Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 4 विदाई-संभाषण Textbook Exercise Questions and Answers.
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पाठ के साथ -
Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 1.
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इसके माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि भारत के लोग विदाई के समय दुःख अनुभव करते हैं। भले ही वे आपस में लड़ते-झगड़ते रहे हों, किन्तु उन्हें अपने साथी से बिछुड़ने का गम होता है। लॉर्ड कर्जन और भारतवासियों को शिवशंभु की दो गायों का प्रतीक मानकर यदि देखें तो इनमें लॉर्ड कर्जन बलशाली गाय है और भारतवासी दुर्बल गाय है। आज शक्तिशाली गाय (लॉर्ड कर्जन) उनसे बिछुड़ रही है इसलिए कमजोर गाय (भारतवासी) दुःखी है, भले ही लॉर्ड कर्जन की रीति-नीति उन्हें नापसन्द रही हो।
विदाई संभाषण के प्रश्न उत्तर प्रश्न 2.
आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेदन करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया-यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
यहाँ लेखक ने बंग-भंग की उस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है जिसके चलते लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन दो भागों पश्चिम बंगाल, पूर्वी बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) के रूप में कर दिया। बंगाल की आठ करोड़ जनता ने इसका पुरजोर विरोध किया, किन्तु लॉर्ड कर्जन ने जनता की बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। पूरे भारत में इसका विरोध हुआ और इस घटना से स्वतन्त्रता आन्दोलन में तीव्रता का संचार हुआ।
Class 11 Hindi Chapter 4 Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 3.
कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन के इस्तीफे के दो प्रमुख कारण थे -
1. बंग-भंग योजना को मनमाने ढंग से लागू करने के कारण पूरे भारत में उसके विरुद्ध आन्दोलन छिड़ गया जिसने कर्जन की जड़े हिला दीं। वह इंग्लैण्ड वापस जाने के बहाने ढूँढ़ने लगा।
2. लॉर्ड कर्जन एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा से नियुक्त कराना चाहता था। उसकी सिफारिश को ब्रिटिश सरकार ने नहीं मांना, अतः क्षुब्ध होकर उसने भारत के वायसराय पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
प्रश्न 4.
बिचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई ! कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे!-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक लॉर्ड कर्जन से यह कहना चाहता है कि आप जरा विचार करें कि भारत में आपकी क्या आन-बान और शान थी। दिल्ली दरबार में आपकी और आपकी पत्नी की कुर्सी सोने की थी, आपका हाथी जुलूस में सबसे आगे था। उसका हौदा, चँवर, छत्र सबसे ऊँचा था, सम्राट एडवर्ड के उपरान्त आपको ही भारत में यह सम्मान प्राप्त था।
इस देश के धनी-मानी राजा-रईस आपके आगे हाथ-बाँधे फिरते रहते थे। आप जिसे चाहें मिट्टी में मिला सकते थे और तुच्छ नाचीज को बड़े-से-बड़े पद पर बिठा सकते थे, किन्तु आज आपकी यह दशा हो गई है कि आपके कहने से एक फौजी अफसर भी ब्रिटिश सरकार ने नियुक्त नहीं किया और क्षुब्ध होकर जब आपने इस्तीफा दे दिया तो उसे स्वीकार कर लिया गया।
Class 11 Hindi Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 5.
आपके और यहाँ के निवासियों के बीच कोई तीसरी शक्ति और भी है-यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?
उत्तर :
तीसरी शक्ति से लेखक का तात्पर्य ईश्वर से है जिसकी लीला बड़ी विचित्र है। लॉर्ड कर्जन ने त्यागपत्र की धमकी देकर जो लीला (नाटक) की उसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार न करके उन्हें पदविहीन कर दिया। यह ईश्वर की लीला ही थी जिसका अनुमान वायसराय नहीं लगा सके। लेखक यह कहना चाहता है कि ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र होती है। संसार के सारे क्रिया-कलाप उस तीसरी शक्ति (ईश्वर) की इच्छा से ही सम्पन्न होते हैं।
पाठ के आस-पास -
Class 11 Hindi Ch Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 1.
पाठ का यह अंश'शिवशंभु के चिढे' से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा इस पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?
उत्तर :
जब यह लेख लिखा गया था उस समय देश पर अंग्रेजों का शासन था। अत: अंग्रेज सरकार या उसके किसी बड़े अधिकारी के खिलाफ सीधे-सीधे ढंग से कुछ लिख पाना सम्भव न था। प्रेस पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाता था। अत: लेखक ने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए 'शिवशंभु' नामक एक पात्र की कल्पना की जो भाँग के नशे में खरी-खरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध था। भारतीयों की बेबसी, लाचारी का चित्रण करने के लिए लेखक ने 'शिवशंभु' नामक पात्र की कल्पना की। इस पात्र के माध्यम से व्यंग्य करते हुई अंग्रेज सरकार की जो बखिया लेखक ने उधेड़ी है, वह सामान्यतः सम्भव न थी।
Class 11 Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 2.
नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है-कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है ? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर :
नादिरशाह एक अत्याचारी एवं जिद्दी शासक था। इसलिए लोग उसे तानाशाह कहते थे। लॉर्ड कर्जन की जिद्द भी नादिरशाह से बढ़कर ही थी। उन्होंने जब बंग-भंग का निश्चय कर लिया तो फिर भारतीय जनता के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और अन्ततः बंगाल को दो टुकड़ों में बाँट ही दिया गया। निश्चय ही मुझे यह बात सही लगती है कि लॉर्ड कर्जन नादिरशाह से भी बढ़कर जिद्दी थे।
Vidai Sambhashan Class 11 Question Answer प्रश्न 3.
क्या आँख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है ? इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है ? इस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
शासक का कार्य आँख बन्द करके प्रजा पर मनमाने हुक्म चलाना नहीं है। उसे प्रजा की बातों पर भी ध्यान देना चाहिए। प्रजा के अनुरोध को देखते हुए उसे अपने निर्णयों में आवश्यक बदलाव भी करने चाहिए। तभी शासक की लोकप्रियता बढ़ती है। जो शासक शासन-व्यवस्था में प्रजा को भागीदार नहीं बन्यता और मनमाने निर्णय करता है, प्रजा उस शासक से सन्तुष्ट नहीं रहती। शासन में शासक की इच्छा नहीं अपितु प्रजा की इच्छा सर्वोपरि रहनी चाहिए। किन्तु लॉर्ड कर्जन ने अपने वायसराय काल में प्रजा की इच्छा की अवहेलना की इसलिए उनका शासन अच्छा शासन नहीं कहा जा सकता।
Class 11 Hindi Chapter Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 4.
इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलादीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
गौर करने की बात -
(क) और (ख) परीक्षोपयोगी नहीं।
भाषा की बात -
Class 11 Aroh Chapter 4 Question Answer प्रश्न 1.
वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। सामान्य तौर पर आने के लिए पधारें शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारें शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
सामान्यत: पधारें शब्द का प्रयोग आने के लिए किया जाता है, किन्तु उपर्युक्त प्रश्न में दिए वाक्य में पधारें' का प्रयोग जाने के अर्थ में किया गया है।
Class 11 Hindi Aroh Chapter 4 Question Answer प्रश्न 2.
पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेंदु युगीन हिन्दी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिन्दी में लिखिए।
(क) आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा।
(ख) आप किस को आए थे? और क्या कर चले?
(ग) उनको रखाया एक आदमी नौकर न रखा।
(घ) पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे।
उत्तर :
सामान्य हिन्दी में प्रश्न में दिए गए वाक्यों को इस प्रकार लिखा जाएगा
(क) पहले भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अन्त में उन्हें जाना पड़ा।
(ख) आप किसलिए आए थे और क्या कर चले?
(ग) उनके द्वारा रखे गए एक आदमी तक को नौकर नहीं रखा।
(घ) पर शुभेच्छा करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव एवं यश को फिर से प्राप्त करे।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
विदाई-संभाषण कक्षा 11 प्रश्न उत्तर प्रश्न 1.
लॉर्ड कर्जन भारत में किस पद पर थे?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त वायसराय पद पर आसीन थे।
Class 11th Hindi Chapter 4 Vidai Sambhashan Question Answer प्रश्न 2.
लॉर्ड कर्जन का वायसराय के रूप में दूसरा कार्यकाल कितनी अवधि का रहा?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन का वायसराय के रूप में दूसरा कार्यकाल केवल एक वर्ष का 1904 से 1905 तक रहा।
Class 11th Hindi Aroh Chapter 4 Question Answer प्रश्न 3.
लॉर्ड कर्जन ने त्यागपत्र देने की धमकी क्यों दी?
उत्तर :
वे एक अंग्रेज फौजी अफसर को अपनी मनचाही नियुक्ति देना चाहते थे, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात नहीं मानी, तब दबाव बनाने के लिए उन्होंने त्यागपत्र की धमकी दी। सरकार ने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया।
Ch 4 Hindi Class 11 Aroh Question Answer प्रश्न 4.
दिल्ली दरबार के समय लॉर्ड कर्जन और उनकी पत्नी की कुर्सी कहाँ रखी गयीं? ये किस धातु की बनी थीं?
उत्तर :
दिल्ली दरबार के समय लॉर्ड कर्जन एवं उनकी पत्नी महाराज़ एडवर्ड के दायीं ओर रखी सोने की बनी कुर्सियों पर बैठाये गए।
Class 11 Hindi Chapter 4 Aroh Question Answer प्रश्न 5.
लॉर्ड कर्जन को भारतवासी किस स्थिति में माफ कर सकते थे?
उत्तर :
यदि भारत से विदा होते समय लॉर्ड कर्जन अपनी गलतियों की क्षमा-याचना करते और भारतवर्ष के लिए शुभेच्छा व्यक्त करते तो भारतवासी उदारता दिखाते हुए उन्हें माफ कर सकते थे।
प्रश्न 6.
