Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की प्रमुख विशेषताएँ अथवा शर्ते निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
एक फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु को बाजार में विक्रय करने से अर्जित धन संप्राप्ति कहलाती है। अत: एक फर्म की संप्राप्ति फर्म द्वारा बेचे जाने वाली मात्रा तथा उसकी बाजार कीमत का गुणनफल होती है जिसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है।
संप्राप्ति = वस्तु की कीमत x वस्तु की बेचे जाने - वाली मात्रा
प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
एक फर्म की कीमत रेखा, बाजार कीमत तथा एक फर्म के निर्गत स्तर के बीच सम्बन्ध को दर्शाती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में कीमत रेखा क्षैतिज अक्ष के समानान्तर वह सीधी रेखा होती है जो फर्म की स्थिर कीमत को दर्शाती है, यह फर्म के माँग वक्र को भी दर्शाती।
प्रश्न 4.
एक कीमत - स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वन उद्गम से होकर क्यों गुजरती है?
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म उस फर्म को कहते हैं जो माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत को स्वीकार करती है। कीमत स्वीकारक फर्म बाजार कीमत पर अपने उत्पादन का विक्रय करती है। फर्म की कुल संप्राप्ति वस्तु के बाजार मूल्य (p) तथा फर्म के निर्गत (q) के गुणनफल के रूप में परिभाषित की जाती है। जब फर्म की निर्गत शून्य होती है तो कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है तथा जैसे - जैसे फर्म के निर्गत में वृद्धि होती है तो कुल संप्राप्ति में वृद्धि होती जाती है क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में वस्तु की कीमत समान अथवा स्थिर रहती है। अतः शून्य उत्पाद अथवा निर्गत पर कुल संप्राप्ति शून्य होती है तथा निर्गत में वृद्धि होने पर कुल संप्राप्ति में वृद्धि होती जाती है। इस कारण कुल संप्राप्ति वक्र एक ऊपर की ओर जाती हुई सीधी रेखा होती है तथा यह वक्र उद्गम से होकर गुजरता है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में एक फर्म के कुल संप्राप्ति वक्र को रेखाचित्र से दर्शाया गया है।
प्रश्न 5.
एक कीमत स्वीकारक फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है क्योंकि कीमत बाजार में माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है तथा पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में कीमतें सदैव स्थिर रहती हैं। अत: एक कीमत स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति बाजार कीमत के बराबर होती है।
प्रश्न 6.
एक कीमत स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त संप्राप्ति में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
एक कीमत स्वीकारक फर्म द्वारा बाजार में निर्गत की प्रत्येक अगली इकाई को बेचने से प्राप्त आगम की सीमान्त संप्राप्ति कहा जाता है, चूँकि पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत स्थिर रहती है, अत: एक कीमत स्वीकारक फर्म की सीमान्त संप्राप्ति तथा बाजार कीमत समान होती है।
प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभअधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्त है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की निम्न तीन शर्ते हैं।
प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभअधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत से अधिक या कम होती है तो उस फर्म का निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है। उसके निर्गत स्तर के सकारात्मक होने के लिए बाजार कीमत का सीमान्त लागत के बराबर होना चाहिए। प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता। इसका विश्लेषण निम्न दो स्थितियों के आधार पर किया जा सकता है।
स्थिति 1: जब बाजार कीमत सीमान्त लागत से अधिक है-पहली स्थिति में हम यह मानते हैं कि कीमत सीमान्त लागत से अधिक है। इसके लिए हम रेखाचित्र1 को लेते हैं। रेखाचित्र से हमें पता चलता है कि निर्गत स्तर q2 पर बाजार कीमत P, सीमान्त लागत q2w की तुलना में अधिक है। अत: q2, एक लाभ अधिकतमीकरण निर्गत स्तर नहीं हो सकता।
चित्र को देखने से पता चलता है कि q2 से थोड़ा दाएँ ओर निर्गत स्तरों के लिए बाजार कीमत सीमान्त लागत से निरन्तर अधिक होती रहती है। अत: q2 से थोड़ा - सा दाईं ओर एक निर्गत स्तर १, को इस प्रकार चुनेंगे कि बाजार कीमत सीमान्त लागत से , तथा 4 के बीच सभी निर्गत स्तरों के लिए अधिक हो। अब यह मानकर चलें कि एक फर्म अपने निर्गत स्तर को q2 से बढ़कर q3, कर देती है।
