RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

Rajasthan Board RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1. 
पैगम्बर के कथनों एवं कृत्यों का अभिलेख कहलाता है
(क) हदीथ 
(ख) सिरा 
(ग) इस्नाद
(घ) तफ़सीर
उत्तर:
(क) हदीथ 

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.  

प्रश्न 2. 
निम्न में से किस वर्ष पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक (रसूल) घोषित किया था?
(क) 520 ई. 
(ख) 612 ई. 
(ग) 622 ई.
(घ) 661 ई.। 
उत्तर:
(ख) 612 ई. 

प्रश्न 3. 
पैगम्बर मुहम्मद का मक्का से मदीना को प्रस्थान कहलाता है।
(क) तीर्थयात्रा 
(ख) सलत 
(ग) रसूल 
(घ) हिजरा। 
उत्तर:
(घ) हिजरा। 

प्रश्न 4. 
निम्न में से प्रथम खलीफा थे
(क) अबू बकर 
(ख) अली 
(ग) मुहम्मद 
(घ) उमर। 
उत्तर
(क) अबू बकर 

प्रश्न 5. 
उमय्यद वंश की स्थापना की थी-
(क) अबू अली ने 
(ख) मुआविया ने 
(ग) आयशा ने 
(घ) उथमान ने। 
उत्तर:
(ख) मुआविया ने 

प्रश्न 6. 
अब्बासी खिलाफत की राजधानी थी-
(क) मक्का 
(ख) मदीना 
(ग) दमिश्क 
(घ) बगदाद। 
उत्तर:
(घ) बगदाद। 

प्रश्न 7. 
मुसलमानों का पवित्र ग्रन्थ कहलाता है
(क) कुरान शरीफ़ 
(ख) रामायण 
(ग) गजल 
(घ) फलसिफा। 
उत्तर:
(क) कुरान शरीफ़ 

प्रश्न 8. 
अल-कानून फिल तिब (चिकित्सा के सिद्धान्त) नामक पुस्तक के लेखक थे
(क) रुदकी 
(ख) मुहम्मद 
(ग) इब्नसिना 
(घ) अबु नुवास। 
उत्तर:
(ग) इब्नसिना 

प्रश्न 9. 
प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ अनसब अल-अशरफ (सामंतों की वंशावलियाँ) के लेखक थे
(क) बालाधुरी 
(ख) इब्नसिना 
(ग) मुकदसी 
(घ) इब्न नदीम। 
उत्तर:
(क) बालाधुरी 

प्रश्न 10. 
इस्लाम में सुन्दर लिखने की कला कहलाती है
(क) अरबेस्क  
(ख) खुशनवीसी 
(ग) इवान 
(घ) इमाम।
उत्तर:
(ख) खुशनवीसी 

अतिलघूत्तरीय प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
इस्लामी क्षेत्रों के 600 ई. से 1200 ई. तक के इतिहास के कोई चार स्रोत लिखिए।
उत्तर:

  1. तवारीख़ (इतिवृत्त)
  2. सिरा (जीवन चरित)
  3. हदीथ (पैगम्बर के कथनों एवं कृत्यों के अभिलेख)
  4. तफ़सीर (कुरान की टीकाएँ)।

प्रश्न 2. 
अधिकांश ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाएँ किस भाषा में हैं? 
उत्तर:
अरबी भाषा में। 

प्रश्न 3. 
इतिवृत्तों के अतिरिक्त किन-किन स्रोतों से इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है? 
उत्तर:

  1. कानूनी पुस्तकें
  2. भूगोल
  3. यात्रा वृत्तांत
  4. साहित्यिक रचनाएँ। 

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

प्रश्न 4. 
वास्तविक रूप से इस्लाम के इतिहास के ग्रन्थ लिखे जाने का कार्य कब व किसने प्रारम्भ किया? 
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी व नीदरलैण्ड के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने। 

प्रश्न 5. 
इग्नाज़ गोल्डज़िहर कौन था?
उत्तर:
यह एक हंगरी का यहूदी था जिसने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून एवं धर्म विज्ञान के बारे में पुस्तकें लिखीं। 

प्रश्न 6. 
इस्लाम का मूल क्या था?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद ने एक ईश्वर अर्थात् अल्लाह की पूजा करने का एवं आस्तिकों के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया। यही इस्लाम का मूल था।

प्रश्न 7. 
पैगम्बर मुहम्मद कौन थे? 
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद एक सौदागर थे। इन्होंने इस्लाम धर्म की स्थापना की थी। 

प्रश्न 8. 
अरब लोगों के कबीलों का नेतृत्व करने वाला क्या कहलाता था? 
उत्तर:
शेख। 

प्रश्न 9. 
अरब में कबीले किसकी पूजा करते थे? 
उत्तर:
बुतों की। 

प्रश्न 10. 
पैगम्बर मुहम्मद का सम्बन्ध किस कबीले से था? 
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद का सम्बन्ध कुरैश कबीले से था। 

प्रश्न 11. 
काबा क्या था?
उत्तर:
'काबा' मक्का में स्थित एक घनाकार ढाँचा था। यह मक्का का मुख्य पवित्र स्थल था। मक्का के बाहर के कबीले भी काबा को पवित्र मानते थे और इसमें अपने भी बुत रखते थे।

प्रश्न 12. 
पैगम्बर मुहम्मद द्वारा दी गयी किन्हीं दो शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:

  1. नियमित रूप से केवल अल्लाह की पूजा करनी चाहिए। 
  2. नैतिक सिद्धान्त जैसे खैरात बाँटना, चोरी न करना आदि का पालन करना चाहिए। 

प्रश्न 13.
पैगम्बर मुहम्मद ने अपना क्या उद्देश्य बताया? 
उत्तर:
आस्तिकों के एक ऐसे समाज की स्थापना करना जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के द्वारा आपस में जुड़े हुए हों। 

प्रश्न 14. 
हिजरा क्या है?
उत्तर:
622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना जाने के लिए बाध्य होना पड़ा था। पैगम्बर की इस यात्रा को हिजरा कहा जाता है।

प्रश्न 15. 
हिजरी सन् की शुरुआत कब हुई? 
उत्तर:
622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद मदीना पहुँचे, उसी वर्ष से हिजरी सन् की शुरुआत हुई। 

प्रश्न 16. 
हिजरी वर्ष सौर वर्ष से कितने दिन कम होता है? 
उत्तर:
11 दिन। 

प्रश्न 17. 
पैगम्बर मुहम्मद ने अपने समुदाय की सदस्यता के लिए किसे एकमात्र कसौटी माना? 
उत्तर:
धर्मांतरण को। 

प्रश्न 18. 
पैगम्बर मुहम्मद से प्रभावित होकर किस कबीले ने अपना धर्म बदल लिया था? 
उत्तर:
बदुओं ने। 

प्रश्न 19. 
उभरते हुए इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी कौन-सी थी? 
उत्तर:
मदीना। 

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प्रश्न 20. 
उभरे हुए इस्लामी राज्य का धार्मिक केन्द्र कौन-सा था? 
उत्तर:
मक्का

प्रश्न 21. 
पैगम्बर मुहम्मद का देहांत कब हुआ? 
उत्तर:
632 ई. में। 

प्रश्न 22. 
पैगम्बर मुहम्मद के देहांत के बाद इस्लामी सत्ता की बागडोर किसको हस्तान्तरित हो गयी? 
उत्तर:
उम्मा को। 

प्रश्न 23. 
पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् सबसे बड़ा नव परिवर्तन क्या हुआ था? 
उत्तर:
खिलाफ़त की संस्था का निर्माण। 

प्रश्न 24. 
खिलाफ़त की संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के किसी निश्चित नियम के अभाव में इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई जिसके फलस्वरूप खिलाफ़त संस्था का निर्माण हुआ।

प्रश्न 25. 
खिलाफ़त के कोई दो उद्देश्य लिखिए। 
उत्तर:

  1. कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना। 
  2. राज्य के लिए संसाधन जुटाना। 

प्रश्न 26. 
पहला खलीफा कौन था? 
उत्तर:
अबू बकर। 

प्रश्न 27. 
किस खलीफा ने उम्मा के सत्ता के विस्तार की नीति को रूप प्रदान किया था? 
उत्तर:
द्वितीय खलीफ़ा उमर ने। 

प्रश्न 28. 
बाइजेंटाइन साम्राज्य ने किस मत को बढ़ावा दिया? 
उत्तर:
ईसाई मत को। 

प्रश्न 29. 
ससानी साम्राज्य ने किस धर्म को संरक्षण प्रदान किया? 
उत्तर:
ईरान के प्राचीन धर्म ज़रश्रुष्ट को। 

प्रश्न 30. 
बाइजेंटाइन व ससानी साम्राज्यों के खिलाफ अभियानों में अरबों की सफलता के क्या कारण थे? 
उत्तर:

  1. अरबों की उपयुक्त सामरिक नीति 
  2. विरोधियों की कमजोरियाँ 
  3. अरबों में धार्मिक जोश। 

प्रश्न 31. 
प्रारम्भिक इस्लामी राज्य के शासन में किन लोगों का बोलबाला था? 
उत्तर:
मक्का के कुरैश लोगों का। 

प्रश्न 32. 
अली की हत्या के पश्चात् कौन खलीफ़ा बना? 
उत्तर:
मुआविया। 

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प्रश्न 33. 
मुआविया को किस वर्ष खलीफ़ा घोषित किया गया? 
उत्तर:
661 ई. में। प्रश्न 34. मुआविया ने किस वंश की स्थापना की? 
उत्तर:
उमय्यद वंश की।

प्रश्न 35. 
अब्द-अल-मलिक ने अरब-इस्लामी पहचान के विकास के लिए कौन-कौन से कार्य किए? किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया, 
  2. अरबी भाषा में लिखित इस्लामी सिक्के जारी किए। 

प्रश्न 36. 
जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक का निर्माण किसने करवाया? 
उत्तर:
अब्द अल-मलिक ने। 

प्रश्न 37
किस वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण की सफलता के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी? 
उत्तर:
उमय्यद वंश को। 

प्रश्न 38. 
अब्बासी कहाँ के निवासी थे? 
उत्तर:
मक्का के। 

प्रश्न 39. 
अब्बासी कौन थे? 
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज।

प्रश्न 40. 
अब्बासियों ने किस प्रकार सत्ता प्राप्त की?
उत्तर:
अब्बासियों ने लोगों को यह कहा कि पैगम्बर के परिवार का कोई मसीहा उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्ति प्रदान करवायेगा।

प्रश्न 41. 
अब्बासी शासन के अन्तर्गत किस संस्कृति का प्रभाव बढ़ गया? उत्तर-ईरानी संस्कृति का। 

प्रश्न 42. 
अब्बासियों ने अपनी राजधानी कहाँ स्थापित की? 
उत्तर:
बगदाद में। 

प्रश्न 43. 
अब्बासी शासन की दूसरी राजधानी का नाम बताइए। 
उत्तर:
समारा। 

प्रश्न 44. 
अब्बासी वंश की सत्ता को समाप्त करके किस वंश ने अपनी सत्ता स्थापित की? 
उत्तर:
ईरान के बुवाही शिया वंश ने। 

प्रश्न 45. 
फ़ातिमी राजवंश के लोग कौन थे? 
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज। 

प्रश्न 46. 
फ़ातिमी खिलाफत की किन्हीं दो उपलब्धियों का नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. मिस्र पर विजय प्राप्त करना
  2. शिया कवियों व विद्वानों को आश्रय प्रदान करना। 

प्रश्न 47. 
फ़ातिमी खिलाफत की नयी राजधानी कौन-सी थी? 
उत्तर:
काहिरा। 

प्रश्न 48.
तुर्क कौन थे?
उत्तर:
तुर्क तुर्किस् तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे। ये वीर योद्धा एवं कुशल घुड़सवार थे।

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प्रश्न 49. 
गजनी सल्तनत की स्थापना कब व किसने की? 
उत्तर:
961 ई. में अल्पतिगिन ने। 

प्रश्न 50. 
निशापुर को किसने अपनी राजधानी बनाया? 
उत्तर:
सल्जुक तुर्कों ने। 

प्रश्न 51. 
तुगरिल बेग की उपलब्धियों को बताइए। 
उत्तर:
इनके नेतृत्व में सल्जुक तुर्कों ने गजनी पर विजय प्राप्त की तथा बगदादं पर भी अधिकार कर लिया। 

प्रश्न 52. 
ईश्वरीय शांति (पीस ऑफ गॉड) आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
सामन्ती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई समाज से हटाकर ईश्वर के शत्रुओं की ओर मोड़ देने वाले आन्दोलन को ईश्वरीय शांति आन्दोलन कहा गया।

प्रश्न 53. 
सल्जुक साम्राज्य का विघटन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
1092 ई. बगदाद के सल्जुक सुल्तान मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् सल्जुक साम्राज्य का विघटन हो गया।

प्रश्न 54. 
धर्मयुद्ध कब व किनके मध्य हुए? 
उत्तर:
1095 से 1291 ई. की समयावधि में मुसलमानों व ईसाइयों के मध्य धर्मयुद्ध हुए।

प्रश्न 55. धर्मयुद्धों के कोई दो कारण बताइए। 
उत्तर:

  1. मुसलमानों द्वारा ईसाइयों के पवित्र स्थल जेरूसलम पर अधिकार करना। 
  2. ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य शत्रुता होना। 

प्रश्न 56. 
ईसाइयों और मुसलमानों के मध्य प्रथम धर्म युद्ध कब हुआ? 
उत्तर:
1098-99 ई. में। 

प्रश्न 57. 
प्रथम धर्मयुद्ध का क्या परिणाम निकला? 
उत्तर:
फ्रांस व इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक व जेरूसलम पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 58. 
आउटरैमर (समुद्रपारीय भूमि) से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रथम धर्मयुद्ध के दौरान ईसाइयों ने सीरिया व फिलिस्तीन के क्षेत्र में जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से आउटरैमर (समुद्रपारीय भूमि) कहा गया।

प्रश्न 59. 
दूसरा धर्मयुद्ध कब हुआ? 
उत्तर:
1145 से 1149 ई. के मध्य।

प्रश्न 60. दूसरा धर्म युद्ध क्यों हुआ? 
उत्तर:
1144 ई. में तुर्कों द्वारा एडेस्सा पर अधिकार कर लिया तो पोप ने दूसरे धर्मयुद्ध की अपील की। 

प्रश्न 61.
तीसरा धर्म युद्ध कब व क्यों हुआ? 
उत्तर:
जब मुसलमानों ने जेरूसलम पर अधिकार कर लिया तो 1189 ई. में तीसरा धर्मयुद्ध प्रारम्भ हुआ। 

प्रश्न 62. 
फ्रैंक कौन थे? उत्तर-फ्रैंक धर्मयुद्धों में विजय प्राप्त करने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे जो फिलिस्तीन व सीरिया में बस गये थे। 

प्रश्न 63. 
इस्लामी राज्य में नए जीते गए क्षेत्रों में बसे हुए लोगों का प्रमुख व्यवसाय क्या था? 
उत्तर:
कृषि। 

प्रश्न 64. 
इस्लामी राज्य में किन-किन नयी फसलों की कृषि की गई? 
उत्तर:

  1. कपास
  2. संतरा
  3. केला
  4. तरबूज
  5. पालक
  6. बैंगन। 

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प्रश्न 65. 
इस्लामी राज्य के चार फौजी शहरों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. कुफा (इराक)
  2. बसरा (इराक)
  3. फुस्तात (मिस्र)
  4. काहिरा (मिस्र)। 

प्रश्न 66. 
इस्लामी राज्य में नए शहरों की स्थापना का क्या उद्देश्य था? 
उत्तर:
अरब सैनिकों को बसाना। 

प्रश्न 67. 
इजिप्ट का अरबी नाम क्या था? 
उत्तर:
मिस्र।

प्रश्न 68. 
इस्लामी साम्राज्य में मस्जिद अल-जामी क्या थी?
उत्तर:
मस्जिद अल-जामी इस्लामी शहरों के केन्द्र में स्थित एक प्रमुख मस्जिद होती थी, जहाँ सामूहिक नमाज़ पढ़ी जाती थी।

प्रश्न 69. 
सिनेगोग क्या थे? उत्तर-इस्लामी शहरों में स्थित यहूदी प्रार्थनाघरों को सिनेगोग कहा जाता था।