प्रजा के प्रति वायसराय लॉर्ड कर्जन का क्या रवैया था?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन ने कभी प्रजा के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और अपनी जिद पर अड़े रहे।
प्रश्न 7.
भारत की प्रजा की दो विशेषताएँ लेखक ने क्या बताई हैं ?
उत्तर :
भारत की प्रजा (जनता) उदार एवं क्षमाशील है, साथ ही वह कृतज्ञता का भाव भी रखती है।
प्रश्न 8.
नर सुल्तान ने मुसीबत के समय कहाँ शरण पाई थी?
उत्तर :
नर सुल्तान ने मुसीबत के समय नरवरगढ़ में शरण पाई थी।
प्रश्न 9.
लेखक लॉर्ड कर्जन पर क्या व्यंग्य करता है ?
उत्तर :
क्या आँख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ भी न सुनना ही शासन होता है ? आपने अपने पूरे कार्यकाल में यही तो किया।
प्रश्न 10.
नादिरशाह कहाँ का शासक था ?
उत्तर :
नादिरशाह 1736 से 1747 तक ईरान का शासक था।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
लॉर्ड कर्जन का वायसराय के रूप में कार्यकाल क्या था?
उत्तर :
भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त वायसराय लॉर्ड कर्जन का पहला कार्यकाल 1899 से 1904 ई. था। दूसरी बार 1904 में वे फिर दूसरे कार्यकाल (1904 से 1909 ई.) के लिए वायसराय नियुक्त किए गए, किन्तु उन्होंने 1905 में त्याग-पत्र दे दिया। इस प्रकार भारत के वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन का कार्यकाल 1899 से 1905 ई. तक रहा।
प्रश्न 2.
नर सुल्तान कौन था? उससे सम्बन्धित कौन-सी बात 'लोकगीतों में आज भी गाई जाती है ?
उत्तर :
नर सुल्तान एक राजकुमार था, जिसने मुसीबत के समय नरवरगढ़ में शरण ली और वहाँ चौकीदार से लेकर उच्चाधिकारी के रूप में काम किया। जब वह वहाँ से विदा हुआ तब उसने नरवरगढ़ की भूमि एवं जनता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए अपना प्रणाम निवेदित किया, इसीलिए लोकगीतों में आज भी नर सुल्तान का गुणगान किया जाता है।
प्रश्न 3.
विदाई के अवसर पर लेखक लॉर्ड कर्जन से क्या सुनना चाहता है?
उत्तर :
विदाई के अवसर पर लेखक लॉर्ड कर्जन के मुख से वास्तविकता सुनना चाहता है। वह चाहता है कि जाते समय वायसराय महोदय यह सच स्वीकार करें कि मैंने सदैव भारत का बुरा किया। यहाँ की जनता की बात नहीं मानी। यह स्वीकारोक्ति करने के साथ ही यदि वे भारत के प्रति अपनी शुभेच्छा व्यक्त करें कि वह अपने खोए गौरव और यश को पुन: प्राप्त करे तो भारतवासी उदारता का परिचय देते हुए लॉर्ड कर्जन की सभी गलतियों को माफ कर सकते हैं। पर वह जानता है कि लॉर्ड साहब यह कभी नहीं करेंगे। क्योकि वे अकृतज्ञ एवं जिद्दी स्वभाव के हैं।
प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन द्वारा किए गए भारत-विरोधी कार्य कौन-कौन से हैं? जिनका उल्लेख इस पाठ में है।
उत्तर :
प्रश्न 5.
भारतीय जनता के किस स्वभाव की चर्चा पाठ में हुई है?
उत्तर :
भारत की जनता उदार, सहनशील; कृतज्ञ, करुणावान, क्षमाशील एवं उच्च आदर्शों वाली है। भारतीय अत्याचारों को चुपचाप भले ही सहन कर लें, किन्तु वे ईश्वर पर विश्वास करते हैं। भारत के लोग अपने शासकों के प्रति श्रद्धा रखते हैं। यदि कोई शासक सद्व्यवहार दिखाता है तो वे उसकी बड़ी-से-बड़ी भूल को भी क्षमा कर देते हैं।
लेखक परिचय :
हिन्दी के गद्यकारों में बालमुकुंद गुप्त का प्रमुख स्थान है। उनका जन्म 1865 ई. में हरियाणा प्रान्त के रोहतक जिले के गुड़ियानी ग्राम में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू में हुई। बाद में उन्होंने हिन्दी की शिक्षा प्राप्त की। आपकी विधिवत शिक्षा मिडिल (कक्षा-8) तक हुई परन्तु स्वाध्याय से पर्याप्त ज्ञान अर्जित किया। हिन्दी गद्यकारों में उन्हें भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग के बीच की कड़ी के रूप में देखा जाता है। आपका निधन 1907 ई. में हो गया।
कृतियाँ-शिवशंभु के चिढ़े, चिट्ठे और खत, खेल तमाशा। संपादन-अखबार-ए-चुनार, हिन्दुस्तान, हिन्दी बंगवासी, भारतमित्र।
बालमुकुंद गुप्त निबंधकार के साथ-साथ राष्ट्रीय नव-जागरण के सक्रिय पत्रकार भी थे। पत्रकारिता को इन लोगों ने स्वतन्त्रता संग्राम के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। यही कारण है कि उनके लेखन में निर्भीकता का गुण विद्यमान है। बालमुकुंद की रचनाओं में हास्य-व्यंग्य का पुट भी विद्यमान है। उन्होंने बंगला और संस्कृत की कुछ रचनाओं के अनुवाद भी किए। वे शब्दों के अद्भुत जानकार एक पारखी व्यक्ति थे। 'अनस्थिरता' शब्द की शुद्धता को लेकर महावीर प्रसाद द्विवेदी से उनकी लम्बी बहस चली थी।
