These comprehensive RBSE Class 11 History Notes Chapter 6 तीन वर्ग will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 History Chapter 6 Notes तीन वर्ग
→ नौवीं से सोलहवीं सदी के बीच पश्चिमी यूरोप में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले।
- रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात पूर्वी एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, स्पेन और फ्रांस के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।
- यूरोप में किसी भी संगठित राजनीतिक बल के अभाव में प्रायः युद्ध होते रहने के कारण अपनी भूमि की रक्षा हेतु संसाधन जुटाना आवश्यक हो गया था। इस प्रकार से यूरोप में सामाजिक ढाँचे का केन्द्रबिन्दु भूमि पर नियंत्रण था।
- ईसाई धर्म रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात भी बचा रहा और धीरे-धीरे मध्य और उत्तरी यूरोप में फैल गया।
- चर्च भी यूरोप में उन दिनों एक मुख्य भूमिधारक और राजनीतिक शक्ति बन चुका था।
- पिछले सौ वर्षों में यूरोपीय इतिहासकारों ने विविध क्षेत्रों के इतिहासों, यहाँ तक कि प्रत्येक गाँव के इतिहास पर
- विस्तृत कार्य किया है। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि वहाँ भू-स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों और कानूनी मुकद्दमों जैसी बहुत-सी सामग्री दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध थी।
- फ्रांस के मार्क ब्लॉक नामक विद्वान ने सामन्तवाद पर सर्वप्रथम कार्य किया।
→ सामंतवाद का परिचय
- सामंतवाद शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं विधिक सम्बन्धों का वर्णन करने के लिए किया जाता रहा है। सामंतवाद शब्द की उत्पत्ति जर्मन शब्द फ़्यूड से हुई है जिसका अर्थ 'एक भूमि का टुकड़ा' है।
- सामंतवाद शब्द एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है, जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैण्ड व दक्षिणी इटली में विकसित हुआ।
- सामंतवाद आर्थिक सन्दर्भ में कृषकों एवं सामंत (लॉर्ड) के सम्बन्धों पर आधारित होता है।
- कृषक, अपने खेतों के साथ-साथ लॉर्ड (सामंत) के खेतों पर भी काम करते थे।
- कृषक लॉर्ड (सामंत) को श्रम सेवा प्रदान करते थे और बदले में लॉर्ड उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे।
- लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार थे। इसीलिए, यूरोप में सामंतवाद ने जीवन के न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया था।
→ फ्रांस और इंग्लैण्ड
- गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था, जिसे जर्मनी की एक जनजाति 'फ्रैंक' ने अपना नाम देकर फ्रांस बना दिया।
- छठी सदी से यह प्रदेश पँकिश या फ्रांस के ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था।
- पोप द्वारा राजा शार्लमेन से समर्थन प्राप्त करने के लिए उसे 'पवित्र रोमन सम्राट' की उपाधि दी गई।
- एक सँकरे जलमार्ग के पार स्थित इंग्लैण्ड व स्काटलैण्ड द्वीपों को 11वीं सदी में फ्रांस के नारमंडी प्रान्त के राजकुमार द्वारा जीत लिया गया था।
→ तीन वर्ग
- फ्रांसीसी समाज 9वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य मुख्य रूप से तीन वर्गों-पादरी, अभिजात तथा कृषक वर्ग से निर्मित था।
- फ्रांसीसी पादरियों की यह अवधारणा थी कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी भी एक वर्ग का सदस्य होता है।
→ अभिजात वर्ग
- पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में और अभिजात वर्ग को दूसरे वर्ग में रखा। परंतु वास्तव में, सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। ऐसा भूमि पर उनके नियंत्रण के कारण हुआ।
- सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग का एक विशेष स्थान होता था। उनका अपनी सम्पत्ति पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियंत्रण होता था। वे अपनी सैनिक शक्ति, जिसे सामन्ती सेना कहते थे, को बढ़ा सकते थे। वे अपना न्यायालय लगाने और यहाँ तक कि अपनी मुद्रा जारी करने का भी अधिकार रखते थे।
- अभिजात वर्ग अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक होते थे। उनका घर 'मेनर' कहलाता था। लॉर्ड गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। कुछ लॉर्ड अनेक गाँवों के मालिक थे।
- अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था। साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करना पड़ता था।
→ मेनर की जागीर
- लॉर्ड का अपना मेनर-भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था।
- किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 से 60 परिवार होते थे। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर से प्राप्त हो जाती थी।
- लॉर्ड की जागीरों में वन एवं शिकार के स्थान होते थे, चारागाह होते थे तथा एक चर्च एवं सुरक्षा के लिए एक दुर्ग भी होता था।
- 13वीं शताब्दी में कुछ दुर्गों को बड़ा बनाया जाने लगा जिससे वे नाइट के परिवार का निवास स्थान बन सकें।
- वास्तव में इंग्लैण्ड में इन दुर्गों का विकास सामंत प्रथा के अधीन राजनीतिक प्रशासन और सैन्य शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ था।
→ नाइट
- 9वीं शताब्दी से, यूरोप में प्रायः स्थानीय युद्ध होते रहते थे। शौकिया कृषक सेना (सामंती सेना) पर्याप्त नहीं थी और एक कुशल अश्वारोही सेना की आवश्यकता थी। इसलिए एक नये वर्ग का उदय हुआ जो नाइट्स कहलाए।
- ये नाइट्स लॉर्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लॉर्ड राजा से सम्बद्ध था। लॉर्ड ने इनको भूमि का एक भाग दे दिया जिसे 'फ़ीफ़' कहा जाता था।
- फ़ीफ़ उत्तराधिकार में प्राप्त की जा सकती थी, जोकि 1000-2000 एकड़ अथवा उससे अधिक क्षेत्र में भी फैली हो सकती थी।
- सामंती मेनर की तरह 'फ़ीफ़' की भूमि को भी कृषक जोतते थे। बदले में, नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था।
- नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉर्डों को भी दे सकता था लेकिन उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के प्रति ही होती थी।
- 12वीं शताब्दी में गायक फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे।
→ पादरी वर्ग
- फ्रांसीसी समाज में पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में रखा।
- कैथोलिक चर्च के अपने नियम थे एवं राजा द्वारा दी गई भूमियाँ थीं, जिनसे वे कर वसूल कर सकते थे।
- 9वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य यूरोप में चर्च एक शक्तिशाली संस्था होती थी, जो राजा पर निर्भर नहीं थी।
- यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों एवं पादरियों द्वारा किया जाता था।
- धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे।
- चर्च को एक वर्ष के अंतराल में कृषकों से उसकी उपज का दसवाँ भाग 'टीथ' (Tithe) नामक कर लेने का अधिकार था।
- चर्च के पादरियों के विपरीत कुछ अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति एकांत जिंदगी जीना पसंद करते थे। ये श्रद्धालु धार्मिक समुदायों में रहते थे। इन धार्मिक समुदायों को 'ऐबी' अथवा मोनैस्ट्री मठ कहा जाता था।
- ये ऐबी अथवा मोनैस्ट्री मठ मनुष्यों की आम आबादी से बहुत दूर एकांत में होते थे।
- उस दौरान के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक इटली में 529 ई. में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट था और दूसरा 910 ई. में स्थापित बरगंडी में क्लूनी था। इन मठों में रहने वाले धार्मिक श्रद्धालुओं को भिक्षु कहा जाता था।
- दस या बीस पुरुष/स्त्रियों के छोटे समुदायों से बढ़कर मठ अब सैकड़ों की संख्या के समुदाय बन गये। अब इन मठों में बड़ी-बड़ी इमारतें और भू-जागीरों के साथ-साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध हो गये।
- पादरी वर्ग के विपरीत मठों में रहने वाले भिक्षुओं का जीवन पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। भिक्षु बनने वाले पुरुषों को 'मोंक' और स्त्रियों को 'नन' कहा जाता था।
- 13वीं शताब्दी से भिक्षुओं के कुछ समूह जिन्हें 'फ्रायर' कहा गया, ने मठों में न रहने का निर्णय लिया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते और उनसे प्राप्त दान से अपना जीवन-यापन करते थे।
- 14वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक मठों के महत्व और उद्देश्य के सम्बन्ध में कुछ शंकाएँ फैलने लगी।
- इंग्लैण्ड में लैग्लैंड की कविता 'पियर्स प्लाउमैन' में कुछ भिक्षुओं के आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन की साधारण कृषक, गड़रियों और गरीब मजदूरों के 'विशुद्ध' विश्वास से तुलना की गई है।
