Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 3 आलो-आँधारि Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 11 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 11 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts.
प्रश्न 1.
पाठ के किन अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है ? क्या वर्तमान समय में स्त्रियों की इस सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है ? तर्क सहित उत्तर दीजिये।
उत्तर :
पाठ के अनेक अंशों के माध्यम से लेखिका ने समाज की इस कड़वी सच्चाई को उजागर किया है कि समाज में पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है। लेखिका बेबी अपने पति से अलग दो छोटे बच्चों के साथ अकेली रहती थी। उसे अकेली देख लोग उसे बहुत परेशान करते थे। कोई उसे ताने मारता था, तो कोई छेड़खानी करता था। एकाकी जीवन जीती लेखिका पर लोग सदैव व्यंग्यों की बौछार करते रहते थे व कटु वचन बोलते रहते थे, जो निम्नलिखित अंशों से स्पष्टतः प्रकट होता है - "मुझे बच्चों के साथ उस घर में अकेले रहते देख आस-पास के सभी लोग पूछते, तुम यहाँ अकेली रहती हो? तुम्हारा स्वामी कहाँ रहता है ? तुम कितने दिनों से यहाँ हो? तुम्हारा स्वामी क्यों नहीं आता ?"
"बाजार-हाट करने भी जाना होता तो वह बूढ़ी मकान मालिक की स्त्री कहती, कहाँ जाती है रोज-रोज ? तेरा स्वामी है नहीं, तू तो अकेली ही है, तुझे इतना घूमने-घामने की क्या दरकार ?" - "मैं काम पर आती-जाती तो आस-पास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, यह.. अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते व पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कहकर कोई बहाना बनाकर बाहर निकल आती।" "मैं जब बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग जबरदस्ती न जाने कितनी तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते?"
उपर्युक्त अंशों के आधार पर कहा जा सकता है कि अपने पति से अलग रह रही लेखिका की समाज में उत्तम व सुदृढ़ स्थिति नहीं थी तथा वह अस्तित्वहीन-सी होकर रह गयी थी। परन्तु वर्तमान समय में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आया है। आज स्त्रियों को अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिये पुरुष के सहारे की कोई आवश्यकता नहीं है। वह स्वयं ही अपने दम पर समाज में अपना स्थान बनाने में सक्षम है। आज किसी भी क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से पीछे नहीं रही हैं।
वर्तमान समय में महानगरों में तो कार्यशील महिलाएँ व अविवाहित स्त्रियाँ अकेली ही रह रही हैं। हाँ आज भी समाज के कुछ लोग अकेली स्त्री के बारे में बातें बनाते हैं, परंतु कोई भी उसकी परवाह नहीं करता है, बल्कि ऐसे लोगों को ही निर्बुद्धि व ओछा माना जाता है।
स्त्रियों की सुरक्षा हेतु कड़े प्रबन्ध व कानून होने के कारण उनसे छेड़खानी करने की हिम्मत कोई नहीं करता है और यदि कोई ऐसा करता है तो दंडित होता है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में आये इस परिवर्तन का मूल कारण स्त्रियों का एवं समाज का शिक्षित व जागरूक होना ही है।
प्रश्न 2.
अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफर में बेबी के सामने रिश्तों की कौन-सी सच्चाई उजागर होती है ?
उत्तर :
अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफर में बेबी के सामने रिश्तों की यह सच्चाई उजागर होती है कि इंसानियत और दिल का पवित्र रिश्ता खून के रिश्ते से कहीं बढ़कर होता है।
बेबी के बुरे वक्त में उसके सगे भाइयों ने भी उसका साथ नहीं दिया। उसके जीवन में अनेक कष्ट व विपदाएँ आयी.परन्तु उसके भाइयों ने सब कुछ जानते हुए भी कभी उसकी खोज-खबर नहीं ली और बेगानों की तरह उससे मुँह मोड़ लिया। यहाँ तक कि उसकी माँ के निधन का समाचार भी उसे नहीं दिया।
इस प्रकार अकेली दुःख सहती हुई व कष्टों का सामना करती हुई बेबी को तातुश ने अपने घर में आश्रय दिया, जिनसे उसका खून का तो कोई रिश्ता नहीं था, परन्तु उन्होंने उसे अपनी पुत्री माना व उसे अपने घर में नौकरानी की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह प्रेमपूर्वक रखा तथा उसके बच्चों का भी पूरा ख्याल रखा। इस प्रकार बेबी का सम्पूर्ण जीवन ही बदल गया और उसने जाना कि रिश्ते वही सच्चे होते हैं, जिन्हें व्यक्ति सच्चे दिल से स्वीकार करे और जीवन भर निभाये।
प्रश्न 3.
इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलू नौकरों को और किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? इस पर विचार करिये।
उत्तर :
इस पाठ में लेखिका बेबी का चरित्र एक घरेलू नौकरानी के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसके द्वारा घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलू नौकरों को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें से प्रमुख हैं-काम की समस्या, घर की समस्या, आमदनी अत्यन्त कम होने से अपने परिवार के पालन-पोषण की समस्या, सुरक्षा की समस्या आदि।
इस पाठ में तातुश के घर में आश्रय मिलने से पहले लेखिका बेबी के सामने भी ऐसी अनेक समस्याएँ आयी थीं। उसे अनेक किराये के मकान बार-बार बदलने पड़े। पैसे की कमी के कारण वह अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला भी नहीं करवा पा रही थी और उनका पालन-पोषण भी सम्यक् प्रकार से नहीं कर पा रही थी। यही नहीं उसे समाज के कटु वचनों व अपमान का भी बराबर सामना करना पड़ता था।
घरेलू नौकरों की नौकरी में भी कोई स्थायित्व नहीं होता है। मालिक जब चाहे, जिसे निकाले और रखे। इस व दिनों तक वे बेराजगार होकर काम की तलाश में भटकते रहते हैं तथा उनके बच्चों को कई बार भूखे पेट ही सोना पड़ता है। लेखिका को भी जब तातुश ने अपने घर काम पर रखा, तो उससे पहले वहाँ काम कर रही बंगाली नौकरानी को निकाल दिया।
इस पाठ में लेखिका को तो भाग्यवश तातुश द्वारा आश्रय दिये जाने से उसका व उसके बच्चों का जीवन सुधर गया, किन्तु यह सभी घरेलू नौकरों के साथ नहीं होता है। घरेलू नौकरों का जीवन तो सदैव अनेक समस्याओं से घिरा ही रहता है। पूरे दिन भागदौड़, करके भी वे बहुत ही कम पैसे कमा पाते हैं, जिनसे उनके परिवार का जीवन-निर्वाह भी बड़ी ही मुश्किल से हो पाता है। अत्यन्त मेहनत करके भी वे सदैव मालिक की गालियाँ ही खाते हैं। इस प्रकार वे अत्यन्त उपेक्षित व कष्टमय जीवन जीते हैं।
प्रश्न 4.
'आलो-आँधारि 'रचना बेबी हालदार की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को समेटे
उत्तर :
'आलो-आँधारि' रचना में बेबी ने अपनी आत्मकथा का वर्णन किया है, जिनमें बेबी के जीवन की व्यक्तिगत समस्याएँ उभरकर सामने आती हैं, परन्तु वे समस्याएँ कई सामाजिक मुद्दों को भी अपने अन्दर समेटे हैं तथा उन पर प्रकाश डालती हैं, जैसे कि -
1. एकाकी जीवन जीती स्त्रियों की दयनीय दशा-बेबी अपने दो छोटे बच्चों के साथ अकेली एक किराये के मकान में रहती थीं। तातुश के घर में आश्रय मिलने से पहले बेबी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वह जिस भी किराये के मकान में रहती, आसपास के लोग उससे तरह-तरह के सवाल करके उसका जीना दूभर कर देते। कोई उसे ताने मारता, तो कोई अकेला देख उससे छेड़खानी करता। पैसों के अभाव में वह अपने बच्चों का पालन-पोषण भी ठीक ढंग से नहीं कर पाती थी। कई बार उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। बेबी के सगे भाइयों ने भी उससे मुँह मोड़ लिया था। इस प्रकार बेबी का जीवन अनेक समस्याओं से घिरा हुआ था।
बेबी की इस व्यक्तिगत समस्या से यह सामाजिक मुद्दा उठता है कि एकाकी जीवन जीती स्त्रियों के साथ समाज का यह दुर्व्यवहार क्यों ? उन्हें औरों की तरह अपनी इच्छा से सुख और शान्ति का जीवन जीने का अधिकार क्यों नहीं है ? अत: समाज को उनके प्रति दया व सहानुभूति का दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा उनसे आत्मीय व्यवहार करना चाहिये। परन्तु इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि एक स्त्री का एकाकी जीवन-यापन करना नितान्त कठिन है। अकेली स्त्री का मार्ग अनेक मुश्किलों से भरा होता है।
2. दूसरी समस्या है-'महिलाओं के लिये शौचालयों का समुचित प्रबन्ध न होना।
बेबी जिस किराये के मकान में रहती थी, वहाँ शौचालय तक नहीं था। अत: उसे शौच हेतु बाहर जाना पड़ता था। यह बेबी के लिये अत्यन्त असुविधाजनक था।
बेबी की यह व्यक्तिगत समस्या मूलतः एक सामाजिक समस्या है। आज भी कई क्षेत्रों में स्त्रियों के लिये स्वतन्त्र रूप से शौचालय व स्नानागार नहीं होते। ऐसे में उन्हें इधर-उधर खुले में शौच और स्नान करना पड़ता है, जो कि स्त्री जाति की लज्जा और शालीनता के सर्वथा विपरीत कर्म है। अतः समाज को जागरूक होना चाहिये और इस गंभीर समस्या को शीघ्रातिशीघ्र दूर करना चाहिये।
प्रश्न 5.
"तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो" जेठू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?
उत्तर :
जेठू का यह कथन रचना संसार के इस सत्य को उद्घाटित करता है कि यदि व्यक्ति में लेखन-कार्य के प्रति सच्ची लगन हो, तो वह अत्यन्त अभावों व व्यस्तताओं के रहते भी एक महान् रचनाकार बन सकता है तथा रचना-संसार में प्रोत्साहन का भी बड़ा महत्व है।
प्रस्तत कथन द्वारा जेठ लेखन-कार्य के प्रति बेबी का उत्साह बढ़ाने के लिये उसे आशापूर्णा देवी का उदाहरण देकर समझाता है कि आशापूर्णा देवी अत्यन्त व्यस्तताओं से घिरी होने के कारण रात को सबके सो जाने पर लेखन कार्य किया करती थी। उसी प्रकार तुम भी यदि चाहो तो लेखन के लिये समय निकाल सकती हो व दूसरी आशापूर्णा देवी न सकती हो।
प्रश्न 6.
बेबी की जिन्दगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन कैसा होता? कल्पना करें और लिखें।
उत्तर :
बेबी की जिन्दगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका व उसके बच्चों का जीवन दुःखों से भरा व अत्यन्त नारकीय होता। बेबी के बच्चे जीवन-भर अनपढ़ ही रह जाते। वह उनका विद्यालय में दाखिला नहीं करवा पाती। वह उनका पालन-पोषण भी उत्तम प्रकार से नहीं कर पाती। वह न उन्हें पहनने को अच्छे कपड़े दिलवा पाती और न ही भरपेट भोजन खिला पाती और उसके दोनों छोटे बच्चे पढ़-लिखकर कुछ बनने के बजाय मजदूर ही बनकर रह जाते।
बेबी अपने बड़े बेटे से भी कभी न मिल पाती और उसके बड़े बेटे को भी अपने गुलामी भरे काम से कभी मुक्ति नहीं मिल पाती, क्योंकि उसे अपनी माँ से तातुश ने ही मिलवाया था और वहाँ से मुक्त करवाकर अच्छी जगह नौकरी पर भी लगवाया था। यदि बेबी को तातुश के घर-परिवार में आश्रय नहीं मिलता, तो वह जीवनभर लोगों के ताने सुनती रहती। उसका जीवन एक नौकरानी के रूप में समाप्त हो जाता, उसे एक लेखिका के रूप में कभी नहीं देख पाते। तातुश के परिवार के रूप में बेबी हालदार को उसका अपना परिवार मिल गया, जहाँ उसे व उसके बच्चों को न केवल आश्रय मिला, अपितु प्यार, ममता व सहानुभूति के साथ-साथ उज्ज्वल भविष्य भी मिला।
चर्चा करें -
प्रश्न :
पाठ में आए इन व्यक्तियों का देश के लिये विशेष रचनात्मक महत्व है। इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें और कक्षा में चर्चा करें।
श्री रामकृष्ण, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, काजी नजरुल इस्लाम, शरतचन्द्र, सत्येन्द्र नाथ दत्त, सुकुमार राय, एनि फ्रैंक।
उत्तर :
जानकारी प्राप्त कर विषयाध्यापक से कक्षा में चर्चा करें।
प्रश्न 1.
आस-पड़ोस के लोग बेबी को किस प्रकार परेशान किया करते थे ?
उत्तर :
बेबी को बच्चों के साथ घर में अकेले रहते देख आस-पास के लोग उससे पूछते, तुम यहाँ अकेली रहती हो? तुम्हारा स्वामी कहाँ रहता है? वह क्यों नहीं आता? इस प्रकार अनेक प्रश्न उससे करते थे। कई लोग उसे अकेली देख उससे छेड़खानी करना चाहते, उससे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने बेबी के घर आ जाते, तब वह अपने लड़के से पानी पिलाने को कहकर कोई बहाना बनाकर बाहर निकल जाती। जब वह बच्चों के साथ कहीं जा रही होती, तो लोग जबरदस्ती न जाने कितनी तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते व ताने मारते। यहाँ तक कि उसकी मकान-मालकिन भी उसे ताने मारती रहती थी।
प्रश्न 2.
