These comprehensive RBSE Class 11 History Notes Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 History Chapter 3 Notes तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
→ रोम साम्राज्य
- रोम साम्राज्य का विस्तार दूर-दूर तक था। इसके विशाल राज्य क्षेत्र में वर्तमान का यूरोप एवं उर्वर अर्द्धचन्द्राकार क्षेत्र अर्थात् पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका का अधिकांश भाग सम्मिलित था।
- रोमन साम्राज्य अनेक स्थानीय संस्कृतियों एवं भाषाओं के वैभव से सम्पन्न था। लेकिन इस साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में दास श्रम का बहुत अधिक बोलबाला था। पाँचवीं शताब्दी एवं उसके पश्चात् के समय में पश्चिम में रोमन साम्राज्य टूट गया लेकिन अपने पूर्वी भाग में यह साम्राज्य अपवादस्वरूप समृद्ध बना रहा।
→ रोम के इतिहासकारों के पास स्रोत-सामग्री
- रोम के इतिहासकारों के पास स्रोत-सामग्री का पर्याप्त भण्डार है। इस सम्पूर्ण स्रोत-सामग्री को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है
- पाठ्य-सामग्री
- प्रलेख या दस्तावेज़ और
- भौतिक अवशेष।
- समकालीन इतिहासकारों द्वारा लिखित उस काल का इतिहास 'वर्ष वृत्तान्त' कहलाता था क्योंकि ये वृत्तान्त प्रतिवर्ष लिखे जाते थे।
- उत्कीर्ण अभिलेख आमतौर पर पत्थर की शिलाओं पर खोदे जाते थे, इसलिए वे नष्ट नहीं हुए। ये अभिलेख पर्याप्त मात्रा में लातिनी व यूनानी भाषा में पाये गये हैं।
- हजारों की संख्या में संविदा पत्र, लेख, सरकारी दस्तावेज़ पैपाइरस पत्र पर लिखे हुए प्राप्त हुए हैं। इन्हें पैपाइरस विज्ञानियों (पैपाइरोलोजिस्ट) द्वारा प्रकाशित किया गया है।
- भौतिक अवशेषों में अनेक प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो मुख्य रूप से पुरातत्वविदों को (खुदाई और क्षेत्र सर्वेक्षण आदि के माध्यम से) अपनी खोज में मिलती हैं; जैसे-इमारतें, स्मारक और अन्य प्रकार की संरचनाएँ, मिट्टी के बर्तन, सिक्के, पच्चीकारी का सामान आदि।
- ईसामसीह के जन्म से सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में 630 ई. के दशक तक की अवधि में अधिकांश यूरोप, उत्तरी अफ्रीका एवं मध्य-पूर्व तक के विशाल क्षेत्र पर रोमन व ईरानी साम्राज्यों का शासन था।
- रोमन व ईरानी साम्राज्य आपस में एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी थे।
- भूमध्य सागर को उस समय 'रोमन साम्राज्य का हृदय' कहा जाता था।
- रोमन साम्राज्य की सीमा उत्तर में दो नदियों—राइन व डैन्यूब से निर्धारित थी, जबकि दक्षिणी सीमा सहारा रेगिस्तान तक फैली हुई थी। ईरानी साम्राज्य में कैस्पियन सागर के दक्षिण से पूर्वी अरब तक का समस्त क्षेत्र एवं कभी-कभी अफगानिस्तान के कुछ भाग भी सम्मिलित थे।
- रोमन व ईरानी साम्राज्य ने विश्व के उस अधिकांश भाग को बाँट लिया था जिसे चीन के लोग 'ता-चिन' (वृहत्तर चीन या पश्चिम) कहते थे। रोम साम्राज्य का आरम्भिक काल
- रोमन साम्राज्य को दो चरणों में बाँटा जा सकता है
- पूर्ववर्ती चरण तीसरी शताब्दी के मुख्य भाग तक की अवधि।
- परवर्ती चरण—तीसरी शताब्दी के बाद की अवधि।
- रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान के मुकाबले अधिक विविधतापूर्ण था।
- रोमन साम्राज्य ऐसे राज्य क्षेत्रों एवं संस्कृतियों का मिला-जुला स्वरूप था जो मुख्य रूप से सरकार की एक साझी प्रणाली के द्वारा परस्पर सम्बद्ध था।
- रोमन साम्राज्य में कई भाषाएँ बोली जाती थीं लेकिन प्रशासनिक कार्यों हेतु लातिनी एवं यूनानी भाषा का ही प्रयोग किया जाता था।
- पूर्वी भाग के उच्च वर्ग यूनानी भाषा बोलते व लिखते थे। जबकि पश्चिमी भाग के लोग लातिनी भाषा बोलते व लिखते थे।
→ सम्राट ऑगस्टस
- प्रथम रोमन सम्राट ऑगस्टस ने 27 ई. पू. में जो अपना राज्य स्थापित किया था, उसे 'प्रिंसिपेट' कहा जाता था।
- रोम एक गणतंत्र था। इस साम्राज्य में गणतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था थी जिसमें वास्तविक सत्ता 'सैनेट' नामक निकाय में निहित थी।
