) व्यक्तित्व परीक्षण : व्यक्तित्व सम्बन्धी योग्यताओं को व्यक्तित्व परीक्षणों द्वारा जाना जाता है। इन्हीं परीक्षणों द्वारा यह जाना जाता है कि कोई व्यक्ति किस प्रकार के व्यक्तित्व वाला है। ये परीक्षण भी अनेक प्रकार के होते हैं। कभी-कभी व्यक्तित्व सम्बन्धी कुछ दोषों को समाप्त करने के लिए भी कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तित्व परीक्षण किए जाते हैं।
(iii) रुचि परीक्षण : मनुष्य के जीवन में रुचियों को जानना लाभदायक होता है। अतः समय-समय पर विभिन्न रुचि परीक्षणों का निर्माण भी किया जाता है। व्यवसाय के चुनाव के लिए भी रुचि परीक्षण आवश्यक है। यदि किसी विशेष व्यवसाय के प्रति रुचि न हो तो उस व्यवसाय का चयन कभी भी नहीं करना चाहिए।
(iv) मनोवृत्ति परीक्षण : मनोवृत्ति (Attitude) किसी उद्दीपक अथवा उद्दीपक के प्रति जीव की स्थायी प्रतिक्रिया करने का तरीका होता है। इसी मनोवृत्ति के मापन हेतु विभिन्न मनोवृत्ति मापक (Attitude Scales) प्रयुक्त किए जाते हैं। मनोवृत्ति के मापन हेतु लिकर्ट तथा थर्स्टटोन द्वारा बनाए गए मानक अधिक प्रमाणित सिद्ध हुए हैं।
प्रश्न 6.
शाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षणों की कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
शाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षणों की कठिनाइयाँ : शाब्दिक समूह-बुद्धि परीक्षणों की मुख्य कठिनाइयाँ निम्नलिखित
(i) प्रयोज्य के सहयोग की समस्या : अनेक बार सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अनेक परीक्षार्थी परीक्षण में अपना पूरा सहयोग जान-बूझकर नहीं देते और इस असहयोग को ज्ञात करने का कोई स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष साधन परीक्षक के पास नहीं होता।
(ii) प्रयोज्य की वास्तविक स्थिति के प्रति अज्ञान : सामूहिक बुद्धि परीक्षण द्वारा परीक्षक यह ज्ञात नहीं कर सकता कि परीक्षण के समय प्रयोज्य की मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक स्थिति क्या थी। वास्तव में इन तथ्यों के पर्याप्त एवं समुचित ज्ञान के अभाव में प्रयोज्य का वास्तविक परीक्षण नहीं हो सकता।
(iii) नकल करने की समस्या : सामूहिक बुद्धि परीक्षण में पूछे गए प्रश्नों का सही उत्तर किसी अन्य व्यक्ति से पूछकर अथवा नकल करके भी दिया जा सकता है। इस समस्या को भी सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता है। उपर्युक्त वर्णित कठिनाइयों के होते हुए भी अनेक अवसरों पर इन्हीं परीक्षणों को प्रयुक्त किया जाता है। वास्तव में जहाँ व्यापक रूप से परीक्षण की आवश्यकता होती है, वहाँ इसी पद्धति को अपनाया जाता है।
प्रश्न 7.
अन्तर्दर्शन विधि का अर्थ व परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
अन्तदर्शन विधि का अर्थ एवं परिभाषा : मनोवैज्ञानिक अध्ययन की पद्धतियों में अन्तर्दर्शन विधि या अंतर्निरीक्षण विधि (Introspection Method) का विशेष स्थान है। अध्ययन की यह विधि मनोविज्ञान की एक विशिष्ट विधि है तथा सामान्यतः अन्य विज्ञानों में इसका उपयोग नहीं किया जाता है।
इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं अपने मन का निरीक्षण करता है। वास्तव में मनोविज्ञान विभिन्न मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। प्रस्तुत विधि में व्यक्ति स्वयं अपनी मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। इस विधि को आन्तरिक प्रत्यक्षीकरण भी कहा जा सकता है। कोई व्यक्ति सुखी है या दुःखी है, प्रसन्न है या शोकग्रस्त है, प्रेम का अनुभव कर रहा है या घृणा से व्याप्त है अथवा किसी अन्य गम्भीर चिन्तन में संलग्न है- इस प्रकार के समस्त तथ्यों को जानने के लिए व्यक्ति को स्वयं अपने अन्दर का दर्शन करना होगा; अर्थात् अन्तर्दर्शन विधि को अपनाना होगा। इस विधि के माध्यम से व्यक्ति अपनी अनुभूतियों के स्वरूपों को समझने का वैज्ञानिक प्रयास करता है।
टिचनर द्वारा परिभाषा : टिचनर ने अन्तर्दर्शन विधि की अति संक्षिप्त एवं सरल परिभाषा प्रस्तुत की है। उनके शब्दों में “अन्तर्दर्शन अन्दर देखना है।" इसी से मिलती-जुलती एक परिभाषा एंजिल ने भी प्रस्तुत की है। उनके अनुसार “अन्तर्दर्शन अन्दर की ओर देखना है।"
मैक्डूगल द्वारा परिभाषा : मैक्डूगल ने अन्तर्दर्शन की एक व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत की है। उनके अनुसार "व्यक्ति द्वारा मन की कार्य-पद्धति पर व्यवस्थित ढंग से ध्यान देना ही अन्तर्दर्शन है।" उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा अन्तर्दर्शन विधि का सामान्य अर्थ स्पष्ट हो जाता है। इस अर्थ के आधार पर अपने आन्तरिक निरीक्षण को ही अन्तर्दर्शन कहा जाता है। इसी तथ्य को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वुडवर्थ ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है " जब हमें एक व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और उद्देश्यों के विषय में आन्तरिक सूचना प्रदान करता है कि वह क्या देखता है, सुनता है या जानता है तो वह अपनी प्रतिक्रियाओं का अन्तर्दर्शन कर रहा होता है।"
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अन्तर्दर्शन विधि के गुण-दोष लिखिए।
उत्तर :
अन्तर्दर्शन विधि के गुण अथवा लाभ : मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में अन्तर्दर्शन विधि का विशेष स्थान है। इस विधि को उन तथ्यों के अध्ययन के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है, जिनका अध्ययन किसी अन्य विधि द्वारा सम्भव नहीं होता। अन्तर्दर्शन विधि के लाभ को निम्नलिखित ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है :
1. मनोविज्ञान में विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्ति के निजी अनुभवों की जानकारी भी आवश्यक होती है और व्यक्ति के निजी अनुभवों को जानने का एकमात्र उपाय अन्तर्दर्शन विधि ही है। अन्तर्दर्शन के अतिरिक्त किसी अन्य विधि अर्थात् निरीक्षण अथवा प्रयोग विधि द्वारा व्यक्ति के आन्तरिक अनुभवों को नहीं जाना जा सकता। स्पष्ट है कि व्यक्ति की अनुभूतियों एवं भावनाओं को जानने के लिए अन्तर्दर्शन विधि विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होती है।
