RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

RBSE Class 12 Hindi सहर्ष स्वीकारा है Textbook Questions and Answers

कविता के साथ - 

प्रश्न 1. 
टिप्पणी कीजिए-गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल। 
उत्तर : 
(क) गरबीली गरीबी-कवि गरीब है, परन्तु वह गरीबी भी गर्वीली है क्योंकि कवि के स्वाभिमानी होने से उसे हीनता या आत्म-ग्लानि नहीं होती है, अपितु उसे एक प्रकार से गर्व ही होता है।
(ख) भीतर की सरिता-नदी में जल-राशि का प्रवाह अविरल रहता है, उसी प्रकार हृदय में कोमल भावनाओं का प्रसार भी रहता है। कवि के हृदय में भी असंख्य कोमल भावनाओं का प्रवाह है।
(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता-कवि के हृदय में प्रिय की आत्मीयता है, जो उसे हर समय प्रेमपूर्ण व्यवहार से बहलाती और सहलाती रहती है, उसे आनन्दित एवं प्रसन्न रहने के लिए प्रेरित करती है उसे कभी निराश नहीं होने देती है।
(घ) ममता के बादल-कवि के हृदय में प्रियजन को लेकर प्रेम की कोमल भावना है, जो अपने स्नेह रूपी वर्षा से निरन्तर सरसता का संचार कर उसे सराबोर करती है। 

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प्रश्न 2. 
इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें। 
उत्तर : 
इस कविता में टिप्पणी-योग्य अन्य पद-प्रयोग हैं - पाताली अँधेरा, रमणीय उजेला, मीठे पानी का सोता, मुसकाता चाँद आदि। इनमें से एक प्रयोग पर टिप्पणी पाताली अँधेरा-ऐसा माना जाता है कि पाताल में सूर्य-चन्द्रमा की रोशनी न होने से वहाँ घना अँधेरा रहता है। अमावस्या की रात्रि में तो और भी घना अँधेरा छाया रहता है। कवि अपने प्रिय से पाताली अँधेरे में विलीन होने का दण्ड माँगता है। 

प्रश्न 3. 
व्याख्या कीजिए 
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है 
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है 
दिल में क्या झरना है? 
'मीठे पानी का सोता है 
भीतर वह, ऊपर तुम 
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर 
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! 
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भलकर अन्धकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है? 
उत्तर : 
भावार्थ भाग में इस काव्यांश की व्याख्या स्पष्ट की गई है। अतः वहाँ काव्यांश (2) को देखें। यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अन्धकार-अमावस्या में नहाने की बात इसलिए की गई है कि कवि कल्पनाओं के लोक से निकलकर यथार्थ के धरातल पर आना चाहता है। इससे वह प्रिय के खिलते चेहरे से अलग होकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करना तथा स्वयं के दुःखों को भूल जाना चाहता है। वस्तुतः कवि की समस्त उपलब्धियाँ एवं अनुभूतियाँ प्रिय की सुन्दर मुस्कान से आलोकित या प्रकाशित हैं। 

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प्रश्न 4. 
तुम्हें भूल जाने की 
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या 
शरीर पर, चेहरे पर, अन्तर में पा लूँ मैं 
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं 
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित 
रहने का रमणीय यह उजेला अब 
सहा नहीं जाता है। 
(क) यहाँ अन्धकार - अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?
(ख) कवि ने व्यक्तिगत सन्दर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?
(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौनसी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।
(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का 'तुम') को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें। 
उत्तर : 
(क) यहाँ अन्धकार-अमावस्या के लिए 'दक्षिण ध्रुवी' विशेषण का प्रयोग किया गया है। इससे विशेष्य 'अन्धकार' को और अधिक घना व्यंजित किया गया है, अर्थात् घना अन्धकार और भी सघन हो गया है। 
(ख) कवि ने व्यक्तिगत रूप से अपने प्रिय के स्नेह से दूर होने तथा स्वयं के एकाकी जीवन से निराश-व्यथित रहने से उसे 'अमावस्या' कहा है। 
(ग) इस स्थिति के ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति यह व्यक्त हुई है...'तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय यह उजेला।' इसमें एक ओर प्रिय के वियोग की निराशा अन्धकारपूर्ण अमावस्या से व्यक्त हुई है, तो दूसरी ओर प्रिय के स्नेह का उजाला अत्यधिक प्रखर व तेज प्रकाश से आलोकित बताया गया है। 
(घ) कवि अपने प्रिय को एकदम भूल जाना चाहता है। इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए शरीर से, चेहरे से और मन से वह अन्धेरे में पूरी तरह डूब जाना चाहता है। विरह-वेदना से सराबोर होने के लिए कवि ने 'नहा लूँ मैं' कहकर सशक्त भावाभिव्यक्ति की है। 