→ चर्च और समाज
- चौथी शताब्दी से ही यूरोप में क्रिसमस तथा ईस्टर कैलेंडर की महत्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे।
- 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिवस ने एक पुराने रोमन त्योहार का स्थान ले लिया। इसकी गणना सौर पंचांग के आधार पर की गई थी।
- ईस्टर ईसा के शूलारोपण और पुनर्जीवित होने से सम्बन्धित था किन्तु उसकी तिथि निश्चित नहीं थी क्योंकि इसने चन्द्र पंचांग पर आधारित एक पुराने रोमन त्योहार का स्थान ले लिया था।
- तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
→ कृषक वर्ग
- कृषक दो प्रकार के होते थे
(अ) स्वतन्त्र कृषक
(ब) सर्फ (कृषिदास)। कृषक वर्ग तीसरा वर्ग कहलाता था।
- स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था।
- कृषकों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर सप्ताह में तीन या अधिक दिन काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाले उत्पादन को 'श्रम अधिशेष' कहा जाता था, जो सीधे लॉर्ड के पास जाता था।
- कृषकों को एक अन्य प्रत्यक्ष कर 'टैली' देना पड़ता था, जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे।
- कृषि दास (सर्फ) अपने गुजारे के लिए लार्ड के स्वामित्व वाली भूमि पर कृषि करते थे। उनकी अधिकतर उपज लार्ड को ही मिलती थी तथा उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। वे लार्ड की आज्ञा के बगैर जागीर नहीं छोड़ सकते थे।
→ इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास
- 11वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास हुआ।
- ग्यारहवीं शताब्दी में नारमंडी के ड्यूक विलियम ने इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया।
- उसने भूमि को अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिया। यही लॉर्ड, राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए थे।
→ सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक
- लॉर्ड व सामंतों के सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारकों में पर्यावरण, भूमि का उपयोग, नवीन कृषि प्रौद्योगिकी आदि प्रमुख हैं।
- पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप में ठंड का दौर चल रहा था। फसलों का उपज काल छोटा हो गया और इसके कारण कृषि की पैदावार कम हो गयी।
- ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में एक गर्माहट का दौर प्रारम्भ हो गया. और औसत तापमान में वृद्धि हुई जिसका कृषि पर अनुकूल प्रभाव पड़ा।
- कृषकों को कृषि के लिए अब लम्बी अवधि मिलने लगी। कृषि भूमि का विस्तार हुआ।
→ भूमि का उपयोग
- यूरोप में प्रारम्भ में, कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म की थी। यहाँ होने वाली कृषि में अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।
- साथ ही फ़सल-चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था।
- कृषि में फसल चक्र को अपनाते हुए भूमि को दो भागों में विभाजित किया गया-एक भाग में शरद ऋतु में सर्दी का गेहूँ बोया जाता था, वहीं दूसरी भूमि को परती या खाली रखा जाता था, जिसे अगले वर्ष बोया जाता था।
→ नयी कृषि प्रौद्योगिकी
- ग्यारहवीं शताब्दी में विभिन्न प्रकार की कृषि प्रौद्योगिकी विकसित होने लगी, जैसे-लकड़ी के बने हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग, पशुओं के गले के स्थान पर जुआ अब कंधों पर बाँधा जाने लगा, घोड़ों के खुरों में लोहे की नाल लगाई जाने लगी, जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए। नए नगर और नगरवासी।
- कृषि में विस्तार के साथ ही उससे सम्बद्ध तीन क्षेत्रों-जनसंख्या, व्यापार व नगरों का भी विस्तार हुआ।
- रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके नगर उजड़ गये थे परंतु ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि का विस्तार होने के कारण नगर फिर से बढ़ने लगे।
- कृषकों की आवश्यकताओं को देखते हुए नगरों में बिक्री केन्द्र स्थापित किए गए। हाट व मेलों को बढ़ावा दिया गया और छोटे विपणन केन्द्रों का विकास हुआ।
- स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषि दास भाग कर नगरों में छिप जाते थे।