बेबी ने किराये का मकान क्यों बदला? क्या नये मकान से वह संतुष्ट थी?
उत्तर :
बेबी जिस किराये के मकान में रह रही थी, उसका किराया बहुत अधिक था और बेबी की आय इतनी नहीं थी कि वह इतना अधिक किराया भी दे सके और अपना घर भी चला सके। इस कारण उसने एक सस्ता किराये का मकान ढूँढ़ लिया और उसमें रहने चली गयी। इस मकान का किराया जरूर कम था, परन्तु इसमें अनेक असुविधाएँ थीं। यहाँ शौच आदि के लिये भी बाहर जाना पड़ता था। शौचालय आदि की व्यवस्था भी यहाँ नहीं थी। आस-पास के लोगों का व्यवहार भी बेबी के प्रति ठीक नहीं था। मकान मालिक की स्त्री भी उसे ताने मारती रहती थी। इस प्रकार इस नये मकान में आकर बेबी अत्यन्त असंतुष्ट थी और शीघ्रातिशीघ्र इसे छोड़ना चाह रही थी।
प्रश्न 3.
लेखिका व उसके बच्चों को ओस में एक पूरी रात खुले आसमान के नीचे सड़क पर ही क्यों बितानी पड़ी?
उत्तर :
एक दिन काम से घर लौटने पर लेखिका के बच्चों ने रोते हुए उसे बताया कि बुलडोजर ने उनका मकान व मौहल्ले के सारे मकान तोड़ दिये हैं और सामान बाहर खुले में फेंक दिया गया था। शाम होने वाली थी। लेखिका ने सोचा कि वह इतनी जल्दी दूसरः किराये का मकान तो नहीं ढूँढ़ सकती है। अत: उसने अपना सामान समेटा व मजबूरी में उसे व उसके बच्चों को वह रात ओस में खुले आसमान के नीचे सड़क पर ही बितानी पड़ी।
प्रश्न 4.
आप कैसे कह सकते हैं कि लेखिका व उसके तीनों बच्चों का उज्ज्वल भविष्य तातुश' की ही देन है ?
उत्तर :
यदि तातुश लेखिका व उसके बच्चों के जीवन में न आये होते, तो उनका जीवन अंधकारमय होता, अज्ञानता से पूर्ण होता। तातुश की शिक्षा व प्रेरणा से ही 'बेबी' एक नौकरानी से एक 'लेखिका' बन सकी। तातुश ने उसके दोनों छोटे बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया। लेखिका बेबी के बड़े बेटे को उसके गुलामी भरे कार्य से मुक्ति दिलवाकर ऐसी जगह काम पर लगवाया, जहाँ वह काम के साथ-साथ कोई हुनर व पढ़ना-लिखना भी सीख सके। इस प्रकार लेखिका व उसके तीनों बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में तातुश का बहुत बड़ा योगदान है।।
प्रश्न 5.
"मेरा इतना सुख अभी तक कहाँ था?"लेखिका ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर :
तातुश के घर का आश्रय मिलने से पूर्व लेखिका का जीवन अत्यन्त दु:खमय था तथा वहाँ आकर उसका जीवन जैसे बदल ही गया था। वह अपने सम्पूर्ण दुःख भूल गई थी। तातुश उसे पुत्रीवत स्नेह करते थे। उसका व उसके बच्चों का पूरा-पूरा खयाल रखते थे। तातुश ने उसके बच्चों का स्कूल में दाखिला भी करवा दिया। उनका पालन-पोषण भी तातुश के घर में सम्यक् प्रकार से हो रहा था।
लेखिका या उसके बच्चों के बीमार होने पर तातुश उनका डॉक्टर से इलाज भी करवाते और दवा भी दिलवाते। तातुश के प्रयास से ही लेखिका का बड़ा बेटा अपनी माँ व भाई-बहिन से मिल सका। तातुश ने लेखिका के बड़े बेटे को अच्छी जगह काम भी दिलवाया। लेखिका को भी उन्होंने लिखने-पढ़ने के लिये प्रेरित किया, जिसके फलस्वरूप वह एक लेखिका बन सकी। तातुश के इन्हीं सब उपकारों से अभिभूत होकर लेखिका बेबी कहती है कि “मेरा इतना सुख अभी तक कहाँ था।"
प्रश्न 6.
