RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 12 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 12 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Students can access the class 12 hindi chapter 4 question answer and deep explanations provided by our experts.

RBSE Class 12 Hindi Solutions Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

RBSE Class 12 Hindi (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद Textbook Questions and Answers

यह दीप अकेला -

प्रश्न 1. 
'दीप अकेला' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है ? 
उत्तर :
'दीप अकेला' कविता में दो प्रतीकार्थ शब्द हैं, एक दीप दूसरा पंक्ति। दीप व्यक्ति का प्रतीक है और पंक्ति समाज की प्रतीक है। दीप में तेल (स्नेह) भरा होता है तभी वह प्रकाश देता है। उसकी लौ ऊपर को उठती है यह मानो उसका गर्वीलापन है। उसकी लौ हवा के साथ इधर-उधर झूमती है यह उसका मदमातापन है। इसी प्रकार मनुष्य स्नेह (प्रेम) से भरा होता है, उसमें भी अहंकार है और अहंकार में वह मदमाता होकर झूमता भी है। दोनों प्रतीक सार्थक हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 2.
यह दीप अकेला है पर इसको भी पंक्ति को दे दो' के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे सम्भव है? 
उत्तर :
दीप और पंक्ति क्रमशः व्यक्ति और समाज अथवा व्यष्टि और समष्टि के प्रतीक हैं। दीप को पंक्ति में स्थान देने का तात्पर्य है व्यक्ति का समाज में विलय या व्यष्टि का समष्टि में विलय। दीप का पंक्ति में मिलना बहुत आवश्यक है तभी उसका प्रकाश सर्वव्यापी होता है। इसी प्रकार व्यक्ति का समाज में मिलना उसका सार्वभौमीकरण है। इससे व्यक्ति की शक्ति बढ़ जाती है। इससे व्यक्ति और समाज दोनों का हित होता है। 

प्रश्न 3.
'गीत' और 'मोती' की सार्थकता किससे जुड़ी है ?
उत्तर :
गीत की सार्थकता उसके गाने पर ही निर्भर हैं। लोगों द्वारा गाये जाने पर उसका महत्त्व बढ़ता है। यदि गीत गाया नहीं जाता तो वह निरर्थक ही है। इसी प्रकार कवि अपनी भावनाओं को गीत द्वारा व्यक्त करता है और समाज उस गीत को गाकर सार्थकता प्रदान करता है। मोती की सार्थकता तभी है जब कोई गोताखोर समुद्र की अतुल गहराई से निकालकर उसे बाहर लाता है। समुद्र की। - गहराई में पड़े हुए मोतियों का कोई महत्त्व नहीं है। मोती को परखने वाले व्यक्ति ही उसके मूल्य व उपयोगिता को बताते हैं। , 

प्रश्न 4 
'यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित' पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए। 
उत्तर : 
व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अकेला है। उसकी सार्थकता तभी है जब वह समाज के साथ मिल जाए। समाज का भला भी तभी है जब वह व्यक्ति को अपने साथ मिला ले। इस प्रकार व्यष्टि और समष्टि दोनों का हित होता है, सामाजिक सत्ता बढ़ती है। व्यक्ति के गुणों का लाभ समाज को भी मिलता है तथा राष्ट्र भी मजबूत हो पंक्ति और समाज में विलय ही दोनों का सार्वभौमीकरण है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। अतः अपनी विशेषताएँ रखते हुए भी उसका समाज में विलय होना अतिआवश्यक है। 

प्रश्न 5. 
यह मधु है स्वयं काल की मौना का युग-संचय, 
यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय, 
यह अंकुर-फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय, 

उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि 'मधु', 'गोरस' और 'अंकुर' की क्या विशेषता है ? 
उत्तर : 
मधु की विशेषता यह है कि वह एक दिन में संचित नहीं होता। मधुमक्खी धीरे-धीरे उसका संचय करती है। स्वयं काल अपने टोकरे में युगों तक संचय करने के बाद मधु प्राप्त करता है। 
गोरस गाय के दूध से प्राप्त होता है। गोरस जीवनरूपी कामधेनु का दूध है। यह अमृतपय है।
अंकुर विपरीत परिस्थितियों में भी धरती को फोड़कर बाहर निकलता है और सूर्य की ओर ताकता रहता है। वह सीधा तना रहता है। कवि ने इसे सूर्य की ओर ताकना कहा है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 6. 
भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुतः इसको भी शक्ति को दे दो। 
भाव सौन्दर्यः - कवि के अनुसार धरती को फोड़कर निकलने वाला अंकुर प्रकृत, स्वयंभू और ब्रह्म के समान है, क्योंकि वह धरती की ऊपरी सतह को फाड़कर बाहर निकलता है और निर्भीकता से सूर्य की ओर ताकता है। यही स्थिति कवि की है, वह अपने गीत स्वयं रचता है और स्वतंत्रता से गाता है। अत: वह भी सम्मान का पात्र है। 

(ख) यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र, 
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखण्ड अपनापा। 
भाव सौन्दर्य - दीपक व्यक्ति का प्रतीक है। दीपक सदा जलता है, आग को धारण करता है, उसकी पीड़ा को पहचानता है। वह स्वयं जलता है और करुणा से द्रवित होकर भी दूसरों को अपना प्रकाश देता है। इसी प्रकार मानव भी स्वयं कष्ट उठाता है पर दूसरों के प्रति करुणा दिखाता है। वह स्वयं जागरूक रहता है, सावधान रहता है और सबके प्रति प्रेमभाव दिखाता है। इसी प्रकार कवि भी स्वयं कष्ट उठाता है पर सब के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखता है।

(ग) जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो। 
भाव सौन्दर्य - यह दीपक हमेशा जानने का इच्छुक, ज्ञानवान और श्रद्धा से युक्त रहता है। यह भक्ति से भरा है। इसे समाज को अर्पित कर दो। व्यक्ति में भी ये सभी गुण विद्यमान रहते हैं। ऐसे ही कवि भी जिज्ञासु, जागरूक और श्रद्धावान् होता है, उसे भी समाज के कार्यों में संलग्न रहने दो। 

प्रश्न 7.
'यह दीप अकेला' एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर लघु मानव' के अस्तित्व और महत्त्व पर प्रकाश डालिए। 
अथवा 
'यह दीप अकेला स्नेह भरा' कविता के प्रतीकार्थ को लिखिए। 
अथवा 
'यह दीप अकेला' कविता का मूलभाव लिखिए। 
उत्तर : 
दीपक अकेला है। वह दीपों की पंक्ति की अपेक्षा एक लघु इकाई है। फिर भी वह कम्पित नहीं होता। वह अपनी लौ को ऊपर करके गर्व के साथ जलता है। उसका अपना एक महत्त्व है, अपना पृथक् अस्तित्व है। इसलिए अकेलेपन में भी सुशोभित है। उसका जलना सार्थक है। उसका जलना समूह के लिए विशेष महत्त्व रखता है। वह समाज के लिए आत्मत्याग करने को भी तत्पर रहता है। समाज के सम्मुख मानव अत्यन्त लघु है। दीपक उसी का प्रतीक है। लघु मानव समाज का अंग होकर भी अपना एक विशिष्ट अस्तित्व रखता है।