2. व्यक्ति के निजी अनुभवों के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट मानसिक क्रियाओं को जानने के लिए अन्तर्दर्शन विधि ही उपयुक्त विधि के रूप में स्वीकार की जाती है। उदाहरण के लिएकल्पना, स्मृति एवं चिन्तन जैसी मानसिक क्रियाओं को जानने के लिए अन्तदर्शन विधि को ही अपनाया जाता है।
3. इस विधि में निरीक्षकों तथा किसी बाह्य यन्त्र की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए यह एक मितव्ययी विधि है। अन्तर्वर्शन विधि की कठिनाइयाँ अथवा दोष : मनोविज्ञान में अध्ययन के लिए अन्तर्दर्शन विधि का विशेष स्थान है, परन्तु फिर भी अन्य विधियों की भाँति, इस अध्ययन विधि की भी अपनी कुछ सीमाएँ तथा कठिनाइयाँ हैं। अन्तर्दर्शन विधि द्वारा अध्ययन करते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित दोषों अथवा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है :
(i) मानसिक क्रियाओं पर ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई : किसी भी तथ्य के व्यवस्थित निरीक्षण के लिए उस तथ्य पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित होना आवश्यक होता है, परन्तु मानसिक क्रियाओं के निरीक्षण के अनन्तर उन पर ध्यान केन्द्रित करना अत्यन्त कठिन होता है। इस कठिनाई का मुख्य कारण मानसिक प्रक्रियाओं की प्रकृति है। मानसिक प्रक्रियाएँ अमूर्त होती हैं तथा उनका स्वरूप जड़ वस्तुओं अथवा घटनाओं से पर्याप्त भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त मानसिक प्रक्रियाएँ न तो पर्याप्त स्पष्ट होती हैं और न ही स्थायी। इस स्थिति में मानसिक प्रक्रियाओं के निरीक्षण के लिए पूर्ण एकाग्रता की आवश्यकता होती है परन्तु निरन्तर मन की एकाग्रता बनाए रखना प्रायः सम्भव नहीं हो पाता है। अतः इस कठिनाई के कारण अनेक बार अन्तर्दर्शन कठिन हो जाता है।
(ii) मानसिक प्रक्रियाओं की अस्थिरता : मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय हमारी मानसिक प्रक्रियाएँ अर्थात् हमारी मनोवृत्तियाँ, अनुभूतियाँ, इच्छाएँ, विचार एवं भावनाएँ होती हैं। ये सब प्रक्रियाएँ स्वभाव से ही अस्थिर एवं निरन्तर रूप से परिवर्तनशील होती हैं। इन मानसिक प्रक्रियाओं की तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है। मानसिक प्रक्रियाओं की यह विशेषता अन्तर्दर्शन के लिए बाधक होती है। वास्तव में सुचारु निरीक्षण के लिए विषय की स्थिरता एक अनिवार्य शर्त है, परन्तु मानसिक प्रक्रियाओं की अस्थिरता के कारण उनका निरीक्षण पर्याप्त कठिन हो जाता है।
उदाहरण के लिए, प्रेम एक अस्थिर भावना है तथा यह निरन्तर परिवर्तित होती रहती है। इस भावना से परिपूर्ण व्यक्ति का ध्यान सम्बद्ध विषय में केन्द्रित कराकर वांछित तथ्य प्राप्त कर पाना अत्यन्त कठिन होता है। यदि कोई व्यक्ति बरबस इस भावना के मनोवैज्ञानिक अध्ययन का प्रयास करता है तो स्वाभाविक रूप से यह भावना या तो लुप्त हो जाती है अथवा उसकी तीव्रता घट जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अस्थिर प्रकृति की मानसिक प्रक्रियाओं का अन्तर्दर्शन अत्यन्त कठिन कार्य है।
(iii) एक ही प्रक्रिया का अनेक मनोवैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन सम्भव नहीं : वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन के लिए एक ही विषय का एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा अध्ययन किया जाना सैद्धान्तिक रूप से आवश्यक है, परन्तु अन्तर्दर्शन पद्धति इस शर्त को पूरा नहीं कर सकती। किसी व्यक्ति की आन्तरिक भावनाओं का पूर्ण अन्तर्दर्शन कोई अन्य व्यक्ति कर भी कैसे सकता है ? उदाहरण के लिए - कोई व्यक्ति किसी स्त्री के प्रति घृणा अथवा प्रेम का भाव रखता है। इस भाव का अनुभव या निरीक्षण सामान्य रूप से कोई अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि यह कठिनाई अन्तर्दर्शन पद्धति को वैज्ञानिकता तथा वस्तुनिष्ठता के वांछित गुण से वंचित कर देती है।
(iv) मन के विभक्त हो जाने की कठिनाई : मनोवैज्ञानिक अध्ययन की अन्तर्दर्शन पद्धति के विरुद्ध एक अन्य आक्षेप यह है कि इस विधि द्वारा अध्ययन करते समय व्यक्ति का मन विभक्त हो जाता है। वास्तव में अन्तर्दर्शन के समय मानसिक प्रक्रियाएँ ही निरीक्षण का विषय होती हैं। जब मन ही विभक्त हो तो इस विभक्त मन द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन कैसे सम्भव हो सकता है ? इसलिए इसके द्वारा किया गया अध्ययन अपूर्ण सिद्ध होता है।
(v) अन्तदर्शन एक व्यक्तिगत विधि है : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार समस्त वैज्ञानिक ज्ञान का वस्तुनिष्ठ (Objective) होना आवश्यक होता है परन्तु अंतर्दर्शन विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान व्यक्तिनिष्ठ अथवा आत्मगत (Subjective) होता है अतः इस ज्ञान के आधार पर सामान्य नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर पाना कठिन होता है।
(vi) एक ही समय में मनोवृत्ति तथा वस्तु का निरीक्षण असम्भव है : ऐसा देखा गया है कि मनुष्य के मन में उत्पन्न होने वाली मनोवृत्तियाँ किसी बाहरी वस्तु के अवलोकन का ही परिणाम होती हैं। उदाहरण के लिए सुन्दर फूल को देखकर हर्ष की स्थिति उत्पन्न होना। अन्तर्दर्शन विधि में आन्तरिक वृत्ति पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है और इसके लिए व्यक्ति को बाहरी वस्तु अर्थात् फूल से अपना ध्यान हटाना होगा; क्योंकि व्यक्ति का ध्यान एक समय में एक ही स्थान पर केन्द्रित हो सकता है। स्पष्ट है कि इस स्थिति में अन्तर्दर्शन कठिन हो जाएगा। इसी तथ्य को स्टाउट ने इन शब्दों में व्यक्त किया है- “यदि मैं देखने की क्रिया में संलग्न होऊँ तो मुझे वस्तु पर तथा दृश्यमानता पर एक साथ संकेन्द्रित होना पड़ेगा।"
(vii) अन्तर्दर्शन विधि से प्राप्त ज्ञान आत्मगत एवं व्यक्तिगत होता है : अन्तर्दर्शन विधि से प्राप्त ज्ञान आत्मगत एवं व्यक्तिगत होने के कारण उस ज्ञान को सामान्य व्यक्ति पर लागू करना उपयुक्त होता है, अतः इस ज्ञान के आधार पर कोई वस्तुनिष्ठ एवं सामान्यीकृत नियम निर्धारित कर पाना सम्भव नहीं है।
प्रश्न 2.