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प्रश्न 5. 
'बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है और कविता के शीर्षक 'सहर्ष स्वीकारा है' में आप कैसे अन्तर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।
उत्तर :
यद्यपि इन दोनों में अन्तर्विरोध की स्थिति है। कवि अपने प्रिय की हर चीज को सहर्ष स्वीकार करता है, उसकी ममता को सहारा मानता है, परन्तु वह प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को स्वीकार नहीं कर पाता है। क्योंकि दूर रहकर उसे वह आत्मीयता पाना बर्दाश्त नहीं है। वस्तुतः इसमें कवि के मानसिक द्वन्द्व को अन्तर्विरोध का कारण बताया गया है। इस कारण उसके सहर्ष स्वीकार में भी अस्वीकार की व्यंजना हो रही है। भाव-प्रवणता की मनःस्थिति में यह अन्तर्विरोध कुछ कमजोर पड़ जाता है।

कविता के आसपास -

प्रश्न 1. 
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ। 
उत्तर : 
यह सत्य है कि अतिशय मोह भी कष्टदायक होता है। जब अतिशय मोह वाली चीज से सम्बन्ध टूटता है, तो तब बड़ा कष्ट (त्रास) होता है। जैसे बच्चा माँ का दूध पीता है, उसके प्रति बालक के मन में अतिशय मोह रहता है। किन्तु जब बालक को माँ का दूध छुड़ाया जाता है, तो उसे काफी कष्ट होता है। इसी प्रकार जीवन में अतिशय मोह आग बनते से अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए जब कोई बालक घर से काफी दूर पढ़ने जाता है, तो उसके वियोग से माता-पिता को कष्ट होता है। जब कोई सैनिक अपने परिवार से दूर सीमा पर जाता है, तो उसके माता-पिता, पत्नी-पुत्र आदि सभी को अत्यधिक कष्ट होता है। 

प्रश्न 2. 
'प्रेरणा' शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए। 
उत्तर : 
'प्रेरणा' शब्द का आशय है-सत्प्रवृत्ति की ओर बढ़ने की भावना जगाना। इस शब्द का अत्यधिक महत्त्व है। हम अपने श्रद्धेय, पूजनीय, आदरणीय एवं विश्वसनीय व्यक्तियों के आचरण और जीवन से प्रेरणा लेकर प्रयास करते हैं, आत्मोन्नति का मार्ग अपनाते हैं। इस तरह की प्रेरणा परिवार के लोगों से, गुरुजनों एवं सज्जनों से भी मिलती है। बालक के लिए उसके माता-पिता सर्वप्रथम प्रेरणादायी होते हैं। निराशा के क्षणों में सत्परामर्श देने वाला आदर्श व्यक्ति प्रेरणा देता है। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कठिन दौर में महात्मा गाँधी ने प्रेरणा देकर नया इतिहास बनाया। अध्ययन में कमजोर छात्रों को मेधावी छात्रों का सहयोग सदैव प्रेरणादायी रहता है। 

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प्रश्न 3. 
'भय' शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए। 
उत्तर : 
भय अनेक कारणों से उत्पन्न होता है। जब किसी चीज से हमें भय की आशंका होती है, तो हम उससे बचने का प्रयास करते हैं । विद्यार्थी को, परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने का भय रहता है, तो पथिक को सुनसान मार्ग में अकेला चलने से लूट-खसोट का भय रहता है। रात में जंगली मार्ग से जाने में यात्री को खूखार जंगली जानवरों का भय बना रहता है। इसी प्रकार एक ईमानदार व्यक्ति को बदनामी होने का भय रहता है। 

इस तरह भय उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते हैं। परन्तु भय का सामना करने के लिए मन पर नियन्त्रण रखना और साहसी होना जरूरी है। व्यक्ति दृढ़-संकल्प से भय एवं उसके समस्त कारणों पर विजय पा सकता है। कवि को भय लग रहा है कि उसके प्रिय ने अपने प्रेम से उसे स्वयं पर निर्भर अर्थात् प्रिय पर निर्भर बना दिया है। अतः कवि को अपने प्रेरणादाता से ही भय लग रहा है। हमारी मनःस्थिति उनसे पूरी तरह भिन्न है। हमारा व्यक्तित्व किसी प्रेरक के कारण नहीं दब गया है।

