RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 6 खानाबदोश

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 6 खानाबदोश Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 6 खानाबदोश

RBSE Class 11 Hindi खानाबदोश Textbook Questions and Answers

Class 11 Hindi Khanabadosh Question Answer प्रश्न 1. 
जसदेव की पिटाई के बाद मजदूरों का समूचा दिन कैसा बीता? 
उत्तर : 
जसदेव की पिटाई के बाद सभी मजदूर डर गए थे। उन्हें लग रहा था कि सूबेसिंह किसी भी वक्त लौटकर आ सकता है। शाम होते ही भट्टे पर सन्नाटा छा गया था, सारे मजदूर अपने-अपने खोल में चले गए थे। बूढ़ा बिलसिया जो अकसर बाहर पेड़ के नीचे देर रात तक बैठा रहता था, आज शाम होते ही अपनी झोंपड़ी में जाकर लेट गया था। वह धीमी आवाज में खाँस रहा था। किसनी के ट्रांजिस्टर की आवाज भी नहीं आ रही थी। 

खानाबदोश पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 प्रश्न 2.
मानो अभी तक भट्टे की जिंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी? 
उत्तर : 
सुकिया और मानो जिस कारण अपना घर छोड़कर महीना भर पहले भट्टे पर आए, यहाँ की स्थिति तो और भी दुखदायी थी। मजदूरों को रहने के लिए मकान नहीं थे, केवल दड़बेनुमा छोटी-छोटी झोंपड़ियाँ थीं जिनमें प्रकाश का अभाव था। केवल टिमटिमाती ढिबरियाँ थीं जिनसे अँधेरा दूर नहीं होता था। साँझ होते ही चारों तरफ सन्नाटा फैल जाता और साँय-साँय की ध्वनि सुनाई पड़ती। दिनभर के थके मजदूर अपने-अपने दड़बों में घुस जाते। आपस के दुख-सुख बाँटने का अवसर किसी के पास नहीं था। चारों तरफ जंगल था, इस कारण साँप-बिच्छू का डर रहता। ईंटों को जोड़कर बनाए हुए चूल्हे थे। काम की भी निश्चितता नहीं थी। इस प्रकार मानो का भट्टे की जिन्दगी से तालमेल नहीं बन पाई थी। 

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कक्षा 11 अंतरा पाठ 6 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3. 
असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबेसिंह क्यों बिफर पड़ा और जसदेव को मारने का क्या कारण था? 
उत्तर :
कामातुर सूबेसिंह ने मानो को बुलाने के लिए असगर ठेकेदार को भेजा था। ठेकेदार की बात सुनकर सुकिया और मानो ने एक दूसरे को देखा। मानो भयभीत थी और सुकिया को क्रोध आ गया। सुकिया को क्रोधित देखक ठेकेदार के साथ चला गया। अपनी आज्ञा का उल्लंघन देखकर सबेसिंह बिफर पड़ा और बोला मैंने तुझे कब बलाया था। जसदेव ने सहज रूप में कहा कि मैं आपका काम कर दूँ । सूबेसिंह ने अपशब्दों का प्रयोग किया। जसदेव ने उसके अपशब्दों का विरोध किया। तब कामान्ध सूबेसिंह ने लात-घूसों से उसकी पिटाई की और अधमरा कर दिया। 

Class 11 Hindi Sahitya Chapter 6 Question Answer प्रश्न 4. 
जसदेव ने मानो के हाथ का खाना क्यों नहीं खाया ? 
उत्तर : 
सूबेसिंह के हाथों पिटाई के बाद जसदेव की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। उसका सारा शरीर दुख रहा था। तब मानो ने उसकी चोटों की सिकाई की थी। मानो को जसदेव से गहरी सहानुभूति हो गई थी। वह उसे खिलाने चली तो सुकिया ने पूछा कि वह कहाँ जा रही थी ? जब उसने भूखे जसदेव का नाम लिया तो सुकिया ने उससे कहा कि वह पागल है, भला एक वामन उसके हाथ का बना खाना कैसे खा लेगा। मानो को विश्वास नहीं हुआ। उसने तो यहाँ तक कह दिया कि हम सबकी एक ही जाति है - मजदूर। 

मानो खाना लेकर पहुँची। उसने जसदेव की बड़ाई करते हुए, उससे बड़े स्नेह के साथ खाना खाने का अनुरोध किया। जसदेव ने कहा कि उसे भूख नहीं थी। मानो जानती थी कि असल बात वही थी जो सुकिया ने बताई थी। जसदेव स्वीकार नहीं कर पाया था कि वह ब्राह्मण नहीं केवल एक मजदूर है। उसमें साहस नहीं था कि उच्च जाति के मिथ्या अहंकार से मुक्त होकर, उस सहानुभूति भरी नारी के हाथ का बना खाना खा सके।
 
Khanabadosh Question Answer प्रश्न 5. 
लोगों को क्यों लग रहा था कि किसी ने जानबूझ कर मानो की ईंटें गिराकर रौंदा है ? 
उत्तर :
मानो और सुकिया से सूबेसिंह बहुत चिढ़ा हुआ था। वह उनको हर तरह परेशान करने पर आमादा था। जब सुबह मानो ने अपनी थापी हुई ईंटों को जाकर देखा तो कच्ची ईंटें टूटी-फूटी पड़ी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे ईंटों को किसी ने जानबूझकर गिराया था। लोग कह रहे थे कि रात में कोई आँधी-तूफान नहीं आया और वह किसी जंगली जानवर का भी काम नहीं लग रहा था। अनेक लोग मानते थे कि ईंटें जानबूझकर तोड़ी गई थीं। सब जानते थे कि वह करतूत सूबेसिंह के अलावा और किसी की नहीं थी। 

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खानाबदोश पाठ के प्रश्न उत्तर प्रश्न 6. 
मानो को क्यों लग रहा था कि किसी ने उसकी पक्की ईंटों के मकान को धराशाई कर दिया 
उत्तर : 
मानो अपने ईंटों से बने घर की कल्पना को साकार करने के लिए जी-जान से जुटी हुई थी। सुकिया भी उसका पूरा साथ दे रहा था। लाल-लाल ईंटों से बना अपना घर बाहर भले न बन पाया हो लेकिन सुकिया के सपनों में प्रतिक्षण साकार था। उसने पसीना बहाकर ईंटें थापी थीं। बड़ी लगन से उन्हें दीवार के रूप में खड़ा किया था। जब उसने उन्हीं ईंटों की दुर्दशा देखी तो वह मर्माहत हो उठी। उसे लगा जैसे वे ईंटें नहीं गिराई गई हैं बल्कि किसी आतताई ने उन ईंटों से बना उसका पक्का मकान ही गिरा दिया था। उसकी सारी मेहनत, उसके सपने, कल्पना में साकार अपना घर, सब कुछ सूबेसिंह ने तहस-नहस कर डाला था। 

खानाबदोश के प्रश्न उत्तर प्रश्न 7.
'चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।' सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कहानी के सुकिया और मानो शोषित मजदूर वर्ग के प्रतीक हैं। सूबेसिंह तथा असगर ठेकेदार शोषक वर्ग के प्रतीक हैं। कहानी की मूल संवेदना उस परिश्रमी मजदूर वर्ग का चित्रण करना है जो शोषण और यातना का शिकार है और मेहनत-मजदूरी करके भी अपनी गुजर-बसर नहीं कर पा रहा है। यदि मजदूर वर्ग लगन तथा ईमानदारी के साथ मजदूरी करना चाहता है तो सबेसिंह और असगर जैसे शोषक उन्हें काम नहीं करने देते, उन्हें इज्जत के साथ जीने नहीं है विलासी हैं और मजदूरों का देह-शोषण करते हैं। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि मजदूर वर्ग आज भी जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाया है। कहानीकार दलित-शोषित वर्ग के प्रति मानवीय संवेदना जगाना चाहता है। कहानी की .यही मूल संवेदना है। 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Question Answer प्रश्न 8. 
'खानाबदोश' कहानी में आज के समाज की किन-किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
'खानाबदोश' कहानी शोषित मजदूर वर्ग की दर्दनाक कहानी है। कहानीकार ने आज के समाज की कुछ महत्त्वपूर्ण समस्याओं का चित्रण इस कहानी में किया है। आज के समाज में बेरोजगारी की बड़ी भयंकर समस्या है। मजदूर वर्ग विवश होकर अपना घर छोड़कर दूसरी जगह मजदूरी करने जाते हैं। घर से दूर जाकर मजदूरों को बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। परिश्रम करके भी वे अच्छी तरह जीवन यापन नहीं कर पाते। उन्हें मालिक के अभद्र व्यवहार को भी सहन करना पड़ता है। मालिक के डर से मजदूर वर्ग में एकता नहीं हो पाती कहानीकार ने कहानी में उपर्युक्त सभी समस्याओं का वर्णन किया है। 

लेखक की मजदूरों के प्रति सहानुभूति है। वह चाहता है मजदूरों के रहने की अच्छी व्यवस्था हो। मजदूरी करने वाली स्त्रियों का देह-शोषण न हो। उन्हें समय पर और अच्छी मजदूरी मिले। मालिक मजदूरों के साथ मानवीय व्यवहार करें। मजदूरों को अकारण तंग न करें। मालिक और मजदूर के बीच सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार हो। लेखक ने अप्रत्यक्ष रूप से अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। 