- नगरों में निवास करने वाले अधिकांश व्यक्ति या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषक दास थे, जो अकुशल होते थे।
- नगरों में दुकानदार व व्यापारी भी बड़ी संख्या में रहते थे। बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों; जैसे-साहूकार और वकीलों की आवश्यकता हुई। अतः यह कहा जा सकता है कि उन्होंने समाज में एक चौथा वर्ग बना लिया था।
- आर्थिक संस्था का आधार 'श्रेणी' (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित था।
- श्रेणी एक ऐसी संस्था थी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी।
- 'श्रेणी सभागार' प्रत्येक नगर का एक आवश्यक अंग था। यह आनुष्ठानिक समारोहों के लिए था, जहाँ गिल्डों के प्रधान औपचारिक रूप से मिला करते थे।
- जैसे-जैसे नगरों की संख्या बढ़ने लगी और व्यापार का विस्तार होता गया, नगर के व्यापारी अधिक धनी और शक्तिशाली होने लगे तथा अभिजात्यता के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगे।
→ कथील नगर
- बारहवीं शताब्दी में फ्रांस में कथील कहलाने वाले विशाल चर्चों का निर्माण होना प्रारम्भ हो गया।
- हालाँकि ये कथील चर्च मठों की संपत्ति होते थे फिर भी इनके निर्माण में लोगों के विभिन्न समूहों ने अपना श्रम, वस्तुओं और धन का सहयोग दिया।
- कथीड्रल का निर्माण करते समय कथीड्रल के आस-पास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब इसका निर्माण पूर्ण हुआ तो वे स्थान तीर्थस्थल बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे नगर विकसित हुए।
- कथीड्रल चर्च के निर्माण के दौरान उसके आस-पास के क्षेत्र में बस्ती बसने लग जाती थी।
- कथील चर्च इस प्रकार बनाये गये थे कि पादरी की आवाज लोगों के जमा होने वाले सभागार में स्पष्ट सुनाई पड़ सके। कथील चर्चों की अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाइबिल की कथाओं का वर्णन करते थे, जिनको निरक्षर व्यक्ति भी समझ सकता था।
→ चौदहवीं सदी का संकट
- यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के प्रमुख संकटों में पर्यावरण सम्बन्धी परिवर्तन, भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षीण होना, जनसंख्या में तीव्र वृद्धि एवं ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप आदि थे।
- पश्चिमी यूरोप में 1347 से 1350 ई. के मध्य प्लेग महामारी फैली जिससे यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत भाग मौत के मुँह में चला गया।
→ सामाजिक असंतोष
- • प्लेग के पश्चात् इंग्लैण्ड में मजदूरी की दरें बढ़ने एवं कृषि सम्बन्धी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आय को घटा दिया। निराशा में उन्होंने धन सम्बन्धी अनुबन्ध तोड़ दिए और पुरानी मजदूरी सेवाओं को पुनः प्रचलित कर दिया। इसके फलस्रूप अनेक स्थानों पर कृषकों के विद्रोह हुए।
- कृषक विद्रोहों को क्रूरतापूर्वक दबाने से यह बात स्पष्ट हो गई कि अब सामंती रिश्तों को पुनः नहीं लादा जा सकता तथा अब कृषक पुनः दास बनने को तैयार नहीं थे।
→ राजनीतिक परिवर्तन
- पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति में वृद्धि की। इसी कारण इनको इतिहासकार 'नए शासक' कहने लगे।
- फ्रांस में लुई ग्यारहवें, आस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम और स्पेन में ईसाबेला और फर्डीनेड, निरंकुश शासक थे, जिन्होंने संगठित स्थाई सेनाओं की प्रक्रिया, एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को प्रारंभ किया।
- बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में होने वाला सामाजिक परिवर्तन इन राजतंत्रों की सफलता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था।
- अभिजात वर्ग अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए नई शासन व्यवस्था का विरोध करने के स्थान पर उसका शीघ्र ही समर्थक बन गया। इसी कारण से शाही निरंकुशता को सामंतवाद का परिष्कृत रूप माना जाता है।
- वर्तमान में इंग्लैण्ड में राजतंत्र एवं फ्रांस में गणतंत्र स्थापित है। इसका मुख्य कारण यह है कि सत्रहवीं शताब्दी के उपरान्त दोनों देशों के इतिहासों ने भिन्न-भिन्न दिशाएँ अपनायी थीं।
→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ।
तिथि
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सम्बन्धित घटनाएँ
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481 ई.
