RBSE Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Hindi Solutions Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर

RBSE Class 11 Hindi भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
लेखन ने पाठ में गानपन' का उल्लेख किया है। पाठ के सन्दर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिये किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है ? 
उत्तर :
'गानपन' का अर्थ है, 'गाने का ऐसा अन्दाज जो एक आम (साधारण) व्यक्ति को भी भाव-विभोर कर दे। संगीत में 'गानपन' का मौजूद रहना परमावश्यक है, तभी वह संगीत रसिक वर्ग में रंजकता उत्पन्न कर सकेगा। अत: गायक-गायिकाओं को 'गानपन' को प्राप्त करने के लिये निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये। इसके लिये उन्हें गीत, आघात, सुलभता और लोच आदि तत्वों को गायन में महत्व देना चाहिये। उन्हें आसान लयकारी में सुरीली, भावपूर्ण व रसयुक्त गायकी का अभ्यास करना चाहिये। गायन में स्वर, लय, ताल व शब्दार्थ का उचित तालमेल बिठाने का अभ्यास करना चाहिये। इस प्रकार 'गानपन' को प्राप्त करने के लिये श्रोताओं को रसविभोर कर देने वाली गायकी के निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है। 

प्रश्न 2. 
लेखन ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं ? उदाहरण सहित बताइए। 
उत्तर :
संगीत की लोकप्रियता और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को देते हुए लेखक ने लता की गायकी को निम्न विशेषताओं से युक्त बतलाना है - 
1. गानपन - लता की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह 'गानपन' अर्थात् गाने का ऐसा अंदाज जो आम व्यक्ति को भी भाव-विभोर कर दे। लता का कोई भी गाना हो, उसमें शत-प्रतिशत यह गानपन मौजूद मिलेगा। 

2. स्वरों की निर्मलता - लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके 'स्वरों की निर्मलता। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। लता का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण ही मानो उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। 

3. नादमय उच्चार - 'नादमय उच्चार' लता के गायन की एक और विशेषता है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अन्तर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुन्दर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परन्तु लता के साथ यह बात अत्यन्त सहज और स्वाभाविक हो जाती है। 

इस प्रकार लता के गायन को अनेक विशेषताओं से युक्त बतलाते हुए लेखक ने लता को चित्रपट संगीत-क्षेत्र की अद्वितीय सम्राज्ञी माना है।

हमारा भी यही मत है कि लता के जोड़ की कोई गायिका न तो आज तक हुई और न ही भविष्य में हो सकती है। लता के कारण ही चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है। यद्यपि लता चित्रपट संगीत की बेजोड़ गायिका है, तथापि उसे शास्त्रीय संगीत का भी उत्तम ज्ञान है। लता की गायकी में स्वर, लय व शब्दार्थ की त्रिवेणी बहती है। उसका गायन अत्यन्त सुरीला व भावपूर्ण है। उदाहरणार्थ-लता का कोई भी गाना लीजिये, तो उसमें उपर्युक्त सभी विशेषताएँ मौजूद मिलेंगी। 

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प्रश्न 3. 
लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं, इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? 
उत्तर :
हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि 'लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है।' यह सत्य है कि लता शृंगारपरक गाने बड़ी उत्कटता से गाती हैं, परन्तु करुण रस के गाने भी उन्होंने उतनी ही रसोत्कटता के साथ गाये हैं। 

लता द्वारा गाये गये 'ए' मेरे वतन के लोगों'-गीत से तो करुण रस की ऐसी धारा प्रवाहित हुई, जिसे सुनकर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू सहित सम्पूर्ण देशवासियों की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। लता ने और भी कई करुण रस से ओत-प्रोत गाने गाये हैं, जो कि रसोत्कटता की दृष्टि से शृंगारपरक गानों से कम महत्व नहीं रखते हैं।

