Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 बाज़ार संतुलन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
बाजार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाजार संतुलन वह स्थिति होती है जिसमें बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं तथा इस स्थिति में परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है।
प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
जब किसी कीमत पर बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है तो उस
रेखाचित्र में SS बाजार पूर्ति वक्र है तथा DD बाजार माँग वक्र है। इन दोनों के संतुलन द्वारा संतुलन कीमत p निर्धारित होती है। यदि वस्तु की कीमत P1 हो जाती है तो इस स्थिति में बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक होगी। चित्रानुसार p1 कीमत पर बाजार में AB अतिरिक्त माँग अथवा अधिमांग है।
प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
यदि किसी कीमत पर बाजार पूर्ति, बाजार माँग से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिपूर्ति कहलाती है।
रेखाचित्र में SS बाजार पूर्ति वक्र तथा DD बाजार माँग वक्र है तथा इन दोनों के संतुलन पर संतुलन कीमत p है। यदि वस्तु की कीमत p1 हो जाती है तो बाजार में माँग की तुलना में पूर्ति अधिक हो जाती है, चित्रानुसार P1 कीमत पर बाजार में AB अतिरिक्त पूर्ति अथवा अधिपूर्ति
प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य।
(a) संतुलन कीमत से अधिक।
(b) संतुलन कीमत से कम।
उत्तर:
(a) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य, संतुलन कीमत से अधिक है तो बाजार में अधिपूर्ति होगी।
(b) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य, संतुलन कीमत से कम है तो बाजार में अधिमांग होगी।
प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन कीमत वहाँ निर्धारित होगी जहाँ बाजार में वस्तु की माँग एवं पूर्ति समान होती है। इसे हम निम्न रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में स्थिर संख्या फर्मों वाले एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन दर्शाता है। यहाँ किसी वस्तु के लिए SS बाजार पूर्ति वक्र को तथा DD बाजार माँग वक्र को दर्शाता है। बाजार पूर्ति वक्र SS वस्तु की उस मात्रा को दर्शाता है, जिसकी पूर्ति विभिन्न कीमतों पर फर्मे करने की इच्छुक होती हैं और माँग वक्र DD उस मात्रा को दर्शाता है, जिसकी माँग विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता करने के इच्छुक हैं।
रेखाचित्र में यदि प्रचलित कीमत P1 है, तो बाजार माँग q1 है, जबकि बाजार पूर्ति q1' है अतः बाजार में q1q1 के बराबर अधिमांग है। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में या तो पूर्ण रूप से असमर्थ हैं अथवा इसे अपर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर पाते हैं, वे p1 से अधिक कीमत चुकाने को तत्पर होंगे। बाजार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी अन्य बातें समान रहने पर जैसे - जैसे कीमत में वृद्धि होती है, माँग की मात्रा में गिरावट आती है, पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बाजार एक ऐसे बिन्दु की ओर अग्रसर होता है, जहाँ फर्म द्वारा विक्रय करने के लिए इच्छित मात्रा उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली इच्छित मात्रा के बराबर होती है।
P* कीमत पर एक फर्म के पूर्ति निर्णय उपभोक्ताओं के माँग निर्णय से मेल खाते हैं। इसी प्रकार यदि प्रचलित कीमत p2 है, तो उस कीमत पर बाजार पूर्ति (q2) बाजार माँग (q2,) से अधिक है जो q2 q2, के बराबर अधिपूर्ति को दर्शाती है। ऐसी स्थिति में, कुछ फमें अपनी इच्छित मात्रा के अनुरूप विक्रय करने में असमर्थ होंगी। अत: वे अपनी कीमत घटाएंगी। अन्य बातें समान रहने पर, जैसेजैसे कीमत घटती है, वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है, पूर्ति की मात्रा घटती है तथा p* कीमत पर फर्म अपना इच्छित उत्पादन बेच पाती है, क्योंकि इस कीमत पर बाजार माँग बाजार पूर्ति के बराबर है। इसलिए p' संतुलन कीमत है और उससे सम्बन्धित मांग q* संतुलन मात्रा है।
प्रश्न 6.
मान लीजिए कि अभ्यास प्रश्न 5 में संतुलन कीमत बाजार में फों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
यदि संतुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है तथा यदि फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की अनुमति प्रदान कर दी जाए तो न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमतों पर नई फर्मे प्रवेश करेंगी तथा कीमतें न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो जायेंगी।
प्रश्न 7.