इस निर्गत विस्तार से फर्म की कुल संप्राप्ति में वृद्धि बाजार कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन के गुणनफल के बिल्कुल समान है अर्थात् आयत q2q3, CB का क्षेत्रफल। दूसरी ओर इस निर्गत विस्तार से सम्बन्धित कुल लागत में वृद्धि निर्गत स्तरों , तथा 4 के बीच सीमान्त लागत वक्र के अन्तर्गत क्षेत्रफल है अर्थात् क्षेत्र q4q5XW के अन्तर्गत का क्षेत्रफल। किन्तु दोनों क्षेत्रफलों के मध्य तुलना यह दर्शाती है कि जब फर्म का निर्गत स्तर q, की जगह १, होता है तो लाभ अधिकतम है, अतः यदि यह स्थिति है तो , निर्गत स्तर पर अधिकतम लाभ नहीं हो सकता।
स्थिति - 2: जब बाजार कीमत सीमान्त लागत से कम है: दूसरी स्थिति में हम यह मानकर चलते हैं कि कीमत सीमान्त लागत से कम है। रेखाचित्र में निर्गत स्तर q5, पर बाजार कीमत P सीमान्त लागत से कम है। इस निर्गत स्तर का लाभ अधिकतम नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि q5, से थोड़ी - सी बाई ओर सभी निर्गत स्तरों के लिए बाजार कीमत सीमान्त लागत की तुलना में कम रहती है। अत: q5, से थोड़ी - सी बाईं ओर एक निर्गत स्तर q4, पर इस प्रकार लीजिए कि बाजार कीमत सीमान्त लागत की तुलना में कम हो q4, तथा q5, के मध्य सभी निर्गत स्तरों के लिए। अब मान लीजिए कि फर्म से q5 तक अपने निर्गत स्तर में कटौती करती है।
इस निर्गत संकुचन से फर्म की कुल संप्राप्ति में कमी बाजार कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन के गुणनफल के बिल्कुल समान है (अर्थात् q4q5 का क्षेत्रफल)। दूसरी ओर इस निर्गत संकुचन के द्वारा कुल लागत में लाई गई कमी निर्गत स्तरों q4, तथा q5 के मध्य सीमान्त लागत वक्र के अन्तर्गत क्षेत्रफल है (अर्थात् q5,q4ZY के अन्तर्गत का क्षेत्रफल)। परन्तु दोनों क्षेत्रफलों की तुलना से पता चलता है कि जब निर्गत स्तर q5, की जगह q4, होता है तो लाभ अधिक होता है। अतः यदि ऐसी स्थिति है तो , निर्गत स्तर पर लाभ अधिकतम नहीं हो सकता।
प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई भी लाभअधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती जब सीमान्त लागत घट रही हो। इस बात को रेखाचित्र के द्वारा समझाया जा सकता है।
रेखाचित्र से पता चलता है कि निर्गत स्तर q1, पर बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर है यद्यपि सीमान्त लागत वक्र नीचे की ओर प्रवण है। q2, निर्गत स्तर का लाभ अधिकतमीकरण नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि q1 से थोड़ी - सी बाईं ओर सभी निर्गत स्तरों के लिए बाजार कीमत सीमान्त लागत की तुलना में कम हैं। परन्तु q1, से थोड़े से कम निर्गत स्तर पर फर्म का लाभ समवर्ती निर्गत स्तर पर q2 से आगे निकल जाता है। यह स्थिति होते हुए q1 निर्गत स्तर लाभ अधिकतमीकरण नहीं हो सकता।
प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है, यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पकाल में प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में लाभअधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है। अल्पकाल में सकारात्मक स्तर पर उत्पादन करने के लिए यह आवश्यक है कि कीमत औसत परिवर्ती लागत की तुलना में अधिक या समान हो। इस बात का स्पष्टीकरण दिए गए रेखाचित्र द्वारा कर सकते हैं।
ऊपर दिए गए रेखाचित्र का निरीक्षण करने पर हमें पता चलता है कि निर्गत स्तर q1, पर बाजार कीमत औसत परिवर्ती लागत की तुलना में कम है। अतः q1, पर निर्गत स्तर का लाभ अधिकतमीकरण नहीं हो सकता। जैसा कि निम्न समीकरण से स्पष्ट है
q1, पर फर्म की कुल संप्राप्ति निम्नलिखित हैंकुल संप्राप्ति = कीमत x मात्रा।
= ऊर्ध्वस्तरीय ऊँचाई OP x चौड़ाई Oq1
= आयत OPAq1, का क्षेत्रफल
समान रूप से फर्म की कुल परिवर्ती लागत q1, पर इस प्रकार हैकुल परिवर्ती लागत = औसत परिवर्ती लागत x मात्रा = ऊर्ध्वस्तरीय ऊँचाई OE x चौड़ाई Oq1 = आयत OEBq1 का क्षेत्रफल
q1, पर फर्म का कुल लाभ = कुल प्राप्ति - (कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत) = आयत OPAq1, का क्षेत्रफल - आयत OEBq1, का क्षेत्रफल - कुल स्थिर लागत
यदि फर्म शून्य निर्गत का उत्पादन करती है तब भी फर्म का लाभ कुल स्थिर लागत के समान है। परन्तु आयत OPAq1, का क्षेत्रफल आयत OEBq1, के क्षेत्रफल से कम है। अतः q1, पर फर्म का लाभ इसके द्वारा पूर्ण रूप से उत्पादन स्थगित कर देने की तुलना में कम है। निश्चित रूप से इससे अभिप्राय है कि q, एक लाभ - अधिकतमीकरण निर्गत स्तर नहीं हो सकता। लाभ अधिकतमीकरण की शर्त के अनुसार अल्पकाल में कीमत को औसत परिवर्ती लागत की तुलना में अधिक अथवा समान होना चाहिए।