प्रश्न 4.
"संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अबतक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रान्त है, तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं"-इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर : 
संगीत का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। वहाँ नए-नए प्रयोग की बहुत गुंजाइश है। संगीत दिग्दर्शकों ने ऐसे अनेक विषय खोज निकाले हैं, जिनका आज तक संगीत में प्रयोग नहीं किया गया और वर्तमान फिल्मी संगीत में वे इन पर नवीन रसानुकूल प्रयोग कर रहे हैं व मधुर गीतों से संगीत का भंडार भर रहे हैं। अनेक पुरानी धुनों में परिवर्तन अथवा संशोधन कर उनके नवीनीकरण द्वारा संगीतकार वर्तमान फिल्मी संगीत में ऐसे अनेक गीतों की रचना कर रहे हैं, जिन्हें पुरानी व नई धुनों का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है। 

बहुत-सी धुनें, राग व स्वर तो ऐसे हैं, जिनकी ओर आजतक किसी की दृष्टि भी नहीं गई है, परन्तु संगीत-क्षेत्र के लोग बड़े जोश से इन धुनों, रागों आदि की खोज व उपयोग करते चले आ रहे हैं व वर्तमान फिल्मी संगीत में इनका प्रयोग कर नित नये गीतों की रचना कर रहे हैं। फलस्वरूप फिल्मी संगीत का क्षेत्र दिनोदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है। 

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प्रश्न 5. 
चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस सन्दर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें। 
उत्तर : 
कुमार गंधर्व लोगों के द्वारा लगाये गये इस आरोप को पूर्णतया अनुचित ठहराते हुए कहते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान खराब नहीं किये हैं, उल्टे सुधार दिये हैं। आज लोगों को शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना नहीं चाहिये, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिये और यह क्रान्ति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत के कारण संगीत के विविध प्रकारों से लोगों का परिचय हो रहा है। उनका स्वर-ज्ञान बढ़ रहा है। सुरीलापन क्या है? उसकी समझ भी उन्हें होती जा रही है। आजकल के नन्हें-मुन्ने बच्चे भी स्वर में ही गुनगुनाते हैं। इस प्रकार चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है। 

परन्तु पहले के चित्रपट संगीत और आज के चित्रपट संगीत के स्तर में कुछ अन्तर आ गया है। पहले जहाँ केवल उच्च स्तर का चित्रपट संगीत ही सुनने को मिलता था, वहीं आज कुछ संगीतकारों का विना में तो उच्च-स्तर का गायन सुनने को मिलता है, परन्तु कुछ तो केवल अशालीनता व अभद्रता से युक्त निम्न स्तर के गीतों की ही रचना कर रहे हैं। 

मेरे विचार से कुमार गंधर्व का यह मानना सही है कि आज समाज की संगीत विषयक अभिरुचि व संगीत की लोकप्रियता का श्रेय चित्रपट संगीत को जाता है, परन्तु यह चित्रपट संगीत दिनोंदिन कुछ विकृत-सा होता जा रहा है। कुछ गीतों के बोल तो अत्यन्त निम्नस्तर के तथा अशालीनता से युक्त हैं। 

प्रश्न 6.
शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए ? कुमार गंधर्व की इस सम्बन्ध में क्या राय है ? स्वयं आप क्या सोचते हैं ? 
उत्तर : 
कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का मूल आधार उनकी 'रसोत्कटता' व 'रंजकता' होनी चाहिये। अर्थात् रसिक को आनन्द देने का सामर्थ्य जिस संगीत में अधिक हो, उसी का अधिक महत्व माना जाना चाहिये। इस विषय में मेरा मत भी लेखक से भिन्न नहीं है। रंजकता से रहित संगीत तो बिलकुल ही नीरस होगा, अतएव उसे ही संगीत के महत्व का मूल आधार माना गया है। 

कुछ करने और सोचने के लिए -

प्रश्न 1.
पाठ में किए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक से चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अन्तर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें। 
उत्तर : 
संगीत शिक्षक से पता कर छात्र स्वयं सूचीबद्ध करें। 

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प्रश्न 2. 
कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है। क्या शास्त्रीय गायकों को भी चित्रपट संगीत से कछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें। 
उत्तर :
चित्रपट संगीत की भावपूर्णता, सुरीलापन, लचकदारी, मधुरता, सरलता आदि सीखने योग्य बातों को शास्त्रीय गायकों को अवश्य ही इससे सीखना चाहिये। उन्हें यह जानने का प्रयास करना चाहिये कि चित्रपट संगीत समाज में अधिक लोकप्रिय क्यों हैं ? तथा अपने गायन से भी वैसी ही रसोत्कटता व रंजकता उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिये।

