Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan Chapter 6 राजस्थान के प्रमुख शासक Textbook Exercise Questions and Answers.
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I. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर के विकल्प को कोष्ठक में लिखिए
1. 'राजपूताने का कर्ण' कहा जाता है:
(अ) महाराजा रायसिंह
(ब) महाराणा सांगा
(स) मिर्जा राजा जयसिंह
(द) महाराणा प्रताप
उत्तर:
(अ) महाराजा रायसिंह
2. विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
(अ) महाराणा प्रताप
(ब) सवाई जयसिंह
(स) महाराजा सूरजमल
(द) महाराणा कुम्भा
उत्तर:
(द) महाराणा कुम्भा
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1.ज्योतिष अध्ययन के लिए जंतर-मंतर (वेधशालाओं) का निर्माण ....... ने करवाया।
2. प्रसिद्ध कवि चन्दवरदायी ने .......... की रचना की।
उत्तर:
1. सवाई जयसिंह
2. पृथ्वीराज रासो ग्रंथ
III. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महाराजा सूरजमल कहाँ के शासक थे?
उत्तर:
महाराजा सूरजमल भरतपुर के शासक थे।
प्रश्न 2.
महाराजा जसवंत सिंह की किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखिए?
उत्तर:
(1) आनन्द प्रकाश,
(2) भाषा भूषण
IV. लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सवाई जयसिंह द्वारा किये गए कार्यों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
सवाई जयसिंह द्वारा किये गए कार्य: सवाई जयसिंह का अधिकांश समय राज्य के बाहर सैनिक अभियानों, मुगल राजनीति व मालवा में मराठों के प्रसार को रोकने में पूरा हुआ। राजस्थान के इतिहास में सवाई जयसिंह की गणना महान् शासक, सेनापति, विद्वान, आश्रयदाता और नक्षत्र एवं गणित विद्या के ज्ञाता के रूप में की जाती है। सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों की गति की गणना हेतु एक शुद्ध सारणी का निर्माण करवाया। ज्योतिष विद्या पर आधारित 'जयसिंह करीका' तथा ज्योतिष यंत्रों पर आधारित 'सिद्धांत सम्राट' व 'यंत्रराज' आदि ग्रंथों का निर्माण करवाया । ज्योतिष अध्ययन हेतु जंतर-मंतर नामक वेधशालाओं का निर्माण करवाया, जो कि जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस और उज्जैन में स्थित हैं।
प्रश्न 2.
राणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बताइये?
उत्तर:
सिसोदिया वंश के कला प्रेमी शासक कुम्भा का जन्म 1417 ई. में चित्तौड़ में हुआ तथा 1433 ई. में मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठे। महाराणा कुम्भा के व्यक्तित्व में कटार, कलम और कला की त्रिवेणी थी। सांस्कृतिक दृष्टि से कुम्भा का शासन काल मेवाड़ के इतिहास का स्वर्ण युग था। कुम्भा ने महाराजाधिराज, रायरायन, महाराणा, राजगुरु, दानगुरु, हालगुरु, परमगुरु, चापगुरु आद योग्यता अभिव्यक्त करने वाली उपाधियाँ प्राप्त की हुई थी।
मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग, कुम्भा द्वारा निर्मित हैं। कुम्भा ने अचलगढ़ दुर्ग, वसंतगढ़ दुर्ग, भोमट दुर्ग, मंचिंद दुर्ग, कुम्भलगढ़ तथा कुम्भ-श्याम मंदिर, चित्तौड़ के दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। कुम्भा महान संगीतकार भी थे, उनके द्वारा रचित संगीत के ग्रंथों में संगीतराज, संगीत मीमांसा, सूड़ प्रबंध सबसे प्रमुख हैं। कुम्भा ने गीतगोविंद की रसिकप्रिया टीका व चंडीशतक की टीका भी लिखी।
I. निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए
1. जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण किसने करवाया था?
