Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan Chapter 7 आजादी का आन्दोलन और राजस्थान Textbook Exercise Questions and Answers.
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I. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर के विकल्प को कोष्ठक में लिखिए
1. "चेतावणी रा चूंगट्या" नामक प्रसिद्ध सोरठे लिखे थे
(अ) केसरी सिंह बारहठ ने
(ब) अर्जुन लाल सेठी ने
(स) जोरावर सिंह बारहठ ने
(द) राव भोपाल सिंह खरवा ने
उत्तर:
(अ) केसरी सिंह बारहठ ने
2. राव सवाई कृष्ण सिंह के समय में बिजोलिया की जनता से लागतें (लाग) ली जाती थी
(अ) 48 प्रकार की
(ब) 84 प्रकार की
(स) 88 प्रकार की
(द) 44 प्रकार की
उत्तर:
(ब) 84 प्रकार की
II. स्तंभ'अ' एवं 'ब' को सुमेलित करें
स्तंभ 'अ' |
स्तंभ 'ब' |
मारवाड़ प्रजामंडल |
माणिक्य लाल वर्मा |
मेवाड़ प्रजामंडल |
पं. अभिन्न हरि |
जयपुर प्रजामंडल |
जमनालाल बजाज |
बीकानेर प्रजामंडल |
जयनारायण व्यास |
कोटा प्रजामंडल |
मघाराम वैद्य |
उत्तर:
स्तंभ 'अ' |
स्तंभ 'ब' |
मारवाड़ प्रजामंडल |
जयनारायण व्यास |
मेवाड़ प्रजामंडल |
माणिक्य लाल वर्मा |
जयपुर प्रजामंडल |
जमनालाल बजाज |
बीकानेर प्रजामंडल |
मघाराम वैद्य |
कोटा प्रजामंडल |
पं. अभिन्न हरि |
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. भगत आंदोलन ............ द्वारा चलाया गया।
2. 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना ........... द्वारा की गयी।
उत्तर:
1. गोविन्द गुरु
2. विजय सिंह पथिक।
III. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किन्हीं तीन किसान आंदोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
तीन किसान आंदोलन निम्न हैं
(i) बिजोलिया आंदोलन
(ii) बेगूं किसान आंदोलन,
(iii) बूंदी किसान आंदोलन।
प्रश्न 2.
गोविन्द गुरु किसके विचारों से प्रभावित थे?
उत्तर:
गोविन्द गुरु दयानंद सरस्वती के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित थे।
IV. लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बिजोलिया किसान आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बिजोलिया किसान आंदोलन-यह आंदोलन धाकड़ जाति के किसानों द्वारा प्रारम्भ किया गया। यह 44 वर्षों तक चला एवं पूर्णतया अहिंसात्मक रहा और मुख्यतः तीन चरणों में विभक्त था प्रथम चरण (1897 से 1914 तक), दूसरा चरण (1914 से 1923 तक) और तीसरा चरण (1923 से 1941 तक)।
राव सवाई कृष्ण सिंह के समय भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया के किसानों से 84 प्रकार की लागतें ली जाती थी। बाद में प्रजा पर चंवरी कर भी लगा दिया गया। किसानों के विरोध के बाद चंवरी कर की लागत माफ कर दी गयी एवं अन्य लगानों में छूट दी गयी। आगे चलकर, पृथ्वीसिंह ने जनता पर 'तलवार बन्दी' की लागत लगा दी। किसानों ने विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में आंदोलन जारी रखा, उन्हें माणिक्यलाल वर्मा का भी साथ मिला। इस आंदोलन से जमनालाल बजाज भी जडे। एक लंबे संघर्ष के बाद आंदोलन समाप्त हुआ और किसानों से समझौता करके उनकी जमीनें वापिस दी गई।
प्रश्न 2.