मनोविज्ञान के अध्ययन में निरीक्षण विधि क्या
उत्तर :
मनोविज्ञान अध्ययनों के लिए अपनाई जाने वाली मुख्य पद्धतियों में निरीक्षण विधि (Observation Method) का भी विशेष स्थान है। वर्तमान युग में अनेक मनोवैज्ञानिक इस पद्धति की अपेक्षा प्रयोगात्मक पद्धति को ही अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। परन्तु वास्तव में कुछ विशिष्ट मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के लिए निरीक्षण विधि ही उपयुक्त है। उदाहरण के लिए बाल-मनोविज्ञान, पशु-मनोविज्ञान तथा असामान्य मनोविज्ञान आदि मनोविज्ञान से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मुख्य रूप में निरीक्षण विधि के आधार पर ही अध्ययन किया जा सकता है।
विशेषतः पशु-व्यवहार का अध्ययन तो केवल निरीक्षण विधि द्वारा ही सम्भव है। इसी प्रकार किसी बालक के मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए हम अन्तर्दर्शन तथा प्रयोग विधि को नहीं अपना सकते। मानसिक रोगी तथा असामान्य व्यक्तियों का व्यवहार भी अन्तर्दर्शन विधि अथवा प्रयोग विधि के माध्यम से नहीं जाना जा सकता। स्पष्ट है कि मनोविज्ञान के कुछ मुख्य क्षेत्रों में निरीक्षण विधि को अपनाना न केवल सुविधाजनक है बल्कि अनिवार्य भी है।
निरीक्षण विधि का अर्थ एवं परिभाषा : निरीक्षण विधि के अन्तर्गत अभीष्ट व्यक्ति अथवा पश की बाहरी गतिविधियों के निरीक्षण के आधार पर उसका मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हम देखते हैं कि अमुक व्यक्ति की
भौहें तनी हैं, वह दाँत पीस रहा है तथा उसकी साँस तेज चल रही है एवं चेहरा तमतमा रहा है, तो व्यक्ति के व्यवहार से सम्बन्धित इन बाहरी लक्षणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि वह व्यक्ति गुस्से में है। यह मनोवैज्ञानिक निर्णय वास्तव में निरीक्षण विधि द्वारा प्राप्त हुआ है। स्पष्ट है कि इस विधि के अन्तर्गत केवल बाहरी गतिविधियों को देखकर ही ज्ञान प्राप्त किया जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि निरीक्षण विधि मनोवैज्ञानिक अध्ययन की वह विधि है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अथवा किसी अन्य प्राणी के व्यवहार का अध्ययन केवल बाहरी क्रियाकलापों के आधार पर ही किया जाता है। निरीक्षण विधि को प्रमुख विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है :
पी. वी. यंग के शब्दों में "निरीक्षण आँख के द्वारा स्वाभाविक घटनाओं का उनके घटित होते समय व्यवस्थित और इच्छापूर्ण अध्ययन है। निरीक्षण का प्रयोग जटिल सामाजिक घटनाओं में संस्कृति प्रतिमानों में और मानव आचार में महत्त्वपूर्ण परस्पर सम्बन्धित तत्वों की प्रवृत्ति और सीमा का प्रत्यक्षीकरण ऑक्सफोर्ड कन्साइज डिक्शनरी में निरीक्षण की परिभाषा इस प्रकार दी गई है, घटनाओं को जैसी कि वे प्रकृति में होती हैं, कार्य और कारण अथवा परस्पर सम्बन्ध की दृष्टि से देखना व नोट करना। मोसर के अनुसार, "निरीक्षण को उचित रूप से वैज्ञानिक पूछताछ की श्रेष्ठ विधि कहा जा सकता है। ठोस अर्थ में निरीक्षण में कानों और वाणी की अपेक्षा नेत्रों का उपयोग होता है।"
प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण से आप क्या समझते
उत्तर :
मनुष्य के वास्तविक जीवन को पूर्ण रूप से समझने के लिए विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति विशेष में क्या-क्या योग्यताएँ एवं प्रतिभाएँ हैं, यह जानने के लिए उस व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक परीक्षण करना अति आवश्यक है। व्यक्ति के व्यक्तित्व से सम्बन्धित सभी बातें जानने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आयोजन की आवश्यकता होती है। वस्तुत: विभिन्न योग्यताओं के मापन की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषा : प्रमुख विद्वानों ने मनोवैज्ञानिक परीक्षण को निम्नवत् परिभाषित किया है मुरसल ने मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का अर्थ इन शब्दों में स्पष्ट किया है- " एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण उद्दीपकों का एक प्रतिमान है जो कि ऐसी अनुक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिए चुने और संगठित किए जाते हैं जो कि प्रशिक्षण देने वाले व्यक्ति की कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को प्रकट करेंगे।"
क्रॉनबेक के अनुसार, “एक परीक्षण दो या अधिक व्यक्तियों के व्यवहार की तुलना करने हेतु व्यवस्थित पद्धति है।" फ्रीमैन ने परीक्षण के अर्थ को इन शब्दों में प्रकट किया है“मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक मानकीकृत यन्त्र है जिसके द्वारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व के एक पक्ष अथवा अधिक पक्षों का मापन शाब्दिक अथवा अशाब्दिक अनुक्रियाओं या अन्य प्रकार के व्यवहार के माध्यम से किया जाता है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक ऐसी व्यवस्थित पद्धति है जो एक या एक से अधिक व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करने हेतु प्रयोग में लाई जाती है। अध्ययन की यह पद्धति शाब्दिक भी हो सकती है तथा अशाब्दिक भी।
आधुनिक युग में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किया जाता है। नौकरियों के लिए योग्य व्यक्तियों का चुनाव भी इसी प्रकार के परीक्षणों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त शिक्षा, सेना, चिकित्सा, उद्योग, सेवा, व्यापार तथा अनुशासन स्थापना के क्षेत्र में भी विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को अपनाया जाता है। पाश्चात्य देशों में तो विवाह के लिए साथी का चुनाव करने हेतु भी विशेष मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को ही प्रयुक्त किया जाता है।
प्रश्न 4.