(अ) सवाई जयसिंह
(ब) सवाई मानसिंह
(स) औरंगजेब
(द) मुहम्मदशाह
उत्तर:
(अ) सवाई जयसिंह
2. पृथ्वीराज चौहान के दरबार में लेखक थे?
(अ) चंदवरदायी
(ब) विद्यापति गौड़
(स) पृथ्वीभट्ट
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
3. महाराणा कुम्भा मेवाड़ के राजसिंहासन पर कब बैठे?
(अ) 1417 ई. में
(ब) 1433 ई. में
(स) 1468 ई. में
(द) 1488 ई. में
उत्तर:
(ब) 1433 ई. में
4. महाराजा सूरजमल ने अपनी योग्यता से भरतपुर राज्य का विस्तार करने हेतु कौन-से इलाके जीते थे?
(अ) फरुखनगर
(ब) धौलपुर
(स) रोहतक
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
II. रिक्त स्थानों की उचित शब्दों द्वारा पूर्ति कीजिए
1. राजस्थान में कई ऐसे ........ हुए हैं, जिन्हें हम वीर और महान कह सकते हैं
2. राणा सांगा अपनी ...... और ........ के लिए प्रसिद्ध हैं
3. मारवाड़ के इतिहास में राव मालदेव का शासन मारवाड़ का ......... कहलाता है
4. महाराणा प्रताप ने ............ भी कृषि और वनों के विकास का प्रयास किया
उत्तर:
1. शासक
2. वीरता, उदारता
3. “शौर्य युग"
4. संकटकाल
III. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कछवाहा वंश के शासक जयसिंह को 'मिर्जा राजा'। की उपाधि कब प्राप्त हुई?
उत्तर:
मुगल बादशाह शाहजहाँ ने सन् 1639 ई. में जयसिंह को 'मिर्जा राजा' की उपाधि से विभूषित किया।
प्रश्न 2.
सवाई जयसिंह ने किस आयु में प्रशासन का भार सँभाला?
उत्तर:
सवाई जयसिंह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् मात्र 12 वर्ष की अवस्था में सन् 1699 ई. में राजगद्दी पर बैठे।
प्रश्न 3.
भारत में जंतर-मंतर किन स्थानों पर स्थित है?
उत्तर:
सवाई जयसिंह ने भारत में ज्योतिष के अध्यापन हेतु जंतर-मंतर नाम से पाँच वेधशालाएं बनवाई, जो जयपुरं, दिल्ली, मधुरा, बनारस और उज्जैन में स्थित हैं।
प्रश्न 4.
महाराजा सूरजमल की कला व साहित्य भावना प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
महाराजा सूरजमल ने कला मर्मज्ञ के रूप में अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में किले व महल बनवाए। इन्होंने अपने राज्य में साहित्यकारों को संरक्षण दिया।
IV. लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मालदेव की उपलब्धियाँ चिह्नित कीजिए।
उत्तर:
राठौड़ वंश के शासक मालदेव स्वतंत्रता प्रेमी एवं महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति के थे। मारवाड़ के इतिहास में मालदेव का शासन काल 'शौर्य युग' कहलाता है। मालदेव ने अपनी निरंतर सैनिक विजयों और कूटनीति से मारवाड़ राज्य की सीमा का विस्तार ही किया। उन्होंने अपने शासन के दौरान कुल 52 युद्ध किए और एक साथ छोटे-बड़े 58 परगनों पर अपना प्रभुत्व जमाए रखा। मालदेव ने सर्वप्रथम भाद्राजुण को जीता, उसके बाद नागौर, मेड़ता, सिवाना व बीकानेर पर भी विजय प्राप्त की। फारसी इतिहासकारों ने मालदेव को 'हशमत वाला शासक' नाम दिया है, जिसका अर्थ ताकतवर शासक होता है। अपनी विजयों एवं राज्य विस्तार के अतिरिक्त मालदेव ने सोजत, मालकोट (मेड़ता) व पोकरण आदि दुर्गों का निर्माण भी करवाया।
प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप के संघर्षों को रेखांकित कीजिए
उत्तर:
उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र राणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी, 1572 ई. को हुआ। शासन भार ग्रहण करते ही उन्हें अनेकानेक कठिनाइयों से जूझना पड़ा, जैसे--मुगल शासक अकबर की मेवाड़ पर अधिकार करने की इच्छा, मेवाड़ की आर्थिक एवं सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करना, भाई जगमाल का नाराज होकर अकबर से जा मिलना आदि। इन सब के बावजूद महाराणा प्रताप ने कभी घुटने नहीं टेके। उन्होंने मुगलों को लगातार चुनौती दी, अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व से मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को मातृभूमि की स्वतंत्रता एवं अक्षुण्णता हेतु सब कुछ न्यौछावर कर देने वाला योद्धा बना दिया। इसके साथ ही उन्होंने मानवाधिकारों का भी पोषण किया और प्रजा के सुख-दु:ख का बराबर ध्यान रखा। महाराणा प्रताप ने संकटकाल में भी कृषि और वनों के विकास का प्रयास किया तथा इन विषयों पर आधारित 'विश्व वल्लभ' जैसी पुस्तक भी लिखवाई।
प्रश्न 3.