जब बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाजार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की मान्यता से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न अधिसामान्य लाभ अर्जित करती है और न हानि उठाती है अर्थात् संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। जब तक कीमत न्यूनतम औसत लागत से अधिक है तो फर्मे अधिसामान्य लाभ अर्जित करेंगी तथा न्यूनतम औसत लागत से कम कीमतों पर सामान्य से कम लाभ प्राप्त करेंगी।
अतः न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमतों पर नई फमै प्रवेश करेंगी तथा न्यूनतम औसत लागत से कम कीमतों पर विद्यमान फर्मे बहिर्गमन करेंगी। फर्मों के न्यूनतम औसत लागत के बराबर कीमत स्तर होने पर, प्रत्येक फर्म सामान्य लाभ अर्जित करेगी तथा नई फर्मे बाजार में प्रवेश के लिए आकर्षित नहीं होंगी। विद्यमान फर्म बाजार से बहिर्गमन भी नहीं करेगी; क्योंकि वह इस बिन्दु पर उत्पादन करने में कोई हानि नहीं उठा रही है, अत: बाजार में यही कीमत प्रचलित होगी।
अतः फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि बाजार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी, अर्थात्
p= न्यूनतम औसत लागत
इसका यह अभिप्राय है कि संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। संतुलन में इसकी मात्रा पर बाजार माँग द्वारा पूर्ति की मात्रा निर्धारित होगी तभी ये दोनों बराबर होती हैं। ग्राफ़ीय रूप से इस रेखाचित्र में दर्शाया गया है, जहाँ बाजार संतुलन E बिन्दु
पर होगा और माँग वक्र DD. p0 = न्यूनतम औसत लागत रेखा को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि बाजार कीमत P0 तथा कुल मांगी गई मात्रा और पूर्ति q0 के बराबर हो जाती है।
P0 = न्यूनतम औसत लागत पर प्रत्येक फर्म समान मात्रा q0f की पूर्ति करती है। अतः बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर है, जो P0 निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0f मात्रा की पूर्ति करेगी। यदि हम n0 द्वारा फर्मों की संतुलन संख्या को दर्शाते हैं, तो
\(n_{0}=\frac{q_{0}}{q_{0 f}}\)
प्रश्न 8.
एक बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
जब बाजार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर है जो संतुलन कीमत (P0) निर्गत पर संतुलन पूर्ति (q0) के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर मात्रा कीपूर्ति करेगी। यदि हम n द्वारा फर्मों की संतुलन संख्या को दर्शाएँ तो निम्न सूत्र द्वारा फर्मों की संतुलन संख्या ज्ञात की जा सकती।
\(\mathrm{n}_{0}=\frac{\mathrm{q}_{0}}{\mathrm{q}_{0 \mathrm{r}}}\)
प्रश्न 9.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है,
जब उपभोक्ता की आय में (a) वृद्धि होती है (b) कमी होती है?
उत्तर:
(a) जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है: जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तथा यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो जाती है तो बाजार माँग में वृद्धि हो जाती है जिससे मांग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है जिससे संतुलन कीमत में तथा संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है, इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में DD तथा SS क्रमश: बाजार मांग वक्र एवं पूर्ति वक्र है जहाँ दोनों एक - दूसरे को A बिन्दु पर काटते हैं वहाँ संतुलन कीमत Op तथा संतुलन मात्रा Oq निर्धारित होती है। यदि उपभोक्ता की आय बढ़ जाती है तो इस कारण माँग वक्र DD से बढ़कर DIDI हो जाता है तथा नया संतुलन बिन्दु B प्राप्त होता है जिस पर संतुलन कीमत बढ़कर Op1 तथा संतुलन मात्रा बढ़कर Oq1 हो जाती है।
(b) जब उपभोक्ता की आय में कमी होती हैजब बाजार में फर्मों की संख्या अथवा पूर्ति स्थिर रहती है तथा यदि उपभोक्ता की आय में कमी होती है तो बाजार मांग में कमी आ जाती है जिससे मांग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है। इससे संतुलन कीमत एवं मात्रा में कमी आ जाती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
पंप मात्रा " रेखाचित्र में DD तथा SS क्रमशः बाजार माँग तथा पूर्ति वक्र है तथा संतुलन बिन्दु A पर संतुलन कीमत Op तथा संतुलन मात्रा Oq है। यदि उपभोक्ता की आय कम हो जाती है तो इससे माँग वक्र DD से बायीं तरफ शिफ्ट होकर DIDI हो जाता है तथा नया संतुलन बिन्दु B प्राप्त होता है जिस पर संतुलन कीमत कम होकर Opl तथा संतुलन मात्रा भी कम होकर Oq1 हो जाती है।