प्रश्न 70. 
गेनिज़ा के एक पत्र से प्रेरित होकर किस भारतीय ने अपनी पुस्तक 'इन एन एंटीक लैंड' में एक भारतीय दास की कहानी प्रस्तुत की?
उत्तर:
अमिताभ घोष ने। 

प्रश्न 71. 
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान क्या था? 
उत्तर:
अदायगी एवं व्यापार सम्बन्ध के श्रेष्ठ तरीकों का विकास। 

प्रश्न 72. 
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारियों को क्या लाभ प्राप्त हुआ?
उत्तर:
व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई जिससे उनकी यात्राएँ भी अधिक सुरक्षित हो गयीं।

प्रश्न 73. 
मध्यकालीन मुस्लिम समाज की तस्वीर किन कहानियों में मिलती है? 
उत्तर:
एक हज़ार एक रातें (अलिफ लैला व लैला) की कहानियों में। 

प्रश्न 74. 
सुन्ना क्या है? 
उत्तर:
पैगम्बर का आदर्श व्यवहार सुन्ना कहलाता है।

प्रश्न 75. 
धार्मिक विद्वानों के लिए ईश्वर की इच्छा को जानने का एकमात्र तरीका क्या है? 
उत्तर:

  1. कुरान से प्राप्त ज्ञान (इल्म)
  2. पैगम्बर का आदर्श व्यवहार (सुन्ना)। 

प्रश्न 76. 
आठवीं और नवीं शताब्दियों में कानून की कौन-कौन सी शाखाएँ थीं? 
उत्तर:

  1. मलिकी
  2. हनफी
  3. शफीई
  4. हनबली। 

प्रश्न 77.
मुस्तनसिरिया मदरसे की स्थापना कब हुई? 
उत्तर:
1233 ई. में। 

प्रश्न 78. 
कुरान शरीफ़ क्या है?
उत्तर:
मुस्लिम सम्प्रदायों के अनुसार कुरान-शरीफ़ उन संदेशों (रहस्योद्घाटन) का संग्रह है, जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद को 610 से 632 ई. के मध्य की अवधि में दिए थे।

प्रश्न 79. 
कुरान शरीफ़ की रचना किस भाषा में की गयी? 
उत्तर:
अरबी भाषा में। 

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प्रश्न 80. 
कुरान शरीफ़ कितने अध्यायों में विभाजित है? 
उत्तर:
114 अध्यायों में। 

प्रश्न 81. 
सूफ़ी किसे कहा जाता था? 
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों के समूह को सूफ़ी कहा जाता था। प्रश्न 82. सूफी मत के कोई दो सिद्धान्तों का नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. खुदा पर भरोसा करना 
  2. संसार का त्याग करना। 

प्रश्न 83. 
बयाज़िद बिस्तामी कौन था? उत्तर-यह एक ईरानी सूफी था जिसने सर्वप्रथम अपने आपको खुदा में लीन करने का उपदेश दिया था। प्रश्न 84. सूफी संगीत समारोहों का उपयोग क्यों करते थे?
उत्तर:
सूफ़ी आनंद उत्पन्न करने और प्रेम तथा भावावेश जाग्रत करने के लिए संगीत समारोहों (समा) का उपयोग करते थे।

प्रश्न 85. 
किसने यूनानी दर्शन और विज्ञान के प्रभाव में ईश्वर और विश्व की एक वैकल्पिक कल्पना विकसित की?
उत्तर:
इस्लामी दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने। प्रश्न 86. अब्द-अल-लतीफ़ कौन था? 
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी के बगदाद के कानून और चिकित्सा विषय के विद्वान। 

प्रश्न 87. 
अब्द-अल-लतीफ के अनुसार आदर्श विद्यार्थी को किन दो शिक्षाओं को ग्रहण करना चाहिए? उत्तर:

  1. प्रत्येक विषय के ज्ञान के लिए अपने शिक्षकों का सहयोग लेना।
  2. अपने शिक्षकों का सम्मान करना। 

प्रश्न 88. इब्नसिना कौन था? 
उत्तर:
एक प्रसिद्ध अरबी चिकित्सक व दार्शनिक था। 

प्रश्न 89. 
इनसिना द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए। 
उत्तर:
अल-कानून फिल तिब (चिकित्सा के सिद्धान्त)। 

प्रश्न 90. 
अदब' का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अदब का अर्थ है-साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिष्कार। अदबरूपी की अभिव्यक्तियों में गद्य व पद्य दोनों सम्मिलित थे।

प्रश्न 91. 
इस्लाम-पूर्व काल की सबसे लोकप्रिय रचना का नाम लिखिए। उत्तर-संबोधन गीत (कसीदा)। 

प्रश्न 92. 
नयी फ़ारसी कविता का जनक कौन था? 
उत्तर:
रूदकी।

प्रश्न 93. 
उमर खय्याम कौन था? 
उत्तर:
उमर खय्याम एक प्रसिद्ध फ़ारसी साहित्यकार, खगोल वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ था। 

प्रश्न 94. 
शाहनामा का रचयिता कौन था? 
उत्तर:
फिरदौसी। 

प्रश्न 95. 
कलीला व दिमना किस भारतीय ग्रन्थ का अरबी अनुवाद है? 
उत्तर:
पंचतंत्र का। 

प्रश्न 96.
तहकीक मा लिल-हिंद नामक पुस्तक के लेखक कौन थे? 
उत्तर:
अल्बरूनी। 

प्रश्न 97. 
इस्लामी जगत की मस्जिदों की बुनियादी पहचान क्या थी? 
उत्तर:
मेहराब, गुम्बद, मीनार व खुले सहन (आँगन)। 

प्रश्न 98. 
किस वंश के शासकों ने नखलिस्तानों में मरुस्थली महल बनाए थे? उत्तर-उमय्यद वंश के शासकों ने। प्रश्न 99. उमय्यद वंश के शासकों द्वारा बनाये गये दो नखलिस्तानी मरुस्थली महलों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. फिलिस्तीन में खिरबत-अल-मफजर महल। 
  2. जार्डन में कुसाईर अमरा महल। 

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प्रश्न 100. 
इस्लाम में कला के किन दो रूपों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ? 
उत्तर:

  1. खुशनवीसी (सुंदर लिखने की कला)
  2. अरबेस्क (ज्यामितीय और वनस्पतीय डिजाइन)। 

प्रश्न 101.
इस्लामी इतिहास में मानव सभ्यता के तीन पहलुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. धर्म, 
  2. समुदाय, 
  3. राजनीति। 

लघूत्तरीय प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1. 
अधिकांश ऐतिहासिक एवं अर्ध ऐतिहासिक इस्लामी रचनाएँ किन-किन भाषाओं में लिखी गयीं? ये क्या जानकारियाँ प्रदान करती हैं?
उत्तर:
अधिकांश ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में लिखी गयीं। इनमें सर्वोत्तम कृति तबरी कृत तारीख़ है जिसका 38 खण्डों में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। फारसी भाषा में लिखी गयी रचनाओं में ईरान व मध्य एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। सीरिया में लिखे ईसाई वृत्तांत और भी कम हैं। लेकिन इनसे प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

प्रश्न 2. 
अरब कबीलों के संगठन के बारे में बताइए।
उत्तर:
अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था जिसका चुनाव कुछ हद तक पारिवारिक सम्बन्धों के आधार पर लेकिन अधिकांशतया व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता एवं उदारता के आधार पर किया जाता था।

प्रश्न 3. 
इस्लाम धर्म के उदय से पूर्व काबा के बारे में दो पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
काबा मक्का में स्थित एक घनाकार ढाँचा है। यह मक्का का प्रमुख पवित्र स्थल है। इस्लाम धर्म के उदय से पूर्व इसमें बुत रखे हुए थे। मक्का एवं मक्का के बाहर के कबीले भी काबा को पवित्र मानते थे, वे इसमें अपने बुत भी रखते थे और प्रत्येक वर्ष यहाँ की धार्मिक यात्रा (हज) भी करते थे।

प्रश्न 4. 
मक्का शहर का महत्व क्यों बढ़ गया? अथवा मक्का शहर क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:

  1. मक्का शहर अपने पवित्र स्थल काबा के लिए विख्यात था। लोग प्रत्येक वर्ष इस इबादतगाह की. धार्मिक यात्रा करते थे।
  2. यह शहर यमन व सीरिया के मध्य व्यापारिक मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था। 

प्रश्न 5. 
खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद को क्या आदेश दिया था?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद ने लगभग 612 ई. में अपने आपको खुदा का संदेश वाहक (रसूल) घोषित किया, जिन्हें यह प्रचार करने का आदेश दिया गया था कि 

  1. केवल अल्लाह की ही पूजा की जानी चाहिए।
  2. उन्हें आस्तिकों के एक ऐसे समाज की स्थापना करनी है जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हों।

प्रश्न 6. 
पैगम्बर मुहम्मद के धर्म सिद्धान्तों को स्वीकार करने वाले लोग क्या कहलाए? उन्हें किन दो बातों का आश्वासन प्रदान किया जाता था?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के धर्म सिद्धान्त को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान कहलाए। उन्हें कयामत के दिन मुक्ति और धरती पर रहते हुए समाज के संसाधनों में से हिस्सा देने का आश्वासन प्रदान किया जाता था।

प्रश्न 7. 
मक्का में मुसलमानों को किन-किन लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा और क्यों?
उत्तर:
मक्का में मुसलमानों को समृद्ध लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने देवी-देवताओं का ठुकराया जाना बुरा लगा था। इसके अतिरिक्त वे नए धर्म (मुस्लिम) को मक्का की प्रतिष्ठा व समृद्धि के लिए खतरा मानते थे।

प्रश्न 8. 
हिजरा से क्या आशय है? मुस्लिम सभ्यता के इतिहास में इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
622 ई. में मक्का के प्रबुद्ध लोगों के विरोध के कारण पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। पैगम्बर की इस यात्रा को हिजरा के नाम से जाना जाता है। पैगम्बर मुहम्मद जिस वर्ष मदीना पहुँचे उसी वर्ष से हिजरी सन् (मुस्लिम कैलेण्डर) की शुरुआत मानी जाती है।

प्रश्न 9. 
किसी धर्म का जीवित रहना किस बात पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी धर्म का जीवित रहना उस पर विश्वास करने वाले लोगों के जीवित रहने पर निर्भर करता है। इन लोगों को आंतरिक रूप से मजबूत बनाकर उन्हें बाहरी संकटों से भी बचाना आवश्यक होता है। इसके लिए राज्य व सरकार जैसी संस्थाओं की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 10. 
पैगम्बर मुहम्मद एक धार्मिक प्रचारक और राजनैतिक नेता के रूप में किस प्रकार प्रतिष्ठित हुए?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के अनुयायी कृषि और व्यापार से प्राप्त होने वाले राजस्व तथा इसके अलावा खैरात-कर (ज़कात) से जीवन यापन करते थे। इसके अलावा वे मक्का के काफिलों और निकट के नखलिस्तानों (हरे-भरे क्षेत्र) पर छापे मारकर लूट करते थे। इन छापों से मक्का के लोगों में प्रतिक्रिया हुई और मदीना के यहूदियों के साथ दरार उत्पन्न हो गयी। मक्का को जीत लिया गया तथा एक धार्मिक प्रचारक और राजनैतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गयी।

प्रश्न 11. 
पैगम्बर मुहम्मद ने किन-किन तरीकों से मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की? 
उत्तर:

  1. पैगम्बर मुहम्मद ने मुसलमानों के समुदाय को आंतरिक रूप से सुदृढ़ बनाया। 
  2. उन्हें बाहरी खतरों से सुरक्षा प्रदान की। 
  3. मदीना शहर में चल रहे आपसी तनाव का समाधान किया। 
  4. उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदला। 

प्रश्न 12.
पैगम्बर मुहम्मद के देहांत के बाद राजनैतिक सत्ता 'उम्मा' को क्यों अंतरित कर दी गयी?
उत्तर:
सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद के देहांत के बाद कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। इसके परिणामस्वरूप उनकी राजनैतिक सत्ता, उत्तराधिकार के किसी सुस्थापित सिद्धांत के अभाव में उम्मा को अंतरित कर दी गयी।

प्रश्न 13.
खलीफा उथमान की हत्या क्यों कर दी गई?
उत्तर:
उथमान तीसरा खलीफ़ा था। वह एक कुरैश था। सत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए उसने प्रशासन में कुरैश कबीले के लोगों को अनेक पद प्रदान कर दिए थे जिससे अन्य कबीले नाराज हो गये। उनका मिस्र, इराक व मदीने में भी विरोध बढ़ गया, फलस्वरूप उनकी हत्या कर दी गई।

प्रश्न 14. 
इस्लाम का दो सम्प्रदायों में विभाजन क्यों हुआ? ये सम्प्रदाय कौन-कौन से थे? 
उत्तर:
खलीफा अली ने अपने शासनकाल में मक्का के अभिजात तंत्र का नेतृत्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इससे मुसलमानों के मध्य में दरार पड़ गई और इस्लाम दो सम्प्रदायों में विभाजित हो गया। इन सम्प्रदायों को शिया और सुन्नी के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 15. 
अब्द अल-मलिक कौन था? उसने क्या कार्य किए? 
उत्तर:
अब्द अल-मलिक उमय्यद वंश का एक शासक था। उसने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया तथा इस्लामी सिक्के भी जारी किए जिन पर अरबी भाषा में लिखा होता था। इसने जेरूसलम में 'डोम ऑफ रॉक' का भी निर्माण करवाया।

प्रश्न 16. 
'डोम ऑफ रॉक' क्या है? इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
जेरूसलम में पथरीले टीले के ऊपर उमय्यद वंश के शासक अब्द-अल-मलिक द्वारा निर्मित चट्टान का गुम्बद 'डोम ऑफ रॉक' कहलाता है। यह इस्लामी वास्तुकला का प्रथम बड़ा नमूना है। जेरूसलम नगर की मुस्लिम संस्कृति के प्रतीक के रूप में इस स्मारक का निर्माण किया गया था।

प्रश्न 17. 
अब्बासी कौन थे? इन्होंने उमय्यद वंश के किस खलीफा को पराजित कर सत्ता प्राप्त की?
उत्तर:
अब्बासी पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। अब्बासियों की सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया, जिसने अन्तिम उमय्यद खलीफा मारवान को 'ज़ब नदी की लड़ाई' में पराजित किया।

प्रश्न 18. 
अब्बासी क्रांति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अरब में 'दवा' नामक एक आन्दोलन ने उमय्यद वंश के शासन को उखाड़ फेंका। 750 ई. में उमय्यद वंश का स्थान अब्बासियों ने ले लिया। इस घटना को अब्बासी.क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19. 
अब्बासियों ने अपने सत्ता प्राप्ति के प्रयास को किस प्रकार वैध ठहराया?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज अब्बासियों ने विभिन्न अरब समूहों को यह आश्वासन दिया कि पैगम्बर के परिवार का ही कोई मसीहा उन्हें उमय्यद वंश के दमनकारी शासन से मुक्ति दिलवाएगा। इसी आश्वासन के द्वारा उन्होंने अपने सत्ता प्राप्ति के प्रयास को वैध ठहराया।

प्रश्न 20. 
अब्बासियों ने उमय्यद वंश की किन-किन परम्पराओं को जारी रखा? 
उत्तर:
अब्बासियों ने उमय्यद वंश की निम्नलिखित परम्पराओं को जारी रखा

  1. इन्होंने खिलाफत की धार्मिक स्थिति एवं कार्यों को मजबूत बनाया। 
  2. इस्लामी संस्थाओं व विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। 
  3. उन्होंने सरकार और साम्राज्य के केन्द्रीय स्वरूप को बनाये रखा 
  4. शाही वास्तुकला एवं राजदरबार के व्यापक समारोहों की परम्परा को जारी रखा।

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प्रश्न 21. 
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के कोई दो कारण बताइए। 
उत्तर:
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. दूर के प्रान्तों पर साम्राज्य के केन्द्रस्थल बगदाद का नियंत्रण कम हो गया था। 
  2. सेना एवं नौकरशाही के अरब-समर्थक व ईरान समर्थक गुटों का आपस में झगड़ा प्रारम्भ हो गया था। 

प्रश्न 22. 
बगदाद के बुवाही शासकों की दो प्रमुख बातें बताइए।
उत्तर:

  1. बुवाही शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ धारण की जिनमें एक प्राचीन ईरानी पदवी शहंशाह भी सम्मिलित थी, लेकिन खलीफ़ा की पदवी धारण नहीं की।
  2. उन्होंने अब्बासी खलीफ़ा को अपने सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा। 

