These comprehensive RBSE Class 11 History Notes Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 History Chapter 4 Notes इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.
→ परिचय
- 600 से 1200 ई. तक की अवधि में मिस्र से अफगानिस्तान तक का विशाल क्षेत्र इस्लामी सभ्यता का केन्द्र बिन्दु था।
- इस्लामी क्षेत्र के सन् 600 से 1200 ई. तक के इतिहास के बारे में हमारी समझ ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रंथों, दस्तावेजों, लेखों, सिक्कों व स्मारकों आदि पर आधारित है। जर्मनी और नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में इस्लाम के सही इतिहास ग्रंथ लिखे जाने का कार्य किया गया।
- हंगरी के एक यहूदी विद्वान इग्नाज़ गोल्डज़िहर ने काहिरा के इस्लामी महाविद्यालय अल-अज़हर में अध्ययन किया और जर्मन भाषा में इस्लामी कानून एवं धर्म विज्ञान को नवीन राह दिखाने वाले अध्ययन प्रस्तुत किए।
→ अरब में इस्लाम का उदय-धर्मनिष्ठा, समुदाय और राजनीति
- सातवीं शताब्दी में पैगम्बर मुहम्मद ने अरब में इस्लाम धर्म की नींव रखी।
- पैगम्बर मुहम्मद ने सन् 612-632 ई. के दौरान एक ईश्वर, अल्लाह की पूजा करने एवं आस्तिकों के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार-प्रसार किया।
- इन्होंने अरब संस्कृति का विस्तार अरब प्रायद्वीप, दक्षिणी सीरिया एवं मेसोपोटामिया तक किया। तत्कालीन अरब समाज कबीलों में बँटा हुआ था तथा प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख करता था। प्रत्येक कबीले के अपने स्वयं के देवी-देवता होते थे जो बुतों के रूप में देवालयों में पूजे जाते थे।
- पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला कुरैश था, जो मक्का में रहता था तथा उसका वहाँ के मुख्य धर्म स्थल पर नियंत्रण था।
- इस धर्मस्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे 'काबा' कहा जाता था, जिसमें 'बुत' रखे हुए थे। इसे पवित्र माना जाता था।
- लगभग 612 ई. में पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक घोषित कर दिया, जिसे यह प्रचार करने का आदेश दिया गया कि केवल अल्लाह की पूजा (इबादत) की जानी चाहिए।
- पैगम्बर मुहम्मद के संदेशों ने मक्का के उन लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया, जो अपने आपको व्यापार तथा धर्म के लाभों से वंचित महसूस करते थे और एक नयी सामुदायिक पहचान का मार्ग देखते थे। जो पैगम्बर मुहम्मद के धर्म-सिद्धान्त को स्वीकार कर लेते थे, उन्हें मुसलमान (मुस्लिम) कहा जाता था। मुसलमानों को शीघ्र ही मक्का के समृद्ध लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्हें देवी-देवताओं का
- ठुकराया जाना बुरा लगा था और जिन्होंने नए धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए खतरा समझा था।
- 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मजबूर होकर मक्का से मदीना के लिए प्रस्थान किया, जो 'हिजरा' के नाम से प्रसिद्ध है। जिस वर्ष उनका आगमन मदीना में हुआ उसी वर्ष से हिजरी सन् अर्थात् मुस्लिम कैलेण्डर की शुरुआत हुई।
- पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की।
- पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का पर विजय प्राप्त की। एक धार्मिक प्रचारक एवं राजनैतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई।
- 632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हो गयी।
- पैगम्बर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर अनेक कबीलों जिनमें अधिकांशतया बद्दू थे, उन्होंने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया।
- मदीना उभरते हुए इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी एवं मक्का इसका धार्मिक केन्द्र बन गया।
- काबा से बुतों को हटा दिया गया था, क्योंकि मुस्लिमों के लिए यह आवश्यक था कि वे उस स्थल की ओर मुँह
- करके इबादत करें।
→ खलीफाओं का शासन-विस्तार, गृहयुद्ध और सम्प्रदाय निर्माण
- पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु सन् 632 ई. में होने के बाद कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। इसके परिणामस्वरूप इस्लामी राजसत्ता की बागडोर उम्मा को हस्तान्तरित कर दी गयी।
- इससे नये विचारों के लिए अवसर उत्पन्न हुए, लेकिन इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद पैदा हो गये।
- खिलाफत की संस्था का निर्माण सबसे महत्वपूर्ण नव-परिवर्तन था। इसमें सम्प्रदाय का नेता पैगम्बर मुहम्मद का प्रतिनिधि अर्थात् खलीफा बन गया। पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् अनेक कबीले इस्लामी राज्य से टूटकर अलग हो गये।
- पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब-इस्लामी राज्य ने नील व ऑक्सस के मध्य के विशाल क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया।
→ उमय्यद वंश की स्थापना और राजतंत्र का केन्द्रीकरण
- 661 ई. में मुआविया ने उमय्यद वंश की स्थापना की जो 750 ई. तक चलता रहा।
- प्रथम उमय्यद खलीफ़ा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया।
- खलीफा मुआविया के द्वारा वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा प्रारम्भ की गयी तथा उसने प्रमुख मुसलमानों को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वे उसके पुत्र को ही वारिस मानें।
- उमय्यद राज्य अब एक साम्राज्यिक शक्ति बन चुका था, अब वह सीधे इस्लाम पर आधारित नहीं था, बल्कि वह शासन कला और सीरियाई सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था।
- लेकिन इस्लाम उमय्यद शासन को वैधता प्रदान करता रहा। अब्द अल-मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा।
- अब्द अल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाया तथा इस्लामी सिक्के जारी किये।
- अब्द अल-मलिक ने जेरूसलम में एक चट्टान का गुम्बद बनवाया जो अरब-इस्लामी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था।
→ अब्बासी क्रांति
- उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण की सफलता के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी।
- 750 ई. में मक्का मूल के अब्बासियों ने जो कि पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे, उमय्यद वंश के शासन को समाप्त कर दिया।
- अब्बासियों ने उमय्यदों को एक बुराई के रूप में चित्रित किया एवं पैगम्बर मुहम्मद द्वारा स्थापित किए गए मूल इस्लाम को पुनर्स्थापित करने का संकल्प दोहराया।
- अब्बासी शासन के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में कमी आयी तथा ईरानी संस्कृति का महत्व बढ़ गया।
- अब्बासियों ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया तथा इस्लामी संस्थाओं व विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
→ खिलाफ़त का विघटन और सल्तनतों का उदय
- दूर-दराज के प्रांतों पर बगदाद का नियंत्रण कम हो जाने के कारण अब्बासी राज्य अपेक्षाकृत कमजोर हो गया फलस्वरूप उसकी सत्ता मध्य इराक व पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई। .
- 945 ई. में ईरान के बुवाही नामक शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया तथा खलीफ़ा की पदवी के स्थान पर शहंशाह की पदवी धारण की।
- 969 ई. में फ़ातिमी खिलाफ़त की स्थापना हुई जिसने मिस्र की प्राचीन राजधानी फुस्तात के स्थान पर एक नए शहर काहिरा को अपनी राजधानी बनाया।
→ तुर्की सल्तनत का उदय
- 10वीं व 11वीं शताब्दी में तुर्की सल्तनत का उदय हुआ।
- तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे जिन्होंने धीरे-धीरे इस्लाम को अपना लिया।
- गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पतिगिन ने की थी जिसे गजनी के महमूद (महमूद ग़ज़नवी) ने सुदृढ़ बना दिया।
- गजनी के महमूद की मृत्यु के पश्चात् सल्जुक तुर्कों ने 1037 ई. में खुरासान को जीतकर निशापुर को अपनी राजधानी बनाया।