Class 11 Antra Chapter 6 Question Answer प्रश्न 9.
सुकिया ने जिन समस्याओं के कारण गाँव छोड़ा, वही समस्या शहर में भट्टे पर उसे झेलनी पड़ी - मूलतः वह समस्या क्या थी ? 
उत्तर :
कहानी में सुकिया को भट्टे पर घटी घटनाओं ने बहुत चिंतित कर दिया था। सूबेसिंह द्वारा जसदेव की पिटाई ने और मानो पर पड़ी उसकी कुदृष्टि ने उसे बहुत चिंतित कर रखा था। जिन समस्याओं से त्रस्त होकर उसने अपना गाँव छोड़ा था वे शहर में भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थीं। इन समस्याओं में सबसे अधिक चिंतित करने वाली समस्या थी, दुश्चरित्र ठेकेदारों और मालिकों से मानो की सुरक्षा। सुकिया ने महेश की पत्नी किसनी के साथ हुए काण्ड को देखा था। यह संकट अब मानो तक पा। वह महेश नहीं बन सकता था और न मानो ही किसनी बनने को तैयार थी। 

किया के सामने मल समस्या अपने आत्म-सम्मान को, एक स्त्री की इज्जत को बचाने की ठानी थी। वह अय्यास सूबे के सामने समर्पण करने को तैयार नहीं था। अतः खानाबदोश बने रहने के अलावा इस समस्या का और कोई समाधान सुकिया को नहीं सूझ रहा था। 

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Class 11 Hindi Chapter 6 Khanabadosh Question Answer प्रश्न 10. 
'स्किल इंडिया जैसा कार्यक्रम होता तो क्या तब भी सुकिया और मानो को खानाबदोश जीवन व्यतीत करना पड़ता ? 
उत्तर :
'स्किल इंडिया' कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी श्रम शक्ति को किसी विशेष कार्य में माँग के अनुरूप कार्यकुल बनाना है। साधारण मजदूर की अधिक पूछ नहीं होती क्योंकि ऐसे लोग सरलता से मिल जाते हैं। साधारण मजदर को नियोक्ता चाहे जब निभाता देते हैं। अतः उनको नौकरी के लिए खानाबदोशों की भाँति भटकना पडता है। जो कर्मचारी माँग और विकास के अनुरूप अपने काम में दक्ष होता है, उसे नौकरी पाने में विशेष श्रम नहीं करना पड़ता है। अतः उस समय यदि 'स्किल इंडिया' जैसा कार्यक्रम उस समय चल रहा होता तो सुकिया और मानो किसी भी धंधे में विशेष योग्यता पा लेते और टिककर एक ही ठिकाने पर काम करते। उन्हें 'खानाबदोश' नहीं बनना पड़ता। 

खानाबदोश पाठ के प्रश्न उत्तर बताइए प्रश्न 11. 
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए - 
(क) 'अपने देश की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।' 
आशय - यह कथन मानो का है जो पति के साथ भट्टे पर काम करने आई है। उसका कथन है कि जो संतोष अपने घर रूखी-सूखी रोटी खाने में होता है, वह परदेश में रहकर प्राप्त नहीं होता। बड़े लाभ के लिए परदेश में जाने पर परेशानियाँ अधिक होती हैं। रहने और खाने की अच्छी सुविधा नहीं मिलती। भट्टे के माहौल को देखकर मानो ने यह बात कही थी। 

(ख) 'इत्ते ढेर-से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।' 
आशय - मानो गाँव में पक्का ईंटों का मकान बनाना चाहती थी उसने अपनी इच्छा सुकिया के समक्ष व्यक्त की। सुकिया ने उसे समझाते हुए कहा कि पक्का मकान बनाना आसान नहीं है, उसके लिए बहुत सारे रुपए, लोहा, सीमेंट और लकड़ी चाहिए। यह हमारे बूते की बात नहीं है। अपनी क्षमता से अधिक सोचना, कल्पना करना अनुचित है। जैसे एक गरीब आदमी हाथी नहीं खरीद सकता, उसके लिए अधिक रुपये चाहिए। इसी प्रकार हमारे लिए मकान बनाना हाथी खरीदने के समान है। हम मजदूरी करके मकान नहीं बना सकते। 

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(ग) उसे एक घर चाहिए था-पक्की ईंटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।' 
आशय - भट्टे से निकली लाल-लाल पकी ईंटों को देखकर मानो के मन में एक बिजली-सी कौंध गई। उसके मन में अपना मकान बनाने की इच्छा जाग्रत हो गई। वह दिन-रात मेहनत करके ईंट पाथ कर पैसा कमाना चाहती थी। वह भी पक्के मकान में अपने परिवार के साथ सुख से जीवन व्यतीत करने की कल्पना करती थी। इसी कारण वह अधिक परिश्रम करती थी। 

योग्यता-विस्तार - 

प्रश्न 1. 
अपने ................. कीजिए। 
उत्तर : 
छात्र स्वयं करें। 

प्रश्न 2. 
भट्टा मजदूरों की .... तैयार कीजिए। 
उत्तर : 
परीक्षोपयोगी नहीं। 

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प्रश्न 3. 
जाति प्रथा पर एक निबंध लिखिए। 
उत्तर : 
जाति प्रथा - भारतीय समाज की एक विशेषता है, उसमें शताब्दियों से चली आ रही 'जाति प्रथा'। हमारा समाज, विशेष रूप से हिन्दू समाज, अनेक जातियों में बँटा हुआ है। इसे वर्ण व्यवस्था भी कहा जाता है। इस व्यवस्था का मूल स्वरूप या आधार समाज के लोगों के गुण और कर्म के अनुसार बना है। इसे श्रम-विभाजन का एक प्राचीन रूप माना जा सकता है। सामाजिक जीवन सुचारु रूप से चले, इसके लिए समाज को चार वर्गों में व्यवस्थित किया गया था। शिक्षा कार्य और धार्मिक विश्वासों की व्याख्या करने वाला या ब्राह्मण वर्ग। दूसरा समाज बाहरी सुरक्षा में भाग लेने वाला या क्षत्रिय वर्ग। 

इसी प्रकार व्यवसायकर्ता वैश्य और नाना प्रकार के पों. उपयोगी वस्तओं के निर्माण, स्वच्छता और सेवा-कार्यों को सम्भालने वाला वर्ग या चौथा वर्ग। आज जाति व्यवस्था का जो रूप प्रचलित है उसमें जन्म पर आधारित कार्य-विभाजन का रूप ले लिया है। जाति व्यवस्था के कारण समाज के एक बहुत बड़े भाग पर अनेक अन्याय भी होते रहे हैं। शिक्षित, अग्रगामी, सामाजिक न्याय पर सचाई से विचार करने वाले महापुरुषों ने जाति व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को स्वीकार नहीं किया है। 

जन्म से कोई छोटा-बड़ा, छूत-अछूत नहीं होता। कोई पेशा या कार्य हो, इसके बिना समाज का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता। अतः प्रत्येक कार्य का सम्मान होना चाहिए। रूप, रंग, जीवन-स्तर और जन्म-जाति के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर, हर नागरिक को धन्धा चुनने और आगे बढ़ने का अधिकार होना चाहिए। तभी समाज में समरसता, एकता और आत्मसम्मान को आदर मिलेगा। देश उन्नति करेगा। 

RBSE Class 11 Hindi खानाबदोश Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर -

प्रश्न 1. 
भट्टे का सबसे अधिक खतरे वाला काम था - 
(क) कच्ची ईंटों की दीवार खड़ी करना 
(ख) ईंटों को भट्टे से निकालना 
(ग) मोरियों में से ईंधन डालना 
(घ) भट्टे में आग लगाना 
उत्तर :
(ग) मोरियों में से ईंधन डालना 

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प्रश्न 2. 
आदमी की औकात पता चलती है - 
(क) शादी होने पर 
(ख) बराबर का मुकाबला होने पर 
(ग) घर से बाहर कदम रखने पर 
(घ) कठिन समस्या सामने आने पर 
उत्तर :
(ग) घर से बाहर कदम रखने पर 

प्रश्न 3. 
“किसनी' पर नजर पड़ गई - 
(क) मुखतार सिंह की 
(ख) रकिया की 
(ग) असगर की 
(घ) सूबेसिंह की 
उत्तर :
(घ) सूबेसिंह की

प्रश्न 4.
"बामन नहीं भट्टा मजदूर है वह....म्हारे जैसा।" यह कथन है - 
(क) सुकिया का 
(ख) मानो का 
(ग) असगर का 
(घ) एक मजदूर का 
उत्तर :
(ख) मानो का 

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प्रश्न 5. 
मानो के हृदय में टीस उठने का कारण था - 
(क) ईंटों का तोड़ दिया जाना 
(ख) अपना घर बनाने का सपना टूट जाना 
(ग) भट्टा छोड़ते समय जसदेव द्वारा साथ न देना 
(घ) सूबेसिंह के अत्याचार का मजदूरों द्वारा विरोध न किया जाना। 
उत्तर : 
(ग) भट्टा छोड़ते समय जसदेव द्वारा साथ न देना 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1.
सुकिया के आत्मिक सुख से भरने का कारण क्या था? 
उत्तर : 
अपने द्वारा पाथी गई ईंटों की दीवार भट्टे में बनते देखकर सुकिया आत्मिक सुख से भर उठा था।

Class 11 Khanabadosh Question Answer प्रश्न 2. 
भट्टे में आग लगाने से पहले असगर और मुखतार सिंह ने क्या-क्या किया था?
उत्तर : 
असगर ने भट्टे की हर चीज तरतीब से लगवाई थी और मुखतार ने हर चीज का मुआइना किया था। 