प्रश्न 23. 
फ़ातिमी कौन थे? वे स्वयं को इस्लाम का एकमात्र न्यायसंगत शासक क्यों मानते थे?
उत्तर:
फ़ातिमी का सम्बन्ध शिया सम्प्रदाय के एक उप सम्प्रदाय इस्माइली से था। जिनका दावा था कि वे पैगम्बर मुहम्मद की बेटी फ़ातिमा के वंशज हैं। इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र न्यायसंगत शासक हैं।

प्रश्न 24. 
सन् 950 से 1200 के बीच इस्लामी समाज किस तरह एकजुट बना रहा?
उत्तर:
सन् 950 से 1200 के बीच, इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) से नहीं बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से एकजुट बना रहा। राजनीतिक विभाजनों के बावजूद एकता स्थापित रखने के लिए राज्य और समाज को अलग करके देखा गया और इस्लामी उच्च संस्कृति की भाषा के रूप में फ़ारसी का विकास किया गया।

प्रश्न 25. 
तुर्क कौन थे? वे उच्च पदों पर किस प्रकार पहुँच गए? 
उत्तर:
तुर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली थे। वे कुशल घुड़सवार और योद्धा थे। वे गुलामों और सैनिकों के रूप में अब्बासी, समानी एवं बुवाही शासकों के नियंत्रण में कार्य करने लगे। अपनी सैनिक योग्यता एवं वफादारी के बल पर उन्नति करके वे उच्च पदों पर पहुँच गए।

प्रश्न 26. 
तुगरिल बेग कौन था? संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
तुगरिल बेग एक सल्जुक तुर्क था। उसने अपने भाई छागरी बेग के साथ मिलकर 1037 ई. में खुरासान को विजित कर लिया एवं निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया। निशापुर तत्कालीन समय में शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। 1055 ई. में उन्होंने बगदाद पर भी अधिकार कर लिया।

प्रश्न 27. 
निशापुर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सल्जुकों ने 1037 ई. में खुरासान को जीतने के पश्चात् निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया था। निशापुर तत्कालीन समय में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण फारसी-इस्लामी केन्द्र था। यह प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक व गणितज्ञ उमर खय्याम का जन्म स्थान भी था।

प्रश्न 28. 
धर्मयुद्ध क्या थे? इन्होंने ईसाई-मुस्लिम सम्बन्धों पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने मुसलमानों से अपने धर्मस्थलों को मुक्त कराने के लिए उनके साथ 1095 ई. से 1291 ई. के मध्य तीन युद्ध किए, जिन्हें धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है।।
ईसाई-मुस्लिम सम्बन्धों पर प्रभाव-

  1. मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनानी प्रारम्भ कर दी। 
  2. पूर्व तथा पश्चिम के मध्य होने वाले व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 29. 
फ्रैंक कौन थे? अपने अधीन किए गए मुसलमानों के प्रति उनका व्यवहार कैसा था?
उत्तर:
फ्रैंक धर्मयुद्धों में विजय प्राप्त करने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे। इनमें से कुछ सीरिया व फिलिस्तीन में बस गए थे। सामान्यतया ये लोग मुसलमानों के प्रति अधिक सहिष्णु थे।

प्रश्न 30. 
समरकंद में कागज़ निर्माण उद्योग किस प्रकार विकसित हुआ?
उत्तर:
571 ई. में समरकंद के मुस्लिम शासक ने 20,000 चीनी आक्रमणकारियों को बंदी बना लिया था। इनमें से कुछ आक्रमणकारी कागज़ बनाने की कला में बहुत पारंगत थे। इसी घटना ने समरकंद में कागज़ के निर्माण में सहायता पहुँचाई। अगले सौ वर्षों के लिए समरकंद में निर्मित कागज़ निर्यात की एक महत्वपूर्ण वस्तु बन गया।

प्रश्न 31. 
मुज़| क्या था?
उत्तर:
यह एक व्यापार प्रबन्ध था। इस व्यापार प्रबंध में निष्क्रिय साझेदार कारोबार के लिए अपनी पूँजी देश-विदेश में जाने वाले सक्रिय सौदागरों को सौंप देते थे। वे लाभ या हानि को किए गए निर्णय के अनुसार आपस में बाँट लेते थे।

प्रश्न 32. 
मध्यकाल में उलमा (धार्मिक विद्वान) अपना समय कैसे व्यतीत करते थे?
उत्तर:
मध्यकाल में उलमा अपना समय कुरान पर टीका (तफ़सीर) लिखने और पैगम्बर मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे। कुछ उलमाओं ने कर्मकांडों (इबादत) के माध्यम से ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्ध को नियंत्रित करने और सामाजिक कार्यों के माध्यम से शेष इंसानों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियंत्रित करने के लिए कानून (शरीआ) तैयार करने का काम किया।

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प्रश्न 33. 
इलसिना द्वारा लिखित पुस्तक अल-क़ानून फिल तिब के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इब्नसिना एक प्रसिद्ध चिकित्सक एवं दार्शनिक था। उसने अल-क़ानून फिल तिब (चिकित्सा के सिद्धान्त) नामक पुस्तक लिखी। यह दस लाख शब्दों वाली पांडुलिपि थी जिसमें उस समय के औषधशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख किया गया था। इस पुस्तक में आहार विज्ञान के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है तथा जलवायु व पर्यावरण के स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में भी बताया गया है।

प्रश्न 34. 
फिरदौसी लिखित 'शाहनामा' की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
फिरदौसी, गज़नी के सुल्तान महमूद का दरबारी कवि था। इसने शाहनामा (राजाओं का जीवन चरित्र) नामक पुस्तक की रचना की। यह पुस्तक इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जाती है। उन्हें इस पुस्तक को पूर्ण करने में 30 वर्ष लग गए। इस पुस्तक में 50,000 पद हैं। यह पुस्तक परम्पराओं और आख्यानों का संग्रह है। इसका सबसे लोकप्रिय आख्यान रुस्तम का है।

प्रश्न 35. 
मरुस्थलीय महलों का निर्माण किसने करवाया? ये किस काम आते थे?
उत्तर:
मरुस्थलीय महलों का निर्माण उमय्यद वंश के शासकों ने करवाया था। ये महल विलासितापूर्ण निवास स्थानों का कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त इनका प्रयोग शिकार एवं मनोरंजन के लिए विश्राम स्थलों के रूप में भी किया जाता था। उदाहरण-फिलिस्तीन का खिरबत अल-मफ़जर तथा जोर्डन का कुसाईर अमरा महल। 

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)

प्रश्न 1. 
“इस्लाम के बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकांश प्राच्यविदों की रुचियों और उनके तरीकों का ही अनुसरण किया है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम के बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों द्वारा प्राच्यविदों की रुचियों तथा तरीकों का अधिकांशतया अनुसरण किया गया। उनके द्वारा नये विषय सम्मिलित करके इस्लाम के इतिहास क्षेत्र का विस्तार किया गया। वास्तविक रूप में इस्लाम का इतिहास लेखन इस तथ्य का अच्छा उदाहरण है कि आधुनिक ऐतिहासिक तरीकों के द्वारा धर्म का अध्ययन उन लोगों के द्वारा किस प्रकार किया जा सकता है, जिनके रीति-रिवाज तथा विश्वास उनसे अलग थे जिनका वे अध्ययन कर रहे हैं। प्राच्यविद वे विद्वान होते हैं जो अरबी व फारसी के ज्ञान एवं मूलग्रन्थों के विवेचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध हैं। 

प्रश्न 2. 
इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व अरब के लोगों का जीवन कैसा था? बताइए।
अथवा इस्लाम के उदय से पूर्व अरब समाज की जानकारी दीजिए।
उत्तर-इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व अरब के लोगों (अरब समाज) के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. इस्लाम धर्म के उदय से पूर्व अरब लोग अनेक छोटे-छोटे कबीलों में बँटे हुए थे।  
  2. प्रत्येक कबीले का एक नेता होता था जिसे शेख कहा जाता था।
  3. शेख का चुनाव कुछ सीमा तक पारिवारिक सम्बन्धों के आधार पर किया जाता था। परन्तु मुख्य रूप से वह व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता और उदारता के आधार पर चुना जाता था।
  4. प्रत्येक कबीले के अपने देवी-देवता होते थे। इनकी बुतों के रूप में मस्जिदों में पूजा की जाती थी। 
  5. कबीले प्रायः आपस में छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे। 
  6. प्रायः अरब समाज के लोग अनेक अन्धविश्वासों के शिकार थे।
  7. बहुत से कबीले खानाबदोश होते थे। वे खजूर आदि खाद्य पदार्थों तथा अपने ऊँटों के लिए चारे आदि की तलाश में घूमते रहते थे।
  8. इस समय अरब के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। कालान्तर में व्यापार ही इनकी आजीविका का मुख्य साधन बन गया।

प्रश्न 3. 
इस्लाम के उदय से पूर्व मक्का के प्रमुख धर्मस्थल काबा के बारे में पाँच पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला कुरैश मक्का में रहता था और उसका वहाँ के प्रमुख धर्मस्थल पर नियंत्रण था। उस धर्मस्थल को काबा कहते थे। यह एक घन के आकार का था जिसमें बुत रखे हुए थे। मक्का के बाहर के कबीले भी इसे पवित्र मानते थे। वे भी इसमें अपने बुत रखते थे और हर वर्ष इसकी धार्मिक यात्रा करते थे। काबा को ऐसा पवित्र स्थान माना जाता था जहाँ हिंसा पर रोक थी। यहाँ आने वाले समस्त तीर्थयात्रियों एवं व्यापारियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी। तीर्थयात्रा और व्यापार ने अरब के खानाबदोश तथा स्थाई रूप से बसे कबीलों के बीच विचारों के आदान-प्रदान का अवसर प्रदान किया।

प्रश्न 4. 
पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कौन-कौन से कार्य किए? संक्षेप में बताइए। उत्तर-पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निम्नलिखित कार्य किए

  1. मदीना में राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना-अपने अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की।
  2. उम्मा का एक बड़े समुदाय के रूप में परिवर्तन-पैगम्बर मुहम्मद ने उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में परिवर्तित कर दिया। जिससे मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को उनके राजनीतिक नेतृत्व के अन्तर्गत लाया जा सके।
  3. कर्मकाण्डों व नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि तथा सुधार करना-पैगम्बर मुहम्मद ने कर्मकाण्डों (उपवास) और नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि तथा सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी बनाया।

प्रश्न 5. 
खिलाफत संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ? खिलाफत के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
खिलाफत संस्था का निर्माण-पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु सन् 632 ई. में हो गई। उनके बाद कोई भी व्यक्ति इस्लाम का अगला पैगम्बर बनने का दावा नहीं कर सकता था। उत्तराधिकार का कोई स्थापित सिद्धान्त न होने के कारण उनकी राजनीतिक सत्ता उम्मा को हस्तान्तरित कर दी गई। इससे नये विचारों के लिए अवसर उत्पन्न हुए, लेकिन इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद भी पैदा हो गये। सबसे बड़ा नया परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफ़त की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता अर्थात् अमीर अल-मोमिनिन पैगम्बर का प्रतिनिधि अर्थात् खलीफा बन गया। सन् 632 से 661 के बीच पहले चार खलीफाओं ने पैगम्बर के साथ अपने नजदीकी सम्बन्धों को आधार बनाकर अपनी शक्तियों को सही ठहराया। इन्होंने पैगम्बर द्वारा बनाए गए मार्ग-निर्देशों के तहत उनके कार्यों को जारी रखा। खिलाफत के प्रमुख उद्देश्य-खिलाफ़त के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे

  1. कबीलों पर नियन्त्रण बनाए रखना, जिनसे मिलकर उम्मा का गठन हुआ था। 
  2. राज्यों के लिए संसाधनों को बढ़ाना। 

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प्रश्न 6. 
खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार को संक्षेप में बताइए। उत्तर-खलीफ़ाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य का विस्तार निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) प्रथम खलीफा-प्रथम खलीफा अबू बकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया और इस्लामी राज्य का विस्तार किया।

  1. द्वितीय खलीफा-द्वितीय खलीफ़ा उमर ने 637 से 642 ई. के मध्य बाइजेंटाइन साम्राज्य तथा पूर्व में ससानी साम्राज्य के विरुद्ध अभियान किए। इसके तहत अरबों ने सीरिया, ईरान, इराक और मिस्र पर अधिकार कर लिया।
  2. तृतीय खलीफा-तृतीय खलीफा उथमान ने अपना नियन्त्रण मध्य एशिया तक बनाने के लिए कई अभियान चलाये। शीघ्र ही अरब-इस्लामी राज्य ने नील और ऑक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  3. चतुर्थ खलीफा-चतुर्थ खलीफ़ा अली ने मक्का के अभिजात तन्त्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े, जिनसे मुसलमानों में दरार और गहरी हो गई। अली ने सिफ्फिन में दूसरा युद्ध लड़ा, जो सन्धि के रूप में समाप्त हुआ। 661 ई. में अली की हत्या कर दी गई।

प्रश्न 7. 
पहले दो खलीफाओं-अबू बकर व उमर ने विद्रोह का दमन किस प्रकार किया? बताइए।
उत्तर:
632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् कई कबीले इस्लामी राज्य से अलग हो गए। कुछ कबीलों ने आस्तिकों (उम्मा) के प्रतिरूप पर अपने समाजों की स्थापना करने के लिए अपने अलग पैगम्बर बना लिए। अबू बकर एवं उमर पहले दो खलीफ़ा थे। पहले खलीफा अबू बकर ने अनेक अभियानों के माध्यम से विद्रोह का दमन किया। दूसरे खलीफा उमर ने उम्मा की सत्ता के विस्तार की नीति को नया रूप प्रदान किया। वह जानता था कि व्यापार करों से प्राप्त होने वाली आय से उम्मा को नहीं चलाया जा सकता। उम्मा को चलाने हेतु अभियानों के दौरान मारे गये छापों के द्वारा गनिमा अर्थात् भारी लूट की धनराशि प्राप्त की जा सकती है। इस बात को दृष्टिगत रखते हुए खलीफा एवं उनके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेंटाइन साम्राज्य एवं पूर्व में ससानी साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य की ताकत को बढ़ाया। 

प्रश्न 8. 
जीते गए प्रान्तों में आरम्भिक खलीफाओं द्वारा लागू नवीन प्रशासनिक ढाँचे के बारे में चर्चा कीजिए। 
उत्तर:
जीते गए प्रान्तों में आरम्भिक खलीफाओं द्वारा लागू नवीन प्रशासनिक ढाँचा निम्नलिखित था

  1. नये प्रशासनिक ढाँचे के अध्यक्ष को गवर्नर (अमीर) एवं कबीलों के मुखिया को अशरफ कहा गया।
  2. केन्द्रीय राजकोष के दो प्रमुख स्रोत थे- (अ) मुसलमानों द्वारा अदा किया जाने वाला कर, (ब) धावों से प्राप्त लूट का हिस्सा।
  3. शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा प्राप्त होता था तथा मासिक अदायगियाँ (अता) भी प्राप्त होती थीं।
  4. इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग--570-1200 ई. 135) 
  5. खलीफा के सैनिक मरुस्थल के किनारों पर बसे शहरों के शिविरों में रहते थे। 
  6. गैर मुस्लिम लोगों को खराज व जिजिया कर देने पड़ते थे।
  7. मुस्लिम राज्य के यहूदी व ईसाई लोगों को संरक्षित (धिम्मीस) घोषित किया गया। उन्हें अपने सामुदायिक कार्यों को करने के लिए बहुत अधिक स्वायत्तता प्रदान की गयी।

प्रश्न 9. 
खलीफा उथमान की हत्या के लिए कौन-कौन सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं? संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
खलीफा उथमान की हत्या के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं

  1. अरब कबीले राजनैतिक विस्तार एवं एकीकरण का कार्य आसानी से नहीं कर पाए।
  2. राज्य क्षेत्र के विस्तार से राज्य के संसाधनों एवं प्रशासनिक पदों के वितरण पर झगड़े उत्पन्न हो गए। ये झगड़े उथमानी एकता के लिए खतरा बन गए।
  3. प्रारम्भिक इस्लामी राज्य के शासन में मक्का के कुरैश लोगों का आधिपत्य था। तृतीय खलीफ़ा उथमान जो कि एक कुरैश था, ने सत्ता पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए प्रशासन में अधिक संख्या में और कुरैशों को नियुक्त कर दिया जिस कारण अन्य कबीले नाराज हो गए।
  4. उथमान की नीतियों से इराक व मिस्र के साथ-साथ मदीना के लोग भी नाराज हो गये, फलस्वरूप 656 ई. में उसकी हत्या कर दी गई।

