Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था: समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Economics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Economics Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
सन्तुलित व्यापार शेष और चालू खाता सन्तुलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्तुओं के निर्यात और आयात के सन्तुलन को व्यापार सन्तुलन कहते हैं तथा व्यापार सन्तुलन में सेवाओं का व्यापार और शुद्ध अंतरण का योग कर चालू खाता सन्तुलन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 2.
आधिकारिक आरक्षित निधि का लेनदेन क्या है? अदायगी सन्तुलन में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय अदायगी का सार है कि जिस प्रकार अपनी आय से अधिक व्यय करने वाले को किसी व्यक्ति को परिसंपत्तियाँ बेचकर या उधार लेकर आय - व्यय के अंतर को पूरा करना पड़ता है, उसी प्रकार कोई देश, जिसके चालू खाते में घाटा होता है (जो विदेशों को विक्रय से प्राप्त धन से अधिक विदेशों को व्यय करता है) उसे अपनी परिसंपत्ति बेचकर या विदेशों से ऋण लेकर उस कमी के लिए वित्त की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस प्रकार, किसी भी चालू खाता घाटा को निवल पूँजीगत प्रवाह से वित्तपोषित करना आवश्यक होता है। वैकल्पिक रूप से घाटे की दशा में विदेशी बाजार में विदेशी करेंसी को बेचकर तथा अपने विदेशी विनिमय को कम करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है।
अधिकृत आरक्षित निधि में कमी (वृद्धि) को कुल अदायगी: घाटा संतुलन (आधिक्य) कहते हैं। यहाँ मुख्य बात यह है कि अदायगी-संतुलन (अथवा किसी आधिक्य का प्रापक) में किसी प्रकार के घाटे का प्रधान वित्तदाता मौद्रिक प्राधिकार होते हैं। अदायगी संतुलन घाटा या आधिक्य चालू और पूँजीगत खाता संतुलन को जोड़ने के बाद प्राप्त होता है। कोई दे अदायगीसंतुलन में तब होता है, जब उसके चालू खाते का योग और उसके अनारक्षित पूंजी खाते का योग शून्य के बराबर हो, ताकि चालू खाता शेष का बिना किसी आरक्षित निधि संचलन के पूर्णतः अंतर्राष्ट्रीय ऋण के द्वारा वित्त प्रबंध किया जा सके। ध्यातव्य है कि अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार अधिकीलित विनिमय दर की तुलना में अस्थायी विनिमय दर की स्थिति में अधिक प्रासंगिक होता है। अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार को अदायगी सन्तुलन में समायोजित मद के रूप में देखा जाता है।
प्रश्न 3.
मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए। यदि आपको घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो, तो कौन-सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर:
किसी देश में मुद्रा के रूप में अन्य देश की मुद्रा की कीमत को मौद्रिक विनिमय दर कहा जाता है, मौद्रिक विनियम दर का निर्धारण करते समय कीमत स्तर में परिवर्तनों के प्रभावों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। इसके विपरीत वास्तविक विनिमय दर में विभिन्न देशों के कीमत स्तर में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है। यह घरेलू वस्तुओं के संदर्भ में विदेशी वस्तुओं के सापेक्षिक कीमत को दर्शाता है। अत: किसी अन्य देश में वस्तुएं अपने देश की वस्तुओं की तुलना में कितनी महंगी हैं, इसकी माप वास्तविक विनिमय दर से हो पाती है। यदि हमें घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तु के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना है तो वास्तविक विनिमय दर अधिक प्रासंगिक है।
प्रश्न 4.
यदि 1 रुपया की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए। (जापान वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में)। संकेत : रुपये में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम मौद्रिक विनिमय दर अर्थात् रुपये में एक येन की कीमत निकाली जाएगी।
रुपये में येन की कीमत = \(\frac{1.00}{1.25}\)
\(=\frac{100}{125}=\frac{4}{5}=0.80\)
वास्तविक विनिमय दर की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
वास्तविक विनिमय दर = \(=\frac{\mathrm{eP}_{\mathrm{f}}}{\mathrm{P}}\)
यहाँ P= देश का कीमत स्तर, Pf = विदेशी कीमत स्तर तथा e = विदेशी मुद्रा की कीमत रुपये में है।
वास्तविक विनिमय दर = \(=\frac{0.80 \times 3}{1.2}\)
= 2
प्रश्न 5.
