Rajasthan Board RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
Class 11 History Chapter 6 Extra Questions And Answers In Hindi प्रश्न 1.
निम्न में से कौनसा वर्ग तत्कालीन फ्रांस की सामाजिक श्रेणी से सम्बन्धित नहीं है
(क) पादरी वर्ग
(ख) अभिजात वर्ग
(ग) श्रमिक वर्ग
(घ) कृषक वर्ग।
उत्तर:
(ग) श्रमिक वर्ग
Class 11 History Chapter 6 Important Questions In Hindi प्रश्न 2.
सामंतवाद शब्द की उत्पत्ति ‘फ्यूड' शब्द से हुई है, जो निम्नलिखित में से किस भाषा का है
(क) जर्मन
(ख) लातिनी
(ग) फ्रांसीसी
(घ) चीनी।
उत्तर:
(क) जर्मन
Class 11 History Chapter 6 Questions And Answers In Hindi प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था
(क) फ्रैंक
(ख) गॉल
(ग) मेनर
(घ) स्कैंडिनेविया।
उत्तर:
(ख) गॉल
कक्षा 11 इतिहास पाठ 6 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 4.
लॉर्ड द्वारा नाइट को दिया गया भूमि का एक भाग कहलाता था
(क) फ़्यूड
(ख) मेनर
(ग) फीफ
(घ) बेनेडिक्टीन।
उत्तर:
(ग) फीफ
Class 11th History Chapter 6 Question Answer In Hindi प्रश्न 5.
ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जाता है
(क) 25 दिसम्बर को
(ख) 6 अप्रैल को
(ग) 26 जनवरी को
(घ) 15 अक्टूबर को।
उत्तर:
(क) 25 दिसम्बर को
Tin Varg History Question Answer प्रश्न 6.
फ्रांस के नगरों में बनने वाले विशाल चर्च कहलाते थे
(क) कारटेस
(ख) कथील
(ग) गॉल
(घ) सेंट पीटर्स।
उत्तर:
(ख) कथील
Chapter 6 History Class 11 Questions And Answers In Hindi प्रश्न 7.
निम्न में से किस महाद्वीप में ब्यूबोनिक प्लेग फैला
(क) यूरोप
(ख) एशिया
(ग) उत्तरी अमेरिका
(घ) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(क) यूरोप
History Class 11 Chapter 6 Question Answer In Hindi प्रश्न 8.
निम्न में से किस वर्ष फ्लैंडर्स के कृषकों ने विद्रोह किया
(क) 1722 ई.
(ख) 1323 ई.
(ग) 1525 ई.
(घ) 1912 ई.
उत्तर:
(ख) 1323 ई.
Class 11 History Chapter 6 Question Answer In Hindi प्रश्न 9.
निम्न में से यूरोप में किस वर्ग का विरोध राजाओं की गोली के शक्ति प्रदर्शन के समक्ष टुकड़े-टुकड़े हो गया
(क) अभिजात वर्ग
(ख) कृषक वर्ग
(ग) सामंत वर्ग
(घ) नाइट।
उत्तर:
(क) अभिजात वर्ग
Class 11 History Ch 6 Question Answer In Hindi प्रश्न 10.
वर्तमान में फ्रांस में सरकार है
(क) गणतंत्रीय
(ख) राजतन्त्रीय
(ग) तानाशाही
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) गणतंत्रीय
अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
11th Class History Chapter 6 Question Answer In Hindi प्रश्न 1.
रोमन साम्राज्य के पतन का क्या प्रभाव हुआ ?
उत्तर:
पूर्वी एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, फ्रांस व स्पेन के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 2.
चौथी शताब्दी में रोमन साम्राज्य का राजकीय धर्म क्या था ? उत्तर:
ईसाई धर्म।
प्रश्न 3.
नौवीं से सोलहवीं सदी के मध्य यूरोप का समाज कितनी सामजिक श्रेणियों में विभाजित था?
उत्तर:
यूरोप का समाज तीन सामाजिक श्रेणियों-ईसाई पादरी, भूमिधारक अभिजात वर्ग व कृषक वर्ग में विभाजित था।
प्रश्न 4.
मार्क ब्लॉक कौन था ?
उत्तर:
मार्क ब्लॉक एक फ्रांसीसी विद्वान था। द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों द्वारा इनकी गोली मारकर हत्या कर
प्रश्न 5.
'सामंती समाज' नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
मार्क ब्लॉक ने।
प्रश्न 6.
मार्क ब्लॉक क्यों प्रसिद्ध हुए ?
उत्तर:
सामंतवाद पर सर्वप्रथम कार्य करने के लिए।
प्रश्न 7.
मार्क ब्लॉक ने भूगोल के महत्व द्वारा मानव इतिहास के निर्माण पर क्यों बल दिया ?
उत्तर:
जिससे कि लोगों के समूहों का व्यवहार व रुख समझा जा सके।
प्रश्न 8.
'मध्यकालीन युग' शब्द से क्या आशय है ?
उत्तर:
मध्यकालीन युग पाँचवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य के यूरोपीय इतिहास को इंगित करता है।
प्रश्न 9.
इतिहासकारों ने 'सामंतवाद' शब्द का वर्णन किसके लिए किया?
उत्तर:
इतिहासकारों ने 'सामंतवाद' शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, विधिक, राजनीतिक और सामाजिक संबधों का वर्णन करने के लिए किया।
प्रश्न 10.
गॉल किस साम्राज्य का प्रांत था तथा उसकी क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
गॉल रोमन साम्राज्य का प्रांत था। यहाँ दो विस्तृत तट-रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन और कृषि योग्य विस्तृत मैदान थे।
प्रश्न 11.
फ्रांस को वर्तमान नाम किस प्रकार प्राप्त हुआ?
उत्तर:
जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने रोमन साम्राज्य के गॉल प्रान्त को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया।
प्रश्न 12.
फ्रांसीसियों के चर्च के साथ संबंध कैसे थे?
उत्तर:
फ्रांसीसियों के चर्च के साथ प्रगाढ़ संबंध थे।
प्रश्न 13.
चर्च ने शॉर्लमेन को कौन सी उपाधि दी?
उत्तर:
पवित्र रोमन सम्राट की।
प्रश्न 14.
शार्लमेन कौन था ?
उत्तर:
फ्रांस का सम्राट।
प्रश्न 15.
फ्रांस का समाज कितने वर्गों में विभाजित था ? नाम लिखिए।
उत्तर:
तीन वर्गों में-
प्रश्न 16.
फ्रांस में पादरियों ने स्वयं को किस वर्ग में रखा ?
उत्तर:
प्रथम वर्ग में।
प्रश्न 17.
फ्रांस में सामाजिक प्रक्रिया में किस वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी?
उत्तर;
द्वितीय अभिजात वर्ग की।
प्रश्न 18.
फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव किस प्रथा के कारण था ?
उत्तर:
वैसलेज' नामक प्रथा के कारण।
प्रश्न 19.
फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग को विशेष स्थान प्राप्त था। क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि अभिजात वर्ग का अपनी सम्पदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण प्राप्त था। वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे, स्वयं का न्यायालय संचालित कर सकते थे तथा अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।
प्रश्न 20.
मेनर क्या था ?
उत्तर:
फ्रांस में लॉर्ड का घर मेनर कहलाता था।
प्रश्न 21.
फ़ीफ़ किसे कहा गया ?
उत्तर:
लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था। इसी भूभाग को 'फ़ीफ़' कहते थे।
प्रश्न 22.
कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी, कैसे?
उत्तर:
कैथोलिक चर्च एक स्वतंत्र संस्था थी जिसके अपने नियम थे। उसके पास राजा द्वारा दी गयी भूमि होती थी जिससे वह 'कर' उगाहता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी।
प्रश्न 23.
फ्रांस में पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष कौन थे? वह कहाँ रहते थे?
उत्तर;
फ्रांस में पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप थे, जो रोम में रहते थे।
प्रश्न 24.
यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन कौन करता था?
उत्तर:
बिशप व पादरी।
प्रश्न 25.
किन लोगों के पादरी बनने पर प्रतिबन्ध था ?
उत्तर:
प्रश्न 26.
'टीथ' क्या था ?
उत्तर:
चर्च को एक वर्ष के अंतराल में किसान से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था, इसे टीथ कहा जाता था।
प्रश्न 27.
चर्च की आय के दो प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 28.
यूरोप में भिक्षु कौन थे ?
उत्तर:
एकान्त जीवन व्यतीत करने वाले अत्यधिक धार्मिक लोग भिक्षु कहलाते थे। ये लोग मनुष्यों की आम आबादी से दूर धार्मिक समुदायों अर्थात् मोनैस्ट्री मठों में रहते थे।
प्रश्न 29.
पादरियों और भिक्षुओं में क्या अंतर था?
उत्तर:
पादरी लोगों के मध्य नगरों व गाँवों में गिरजाघरों में रहते थे जबकि भिक्षु मठों में रहते हुए एकान्त जीवन व्यतीत करते थे।
प्रश्न 30.
मोनेस्ट्री शब्द से क्या आशय है ?
उत्तर:
मोनेस्ट्री शब्द ग्रीक भाषा के शब्द 'मोनोस' से निर्मित है। जिसका अर्थ है-ऐसा व्यक्ति जो अकेला रहता है।
प्रश्न 31.
यूरोप के दो प्रसिद्ध मठ कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
प्रश्न 32.
मोंक किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
पुरुष भिक्षुओं को मोंक कहा जाता था।
प्रश्न 33.
नन किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
स्त्री भिक्षुओं को नन कहा जाता था।
प्रश्न 34.
आबेस हिल्डेगार्ड कौन था?
उत्तर:
आबेस हिल्डेगार्ड एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामूहिक गायन की प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
प्रश्न 35.
'फ्रायर' किन्हें कहा जाता था ?
उत्तर:
यूरोप में 13वीं शताब्दी में भिक्षुओं के कुछ समूह मठों में न रहकर विभिन्न स्थानों पर घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते थे। ऐसे भिक्षु फ्रायर कहलाते थे।
प्रश्न 36.
यूरोप में चौदहवीं सदी तक मठवाद के महत्व और उद्देश्य के विषय में कुछ शंकाएँ व्याप्त होने लगी थीं। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि इस दौरान मठों के कुछ भिक्षु आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे।
प्रश्न 37.
यूरोप में काश्तकार कितने प्रकार के होते थे ?
उत्तर:
प्रश्न 38.
'टैली कर' क्या था ?
उत्तर:
टैली एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था, जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे।
प्रश्न 39.
'टैली' नामक कर से कौन-कौन से वर्ग मुक्त थे?
उत्तर:
प्रश्न 40.
इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
ग्यारहवीं सदी में।
प्रश्न 41.
इंग्लैण्ड की वर्तमान रानी किसकी उत्तराधिकारी है ?
उत्तर:
विलियम प्रथम की।
प्रश्न 42.
इंग्लैण्ड देश का नाम किसका रूपांतरण है ?
उत्तर:
एंजिल लैंड का।
प्रश्न 43.
इंग्लैण्ड पर ग्यारहवीं शताब्दी में किस व्यक्ति ने विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर:
नारमंडी के इयक विलियम ने।
प्रश्न 44.
मध्यकाल में इंग्लैण्ड की कृषि प्रौद्योगिकी के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 45.
इंग्लैण्ड में नवीन कृषि प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत कृषि क्षेत्र में हुए कोई दो परिवर्तन बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 46.
कृषि में विस्तार के साथ ही उससे सम्बन्धित किन-किन क्षेत्रों का विस्तार हुआ ?
उत्तर:
प्रश्न 47.
मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 48.
फ्रांस में कथील चर्च किसके सहयोग से बनाये जाते थे?
उत्तर:
फ्रांस में कथील चर्च लोगों के विभिन्न समूहों द्वारा अपने श्रम, वस्तुओं और उनके धन के सहयोग से बनाये जाते थे।
प्रश्न 49.
फ्रांस के कथील नगर क्या थे ?
उत्तर:
फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण हुआ, जिन्हें कथीड्रल कहा जाता था। धीरे-धीरे इन चर्चों के चारों ओर नगरों का विकास हुआ, जिन्हें कथील नगर कहा गया।
प्रश्न 50.
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी की किन्हीं दो आपदाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 51.
चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में हुए कृषकों के विद्रोह के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 52.
15वीं व 16वीं शताब्दी में यूरोप में किन-किन नए शासकों का उदय हुआ ?