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Class 11 Hindi Chapter Khanabadosh Question Answer प्रश्न 3. 
भट्टे के किस काम में थोड़ी-सी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी? 
उत्तर : 
मोरी पर काम करने में थोड़ी-सी भी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी। 

Khanabadosh Class 11 Question Answer प्रश्न 4. 
भट्टे के माहौल को देखकर मानो ने सुकिया से क्या कहा था ? 
उत्तर :
मानो ने कहा था कि अपने देश की सूखी रोटी भी परदेश के पकवानों से अच्छी होती है। 

Khanabadosh Chapter Question Answer प्रश्न 5. 
'सरकारी अफसरों के आग्गे सीध्धे न हो सके हैं। यह कथन किसने किनके लिए कहा है? 
उत्तर :
यह कथन सुकिया का है। यह गाँव के उन लोगों के बारे में कहा है जो गाँव के निर्बल लोगों पर अपना रौब दिखाया करते हैं। 
में 

कक्षा 11 हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर पाठ 6 प्रश्न 6. 
सूबेसिंह के भट्टे पर आने से वहाँ का माहौल कैसा हो जाता था? 
उत्तर : 
सूबेसिंह के रौब-दाब से सभी कर्मचारी घबराते थे। असगर ठेकेदार सारी अकड़ भूल भीगी बिल्ली जैसा बन जाता था। 

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Class 11 Hindi Chapter 6 Question Answer Antra प्रश्न 7. 
मजदूरों के बीच किस बात को लेकर कानाफूसी होने लगी थी? 
उत्तर :
किसनी को एक दिन खुले में साबुन से रगड़-रगड़ कर नहाते देख मजदूरों सूबेसिंह और किसनी को लेकर कानाफूसी होने लगी थी। 

प्रश्न 8.
भट्टे की नीरस जिंदगी में थोड़ी देर के लिए ताजगी का अहसास कब होता था? 
उत्तर : 
जब शाम को झोपड़ियों के बाहर सभी के चूल्हे जलते थे और उन पर पक रहे खाने की गंध हवा में तैरने लगती थी तो तनिक देर के लिए मजदूरों की जिंदगी में ताजगी-सी छा जाती थी। 

प्रश्न 9. 
भटे के शांत वातावरण में संगीत की लहरियों की खनक किसने पैदा कर दी थी? 
उत्तर : 
सूबेसिंह ने किसनी को एक ट्रांजिस्टर दिला दिया। शाम-सबेरे उसकी ऊँची आवाज में आते फिल्मी गानों ने संगीत की खनक पैदा कर दी थी। 

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प्रश्न 10. 
मानो के मन में बिजली की चमक के समान कौन सा ख्याल कौंध गया? 
उत्तर : 
जब मानो अपने हाथों से पथी ईंटों को भट्टे से निकलते देख रही थी, तभी उसके मन में अचानक विचार आया कि वे भी ऐसी ही ईंटों से अपने लिए गाँव में घर बनाएँ। 

प्रश्न 11.
मानो को रात में नींद क्यों नहीं आ रही थी? 
उत्तर :
मानो लाल-लाल ईंटों से बने अपने घर के विचारों में डूबी हुई थी। इसी कारण उसे नींद नहीं आ रही थी। 

प्रश्न 12. 
जब सुबह होने पर सारे काम निपटा कर सुकिया ने अपनी झोपड़ी में झाँका तो वह हैरान क्यों रह गया? 
उत्तर :
काफी दिन चढ़ आने पर भी मानो गहरी नींद में सो रही थी। यह देख वह किसी अनहोनी के डर से हैरान हो उठा। 

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प्रश्न 13.
मानो की कौन-सी बात सुनकर सुकिया उसे आश्चर्य से ताकने लगा ? 
उत्तर : 
मानो ने किया से पूछा था कि क्या वे भट्टे की पक्की ईंटों से अपने लिए एक घर नहीं बना सकते? इस बात को सुनकर सुकिया उसकी ओर आश्चर्य से देखने लगा। 

प्रश्न 14. 
"इन ईंटों पर अपणा कोई हक ना है।" यह कथन किसने किसके प्रति कहा? 
उत्तर :
यह कथन सुकिया ने मानो के प्रति कहा। वह चाहता था कि मानों कठोर सच्चाई को जान ले। 

प्रश्न 15.
"मानो के भीतर मन में हजार-हजार वसंत खिल उठे थे।" इसका आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
आशय है कि मानो मन-ही-मन पक्की ईंटों से बने मकान के सपनों में खोई हुई थी। उस कल्पना से उसके मन को बड़ी प्रसन्नता हो रही थी। 

प्रश्न 16. 
मानो की आँखों में भय से उत्पन्न कातरता क्यों दिखाई दे रही थी? 
उत्तर : 
जब ठेकेदार असगर ने मानो को सूचना दी कि उसे सूबेसिंह ने दफ्तर में बुलाया था तो वह किसनी का हाल याद कर भयभीत हो उठी और अपनी असुरक्षा की भावना से वह बहुत व्याकुल हो गई। 

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प्रश्न 17. 
सूबेसिंह किसे देखकर और क्यों बिफर पड़ा था? 
उत्तर :
सूबेसिंह ने असगर के द्वारा मानो को बुलवाया था, परन्तु उसके स्थान पर जसदेव को आता देख वह आपे से बाहर हो उठा। उसे लगा कि जसदेव ने उसके आदेश को चुनौती दी थी। 

प्रश्न 18. 
मानो किसनी नहीं बनना चाहती थी। क्यों? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
मानो ने किसनी की जिंदगी को बरबाद होते देखा था। वह तो इज्जत की जिंदगी जीने पर दृढ़ थी। वह चाहती थी कि उसका एक अपना घर हो और वह समाज में सम्मान के साथ जीवन बिताए। 

प्रश्न 19.
"बामन तेरे हाथ की रोट्टी खावेगा .....अक्ल मारी गई तेरी! "सुकिया का यह कथन, समाज में व्याप्त किस मानसिकता की ओर संकेत करता है? 
उत्तर :
यह कथन समाज में व्याप्त ऊँच-नीच और खोखली अहंकार से पूर्ण मानसिकता की ओर संकेत करता है। . 

प्रश्न 20. 
सूबेसिंह ने सुकिया और मानो को नीचा दिखाने के लिए क्या षड्यंत्र रचा? 
उत्तर : 
सबेसिंह सकिया और मानो से चिढ़ा हआ था। उसने एक रात को मानो द्वारा पाथी गई ईंटों को तुड़वा डाला। इससे सुकिया और मानो को गहरा धक्का लगा। 

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प्रश्न 21. 
"चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।' सुकिया के इस कथन के पीछे छिपी उसकी मनोदशा को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
सूबेसिंह द्वारा ईंटें तुड़वा देने से सुकिया भीतर से टूट गया था। उसे लग रहा था जैसे सभी लोग उसके विरोधी हैं। उसका अपना घर बनाने का सपना चूर-चूर हो गया था। 

लयूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -

प्रश्न 1. 
ईंटें पकाने के लिए क्या-क्या कार्य करने पड़ते हैं? 
उत्तर : 
ईंट पकाने के लिए भट्टे के गलियारे में झरोखेदार कच्ची ईंटों की दीवार लगाई जाती है। ईंटों के बीच खाली जगह में पत्थर का कोयला, लकड़ी, बुरादा, गन्ने की खोई भरी जाती है। मजदूर मोरियों से कोयला, बुरादा डालते हैं। मोरी पर काम करना सबसे अधिक खतरनाक है इसमें मृत्यु का भय बना रहता है। 

प्रश्न 2. 
'खानाबदोश' कहानी में भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों का दयनीय चित्रण हुआ है। उसे अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर :
भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों की जिन्दगी बड़ी दयनीय थी। उन्हें दड़बेनुमा छोटी-छोटी झोंपड़ियों में रहना पड़ता था, जिसमें ढिबरियाँ जलती थीं। ईंटों से जोड़कर बनाए चूल्हों पर रोटियाँ सेकनी पड़ती थीं। दिनभर काम करने के बाद मजदूर दड़बे में घुस जाते थे। आपस में सुख-दुःख की बातें नहीं होती थीं। ऐसी दयनीय जिन्दगी वे जीते थे। 

प्रश्न 3. 
'अपने देश की रूखी रोटी भी परदेश के पकवानों से अच्छी होती है।' मानो के इस कथन को सुनकर सुकिया ने उसे क्या समझाया ? 
उत्तर : 
सुकिया समझाता अगर नर्क के समान दुखदायी अभाव भरी जिन्दगी से मुक्ति की चाह है तो अपने घर का त्याग करना ही होगा। अगर परदेश जाकर सुख मिलता है, अभावों से मुक्ति मिलती है तो घर का मोह छोड़ देना चाहिए। बुजुर्ग कहते थे आदमी की औकात का पता घर के बाहर जाने पर ही लगता है। 

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प्रश्न 4. 
'वह अपनी जिंदगी के ढर्रे को बदल लेगा।' सुकिया ने ऐसा क्यों सोचा? 
उत्तर : 
सुकिया और मानो भट्टे पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने आए थे। पहले महीने में ही परिश्रम करके उन्होंने कुछ रुपये बचा लिए थे। रुपयों को देखकर और बार-बार गिनकर उसे बहुत प्रसन्नता हुई थी। उसकी पत्नी मानो भी खुश थी। सुकिया ने सोचा होगा कि अब उन्हें नर्क की जिन्दगी नहीं जीनी पड़ेगी। अब ढंग बदलकर जीवन को जिया जाएगा। 