RBSE Class 12 सहर्ष स्वीकारा है Important Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता में कवि ने क्या प्रेरणा दी है? 
उत्तर : 
कवि ने प्रेरणा दी है कि हमें जीवन के सभी सुख-दुःख, संघर्ष-अवसाद आदि को सम्यक् भाव से अंगीकार करना चाहिए। जीवन में अच्छी-बुरी स्थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। 

प्रश्न 2. 
वह क्या है, जिसे कवि ने सहर्ष स्वीकारा है? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कवि के पास गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता और भावनाओं का बहता प्रवाह है तथा प्रियजनों की यादों का सहारा है। अतः कवि ने अपनी इन सभी उपलब्धियों को बिना संकोच के सहर्ष स्वीकारा है। 

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प्रश्न 3. 
"जो कुछ मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है?" इस कथन से कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है? 
उत्तर : 
कवि ने इसमें कहा है कि मुझे जीवन की सभी स्थितियाँ इसलिए सहर्ष स्वीकार हैं क्योंकि वे तुम्हें भी अर्थात् प्रिय को भी उतनी ही प्यारी हैं। प्रिय को अपने प्रेमी की गरीबी, गम्भीर अनुभव, विविध विचार तथा सुख-दुःख आदि सभी प्रिय लगते हैं। प्रेमी की भावनाओं के प्रसार में प्रिय का भी उतना ही योगदान रहता है।

प्रश्न 4.
"भीतर की सरिता यह अभिनव सब मौलिक है"-इससे कवि क्या कहना चाहता है? 
उत्तर : 
इससे कवि कहना चाहता है कि उसके पास स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गहन अनुभव, विचार वैभव, आन्तरिक दृढ़ता और भावों की नदी आदि सब हैं जो उसके स्वयं के निजी, मौलिक एवं संवेदना से युक्त हैं, इनमें कोई कृत्रिमता या बनावट भी नहीं है।

प्रश्न 5. 
'संवेदन तुम्हारा है'-इससे कवि क्या कहना चाहता है? 
उत्तर : 
कवि कहना चाहता है कि उसे अपने प्रियजन से प्रतिक्षण प्रेम और स्नेह प्राप्त हुआ है, उससे हर समय 
प्रेरणा मिलती रहती है और उसके मन में निरन्तर जाग्रत होने वाले विचार एवं भाव प्रियजन संचारित होते हैं। 

प्रश्न 6. 
पाताली अँधेरे की गुफाओं और धुएँ के बादलों में एकदम लापता होने पर भी कवि सन्तोष का अनुभव करने की क्यों कहता है? 
उत्तर : 
कवि ऐसी विषम स्थितियों में भी इसलिए सन्तोष का अनुभव करने की कहता है कि वहाँ पर भी उसे प्रियजन की संवेदनाओं का सहारा मिलता रहेगा, तब भी वह कृतज्ञता प्रकट करके अपराध-बोध से मुक्ति पा सकेगा।

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प्रश्न 7. 
"बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है।" कवि को मधुर स्थिति असह्य क्यों लगती 
उत्तर : 
कवि को भविष्य की आशंका से भय लगता है। अत्यधिक आत्मीयता से उसकी आत्मा कमजोर, अक्षम और अपराध-बोध से ग्रस्त हो गयी है। उसे आत्मग्लानि हो रही है। अतएव सुखदायी मधुर स्थिति भी उसे असह्य लगती है। 

प्रश्न 8. 
"सचमुच मुझे दण्ड दो"-कवि कौन-सा दण्ड पाना चाहता है और क्यों? 
उत्तर : 
कवि प्रियजन को भूल जाने के लिए दक्षिण-ध्रुवी अमावस्या के गहरे अन्धकार में रहने का दण्ड पाना चाहता है; क्योंकि वह अपनी अक्षमता एवं विस्मृति में खोकर प्रिय को सदा के लिए भूल जाना चाहता है, लापता हो जाना चाहता है। 

प्रश्न 9.
"सहा नहीं जाता है। नहीं सहा जाता है।" इस कथन से कवि ने कौन-सा मनोभाव व्यक्त किया है? 
उत्तर : 
कवि का मनोभाव है कि प्रिय के व्यक्तित्व का प्रकाश उस पर निरन्तर छाया रहता है, प्रिय के प्रेरणादायी व्यक्तित्व ने उसकी संकल्प-शक्ति को दबा रखा है, वह एकदम पराश्रित व अकेला हो गया है। इस कारण वह अत्यधिक व्यथा से पीड़ित है। 