स्वचालित युक्ति की व्याख्या कीजिए जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी सन्तुलन प्राप्त किया जाता था।
उत्तर:
लगभग 1870 से 1914 में विश्व के विभिन्न देशों में स्वर्णमान प्रचलित था, जो कि स्थिर विनिमय दर प्रणाली का सार तत्त्व ही था। स्वर्णमान में सभी करेंसियाँ सोने के रूप में परिभाषित की जाती थीं। इसका अर्थ यह था कि प्रत्येक देश के निवासी अपने देश की घरेलु मुद्रा का दूसरी परिसंपत्ति (सोना) के रूप में एक निश्चित कीमत पर मुक्त रूप से परिवर्तन कर सकते थे और सोना अंतर्राष्ट्रीय अदायगी के रूप में स्वीकार्य था। इससे यह भी संभव हुआ कि एक निश्चित कीमत पर प्रत्येक देश
की मुद्रा दूसरी किसी भी मुद्रा के रूप में परिवर्तन योग्य बन गई।
विनिमय दरों का निर्धारण सोना के रूप में उस मुद्रा के मूल्य के द्वारा होता था (जहाँ सोने की ही मुद्रा होती थी, वहाँ उसकी वास्तविक सोने की मात्रा होती थी)। उदाहरण के लिए, मुद्रा A की एक इकाई का मूल्य एक ग्राम सोना था और मुद्रा B का मूल्य मुद्रा A के मूल्य का दुगुना होता था। आथिक एजट प्रत्यक्ष रूप स मुद्रा B का एक इकाई को मुद्रा A की 2 इकाई के रूप में बदल सकता था। इसके लिए उन्हें पहले सोना खरीदने और उसे बेचने की आवश्यकता नहीं होती थी।
दरों में एक ऊपरी सीमा और निचली सीमा के बीच उतार - चढ़ाव होता रहता था। इन सीमाओं का निर्धारण दोनों करेंसियों के निर्माण में आयी लागत के अंतर के द्वारा होता था जिनमें उनके द्रवण, प्रेषण और सिक्के की ढलाई की लागत शामिल थी। अधिकृत समता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक देश को सोने के पर्याप्त स्टॉक सुरक्षित रखने की आवश्यकता होती थी। स्वर्णमान की स्थिति में सारे देशों की विनिमय दर स्थायी थी।
अब यह प्रश्न उठता है कि अत्यधिक आयात करने पर क्या कोई अपने सोने के सारे स्टॉक को समाप्त नहीं कर देगा (अदायगी - संतुलन में घाटा होने पर)? वणिकवादीय व्याख्या इस प्रकार थी कि जब तक राज्य टैरिफ, कोटा अथवा निर्यात पर उपदान के रूप में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तब तक वह देश अपने सोने को समाप्त कर देगा और वह अत्यंत बुरी दुर्घटना को प्राप्त होगा। डेविड यूम एक ख्याति प्राप्त दार्शनिक थे, जिन्होंने 1752 में इस मत का खंडन किया और बतलाया कि यदि सोने के भंडार में कमी हुई, तो सभी प्रकार की कीमतें और लागत भी आनुपातिक रूप से गिरेंगी और इससे देश में किसी को भी बुरी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।
घरेलू वस्तुएँ सस्ती हो जाने से आयात घटेगा और निर्यात बढ़ेगा (यह वास्तविक विनिमय दर है, जिससे प्रतिस्पर्धा का निर्धारण होगा)। जिस देश से हम आयात कर रहे थे और सोने में उसको भुगतान कर रहे थे, उसको कीमतों और लागतों में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। अतः उनका महँगा निर्यात घटेगा और पहले वाले देश से सस्ती वस्तुओं का आयात बढ़ेगा। इस धातुवाह कीमत तंत्र (अठारहवीं शताब्दी में कीमती धातुओं को सोना - चाँदी भी कहते थे) का परिणाम आमतौर पर सोने की क्षति उठाकर अदायगी - संतुलन में सुधार लाना होता है और सापेक्षिक कीमत पर जब तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में साम्य की पुनर्स्थापना नहीं होती, तब तक प्रतिकूल व्यापार संतुलन वाले देश के अदायगी - संतुलन को अनुकूल व्यापार संतुलन वाले देश के अदायगी - संतुलन को समकक्ष लाता है।
इस संतुलन से आगे शुद्ध सोने का प्रवाह नहीं होता है और आयात-निर्यात संतुलन बना रहता है। बिना किसी टैरिफ और राज्य की कार्रवाई की आवश्यकता के, स्थायी तथा स्वयं सुधार संतुलन बना रहता है। इस प्रकार स्वचालित साम्य तंत्र के माध्यम से स्थिर विनिमय दर को कायम रखा जाता था।
प्रश्न 6.