- रोमन साम्राज्य में सम्राट व सैनेट के पश्चात् साम्राज्यिक शासन की एक प्रमुख संस्था 'सेना' होती थी।
- रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था। एक वेतनभोगी सेना का होना निस्संदेह रोमन साम्राज्य की एक प्रमुख विशेषता थी।
- सम्राट ऑगस्टस ने सैनेट के महत्त्व को बनाये रखा। सैनेट में कुलीन व अभिजात वर्गों का प्रतिनिधित्व था।
- सम्राट ऑगस्टस का शासनकाल शांति के लिए याद किया जाता है क्योंकि उनके शासनकाल में शान्ति का आगमन दशकों तक चले आन्तरिक संघर्ष व सदियों की सैनिक विजय के पश्चात् हुआ था।
- रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में तीन मुख्य खिलाड़ी थे
- सम्राट,
- अभिजात वर्ग,
- सेना।
- रोमन साम्राज्य में अलग-अलग सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियंत्रण रख पाते हैं।
- रोमन साम्राज्य में जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं तो उसका परिणाम गृहयुद्ध होता था।
→ सम्राट त्राजान का अभियान
- 113-117 ई. के मध्य सम्राट त्राजान ने एक अभियान चलाया जिसके द्वारा उसने फ़रात नदी के पार के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
- सम्राट त्राजान अपने विश्व विजय के अभियान के तहत भारत को भी जीतना चाहता था। रोमन साम्राज्य का विस्तार
- रोमन साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का क्रमिक रूप से पर्याप्त विस्तार हुआ। इसके लिए अनेक आश्रित राज्यों को रोम के प्रान्तीय राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। दूसरी सदी में रोम साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। इसका विस्तार स्कॉटलैंड से आर्मीनिया की सीमाओं तक एवं सहास से फ़रात एवं कभी-कभी इससे भी आगे फैला हुआ था।
- उन दिनों शासन व्यवस्था को चलाने के लिए उनकी सहायतार्थ आज जैसी कोई सरकार नहीं थी।
- अतः सम्पूर्ण साम्राज्य में दूर-दूर तक अनेक नगर स्थापित किए गए थे, जिनके माध्यम से सम्पूर्ण साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जाता था।
- कार्थेज, सिकंदरिया एवं एंटिऑक भूमध्य सागर के तटों पर स्थापित बड़े शहरी केन्द्र थे। ये बड़े शहर साम्राज्यिक प्रणाली के मूलाधार थे।
- सरकार इन्हीं शहरों के माध्यम से प्रान्तीय ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाती थी। इसका अर्थ यह हुआ कि स्थानीय उच्च वर्ग रोमन साम्राज्य को कर-वसूली और अपने क्षेत्रों के प्रशासन के कार्य में पर्याप्त सहायता देते थे।
- दूसरी और तीसरी शताब्दियों के दौरान, अधिकांश प्रशासक और सैनिक अधिकारी इन्हीं उच्च ‘प्रांतीय वर्गों' में से होते थे। इस प्रकार एक नया संभ्रान्त वर्ग बन गया जो कि सैनेट के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली था क्योंकि उसे सम्राटों का समर्थन प्राप्त था।
- जैसे-जैसे यह नया संभ्रान्त वर्ग शक्तिशाली हुआ तो सम्राट गैलीनस ने सैनेटरों को सैनिक कमान से हटा दिया एवं नये वर्ग की स्थिति को शक्तिशाली बना दिया। रोम के सन्दर्भ में नगर एक ऐसा शहरी केन्द्र था, जिसके अपने दंडनायक (मजिस्ट्रेट), नगर परिषद् (सिटी काउंसिल) और अपना एक सुनिश्चित राज्य-क्षेत्र था, जिसमें उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कई गाँव सम्मिलित थे।
- सार्वजनिक स्नानगृह रोम के शहरी जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी। शहरी लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन के साधन उपलब्ध थे।
→ तीसरी शताब्दी का संकट
- प्रथम एवं द्वितीय शताब्दियाँ शांति, समृद्धि एवं आर्थिक विस्तार की प्रतीक थीं, जबकि तृतीय शताब्दी में आंतरिक तनाव बढ़ गए।
- ईरान में 225 ई. में एक नया आक्रामक वंश 'ससानी वंश' के नाम से उभरकर सामने आया, जिसका साम्राज्य 15 वर्षों की अल्पावधि में ही तीव्र गति से फ़रात तक फैल गया।
- तीन भाषाओं में खुदे एक प्रसिद्ध शिलालेख में ईरान के शासक शापुर प्रथम ने दावा किया था कि उसने रोमन सेना को पराजित कर एंटिऑक पर अधिकार कर लिया।