प्रश्न 10. 
अली कौन था? उसके शासन काल की प्रमुख घटनाएँ बताइए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के देहांत के पश्चात् बने खलीफाओं में अली चौथे खलीफ़ा थे। इनके शासनकाल की अवधि 650 से 661 ई. के मध्य रही। इनके शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित थीं

  1. इन्होंने मक्का के अभिजात वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इसके फलस्वरूप मुसलमानों में कटुता और बढ़ गई।
  2. अली ने अपने आपको कुफा में स्थापित कर लिया एवं 657 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की पत्नी आयशा के नेतृत्व वाली सेना को 'ऊँट की लड़ाई' में पराजित कर दिया।
  3. अली को सिफ्फिन (उत्तरी मेसोपोटामिया) में दूसरा युद्ध लड़ना पड़ा जो संधि के रूप में समाप्त हुआ। इस युद्ध ने उसके अनुयायियों को दो गुटों में बाँट दिया; कुछ उसके वफादार बने रहे, जबकि अन्य लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया और वे खरजी कहलाने लगे।
  4. कुफा में एक खरजी ने एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी

प्रश्न 11.
उमय्यद वंश का प्रथम शासक कौन था? उसके शासन काल पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश का प्रथम शासक मुआविया था। उसने 661 ई. में स्वयं को. अगला खलीफा घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की। इसने ऐसे अनेक राजनैतिक कदम उठाए जिनसे उम्मा के अन्दर इसका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया। इसने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया तथा बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजशाही परम्पराओं एवं प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। इसने वंशानुगत उत्तराधिकारी की परम्परा भी प्रारम्भ की तथा प्रमुख मुसलमानों को इस बात पर सहमत कर लिया कि उसके पश्चात् वे उसके पुत्र को दूसरा उत्तराधिकारी स्वीकार करें।

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

प्रश्न 12. 
अब्बासियों के शासनकाल की प्रमुख विशेषताएँ बताइए?
उत्तर:
अब्बासियों के शासनकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

  1. अब्बासी शासन के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट उत्पन्न हुई। 
  2. ईरानी संस्कृति का महत्व बढ़ गया। 
  3. इन्होंने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति एवं कार्यों को सुदृढ़ किया। 
  4. इस्लामी संस्थाओं व विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
  5. प्रशासन में इराक व खुरासान की धार्मिक हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना व नौकरशाही का गैर कबीलाई आधार पर पुनर्गठन किया।
  6. इन्होंने अपनी राजधानी बगदाद में स्थापित की।

प्रश्न 13.
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के क्या कारण थे? संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के अग्रलिखित कारण थे

  1. अब्बासी राज्य की कमजोरी का एक कारण यह था कि दूर के प्रान्तों पर उनका नियन्त्रण कम हो गया।
  2. सेना और नौकरशाही में अरब-समर्थक और ईरान-समर्थक गुट परस्पर झगड़ा करते रहते थे। 
  3. सन् 810 में खलीफ़ा हारून अल-रशीद के पुत्रों अमीन तथा मामुन के समर्थकों के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया। इस गृहयुद्ध के कारण गुटबंदी और बढ़ गई। इस प्रकार तुर्की गुलाम अधिकारियों अर्थात् मामलुक का एक नया शक्ति गुट बन गया।
  4. शियाओं ने एक बार फिर सुन्नी रूढ़िवादिता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष किया।

अनेक छोटे-छोटे राजवंश अस्तित्व में आ गये। उदाहरण के लिए, खुरासान तथा ट्रांसोक्सियाना में ताहिरी तथा समानी वंश, मिस्र और सीरिया में तुलुनी वंश। इस प्रकार अब्बासियों की सत्ता. मध्य इराक तथा पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई। यह सीमित सत्ता भी सन् 945 में उस समय छिन गई जब बुवाही नाम के शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 14. 
अब्बासी क्रांति के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम प्राप्त हुए?
उत्तर:
मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण की सफलता के लिए उमय्यद वंश को भारी कीमत चुकानी पड़ी। उमय्यद शासन की वायदा खिलाफियों के कारण जगह-जगह विद्रोह होने लगे। फलस्वरूप, अब्बासियों ने उमय्यद शासन को दुष्ट बताते हुए यह दावा किया कि वे पैगम्बर मुहम्मद के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे। अत: 'दवा' नामक एक सुनियोजित क्रांति ने उमय्यद वंश के शासन को उखाड़ फेंका। 750 ई. में इस वंश की जगह अब्बासियों ने ले ली जो मक्का के ही थे तथा पैगम्बर के चाचा अब्बास के वंशज थे। . . इस क्रांति से केवल वंश का ही परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि इस्लाम के राजनैतिक ढाँचे और उसकी संस्कृति में भी बदलाव आये।

प्रश्न 15. 
"950 से 1200 ई. के दौरान इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा अरबी से नहीं बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से एकजुट बना रहा।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
950 से 1200 ई. के दौरान इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा अरबी से नहीं बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से एकजुट बना रहा। इस एकता को बनाए रखने के लिए राज्य को समाज से पूर्णतः अलग माना गया। इस्लामी उच्च संस्कृति की भाषा के रूप में फ़ारसी का मुख्य रूप से विकास किया गया। इस एकता के निर्माण में विद्वानों, कलाकारों एवं व्यापारियों आदि ने भी भरपूर योगदान प्रदान किया। ये लोग इस्लामी राज्य में घूम-घूमकर लोगों में विचारों और तौर-तरीकों का आदान-प्रदान करते रहते थे। इन प्रयासों से यह लाभ प्राप्त हुआ कि अनेक लोगों ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। परिणामस्वरूप मुस्लिम अनुयायियों की संख्या आगे चलकर बहुत अधिक बढ़ गई। इस्लाम ने एक अलग धर्म एवं सांस्कृतिक प्रणाली के रूप में अपनी एक पहचान स्थापित कर ली।

प्रश्न 16. 
तुर्क कौन थे? गज़नी में तुर्की सत्ता किस प्रकार स्थापित हुई? 
उत्तर:
तुर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली थे। इन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। ये कुशल घुड़सवार और योद्धा थे, ये गुलामों एवं सैनिकों के रूप में अब्बासी, समानी एवं बुवाही शासकों के नियंत्रण में कार्य करने लगे तथा अपनी वफादारी एवं सैनिक योग्यताओं के बल पर उन्नति करके उच्च पदों पर पहुँच गए। गज़नी में तुर्की सत्ता की स्थापना-961 ई. में अल्पतिगिन नामक तुर्क ने गज़नी सल्तनत की स्थापना की।

इसे गज़नी के महमूद गज़नवी ने मजबूत किया। बुवाहियों की तरह गज़नवी भी एक सैनिक वंश था। उनके पास तुर्की और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी परन्तु उनकी सत्ता तथा शक्ति का केन्द्र खुरासान एवं अफगानिस्तान में था। उनके लिए अब्बासी खलीफे प्रतिद्वन्द्वी नहीं थे बल्कि उनकी वैधता के स्रोत थे। एक दास पुत्र होने के बावजूद महमूद खलीफ़ा से सुल्तान की उपाधि प्राप्त करना चाहता था। दूसरी ओर खलीफा भी शिया सत्ता के मुकाबले गज़नवी की सुन्नी सत्ता को समर्थन देने के लिए तैयार हो गया। अतः अब्बासी खलीफे गजनी में तुर्की सत्ता की वैधता के स्रोत बन गए।

प्रश्न 17. 
सल्जुक तुर्क कौन थे? उन्होंने तुर्की साम्राज्य का विस्तार किस प्रकार किया? ।
उत्तर:
सल्जुक तुर्क पूर्व की ओर से आये गैर मुस्लिम तुर्क थे। इन्होंने ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में तूरान में समानियों तथा काराखानियों के सैनिकों के रूप में प्रवेश किया। बाद में इन्होंने दो भाइयों, तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह का रूप धारण कर लिया। तुर्की साम्राज्य का विस्तार करना-सल्जुकों ने गज़नी के महमूद की मृत्यु के पश्चात् फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर 1037 ई. में खुरासान पर विजय प्राप्त कर ली तथा निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया। कुछ समय पश्चात् उन्होंने 1055 ई. में बग़दाद को पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर लिया।

खलीफा अल-कायम ने तुगरिल को सुल्तान की उपाधि प्रदान की जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक सत्ता, राजनीतिक सत्ता से अलग हो गई। दोनों सल्जुक भाइयों-तुगरिल बेग व छागरी बेग ने एक साथ मिलकर शासन का संचालन किया। इसके पश्चात् उनका भतीजा अल्प अरसलन तुर्क साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। उसके शासनकाल में इस साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया अर्थात् वर्तमान तुर्की तक हो गया।

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प्रश्न 18. 
धर्म युद्ध से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
1092 में बगदाद के सल्जुक सुल्तान मलिक शाह की मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य का विघटन हो गया। इससे बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर और उत्तरी सीरिया पर पुनः कब्जा करने का अवसर मिल गया। ईसाई धर्म गुरु पोप अर्बन द्वितीय ने इस घटना को ईसाई धर्म के पुनरुत्थान के लिए एक अवसर के रूप में लिया। अत: पोप ने 1092 में बाइजेंटाइन सम्राट के साथ मिलकर पुण्य देश (होली लैंड) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आह्वान किया। 1095 से 1291 ई. के मध्य पश्चिमी यूरोपीय ईसाइयों ने पूर्वी भूमध्यसागर (लैवेंट) के तटवर्ती मैदानों में मुस्लिम शहरों के खिलाफ युद्धों की योजना बनाई और फिर लगातार अनेक युद्ध लड़े गये। इन लड़ाइयों को ही बाद में धर्म युद्ध' की संज्ञा दी गयी।

प्रश्न 19. 
अरब साम्राज्य में कृषि भूमि नियंत्रण एवं भू-राजस्व व्यवस्था को बताइए।
उत्तर:
अरब साम्राज्य में कृषि भूमि नियंत्रण एवं भू-राजस्व व्यवस्था-अरब साम्राज्य में कृषि भूमि का सर्वोच्च नियंत्रण राज्य के हाथों में था। राज्य अपनी अधिकांश आय भू-राजस्व से प्राप्त करता था। अरबों द्वारा जीती गई भूमि पर, जो अब भी मालिकों के हाथों में थी, खराज नामक कर लगता था। यह कर खेती की स्थिति के अनुसार उत्पादन के आधे भाग से लेकर पाँचवें हिस्से के बराबर होता था। जिस भूमि पर मुसलमानों का स्वामित्व था अथवा जिसमें उनके द्वारा खेती की जाती थी उस पर उपज के दसवें हिस्से के बराबर ही खराज कर लगता था। अतः कम कर देने के उद्देश्य से कई गैर मुसलमान लोग मुसलमान बनने लगे तो उससे राज्य की आय कम हो गई। इस समस्या के समाधान के लिए खलीफाओं ने पहले तो धर्मान्तरण को निरुत्साहित किया और बाद में कराधान की एकसमान नीति अपनाई। दसवीं शताब्दी से राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों को उनका वेतन भू-राजस्व से दिया जाना प्रारम्भ किया गया, जिसे 'इक्ता' कहा जाता था।

प्रश्न 20.
इस्लामी राज्य में खेती की समृद्धि के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए? संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
इस्लामी राज्य में खेती की समृद्धि के लिए निम्न कदम उठाए गए

  1. नील घाटी सहित अनेक क्षेत्रों में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों का विकास किया। राज्य ने अनेक बाँधों तथा नहरों का निर्माण करवाया और अनेक कुएँ खुदवाये। .
  2. अपनी भूमि को प्रथम बार खेती के लिए उपयोग में लाने वाले कृषकों को कर में छूट दी गई।
  3. खेती योग्य भूमि का विस्तार किया गया। इन सब कार्यों के फलस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हुई।
  4. कपास, सन्तरा, केला, तरबूज, पालक, बैंगन आदि नई फसलें भी उगाई जाने लगी तथा इनका यूरोप को निर्यात किया जाने लगा।

प्रश्न 21. 
"मध्यकालीन अर्थव्यवस्था में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी एवं व्यापार व्यवस्था के अच्छे तरीके का विकास किया।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन अर्थव्यवस्था में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी एवं व्यापार व्यवस्था के अच्छे तरीकों का विकास किया। व्यापारियों एवं साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों और हुंडियों का प्रयोग किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर धन को साथ ले जाने से मुक्ति प्राप्त हो गई। इससे उनकी यात्राएँ पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गईं। खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए साख-पत्रों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 22. 
मध्यकालीन इस्लामी जगत में उलेमा वर्ग कुरान पर टीका लिखने हेतु क्यों प्रेरित हुआ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी जगत में उलेमा वर्ग कुरान पर टीका लिखने हेतु प्रेरित हुआ क्योंकि इस्लाम के धार्मिक विद्वानों के लिए कुरान से प्राप्त ज्ञान और पैगम्बर का आदर्श व्यवहार ईश्वर की इच्छा को जानने एवं संसार का मार्गदर्शन करने का एकमात्र तरीका था। अतः मध्यकाल में उलेमा अपना समय कुरान पर टीका (तफ़सीर) लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों एवं कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे। कुछ उलेमाओं ने कर्मकाण्डों (इबादत) के द्वारा ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने एवं सामाजिक कार्यों (मुआमलात) द्वारा अन्य लोगों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने के लिए कानून अथवा शरीआ तैयार करने का कार्य किया। इस्लामी कानून तैयार करने के लिए कानूनविदों ने तर्क और अनुमान (कियास) का प्रयोग भी किया क्योंकि कुरान और हदीथ में प्रत्येक चीज प्रत्यक्ष नहीं थी। स्रोतों के अर्थ-निर्णय और विधिशास्त्र के तरीकों के बारे में मतभेदों के कारण आठवीं एवं नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ (मजहब) बन गई थीं। ये शाखाएँ थीं-
(अ) मलिकी
(ब) हनफी
(स) शफीई
(द) हनबली।

प्रश्न 23. 
मुस्लिम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कुरान अरबी भाषा की पुस्तक है। यह 114 अध्यायों अथवा सूराओं में विभाजित है, जिनकी लम्बाई क्रमिक रूप से घटती जाती है। इस तरह अन्तिम सूरा सबसे छोटा है। केवल प्रथम सूरा इसका अपवाद है। यह एक संक्षिप्त प्रार्थना (अल-फतिहा अथवा प्रारम्भ) है। मुस्लिम परम्परा के मुताबिक कुरान उन संदेशों (रहस्योद्घाटन) का संग्रह है जिन्हें खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद को सन् 610 से 632 ई. के मध्य की अवधि में पहले मक्का एवं बाद में मदीना में दिये थे। इन रहस्योद्घाटनों को संकलित करने का कार्य 650 ई. में पूरा किया गया था। वर्तमान में जो सबसे प्राचीन सम्पूर्ण कुरान उपलब्ध है, वह नौवीं शताब्दी की है। कुरान शरीफ़ मुसलमानों का पवित्र ग्रन्थ है। कुरान शरीफ़ के अध्याय 31, पद-27 में कहा गया है कि "यदि संसार के सभी पेड़ कलम होते और समुद्र स्याही होते और इस तरह सात समुद्र स्याही की पूर्ति करने के लिए होते, तो भी लिखते-लिखते अल्लाह के शब्द समाप्त न होते।"

प्रश्न 24. 
प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत सामग्री के रूप में कुरान के उपयोग ने कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न कर दी? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत सामग्री के रूप में कुरान के उपयोग ने निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं
(i) पहली समस्या यह है कि यह एक धर्मग्रन्थ है एवं एक ऐसा मूल पाठ है जिसमें धार्मिक सत्ता निहित है। प्रायः मुसलमानों का यह मानना है कि खुदा की वाणी (कलाम अल्लाह) होने के कारण कुरान के एक-एक शब्द को समझा जाना चाहिए। हालांकि बुद्धिवादी धर्मविज्ञानी अधिक उदार थे, उन्होंने कुरान की व्याख्या अधिक उदारता से की। 833 ई. में अब्बासी खलीफा अल-मामून ने यह घोषणा कि कुरान खुदा की वाणी न होकर उसकी अपनी रचना है।