नम्य विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर प्रणाली को जिसे तिरती विनिमय दर भी कहते हैं, इसमें विनिमय दर का निर्धारण बाजार मांग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। पूर्णरूपेण नम्य प्रणाली में केन्द्रीय बैंक नियमों के सरल समुच्चय को अपनाते हैं। बैंक विनिमय दर स्तर को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाला कोई भी कार्य नहीं करता है। वह विदेशी विनिमय बाजार में दखल नहीं देता है इसलिए कोई अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार नहीं होता है।
हम देश के निवासियों द्वारा विदेशी वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों पर किये गए सभी प्रकार के व्यय और सभी प्रकार की विदेशी अंतरण - अदायगी (अदायगी - संतुलन खातों में डेबिट) जिससे विदेशी विनिमय की माँग का भी पता चलता है, का उल्लेख करने पर अदायगी - संतुलन खाता और विदेशी विनिमय बाजार संव्यवहार के बीच संबंध स्पष्ट होता है। एक भारतीय निवासी जापानी कार खरीदने के लिए रुपये में भुगतान करेगा, लेकिन जापानी निर्यातकर्ता येन में भुगतान पाने की अपेक्षा करेगा। अत: विदेशी विनिमय बाजार में येन के रूप में रुपये का विनिमय होगा।
इसके विपरीत, देश के निवासियों द्वारा किये गये सभी प्रकार के निर्यात से विदेशी विनिमय की समान आय प्रतिबिंबित होती है। उदाहरण के लिए, भारतीय निर्यातकर्ता रुपयों में भुगतान की अपेक्षा करेगा और हमारी वस्तुएँ खरीदने के लिए विदेशी लोग अपनी मुद्रा बेचकर रुपये खरीदेंगे। अदायगी-संतुलन खातों की कुल क्रेडिट तब विदेशी विनिमय की पूर्ति के समान हो जाता है। विदेशी विनिमय की माँग का दूसरा कारण सट्टेबाजी का प्रयोजन भी है।
नम्य विनिमय दर निर्धारण को निम्न उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं, माना विश्व में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दो ही देश हैं, जिससे केवल एक विनिमय दर का निर्धारण हो। मांग वक्र DD की प्रवणता नीचे की ओर है क्योंकि विदेशी विनिमय की कीमत में वृद्धि से विदेशी वस्तुएँ खरीदने की रुपये के रूप में लागत में वृद्धि होगी। इस प्रकार, आयात में कमी आएगी और विदेशी विनिमय की माँग कम होगी। विदेशी विनिमय की
पूर्ति में वृद्धि करने के लिए जब भी विनिमय दर में वृद्धि होती है, तब हमारे निर्यात के लिए विदेशी माँग अवश्य ही इकाई लोच से अधिक होनी चाहिए अर्थात् विनिमय दर में एक प्रतिशत की वृद्धि से माँग में 1 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होनी चाहिए। यदि यह शर्त पूरी होती है, तो विनिमय में वृद्धि के अनुपात में रुपयों में हमारे निर्यात में वृद्धि होगी और विनिमय दर में वृद्धि से डॉलर के रूप में अर्जन (विदेशी विनिमय की पूर्ति) भी बढ़ेगी। किन्तु ऊर्ध्वस्तर पूर्ति वक्र (भारतीय निर्यात के लिए विदेशी माँग की इकाई लोच) से इस विश्लेषण में कोई परिवर्तन नहीं होगा। ध्यातव्य है कि यहाँ हम विनिमय दर के अतिरिक्त सभी कीमतों को स्थिर रख रहे हैं।