प्रश्न 5. 
सूबेसिंह व्यवहारकुशल नहीं था क्रूर था। उसकी क्रूरता का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर : 
मजदूरों के साथ सूबेसिंह का व्यवहार अच्छा नहीं था। भट्टे पर आते ही उसने अपना रौब दिखाना आरम्भ कर दिया। दफ्तर के बाहर एक अर्दली की ड्यूटी लगा दी। उसने अकारण ही जसदेव को लात-घूसों से मार-मार कर घायल कर दिया। वह विलासी था। उसने पहले किसनी के साथ अनैतिक सम्बन्ध स्थापित किए फिर मानो को भी जाल में फंसाने का प्रयत्न किया। 

प्रश्न 6. 
दुश्चरित्र सूबेसिंह ने किसनी को अपने जाल में कैसे फँसाया? 
उत्तर :
सूबेसिंह अय्याश और अहंकारी व्यक्ति था। उसने भट्टा मजदूर महेश की पत्नी किसनी को भट्टे के काम से हटा कर अपने दफ्तर के कामों पर रख दिया। उसने उसके साथ अनैतिक संबंध स्थापित किए। उसे तरह-तरह के वस्त्र, पैसा, कसनी अपने पति महेश को भुलाकर सुबेसिंह की सेवा में ही लगी रहने लगी। महेश के समझाने पर भी उसने सूबेसिंह का साथ नहीं छोड़ा। 

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प्रश्न 7. 
भट्ट खुलने पर सुकिया और मानो की क्या प्रतिक्रिया हुई? 
उत्तर : 
भट्टे से निकली लाल-लाल पकी ईंटों को देखकर सुकिया और मानो को अपार खुशी हुई। मानो अधिक प्रसन्न हुई और ईंटों को उलट-पलट कर देखती रही। अपने हाथ की पथी हुई ईंटों का बदला हुआ रंग देखकर मानो के मन में बिजली की तरह एक ख्याल कौंध गया था। उसके मन में भी अपने मकान का ख्याल आया। उसने उत्सुकता से सुकिया से पूछा कि एक घर में कितनी ईंटें लग जाती हैं।
 
प्रश्न 8. 
सूबेसिंह के हाथों पिटने के बाद जसदेव की सोच में क्या परिवर्तन आया? उसने ठेकेदार के समझाने पर क्या निर्णय लिया? 
उत्तर : 
जसदेव को सूबेसिंह से ऐसे दुर्व्यवहार की आशा नहीं थी। वह सूबेसिंह से डरने लगा। उसे लगा कि वह अचानक किसी षड्यंत्र में फंस गया तो सूबेसिंह से बिगाड़ कर भट्टे पर काम नहीं किया जा सकता था, यह बात अच्छी तरह उसकी समझ में आ गई। उसने सबेरा होने पर असगर से पूछा कि उसे क्या करना चाहिए। ठेकेदार ने भी उसे यही समझाया कि वह सुकिया और मानो के चक्कर में न पड़े। उसने यही किया। 

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1. 
ईंटों को देखते-देखते मानो के मन में बिजली की तरह क्या विचार कौंधा ? इस संदर्भ में सुकिया के साथ हए उसके वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर : 
भट्टा खुला और उसमें से पकी-पकी लाल-लाल ईंटें बाहर निकली। मानो और सुकिया को अपार प्रसन्नता हुई। अपने हाथ की पकी ईंटों को देखकर उसका मन खिल गया। ईंटों के देखते-देखते उसके मन में बिजली की तरह कि इन लाल-लाल ईंटों का हमारा भी घर हो; उत्सुकता से सुकिया से पूछा कि एक घर में कितनी ईंट लग जाती हैं ? सुकिया ने कहा कि कई हजार ईंट लगेंगी और लोहा, सीमेंट और लकड़ी भी चाहिए। मानो निराश हो गई, रात को सो नहीं सकी। मानो ने फिर पूछा, 'क्या हम इन पक्की ईंटों से घर नहीं बना सकते।' सुकिया ने उसे समझाया था कि मकान बनाने के लिए बहुत रुपए चाहिए। मानी ने कहा हर महीने कुछ बचाएँगे और मेहनत करेंगे। सुकिया ने उसकी बात सुनकर उसे समझाया कि सारी जिंदगी भी महनत करेंगे तो मकान बनाने लाइक पैसा इकट्ठा नहीं हो पाएगा। 

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प्रश्न 2. 
जसदेव द्वारा रोटी न लेने पर मानो ने क्या कहा? 
उत्तर : 
मानो जसदेव की अस्वस्थ स्थिति को देखकर उसे रोटी देने गई। जसदेव ने भूख नहीं है, का बहाना बनाकर रोटी नहीं ली। मानो ने पलटकर पूछा भूख नहीं है या और कोई बात है। तुम्हारे भइया कह रहे थे कि तुम बामन हो मेरे हाथ की रोटी नहीं खाओगे। हमारे-तुम्हारे बीच में ‘बामन' कहाँ से आ गया। तुम हमारे साथ काम करते हो, हम जैसे ही हो और मेरे लिए पिटे हो, तुम भूखे हो औरत होने के कारण तुम्हारा दु:ख देखकर रोटी लाई हूँ। अगर बामन होने के कारण रोटी नहीं ले रहे हो तो मैं जोर नहीं दूंगी। इतना कहकर उसका गला रुंध गया। 

प्रश्न 3. 
सुकिया ने मानो की आँखों से बहते तेज अंधड़ों को देखा और उनकी किरकिराहट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के टूट जाने की आवाज उसके कानों को फाड़ रही थी।" प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
विलासी सूबेसिंह ने मानो को अपने दफ्तर में बुलाया लेकिन वह गई नहीं। इससे सूबेसिंह असन्तुष्ट हो गया था और उसने सुकिया और मानो को परेशान करना आरम्भ कर दिया। सुकिया और मानो ने बड़े परिश्रम से ईंटें पाथी थीं। सुबह जल्दी उठकर वह काम पर गई। अपनी ईंटों को टूटा हुआ देखकर उसका दिल बैठ गया। ईंटों की दयनीय स्थिति देखकर उसका दिल बैठ गया। ईंटों की दयनीय स्थिति देखकर उसकी चीख निकल गई। 

वह दहाड़ें मारकर रोने लगी। मानो का रोना सुनकर सुकिया भी आ गया। उसकी भी हिम्मत टूट गई। सुकिया ने मानो की आँखों से तीव्र गति से बहते आँसुओं को देखा। उसे लगा जैसे तीव्र अंधड़ आने पर आँखों में धूल पड़ जाती है और आँखों में किर-किराहट के कारण पीड़ा होने लगती है उसी प्रकार मानो के आँसुओं को देखकर उसके हृदय में पीड़ा होने लगी। मानो का रुदन सुकिया के हृदय को विदीर्ण कर रहा था। मानो का मकान बनाने का सपना चूर-चूर हो गया था। वह हतप्रभ सा कभी ईंटों को और कभी मानो की ओर कभी ईंटों को देख रहा था। 

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प्रश्न 4. 
'खानाबदोश' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
इस कहानी में समाज के मजदूर वर्ग की गरीबी, असुरक्षा और पूँजीपति वर्ग द्वारा उसके शोषण को सामने लाया गया है। लेखक चाहता है कि मजदूर परस्पर संगठित हों और अपने साथ होने वाले अन्यायों का विरोध करें। मजदूर जाति प्रथा से मुक्त हों और अपनी एक ही जाति समझें। म वर्ग ईमानदारी से काम करने पर भी मालिक उसे उचित मजदूरी नहीं देता, उन्हें बँधुआ मजदूर बनाकर रखता है। पूँजीपति मालिक मजदूरों की स्त्रियों का यौन शोषण भी करते हैं। मजदूर वर्ग जातिवाद की मानसिकता से घिरा हुआ है। उनमें ऊँच-नीच का भाव विद्यमान है। वह खानाबदोश जीवन बिताने को मजबूर हैं। कोरोना संकट ने मजदूरों की दयनीय स्थिति को उजागर कर दिया है। कहानीकार मजदूर वर्ग के प्रति समाज में सहानुभूति जगाना चाहता है। 

प्रश्न 5. 
'खानाबदोश' कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए। 
उत्तर :
जिन लोगों का एक जगह ठिकाना न हो, एक जगह टिकाव नहीं और रोजगार के लिए इधर से उधर भटकते फिरें, उन्हें खानाबदोश कहते हैं। कहानी का मुख्य पात्र सुकिया और मानो की स्थिति इसी प्रकार की है। सुकिया अपना घर छोड़कर भट्टे पर काम करने आया है किन्तु सूबेसिंह के अत्याचारों के कारण उसे भट्टा छोड़ना पड़ा और रोजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ा। कहानी में भट्टा मजदूरों की ऐसी ही स्थिति दिखाई गई है इसलिए कहानी का शीर्षक सार्थक है। शीर्षक संक्षिप्त है और जिज्ञासा जाग्रत करने वाला है। 

प्रश्न 6. 
खानाबदोश कहानी के आधार पर सकिया और मानो के चरित्र की तुलना कीजिए। 
उत्तर : 
सुकिया और मानो 'खानाबदोश' कहानी के प्रमुख पात्र हैं। वे पति-पत्नी हैं किन्तु उनके चरित्रों में कुछ भिन्नताओं के साथ कुछ समानताएँ भी दिखाई देती हैं। 
समानताएँ - 