विदाई संभाषण, उनकी सर्वाधिक चर्चित कृति 'शिवशम्भु के चिढे' का एक अंश है। इस निबन्ध में उन्होंने भारत के तत्कालीन वायसराय 'लॉर्ड कर्जन' पर व्यंग्य करते हुए उनके शासनकाल में भारतीयों की दयनीय स्थिति का निरूपण किया है। इस पाठ में भारतीयों की बेबसी, लाचारी को व्यंग्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करते हुए लॉर्ड कर्जन पर तीखे प्रहार किए गए हैं। लेखक की विनोदप्रियता, चुलबुलापन एवं नवीन भाषा प्रयोग इस निबन्ध में देखते ही बनते हैं।
पाठ-सारांश :
विदाई संभाषण बाबू बालमुकुंद गुप्त की चर्चित व्यंग्य रचना 'शिवशम्भु के चिढे' का एक अंश है, जिसमें लॉर्ड कर्जन के वायसराय रहते समय भारत की तथा भारतीयों की दयनीय स्थिति का निरूपण किया गया है। लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय पद पर 1899 से 1905 ई. तक रहे। कर्जन ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया तथा भारत के संसाधनों का, अंग्रेजों के हित में सर्वोत्तम उपयोग करना ही उनके शासन की नीति थी। सरकारी निरंकुशता के पक्षधर लॉर्ड कर्जन ने प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
कौंसिल में अपनी पसन्द के सदस्यों को नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें भारत एवं इंग्लैण्ड में नीचा देखना पड़ा। अतः क्षुब्ध होकर उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया तथा इंग्लैण्ड चले गए। इसी अवसर पर उनकी विदाई के समय जो 'विदाई संभाषण' लेखक ने कल्पित किया है उसमें भारतीयों को बेबसी, दुःख, लाचारी को व्यंग्यपूर्ण ढंग से व्यक्त करते हुए इसे लॉर्ड कर्जन की लाचारी बताया है। पाठ का सारांश निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता है -
विदाई-करुणापूर्ण प्रसंग - लॉर्ड कर्जन को सम्बोधित करते हुए लेखक कहता है कि आप भारत में स्थायी रूप से वायसराय बने रहना चाहते थे, किन्तु ऐसा हो न सका। ईश्वर की इच्छा आपकी इच्छा से बड़ी है। आपने वायसराय का एक कार्यकाल (1899-1904) पूरा कर लिया था और अब दूसरा कार्यकाल भी पूरा करने के आप इच्छुक थे। भारतवासी आपसे प्रसन्न नहीं थे, वे आपको वायसराय के रूप में दुबारा नहीं देखना चाहते थे, पर बेबस थे। क्या कर सकते थे बेचारे, जब आप दूसरी बार भी वायसराय बनकर आए। वे हमेशा आपके जाने की प्रतीक्षा किया करते, किन्तु आज आपके जाने पर उनके मन में करुणा उत्पन्न हो रही है।
सचमुच विदाई का प्रसंग करुणाजनक होता है। भारत में तो पशु-पक्षी तक विदाई का दर्द अनुभव करते हैं। शिवशम्भु के पास दो गाएँ थीं जो आपस में लड़ती रहती थीं, किन्तु जब उनमें से एक बलशाली गाय वहाँ से विदा हुई तो कमजोर गाय उसके बिछुड़ने के दुःख में बिना चारा खाए खड़ी रही। जहाँ पशुओं का ऐसा व्यवहार हो वहाँ विदाई के समय मनुष्य का दुःखी होना तो स्वाभाविक ही है। यहाँ बलशाली गाय वायसराय की प्रतीक है और कमजोर गाय भारतवासियों की प्रतीक है।
शासन का दुःखद अन्त - आपके शासन का दुःखद अन्त हुआ। आपने इस बार मुंबई में उतरकर कहा कि यहाँ से जाते समय भारत को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा। वे चैन की नींद सोते रहेंगे, किन्तु बात उलटी हुई। इस देश में जैसी अशान्ति आप फैलाकर चले हैं, उसे मिटाने में आपके बाद आने वालों को चैन की नींद नसीब न होगी। आप न स्वयं सुखी हुए और न भारत की जनता को सुखी होने दिया, इसका लोगों को बड़ा दुःख है।
लॉर्ड कर्जन कीशान-बान - आपने दिल्ली दरबार में अपनी अनोखी शान देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी, जबकि आपके महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की कुर्सी चाँदी की थी। इस देश के सब रईसों ने आपको पहले सलाम किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे था, इसका हौदा चँवर छत्र सब बढ़-चढ़कर तथा सबसे ऊँचे थे। सारांश यह कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद आप इस देश में सर्वपूज्य थे, किन्तु इतनी शान के बावजूद आपको ब्रिटेन की सरकार के सामने नीचा देखना पड़ा।
लॉर्ड कर्जन का इस्तीफा - इस बार कौंसिल में आपने गैर-कानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता-गम्भीरता का दिवाला निकाल दिया। विलायत में आपने बार-बार यह धमकी दी कि यदि मेरी बात न मानी गई तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। अन्तत: आपका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया, जिसकी आशा आपको न थी। आपने जो. इस्तीफा ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिया था, उसको स्वीकार करके उसने आपको वायसराय पद से विदा कर दिया।