प्रश्न 10. 
"मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।" इससे कवि क्या कहना चाहता है? 
उत्तर : 
कवि कहना चाहता है कि जिस प्रकार रात भर मुसकाता.चाँद अपनी चाँदनी से धरती को आलोकित करता रहता है, उसी प्रकार प्रिय का सुन्दर चेहरा और उसकी ममता, आत्मीयता चाँदनी सदृश उसके व्यक्तित्व पर निरन्तर खिलती रहती है और उसे प्रेरित करती रहती है।
 
प्रश्न 11. 
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता का प्रतिपाद्य अथवा मूल भाव स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
प्रस्तुत कविता का. मूल भाव जीवन में सुख-दुःख, संघर्ष-अवसाद, अच्छे-बुरे आदि सभी क्षणों को सहर्ष स्वीकार करने का सन्देश देना है। साथ ही अज्ञात सत्ता की प्रेरणा एवं प्रिय का सहारा लेने की व्यंजना करना है। 

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प्रश्न 12. 
"दिल में क्या झरना है? मीठे पानी का सोता है।" कवि ने ऐसा किस आशय से कहा है? 
उत्तर : 
कवि के मन में अपने प्रिय के प्रति अत्यधिक आकर्षण, असीम प्रेम और अपनत्व भरा हुआ है। उसका वह प्रेम उत्तरोत्तर उमड़ता रहता है । तब ऐसा लगता है कि उसके हृदय में मीठे पानी का झरना बह रहा है तथा मधुर भावों का स्रोत है जो निरन्तर बहता ही रहता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता के माध्यम से कवि ने किन विचारों को प्रकट किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
कविता में जीवन की सभी समान स्थितियों सुख-दु:ख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को समान रूप से स्वीकार करने की बात कही गई है। वस्तुतः कवि दोनों ही परिस्थितियों को परम सत्ता की परछाईं मानता है। इस परिस्थिति को खुशी-खुशी स्वीकार करता है। प्रिय के सामने न होने पर भी उसके आस-पास होने का अहसास कवि को बना रहता है। लेकिन कवि को बहलाती-सहलाती आत्मीयता बर्दाश्त नहीं होती है। 

दृढ़ता और कठोरता भी बड़े मानव मूल्य हैं। इसलिए भूल जाना भी एक कला है। हर समय भावों की आर्द्रता मनुष्य को कमजोर करती है अतिशय प्रकाश गाँखें चौंधिया जाती हैं इसलिए कवि उस प्रिय को भूलने का दण्ड चाहता है। अन्धेरों की भयानक गुफाओं की ओट लेना चाहता है। अंधेरे से सामना कर अपनी असमर्थता को कम करके चित्त की ताकत बढ़ाना चाहता है। सबकी नजरों से लापता होना चाहिए क्योंकि उसके पास जो भी कुछ, उसे उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार किया है। 

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प्रश्न 2. 
कवि किस प्रकार के दण्ड की अपेक्षा अपने प्रिय से चाहता है? कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' के आधार पर व्यक्त कीजिए। 
उत्तर : 
कवि ने अपने जीवन में सुख-दुःख, कटु-मधुर सभी स्थितियों को खुशी से स्वीकार किया है। क्योंकि ये सारी परिस्थितियाँ उसके प्रिय से जुड़ी तथा प्रिय को प्यारी भी है। कवि का जीवन प्रिय के प्रेम से ढका हुआ है। वह अतिशय स्नेह, भावुकता, प्रेम, करुणा आदि से अब परेशान हो गया है। अब वह बिना इन सबके अकेले जीना चाहता है ताकि अवसर आने पर वह आत्मनिर्भर, साहसी व हृदय से मजबूत बन सके। 

उसे बहलाती-सहलाती आत्मीयता नहीं भाती है। इसलिए वह दण्डस्वरूप विस्मृति के अन्धकार में खोना चाहता है। वह प्रिय के प्रेम के उजास के बदले विस्मृति की अमावस्या चाहता है जिसमें वह पूरी तरह ढंक जाये। सब कुछ भूल जाये, क्योंकि भूलना भी एक कला है। मनुष्य सब कुछ याद रखे तो जीवन जीना कठिन हो जाता है। इसलिए कवि दण्डस्वरूप अपने प्रिय से विस्मृति की गहरी गुफा व अमावस्या का काला अन्धेरा चाहता है। 