RBSE Class 11 Hindi भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर Important Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न -

प्रश्न 1. 
सामान्य श्रोता को यदि लता की ध्वनिमुद्रिका और शास्त्रीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका सुनाई जाए तो वह उन दोनों में से क्या सुनना पसन्द करेगा? व क्यों?
उत्तर :
श्रोता लता की ध्वनिमद्रिका अर्थात लता द्वारा गाया गया चित्रपट संगीत ही पसन्द करेगा. क्योंकि गाना कौन से राग में गाया गया और ताल कौन-सा था, यह शास्त्रीय ब्यौरा श्रोता को सहसा मालूम नहीं होता। उसे तो चाहिये वह मिठास जो उसे मस्त कर दे, जिसका वह अनुभव कर सके और यह स्वाभाविक ही है तथा लता के प्रत्येक गाने में रसिक को आनन्द पहुँचाने का सामर्थ्य होता है। अत: श्रोता को सुरीली व भावपूर्ण लता की ध्वनिमुद्रिका ही पसन्द आती है, शास्त्र-शुद्ध व नीरस शास्त्रीय गायकी सुनना उसे पसन्द नहीं। 

प्रश्न 2.
संगीत में गानपन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि क्या लता के गानों में यह तत्व मौजूद मिलेगा? 
उत्तर : 
संगीत में 'गानपन' का अत्यधिक महत्त्व है। 'गानपन' अर्थात् गाने का ऐसा अन्दाज जो एक आम आदमी को भी भाव-विभोर कर दे। जिस प्रकार मनुष्यता हो, तो वह मनुष्य है, उसी प्रकार 'गानपन' हो, तो वह 'संगीत' है। अतएव संगीत में गानपन का होना अत्यन्त आवश्यक है, तभी वह संगीत मिठास से युक्त होकर रसिक को आनन्द देने में समर्थ हो सकेगा। गानपन से रहित संगीत तो बिलकुल ही नीरस होगा तथा रंजक नहीं होगा। 
लता के प्रत्येक गाने में शत-प्रतिशत यह 'गानपन' मौजूद मिलेगा। लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म यही है।

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प्रश्न 3. 
नूरजहाँ व लता के गायन में क्या प्रमुख भेद था? 
उत्तर : 
लता से पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ चित्रपट संगीत में प्रसिद्ध थी। परन्तु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई। नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थी, तथापि उसके गानों में एक मस्ती भरा उत्त स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा प्रतीत होता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। इस प्रकार 'लता' नूरजहाँ से कहीं अधिक उत्कृष्ट गायिका हैं। 

प्रश्न 4.
"तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनिमुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है।"लेखक के इस कथन को स्पष्ट करें। 
उत्तर : 
लेखक के अनुसार तीन-साढ़े तीन मिनट के लता के चित्रपट के किसी गाने का किसी शास्त्रीय गायक की तीन घंटे की महफिल, ये दोनों ही कला की दृष्टि से और आनंद देने की दृष्टि से एक जैसा ही महत्व है। किसी उत्तम लेखक का कोई विस्तृत लेख जीवन के रहस्य का विशद् रूप में वर्णन करता है तो किसी छोटे से सुभाषित या नन्हीं-सी कहावत में भी वही रहस्य सुन्दरता और परिपूर्णता से प्रकट हुआ दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनिमुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है। उसका एक-एक गाना एक सम्पूर्ण कलाकृति होता है। स्वर, लय और शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है और महफिल की बेहोशी उसमें समाई रहती है। 