- 1055 ई. में उन्होंने बगदाद को अपने अधीन कर लिया। खलीफ़ा ने तुगरिल बेग को सुल्तान की उपाधि प्रदान की।
→ धर्मयुद्ध
- 1095 ई. में पोप ने बाइजेंटाइन सम्राट के साथ मिलकर पवित्र स्थान जेरूसलम को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आह्वान किया।
- 1095 ई. से 1291 ई. के मध्य ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य अनेक युद्ध लड़े गये। इन लड़ाइयों को बाद में 'धर्मयुद्ध' का नाम दिया गया।
- प्रथम धर्म युद्ध (1098-1099 ई.) में फ्रांस व इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक व जेरूसलम पर अधिकार कर लिया।
- द्वितीय धर्म युद्ध (1145-1149 ई.) में जर्मन और फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर अधिकार करने का असफल प्रयास किया।
- तृतीय धर्मयुद्ध 1189 ई. में हुआ। मिस्र के शासक ने 1291 ई. में धर्मयुद्ध करने वाले समस्त ईसाइयों को समस्त फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया।
- इन धर्मयुद्धों से ईसाई-मुस्लिम सम्बन्धों में कड़वाहट आ गयी। मुस्लिम राज्यों के द्वारा ईसाई जनता के प्रति कठोर रुख अपनाया गया।
- मुस्लिम सत्ता की पुनर्स्थापना के पश्चात् भी पूर्व व पश्चिम के मध्य व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।
→ अर्थव्यवस्था-कृषि, शहरीकरण और वाणिज्य
कृषि
- नये विजित क्षेत्रों में बसे हुए लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
- कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोच्च नियन्त्रण था।
- कृषि की पैदावार पर खराज अर्थात् कर, खेती की स्थिति के अनुसार आधे से लेकर पाँचवें हिस्से के बराबर होता - था। यह खराज मुसलमानों पर कम था।
- राज्य में कपास, संतरा, केला व तरबूज आदि की खेती की जाती थी तथा यूरोप को उनका निर्यात भी किया जाता था।
→ शहरीकरण
- इस्लामी सभ्यता के विकास के लिए अनेक नये शहरों की स्थापना की गई। इन शहरों में अरब सैनिकों को बसाया गया। कुफा, बसरा, फुस्तात एवं काहिरा आदि प्रसिद्ध बाजार थे।
- अब्बासी खिलाफत की राजधानी के रूप में स्थापित होने के पश्चात् 50 वर्ष के अन्दर बगदाद की जनसंख्या बढ़कर
- 10 लाख हो गई थी। इसके अतिरिक्त दमिश्क, इस्फ़हान एवं समरकंद जैसे पुराने शहर पुनः जीवित हो गए।
- शहर के केन्द्र में दो इमारतें होती थीं, जहाँ से सांस्कृतिक एवं आर्थिक शक्तियों का प्रसारण होता था। इनमें से एक मस्जिद होती थी, जिसे मस्जिद अल-जामी कहते थे तथा दूसरी केन्द्रीय मंडी अर्थात् सुक कहलाती थी।
- शहर में व्यापारियों, प्रशासकों एवं विद्वानों के लिए घर होते थे, जो केन्द्र के निकट होते थे। सामान्य नागरिकों एवं सैनिकों के रहने के लिए घर बाहरी घेरे में होते थे।
→ व्यापार
- मुस्लिम साम्राज्य को वहाँ की भौगोलिक स्थिति से भी सहायता प्राप्त हुई तथा पाँच शताब्दियों तक अरब व ईरानी-व्यापारियों का भारत तथा यूरोप के समुद्री व्यापार पर एकाधिकार बना रहा।
- यह व्यापार दो प्रमुख मार्गों लाल सागर एवं फारस की खाड़ी से होता था।
- मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं, बारूद आदि को भारत और चीन से लाल सागर के पत्तनों एवं फारस की खाड़ी के पत्तनों तक जहाज पर लाया जाता था। यहाँ से माल को जमीन पर ऊँट के काफिलों के द्वारा बग़दाद, दमिश्क, एलेप्पो आदि के भण्डारगृहों तक ले जाया जाता था।
- सोना सूडान और चाँदी मध्य एशिया से आयात होती थी जबकि कीमती वस्तुएँ और सिक्के यूरोप से आते थे। वहाँ सोने-चाँदी और ताँबे के सिक्के बनाये जाते थे जिनका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं के भुगतान के लिए किया जाता था। साख पत्रों एवं इंडियों का उपयोग व्यापारियों, साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान एवं एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित करने के लिए होता था।
- इस्लाम में ब्याज का लेन-देन गैर-कानूनी था फिर भी लोग बड़े चतुराईपूर्ण तरीकों से सूदखोरी कर ही लेते थे।