- 233 से 280 ई. के मध्य जर्मन जनजातियों जैसे एलमन्नाइ, फ्रैंक व गोथ आदि ने राइन व डैन्यूब नदियों की सीमाओं की ओर बढ़ना प्रारम्भ कर दिया। इस कारण रोम की सेना डैन्यूब से आगे के क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए मजबूर हो गई।
- रोम के निवासी इन जर्मन आक्रमणकारियों को 'विदेशी बर्बर' कहा करते थे।
→ लिंग, साक्षरता व संस्कृति स्त्रियों की स्थिति
- रोम में एकल परिवार का प्रचलन था। वयस्क पुत्र अपने पिता के परिवार के साथ नहीं रहते थे।
- रोमन साम्राज्य में महिलाओं को सम्पत्ति के स्वामित्व एवं संचालन में पर्याप्त कानूनी अधिकार प्राप्त थे।
- तत्कालीन रोमन समाज में तलाक देना बहुत सरल था। इसके लिए पति अथवा पत्नी के द्वारा केवल 'विवाह भंग' करने की सूचना देना ही पर्याप्त था।
- स्त्रियों पर उनके पतियों का नियंत्रण रहता था। साक्षरता
- कामचलाऊ साक्षरता की दरें रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों में बहुत अलग-अलग थीं।
- रोम के पोम्पेई नगर में कामचलाऊ साक्षरता के व्यापक रूप में विद्यमान होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
→ संस्कृति
- रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता कई रूपों एवं स्तरों पर दिखाई देती है, जैसे- धार्मिक सम्प्रदायों, स्थानीय देवी-देवताओं, बोलचाल की भाषाओं, भोजन, सामाजिक संगठनों की विविधता एवं वेशभूषा की विविध शैलियाँ आदि।
- अरामाइक निकटवर्ती पूर्व (कम से कम फ़रात के पश्चिम में) का प्रमुख भाषा-समूह था, मिस्र में कॉप्टिक, उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक तथा बरबर और स्पेन तथा उत्तर-पश्चिमी में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी। परन्तु इनमें बहुत-सी भाषाई संस्कृतियाँ पूर्णतः मौखिक थीं क्योंकि तब तक उनके लिए एक लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था।
- अर्मिनियाई भाषा का पाँचवीं शताब्दी में लेखन कार्य शुरू हुआ था।
- तीसरी शताब्दी के मध्य तक बाइबिल का कॉप्टिक भाषा में अनुवाद हो चुका था।
→ आर्थिक विस्तार
- विभिन्न साक्ष्यों से यह जानकारी मिलती है कि रोमन साम्राज्य में बंदरगाह, खाने, खदानें, ईंट-भट्टे एवं जैतून के तेल के कारखाने पर्याप्त मात्रा में थे। इससे वहाँ का आर्थिक ढाँचा मजबूत स्थिति में था।
- रोमन साम्राज्य में गेहूँ, अंगूरी शराब एवं जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक वस्तुएँ थीं, जिनका बहुतायत में उपयोग एवं व्यापार होता था।
- इस साम्राज्य में शराब, जैतून का तेल जैसे तरल पदार्थों का परिवहन मटकों या कंटेनरों द्वारा होता था जिन्हें 'एम्फोरा' कहा जाता था। रोम के मोंटी टेस्टैकियो नामक स्थान पर ऐसे लगभग 5 करोड़ मटकों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्योग 140-160 ई. के वर्षों में अपने चरमोत्कर्ष पर था, जिसे ड्रेसल-20 नामक कंटेनरों में ले जाया जाता था।
- रोमन साम्राज्य के अन्तर्गत ऐसे बहुत से क्षेत्र आते थे जो अपनी असाधारण उर्वरता के कारण बहुत प्रसिद्ध थे।
- भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्र में जल शक्ति का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता था। इस काल में जल शक्ति ' से कई उद्योग संचालित होते थे। जल शक्ति से ही स्पेन की स्वर्ण व चाँदी की खानों में खनन कार्य किया जाता था।
- रोमन काल में सुसंगठित बैंकिंग व्यवस्था एवं धन का व्यापक रूप से उपयोग होता था।
→ श्रमिकों पर नियंत्रण
- रोमन साम्राज्य में दासों की संख्या बहुत अधिक थी। यहाँ दासता एक संस्था के रूप में स्थापित हो चुकी थी।
- रोम की अर्थव्यवस्था में श्रम से सम्बन्धित अधिकांश कार्य दासों के द्वारा ही किये जाते थे।
- उच्च वर्ग के लोग दासों के साथ प्रायः क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, वहीं दूसरी ओर साधारण लोग दासों के प्रति कहीं अधिक सहानुभूति रखते थे।
- प्रथम शताब्दी में शांति स्थापित हो जाने के कारण दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी तो ऐसी स्थिति में दास श्रम का प्रयोग करने वाले लोगों को दास प्रजनन अथवा वेतनभोगी श्रमिकों जैसे विकल्प तलाश करने पड़े।