लघु मानव समाज के किस अंग के साथ जुड़े, इसका निर्णय वह स्वयं करता है। उसे बलपूर्वक समाज के किसी वर्ग के साथ जोड़ा नहीं जा सकता। वह स्वतंत्र है। वह अपने कार्यों द्वारा समाज का हित करता है। यही इस कविता का प्रतीकार्थ है। अज्ञेय प्रयोगवाद के जनक हैं। यह दीप अकेला' एक प्रयोगवादी कविता हैं। इस कविता में नये प्रतीक, नये उपमान, नये बिम्ब और नये छन्द का प्रयोग हुआ है। उनकी अभिव्यक्ति भी नवीन है। भाषा में भी नवीनता है। इसलिए कह सकते हैं कि 'यह दीप अकेला' एक प्रयोगवादी कविता है।

मैंने देखा, एक बूंद - 

प्रश्न 1. 
'सागर' और 'बूंद' से कवि का क्या आशय है ? 
अथवा 
'मैंने देखा एक बूंद' कविता के माध्यम से कवि अज्ञेय ने बूंद एवं सागर के सन्दर्भ में कौन से दर्शन का प्रतिपादन किया है? 
उत्तर : 
सागर समाज का प्रतीक है, समष्टि का प्रतीक है। बूंद व्यक्ति अथवा व्यष्टि की प्रतीक है। बूंद सागर की। लहरों से उछलकर अलग हो जाती है और पुनः उसी सागर में मिल जाती है। बूंद क्षणभंगुर है पर अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है। इसी प्रकार मानव का समाज से पृथक् होने पर कोई अस्तित्व नहीं है, किन्तु जब उसके खण्ड स्वरूप को विराट् चेतना का आलोक मिल जाता है तो वह अमर हो जाता है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 2. 
रंग गई क्षणंभर 
ढलते सूरज की आग से। 

पंक्ति के आधार पर बूंद के क्षणभर रंगने की सार्थकता बताइए। 
उत्तर : 
सागर के जल से उछलकर अलग हुई बूंदें पुनः सागर के जल में ही विलीन हो जाती हैं। सागर के पानी की एक बूंद संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणों का प्रकाश पाकर स्वर्णिम हो जाती है और सभी को अपनी कान्ति से . आकर्षित कर लेती है। वह स्वर्णिम क्षण उस बूंद के जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 3. 
सूने विराट के सम्मुख 
हर आलोक-छुआ अपनापन 
है उन्मोचन 
नश्वरता के दाग से ! 

उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
एक बूंद सागर से अलग होती है, इसका भाव यह है कि बूंद का उस विराट् समुद्र से अलग होना नश्वरता से र्यात मानव का समाज से अलग होकर उस विराट् से सम्पर्क होना नश्वरता से मुक्ति पाना है। यह विराट सत्ता निराकार है पर मानव जीवन से सम्पर्क होने पर उसे आलोकित कर देती है और नश्वरता से मुक्त कर देती है। वे आलोकमय क्षण उसकी सार्थकता हैं। कवि खंण्ड जीवन में उस अखण्ड सत्ता के दर्शन करता है। उसे विश्वास हो जाता है कि मेरा नाशवान जीवन भी उस विराट के साथ मिलकर शाश्वत हो सकता है अथवा हो जाता है। वह भी साधक की भाँति पाप से मुक्त हो जाता है। 

प्रश्न 4. 
'क्षण के महत्त्व' को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए। 
उत्तर :
कवि ने अपने काव्य में क्षण को महत्त्व दिया है। जीवन में एक क्षण का बड़ा महत्त्व है। संध्याकाल में सागर . की एक बूंद सागर के पानी से अलग होती है किन्तु क्षणभर में ही वह सागर में विलीन हो जाती है। उस एक क्षण की पृथकता का बड़ा महत्त्व है। वह स्वर्णिम किरणों से प्रकाशित होकर स्वर्णिम दीखने लगती है। इससे यह आत्मबोध होता है कि विराट सत्ता निराकार है किन्तु क्षणभर के लिए उसके जीवन में आकर अपने मधुर मिलन से उसके जीवन को प्रदीप्त कर देती है। उसे नश्वरता के कलंक से मुक्ति प्रदान कर देती है। छोटी-सी कविता में एक क्षण का महत्त्व बताया है। यदि मनुष्य व्यक्तिगत स्वार्थों को भूलकर समाज का ध्यान रखे तो इससे उसका और समाज दोनों का भला हो सकता है। व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

योग्यता विस्तार :

1."नदी के द्वीप' व 'हरी घास पर क्षणभर' अज्ञेय की इन कविताओं को छात्र स्वयं पढ़ें तथा कक्षा की भित्ति पत्रिका पर लगायें। 

2. 'मानव और समाज' पर परिचर्चा निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं - 
(क) मानव 'व्यष्टि' तथा समाज 'समष्टि' का द्योतक है। मानव का अपना अलग अस्तित्व तथा महत्त्व है। उसकी उपयोगिता तथा उपादेयता है। उसके गुण, लक्षण और व्यक्तित्व उससे जुड़े हैं। 
(ख) समाज व्यक्तियों का समूह है। वह अनेक मानवों से मिलकर निर्मित होता है। मानव की समाज से मिलकर उपयोगिता बढ़ जाती है। समाज से मिलकर ही उसके सद्गुणों का विकास होता है। 
(ग) मानवता के विकास के लिए समाज का विकास आवश्यक है। समाजहित में व्यक्ति के हित का त्याग आवश्यक है। महाभारत में कहा गया है कि कुल के लिए व्यक्ति, ग्राम के लिए कुल तथा राष्ट्र के लिए ग्राम का परित्याग करना चाहिए। राष्ट्र समाज का विशाल रूप है। व्यक्तिगत अहंकार, लाभ और श्रेष्ठता के भाव का त्याग समाज के निर्माण के लिए जरूरी है। 

3. भारतीय दर्शन में 'सागर' विराट की सत्ता का द्योतक है। 'बूंद' व्यक्ति की लघुता का प्रतीक है। सागर अनेक बूंदों के मिलने से बनता है किन्तु एक बूंद का अलग अस्तित्व महत्त्वपूर्ण होने पर भी क्षणिक है। अन्त में सागर में विलीन होना ही उसका चरम लक्ष्य है।

RBSE Class 12 Hindi (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद Important Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1.
'यह दीप अकेला' कविता अज्ञेय के किस काव्य संग्रह से ली गई है? 
उत्तर : 
'यह दीप अकेला' कविता अज्ञेय के बावरा अहेरी काव्य संग्रह से ली गई है। 

प्रश्न 2. 
दीपक और पंक्ति किसके प्रतीक हैं? 
उत्तर :  
दीपक और पंक्ति व्यक्ति-समाज के प्रतीक हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 3. 
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता अज्ञेय के किस काव्य संकलन से संकलित है? 
उत्तर :  
'मैंने देखा, एक द' कविता अज्ञेय के 'अरी ओ करुणा प्रभामय' काव्य संकलन से संकलित है। 