विदेशी मुद्रा की राशि (51 नम्य विनिमय दर की इस स्थिति में केन्द्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बिना विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति में साम्य स्थापित करने के लिए तथा बाजार रिक्त करने के लिए विनिमय दर में संचलन होता है। उपर्युक्त रेखाचित्र में DD विदेशी विनिमय का मांग वक्र तथा SS विदेशी विनिमय का पूर्ति वक्र है। बिन्दु पर DD = ss है अर्थात E सन्तुलन का बिन्दु है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग तथा विदेशी विनिमय की पूर्ति बराबर है। इस सन्तुलन बिन्दु पर e विनिमय दर निर्धारित होती है अतः सन्तुलित विनिमय दर है।
प्रश्न 7.
अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मूल्यह्रास से अभिप्राय दूसरे देश की मुद्रा की तुलना में घरेलू मुद्रा के मूल्य में कमी आने से है। मान लीजिए 1 डॉलर = 48 रुपये विनिमय दर है, यदि कुछ समय पश्चात् 1 डॉलर = 50 रुपये हो जाती है तो इसका अभिप्राय है कि विनिमय दर बढ़ने के पश्चात् 1 डॉलर खरीदने हेतु 2 रुपये अधिक देने पड़ेंगे। इसके विपरीत जब किसी देश की सरकार दूसरे देश की मुद्रा की तुलना में अपने देश की मुद्रा का विनिमय मूल्य जानबूझ कर घटा देती है तो इसे अवमूल्यन कहते हैं।
प्रश्न 8.
क्या केन्द्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती विनिमय दर प्रणाली, नम्य विनिमय दर प्रणाली तथा स्थिर विनिमय दर प्रणाली का मिश्रण है। इस प्रणाली में विनिमय दर बाजार की माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है किन्तु इस प्रणाली में केन्द्रीय बैंक विनिमय दर को उदार बनाने के लिए जब कभी ऐसे कार्य को समुचित समझता है, तब विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करके हस्तक्षेप करता है।
प्रश्न 9.
क्या देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान हैं?
उत्तर:
देशी वस्तुओं की माँग तथा वस्तुओं की देशीय मांग की संकल्पनाओं में अन्तर है। देशी वस्तुओं की माँग में किसी वस्तु के संदर्भ में देश में निर्मित वस्तुओं की मांग को ही शामिल किया जाता है जबकि किसी वस्तु की देशीय माँग में किसी वस्तु के संदर्भ में उस देश में निर्मित तथा विदेशों में निर्मित वस्तुओं दोनों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 10.
जब M = 60 + 0.06Y हो तो आयात की सीमान्त प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमान्त प्रवृत्ति तथा समस्त माँग फलन में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
यदि M = 60 + 0.06Y है अर्थात् यह समीकरण देश के आयात को दर्शाता है। इससे आयात की सीमान्त प्रवृत्ति निम्न प्रकार ज्ञात की जाएगी
\(\mathrm{m}=\frac{\Delta \mathrm{M}}{\Delta \mathrm{Y}}=0.06\)
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति तथा समस्त माँग में धनात्मक सम्बन्ध होता है। आयात की सीमान्त प्रवृत्ति - बढ़ने से समस्त माँग में वृद्धि होती है तथा आयात की सीमान्त प्रवृत्ति कम होने पर समस्त माँग में कमी होती।
प्रश्न 11.
खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्त व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा क्यों होता है?
