Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 8 जामुन का पेड़ Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
"बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था ?
और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं?"
(क) ये संवाद कहानी के किस प्रसंग में आए हैं?
(ख) इससे लोगों की कैसी मानसिकता का पता चलता है?
उत्तर :
(क) रात को आए आँधी-तूफान में जामुन का एक पेड़ सेक्रेटेरिएट के लॉन में गिर गया और उसके नीचे एक आदमी दब गया। जब यह बात माली ने चपरासी को, चपरासी ने क्लर्क को बताई तो क्लर्क आपस में उस जामुन के पेड़ के बारे में ये संवाद कहते हैं।
(ख) इससे लोगों की संवेदनहीनता एवं स्वार्थी मानसिकता का पता चलता है। उन्हें दबे हुए आदमी की नहीं, उस जामुन के पेड़ की अधिक चिंता है, क्योंकि उस जामुन के पेड़ से उन्हें रसीली जामुन खाने को मिलती थीं, जो आदमी दब गया था उससे उन्हें क्या लेना-देना।
प्रश्न 2.
दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात कैसे पता चली ? और इस जानकारी का फाइल की यात्रा पर क्या असर पड़ा?
उत्तर :
माली जब उस दबे हुए आदमी के मुँह में खिचड़ी डालते हुए उसे बता रहा था कि कल सारे सचिवों की मीटिंग में तुम्हारा केस रखा जाएगा और उम्मीद है कि सब काम ठीक हो जाएगा। तब दबे हुए आदमी ने आह भरकर यह शेर बोला ये तो माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन, खाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक। माली ने अचंभे से मुँह में उँगली दबा ली और चकित भाव से पूछा, क्या तुम शायर हो ? दबे हुए आदमी ने हाँ में सिर हिलाया और फिर यह खबर माली ने चपरासी, चपरासी ने क्लर्क, क्लर्क ने हैडक्लर्क को बताई और इस प्रकार सारे सचिवालय में यह खबर फैल गई कि दबा हुआ आदमी कवि है।
सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने यह फैसला किया कि दबा हुआ आदमी कवि है, अतः इस फाइल का सम्बन्ध कल्चरल डिपार्टमेंट से है। अतः कल्चरल-डिपार्टमेंट से अनुरोध किया गया कि जल्द से जल्द फैसला लेकर कवि को जामुन के फलदार पेड़ से छुटकारा दिलाया जाए। फाइल कल्चरल-डिपार्टमेंट के अनेक विभागों से गुजरती हुई साहित्य अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुंची और वह दबे हुए आदमी का इंटरव्यू लेने जा पहुँचा, किन्तु उसने दबे हुए कवि को निकालने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह कलम-दवात का नहीं पेड़ काटने का मामला है। अत: तुम्हारी फाइल फॉरेस्ट-डिपार्टमेंट को भेज रहा हूँ।
प्रश्न 3.
कृषि-विभाग वालों ने मामले को हार्टीकल्चर-विभाग को सौंपने के पीछे क्या तर्क दिया ?
उत्तर :
कृषि विभाग ने तर्क दिया, क्योंकि जामुन का यह पेड़ फलदार था, इसलिए इसका सम्बन्ध हार्टीकल्चर-विभाग से है। कृषि विभाग खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला लेता है, फलदार वृक्षों के मामले में नहीं, अत: यह फाइल हार्टीकल्चर-विभाग को सौंपी जाए।
प्रश्न 4.
इस पाठ में सरकार के किन-किन विभागों की चर्चा की गई है और पाठ में उनके कार्य के बारे में क्या अंदाजा मिलता है ? .
उत्तर :
इस पाठ में सरकार के अनेक विभागों की चर्चा है; यथा-व्यापार-विभाग, कृषि-विभाग, हार्टीकल्चर-विभाग, मेडीकल-विभाग, कल्चरल-विभाग, फॉरेस्ट-विभाग, विदेश-विभाग। इस पाठ से इन विभागों की कार्य-पद्धति के बारे में यह जानकारी मिलती है कि विभागों में आपसी समन्वय एवं तालमेल का अभाव है। निर्णय लेने में पर्याप्त देरी होती है तथा सभी विभाग जिम्मेदारी लेने से बचने का प्रयास करते हैं।
नियम-कायदों को इतनी विवेक-हीनता से लागू करने पर जोर दिया जाता है कि सारा किस्सा मखौल (उपहास) बन जाता है। विभागीय कर्मचारियों में पदानुक्रम से फाइल आगे बढ़ती है फिर भी फैसला नहीं हो पाता, यहाँ तक कि छोटे से विषय को प्रधानमंत्री तक पहुँचा दिया जाता है और जब तक वह उस पर कोई फैसला लेते हैं, तो इतनी देर हो चुकी होती है कि पेड़ के नीचे दबा व्यक्ति मर जाता है।
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1.
कहानी में दो प्रसंग ऐसे हैं जहाँ लोग पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकालने के लिए कटिबद्ध होते हैं। ऐसा कब-कब होता है ? और लोगों का यह संकल्प दोनों बार किस-किस बजह से भंग होता है ?
उत्तर :
पहली बार तो माली ने यह प्रस्ताव रखा कि यदि सुपरिटेंडेंट साहब हुक्म दें तो मैं पन्द्रह-बीस माली, चपरासी और क्लर्क लगाकर पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाल सकता हूँ, किन्तु सुपरिटेंडेंट ने रोक दिया कि पहले मैं अण्डर सेक्रेटरी से पूछ लूँ। वह इस बात की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था कि मेरे कहने से पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाला गया। दूसरी बार लंच के समय दबे हुए आदमी के चारों ओर बहुत भीड़ हो गई थी और कुछ मनचले क्लर्कों ने समस्या को खुद ही सुलझाना चाहा।
सरकार के फैसले का इन्तजार किए बिना वे पेड़ को स्वयं हटा देने का निश्चय कर रहे थे कि सुपरिटेंडेंट भागा-भागा आया और यह कहकर उन्हें रोक दिया कि हम व्यापार-विभाग के लोग हैं, जबकि पेड़ की समस्या कृषि विभाग की है। इस पर फैसला लेने का अधिकार उनका है। अत: हम फाइल उन्हें भेज रहे हैं। इस प्रकार दोनों बार लोगों का पेड़ हटाने का संकल्प भंग हो गया।
प्रश्न 2.
यह कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है कि इस कहानी में हास्य के साथ-साथ करुणा की भी अन्तारा है ? अपने उत्तर के पक्ष में तक दें।
उत्तर :
'जामुन का पेड़' नामक कृश्नचन्दर की यह कहानी हास्य के साथ-साथ करुणा की भी अन्तर्धारा लिए हुए है, क्योंकि सरकारी विभागों की कार्यपद्धति जहाँ पूरी कहानी में हास्य की सृष्टि करती है वहीं पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति की परवाह न करने से सरकारी कर्मचारियों की संवेदन-हीनता उजागर होती है। जिससे पाठकों के मन में उस दबे हुए व्यक्ति के प्रति करुणा जाग्रत होती है।
लोग कितने स्वार्थी हैं कि उन्हें जामुन के पेड़ गिरने का अफसोस है, उसके नीचे दबे व्यक्ति की चिन्ता नहीं है। यह करुणा तब और प्रखर हो जाती है जब एक व्यक्ति पेड़ को बचाने के लिए आदमी को काटकर निकालने का सुझाव देता है। इसलिए यह कहना उपयुक्त है कि पूरी कहानी में हास्य के साथ-साथ करुणा की अन्तर्धारा प्रवाहित हो रही है।
प्रश्न 3.