प्रजामंडल से आप क्या समझते हैं? इनके नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रजामंडल का अर्थ है, प्रजा का मंडल अथवा संगठन। राजस्थान में प्रजामंडलों ने जन भागीदारी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जन आंदोलन के संचालन का दायित्व जनता को दिया गया एवं राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रजामंडलों का गठन किया गया, जिनके नाम हैं
1. मारवाड़ प्रजामंडल
2. जयपुर प्रजामंडल
3. मेवाड़ राज्य प्रजामंडल
4. बीकानेर राज्य प्रजामंडल
5. कोटा राज्य प्रजामंडल
I. निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए
1. बिजोलिया किसान आंदोलन कितने वर्षों तक चला?
(अ) 11
(ब) 22
(स) 33
(द) 44
उत्तर:
(द) 44
2. बेंगू किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
(अ) जमनालाल बजाज
(ब) विजय सिंह पथिक
(स) रामनारायण चौधरी
(द) पं. नयनूराम
उत्तर:
(स) रामनारायण चौधरी
3. मारवाड़ प्रजामंडल की स्थापना कब हुई?
(अ) सन् 1934 में
(ब) सन् 1936 में
(स) सन् 1938 में
(द) सन् 1939 में
उत्तर:
(अ) सन् 1934 में
4. सेठ दामोदर दास राठी ने ब्यावर में आर्य समाज की नींव कब रखी?
(अ) 1920 में
(ब) 1921 में
(स) 1935 में
(द)-1947 में
उत्तर:
(ब) 1921 में
II. रिक्त स्थानों की उचित शब्दों द्वारा पूर्ति कीजिए
1. देश में जब आजादी का आंदोलन चल रहा था, तब ...... भी उससे अछूता नहीं रहा।
2. मध्यकाल में राजस्थान में ........ एवं ........ के मध्य अच्छे सम्बन्ध थे।
3. अलवर राज्य में ......... किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचते थे।
4. ठाकुर कल्याण सिंह ने पूर्व ठाकुर की मृत्यु पर हुए खर्चे के लिए ........ में वृद्धि कर दी।
उत्तर:
1. राजस्थान
2. जागीरदारों, किसानों
3. जंगली सूअर,
4. लगान।
III. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रजामंडलों की भूमिका बताइए।
उत्तर:
प्रजामंडलों ने राजस्थान के लोगों में राजनीतिक चेतना जागृत की एवं बाद में राजस्थान के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 2.
बिजोलिया किसान आंदोलन कितने चरणों में चलाया गया?
उत्तर:
यह आंदोलन मुख्यत: तीन चरणों में सम्पन्न हुआ - प्रथम चरण (1897 से 1914 तक), दूसरा चरण (1914 से 1923 तक) और तीसरा चरण (1923 से 1941 तक)।
प्रश्न 3.
गोविन्द गुरु का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
गोविन्द गुरु का जन्म डूंगरपुर राज्य में एक साधारण बंजारा परिवार में हुआ था।
प्रश्न 4.
अर्जुन लाल सेठी कितनी भाषाओं के जानकार थे?
उत्तर:
ये अंग्रेजी, पारसी, संस्कृत, अरबी और पाली के विद्वान थे।
IV. लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान में आजादी का आंदोलन किस प्रकार शुरू हुआ?
उत्तर:
जब देश में आजादी के आंदोलनों का दौर चल रहा था, तब राजस्थान भी इससे अछूता नहीं रहा। इस समय राजस्थान के अजमेर पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष अधिपत्य था जबकि शेष राजस्थान पर देशी राजा-महाराजाओं का शासन था। अतः यहाँ स्वतंत्रता संघर्ष का स्वरूप थोड़ा भिन्न था। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने देशी रियासतों के काम-काज में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था, जिससे कि यहाँ के सामाजिक ताने-बाने में फर्क आया । इन सबके विरुद्ध यहाँ के किसानों एवं जनजातियों ने आवाज बुलंद की एवं संघर्ष किया। कालान्तर में विभिन्न रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना हुई। इन प्रजामंडलों ने लोगों में राजनीतिक चेतना जागृत की एवं उन्हें एकीकृत किया। इस प्रकार, किसान एवं जनजाति आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन बनते गए और राजस्थान में भी स्वतत्रता को माग बढ़ा।
प्रश्न 2.