(ii) प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत सामग्री के रूप में कुरान के उपयोग के सम्बन्ध में दूसरी समस्या यह है कि कुरान रूपकों में बात करता है। ईसाइयों के ओल्ड टेस्टामेंट के विपरीत, यह घटनाओं का वर्णन नहीं करता, बल्कि । केवल उनका उल्लेख करता है। इसलिए मध्यकाल के मुस्लिम विद्वानों को पैगम्बर मुहम्मद के वचनों के अभिलेखों (हदीथ) की सहायता से कई टीकाएँ लिखनी पड़ी थीं। कुरान को पढ़ने-समझने के लिए कई हदीथ लिखे गए। 

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प्रश्न 25. 
मध्यकालीन इतिहास में सूफियों के धार्मिक विचारों पर एक टिप्पणी लिखिए।
अथवा 
सूफी कौन थे? उनके विचार लिखिए। 
उत्तर:
सूफी-मध्यकाल में इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह बन गया था, जिन्हें सूफ़ी कहा गया।
सूफियों के धार्मिक विचार-

  1. सूफी लोग रहबनिया अर्थात् तपश्चर्या और रहस्यवाद के द्वारा खुदा का अधिक गहन और अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
  2. सूफ़ियों की सांसारिक एवं भौतिक पदार्थों (सुखों) में रुचि नहीं थी, ये लोग संसार का त्याग (जुद) करना चाहते थे और केवल खुदा पर विश्वास (तवक्कुल) करना चाहते थे।
  3. सूफीवाद के अनुसार ईश्वर को तीव्र प्रेम (इश्क) के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता था। 
  4. सूफी लोग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाना चाहते थे।
  5. सूफीवाद का द्वार सबके लिए खुला हुआ था।
  6. सूफी लोग आनन्द उत्पन्न करने तथा प्रेम और भावावेश को तीव्र करने के लिए संगीत समारोहों (समा) का उपयोग करते थे।

प्रश्न 26. 
इब्नसिना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
इनसिना एक प्रसिद्ध चिकित्सक एवं दार्शनिक था। इसका जन्म 980 ई. में एवं मृत्यु 1037 ई. में हुई थी। वह इस बात को नहीं मानता था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जीवित हो जाता है। उसने अल-कानून फिल तिब (चिकित्सा के सिद्धान्त) नामक पुस्तक लिखी। जो दस लाख शब्दों वाली पाण्डुलिपि थी। इस पुस्तक में तत्कालीन औषध शास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख था। इसमें इनसिना द्वारा अस्पतालों में किये गये प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है। इस पुस्तक में आहार-विज्ञान के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक में यह भी बताया गया है कि जलवायु व पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी भी दी गई है। इस पुस्तक का महत्व इस बात से प्रकट हो जाता है कि इस पुस्तक का उपयोग यूरोप में आज भी एक पाठ्यपुस्तक के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 27. 
मध्यकालीन इस्लामी समाज में भाषा और साहित्य के विकास को बताइए। - उत्तर-मध्यकालीन इस्लामी समाज में भाषा और साहित्य का विकास-मध्यकालीन इस्लामी समाज में भाषा व साहित्य का पर्याप्त विकास हुआ था। इस काल में श्रेष्ठ भाषा एवं सृजनात्मक कल्पना को व्यक्ति के सर्वाधिक सराहनीय गुणों में सम्मिलित किया जाता था। ये गुण किसी भी व्यक्ति को विचार अभिव्यक्ति को 'अदब' के स्तर तक ऊँचा उठा देते थे। अदब रूपी अभिव्यक्तियों में गद्य (नथ्र) अर्थात् बिखरे हुए शब्द एवं पद्य (नज़्म) अर्थात् कविताओं को सम्मिलित किया जाता था। अब्बासी काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए लोकप्रिय पद्य रचना-सम्बोधन गीत (कसीदा) नामक विधा का विकास किया। फ़ारसी मूल के कवियों ने अरबी कविता को एक नया रूप प्रदान किया। अबु नुवास नामक फ़ारसी मूल के एक कवि ने इस्लाम में निषेध होने के बावजूद आनंद प्राप्ति हेतु शराब एवं पुरुष-प्रेम जैसे नवीन विषयों पर उत्कृष्ट कविताओं की रचना की। इसके अतिरिक्त सूफी कवियों ने रहस्यवादी प्रेम की मदिरा द्वारा उत्पन्न मस्ती का गुणगान किया। .

प्रश्न 28. 
मध्यकालीन इस्लामी जगत में नई फ़ारसी के विकास को बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी जगत में नई फारसी का विकास-समानी राजदरबार के कवि रुदकी को नई फारसी. कविता का जनक माना जाता है। मध्यकालीन इस्लामी जगत में अरबों की ईरान विजय के पश्चात् नई फ़ारसी का पर्याप्त विकास हुआ। इसमें अरबी भाषा के शब्दों की संख्या बहुत अधिक थी। खुरासान व तूरान सल्तनतों की स्थापना से नई फ़ारसी सांस्कृतिक ऊँचाइयों पर पहुँच गई। इस कविता में गजल व रूबाई जैसे नए रूप सम्मिलित थे। उमर खय्याम ने रुबाई का सर्वाधिक विकास किया। नई फ़ारसी कविता में रुबाई अर्थात् चतुष्पदी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रुबाई चार पंक्तियों वाला छंद होता है। इसकी प्रथम दो पंक्तियाँ भूमिका बाँधती हैं। तृतीय पंक्ति अच्छे तरीके से सधी होती है तथा चतुर्थ पंक्ति मुख्य बात को प्रस्तुत करती है। इसका प्रयोग प्रियतम या प्रेमिका के सौन्दर्य का वर्णन करने, संरक्षक की प्रशंसा करने अथवा दार्शनिक विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। 

प्रश्न 29. 
“ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ग़ज़नी फ़ारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र बन गया था।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गज़नी फ़ारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र बन गया था। गजनी के शासक विद्वानों, कवियों एवं कलाकारों का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने अनेक विद्वानों, कवियों एवं कलाकारों को अपना संरक्षण प्रदान किया। गजनी के शासक महमूद गजनवी के दरबार में अनेक विद्वान व कवि आश्रित थे। इसके शासन काल में अनेक विद्वानों एवं कवियों ने काव्य-संग्रहों और महाकाव्यों की रचना की। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि फिरदौसी था। उसने 'शाहनामा' (राजाओं का जीवन चरित) नामक काव्य ग्रन्थ की रचना की थी, इसे पूरा करने में उसे 30 वर्ष लगे थे। इस पुस्तक में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जाती है। शाहनामा परम्पराओं और आख्यानों का संग्रह है। इनमें सबसे लोकप्रिय आख्यान रुस्तम का है। पुस्तक में प्रारम्भ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का चित्रण काव्यात्मक शैली में किया गया है।

प्रश्न 30. 
मध्यकालीन इस्लामी समाज में प्रचलित कुछ ऐसी पुस्तकों का वर्णन कीजिए जिन्हें नैतिक शिक्षा तथा मनोरंजन के उद्देश्यों से लिखा गया।
उत्तर:
इब्न नदीम बगदाद का एक पुस्तक विक्रेता था। उसने किताब-अल-फिहरिस्त नाम से एक पुस्तक सूची का निर्माण किया जिसमें अनेक पुस्तकों का उल्लेख था। इनमें सबसे पुरानी पुस्तक 'कलीला व दिमना' है। यह जानवरों की कहानियों का संग्रह है तथा यह पंचतंत्र के पहलवी संस्करण का अरबी अनुवाद है। सबसे अधिक प्रचलित और स्थायी रचनाएँ वीर-शूरमाओं के साहस और वीरता के विषय की कहानियाँ हैं, जैसे-अल-सिकन्दर और सिन्दबाद, साथ ही इसमें दुखी प्रेमियों की कहानियाँ भी हैं, जैसे-कायस अर्थात् मजनू की कहानी। ये कहानियाँ कई शताब्दियों में मौलिक एवं लिखित परम्पराओं के रूप में विकसित हुई हैं। 'एक हजार एक रातें' कहानियों का एक अन्य प्रसिद्ध संग्रह है।

ये कहानियाँ एक ही वाचिका शहरज़ाद द्वारा अपने पति को एक के बाद दूसरी रात को सुनाई गयी थीं। यह संग्रह मूल रूप से भारतीय फ़ारसी भाषा में था और बगदाद में इसका अरबी में अनुवाद किया गया था। बाद में मामलुक काल में काहिरा में इसमें कुछ और कहानियाँ जोड़ दी गईं। ये कहानियाँ भिन्न किस्मों के मनुष्यों जैसे उदार, मूर्ख, भोले-भाले और धूर्त आदि का चित्रण करती हैं। इनको शिक् षा प्रदान करने तथा मनोरंजन के लिए सुनाया जाता था।

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

प्रश्न 31. 
इस्लाम की धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के किन दो रूपों को बढ़ावा मिला? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इस्लाम की धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के निम्नलिखित दो रूपों को बढ़ावा मिला

  1. खुशनवीसी
  2. अरबेस्क। 

1. खुशनवीसी-इस कला को खत्ताती और सुन्दर लिखने की कला भी कहते थे। 
2. अरबेस्क-इसे ज्यामितीय और वनस्पति डिजाइन भी कहा जाता था।
इमारतों को सजाने के लिए प्रायः धार्मिक प्रसंगों के छोटे तथा बड़े शिलालेखों में उपयोग किया जाता था। 8वीं तथा 9वीं सदियों में कुरान की पाण्डुलिपियों में खुशनवीसी कला को अच्छे तरीकों से सुरक्षित रखा गया। उदाहरण के लिए, किताब अल-अघानी, कलीला व दिमना तथा हरिरी की मकामात जैसी अनेक साहित्यिक कृतियों को लघ चित्रों से सजाया गया। चित्रावली की बहुत-सी किस्मों की तकनीक पुस्तकों की खूबसूरती सजाने के लिए प्रयोग की गई। उद्यान की कल्पना पर आधारित इमारतों तथा पुस्तकों के चित्रण में पौधों या फूलों के डिजाइन का इस्तेमाल किया जाता था। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
इस्लामी सभ्यता के सन् 600 से 1200 ई. तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा इस्लामी राज्य के आरम्भिक इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी सभ्यता (इस्लामी राज्य) के आरंम्भिक इतिहास (600 से 1200 ई.) की जानकारी के प्रमुख स्रोत-इस्लामी सभ्यता के आरम्भिक इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

(i) इतिवृत्त-इसे तवारीख भी कहा जाता है। यह 600 से 1200 ई. तक के इस्लामी राज्य के इतिहास की जानकारी का एक प्रमुख स्रोत है। इसके अन्तर्गत घटनाओं का वर्णन काल-क्रम के अनुसार किया जाता है। मुस्लिम व ईसाई इतिवृत्तों से मुस्लिम सभ्यता प्रारम्भिक इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

(ii) प्रमुख ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाएँ-अधिकांश ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं। अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाएँ, जैसे-जीवन चरित (सिरा), पैगम्बर मुहम्मद के वचन व कृत्यों के अभिलेख (हदीथ) तथा कुरान के बारे में टीकाएँ (तफसीर) आदि से भी मध्यवर्ती इस्लामी देशों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अधिकतर ऐतिहासिक और अर्धऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं। इनमें प्रमुख ऐतिहासिक रचना तबरी कृत 'तारीख' है। इसका 38 खण्डों में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। 

(iii) दस्तावेजी साक्ष्य-इस्लामी सभ्यता के इतिहास की जानकारी के सर्वाधिक उपयोगी स्रोतों में दस्तावेजी साक्ष्य प्रमुख हैं क्योंकि इनमें पूर्व चिन्तन कर घटनाओं और व्यक्तियों का वर्णन नहीं होता है। दस्तावेजी साहित्य में सरकारी आदेश अथवा निजी पत्राचार सम्मिलित हैं। दस्तावेजी साक्ष्य यूनानी और अरबी पैपाइरस तथा गेनिज़ा अभिलेखों से प्राप्त होता है।

(iv) पाश्चात्य विद्वानों का इतिहास लेखन-इस्लामी सभ्यता की जानकारी के स्रोतों में पाश्चात्य विद्वानों द्वारा इतिहास लेखन भी एक महत्वपूर्ण स्रोत की भूमिका निभाता है। वास्तविक रूप से इस्लाम के इतिहास ग्रन्थ लिखे जाने का कार्य उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी तथा नीदरलैण्ड के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा किया गया। कुछ ईसाई पादरियों ने भी इस्लाम के इतिहास से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ लिखे। इग्नाज़ गोल्डज़िहर नामक यहूदी ने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्म विज्ञान के बारे में पुस्तकें लिखीं। इस्लाम के 20वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकतर प्राच्यविदों के तरीकों का ही अनुसरण किया है। उन्होंने नये विषयों को सम्मिलित करके इस्लाम के इतिहास के क्षेत्रों का विस्तार किया है। प्राच्यविद् विद्वानों ने अपनी रुचियों के अनुसार नये-नये विषयों को सम्मिलित करके इस्लाम के इतिहास के दायरे का विकास किया। 

(v) पुरातत्वीय एवं अन्य साक्ष्य-शिलालेखों के अध्ययन, सिक्कों के अध्ययन एवं पुरालेखीय साक्ष्यों ने इस्लामी इतिहास के बारे में जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये साक्ष्य इस्लामी सभ्यता के आर्थिक इतिहास, कला इतिहास, नामों और तारीखों के प्रमाणीकरण के लिए बड़े उपयोगी हैं। 

प्रश्न 2. 
पैगम्बर मुहम्मद के जीवन-दर्शन की विस्तार से चर्चा कीजिए।,
अथवा 
"पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म के उदय एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद का जीवन दर्शन : इस्लाम धर्म के उदय एवं विकास में भूमिका
(i) पैगम्बर मुहम्मद का जन्म एवं विवाह-पैगम्बर मुहम्मद का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था। इनका कुरैश कबीले से सम्बन्ध था तथा ये भाषा व संस्कृति की दृष्टि से अरबी थे। इन्होंने खदीजा नामक एक धनी महिला से विवाह किया जो व्यापार करती थी।

(ii) स्वयं को खुदा का संदेशवाहक घोषित करना-लगभग 612 ई. के आसपास पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आप को खुदा का संदेशवाहक (रसूल) घोषित किया। उन्होंने यह प्रचार किया कि अल्लाह (ईश्वर) एक है तथा केवल अल्लाह की पूजा (इबादत) की जानी चाहिए और आस्तिकों (उम्मा) के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया।

(iii) मक्कावासियों द्वारा पैगम्बर मुहम्मद का विरोध-पैगम्बर मुहम्मद ने विभिन्न कबीलों में फैले हुए धार्मिक पाखंडों व अंधविश्वासों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया फलस्वरूप मक्का के व्यापारियों तथा पुजारियों को पैगम्बर मुहम्मद के विचार पसन्द नहीं आए। क्योंकि वे अपने आप को व्यापार तथा धर्म के लाभों से वंचित अनुभव करते थे। उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद के विचारों को मक्का की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए खतरा माना।

(iv) मक्का छोड़कर मदीना को गमन-जब पैगम्बर मुहम्मद तथा अनुयायियों को उनके विरोधियों ने बहुत अधिक परेशान करना प्रारम्भ कर दिया तो वे बहुत दुखी हो गए। फलस्वरूप उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाने का निश्चय किया। पैगम्बर मुहम्मद की इस यात्रा को 'हिजरा' कहा जाता है। 622 ई. से मुस्लिम कैलेण्डर अर्थात् हिजरी सन् की शुरुआत हुई। मदीना पहुँचने पर उनका बहुत अधिक स्वागत किया गया। मदीना में उन्होंने इस्लाम का खूब प्रचार-प्रसार किया।

(iv) मक्का पर विजय प्राप्त करना-पैगम्बर मुहम्मद मक्का को इस्लाम का एक प्रमुख तीर्थस्थान बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य को लेकर 629 ई. में पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया। मक्कावासियों की पराजय हुई और उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। मक्का इस्लाम का एक प्रमुख तीर्थ-स्थान तथा धार्मिक केन्द्र बन गया।

(v) इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार करना-पैगम्बर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की, उन्होंने मदीना के निवासियों के आपसी तनाव को दूर किया तथा उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदल दिया ताकि मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को उनके राजनीतिक नेतृत्व के अन्तर्गत लाया जा सके। पैगम्बर मुहम्मद ने कर्मकाण्डों जैसे उपवास आदि एवं नैतिक सिद्धान्तों को बढ़ाकर और उनमें सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया।