उत्तर:
प्रश्न 53.
एस्टेट्स जनरल क्या थी ?
उत्तर:
लुई तेरहवें के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा को एस्टेट्स जनरल कहते थे।
प्रश्न 54.
फ्रांस में एस्टेट्स जनरल के कितने सदन थे ?
उत्तर:
तीन-
प्रश्न 55.
1614 ई. से 1789 ई. तक फ्रांस की एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन आयोजित क्यों नहीं किया गया?
उत्तर:
क्योंकि फ्रांस के राजा तीन वर्गों-पादरी, अभिजात व सामान्य लोगों के मध्य अपनी शक्ति नहीं बाँटना चाहते थे।
प्रश्न 56.
इंग्लैण्ड में स्थापित पार्लियामेंट के दो सदनों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 57.
हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य कौन होते थे ?
उत्तर:
लॉर्ड व पादरी।
प्रश्न 58.
हाउस ऑफ कॉमन्स किसका प्रतिनिधित्व करती थी ?
उत्तर:
नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों का।
प्रश्न 59.
इंग्लैण्ड के किस शासक ने पालिर्यामेंट को बिना बुलाये ग्यारह वर्षों तक शासन किया था ?
उत्तर:
चार्ल्स प्रथम (1629-1640) ने।
प्रश्न 60.
इंग्लैण्ड के किस शासक को मृत्युदण्ड देकर वहाँ गणतन्त्र की स्थापना की गयी थी ?
उत्तर:
चार्ल्स प्रथम को।
प्रश्न 61.
वर्तमान में फ्रांस में किस प्रकार की शासन व्यवस्था है ?
उत्तर:
गणतंत्रीय सरकार। प
प्रश्न 62.
वर्तमान में इंग्लैण्ड में किस प्रकार की शासन व्यवस्था है ?
उत्तर:
राजतंत्र।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)
प्रश्न 1.
9वीं से 15वीं शताब्दी तक के पश्चिमी यूरोप के इतिहास की जानकारी किस प्रकार प्राप्त हो सकी है?
उत्तर:
यूरोप के इतिहास की जानकारी हमें इसलिए मिल सकी क्योंकि वहाँ भू-स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों और कानूनी मुकद्दमों जैसी बहुत सामग्री दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध थी। जैसे
प्रश्न 2.
मार्क ब्लॉक के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मार्क ब्लॉक (1886-1944) एक फ्रांसीसी विद्वान थे। इन्होंने सर्वप्रथम सामंतवाद पर कार्य किया था। इनका मत था कि इतिहास की विषयवस्तु राजनीतिक इतिहास, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एवं महान व्यक्तियों की जीवनियों से अधिक है। इन्होंने भूगोल के महत्व द्वारा मानव इतिहास के निर्माण पर बल दिया जिससे कि लोगों के समूहों का व्यवहार व रुख समझा जा सके। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इनकी नाजियों द्वारा हत्या कर दी गई।
प्रश्न 3.
सामंतवाद का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
सामंतवाद को आंग्ल भाषा में 'Fuedalism' कहा जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति एक जर्मन शब्द 'फ्यूड' से हुई जिसका अर्थ होता है-'एक भूमि का टुकड़ा'। यह शब्द एक ऐसे समाज की ओर इंगित करता है जो मध्यकालीन यूरोप के फ्रांस व इंग्लैण्ड में विकसित हुआ। यह सामंतों (लॉर्डी) व कृषकों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं विधिक सम्बन्धों का वर्णन करता है।
प्रश्न 4.
आर्थिक सन्दर्भ में सामंतवाद क्या था ?
उत्तर:
आर्थिक सन्दर्भ में यदि सामंतवाद शब्द को परिभाषित करें तो यह एक प्रकार के कृषि उत्पादन को व्यक्त करता है, जो लॉर्ड (सामंत) और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित था। कृषक स्वयं के खेतों के साथ-साथ लॉर्ड के खेतों पर भी कार्य करते थे। कृषकों की श्रम सेवा के बदले लार्ड द्वारा उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान की जाती थी। लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे। सामंतवाद ने जीवन के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया था।
प्रश्न 5.
सामंतवाद का उद्भव कब से माना जा सकता है?
उत्तर:
हालाँकि सामंतवाद की जड़ें रोमन साम्राज्य में विद्यमान प्रथाओं और फ्रांस के राजा शॉर्लमेन (742-814 ई.) के काल में पायी गईं, फिर भी ऐसा कहा जाता है कि जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामंतवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई।
प्रश्न 6.
फ्रांस का उद्भव किस प्रकार हुआ? बताइए।
उत्तर:
गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। इसमें दो विस्तृत तट-रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन एवं कृषि योग्य विस्तृत मैदान स्थित थे। जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल पर विजय प्राप्त करके अपने नाम पर उसका नाम फ्रांस रख दिया। छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर फ्रैंकिंश अथवा फ्रांस के ईसाई राजा शासन करते थे। .
प्रश्न 7.
यूरोप में फ्रांस का समाज किस आधार पर तीन वर्गों में विभाजित हुआ था ?
उत्तर:
यूरोप में फ्रांस का समाज कार्य के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित हुआ
प्रश्न 8.
वैसलेज प्रथा क्या थी ?
उत्तर:
वैसलेज एक ऐसी प्रथा थी, जिसके माध्यम से फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव था। इस प्रथा के अन्तर्गत अभिजात वर्ग, दास (वैसल) की रक्षा करता था एवं दास उसके प्रति निष्ठावान रहता था। यह प्रथा जर्मन मूल के लोगों, जिनमें से फ्रैंक लोग भी एक थे, में समान रूप से विद्यमान थी। .
प्रश्न 9.
मेनर से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
फ्रांस में लॉर्ड के घर को मेनर कहा जाता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था। कुछ लॉर्ड अनेक गाँवों के स्वामी होते थे। मेनर के मालिक लॉर्ड की व्यक्तिगत कृषि भूमि पर खेती का कार्य कृषक करते थे। इन किसानों को युद्ध के समय पैदल सैनिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था। ये किसान लॉर्ड की भूमि पर अपना जीवन निर्वाह करते थे। इनका जीवन कष्टमय था, जबकि मेनर का स्वामी अर्थात् सामंत (लॉर्ड) शान-शौकत का जीवन व्यतीत करता था।
प्रश्न 10.
सामंती सेना से क्या आशय था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस में कार्य के आधार पर विभाजित द्वितीय अभिजात वर्ग को वहाँ के समाज में विशेष महत्व प्राप्त था। उनका अपनी सम्पत्ति पर स्थाई रूप से पूर्ण नियंत्रण था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे, इसके लिए वे कृषकों को अपनी भूमि जोतने के लिए दे देते थे और बदले में कृषकों को आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था। इसी सैन्य व्यवस्था को सामंती सेना के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 11.
मध्यकालीन यूरोप में दुर्गों का विकास किस रूप में हुआ? 13वीं सदी में इनके आकार में वृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में दुर्गों का विकास सामंत प्रथा के अन्तर्गत राजनीतिक प्रशासन एवं सैन्य शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ। तेरहवीं शताब्दी में नाइट एवं उसके परिवार का निवास स्थान बनाने हेतु दुर्गों के आकार में वृद्धि की जाने लगी थी।
प्रश्न 12.
नाइट्स से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
नौवीं शताब्दी के दौरान यूरोप में प्रायः स्थानीय युद्ध होते रहते थे। इस युद्ध में कृषक शौकिया सैनिक के रूप में भाग लेते थे, जो पर्याप्त नहीं होने के साथ-साथ युद्ध कला में कुशल भी नहीं होते थे। इसलिए कुशल घुड़सवार अश्वसेना की आवश्यकता महसूस की गयी। इस आवश्यकता ने एक नये वर्ग के उदय को बढ़ावा दिया। कुशल घुड़सवार अश्व सेना का नया वर्ग नाइट्स कहलाया।
प्रश्न 13.
फ़ीफ़ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
फ्रांस में लार्ड (सामंत) द्वारा नाइट्स को भूमि का एक टुकड़ा दिया जाता था और बदले में उनसे रक्षा करने का वचन लिया जाता था। भूमि के इस टुकड़े को 'फ़ीफ़' कहा जाता था। फ़ीफ़ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता था। यह 1000 से 2000 एकड़ या उससे भी अधिक क्षेत्र में फैली हुई भूमि होती थी, जिससे नाइट्स व उसके परिवार की व्यवस्था होती थी।
प्रश्न 14.
मध्यकालीन यूरोप में कैथोलिक चर्च का क्या महत्व था ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में कैथोलिक चर्च अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। उसके अपने नियम-कानून होते थे। राजा द्वारा प्रदत्त भूमि से वह टीथ नामक कर वसूल करता था। चर्च के पादरी स्वयं को समाज का प्रथम वर्ग मानते थे। यह वर्ग मानता था कि नियम धर्म के आधार पर निर्धारित हुए थे। यूरोप में समाज का मार्गदर्शन इसी वर्ग द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 15.
आप यह किस प्रकार कह सकते हैं कि अनेक सांस्कृतिक सामंती रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों को चर्च की दुनिया ने अपना लिया था?
उत्तर:
चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज कुछ महत्वपूर्ण रस्में, सामंती कुलीनों की नकलें थीं। जैसे-प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना। यह रिवाज नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी की शपथ लेने के दौरान अपनाये गये तरीके की नकल थी। इसी प्रकार ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन भी एक उदाहरण था जिसके द्वारा सामंती संस्कृति चर्च के उपासना कक्षों में प्रवेश करने लगी। इस प्रकार अनेक सांस्कृतिक सामंती रीति-रिवाज और तौर-तरीकों को चर्च की दुनिया ने अपना लिया था।
प्रश्न 16.
मठ क्या थे ? मध्यकालीन यूरोप के किन्हीं दो प्रसिद्ध मठों के नाम बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में चर्च के अतिरिक्त कुछ विशेष ईसाई श्रद्धालुओं की एक अन्य संस्था भी होती थी, जो गाँवों व नगरों से दूर एकांत में रहती थी, इसमें धार्मिक व्यक्ति (भिक्षु) रहते थे। इस संस्था को मठ या ऐबी या मोनेस्ट्री मठ कहते थे। इन मठों में रहने वाले पुरुषों को मोंक व स्त्रियों को नन कहते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो प्रसिद्ध मठ थे
प्रश्न 17.
14वीं शताब्दी में मठवाद के महत्व में कमी आने के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
14वीं शताब्दी में मठवाद के महत्व में कमी आने के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं
प्रश्न 18.
विलियम प्रथम कौन था ? उसने इंग्लैण्ड की सत्ता किस प्रकार प्राप्त की ?
उत्तर:
विलियम प्रथम फ्रांस के नारमंडी प्रान्त का ड्यूक था। 11वीं शताब्दी में इसने अपनी एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पारकर इंग्लैण्ड के शासक सैक्सन को पराजित कर इंग्लैण्ड की सत्ता पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 19.
श्रेणी (गिल्ड) से आपका क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में नौवीं शताब्दी में श्रेणी (गिल्ड) आर्थिक संस्था का आधार थी। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित था। यह एक ऐसी संस्था थी, जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य एवं बिक्री पर नियंत्रण रखती थी। ' श्रेणी सभागार' प्रत्येक नगर का एक आवश्यक अंग था। यह सभागार आनुष्ठानिक समारोहों के लिए था जहाँ श्रेणी (गिल्डों) के मुखिया औपचारिक रूप से मिलते थे।
प्रश्न 20.
यूरोप में ग्यारहवीं एवं बारहवीं सदी के व्यापार-वाणिज्य को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी की शुरुआत में पश्चिम एशिया के साथ नए व्यापार मार्ग विकसित हो रहे थे। स्कैंडिनेविया के व्यापारी वस्त्रों के बदले फर व शिकारी बाज लेने के लिए उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे और अंग्रेज व्यापारी यहाँ राँगा बेचने के लिए आते थे। बारहवीं शताब्दी तक फ्रांस में वाणिज्य एवं शिल्प का विकास होने लगा था। पहले दस्तकारों को व्यापार के लिए एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था किन्तु अब उन्होंने जहाँ वस्तुओं का उत्पादन होता था वहीं बसकर व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया।
प्रश्न 21.