- रोम के कृषि विषयक लेखकों ने श्रम प्रबंधन पर बहुत अधिक ध्यान दिया। इन लेखकों में दक्षिणी स्पेन से पहली सदी में आया 'कोलूमेल्ला' प्रमुख था।
- रोमन साम्राज्य ने कुछ औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्रमिकों से सम्बन्धित कठोर नियंत्रण लगा रखे थे। श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने का प्रयत्न करें तो उन्हें पहचाना जा सके।
→ सामाजिक श्रेणियाँ
- इतिहासकार टैसिटस ने प्रारम्भिक साम्राज्य के निम्नलिखित सामाजिक समूह बताए हैं।
- सैनेटर,
- अश्वारोही वर्ग,
- जनता का सम्माननीय वर्ग,
- निम्नतर वर्ग,
- दास।
- सैनेटर तथा अश्वारोही वर्ग अभिजात वर्ग थे। मध्यम वर्ग में नौकरशाही तक सेना की सेवा से जुड़े हुए लोग शामिल थे, इसी वर्ग में समृद्ध सौदागर व किसान भी सम्मिलित थे। निम्नतर वर्ग में ग्रामीण श्रमिक शामिल थे।
- परवर्ती रोमन साम्राज्य में प्रथम तीन शताब्दियों से प्रचलित 'चाँदी की मुद्रा' प्रणाली समाप्त हो गयी थी क्योंकि स्पेन की खानों से चाँदी मिलना बंद हो गयी थी।
- सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने सोने पर आधारित नवीन मौद्रिक प्रणाली स्थापित की। सम्पूर्ण परवर्ती पुराकाल में इन मुद्राओं का भारी मात्रा में प्रचलन रहा था।
- रोमन राज्य तानाशाही पर आधारित था। वहाँ असहमति या आलोचना को कभी-कभी ही बर्दाश्त किया जाता था।
→ परवर्ती पुराकाल
- परवर्ती पुराकाल शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के उद्भव, विकास एवं पतन के इतिहास के काल का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो सामान्यतया चौथी से सातवीं शताब्दी तक विस्तारित था।
- चौथी शताब्दी से सातवीं शताब्दी के मध्य लोगों के धार्मिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनमें प्रमुख थे
- सम्राट कॉन्स्टैनटाइन द्वारा ईसाई धर्म को राजधर्म बनाना
- इस्लाम धर्म का उदय।
- सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने चाँदी की मुद्रा के स्थान पर 'सालिड्स' नामक सोने का एक नया सिक्का जारी किया जिसका शुद्ध वजन 4.5 ग्राम था। यह सिक्का रोमन साम्राज्य की समाप्ति के पश्चात् भी प्रचलन में रहा।
- सम्राट कॉन्स्टेनटाइन ने कुस्तुनतुनिया को रोम साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया। आज यहाँ तुर्की का इस्तांबुल नगर बसा हुआ है। पहले इसे बाइजेंटाइन कहा जाता था।
- रोम में किए गए विभिन्न परिवर्तनों के फलस्वरूप शहरी सम्पदा एवं समृद्धि में बहुत अधिक वृद्धि हुई जिससे स्थापत्य कला के नए-नए रूप विकसित हुए और भोग-विलास के साधनों में तेजी आयी।
→ धार्मिक स्थिति
- यूनान एवं रोमनवासियों की धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। यहाँ के लोग अनेक पंथों एवं उपासना पद्धतियों में विश्वास करते थे।
- यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक अन्य प्रमुख धर्म था। इस धर्म में अनेक विविधताएँ विद्यमान थीं।
→ रोमन साम्राज्य का पतन
- जर्मन मूल के अनेक समूहों ने पश्चिमी साम्राज्य के सभी बड़े प्रांतों पर अधिकार कर लिया और अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए जिन्हें रोमोत्तर (Post-Romen) राज्य कहा गया।
- स्पेन में विसिगोथो का राज्य, गॉल में फ्रैंकों का राज्य एवं इटली में लोंबार्डो का राज्य आदि प्रमुख रोमोत्तर राज्य थे।
- सातवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में रोम व ईरान के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया था। ईरानी शासकों ने मिस्र सहित समस्त पूर्वी प्रान्तों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। परन्तु बाईजेंटियम (रोमन साम्राज्य के लिए प्रयुक्त नया नाम) ने 620 ई. के दशक में इन प्रांतों पर पुनः नियंत्रण स्थापित कर लिया।
- प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना सातवीं शताब्दी में अरब प्रदेश में इस्लाम का विस्तार था। इसे प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक क्रांति माना जाता है।