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प्रश्न 5.
लेखक ने लता की गायकी में कौन-कौन सी कमियाँ बतलाई हैं ? 
उत्तर : 
लेखक के अनुसार लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है। बजाय इसके, मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने लता ने बड़ी उत्कटता से गाए हैं। लेखक लता के गायन में दूसरी कमी यह बतलाते हैं कि लता का गाना सामान्यत: ऊँची पट्टी में रहता है अर्थात् उसमें ऊँचे तारसप्तक के स्वरों का प्रयोग किया जाता है। गाने में संगीत दिग्दर्शक उसे अधिकाधिक ऊँची पट्टी में ही गवाते हैं और अकारण ही चिलवाते हैं, तथापि यह कहना कठिन होगा कि इसमें लता का दोष कितना है और संगीत दिग्दर्शकों का दोष कितना। 

निबंधात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1.
चित्रपट संगीत व शास्त्रीय संगीत के प्रमुख अन्तरों को सविस्तार लिखो। 
उत्तर : 
'चित्रपट संगीत' शास्त्रीय संगीत से सर्वथा भिन्न है। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, वहीं जलदलय (द्रुतलय) और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में पूरे तालों का उपयोग होता है। 

चित्रपट संगीत की लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होती है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है, जबकि शास्त्रीय संगीत की लयकारी अत्यन्त कठिन होती है। तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है। 

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प्रश्न 2. 
"संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही है।" लेखक के इस कथन को स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर : 
लेखक के अनुसार लता के कारण ही चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बदला है। पहले भी घर-घर छोटे बच्चे गाया करते थे, पर उस गाने में और आजकल घरों में सुनाई देने वाले बच्चों के गाने में बड़ा अन्तर हो गया है। आजकल के नन्हें-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। इस जादू का कारण लता ही है। 

कोकिला का स्वर निरन्तर कानों में पड़ने लगे तो कोई भी सुनने वाला उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेगा। ये स्वाभाविक ही है। लता के चित्रपट संगीत को सुनते रहने के कारण धीरे-धीरे लोगों का स्वर-ज्ञान बढ़ रहा है। सुरीलापन क्या है, यह वे समझ रहे हैं। साधारण प्रकार के लोगों को भी संगीत की सूक्ष्मता समझ में आने लगी है। इन सबका श्रेय 'लता' को ही है। लता ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में बड़ा हाथ बँटाया है। इस प्रकार संगीत की लोकप्रियता, प्रसार व अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा

प्रश्न 3. 
लता के चित्रपट संगीत के क्षेत्र में प्रवेश से लोगों में संगीत की समझ कैसे बढ़ गई ? 
उत्तर : 
किसी समय चित्रपट संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का बोलबाला था, किन्तु उससे पीछे आने पर भी लता लोकप्रियता में बहुत आगे निकल गई। चित्रपट संगीत के क्षेत्र में लता के आने के बाद चित्रपट संगीत को अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। छोटे बच्चों तक पर लता के गायन का प्रभाव पड़ा। बच्चे भी सुर में गुनगुनाने लगे। चित्रपट संगीत के कारण लोगों के कर्णप्रिय स्वरमालिकाएँ सुनने को मिलीं।

वे संगीत के विविध प्रकारों से परिचित होने लगे। स्वर ज्ञान बढ़ने के साथ सुरीलापन क्या होता है इसकी समझ भी लता के मधुर गायन से लोग जानने लग गये। साधारण लोगों में भी संगीत की समझ विकसित करने में लता का बहुत महवत्पूर्ण योगदान है। लेखक की मान्यता है कि संगीत की लोकप्रियता बढ़ाने, उसका प्रसार-प्रचार बढ़ाने और लोगों की रुचि को विकसित करने का श्रेय लता के चित्रपट गायन को ही देना चाहिए।

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर Summary in Hindi

पाठ का सारांश :

'भारतीय गायिकाओं में बैजोड़ लता मंगेशकर' नामक पाठ कुमार गंधर्व की महान् रचना है, जिसमें उन्होंने लता जी के गायन की उत्कृष्टता को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से व्यक्त किया है - 

प्राचीन गायिकाओं व अपने पिता से भी उत्कृष्ट गायिका - लता से पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था, परन्तु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई। लता ने संगीत के क्षेत्र में न केवल गायिकाओं को ही पछाड़ा अपितु उनके पिता सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी से अधिक लता के स्वर का जादू लोगों पर एवं संगीत जगत् पर छा गया। 