इंग्लैण्ड में मेनरों के लॉर्ड के विरुद्ध कृषकों ने निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति क्यों अपनायी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध ड़ता था और इस कार्य को करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय देना पड़ता था। वृ त्याचार को चुपचाप नहीं सहते थे। चूँकि वे खुलकर विरोध नहीं कर सकते थे। इसलिए कृषकों ने निष्क्रिय प्रति अपनायी।
प्रश्न 22.
फ्रांस में कथीडूल क्या थे ? इनके निर्माण के समय किन-किन बातों का
ता था?
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी के दौरान फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा था, ऐसे त कहलाते थे। यद्यपि कथीड्रल चर्च मठों की संपत्ति थे लेकिन लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं के सहयोग से निर्माण कराया। कथीड्रल पत्थर के बने होते थे और उन्हें पूरा करने में वर्षों लगते थे। इन चर्चों के ओर विकसित होने वाले नगर कथीड्रल नगर कहलाते थे। कथीड्रल का निर्माण इस प्रकार से किया जाता था कि दर की आवाज सभागार में उपस्थित समस्त लोगों को स्पष्ट रूप से सुनाई दे तथा लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने गली घण्टियों की आवाज भी दूर-दूर तक सुनाई पड़ सके।
प्रश्न 23.
15वीं एवं 16वीं शताब्दी के यूरोपीय शासकों को इतिहासकारों ने नये शासक क्यों का? कुछ शासकों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
15वीं एवं 16वीं शताब्दी के दौरान यूरोपीय शासकों ने अपनी वित्तीय एवं सैनिक शक्ति में अप्रत्याशित ढंग से वृद्धि कर ली थी। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने शक्तिशाली राज्य स्थापित कर लिए थे जो आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते थे। इसी कारण इतिहासकारों ने उन्हें नये शासक कह उदाहरण-लुई ग्यारहवाँ (फ्रांस), मैक्समिलन (ऑस्ट्रिया), हेनरी सप्तम (इंग्लैण्ड), ईसाबेला व फर्डीनेंड (स्पेन)।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)
प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोप के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का संक्षेप में वर्णन र ए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत-मध्यकालीन यूरोप के इ स की जानकारी के प्रमुख स्रोतों में अभिलेख व दस्तावेज अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पिछले सौ वर्षों में यूरोपी इतिहास ने गाँवों सहित विभिन्न क्षेत्रों के इतिहास पर प्रकाश डाला है। इतिहासकारों के मध्यकालीन यूरोप के भू-स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों, कानूनी मुकद्दमों जैसी बहुत-सी सामग्री दस्तावेजों के रूप में अध्ययन हेतु उपलब्ध थी। इसलिए मध्यकालीन यूरोप के इतिहास का लेखन ठीक प्रकार से हो सका। उदाहरण के लिए; चर्चों से प्राप्त होने वाले जन्म, मृत्यु एवं विवाह के अभिलेखों की सहायता से परिवारों एवं जनसंख्या को समझने में सहायता प्राप्त हुई। चर्चों से प्राप्त अभिलेखों से यूरोप की विभिन्न व्यापारिक संस्थाओं के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। ऐसे अभिलेखों से गीतों व कहानियों के प्रमाण मिलने से इस काल में मनाये जाने वाले ईसाई त्योहारों एवं सामुदायिक गतिविधियों के बारे में बोध हुआ।
प्रश्न 2.
यूरोप में सामंतवाद क्या था ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
सामंतवाद शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, सामाजिक, कानूनी एवं राजनीतिक सम्बन्धों के वर्णन हेतु किया जाता है। सामंतवाद शब्द आंग्ल भाषा के शब्द 'फ़्यूडलिज्म (fuedalism) का हिन्दी रूपान्तर है। आंग्ल भाषा का यह शब्द जर्मन भाषा के 'फ्यूड' शब्द से बना है जिसका अर्थ- भूमि का एक टुकड़ा' होता है। यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रांस, इंग्लैण्ड एवं दक्षिणी इटली में विकसित हुआ। आर्थिक सन्दर्भ में सामंतवाद, एक प्रकार से कृषि उत्पादन की ओर संकेत करता है जो सामंतों और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित था।
कृषक अपने खेतों के साथ लॉर्ड (सामंत) के खेतों का भी कार्य करते थे। इसके बदले में लार्ड उनको सैनिक सुरक्षा देते थे किन्तु कोई वेतन आदि नहीं देते थे। साथ ही साथ लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे इसलिए ‘सामंतवाद ने न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया। सामंतवाद की जड़ें तो रोमन साम्राज्य एवं फ्रांस के राजा शार्लमेन के काल में भी पायी जाती थीं, परन्तु यह माना जाता है कि सामंतवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुई थी।
प्रश्न 3.
फ्रांस और इंग्लैण्ड का एक देश के रूप में उद्भव किस प्रकार हुआ ? समझाइए।
उत्तर:
फ्रांस का उद्भव-गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। इसमें दो विस्तृत तट रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन और कृषि योग्य विस्तृत मैदान स्थित थे। जर्मनी की एक फ्रैंक नामक जनजाति ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रां ना दिया। छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर फ्रैंकिश अथवा फ्रांस के ईसाई राजा शासन करते थे। के साथ गहरे सम्बन्ध थे। ये सम्बन्ध पोप द्वारा राजा शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दिए जाने पर १ मजबूत हो गए। इंग्लै व-छठी सदी में मध्य यूरोप से एंजिल और सैक्सन जाति के लोग इंग्लैण्ड में आकर बस गए, इंग्लैण्ड व ल लैंड' का रूपान्तरण है। ग्यारहवीं सदी में नारमंडी के ड्यूक विलियम ने एक सेना के साथ इंग्लिश हैं। कर इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को हरा दिया और इंग्लैण्ड पर अधिकार कर लिया। विलियम प्रथम ने भूमि नपट के नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिया।
प्रश्न 4.
प में अभिजात वर्ग की क्या दशा थी ? बताइए।
उत्तर:
यूर । में अभिजात वर्ग को दूसरे वर्ग में स्थान प्राप्त था परन्तु उनकी सामाजिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह वर्ग राजा के अधीन था जिसका भूमि पर पूर्ण अधिकार होता था। वह राजा को अपना स्वामी (सेन्योर) मान लेता था और अ स में वचनबद्ध होते थे। अभिजात को सामंत या जागीरदार (लॉर्ड) होते थे, वे दास की रक्षा करते थे और बदले में उनसे निष्ठावान रहने की अपेक्षा रखते थे। इनकी अपनी एक विशेष हैसियत थी तथा इनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। उनको अप- सैन्य क्षमता बढ़ाने का अधिकार था, युद्ध में नेतृत्व करने का अधिकार था। यह वर्ग अपना न्यायालय स्थापित कर सकता था और अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकता था। ये अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे। इनका घर 'मेनर' कहलाता था।
प्रश्न 5.
मेनर की जागीर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यूरोप का मध्यकालीन युग मेनर प्रणाली पर आधारित था। मेनर, लॉर्ड का भवन होता था। वह गाँवों पर . नियन्त्रण रखत. एक मेनर में गाँव की कृषि योग्य भूमि, लॉर्ड या सामंत का घर तथा अन्य निवासियों के निवास-स्थान झुग्गी-झोंपड़ी, का चर्च आदि सम्मिलित होते थे। मेनरों के आकार कुछ छोटे होते तो कुछ बड़े होते थे, कुछ लॉर्ड अनेक गाँवों के मालिक थे। प्रत्येक मेनर आर्थिक दृष्टि से एक पूर्ण इकाई थी। उसमें एक बड़ा कृषि फार्म, चारागाह, कारखाने, जंगल, झोंपड़ी, चर्च आदि होता था। गाँव के मध्य एक ऊँची पहाड़ी या टीले पर मेनर के मालिक का भवन होता था। प्रतिदिन उपयोग की प्रत्येक वस्तु जागीर में मिलती थी, कृषक खेतों में काम करते थे, लोहार और बढ़ई औजारों की देखभाल और मरम्मत करते थे, राजमिस्त्री. इमारतों का निर्माण करते थे, औरतें वस्त्र के लिए सूत कातती और बुनती थीं। जबकि बच्चे लॉर्ड की मदिरा सम्पीडक में कार्य करते थे, चारागाहों में पशु और घोड़े चरते थे, जंगल लॉर्ड के शिकार के लिए होते थे। यहाँ एक चर्च और सुरक्षा के लिए एक दुर्ग भी होता था।
प्रश्न 6.
नाइट्स व लॉर्ड के आपसी सम्बन्धों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
यूरोप में नाइट्स, लॉर्ड से उसी प्रकार जुड़े हुए थे जिस प्रकार लार्ड, राजा से सम्बद्ध थे। लार्ड अर्थात् सामंत नाइट को भूमि का एक भाग देता था, जिसे फ़ीफ़ कहा जाता था और बदले में वह अपनी रक्षा करने का वचन नाइट से लेता था। फ़ीफ़ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता था। एक फ़ीफ़ में नाइट और उसके परिवार के लिए एक पवनचक्की व मदिरा संपीडक के अतिरिक्त उनका घर, चर्च और उस पर निर्भर रहने वाले व्यक्तियों के रहने का स्थान होता था। फ़ीफ़ के बदले में नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित धनराशि देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का भी वचन देता था। नाइट लगातार अपने आपको युद्धकला में पारंगत बनाये रखने के लिए प्रतिदिन पुतलों से लड़ने का एवं अपने बचाव का अभ्यास करते रहते थे। नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉर्डों को भी प्रदान कर सकता था। लेकिन उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के प्रति ही होती थी। अपने लॉर्ड के बुलाने पर वह अन्य लॉर्ड की सेवाएँ छोड़कर आ जाता था।
प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोप में चर्च और पादरियों की जीवन-शैली व अधिकारों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में कैथोलिक चर्च के अपने विशिष्ट नियम थे। उनके पास राजा द्वारा प्रदत्त भूमि थी जिस पर वे 'टीथ' नामक कर प्राप्त कर सकते थे। ईसाई समाज का मार्गदर्शन पादरियों और बिशपों के द्वारा किया जाता था, जो यूरोपीय समाज में प्रथम वर्ग के अंग थे। अधिकांश गाँवों के अपने चर्च हुआ करते थे, जहाँ प्रत्येक रविवार को लोग पादरी का धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते थे। प्रत्येक व्यक्ति पादरी नहीं बन सकता था। कृषि-दास, स्त्रियाँ व विकलांग व्यक्ति पादरी नहीं बन सकते थे। जो पुरुष पादरी बनता था वह शादी नहीं कर सकता था।
धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी लॉर्ड के समान विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में निवास करते थे। चर्च को एक वर्ष के अन्तराल में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था, जिसे 'टीथ' कहते थे। धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण और मरणोपरान्त रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का प्रमुख स्रोत था। चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज की कुछ महत्वपूर्ण रस्में सामंती कुलीनों की नकल थी। प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना, नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी की शपथ लेते समय अपनाए गए तरीके की नकल था। इस प्रकार ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन एक उदाहरण था जिसके द्वारा सामंती संस्कृति चर्च के उपासना कक्षों में प्रवेश करने लगी। इस प्रकार अनेक संस्कृतियों, सामंती रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों को चर्च के पादरियों ने अपना लिया था।
प्रश्न 8.
बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं द्वारा पालन किए जाने वाले प्रमुख नियमों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं द्वारा पालन किये जाने वाले प्रमुख नियम निम्नलिखित थे-
उक्त नियम जो बेनेडिक्टीन मठों में एक हस्तलिखित पुस्तक में वर्णित थे, इनका पालन भिक्षुओं ने कई सदियों तक किया। इस पुस्तक में नियमों के कुल 73 अध्याय थे।
प्रश्न 9.
मध्यकालीन चर्चों ने यूरोपीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि यूरोपवासी ईसाई बन गये थे परन्तु उन्होंने अभी तक चमत्कार और रीति-रिवाजों से जुड़े अपने पुराने अंधविश्वासों को नहीं त्यागा था। चौथी शताब्दी में 'क्रिसमस' और 'ईस्टर' कैलेण्डर की महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं त्योहार बन गये थे। 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाला 'क्रिसमस' (ईसामसीह का जन्मदिन) को एक पुराने रोमन त्योहार के स्थान पर अपना लिया गया था। ईस्टर ईसा के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था।
इस त्योहार को लम्बी सर्दी के बाद बसन्त के आगमन के स्वागत के रूप में मनाया जाता था। परम्परागत रूप से उस दिन प्रत्येक गाँव के लोग अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे। काम से दबे हुए किसान इन पवित्र दिनों का छुट्टियों के रूप में स्वागत इसलिए करते थे, क्योंकि इन दिनों में उन्हें काम करने से मुक्ति मिल जाती थी। वैसे तो यह दिन प्रार्थनाओं के लिए होता था, किन्तु लोग सामान्यतया इसका अधिकांश समय मौज-मस्ती करने और दावतों में व्यतीत करते थे। तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थी और बहुत से लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरजाघरों की लम्बी यात्राओं पर भी जाते थे।
प्रश्न 10.