यदि आप माली की जगह होते तो हुकूमत के फैसले का इन्तजार करते या नहीं? अगर हाँ तो क्यों ? और नहीं तो क्यों ?
उत्तर :
पक्ष में तर्क-मैं यदि माली की जगह होता तो हुकूमत के फैसले का इन्तजार किए बिना पेड़ को हटवाकर दबे व्यक्ति को निकालकर उसकी जीवन-रक्षा करता, क्योंकि मेरे लिए एक इन्सान की जीवन-रक्षा करना बड़ी बात है, दूसरी सब बातें इसके सामने महत्त्वहीन हैं।
विरोधी तर्क-मैं माली के स्थान पर होता तो मुझे भी हुकूमत के फैसले का इन्तजार करना पड़ता, क्योंकि माली एक छोटा कर्मचारी है, फैसले लेने का अधिकार बड़े अफसरों का है। उसका काम तो घटना की रिपोर्ट करने का है, फैसले लेने का नहीं। यदि मैं माली के रूप में फैसला लेकर दबे व्यक्ति को निकाल देता तो मुझे अपनी नौकरी जाने का खतरा होता। इसलिए हुकूमत के फैसले का इन्तजार करना मेरी मजबूरी होती।
शीर्षक सुझाएँ -
कहानी के वैकल्पिक शीर्षक सुझाएँ। निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखकर शीर्षक कहे जा सकते हैं -
• कहानी में बार-बार फाइल का जिक्र आया है और अन्त में दबे हुए आदमी के जीवन की फाइल पूर्ण होने की बात कही गई
• सरकारी दफ्तरों की लम्बी और विवेकहीन कार्य-प्रणाली की ओर बार-बार इशारा किया गया है।
• कहानी का मुख्य पात्र उस विवेक-हीनता का शिकार हो जाता है।
उत्तर :
इस कहानी के वैकल्पिक शीर्षक हो सकते हैं-अधूरी फाइल, आदमी की कीमत, सरकारी फैसला, रसीले जामुन और कवि।
भाषा की बात -
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी प्रयोग लिखिए -
अर्जेण्ट, फॉरेस्ट-डिपार्टमेण्ट, मेम्बर, डिप्टी सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी, मिनिस्टर, अंण्डर सेक्रेटरी, हार्टीकल्चर-डिपार्टमेण्ट, एग्रीकल्चर-डिपार्टमेण्ट।
उत्तर :
अंग्रेजी - हिन्दी पर्याय :
प्रश्न 2.
इसकी चर्चा शहर में फैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए-यह एक संयुक्त वाक्य है, जिसमें दो स्वतन्त्र वाक्यों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द 'और' से जोड़ा गया है। संयुक्त वाक्य को सरल वाक्य में इस प्रकार बदला जा सकता है-इसकी चर्चा शहर में फैलते ही शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए।
इस पाठ में से पाँच संयुक्त वाक्यों को चुनिए और उन्हें सरल वाक्यों में रूपान्तरित कीजिए।
उत्तर :
संयुक्त वाक्य |
सरल वाक्य |
1. हम इस पेड़ को हार्टीकल्चर-डिपार्टमेण्ट के हवाले कर रहे हैं, क्योंकि यह फलदार पेड़ का मामला है। |
1. फलदार पेड़ का मामला होने से हम इसे हार्टीकल्चर डिपार्टमेण्ट के हवाले कर रहे हैं। |
2. जामुन का पेड़ चूंकि एक फलदार पेड़ है इसलिए यह पेड़ हार्टीकल्चर-डिपार्टमेण्ट के अन्तर्गत आता है। |
2. फलदार पेड़ होने से जामुन का पेड़ हार्टीकल्चर डिपार्टमेण्ट के अन्तर्गत आता है। |
3. एक पुलिस कान्स्टेबल को दया आ गई और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी। |
3. पुलिस कान्स्टेबल ने दया आ जाने के कारण माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी। |
4. माली ने अचम्भे से मुँह में उँगली दबा ली और चकित भाव से बोला। |
4. माली अचम्भे से मुंह में उँगली दबाकर चकित भाव से बोला। |
5. बेचारा सेक्रेटरी उसी समय अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुँचा और दबे हुए आदमी से इण्टरव्यू लेने लगा। |
5. बेचारा सेक्रेटरी उसी समय अपनी गाड़ी से सेक्रेटेरिएट पहुंचकर दबे हुए आदमी से इण्टरव्यू लेने लगा। |
प्रश्न 3.
साक्षात्कार अपने आप में एक विधा है। जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी की फाइल बन्द होने (मृत्यु) के लिए जिम्मेदार किसी एक व्यक्ति का काल्पनिक साक्षात्कार करें और लिखें।
उत्तर :
परीक्षोपयोगी नहीं है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न 1.
'जामुन का पेड़ किस लेखक की व्यंग्यात्मक कहानी है ?
उत्तर :
जामुन का पेड़ उर्दू कहानीकार कृश्नचंदर की व्यंग्यात्मक कहानी है।
प्रश्न 2.
रात को क्या घटना घटी थी?
उत्तर :
रात को आए झक्कड़ (आँधी) में सचिवालय के लॉन में खड़ा जामुन का पुराना पेड़ गिर पड़ा।
प्रश्न 3.
पेड़ के नीचे कौन दब गया था? और इसकी सूचना किसने, किसको दी?
उत्तर :
पेड़ के नीचे एक आदमी दब गया था। सुबह माली ने चपरासी को, चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हैडक्लर्क को तथा हेडक्लर्क ने सुपरिटेंडेट को यह सूचना दी कि पेड़ गिर गया है और उसके नीचे एक आदमी दब गया है।
प्रश्न 4.
माली मे पेरहटाने के लिए क्या सुझाव दिया?
उत्तर :
माली ने सुपरिटेंडेंट को यह सुझाव दिया कि यदि आप हुक्म दे तो मैं सचिवालय के 15-20 माली चपरासी इकडे करके पेड़ हटवाकर दबे आदमी को बाहर निकाल सकता हूँ।
प्रश्न 5.
सुपरिटेंडेंट ने मना क्यों कर दिया ?
उत्तर :
सुपरिटेंडेंट ने कहा कि पेड़ कृषि-विभाग का मामला है, जबकि हम व्यापार-विभाग के लोग हैं। अत: पेड़ हटवाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की है, हमारी नहीं।
प्रश्न 6.
जब लोगों को पता चला कि दबा व्यक्ति शायर है, तब क्या हुआ?
उत्तर :
जब लोगों को पता चला कि दबा व्यक्ति शायर है तब उसके चारों ओर भीड़ जमा हो गयी और लोग अपनी कविताएँ . उसे सुनाने लगे तथा उससे अपेक्षा करने लगे कि वह उनकी कविता की आलोचना भी करे।
प्रश्न 7.
इस पाठ में निहित दो व्यंग्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
सरकारी कार्यालयों की कार्य-पद्धति पर व्यंग्य किया गया है साथ ही लोगों की संवेदनहीनता पर व्यंग्य किया गया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न 1.