  1. सुकिया और मानो मेहनती मजदूर हैं। वे अपने हफ्तेभर के ही काम से ठेकेदार असगर पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं। असगर उन्हें ईंट पाथने का साँचा देकर उन पर अपना विश्वास प्रकट करता है। 
  2. सुकिया और मानो के बीच काम में तालमेल दिखाई देता है। ईंट पाथने के काम को दोनों मिलकर सफाई और शीघ्रता से सम्पन्न करते हैं। 
  3. दोनो अपनी मेहनत के सुफल को देखकर प्रसन्न और संतुष्ट होते दिखाई देते हैं। 
  4. दोनों के मन में कठोर परिश्रम के बाद भी बहुत कम बचत होने का पछतावा बना रहता है।। 
  5. दोनों ही अपने आत्मसम्मान और सुरक्षा के प्रति संवेदनशील हैं। 

भिन्नताएँ -
पति-पत्
नी के बीच कुछ स्वभावगत भिन्नताएँ भी दृष्टिगत होती हैं 

  1. सुकिया पुरुष है। अतः वह परिस्थिति के अनुसार अपने को ढाल लेता है किन्तु मानो में स्त्री सुलभ भावुकता है। वह एक महीना बीत जाने पर भी भट्टे की जिंदगी से तालमेल नहीं बना पाती। 
  2. सुकिया जीवन में आगे बढ़ने के लिए कठोर निर्णय लेने में देर नहीं करता लेकिन मानो गाँव की सूखी रोटी को ही पकवान समझती रहती है। 
  3. मानो को पक्की ईंटों से बना एक छोटा-सा घर चाहिए लेकिन सुकिया घर बनाने में होने वाले व्यय को जानता है और मानों को व्यर्थ के सपने देखने से मना करता रहता है। 
  4. इसी प्रकार मानो द्वारा जसदेव का बेहाल और भूखा रहना नहीं देखा जाता किन्तु सुकिया जसदेव और अपने बीच जातिगत भिन्नता की अनदेखी नहीं कर पाता है। 

इस प्रकार कहानीकार ने सुकिया और मानो के चरित्रों के स्वाभाविक विकास को पूरा अवसर प्रदान किया है। 

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खानाबदोश Summary in Hindi

लेवक परिचय :

ओम प्रकाश वाल्मीकि का जन्म उत्तर प्रदेश के मजफ्फरनगर जिले के बरला नामक गाँव में हआ था। आपका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ। अध्ययन काल में उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्टों को सहन करना पड़ा। ओम प्रकाश वाल्मीकि कुछ समय महाराष्ट्र में रहे, वहाँ वे दलित साहित्यकारों के सम्पर्क में आए, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इन्हें 1993 में डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार, 1995 में 'परिवेश सम्मान' से सम्मानित किया गया। 2004 'जूठन' के अंग्रेजी संस्करण को 'न्यू इंडिया बुक', पुरस्कार प्रदान किया गया। 'सदियों का संताप', 'बस बहुत हो चुका' कविता संग्रह हैं। 'सलाम', 'घुसपैठिये' कहानी संग्रह हैं तथा 'दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र' और 'जूठन' आत्मकथा हैं। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहपूर्ण है। इनकी रचनाओं में भारतीय समाज में व्याप्त जातीय अपमान एवं उत्पीड़न का चित्रण किया गया है। अन्य रचनाओं में समाज में व्याप्त ऐसी समस्याओं का उल्लेख किया गया है। जिसका अन्य दलित साहित्य में कहीं भी वर्णन नहीं किया गया है।

संक्षिप्त कथानक - 

मुखतार सिंह के ईंटों के भट्टे पर तीस मजदूर काम करते थे। सुकिया और मानो भी वहीं ईंट पाथते थे। मजदूर दड़बेनुमा झोपड़ियों में रहते थे। सुकिया और मानो अधिक परिश्रम करके अधिक ईंटें पाथते थे। उनकी अभिलाषा ईंटों का पक्का मकान बनाने की थी। जसदेव भी उनके साथ काम करने लगा। 

मुखतार सिंह का बेटा सूबेसिंह भट्टे पर आने लगा। वह क्रोधी और विलासी था। तीन महीने पहले महेश और किसनी भट्टे पर आए थे। विलासी सूबेसिंह ने किसनी को अपने दफ्तर में रख लिया और अनुचित सम्बन्ध स्थापित कर लिया। महेश को दुख होता। उसने शराब पीना आरम्भ कर दिया। सूबेसिंह ने मानो को भी जाल में फंसाना चाहा पर वह उसके चंगुल में नहीं आई। सूबेसिंह ने सुकिया और मानो को बहुत परेशान किया। आखिर मानो को भट्टा छोड़ना पड़ा और खानाबदोश की तरह भटकना पड़ा। 

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कहानी का सारांश :

ईंट पाथने का काम - मुखतार सिंह का ईंट का भट्टा था जिस पर 30 मजदूर काम करते थे। भट्टे पर सुखिया और मानो भी ईंट पाथते थे। सुकिया की बनाई कच्ची ईंटें पकने के लिए भट्टे में लगाई जा रही थीं। हजारों ईंटों को भट्टे के गलियारे में लगा दिया। भट्टे की मोरी पर काम करना खतरनाक कार्य था। हजार ईंट पाथने की रेट से मजदूरी मिलती थी। 

मजदूरों का जीवन - मजदूरों की दड़बेनुमा छोटी-छोटी झोंपड़ियाँ थीं जिनमें झुककर अन्दर जाना पड़ता था। अँधेरा दूर करने के लिए डिबरियाँ जलाई जाती। भट्टे के काम के बाद औरतें चूल्हा-चौका सँभाल लेती। उनका हृदय दुश्चिताओं और तकलीफों से घिरा रहता। रात में साँप-बिच्छु का डर बना रहता था। 

मानों की मनोदशा - मानो भट्टे की जिन्दगी से तालमेल नहीं बैठा पाई थी। साँझ होते ही मजदूर अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते। चारों तरफ सन्नाटा छा जाता। मानो का जी घबराने लगता। वह अपने देश वापिस लौट जाना चाहती थी। सुकिया उसकी बात नहीं मानता था। 

दोनों का भट्टे पर आना - गाँव की जिन्दगी छोड़कर वे असगर ठेकेदार के साथ भट्टे पर आए थे। सुकिया ने मानो को समझा दिया था कि गाँव की जिन्दगी नर्क की है। बुजुर्गों ने बताया था कि आदर्मी की औकात बाहर ही पता चलती है। घर में तो सभी पहलवान हैं। गाँव का चौधरी शहर में अफसरों के सामने बकरियों की तरह मिमियाता है और गाँव में अपना रौब दिखाता है। इस कारण दोनों भट्टे पर आए थे। 

मानो की अभिलाषा - भट्टे से निकली लाल-लाल ईंटों को देखकर सुकिया और मानो को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। ईंटों को देखकर मानो के मन में भी विचार आया क्या हम पक्की ईंटों का घर नहीं बना सकते ? एक महीने में सुकिया ने कुछ रुपये बचा लिए थे, जिन्हें देखकर दोनों प्रसन्न थे। वे और मेहनत करने लगे। उनके साथ जसदेव नाम का मजदूर भी काम करने लगा था। 

सूबेसिंह का स्वभाव - सूबेसिंह मुखतार सिंह का बेटा था। वह क्रूर और विलासा था। उसने भट्टे का माहौल ही बदल दिया। ठेकेदार भी उससे डरता था। उसने महेश की पत्नी किसनी पर डोरे डाले। उसे सुविधा दी और उसके साथ गलत सम्बन्ध स्थापित किए। उसने मानो को भी जाल में फंसाने का प्रयास किया। सुकिया और मानो को बहुत तंग किया।

महेश और किसनी की स्थिति - महेश और किसनी तीन महीने पहले ही भट्टे पर आए थे। सूबेसिंह किसनी के सौन्दर्य पर मोहित हो गया। उसने किसनी को अपने दफ्तर में रख लिया। वह उसे अपने साथ बाहर भी ले जाता। किसनी का व्यवहार बदल गया। महेश शराब पीने लगा और गुमसुम अलग रहने लगा। किसनो के व्यवहार से महेश दुःखी रहने लगा। 

मानो की मनःस्थिति - किसनी की अस्वस्थता के कारण सूबेसिंह ने मानो को दफ्तर बुलाया। मानो और सुकिया दोनों चिन्तित हो गए। सुकिया और मानो की मन:स्थिति देखकर जसदेव दफ्तर चला गया। सूबेसिंह ने क्रोध में उसे पीटा और उसे घायल कर दिया।

मानो की सहृदयता - मानो को जसदेव के पिटने और घायल होने का दु:ख था। मानो के कारण ही उसकी यह दशा हुई थी। वह उस के लिए रोटी लेकर गई थी किन्तु ब्राह्मण होने के कारण जसदेव ने उसकी रोटी नहीं खाई। सुकिया और मानो को दुःख हुआ, दोनों ने बहुत कम खाना खाया। 

जसदेव का व्यवहार - जसदेव ने ब्राह्मण होने के कारण मानो के हाथ की रोटी नहीं खायी। असगर ठेकेदार के समझाने पर कि अपने काम से काम रखो, इनके पचड़े में मत फँसो। यह सुनकर जसदेव का उनके प्रति व्यवहार बदल गया। सुकिया का साँचा मिलने पर उसका व्यवहार बदल गया और वह हुकुम चलाने लगा। 