→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
वर्ष
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सम्बन्धित घटनाएँ
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27 ई. पू.
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जूलियस सीजर के दत्तक पुत्र तथा उत्तराधिकारी ऑक्टेवियन ने उसका तख्ता पलट कर सत्ता अपने हाथ में ले ली और ऑगस्टस सीजर के नाम से रोम का सम्राट बन बैठा। उसके द्वारा स्थापित राज्य को 'प्रिंसिपेट' कहा गया।
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2479 ई.
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वरिष्ठ प्लिनी का जीवनकाल, विसूवियस नामक ज्वालामुखी के फटने से उसकी मृत्यु तथा पोम्पेई नामक रोमन नगर का नष्ट होना।
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6670 ई.
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विशाल यहूदी विद्रोह एवं जेरूसलम पर रोमन साम्राज्य का नियंत्रण स्थापित होना।
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115 ई.
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त्राजान की पूर्व में विजयों के पश्चात् रोमन साम्राज्य का विस्तार।
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212 ई.
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रोमन साम्राज्य के समस्त मुक्त निवासियों को रोमन नागरिक का दर्जा प्राप्त।
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224 ई.
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ईरान में 'ससानी' राजवंश की स्थापना।
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250 ई.
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का दशक फ़रात के पश्चिम में स्थित रोमन प्रदेशों पर फ़ारसवासियों द्वारा आक्रमण किया जाना।
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258 ई.
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कार्थेज़ के साइप्रसवासी बिशप को मृत्युदण्ड से दंडित किया जाना।
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260 ई.
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का दशक गैलीनस द्वारा पुनः सेना संगठित करना।
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273 ई.
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रोमवासियों द्वारा पामाएरा के कारवाँ नगर को नष्ट करना।
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297 ई.
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डायोक्लीशियन द्वारा 100 प्रान्तों में साम्राज्य का पुनर्गठन किया जाना।
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लगभंग 310 ई.
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कॉन्स्टैनटाइन द्वारा 'सॉलिड्स' नामक सोने का एक नया सिक्का जारी करना।
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312 ई.
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कॉन्स्टैनटाइन द्वारा ईसाई धर्म को स्वीकार किया जाना। कॉन्स्टैनटाइन द्वारा कुस्तुनतुनिया नगर की स्थापना करना।
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354-430 ई.
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हिप्पो बिशप ऑगस्टीन का जीवन काल।
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378 ई.
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ऐडियनोपोल में गोथ लोगों ने रोमन सेनाओं को पराजित किया।
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391 ई.
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सिकंदरिया में सेरापिस के मन्दिरों का नष्ट किया जाना।
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410 ई.
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विसिगोथों द्वारा रोम को नष्ट करना।
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428 ई.