प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्थी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है, यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दीर्घकाल में एक लाभ: अधिकतमीकरण करने वाली फर्म किसी ऐसे निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी जहाँ बाजार कीमत P (दीर्घकाल) औसत लागत की तुलना में कम है। इस बात को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट किया गया है।
दिये गये रेखाचित्र में फर्म की कुल संप्राप्ति (TR), q1, पर आयत OPAq1, का क्षेत्रफल (कीमत तथा मात्रा का गुणनफल) जब तक कि फर्म की कुल लागत आयत OEBq1, का क्षेत्रफल आयत OPAq1, के क्षेत्रफल से अधिक है, निर्गत स्तर q1, पर फर्म हानि उठाती है। परन्तु दीर्घकालीन स्थिति में एक फर्म यदि उत्पादन बंद कर देती है, शून्य लाभ प्राप्त करती है। निश्चित रूप से इससे अभिप्राय यह है कि q1, निर्गत स्तर एक लाभ - अधिकतमीकरण नहीं है। लाभ अधिकतमीकरण की शर्त के अनुसार दीर्घकाल में कीमत को औसत लागत की तुलना में अधिक अथवा समान होना चाहिए।
प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
अल्पकाल में एक फर्म का अल्पकालीन पूर्ति वक्र न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से ऊपर अल्पकालीन सामान्त लागत वक्र का बढ़ता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य होता है।
प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
एक फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर अथवा उससे ऊपर दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र का बढ़ता हुआ भाग है, लेकिन न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य है।
प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने से एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र बाईं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
किसी आगत की कीमत में वृद्धि से एक फर्म का पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 17.
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?'
उत्तर:
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि होने से बाजार पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच, वस्तु की कीमत में परिवर्तनों के कारण वस्तु की पूर्ति की मात्रा की अनुक्रियाशीलता को मापती है। दूसरे शब्दों में, एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वस्तु की पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन की माप को पूर्ति की कीमत लोच कहा जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमान्त संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाजार कीमत 10 रुपये है।
बेची गई मात्रा |
कुल संप्राप्ति |
सीमान्त संप्राप्ति |
औसत संप्राप्ति |
0 1 2 3 4 5 6 |
|
|
|
उत्तर:
बेची गई मात्रा |
कीमत रुपये |
कुल संप्राप्ति |
सीमान्त संप्राप्ति |
औसत संप्राप्ति |
0 1 2 3 4 5 6 |
10 10 10 10 10 10 10 |
0 10 20 30 40 50 60 |
- 10 10 10 10 10 10 |
- 10 101 10 10 10 10 |
प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
बेची गई मात्रा |
कुल संप्राप्ति (रु.) |
कुल लागत (रु.) |
लाभ |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
0 5 10 15 20 25 30 35 |
5 7 10 12 15 23 33
|
|
उत्तर:
लाभ = कुल संप्राप्ति - कुल लागत की कुल संप्राप्ति
बेची गई मात्रा |
कुल संप्राप्ति |
सीमान्त संप्राप्ति |
लाभ |
कीमत |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
0 5 10 15 20 25 30 35 |
5 7 10 12 15 23 33 40 |
-5 -2 0 3 5 2 -3 -5 |
- 5 5 5 5 5 5 5 |
प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु. दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
इकाई |
कुल लागत ( इकाई ) रु. |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 |
5 15 22 27 31 38 49 63 81 101 123 |
उत्तर:
इकाई |
कीमत |
कुल लागत |
कुल आगम |
लाभ ( कुल आगम - कुल लागत ) |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 |
10 10 10 10 10 10 10 10 10 10 10 |
5 15 22 27 31 38 49 63 81 101 123 |
0 10 20 30 40 50 60 70 80 90 100 |
-5 -5 -2 3 9 12 11 7 -1 -11 -23 |
उपर्युक्त तालिका के अनुसार उत्पादन की 5 इकाइयों पर लाभ अधिकतम है।
प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों की पूर्ति सारणियों को दर्शाती है: SS1, कॉलम में फर्म - 1 की पूर्ति सारणी, कॉलम SS2, में फर्म - 2 की पूर्ति सारणी है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत |
SS1 इकाइयाँ |
SS2 इकाइयाँ |
0 1 2 3 4 5 6 |
0 0 0 1 2 3 4 |
5 7 10 12 15 23 33 |
उत्तर:
कीमत |
SS1 इकाइयाँ |
SS2 इकाइयाँ |
बाजार पूर्ति SS1 इकाइयाँ + SS2 इकाइयाँ |
0 1 2 3 4 5 6 |
0 0 0 1 2 3 4 |
0 0 0 1 2 3 4 |
0 0 0 2 4 6 8 |
प्रश्न 23.
एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कॉलम SS1, तथा कॉलम SS2 क्रमशः फर्म - 1 तथा फर्म - 2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत (रु.) |
SS1 (किलो) |
SS2 (किलो) |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 0 0 1 2 3 4 5 6 |
0 0 0 0 0.5 1 1.5 2 2.5 |
उत्तर:
कीमत (रु.) |
SS1 ( किलो ) |
SS2 ( किलो ) |
बाजार पूर्ति |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 0 0 1 2 3 4 5 6 |
0 0 0 0 0.5 1 1.5 2 2.5 |
0 0 0 1 2.5 4 5.5 7 8.5 |
प्रश्न 24.
एक बाजार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म - 1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
इकाई |
SS1 इकाई |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 0 2 4 6 8 10 12 14 |
उत्तर:
चूँकि बाजार में तीनों फर्म समरूप हैं अत: तीनों की पूर्ति को भी समान मान लिया गया है। इस आधार पर बाजार पूर्ति सारणी निम्न प्रकार तैयार की जाएगी
इकाई (रु.) |
SS1 इकाई |
SS2 इकाई |
इकाई SS3 |
इकाई (SS1 + SS2 + SS3) |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 0 2 4 6 8 10 12 14 |
0 0 2 4 6 8 10 12 14 |
0 0 2 4 6 8 10 12 14 |
0 0 6 12 18 24 30 36 42 |
प्रश्न 25.
10 रुपये प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपये है। बाजार कीमत बढ़कर 15 रुपये हो जाती है और अब फर्म को 150 रु. की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या
उत्तर:
कुल संप्राप्ति |
कीमत (रु.) |
पूर्ति (इकाई ) |
50 150 |
10 15 |
50 ÷ 10 = 5 150 ÷ 15 = 10 |
(यहाँ ∆q = पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन, ∆P = कीमत में परिवर्तन, q1 = प्रारम्भिक मात्रा,
P1 = प्रारम्भिक कीमत है।)
\(\begin{aligned} e_{s} &=\frac{5}{5} \times \frac{10}{5} \\ &=2 \end{aligned}\)
अतः पूर्ति वक्र की कीमत लोच इकाई से अधिक है।
प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु. से बदलकर 20 रु. हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरम्भिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर:
जब प्रारम्भिक निर्गत = 10 इकाई है तथा पूर्ति में परिवर्तन 15 इकाई होने पर अन्तिम निर्गत निम्न प्रकार ज्ञात होगा:
अन्तिम निर्गत = 10 इकाई + 15 इकाई
= 25 इकाई
अतः प्रारम्भिक निर्गत = 10 इकाई
अन्तिम निर्गत = 25 इकाई
प्रश्न 27.
10 रु. बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाजार कीमत बढ़कर 30 रु. हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर:
100 × ∆q = 125 × 8
100 × ∆q = 1000
\(\Delta q=\frac{1000}{100}=10\)
प्रारम्भिक पूर्ति = 4 इकाई
पूर्ति में परिवर्तन = 10 इकाई
नई पूर्ति = प्रारम्भिक पूर्ति + पूर्ति में परिवर्तन
= 4 इकाई + 10 इकाई
= 14 इकाई