संगीत की लोकप्रियता, उसके प्रसार व अभिरुचि के विकास का कारण लता की अद्वितीय गायकी - लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बदला है। यह लता के स्वर का ही जादू है कि आजकल के नन्हें-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। लता के विलक्षण गायन के प्रसार से संगीत के विभिन्न प्रकारों से लोगों का परिचय हो रहा है और उनका स्वर-ज्ञान बढ़ रहा है। इस प्रकार संगीत की लोकप्रियता, उसके। प्रसार और सामान्य मनुष्य की संगीत विषयक अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।

लता के गायन की प्रमुख विशिष्टताएँ - 'गायकी', 'स्वरों की निर्मलता', 'नादमय उच्चार' है। लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म 'गानपन' ही है। सामान्य श्रोता को अगर आज लता की स्वरलिपि और शास्त्रीय गायकी की स्वरलिपि सुनाई जाए तो वह लता की स्वरलिपि-सुनना ही पसन्द करेगा, कारण कि लता के प्रत्येक गाने में शत-प्रतिशत यह 'गानपन' मौजूद होता है। 'गानपन' अर्थात् गाने का ऐसा अन्दाज जो एक आम आदमी को भी भाव-विभोर कर दे, मस्त कर दे। 

लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके 'स्वरों की निर्मलता'। इसके अतिरिक्त लता के गानों में 'नादमय उच्चार' की विशेषता भी है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अन्तर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुन्दर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परन्तु लता के साथ यह बात अत्यन्त सहज और स्वाभाविक हो बैठी है। 

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लता के गायन की कुछ कमियाँ -

1. करुण रस की अप्रभावशालिता - लेखक की दृष्टि में लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है जबकि मनमोहक श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने लता ने बड़ी उत्कृष्टता से गाए हैं। 

2. गायन में अधिकाधिक ऊँचे (तारसप्तक के) स्वरों का प्रयोग - लेखक की दृष्टि में लता के गायन में एक और कमी यह है कि उनका गाना सामान्यत: ऊँची पट्टी में रहता है। गाने में संगीत दिग्दर्शक उन्हें अधिकाधिक ऊँची पट्टी में गवाते हैं अर्थात् ऊँचे (तारसप्तक के) स्वरों का प्रयोग करवाते हैं और अकारण ही चिलवाते हैं। 

लता का 'चित्रपट संगीत' शास्त्रीय संगीत से स्वरूपतः भिन्न व अधिक रसमय - लता का 'चित्रपट संगीत' शास्त्रीय संगीत से स्वरूपत: भिन्न है। वस्तुत: शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में तुलना हो ही नहीं सकती है, क्योंकि जहां गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, वही जलदलय (द्रुतलय) और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुण धर्म है। - चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का, जबकि शास्त्रीय संगीत का परिष्कृत अवस्था का होता है। 

चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है। गीत और आघात को यहाँ ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। इसकी लयकारी बहुत आसान होती है। तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होनी आवश्यक है और वह लता के पास नि:संशयं है। 

लता का 'चित्रपट संगीत' शास्त्रीय संगीत से अधिक रसयुक्त होता है, क्योंकि किसी खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की स्वरलिपि (गायकों) में आस्वादित किया जा सकता है। उसका एक-एक गाना एक सम्पूर्ण कलाकृति होता है। स्वर, लय और शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है और महफिल की बेहोशी उसमें समाई रहती है। 

लता व चित्रपट संगीत के विरुद्ध आक्षेपों का खंडन - संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान अव्वल दरजे के खानदानी गायक के समान है, फिर भी कुछ व्यक्ति ऐसा संशय व्यक्त करते हैं कि, "क्या लता तीन घंटों की महफिल जमा सकती हैं ? ऐसे शंकालु व्यक्तियों से लेखक प्रश्न पूछते हैं कि, "क्या कोई पहली श्रेणी का गायक तीन मिनट की अवधि में चित्रपट का कोई गाना उसकी उतनी कुशलता और रसोत्कृष्टता से गा सकेगा? तो उत्तर 'नहीं' ही मिलता है। इसी से लता की अद्वितीय गायकी सिद्ध होती है। 