परेशानियों का पहाड़ - मानो ने सूबेसिंह के पास जाने से मना कर दिया। इस पर सूबेसिंह क्रोधित हो गया और सुकिया तथा मानो को कष्ट देने लगा। उनकी मजदूरी देने के लिए मना कर दिया। मानो की बनाई हुई कच्ची ईंटें तोड़ दी गईं। सुकिया को ईंट पाथने से हटा दिया और मोरी पर लगा दिया जो सबसे कठिन और जोखिम का काम था। दोनों की पक्का मकान बनाने की इच्छा मिट्टी में मिल गई। इस परेशानी के कारण दोनों ने भट्टे का काम छोड़ दिया और जीविका की तलाश में निकल पड़े। खानाबदोश की तरह जीविका की तलाश में भटकते रहे। 

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कठिन शब्दार्थ :

  • तरकीब से = सही या व्यवस्थित रूप से। 
  • मुआयना = निरीक्षण। 
  • ड्यूटी = काम। 
  • दिहाड़ी मजदूर = प्रतिदिन की मजदूरी पर काम करने वाला मजदूर। 
  • गहमा-गहमी = हलचल। 
  • दड़बेनुमा = मुर्गियों के घोंसलों जैसे। 
  • पसरी = छाई हुई। 
  • दुश्चिताएँ = अप्रिय विचार। 
  • तालमेल = सही संबंध।
  • माहौल = वातावरण। 
  • औकात = सामर्थ्य, योग्यता। 
  • सूरमा = शूर, वीर। 
  • मिमियाना = दीनता दिखाना, बकरियों की तरह आवाज निकालना। 
  • तसल्ली = संतुष्टि। 
  • तगारी = मिट्टी का गारा, सनी हुई मिट्टी।
  • दिहाड़ी = दैनिक मजदूरी। 
  • रौब-दाव = अहंकार और दबाव। 
  • भीगी बिल्ली = बहुत डरा हुआ। 
  • अर्दली = चपरासी या कार्यालय के द्वार पर नियुक्त व्यक्ति। 
  • कानाफूसी = कान में धीरे से बोलना। 
  • गुम-सुम - चुप रहना। 
  • जिस्म = शरीर। 
  • नीरस = रूखी। 
  • महक = गंध। 
  • अस्तित्व = स्वरूप, होना। 
  • लत = बुरी आदत। 
  • गमक उठना = गूंजना। 
  • राहत = चैन। 
  • तत्काल = तुरंत। 
  • अनमनी = अधूरे मन से।
  • स्याहपन = कालिमा, अंधकार। 
  • जेहन = मन। 
  • शिद्दत = तेजी। 
  • पुख्ता = दृढ़, मजबूत। 
  • अहसास = अनुभव। 
  • अवसाद = दुख। 
  • मासूमियत = भोलापन। 
  • ताज्जुब = आश्चर्य। 
  • बवंडर = आँधी, व्याकुलता। 
  • कुलबुलाते = उत्पन्न होते। 
  • भड़ास = क्रोध, विरोध। 
  • निढाल = थकी-सी। 
  • अंजाम = परिणाम, नतीजा। 
  • घिघ्यी बँधना = बहुत डर जाना। 
  • हड़बड़ाना = घबरा जाना। 
  • मछली का फंसाना = (मुहा.) लोभ या लालच दिखाना। 
  • आक्रोश = भड़क उठना। 
  • वजूद = हस्ती, होने का प्रमाण। 
  • खसम = पति। 
  • अपशब्द = बुरे शब्द। 
  • झन्नाटेदार = बहुत जोर का। 
  • अवचेतन में = मन की यादों में। 
  • अदम्य = न दबने वाली।
  • लालसा = तीव्र इच्छा। 
  • दहशत = डर युक्त घबराहट। 
  • अनिच्छा से = बिना इच्छा के। 
  • गुमसुम = चुप। 
  • आश्वस्त = विश्वास युक्त, चिंतारहित। 
  • जिनावर = जानवर। 
  • पोर-पोर = हर हिस्सा।
  • टूट रहा था = दुख रहा था। 
  • मेरी खातिर = मेरे कारण। 
  • अहसास = अनुभव। 
  • गुस्सैल = क्रोध से भरा। 
  • पचड़ा = झंझट। 
  • प्रतिक्रिया = प्रभाव। 
  • जाहिर = प्रकट। 
  • सहजता = स्वाभाविकता। 
  • फासला = दूरी। 
  • बाधक = रुकावट। 
  • ज्यादतियाँ = अनुचित व्यवहार। 
  • अवाक = मुँह से बोली न निकल पाना। 
  • दयनीय = जिसे देखकर दया आ जाए। 
  • बौरा गई = पागल-सी हो गई। 
  • धराशायी = धरती पर गिरा हुआ। 
  • अंधड़ = तेज आँधी। 
  • किरकिराहट = आँखों में धूल के कण जाने से होने वाला अनुभव। 
  • अंतर्मन = हृदय, भीतरी मन। 
  • खानाबदोश = जिसका कोई अपना घर न हो। 
  • बेतरतीब पल = अव्यवस्थित समय। 
  • पसीने के अक्स = मेहनत के पसीने से भरे दिन। 
  • पड़ाव = रास्ते में ठहरने का स्थान। 
  • दिशाहीन यात्रा = जिस यात्रा का कोई लक्ष्य न हो। 

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महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्यारव्याएँ - 

1. एक कतार में बनी छोटी-छोटी झोंपड़ियों में टिमटिमाती ढिबरियाँ भी इस अँधेरे से लड़ नहीं पाती थीं। दड़बेनुमा झोंपड़ियों में झुककर घुसना पड़ता था। झुके-झुके ही बाहर आना होता था। भट्टे का काम खत्म होते ही औरतें चूल्हा-चौका सँभाल लेती थीं। कहने भर के लिए चूल्हा-चौका था। ईंटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-पिट जैसे मन में पसरी दुश्चिताओं और तकलीफों की प्रतिध्वनियाँ थी। 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अंतरा भाग-1' नामक पुस्तक की कहानी 'खानाबदोश' से ली गई हैं। इसके लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि हैं। 

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों के रहन-सहन एवं उनकी झोंपड़ियों का वर्णन किया है। मजदूर किस तरह कठिन जीवन जीते हैं, इसका यथार्थ दर्शन कराया गया है। 

व्याख्या - भट्टे पर काम करने वालों की झोंपड़ियों छोटी-छोटी थीं और एक कतार में बनी थीं। वे झोंपड़ियाँ इतनी छोटी थीं कि उनमें सीधे खड़े होकर न तो अन्दर जा सकते थे और न सीधे बाहर आ सकते थे। इन झोंपड़ियों में प्रकाश का अभाव था, सदैव अँधेरा ही रहता था। रात के सघन अंधकार को दूर करने के लिए इनमें ढिबरियाँ जलती थीं, किन्तु उनसे अन्धकार दूर नहीं होता था। भट्टे के कार्य से छुट्टी पाकर औरतें चूल्हे व चौके के कार्य में व्यस्त हो जाती थीं। ईंटों को जोड़कर चूल्हा बनाया गया था। 

साधन के अभाव में ऐसे ही चूल्हे पर रोटियाँ बनानी पड़ती थीं। इन चूल्हों में लकड़ियाँ जलती थीं जिनसे चिट-पिट कर ध्वनि निकलती थी, मानो वह लकड़ियों के जलने की ध्वनि नहीं थी बल्कि मजदूरों के हृदय की चिन्ताओं और परेशानियों की प्रतिध्वनि थी। मजदूरों के हृदय में जो चिन्ताएँ और परेशानियाँ भाव रूप में विद्यमान थीं यह चिट-पिट उन भावों का मानो प्रत्यक्ष रूप था। मजदूरों का सारा जीवन अनिश्चित था। 

विशेष : 

  1. भट्टे के आसपास के परिदृश्य का यथार्थ और सजीव चित्रण है। मजदूरों के कष्टपूर्ण जीवन का वर्णन है।
  2. लकड़ियों की चिट-पिट को मजदूरों के भावों की प्रतिध्वनि बताया है। 
  3. भाषा मिश्रित शब्दावली युक्त है। 
  4. शैली वर्णानात्मक तथा चित्रांकनमयी है। 

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2. नर्क की जिन्दगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा। मानो की हर बात का एक ही जवाब था उसके पास बड़े-बूढ़े कहा करे हैं कि आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखणे पे ही पता चले है। घर में तो चूहा भी सूरमा बणा रह। 

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण अंपरा भाग-में संकलित ओम प्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'खानाबदोश' से उद्धृत है। 

प्रसंग - सुकिया और मानो एक महीना पूर्व भट्टे पर काम करने आए थे। भट्टे के नीरस और कष्टपूर्ण वातावरण को देखकर मानो का वहाँ मन नहीं लगा। वह अपने देश लौट जाना चाहती थी। सुकिया उसे समझाता था कि घर से निकलकर ही कुछ किया जा सकता है। 

व्याख्या - मानो का मन भट्टे के वातावरण में नहीं लग पाया था। वह कहती थी अपनी जगह की रूखी रोटी पराये देश के पकवान से अच्छी है। सुकिया मानो को सान्त्वना देता और समझाता था। वह समझता था कि कष्टपूर्ण जिन्दगी से घुटकारा पाने और कुछ प्राप्त करने के लिए त्याग करना ही पड़ेगा। जबतक व्यक्ति त्याग नहीं करेगा उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। वह बुजुर्गों का उदाहरण देकर मानो को सान्त्वना देता था। 

वह समझाता कि बुजुर्ग ऐसा कहते हैं, जब तक व्यक्ति बाहर नहीं निकलता उसकी क्षमता उसकी शक्ति का पता नहीं लगता। बाहर जाकर ही पता लगता है कि उसमें कार्य करने की कष्ट सहन करने की कितनी क्षमता है। घर में तो सभी अपने आप को शक्तिशाली समझते हैं। कमजोर व्यक्ति भी घर में शेर बनकर रहता है। सुकिया मानो को भट्टे पर काम करने और कुछ कमाने की बात समझाता है।
 