- एक हज़ार एक रातें (अलिफ लैला व लैला) की कई कहानियों में हमें मध्यकालीन मुस्लिम समाज की तस्वीर मिलती है। इन कहानियों में मालिकों, गुलामों, सौदागरों और सर्राफों जैसे कई पात्रों का वर्णन मिलता है।
→ विद्या और संस्कृति
- अन्य लोगों के साथ सम्पर्क में आने पर मुसलमानों के धार्मिक एवं सामाजिक अनुभवों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।
- मध्यकाल में उलमा अपना अधिकांश समय कुरान पर टीका लिखने और मुहम्मद साहब की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लिखने में लगाते थे।
- इस्लामी कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क एवं अनुमान का प्रयोग भी किया।
- विधि शास्त्र के तरीकों पर मतभेदों के कारण आठवीं एवं नवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ बन गयीं
- मलिकी,
- हनफी,
- शफीई व
- हनबली।
→ कुरान शरीफ़
शरीआ ने सुन्नी समाज के भीतर सभी संभव कानूनी मुद्दों के बारे में मार्गदर्शन प्रदान किया था। मुस्लिम परम्परा के आधार पर कुरान उन संदेशों का समूह है जो ईश्वर ने पैगम्बर मुहम्मद को सन् 610 ई. से 632 ई. के मध्य पहले मक्का में और बाद में मदीना में दिए थे। कुरान अरबी भाषा की पवित्र पुस्तक है जिसमें 114 अध्याय हैं, जिनकी लम्बाई क्रमिक रूप से घटती जाती है।
→ सूफ़ी
- मध्य काल में धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह सूफ़ी बन गया। ये लोग तपश्चर्या एवं रहस्यवाद के माध्यम से ईश्वर अर्थात् खुदा का अधिक गहरा व अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
- सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के. एक होने का विचार है जिसका आशय यह है कि मनुष्य की आत्मा को उसके निर्माता अर्थात् परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए।
- सूफीवाद धर्म, हैसियत एवं लिंग के भेदत्व में विश्वास नहीं करता है। इसका द्वार सभी के लिए खुला है।
→ ज्ञान-विज्ञान
- इस्लामी दार्शनिकों तथा वैज्ञानिकों ने यूनानी दर्शन एवं विज्ञान के प्रभाव से ईश्वर और विश्व की एक वैकल्पिक
- कल्पना विकसित की थी।
- उमय्यद व अब्बासी खलीफाओं ने ईसाई विद्वानों से यूनानी और सीरियाई भाषा की पुस्तकों का अनुवाद करवाया था।
- इब्नसिना एक चिकित्सक था जिसने चिकित्सा के सिद्धान्त (अल-कानून फिल-तिब) नामक पुस्तक लिखी।
- इस पुस्तक में उन्होंने आहार विज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला था।
- मध्यकालीन इस्लामी समाजों में उनकी भाषा एवं सृजनात्मक कल्पना को किसी व्यक्ति के सबसे अधिक प्रशंसनीय गुणों में सम्मिलित किया जाता था।
- इस्लाम-पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय रचना सम्बोधन गीत (कसीदा) थी। फारसी मूल के अबु नुवास ने शराब और पुरुष प्रेम जैसे नवीन विषयों पर उत्कृष्ट श्रेणी की कविताओं की रचना की।
- समानी राजदरबार के कवि रुदकी को नयी फ़ारसी कविता का जनक माना जाता था। इनकी कविता में गीत-वाक्य (गजल) एवं चतुष्पदी (रुबाई) जैसे नए रूप सम्मिलित थे।
→ गजनी-फारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र
- ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गजनी फ़ारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र बन गया था। गजनी के महमूद ने अपने चारों ओर कवियों का एक समूह एकत्र कर लिया था।
- गजनी के महमूद के दरबार में सबसे अधिक प्रसिद्ध विद्वान फिरदौसी थे, जिसने 'शाहनामा' नामक पुस्तक की रचना की थी। यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इतिहास लेखन की परम्परा
- नौवीं शताब्दी में पढ़े-लिखे मुस्लिम समाजों में इतिहास लिखने की परम्परा भली-भाँति स्थापित थी। इतिहास की पुस्तकें विद्यार्थियों एवं विद्वानों द्वारा पढ़ी जाती थीं।
- बालाधुरी द्वारा लिखित पुस्तक अनसब-अल-अशरफ एवं तबरी कृत तारीख अल-रसूल वल मुलुक में सम्पूर्ण मानव इतिहास का वर्णन किया गया है।
→ कला