यूरोपीय सामंती समाज में किसान किन-किन वर्गों में विभाजित थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय सामंती समाज में किसान निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित थे
(i) स्वतन्त्र किसान-इस वर्ग के किसान अपनी भूमि सामंत (लॉर्ड) से प्राप्त करते थे। वे अपने को सामंत या लॉर्ड का काश्तकार मानते थे, पुरुषों का सैनिक सेवा में कुछ दिनों का योगदान आवश्यक था। किसान इस भूमि से उत्पादन के बदले में सामंत को कर देते थे। इन कृषकों के परिवार को लॉर्ड की जागीर पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह में तीन या अधिक दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे श्रम-अधिशेष (Labour rent) कहते थे, सीधे लार्ड के पास जाता था।
(ii) सर्फ या कृषि-दास-सर्फ को हिंदी में कृषि-दास कहा जाता है। सर्फ की उत्पत्ति अंग्रेजी क्रिया 'To Serve' से हुई है जिसका अर्थ है-सेवा करना। यह किसानों का सबसे निम्न वर्ग था। कृषि दास अपने जीवन-यापन के लिए जिन भूखण्डों पर कार्य करते थे वे लॉर्ड के स्वामित्व में थे। अतः उपज का अधिकांश भाग लॉर्ड को ही मिलता था। ये लॉर्ड की भूमि पर कृषि कार्य करते थे। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। उन्हें बिना लॉर्ड की आज्ञा के जागीर से बाहर जाने का भी अधिकार नहीं था। इसलिए ये एक गुलाम या दास की तरह थे।
प्रश्न 11.
इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास किस प्रकार हुआ? बताइए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास-यूरोप में जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामंतवाद की उत्पत्ति ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई। चूँकि इंग्लैण्ड यूरोप महाद्वीप का ही एक देश है। अतः यहाँ भी इसी समय सामंतवाद विकसित हुआ। लेकिन इंग्लैण्ड में सामंतवाद की जड़ें काफी गहरी थीं। छठी शताब्दी में मध्य यूरोप से एंजिल और सैक्सन लोग इंग्लैण्ड में आकर बस गये। ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के एक प्रान्त नारमंडी के ड्यूक विलियम प्रथम ने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पार करके इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को हरा दिया तथा इंग्लैण्ड पर अधिकार कर लिया।
उसने देश की भूमि को नपवाकर उसके मानचित्र तैयार करवाये तथा उस भूमि को अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिया। ये लॉर्ड या सामंत (अभिजात) राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए। इन सामंतों से राजा सैन्य-सहायता भी प्राप्त करता था, इन्हें राजा को कुछ नाइट्स भी देने पड़ते थे। इसी बाध्यता के चलते लॉर्ड नाइट्स को कुछ भूमि (फ़ीफ़) उपहार में देने लगे। बंदले में वे उनसे उसी प्रकार की सेवा की आशा रखते थे जैसे वे राज्य की करते थे। इंग्लैण्ड में प्रतिबन्ध होने के कारण लॉर्ड अपने व्यक्तिगत युद्धों में नाइट्स का उपयोग नहीं कर सकते थे। एंग्लो-सैक्सन कृषक विभिन्न स्तरों के भू-स्वामियों के काश्तकार बन गए। इस प्रकार इंग्लैण्ड में सामंतवादी व्यवस्था का विकास हुआ।
प्रश्न 12.
5वीं सदी से 11वीं सदी तक यूरोप में पर्यावरण ने कृषि को किस प्रकार प्रभावित किया? बताइए।
उत्तर:
5वीं सदी से 11वीं सदी तक यूरोप में पर्यावरण ने कृषि को बहुत अधिक प्रभावित किया। पाँचवीं से दसवीं शताब्दी के दौरान यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था फलस्वरूप कृषि के लिए सीमित भूमि ही उपलब्ध थी। इस समयावधि में यूरोप भयंकर शीतकाल से गुजर रहा था। सर्दियों की अवधि लम्बी होने के कारण फसलों का उपज काल भी छोटा हो गया फलस्वरूप कृषि उत्पादन भी कम होने लगा। ग्यारहवीं शताब्दी में तापमान के बढ़ने से कृषि पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। अब कृषकों को खेती के लिए लम्बी अवधि मिलने लगी। इसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में भी वृद्धि हुई। कृषि भूमि का विस्तार होने लगा जिससे वन क्षेत्र में भी कमी आयी।
प्रश्न 13.
प्रारम्भ में यूरोप में कृषि सम्बन्धी क्या समस्याएँ थीं? इसका जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
प्रारम्भ में यूरोप में कृषि सम्बन्धी कई समस्याएँ थीं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
(i) प्राचीन कृषि प्रौद्योगिकी-प्रारम्भ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत प्राचीन थी। यहाँ कृषक का एकमात्र उपकरण बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह हल केवल भूमि की सतह को ही खुरच सकता था।
अतः यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूर्णतः बाहर निकालने में अक्षम था। अतः उत्पादकता बढ़ाने हेतु भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से फावड़े आदि के द्वारा खोदा जाता था। इस कार्य में अत्यधिक मानव श्रम लगता था।
(ii) फ़सल चक्र का प्रभावहीन तरीके से उपयोग-यूरोप में फ़सल चक्र का भी प्रभावहीन तरीके से उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था। एक भांग को शीत ऋतु में गेहूँ बोने के काम में लिया जाता था, वहीं दूसरे भाग को परती या खाली रखा जाता था। अगले वर्ष दूसरे भाग परती भूमि पर राई बोई जाती थी। जबकि पहला आधा भाग खाली रखा जाता था। यही प्रक्रिया पुनः दोहरायी जाती थी। इस व्यवस्था के कारण मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा। जनजीवन पर प्रभाव-कृषि सम्बन्धी इन अवस्थाओं से यूरोप की मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होने से बार-बार अकाल पड़ने लगे, जिससे गरीब लोगों के लिए जीवन निर्वाह करना अत्यन्त कठिन हो गया। वे कुपोषण व भुखमरी का शिकार होने लगे। अनेक लोग मृत्यु के मुँह में चले गये।।
प्रश्न 14.
यूरोप में कृषि सम्बन्धी समस्याओं ने लॉर्डों व कृषकों के मध्य किस प्रकार परस्पर विरोधी भावनाएँ उत्पन्न की? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
प्रारम्भ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम अवस्था में थी। साथ ही फसल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग होने से मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा और प्रायः अकाल पड़ने लगे जिससे गरीबों के लिए जीवन दुष्कर हो गया। इन सब कठिनाइयों के बावजूद लॉर्ड (सामंत) अपनी आय को अधिकतम करने के लिए उत्सुक रहते थे। यद्यपि कृषि उत्पादन को बढ़ाना सम्भव नहीं था। इसलिए उन्होंने कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषि के अधीन लाने के लिए बाध्य किया। यह कार्य करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय तक कार्य करना पड़ता था। कृषकों को यह बात ठीक नहीं लग रही थी, लेकिन वे इस अत्याचार का खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रहे थे।
इसलिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा लिया। वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे तथा उस श्रम से किए गए उत्पादन का अधिकांश भाग अपने पास रखने लगे और वे बेगार करने से बचने लगे। चारागाहों एवं वन भूमि के कारण भी उनका अपने लॉर्डों के साथ विवाद होने लगा। लॉर्ड उस भूमि को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति समझते थे। इसके विपरीत उस पर खेती करने वाले कृषक उसे सम्पूर्ण समुदाय की साझी सम्पदा मानते थे। इन सभी बातों से यूरोप में कृषि सम्बन्धी समस्याओं ने लार्डों व कृषकों के मध्य परस्पर विरोधी भावनाएँ उत्पन्न की।
प्रश्न 15.
11वीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नवीन कृषि प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
11वीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नवीन कृषि प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के निम्नलिखित परिणाम निकले
प्रश्न 16.
मध्यकालीन यूरोप में प्रौद्योगिकीय बदलावों में व्यय होने वाले धन सम्बन्धी समस्याओं का कृषकों द्वारा किस प्रकार समाधान किया गया?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में कृषि क्षेत्र में सुधार करने के लिए अनेक प्रौद्योगिकीय परिवर्तन किये गये। इन प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों पर अत्यधिक धन का व्यय होने लगा। कृषकों के पास पन-चक्की और पवन-चक्की स्थापित करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था, इस सम्बन्ध में पहल लॉर्डों द्वारा की गई, परन्तु कृषक भी कई अन्य क्षेत्रों में पहल करने में सक्षम रहे। उदाहरण के लिए, उन्होंने कृषि योग्य भूमि का विस्तार किया। उन्होंने फसलों की तीन चक्रीय व्यवस्था को अपनाया एवं गाँवों में लोहार की दुकानें एवं भट्ठियाँ स्थापित की। इन दुकानों पर लोहे की नोंक वाले हल बनाये जाते थे। इसके अतिरिक्त घोड़ों की नाल बनाने एवं मरम्मत करने का कार्य सस्ती दरों पर किया जाने लगा।
प्रश्न 17.
मध्यकालीन यूरोप में लॉर्डों व कृषकों के मध्य सम्बन्धों में क्या परिवर्तन आया ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में लार्डों व कृषकों के मध्य सम्बन्धों में बहुत अधिक परिवर्तन आया। पहले लॉर्डों व कृषकों के मध्य व्यक्तिगत सम्बन्ध थे तथा यही सम्बन्ध सामंतवाद को आधार प्रदान करते थे। लेकिन ग्यारहवीं शताब्दी से आर्थिक लेन-देन अधिकाधिक मुद्रा में होने से इनके व्यक्तिगत सम्बन्ध कमजोर होने लगे। लॉर्ड कृषकों से लगान उनकी सेवाओं की अपेक्षा नगदी में वसल करने लगे। कृषकों ने भी वस्तु विनिमय को छोड़कर अपनी फसलों को व्यापारियों को नकदी में बेचना प्रारम्भ कर दिया। व्यापारी इन वस्तुओं को सस्ती दर पर खरीद कर उन्हें शहरों में महँगा बेचकर धन कमाते थे। धन के बढ़ते उपयोग का प्रभाव कीमतों पर पड़ता था, जो खराब फसल के समय में और अधिक बढ़ जाती थीं। इन सब बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि मध्यकालीन यूरोप में लॉर्ड एवं कृषकों के मध्य सम्बन्धों में परिवर्तन देखने को मिला।
प्रश्न 18.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में चौथा वर्ग किस प्रकार अस्तित्व में आया ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी के दौरान कृषि का विकास होने से वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हो गयी तो नगरों का भी विकास होने लगा। उस काल में एक कहावत प्रसिद्ध थी कि 'नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है' लॉर्डों के अधीन कई कृषि दास रहते थे। ये उनके द्वारा किए गए अत्याचारों से परेशान थे। स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले कृषि दास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। यदि कोई कृषि दास अपने लॉर्ड की नजरों से एक वर्ष एकै दिन तक छिपे रहने में सफल रहता था तो वह स्वतंत्र नागरिक बन जाता था। नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतंत्र कृषक थे या भगोड़े कृषक। कार्य की दृष्टि से वे अकुशल श्रमिक होते थे। नगरों में अनेक दुकानदार और व्यापारी भी रहते थे। आगे चलकर विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार तथा वकील आदि की आवश्यकता भी अनुभव हुई। बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हजार होती थी। नगरों में रहने वाले इन्हीं लोगों ने समाज में चौथा वर्ग बना लिया था। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोपीय समाज में चौथा वर्ग अस्तित्व में आया।
प्रश्न 19.