जामुन का पेड़ गिरा देखकर क्लर्क ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर :
जामुन का पेड़ गिरा देखकर क्लर्क ने अफसोस जाहिर किया कि यह रसीले जामुन का पेड़ था। इसके जामुन मेरे बच्चे बड़े चाव से खाते थे। उस जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी की उसे रंचमात्र भी चिन्ता नहीं थी मानो वह कोई कीड़ा-मकोड़ा हो।
प्रश्न 2.
इस कहानी में कौन-कौन से व्यंग्य निहित हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रश्न 3.
लेखक ने कवियों पर क्या व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
लेखक ने कवियों पर यह व्यंग्य किया है कि उन्हें मरते हुए कवि को बचाने की चिंता नहीं है, अपनी कविता सुनाने और उस पर उसकी राय लेने की अभिलाषा अधिक है। आदमी चाहे मर रहा हो पर ये कवि अपनी कविता सुनाने से बाज नहीं आते।
प्रश्न 4.
'फाइल पूर्ण हो गई' में निहित व्यंग्य को आप किन शब्दों में व्यक्त करेंगे?
उत्तर :
सरकारी कार्यालयों में छोटे से विषय को भी लटका दिया जाता है और फैसला लेने में इतना विलम्ब होता है कि जब, तक फाइल पूरी होती है तब तक व्यक्ति के प्राण ही निकल जाते हैं। सरकारी कार्यालयों की कार्य-प्रणाली पर करारा व्यंग्य इस कहानी में किया गया है, साथ ही सरकारी कर्मचारियों की संवेदनशून्यता को भी लेखक ने अपने व्यंग्य का लक्ष्य बनाया है।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न :
सिद्ध कीजिए कि 'जामुन का पेड़ कहानी में संवेदन-हीनता को अभिव्यक्ति मिली है?
उत्तर :
जामुन का पेड़ उर्दू कथाकार कृश्नचंदर की एक व्यंग्यपूर्ण कहानी है, जिसमें लोगों की संवेदन-हीनता को अभिव्यक्ति मिली है। रात को तेज आँधी आई जिससे सचिवालय के लॉन में खड़ा जामुन का पेड़ गिर गया और उसके नीचे एक आदमी दब गया। सुबह लोगों की भीड़ वहाँ जमा हो गई, पर दबे आदमी को निकालने का कोई प्रयास नहीं कर रहा था। कोई भी विभागीय अफसर निर्णय नहीं करता, सभी विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं और जब मामला प्रधानमंत्री तक पहुँचता है तब वे पेड़ काटने का निर्देश देते हैं।
जब तक उनका निर्णय आया तब तक आदमी मर चुका था। इससे ज्यादा संवेदनहीनता और क्या होगी कि लोग जामुन के पेड़ के गिरने पर अफसोस करते हैं पर उसके नीचे दबे आदमी को निकालने की चिन्ता नहीं करते। यही नहीं जब उन्हें पता चलता है कि यह एक शायर है तो उसे अपनी कविताएँ सुनाने लगते हैं। हर विभाग दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालकर समय बर्बाद करता है और अन्ततः पेड़ के नीचे दबे हुए व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। सरकारी विभागों की कार्य-पद्धति में समन्वय का अभाव है तथा लोग संवेदन-शून्य हो गए हैं, यही प्रतिपादित करना कहानीकार का लक्ष्य है, जिसमें वह सफल रहा है।
लेखक परिचय :
प्रेमचन्द के उपरान्त जिन कहानीकारों ने कहानी विधा को ऊँचाइयों तक पहुँचाया उनमें उर्दू एवं हिन्दी कहानीकार कृश्नचन्दर का नाम प्रमुख है। कृश्नचन्दर का जन्म 1914 ई. में पंजाब के वजीराबाद गाँव में हुआ था, जो गुजरांवाला जिले का एक गाँव है। वे प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित रहे हैं तथा प्रगतिशील लेखक संघ से उनका गहरा संबंध था जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं में साफ झलकता है।
उनकी प्राथमिक शिक्षा पुंछ (जम्मू-कश्मीर) में हुई और 1930 ई.में वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर आ गए। 1934 ई.में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और बाद में वे फिल्मी लेखन से जुड़कर मुम्बई में बस गए। जीवन के अन्त समय तक वे मुम्बई में ही रहे। जून 1977 ई. में उनका निधन हो गया।
प्रमुख कृतियाँ -
(क) कहानी संग्रह -
(ख) उपन्यास -
कृश्नचन्दर को साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ अन्य अनेक सम्मान उनके कृतित्त्व के लिए प्राप्त हुए हैं।
साहित्य में स्थान - उर्दू कहानीकार के रूप में वे अत्यन्त चर्चित रहे हैं। उनकी कहानियों के अनुवाद देशी-विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। यों तो वे उपन्यास, रिपोर्ताज, नाटक, लेख भी लिखते रहे हैं किन्तु उनकी पहचान एक कहानीकार के रूप में ही अधिक रही है। महालक्ष्मी का पुल, आइने के सामने उनकी चर्चित कहानियाँ रही हैं। वे प्रगतिशील एवं यथार्थवादी दृष्टिकोण से लिखने वाले साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे।
'जामुन का पेड़ उनकी एक हास्य-व्यंग्य प्रधान कहानी है, जिसमें यह बताया गया है कि कार्यालय की व्यवस्था कितनी संवेदन शून्य एवं हास्यास्पद होती है।
पाठ का सारांश :
'जामुन का पेड़ कृश्नचन्दर की एक हास्य-व्यंग्यपूर्ण कहानी है। जिसमें यह दिखाया गया है कि सरकारी कार्यालयों में हद दर्जे की संवेदन-हीनता है और कार्यालयी तौर-तरीके भी हास्यास्पद हैं। तेज आँधी में सचिवालय के लॉन में खड़ा जामुन का पेड़ गिर गया, जिसके नीचे एक आदमी दबा हुआ है, पर उस आदमी को निकालने की बजाय वे हुकूमत के फैसले का इन्तजार करते हैं और तरह-तरह की बातें करके वक्त जाया करते हैं। इस कहानी का सार-संक्षेप निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत कर सकते हैं -
पेड़ का गिरना-सचिवालय के लॉन में खड़ा वर्षों पुराना जामुन का पेड़ तेज आँधी में गिर पड़ा और उसके नीचे एक आदमी दब गया। माली ने चपरासी से, चपरासी ने क्लर्क से और क्लर्क ने सुपरिटेण्डेण्ट से कहा। वह दौड़ा-दौड़ा लॉन में आया तब तक दबे हुए आदमी के चारों ओर भीड़ जमा हो चुकी थी। भीड़ तरह-तरह की बातें कर रही थी। दबे हुए आदमी ने कहा कि मैं जिंदा हूँ। माली ने सुझाव दिया कि पेड़ को हटाकर दबे आदमी को निकाल लेना चाहिए। एक सुस्त कामचोर आदमी ने कहा - तना वजनी है, इसे हटाना मुश्किल है पर माली बोला अगर सुपरिटेंडेंट साहब हुक्म दें तो वह अभी पन्द्रह-बीस माली, चपरासी इकडे करके, पेड़ हटाकर दबे आदमी को निकाल सकता है।
मामला चीफ सेक्रेटरी तक-सुपरिटेंडेंट ने पेड़ हटाने से मना कर दिया और कहा मैं अण्डर सेक्रेटरी से पूछ लूँ। अण्डर सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से और डिप्टी सेक्रेटरी ने ज्वाइंट सेक्रेटरी से पूछा और फिर मामला चीफ सेक्रेटरी के पास गया, जिसने मिनिस्टर के सामने मामला पेश किया। मिनिस्टर ने जो कुछ कहा वह फिर इसी प्रकार ऊपर से नीचे के क्रम में चला और इस प्रक्रिया में आधा दिन गुजर गया। फाइल नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आती-जाती रही।