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अफ्रीकी प्रदेश पर वैंडल लोगों द्वारा नियंत्रण स्थापित करना।
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434-53 ई.
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अट्टिला नामक हूण शासक का शासन काल।
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493 ई.
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ऑस्ट्रोगोथों द्वारा इटली में साम्राज्य स्थापित करना।
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533-50 ई.
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जस्टीनियन द्वारा इटली व अफ्रीका को मुक्त कराना।
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541- 70 ई.
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ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप फैला।
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568 ई.
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लौंबार्ड लोगों द्वारा इटली पर आक्रमण करना।
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लगभग 570 ई.
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मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर मुहम्मद का जन्म।
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614-19 ई.
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फ़ारस के शासक खुसरो द्वितीय द्वारा पूर्वी रोम प्रदेशों पर आक्रमण करना एवं उन पर नियंत्रण स्थापित करना।
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622 ई.
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पैगम्बर मुहम्मद एवं उनके सहयोगियों द्वारा मक्का छोड़कर मदीना चले जाना।
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633 42 ई.
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मुस्लिम सेनाओं द्वारा सीरिया, मिस्र, इराक, ईरान व फिलिस्तीन पर नियंत्रण स्थापित करना।
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661 750 ई.
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सीरिया में उमय्या राजवंश का शासन काल।
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698 ई.
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अरबों द्वारा कार्थेज़ पर विजय प्राप्त करना।
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711 ई.
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अरबों द्वारा स्पेन पर आक्रमण करना।
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→ रोमन साम्राज्य के प्रमुख शासक एवं उनका शासन काल
तिथि
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शासक का नाम
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27 ई. पू. 14 ई.
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ऑगस्टस /ऑगस्टस सीजर (प्रथम रोमन सम्राट) का शासन काल।
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14 - 37 ई.
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टिबेरियस का शासन काल।
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98 - 117 ई.
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त्राजान (ट्राजन) का शासन काल।
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117 - 138 ई.
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हैड्रियन का शासन काल।
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193 - 211 ई.
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सेप्टिमियस सेवेरस का शासन काल।
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241 - 272 ई.
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शापुर प्रथम (ईरान) का शासन काल।
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253 - 268 ई.
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गैलीनस का शासन काल।
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284 - 305 ई.
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डायोक्लीशियन का शासनकाल।
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312 - 337 ई.
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कॉन्स्टैनटाइन का शासन काल।
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309 - 379 ई.