मध्यकालीन यूरोप के फ्रांस में कथीलों का निर्माण किस प्रकार किया जाता था ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के फ्रांस में कथीलों का निर्माण इस प्रकार किया गया कि पादरी की आवाज कथीड्रल में लोगों के एकत्रित होने वाले सभागार में स्पष्ट रूप से सुनाई दे सके तथा भिक्षुओं का गायन भी अधिक मधुर सुनाई पड़ सके। इस प्रकार का प्रावधान रखा जाता था कि प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घण्टियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें। चर्च में खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग होता था ताकि दिन के समय सूर्य का प्रकाश अन्दर आ सके। सूर्यास्त के पश्चात् मोमबत्तियों का प्रकाश बाहर के व्यक्तियों के लिए चमक प्रदान करता था। अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बाइबिल की कथाओं से सम्बन्धित चित्र बने होते थे। इन चित्रों पर लिखी बातों को चित्र देखकर निरक्षर व्यक्ति भी समझ सकते थे।
प्रश्न 20.
एबट सुगेर ने सेंट डेनिस में स्थित ऑबे के बारे में क्या विवरण दिया है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एबट सुगेर नामक इतिहासकार ने फ्रांस में स्थित पेरिस के समीप स्थित ऑबे के बारे में लिखा है कि विभिन्न क्षेत्रों से आए अनेक विशेषज्ञों के अत्यन्त कुशल हाथों से अनेक प्रकार की शानदार नई खिड़कियों की पुताई करवाई, क्योंकि ये खिड़कियाँ अपने अद्भुत निर्माण एवं अत्यधिक महँगे रंजित तथा सफायर काँच के कारण बहुत अधिक कीमती थीं। अतः इनकी रक्षा के लिए हमने एक सरकारी प्रधान शिल्पकार और स्वर्णकार को नियुक्त किया। इन लोगों को भोजन सामग्री सार्वजनिक भण्डार से तथा वेतन वेदिका से सिक्कों के रूप में प्राप्त होता था। वे इन कला-वस्तुओं की देखभाल के कर्तव्यों की अवहेलना कभी नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 21.
14वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप में पड़े भीषण अकालों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों को बताइए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। इसका प्रमुख कारण यहाँ का मौसम परिवर्तन था। उत्तरी यूरोप में, तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक पिछले तीन सौ वर्षों की भीषण ग्रीष्म ऋतु का स्थान अत्यधिक ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था। परिणामस्वरूप उपज वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना बहुत कठिन हो गया। तूफानों एवं सागरीय बाढ़ों के कारण अनेक फार्म-प्रतिष्ठान नष्ट हो गए, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को करों द्वारा कम आय प्राप्त हुई। तेरहवीं शताब्दी के पूर्व की अनुकूल जलवायु के कारण अनेक जंगल और चारागाह कृषि-भूमि में बदल गए। उचित भू-संरक्षण के अभाव के कारण भूमि कमजोर हो गई वहीं दूसरी ओर चारागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या भी कम हो गई। जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने से उपलब्ध संसाधन भी कम पड़ गये फलस्वरूप यूरोपवासियों को 1315 से 1317 ई. के मध्य भीषण अकालों का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 22.
14वीं शताब्दी में यूरोप में फैली महामारियों के क्या परिणाम निकले ? बताइए।
उत्तर:
14वीं शताब्दी में यूरोप में फैली महामारियों के निम्नलिखित परिणाम निकले
प्रश्न 23.
14वीं शताब्दी के आर्थिक संकट ने यूरोप में कृषकों में किस प्रकार सामाजिक असंतोष को जन्म दिया? बताइए।
उत्तर:
14वीं शताब्दी के आर्थिक संकट ने यूरोप में कृषकों में सामाजिक असंतोष को जन्म दिया। इस शताब्दी में पड़े अकालों, महामारी, आर्थिक मन्दी आदि के कारण यूरोप के लॉर्डों की आय बहुत कम हो गयी। मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी ने अभिजात वर्ग की आय को कम कर दिया। निराशा में उन्होंने अपने धन सम्बन्धी अनुबंधों को तोड़ दिया और फिर से पुरानी मजदूरी सेवाओं को लागू कर दिया। कृषकों विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों ने इसका विरोध किया। उन्होंने 1323 ई. में फ्लैंडर्स में, 1358 ई. में फ्रांस में और 1381 ई. में इंग्लैण्ड में विद्रोह किए। यद्यपि इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया, परन्तु महत्वपूर्ण बात यह थी कि सबसे हिंसक विद्रोह उन स्थानों पर हुए जहाँ आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि आई थी। यह इस बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में मिले लाभों को खोना नहीं चाहते थे। तीव्र दमन के बावजूद इन विद्रोहों की तीव्रता ने सुनिश्चित कर दिया कि कृषकों पर पुराने सामंती रिश्तों को फिर से नहीं लादा जा सकता। इससे यह भी सुनिश्चित हो गया कि कृषि दासता के पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे।
प्रश्न 24.
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राज्यों का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में 15वीं व 16वीं शताब्दियों के दौरान यूरोपीय शासकों ने अपनी आर्थिक स्थिति को बहुत अधिक मजबूत कर लिया। साथ ही साथ उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति में भी वृद्धि कर ली। इन शासकों द्वारा निर्मित शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के समान ही महत्वपूर्ण थे। इसी कारण इतिहासकारों ने इन राजाओं को नए शासक की संज्ञा दी। फ्रांस में लुई ग्यारहवें, ऑस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम तथा स्पेन में ईसाबेला व फर्डीनेड निरंकुश शासक थे। इनके द्वारा अपनी शासन प्रणाली में अनेक सुधार किए गए, जिनमें संगठित स्थायी सेनाओं का गठन, स्थायी नौकरशाही एवं राष्ट्रीय कर प्रणाली की स्थापना आदि प्रमुख थे।
प्रश्न 25.
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों को बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे
(i) सामाजिक परिवर्तनों का होना-जागीरदारी एवं सामंतशाही वाली सामंत प्रथा के विलय एवं आर्थिक विकास की मन्द गति ने यूरोप के शासकों को प्रभावशाली बनाया। शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बन्द कर दिया और उसके स्थान पर शासकों ने पूर्ण रूप से अपने अधीन बन्दूकों व बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना का गठन किया। इस प्रकार शासक इतने शक्तिशाली हो गए कि अभिजात वर्ग उनका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाता था।
(ii) कर वृद्धि से शासकों के राजस्व में वृद्धि-करों में वृद्धि से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होने लगा, इससे उन्हें पहले से बड़ी सेनाएँ रखने में सहायता मिली। सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा की और उनका विस्तार किया। सेना की सहायता से उन्होंने अपने राज्य में होने वाले आन्तरिक विद्रोहों का भी दमन कर दिया।
प्रश्न 26.
इंग्लैण्ड में किस प्रकार गणतन्त्र की स्थापना हुई ? पुनः राजतंत्र की स्थापना किस शर्त पर की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड पर नॉरमनों की विजय से पहले यहाँ एंग्लो-सैक्सन लोगों की एक परिषद् होती थी। इंग्लैण्ड में शासक को अपनी प्रजा पर कर लगाने से पूर्व उनकी सलाह लेनी पड़ती थी। यह परिषद् कालान्तर में संसद (पार्लियामेंट) के रूप में विकसित हुई, जिसके दो सदन थे-
इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम ने संसद का अधिवेशन बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। एक बार उसे (210 में इतिहास, कक्षा-11 धन की आवश्यकता पड़ी तब मजबूरी में उसे संसद का अधिवेशन बुलाना पड़ा। अधिवेशन के दौरान संसद के एक भाग ने राजा का विरोध किया। कुछ समय पश्चात् राजा चार्ल्स प्रथम को मृत्यु-दण्ड देकर इंग्लैण्ड में गणतंत्र की स्थापना की गई परन्तु यह व्यवस्था अधिक समय तक नहीं चल सकी। इंग्लैण्ड में पुनः राजतंत्र की स्थापना की गई तथा राजा को यह निर्देशित किया गया कि वे संसद का नियमित रूप से अधिवेशन बुलाएँ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज कौन-कौन से वर्गों में विभक्त था ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के वर्ग-मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों में विभाजित था
(i) प्रथम वर्ग-पादरी वर्ग-समाज में प्रथम वर्ग पादरियों का था। कैथोलिक चर्च के अपने नियम थे। राजा द्वारा दान दी गई भूमियाँ चर्चों के पास होती थीं जिनसे उनको कर वसूलने का अधिकार प्राप्त होता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी, जो राजा पर निर्भर नहीं थी। पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष को 'पोप' कहते थे, जो रोम में रहता था।
यूरोप में बिशप और पादरी समाज का मार्गदर्शन किया करते थे। लगभग प्रत्येक गाँव का अपना चर्च हुआ करता था, जहाँ पर प्रत्येक 'रविवार' को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने और सामूहिक प्रार्थना करने के लिए उपस्थित होते थे। धर्म के क्षेत्र में बिशप को अभिजात माना जाता था। बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में निवास करते थे। चर्च को एक वर्ष के अन्तराल पर कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था जिसे 'टीथ' कहते थे। अमीरों द्वारा अपने कल्याण और मरणोपरान्त अपने रिश्तेदारों के कल्याण हेतु दिया जाने वाला दान भी उनकी आय का एक स्रोत था।
(ii) द्वितीय वर्ग-अभिजात वर्ग-यूरोपीय समाज में अभिजात कुलीनों को दूसरे वर्ग में रखा गया था। परन्तु वास्तव में, सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसका कारण था कि अधिकांश भूमि पर इस वर्ग का नियन्त्रण एवं आधिपत्य था, वह 'वैसलेज' नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ था। बड़े-बड़े भूस्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग तथा भू-स्वामी कृषकों की रक्षा का वचन देते थे और बदले में कृषक उनके प्रति निष्ठावान रहते थे।
अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत होती थी। ये सामंती सेना रख सकते थे, स्वयं का न्यायालय स्थापित कर सकते थे एवं मुद्रा भी जारी कर सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक होते थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी होते थे। जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत व चारागाह और उनके पट्टेदार कृषकों के घर व खेत होते थे। उनका घर 'मेनर' कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी, जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था।
(iii) तृतीय वर्ग-कृषक वर्ग- कृषकों की एक विशाल जनसंख्या थी जो पहले दो वर्गों पादरी व अभिजात के भरण-पोषण का कार्य करती थी।
ये कृषक दो प्रकार के होते थे-
इस समाज के पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान अनिवार्य था। इसके लिए वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सैनिक सेवा का नियम प्रचलित था। कृषकों और उनके परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था। इसके लिए सप्ताह में तीन या इससे कुछ अधिक दिन निश्चित थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन (श्रम-अधिशेष) सीधे लॉर्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनको अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। इसके अतिरिक्त वे एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाता था, भी इनको देना पड़ता था। कृषि दास अपने जीवन निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे वे लॉर्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज (श्रम-अधिशेष) भी लॉर्ड को ही मिलती थी।
थ ही वे उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थे, इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। वे बिना लॉर्ड की आज्ञा के जागीर नहीं छोड़ सकते थे और न ही किसी अन्य लॉर्ड के पास जा सकते थे। गलती करने पर उन्हें कठोर दण्ड दिये जाते थे। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोप के समाज को उपर्युक्त वर्णित तीन वर्गों में विभाजित किया गया था। यह पूरा समाज कृषि दासों के श्रम पर निर्भर था। कृषक की मेहनत और कृषि उपज को शेष दो वर्ग पादरी एवं अभिजात वर्ग सुख, भोग-विलास और ऐश्वर्य में उपयोग करते थे।
प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त थे ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
मध्यकाल में फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकाल में फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका-(अधिकार)-मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। यह फ्रांस का दूसरा सामाजिक वर्ग था। फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका (अधिकारों) का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है
(i) भूमि पर नियंत्रण-फ्रांसीसी सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसका मुख्य कारण उनका भूमि पर नियंत्रण होना था। यह नियंत्रण वैसलेज नामक एक प्रथा के विकास का परिणाम था। वे अपनी भूमि पर बसे हुए समस्त लोगों के स्वामी होते थे। वे विस्तृत क्षेत्र के स्वामी थे जिसमें उनके घर, व्यक्तिगत खेत, चारागाह तथा उनके आसामी कृषकों के घर व खेत होते थे। उनका घर मेनर कहलाता था।
(ii) सम्पदा पर स्थायी रूप से नियंत्रण-फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग का अपनी सम्पदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण होता था। वे अपनी सम्पदा का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकते थे।
(iii) सेना का गठन-अभिजात वर्ग अपनी सेना का गठन कर सकते थे। उनके द्वारा गठित सेना सामंती सेना कहलाती थी। इसके अतिरिक्त वे अपनी सैन्य-क्षमता में भी वृद्धि कर सकते थे।
(iv) स्वयं का न्यायालय स्थापित करना-मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग अपना स्वयं का न्यायालय स्थापित कर सकते थे। इन न्यायालयों में वे फरियादी की फरियाद भी सुनते थे तथा फैसला भी देते थे।
(v) मुद्रा जारी करना-अभिजात वर्ग अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे। जिससे वस्तुएँ खरीदी व बेची जा सकती थीं।
(vi) कृषकों द्वारा सेवा प्रदान करना-अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। इन कृषकों को खेतों पर काम करने के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था।
प्रश्न 3.