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्त व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा होता है। इसे हम गुणक प्रक्रम द्वारा स्पष्ट कर सकते है। उदाहरण के लिए, स्वायत्त व्यय में परिवर्तन और सरकारी व्यय में परिवर्तन का आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव और उपभोग पर प्रेरित प्रभाव पड़ेगा, जिससे पुनः आय प्रभावित होगी। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के शून्य से अधिक होने पर उपभोग पर प्रेरित प्रभाव के अनुपात से विदेशी वस्तुओं की माँग का सूचक होगा, न कि घरेलू वस्तुओं की।
अतः घरेलू वस्तुओं की मांग तथा घरेलू आय पर प्रेरित प्रभाव कम होगा। आय के प्रति इकाई आयात में वृद्धि से गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चक्र में घरेलू आय के वर्तुल प्रवाह से एक अतिरिक्त लीकेज होता है तथा स्वायत्त व्यय गुणक के मूल्य में कमी होती है। अत: संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आयात की सीमान्त प्रवृत्ति शून्य से अधिक होती है, इसलिए खुली अर्थव्यवस्था में हमें छोटा गुणक प्राप्त होता है।
प्रश्न 12.
पाठ में इकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिककर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
आनुपातिक करों के साथ उपभोग फलन निम्न प्रकार होगा।
\(\begin{aligned} \mathrm{C} &=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(\mathrm{Y}-\mathrm{t} \mathrm{Y}+\overline{\mathrm{T} R}) \\ &=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(1-\mathrm{t}) \mathrm{Y}+\mathrm{cT} \mathrm{R} \end{aligned}\)
उल्लेखनीय है कि आनुपातिक करों से आय के प्रत्येक स्तर पर न केवल उपभोग निम्न होता है, बल्कि उपभोग फलन की प्रवणता भी निम्न होती है। आय से सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति C (1 - t) तक गिरती है।
खुली अर्थव्यवस्था में AD निम्न प्रकार होता है
\(\begin{aligned} \mathrm{AD} &=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(1-\mathrm{t}) \mathrm{Y}+\mathrm{cT} \mathrm{T}+\mathrm{I}+\mathrm{G}+(\mathrm{X}-\mathrm{M})-\mathrm{mY} \\ &=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(1-\mathrm{t}) \mathrm{Y}+\mathrm{c} \overline{\mathrm{T} R}+\mathrm{I}+\mathrm{G}+\mathrm{NX}-\mathrm{mY} \end{aligned}\)
\(\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{cT} \mathrm{T}+\mathrm{I}+\mathrm{G}+\mathrm{NX}\) के बराबर होगा अतः
\(Y=\bar{A}+c(1-t) Y-m Y\)
\((1-c(1-t)+M) Y=\bar{A}\)
अतः \(Y=\frac{1}{1-c(1-t)+M} \times \bar{A}\)
उक्त समीकरण द्वारा खुली अर्थव्यवस्था में गुणक का निर्धारण किया जाएगा।
अतः एक खुली अर्थव्यवस्था में गुणक का मूल्य निम्न प्रकार होगा।
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \overline{\mathrm{A}}}=\frac{1}{1-\mathrm{c}(1-\mathrm{t})+\mathrm{m}}\)
प्रश्न 13.