प्रश्न 4. 
विराट का साथ मिलने पर व्यक्तित्व कैसा हो जाता है?
उत्तर : 
विराट का साथ मिलने पर व्यक्तित्व शाश्वत हो जाता है। 

प्रश्न 5. 
सागर और बूंद किस्रके प्रतीक हैं? 
उत्तर :  
सागर और बूंद व्यष्टि-समष्टि के प्रतीक हैं।

प्रश्न 6. 
'यह दीप अकेला' कविता में कवि ने 'दीपक' को किसका प्रतीक बताया है? 
उत्तर : 
इस कविता में कवि ने दीपक को मनुष्य का प्रतीक बताया है। 

प्रश्न 7. 
'यह दीप अकेला' कविता में क्या संदेश दिया है? 
उत्तर : 
कविता में मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने का संदेश दिया है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 8. 
पनडुब्बा, ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?' इस पंक्ति का भाव लिखिए।
उत्तर : 
कवि वह गोताखोर है जो हृदय रूपी समुद्र में डूबकर रचनाओं रूपी मोतियों को खोज कर लाता है। 

प्रश्न 9. 
"मैंने देखा, एक बूंद' कविता से कवि का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर : 
इस कविता में अज्ञेय ने समुद्र से अलग होती एक बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है। 

प्रश्न 10. 
यह समिधा-ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा। पंक्ति का आशय बताइए। 
उत्तर : 
कवि ने एक गुणवान व्यक्ति की तुलना हवन की लकड़ी से की है। जैसे हवन की लकड़ी जलकर लोगों को लाभ पहुँचाती है उसी प्रकार एक गुणवान व्यक्ति भी लोगों को लाभ पहुंचाता है।

प्रश्न 11.
'पर इसको भी पंक्ति को दे दो।' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
अगर एक दिया जलता है तो वह पूरे घर को उजाला देता है। उसी प्रकार अगर एक गुणवान मनुष्य को समाज के साथ जोड़ दिया जाए तो वह पूरे समाज को गुणवान बना देगा। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
कविता के लाक्षणिक प्रयोगों का चयन कीजिए और उनमें निहित सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए। 
अथवा
'यह दीप अकेला' कविता में व्यष्टि एवं समष्टि के संतुलन को आवश्यक माना गया है" स्पष्ट करें। 
उत्तर :
'यह दीप अकेला' एक लाक्षणिक कविता है। कवि ने कविता में अनेक लाक्षणिक प्रयोग किए हैं। दीप अकेला, स्नेह भरा, गर्व भरा, मदमाता कहकर कवि ने अकेले मानव के स्नेह, गर्व और मदमाते रूप को प्रकट किया है। व्यक्ति को समुद्र की गहराई से मोती निकालकर लाने वाला गोताखोर कहा है। दीप को पंक्ति में जगह देना व्यक्ति का समाज में विलय करना है। यह व्यष्टि का समष्टि में विलय है। अंकुर का धरती फोड़कर निकलना और सूर्य की ओर ताकना कवि की भावनाओं का अपने आप निर्भयतापूर्वक बाहर निकलना है। इन उदाहरणों के आधार पर कह सकते हैं कि यह एक लाक्षणिक कविता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद 

प्रश्न 2. 
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता का सार लिखिए। 
अथवा 
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए। 
उत्तर :  
'मैंने देखा, एक बूंद' क्षणवाद की कविता है। इसमें समुद्र की लहरों के झाग से क्षणभर के लिए अलग हुई बूंद का वर्णन किया गया है। बूंद एक क्षण के लिए समुद्र से अलग होती है और संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणों से प्रकाशित होकर स्वर्णिम हो जाती है और सभी को आकर्षित करती है। यह दृश्य देखकर कवि का दार्शनिक चिन्तन गहन हो जाता है। 

कवि सोचता है कि विराट के सम्मुख बूंद का समुद्र से अलग होना नश्वरता के दाग से मुक्त होना है। इसी प्रकार मानव जीवन में एक क्षण का बड़ा महत्त्व है। मानव जीवन क्षणभंगुर है किन्तु उस विराट के साथ जिन क्षणों में उसका विलय होता है उन क्षणों का बड़ा महत्त्व है। ये क्षण उसके जीवन को सुख से भर देते हैं, उसके जीवन को आकर्षक बना देते हैं। 

प्रश्न 3. 
'इसको भी पंक्ति को दे दो' पंक्ति का मूल भाव क्या है ? 
उत्तर : 
दीप व्यक्ति या व्यष्टि का और पंक्ति समाज या समष्टि की प्रतीक है। कवि का मूल भाव यह है कि व्यक्ति अपना पृथक से व्यक्तित्व रखता है, उसका अपना महत्त्व भी है किन्तु समाज के बिना वह अकेला है, उसका सार्वजनिक महत्त्व नहीं है। उसकी अकेली शक्ति कुछ काम नहीं कर सकती। समाज से मिलकर ही उसका, समाज का तथा राष्ट्र का कल्याण हो सकता है। इसी भाव को इन पंक्तियों में प्रकट किया गया है। 

प्रश्न 4. 
"यह समिधा-ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।" पंक्ति का भाव लिखिए। . 
उत्तर :
यह दीपक हवन की जलती हुई वह समिधा है जो अन्य समिधाओं की अपेक्षा विशिष्ट है, अद्वितीय है। इस समिधा जैसी आग कोई नहीं सुलगा सकता अर्थात् यह समाज का वह व्यक्ति है जो समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है, समाज में क्रान्ति की आग सुलगा सकता है। इसलिए इसे समाज में सम्मिलित करना आवश्यक है। यह वह कवि है जो नूतन काव्य-यज्ञ की अग्नि सुलगाता है। उसमें हठपूर्वक समिधाएँ (प्राणशक्ति) कौन डालेगा। अतः इसे पंक्ति में सम्मिलित करना आवश्यक है। 

प्रश्न 5. 
“यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा;" 

उपर्युक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
कवि दीपक के सम्बन्ध में कहता है कि यह दीपक उस विश्वास का प्रतीक है जो छोटा होते हए भी झंझा में काँपता नहीं है और जिसने अपनी गहराई को स्वयं जाना है, स्वयं नापा है। दीपक मनुष्य का प्रतीक है। मनुष्य में विश्वास है, उसमें सहनशक्ति है, वह जागरूक और प्रबुद्ध है। सर्वगुण सम्पन्न है किन्तु उसे समाजरूपी पंक्ति में सम्मिलित करने की आवश्यकता है तभी उसकी शक्ति का उपयोग हो सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 6. 
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता के आधार पर प्रकृति का चित्रण कीजिए। 
उत्तर : 
उपर्यक्त कविता में कवि ने सांध्यकालीन प्रकति का चित्रण किया है। एक दिन कवि ने देखा कि सांध्यकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणें समुद्र की ऊपरी सतह पर पड़ीं। समुद्र की लहरों के झाग से उछली और अलग हुई बूंद पर सूर्य की सुनहली किरणें पड़ी जिससे वह बूंद भी सुनहली दिखने लगी। इस कारण वह बूंद बड़ी आकर्षक लग रही थी और अपनी चमक से सभी को आकर्षित कर रही थी। 