लेखिका ने पार्क में जाना क्यों छोड़ दिया?
उत्तर :
एक दिन तातुश ने लेखिका से कहा कि बच्चों के साथ कुछ समय पार्क में घूम आया करो। उस दिन से लेखिका रोज पार्क में जाने लगी। परन्तु वहाँ पर कुछ बंगाली औरतें लेखिका से उसके निजी जीवन के विषय में अनेक सवाल करने लगतीं व कुछ अपरिचित लड़के भी उसे परेशान करते, परन्तु वह उनसे बात तक नहीं करती थी। ऐसे में एक बंगाली लड़की सुनीति से उसकी दोस्ती हो गई, जो कि एक बच्ची को घुमाने वहाँ आया करती थी। परन्तु एक दिन वह अपने गाँव चली गयी। उसके चले जाने के बाद लेखिका का मन पार्क में नहीं लगता था, अत: उसने पार्क में जाना ही छोड़ दिया।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
लेखिका को लेखन-कार्य के प्रति किन-किन लोगों ने व किस प्रकार प्रोत्साहित किया?
उत्तर :
लेखिका बेबी को लेखन-कार्य के लिये प्रोत्साहित करने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान तो 'तातुश' ने ही दिया, क्योंकि उसके लेखन-कार्य की नींव तो तातुश द्वारा ही रखी गयी। तातुश ने उसे अपने घर पर नौकरानी की तरह नहीं बल्कि बेटी की तरह रखा। उसकी लिखने की झिझक समाप्त करवाई। पढ़ने की उसकी रुचि के अनुसार उसे पुस्तकें पढ़ने को दी और लिखने को पेन व कापी भी दी।
यही नहीं वे रोज उससे यह भी पूछते थे कि उसने आज कितना लिखने का अभ्यास किया। इस प्रकार उन्होंने लेखिका को लेखन-कार्य के लिये बाध्य कर दिया। तातुश के मित्रों ने भी समय-समय पर लेखन-कार्य के प्रति लेखिका बेबी का प्रोत्साहन बढ़ाया, जिनमें से जेठू, आनन्द बाबू, रमेश बाबू व शर्मिला दीदी प्रमुख हैं। इनमें भी 'जेठू' ने लेखिका का सर्वाधिक उत्साह बढ़ाया।
वे पत्र लिखकर लेखिका बेबी को लेखन के लिये प्रेरित करते रहते थे और उसे बताते थे कि उसका लिखा लोगों को बहुत पसन्द आ रहा है, अत: वह लिखना जारी रखे। उन्होंने उसे उसकी लिखावट में हुए सुधार से भी अवगत करवाया। जेठू ने बेबी को आशापूर्णा देवी का उदाहरण देकर समझाया, कि "जिस प्रकार आशापूर्णा देवी घर के काम-काज व अत्यन्त व्यस्तताओं से घिरी होने के बावजूद भी समय निकालकर लिख लेती थी, उसी प्रकार तुम भी लेखन-कार्य के लिये समय निकाल सकती हो।"
जेठू के इन उत्साह भरे पत्रों से लेखिका में एक नये जोश व उमंग का संचार होता था और वह दुगने उत्साह से अपनी गलतियों का विचार किये बिना लिखने में जुट जाती थी। जेठू ने ही लेखिका की रचना को पत्रिका में प्रकाशित करवाकर उसे असीम खुशी प्रदान की थी, जिससे प्रोत्साहित होकर वह भविष्य में अपना लेखन-कार्य जारी रख सकें व और भी श्रेष्ठ रचनाएँ लिख सके।
प्रश्न 2.