निरीक्षण विधि के विभिन्न तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान की विभिन्न विधियों में निरीक्षण विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इस विधि के अन्तर्गत बाहरी गतिविधियों के निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इस विधि के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं :
(i) व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन।
(ii) निरीक्षित व्यवहार की व्याख्या तथा विश्लेषण।
(iii) निरीक्षित व्यवहार को नोट करना।
(iv) सामान्यीकरण।
(i) व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन : इस विधि के अन्तर्गत अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाता है, अतः व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन निरीक्षण विधि का एक आवश्यक तत्त्व है। इसमें अध्ययनकर्ता व्यक्ति के व्यवहार का उसी स्थान पर जाकर स्वयं अध्ययन करता है, जहाँ वह अपने प्राकृतिक रूप में घटित हो रहा है। किसी भी प्रकार का अप्रत्यक्ष अध्ययन इस विधि द्वारा सम्भव नहीं है।
(ii) निरीक्षित व्यवहार की व्याख्या तथा विश्लेषण : निरीक्षित व्यवहार की व्याख्या तथा विश्लेषण भी आवश्यक है। व्यवहार की व्याख्या तथा विश्लेषण का कार्य वास्तविक निरीक्षण के पश्चात् तथा सामान्य रूप से अवकाश के समय दिया जाता है। निरीक्षण के इस चरण के अन्तर्गत व्यवहार की बाह्य गतिविधियों के आधार पर व्यक्ति अथवा पशु में निहित आन्तरिक दशाओं का अनुमान लगाया जाता है तथा उसकी व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।
उदाहरण के लिए- यदि हम देखते हैं कि कोई व्यक्ति रो रहा है, हाथ-पाँव पटक रहा है तथा किसी व्यक्ति का बार-बार नाम ले रहा है, तो इस व्यवहार के निरीक्षण के बाद हम व्यवहार विश्लेषण के आधार पर कह सकते हैं कि अमुक व्यक्ति अत्यधिक शोकग्रस्त है तथा उसके इस शोक का सम्बन्ध उस व्यक्ति से है, जिसका वह बार-बार नाम ले रहा है। इसके अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के व्यवहार की सही व्याख्या हेतु हमारा स्वयं का अनुभव भी आवश्यक है। इसलिए मनोवैज्ञानिक स्टाऊट ने कहा है कि “दूसरों के व्यवहार में प्रवेश पाने के योग्य होने के लिए यह वास्तव में आवश्यक है कि हमें समान अथवा सम्बन्धित अनुभव प्राप्त हो।"
(iii) निरीक्षित व्यवहार को नोट करना : निरीक्षण विधि एक पूर्ण वैज्ञानिक विधि है। प्रत्येक वैज्ञानिक विधि के ही समान यह भी एक सुव्यवस्थित एवं तथ्यों पर आधारित है। इसीलिए इस विधि में प्रत्येक निरीक्षित व्यवहार को साथ-ही-साथ नोट कर लिया जाता है। यदि ऐसा न किया जाए तो सम्भव है कि कोई तथ्य छूट जाए अथवा वह तथ्य अपने वास्तविक रूप में स्मरण न रहे। इस त्रुटि से बचने के लिए निरीक्षित व्यवहार को तत्काल नोट कर लेना आवश्यक माना जाता है।
(iv) सामान्यीकरण : निरीक्षण विधि का अन्तिम एवं आवश्यक तत्त्व है- निरीक्षित व्यवहार के आधार पर सामान्य सिद्धान्त प्रस्तुत करना। इसके लिए कुछ व्यक्तियों अथवा पशुओं के व्यवहार के व्यवस्थित अध्ययन के पश्चात् कुछ सामान्य निष्कर्षों को प्राप्त कर लिया जाता है। ये सामान्य निष्कर्ष एक वर्ग-विशेष के व्यक्तियों अथवा एक जाति के समस्त पशुओं के लिए सामान्य रूप से सही स्वीकार कर लिए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों का मुख्य उद्देश्य भी सामान्यीकरण की क्रिया के आधार पर इन्हीं सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना होता है।
प्रश्न 5.