मेनर की जागीर क्या थी ? इसकी प्रमुख विशेषताओं को बताइए।
उत्तर:
मेनर की जागीर से आशय-फ्रांस में लॉर्ड का घर मेनर कहलाता था। प्रतिदिन के उपयोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। जागीरों में अरण्य भूमि व वन होते थे। जागीर का शाब्दिक अर्थ-राज्य की ओर से प्राप्त भूमि या प्रदेश होता है। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जनभर एवं बड़ी जागीर में 50-60 परिवार हो सकते थे। मेनर की जागीर की प्रमुख विशेषताएँ-मेनर की जागीर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(i) दैनिक उपभोग की वस्तुओं का उपलब्ध होना-दैनिक उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर ही मिलती थी। जागीरों में विस्तृत अरण्य भूमि व वन होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते थे। मेनर के चारागाह भी होते थे, जहाँ उनके घोड़े व अन्य पशु चरते थे। अनाज खेतों में उगाए जाते थे तथा लोहार व बढ़ई लॉर्ड के औजारों की देखभाल एवं मरम्मत करते थे। जबकि राज मिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करता था। महिलाएँ सूत कातती एवं बुनती थीं। बच्चे लॉर्ड की मदिरा संपीडक में कार्य करते थे।
(ii) चर्च एवं दुर्ग की उपलब्धता-मेनर की जागीर में प्रार्थना के लिए एक चर्च होता था तथा सम्पूर्ण जागीर की सुरक्षा के लिए एक दुर्ग भी होता था। दुर्ग की वजह से उनमें निवास करने वाले सभी लोग अपने आपको सुरक्षित महसूस करते थे। इन दुर्गों में नाइट्स के परिवार भी रहते थे। दुर्गों का विकास सामंती प्रथा के अन्तर्गत राजनीतिक प्रशासन एवं सैनिक शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ।
(iii) मेनरों का आत्मनिर्भर न होना-मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट एवं धातु के बर्तन बाहर से मँगवाने पड़ते थे। विलासी जीवन के शौकीन लॉर्डों के लिए भी महँगी वस्तुएँ, वाद्य यंत्र एवं आभूषण आदि सामग्री अन्य दूसरे स्थानों से मँगवानी पड़ती थीं।
प्रश्न 4.
नाइट्स कौन थे? उनकी जीवन शैली व लॉर्ड से उनके सम्बन्धों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नाइट्स-यूरोप में नौवीं शताब्दी में नाइट्स कुशल घुड़सवार अश्व सैनिक होते थे। ये नाइट्स (अश्व सैनिक) लार्ड के प्रति वफादार होते थे।
नाइट्स की जीवन शैली एवं लॉर्ड से सम्बन्ध-
नाइट्स, लॉर्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे। जिस प्रकार लॉर्ड, राजा के साथ सम्बद्ध थे। लॉर्ड ने अपने-अपने नाइट्स को एक भूमि का भाग जागीर के रूप में दे दिया जिसे 'फ़ीफ़' कहा गया। इसके बदले में नाइट्स अपने लॉर्ड की रक्षा करने का वचन देता था। फ़ीफ़, जो कि 1000-2000 एकड़ या अधिक हो सकती थी, को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता था। इस फ़ीफ़ में नाइट, एक पनचक्की और मदिरा सम्पीडक के अतिरिक्त अपने परिवार के लिए एक घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था करता था।
नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉर्डों को भी दे सकता था, परन्तु उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के प्रति ही होती थी। अपनी सैन्य क्षमताओं को बनाये रखने के लिए नाइट्स प्रतिदिन अपना समय बाड़ लगाने, घेराबंदी करने एवं पुतलों से लड़ने तथा अपने बचाव का अभ्यास करने में व्यतीत करते थे। 9वीं से 11वीं शताब्दी तक नाइट्स की प्रथा फलती-फूलती रही परन्तु 12वीं सदी के आते-आते नाइट्स का पतन हो गया। 12वीं सदी के गायक फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे जो अंशतः ऐतिहासिक और अंशतः काल्पनिक होती थीं। अतः कह सकते हैं कि अब नाइट्स वास्तविक रूप में नहीं वरन् कहानियों के रूप में रह गये।
प्रश्न 5.
मध्यकालीन यूरोप के मोनेस्ट्री मठों में रहने वाले भिक्षुओं के जीवन एवं उनके लिए बनाए गए नियमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में मोनेस्ट्री मठ-ईसाई धर्म में कुछ अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति जो पादरी नहीं होते थे, लोगों के बीच नगरों व गाँवों में नहीं रहते थे बल्कि एकांत जीवन जीना पसन्द करते थे। ऐसे व्यक्ति जिन धार्मिक समुदायों में रहते थे, उन्हें मोनेस्ट्री मठ या ऐबी कहा जाता था।
मध्यकालीन यूरोप में दो मठ विख्यात थे-
भिक्षुओं का जीवन-
मध्यकालीन यूरोप में भिक्षुओं का सम्पूर्ण जीवन मठों में रहने, प्रार्थना करने, अध्ययन करने, कृषि जैसा शारीरिक श्रम करने में व्यतीत हो जाता था। एक भिक्षु का जीवन पुरुष व महिला दोनों ही अपना सकते थे। पुरुष भिक्षुओं को 'मोंक' एवं महिला भिक्षुओं को 'नन' कहा जाता था। पुरुष एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग मठ होते थे। भिक्षु व भिक्षुणियों को विवाह करने की अनुमति नहीं होती थी। इस प्रकार मठों में भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त कठिन था। भिक्षुओं के लिए नियम-बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक होती थी, जिसमें नियमों के 73 अध्याय थे। भिक्षुओं द्वारा इन नियमों का पालन कई सदियों तक किया जाता रहा। इनमें से कुछ निम्नलिखित थे
प्रश्न 6.
मध्यकाल में चर्चा का यूरोपियन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
मध्यकाल में चर्चों का यूरोपियन समाज पर प्रभाव-मध्यकाल में चर्चों का यूरोपियन समाज पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) मध्यकाल में यूरोप में चर्चों के प्रभाव से अधिकांश लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
(ii) ईसाई बनने के बावजूद कुछ यूरोपियों ने अभी तक चमत्कार व रीति-रिवाजों से जुड़े अपने पुराने विश्वासों का पूर्णतः त्याग नहीं किया था।
(iii) ईसा मसीह के जन्मदिन क्रिसमस (25 दिसम्बर) ने एक पुराने रोमन त्योहार का स्थान ले लिया था। इस तिथि की गणना सौर पंचांग के आधार पर की गयी।
(iv) क्रिसमस व ईस्टर चौथी शताब्दी में ही कैलेण्डर की महत्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे।
(v) ईस्टर ईसामसीह के शूलारोपण एवं उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था लेकिन उसकी तिथि निश्चित नहीं थी क्योंकि इसने चन्द्र पंचांग पर आधारित एक प्राचीन त्योहार का स्थान ग्रहण किया था। जो लम्बी सर्दी के पश्चात् बसन्त ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था। एक परम्परा के अनुसार उस दिन गाँव का प्रत्येक व्यक्ति अपने गाँव की भूमि का दौरा करता था। ईसाई धर्म अपनाने पर भी उन्होंने इसे निरन्तर जारी रखा, परन्तु अब वे उसे ग्राम के स्थान पर पैरिश (पैरिश-एक पादरी की देख-रेख में आने वाला क्षेत्र) कहने लगे।
(vi) कार्य के बोझ से दबे कृषक इन पवित्र दिनों अथवा छुट्टियों का स्वागत इसलिए करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई कार्य नहीं करना पड़ता था। वैसे तो ये दिन प्रार्थना करने के लिए थे परन्तु लोग सामान्यतया इसका अधिकांश समय घूमने-फिरने, मौज मस्ती करने एवं दावतों में खर्च करते थे।
(vii) चर्चों में ईसाई लोग प्रवचन सुन-सुनकर धार्मिक हो गये। वे तीर्थयात्राओं पर जाने लगे। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया। अनेक लोग शहीदों की समाधियों तथा बड़े-बड़े गिरिजाघरों की लम्बी यात्राओं पर जाने लगे। इस प्रकार मध्यकाल में चर्चों का यूरोपियन समाज पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकों की दशा पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकों की दशा-मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषक वर्ग को तृतीय स्थान प्राप्त था। इस काल में कृषक दो प्रकार के होते थे-
1. स्वतंत्र कृषकों की दशा-इस वर्ग में कृषक अपनी भूमि सामंत से प्राप्त करते थे। वे अपने को सामंत (लॉर्ड) का काश्तकार मानते थे। पुरुष कृषकों द्वारा सैनिक सेवा में कुछ दिनों का योगदान दिया जाना आवश्यक था। उन्हें अपने लार्ड को वर्ष में कम से कम 40 दिन सैनिक सेवा देनी पड़ती थी। कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर कार्य करना पड़ता था। उन्हें सप्ताह में तीन या उससे अधिक दिनों तक लॉर्ड की जागीरों पर जाकर कार्य करना पड़ता था।
इस श्रम से होने वाला उत्पादन 'श्रम अधिशेष' कहलाता था। यह श्रम अधिशेष सीधे लॉर्ड के पास जाता था। कृषकों को एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' भी देना पड़ता था। जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे। कृषि के अतिरिक्त कृषकों को जागीर में गड्डे खोदना, जलाऊ लकड़ी एकत्रित करना, बाड़ बनाना, सड़कों व इमारतों की मरम्मत करना आदि कार्य भी करने पड़ते थे, जिनकी कोई भी मजदूरी प्रदान नहीं की जाती थी। कृषकों के परिवारों की महिलाओं एवं बच्चों को सूत कातने, कपड़ा बुनने, मोमबत्ती बनाने तथा अंगूरों के रस से शराब बनाने जैसे कार्य भी लॉर्ड की आज्ञानुसार करने पड़ते थे।
2. कृषि दासों की दशा-इन्हें 'सर्फ' कहा जाता था। मध्यकालीन यूरोप में यह कृषकों का सबसे निम्न वर्ग था। इनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी। ये कृषि दास अपने जीवनयापन के लिए लॉर्ड के स्वामित्व वाले भूखण्डों पर कार्य करते थे। इनसे प्राप्त उपज का अधिकांश भाग लॉर्ड को ही मिलता था। इन्हें कार्य के बदले कोई मजदूरी नहीं मिलती थी, ये लॉर्ड की अनुमति के बिना जागीर से बाहर भी नहीं जा सकते थे। इन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। ये केवल अपने लॉर्ड की चक्की से ही आटा पीस सकते थे।
उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे एवं उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब व बीयर तैयार कर सकते थे। लॉर्ड को कृषि दास का विवाह तय करने का भी अधिकार प्राप्त था। वह कृषि दास द्वारा पसन्द की गयी वधू को अशीर्वाद दे सकता था परन्तु इसके लिए वह कृषि दास से शुल्क लेता था। कृषि दास एक गुलाम की तरह से जीवनयापन करते थे। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोप में कृषकों की दशा बहुत शोचनीय थी। लॉर्ड द्वारा उनका शोषण किया जाता था। इनके द्वारा कठोर परिश्रम करने के बावजूद उन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिलता था।
प्रश्न 8.