कुछ खानदानी गवैये दावा करते हैं कि चित्रपट संगीत के कारण लोगों की अभिरुचि बिगड़ गई है। चित्रपट संगीत ने लोगों के 'कान बिगाड़ दिए' ऐसा आरोप वे लगाते हैं। लेखक इन आरोपों का खंडन करते हुए कहता है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान खराब नहीं किये हैं, उलटे सुधार दिए हैं। चित्रपट संगीत द्वारा लोगों की अभिजात्य संगीत से पहचान होने लगी है। लोगों को केवल शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना नहीं चाहिये, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिये और यह क्रान्ति चित्रपट संगीत ही लाया है। 

चित्रपट संगीत का विकसित क्षेत्र - चित्रपट संगीत के क्षेत्र में नवनिर्माण की बहुत गुंजाइश है। जैसा शास्त्रीय रागदारी का चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने उपयोग किया, उसी प्रकार राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खूब लूटा है। धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रुक्ष और निर्जल राजस्थान में बादल की याद दिलाने वाले गीत, पहाड़ों की घाटियों में प्रतिध्वनित होने वाले पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले और खेती के विभिन्न कामों का हिसाब लेने वाले कृषिगीत और ब्रजभूमि में समाविष्ट सहज मधुर गीतों का अतिशय मार्मिक व रसानुकूल उपयोग चित्रपट क्षेत्र के प्रभावी संगीत दिग्दर्शकों ने किया है और आगे भी करते रहेंगे। चित्रपट संगीत का क्षेत्र अत्यन्त विस्तीर्ण है और यह दिनोंदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है। 

चित्रपट संगीत क्षेत्र की अद्वितीय सम्राज्ञी लता - संगीत-जगत् में और भी कई पार्श्व गायक-गायिकाएँ हैं, परन्तु लता की लोकप्रियता इन सबसे कहीं अधिक है। बीते अनेक वर्षों से वह गाती आ रही है और फिर भी उसकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है। लगभग आधी शताब्दी तक जन-मन पर सतत प्रभुत्व रखना आसान नहीं है। आज भारत के कोने-कोने में लता के गाने जा पहुँचे हैं, यही नहीं विदेश में भी लोग उसका गाना सुनकर पागल हो उठे हैं, क्या यह चमत्कार नहीं है ? और यह चमत्कार आज हम सर्वत्र प्रत्यक्षतः देख रहे हैं। 'लता मंगेशकर' संगीत क्षेत्र की एकछत्र साम्राज्ञी हैं। वह भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ गायिका हैं। 

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कठिन शब्दार्थ :