इन्होंने अपनी शिक्षाएँ सरल भाषा में दी जिनसे प्रभावित होकर अनेक लोगों ने इनके धर्म-सिद्धान्तों को स्वीकारा। इनके सिद्धान्तों को स्वीकार करने वाले मुसलमान (मुस्लिम) कहलाए। इनके प्रयासों से शीघ्र ही इस्लाम धर्म का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया। काबा से बुतों को हटा दिया गया। इनके प्रयासों से मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया।

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

(vi) पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु-632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु तक लगभग सम्पूर्ण अरब देश ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था। इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म के उदय एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

प्रश्न 3. 
पैगम्बर मुहम्मद के नियंत्रण वाले इस्लामी राज्य एवं समाज के प्रमुख पहलुओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-पैगम्बर मुहम्मद के नियंत्रण वाला इस्लामी राज्य-पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की जिसमें उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की गई और उन्होंने शहर में चल रहे तनाव को भी सुलझाया। उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदला गया ताकि मदीना के बहुदेववादियों और यहूदियों को पैगम्बर मुहम्मद के राजनीतिक नेतृत्व के अधीन लाया जा सके। पैगम्बर मुहम्मद ने कर्मकाण्डों (इबादत) तथा नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि की और उन्हें परिष्कृत किया।

इस प्रकार उन्होंने धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया। इस्लामी समाज के प्रमुख पहलू-आरम्भ में मुस्लिम राज्य कृषि तथा व्यापार से प्राप्त होने वाले राजस्व एवं जकात पर निर्भर था। इसके अतिरिक्त मुसलमान मक्का के काफिलों और निकट के नखलिस्तानों पर छापे भी मारते थे। कुछ समय पश्चात् मक्का पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। इसके फलस्वरूप एक धार्मिक प्रचारक तथा राजनीतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर अनेक कबीलों, मुख्य रूप से बहुओं ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया और मुस्लिम समाज में सम्मिलित हो गए।

इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद द्वारा बनाए गए गठजोड़ का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया। काबा से बुतों को हटा दिया गया। मदीना उभरते हुए इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी बना और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया। पैगम्बर मुहम्मद अल्प समय में ही अरब प्रदेश के बहुत बड़े भाग को एक नए धर्म, समुदाय एवं राज्य के अन्तर्गत लाने में सफल रहे। उनके द्वारा स्थापित इस्लामी राज्य व्यवस्था बहुत अधिक समय तक अरब कबीलों एवं वंशों का राज्य तत्व बनी रही।

प्रश्न 4. 
अरब में इस्लाम का उदय एवं विकास किस प्रकार हुआ? विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
अरब में इस्लाम का उदय एवं विकास-अरब में इस्लाम के उदय एवं विकास को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
(i) अरब लोगों का कबीलों में बँटा होना-अरबी कबीले रक्त सम्बन्धों पर आधारित संगठित समाज होते थे। अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था जिसका चुनाव पारिवारिक सम्बन्धों के आधार के अतिरिक्त व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता एवं उदारता के आधार पर किया जाता था। प्रत्येक कबीले के अपने देवी-देवता होते थे जो बतों (सनम). के रूप में मस्जिदों में पूजे जाते थे। अनेक कबीले खानाबदोश (बदू या बेदूइन) होते थे जो खाद्य व ऊँटों के चारे की तलाश में रेगिस्तानों के सूखे क्षेत्रों (नखलिस्तान) से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर आवागमन करते रहते थे।।

(ii) पैगम्बर मुहम्मद द्वारा पहला सार्वजनिक उपदेश दिया जाना-पैगम्बर मुहम्मद ने 612 ई. में अपना पहला सार्वजनिक उपदेश दिया था। इन्होंने एक ही ईश्वर, अल्लाह की पूजा करने एवं आस्तिकों (उम्मा) के एक ही समाज की सदस्यता का उपदेश दिया। यह इस्लाम का मूल तत्व था। 

(iii) खुदा का संदेशवाहक घोषित करना-लगभग 612 ई. में पैगम्बर मुहम्मद ने स्वयं को अल्लाह का संदेशवाहक (रसूल) घोषित कर दिया तथा कहा कि उन्हें अल्लाह ने दर्शन देकर यह आदेश दिया है कि केवल अल्लाह अर्थात् ईश्वर की ही पूजा करे। वे अल्लाह के पैगम्बर हैं। उनके धर्म सिद्धान्त में विश्वास करने वाले मुसलमान (मुस्लिम) कहे जाएँगे।

(iv) मूर्तिपूजा का विरोध करना-पैगम्बर मुहम्मद ने मूर्ति पूजा का विरोध किया। इस्लाम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को सर्वशक्तिमान अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद में पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। अल्लाह (ईश्वर) की इच्छा के समक्ष झुकना ही उचित है। इस्लाम में कयामत के दिन की बात की जाती है। पैगम्बर मुहम्मद द्वारा मूर्तिपूजा का विरोध करने के कारण मक्का के लोग उनके विरोधी हो गए। उन्हें ऐसा लगने लगा कि यह धर्म (मुस्लिम धर्म अथवा इस्लाम धर्म) उनकी स्थिति एवं संस्कृति के लिए खतरा है। फलस्वरूप बढ़ते विरोध को देखते हुए पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा, यह घटना 622 ई. की है। इस्लाम धर्म में इसे हिजरा कहा जाता है। इसे मुस्लिम कैलेंडर का वर्ष भी माना जाता है।

(v) इस्लाम (मुस्लिम) धर्म का विकास-पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की। उम्मा को एक विशाल समुदाय के रूप में बदला गया। इसका उद्देश्य मदीना के बहुदेववादियों व यहूदियों को उनके राजनीतिक नेतृत्व के अन्तर्गत लाना था। इन्होंने कर्मकांडों जैसे उपवास व नैतिक सिद्धान्तों को परिष्कृत करने के लिए धर्म अथवा विश्वास को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया। एक धार्मिक प्रचारक व राजनीतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दराज के क्षेत्रों तक विस्तारित हो गयी। इन्होंने मुस्लिम समाज की सदस्यता के लिए धर्मान्तरण पर जोर दिया। इनकी उपलब्धियों से प्रभावित होकर अनेक कबीलों ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया।

इन्होंने सम्पूर्ण अरब देश पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी एवं मक्का उसके धार्मिक केन्द्र के रूप में उभरकर सामने आए। काबा से बुतों को हटा दिया गया। मुस्लिमों के लिए आवश्यक था कि वे उस (काबा) की ओर मुँह करके इबादत (प्रार्थना) करें। अल्प समय में ही पैगम्बर मुहम्मद को अरब प्रदेश के एक बड़े भाग को एक नए धर्म, समाज व राज्य के अन्तर्गत लाने में सफलता प्राप्त हो गयी।

प्रश्न 5. 
उमय्यद वंश के खलीफ़ाओं की प्रमुख उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
उमय्यद वंश के खलीफ़ाओं की प्रमुख उपलब्धियाँ-खलीफ़ा अली की मृत्यु के पश्चात् 661 ई. में मुआविया ने अपने आपको खलीफ़ा घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की। अरब पर इस वंश का शासनकाल 750 ई. तक चलता रहा। इस वंश के प्रमुख खलीफा मुआविया व अब्द अल-मलिक थे। उमय्यद वंश के खलीफाओं की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित र्थी
(i) अपने नेतृत्व को मजबूती प्रदान करना-उमय्यद वंश के खलीफाओं ने इस प्रकार के उपायों का सहारा लिया जिसने उम्मा के भीतर उनके नेतृत्व को मजबूती प्रदान की।

(ii) बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी प्रथाओं व प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाना-प्रथम उमय्यद खलीफा मुआविया ने अपने राज्य की राजधानी के रूप में दमिश्क शहर का चुनाव किया तत्पश्चात् बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी प्रथाओं व प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया।

(iii) वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा प्रारम्भ करना-खलीफा मुआविया ने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा प्रारम्भ कर उसको अरब के प्रमुख मुसलमानों से भी स्वीकृति प्राप्त करवा ली। उसने अपने पुत्र को उत्तराधिकारी स्वीकार करवाया। मुआविया के पश्चात् बनने वाले समस्त खलीफाओं ने इस नीति का अनुसरण किया।

(iv) साम्राज्यिक शक्ति के रूप में उभरना-अरब में उमय्यद राज्य एक साम्राज्यिक शक्ति के रूप में उभरा व विकसित हुआ। विकास की इस अवस्था में यह राज्य प्रत्यक्षतः इस्लाम पर आधारित न होकर शासन-कला एवं सीरियाई सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था।

(v) प्रशासन में ईसाई व जरथुष्टों को सम्मिलित करना-उमय्यद शासन ने अपने प्रशासन में ईसाई सलाहकारों एवं ज़रशुष्ट लिपिकों व अधिकारियों को भी सम्मिलित किया था। इसके बावजूद इस्लाम लगातार उमय्यद शासन को वैधता प्रदान करता रहा।

(vi) इस्लाम के नाम पर प्रशासन में एकता व विद्रोहों का दमन-उमय्यद वंश के शासक सदैव एकता के लिए प्रयत्नशील रहे एवं उन्होंने विद्रोहों का इस्लाम के नाम पर दमन किया।

(vii) अरबी पहचान को बनाए रखना-उमय्यद वंश के शासकों ने अपनी अरबी पहचान को बनाए रखा। अब्द अल-मलिक नामक खलीफा ने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।

(viii) अरब व इस्लाम दोनों पहचानों पर बल देना-अब्द अल-मलिक व उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में अरब व इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया गया।

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(ix) इस्लामी सिक्के जारी करना एवं इमारतें बनवाना-अब्द अल-मलिक ने इस्लामी राज्य में पूर्व में चल रहे सोने के दीनार व चाँदी के दिरहम सिक्कों के स्थान पर इस्लामी सिक्के जारी किये। इसने जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक का निर्माण करवाकर अरबी इस्लामी पहचान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह इमारत जेरूसलम नगर की मुस्लिम संस्कृति की प्रतीक थी।

प्रश्न 6. 
पैगम्बर मुहम्मद के उत्तराधिकारियों का विस्तार से वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद के उत्तराधिकारी-632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हो गयी थी। इसके पश्चात् कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। इसके परिणामस्वरूप उत्तराधिकार का कोई स्थापित सिद्धान्त न होने के कारण राजनीतिक सत्ता उम्मा को हस्तान्तरित कर दी गई। इसके दो प्रभाव पड़े

  1. नवाचारों के लिए अवसर प्राप्त हुए, 
  2. मुसलमानों में गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गए।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता अर्थात् अमीर-अल-मोमिनिन पैगम्बर का प्रतिनिधि अर्थात् खलीफ़ा बन गया।
(i) प्रथम खलीफा अबू बकर (632-634 ई.)-
पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् खिलाफ़त संस्था के नेतृत्व में अबू बकर को प्रथम खलीफा चुना गया। यह एक साहसी व संगठन की विलक्षण सूझबूझ वाला व्यक्ति था। इसने अनेक अभियानों के माध्यम से विद्रोहों का दमन किया तथा अल्प अवधि में ही अरब की आन्तरिक समस्याओं का निपटारा किया। 634 ई. में इसकी मृत्यु हो गयी।

(ii) द्वितीय खलीफा उमर (634-643 ई.)-
द्वितीय खलीफा उमर ने उम्मा के शक्ति विस्तार की नीति को एक नया , स्वरूप प्रदान किया। वह अच्छी तरह से जानता था कि व्यापार व करों से होने वाली अल्प आय के आधार पर उम्मा को नहीं चलाया जा सकता। यह जानते हुए कि सैन्य अभियानों के दौरान मारे गये सैनिकों के द्वारा गनिमा अर्थात् भारी लूट की धनराशि प्राप्त की जा सकती है। दूसरी बात को दृष्टिगत रखते हुए उमर व उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेंटाइन साम्राज्य एवं पूर्व में ससानी साम्राज्य पर विजय प्राप्त करके अपने कबीले की ताकत में वृद्धि की।

(iii) तृतीय खलीफा उथमान (644-656 ई.)-
खलीफ़ा उथमान ने अपना नियंत्रण एशिया तक बढ़ाने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए। उथमान का सम्बन्ध कुरैश कबीले से था। उसने प्रशासन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करने के लिए प्रशासन में कुरैशों को भर्ती कर लिया। इससे राज्य का मक्काई स्वरूप और अधिक तीव्र हो गया परिणामस्वरूप अन्य कबीलों के साथ झगड़े उत्पन्न हो गये। इराक व मिस्र के साथ-साथ मदीना में भी उथमान का विरोध बढ़ गया। इसी विरोध के चलते उथमान की हत्या कर दी गयी। 

(iv) चतुर्थ खलीफा अली (656-661 ई.)-
तृतीय खलीफ़ा उथमान की मृत्यु के पश्चात् अली को चौथा खलीफा नियुक्त किया गया। अली ने मक्का के कुलीन तंत्र का नेतृत्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े जिससे मुसलमानों में मतभेद गहरे हो गये। अली के समर्थकों व दुश्मनों ने इस्लाम के दो मुख्य सम्प्रदाय बना दिए-(अ) शिया सम्प्रदाय, (ब) सुन्नी सम्प्रदाय। ।
अली ने स्वयं को कुफा में स्थापित कर लिया। उसने मुहम्मद की पत्नी, आयशा के नेतृत्व वाली सेनाओं को 'ऊँट की लड़ाई' (657 ई.) में हरा दिया लेकिन वह उथमान के नजदीकी सीरिया के गवर्नर मुआविया के गुट का दमन नहीं कर सका। अली ने दूसरा युद्ध सिफ्फिन में लड़ा। यह युद्ध संधि के रूप में समाप्त हो गया जिसने उसके अनुयायियों को दो भागों में विभाजित कर दिया। कुछ लोग उसके विश्वासपात्र बने रहे तथा कुछ लोगों ने अली का साथ छोड़ दिया और ऐसे लोग खरजी कहलाने लगे। ऐसे ही एक खरजी ने 661 ई. में कुफा की मस्जिद में खलीफा की हत्या कर दी।

(v) उमय्यद वंश के खलीफा (661-750 ई.)-खलीफा अली की मृत्यु के पश्चात् 661 ई. में सीरिया के गवर्नर मुआविया ने अपने आपको अगला खलीफ़ा घोषित कर दिया। उसने उमय्यद वंश की स्थापना की। पहले उमय्यद खलीफ़ा मुआविया ने दमिश्क को राजधानी बनाया तथा बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी परम्पराओं व प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। इन्होंने वंशगत उत्तराधिकारी की परम्परा भी प्रारम्भ की। इसी वंश के अब्द अल-मलिक ने अपने शासनकाल में अरब व इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया। अन्तिम उमय्यद खलीफा मारवान थे। अरब पर उमय्यद वंश की सत्ता 90 वर्षों तक रही। 

(vi) अब्बासी वंश के खलीफा (750-945 ई.)-इस वंश का सम्बन्ध पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास से था। ये मक्का के थे। इन्होंने 750 ई. में 'दवा' नामक सुनियोजित आन्दोलन द्वारा उमय्यद वंश की सत्ता को उखाड़ फेंका। अब्बासी शासन के दौरान अरबों के प्रभाव में गिरावट आयी एवं ईरानी संस्कृति का महत्व बढ़ गया। 9वीं शताब्दी से यह राज्य कमजोर होता चला गया। 810 ई. में खलीफा हारुन अल रशीद के पुत्रों-अमीन व मामुन के समर्थकों के मध्य गृहयुद्ध शुरू हो गया जिससे गुटबंदी और बढ़ गयी। धीरे-धीरे खिलाफ़त का विघटन हो गया। 945 ई. में अब्बासी राज्य छिन गया। खलीफ़ा का पद भी समाप्त हो गया तथा सल्तनतों का उदय होना प्रारम्भ हो गया।

प्रश्न 7. 
अब्बासी क्रांति क्या है? अब्बासी क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों एवं इसका महत्व बताइए।
उत्तर:
अब्बासी क्रांति से आशय-उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनीतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण की सफलता के . लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी। 'दवा' नामक एक सुसंगठित आन्दोलन ने उमय्यद वंश की सत्ता को उखाड़ फेंका। 750 ई. में उमय्यद वंश के स्थान पर मक्का मूल के अब्बासियों की सत्ता स्थापित हो गयी। इसे ही 'अब्बासी क्रांति' कहा गया।
अब्बासी क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-अब्बासी क्रांति के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं" 
(i) खुरासान के अरबी नागरिकों की नाराजगी-खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे जो सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से इसलिए भी घृणा करते थे कि इन्होंने अरबों को करों में छूट देने व विशेषाधिकार देने के जो वचन दिए थे, वे पूरे नहीं किये थे।