पत्रिका में अपनी रचना को प्रकाशित देख लेखिका बेबी हालदार की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
एक दिन पड़ोस के लड़के ने बेबी को एक पैकेट लाकर दिया, जो डाकिया गलती से उनके घर डाल गया था। उस पैकेट में लेखिका बेबी के लिये एक पत्रिका थी। वह उसके पन्ने पलटने लगी, तो उसने उसमें एक जगह अपना नाम देखा। आश्चर्य से फिर देखा, तो सच में ही उसमें लिखा था, 'आलो-आँधारि'-'बेबी हालदार'। पत्रिका में अपनी रचना के साथ अपना नाम देखकर लेखिका की खुशी की कोई सीमा न रही। उसका मन खुशी से हिलोरें मारने लगा।
उसने सोचा, जेठू ठीक ही कहते हैं कि आशापूर्णा देवी के समान घर के काम करते हुए भी लिखना-पढ़ना जारी रखा जा सकता है। फिर वह नीचे से ही 'देखो, देखो एक चीज।' इस प्रकार बोलती हुई ऊपर अपने बच्चों के पास पहुँची और उसके दोनों बच्चे दौड़कर उसके पास आ गए। उसने उनसे कहा, बताओ तो यह क्या लिखा है। उसकी लड़की ने एक-एक कर सभी अक्षर पढ़े और बोली, 'बेबी हालदार'।
माँ तुम्हारा नाम किताब में। और फिर दोनों बच्चे हँसने लगे। उन्हें हँसता देख लेखिका का मन और भी अधिक खुशी से भर गया। अचानक उसने सोचा कि वह कितनी नादान है कि वह तातुश को यह बताना व आशीर्वाद लेना तो भूल ही गई। पत्रिका में अपना नाम देखकर वह सब कुछ भूल गई। वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरकर तातुश के पास आई और उनके पैर छूकर प्रणाम किया। तातुश ने उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया।
पाठ का सारांश :
आलो-आँधारि लेखिका की आत्मकथा है, उन्होंने अपने जीवन में आये उतार-चढ़ावों का और जीवन के यथार्थ सत्य का अत्यन्त सूक्ष्मता से वर्णन करते हुए अपने लेखन-कौशल का परिचय दिया है। इसमें लेखिका के जीवन के जो पक्ष उजागर होते हैं, उनका बिन्दुवार वर्णन निम्नलिखित है -
रहती थी। उसके पास कोई काम नहीं था। अत: वह दिन-रात नौकरी ढूँढ़ने में लगी रहती थी तथा कोई कम किराये वाला घर भी तलाशती रहती थी। उसे दिन-रात अपने बच्चों की चिंता सताती रहती थी, कि वह किस प्रकार उनका भरण-पोषण करेगी व मकान का किराया कहाँ से देगी? अत: वह हर किसी से अपने लिये काम ढूँढ़ने को कहती रहती थी।
लोगों के कटाक्षों से परेशान लेखिका को सुनील द्वारा काम दिलवाना-लेखिका को बच्चों के साथ घर में अकेले देखकर आसपास के लोग लेखिका से तरह-तरह के सवाल करते। काम न मिलने पर उस पर कटाक्ष करते। लेखिका इन सब बातों से बहुत परेशान थी। ऐसे में एक दिन सुनील नामक युवक ने लेखिका को एक सज्जन से मिलवाया, जिन्होंने उसे आठ-सौ रुपये महीने में घर की साफ-सफाई और खाना बनाने के काम पर रख लिया।
लेखिका के काम से प्रसन्न मालिक द्वारा उसके बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाना-मालिक लेखिका के काम से अत्यन्त प्रसन्न थे तथा अपने बच्चों के प्रति लेखिका की चिंता को समझते थे। अत: उसके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य हेतु मालिक ने उनका दाखिला स्कूल में करवा दिया। स्कूल से लौटकर जब बच्चे लेखिका के पास आते, तो मालिक उन्हें कुछ न कुछ खाने की वस्तु भी अवश्य ही देते। इस प्रकार लेखिका के मालिक अत्यन्त उदार व दयालु थे।
बच्चों के भविष्य के प्रति सदैव चिंतित रहना-लेखिका अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सदैव चिंताग्रस्त रहती थी। . उसके साहब ने बच्चों का स्कूल में दाखिला तो करा दिया, पर लेखिका को अब यह चिंता सताने लगी कि मैं इतने पैसों से बच्चों का पालन-पोषण भली प्रकार कैसे कर पाऊँगी और मकान का इतना किराया कहाँ से दूँगी ? अत: लेखिका और कोई काम भी ढूँढ़ने लगी तथा कोई सस्ता मकान भी ढूँढ़ने लगी।