  • बेजोड़ - जिसके जोड़ (मुकाबले) का कोई दूसरा न हो। 
  • सहज - स्वाभाविक। 
  • अद्वितीय - अनोखा, सबसे अलग। 
  • कलेजा - हृदय। 
  • तन्मयता - तल्लीनता। 
  • चित्रपट - सिनेमा (फिल्म)।
  • विलक्षण - अद्भुत। 
  • दृष्टिकोण - देखने-विचारने का नजरिया।
  • कोकिला - कोयला अनुकरण-नकल करना। 
  • जोड़ - मुकाबले का। 
  • स्वर मालिकाएँ - स्वरों के क्रमबद्ध समूह जिसमें बोल (शब्द) नहीं होते। 
  • सूक्ष्मता - बारीकी। 
  • संस्कारित करना - पुराने रूप को सुधारना व नवीनता प्रदान करना। 
  • अभिरुचि - शौक, रुचि। 
  • ध्वनिमुद्रिका - स्वरलिपि। 
  • ब्यौरा - विवरण। 
  • सहसा - अचानक। 
  • मालकोस - भैरवी थाट का एक राग, जिसमें रे' और 'प' वर्जित है। 
  • त्रिताल - 16 मात्राओं का एक ताल। 
  • गानपन - आम व्यक्ति को भी भाव-विभोर कर देने वाला गाने का अन्दाज। 
  • मर्म - रहस्य, मुख्य तत्त्व (बात)। 
  • मादक - नशीली। 
  • उत्तान - ऊँची तान। 
  • मुग्धता - मोहकता, आकर्षण जटिल-कठिन। 
  • नादमय उच्चार - तेज गूंजयुक्त उच्चारण। 
  • विलीन - गायब। 
  • द्रुत - तेज। 
  • उत्कटता - मग्नता, व्यग्रता। 
  • ऊँची पट्टी - ऊँचे (तार सप्तक के) स्वर। 
  • प्रयोजनहीन - निरुद्देश्य, व्यर्थ। 
  • जलदलय लय - तेज लय। 
  • चपलता - चंचलता, तेजी। 
  • लयकारी - धुन। 
  • आघात - चोट। 
  • सुलभता - सरलता। 
  • लोच - स्वरों का बारीक मनोरंजक प्रयोग, कोमलता की अनुभूति युक्त। 
  • अग्र - आगे। 
  • नि:संशय - निस्संदेह। 
  • महफिल - सभा। 
  • विस्तृत - लम्बा-चौड़ा, बड़ा। 
  • विशद - व्यापक। 
  • सुभाषित - दोहा, सूक्ति।
  • त्रिवेणी - तीन धाराएँ। 
  • संगम - मिलन। 
  • सामर्थ्य - सक्षमता। 
  • रंजक - मोहक, लुभावना। 
  • नीरस - रसहीन। 
  • अनाकर्षक - आकर्षण से रहित। 
  • पक्कापन - परिपक्वता। 
  • निर्दोष - दोष रहित। 
  • अवलम्बति - आश्रित, टिकी हुई। 
  • समक्ष - सामने। 
  • बैठक बिठाना - तालमेल बिठाना। 
  • समाविष्ट - शामिल, सम्मिलित, बसा हुआ। 
  • अस्थिपंजर - हड्डियों का ढाँचा। 
  • तैलचित्र - तैलीय रंगों द्वारा निर्मित चित्र। 
  • सुसंगत - ताल व लय के उचित तालमेल से युक्त।
  • अव्वल दर्जा - प्रथम श्रेणी।
  • अवधि - समय। 
  • रसोत्कटता - रस में अत्यधिक तल्लीनता। 
  • कान बिगाड़ दिए - सुनने की रुचि का स्तर गिरा दिया। 
  • वृत्ति - स्वभाव। 
  • हुकुमशाही - हुकूमत, एकमात्र अधिकारपूर्ण शासन। 
  • अभिजात्य - उच्चवर्गीय (कुलीन) लोगों से सम्बन्धित।
  • चौकस - सावधानी रखना। 
  • लचकदारी-ऊपर - नीचे उठने का गुण। 
  • नवनिर्मित - नया निर्माण। 
  • गुंजाइश - सम्भावना।
  • रागदारी - रागों की संरचना। 
  • कौतुक - खेल क्रीड़ा। 
  • रुक् ष - रूखा। 
  • निर्जल - जल से रहित अर्थात् सूखा। 
  • पर्जन्य - बादल। 
  • खोर - गली। 
  • प्रतिध्वनित होना - गूंजना। 
  • ऋतुचक्र - ऋतुओं का क्रम। 
  • अतिशय - अत्यधिक। 
  • मार्मिक - हृदय को छूने वाला। 
  • रसानुकूल - रस के अनुकूल। 
  • विस्तीर्ण - फैला हुआ, विस्तृत। 
  • अलक्षित - जिस पर ध्यान केन्द्रित न किया गया हो। 
  • असंशोधित - जिसमें सुधार न किया गया हो। 
  • अदृष्टिपूर्व - जैसा पहले कभी किसी ने न देखा हो।
  • दिनोंदिन-दिन - प्रतिदिन (रोज-रोज)।
  • अनभिषिक्त - जिसका अभिषेक न किया गया हो, बेताज। 
  • अचल - स्थिर। 
  • अबाधित - बेरोकटोक। 
  • सतत - निरन्तर, लगातार। 
  • प्रभुत्व - स्वामित्व, अधिकार।
  • प्रत्यक्ष - आँखों के सामने।
  • शताब्दी - सौ वर्षों का समय, 100 साल।
Prasanna
Last Updated on July 26, 2022, 5:09 p.m.
Published July 23, 2022