प्रश्न 7.
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता की दार्शनिकता पर विचार कीजिए। 
उत्तर : 
कविता की प्रारम्भिक पंक्तियों में एक बूंद का सागर की लहरों से पृथक् होने का वर्णन है जिसे देखकर कवि दार्शनिक की तरह सोचने लगता है। कवि सोचता है कि समाज में व्यक्ति की स्थिति भी सागर की बूंद के समान है। विराट्सत्ता निराकार है, किन्तु विराट्सत्ता जब मानव के क्षणभंगुर जीवन से आकर मिलती है तब उसे नश्वरता के कलंक से मुक्त कर देती है। वह विराट्सत्ता उसे अपने आलोक से प्रकाशित कर देती है। तब मानव का जीवन सार्थक हो जाता है। कवि खण्ड में अखण्ड के दर्शन करता है। कवि अनुभव करता है कि इस प्रकार मनुष्य का नश्वर जीवन अनश्वर हो जाता है, सार्थक हो जाता है। वह पाप से मुक्त हो जाता है। 

प्रश्न 8. 
'यह दीप अकेला' कविता में दीप के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? 
उत्तर :
'दीप' एक प्रतीक है जिसके माध्यम से कवि मानव के सम्बन्ध में कहना चाहता है। दीप गर्व भरा है, स्नेह भरा है, मदमाता है किन्तु अकेला है। पंक्ति में शामिल करने से उसकी महत्ता एवं सार्थकता बढ़ती है। यही स्थिति व्यक्ति की है। वह सर्वगुण सम्पन्न है, शक्तिशाली है फिर भी समाज में उसका विलय होना आवश्यक है। तभी समाज और राष्ट्र मजबूत होंगे। कवि का लक्ष्य व्यक्ति और समाज के विलय को दिखाना है।

प्रश्न 9. 
'यह दीप अकेला' कविता में कवि की सोच एक दार्शनिक की सोच है। इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए। 
उत्तर : 
व्यक्ति अकेला है, उसका अपना व्यक्तित्व है। वह स्नेह से भरा है, गर्वीला है और मदमाता भी है। सर्वगुण सम्पन्न है किन्तु उसका एकाकीपन अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। समाज के साथ उसका विलय आवश्यक है। उसके व्यक्तित्व में निखार तभी आएगा। इससे उसे भी लाभ होगा और समाज तथा राष्ट्र को भी शक्ति मिलेगी। इसलिए कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को समाज के साथ जोड़ने पर बल दिया है। 

प्रश्न 10. 
'पनडुब्बा-ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
गोताखोर जिस प्रकार सागर में गोता लगाकर उसकी अतल गहराई से बहुमूल्य मोती निकालकर लाता है उसी प्रकार भावनाओं के सागर में डूबकर कवि नई-नई उक्तियों को खोजकर बाहर लाता है। नई भावनाओं और काव्योक्तियों को समाज को कवि के अतिरिक्त कौन देगा। इसलिए उसका समाज में सम्मिलित होना आवश्यक है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 11. 
'यह अंकुर-फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय' पंक्ति का मूल भाव क्या है? 
उत्तर :
बीज धरा के ऊपरी धरातल को फोड़कर बाहर निकलता है, अंकुरित होता है और आकाश में चमकते सूर्य की ओर निर्भीकता से ताकता है। इसी प्रकार मानव के हृदय में भावना के अंकुर स्वतः फूट पड़ते हैं, अर्थात् मनुष्य के हृदय की भावनाएँ समय पाकर स्वतः ही बाहर निकल पड़ती हैं और समाज में व्याप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 12.
'मैं ने देखा, एक बूंद' कविता में बूंद को देखकर कवि के मन में क्या विचार आते हैं ?
उत्तर :
समुद्र से अलग होने वाली बँद क्षणभंगर है लेकिन संध्याकालीन सर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर वह बँद सुनहली दीखती है। समुद्र से अलग होना बूँद का नश्वरता के दाग से मुक्त होना है। इसी प्रकार व्यक्ति भी क्षणभंगुर है किन्तु जब विराट्सत्ता मानव जीवन में आकर उसे अपने आलोक से आलोकित कर देती है तो वह नश्वरता के कलंक से मुक्त हो जाता है। उसका जीवन भी अनश्वर और सार्थक हो जाता है। 

प्रश्न 13.
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता के कलापक्ष पर विचार कीजिए। 
उत्तर :
यह छोटी-सी प्रतीकात्मक कविता है। बूंद मानव का और समुद्र विराट का प्रतीक है। भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न है और उसमें एक प्रवाह है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है जो भावों के अनुकूल है। लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है। क्षण के महत्त्व को दर्शाया गया है। प्रयोगवादी कविता है। व्यक्तिवाद को महत्त्व दिया गया है। 

प्रश्न 14. 
कवि ने दीप की तुलना मनुष्य से कैसे और क्यों की है ? 
उत्तर :  
इस कविता में कवि ने दीपक को मनुष्य का प्रतीक बताया है। मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने का संदेश दिया है। कवि के अनुसार अगर किसी मनुष्य के पास कोई विशेष गुण है तो उसको खुद तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। समाज के साथ उसको बाँटना चाहिए, जिससे समाज में और सुधार आए। जैसे दीपक जलता है तो लोगों को उजाला देता है लेकिन अगर एक साथ अधिक दीपक जला दिए जायें तो वे अधिक उजाला दे सकते हैं।

प्रश्न 15. 
गीत और मोती का महत्व कब होता है ? 
उत्तर :  
गीत का अर्थ गायन से संबंधित है। मोती तभी सार्थक होता है जब गोताखोर उसे निकालते हैं। कागज पर लिखे गीत की कोई पहचान नहीं है। लेकिन जब वह गाया जाता है तो मान्यता बनाई जाती है। इसी तरह समुद्र के नीचे स्थित मोती का कोई मूल्य नहीं है, इसका मूल्य तभी है जब गोताखोरों द्वारा इसको बाहर लाया जाता है

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 16.
'सागर' और 'बूंद' से कवि का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर :  
सागर और बूंद से आशय है कि एक बूंद अचानक समुद्र के किनारे से अलग हो जाती है। सूर्यास्त के समय सुनहरी आभा उस बूंद पर फैल जाती है और एक पल के लिए यह सुनहरे रूप से चमकती है और फिर सागर में गायब हो जाती है। कवि ने इसके माध्यम से दुनिया के साम्राज्यवाद का एक अनूठा उदाहरण पेश किया है।
 
निबन्धात्मक प्रश्न -  

प्रश्न 1. 
'यह दीप अकेला' कविता का सारांश लिखिए। 
उत्तर : 
यह दीप अकेला - यह कविता 'बावरा अहेरी' नामक काव्य संग्रह से ली गई है। अज्ञेय की यह कविता प्रतीकात्मक है। इसमें 'दीप' व्यष्टि अर्थात् व्यक्ति का प्रतीक है और पंक्ति समाज का, समष्टि का प्रतीक है। व्यक्ति की एकाकी स्थिति महत्त्वपूर्ण नहीं होती। समाज के साथ विलय होने पर ही उसकी महत्ता बढ़ती है। कवि कहता है कि दीपक में स्नेह (तैल) है। वह प्रकाश भी देता है, उसकी लौ हवा के साथ लहराती भी है किन्तु एकाकी है। 