प्रश्न 3. 
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'भूरी-भूरी खाक-धूल' से ली गई है। व्यक्त कविता में कवि ने अपने जीवन की तमाम अच्छी-बुरी स्थितियों को संघर्ष स्वीकारने की बात की है। एक होता है - स्वीकारना। और दूसरा होता है-खुशी-खुशी स्वीकारना। इस कविता द्वारा कवि ने जीवन के सम्यक् भाव को अंगीकार करने की प्रेरणा देते हुए प्रिय द्वारा प्रदत्त सभी स्थितियों को खुशी-खुशी स्वीकारने की बात कही है। 

कवि इन सभी परिस्थितियों के साथ प्रिय का जुड़ाव महसूस करते हैं। स्वाभिमान युक्त गरीबी, जीवन के गम्भीर अनुभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में उठती भावनाएँ जीवन में मिली उपलब्धियाँ सभी के लिए प्रिय को प्रेरक मानता है। लेकिन दूसरी तरफ कवि का अन्तर्विरोध भी स्पष्ट हुआ है। कवि को लगता है कि प्रिय के प्रेम के प्रभावस्वरूप कमजोर पड़ता जा रहा है। इस कारण भविष्य अन्धकारमय लगता है। इसलिए सब कुछ भूलकर विस्मृति के अन्धकारमय गुफा में एकाकी जीवन जीना चाहते हैं ताकि मन की दृढ़ता व जीवन की कठोरता के प्रति सक्षम हो सकें। 

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रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न -

प्रश्न 1. 
कवि गजानन माधव मुक्तिबोध के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर : 
प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गजानन माधव मक्तिबोध का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर गाँव में सन् 1917 में हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) करने के बाद राजनाद गाँव के डिग्री कॉलेज में अध्यापन कार्य शुरू किया। मुक्तिबोध को जीवनपर्यन्त संघर्ष करना पड़ा और संघर्षशीलता ने इन्हें चिन्तनशील एवं जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित किया। 

'चाँद का मुँह टेढ़ा है', भूरी-भूरी खाक-धूल' (काव्य-संग्रह); काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कथा-संग्रह); एक साहित्यिक की डायरी, नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र लोचना) आदि मुक्तिबोध द्वारा रचित रचनाएं हैं। उत्कृष्ट भाषा, भावों के अनुरूप शब्द गढ़ना और उसका परिष्कार करना इनकी सहज शैली है। देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है।

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

गजानन माधव मुक्तिबोध :

कवि परिचय - नयी कविता को अर्थवत्ता प्रदान करने वाले कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म सन् 1917 ई. में श्योपुर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में एक थानेदार के घर में हुआ। इनके पिता माधव राव न्यायप्रिय एवं कर्मठ व्यक्ति थे। अपने पिता के व्यक्तित्व के प्रभाव से मुक्तिबोध में ईमानदारी, न्यायप्रियता और दृढ़ इच्छा-शक्ति का प्रतिफलन हुआ। ये किशोरावस्था से ही यायावरी बन गये। उज्जैन में इन्होंने मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ की नींव डाली। नागपुर से 'नया खून' साप्ताहिक का सम्पादन किया, फिर अध्यापन-कार्य अपनाया और दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगाँव में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। 

मुक्तिबोध मार्क्सवादी चिन्तनधारा से प्रभावित रहे। अन्तर्मुखी प्रवृत्ति तथा जीवन की विषमताओं के कारण इनका व्यक्तित्व जटिल बना, जिसका प्रभाव उनकी कविताओं पर भी पड़ा। शिल्प की दृष्टि से ये बिम्ब-विधान के पक्षधर रहे हैं। मुक्तिबोध का रचनात्मक व्यक्तित्व बहुआयामी रहा। इनकी कविताएँ सर्वप्रथम अज्ञेय द्वारा सन् 1943 में सम्पादित 'तार सप्तक' में प्रकाशित हुईं। इनकी कविताओं के संग्रह हैं - 'चाँद का मुँह टेढ़ा है' और 'भूरी-भूरी खाक धूल'; इनका कथा-साहित्य है - 

'विपात्र', 'सतह से उठता आदमी' तथा 'काठ का सपना'। इनकी आलोचनात्मक कृतियाँ हैं...'कामायनी एक पुनर्विचार', 'नयी कविता के आत्मसंघर्ष', 'नये साहित्य का सौन्दर्य-शास्त्र', 'समीक्षा की समस्याएँ' तथा 'एक साहित्यिक की डायरी'। मुक्तिबोध के समस्त साहित्य को 'मुक्तिबोध रचनावली' नाम से छः खण्डों में प्रकाशित है। इनका देहावसान सन् 1964 ई. में हुआ।