विशेष : 

  1. घर में रहकर कष्ट झेलने की अपेक्षा बाहर ही जाना चाहिए। इसे स्पष्ट किया है। 
  2. कुछ पाने के लिए कष्ट उठाना पड़ता है। 
  3. राजस्थानी भाषा का पुट है। भाषा सरल है। 

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3. महेश गुमसुम-सा अलग-अलग रहने लगा था। साँवले रंग की, भरे-पूरे जिस्म की किसनी का व्यवहार महेश के लिए दुःखदाई हो रहा था। वह दिन भर दफ्तर में घुसी रहती थी। उसकी खिलखिलाहट दफ्तर से बाहर तक सुनाई पड़ने लगी थी। महेश ने उसे समझाने की कोशिश की थी। लेकिन वह जिस राह पर चल पड़ी थी वहाँ से लौटना मुश्किल था। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा' भाग-1 में संकलित, ओम प्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'खानाबदोश' से लिया गया है। 

प्रसंग - भट्टे के मालिक मुखतार सिंह के भट्टे पर एक मजदूर महेश और उसकी पत्नी किसनी काम करते थे। मुखतार के अय्याश बेटे की बुरी नजर किसनी पर पड़ी और उसने उसे अपने मनोरंजन का साधन बना लिया। अंश में महेश की मनोदशा का वर्णन है।

व्याख्या - जब से किशनी सूबेसिंह के दफ्तर में जाने लगी तभी से पति महेश की मानसिक दशा में विकार आने लगा था। वह गुमसुम-सा बना रहता था। सबसे अलग-थलग रहने लगा था। किसनी के साँवले और आकर्षक स्वरूप ने उसे सूबेसिंह की कृपा पात्र बना दिया था। वह महेश की उपेक्षा-सी करने लगी थी। इससे महेश मन-ही-मन बड़ा दुःखी रहने लगा था। किसनी सूबेसिंह के दफ्तर में ही सारे दिन घुसी रहती थी। 

धीरे-धीरे वह खुलकर जोर से हँसने लगी थी। उसकी यह खिलखिलाहट बाहर सभी मजदूर भी सुनते थे। महेश के लिए यह स्थिति बड़ी अपमानजनक बन गई थी। उसने किसनी को उस जाल से निकलने को काफी समझाया, लेकिन वह नादान जिस रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थी, उससे वापस लौटना कभी संभव नहीं हो पाता। व्यक्ति चाहे तो भी दाम्पत्य जीवन को नष्ट कर देने वाली इस स्थिति से नहीं बच पाता। महेश ने गम को गलत करने लिए नशा करना आरम्भ कर दिया था 

विशेष :

  1. सम्पन्न लोग गरीबों की गरीबी का किस तरह अपने मनोरंजन की वस्तु बना लेते हैं, किस तरह हँसते-खेलते परिवारों को ध्वस्त कर देते हैं, इसका मार्मिक चित्रण गद्यांश में हुआ है। 
  2. भावानुकूल भाषा और प्रभावशाली वर्णन शैली का उपयोग हुआ है। 
  3. लेखक ने जीवन के कुछ कठोर सेत्यों को इस अंश में सहजता से प्रस्तुत किया है। 

4. "लाल-लाल पक्की ईंटों को देखकर सुकिया और मानो की खुशी की इंतहा नहीं थी। खासकर मानो तो ईंटों को उलट-पुलट कर देख रही थी। खुद के हाथ की पथी ईंटों का रंग ही बदल गया था। उस दिन ईंटों को देखते-देखते ही मानो के मन में बिजली की तरह एक खयाल कौंधा था। इस खयाल के आते ही उसके भीतर जैसे एक साथ कई-कई भट्टे जल रहे थे।" 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'खानाबदोश' कहानी से ली गई हैं। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। इसके लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि हैं। 

प्रसंग - भट्टा खुलने के बाद उसमें से निकली लाल-लाल ईंटों को देखकर सुकिया और मानो को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। ईंटों को देखकर मानो के मन में जो विचार जागा, उसी का वर्णन उपर्युक्त पंक्तियों में किया गया है।

व्याख्या - भट्टे से ईंटें निकालने का कार्य आरम्भ हुआ। भट्टे में से पक्की-पक्की लाल-लाल ईंटें निकलीं। उन ईंटों को देखकर सुकिया और मानो को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। उन्हें देखकर मानो को सबसे अधिक प्रसन्नता हुई क्योंकि वे ईंटें उसके हाथ की पाथी हुई थीं। मानव स्वभाव की विशेषता है कि व्यक्ति अपने हाथ की बनी वस्तु को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होता है। मानो की प्रसन्नता का भी यही कारण था। 

वह खुशी के कारण उन ईंटों को उलट-पलट कर देख रही थी। उन ईंटों को उसने पाथा था, इस कारण उनके प्रति उसका लगाव और आकर्षण अधिक था। उसे यह देखकर और भी आश्चर्य हुआ कि उसके हाथ की पथी ईंटों का रंग ही बदल गया था। उन ईंटों को देखकर मानो के मन में यकायक एक विचार उसी प्रकार उभरा जैसे बादलों के बीच में अचानक बिजली चमक जाती है। उस विचार के उभरते ही उसके मन में भी कल्पनाओं के साकार होने की आशाएँ चमक उठी थीं। उसने कई भट्टों की कल्पना की जिनसे बहुत सारी पक्की-पक्की लाल ईंटें निकलेंगी और उसका भी अपना मकान होगा। 

विशेष : 

  1. मानो की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं का स्वाभाविक रूप प्रस्तुत हुआ है। 
  2. भाषा सरल और भावानुकूल है। 

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5. "झींगुरों की झिन-झिन और बीच-बीच में सियारों की आवाजें रात के सन्नाटे में स्याहपन घोल रही थीं। थके-हारे मजदूर नींद की गहरी खाइयों में लुढ़क गए थे। मानो के खयालों में अभी भी लाल-लाल ईंटें घूम रही थीं। इन ईंटों से बना हुआ एक छोटा-सा घर उसके जेहन में बस गया था। यह खयाल जिस शिद्दत से पुख्ता हुआ था, नींद उतनी ही दूर चली गई थी।" 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'खानाबदोश' कहानी से ली गई हैं, जिसके लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि हैं। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है।

प्रसंग - मानो के मन में ईंटों को देखकर अपना मकान बनाने की इच्छा प्रबल हो गई थी। इन पंक्तियों में भट्टे के आस-पास के वातावरण और मानो की मनोदशा का वर्णन है। 

व्याख्या - रात्रि में भट्टे के आस-पास सघन अँधेरा व्याप्त हो गया था। प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी। रात होने के कारण चारों तरफ सन्नाटा व्याप्त हो गया था। झींगुरों की झिन-झिन की आवाज उस अंधकार में सुनाई दे रही थी। चारों तरफ खामोशी थी और आवाज सुनाई दे रही थी। दिनभर परिश्रम करने के कारण मजदूर थककर गहरी नींद में सो गए थे। मजदूर सो गए थे किन्तु मानो की आँखों में नींद नहीं थी। मानो की नींद उससे कोसों दूर भाग गई। उसके दिमाग में मकान बनाने का विचार बार-बार आ रहा था। उसकी आँखों के सामने तो भट्टे से निकली लाल-लाल ईंटें ही घूम रही थीं। उसके मस्तिष्क में छोटे से मकान का विचार तीव्रता से उथल-पुथल मचा रहा था। वह अशान्त थी। इस कारण उसकी नींद मानो उससे दूर चली गई थी।
 
विशेष :  

  1. घोर अँधेरे, झींगुरों की झंकार तथा सियारों की आवाजों के द्वारा रात्रि की भयावहता को साकार किया गया है। 
  2. मानो की मनोदशा का चित्रण है। 
  3. भाषा सरल और सुबोध है। शिद्दत जैसे विदेशी शब्द का प्रयोग है। 

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6. इन ईंटों पर म्हारा कोई भी हक ना है.....क्यूँ.... ? मानो ने ताज्जुब भरी कड़वाहट से कहा। उसके अंदर बवंडर मचल रहा था। कुछ देर की खामोशी के बाद मानो बोली, “हर महीने कुछ और बचत करें ....... ज्यादा ईंटें बनाएँ ....... तब ? ......... तब भी अपणा घर नहीं बणा सकते ?" अपने भीतर कुलबुलाते सवालों को बाहर लाना चाहती थी मानो।

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित ओम प्रकाश बाल्मीकि की कहानी 'खानाबदोश' से लिया गया है। 

प्रसंग - भट्टे से निकली लाल-लाल ईंटों को देखकर मानो विचारों की दुनिया में खो गई। वह सोचने लगी ऐसी पक्की ईंटों से वे अपना घर क्यों न बनाएँ, लेकिन सुकिया ने उसे बता दिया कि वह असम्भव कल्पना थी। ढेर सारे रुपये चाहिए थे मकान बनाने के लिए। उन ईंटों पर उनका कोई हक नहीं था। 