सरकारी विभागों की संवेदनहीनता - दबे हुए आदमी के पास भीड़ जमा थी। कुछ क्लर्कों ने पेड़ हटाने का निश्चय किया किन्तु सुपरिटेंडेंट ने यह कहते हुए रोक दिया कि यह पेड़ कृषि-विभाग की समस्या है, इसलिए हम व्यापार-विभाग के लोग नहीं हटा सकते। मैं इस फाइल पर 'अर्जेन्ट' लगाकर कृषि विभाग को भेज देता हूँ। वहाँ से जबाव आते ही पेड़ हटवा देंगे। दोनों विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालतें रहे, फाइल चलती रही। दूसरे दिन मामला हार्टीकल्चर विभाग को सौंप दिया गया। क्योंकि, यह फलदार वृक्ष था। रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया।
उसके चारों ओर पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को हाथ में लेकर पेड़ हटाकर आदमी को निकाल न लें। एक सिपाही को दया आ गई तो उसने माली को दबे आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी। - आदमीको काटने का सुझाव-माली ने दबे आदमी से कहा-तुम्हारी फाइल चल रही है, उम्मीद है कल तक फैसला हो जाएगा। बेचारा दबा आदमी क्या बोलता? दबे आदमी ने यह भी बताया कि वह लावारिस है।
तीसरे दिन हार्टीकल्चर डिपार्टमेन्ट ने आदेश दिया कि फलदार वृक्ष होने से इसे नियमानुसार नहीं काटा जा सकता। तब एक मनचले ने सुझाव दिया-तो फिर आदमी को काटकर निकाल लिया जाए। इस पर दबा आदमी बोला-ऐसे तो मैं मर जाऊँगा। फाइल मेडीकल डिपार्टमेण्ट भेज दी गई। सर्जनों ने जाँच-पड़ताल कर कहा-इस आदमी की प्लास्टिक सर्जरी तो हो सकती है, किन्तु तब यह आदमी मर जाएगा।
कल्चरल विभाग की सरगर्मी - जब पता चला कि दबा हुआ आदमी एक कवि है तो सेक्रेटरी की सब-कमेटी ने निर्णय दिया कि अब तो यह मामला दबे हुए आदमी के कवि होने से कल्चरल डिपार्टमेण्ट का है। अत: कल्चरल डिपार्टमेण्ट अभागे कवि को इस पेड़ से जल्द से जल्द छुटकारा दिलाए। फाइल कल्चरल डिपार्टमेण्ट के अनेक विभागों से गुजरती हुई अन्तत: साहित्य अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुंची और वह उसी समय उस दबे आदमी का इंटरव्यू लेने जा पहुँचा। उसे इण्टरव्यू के बाद पता चला कि इसका उपनाम 'ओस' है जिसका गद्य-संग्रह 'ओस के फूल' अभी हाल में प्रकाशित हुआ है।
वह साहित्य अकादमी का सदस्य नहीं है। दूसरे दिन उस बड़े कवि को मुबारकबाद देते हुए सेक्रेटरी ने बताया कि हमारी अकादमी ने तुम्हें मेम्बर चुन लिया है। जब कवि ने कहा कि मुझे इस पेड़ से तो निकालो, तो सेक्रेटरी ने कहा-यह हम नहीं कर सकते, हाँ तुम्हारे मर जाने पर तुम्हारी पत्नी को वजीफा दे सकते हैं, अगर तुम दरख्वास्त दो तो। पेड़ काटने का सम्बन्ध फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट से है, हमने उन्हें लिख दिया है।
फॉरेस्ट डिपार्टमेन्ट में फाइल-फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट के लोग जब आरी-कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने पहुंचे तो विदेश-विभाग से हुक्म आया कि इस पेड़ को न काटा जाए, क्योकि पेड़ को दस साल पहले पीटोनिया राज्य के प्रधानमन्त्री ने लगाया था। यदि पेड़ काटा गया तो पीटोनिया सरकार से हमारे सम्बन्ध सदा के लिए खराब हो सकते हैं। एक देश की मित्रता की खातिर देश के एक. आदमी की जान कुर्बान की जा सकती है।
प्रधानमन्त्री का आदेश-अण्डर सेक्रेटरी ने सुपरिटेंडेंट को बताया कि आज शाम प्रधानमन्त्री दौरे से वापस आ गए हैं। अत: ..... चार बजे विदेश विभाग फाइल उनके सामने पेश करेगा। शाम पाँच बजे स्वयं सुपरिटेंडेंट कवि के पास फाइल को हिलाते हुए पहुँचा-“सुनते हो, प्रधानमन्त्री ने इस पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया है और इस घटना की अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तब तुम इस संकट से छुटकारा हासिल कर सकोगे। आज तुम्हारी फाइल पूर्ण हो गई।" मगर कवि का शरीर निर्जीव हो चुका था, चीटियाँ उसके मुँह में जा रही थीं। उसके जीवन की फाइल भी पूरी हो गई थी।
कठिन शब्दार्थ :
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
1. रात को बड़े जोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पड़ा। सवेरे जब माली ने देखा तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया, क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिण्टेण्डेण्ट के पास गया। सुपरिण्टेण्डेण्ट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे हुए आदमी के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई। 'बेचारा जामुन का पेड़, कितना फलदार था।' एक क्लर्क बोला। और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थी।' दूसरा क्लर्क याद करते हुए बोला। 'मैं फलों के मौसम में झोली भरकर ले जाता था, मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे ?' तीसरा क्लर्क लगभग सँआसा होकर बोला। 'मगर यह आदमी' माली ने दबे हुए आदमी की तरफ इशारा किया।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य कथा 'जामुन का पेड़ से * लिया गया है। इस अंश में लेखक ने सचिवालय के लॉन में उखड़कर गिर गये एक जामुन के पेड़ का परिचय कराया है।
व्याख्या - सचिवालय के सामने लॉन में एक पुराना जामुन का वृक्ष था। एक रात बड़े जोर का तूफान आया और वृक्ष गिर पड़ा। सवेरे जब माली आया तो उसने देखा पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा था। यह देखते ही माली सूचना देने के लिए भागता हुआ चपरासी के पास पहुंचा, चपरासी दौड़ता हुआ क्लर्क के पास, क्लर्क दौड़ता हुआ अधीक्षक के पास और अधीक्षक दौड़ता हुआ बाहर लॉन में आ पहुँचा।
तनिक-सी देर में उस गिरे हुए वृक्ष के आस-पास आदमियों की भीड़ जमा हो गई। एक क्लर्क ने दुख जताते हुए कहा कि फल देने वाला वृक्ष था। दूसरे क्लर्क ने कुछ याद करते हुए बताया कि पेड़ की जामुनें बड़ी रसदार हुआ करती थीं। तीसरा क्लर्क तो वृक्ष की दशा देखकर रोने को हो गया और बताने लगा कि जब फल आते थे तो वह इस पेड़ से जामुनों से झोली भर घर ले जाया करता था। उसके बच्चे बड़े चाव से खाया करते थे। उसी समय वहाँ खड़े माली ने उस दबे पड़े आदमी के बारे में प्रश्न किया। जामुनों के गुणगान में व्यस्त लोगों को दबे पड़े आदमी का ध्यान नहीं आया।
विशेष-कहानीकार ने इस अंश में समाज की हृदयहीनता पर बड़ा मार्मिक व्यंग्य किया है, जहाँ जामुनें इतनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं कि लोग मरणासन्न पड़े एक मनुष्य की ओर ध्यान नहीं देते। बेचारे आदमी की कीमत क्या जामुन के बराबर भी नहीं होती।
प्रश्न :
1. सेक्रेटेरिएट के लॉन में क्या घटना घटी?