यदि आप यूरोपीय सामन्तवादी मध्यकाल में होते तो बताइए कि निम्न रूप में आप अपना समय किस प्रकार व्यतीत करते
उत्तर:
1. यदि मैं मेनर का स्वामी होता-यदि मैं मध्यकालीन यूरोप के सामन्तवादी समाज में मेनर का स्वामी होता तो मैं विलासतापूर्ण जीवन जीता। मेरे पास गाँव में सबसे खूबसूरत किले जैसा महल होता। मेरे भवन में अनेक कमरे और सभागार होते तथा उनमें साजसज्जा का सामान उचित स्थान पर सुसज्जित होता। मेरी अपनी कृषि भूमि होती जिस पर अनेक कृषक तथा दास कृषक खेती कार्य कर रहे होते। मेरे महल के पास ही चारागाह और एक जंगल भी होता। मेरे गाँव में मेरा पूर्णतया राज्य होता और मेरा जीवन पूर्णतः सुख-सुविधाओं से सम्पन्न होता। अपनी स्वयं की न्याय व्यवस्था के कारण एक न्यायाधीश के रूप में अपना कार्य निष्पक्ष होकर करता तथा स्त्रियों को उचित सम्मान देता।
2. यदि मैं नाइट होता-यदि मैं मध्यकालीन यूरोप के सामन्तवादी समाज में नाइट होता, तो मेरा एक भव्य भवन होता। मेरी सेवा में तत्पर रहने वाले अनेक लोग होते। मेरे पास पहनने के लिए बहुमूल्य आभूषण और सुन्दर वस्त्र होते। मैं अपने अधिपति ड्यूक या बैरन का सम्मान करता और कुशल सैनिकों की पैदल और घुड़सवारों की अश्व सैनिक टुकड़ी सदैव तैयार रखता। मैं निश्चित होकर अपनी सैन्य योग्यताओं को बनाए रखने के लिए प्रतिदिन अपना समय बाड़ बनाने/घेराबंदी करने और पुतलों से रणकौशल एवं अपने बचाव का अभ्यास करने, युद्ध करने तथा उत्सवों में अपना समय व्यतीत करता।
3. यदि मैं एक भिक्षु होता-यदि मैं एक भिक्षु होता तो एक भिक्षु के रूप मैं संन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत कर रहा होता। मैं अपना अधिकांश समय ईश्वर की भक्ति में व्यतीत करता और कुछ समय शारीरिक श्रम में लगाता। मेरा निवास स्थान नगरों और गाँवों से दूर एकान्त स्थान पर होता, जिसे लोग मठ कहते। मठ में रहकर वहाँ के नियमों का पालन करना, तप करना, पुण्य करना, ईश्वरीय आराधना करना ही मेरी दिनचर्या होती, साथ ही कुछ समय मठ में कला विकास के लिए और लोगों को शिक्षित करने या ज्ञान प्रदान करने के लिए भी मैं अवश्य निकालता।
4. यदि मैं एक कृषि दास होता-यदि मैं एक कृषि दास होता तो मेरा जीवन दुःखों और कष्टों से भरा हुआ होता। मुझे सामंत की भूमि पर काम करना पड़ता। जिसके लिए वह मुझे किसी तरह का कोई मेहनताना या वेतन नहीं देता। अतः मेरा जीवन एक गुलाम जैसा होता। मैं अपनी भूमि की उपज का अधिकांश भाग सामंत को देने के लिए बाध्य होता क्योंकि यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो सामंत मुझे कठोर दण्ड दे सकता था। मैं कभी भी अपनी जमीन को छोड़कर नहीं भागता और हमेशा यही इच्छा रखता कि मेरा स्वामी सामंत मेरे कार्य से खुश रहे क्योंकि इस तरह वह मुझे स्वतन्त्र किसान बना सकता था जिससे मेरा जीवन भी अच्छा हो जाता तथा कुछ कार्य अपनी इच्छानुसार करने की स्वतंत्रता मिल जाती।
प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारकों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक-मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित थे
1. पर्यावरण में परिवर्तन-पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी। इसके अलावा, अपनी परिस्थितियों से असन्तुष्ट कुछ किसान भी अत्याचार से बचने के लिए वहाँ से भागकर वनों में शरण ले लेते थे। इस समय यूरोप में तीव्र ठण्डी ऋतु का दौर चल रहा था। इससे सर्दियाँ प्रचण्ड और लम्बी अवधि की हो गई थीं। परिणामस्वरूप फसलों की उपज का काल छोटा हो गया था, इसी कारण से कृषि की पैदावार कम हो गई। ग्यारहवीं सदी से यूरोप के पर्यावरण में एक बार पुनः परिवर्तन आने लगा और गर्माहट का दौर शुरू हो गया, औसत तापमान बढ़ गया।
इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु आने लगी जिसका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। कृषकों को कृषि के लिए लम्बी अवधि मिलने लगी। मिट्टी पर पाले का असर कम होने के कारण आसानी से खेती की जा सकती थी। इसके अलावा वनों को काटकर और जलाकर कृषि भूमि के रूप में प्रयोग हो सका क्योंकि वनों में आग लगाना गर्मियों में अधिक आसान होता है। इस प्रकार कृषि भूमि का विस्तार हुआ फलतः उत्पादन भी बढ़ने लगा।
2. भूमि का उपयोग-प्रारम्भ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत ही प्राचीन थी। कृषक का एकमात्र कृषि उपकरण बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था। इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था। इसके अतिरिक्त फ़सल चक्र का भी एक प्रभावहीन तरीके से उपयोग हो रहा था। इस व्यवस्था के कारण मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा था और इसके परिणामस्वरूप अकाल पड़ने लगे थे। चारागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में भी कमी आ गई। दूसरी ओर जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी फलस्वरूप उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए। इस कारण गरीब लोगों का जीवन अत्यन्त मुश्किल हो गया। वहीं दूसरी ओर लॉर्ड अपनी आय को अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते थे।
यद्यपि भूमि के उत्पादन को बढ़ाना सम्भव नहीं था तीन वर्ग (215) इसलिए कृषकों को 'मेनर की जागीर' की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य होना पड़ता था और इस कार्य को करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय देना पड़ता था। कृषक इन अत्याचारों को चुपचाप सहते थे और खुलकर उनका विरोध नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने निष्क्रिय विरोध का सहारा लिया। वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और उस मेहनत से हुए उत्पादन का बड़ा भाग अपने लिए रखने लगे, साथ ही वे बेगार करने से बचते थे। उनका चारागाह और वन भूमि के कारण लॉर्डों से वाद-विवाद होने लगा। लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति समझते थे, जबकि कृषक इसको सम्पूर्ण समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली साझा सम्पदा मानते थे।
3. नयी कृषि प्रौद्योगिकी-ग्यारहवीं सदी में कृषि कार्य करने की विधियों में अनेक बदलाव आए, जो निम्नलिखित थे
(अ) लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग होने लगा।
प्रश्न 10.
11वीं शताब्दी में कृषि में आए विभिन्न प्रौद्योगिकी परिवर्तनों एवं उनके परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में परिवर्तन-मध्यकालीन यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में निम्नलिखित परिवर्तन हुए
(i) लोहे की भारी नोंक वाले हल एवं साँचेदार पटरे का उपयोग-मध्यकालीन यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषकों द्वारा लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग किया जाने लगा। यह हल अधिक गहराई तक खोद सकते थे और इससे भूमि में व्याप्त पौष्टिक तत्वों का अच्छा उपयोग होने लगा।
(ii) घोड़े के खुरों पर लोहे की नाल लगाना-घोड़ों के खुरों में लोहे की नाल लगाई जाने लगी, जिससे उनके खुर सुरक्षित रह सकें।
(iii) पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार-पशुओं को हल में जोतने के तरीकों में भी सुधार हुआ। गले के स्थान पर जुआ अब कन्धों पर बाँधा जाने लगा। इससे पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी।
(iv) कारखानों की स्थापना-अनाज को पीसने और अंगूरों से शराब बनाने के लिए जल और वायु शक्ति से चलने वाले कारखानों की स्थापना की गई।
(v) कृषि हेतु जल-शक्ति एवं वायु-शक्ति-कृषि हेतु जल-शक्ति एवं वायु-शक्ति का उपयोग बहुतायत से होने लगा।
(vi) भूमि के उपयोग के तरीकों में परिवर्तन-भूमि के उपयोग के तरीके में भी परिवर्तन आया। सबसे क्रान्तिकारी परिवर्तन था, दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था। इससे कृषक तीन वर्षों में दो वर्ष अपने खेतों का उपयोग कर सकते थे। अब वे एक खेत में शरद ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे। दूसरे खेत में बसन्त ऋतु में मटर, सेम और मसूर अथवा जौ और बाजरा बो सकते थे। तीसरा खेत परती यानि खाली रखा जाता था। प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल-बदलकर कर सकते थे। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन बढ़ा।
परिणाम-
कृषि प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों के निम्नलिखित परिणाम हुए
प्रश्न 11.
मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
मध्यकाल में यूरोप में नगरों का विकास-मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे
(i) कृषि क्षेत्र का विस्तार-रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके नगर बर्बाद हो गए। परन्तु ग्यारहवीं शताब्दी में जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहन करने में सक्षम हुई तो नगर अपने विकास के पथ पर पुनः अग्रसर हो गये।
(ii) कृषि उत्पादन में वृद्धि-कृषि क्षेत्र का विस्तार होने से कृषि उत्पादन में भी वृद्धि हुई। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न उत्पादित होता था उन्हें एक ऐसे स्थान की आवश्यकता अनुभव हुई, जहाँ वे अपना बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें तथा जहाँ वे फसलें बेचकर आवश्यक उपकरण, वस्त्र व शस्त्र आदि खरीद सकें।
इस आवश्यकता ने मियादी हाट व मेलों को जन्म दिया और छोटे विपणन केन्द्रों का विकास हुआ, जिनमें धीरे-धीरे नगरों के लक्षण विकसित होने लगे। नगर चौक, चर्च, सड़क, व्यापारियों के घर व दुकानों का निर्माण होने लगा। नगर प्रशासन के कार्यालय व कर्मचारी आदि का प्रबन्ध होने लगा। बड़े दुर्गों, बिशपों की जागीरों, बड़े चर्चों के चारों ओर नगरों का विकास होने लगा।
(iii) नगरों का स्वतंत्र जीवन-एक प्रसिद्ध कहावत है कि "नगरों की हवा स्वतंत्र बनाती है।" अपने लॉर्डों से स्वतंत्र होने के इच्छुक अनेक कृषि दास भागकर नगरों में छिपने लगे। उस काल की परम्परा के अनुसार कृषक दास एक वर्ष और एक दिन तक अपने लॉर्ड से यदि छिपा रहता था तो वह स्वतन्त्र माना जाता था। ऐसे लोग नगरों में रहकर अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करने लगे। व्यापारी, दुकानदार, साहूकार, वकील व चिकित्सक आदि भी नगरों में बसने लगे। उस समय एक नगर की जनसंख्या लगभग 30,000 तक होती थी। इस प्रकार नगरों के स्वतंत्र जीवन ने भी नगरों के विकास में सहयोग प्रदान किया।
(iv) नगरों में कृषक परिवारों के लोगों को कार्य मिलना-नगरों में कृषक परिवार के लोगों को वैतनिक कार्य मिलने से भी नगरों के विकास को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
(v) व्यापार एवं वाणिज्य का विकास-ग्यारहवीं शताब्दी के आते-आते विदेशी व्यापार बढ़ने लगा। नये-नये व्यापारिक मार्गों की खोज हो रही थी। पहले दस्तकार व्यापार हेतु एक मेनर से दूसरे मेनर जाते थे परन्तु अब उन्हें एक स्थान से व्यापार करने से सब आसान हो गया। वे अब एक सुविधाजनक स्थल पर बसकर वस्तुओं का उत्पादन कर सकते थे तथा अपने जीवनयापन के लिए व्यापार भी कर सकते थे। इस प्रकार व्यापार-वाणिज्य के विकास ने भी नगरों के विकास को प्रोत्साहन प्रदान किया।
प्रश्न 12.