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क्लोविस फ्रैंक लोगों का सम्राट बना।
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486 ई.
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क्लोविस और फ्रैंक ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान प्रारम्भ किया।
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496 ई.
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क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म परिवर्तन करके ईसाई बने।
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714 ई.
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चार्ल्स मारटल को राजमहल (फ्रांस) का मेयर बनाया गया।
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751 ई.
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मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। इसके विजय अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया।
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768 ई.
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पेपिन का स्थान उसके पुत्र शॉर्लमेन (चार्ल्स महान) द्वारा लिया गया।
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800 ई.
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पोप लियो तृतीय ने शार्लमेन को 'पवित्र रोमन सम्राट' का ताज पहनाया।
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840 ई.
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नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले प्रारम्भ।
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1066 ई.
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नॉरमन लोगों ने एंग्लो सैक्सनी लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय प्राप्त की।
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1100 ई.
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फ्रांस में कथीड्रल चर्चों का निर्माण प्रारम्भ।
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1315 - 1317 ई.
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यूरोप में भयंकर अकाल पड़ा।
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1323 ई.
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लॉर्डों द्वारा धन सम्बन्धी अनुबंधों को तोड़ने के कारण कृषकों ने फ्लैन्डर्स में विद्रोह किया।
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1347 - 1350 ई.
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यूरोप में ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप फैला।
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1358 ई.
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फ्रांस में शिक्षित व समृद्ध कृषकों ने विद्रोह किया।
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1338 - 1461 ई.
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इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य 'सौ वर्षीय युद्ध'।
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1381 ई.
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इंग्लैण्ड में लॉर्डों द्वारा पुरानी मजदूरी सेवाओं को पुनः प्रचलन में लाने से कृषकों ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिए।
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1461 - 1559 ई.
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फ्रांस में नये शासकों का शासनकाल। इन्होंने अपनी सैनिक व वित्तीय शक्ति को बढ़ाया।
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1474 - 1556 ई.
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स्पेन में नये शासकों का शासन काल।
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1485 - 1547 ई.
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इंग्लैण्ड में नये शासकों का शासन काल।
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→ सामंतवाद-'सामंतवाद' शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, विधिक, राजनीतिक और सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति जर्मन शब्द 'फ्यूड' (Fued) से हुई है, जिसका अर्थ है-एक भूमि का टुकड़ा। वास्तव में सामंतवाद एक प्रणाली है, जिसमें देश की भूमि और प्रशासनिक व्यवस्था प्रत्यक्षतः राजा के हाथों में न होकर बड़े-बड़े जमींदारों के हाथों में होती है, जिन्हें सामंत कहा जाता है।
→ मध्यकालीन युग-'मध्यकालीन युग' शब्द पाँचवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य के यूरोपीय इतिहास को इंगित करता है।
→ गॉल-यह रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था जिसमें दो विस्तृत तट रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन और कृषि करने के लिए उपयुक्त विस्तृत मैदान थे। वर्तमान में इसे 'फ्रांस' नामक देश के रूप में जाना जाता है।