निरीक्षण विधि के लाभ अथवा गुणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
निरीक्षण विधि के लाभ : मनोवैज्ञानिक निरीक्षण विधि के मुख्य गुण अथवा लाभ निम्नलिखित हैं :
(i) स्वाभाविक परिस्थितियों का अध्ययन।
(ii) पशु मनोविज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी।
(ii) असामान्य व्यक्तियों के अध्ययन में सहायता।
(iv) व्यापक क्षेत्र में प्रयोग की विशेषता।
(v) पर्याप्त वस्तुनिष्ठता।
(i) स्वाभाविक परिस्थितियों का अध्ययन : निरीक्षण विधि द्वारा सदैव स्वाभाविक परिस्थितियों में ही अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति वास्तविक शोक या हर्ष की स्थिति में कैसा व्यवहार करता है यह केवल स्वाभाविक परिस्थितियों में प्रयुक्त की जाने वाली निरीक्षण विधि द्वारा ही ज्ञात किया जा सकता है। प्रयोग तथा अन्तर्दर्शन विधियों द्वारा यह सम्भव नहीं है।
(ii) पशु मनोविज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी : पशुओं के व्यवहार का अध्ययन निरीक्षण द्वारा ही किया जा सकता है तथा इनके व्यवहार की तुलना मानव व्यवहार से करके कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों; जैसे-सीखना, प्रेरणा, रुचि आदि में विभिन्न उपयोगी नियमों एवं सिद्धान्तों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार पशु-मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी यह विधि समान रूप से उपयोगी है।
(iii) असामान्य व्यक्तियों के अध्ययन में सहायता : असामान्य तथा मानसिक रोगी व्यक्तियों का अध्ययन भी एक जटिल समस्या होती है, क्योंकि ये व्यक्ति स्वयं अपने विषय में कुछ नहीं बता सकते हैं। इस स्थिति में इन असामान्य व्यक्तियों के अध्ययन के लिए केवल निरीक्षण विधि को ही अपनाया जाता है। निरीक्षण विधि का यह गुण है कि इसके द्वारा असामान्य व्यक्तियों का भी सुचारु रूप से अध्ययन हो जाता है।
(iv) व्यापक क्षेत्र में प्रयोग की विस्तारता : निरीक्षण विधि का एक प्रमुख गुण यह है कि इस पद्धति का प्रयोग व्यापक क्षेत्र में हो सकता है। यह विधि मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणियों के व्यवहार के लिए भी प्रयुक्त हो सकती है। किसी भी पशु के स्वाभाविक व्यवहार का निरीक्षण भी इस विधि के माध्यम से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
(v) पर्याप्त वस्तुनिष्ठता : प्रत्येक वैज्ञानिक विधि का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण वस्तुनिष्ठता ही होता है। निरीक्षण विधि में यह गुण पर्याप्त सीमा तक निहित है। निरीक्षण विधि में व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है तथा इसके उपरान्त सम्बन्धित व्यवहार को लिखा जाता है। इस स्थिति में वस्तुनिष्ठ अध्ययन पूर्ण रूप से सम्भव होता है। अधिक-से-अधिक वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने के लिए एक ही तथ्य का निरीक्षण एक से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा एक साथ भी किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
निरीक्षण विधि से अध्ययन करने में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
निरीक्षण विधि के मुख्य दोष कौन-कौन से है? वर्णन कीजिए।
उत्तर :
निरीक्षण विधि के दोष अथवा कठिनाइयाँ यह सत्य है कि निरीक्षण विधि एक उत्तम विधि है तथा इसके माध्यम से प्रयोज्य (Subject) का प्रत्यक्ष अध्ययन सम्भव होता है, तथापि इस विधि में कुछ दोष भी हैं। निरीक्षण विधि के ये मुख्य दोष निम्नलिखित हैं :
(i) व्यक्तिगत रुचि का प्रभाव : किसी भी वैज्ञानिक विधि के प्रयोगकर्ता को पूर्ण रूप से तटस्थ होना चाहिए, परन्तु निरीक्षण विधि में यह तटस्थता अनेक बार निरीक्षणकर्ता की व्यक्तिगत रूचि से प्रभावित हो जाती है। स्वाभाविक रूप से प्रत्येक निरीक्षणकर्ता की कुछ विशिष्ट रुचियाँ होती हैं और निरीक्षण के समय वह अपनी रुचियों से सम्बन्धित तथ्यों पर ही अधिक ध्यान देता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ आवश्यक तथ्य या तो निरीक्षण से छूट जाते हैं या उनकी अवहेलना कर दी जाती है। इस प्रकार व्यक्तिगत रुचियों के प्रभावस्वरूप अध्ययन न तो संतुलित रह पाता है और न वस्तुनिष्ठ।
(ii) पर्याप्त प्रशिक्षण एवं अभ्यास की कमी : सही निरीक्षण करने के लिए निरीक्षणकर्ता को पर्याप्त कुशल होना चाहिए। यह कशलता विशेष प्रशिक्षण तथा पर्याप्त अभ्यास द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। सामान्य रूप से साधारण निरीक्षणकर्ता न तो समुचित रूप से प्रशिक्षित ही होते हैं और न ही उन्हें वास्तविक निरीक्षण का अभ्यास ही होता है। इस अभाव के कारण ही प्रायः अध्ययन दोषपूर्ण हो जाता है।
(ii) पक्षपात की आशंका : निरीक्षण विधि में अनेक बार निरीक्षणकर्ता द्वारा किए जाने वाले पक्षपात की आशंका भी रहती है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक अध्ययनकर्ता के कुछ-न-कुछ पूर्वाग्रह होते हैं और इन्हीं पूर्वाग्रहों के कारण ही अध्ययन में पक्षपात की सम्भावना तथा आशंका बनी रहती है।
(iv) दूसरों को अपने समान समझना : निरीक्षणकर्ता दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को अपने विचारों, दृष्टिकोणों, धारणाओं, प्रत्यक्षों आदि के अनुरूप ही समझने लगता है। उदाहरणार्थ-- यदि वह निराश है तो उसे अन्य व्यक्तियों का व्यवहार भी निराशाजनक लगेगा। इसी प्रकार कोई दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति दूसरों के सद्कार्यों के पीछे भी कोई दुष्ट प्रयोजन खोज लेता है, जबकि एक धार्मिक प्रकृति का व्यक्ति किसी के कपटपूर्ण व्यवहार में भी बार-बार ईमानदारी अथवा सच्चाई की ही खोज करता है।