निर्मम शासन की याद - लेखक वायसराय कर्जन से पूछता है कि माई लॉर्ड ! क्या आप बताएँगे कि आपने प्रजा पालन के कर्तव्य का निर्वाह ठीक ढंग से किया है ? क्या प्रजा की बात पर कभी ध्यान दिया ? या उसकी मर्जी के विरुद्ध अपनी जिद से काम किया है ? कैसर और ज़ार जैसे तानाशाह भी घेरने से प्रजा की बात सुन लेते थे पर आपने कभी प्रजा के अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया।
अन्यथा 8 करोड़ जनता बंगाल - विभाजन का विरोध करती रही पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया। भले ही आपकी शासन अवधि पूरी हो गई हो पर बंग-भंग किए बिना आपको घर जाना पसन्द नहीं। इस देश की प्रजा को जिस अंग्रेज-शासक ने पीड़ित किया, उसी ने आपको भी पीड़ा पहुँचाई। भारत की प्रजा जानती है कि संसार में सब दुःखों का अन्त होता है। आपने भारत की प्रजा की महिमा नहीं समझी और आप भारत की प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ नहीं ले जा सके, इसका दुःख है।
नर सुल्तान नामक राजकुमार का उदाहरण - यहाँ की जनता नर सुल्तान नामक राजकुमार के गीत गाती है, जो अपनी विपदावस्था में कई साल तक नरवरगढ़ में रहा और वहाँ चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद पर काम किया। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर-से निकला तो विदा होते समय नगर द्वार से बाहर निकलकर उसने नगर को प्रणाम किया और आँखों में आँसू भरकर बोला 'प्यारे, नरवरगढ़ मेरा प्रणाम स्वीकार कर। आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपत्ति के दिन मैंने तुझमें काटे हैं।
तेरे ऋण का बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़ यदि मैंने जान-बूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ-चिन्ता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता-बहन की दृष्टि से न देखा हो, तो मेरा प्रणाम को न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे। माई लॉर्ड! जिस प्रजा में ऐसे राजकुमार की प्रशंसा लोकगीतों में की जाती हो उस देश से जाते समय क्या आप कुछ संभाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे?-"अभागे भारत मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी जो इस जीवन में असम्भव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा, पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हाथ में शक्ति रहते मैंने कभी तेरी भलाई नहीं की, अब शक्तिहीन होने पर भला मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ ? मैं केवल यही इच्छा कर सकता हूँ कि तू फिर रठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।"
नीचा देखना पड़ा। अत: क्षुब्ध होकर उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया तथा इंग्लैण्ड चले गए। इसी अवसर पर उनकी विदाई के समय जो 'विदाई संभाषण' लेखक ने कल्पित किया है उसमें भारतीयों को बेबसी, दुःख, लाचारी को व्यंग्यपूर्ण ढंग से व्यक्त करते हुए इसे लॉर्ड कर्जन की लाचारी बताया है। पाठ का सारांश निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता है
विदाई-करुणापूर्ण प्रसंग - लॉर्ड कर्जन को सम्बोधित करते हुए लेखक कहता है कि आप भारत में स्थायी रूप से वायसराय बने रहना चाहते थे, किन्तु ऐसा हो न सका। ईश्वर की इच्छा आपकी इच्छा से बड़ी है। आपने वायसराय का एक कार्यकाल (1899-1904) पूरा कर लिया था और अब दूसरा कार्यकाल भी पूरा करने के आप इच्छुक थे। भारतवासी आपसे प्रसन्न नहीं थे, वे आपको वायसराय के रूप में दुबारा नहीं देखना चाहते थे, पर बेबस थे। क्या कर सकते थे बेचारे, जब आप दूसरी बार भी वायसराय बनकर आए।
वे हमेशा आपके जाने की प्रतीक्षा किया करते, किन्तु आज आपके जाने पर उनके मन में करुणा उत्पन्न हो रही है। सचमुच विदाई का प्रसंग करुणाजनक होता है। भारत में तो पशु-पक्षी तक विदाई का दर्द अनुभव करते हैं। शिवशम्भु के पास दो गाएँ थीं जो आपस में लड़ती रहती थीं, किन्तु जब उनमें से एक बलशाली गाय वहाँ से विदा हुई तो कमजोर गाय उसके बिछुड़ने के दुःख में बिना चारा खाए खड़ी रही। जहाँ पशुओं का ऐसा व्यवहार हो वहाँ विदाई के समय मनुष्य का दुःखी होना तो स्वाभाविक ही है। यहाँ बलशाली गाय वायसराय की प्रतीक है और कमजोर गाय भारतवासियों की प्रतीक है।
शासन का दुःखद अन्त - आपके शासन का दुःखद अन्त हुआ। आपने इस बार मुंबई में उतरकर कहा कि यहाँ से जाते समय भारत को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा। वे चैन की नींद सोते रहेंगे, किन्तु बात उलटी हुई। इस देश में जैसी अशान्ति आप फैलाकर चले हैं, उसे मिटाने में आपके बाद आने वालों को चैन की नींद नसीब न होगी। आप न स्वयं सुखी हुए और न भारत की जनता को सुखी होने दिया, इसका लोगों को बड़ा दुःख है।