2. पेड़ गिरने पर सरकारी कर्मचारियों ने क्या किया ?
3. क्लर्क किस प्रकार जामुन के पेड़ के गिरने पर अफसोस जाहिर कर रहे थे? इसमें निहित व्यंग्य क्या है ?
4. इस अवतरण से सरकारी कार्यालयों की कार्य-पद्धति एवं सरकारी कर्मचारियों की संवेदनशीलता पर किस प्रकार प्रकाश पड़ता है ?
उत्तर :
1. सेक्रेटेरिएट के लॉन में एक जामुन का पेड़ था। रात को जोर की आँधी आने से वह पेड़ गिर गया। सवेरे माली ने देखा कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा था। इसकी शिकायत क्रमशः सुपरिटेडेण्ट तक पहुँची।
2. पेड़ गिरने की सूचना सुबह होने पर माली ने चपरासी को दी, चपरासी ने क्लर्क को, क्लर्क ने सुपरिटेंडेंट को, सुपरिंटेंडेंट दौड़ते हुए लॉन में आये जहाँ पेड़ के नीचे दबे आदमी के चारों ओर भीड़ इकट्ठा हो गई थी और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे।
3. क्लों को जामुन के पेड़ के गिरने का अफसोस था। क्योंकि वे इसके मीठे फल बच्चों के लिए ले जाते थे। किसी को भी पेड़ के नीचे दबे आदमी की चिंता नहीं थी। लेखक ने यहाँ कर्मचारियों की स्वार्थी एवं संवेदनहीन प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है।
4. लेखक ने सरकारी कार्यालयों एवं सरकारी कर्मचारियों की कार्य-पद्धति पर व्यंग्य किया है जहाँ पदानुक्रम से सूचनाएँ एक के बाद दूसरे तक पहुंचाई जाती हैं। दबे हुए आदमी को लोग मिलकर निकाल सकते थे, माली आदमी के दबे होने और पेड़ गिरने की बात सीधे ही सुपरिटेंडेंट से कह सकता था, किन्तु नियम ऐसा नहीं था। सरकारी कार्यालयों में मामले प्रोपर चैनल से ही रिपोर्ट किये जाते हैं। साथ ही सरकारी कार्यालयों की धीमी कार्य-पद्धति एवं संवेदन-हीनता भी उजागर होती है। दबे हुए आदमी की चिन्ता किसी को नहीं थी, पेड़ गिरने का अफसोस मनाया जा रहा था।
2. दोपहर के खाने पर दबे हुए आदमी के चारों ओर बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लर्कों ने समस्या को खुद ही सुलझाना चाहा। वे हुकूमत के फैसले का इंतजार किये बिना पेड़ को अपने आप हटा देने का निश्चय कर रहे थे कि इतने में सुपरिटेंडेंट फाइल लिये भागा-भागा आया। बोला-"हम लोग खुद इस पेड़ को नहीं हटा सकते।
हम लोग व्यापार-विभाग से संबंधित हैं, और यह पेड़ की समस्या है, जो कृषि-विभाग के अधीन है। मैं इस फाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि-विभाग में भेज रहा हूँ-वहाँ से उत्तर आते ही इस पेड़ को हटवा दिया जायेगा।" दूसरे दिन कषि-विभाग से उत्तर आया कि पेड़ व्यापार-विभाग के लॉन में गिरा है, इसलिए इस पेड़ को हटवाने या न हटवाने की जिम्मेदारी व्यापार-विभाग पर पड़ती है। यह उत्तर पढ़कर व्यापार-विभाग को गुस्सा आ गया, उन्होंने फौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की जिम्मेदारी कृषि-विभाग पर लागू होती है, व्यापार-विभाग का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य कथा 'जाम लिया गया है। इस अंश में पेड़ के नीचे दबे पड़े आदमी को निकालने की जिम्मेदारी किसकी है, यह तय किया जा रहा है।
व्याख्या - जामुन के गिरे पेड़ को हटाने और उसके नीचे दबे व्यक्ति की जान बचाने के लिए की जा रही लिखा-पढ़ी की फाइल बराबर एक कार्यालय से दूसरे में आ-जा रही थी। दोपहर होने पर खाना खाने के अवकाश के समय दबे आदमी के चारों ओर बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई। वहाँ उपस्थित कुछ उत्साही लिपिकों ने उस समस्या को स्वयं ही सुलझाने की पहल की, उन्होंने निश्चय किया कि अधिकारी का आदेश आयेगा तब आयेगा, इस आदमी की जान बचाने के लिए इस पेड़ को स्वयं ही हटा देना चाहिए। इसी समय सुपरिटेडेंट फाइल लिए भागते हुए आये।
उन्होंने घोषणा कर दी कि वे अपने स्तर पर पेड़ को नहीं हटा सकते। वे व्यापार विभाग के कर्मचारी हैं। समस्या का सम्बन्ध पेड़ से होने के कारण कृषि-विभाग ही इसके बारे में निर्णय ले सकता है। सुपरिंटेंडेंट महोदय यह भी सूचित किया कि वह मामले की फाइल पर 'अत्यावश्यक' अंकित करके उसे कृषि विभाग को भेज रहे थे। कृषि विभाग से सूचना मिलते ही वह पेड़ को तुरंत हटवा देंगे। अगले दिन कृषि विभाग से उत्तर आया कि पेड़ क्योंकि व्यापार-विभाग के लॉन में गिरा है अत: इस पर जो भी निर्णय हो वह व्यापार-विभाग ही लेंगा। यह उत्तर : ही व्यापार विभाग के अधिकारी आवेश में आ गये। उन्होंने तुरंत टिप्पणी लिखी कि पेड़ को हटवाने या न हटवाने की पूरी जिम्मेदारी कृषि-विभाग की थी। व्यापार-विभाग का उससे कोई सम्बन्ध न था।
विशेष : इस अंश में सरकारी कार्यालयों की बेहद उबाऊ और संवेदनहीन कार्य-प्रणाली की एक झाँकी लेखक ने प्रस्तुत की है। पूरा अमला इस पर बहस कर रहा था कि पेड़ को उठवाना किस विभाग के कार्यक्षेत्र में आता था। उस बेचारे दबे पड़े इंसान की किसी को चिंता न थी जिसकी साँसें पल-पल थमती जा रही थीं।
प्रश्न :
1. क्लर्क क्या करना चाहते थे ? और सुपरिटेंडेंट ने क्यों मना कर दिया?