व्यक्ति थे। वे लेखिका का पूरा ध्यान रखते थे। वे लेखिका को अपनी पुत्री के समान ही मानते थे। वे लेखिका को बेबी कहकर ही पुकारते थे और उससे कहते थे कि तुम समझो कि मैं तुम्हारा बाप, भाई, माँ, बंधु सब कुछ हूँ। यह कभी मत सोचना कि यहाँ तुम्हारे कोई नहीं है। मेरे बच्चे मुझे तातुश कहते हैं, तुम भी मुझे वही कहकर बुला सकती हो। तुम मेरी लड़की जैसी हो। इस घर की लड़की हो और उस दिन से लेखिका अपने मालिक को तातुश कहने लगी। तातुश के घर में सभी लोगों का लेखिका के प्रति अत्यन्त आत्मीय व्यवहार था।
लेखिका की पढ़ाई में रुचि-लेखिका की पुस्तकों के अध्ययन में विशेष रुचि थी। तातुश के घर में तीन अलमारियाँ किताबों से भरी थीं। उनमें बाँग्ला की भी काफी किताबें थीं। कभी-कभी लेखिका उनमें से कुछ किताबें खोलकर देखती थी और पढ़ती थीं। एक बार तातुश ने उसे किताब पढ़ते देख लिया और उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा। तातुश के पूछने पर लेखिका ने कई बाँग्ला-लेखकों के नाम भी बता दिये तो पढ़ाई में उसकी इस रुचि को देखते हुए तातुश ने उसे पढ़ने के लिये एक पुस्तक भी लाकर दी।
पढ़ने-लिखने के लिये प्रेरित करते रहते थे। वे उससे कहते कि जितना समय तुम यहाँ-वहाँ के काम में लगाओगी, उतना पढ़ने-लिखने में लगाओ। तुम देखोगी एक दिन वही तुम्हारे काम आयेगा। तुम लिखना कभी भी बंद न करना। लेखिका का नया घर कई समस्याओं से ग्रस्त-मकान का किराया अधिक होने के कारण लेखिका ने अपना मकान बदल दिया था, जिसका किराया पहले वाले मकान से बहुत कम था, परंतु इसमें असुविधाएँ भी अत्यधिक थीं। घर में शौच की सुविधा भी न होने के कारण बाहर ही जाना पड़ता था।
आस-पड़ोस और वातावरण नया होने के कारण लोगों का भी लेखिका व उसके परिवार के साथ व्यवहार अच्छा नहीं था। बच्चों के साथ अकेली महिला को देखकर वहाँ के लोग लेखिका के लिये अनाप-शनाप बातें करते व आते-जाते उसे छेड़ते व परेशान करते रहते। मकान-मालकिन भी बात-बात पर उसे टोकती रहती। यह सब कुछ देखने और विचारने के बाद लेखिका ने फिर से एक नये घर की तलाश जारी कर दी।
बुलडोजर द्वारा घरं तोड़े जाने पर ओस में सड़क पर रात बिताना--एक दिन काम से घर लौटने पर लेखिका ने देखा कि का व आसपास के मकाम तोड़ दिये गये हैं तथा उसका सामान बाहर फिका पड़ा है व उसके बच्चे रो रहे हैं। दूसरे घरों के लोग तो अपना सामान लेकर घर तलाश करने चले गये, परंतु लेखिका सोचने लगी कि इतनी जल्दी दूसरा मकान वह कैसे ढूँढ़ेगी? और उसे अपने बच्चों के साथ सारी रात खुले आसमान के नीचे ओस में सड़क पर ही बितानी पड़ी।
तातुश द्वारा आश्रय दिया जाना लेखिका के बेघर होने का पता लगते ही तातुश ने उसे अपने घर में रहने के लिये एक कमरा दे दिया। तातुश के घर लेखिका के बच्चों का पालन-पोषण उत्तम प्रकार से होने लगा। उन्हें ठीक से खाना मिलने लगा। तातुश भी बच्चों का बहुत ध्यान रखते थे। बच्चे थोड़े से भी बीमार हो जायें, तो तुरंत उनका इलाज करवाते थे।
का को उसके बडे लडके से मिलवाना-लेखिका का बड़ा लड़का कहीं चला गया था। लेखिका सदैव उसके लिये चिंतित रहती थी कि वह न जाने कहाँ व किस हाल में होगा ? उसकी चिंता व उदासी को देखते हुए तातुश ने उसके लड़के को खोजना प्रारंभ कर दिया और अन्तत: वह उसे मिल गया। तातुश ने लेखिका के लड़के को पहले वाली नौकरी से निकलवाकर दूसरी जगह अच्छा काम भी दिलवा दिया और लेखिका को उसके बेटे से मिला दिया।
लेखिका का पार्क में जाना व सुनीति से मित्रता होना-एक दिन तातुश ने लेखिका से बच्चों को लेकर रोज पार्क में थोड़ा घूमने को कहा। उस दिन से लेखिका रोज शाम को बच्चों के साथ पार्क में जाने लगी। वहाँ बहुत सी बंगाली औरतें आती थीं और लेखिका से बातें करती थी। एक बंगाली लड़की सुनीति से लेखिका की मित्रता भी हो गई। वह एक बच्ची को घुमाने वहाँ आती थी। एक दिन सुनीति अपने घर चली गयी और फिर वह बच्ची अपनी माँ के साथ पार्क आने लगी। सुनीति के चले जाने पर लेखिका का भी पार्क में मन नहीं लगता था, अत: उसने पार्क में जाना छोड़ दिया और वह अपने लेखन-कार्य में समय बिताने लगी।