मान लीजिए C = 40+ 0.8YD, T = 50, I = 60,G = 40,x = 90,M = 50+ 0.05Y. (a) सन्तुलन आय ज्ञात कीजिए (b) सन्तुलन आय पर निवल निर्यात सन्तुलन ज्ञात कीजिए (c) सन्तुलन आय और निवल निर्यात सन्तुलन क्या होता है, जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है।
उत्तर:
(a) सन्तुलन आय की गणना-सन्तुलन आय की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
\(\mathrm{Y}=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(\dot{\mathrm{Y}}-\mathrm{T})+\overline{\mathrm{I}}+\overline{\mathrm{G}}+\overline{\mathrm{X}}-\overline{\mathrm{M}}-\mathrm{mY}\)
Y = 40 + 8(Y - 50) + 60 + 40 + 90 - 50 - 0.05Y
Y = 40 + 8Y - 40 + 60 + 40 + 90 - 50 - 0.05Y
Y = 0.8Y + 140 - 0.05Y
Y = 0.75Y + 140
Y - 0.75Y = 140
0.25Y = 140
\(Y=\frac{140}{0.25}\)
- 0.25 Y = 560
(b) सन्तुलन आय पर निवल निर्यात सन्तुलन की गणना।
सन्तुलन आय = 560 निवल निर्यात सन्तुलन को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है।
निर्यात - आयात
निर्यात (X) = 90
आयात (M) = 50 + 0.05Y = 50 + 0.05 x 560
= 50 + 28
= 78 अतः निवल निर्गत सन्तुलन = X - M
= 90 - 78
= 12
(e) सरकारी क्रय में 40 से.50 की वृद्धि होने पर सन्तुलन आय की गणना।
\(\mathrm{Y}=\overline{\mathrm{C}}+\mathrm{c}(\mathrm{Y}-\mathrm{T})+\overline{\mathrm{I}}+\overline{\mathrm{G}}+\overline{\mathrm{X}}-\overline{\mathrm{M}}-\mathrm{mY}\)
= 40 + 0.8 (Y - 50) + 60 + 50+ 90 - 50 - 0.05Y
= 40 + 0.8Y - 40 + 60 + 50 - 90 - 50 - 0.05Y
Y = 0.8Y + 150 - 0.05Y
Y = 0.75Y + 150
Y - 0.75Y = 150
\(Y=\frac{150}{0.25}\)
= 600
निवल निर्यात सन्तुलननिवल निर्यात = निर्यात - आयात
X - M
x = 90 M
= 50 + 0.05Y
50 + 0.05(600) = 50 + 30
= 80 अत: निवल निर्यात सन्तुलन = X - M
= 90 - 80
= 10
प्रश्न 14.
उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में x = 100 का परिवर्तन हो, तो सन्तुलन आय और निवल निर्यात सन्तुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार,
C= 40 + 0.8YD
T= 50
I= 60
G= 40
x= 100
M = 50 + 0.05Y
सन्तुलन आय की गणना-सन्तुलन आय की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
\(Y=\bar{C}+c(Y-T)+\bar{I}+\bar{G}+\bar{X}-\bar{M}-m Y\)
= 40 + 0.8 (Y - 50) + 60 + 40 + 100 - 50 - 0.05Y
= 40 + 0.8Y - 40 + 60 + 40 + 100 - 50 - 0.05Y
= 0.8Y + 150 - 0.05Y
Y = 0.75Y + 150
Y - 0.75Y = 150
\(Y=\frac{150}{0.25}\)
=600
निवल निर्यात सन्तुलन की गणनानिवल निर्यात सन्तुलन = x - M
x = 100
M = 50 + 0.05Y
= 50 + 0.05 (600)
= 50 + 30
M = 80 अतः निवल निर्यात सन्तुलन - X - M
= 100 - 80
= 20
प्रश्न 15.
व्याख्या कीजिए कि G - T = (Se - 1) - (x - M)
उत्तर:
बन्द अर्थव्यवस्था में बचत एवं निवेश सदैव समान होते हैं किन्तु खुली अर्थव्यवस्था में ये भिन्न हो सकते हैं। एक खुली अर्थव्यवस्था में Y का समीकरण निम्न प्रकार है।
Y= C + I + G + X - M
Y = C + I + G + NX
Y - C - G = I + NX
अथवा
S= I + NX ...........(i)
बचत (S) दो प्रकार की होती है - निजी बचत (SP) तथा सरकारी बचत (Se) निजी आय प्रयोज्य आय का वह हिस्सा है जो उपभोग के बजाए बचाया जाता है अर्थात् Y - T - C तथा सरकारी बचत (S8) सरकार की आय तथा उसकी निवल कर आय में उसके उपभोग को घटाने के पश्चात् बची आय है अर्थात् (T - G) राष्ट्रीय आय में इन दोनों बचतों को जोड़ा जाता है।
अतः 5 = (Y - T-C) + (T - G)
= SP + Sg
अतः समीकरण (i) में S का मान रखने पर
SP + Sg = I + NX
NX = (SP - I) (Sg) ............(ii)
अथवा (x - M) = (SP - I) (T - G)..........(iii)
इस समीकरण (iii) को निम्न प्रकार भी लिखा जा सकता है।
(G - T) = (SP - I) - (X - M)
प्रश्न 16.
यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो, तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर:
यदि देश A में मुद्रास्फीति की दर ऊंची है तथा विनिमय दर स्थिर है तो देश A में कीमतें देश B की अपेक्षा ऊँची होंगी। ऐसी स्थिति में देश A का निर्यात घटेगा तथा आयात बढ़ेगा। इससे देश A का व्यापार शेष प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा। दूसरी तरफ देश B में कीमतें कम होने से उसका निर्यात बढ़ेगा तथा आयात घटेगा, इससे व्यापार शेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 17.
क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब एक देश का चालू खाता घाटे का है, तब हमें यह देखना चाहिए कि क्या उस स्थिति में बचत में कमी हो रही है, निवेश में बढ़ोत्तरी हो रही है या बजट घाटे में वृद्धि हो रही है। उस समय हमें चिन्ता करनी चाहिए, जब एक देश का दीर्घकालीन घाटे का व्यापार यह दर्शाये कि भविष्य में बहुत बचत होगी या बहुत अधिक घाटे का बजट होगा। इन परिस्थितियों में देश का पूँजी स्टॉक इतना अधिक नहीं बढ़ेगा जिससे विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और न ही ब्याज की वापसी हो सकेगी, परन्तु उस समय हमें चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं होगी जब घाटे के बजट से निवेश में वृद्धि होगी। इसके फलस्वरूप स्टॉक में निवेश होने से पूँजी स्टॉक में वृद्धि होगी और भविष्य में उत्पाद में वृद्धि होगी।
प्रश्न 18.
मान लीजिए C = 100 + 0.75YD, I = 500, G = 750, कर आय का 20 प्रतिशत है,x = 150, M = 100 + 0.2Y तो सन्तुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलन आय की गणना-सन्तुलन आय की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जायेगी।
Y = C + c (Y - T) + I + G + X - M - m
Y = 100+0.75 (Y - 0.2Y) + 500 + 750 + 150 - 100 - 0.2
Y = 100+ 0.75Y - 0.15Y + 500 + 750 + 150 - 100 - 0.2Y
Y = 0.4Y + 1400 Y - 0.4
Y = 1400
0.6Y = 1400
\(\begin{aligned} Y &=\frac{1400}{0.6} \\ &=2333 \end{aligned}\)
बजट घाटा अथवा आधिक्य की गणना: बजट घाटा हेतु राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय व्यय की गणना की जाएगी। राष्ट्रीय व्यय की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
Y = C + I + G + X - M
C = 100 + 0.75
Y = 100 + 0.75 x 2333
= 1849.75
I= 500
G= 750
x = 150
M= 100 + 0.2Y
= 100 + 0.2 x 2333
= 566.6
अत:
Y = C + I + G + X - M
= 1849.75 + 500 + 750 + 150 - 566.6
= 2683.15
यहाँ पर राष्ट्रीय आय = 2333 है जबकि व्यय 2683.15 है अतः बजट घाटा निम्न प्रकार ज्ञात होगा।
बजट घाटा = राष्ट्रीय व्यय – राष्ट्रीय आय
= 2683.15 - 2333
= 350.15
व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणनाव्यापार घाटा अथवा आधिक्य हेतु आयातों एवं निर्यातों की तुलना की जाएगी।
निर्यात (x) = 150 आयात
(M) = 100 +0.2Y
= 100 + 0.2 x 2333
= 566.60 अतः व्यापार घाटा = आयात - निर्यात
= 566.60 - 150
= 416.60
प्रश्न 19.
उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है?