प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमत में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते तथा मोजे परस्पर पूरक वस्तुएँ हैं। यदि जूतों की मांग बढ़ेगी तो मोजों की भी मांग बढ़ेगी तथा यदि जूतों की मांग घटेगी तो मोजों की भी मांग घटेगी। यदि जूतों की कीमत में वृद्धि होती है तो जूतों की माँग घट जाएगी अर्थात् बढ़ी हुई कीमतों पर लोग कम जूते खरीदेंगे। इसके फलस्वरूप मोजों की मांग में भी कमी आएगी तथा मोजों का माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा इसके फलस्वरूप मोजों की कीमत में भी कमी आएगी।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जूतों की कीमत बढ़ने से जूतों की माँग घट जाएगी तथा मोजों की भी मांग घट जाएगी जिससे मोजों का माँग वक्र DD से घटकर DIDI हो जाएगा जिसके फलस्वरूप मोजों की संख्या घटकर Oq1 हो जाएगी तथा कीमत भी घटकर Op1 हो जाएगी।
प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
चाय और कॉफी स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। स्थानापन्न वस्तुएँ उन वस्तुओं को कहते हैं जिनका प्रयोग एक - दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है। वस्तु की कीमत और स्थानापन्न वस्तु की मांग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अत: कॉफी की कीमत में वृद्धि होने से चाय की मांग में वृद्धि होगी। अतः चाय का माँग वक्र दाई ओर खिसकेगा जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। अब नया माँग वक्र D1D1 है जो पूर्ति वक्र SS को E1 बिन्दु पर काटता है। अत: नई संतुलन कीमत तथा मात्रा क्रमशः OP1 तथा OQ1 है। अत: कॉफी की कीमत में वृद्धि होने से चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होगी।
यदि कॉफी की कीमत में गिरावट आती है। ऐसी स्थिति में काफी की माँग में वृद्धि होगी तथा चाय की माँग कम हो जाएगी। चाय की माँग में कमी आने के फलस्वरूप चाय की कीमत में कमी होगी जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है। चाय की माँग में कमी आने के फलस्वरूप चाय की कीमत में कमी होगी जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है।
चाय की मांग में कमी आने के फलस्वरूप चाय की कीमत में कमी होगी जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है।
QQ मात्रा चाय की माँग में कमी आने से माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। चित्र में नया माँग वक्र D1D1 है जो पूर्ति वक्र SS को E1 बिन्दु पर काटता है। अब संतुलन कीमत OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ1 है। अतः कॉफी की कीमत में कमी आने पर चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा में कमी आएगी।
प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होने से किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव पड़ता है। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
(a) आगतों की कीमतों में कमी होने पर - जब उत्पादन की आगतों की कीमतों में कमी आती है तो इससे उत्पादन लागत में कमी आएगी तथा उत्पादन की पूर्ति बढ़ जाएगी जिससे पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाएगा एवं इसके परिणामस्वरूप संतुलन कीमत में कमी होगी तथा संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि आगतों की कीमत कम होने से पूर्ति बढ़ेगी जिससे नई पूर्ति वक्र S1S1 प्राप्त होगा जहाँ नया संतुलन बिन्दु E1 है जिस पर नई संतुलन कीमत में कमी तथा मात्रा में वृद्धि होगी।
(b) आगतों की कीमतों में वृद्धि होने पर - जब आगतों की कीमतों में वृद्धि होती है तो इससे लागत में वृद्धि हो जाती है जिससे पूर्ति में कमी आती है तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा, जिससे संतुलन कीमत में वृद्धि तथा संतुलन मात्रा में कमी होगी। इसे नीचे दिए रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि आगतों की कीमतों में वृद्धि होने से लागत बढ़ेगी जिससे पूर्ति में कमी आएगी तथा पूर्ति वक्र SS से बायीं तरफ शिफ्ट होकर S1S1 हो जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तथा संतुलन मात्रा घटकर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 13.
यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु (Y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
स्थानापन्न वस्तु वह वस्तु होती है जिसे अन्य वस्तु के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता हैजैसेकॉफी के स्थान पर चाय का प्रयोग किया जा सकता है। यदि स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो लोग Y वस्तु की माँग कम करेंगे तथा स्थानापन्न वस्तु x की माँग में वृद्धि हो जाएगी जिससे X का माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाएगा जिससे संतुलन कीमत में तथा संतुलन मात्रा में वृद्धि हो जाएगी। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में Y वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से x वस्तु की मांग बढ़ जाएगी तथा माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाएगा जिसके फलस्वरूप कीमत OP से OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाएगी।
प्रश्न 14.
बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वन के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की संख्या स्थिर होने पर माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव - जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है तो इसका तात्पर्य यह है कि बाजार में पूर्ति स्थिर रहती है। यदि पूर्ति स्थिर रहने पर माँग वक्र में स्थानान्तरण होता है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में भी परिवर्तन होता है। माँग वक्र में स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव को रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता।
यहाँ आरम्भिक संतुलन बिन्दु E है, जहाँ बाजार माँग वक्र DD0 तथा बाजार पूर्ति वक्र SS0 एक - दूसरे को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती हैं कि q0 तथा P0 क्रमशः संतुलन मात्रा तथा कीमत को दर्शाते हैं। मान लीजिए कि बाजार माँग वक्र, पूर्ति वक्र के SS0 पर स्थिर रहने पर दायीं ओर DD2 पर शिफ्ट हो जाता है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है। यह शिफ्ट बताता है कि किसी भी कीमत पर मांगी गई मात्रा पहले से अधिक है। इसलिए P0 कीमत पर अब बाजार में q0q0" के बराबर अधिमांग है।
इस अधिमांग के कारण कुछ व्यक्ति ऊंची कीमत पर भुगतान करने को तैयार होंगे और कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी। नया संतुलन G बिन्दु पर होगा जहाँ संतुलन मात्रा q2q0 से अधिक है और संतुलन कीमत p2P0 से अधिक है। इसी प्रकार, जैसा पैनल (b) में दर्शाया गया है, न्यदि माँग वक्र DD1 पर बायीं ओर शिफ्ट हो जाता है, तो किसी भी कीमत पर माँग की मात्रा शिफ्ट से पहले की तुलना में कम होगी। अतः आरंभिक संतुलन कीमत P0 पर अब बाजार में q0q0 के बराबर अधिपूर्ति है, जिसके
कारण कुछ फर्मे अपनी वस्तु की कीमत कम कर देंगी ताकि वे वस्तु की इच्छित मात्रा का विक्रय कर सकें। नया संतुलन बिन्दु F पर है, जिस पर माँग वक्र DD1 तथा पूर्ति वक्र SS1 परस्पर प्रतिच्छेद करते हैं तथा परिणामस्वरूप संतुलन कीमत SS0 की तुलना में कम है एवं मात्रा p1P0 से कम है। ध्यान दीजिए कि जब माँग वक्र शिफ्ट होती है, तो संतुलन कीमत तथा मात्रा q1q0 में परिवर्तन की दिशा समान है।
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव - फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि सभी परिस्थितियों में संतुलन कीमत विद्यमान फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। इस स्थिति में, यदि बाजार माँग वक्र किसी भी दिशा में शिफ्ट होता है, तो नये संतुलन पर बाजार उसी कीमत पर इच्छित मात्रा की पूर्ति करेगा। फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव को निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में DD0 बाजार माँग वक्र है, जो बताता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा कितनी मात्रा मांगी जाएगी तथा p0 उस कीमत को बताता है जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। आरम्भिक संतुलन E बिन्दु पर है, जहाँ माँग वक्र DDO. p0 = न्यूनतम औसत लागत रेखा को काटता है तथा माँग तथा पूर्ति की कुल मात्रा q0 है। इस स्थिति में फर्मों की संतुलन संख्या no
यदि अब माँग वक्र किसी कारणवश दायीं ओर शिफ्ट होती है। बिन्दु P0 पर वस्तु की अधिमांग होगी। कुछ असंतुष्ट उपभोक्ता वस्तु की अधिक कीमत देने के इच्छुक होंगे, अत: कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। इससे अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना होगी जिससे नई फमें बाजार में आकर्षित होंगी। इन नई फर्मों का प्रवेश अधिसामान्य लाभ समाप्त कर देगा तथा कीमत पुन: Po पर पहुँच जायेगी। अब उच्च मात्रा की पूर्ति उसी कीमत पर होगी। पैनल (a) से हमें यह विदित होता है कि नया माँग वक्र DD1 p = न्यूनतम औसत लागत रेखा को "बिन्दु F पर प्रतिच्छेदित करती है। इस प्रकार, नया संतुलन (Po q,) होगा जहाँ q1q0 की तुलना में अधिक है।