(v) निरीक्षित व्यक्ति का कृत्रिम व्यवहार : निरीक्षण के समय प्रयोज्य के द्वारा जान-बूझकर उचित एवं सामाजिक रूप में मान्य व्यवहार ही करने का प्रयास किया जाता है, जो उसका स्वाभाविक व्यवहार न होकर कृत्रिम व्यवहार होता है। इस प्रकार के कृत्रिम व्यवहार का अध्ययन वस्तुनिष्ठ निष्कर्षों को प्राप्त करने में बाधक सिद्ध होता है।
(vi) अनुभवी निरीक्षकों का अभाव : सभी व्यक्ति निरीक्षण का कार्य नहीं कर सकते, इस कार्य के लिए सुयोग्य निरीक्षकों का होना आवश्यक है। दूसरी ओर, अच्छे विद्वान निरीक्षकों का मिलना कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में निष्कर्ष गलत होने की सम्भावना रहती है। निरीक्षण एवं नैदानिक निरीक्षण के अन्तर को कुछ उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर किसी विद्यार्थी का व्यवहार कैसा होता है, यह जानने के लिए साधारण निरीक्षण विधि को ही अपनाया जाता है तथा सम्बन्धित विद्यार्थी के हाव-भाव एवं उल्लास-भरे कथनों को नोट किया जाता है।
इससे भिन्न, यदि कोई विद्यार्थी कक्षा से प्रायः भाग जाता है तो उसके अध्ययन के लिए नैदानिक निरीक्षण विधि को अपनाया जाएगा। इस प्रकरण से सम्बन्धित विद्यार्थी की समस्त गतिविधियों, शैक्षिक स्तर, अध्ययन में रुचि, पारिवारिक परिस्थितियों, मित्रमंडली आदि का विशिष्ट अध्ययन करना होगा, क्योंकि हो सकता है कि वह विद्यार्थी गृहकार्य करके न लाता हो. अत: दंड से बचने के लिए कक्षा से भाग जाता हो। इसके अतिरिक्त यह भी हो सकता है कि उस विद्यार्थी की मित्रता कुछ बाल-अपराधियों से हो तथा उनके साथ वह व्यर्थ ही घूमता रहता हो। इनमें से अथवा इनके अतिरिक्त जो भी सही कारण हो, उसे ज्ञात करके विद्यार्थी के सुधार के लिए उपाय भी सुझाए जाते हैं।
प्रश्न 7.
मनोविज्ञान की अध्ययन पद्धतियों में प्रयोग विधि का अर्थ बताते हुए संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रयोग विधि के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रयोग विधि क्या है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान की अध्ययन पद्धतियों में प्रयोग विधि या प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method) का विशेष स्थान है। कुछ आधुनिक विद्वानों के मतानुसार मनोवैज्ञानिक अध्ययन की एकमात्र पद्धति प्रयोगात्मक पद्धति ही है। इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों के अनुसार क्योंकि मनोविज्ञान एक तथ्यात्मक विज्ञान है, अतः इसके अध्ययन के लिए केवल शुद्ध वैज्ञानिक पद्धति का ही प्रयोग करना चाहिए और प्रयोगात्मक पद्धति एक वैज्ञानिक पद्धति है।
प्रयोग विधि का अर्थ : मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम 1879 ई. में बुंट (Wundi) ने प्रारम्भ किया था। इस विधि की मान्यताओं के अनुसार सभी मनोवैज्ञानिक अध्ययन मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में ही होने चाहिए। प्रयोगशाला में अवांछनीय परिस्थितियों को नियन्त्रित रखा जाता है तथा वांछनीय परिस्थितियों में सम्बन्धित कारकों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस अर्थ में हम कह सकते हैं कि प्रयोग विधि
वास्तव में एक विशिष्ट प्रकार का निरीक्षण होता है जो नियन्त्रित दशाओं में ही सम्पन्न होता है। प्रयोगात्मक विधि के अन्तर्गत सम्बद्ध अध्ययन पर आधारित अभीष्ट निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है और प्रयोग किसी समस्या के ही हल या समाधान प्राप्त करने के व्यवस्थित प्रयास को कहा जाता है। इस प्रकार प्रयोगों द्वारा किसी समस्या का अभीष्ट समाधान प्राप्त करना ही प्रयोगात्मक पद्धति कहलाता है। प्रयोगात्मक पद्धति के सन्दर्भ में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इसके चरण निश्चित होते हैं तथा यह सदैव नियन्त्रित परिस्थितियों में ही प्रयुक्त की जाती
प्रयोग विधि के मुख्य चरण : प्रयोग विधि एक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक विधि है। इस विधि के मुख्य चरण या स्तर निम्नलिखित हैं :
(i) किसी समस्या का उत्पन्न होना : प्रयोग विधि का प्रथम चरण है किसी स्पष्ट समस्या का उत्पन्न होना। उदाहरण के लिए - नशाखोरी एक समस्या है। सामान्य रूप से प्रत्येक समाज में इसके विभिन्न पक्षों को किसी-न-किसी बुराई का कारण समझा जाता है। मनोवैज्ञानिकों के सम्मुख इन धारणाओं के सत्यापन्न की समस्या उत्पन्न होती है। समस्या का इस प्रकार उत्पन्न होना ही प्रयोग के प्रथम चरण के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(ii) उपकल्पना का निर्माण : स्पष्ट समस्या के निर्धारण के बाद एक उपकल्पना बनाई जाती है। यह प्रयोग विधि का दूसरा चरण है। उपकल्पना सम्बन्धित समस्या का कोई एक सम्भावित हल होता है। उदाहरण के लिए- "नशाखोरी के कारण व्यक्ति की स्मरण-शक्ति कमजोर पड़ जाती है" यह एक उपकल्पना है।
(iii) स्वतंत्र तथा आश्रित चरों को अलग-अलग करना : प्रत्येक उपकल्पना में दो प्रकार के चर (Variables) होते हैं। ये दो चर हैं- स्वतन्त्र चर तथा आश्रित चर। परिवर्तनशील तथा प्रभावकारी तत्त्वों (कारकों) को 'स्वतन्त्र चर' तथा इनसे प्रभावित तत्त्व को 'आश्रित चर' कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप : 'नशाखोरी' स्वतंत्र चर तथा 'स्मृति' आश्रित चर कहलाएगा। समस्या के अध्ययन से पूर्व उपकल्पना से सम्बन्धित दोनों प्रकार के चरों को अलग-अलग कर दिया जाता है।
(iv) परिस्थितियों का नियन्त्रण : अनेक कारक एवं परिस्थितियाँ प्रयोज्य को निरन्तर प्रभावित करती रहती हैं। सही निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए अनावश्यक परिस्थितियों को नियन्त्रितकिया जाता है। नियन्त्रण के लिए उपयुक्त वर्णित उपकल्पना में स्मरण शक्ति को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारकों को नियन्त्रित करना आवश्यक है। इस प्रकार के नियन्त्रण के अभाव में नशाखोरी के प्रभाव को नहीं जाना जा सकता है।