उत्तर:
वर्तमान में अनेक देशों में स्थिर विनिमय दर हैं। कुछ देश अपनी करेंसियों को डॉलर में अधिकीलित करते हैं। जनवरी, 1999 में यूरोपीय मौद्रिक संघ के सृजन से संघ के सदस्यों की करेंसियों के बीच विनिमय दर स्थायी रूप से निर्धारित हुई और एक नई समान मुद्रा यूरो को जारी किया गया। इसे यूरोपीय केन्द्रीय बैंक के प्रबंध में जारी किया गया। जनवरी, 2002 से वास्तविक नोट और सिक्के चलाये गये। अब तक 25 में 12 युरोपीय संघ के सदस्यों ने यूरो को अपनाया है। कुछ देशों ने अपनी मुद्रा को फ्रांस के फ्रंक में अधिकीलित किया है, इनमें प्राय: अफ्रीका की फ्रांसीसी कॉलोनियाँ हैं। अन्य देशों ने करेंसियों के समूह में अधिकीलित किया है, जिसमें उनके व्यापार की रचना प्रतिबिंबित होती है।
प्रायः छोटे देश भी एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक सहभागी के सापेक्ष अपनी विनिमय दर निर्धारित करने का निर्णय लेते हैं। उदाहरण के लिएअर्जेंटीना ने 1991 में मुद्रा बोर्ड प्रणाली अपनायी। इसके तहत स्थानीय मुद्रा (पेसो) और डॉलर के बीच कानून द्वारा विनिमय दर तय की गई। केन्द्रीय बैंक अपनी जारी सारी घरेलू मुद्रा और आरक्षित निधि के बदले पर्याप्त विदेशी मुद्रा अपने पास रखता है। ऐसी व्यवस्था में कोई देश अपनी इच्छा से मुद्रा की पूर्ति में विस्तार नहीं कर सकता है। यदि कोई घरेलू बैंकिंग संकट (जब बैंक को घरेलू मुद्रा ग्रहण करने की जरूरत होती है) होता है, तो केन्द्रीय बैंक अन्तिम ऋणदाता नहीं बना रह सकता।
किन्तु, संकट के बाद अर्जेंटीना ने मुद्रा बोर्ड का परित्याग कर दिया और जनवरी, 2002 में अपनी मुद्रा को तिरती रहने दिया। 2000 में इक्वेडोर ने डॉलरीकरण की नयी व्यवस्था -अपनायी और घरेलू मुद्रा को छोड़कर संयुक्त राज्य के डॉलर को स्वीकार किया। सारी कीमतें डॉलर में रखी गई -और स्थानीय मुद्रा में लेन-देन बंद हो गया। यद्यपि -अनिश्चितता और जोखिम से बचा जा सकता है, किन्तु इक्वेडोर ने अपनी मुद्रा पूर्ति का नियंत्रण संयुक्त राज्य के केन्द्रीय बैंक - फेडरल रिजर्व को दे दिया है और इस तरह वह संयुक्त राज्य की आर्थिक दशाओं पर आधारित होगा। समस्त रूप से अब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बहुप्रणाली के रूप में चित्रित किया जा सकता है।
अधिकांश विनिमय दरों में दिन: प्रतिदिन के आधार पर थोड़ा परिवर्तन होता है और बाजार की शक्तियाँ आमतौर पर मूल प्रवृत्ति को निर्धारित करती हैं। यहाँ तक कि जो भी विनिमय दर में अधिक स्थिरता की वकालत करते थे, उन्होंने भी यह प्रस्ताव रखा कि सामान्यतः सरकार को एक निश्चित परास के अंतर्गत दर निर्धारित करनी चाहिए, बजाय इसके शाब्दिक निर्धारण के। सोने की भूमिका का भी विलोपन हो गया है। इसके स्थान पर एक ऐसा निर्बाध बाजार, जिसमें सोने की कीमत का निर्धारण सोने की मांग तथा पूर्ति जो मुख्यतः ज्वेलरियों, औद्योगिक उपयोगकर्ताओं, दंत चिकित्सकों, सटोरिया तथा साधारण नागरिकों से होता है, जो कि ये मानते हैं कि स्वर्ण एक अच्छा मूल्य संग्रह है।