→ प्रदेश पँकिश अथवा फ्रांस के ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था। आज यह एक गणतन्त्रीय देश है।
→ तीन वर्ग-फ्रांसीसी ईसाई पादरी इस अवधारणा में विश्वास करते थे कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी एक का सदस्य होता है। इस प्रकार फ्रांस का समाज तीन वर्गों में विभक्त हो गया। ये तीन वर्ग थे
- प्रथम वर्ग-पादरी वर्ग
- द्वितीय वर्ग-अभिजात वर्ग
- तृतीय वर्ग-कृषक वर्ग।
→ स्वामी-इसे सेन्योर भी कहते हैं। फ्रांस में बड़े भूस्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे, जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन। अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी या सेन्योर मान लेता था।
→ सामंती सेना-फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग को एक विशेष स्थान प्राप्त था। उसका अपनी सम्पत्ति पर स्थायी रूप से नियन्त्रण होता था। वे अपनी सेना रखते थे, जिसे सामंती सेना कहा. जाता था।
→ मेनर-फ्रांस में लार्ड का घर मेनर कहलाता था।
→ लॉर्ड-लॉर्ड शब्द का अर्थ होता है, 'रोटी देने वाला'। यह सेन्योर या अभिजात वर्ग का ही भाग था जो दास की रक्षा करता था और बदले में वह लॉर्ड के प्रति निष्ठावान रहता था।
→ नाइट्स-नौवीं शताब्दी में यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे। शौकिया कृषक-सैनिक इन युद्धों के लिए अधिक उपयोगी नहीं थे। इनके लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आश्यकता पूर्ति के लिए एक नये वर्ग का उदय हुआ जो कुशल अश्वारोही थे। इन्हें नाइट्स कहा गया।
→ फ़ीफ़-लॉर्ड द्वारा नाइट्स को भूमि का एक भाग दिया जाता था, जिसे 'फ़ीफ़' कहा जाता था। नाइट्स लॉर्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लार्ड राजा से सम्बद्ध था। फ़ीफ़ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता था।
→ टीथ-चर्च को एक वर्ष के अन्तराल में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग प्राप्त करने का अधिकार था। जिसे 'टीथ' कहा जाता था।
→ भिक्षु-चर्च के अलावा कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक दूसरी तरह की संस्था थी, जो चर्च के विपरीत एकान्त में जीना पसन्द करते थे, उन्हें भिक्षु कहा जाता था। पुरुष भिक्षु को 'मोंक' तथा स्त्री भिक्षुणी को 'नन' कहा जाता था।
→ ऐबी या मोनैस्ट्री-भिक्षु लोग धार्मिक समुदायों में रहते थे। जिन्हें ऐबी या मोनैस्ट्री मठ कहा जाता था। वास्तव में मोनैस्ट्री शब्द ग्रीक भाषा के 'मोनोस' शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है-ऐसा व्यक्ति जो अकेला रहता है।
→ फ्रायर-13वीं सदी से भिक्षुओं के कुछ समूहों ने मठों में न रहने का निर्णय लिया। वे स्थान-स्थान पर घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते और दान से जीविका पालन करने लगे, ऐसे लोग फ्रायर कहलाए।
→ सर्फ या दास कृषक-तर्फ-फ्रांस में कृषि दासों को सर्फ कहा जाता था।
→ श्रम अधिशेष-कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर कार्य करने हेतु सप्ताह के तीन या उससे अधिक दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन श्रम- अधिशेष कहलाता था।
→ टैली-यह एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था, जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे। पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।
→ एंजिल लैण्ड-छठी सदी के मध्य यूरोप से एंजिल और सैक्सन इंग्लैण्ड में आकर बस गये। यह भूमि 'एंजिल लैण्ड' कहलाने लगी। इंग्लैण्ड देश का नाम इसी एजिल लैण्ड का रूपान्तरण है।
→ कथील चर्च-बारहवीं शताब्दी में अमीर व्यापारियों के लिए चर्चों को दान देना अपने धन को व्यय करने का एक तरीका था। इसके परिणामस्वरूप फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चा का निर्माण होने लगा, जिनकी घंटी की आवाज दूर-दूर तक और प्रत्येक जगह स्पष्ट सुनी जाती थी। इन्हें 'कथील चर्च' कहते थे।
→ नये शासक-15वीं और 16वीं सदी में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक और वित्तीय शक्ति को बढ़ाया। यह परिवर्तन आर्थिक परिवर्तन के समान ही महत्वपूर्ण था। इसके उपरान्त इन शक्तिशाली राजाओं को 'नए शासक' नाम दिया गया।
→ मार्क ब्लॉक-सामंतवाद पर सर्वप्रथम कार्य करने वाला फ्रांसीसी विद्वान। इन्होंने भूगोल के महत्व द्वारा मानव इतिहास के निर्माण पर बल दिया।
→ एलिजाबेथ प्रथम-सोलहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड की रानी, विलियम प्रथम की उत्तराधिकारी। 24. लुई ग्यारहवाँ-फ्रांस का निरंकुश शासक। 25. मैक्समिलन-ऑस्ट्रिया का निरंकुश शासक। 26. हेनरी सप्तम-इंग्लैण्ड का निरंकुश शासक।
→ चार्ल्स प्रथम-इंग्लैण्ड का राजा जिसने 1629-40 की अवधि में पार्लियामेंट को बिना बुलाए शासन किया। इसे बाद में मृत्यु-दण्ड दिया गया।