कविता-परिचय - प्रस्तुत पाठ में मुक्तिबोध की 'सहर्ष स्वीकारा है' शीर्षक कविता उनके 'भूरी-भूरी खाक धूल' काव्य-संग्रह से संकलित है। इसमें बताया गया है कि 'स्वीकारना' एक बात है तथा 'सहर्ष स्वीकारना' दूसरी बात। सहर्ष स्वीकारने में खुशी-खुशी अपनाने का भाव होता है। जीवन में सुख-दुःख आदि सभी स्थितियों को सम्यक् भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा जिससे मिलती है, उसे कवि स्पष्ट नहीं बताता है। वस्तुतः जीवन में ऐसी प्रेरणा का स्रोत माँ, प्रियतमा, बहिन या अन्य कोई प्रियजन हो सकता है। 

प्रस्तुत कविता में 'तुम' कहकर कवि ने इसका रहस्य बनाये रखा है। मुक्तिबोध ने स्वीकार किया है कि उसके जीवन एवं व्यक्तित्व में जो भी उपलब्धियाँ अथवा कमजोरियाँ हैं, उन्हें उसके प्रिय के प्रेम का समर्थन प्राप्त है। वह प्रियजन उसके हृदय की गहराई से जुड़ा सदा चाँद की तरह खिला रहता है। उसमें ममता और कोमलता है, सरस आत्मीयता है। उसका सहारा सदैव ही उसका मार्गदर्शन करता है। इस तरह सब कार्यों में उसका प्रिय मूल कारण बना रहता है। इसी से कवि मुक्तिबोध उसे सहर्ष स्वीकारने की बात कहता है। 

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सप्रसंग व्याख्याएँ :

सहर्ष स्वीकारा है - 

1. जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है 
सहर्ष स्वीकारा है। 
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है 
वह तुम्हें प्यारा है। 
गरबीली गरीबी यह, ये गम्भीर अनुभव सब 
यह विचार-वैभव सब 
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब 
मौलिक है, मौलिक है 
इसलिए कि पल-पल में 
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है - 
संवेदन तुम्हारा है!! 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • गरबीली = गर्व से भरी। 
  • विचार-वैभव = विचारों से भरपूर। 
  • सरिता = नदी, भावनाओं का प्रवाह। 
  • अभिनव = नया। 
  • अपलक = एकटक। 
  • संवेदन = अनुभूति। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य संग्रह 'भूरी-भूरी खाक धूल' की कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' से लिया गया है। इसमें कवि ने जीवन की सभी स्थितियों को सहर्ष स्वीकारने की बात की है। 

व्याख्या - कवि मुक्तिबोध अपने रहस्यमय प्रिय को सम्बोधित कर कहते हैं कि हे प्रिय! मेरे जीवन में जो भी याँ या कमजोरियाँ. सफलताएँ-असफलताएँ हैं. मैं उन्हें प्रसन्नतापर्वक स्वीकार करता हूँ। मैंने इन्हें इसलिए स्वीकार किया है, क्योंकि इन्हें तुमने प्रेमपूर्वक अपना माना है, ये सब तुम्हें भी अतीव प्रिय हैं। 

मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी अर्थात् निर्धन होते हुए भी आत्म-गौरव की भावना, जीवन की गहरी अनुभूतियाँ, मेरे सब विचार चिन्तन, मेरे व्यक्तित्व की दृढ़ता, मेरे अन्त:करण में प्रवाहित भावनाओं की नदी और मेरे अन्य नये-नये रूप एवं चेष्टाएँ सब मौलिक हैं अर्थात् निजी और नये हैं। 

ये किसी की छाया या अनुकृति नहीं हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी जाग्रत चेतना है. गतिशील प्रेरणा एवं अनभतियाँ हैं, उन सबमें तुम्हारी संवेदना-प्रेरणा ही काम कर रही है। वही मेरे व्यक्तित्व एवं जीवन का निर्माण करने वाली हैं और इस कारण वही मुझे प्रिय लगती हैं। 

विशेष : 

1. कवि ने अपने अंत:करण की प्रवृत्तियों एवं गहन अनुभूतियों को निजी एवं मौलिक बताया है।
2. तत्सम तद्भव शब्दों के प्रयोग से भाव-सौन्दर्य बढ़ा है। पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास अलंकार हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

2. जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है 
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता ह 
दिल में क्या झरना है? 
मीठे पानी का सोता है 
भीतर वह, ऊपर तुम 
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर 
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! 