राजस्थान में किसान आंदोलन क्यों हुए?
उत्तर:
मध्यकाल में राजस्थान के जागीरदारों और किसानों के आपसी संबंध मधुर थे। अत: विभिन्न जागीरदार क्षेत्रीय किसानों को अपनी जागीर में बसने हेतु प्रोत्साहित करते थे। परन्तु, बाद में अंग्रेजों एवं राजाओं के मध्य सहायक संधियाँ हुई जिससे कि अंग्रेजों ने राजाओं से नगद लगान वसूलना प्रारम्भ किया। राजाओं ने यह राशि जागीरदारों से तथा जागीरदारों ने संबंधित किसानों से वसूलनी प्रारंभ की। अंगेजों के संगत में आकर पहले राजा, फिर जागीरदार भोग-विलास एवं ऐशोआराम में संलिप्त हो गए। इस तरह के खर्चों का बोझ भी किसानों पर डाला जाने लगा। इन सभी दिक्कतों से परेशान होकर किसानों ने अपना विरोध जताने के लिए विभिन्न आंदोलन किए।
प्रश्न 3.
बिजोलिया किसान आंदोलन के दौरान किन महान विभूतियों ने अपना सहयोग दिया?
उत्तर:
बिजोलिया किसान आंदोलन धाकड़ जाति के किसानों द्वारा प्रारम्भ कया गया। किसानों के प्रतिनिधि नानजी और ठाकरी पटेल ने मेवाड़ महाराणा से इसकी शिकायत की तथा साधु सीताराम दास, फतहकरण चारण और ब्रह्मदेव ने प्रथम चरण में नेतृत्व किया। दूसरे चरण में विजयसिंह पथिक ने आंदोलन का नेतृत्व किया, उनको माणिक्यलाल वर्मा का भी साथ मिला। आंदोलन के तीसरे चरण में जमनालाल बजाज ने नेतृत्व की कमान संभाली। अंजना देवी चौधरी, रमा देवी, नारायणी देवी वर्मा जैसी महिला नेत्रियों ने भी इस आंदोलन में अपना योगदान दिया। लगभग 44 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद आंदोलन सफलतापूर्वक समाप्त हुआ।
प्रश्न 4.
संप सभा के बारे में आप क्या जानते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संप सभा-संप सभा की स्थापना गोविंद गुरु ने सन् 1883 ई. में की, जिसका प्रथम अधिवेशन 1903 में हुआ। गोविंद गुरु ने इस सभा की स्थापना आदिवासियों को संगठित करने के लिए की थी। गोविंद गुरु के अनुयायी भगत कहलाते थे, अतः संप सभा को भगत आंदोलन भी कहा गया है। संप का अर्थ है एकजुटता, प्रेम और भाईचारा । संप सभा का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार था। संप सभा की शिक्षाएँ थीं-रोजाना स्नानादि करो, यज्ञ एवं हवन करो, शराब मत पीओ, मांस मत खाओ, चोरी व लूटपाट मत करो, खेती मजदूरी से परिवार का भरण-पोषण करो, बच्चों को पढ़ाओ, स्कूल खुलवाओ, पंचायतों में फैसले करो, अदालतों के चक्कर मत काटो, राजा-जागीरदार या सरकारी अफसरों को बेगार मत दो, इनका अन्याय मत सहो, अन्याय का मुकाबला करो, स्वदेशी का उपयोग करो, आदि।
V. निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूर्व में राजस्थान के राजाओं-जागीरदारों के साथ किसानों के संबंध बेहतर थे। परंतु अंग्रेजों के आगमन पर देशी रियासतों के राजाओं ने उनसे सहायक संधियाँ की और अंग्रेजों ने उनसे नगद लगान की मांग की। राजाओं ने यह राशि जागीरदारों से तथा जागीरदारों ने आगे किसानों से वसूलना प्रारम्भ किया। किसानों से बेगार भी लिया जाने लगा। परेशान एवं पीड़ित किसानों ने अंततः आंदोलन का रास्ता अपनाया। राजस्थान में कई किसान आंदोलन हुए, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं
1. बिजोलिया किसान आंदोलन: यह संगठित किसान आंदोलन वर्तमान भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया में धाकड़ जाति के किसानों द्वारा प्रारंभ किया गया। यह आंदोलन मुख्यत: तीन चरणों में चलाया गया-प्रथम चरण (1897 से 1914 तक), दूसरा चरण (1914 से 1923 तक) और तीसरा चरण (1923 से 1941 तक)।
इस आंदोलन में नानजी, ठाकरी पटेल, साधु सीताराम दास, फतहकरण चारण, ब्रह्मदेव, विजयसिंह पथिक, मणिक्यलाल वर्मा, सेठ जमनालाल बजाज आदि समाजसेवी नेताओं की सशक्त भूमिका रही। अंजना देवी चौधरी, रमा देवी, नारायणी देवी वर्मा जैसी महिला नेत्रियों ने भी अपना विशेष योगदान दिया।
2. बेगूं किसान आंदोलन: बिजोलिया आंदोलन से प्रेरित होकर मारवाड़ के बेगूठिकाने में भी किसानों ने जागीरदार के विरुद्ध आवाज उठाई । पथिक जी के आदेश से रामनारायण चौधरी ने किसानों का नेतृत्व किया। रुपाजी व कृपाजी धाकड़ जैसे नेताओं ने अपना बलिदान देकर आंदोलन को सफल बनाया। प्रशासन को झुकना पड़ा और लगभग 34 लागतें समाप्त की गई व बेगार भी बंद कर दिया गया। -
3. बूंदी किसान आंदोलन: इस आंदोलन की शुरुआत सन् __1926 में पं. नयनूराम, रामनारायण चौधरी एवं हरिभाई किंकर के नेतृत्व में हुई। किसानों ने लाग-बाग व बेगार का विरोध किया, हीनानक भील को पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। अंतत: बूंदी राज्य प्रशासन ने 1943 में किसानों की माँगें स्वीकार कर ली।
4. अलवर किसान आंदोलन: यह आंदोलन दो कारणों से दो चरणों में चला। प्रथम, अलवर राज्य में जंगली सूअरों का आतंक था, वे किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते। परन्तु उन्हें मारने की मनाही थी, अत: 1921 में किसानों ने आंदोलन किया। द्वितीय, सन् 1925 में अलवर महाराजा जय सिंह द्वारा की गई लगान वृद्धि के विरुद्ध किसानों ने नीमूचाणा गाँव में सभा का आयोजन किया। इस सभा पर जलियांवाला बाग की तरह अंधाधुंध गोलियाँ चलाई गई।
5. सीकर किसान आंदोलन-जयपुर राज्य के बड़े ठिकानों में से एक सीकर में किसानों ने लगान वृद्धि का विरोध किया। सरदार हरलाल सिंह, नेताराम सिंह तथा पृथ्वी सिंह गोठड़ा इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोलियाँ चलीं, जिसकी गूंज लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस में हुई। अंतत: बंदोबस्त सुधार हेतु किसानों को आश्वस्त करना पड़ा तथा लगान में भी कमी करनी पड़ी।
6. शेखावाटी किसान आंदोलन-शेखावाटी के किसानों ने भी लगान वृद्धि का विरोध किया। चिड़ावा में मास्टर कालीचरण ने सेवा समिति का गठन किया । नवलगढ़, मंडावा, डूंडलोद, बिसाऊ, मालासर के किसानों ने भी लगान देने से मना कर। दिया। ठिकानेदारों व ठाकुरों ने किसानों पर अत्याचार किये। यहाँ का स्थायी समाधान आजादी के बाद हो पाया।
7. अन्य किसान आंदोलन-सन् 1945 में चंडावत में किसान आंदोलन हुआ, जिसे कुचलने के लिए लाठियों व भालों का प्रहार किया गया। सन् 1947 में डाबड़ा में लगान, लागबाग, बेगार के विरुद्ध लगभग 600 किसान ठिकानेदार से मिलने गए, तो उन पर बंदूकें, तलवारें व भाले चलवाए गए।
प्रश्न 2.