उसे अन्य दीपों की पंक्ति में शामिल करने की आवश्यकता है। अहंकार का मद उसे दीपावलियों (दीपकों की पंक्ति) से अलग किये हुए है। दीप समर्थ है। उसमें सभी गुण विद्यमान हैं। उसकी व्यक्तिगत सत्ता (प्रकाश फैलाने की क्षमता) भी है, फिर भी अकेला है। उसका पंक्ति में विलय ही उसकी ताकत है। तभी उसका सार्वभौमीकरण होगा, वह सर्वव्यापी बनेगा। 

इसी प्रकार व्यक्ति एकाकी होकर भी सब कुछ है, सर्वशक्तिमान है, सर्वगुण सम्पन्न है, पर समाज के साथ उसका विलय होना आवश्यक है। इससे व्यक्ति की शक्ति बढ़ेगी। समाज और राष्ट्र दोनों मजबूत होंगे। कवि चाहता है कि व्यष्टि को समष्टि के साथ जुड़ जाना चाहिए। दीप का पंक्ति में विलय का आशय है व्यष्टि का समष्टि में विलय, आत्मबोध का विश्वबोध में रूपान्तरण। इस कविता के भाव को कवि के जीवन पर भी घटित करके समझा जा सकता है। 

प्रश्न 2. 
'मैंने देखा, एक बूंद' कविता का सारांश लिखिए। 
उत्तर : 
मैंने देखा, एक बूंद 'मैं ने देखा, एक बूंद' कविता अज्ञेय जी के काव्य संकलन 'अरी ओ करुणा प्रभामय' से ली गई है। यह एक प्रतीकात्मक कविता है। बूंद क्षणभंगुर मनुष्य और समुद्र विराट तत्त्व का प्रतीक है, अथवा ये क्रमशः व्यष्टि और समष्टि के प्रतीक हैं। कवि ने बूंद के माध्यम से मानव जीवन के प्रत्येक क्षण की महत्ता प्रतिपादित की है। समुद्र के झागों से अलग हुई बूंद क्षणभंगुर और नाशवान है पर समुद्र नहीं। 

संध्याकालीन ढलते सूर्य की सुनहली किरणों से बूंद प्रकाशित होती है जिसे देखकर कवि के मन में दार्शनिक विचार आता है। विराट से अलग हुई यह बूंद कुछ क्षण के लिए सौन्दर्य प्राप्त करती है, सूर्य की लाल किरणों में सुनहली दिखाई देती है और अपना अलग अस्तित्त्व बनाती है, पर वह शीघ्र ही अपना अस्तित्त्व खो देती है। यह अलग होना नश्वरता के दाग से मुक्ति का एहसास कराता है। इसी प्रकार मानव-जीवन में भी क्षण का बड़ा महत्त्व है। 

कवि ने उसकी क्षणभंगुरता को प्रतिष्ठापित किया है। कवि का विचार है कि व्यष्टि समष्टि से पृथक् होकर अस्तित्त्वहीन हो जाता है, उपेक्षणीय हो जाता है, किन्तु जब उसे विराट का साथ मिल जाता है तो उसका व्यक्तित्त्व शाश्वत हो जाता है, अमर हो जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 3. 
'यह दीप अकेला' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। 
अथवा 
'यह दीप अकेला' कविता का मूलभाव लिखिए। 
उत्तर : 
'यह दीप अकेला' कविता-अज्ञेय जी की प्रतीकात्मक कविता है जिसमें कवि का दार्शनिक चिन्तन झलकता है। दीप पंक्ति से अलग होकर अकेला है। स्नेह और गर्व से भरा है और मदमाता भी है। इस अकेले दीपक को पंक्ति में शामिल करने की आवश्यकता है तभी उस दीप का महत्त्व बढ़ सकता है। दीप जलता है, प्रकाश देता है, उसकी लौ ऊपर उठती है, हवा के साथ लहराता भी है, किन्तु अकेला है। पंक्ति के बिना उसका महत्त्व नहीं है। उसकी सत्ता का सार्वभौमीकरण तभी है जब पंक्ति में मिल जाय।

यही स्थिति मानव की है। वह सर्वगुण सम्पन्न है, सर्वशक्तिमान है किन्तु अकेला है। समाज के बिना उसका कोई महत्त्व नहीं है। उसका सार्वभौमीकरण समाज में विलय होने पर ही सम्भव है। समाज और राष्ट्र तभी सर्वशक्ति सम्पन्न होंगे जब व्यक्ति का उसमें विलय होगा। इस कविता का उद्देश्य ही यह है कि व्यक्ति समष्टि के साथ जुड़े। यही इसका प्रतिपाद्य है। 

प्रश्न 4. 
यह जन है-गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा? 
पनडुब्बा-ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा? 

उपर्युक्त पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
(क) भावपक्ष - यह वह मनुष्य है जो गीत गाता है। पर इसे समूह अर्थात् समाज में सम्मिलित करने की आवश्यकता है अन्यथा इन गीतों को गाने वाला और कोई नहीं मिलेगा। यह सागर की अतल गहराई में जाकर बहुमूल्य मोती निकालकर लाने वाला गोताखोर है। उन मोतियों को प्राप्त करने के लिए उसे भी समाज में सम्मिलित करना आवश्यक है। इससे व्यक्ति और समाज दोनों को ही लाभ होगा। इसी प्रकार कवि हृदय जन-कल्याण के गीत गाता है। यदि यह कवियों की पंक्ति से दूर रहा तो जन-कल्याण की कविता का सृजन कौन करेगा ? वह भावनाओं में डूबकर सुन्दर काव्योक्तियों को निकालकर लाता है, उसके अतिरिक्त उन्हें फिर कौन प्रस्तुत करेगा ? ' 

(ख) कलापक्ष - यह प्रयोगवादी कविता है। भक्त छन्द का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। एक बिम्ब प्रस्तुत किया गया है। प्रतीक योजना है। लक्षणा शक्ति का प्रयोग है। व्यक्ति और समाज को जोड़ने की प्रेरणा है। कवि - की काव्य-प्रतिभा को महत्त्व देने का सन्देश दिया गया है। 

प्रश्न 5. 
यह मधु है-स्वयं काल की मौना का युग-संचय, 
यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय, 

उपर्युक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) भावपक्ष - कवि का भाव है कि कवि का हृदय हमेशा अत्यन्त मधुर रहता है। उसके हृदय में मधुरता के भाव विद्यमान रहते हैं। उसका हृदय शान्ति के भावों से भरा रहता है। उसमें जीवनरूपी कामधेनु का अमृत भावना के समान पवित्र दूध भरा रहता है। जिस प्रकार मधुमक्खी मधु का संचय करती है, उसी प्रकार यह काल के टोकरे में युग-युग तक संचित हुआ मधु है। यह जीवनरूपी कामधेनु का वह दूध है जो अमृत के समान है, अर्थात् इसका जीवन बड़ा पवित्र है। यह देवपुत्र है। 