कठिन-शब्दार् :

सोता = स्रोत, झरना। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य संग्रह 'भूरी-भूरी खाक धूल' की कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' से लिया गया है। इसमें कवि ने बताया है कि जितना स्नेह अपने प्रिय के प्रति प्रकट करते हैं उतना ही हृदय पुनः स्नेह से भर जाता है। 

व्याख्या - कवि अपने प्रियजन को सम्बोधित करते हुए कहता है कि मैं यह नहीं जानता कि मेरे और तुम्हारे बीच कैसा गहरा रिश्ता या स्नेह-सम्बन्ध है? किस रिश्ते से मैं तुम्हें इतना प्रिय मानता हूँ? मैं तो इतना ही जानता हूँ कि मैं इस स्नेह को अपने हृदय से कविता रूपी भावों में जितना व्यक्त करता हूँ, उतना ही मेरा हृदय उस स्नेह से फिर-फिर भर जाता है। 

ऐसा लगता है कि मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना या स्रोत है, जिससे निरन्तर स्नेह रूपी जल बहता रहता है तथा इस प्रेम-पूरित हृदय के ऊपर तुम विराजमान रहते हो। जिस प्रकार पूर्णिमा का चन्द्रमा आकाश में रात-भर अपनी चाँदनी बिखेरता रहता है, उसी प्रकार तुम्हारा यह मुस्कराता हुआ सुन्दर चेहरा मेरे हृदय को अपने आकर्षण से प्रकाशित करता रहता है। 

विशेष : 

1. कवि ने अपने और अज्ञातं प्रियजन के मध्य अटूट रिश्ता बताया है जो हृदय में स्नेह से पूरित रहता है। 
2. वाक्य योजना अलंकृत है। बिम्ब और अप्रस्तुत विधान का सुन्दर प्रयोग तथा भाषा-भाव के अनुरूप सहज सुबोध है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

3. सचमुच मुझे दण्ड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं 
तुम्हें भूल जाने की 
दक्षिण ध्रुवी अन्धकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अन्तर में पा लूँ मैं 
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित 
रहने का रमणीय यह उजेला अब 
सहा नहीं जाता है। 
नहीं सहा जाता है। 

कठिन-शब्दार् : 

  • दक्षिण ध्रुवी अन्धकार = दक्षिण ध्रुव पर छाया गहरा अन्धेरा । 
  • अन्तर = हृदय।
  • परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ। 
  • आच्छादित = छाया हुआ, ढका हुआ। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य संग्रह 'भूरी-भूरी खाक धूल' की कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने प्रिय से निवेदन किया है कि दण्डस्वरूप उसे भूलने की सजा दो क्योंकि प्रिय के वियोग में कवि का हृदय व्यथित है। 

व्याख्या - कवि कहता है कि हे प्रिय! तुम मुझे दण्ड दो कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ। तुम्हें भूलना यद्यपि बहुत बड़ा दण्ड है, फिर भी मैं इस दण्ड को झेलना चाहता हूँ। कवि कहता है कि प्रिय-वियोग के कारण उसके जीवन में दक्षिणी ध्रुव जैसा गहन अन्धकार छा जाये। वियोग की काली अमावस्या उसके शरीर पर, मुख पर और हृदय पर छा जाये। वह उस वियोग वेदना को भरपूर झेल ले और उसमें  और उसमें नहा. ले. अर्थात पुरी तरह वियोग की कालिमा में डब जाये। 

कवि कहता है कि मेरा वर्तमान जीवन अपने प्रिय के प्रेम से पूरी तरह घिरा हुआ है। यद्यपि प्रिय के स्नेह का उजाला अतीव रमणीय और सौन्दर्य युक्त है, परन्तु यह उजाला मेरे लिए असहनीय हो गया है, मुझसे यह सहा नहीं जाता है। वस्तुतः प्रिय-वियोग के कारण व्यथित मन से प्रेम का प्रकाश असहनीय लगता है इसलिए प्रेम के प्रकाश से प्रकाशित यह उजाला (रोशनी) अब कवि से सहन नहीं होती है। कवि इसीलिए अपने प्रिय से उसे भूलने की बात कहता है। 

विशेष :