राजस्थान के जन-जाति आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में भील व मीणा जैसी जनजातियाँ प्राचीन काल से निवास करती रही हैं। दक्षिणी राजस्थान में भीलों की बाहुल्यता है, जबकि जयपुर एवं आस-पास के क्षेत्रों में मीणा जाति का बाहुल्य है। अंग्रेजी काल में इन जनजातियों का भारी शोषण किया गया, उसी समय कुछ जनसेवकों एवं समाज सुधारकों ने इनमें जागृति उत्पन्न की। इन्होंने अपने अधिकारों हेतु आंदोलन किए, जो कि निम्नलिखित हैं
1. भील आंदोलन: भील जनजाति में जागृति की विचारधारा का सूत्रपात करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गोविंद गुरु की रही। उन्होंने संप सभा की स्थापना की और भीलों को एकजुट किया। उन्होंने बेगार व अनुचित लागते न देने हेतु भीलों का आह्वान किया। सन् 1913 में मानगढ़ पहाड़ी पर आश्विन सुदी पूर्णिमा को संप सभा का अधिवेशन किया जा रहा था तब अंग्रेजी सिपाहियों ने पहाड़ी को चारों तरफ से घेरकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। परिणामत: घटनास्थल पर ही हजारों की संख्या में भील आदिवासी मारे गये और अनगिनत घायल हुए, गोविन्द गुरु के पैर में गोली लगी। इस घटना की सर्वत्र निंदा हुई तथा इसे जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समतुल्य माना गया । क्योंकि गोविंद गुरु के अनुयायियों को भगत कहा जाता था, अतः इस आंदोलन को भगत आंदोलन भी कहा गया।
आदिवासी समुदाय के दूसरे मसीहा थे मोतीलाल तेजावत । उन्होंने चित्तौड़गढ़ के मातृकुण्डीयां में किसानों व आदिवासियों को बेगार, लगान, अत्याचार आदि के विरुद्ध संघर्ष हेतु जागृत किया। आंदोलन को गति देने के लिए एकता पर बल दिया गया, अतः इसे एकी आंदोलन भी कहा गया। इस आंदोलन के तहत हजारों आदिवासी उदयपुर में एकत्रित हुए तथा महाराणा को 21 सूत्रीय मांगपत्र दिया, इस मांगपत्र को मेवाड़ की पुकार' के नाम से जाना जाता है। महाराणा ने तत्काल 18 माँगें मान लीं।
बाँसवाड़ा, देवल और डूंगरपुर में भीलों को संगठित करने में भोगीलाल पंड्या तथा हरिदेव जोशी की भी महती भूमिका रही।
2. मीणा आंदोलन: प्रारम्भ में अंग्रेजी शासन ने मीणा जनजाति के एक विशेष वर्ग को शांति व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दे रखी थी। अत: ये मीणा लोग गाँवों की चौकीदारी करते थे। इस तरह के मीणाओं को 'चौकीदार मीणा' कहा जाता था। आगे चलकर, राज्य में होने वाली चोरी-डकैती के लिए अक्सर इन मीणाओं को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा और कोई चोरी हुआ माल बरामद न होने पर उस माल की कीमत मीणाओं से वसूली जाने लगी। अंग्रेजी सरकार ने 1924 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत 12 वर्ष से अधिक आयु के मीणा जाति के लोगों को प्रतिदिन समीप के थाने में अपनी उपस्थिति देने हेतु पाबंद कर दिया। इस कानून एवं व्यवहार से मीणाओं में असंतोष व रोष व्याप्त हो गया। मीणा समाज में व्याप्त विभिन्न बुराइयों का निराकरण करने, जरायम पेशा जैसे कठोर कानून को हटवाने और चौकीदारी प्रथा समाप्त करने के लिए आंदोलन चलाया गया। लगातार कोशिशों के परिणामस्वरूप आजादी के बाद सन् 1952 में जाकर जरायम पेशा कानून समाप्त किया जा सका।
प्रश्न 3.