नयी फर्मों के प्रवेश के कारण फर्मों की नयी संतुलन संख्या n1n0 से अधिक है। इसी प्रकार, माँग वक्र के DD2 पर बायीं ओर शिफ्ट होने पर Po कीमत पर अधिपूर्ति होगी। इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्मे जो Po कीमत पर अपनी वस्तु की इच्छित मात्रा नहीं बेच पाएंगी, अपनी कीमत कम करना चाहेंगी। कीमत के घटने की प्रवृत्ति होगी, परिणामस्वरूप कुछ विद्यमान फर्मे बहिर्गमन करेंगी। कीमत पुनः क पर आ जायेगी। अत: नए संतुलन में कम मात्रा की पूर्ति होगी, जो उस कीमत पर घटी हुई माँग के बराबर होगी। इसे पैनल (b) में दर्शाया गया है, जहाँ माँग वक्र के DD2 से DD0 पर शिफ्ट होने के कारण माँग तथा पूर्ति की मात्रा घटकर q2 हो जाती है जबकि Po पर कीमत अपरिवर्तित रहती है।
यहाँ कुछ वर्तमान फर्मों के बहिर्गमन के कारण, फर्मों की संतुलन संख्या n2n0 से कम है। अत: माँग में दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट के कारण, संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होगी, जबकि संतुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी।
तुलना - जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है तो बाजार में मांग बढ़ने पर मात्रा तथा कीमत दोनों में वृद्धि होती है तथा माँग में कमी होने पर मात्रा तथा कीमत दोनों
में कमी होती है। इसके विपरीत जब बाजार में फर्मों का निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन होता है तो माँग के बढ़ने पर मात्रा में वृद्धि होती है परन्तु कीमत स्थिर होती है तथा माँग में कमी होने पर मात्रा में भी कमी होती है किन्तु कीमत स्थिर रहती है। अतः स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का मात्रा एवं कीमत दोनों पर प्रभाव पड़ता है, जबकि निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में केवल मात्रा पर प्रभाव पड़ता है, कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 15.
माँग एवं पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
सन्तुलन कीमत: जिस कीमत पर बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं, वह सन्तुलन कीमत कहलाती है। यदि मांग एवं पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हो जायें तो मात्रा में वृद्धि होती है तथा कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। कीमत में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि माँग में कितनी वृद्धि होती है तथा पूर्ति में कितनी वृद्धि होती है। इसे हम निम्न स्थितियों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं।
(1) जब माँग में वृद्धि की तुलना में पूर्ति में अधिक वृद्धि होती है: जब माँग में वृद्धि की तुलना में पूर्ति में अधिक वृद्धि होती है, माँग मात्रा में वृद्धि होती है तथा कीमत में कमी आती है। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में मांग में वृद्धि के फलस्वरूप तथा नया माँग वक्र D1D1 बनता है तथा पूर्ति में वृद्धि के फलस्वरूप नया पूर्ति वक्र S1S1 बनता है तथा यहाँ पूर्ति में वृद्धि, माँग की अपेक्षा अधिक है। यहाँ नया संतुलन बिन्दु E1 है तथा नई संतुलन कीमत OP1 व संतुलन मात्रा Q1 है अत: चित्रानुसार कीमत में कमी आती है तथा माँग मात्रा में वृद्धि होती है।
(2) जब माँग एवं पूर्ति में समान वृद्धि होती हैजब माँग एवं पूर्ति में समान वृद्धि होती है तो कीमत स्थिर रहती है तथा माँग मात्रा में वृद्धि होती है, इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में यदि मांग एवं पूर्ति में समान मात्रा में वृद्धि होती है नया माँग वक्र D1D1 तथा नया पूर्ति वक्र S1S1 प्राप्त होता है तथा नया संतुलन बिन्दु E1 प्राप्त होता है। चित्रानुसार नए संतुलन बिन्दु पर संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु संतुलित मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
(3) जब माँग में पूर्ति की तुलना में अधिक वृद्धि होती है: जब माँग में पूर्ति की अपेक्षा अधिक वृद्धि होती है तो संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते।
QQ1 मात्रा रेखाचित्र से स्पष्ट है कि मांग में वृद्धि के फलस्वरूप नया माँग वक्र D1D1 तथा पूर्ति में वृद्धि के फलस्वरूप नया पूर्ति वक्र SIS प्राप्त होता है। नया संतुलन बिन्दु E1 प्राप्त होता है, जिस पर नई संतुलन कीमत OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ1 है। अतः स्पष्ट है कि यदि माँग में पूर्ति की तुलना में अधिक वृद्धि होती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।
प्रश्न 16.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं?