(ii) ईरानी मुसलमानों (मवालियों) में नाराजगी-खुरासान में रहने वाले ईरानी मुसलमानों को अपनी जातीय चेतना से ग्रस्त अरब नागरिकों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अतः वे भी उमय्यद शासकों से नाराज थे। स्थिति यहाँ तक बिगड़ गयी थी कि वे इस वंश की सत्ता को उखाड़ फेंकने वाले किसी भी अभियान में सम्मिलित होना चाहते थे। - इन दोनों बातों ने अब्बासी क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का कार्य किया और एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम के नेतृत्व में अब्बासी सेना ने अन्तिम उमय्यद खलीफा मारवान को 'ज़ब नदी की लड़ाई' में पराजित कर उमय्यद वंश के स्थान पर अब्बासी वंश की सत्ता स्थापित कर दी।

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अब्बासी क्रांति का महत्व-
अब्बासी क्रांति के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. अब्बासी क्रांति ने इस्लाम के राजनीतिक ढाँचे एवं उसकी संस्कृति में भी परिवर्तन ला दिया। 
  2. इस क्रांति से अरबों के प्रभाव में कमी आयी जबकि ईरानी संस्कृति का महत्व बढ़ गया। 
  3. सेना व नौकरशाही का पुनर्गठन गैर-कबीलाई आधार पर किया गया। 
  4. इन्होंने अपनी राजधानी प्राचीन ईरानी महानगर टेसीफोन के खंडहरों के समीप, बगदाद में स्थापित की।
  5. अब्बासी शासकों ने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति एवं कार्यों को मजबूती प्रदान की एवं इस्लामी संस्थाओं व विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
  6. अब्बासी शासकों ने उमय्यद वंश के शासकों की उत्कृष्ट शाही वास्तुकला व राजदरबार के व्यापक समारोहों की परम्पराओं को बनाए रखा।

प्रश्न 8. 
इस्लामी साम्राज्य में खिलाफत का विघटन किस प्रकार हुआ? बुवाही शासकों ने खिलाफत के विघटन के पश्चात् भी अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में क्यों बनाए रखा?
उत्तर:
इस्लामी साम्राज्य में खिलाफत का विघटन-इस्लामी साम्राज्य में खिलाफ़त के विघटन की शुरुआत नौवीं शताब्दी से अब्बासी राज्य के कमजोर होने से प्रारम्भ हो गयी। दूर के प्रांतों पर बग़दाद का नियंत्रण कम होने तथा सेना व नौकरशाही में अरब-समर्थक एवं ईरान-समर्थक गुटों के मध्य झगड़ा होने से अब्बासी राज्य कमजोर होना प्रारम्भ हो गया। 810 ई. में इस्लामी (अरब) साम्राज्य के खलीफा हारुन अल-रशीद के पुत्रों, अमीन और मामुन के समर्थकों के मध्य गृहयुद्ध छिड़ गया जिससे अरब साम्राज्य में गुटबंदी और अधिक गहरी हो गई।

परिणामस्वरूप तुर्की गुलाम अधिकारियों (मामलुक) का एक नया शक्ति गुट बन गया। दूसरी ओर शियाओं ने एक बार पुनः सुन्नी रूढ़िवादिता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप अनेक छोटे-छोटे राजवंश उत्पन्न हो गए। इनमें खुरासान व ट्रांसोक्सियाना (तूरान) अथवा ऑक्सस के पार वाले क्षेत्रों में ताहिरी व समानी वंश तथा मिस्र व सीरिया में तुलुनी वंश प्रमुख थे। इसके कारण अब्बासियों की सत्ता शीघ्र ही मध्य इराक व पश्चिमी ईरान तक ही सीमित रह गई। 945 ई. में ईरान के कैस्पियन क्षेत्र (डेलाम) में बुवाही नामक शिया वंश ने बग़दाद पर कब्जा कर लिया।

फलस्वरूप अब्बासियों की सत्ता समाप्त हो गयी। बुवाही शासकों ने खलीफ़ा की उपाधि के स्थान पर शहंशाह की उपाधि धारण की। उन्होंने अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी सम्प्रदाय की प्रजा के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा। इस प्रकार खिलाफ़त का विघटन हो गया। बुवाही शासकों द्वारा अब्बासी खलीफा को प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखने का कारण अथवा खिलाफत को समाप्त न करने का कारण-खिलाफत के विघटन के पश्चात् भी बुवाही शासकों द्वारा अब्बासी खलीफा को अपने सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखना एक चतुराईपूर्ण निर्णय था। इसका मुख्य कारण यह था कि फ़ातिमी नामक एक अन्य शिया राजवंश इस्लामी साम्राज्य पर अधिकार करने की योजना बना रहा था।

फ़ातिमी राजवंश का सम्बन्ध शिया सम्प्रदाय के एक उपसम्प्रदाय इस्माइली से था। इस राजवंश का यह दावा था कि वे पैगम्बर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज हैं, इसलिए वे इस्लामी साम्राज्य के एकमात्र न्यायसंगत शासक हैं। उन्हें इस हेतु मान्यता दी जानी चाहिए। इन्होंने 969 ई. में मिस्र को जीतकर फ़ातिमी खिलाफत की स्थापना कर दी। बुवाही शासक इस राजवंश के प्रभाव को रोकना चाहते थे अतः उन्होंने अब्बासी खलीफ़ा को अपने सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा।

प्रश्न 9. 
धर्मयुद्ध क्या थे? इसके लिए कौन-कौन सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्मयुद्ध से आशय-1095 से 1291 ई. के मध्य यूरोपीय ईसाइयों एवं अरबी मुसलमानों के मध्य अनेक युद्ध लड़े गये। इन युद्धों को धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है।
धर्मयुद्धों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-यूरोपीय ईसाइयों एवं अरबी मुसलमानों के मध्य युद्धों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं
(i) अरबी मुसलमानों द्वारा ईसाई पवित्र भूमि पर अधिकार करना-यूरोपीय ईसाइयों की पवित्र भूमि जेरूसलम थी, जिस पर 638 ई. में अरबी मुसलमानों ने अधिकार कर लिया था। जेरूसलम को ईसाई समुदाय ईसा के क्रूसारोपण एवं पुनः जीवित होने का स्थान मानता था। इस कारण से ईसाई लोग जेरूसलम पर पुनः अधिकार करने हेतु उत्सुक थे।

(ii) मुख्य शत्रु के रूप में केवल मुसलमानों का शेष रह जाना-ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों द्वारा नार्मनों, हंगरीवासियों व कुछ स्लाव लोगों को ईसाई बना दिया गया था। अब केवल मुसलमान ही मुख्य शत्रु के रूप में रह गये थे। अतः ईसाइयों की मुसलमानों के प्रति शत्रुता और अधिक स्पष्ट हो गई।

(iii) पश्चिमी यूरोपीय संगठनों में परिवर्तन-ग्यारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के आर्थिक एवं सामाजिक संगठनों में भी परिवर्तन हो गया था, जिससे ईसाइयों और अरबी मुसलमानों के मध्य शत्रुता और अधिक बढ़ गई।

(iv) ईश्वरीय शांति (पीस ऑफ गॉड) आन्दोलन-ईश्वरीय शांति अर्थात् पीस ऑफ गॉड आन्दोलन ने सामन्ती राज्यों के मध्य सैनिक मुठभेड़ की सम्भावनाओं को समाप्त कर दिया था। इस आन्दोलन ने सामंती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई जगत से हटाकर ईश्वर के शत्रुओं अर्थात् अरबी मुसलमानों की ओर मोड़ दिया था। इससे एक ऐसा वातावरण निर्मित हुआ जिसमें अविश्वासियों अर्थात् विधर्मियों के खिलाफ संघर्ष को न केवल उचित बल्कि प्रशंसनीय माना जाने लगा। 

(v) बग़दाद के सल्जुक साम्राज्य का विघटन-1092 ई. में बग़दाद के सल्जुक साम्राज्य के सुल्तान मलिक शाह की मृत्यु हो गयी। इनकी मृत्यु के पश्चात् सल्जुक साम्राज्य का विघटन हो गया। इससे बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर व उत्तरी सीरिया को पुनः हथियाने का अवसर प्राप्त हो गया। पोप अर्बन द्वितीय भी ईसाई धर्म के पुनरुत्थान के लिए प्रयत्नशील था। अतः 1095 ई. में पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेंटाइन सम्राट के साथ मिलकर पुण्यभूमि अर्थात् होली लैंड जेरूसलम को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध का आह्वान किया।

प्रश्न 10. 
यूरोपीय ईसाइयों एवं अरबी मुसलमानों के मध्य हुए धर्मयुद्धों एवं उनके प्रभावों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
अथवा 
धर्मयुद्धों की घटनाओं एवं धर्मयुद्धों के ईसाई-मुस्लिम सम्बन्धों पर प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1095 से 1291 ई. के मध्य यूरोपीय ईसाइयों एवं अरबी मुसलमानों के मध्य कई युद्ध हुए, जिनमें से तीन युद्ध प्रमुख हैं। इनका वर्णन एवं प्रभाव निम्नलिखित प्रकार से है
(i) प्रथम धर्मयुद्ध-ईसाई व मुसलमानों के मध्य प्रथम धर्मयुद्ध 1098 ई. में प्रारम्भ हुआ जो 1099 में समाप्त हुआ। इस युद्ध में फ्रांस व इटली के ईसाई सैनिकों ने सीरिया के एंटीओक एवं जेरूसलम पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। जेरूसलम में यहूदियों और मुसलमानों की बड़ी संख्या में हत्याएँ की गयीं। इन्होंने सीरिया व फिलिस्तीन के क्षेत्र में धर्मयुद्ध द्वारा विजित चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से आउटरैमर अर्थात् समुद्रपारीय भूमि कहा गया।

(ii) द्वितीय धर्मयुद्ध-द्वितीय धर्म युद्ध 1145 से 1149 ई. के मध्य ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य हुआ। इस युद्ध का प्रमुख कारण 1144 ई. में तुर्कों द्वारा एडेस्सा पर अधिकार कर लेना रहा। इस बात से दुखी होकर पोप ने ईसाई राजाओं एवं सामन्तों से एक अन्य धर्मयुद्ध के लिए अपील की। पोप की अपील को स्वीकार करते हुए जर्मन और फ्रांसीसी सेना  ने मुसलमानों से युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने दमिश्क पर अधिकार करने का प्रयत्न किया परन्तु उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसके पश्चात् आउटरैमर की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गयी।

अतः ईसाइयों में धर्मयुद्ध के प्रति उत्साह भी समाप्त हो गया। उन्होंने विलासिता से जीवनयापन करना एवं नए-नए प्रदेशों के लिए लड़ाई करना प्रारम्भ कर दिया। इसी दौरान सलाह अल-दीन नामक व्यक्ति ने एक मिस्री-सीरियाई साम्राज्य स्थापित करके ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। 1187 ई. में उसने ईसाइयों को पराजित कर दिया। उसने जेरूसलम पर पुनः अधिकार कर लिया। उसने ईसाइयों के साथ नम्रता का व्यवहार किया तथा 'द चर्च ऑफ दि होली सेपलकर' की अभिरक्षा का दायित्व ईसाइयों को ही सौंप दिया था, लेकिन उसने अनेक गिरिजाघरों को मस्जिदों में बदलवा दिया। इस प्रकार एक बार फिर जेरूसलम मुस्लिम शहर बन गया। 

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(iii) तृतीय धर्मयुद्ध-मुसलमानों द्वारा जेरूसलम शहर को छीन लिए जाने पर यूरोप के ईसाई समुदाय में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हो गया और उन्होंने 1189 ई. में तृतीय धर्मयुद्ध छेड़ने की घोषणा कर दी। धर्मयुद्ध करने वाले ईसाई सैनिक, फिलिस्तीन के कुछ तटवर्ती शहरों एवं ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए जेरूसलम में स्वतंत्र प्रवेश के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं कर सके। अन्त में 1291 ई. में मिस्र के शासकों व मामलुकों ने धर्मयुद्ध करने वाले समस्त ईसाइयों को सम्पूर्ण फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया।

धर्मयुद्धों के प्रभाव-धर्मयुद्धों के ईसाई-मुस्लिम सम्बन्धों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. मुस्लिम राज्यों में वहाँ के शासकों ने अपने ईसाई नागरिकों के प्रति कठोर नीति अपनाना प्रारम्भ कर दिया।
  2. मुस्लिम शासन की पुनर्स्थापना के पश्चात् भी पूर्व और पश्चिम के मध्य व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 11. 
इस्लामी राज्य में शहरों के अप्रत्याशित विकास को उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में शहरों का अप्रत्याशित विकास-इस्लामी राज्य में शहरों के अप्रत्याशित विकास को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है
(i) इस्लामी राज्य में जैसे-जैसे शहरों का अप्रत्याशित विकास होना प्रारम्भ हुआ, वैसे-वैसे इस्लामी सभ्यता पुष्पित-पल्लवित होने लगी। कुफा और बसरा इराक में तथा फुस्तात व काहिरा मिस्र में तीव्र गति से स्थापित शहर बन गए। अब्बासी खिलाफ़त की राजधानी के रूप में स्थापना के पश्चात् बगदाद की जनसंख्या बढ़कर 10 लाख तक पहुँच गई। इसके अतिरिक्त दमिश्क, इस्फहान एवं समरकंद भी नये शहरी केन्द्र बनकर उभरे। खाद्यान्नों एवं शहरी विविधताओं के लिए कच्चे माल जैसे कपास व चीनी आदि के उत्पादन में वृद्धि होने से भी शहरों के आकार व जनसंख्या में वृद्धि हुई। इस प्रकार इस्लामी राज्य में शहरों का एक विशाल जाल विकसित हो गया जिसने व्यापार-वाणिज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) शहरों के विकास से एक शहर दूसरे शहर से जुड़ता चला गया और परस्पर सम्पर्क का क्षेत्र भी बढ़ता चला गया। शहर के केन्द्र में दो भवन परिसर होते थे जहाँ से आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन होता था। इन दो भवनों में से एक सामुदायिक मस्जिद (मस्जिद अल-जामी) होती थी जो इतनी अधिक विशालता लिए हुए होती थी कि दूर से ही दिखाई देती थी। दूसरा भवन-समूह केन्द्रीय मंडी होता था, जिसे सुक कहा जाता था, इसमें दुकानों की पंक्तियाँ होती थीं, व्यापारियों के आवास फंदुक एवं सर्राफ का कार्यालय होता था। 

(iii) शहर में प्रशासकों एवं विद्वानों और व्यापारियों के लिए घर होते थे जो केन्द्र के समीप बने हुए होते थे। साधारण नागरिकों एवं सैनिकों के निवास के लिए भवन बाहरी घेरे में होते थे। प्रत्येक घेरे में अपनी मस्जिद, गिरिजाघर अथवा सिनेगोग (यहूदी प्रार्थनाघर), छोटी मंडी, सार्वजनिक स्नानघर (हमाम) एवं एक महत्वपूर्ण सभा स्थल होता था।

(iv) शहर के बाहरी क्षेत्रों में शहरी गरीबों के मकान, हरी सब्जियों व फलों के बाजार, काफिलों के ठिकाने, चमड़ा साफ करने व रँगने की दुकानें तथा कसाई की दुकानें होती थीं। शहर की चारदीवारी के बाहर कब्रिस्तान एवं सरायें होती थीं। सराय में लोग उस समय आराम कर सकते थे, जब शहर के दरवाजे बन्द कर दिए जाते थे। सभी इस्लामी शहरों के मानचित्र एक समान नहीं होते थे। उनमें राजनीतिक परम्पराओं एवं ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर परिवर्तन किये जा सकते थे।

प्रश्न 12. 
राजनीतिक एकीकरण एवं खाद्य पदार्थों व विलास वस्तुओं की शहरी माँग ने विनिमय के दायरे का किस प्रकार विस्तार किया? समझाइए।
उत्तर:
राजनीतिक एकीकरण एवं खाद्य पदार्थों व विलास वस्तुओं की शहरी माँग ने विनिमय के दायरे को निम्न प्रकार से विस्तारित कर दिया था
(i) यह सत्य है कि राजनीतिक एकीकरण एवं खाद्य पदार्थों व विलास वस्तुओं की शहरी माँग ने विनिमय के दायरे का निश्चित तौर पर विस्तार कर दिया। भूगोल ने मुस्लिम साम्राज्य की सहायता की। इसका विस्तार हिन्द महासागर तथा भूमध्यसागर के व्यापारिक क्षेत्रों के मध्य हुआ।