व्याख्या - सुकिया की बात से मानो को आश्चर्य भी हुआ और उसका मन अपनी असमर्थता देखकर कड़वाहट से भर गया। उसके भीतर असंतोष और खीझ की आँधी-सी घुमड़ रही थी। हर कीमत पर वैसी ही ईंटों का बना घर चाहती थी। कुछ देर वह चुप रही और फिर पूछने लगी कि उन ईंटों पर जो उन्होंने पाथी हैं, उनका कोई हक नहीं बनता था ? अगर वे कुछ महीने कड़ी मेहनत से और रुपए बचाएँ और अधिक ईंटें बनाएँ, क्या तब भी वे अपना घर नहीं बना सकते थे ? उसे सच्चाई का अनुभव नहीं था। वह क्या जाने कि अपना घर बनाने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। उसे लगता था कि कड़ी मेहनत और बचत से उनका मकान अवश्य बन जाएगा। उसके मन में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे थे। वह उन सबको सुकिया के सामने प्रकट करना चाह रही थी। 

विशेष :

  1. 'मानो' के माध्यम से समाज के मजदूर वर्ग की आर्थिक स्थिति की दययिता से परिचय कराया गया है। 
  2. 'पूरे महीने हाड़तोड़ परिश्रम करने पर भी जब दम्पत्ति कुल अस्सी रुपए बचा पाएगा तो उसके साधारण सपने भी कैसे पूरे होंगे ? इस कटु सत्य की ओर संकेत है।
  3. संवाद, पात्रों के चरित्र को प्रकाशित करने वाले हैं।
  4. भाषा की पारिभाषिकता (भट्टे से संबंधित शब्दावली) और आंचलिकता (मानो और सुकिया द्वारा बोले गए शब्दों में) कथ्य को प्रभावशाली बना रही है। 

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7. मानो भी गुमसुम अपने आपसे ही लड़ रही थी। बार-बार उसे लग रहा था कि वह सुरक्षित नहीं है। एक सवाल उसे खाए जा रहा था क्या औरत होने की यही सजा है ? वह जानती थी कि सुकिया ऐसा-वैसा कुछ नहीं होने देगा। वह महेश की तरह नहीं है। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश 'अंतरा भाग-1' की कहानी 'खानाबदोश'. से उद्धृत है। इसके लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि हैं। 

प्रसंग - सूबेसिंह द्वारा जसदेव की पिटाई की घटना ने मानो को भयभीत कर दिया था। उसे भय था कि सूबेसिंह उसे तंग करने के लिए, उसकी इज्जत लूटने के लिए कोई नई चाल चल सकता है। प्रस्तुत अंश में मानो की मन:स्थिति का वर्णन है। 

व्याख्या - सूबेसिंह के व्यवहार को सोचकर मानो भयभीत थी। वह शान्त बैठी थी, किन्तु उसे मन में अनेक विचार आ रहे थे। मानो के मन में आशंका थी। सूबेसिंह की क्रूरता का विचार उसे विचलित कर रहा था। उसे रह-रह कर अपने भविष्य की चिन्ता हो रही थी। वह सोचती थी कि सूबेसिंह कभी भी अभद्र व्यवहार कर सकता है। वह उससे बचना चाहती थी। उसके मस्तिष्क में बार-बार एक प्रश्न उठ रहा था. क्या स्त्री होना पाप है? क्या स्त्री परुष की हवश का शिकार होने के लिए ही पैदा हुई है? क्या मुझे भी यही सजा मिल रही है? क्या मुझे सूबेसिंह की विलासी प्रवृत्ति का शिकार होना पड़ेगा। क्या मैं उससे अपनी रक्षा नहीं कर सकूँगी। पर उसे विश्वास था कि उसका पति सुकिया ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं होने देगा। 

विशेष : 

  1. मानो की मनोदशा का चित्रण है। 
  2. नारी की विवशता का चित्रण है। 
  3. भाषा सरल एवं परिस्थिति के अनुकूल है। 

8. "भट्टे से उठते काले धुएँ ने आकाश तले एक काली चादर फैला दी थी। सब कुछ छोड़कर मानो और सुकिया . चल पड़े थे। एक खानाबदोश की तरह, जिन्हें एक घर चाहिए था, रहने के लिए। पीछे छूट गए थे कुछ बेतरतीब पल, पसीने के अक्स जो कभी इतिहास नहीं बन सकेंगे। खानाबदोश जिन्दगी का एक पड़ाव था यह भट्टा।"

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ओम प्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'खानाबदोश' से उद्धृत है। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' . में संकलित है। 

प्रसंग - सूबेसिंह ने सुकिया और मानो द्वारा पाथी हुई ईंटों को नष्ट कर दिया। असगर ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मजदूरी देने से मना कर दिया। जसदेव और अन्य मजदूरों ने उनका साथ नहीं दिया तब विवश होकर दोनों भट्टा छोड़कर खानाबदोश : की जिन्दगी जीने के लिए चल दिए। 

व्याखा-सुकिया और मानो का ईंटों से बने मकान में रहने का सपना टूट गया था। सुकिया और मानो भट्टा छोड़कर वहाँ की जिन्दगी से दूर जाने के लिए चल दिए। भट्टे से निकलने वाले काले धुएँ ने आकाश को ढक लिया था। ऐसा प्रतीत होता था मानो काली चादर ने सारे आकाश को ढक लिया हो। उन्होंने सब कुछ वहीं छोड़ दिया था। उनकी दशा उस समय खानाबदोश जैसी थी, जिन्हें रहने के लिए एक मकान चाहिए था। 

सुकिया और मानो ईंटों से अपना घर बनाने के सपने देखा करते थे, वे सारे सपने पीछे ही छूट रहे थे। उन्होने भट्टे पर जो थोड़ा अव्यवस्थित-सा समय बिताया था, वह पीछे छूटा जा रहा था। वह परिश्रम के दिन जिनमें उनके पसीनों के निशान थे, उन्हें कभी याद नहीं आएगा। यह भट्टा तो उनके खानाबदोश जीवन का एक ठहराव था, एक पड़ाव था। यह भट्टा उनका स्थायी निवास स्थल नहीं था। यहाँ से उन्हें रोजगार के लिए जाना पड़ा। 

विशेष :

  1. सुकिया और मानो की निराशा का वर्णन है। 
  2. देश का मजदूर वर्ग दिन-रात पसीना बहाकर भी एक खानाबदोश जैसी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। इस हालात की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास है। 
  3. भाषा भावानुकूल है, सरल है। 

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9. मानो को यकीन था, जसदेव उनका साथ देगा। लेकिन जसदेव को चुप देखकर उसका विश्वास टुकड़े-टुकड़े हो गया था। मानो के सीने में एक टीस उभरी थी। सर्द साँस में बदल कर मानो को छलनी कर गई थी। उसके होंठ फड़फड़ाए थे, कुछ कहने के लिए लेकिन शब्द घुटकर रह गए थे। सपनों के काँच उसकी आँखों में किरकिरा रहे थे। वह भारी मन से सुकिया के पीछे-पीछे चल पड़ी थी, अगले पड़ाव की तलाश में, एक दिशाहीन यात्रा पर। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित ओम प्रकाश बाल्मीकि की कहानी 'खानाबदोश' से लिया गया है। 

प्रसंग - जब मानो पति के साथ भट्टे से जा रही थी तो उसे विश्वास था कि जसदेव सहानुभूति के नाते उनके साथ भट्टे को छोड़ देगा, लेकिन जसदेव के उपेक्षापूर्ण व्यवहार से मानो के हृदय को गंभीर ठेस पहुंची। इस अंश में मानो की इसी मन:स्थिति का चित्रण है। 

व्याख्या - सुकिया, मानो और जसदेव भट्टे पर साथ-साथ काम कर रहे थे। सूबेसिंह द्वारा मानो को दफ्तर में बुलाए जाने की घटना में जसदेव ने मानो का पक्ष लिया और सूबेसिंह के हाथों पिटा भी था। अत: जब सूबेसिंह के उत्पीड़न से त्रस्त होकर सुखिया और मानो भट्टे को छोड़कर जाने लगे तो मानो को पूरा विश्वास था कि उनके साथ जसदेव भी भट्टे को छोड़कर चल देगा। लेकिन जसदेव को चुप खड़ा देखकर उसका सारा विश्वास चूर-चूर ह मन में एक हृदय भेदी टीस-सी उठी और एक ठंडी साँस में बदल गई। 

उस साँस ने मानो के हृदय को अपने तीक्ष्ण प्रहार से छलनी बना दिया। जसराज में छिपे वामन' ने उन्हें मजदूरों की एक ही जाति से अलग-अलग कर डाला। भला एक ब्राह्मण का एक साधारण मजदूर से क्या नाता हो सकता था। मानो कुछ कहना चाहती थी किन्तु उसकी बात उसके हृदय में ही घुटकर रह गई। उसके सपने चूर-चूर हो गए थे। उनकी चुभन,उसकी आँखों में स्पष्ट झलक रही थी। निराशा और वेदना से बोझिल पैर लिए, वह सुकिया के पीछे चली जा रही थी। लगता था वे दोनों खानाबदोश, जीवन-यात्रा के किसी अन्य पड़ाव की खोज में चले जा रहे थे। उनका जीवन एक ऐसी यात्रा के समान था जिसका कोई लक्ष्य और दिशा नहीं होगी। 

विशेष :

  1. मजदूरों के उत्पीड़न और उनकी खानाबदोशों जैसी जिंदगी का सच, कहीनीकार ने बड़ी मार्मिकता से चित्रित किया है। 
  2. मजदूरों के असंगठित विरोध को शामिल वर्ग क्रिस क्रूरता और उदंडता से कुचल देता है, इसकी एक झलक कहानी में दिखाई गई है।
  3. भाषा सरल है। शैली भावोत्तेजक है। शब्द-चित्रात्मक है।
Prasanna
Last Updated on Dec. 4, 2023, 4:44 p.m.
Published Dec. 3, 2023