जब
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?
(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर:
(a) जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं: जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में समान दिशा में परिवर्तन होता है तो पड़ने वाले प्रभावों को निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है।
माँग में शिफ्ट |
पूर्ति में शिफ्ट |
सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव |
सन्तुलन कीमत पर प्रभाव |
1. बायीं तरफ |
बायीं तरफ |
कमी होगी |
वृद्धि, कमी अथव अपरिवर्तित हो सकती है। |
2. दायीं तरफ |
दायीं तरफ |
वृद्धि होगी |
वृद्धि, कमी अथव अपरिवर्तित हो सकती है। |
(b) जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं: जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में विपरीत दिशा में परिवर्तन होता है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है।
माँग में शिफ्ट |
पूर्ति में शिफ्ट |
सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव |
सन्तुलन कीमत पर प्रभाव |
1. बायीं तरफ |
बायीं तरफ |
वृद्धि, कमी अथव अपरिवर्तित हो सकती है। |
कमी होगी |
2. दायीं तरफ |
दायीं तरफ |
वृद्धि, कमी अथव अपरिवर्तित हो सकती है। |
वृद्धि होगी |
प्रश्न 17.
वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार तथा श्रम बाजार में कीमतों का निर्धारण माँग एवं पूर्ति द्वारा समान विधि से होता है। श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में आधारभूत अन्तर उनके माँग तथा पूर्ति के स्रोतों से होता है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग उपभोक्ताओं अथवा परिवारों द्वारा की जाती है, जबकि वस्तु की पूर्ति फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक फर्मों द्वारा की जाती है, जबकि श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है। वस्तु बाजार में वस्तु का अभिप्राय वस्तु की मात्रा से है जबकि श्रम बाजार में श्रम का अभिप्राय श्रम द्वारा दिए जाने वाले कार्य के घंटों से है।
प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का मुख्य उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना होता है। लाभ अधिकतमकर्ता होने के कारण फर्म सदा, उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने की अतिरिक्त लागत मजदूरी दर (w) है।
श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमान्त उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमान्त संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमान्त संप्राप्ति तथा सीमान्त उत्पादन के गुणनफल के बराबर है। इसे श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद कहते हैं। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है, जहाँ
w = श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद हो।
प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी की दर श्रम की माँग तथा श्रम की पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
रेखाचित्र में DLDL श्रम का माँग वक्र है जो कि ऋणात्मक ढाल अथवा नीचे की तरफ ढाल वाला वक्र है जबकि SLSL श्रम का पूर्ति वक्र है जो कि धनात्मक ढाल अथवा ऊपर की तरफ ढाल वाला वक्र है। जहाँ पर DLDL तथा SLSL दोनों वक्र एक - दूसरे को काटते हैं वहाँ पर मजदूरी दर का निर्धारण होता है। चित्रानुसार बाजार में E सन्तुलन का बिन्दु है जहाँ मजदूरी की दर OW निर्धारित होती है।
प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं। भारत में साधारणत: आवश्यक वस्तुओं; जैसे - गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल, चीनी आदि के लिए कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारित की जाती है तथा भारत में उचित मूल्य की दुकानों अथवा राशन की दुकानों द्वारा इन वस्तुओं की पूर्ति की जाती है। सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं की उच्च सीमा निर्धारित करने से निर्धन वर्ग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।
प्रश्न 21.