लेखिका के लेखन-कार्य की प्रशंसा व प्रोत्साहन-तातुश द्वारा प्रेरित करने पर लेखिका निरंतर लेखन-कार्य करती रही। उसने अपने जीवन की घटनाओं को भी कागज पर उतारना शुरू कर दिया। कोलकाता और दिल्ली निवासी तातुश के दोस्त भी लेखिका का उत्साह लगातार बढ़ाते रहे। तातुश के कोलकाता वाले दोस्त ने तो लेखिका को आशापूर्ण देवी के उदाहरण द्वारा बतलाया कि वह भी कितनी व्यस्तताओं के बीच लिखने का समय निकाल लेती थी। इससे लेखिका का हौसला और भी बुलंद हो गया। कोलकाता की एक अध्यापिका शर्मिला भी लेखिका के लेखन की प्रशंसा करके उसे प्रेरित करती रहती थी। इस प्रकार लेखिका के लेखन कार्य की सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
खका को उसके पिता द्वारा माँ के निधन का समाचार मिलना एक दिन अचानक सवेरे-सवेरे लेखिका के पिता उससे मिलने आ पहुँचे। उन्होंने लेखिका से उसका व बच्चों का कुशल-क्षेम पूछा। कुछ देर तक इधर-उधर की बातें करते-करते जब लेखिका ने पूछा कि उसकी माँ कैसी है? तो इस प्रश्न पर उसके पिता ने चुप्पी साध ली। लेखिका के जोर देकर पूछे जाने पर उसके पिता ने उसे बताया कि उसकी माँ के निधन को तो छह-सात मास हो गये हैं
यह सुनकर लेखिका ने मन ही मन अपने भाइयों को बहुत कोसा, जिन्होंने जानते हुए भी उसे यह समाचार नहीं दिया तथा अपनी मां के अन्तिम दर्शन तक वह न कर पायी। - लेखिका के पिता का अपनी पुत्री व उसके बच्चों की स्थिति में सुधार देखकर अत्यन्त प्रसन्न व निश्चिन्त होना-अपनी पुत्री व उसके बच्चों को इतनी अच्छी स्थिति में देखकर लेखिका के पिता अत्यन्त प्रसन्न हुए व बोले-तुम सबको देखकर आज मुझे बहुत खुशी हुई। तुम सब और भी बड़े होओ। लेखिका के पिता उसे आशीर्वाद देकर जाने लगे तो तातुश ने उससे कहा कि आप अपनी बेटी के बारे में निश्चिन्त हो जाइये, ऐसा सुनकर उसके पिता निश्चिन्त भाव से वहाँ से गये।
लेखिका का पत्र व्यवहार-लेखिका का अपने मित्रों से पत्र व्यवहार शुरू हो गया था। पत्रों के माध्यम से वे लोग एक-दूसरे के हालचाल पूछते। शर्मिला लेखिका को पत्र द्वारा अनेक उदाहरण देकर समझाती रहती थी। शर्मिला लेखिका से निजी जीवन की अन्य बातें भी करती थी। वह कहती कि जब हम दोनों मिलेंगे तो खूब सजेंगे-सँवरेंगे और नाचेंगे और बहुत-सी बातें भी करेंगे। यह सब पढ़कर लेखिका अत्यन्त प्रसन्न होती थी।
लेखिका का सरल व सुखमय जीवन-लेखिका के अस्थिर जीवन को तातुश द्वारा आश्रय दिये जाने पर ही स्थिरता और शांति मिली थी। आज उसके जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया था। तातुश के प्रयासों से वह लेखिका बन गई थी। उसके बड़े लड़के को भी अच्छी जगह काम मिल गया था। छोटे दोनों बच्चों का भी तातुश ने स्कूल में दाखिला करवा दिया था। तातुश के रूप में लेखिका की माँ, पिता, भाई, बहिन सभी की कमी पूरी हो जाती थी। तातुश भी उसे अपनी पुत्री ही मानते थे। लेखिका के जीवन का एकाकीपन दूर हो गया था और उसका जीवन अत्यन्त सुखमय हो गया था।
लेखिका की रचना का पत्रिका में प्रकाशन-लेखिका के कठिन परिश्रम व अनवरत लेखन के फलस्वरूप आखिरकार एक दिन लेखिका की रचना पत्रिका में प्रकाशित हो ही गई। रचना का शीर्षक था आलो आँधारि। उसे देखकर लेखिका की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। वह पत्रिका में अपना नाम देखकर सब कुछ भूल गई। जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरकर वह तातुश के पास आई और उनके पैर छूकर प्रणाम किया। तातुश ने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।
कठिन शब्दार्थ :