- स्पेन से मध्य एशिया तक विस्तारित मस्जिदों, इबादतगाहों तथा मकबरों का बुनियादी नमूना एक समान था,
- जैसे- मेहराबें, गुम्बदें, मीनार, खुले सहन आदि।
- इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण पर प्रतिबंध होने के कारण उनके दो रूप विकसित हुए
- खुशनवीसी अर्थात् सुन्दर लिखने की कला
- अरबेस्क अर्थात् ज्यामितीय व वनस्पतीय डिजाइन। धर्म, समुदाय एवं राजनीति 1200 ई. की समाप्ति तक इस्लाम का प्रभाव राज्य व सरकार पर न्यूनतम हो गया।
- इस काल में राजनीति से कई ऐसी चीजें जुड़ गयीं जिनकी कोई धार्मिक वैधता नहीं थी; जैसे-राजतंत्र की संस्था, गृहयुद्ध आदि। कुछ सूफ़ी दार्शनिकों का मत है कि नागरिक समाज को धर्म से स्वतंत्र हो जाना चाहिए तथा व्यक्तिगत आध्यात्मिकता को रीतियों व कर्मकांडों का स्थान ले लेना चाहिए।
→ अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ)
वर्ष
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सम्बन्धित घटनाएँ
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570 ई.
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पैगम्बर मुहम्मद का जन्म।
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595 ई.
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पैगम्बर मुहम्मद का खदीजा से विवाह करना।
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610 - 612 ई.
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पैगम्बर मुहम्मद का प्रथम रहस्योद्घाटन,
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612 ई.
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में प्रथम सार्वजनिक उपदेश दिया।
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621 ई.
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काबा में मदीना के धर्मांतरित मुसलमानों के साथ प्रथम समझौता होना।
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622 ई.
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मक्का के धनी लोगों के विरोध के कारण पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मदीना जाना पड़ा।
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632 ई.
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पैगम्बर मुहम्मद का देहावसान।
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632 - 661 ई.
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खिलाफत के प्रारम्भिक वर्ष। सीरिया, ईरान, इराक व मिस्र पर विजय।
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661 - 750 ई.
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उमय्यद वंश की स्थापना व शासन, दमिश्क का राजधानी बनना।
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750 - 945 ई.
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अब्बासी शासन, बगदाद का राजधानी बनना।
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945 ई.
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बगदाद पर बुहाइयों द्वारा नियंत्रण स्थापित करना।।
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1063 - 1092 ई.
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सल्जुक वजीर निजामुल मुल्क का शासन।
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1095 - 1291 ई.
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मुसलमानों व ईसाइयों के मध्य अनेक युद्ध हुए। इन युद्धों को धर्मयुद्ध कहा गया।
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1111 ई.
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प्रसिद्ध ईरानी विद्वान गज़ली की मृत्यु।।
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1258 ई.
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मंगोलों ने बगदाद पर नियंत्रण स्थापित किया।
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1291 ई.