माँग वक्र के शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है तो माँग वक्र के शिफ्ट होने पर वस्तु की कीमत तथा मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है, जबकि यदि फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की अनुमति हो, इससे माँग वक्र के शिफ्ट होने पर कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि मात्रा प्रभावित होती है। इन दोनों स्थितियों की तुलना हेतु हम एक ऐसी स्थिति लेंगे जिसमें माँग में वृद्धि होती है
(1) स्थिर फर्मों की स्थिति में कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव: स्थिर फर्मों की स्थिति में मांग में वृद्धि होने पर कीमत तथा मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। :
रेखाचित्र में DD1 माँग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र है, जिस पर E सन्तुलन बिन्दु है। यहाँ सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा 0Q है। यदि मांग में वृद्धि होती है तथा नया माँग वक्र D1D1 है जहाँ पर नया सन्तुलन बिन्दु E, है, इस सन्तुलन बिन्दु पर नई सन्तुलित कीमत OP1 तथा सन्तुलन मात्रा OQ1 है। अतः स्थिर फर्मों की स्थिति में माँग में परिवर्तन होने से कीमत तथा मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
(2) फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव-जब बाजार में फर्मों का निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन होता है तो माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होती है, इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में DD माँग वक्र है तथा P = न्यूनतम औसत लागत है, प्रारम्भिक सन्तुलन बिन्दु E है जहाँ सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि मांग में वृद्धि होती है तो इसके फलस्वरूप नया माँग वक्र D1D1 प्राप्त होता है, जिस पर नया सन्तुलन बिन्दु E1 प्राप्त होता है, जहाँ पर सन्तुलन कीमत स्थिर रहती है, किन्तु सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। अतः निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में माँग में परिवर्तन होने पर कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक़ निम्न प्रकार दिए गए हैं।
qP = 700 - P
qS = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि = 0 ≤ p < 15
मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
प्रश्नानुसार qD वस्तु x का माँग वक्र है तथा qS वस्तु x का पूर्ति वक्र है तथा p = कीमत स्तर है। पूर्ति वक्र से हमें ज्ञात होता है कि यदि वस्तु की कीमत 15 रुपये से कम होगी तो वस्तु x की पूर्ति शून्य होगी अर्थात् वस्तु की कीमत 15 रुपये से कम होने पर कोई भी उत्पादक वस्तु x का उत्पादन नहीं करेगा। पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत सामान्यतः न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। ऐसी स्थिति में कीमत, बाजार कीमत से कम होने पर कोई भी उत्पादक उत्पादन नहीं करेगा। बाजार में सन्तुलित कीमत वहाँ निर्धारित होगी जहाँ माँग एवं पूर्ति दोनों बराबर होते हैं। अतः प्रश्न में दिए माँग एवं पूर्ति वक्र द्वारा सन्तुलन कीमत का निर्धारण निम्न प्रकार होगा।
qD = qS
700 – P = 500 + 3p
4p = 200
p= 200/4 = 50
अतः वस्तु x की सन्तुलित कीमत 50 रुपये है। सन्तुलित कीमत को पूर्ति वक्र में प्रतिस्थापित करके सन्तुलन मात्रा ज्ञात की जा सकती है। यह निम्न प्रकार निकाली जाएगी
qS = 500 + 3p
= 500 + 3 x 50
= 500 + 150
= 650
यदि बाजार में सन्तुलन कीमत से अधिक कीमत होगी तो बाजार में अधिपूर्ति की स्थिति होगी तथा यदि बाजार में सन्तुलन कीमत से कम कीमत है तो बाजार में अधिक माँग की स्थिति होगी।
प्रश्न 23.
अभ्यास प्रश्न 22 में दिये गये समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है
qsr = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 20
(a) P = 20 का क्या महत्त्व है?