2. सुपरिंटेंडेंट फाइल लेकर भागा हुआ आया और उसने लोगों से क्या कहा ?
3. कृषि-विभाग से क्या उत्तर आया ?
4. कृषि-विभाग से उत्तर पाकर व्यापार-विभाग को गुस्सा क्यों आया? उन्होंने फिर क्या किया ?
उत्तर :
1. दबे हुए आदमी के चारों ओर इकट्ठी भीड़ में कार्यालय के अनेक क्लर्क भी थे। उन्होंने समस्या को खुद सुलझाना चाहा। उन्होंने पेड़ स्वयं हटा देने का निश्चय किया। इसी समय सुपरिटेंडेंट महोदय दौड़ते हुए आए और कहा कि यह समस्या उनके विभाग की न होकर कृषि विभाग की थी। वही इसका समाधान करेगा।
2. सुपरिटेंडेंट फाइल लेकर भागा हुआ आया और वहाँ एकत्र लोगों से कहा कि पेड़ हम लोग नहीं हटा सकते, क्योंकि हम लोग तो व्यापार-विभाग के हैं, जबकि पेड़ का संबंध कृषि विभाग से है। मैंने फाइल पर अर्जेंट लिखकर फाइल कृषि-मंत्रालय में भिजवा दी है।
3. कृषि विभाग से उत्तर आया कि पेड़ व्यापार-विभाग के लॉन में गिरा है अत: उसे कटवाने या हटवाने की जिम्मेदारी हमारी न होकर व्यापार-विभाग की है।
4. कृषि-विभाग ने जो उत्तर दिया उससे व्यापार-विभाग को गुस्सा इसलिए आया क्योंकि वे अपनी जिम्मेदारी व्यापार- विभाग पर डाल रहे थे। पेड़ का मामला होने से निश्चय ही यह कृषि विभाग का मामला था, पर वे मानने को तैयार ही न थे।
3. हार्टीकल्चर-डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी साहित्य-प्रेमी आदमी जान पड़ता था। उसने लिखा था, "आश्चर्य है, इस समय जब हम पेड़ लगाओ स्कीम ऊँचे स्तर पर चला रहे हैं, हमारे देश में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं जो पेड़ों को काटने का सुझाव देते हैं, और वह भी एक फलदार पेड़ को और वह भी जामुन के पेड़ को, जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है, हमारा विभाग किसी हालत में फलदार वृक्ष को काटने की इजाजत नहीं दे सकता।"
"अब क्या किया जाए ?" इस पर एक मनचले ने कहा, "अगर पेड़ काटा नहीं जा सकता, तो इस आदमी को ही काटकर निकाल लिया जाये।" "यह देखिए", उस आदमी ने इशारे से बताया,"अगर इस आदमी को ठीक बीच में से, यानी धड़ से काटा जाए तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा, आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ वहीं का वहीं रहेगा।
"मगर इस तरह तो मैं मर जाऊँगा।" दबे हुए आदमी ने आपत्ति प्रकट करते हुए कहा। "यह भी ठीक कहता है।" एक क्लर्क बोला।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य कथा 'जामुन का पेड़ से लिया गया है। जामुन के पेड़ की फाइल 'उद्यान-विभाग' जा पहुंची थी। वहाँ से जो जवाब आया वह बड़ा चेतावनी भरा था। इस अंश में उसी का उल्लेख हुआ है।
व्याख्या - उद्यान विभाग से लौटकर आई फाइल पर जिस सचिव ने टिप्पणी लिखी थी वह कोई साहित्य प्रेमी और अपने कर्तव्य-पालन में बड़ा तत्पर प्रतीत होता था। सेक्रेटरी महोदय ने लिखा था कि जब उनका विभाग पूरी तत्परता से 'पेड़ लगाओ' योजना चला रहा था, तब देश में ऐसे सरकारी अधिकारी भी थे जो पेड़ों को काटने का सुझाव दे रहे थे। जबकि पेड़ फल देने वाला था। फल भी जामुन का था। जामुन का फल तो लोग बड़े चाव से खाते हैं। सेक्रेटरी ने स्पष्ट रूप से लिख भेजा था कि उनका विभाग उस हरे और फलदार वृक्ष के काटने की अनुमति कदापि नहीं दे सकता था।
समस्या आ गई कि आगे क्या किया जाये? एक मजी लेने वाले व्यक्ति ने सुझाव दिया कि पेड़ नहीं कट सकता तो आदमी को ही काटकर निकाल लिया जाये। उसने वाकायदा उसे काटे ने को पूरी प्रक्रिया भी समझाई। उसके अनुसार दबे पड़े व्यक्ति को यदि धड़ पर से काटा जाता तो आधा-आधा आदमी दोनों ओर से निकल आता। पेड़ वहीं पड़ा रहता। उसी समय दबे हुए आदमी ने आपत्ति जताई कि इस प्रकार काटे जाने पर तो वह मर जायेगा। एक क्लर्क ने उसकी आपत्ति को सही बताया।
विशेष - लेखक ने व्यंग्य किया है कि सरकारी कर्मचारियों को केवल विभागीय कार्यप्रणाली और नियमों के अनुपालन से मतलब होता है। इसके लिए आदमी की जान भी चली जाये, तो कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रश्न :
1. हार्टीकल्चर-विभाग ने पेड़ को काटने का विरोध क्यों किया ?
2. मनचले ने पेड़ के स्थान पर आदमी को काटने का सुझाव क्यों दिया ?
3. दबे हुए आदमी ने क्या आपत्ति प्रकट की और क्यों ?