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शापुर द्वितीय (ईरान) का शासन काल।
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408 - 450 ई.
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थियोडोसियस द्वितीय का शासन काल। इन्होंने थियोडोसियस कोड का संकलन किया था।
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490 - 518 ई.
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अनैस्टैसियस का शासन काल।
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527 - 565 ई.
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जस्टीनियन का शासन काल।
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531 - 579 ई.
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खुसरो प्रथम (ईरान) का शासन काल।
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610 - 641 ई.
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हेराक्लियस का शासनकाल।
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→ वर्ष वृत्तांत: समकालीन इतिहासकारों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास, जिसे वार्षिक आधार पर प्रतिवर्ष लिखा जाता था, वर्ष वृत्तान्त कहलाता है।
→ पैपाइरस: एक किस्म का सरकंडा जैसा पौधा जो मिस्र में नील नदी के किनारे उगा करता था। रोमन काल में इसी पौधे के पत्तों पर वर्ष वृत्तान्त लिखा जाता था।
→ पैपाइरस शास्त्री (पैपाइरोलोजिस्ट): पैपाइरस पत्रों पर संविदा पत्र, लेख, संवाद पत्र व सरकारी दस्तावेजों को लिखने एवं प्रकाशित करने वाले वैज्ञानिक पैपाइरस शास्त्री/पैपाइरस विज्ञानी कहलाते हैं।
→ ता-चिन: रोमन साम्राज्य का विस्तार भूमध्य सागर तथा उत्तर व दक्षिण दोनों दिशाओं में सागर के निकट स्थित समस्त प्रदेशों पर था। दूसरी ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण से पूर्वी अरब तक का समस्त क्षेत्र एवं कभी-कभी अफगानिस्तान के कुछ भाग भी ईरान के नियंत्रण में थे। इन दोनों महाशक्तियों ने समस्त विश्व के अधिकांश भागों को परस्पर बाँट लिया था जिसे चीन के लोग ता-चिन कहते थे।
→ पूर्ववर्ती साम्राज्य: रोमन साम्राज्य में तीसरी सदी के मुख्य भाग तक की समस्त अवधि को पूर्ववर्ती साम्राज्य कहा गया।
→ परवर्ती साम्राज्य: रोमन साम्राज्य में तीसरी सदी के पश्चात् की अवधि को परवर्ती साम्राज्य कहा गया।
→ प्रिंसिपेट: रोमन सम्राट ऑगस्टस ने 27 ई. पू. में जो राज्य स्थापित किया था, उसे प्रिंसिपेट कहा जाता था।
→ सैनेट: रोमन शासन का वह निकाय जिसमें कुलीन व अभिजात वर्गों का प्रतिनिधित्व था, सैनेट कहलाता था।
→ गणतंत्र: रोम में गणतंत्र (रिपब्लिक) एक ऐसी शासन व्यवस्था थी, जिसमें वास्तविक सत्ता सैनेट में निहित थी। व्यावहारिक रूप में गणतंत्र अभिजात (धनिक) वर्ग की सरकार का शासन होता था, जिसे सैनेट के माध्यम से संचालित किया जाता था। रोम में गणतंत्र 509 ई. पू. से 27 ई. पू. तक चला।
→ बलात भर्ती वाली सेना: वह सेना जिसमें कुछ वर्गों या समूहों के वयस्क पुरुषों को बलपूर्वक अनिवार्य रूप से सैनिक सेवा करनी पड़ती थी, बलात भर्ती वाली सेना कहलाती थी।
→ गृहयुद्ध: अपने ही देश में सत्ता प्राप्त करने के लिए किए जाने वाले सशस्त्र संघर्ष को गृहयुद्ध कहते हैं।
→ निकटवर्ती पूर्व: रोमन साम्राज्य के भूमध्य सागरीय क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की दृष्टि में पूर्वी क्षेत्र का आशय था- भूमध्य सागर के पूर्व का सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र। इसके अन्तर्गत सीरिया, फिलिस्तीन, मेसोपोटामिया व अरब आदि सम्मिलित थे।
→ दीनारियस: रोम में प्रचलित लगभग 4.5 ग्राम विशुद्ध चाँदी का सिक्का।
→ बिशप: ईसाई समुदाय के अत्यन्त महत्वपूर्ण व शक्तिशाली व्यक्ति को बिशप कहा जाता है।
→ एकल परिवार: साधारणतया एक पुरुष, उसकी पत्नी और बच्चे सम्मिलित रूप से एकल परिवार माना जाता है।
→ कामचलाऊ साक्षरता: प्रायः छोटे-मोटे सन्दर्भो में पढ़ने-लिखने का दैनिक प्रयोग कामचलाऊ साक्षरता कहलाता है।
→ प्यूनिक एवं बरबर: उत्तरी अफ्रीका में बोली जाने वाली भाषाओं के नाम ।
→ कैल्टिक: स्पेन तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा।
→ फारस: ईरान का प्राचीन नाम।
→ एम्फोरा: रोमन साम्राज्य में शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई जिन मटकों या कंटेनरों में होती थी, उन्हें एम्फोरा कहा जाता था।