(b) बाजार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति है। बाजार में माँग वक्र qD = 700 - p है तथा बाजार का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है।
qs = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 20 है।
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि फर्मे न्यूनतम औसत लागत से कम पर उत्पादन नहीं करेंगी अन्यथा उन्हें उत्पादन से हानि होगी तथा वे बाजार से बहिर्गमन कर जाएंगी। निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के साथ बाजार सन्तुलन उस कीमत पर होगा, जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है, यह सन्तुलन कीमत p= 20 है।
(a) p = 20 बाजार में सन्तुलन कीमत है, यह वह कीमत है जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। यदि बाजार कीमत 20 रुपये से कम हो जाती है तो फर्मे उस पर उत्पादन नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें उत्पादन से हानि होगी। अतः वे बाजार से बाहर चली जाएंगी।
(b) बाजार में x वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत = 20 रुपये होगी क्योंकि यह न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। यदि कीमत 20 रुपये से कम हो जाती है तो फमैं इस कीमत पर उत्पादन नहीं करेंगी तथा वे बाजार से बहिर्गमन कर जाएँगी। अत: बाजार की सन्तुलन कीमत = 20 रुपये है।
(c) बाजार में सन्तुलन कीमत = 20 रुपये है। इस कीमत पर बाजार उस मात्रा की पूर्ति करेगा, जो बाजार माँग के बराबर है। अतः बाजार मांग वक्र द्वारा हम सन्तुलन मात्रा ज्ञात करेंगे
q0 or qD = 700 - p
= 700 - 20
= 680
p= 20 रुपये पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति निम्न प्रकार होगी
qof or or qs = 8 + 3 x 20
= 8 + 60 = 68
फर्मों की संख्या हम निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात कर सकते
\(\mathrm{n}_{0}=\frac{\mathrm{q}_{0}}{\mathrm{q}_{0 \mathrm{f}}}\)
\(=\frac{680}{68}=10\) फर्मे
अतः निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में
सन्तुलन कीमत = 20 रुपये
सन्तुलन मात्रा = 680
फर्मों की संख्या = 10 है।
प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है।
qD = 1000 - p
qs = 700 + 2p
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वन है
qs = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर ३ रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर:
(a) प्रश्नानुसार
माँग वक्र qD = 1000 - p
पूर्ति वक्र qS = 700 + 2p
बाजार में सन्तुलन कीमत वहाँ निर्धारित होगी जहाँ बाजार माँग एवं पूर्ति वक्र बराबर होंगे
qD = ps
1000 - P = 700 + 2p
3p = 1000 - 700
3p = 300
P = 300/3
p= 100
रुपये बाजार में पूर्ति वक्र में कीमत को प्रतिस्थापित करके सन्तुलन मात्रा ज्ञात की जा सकती है
qS = 700 + 2 x p
= 700 + 2 x 100
= 700 + 200 = 900
(b) यदि बाजार में पूर्ति वक्र अथवा फलन परिवर्तित हो जाता है,qs = 400 + 2p तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर निम्न प्रभाव पड़ेगा
सन्तुलन कीमत 1000 - p = 400 + 2p
3p = 1000 - 400
3p = 600
p = 600/3
= 200
p= 200 को नए पूर्ति वक्र में प्रतिस्थापित करके सन्तुलन मात्रा ज्ञात की जा सकती है
qs = 400 + 2p
= 400 + 2 x 200
= 400 + 400
= 800
एक आगत की कीमत वृद्धि एवं नए पूर्ति वक्र के अनुसार सन्तुलित कीमत बढ़कर 200 रुपये एवं सन्तुलित मात्रा घटकर 800 रह जाती है अतः उपभोक्ता की दृष्टि से यह परिवर्तन प्रतिकूल है।
(c) माँग वक्र (qD) = 1000 - p
पूर्ति वक्र (qS) = 700 + 2p
उपर्युक्त समीकरणों से सन्तुलन कीमत निम्न प्रकार ज्ञात होगी
qD =qs
1000 - p = 700 + 2p
3p = 1000 - 700
3p = 300
p = 300/3
= 100
यदि बिक्री पर प्रति इकाई 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर निम्न प्रभाव पड़ेगा
सन्तुलन कीमत = 100 + 3 = 103 रुपये
सन्तुलन मात्रा = qD = 700 + 2p
= 700 + 103 x 2
= 700 + 206 = 906
प्रश्न 25.
मान लीजिए कि अपार्टमेंटों के लिए बाजार - निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर अपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियन्त्रण लागू करती है, तो इसका अपार्टमेंटों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सरकार द्वारा किराया नियन्त्रण के लागू करने के अपार्टमेन्ट के बाजार पर निम्न प्रभाव पड़ेगा।
(1) उपभोक्ताओं को घटिया किस्म के घर मिलेंगे। इसका कारण यह है कि अपार्टमेंट बनाने वालों को कम कीमत मिल रही है। वह अब मकानों के निर्माणों में घटिया माल लगायेंगे ताकि उत्पादन लागत में कमी आ जाए।
(2) किराया नियंत्रण से अपार्टमेंट की माँग में वृद्धि होगी। परन्तु नियंत्रित किराये पर सभी लोगों को अपार्टमेंट नहीं मिल सकेंगे। अपार्टमेंट के लिए प्रतीक्षा करने वालों की एक लंबी सूची बन जाएगी।
(3) नियंत्रित किराये पर अपार्टमेंट लेने वाले सभी व्यक्तियों को अपार्टमेंट नहीं मिल सकेंगे, अतः कुछ लोग अधिक किराये पर भी अपार्टमेंट लेना पसंद करेंगे। परिणामस्वरूप किराये वाले अपार्टमेंट की कालाबाजारी आरम्भ हो जाएगी।