चौदहवीं शताब्दी के संकट से आप क्या समझते हो? इसके लिए उत्तरदायी परिस्थितियों एवं परिणामों का उल्लेख भी कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी के संकट से आशय-चौदहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों को भीषण अकालों, मुद्रा की कमी व प्लेग की महामारी जैसे संकटों का सामना करना पड़ा, जिससे इस क्षेत्र का आर्थिक विकास मंद पड़ गया। इसे ही 'चौदहवीं शताब्दी का संकट' कहा गया। चौदहवीं शताब्दी के संकट के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के संकट के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं
(i) पर्यावरण सम्बन्धी परिवर्तन-तेरहवीं शताब्दी के अंत तक उत्तरी यूरोप में पिछली तीन शताब्दियों की तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया फलस्वरूप कृषि कार्य वाला मौसम घटने लगा था तथा कृषि भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया। तूफानों एवं बाढ़ों ने अनेक कृषि फार्मों को नष्ट कर दिया। उक्त समस्त कारणों से सरकार को करों के रूप में प्राप्त आय कम हो गयी।
(ii) भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षीण होना-गहन जुताई से तीन क्षेत्रीय फ़सल चक्र के बावजूद कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर हो गयी। उचित भू-संरक्षण के अभाव के कारण भूमि बंजर होने लगी, फलस्वरूप जंगलों व चारागाहों को कृषि भूमि में बदलना पड़ा। इससे चारागाहों की कमी हो गई। लाखों की संख्या में पशु भूख से मर गए।
(iii) जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना-मध्यकालीन यूरोप में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि दर्ज की गयी, जिससे उपलब्ध संसाधन कम पड़ने लगे जिसका तात्कालिक परिणाम अकाल के रूप में हमारे सामने आया। 1315 ई. से 1317 ई. के मध्य यूरोप में कई भयंकर अकाल पड़े। साथ ही 1320 ई. के दशक में असंख्य पशुओं की मौत हो गयी।
(iv) ब्यूबोनिक (ब्लैक डैथ) प्लेग का प्रकोप-बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी में व्यापार एवं वाणिज्य के विस्तार के कारण दूर देशों से व्यापार करने वाले जहाज यूरोप के तटों पर आने लगे। इन जलपोतों के आने के कारण ही अनेक चूहे भी आ गए, जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण भी लाए। 1347 से 1350 ई. के मध्य की अवधि में यूरोपीय समाज की 40 प्रतिशत जनसंख्या नष्ट हो गयी।
परिणाम-चौदहवीं शताब्दी के संकट के निम्नलिखित परिणाम हुए-
प्रश्न 13.
मध्यकालीन यूरोप में नए शक्तिशाली राज्यों के उदय एवं अभिजात वर्ग द्वारा किए गए विरोध का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में नए शक्तिशाली राज्यों का उदय (राजतंत्रों की स्थापना)-मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक स्तर पर परिवर्तन के साथ-साथ राजनीतिक स्तर पर भी परिवर्तन हुए। पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी के दौरान यूरोप में विभिन्न राज्यों के शासकों ने वित्तीय शक्ति के साथ-साथ अपनी सैनिक शक्ति में भी वृद्धि कर ली, फलस्वरूप उन्होंने कई नए-नए राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उनके द्वारा स्थापित व निर्मित राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के समान ही अपना महत्व रखते थे।
इसी कारण यूरोप के इतिहासकारों ने ऐसे शासकों को 'नए शासक' की संज्ञा दी। इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम, ऑस्ट्रिया में मैक्समिलन, फ्रांस में लुई ग्यारहवाँ तथा स्पेन में ईसाबेला व फर्डीनेंड ऐसे ही निरंकुश शासक थे। इन शासकों ने राष्ट्रीय स्थायी सेनाओं का गठन किया, स्थायी नौकरशाही की व्यवस्था की तथा राष्ट्रीय कर प्रणाली की स्थापना की। स्पेन और पुर्तगाल जैसे देशों ने यूरोप के समुद्रपारीय विस्तार की योजनाओं का निर्माण कर उनके क्रियान्वयन का प्रयास किया परिणामस्वरूप मध्यकालीन यूरोप में अनेक शक्तिशाली राज्यों की स्थापना हुई। यूरोप में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक-यूरोप में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे
(i) विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवर्तनों का होना-मध्यकालीन यूरोप में बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी के दौरान विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए, जिन्होंने यहाँ शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना में सहयोग प्रदान किया। जागीरदारी (वेसलेज) व सामन्तशाही (लॉर्डशिप) प्रथा के समापन एवं आर्थिक विकास की मंद गति ने इन शासकों को प्रभावशाली बनाया। इन सब बातों ने शासकों को जनसाधारण पर अपना नियंत्रण बढ़ाने का अवसर प्रदान किया। नए शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया। इसके स्थान पर बंदूकों व बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना तैयार की जो पूर्ण रूप से उनके नियंत्रण में थी। इन नए शासकों की शक्तिशाली सेनाओं के कारण अभिजात वर्ग भी इनका विरोध करने में असफल रहा।
(ii) करों में वृद्धि से शासकों के राजस्व में वृद्धि-करों में वृद्धि करने से शासकों को पर्याप्त राजस्व की प्राप्ति होने लगी। जिससे वे वित्तीय दृष्टि से सुदृढ़ होने लगे और अपनी सेना के लिए पर्याप्त सैन्य सामग्री खरीदकर उनका आकार भी बढ़ाने लगे। इन बढ़ी हुई सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा की एवं उनका विस्तार भी किया। सेना के सहयोग से उनके द्वारा राज्य में होने वाले आन्तरिक विद्रोहों का दमन करना भी आसान हो गया। अभिजात वर्ग का विरोध यूरोप में स्थापित नए शासकों को उनके द्वारा राज्य की शासन प्रणाली में किए गए परिवर्तनों के कारण उन्हें अभिजात वर्ग का विरोध भी झेलना पड़ा। अभिजात वर्ग ने सत्ता के केन्द्रीकरण का पुरजोर विरोध किया।
कर प्रणाली से भी अभिजात वर्ग में असंतोष उत्पन्न हो गया फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए जिनका दमन कर दिया गया। उदाहरण के रूप में इंग्लैण्ड में 1497 ई., 1536 ई. व 1547 ई., 1549 ई. व 1553 ई. में राजसत्ता के विरुद्ध हुए विद्रोहों का दमन कर दिया गया। फ्रांस में भी लुई XI को ड्यूक लोगों व राजकुमारों से एक लम्बे समय तक संघर्ष करना पड़ा। छोटी श्रेणी के अभिजातों एवं स्थानीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपने अधिकारों के बलपूर्वक छीने जाने का विरोध किया। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में हुए धर्मयुद्ध भी एक सीमा तक शाही सुविधाओं व क्षेत्रीय स्वतन्त्रता के मध्य संघर्ष थे।
प्रश्न 14.
मध्यकालीन यूरोपीय नये शासकों के साथ अभिजात वर्ग के सम्बन्धों को बताइए। यूरोप में हुए राजनीतिक परिवर्तनों का इंग्लैण्ड व फ्रांस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय नये शासकों के साथ अभिजात वर्ग के सम्बन्ध-मध्यकालीन यूरोपीय नये शासकों ने अभिजात वर्ग के कई अधिकार छीन लिए फलस्वरूप उनमें विद्रोह की भावना उत्पन्न हो गयी, जिनका इन शासकों द्वारा दमन कर दिया गया। मध्यकालीन यूरोपीय शासकों के साथ अभिजात वर्ग के सम्बन्धों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
(i) अभिजात वर्ग द्वारा कूटनीति का प्रयोग-अभिजात वर्ग द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कूटनीति से काम लिया गया। उन्होंने नई शासन व्यवस्था का स्पष्टतः विरोधी बनने की अपेक्षा अपने को राजभक्त होने का दिखावा किया। इसी कारण शाही निरंकुशता को सामंतवाद का सुधरा हुआ रूप माना जाता है।
(ii) लॉर्डों का अभी भी राजनीतिक इतिहास पर प्रभावशाली होना-वास्तविक रूप से देखा जाए तो सामंती प्रथा के शासक (लॉर्ड) अभी भी प्रभावशाली बने हुए थे। उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान दिये गये, परन्तु नवीन शासन व्यवस्था कई तरीकों में सामंती प्रथा से अलग थी। अब शासक उस. पिरामिड के शिखर पर नहीं था, जहाँ राजभक्ति, आपसी विश्वास एवं निर्भरता पर आधारित थी। अब वह एक व्यापक दरबारी तंत्र का एक केन्द्र बिन्दु होने के साथ-साथ अपने अनुयायियों को भी आश्रय देने वाला था।
(iii) राजतंत्रों द्वारा सत्ता में भाग लेने वाले व्यक्तियों से सहयोग प्राप्त करना-सभी प्रकार के राजतंत्र चाहे वे कितने भी कमजोर हों अथवा शक्तिशाली, सत्ता में भाग लेने वाले समस्त व्यक्तियों का सहयोग चाहते थे। धन इस प्रकार के सहयोग को सुनिश्चित करने का साधन बन गया। समर्थन धन के माध्यम से दिया अथवा लिया जा सकता था। अतः धन गैर-अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों एवं साहूकारों के लिए राजदरबार में प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे शासकों को धन उधार देते थे, जो इसका उपयोग सैनिकों को वेतन देने में करते थे। इस प्रकार शासकों ने अपनी शासन व्यवस्था में गैर-सामंती तत्वों को भी स्थान प्रदान कर दिया। राजनीतिक परिवर्तनों का इंग्लैण्ड पर प्रभाव-इंग्लैण्ड पर नॉरमनों की विजय से पहले यहाँ एंग्लो-सैक्सन लोगों की एक महान परिषद् होती थी। इंग्लैण्ड के शासक को अपनी प्रजा पर कर लगाने से पूर्व इस परिषद् की सलाह लेनी पड़ती थी।
यह परिषद् कालान्तर में संसद (पार्लियामेंट) के रूप में विकसित हुई, जिसके दो सदन थे-
(i) हाउस ऑफ लार्ड्स तथा
(ii) हाउस ऑफ कॉमन्स। हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य लॉर्ड एवं पादरी होते थे तथा हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते थे। इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम (1629-40) ने संसद का अधिवेशन बिना बुलाए 11 वर्षों तक शासन किया। एक बार उसे धन की आवश्यकता पड़ी तो उसे मजबूरी में संसद का अधिवेशन बुलाना पड़ा। अधिवेशन के दौरान संसद के एक भाग ने उसका विरोध किया। कुछ समय पश्चात् सम्राट चार्ल्स को मृत्युदण्ड दे दिया गया तथा गणतंत्र की स्थापना की गई लेकिन यह व्यवस्था अधिक समय तक न चल सकी। इंग्लैण्ड में पुनः राजतंत्र की स्थापना हो गयी। परन्तु इस शर्त पर कि अब पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जायेगी।
राजनीतिक परिवर्तनों का फ्रांस पर प्रभाव-
1614 ई. में फ्रांस में बालक शासक लुई XIII के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा का, जिसे एस्टेट्स जनरल के नाम से जाना जाता था, का एक अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदन थे जो फ्रांसीसी समाज के तीन वर्गों, यथा-पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग एवं अन्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। एस्टेट्स जनरल के इस अधिवेशन के पश्चात् दो सदियों, 1789 ई. तक इस अधिवेशन को फिर से नहीं बुलाया गया क्योंकि, फ्रांस के राजा अपनी शक्तियों को तीनों वर्गों-पादरी, अभिजात व अन्य में बाँटना नहीं चाहते थे।
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
दिए गए विश्व के रेखा मानचित्र में निम्न को दर्शाइए
उत्तर:
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
सौ वर्षीय युद्ध में कौन-कौन से देश शामिल थे-
(क) टर्की और आस्ट्रिया
(ख) जर्मनी और रूस
(ग) इंग्लैण्ड और फ्रांस
(घ) फिलिस्तीन और इजराइल।
उत्तर:
(ग) इंग्लैण्ड और फ्रांस
प्रश्न 2.
'मैं ही राज्य हूँ।' किसका कथन था.
(क) फ्रांस के लुई चौदहवें का
(ख) इंग्लैण्ड के जेम्स द्वितीय का
(ग) फ्रांस के नेपोलियन का
(घ) जर्मनी के हिटलर का।
उत्तर:
(क) फ्रांस के लुई चौदहवें का
प्रश्न 3.
उस देश का नाम बताइए जिसने स्पेन के गृह-युद्ध में हस्तक्षेप नहीं किया
(क) इटली
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) रूस
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ख) इंग्लैण्ड
प्रश्न 4.
लॉर्ड को मिल, शराब की भट्टी और बेकरी का उपयोग करने के लिए जो शुल्क अदा किया जाता था, उसे कहा जाता था
(क) गैबेल
(ख) तवकल
(ग) कर्वी
(घ) कवाविले।
उत्तर:
(क) गैबेल