→ ड्रेसल-20: स्पेन में उत्पादित जैतून के तेल को जिन कंटेनरों में ले जाया जाता था, वे ड्रेसल-20 कहलाते थे। यह नाम पुरातत्ववेत्ता हेनरिक ड्रेसल के नाम पर पड़ा।
→ ऋतु प्रवास: इससे तात्पर्य ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों और नीचे के मैदानी क्षेत्रों में भेड़-बकरियों तथा अन्य पशुओं को चराने के लिए चारागाहों की खोज में ग्वालों तथा चरवाहों का मौसम के अनुरूप वार्षिक आवागमन ऋतु प्रवास कहलाता है।
→ मैपालिया: रोम क्षेत्र के खानाबदोश एवं चरवाहे समुदाय अपने साथ अवन (Oven) आकार की झोंपड़ियाँ लेकर इधर-उधर घूमते थे, जिन्हें मैपालिया कहा जाता था।
→ कैस्टेला: स्पेन में कम विकसित उत्तरी क्षेत्र में कैल्टिक भाषी किसानों के पहाड़ियों की चोटियों पर बसे हुए गाँवों को कैस्टेला के नाम से जाना जाता है।
→ दास प्रजनन: दासों (गुलामों) की संख्या बढ़ाने की एक प्रथा, जिसके अन्तर्गत दासियों और उनके साथ पुरुषों को अधिकाधिक बच्चे उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था, ताकि उनके बच्चे भी आगे चलकर दास बन सकें।
→ पँकिन्सेंस: एक सुगन्धित राल के लिए यूरोपियन नाम जिसका उपयोग धूप-अगरबत्ती और इत्र बनाने के लिए किया जाता था। इसे बोसवेलिया वृक्ष से प्राप्त किया जाता था।
→ यहूदी विद्रोह: यह विद्रोह लगभग 66 ई. में जूडेया में रोमन शासन के विरुद्ध हुआ था, जिसे रोमवासियों ने क्रूरतापूर्वक दबा दिया था।
→ सैनेटर: इस शब्द का शाब्दिक अर्थ पैट्रेस अर्थात् पिता होता है। रोमन शासन के एक महत्वपूर्ण निकाय सैनेट के सदस्यों को सैनेटर कहा जाता था। इनका वर्णन इतिहासकार टैसिटस ने आरम्भिक साम्राज्य के प्रमुख सामाजिक समूह के रूप में किया था।
→ अश्वारोही या नाइट वर्ग: रोमन साम्राज्य का द्वितीय सर्वाधिक शक्तिशाली व धनवान समूह, इनकी सम्पत्ति इन्हें घुड़सेना में भर्ती होनी की योग्यता रखती थी। ये जमींदार होते थे तथा इसके अतिरिक्त ये लोग व्यापारिक क्रियाकलापों में भी संलग्न रहते थे।
→ परवर्ती पुराकाल: इस शब्द का प्रयोग, रोमन साम्राज्य के उद्भव, विकास व पतन के इतिहास की उस अन्तिम अवधि के वर्णन से है जो सामान्यतया चौथी से सातवीं शताब्दी के मध्य थी।
→ सॉलिड्स: रोमन सम्राट कॉन्स्टैनटाइन द्वारा चलाया गया सोने का सिक्का जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना होता था।
→ कुस्तुनतुनिया: रोमन साम्राज्य की द्वितीय राजधानी जिसकी स्थापना सम्राट कॉन्स्टैन्टाइन ने की थी। यह बोस्पोरूस जलसंधि और मारमरा सागर के संगम पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जोकि वर्तमान में तुर्की में स्थित है। अब इसे इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है।
→ बहुदेववादी: इसका आशय अनेक देवी-देवताओं की पूजा-उपासना करने से है। यूनान तथा रोम के लोगों की धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। ये लोग अनेक पंथों और उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे।
→ एकाश्म: इसका शाब्दिक आशय चट्टान के एक बड़े टुकड़े से है। लेकिन यहाँ इस शब्द का प्रयोग मानव इकाइयों के लिए किया गया है। जब समाज या संस्कृति में विविधताओं की कमी एवं उसमें आन्तरिक एकरूपता दिखाई देती हो तो वह समाज या संस्कृति एकाश्म कहलाती है।
→ ईसाईकरण: वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत ईसाई धर्म को विभिन्न समुदायों के मध्य विस्तारित किया गया और उसको वहाँ प्रमुख धर्म बना दिया गया।
→ रोमोत्तर राज्य: पश्चिम में रोमन साम्राज्य राजनीतिक रूप से विखण्डित हो गया क्योंकि उत्तर से आने वाले जर्मन मूल के समूहों ने उस पर नियन्त्रण कर लिया था और अपने-अपने समूह के राज्य स्थापित कर लिये थे। इन स्थापित राज्यों को 'रोमोत्तर राज्य' कहा जाता है। उदाहरण-स्पेन में विसिगोथों का राज्य, गॉले में फ्रैंकों का राज्य व इटली में लोंबार्डो का राज्य आदि ।
→ सम्राट ऑगस्टस: रोम का प्रथम सम्राट, इसके द्वारा 27 ई. पू. में स्थापित राज्य को प्रिंसिपेट कहा जाता था।
→ सम्राट कॉन्स्टैनटाइन: रोम का सम्राट, इन्होंने रोम में सालिड्स नामक सोने का सिक्का चलाया। इन्हें ही रोम साम्राज्य का ईसाईकरण करने का श्रेय दिया जाता है।
→ त्राजान: रोम का सम्राट। इसने साम्राज्य विस्तार के लिए 113-117 ई. में एक सैनिक अभियान चलाया और फ़रात नदी के पार के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।