लॉर्ड कर्जन की शान-बान - आपने दिल्ली दरबार में अपनी अनोखी शान देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी, जबकि आपके महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की कुर्सी चाँदी की थी। इस देश के सब रईसों ने आपको पहले सलाम किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे था, इसका हौदा चँवर छत्र सब बढ़-चढ़कर तथा सबसे ऊँचे थे। सारांश यह कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद आप इस देश में सर्वपूज्य थे, किन्तुं इतनी शान के बावजूद आपको ब्रिटेन की सरकार के सामने नीचा देखना पड़ा।
लॉर्ड कर्जन का इस्तीफा-इस बार कौंसिल में आपने गैर-कानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता-गम्भीरता का दिवाला निकाल दिया। विलायत में आपने बार-बार यह धमकी दी कि यदि मेरी बात न मानी गई तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। अन्तत: आपका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया, जिसकी आशा आपको न थी। आपने जो इस्तीफा ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिया था, उसको स्वीकार करके उसने आपको वायसराय पद से विदा कर दिया।
निर्मम शासन की याद-लेखक वायसराय कर्जन से पूछता है कि माई लॉर्ड ! क्या आप बताएँगे कि आपने प्रजा पालन के कर्तव्य का निर्वाह ठीक ढंग से किया है ? क्या प्रजा की बात पर कभी ध्यान दिया ? या उसकी मर्जी के विरुद्ध अपनी जिद से काम किया है ? कैसर और ज़ार जैसे तानाशाह भी घेरने से प्रजा की बात सुन लेते थे पर आपने कभी प्रजा के अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया।
अन्यथा 8 करोड़ जनता बंगाल-विभाजन का विरोध करती रही पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया। भले ही आपकी शासन अवधि पूरी हो गई हो पर बंग-भंग किए बिना आपको घर जाना पसन्द नहीं। इस देश की प्रजा को जिस अंग्रेज-शासक ने पीड़ित किया, उसी ने आपको भी पीड़ा पहुँचाई। भारत की प्रजा जानती है कि संसार में सब दुःखों का अन्त होता है। आपने भारत की प्रजा की महिमा नहीं समझी और आप भारत की प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ नहीं ले जा सके, इसका दुःख है।
नर सुल्तान नामक राजकुमार का उदाहरण-यहाँ की जनता नर सुल्तान नामक राजकुमार के गीत गाती है, जो अपनी विपदावस्था में कई साल तक नरवरगढ़ में रहा और वहाँ चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद पर काम किया। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से निकला तो विदा होते समय नगर द्वार से बाहर निकलकर उसने नगर को प्रणाम किया और आँखों में आँसू भरकर बोला 'प्यारे, नरवरगढ़ मेरा प्रणाम स्वीकार कर।
आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपत्ति के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़ यदि मैंने जान-बूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ-चिन्ता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता-बहन की दृष्टि से न देखा हो, तो मेरा प्रणाम को न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।
माई लॉर्ड! जिस प्रजा में ऐसे राजकुमार की प्रशंसा लोकगीतों में की जाती हो उस देश से जाते समय क्या आप कुछ संभाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे? -"अभागे भारत मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी जो इस जीवन में असम्भव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा, पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हाथ में शक्ति रहते मैंने कभी तेरी भलाई नहीं की, अब शक्तिहीन होने पर भला मैं तेरे लिए क्या कर सकता - हूँ? मैं केवल यही इच्छा कर सकता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।"
कठिन शब्दार्थ :
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
1. बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुःख है। माइ लॉर्ड ! आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर अहो ! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। कैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त लिखित 'विदाई संभाषण' पाठ से लिया गया है। इसमें अंग्रेजी राज के समय भारत के वायसराय बनकर आए लार्ड कर्जन पर व्यंग्य किए गए हैं। व्याख्या-भारत पर अंग्रेजी राज के समय भारत का वायसराय बनकर आया लार्ड कर्जन अपने कुशासन और तानाशाही के लिए कुख्यात है।