(ख) कलापक्ष भाषा तत्सम - प्रधान एवं भावानुकूल है। प्रभावपूर्ण एवं प्रवाहमयी भी है। शब्दों का सार्थक प्रयोग है। लाक्षणिक शब्दावली का प्रयोग हुआ है। कवि की सृजन क्षमता का महत्त्व तभी है जब वह समाज के साथ जुड़े। मुक्त छन्द है। जीवन कामधेनु में रूपक अलंकार है। तत्सम शब्दावली है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

प्रश्न 6. 
यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा 
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा;

उपर्युक्त पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
(क) भावपक्ष-दीपक व्यक्ति का प्रतीक है। दीपक का वर्णन करते हुए वह मानव का वर्णन करता है। यह दीपक उस विश्वास का प्रतीक है जो आकार में लघु है किन्तु काँपता नहीं है। यह पीड़ित है किन्तु अपनी पीड़ा को इसने स्वयं ही नापा है अर्थात् मनुष्य आत्मविश्वास से परिपूर्ण है, दुखों को सहन करने में सक्षम, जागरूक और प्रबुद्ध भी है। वह अपनी पीड़ा को स्वयं ही समझता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य सर्वगुणसम्पन्न है एवं आत्मविश्वासी भी है। वह पीड़ा से विचलित नहीं होता। कवि को उसकी आलोचनाएँ कभी हिला नहीं सकी। उसने आलोचनाओं को साहस के साथ स्वीकारा व अपनी लघुता मै भी हीनता की अनुभूति नहीं की। 

(ख) कलापक्ष - तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है। मुक्त छन्द है तथा भाषा में लाक्षणिकता है। भावानुकूल सार्थक शब्दों का प्रयोग हुआ है। प्रतीकों के सहारे मनुष्य के सर्वगुणसम्पन्न व्यक्तित्व का चित्रण है। 'दीप' एकाकी मानव का प्रतीक है। 'पंक्ति' समष्टि की द्योतक है। यह प्रयोगवाद की कविता है। 

साहित्यिक परिचय का प्रश्न -

प्रश्न :
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' का साहित्यिक परिचय लिखिए। 
जन्म - साहित्यिक परिचय - भाव पक्ष - अज्ञेय की प्रतिभा बहुमुखी थी। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रावृत्त, निबन्ध, आलोचना आदि विधाओं पर लेखनी चलाई। प्रकृति प्रेम और मानव मन के अन्तर्द्वन्द्व उनके प्रिय विषय हैं। उनकी कविता में व्यक्ति-स्वातंत्र्य का आग्रह है।

कला पक्ष - अज्ञेय ने हिन्दी काव्य की भाषा का विकास किया तथा उसको नवीन स्वरूप प्रदान किया। वे शब्दों को नया अर्थ देने में कुशल हैं। उनकी भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है तथा उसमें प्रचलित विदेशी और देशज शब्दों को भी स्थान प्राप्त है। उपन्यास तथा कहानियों की भाषा, विषय तथा पात्रानुकूल है। अज्ञेय ने अपने काव्य में मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। 

कृतियाँ - (i) उपन्यास..शेखर एक जीवनी (2 भाग), अपने-अपने अजनबी, नदी के द्वीप। (ii) यात्रावृत्त- अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली। (iii) निबन्ध–त्रिशंकु, आत्मने पद। (iv) कहानी संग्रह विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप। (v) काव्य-कृतियाँ-चिन्ता, भग्नदूत, हरी घास पर क्षणभर, इन्द्रधनु रौंदे हुए, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार।

(क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद Summary in Hindi 

कवि परिचय : 

जन्म - सन् 1911 ई. कुशीनगर उ. प्र. में। शिक्षा - बी. एस-सी., एम. ए. (अंग्रेजी)। 

क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रियता और जेल - यात्रा। जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर। विभिन्न समाचार-पत्रों के सम्पादक रहे। 'प्रयोगवाद' के कवि। साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचना की। साहित्य अकादमी, भारत-भारती, ज्ञानपीठ आदि पुरस्कार प्राप्त हुए। निधन सन् 1987 ई.।

साहित्यिक परिचय - भाव पक्ष - अज्ञेय की प्रतिभा बहुमुखी थी। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रावृत्त, निबन्ध, आलोचना आदि विधाओं पर लेखनी चलाई। प्रकृति प्रेम और मानव मन के अन्तर्द्वन्द्व उनके प्रिय विषय हैं। उनकी कविता में व्यक्ति-स्वातंत्र्य का आग्रह है तथा बौद्धिकता के विस्तार के दर्शन होते हैं। उनके साहित्य पर अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव है। वे पात्रों के मनोविज्ञान के पारखी हैं। उनके 'तार सप्तकों में संकलित कविताएँ कई दशकों की काव्य-चेतना को प्रकट करती हैं। आजादी के बाद की हिन्दी कविता पर उनका व्यापक प्रभाव है।

काला पक्ष - अज्ञेय ने हिन्दी काव्य की भाषा का विकास किया तथा उसको नवीन स्वरूप प्रदान किया। वे शब्दों को नया अर्थ देने में कुशल हैं। उनकी भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है तथा उसमें प्रचलित विदेशी और देशज शब्दों को भी स्थान प्राप्त है। उपन्यास तथा कहानियों की भाषा, विषय तथा पात्रानुकूल है। अज्ञेय ने अपने काव्य में मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। उन्होंने परम्परागत अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। अंग्रेजी साहित्य के मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अलंकार भी उनको प्रिय हैं। अज्ञेय हिन्दी की प्रयोगवादी धारा के कवि हैं। भाषा तथा विषय-वस्तु में नवीन प्रयोग के कारण उनके काव्य में क्लिष्टता पाई जाती है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

कृतियाँ - 

  1. उपन्यास शेखर एक जीवनी (2 भाग), अपने-अपने अजनबी, नंदी के द्वीप। 
  2. यात्रावृत्त-अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली। 
  3. निबन्ध-त्रिशंकु, आत्मने पद। 
  4. कहानी संग्रह-विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप। 
  5. काव्य-कृतियाँ चिन्ता, भग्नदूत, हरी घास पर क्षणभर, इन्द्रधनु रौंदे हुए, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार। 'सदानीरा' नाम से उनकी समग्र कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ है। 

अज्ञेय को हिन्दी का युग प्रवर्तक साहित्यकार माना जाता है। 

सप्रसंग व्याख्याएँ। 

1. यह दीप अकेला स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। 
यह जन है गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा? 
पनडुब्बा - ये मोती सच्चे फिर कौन कती लाएगा? 
यह समिधा - ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा। 
यह अद्वितीय - यह मेरा यह मैं स्वयं विसर्जित - 
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। 

शब्दार्थ :