1. कवि दण्ड-स्वरूप प्रिय को उसे भूलने का दण्ड माँगता है क्योंकि प्रिय के प्रेम का प्रकाश अब उनसे सहन नहीं होता। आत्मा से परमात्मा के मिलन की रहस्यमयी अभिव्यक्ति हुई है। 
2. भाषा भाव अनुरूप सहज-सरल है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार हैं। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। 

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4. ममता के बादल की मँडराती कोमलता - 
भीतर पिराती है 
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह 
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ 
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में 
धुएँ के बादलों में 
बिल्कुल मैं लापता 

कठिन-शब्दार् : 

  • पिराती है = दर्द करती है। 
  • अक्षम = असमर्थ। 
  • भवितव्यता = भविष्य की आशंका। 
  • आत्मीयता = अपनापन। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य संग्रह 'भूरी-भूरी खाक धूल' की कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' से लिया गया है। कवि ने आत्मा के माध्यम से आध्यात्मिक भावों की अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। 

व्याख्या - कवि कहता है कि मेरे मन में प्रिय की ममता सदा बादलों की भाँति मण्डराती रहती है। यही कोमल ममता मेरे हृदय को अन्दर ही अन्दर पीड़ा पहुँचाती रहती है। इस कारण मेरी आत्मा एकदम कमजोर और असमर्थ हो गई है। जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है। इससे मेरा हृदय छटपटाने लगता है तथा भयानक भविष्य की कल्पना से काँपने लगता है। 

ऐसे में प्रिय का बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जतलाना भी मुझे सहन नहीं होता है अर्थात् उसकी आत्मीयता या अपनापन दिखाना मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता हूँ। मैं संघर्षशील बनना चाहता हूँ, परन्तु प्रिय के प्रेम से उत्पन्न अपनी अक्षमता मेरी आत्मा प्रताड़ित करने लगती है। कवि कहते हैं कि अतः मुझे दण्ड दो कि मैं पाताल की गहरी अँधेरी गुफाओं में भयंकर सुनसान सुरंगों में, दम घुटने वाले बादलों में हमेशा के लिए लापता हो जाऊँ। आशय है कि हमेशा के लिए खो जाऊँ, मेरा अस्तित्व ही खत्म हो जाये। 

विशेष : 

1. कवि अपने प्रिय को उसे भूल जाने का दण्ड माँगता है क्योंकि वह उसके बिना नहीं रह सकता है।
2. भाषा सरल-सहज है। ममता के बादल में लाक्षणिकता है। अनुप्रास व मानवीकरण अलंकार हैं। 

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5. लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!! 
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है 
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है 
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है। 
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है 
सहर्ष स्वीकारा है 
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है 
वह तुम्हें प्यारा है। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखित काव्य संग्रह 'भूरी-भूरी खाक धूल' की कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने जीवन की सभी स्थितियों की प्रेरणा प्रिय को ही माना है। 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि मुझे दण्ड दो कि मैं तुम्हें भूल कर अँधेरी गुफाओं में पूर्णतः लापता हो जाऊँ। उस अकेलेपन और लापता होने की स्थिति में भी प्रसन्न रहूँगा, क्योंकि उस दशा में भी मुझे तुम्हारा ही सहारा होगा; अर्थात् तुम्हारी प्रेमभरी यादें मुझे अकेलेपन के संत्रास में भी प्रसन्न रखेंगी। तुम्हारे निश्छल प्रेम की अनुभूतियाँ मुझे वहाँ भी सहारा प्रदान करेंगी कवि कहता है कि मेरे जीवन में जैसी भी कुछ भी है, मेरी जैसी भी स्थितियाँ हैं , मेरी प्रगति या अवनति की जो भी सम्भावनाएँ हैं, वे सभी तुम्हारे कारण हैं। तुम्हारे प्रेम का सहारा पाकर मैंने जो भी कार्य किये, जो भी सफलताएँ अर्जित की, उसे मैंने प्रसन्नता से स्वीकार किया है। इसलिए जो कुछ मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है। अर्थात् तुम्हारी प्रेरणा से ही मेरा जीवन निर्मित हुआ है। इस तरह मेरा जीवन तुम से सदैव जुड़ा रहा है। 

विशेष :

1. कवि अपने जीवन की सभी सफलताओं और असफलताओं का श्रेय अपने प्रिय को देता है। 
2. भाषा सरल-सुबोध एवं प्रवाहमय है। तद्भव शब्दों का प्रयोग, बिम्बात्मक प्रस्तुति हुई है। 

Prasanna
Last Updated on Dec. 15, 2023, 10:19 a.m.
Published Dec. 14, 2023