(ii) पाँच शताब्दियों तक अरब व ईरानी व्यापारियों का चीन, भारत और यूरोप के मध्य समुद्री व्यापार पर एकाधिकार रहा। यह व्यापार दो मार्गों-काला सागर और फ़ारस की खाड़ी से होता था। लम्बी दूरी के व्यापार हेतु उपयुक्त और उच्च मूल्य वाली वस्तुएँ; जैसे-मसाले, कपड़े, चीनी मिट्टी की वस्तुएँ और बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के बंदरगाहों जैसे अदन व ऐधाब तक और फारस की खाड़ी के बंदरगाहों सिराफ व बसरा तक जहाज पर लाया जा सकता था।

(iii) यहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों द्वारा बग़दाद, दमिश्क और एलेप्पो के भंडारगृहों तक स्थानीय खपत के लिए अथवा आगे भेजने के लिए ले जाया जाता था। (iv) हजयात्रा के समय मक्का के रास्ते से गुजरने वाले काफिले बड़े हो जाते थे। व्यापारिक मार्गों के भूमध्यसागर के किनारे पर सिकंदरिया के रास्ते यूरोप को किए जाने वाले निर्यात को यहूदी व्यापारियों द्वारा नियंत्रित किया जाता था। उनमें से कुछ यहूदी व्यापारी भारत से सीधे व्यापार करते थे। चौथी शताब्दी से व्यापार और शक्ति के केन्द्र के रूप में काहिरा के उभरने के कारण एवं इटली के व्यापारिक शहरों से पूर्वी सामान की बढ़ती हुई माँग के कारण लाल सागर के मार्ग ने अपेक्षाकृत अधिक महत्व प्राप्त कर लिया।

(v) ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ जिनमें कागज आदि वस्तुएँ लाने के लिए बगदाद से बुखारा और समरकंद होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे। 

(vi) समरकंद (तुरान) भी वाणिज्यिक तंत्र में एक महत्वपूर्ण कड़ी था। यह तन्त्र यूरोपीय वस्तुओं, मुख्यतः फर और स्लाव गुलामों के व्यापार के लिए उत्तर में रूस और स्कैंडीनेविया तक फैला हुआ था।

प्रश्न 13. 
इस्लामी जगत के इतिहास लेखन में कागज़ व गेनिज़ा अभिलेख किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हुए? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
इस्लामी जगत के इतिहास लेखन में कागज़ व गेनिज़ा अभिलेख निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी सिद्ध हुए इतिहास लेखन में कागज की उपयोगिता-इस्लामी जगत में कागज़ चीन से आया था। कागज़ के आविष्कार के पश्चात् इस्लामी जगत के इतिहास लेखन में एक क्रांति आ गयी। इसके पश्चात् इस्लामी जगत में लिखित रचनाओं का व्यापक रूप से प्रसार होने लगा। 751 ई. में समरकंद के एक मुस्लिम प्रशासक ने 20,000 चीनी आक्रमणकारियों को गिरफ्तार कर लिया था। इन बंदियों में से कुछ लोग कागज़ बनाने में दक्ष थे। उन्होंने समरकंद में पर्याप्त मात्रा में कागज़ उत्पादित किया।

स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी कि आगामी सौ वर्षों के लिए समरकंद का कागज़ निर्यात की एक महत्वपूर्ण वस्तु बन गया। समरकंद के अतिरिक्त अन्य मुस्लिम राज्यों में भी कागज़ का निर्माण होने लगा। इतिहास लेखन में विद्वानों द्वारा कागज़ का पर्याप्त मात्रा में उपयोग किया जाना भी प्रारम्भ हो गया। इतिहास लेखन में गेनिज़ा अभिलेखों की उपयोगिता-इस्लामी जगत में जब पर्याप्त मात्रा में कागज़ उपलब्ध होने लगा तो इस क्षेत्र में समस्त प्रकार के वाणिज्यिक एवं व्यक्तिगत दस्तावेजों को लिखना भी आसान हो गया। 1896 ई. में फुस्तात (प्राचीन काहिरा) में बेन एज़रा के यहूदी प्रार्थनाघर के एक सीलबंद कमरे जिसे गेनिज़ा कहा जाता था, में मध्यकालीन यहूदी दस्तावेजों का एक विशाल संग्रह पूर्ण रूप से सुरक्षित प्राप्त हुआ।

ये दस्तावेज आठवीं से तेरहवीं शताब्दी के मध्य काल तक के थे। गेनिज़ा अभिलेखों में व्यापारियों, परिवार के सदस्यों और मित्रों के मध्य लिखे गये पत्र, संविदा, बिक्री दस्तावेज, विवाह से जुड़े बुनाई के कपड़ों की सूचियाँ एवं अन्य वस्तुएँ सम्मिलित थीं। अधिकांश दस्तावेज यहूदी-अरबी भाषा में लिखे गये थे। ये गेनिज़ा अभिलेख इतिहास लेखन में बहुत उपयोगी हैं। ये अभिलेख व्यक्तिगत एवं आर्थिक अनुभवों से भरे हुए हैं तथा ये भूमध्यसागरीय और इस्लामी संस्कृति की पर्याप्त आंतरिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं।

इन दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि मध्यकालीन इस्लामी जगत के व्यापारियों के व्यापारिक कौशल एवं वाणिज्यिक प्रविधि उनके यूरोपीय प्रतिपक्षियों की तुलना में बहुत अधिक विकसित थी। गेटिन नामक इतिहास के विद्वान ने गेनिज़ा अभिलेखों का प्रयोग करते हुए 'भूमध्यसागर का इतिहास' नामक पुस्तक लिखी। गेनिज़ा के एक पत्र से प्रेरित होकर अमिताभ घोष ने अपनी पुस्तक 'इन एन एंटीक लैंड' में एक भारतीय दास की कहानी का वर्णन किया है।

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प्रश्न 14. 
अब्द अल-लतीफ कौन थे? उन्होंने एक आदर्श विद्यार्थी के क्या गुण बताये? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
अब्द अल-लतीफ़ बारहवीं शताब्दी के बग़दाद में कानून और चिकित्सा विषयों के प्रख्यात विद्वान थे। उन्होंने एक आदर्श विद्यार्थी के निम्नलिखित गुण बताये
(i) ज्ञान प्राप्ति हेतु शिक्षकों का सहयोग लेना-अब्द अल-लतीफ के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी को केवल पुस्तकों से ही ज्ञान प्राप्त नहीं करना चाहिए बल्कि शिक्षकों का भी सहयोग लेना चाहिए। उसे प्रत्येक विषय के लिए जिसका ज्ञान वह प्राप्त करना चाहता है, शिक्षकों का सहयोग लेना चाहिए, विशेषकर विज्ञान विषय में। यदि शिक्षक का ज्ञान सीमित हो तो जो कुछ वह दे सके, उसे ही प्राप्त कर लेना चाहिए।

(ii) शिक्षक का सम्मान करना-प्रत्येक आदर्श विद्यार्थी को अपने शिक्षक का आदर-सम्मान करना चाहिए। उसे सदैव शिक्षक की आज्ञा का अनुसरण करना चाहिए।

(iii) इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना-प्रत्येक आदर्श विद्यार्थी को इतिहास की पुस्तकों का गहनता के साथ अध्ययन करना चाहिए। उसे श्रेष्ठ लोगों की जीवनियों एवं राष्ट्र के अनुभवों का अध्ययन करना चाहिए।

(iv) पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी का अध्ययन करना-एक आदर्श विद्यार्थी को पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी का अध्ययन करना चाहिए तथा उनके पद चिह्नों पर चलना चाहिए। उसे अपना आचरण प्रारम्भिक मुसलमानों के आचरण के अनुरूप करना चाहिए।

(v) पुस्तकों को कंठस्थ करना-प्रत्येक आदर्श विद्यार्थी जब कोई पुस्तक पढ़े तो उसे कंठस्थ करने एवं उसके भाव पर पूर्ण अधिकार कर लेना चाहिए। पुस्तक के खोने की स्थिति में पुस्तक कंठस्थ होने से विद्यार्थी को हानि नहीं उठानी पड़ेगी।

(vi) अल्लाह का गुण-गान करना-प्रत्येक आदर्श विद्यार्थी को अपनी जीभ को सदैव अल्लाह का नाम लेने में ही व्यस्त रखना चाहिए।

(vii) अपने स्वभाव पर बार-बार अविश्वास करना-प्रत्येक आदर्श विद्यार्थी को अपने स्वभाव के बारे में एक अच्छी राय रखने के स्थान पर उस पर बार-बार अविश्वास करना चाहिए। उसे अपना सम्पूर्ण ध्यान विद्वानों के जीवन एवं उनकी रचनाओं पर लगाना चाहिए। उसे सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए तथा कभी भी जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 15. 
अरब सभ्यता का साहित्य एवं वास्तुकला के क्षेत्र में योगदान का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरब साहित्य का साहित्य एवं वास्तुकला के क्षेत्र में योगदान-अरब सभ्यता का साहित्य एवं वास्तुकला के क्षेत्र में योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है-अरब लोग साहित्य के क्षेत्र में बहुत अग्रणी थे। उन्होंने इस काल में कविताओं, कहानियों, जीवनियों, आचार-संहिताओं, शासन कला से सम्बन्धित पुस्तकों एवं ऐतिहासिक ग्रन्थों आदि की रचना की। इस काल के साहित्यकारों में अबु नुवास, रुदकी, उमर खय्याम, फिरदौसी आदि प्रमुख थे। फारसी मूल के अबु नुवास ने इस्लाम में निषेध, आनन्द मनाने के उद्देश्य से शराब व पुरुष प्रेम जैसे नए विषयों पर उत्कृष्ट श्रेणी की कविताओं की रचना करके नया मार्ग चुना। रुमानी दरबार के कवि रुदकी को नयी फारसी कविता का जनक माना जाता था।

नई फारसी कविता में छोटे गीत काव्य (गजल) और चतुष्पदी (रुबाई) जैसे नवीन रूप सम्मिलित थे। उमर खय्याम ने रूबाई का अत्यधिक विकास किया। ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गज़नी फ़ारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र बन गया था। गज़नी के महमूद के दरबार में कवियों का एक समूह था जिन्होंने काव्य संग्रहों (दीवानों) और महाकाव्यों (मथनवी) की रचना की। गजनी के फिरदौसी ने शाहनामा (राजाओं का जीवन चरित) लिखा जिसे पूर्ण करने में 30 वर्ष लग गए। बगदाद के एक पुस्तक विक्रेता इब्न नदीम की पुस्तक सूची में ऐसी कई पुस्तकों का उल्लेख है जो पाठकों की नैतिक शिक्षा व उनके मनोरंजन के लिए लिखी गयी थीं। इनमें सबसे प्राचीन पुस्तक कलीला व दिमना है।

वीर साहसियों की कहानियाँ हैं; जैसे-अल सिकन्दर और सिंदबाद, एक हजार एक रातें। बसरा के जहीज़ ने किताब अल-बुखाला (कंजूसों की पुस्तक) लिखीं। वास्तुकला के क्षेत्र में-अरब इस्लामी राज्य में वास्तुकला के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई। इस काल में अनेक मस्जिदों, मकबरों व राजमहलों आदि का निर्माण किया गया। इस काल की प्रमुख इमारतों में जेरूसलम में पथरीले टीले के ऊपर अब्द अल-मलिक द्वारा निर्मित चट्टान का गुम्बद, समारा की अल-मुतव्वकिल की महान मस्जिद, मुस्तनसिरिया मदरसा, मरुस्थली महल जैसे फिलिस्तीन में खिरवत-अल मफजर तथा जोर्डन में कुसाईर अमरा, बगदाद के अब्बासियों के विशाल महल तथा काहिरा में फातिमियों के महल आदि हैं। धार्मिक इमारतें इस्लामी जगत की सबसे बड़ी बाहरी प्रतीक थीं।

स्पेन से लेकर मध्य एशिया तक फैली मस्जिदें, इबादतगाहों एवं मकबरों का आधारभूत नमूना एक जैसा था। जिनकी प्रमुख विशेषताएँ थीं-मेहराबें, गुम्बद, मीनारें एवं खुले प्रांगण। इस्लाम की प्रथम शताब्दी में मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्प का रूप (खम्भों के सहारे बनी छत) धारण कर लिया। उमय्यद वंश के शासकों ने नखलिस्तानों में मरुस्थलीय महलों का निर्माण किया। इन महलों को चित्रों, प्रतिमाओं एवं पच्चीकारी से सजाया जाता था। इस तरह इस्लामी राज्य में अरब क्षेत्र में वास्तुकला के कई सुन्दर नमूने उत्कृष्ट थे।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
एशिया के रूपरेखा मानचित्र में इस्लामी क्षेत्रों को दर्शाइए।
उत्तर:
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विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
काबा क्या है?
(क) हिन्दू पवित्र स्थल
(ख) मुस्लिम पवित्र स्थल 
(ग) यहूदी पवित्र स्थल
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ख) मुस्लिम पवित्र स्थल 

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प्रश्न 2. 
कागज़ सर्वप्रथम किस देश में बनाया गया?
(क) जापान
(ख) चीन
(ग) मिस्र 
(घ) स्पेन।
उत्तर:
(ख) चीन

प्रश्न 3. 
हिजरी सन् की स्थापना किस खलीफा के समय में हुई? 
(क) उस्मान
(ख) अली
(ग) अबु-बकर 
(घ) उमर। 
उत्तर:
(घ) उमर। 

प्रश्न 4. 
इस्लाम में 'मिराज' शब्द का अर्थ क्या है? 
(क) संदेह
(ख) मुहम्मद साहब की रात में स्वर्ग की यात्रा से 
(ग) मुहम्मद साहब की मक्का से मदीना यात्रा
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ख) मुहम्मद साहब की रात में स्वर्ग की यात्रा से 

प्रश्न 5. 
उस राजा का नाम बताइए जिसने हजरत मुहम्मद के अनुयायियों को हराया पर जो इस्लाम को विश्व का धर्म बनाना चाहते थे?
(क) चार्ल्स मार्टेल 
(ख) लोथेमर
(ग) शॉलमन 
(घ) पोपिन। 
उत्तर:
(क) चार्ल्स मार्टेल 

प्रश्न 6. 
प्रथम ईसाई गिरजाघर की स्थापना किस स्थान पर हुई?
(क) वेथलहम 
(ख) रोम
(ग) कांन्सटेन्टीनोपल 
(घ) जेरूसलम। 
उत्तर:
(घ) जेरूसलम। 

प्रश्न 7. 
ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच किस धार्मिक स्थल को लेकर धर्मयुद्ध लड़ा गया? 
(क) मक्का 
(ख) जेरूसलम 
(ग) रोम
(घ) कान्सटेन्टीनोपल। 
उत्तर:
(ख) जेरूसलम 

प्रश्न 8. 
हिजरी संवत का प्रारम्भ माना जाता है?
(क) 622 ई.
(ख) 712 ई.
(ग) 570 ई. 
(घ) 1129 ई. 
उत्तर:
(क) 622 ई.

प्रश्न 9. 
पैगम्बर मुहम्मद ने किस वर्ष मक्का पर अधिकार स्थापित किया?  
(क) 624 ई.
(ख) 630 ई.
(ग) 625 ई. 
(घ) 600 ई.
उत्तर:
(ख) 630 ई.

प्रश्न 10. 
मुस्लिम सेनापति तारिक ने स्पेन पर किस वर्ष आधिपत्य स्थापित किया था?
(क) 724 ई.
(ख) 725 ई.
(ग) 212 ई.
(घ) 711 ई.
उत्तर:
(घ) 711 ई.

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प्रश्न 11. 
निम्नलिखित में से पहला खलीफा कौन था?
(क) अबू बकर
(ख) सुलेमान 
(ग) इमाम हुसैन
(घ) कांस्टेन्टाइन। 
उत्तर:
(क) अबू बकर

प्रश्न 12. 
शिया मुसलमानों का पवित्र स्थान कर्बला किस देश में है?
(क) सीरिया
(ख) इराक
(ग) ईरान
(घ) जार्डन। 
उत्तर:
(ख) इराक

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 9:58 a.m.
Published July 28, 2022