4. इस अवतरण में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. हार्टीकल्चर-विभाग ने यह कहकर पेड़ काटने का विरोध किया कि क्योंकि जामुन का पेड़ फलदार पेड़ था, जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है। अतः फलदार पेड़ काटने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
2. जब हार्टीकल्चर-विभाग ने पेड़ काटने का विरोध किया तो किसी मनचले ने पेड़ के स्थान पर उस आदमी को काटने का सुझाव दे दिया। यह वास्तव में कोई सुझाव न था बल्कि उद्यान विभाग की सोच पर एक व्यंग्य था।
3. जब मनचले ने पेड़ के स्थान पर आदमी को काटने का सुझाव दिया तो दबे हुए आदमी ने आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि ऐसे तो मैं मर जाऊँगा। सुझाव पूर्णतया अव्यावहारिक था। उसमें आदमी की जान का कोई मूल्य नहीं समझा गया था।
4. इस अवतरण में यह व्यंग्य निहित है कि सरकारी कर्मचारियों में तथा सरकारी कार्यालयों में हद दर्जे की संवेदनशून्यता है। नियमों एवं औपचारिकताओं का पालन करने की ओर उनका ध्यान अधिक रहता है, भले ही किसी की जान ही क्यों न चली जाये। इन कार्यालयों में पारस्परिक समन्वय का अभाव है और वे अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
4. दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्लर्क को, क्लर्क ने हैड क्लर्क को। थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरिएट में यह अफवाह फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस, फिर क्या था। लोगों का झुण्ड का झुण्ड शायर को देखने के लिए उमड़ पड़ा। इसकी चर्चा शहर में भी फैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गये। सेक्रेटेरिएट का लॉन भाँति-भाँति के कवियों से भर गया और दबे हुए आदमी के चारों ओर कवि-सम्मेलन का-सा वातावरण उत्पन्न हो गया। सेक्रेटेरिएट के कई क्लर्क और अण्डर सेक्रेटरी तक जिन्हें साहित्य और कविता से लगाव था, रुक गए। कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी कविताएँ और दोहे सुनाने लगे। कई क्लर्क उसको अपनी कविता पर आलोचना करने को मजबूर करने लगे।
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी एक कवि है, तो सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने फैसला किया कि चूंकि दबा हुआ आदमी एक कवि है, इसलिए इस फाइल का संबंध न एग्रीकल्चर-डिपार्टमेंट से है, न हार्टीकल्चर-डिपार्टमेंट से, बल्कि सिर्फ कल्चरल-डिपार्टमेंट से है। कल्चरल-डिपार्टमेंट से अनुरोध किया गया कि जल्द से जल्द मामले का फैसला करके अभागे कवि को इस फलदार पेड़ से छुटकारा दिलाया जाए।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य कथा 'जामुन का पेड़ से लिया गया है। इस अंश में दबे हुए आदमी के कवि होने की बात चारों ओर फैलने और कल्चरल-डिपार्टमेंट द्वारा उसमें रुचि लेने का विवरण है।
व्याख्या - जब माली दबे हुए आदमी को खिचड़ी खिला रहा था तो उस आदमी द्वारा एक कविता सुनाये जाने पर चौंक गया। उसे पता चला कि वह आदमी तो शायर था। उसने यह खबर चपरासी को चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हैड क्लर्क को पहुँचा .. दी। सारे सचिवालय में यह खबर फैल गई कि दबा पड़ा आदमी एक शायर है। यह खबर फैलते ही झुंड के झुंड लोग वहाँ आ पहुँचे।
यह चर्चा शहर तक जा पहुँची और शहर की गली-गली से शायरों का वहाँ आना प्रारम्भ हो गया। सचिवालय का लॉन तरह-तरह के कवियों से भर गया। वहाँ का दृश्य ऐसा लगने लगा जैसे वहाँ कोई कवि सम्मेलन होने जा रहा हो। यह देखकर सचिवालय के कई लिपिक और उपसचिव जो साहित्य प्रेमी थे-कविताओं का आनंद लेने को वहीं रुक गए। कुछ कवि दबे हुए आदमी को कविताएँ भी सुनाने लगे। कई क्लर्क दबे आदमी पर जोर देने लगे कि वह उनकी कविताओं पर अपनी राय प्रकट करे।
यह ज्ञात होने पर कि दबा हुआ व्यक्ति एक कवि था तो सचिवालय की उप समिति ने यह निश्चय किया कि दबे हुए आदमी का कृषि विभाग और व्यापार-विभाग से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसे संस्कृति-विभाग को भेज देना चाहिए। कमेटी ने संस्कृति विभाग से यह अनुरोध भी किया कि वह शीघ्र से शीघ्र उस विषय पर निर्णय ले ताकि उस कवि का जामुन के पेड़ से छुटकारा मिल जाए।
विशेष - लेखक ने इस अंश में घटनाक्रम को एक बिल्कुल नया मोड़ देकर. नाटकीयता उत्पन्न कर दी है।
प्रश्न :
1. दूसरे दिन क्या पता चला और उसका क्या परिणाम हुआ?
2. दबे हुए शायर को कविताएँ सुनाने कौन लोग पहुँच गये ? और उससे क्या अपेक्षा करने लगे?
3. सब-कमेटी ने क्या फैसला लिया और उसकी फाइल किस विभाग को भेज दी गई ?
4. कल्चरल-डिपार्टमेंट से क्या अनुरोध किया गया ?
उत्तर :
1. दूसरे दिन माली के बताने पर पूरे सेक्रेटेरिएट और शहर में यह अफवाह फैल गई कि पेड़ के नीचे दबा हुआ आदमी शायर है। यह सुनकर झुण्ड के झुण्ड लोग वहाँ एकत्र हो गए। इनमें अनेक शायर भी थे।
2. पेड़ के नीचे दबे शायर को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी और कुछ लोग अपनी कविताएँ-दोहे भी शायर को सुनाने लगे और कई क्लर्क तो अपनी कविता के गुण-दोष बताने के लिए उसे मजबूर करने लगे। सचिवालय के कई क्लर्क और अफसर जिन्हें साहित्य से लगाव था अपनी कविताएँ सुनाने को वहीं रुक गए। इस प्रकार दबे हुए शायर के चारों ओर कवि-सम्मेलन जैसा वातावरण उपस्थित हो गया।
3. चूँकि दबा हुआ आदमी एक शायर है इसलिए सचिवालय की सब-कमेटी (उपसमिति) ने यह फैसला लिया कि अब इसकी फाइल का सम्बन्ध न कृषि-विभाग से है, और न उद्यान-विभाग से, बल्कि इसका संबंध कल्चरल-डिपार्टमेंट (संस्कृति-विभाग) से है।
4. कल्चरल-डिपार्टमेंट से अनुरोध किया गया कि जल्द से जल्द फैसला लेकर दबे हुए शायर को निकाला जाये। ताकि उस अभागे व्यक्ति की जान बच सके।
5. दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा-भागा कवि के पास आया और बोला, "मुबारक हो, मिठाई खिलाओ। हमारी सरकारी साहित्य अकादमी ने तुम्हें अपनी केंद्रीय शाखा का मेंबर चुन लिया है, यह लो चुनाव-पत्रा" ।
"मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।" दबे हुए आदमी ने कराहकर कहा। उसकी साँस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आँखों से मालूम होता था कि वह घोर पीड़ा और दुःख में पड़ा है।
"यह हम नहीं कर सकते।" सेक्रेटरी ने कहा, "और जो हम कर सकते थे, वह हमने कर दिया है, बल्कि हम तो यहाँ तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ, तो तुम्हारी बीवी को वजीफा दे सकते हैं, अगर तुम दरख्वास्त दो, तो हम वह भी कर सकते हैं।"
"मैं अभी जीवित हूँ।" कवि रुक-रुककर बोला, "मुझे जिंदा रखो।"