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मिस्र के शासकों ने धर्मयुद्ध करने वाले ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया।
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→ तवारीख-कालक्रम के अनुसार घटनाओं का वृतांत्त, तवारीख कहलाता है। इतिवृत्त भी कहते हैं।
→ सिरा-जीवन चरित्र या जीवन गाथा को सिरा कहा जाता है।
→ हदीथ-पैगम्बर मुहम्मद के कथनों एवं कार्यों के अभिलेख हदीथ कहलाते हैं।
→ तफ़सीर-कुरान के सम्बन्ध में की गई टीकाएँ तफ़सीर कहलाती हैं।
→ सीरियाक-अरामेइक की एक बोली सीरियाक कहलाती थी।
→ अरामेइक-हिब्रू व अरबी भाषाओं से सम्बन्धित भाषा।
→ दस्तावेजी साक्ष्य-लेखों के खंडित अंश जैसे राजकीय आदेश व व्यक्तिगत पत्राचार दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं।
→ मुद्राशास्त्र-सिक्कों का अध्ययन मुद्रा शास्त्र कहलाता है।
→ पुरालेखीय-शिलालेखों का अध्ययन पुरालेखीय कहलाता है।
→ प्राच्यविद-वे विद्वान जो अरबी व फारसी के ज्ञान एवं मूल ग्रन्थों के आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध हैं, प्राच्यविद कहलाते हैं।
→ कबीले-रक्त सम्बन्धों के आधार पर संगठित समाज कबीले कहलाते हैं।
→ शेख-कबीले का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति।
→ मवाली-गैर अरब व्यक्ति मवाली कहलाता था।
→ मुरव्वा-उदारता।
→ सनम-बुत अर्थात् मस्जिदों के देवी-देवता (मूर्ति)।
→ नखलिस्तान-मरुस्थल में हरे-भरे क्षेत्रों को नखलिस्तान कहते हैं।
→ काबा-मक्का के मुख्य धर्मस्थल को काबा कहा जाता था। इस स्थल का ढाँचा घनाकार था।
→ हज-मुसलमानों द्वारा काबा की धार्मिक यात्रा हज कहलाती है।
→ हरम-पवित्र स्थान।
→ रसूल-इस्लाम धर्म में खुदा अर्थात् ईश्वर का संदेशवाहक रसूल कहलाता है।
→ सलात-दैनिक प्रार्थना सलात कहलाती है।
→ इबादत-अल्लाह (ईश्वर) की आराधना करना इबादत कहलाता है।
→ उम्मा-आस्तिकों का समाज उम्मा कहलाता है।
→ शहादा-धर्म के अस्तित्व में अपना विश्वास प्रकट करना।
→ मुस्लिम-मुसलमान।
→ हिजरा-622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना जाने के लिए बाध्य होना पड़ा था। इस्लामिक इतिहास में पैगम्बर मुहम्मद की यह यात्रा 'हिजरा' कहलाती है।
→ हिजरी-यह इस्लामी पंचांग या कैलेंडर है, जिसे हिजरी कैलेंडर भी कहते हैं। यह एक चंद्र कैलेंडर है, जिसे सम्पूर्ण विश्व के मुसलमान इस्लामिक धार्मिक पर्यों को मनाने का सही समय जानने के लिए प्रयोग करते हैं। 622 ई. को मुहम्मद साहब का मदीना आगमन हुआ, उसी वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर अर्थात् हिजरी सन् की शुरुआत हुई।
→ जकात-खैरात कर को जकात कहा जाता है।
→ खैरात-श्रद्धा या दयापूर्वक किसी को कुछ देने की क्रिया खैरात (दान) कहलाती है।
→ अमीर अल-मोमिनिन-खिलाफत संस्था में समुदाय के नेता को अमीर अल-मोमिनिन कहा जाता था।
→ खिलाफ़त-पैगम्बर मुहम्मद के निधन के पश्चात् इस्लाम के प्रचार-प्रसार का कार्य-भार जिस संस्था ने ग्रहण किया उसे खिलाफ़त कहा गया।
→ खलीफ़ा-पैगम्बर मुहम्मद का प्रतिनिधि।