भारत से उसकी विदाई बड़े बुरे ढंग से हुई थी। लेखक ने व्यंग्यमय शैली में यह विदा-भाषण लिखा था। लेखक कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि जब किसी की स्थायी विदाई होती है तो उसके परिचित लोगों को बड़ा कष्ट होता है। लेखक कहता है कि लार्ड कर्जन को भारत.से विदा होते देख उसका हृदय बड़ा दु:खी हो रहा है, जबकि इस अहंकारी और संवेदन शून्य शासक के जाने से हर भारतीय प्रसन्न था।
स्वयं लेखक भी मन में प्रसन्न था। कर्जन को 'मेरे स्वामी' शब्दों से संबोधित करते हुए। गुप्त जी कहते हैं कि जब लार्ड कर्जन दूसरी बार फिर से वायसराय बनकर आया तो हर भारतवासी अप्रसन्न था। सभी यही चाहते थे कि वह दोबारा न आए। कर्जन के आने से लोग बहुत दुःखी हुए। भारतवासी तो हर समय यही चाहते रहते थे कि कर्जन भारत से जल्दी से जल्दी विदा हो जाए।
लेखक कहता है कि उसकी विदाई का समय देखकर उसे प्रसन्नता न होकर दुःख हो रहा है। शायद कारण यह हो कि लॉर्ड साहब बड़े बे-आबरू होकर अपने घर वापिस जा रहे थे। इसी स्थिति को देखकर यह विश्वास होता है कि विदाई बड़ी करुणाजनक हुआ करती है। इस समय पर बिछुड़ने वालों के हृदय संब कुछ भुलाकर शुद्ध हो जाते हैं। क्रोध और निंदा के स्थान पर लोगों के मन में शान्त भाव जाग उठता है। वे विदा होने वाले से बैर-भाव त्याग देते हैं।
विशेष :
प्रश्न
1. किसके दूसरी बार आने से भारतवासी प्रसन्न न थे ? और क्या चाहते थे ?
2. किसके जाने पर हर्ष की जगह विषाद हो रहा है ? और क्यों ?
3. बिछुड़ने का समय कैसा होता है ? इसकी और क्या विशेषताएँ अवतरण में बताई गई हैं ?
4. कब बैर-भाव छूटकर शान्त रस का आविर्भाव होता है ?
उत्तर :
1.लॉर्ड कर्जन दूसरी बार भारत का वायसराय बनकर आने से भारतवासी प्रसन्न नहीं थे। लॉर्ड कर्जन ने अपने प्रथम वायसराय काल में भारतवासियों को बहुत अपमानित और दुःखी किया था। इसी कारण वे कर्जन के दोबारा आने से प्रसन्न नहीं थे।
2. भारत को अहंकारी एवं जिद्दी वायसराय से छुटकारा मिल रहा था, इसलिए भारतीयों को हर्ष होना चाहिए था, पर विदा के समय लोगों को विषाद (दुःख) होना स्वाभाविक है। इसीलिए लॉर्ड कर्जन की विदाई के अवसर पर भारतवासी हर्ष के स्थान पर विषाद का अनुभव कर रहे हैं।
3. विदाई का समय करुणा उत्पन्न करता है, साथ ही यह मन को निर्मल और कोमल बना देता है। व्यक्ति अपने समस्त बैर-भाव को भुलाकर शान्त रस का अनुभव करते हैं, इसी का उल्लेख यहाँ किया गया है।
4. विदाई की बेला पर लोग अपने शत्रुओं से भी बैर-भाव भूलकर शान्त रस का अनुभव करते हैं। शत्रु की विदाई भी दुःख उत्पन्न करती है इसी का उल्लेख लेखक यहाँ कर रहा है।
2. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल.सुखांत समझकर खेलना आरम्भ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुःख के साथ कैसे हुआ? आह ! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लाला दिखाता हूँ, किन्तु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं !
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्यपुस्तकं ‘आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त लिखित पाठ 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। लेखक ने इस अंश में लॉर्ड कर्जन के घमंड पर चोट करते हुए उसके शासन को एक दुखांत नाटक बताया
व्याख्या - गुप्त जी कहते हैं कि कर्जन से पहले जो शासक यहाँ आए उनको भी एक दिन यहाँ से जाना पड़ा। इसीलिए आपको भी चली आ रही परंपरा के अनुसार जाना ही पड़ेगा। अंतर यह है कि पहले आए शासकों की तुलना में आपका शासनकाल एक दुखांत नाटक जैसा है। आपने जो खेल या मनमानी आरम्भ की उसका ऐसा दुखद अंत होगा इसका पता जनता को ही नहीं, स्वयं आपको भी नहीं पता था। आपने तो अपने घमण्ड में आकर इस शासन के नाटक को सुखान्त समझा था और प्रजा के कष्टों पर ध्यान नहीं दिया।
आपको क्या पता था कि इसका ऐसा अपमानजनक अंत आपको सहन करना पड़ेगा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जिस खेल का प्रारम्भ और मध्य भाग सुख से पूर्ण हो वह अंत में दुखदायी भी बन सकता है। यह सब आपके झूठे अहंकार का ही परिणाम है। आप समझते थे कि आप दुनिया को अपनी लीला दिखा रहे हैं किन्तु आप इस कठोर सच्चाई को भूल गए कि इस नाटक के पर्दे के पीछे आप से भी बढ़कर कोई खिलाड़ी अपना खेल चला रहा है। संसाररूपी नाटक के सूत्रधार ईश्वर की लीला के सामने आप जैसे नाशवान मनुष्य की लीला कहाँ टिक सकती थी? हर अहंकारी और प्रजा पीड़क शासक का अंत ऐसा ही हास्यास्पद और अपमानपूर्ण होता आया है।
विशेष :
प्रश्न 1.