राजस्थान की प्रमुख रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू का कथन था कि किसी भी स्थान पर जन आंदोलन तभी आरम्भ किया जा सकता है जब वहाँ की जनता तैयार एवं एकजुट हो। अत: राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रजामंडल स्थापित किए गए, ताकि वहाँ की प्रजा अर्थात् जन सामान्य को संगठित किया जा सके।
राजस्थान की प्रमुख रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना निम्नवत् हुई
1. मारवाड़ प्रजामंडल: सन् 1934 में भंवरलाल सर्राफ की अध्यक्षता में जयनारायण व्यास ने जोधपुर में मारवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की। इस प्रजामंडल आंदोलन को गति देने हेतु सन् 1938 में रणछोड़ दास गट्टारी की अध्यक्षता में मारवाड़ लोक परिषद् का गठन किया गया।
2. जयपुर प्रजामंडल-यह राजस्थान का पहला प्रजामंडल था। इसकी स्थापना सन् 1931 में कर्पूरचंद पारगी एवं जमनालाल बजाज के प्रयासों से हुई। सन् 1936 में इस प्रजामंडल का पुनर्गठन हुआ तथा चिरंजीलाल मिश्र के नेतृत्व में इसने कार्य करना शुरू किया। सन् 1938 में जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में पहला अधिवेशन हुआ। आगे चलकर हीरालाल शास्त्री भी जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष बने। इस प्रजामंडल ने रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग रखी।
3. मेवाड़ राज्य प्रजामंडल-बलवंत सिंह मेहता की अध्यक्षता में 24 अप्रैल, 1938 को मेवाड़ राज्य प्रजामंडल स्थापित किया गया। माणिक्यलाल वर्मा ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । इस प्रजामंडल ने महाराणा पर निरंतर दबाव डाला कि वे अंग्रेजों से संबंध न रखें। स्वतंत्रता संघर्ष में भी प्रजामंडल की सक्रिय भूमिका रही।
4. बीकानेर राज्य प्रजामंडल-सन् 1936 में बीकानेर राज्य प्रजामंडल की स्थापना मघाराम वैद्य ने की। राय सिंह नगर में 30 जून, 1946 को प्रजामंडल का खुला अधिवेशन किया गया।
5. कोटा राज्य प्रजामंडल-इस हाडौती प्रजामंडल की स्थापना नयनूलाल ने अभिन्न हरि, तनसुख लाल आदि के सहयोग से की। मई 1939 में कोटा में पं. नयनूराम की अध्यक्षता में प्रजामंडल का अधिवेशन हुआ। कोटा राज्य प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं ने भी भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया तथा उत्तरदायी शासन की मांग रखी।
6. अन्य प्रजामंडल-उपर्युक्त सभी प्रमुख रियासतों के अतिरिक्त पूर्वी राजस्थान के राज्यों में भी प्रजामंडल आंदोलन की गतिविधियाँ समानांतर रूप से संचालित की जाती रहीं। इन सभी राज्यों में उत्तरदायी शासन की संयुक्त माँग उठी।
प्रश्न 4.