  • स्नेह = तेल, प्रेम। 
  • मदमाता = मस्ती से भरा। 
  • पनडुब्बा = गोताखोर, एक जलपक्षी जो पानी में डूब-डूबकर मछलियाँ पकड़ता है। 
  • कृती = भाग्यवान, कुशल। 
  • समिधा = यज्ञ की लकड़ी। 
  • बिरला = बहुतों में एक। 
  • अद्वितीय = अनोखा। 
  • विसर्जित = त्यागा हुआ।

सन्दर्भ - उपर्युक्त काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' की 'यह दीप अकेला' कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' हैं।
 
प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने दीप के माध्यम से व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों को व्यंजित किया है। व्यष्टि जब समष्टि का अंग बनता है, समाज के लिए कुछ करता है तभी उसको महत्ता प्राप्त होती है।
 
व्याख्या - कवि कहता है कि दीपकों की पंक्ति से अलग होकर यह दीप अकेला है। यह स्नेह और गर्व में मदमाता होकर झूम रहा है, अर्थात् समाज से विलग होकर व्यक्ति अकेला है। यद्यपि वह स्नेह और गर्व में मदमाता होकर झूम रहा है पर उसकी व्यक्तिगत सत्ता का कोई महत्त्व नहीं है। उसे समाज के साथ जुड़ना ही होगा तभी उसे ताकत मिलेगी। अतः उसे भी समाज में स्थान दो। यह गीत गाता हुआ वह मनुष्य है जो गोताखोर की तरह सागर रूपी समाज की गहराइयों में डुबकी लगाकर मोतीरूपी भावनाओं को बाहर निकालकर सबके सामने रख देता है। इसे भी समाज में स्थान दो। इससे दोनों को लाभ होगा। 

यह वह हवन की लकड़ी (समिधा) है जो अन्य लकड़ियों की अपेक्षा अद्वितीय है, श्रेष्ठ है, अर्थात् यह वह व्यक्ति है जो समाज के अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अद्वितीय है, विलक्षण है। इसमें अहंकार का अर्थात् 'स्व' का भाव भरा हुआ है। इसे अपनी व्यक्तिगत सत्ता रखते हुए भी समाज के साथ विलय होना ही होगा। - इस अंश की कवि के पक्ष में भी व्याख्या की जा सकती है। दीप कवि के दृढ़ आत्म-विश्वास और अस्मिता का प्रतीक है। 

दीपक अकेला है पर अन्धकार में प्रकाश फैलाता है। उसे भी उन दीपकों की पंक्ति में स्थान दो जो समाज को प्रकाशित कर रहे हैं। कवि समाज के हितार्थ गीत गाता है। यदि इसे कवियों की पंक्ति में नहीं बैठाया गया तो समाज के कल्याण के गीत कौन गायेगा। कवि का हृदय भावनाओं से भरा है जिनके द्वारा वह अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करता है। उसकी कविता से उसका गवीला, हठीला व्यक्तित्व ही प्रकट होता है। कवि अकेला है, गीला है, अपनी मस्ती में झूमता है, फिर भी उसे कवियों की पंक्ति में स्थान दो।

विशेष :

  1. कवि ने व्यष्टि को समष्टि के साथ जोड़ने का सन्देश दिया है। 
  2. 'गाता गीत' में अ अलंकार है। 
  3. दीप व्यक्ति का और पंक्ति समाज का प्रतीक है। रूपक अलंकार भी है। 
  4. भाषा लाक्षणिक है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। 
  5. अज्ञेय प्रयोगवादी कविता के सूत्रधार माने जाते हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

2. यह मधु है-स्वयं काल की मौना का युग-संचय, 
यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय, 
यह अंकुर-फोड़ धरा को रवि को तंकता निर्भय, 
यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुतः इसको भी शक्ति को दे दो। 
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा। 
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
 

शब्दार्थ :

  • मधु = शहद। 
  • मौना = टोकरा। 
  • गोरस = दूध, दही। 
  • कामधेनु = एक गाय जिसके दूध को पीने से कामनाएँ पूरी होती हैं। 
  • पय = दूध। 
  • प्रकृत = स्वाभाविक, प्रकृति के अनुरूप। 
  • स्वयंभू = स्वयं पैदा हुआ, ब्रह्म। 
  • अयुतः = पृथक्, असम्बद्ध। 

सन्दर्भ : 

प्रस्तुत पंक्तियाँ 'यह दीप अकेला' नामकं कविता से ली गई हैं। 'प्रयोगवाद' के कवि अज्ञेय द्वारा रचित यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। 

प्रसंग : व्यक्ति का अस्तित्व अकेले दीपक की भाँति है जो स्नेह, गर्व और अहं भाव से परिपूर्ण है। किन्तु उसका महत्त्व तभी है जब वह समाज में सम्मिलित हो जाय। कवि ने उसे मधु, दूध, अंकुर, स्वयंभू आदि कहकर पुकारा है, किन्तु समाज के साथ उसके विलय होने पर जोर दिया है। 

व्याख्या - कवि कहता है कि यह दीपक काल के टोकरे में युग-युग तक स्वयं संचित हुआ मधु है। यह जीवन रूपी कामधेनु का अमृतपय है। यह वह अंकुर है जो धरती को फोड़कर निर्भीकता से सूर्य की ओर ताक रहा है। यह प्रकृति के अनुरूप स्वयं पैदा हुआ ब्रह्म है किन्तु सर्वथा पृथक् है। इसे भी शक्ति दे दो अर्थात् इसे भी पंक्ति में सम्मिलित कर दो।

दीप व्यक्ति का प्रतीक है। कवि का भाव यह है कि व्यक्ति पूर्ण है, सर्वगुण सम्पन्न है। फिर भी समाज के साथ अन्तरंग सम्बन्ध स्थापित होने पर हो वह शक्ति-सम्पन्न बनेगा, मजबूत होगा। दीपक अकेला है, स्नेह पूर्ण है, गर्वीला है, उसमें अहंभाव है। पर उसका पंक्ति में जगह प्राप्त करना आवश्यक है। इसी प्रकार व्यक्ति का समाज में मिलना आवश्यक है तभी समाज और राष्ट्र मजबूत होगा। इन पंक्तियों का अर्थ कवि के पक्ष में भी किया जा सकता है कवि का हृदय दीपक के समान है जो बड़ा मधुर है।

उसमें अपने युग की शान्ति की भावना संचित है। उसमें कामधेनु के दूध के समान जीवनरूपी अमृत भरा हुआ है। जिस प्रकार धरती को फोड़कर अंकुर बाहर निकलते हैं और निर्भीक होकर सूर्य की ओर देखते हैं उसी प्रकार कवि के हृदय की भावनाएँ स्वतः प्रकट होती हैं और काव्य का सृजन करती हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कवि काव्य की रचना करके ब्रह्म की तरह उससे पृथक् और स्वतन्त्र रहता है। अतः कवि अपनी रचनात्मक क्षमता को शक्ति प्रदान करने का आह्वान करता है। इसके लिए उसका कवियों की पंक्ति में सम्मिलित होना जरूरी है।

विशेष :