महाराजा राजसिंह प्रथम की धार्मिक सद्भावना का परिचय दें।
उत्तर:
महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह ने मेवाड़ का शासक बनने के पश्चात् उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगजेब का भरपूर साथ दिया। परंतु औरंगजेब की धार्मिक नीतियों ने राजसिंह को उसका विरोधी बना दिया। औरंगजेब ने हिन्दू धर्म विरोधी अभियान चला रखा था और मंदिरों एवं मूर्तियों को लगातार नष्ट करवाया जा रहा था। अत: ब्रज से गोवर्धननाथ (श्रीनाथजी) की मूर्ति को लेकर आए हुए गोस्वामी भक्तों को महाराजा राजसिंह ने शरण दी। उन्होंने सिंहाड़ (नाथद्वारा) में श्रीनाथजी की मूर्ति और द्वारिकाधीश की मूर्ति कांकरोली (राजसमंद) में स्थापित कर वहाँ मंदिर बनवाया। इसके अतिरिक्त, उदयपुर में अम्बामाता का मंदिर और अनेक जलस्रोत भी बनवाए। कांकरोली में राजसमंद झील का सौंदर्य विश्व प्रसिद्ध है।
प्रश्न 4.
पृथ्वीराज चौहान की वीरता एवं साहस का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वीराज रासो के आदिपर्व में, पृक्वीराज चौहान के गुणों का वर्णन किया गया है। महाराज सोमेश्वर के पूर्व जन्मों की तपस्या के फलस्वरूप ही, पृथ्वीराज जैसे गुणी पुत्र का उनके घर जन्म हुआ। पृथ्वीराज चौहान की तुलना उस समय महान परमार राजा विक्रमादित्य परमार से की गई है। निःसंदेह पृथ्वीराज 32 गुणों से सुशोभित एक महान राजा थे। बाल्यकाल से ही इस वीर ने, अपने पराक्रम का डंका शक्तिशाली साम्राज्यों के बीच बजा दिया। पृथ्वीराज चौहान को विशाल साम्राज्य अपने तातश्री विग्रहराज चौहान से विरासत में मिला था। लगभग 1168 ई. में पृथ्वीराज चौहान का 15 वर्ष की अल्पायु में राजतिलक किया गया, उनकी संरक्षिका थीं उनकी स्वयं की माता कर्पूरदेवी। एक विशाल साम्राज्य पृथ्वीराज के पास पूर्व से ही था, अब तो समय दिग्विजय करने का था। इस दिग्विजय को पूर्ण करने के सामने बड़ी शक्ति थी चंदेल, कीर्तिसागर के मैदान पर चंदेलों और चौहानों के बीच बड़ा भयकर युद्ध हुआ। दोनों पक्षों की ओर से भारी जन-धन की हानि हुई। अंततः इस युद्ध में पृथ्वीराज विजयी हुए तथा चंदेलों ने चौहानों की प्रभुता स्वीकार कर ली। इसके पश्चात् पृथ्वीराज ने चालुक्यों को परास्त किया और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए अपने पिता के हत्यारे भीमदेव का शीष धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार, वे लगातार विजय प्राप्त करते गए।
V. निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान के प्रमुख शासकों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में कई ऐसे शासक हुए हैं, जिन्हें हम वीर और महान कह सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपने कार्यों से प्रदेश को गौरवान्वित किया है। ऐसे ही कुछ प्रमुख शासकों का परिचय निम्नलिखित है