राजस्थान के प्रमुख जन नायकों का परिचय दीजिए एवं भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के कुछ प्रमुख जन नायक निम्नलिखित रहे
1. गोविंद गुरु: इनका जन्म डूंगरपुर राज्य में एक साधारण बंजारा परिवार में हुआ था। ये दयानंद सरस्वती से अत्यधिक प्रभावित थे। इन्होंने सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से संप सभा की स्थापना की। संप सभा के माध्यम से इन्होंने आदिवासियों का चारित्रिक विकास एवं सामाजिक उत्थान किया। आदिवासियों को शराब, मांस, चोरी, लूटमार आदि से दूर रहने का उपदेश दिया। इस प्रकार, गोविंद गुरु ने डूंगरपुर, बांसवाड़ा, दक्षिणी मेवाड़, सिरोही, गुजरात और मालवा के बीच के पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले आदिवासियों को संगठित कर दिया।
2. अर्जुन लाल सेठी: इनका जन्म जयपुर में हुआ था। ये अंग्रेजी, पारसी, संस्कृत, अरबी और पाली के विद्वान थे। जयपुर में इन्होंने वर्धमान विद्यालय की स्थापना की, जहाँ देशभर के क्रांतिकारियों को समुचित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था थी। श्री सेठी धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों को देश सेवा एवं क्रांति का पाठ भी पढ़ाते थे। राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का संगठन करने की जिम्मेदारी श्री सेठी को दी गयी।
3. केसरी सिंह बारहठ-इनका जन्म 21 नवम्बर, 1872 को शाहपुरा में हुआ था। इन्हें राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का जनक माना जाता है। इन्होंने राजपूताने के जागीरदारों व रईसों का स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय सहयोग प्राप्त करने का कार्य किया। उदयपुर, जोधपुर व बीकानेर के राजघरानों पर केसरी सिंह बारहठ का गहरा असर था। उन्होंने 'चेतावनी रा चूंगट्या' नामक प्रसिद्ध सोरठा लिखकर मेवाड़ महाराणा को अंग्रेजों के प्रति सचेत किया।
4. विजय सिंह पथिक-इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में हुआ, इनका वास्तविक नाम भूपसिंह गुर्जर था। इन्होंने विजय सिंह पथिक के नाम से बिजोलिया किसान आंदोलन के दूसरे चरण का सफल नेतृत्व किया। सन् 1919 में इन्होंने राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की।।
5. सेठ दामोदर दास राठी-इनका जन्म मारवाड़ के पोकरण में हुआ था। इनका बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय चर्चाओं की ओर झुकाव था। खरवा के राव गोपाल सिंह से श्री राठी की गहरी मित्रता थी। प्रथम महायुद्ध के दौरान सम्पूर्ण देश में 21 फरवरी, 1915 को क्रांति करने की योजना थी। इस हेतु, राजस्थान में अजमेर व नसीराबाद की छावनी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी खरवा के राव गोपाल सिंह और भूपसिंह को दी गई। इस दौरान आर्थिक सहायता सेठ दामोदर दास राठी ने उपलब्ध करवाई थी। सन् 1921 में श्री राठी ने ब्यावर में आर्य समाज की नींव रखी।
6. ठाकुर जोरावर सिंह बारहठ-इनका जन्म 12 सितम्बर, 1883 को उदयपुर में हुआ। ये ठाकुर केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई और अमर शहीद कुंवर प्रताप सिंह के चाचा थे। चाँदनी चौक में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने वाले रासबिहारी बोस के साथ ठाकुर जोरावर सिंह भी उपस्थित थे। इनको पकड़ने के लिए कोटा सरकार तथा बिहार सरकार ने भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी। अतः ये स्नगातार भूमिगत रहे।
7. कुंवर प्रताप सिंह बारहठ-इनका जन्म 24 मई, 1893 को उदयपुर में हुआ था। ये केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। इन्होंने रासबिहारी बोस के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बरेली जेल में भेज दिया गया, जहाँ कठोर यातनाएँ दी गईं। इनसे अन्य क्रांतिकारियों के बारे में पूछताछ की गई परंतु इन्होंने अपने साथियों के बारे में नहीं बताया। अंग्रेजों की अमानुषिक यातनाओं का शिकार होकर बरेली जेल में अल्पायु में ही शहीद हो गये।
8. राव गोपाल सिंह खरवा-इनका जन्म 19 अक्टूबर, 1872 को राजस्थान में अजमेर के समीप हुआ। ये खरवा स्टेट के प्रशासक थे। इन्होंने राजस्थान में सशस्त्र क्रांति के दौरान विजयसिंह पथिक का पूर्ण सहयोग किया । क्रांति की योजना विफल हो गयी और इन दोनों को टॉडगढ़ किले में नजरबंद कर दिया गया। कुछ दिनों बाद भाग निकले परंतु पुनः सलेमाबाद में पकड़ लिए गए और तिहाड़ जेल भेज दिए गए। सन् 1920 में रिहा होने पर रचनात्मक कार्यों में संलग्न हो गए।