"मुसीबत यह है,"सरकारी साहित्य अकादमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला,"हमारा विभाग सिर्फ कल्चर से संबंधित है। पेड़ काटने का मामला कलम-दवात से नहीं, आरी-कुल्हाड़ी से संबंधित है। उसके लिए हमने फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लिख दिया है और अर्जंट लिखा है।"
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य रचना 'जामुन का पेड़ से लिया गया है। इस अंश में कल्चरल-डिपार्टमेन्ट द्वारा की गई कार्यवाही का विवरण दिया गया है।
व्याख्या - जब मामला संस्कृति विभाग में जा पहुँचा तो वहाँ के सचिव ने आकर दबे आदमी का बाकायदा इंटरव्यू लिया। अगले दिन वह भागा-भागा कवि के पास आया और उसे बधाई देते हुए बोला कि सरकारी साहित्य अकादमी ने उसे (कवि को) अपनी केन्द्रीय शाखा का सदस्य चुन लिया है। उसने कवि को चयन प्रमाण-पत्र भी सौंप दिया। लेकिन दबे पड़े आदमी ने कराहते हुए सचिव से कहा कि तह उसे पेड़ के नीचे से तो निकाले। उसकी आँखें बता रही थीं कि दबे पड़े-पड़े उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी।
सेक्रेटरी ने कहा कि से निकालने का काम संस्कृति-विभाग नहीं कर सकता। संस्कृति विभाग जो कुछ कर सकता था, उसने कर दिया था संचिव ने को आश्वासन दिया कि उसका विभाग उसकी (कवि की) मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के लिए वजीफा भी दिलवा सकता था। लेकिन इसके लिए उसे आवेदन करना होगा। कवि ने कहा कि अभी वह मरा कहाँ था, उसका जीवन बचाया जाये। सेक्रेटरी ने कहा कि उसके विभाग के अंतर्गत केवल सांस्कृतिक कार्य आते हैं। पेड़ काटने का काम तो वन विभाग ही कर सकता था। उसे इस विषय में 'अत्यावश्यक' संकेत लगाकर लिख भी दिया गया था।
विशेष : इस अंश की और पिछले घटनाक्रम की यही विडम्बना है कि मरीज मरने जा रहा है मगर डॉक्टर सही दवा ही तजवीज नहीं कर पा रहे हैं। यह अंश भी सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य है।
प्रश्न :
उत्तर :
6. दूसरे दिन जब फॉरेस्ट-डिपार्टमेंट के आदमी आरी-कुल्हाड़ी लेकर पहुँचे तो उनको पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश-विभाग से हुक्म आया था कि इस पेड़ को नकाटा जाए। कारण यह था कि इस पेड़ को दस साल पहले पीटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था। अब अगर यह पेड़ काटा गया, तो इस बात का काफी अंदेशा था कि पीटोनिया सरकार से हमारे संबंध सदा के लिए बिगड़ जाएंगे।
"मगर एक आदमी की जान का सवाल है," एक क्लर्क चिल्लाया। "दसरी ओर दो राज्यों के सम्बन्धों का सवाल हैं.दसरे क्लर्क ने पहले क्लर्कको समझाया और यह भी तो समझो कि पीटोनिया सरकार हमारे राज्य को कितनी सहायता देती है-क्या हम उनकी मित्रता की खातिर एक आदमी के जीवन का भी बलिदान नहीं कर सकते ?"
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्य कथा 'जामुन का पेड़ से लिया गया है। जब वन-विभाग के कर्मचारी आरी-कुल्हाड़ी लेकर पेड़ को काटने पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया क्योंकि वह पेड़ राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। यही घटना इस अंश में वर्णित है।
व्याख्या - जब पेड़ काटने का मामला वन-विभाग पहुँचा तो वन-विभाग ने उसे काटने का आदेश दे दिया। जब विभाग के कर्मचारी काटने के औजार लेकर सेक्रेटेरिएट पहुँचे तो उनको पेड़ काटने से रोक दिया गया। उन्हें बताया गया कि वह पेड़ कोई साधारण जामुन का पेड़ न था। दस साल पहले पीटोनिया देश के प्रधानमंत्री ने रोपा था। इस पेड़ के काटे जाने से पीटोनिया सरकार से संबंध बिगड़ जाने का डर था। इसलिए विदेश-विभाग ने पेड़ को काटे जाने पर रोक लगा दी थी। एक क्लर्क ने चिल्लाकर कहा कि इस आदेश से एक निर्दोष आदमी की जान जा सकती थी। तब दूसरे क्लर्क ने उसे समझाया कि पीटोनिया की सरकार भारत को बहुत सहायता पहुँचाती रही थी। उसकी मित्रता बनाये रखने के लिए यदि एक देशवासी का बलिदान भी हो जाय तो सहन कर लेना चाहिए।
विशेष - लेखक ने सरकारी अफसरों की घटिया सोच पर तीखा व्यंग्य-प्रहार किया है। जिनकी दृष्टि में एक आदमी की जिंदगी, एक उखड़े पड़े जामुन के वृक्ष के बराबर भी नहीं है। राजनयिक संबंधों के महत्व पर भी लेखक ने चुभता हुआ कटाक्ष किया है।
प्रश्न :
उत्तर :
7. अण्डर सेक्रेटरी ने सुपरिटेंडेंट को बताया, "आज सवेरे प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे विदेश-विभाग इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करेगा, वे जो फैसला देंगे, वही सबको स्वीकार होगा।" शाम के पाँच बजे स्वयं सुपरिटेंडेंट कवि की फाइल लेकर उसके पास आया, "सुनते हो, आते ही वह खुशी से फाइल को हिलाते हुए चिल्लाया, "प्रधानमंत्री ने इस पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया, और इस घटना की सारी अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी अपने सिर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जायेगा और तुम इस संकट से छुटकारा हासिल कर लोगे। सुनते हो ? आज तुम्हारी फाइल पूर्ण हो गई।" मगर कवि का हाथ ठण्डा था, आँखों की पुतलियाँ निर्जीव और चींटियों की एक लम्बी पाँत उसके मुँह में जा रही थी। उसके जीवन की फाइल भी पूर्ण हो चुकी थी।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह में संकलित कृश्नचंदर की व्यंग्यमय कहानी 'जामुन का पेड़ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने पेड़ के पीछे दबे पड़े कवि के जीवन का करुण अंत दिखाया है।
व्याख्या - विदेश-विभाग के अंडर सेक्रेटरी ने व्यापार-विभाग के सुपरिटेंडेंट को बताया कि सवेरे प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गये थे। शाम चार बजे विदेश विभाग पेड़ की फाइल को उनके सामने प्रस्तुत करेगा। प्रधानमंत्री जो भी निर्णय देंगे उसे सभी स्वीकार करेंगे।
शाम पांच बजे सुपरिटेंडेंट महोदय स्वयं फाइल लेकर कवि के पास पहुंचे। उन्होंने फाइल को हिलाते हुए खुशी से चिल्लाते हुए कवि से कहा कि प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का आदेश दे दिया था। उन्होंने इस पेड़ को काटे जाने की अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। अगले दिन पेड़ को काट दिया जायेगा और कवि को उस संकट से मुक्ति मिल जाएगी।
सुपरिटेंडेंट ने कवि को सुनाकर कहा कि उसकी फाइल पूरी हो गई। लेकिन कवि का शरीर ठंडा पड़ा था। आँखों की पुतलियाँ स्थिर पड़ी थी और उसके खुले हुए मुख में चींटियों की लम्बी पंक्ति प्रवेश कर रही थी। ऑफिस की फाइल के पूर्ण होने के साथ ही उस कवि के जीवन की फाइल भी पूरी हो चुकी थी।
विशेष -
1. कवि की आशंका सच साबित हुई। मुक्ति की खबर आते-आते इतनी देर हो गई कि पिंजरे का पंछी पिंजरा खोलने से पहले ही निकल गया था।
2. कहानी का यह अंश दुखद और निंदनीय, पदक्रम व्यवस्था का चरम स्वरूप प्रस्तुत कर रहा है। लेखक का संदेश स्पष्ट है। सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए।
प्रश्न :
उत्तर :