1. पृथ्वीराज चौहान (1177-1192 ई): पृथ्वीराज चौहान का जन्म सन् 1166 ई. में गुजरात के पाटण में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर एवं माता का नाम कर्पूरदेवी था । पृथ्वीराज की अल्पायु में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई। ऐसी स्थिति में माता कर्पूरदेवी ने संरक्षिका के रूप में शासन का भार संभाला। शासक बनने के उपरांत पृथ्वीराज चौहान ने सर्वप्रथम अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाया । उनमें योग्य प्रशासक, वीर एवं साहसी योद्धा व सेनानायक तथा विद्यानुरागी आदि सभी गुण विद्यमान थे। अत: पृथ्वीराज चौहान का नाम भारत के प्रतापी शासकों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
2. महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई): परमार वंश के कलाप्रेमी शासक महाराणा कुम्भा का जन्म सन् 1417 ई. में चित्तौड़ में हुआ। उन्होंने 1433 ई. में मेवाड़ का शासन भार संभाला। महाराणा की उपलब्धियों में बूंदी, सिरोही, गागरोन व वागड़ की विजय तथा मेवाड़ की मारवाड़ से मैत्री संबंध महत्त्वपूर्ण हैं। कुम्भा का शासन काल मेवाड़ के इतिहास का स्वर्ण युग था। मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग कुम्भा ने बनवाए। कुम्भा महान संगीतकार व साहित्यकार भी थे। इस प्रकार, महाराणा कुम्भा के व्यक्तित्व में कटार, कला व कलम की त्रिवेणी विद्यमान थी।
3. महाराणा सांगा (1509-1528 ई): इनका जन्म 12 अप्रैल, 1482 को चित्तौड़ में हुआ, इनका वास्तविक नाम संग्राम सिंह था। इनके पिता राणा रायमल थे। राणा सांगा ने उत्तराधिकार के युद्ध में विजय प्राप्त करके मेवाड़ का शासन संभाला। इन्होंने लोधी वंश के अफगान राजाओं तथा तुर्की के मुगलों से निरंतर लोहा लिया और अपने राज्य की सुरक्षा की। महाराणा सांगा एक पराक्रमी योद्धा थे, साथ ही अपनी वीरता और उदारता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होंने सभी राजपूत राज्यों को संगठित कर राजपूताना संघ का निर्माण एवं नेतृत्व किया।
4. मालदेव (1532-1562 ई): मालदेव राठौड़ वंश के राव गांगा के पुत्र थे, इनका जन्म 5 दिसम्बर, 1511 ई. को हुआ। मालदेव 1532 ई. में मारवाड़ के शासक बने । वे स्वतंत्रता प्रेमी एवं महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति के थे। उन्होंने कभी भी तत्कालीन सूर वंश या हुमायूँ द्वारा सत्ता को पुनः प्राप्ति कर लेने पर मुगल वंश के साथ अपने राज्य का विलय नहीं किया। बल्कि निरंतर सैनिक विजयों और कूटनीति से मारवाड़ की सीमा का विस्तार किया। अतः राव मालदेव का शासन काल मारवाड़ का शौर्य युग कहलाता है।
5. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई): महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ई. को कुम्भलगढ़ में हुआ। ये उदयसिंह के ज्येष्ठपुत्र थे, इनकी माता का नाम जयवन्ता बाई था। राणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी, 1572 ई. को किया गया। महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने महत्त्वाकांक्षी मुगल शासक अकबर । की अधीनता कभी स्वीकार नहीं की। अपितु अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षार्थ अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
6. महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई): रायसिंह का जन्म 20 जुलाई, 1541 ई. को बीकानेर के राव कल्याणमल के घर ज्येष्ठ पुत्र के तौर पर हुआ। महाराजा रायसिंह का राज्याभिषेक 1574 ई. में हुआ। इन्होंने अपने रणकौशल का परिचय देते हुए गुजरात, काबुल, कंधार एवं दक्षिण भारत के अभियानों में सफलता प्राप्त की। ये अपनी दानशीलता हेतु प्रसिद्ध थे, अत: इन्हें 'राजपूताने का कर्ण' भी कहते हैं।
7. मिर्जाराजा जयसिंह( 1621-1667 ई): जयसिंह प्रथम का जन्म 15 जुलाई, 1611 ई. को आमेर में हुआ था। इनके पिता राजा माहा सिंह तथा माता दमयंती थीं। ये सन् 1621 ई में आमेर की राजगद्दी पर बैठे और विभिन्न सैनिक अभियानों में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया। शाहजहाँ ने 1639 ई. में जयसिंह को 'मिर्जा-राजा' की उपाधि दी। मिर्जा-राजा जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथसाथ साहित्य और कला के प्रेमी भी थे।
8. महाराजा जसवन्त सिंह (1638-1678 ई): जसवन्त सिंह का जन्म दिसम्बर, 1626 ई. में बुरहानपुर में हुआ था। इनके पिता गजसिंह की मृत्यु के उपरांत इनका राज्याभिषेक किया गया। इन्होंने मुगल उत्तराधिकार युद्ध में शाहजहाँ का साथ दिया, अतः शाहजहाँ ने इन्हें 'महाराजा' की उपाधि प्रदान की। इन्होंने मुगलों के लिए अनेक सैनिक अभियान किए, दक्षिण भारत में औरंगाबाद के निकट जसवंतपुरा कस्बा बसाया।
9. महाराजा राजसिंह प्रथम(1652-1680 ई): महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह का जन्म 24 सितम्बर, 1629 को हुआ, इनकी माता का नाम महारानी मेडतणीजी था। मात्र 23 वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने मुगल उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगजेब का साथ दिया, परंतु उसकी धर्मान्धता ने उन्हें उसका विरोधी बना दिया। महाराजा ने औरंगजेब का निरंतर विरोध किया और हिन्दू धर्म की रक्षा की।
10. सवाई जयसिंह (1699-1743 ई): इनका जन्म 3 नवम्बर, 1688 ई. को आमेर में हुआ। इनके पिता महाराजा बिशन सिंह की मृत्यु के पश्चात् 12 वर्ष की अवस्था में इन्होंने 1699 में राजगद्दी की जिम्मेदारी संभाली। इनका अधिकांश समय सैनिक अभियानों, मुगल राजनीति और मराठों का विरोध करने में पूर्ण हुआ। तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने उन्हें 'सवाई' की उपाधि प्रदान की। राजस्थान के इतिहास में सवाई जयसिंह की गिनती महान शासक, सेनापति, विद्वान, आश्रयदाता और नक्षत्र एवं गणित विद्या के जानकार के तौर पर होती है।
11. महाराजा सूरजमल (1755-1763 ई): महाराजा सूरजमल का जन्म फरवरी, 1707 में हुआ। इनके पिता बदनसिंह ने अपनी अस्वस्थता को देखते हुए, 1755 ई. में इन्हें जाट साम्राज्य का राजा बना दिया । सूरजमल वीर सेनानायक, चतुर कूटनीतिज्ञ एवं कलाप्रेमी शासक थे। इन्होंने अपनी योग्यता से भरतपुर राज्य को विस्तारित किया और गाजियाबाद, रोहतक, झज्जर, आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, बनारस व फर्रुखनगर आदि को जीत लिया।