→ गनीमा-खलीफाओं द्वारा अभियानों के रूप में मारे जाने वाले छापों से प्राप्त लूट की भारी धनराशि गनीमा कहलाती थी।
→ अमीर-विजित प्रांतों में खलीफ़ाओं द्वारा नया प्रशासनिक ढाँचा लागू किया गया, जिसके अध्यक्ष को अमीर के नाम से जाना जाता था।
→ अशरफ-कबीलों के मुखिया को अशरफ कहा जाता था।
→ बैत अल-माल-केन्द्रीय राजकोष।
→ अता-मासिक अदायगियाँ।
→ खराज व जिज़िया-गैर मुस्लिमों द्वारा दिए जाने वाले कर।
→ धिम्मीस-यहूदी व ईसाई राज्य के संरक्षित लोग।
→ दिनारियस-रोमन सिक्के।
→ द्राख्या-ईरानी सिक्के।
→ पहलवी-ईरान की एक भाषा।
→ अहल अल-बयत-पैगम्बर का परिवार।
→ महदी-अल्लाह (ईश्वर) द्वारा भेजा गया दूत (मसीहा)।
→ मामलुक-तुर्की गुलाम अधिकारी मामलुक कहलाते थे
→ शहंशाह-राजाओं का राजा (एक प्राचीन ईरानी पदवी)।
→ शिया व सुन्नी-अली के समर्थकों व शत्रुओं द्वारा निर्मित इस्लाम के दो सम्प्रदाय।
→ अनातोलिया-आधुनिक तुर्की ।
→ धर्मयुद्ध-1095 से 1291 ई. के मध्य यूरोपीय ईसाइयों और मुसलमानों के मध्य लड़े गए सभी धर्मयुद्ध कहलाए।
→ इक्ता-राजस्व का हिस्सा इक्ता कहा जाता था।
→ जुंड-अरब सैनिक।
→ सुक-इस्लामी सभ्यता वाले शहरों में स्थित केन्द्रीय मण्डी भवन, जिसमें दुकानों की कतारें होती थीं, सुक कहलाते थे।
→ फंदुक-इस्लामी सभ्यता वाले शहरों में स्थित व्यापारियों के आवास फंदुक कहलाते थे।
→ तुज्जर-विद्वान और व्यापारी।
→ सिनेगोग-यहूदी प्रार्थनाघर ।
→ हमाम-सार्वजनिक स्नानघर।
→ फुलस-ताँबा।
→ सक्क-साख पत्र अथवा चैक।
→ सुफतजा-साख-पत्र एवं हुण्डियाँ।
→ रिबा-ब्याज का लेन-देन ।
→ हियाल-चतुराईपूर्ण तरीके जिनके माध्यम से लोग सूदखोरी करते थे।
→ उलमा-मुस्लिम धार्मिक विद्वान।
→ इल्म-कुरान से प्राप्त ज्ञान।
→ सुन्ना-पैगम्बर का आदर्श व्यवहार।
→ कियास-विधिवेत्ताओं के तर्क और अनुमान।
→ मज़हब-इस्लामी कानून की शाखाएँ।
→ फक़ीह-एक प्रमुख विधिवेत्ता।
→ उर्फ-विभिन्न क्षेत्रों के रीति-रिवाजों पर आधारित कानून।
→ सियासा शरीआ-राज्य के कानून।
→ काज़ी-मुस्लिम न्यायाधीश।
→ रहबनिया-तपश्चर्या ।।
→ तवक्कुल-खुदा (ईश्वर) पर भरोसा करना।
→ तसव्वुफ़-रहस्यवाद।
→ इश्क़-तीव्र प्रेम।
→ फ़ना-अपने आपको खुदा अर्थात् ईश्वर में लीन करना।
→ समा-संगीत समारोह।
→ कलाम-तर्क और विवेचना।
→ फलसिफा-दार्शनिक।
→ बीमारिस्तान-अस्पताल।
→ अदब-साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार।
→ नज़्म-पद्य।
→ कसीदा-सम्बोधन गीत।
→ गज़ल-छोटे गीत काव्य
→ दीवान-काव्य संग्रह
→ मथनवी-महाकाव्य।
→ शाहनामा-फिरदौसी द्वारा लिखित पुस्तक।
→ अखलाक-आचार संहिता।
→ अनसब अल-अशरफ-बालाधुरी द्वारा लिखित पुस्तक, सामंतों की वंशावलियाँ।
→ तारीख अल-रसूल वल मुलुक-तबरी द्वारा लिखित पुस्तक-पैगम्बरों और राजाओं का इतिहास।
→ रिहला-यात्रा वृत्तांत।
→ नमाज-खुदा की प्रार्थना।
→ इमाम-नमाज का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति।
→ खुशनवीसी-सुन्दर लिखने की कला।
→ अरबेस्क-ज्यामितीय या वनस्पतीय डिजाइन।
→ पैगम्बर मुहम्मद-इस्लाम धर्म के संस्थापक।