(v) प्रयोग द्वारा प्राप्त फल का विश्लेषण : यह भी प्रयोग विधि का एक महत्त्वपूर्ण चरण है, क्योंकि निष्कर्ष एवं सामान्यीकरण से पूर्व, प्रयोग द्वारा प्राप्त फलों का विश्लेषण आवश्यक होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सांख्यिकीय सूत्रों की सहायता ली जाती है। इस विश्लेषण के आधार पर ही सामान्य निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं।
(vi) उपकल्पना की जाँच : प्रयोग विधि के इस चरण के अन्तर्गत प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्षों की पूर्व-निर्धारित उपकल्पना से तुलना की जाती है। यह तुलना उपकल्पना की जाँच के लिए की जाती है। यदि प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्ष तथा पूर्व-निर्धारित उपकल्पना समान होते हैं तो उपकल्पना को सही मान लिया जाता है। इससे भिन्न, यदि उपकल्पना तथा प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्षों में अन्तर या विरोध पाया जाता है तो उपकल्पना को गलत मानना चाहिए तथा उसे छोड़ देना चाहिए। इस स्थिति में कोई अन्य उपकल्पना बनाई जाती है।
(vii) सामान्यीकरण : निरन्तर समान परिस्थितियों में प्रयोग द्वारा स्वतंत्र एवं आश्रित चर के सम्बन्धों में जो भी सामान्य जानकारी प्राप्त होती है, उसे सुसंगठित करके सामान्य निष्कर्षों का निर्धारण करना ही सामान्यीकरण कहा जाता है। प्रयोग विधि का यह चरण ही ज्ञान के क्षेत्र में मौलिक जानकारियों को प्रत्यक्ष करता है।
प्रश्न 8.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
परीक्षण विधि का मनोवैज्ञानिक अध्ययन में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताएं : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का जीवन के विभिन्न पक्षों से सीधा सम्बन्ध होता है, परन्तु मनोवैज्ञानिक परीक्षण सामान्य रूप से तभी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं, जबकि इनमें कुछ आवश्यक विशेषताएँ विद्यमान हों। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के लिए वांछित ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
1. विश्वसनीयता (Reliability) : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को अधिक-से-अधिक विश्वसनीय होना चाहिए। विश्वसनीयता का अर्थ परीक्षण परिणामों की विश्वसनीयता का होना है। एटास्टसी ने परीक्षण की विश्वसनीयता को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, "विश्वसनीयता का अर्थ है विभिन्न अवसरों पर प्राप्त एक ही व्यक्ति के प्राप्तांकों में कितनी स्थिरता अथवा एकरसता है।"
विश्वसनीयता की जाँच करने के लिए एक ही परीक्षण एक ही व्यक्ति पर पुन:-पुनः लागू किया जाता है। यदि बार-बार किए गए परीक्षण के आधार पर एक समान परिणाम प्राप्त हों तो उस परीक्षण को विश्वसनीय माना जा सकता है। किसी परीक्षण की विश्वसनीयता की जाँच करने के लिए विभिन्न विधियों को अपनाया जा सकता है। इस दृष्टि से मुख्यतः पुनर्परीक्षण विधि, विकल्प या समानान्तर विधि, अर्द्ध-विच्छेदन विधि या तर्क-मुक्त समानता विधि का प्रयोग किया जाता है।
2. वस्तुनिष्ठता (Objectivity) : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का अधिक-से-अधिक वस्तुनिष्ठ होना भी आवश्यक है। यह विशेषता प्रत्येक वैज्ञानिक अध्ययन के लिए नितान्त आवश्यक होती है। वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि परीक्षण के अन्तर्गत ऐसे प्रश्नों एवं समस्याओं का समावेश नहीं करना चाहिए, जिनका सम्बन्ध व्यक्ति की निजी पसन्द, भावनाओं अथवा उनकी रुचि से हो।
3. वैधता या प्रामाणिकता (Validity) : परीक्षणों की विश्वसनीयता का सम्बन्ध परीक्षण विधि से होता है। इसके अतिरिक्त, परीक्षणों का प्रामाणिक होना भी आवश्यक है। परीक्षणों की प्रामाणिकता अथवा वैधता का सम्बन्ध परीक्षणों के आधार पर प्राप्त परिणामों से होता है। कोई परीक्षण प्रामाणिक तभी कहलाता है, जब उसके द्वारा प्राप्त परिणाम पूर्ण रूप से शुद्ध हों। उदाहरण के लिए-वही रुचि परीक्षण प्रामाणिक कहलाएगा, जो व्यक्तियों की वास्तविक रुचि के विषय में शुद्ध परिणाम प्रदर्शित कर सके।
4. भविष्य-कथन योग्यता (Predictability) : एक उत्तम परीक्षण की यह विशेषता भी होती है कि उस परीक्षण से प्राप्त परिणामों के आधार पर व्यक्ति की भावी सफलताओं अथवा भावी जीवन के सन्दर्भ में विश्वसनीय रूप से कुछ कहा जा सकता है; अर्थात् परिणाम के आधार पर किसी व्यक्ति की क्षमता, बुद्धि, अभिरुचि आदि की भविष्यवाणी भी परीक्षण की विशेषता होनी चाहिए।
5. व्यापकता (Adequacy) : प्रत्येक मनोवैज्ञानिक परीक्षण को पर्याप्त रूप में व्यापक भी होना चाहिए। यहाँ व्यापकता का आशय यह है कि परीक्षण द्वारा सम्बन्धित विषय के सभी पक्षों का विस्तृत परीक्षण हो जाए। उदाहरण के लिए कोई व्यक्तित्व परीक्षण केवल उसी दशा में व्यापक कहलाएगा, जब वह व्यक्ति के सभी पहलुओं के विषय में पर्याप्त ज्ञान प्रदान कर सके।
6. व्यावहारिक विशेषताएँ : उपर्युक्त समस्त विशेषताओं के अतिरिक्त, एक अच्छे परीक्षण में निम्नलिखित व्यावहारिक विशेषताओं का होना भी अपेक्षित है
(i) प्रशासन की सुविधा (Administrability) : परीक्षण का आकार, परीक्षण में रखे गए प्रश्न तथा परीक्षार्थियों को दिए जाने वाले निर्देश आदि इस प्रकार के होने चाहिए कि वे परीक्षण के सफल प्रशासन में बाधक सिद्ध न हों। इसके अतिरिक्त, परीक्षण में तकनीकी दृष्टिकोण से योग्य व्यक्तियों की कम-से-कम आवश्यकता होनी चाहिए।