  1. प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। 
  2. जीवन-कामधेनु में रूपक अलंकार है। 
  3. संस्कृत की तत्सम शब्दावली युक्त लाक्षणिक भाषा का प्रयोग है। 
  4. कवि की मान्यता है कि किसी भी रचना का समाज के साथ जुड़ा होना आवश्यक है। 
  5. मुक्त छन्द का प्रयोग है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

3. यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा, 
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा; 
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुंधुआते कड़वे तम में 
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र, 
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखण्ड अपनापा। 
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो -
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
 

शब्दार्थ :

  • लघुता = छोटापन। 
  • कुत्सा = निन्दा, घृणा। 
  • अपमान = बेइज्जती। 
  • अवज्ञा = कहना न मानना। 
  • धुंधुआते = धुंए से भरे हुए। 
  • तम = अन्धकार।
  • द्रवित = पिघला हुआ, करुणा से पूर्ण। 
  • चिर = जागरूक, सदा जागता हुआ। 
  • उल्लंब-बाहु = ऊपर को उठी बाहें। 
  • जिज्ञासु = जानने की इच्छा वाला। 
  • प्रबुद्ध = ज्ञानी, जागा हुआ।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश 'यह दीप अकेला' नामक कविता से उद्धृत है। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' की यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। 

प्रसंग : दीपक को प्रतीक बनाकर मनुष्य को विश्वासी अर्थात् विश्वास से भरा हुआ, सहनशील, जागरूक, प्रबुद्ध और सर्वगुण-सम्पन्न बताया गया है। फिर भी वह उसे पंक्ति के साथ जोड़ने अर्थात् व्यष्टि को समष्टि में विलय करने का सन्देश देता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि दीपक उस विश्वास का रूप है जो अपनी लघुता में भी कभी कांपा नहीं। उसने अपनी पीड़ा को स्वयं ही नाप लिया है। इस दीपकरूपी व्यक्ति में आत्मविश्वास है, सहनशीलता है, दुःख सहन करने की क्षमता भी है। जिस प्रकार दीपक धुंए के बीच में जलता रहता है, उसी प्रकार व्यक्ति भी निन्दा, अपमान के अन्धकार में भी करुणार्द्र हो जाता है। यह हमेशा जागरूक रहता है। 

इसके नेत्रों से दूसरों के प्रति अनुराग झलकता है। दूसरों को गले लगाती हैं। इसके मन में पूर्ण आत्मीयता का भाव है। यह ज्ञान-पिपासु, श्रद्धावान् और जाग्रत है। इस व्यक्ति को भी समाज (समष्टि) में सम्मिलित कर लो। दीपक की तरह यह अकेला है, गर्वीला है, स्नेहपूर्ण है, अहंभावी है, अर्थात् सर्वगुण सम्पन्न है। अतः इसे समाज में मिला लो जिससे समाज सर्वगुण सम्पन्न होगा और शक्तिशाली बनेगा।

इस अंश की व्याख्या कवि के पक्ष में इस प्रकार कर सकते हैं . कवि अपनी लघुता में भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोता है। वह आलोचनाओं से नहीं घबराता है। अपने उत्साह को कभी कमजोर नहीं करता। वह करुणार्द्र है, जागरूक है। उसके नेत्र अनुराग से भरे हैं। दूसरों का आलिंगन करने के लिए उसकी भुजाएँ सदैव उठी रहती हैं। उसकी कविताओं की कटु आलोचना होती है, उपेक्षा होती है, निन्दा होती है, अपमान भी किया जाता है फिर भी उसका उत्साह कम नहीं होता है। वह अकेला होते हुए भी अडिग है, अहंकार से भरकर मस्ती में झूमता है, निश्कंप है। अत: इसे भी कवियों की श्रेणी में स्थान दो।

विशेष : 

  1. भाषा तत्सम शब्दावली से युक्त, भावानुकूल, लाक्षणिक एवं प्रवाहमय है। 
  2. मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है। 
  3. 'दीप' व्यष्टि चेतना का प्रतीक है। 
  4. रूपक, अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है। 
  5. व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध गों को दिखाया है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 3 (क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद

मैंने देखा, एक बूंद 

मैं ने देखा 
एक बूंद सहसा 
उछली सागर के झाग से; 
रंग गई क्षणभर 
ढलते सूरज की आग से। 
मुझ को दीख गया : 
सूने विराट के सम्मुख 
हर आलोक-छुआ अपनापन 
है उन्मोचन 
नश्वरता के दाग से! 

शब्दार्थ :

  • सहसा = अचानक। 
  • विराट् = बहुत बड़ा, ब्रह्म। 
  • उन्मोचन = मुक्त करना, ढीला करना। 
  • नश्वरता = नाशवान, नष्ट होने वाला। 

सन्दर्भ :  'मैं ने देखा, एक बूंद' कविता प्रयोगवाद के जनक एवं ख्याति प्राप्त कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' की कृति 'अरी ओ करुणा प्रभामय' से हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित की गई है।

प्रसंग : उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में अज्ञेय ने समुद्र से अलग दीखने वाली बूंद की क्षणभंगुरता का वर्णन किया है। बूंद क्षणभर के लिए सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होती है जिससे कवि दार्शनिक हो जाता है। विराट के सम्मुख द का समुद्र से अलग होना, नश्वरता के दाग से मुक्ति का अनुभव है। व्याख्या कवि कहता है कि बूंद सागर की लहरों के झाग से उछलकर अलग हुई और पुनः उसी में समा गई। संध्याकालीन सूर्य की किरणें अरुणाभ थीं। 

वह बूंद भी उन किरणों का सम्पर्क प्राप्त करके लाल हो गई और झिलमिलाने लगी। वह बूँद क्षणिक थी किन्तु उसकी क्षणभंगुरता निरर्थक नहीं थी। उस बूँद के उछलकर पुनः सागर में विलीन होने के दृश्य को देखकर कवि के मन में एक दार्शनिक भावना जाग्रत होती है कि व्यक्ति बूंद तथा सागर समाज के समान है। जिस प्रकार बूंद-बूंद से सागर बनता है उसी प्रकार व्यक्तियों के समूह से समाज बनता है। 

बूंद का सूर्य किरणों से प्रकाशित होकर चमकने और पुनः समुद्र में विलीन होने को देखकर कवि को आत्मबोध होता है कि विराट् सत्ता निराकार और अखण्ड है। जीव खण्ड है, कवि को उसमें भी अखण्डता के दर्शन होते हैं। सत्य के दर्शन होते हैं। वह अनुभव करता है कि मानव जीवन के वे क्षण सार्थक हैं जो विराट के साथ विलय होने पर व्यतीत होते हैं। 

विशेष : 

  1. प्रयोगवादी शैली की कविता है। अज्ञेय प्रयोगवाद के पुरोधा माने जाते हैं। 
  2. बूंद व्यक्ति का और सागर समाज का प्रतीक है। 
  3. 'आग' शब्द आलोक के लिए आया है। .
  4. तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है और बिम्ब को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। बिम्ब विधान नयी कविता की प्रमुख विशेषता है जिससे कविता में चित्रात्मकता आ गई है।
Prasanna
Last Updated on July 16, 2022, 10:39 a.m.
Published July 11, 2022