(ii) मूल्यांकन तथा व्याख्या की सुविधा (Scorability and Ease to Interpretation) : सरल विधियों के आधार पर प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन एवं उनका सही अर्थ समझना भी परीक्षण की व्यावहारिक विशेषता होनी चाहिए।
(ii) तुलनात्मकता (Comparability) : परीक्षण इस प्रकार | का होना चाहिए कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के प्राप्तांकों की तुलना सरलता से हो सके और परीक्षण के प्राप्तांकों की तुलना अन्य परीक्षण के प्राप्तांकों से की जा सके।
(iv) बचत (Economy) : एक उत्तम परीक्षण के आधार पर समय, धन तथा प्रयासों की बचत होनी चाहिए।
(v) उपयोगिता (Utility) : निर्देशन, निदान एवं उपचार, तुलना, व्यावहारिक प्रयोग तथा दैनिक जीवन में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का सफल उपयोग भी परीक्षण की विशेषता होनी चाहिए।
प्रश्न 9.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अध्ययन से क्या लाभ हैं ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की उपयोगिताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से विभिन्न प्रकार की सहयता ली जाती है। वस्तुतः मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के लाभ या उपयोगिता : परीक्षणों के मुख्य लाभों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है :
(i) विभिन्न नियुक्तियों हेतु प्रयोग : प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक प्रकार के कार्य को कुशलता से नहीं कर सकता, अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक प्रकार की नियुक्ति के लिए सर्वप्रथम योग्यता परीक्षण हो। इस प्रकार के योग्यता परीक्षणों के अन्तर्गत, अन्य तकनीकी एवं शैक्षिक परीक्षणों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग भी आवश्यक है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा सम्बन्धित व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक योग्यताओं का पता चल जाता है। शैक्षिक दृष्टि से योग्य होने पर भी यदि किसी कर्मचारी की रुचि किसी विशेष कार्य के प्रति न हो तो उसे उस कार्य के लिए अयोग्य ही मानना चाहिए। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा की गई नियुक्तियों से कर्मचारियों को, कार्य-संस्थानों को तथा पूरे समाज को लाभ होता है।
(ii) व्यवसाय के चुनाव में सहायक : स्कूल एवं कॉलेज की सामान्य शिक्षा विद्यार्थियों को अपने व्यवसाय का चयन करने की दृष्टि से विशेष रूप से सहायक नहीं हुआ करती। प्रायः प्रत्येक सामान्य विद्यार्थी को अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद व्यवसाय के चुनाव की परेशानी का सामना करना पड़ता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर इस समस्या का हल प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए प्रत्येक बड़े नगर में मनोवैज्ञानिक परीक्षण केन्द्रों की स्थापना की जा सकती है और इन केन्द्रों के विशेषज्ञ समय-समय पर विभिन्न शिक्षा संस्थाओं में जाकर विद्यार्थियों की व्यवसाय चुनाव सम्बन्धी परेशानियों को दूर कर सकते हैं। इन परीक्षणों के माध्यम से व्यक्ति के रुचि, बुद्धि, योग्यता, व्यक्तित्व आदि के परीक्षण के बाद ही उसे किसी नौकरी में भेजा जाता है जिससे कि वह अपने व्यावसायिक जीवन में सफलता प्राप्त कर सके।
(iii) व्यक्तित्व सम्बन्धी सुझावों की दृष्टि से उपयुक्त : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण-दोषों को ज्ञात करना भी सम्भव होता है। व्यक्तित्व के दोषों को ज्ञात कर लेने के बाद उनके सुधार के उपाय भी सुझाए जाते हैं। इस प्रकार अनेक बार व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व को सन्तुलित बनाने के लिए व्यक्तित्व सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को उपयोग में लाना पड़ता है।
(iv) मनोवैज्ञानिक अनुसंधान हेतु आवश्यक : मनोविज्ञान एक विकासशील विषय है। इस विषय में नित्य नए सिद्धान्तों की खोज की जा रही है। इन सिद्धान्तों की खोज में ये मनोवैज्ञानिक परीक्षण विशेष सहायक होते हैं। समय-समय पर निर्मित किए गए बुद्धि परीक्षणों तथा अभिरुचि एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी परीक्षणों के माध्यम से मानव-मनोविज्ञान के अनेक नए पहलुओं का ज्ञान प्राप्त होता रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण मनोविज्ञान के अध्ययन एवं अनुसंधान में भी विशेष सहायक होते|
(v) शिक्षा के क्षेत्र में सहायक : आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ हैं। उदाहरण के लिए- शिक्षा की प्रणाली क्या होनी चाहिए ? क्या अलग-अलग प्रणालियों के आधार पर शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए ? पाठ्यक्रम किस प्रकार के होने चाहिए ? इन सब समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग करना प्रायः लाभदायक सिद्ध होता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर विभिन्न बौद्धिक स्तर वाले छात्रों के अलग-अलग वर्ग बनाए जा सकते हैं और अलग-अलग वर्गों वाले छात्रों को अलग-अलग प्रणालियों द्वारा शिक्षा दी जा सकती है।
(vi) चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोगी : चिकित्सा के क्षेत्र में भी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मनोविश्लेषणवाद के अनुसार विभिन्न कुंठाएँ ही अधिकांश मानसिक एवं शारीरिक रोगों का कारण होती हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा इन कारणों को ज्ञात किया जा सकता है और उन्हें दूर भी किया जा सकता है।
(vii) पूर्वानुमान हेतु आवश्यक : किसी व्यक्ति की क्षमता, रुचि, बुद्धि, अभिरुचि आदि के परीक्षण के आधार पर उसकी भावी सफलता का पूर्वानुमान कर लिया जाता है। इसी पूर्वानुमान को लक्ष्य बनाकर उपयुक्त निर्देशन एवं परामर्श दे पाना सम्भव होता है।