किसके शासन को यहाँ दुःखान्त कहा गया है ? और क्यों ?
2. 'स्वयं सूत्रधार ........ दुःखान्त हो जायेगा' का आशय स्पष्ट कीजिए।
3. घमण्डी खिलाड़ी कौन है ? और वह क्या समझता है ?
4. "पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है" का आशय क्या है ?
उत्तर :
1. लॉर्ड कर्जन के शासन को दुखांत कहा गया है। क्योंकि जिस प्रकार अपमानित होकर उन्हें यहाँ से जाना पड़ा है, इसकी कल्पना भी उन्होंने न की थी। उनका सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया।
2. लॉर्ड कर्जेन ही इस खेल के सूत्रधार थे और यह समझते थे कि भारत के सम्बन्ध में निर्णय लेते समय ब्रिटिश सरकार उनकी हर बात मान लेगी। उन्होंने यह धमकी दे दी कि यदि मेरे रहते अमुक व्यक्ति को अमुक पद पर नियुक्त न किया गया तो मैं त्यागपत्र दे दूंगा। ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। अत: मजबूरी में उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इस प्रकार खेल का सूत्रधार लार्ड - कर्जन भी नहीं जानता था कि इस खेल का ऐसा दुःखद अन्त होगा कि उन्हें वायसराय का पद छोड़कर भारत से जाना ही पड़ेगा।
3. घमण्डी खिलाड़ी का अभिप्राय भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन से है। वह समझते थे कि उनकी त्यागपत्र की धमकी काम कर जाएगी। परंन्तु ऐसा न हुआ और अन्ततः बात न माने जाने की स्थिति में उन्होंने जो त्यागपत्र दिया उसे स्वीकार कर लिया गया।
4. लेखक का आशय यह है कि ईश्वर पर्दे के पीछे रहकर सारी लीलाओं (क्रियाकलापों) का संचालन करता है। लॉर्ड कर्जन ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपने त्यागपत्र की बात कही थी। वास्तव में यह उनका नाटक (लीला) ही था, पर कौन जानता था कि उनकी यह लीला ही उनका पद ले लेगी। वास्तव में ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है इसे कोई नहीं जानता।
3. इस बार बंबई उतरकर माइ लॉर्ड ! आपने जो इरादे जाहिर किए थे, जरा देखिए तो उनमें से कौन-कौन पूरे हुए? आपने कहा था कि यहाँ से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा, वे कितने ही वर्षों सुख की नींद सोते रहेंगे। किंतु बात उलटी हुई। आपको स्वयं इस बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देश में जैसी अशांति आप फैला चले हैं, उसके मिटाने में आपके पद पर आने वालों को न जाने कब तक नींद और भूख हराम करना पड़ेगा। इस बार आपने अपना बिस्तरा गरम राख पर रखा है और भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूंदों की भाँति नचाया है। आप स्वयं भी खुश न हो सके और यहाँ की प्रजा को सुखी न होने दिया, इसका लोगों के चित्त पर बडा ही दख है।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त के निबंध 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने लॉर्ड कर्जन को उसके अहंकारपूर्ण इरादों की विफलता की याद दिलाई है। ..
व्याख्या - लेखक कर्जन को याद दिलाता है कि इंग्लैंड से मुंबन कर उसने जिन इरादों की घोषणा की थी, उनमें से वह एक को भी पूरा नहीं कर पाया। कर्जन ने बड़े अहंकार के साथ कहा था कि जब वह अपना कार्यकाल पूरा होने पर इंग्लैंड वापिस जाएगा उससे पहले वह भारत को ऐसा आतंकित कर जाएगा कि आगे आने वाले वायसरायों को कुछ भी न करना पड़ेगा। वे बड़े चैन और शान से अपना समय बिता जाएँगे। लेखक कहता है कि कर्जन ने जो डींग हाँकी थी, उसका उलटा ही दृश्य देखने को मिला।
कर्जन को इस बार अनेक कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसने अपने हठ और मनमानी शासन नीति से देश में ऐसी अशांति और असंतोष उत्पन्न कर दिया कि उसे शांत करने में आने वाले वायसरायों की नींद और भूख ही उड़ जाएगी। कर्जन न स्वयं चैन से सो पाया न उसने भारत की जनता को चैन से जीने दिया। उसे अपने अन्यायपूर्ण कार्यों द्वारा बहुत कष्ट पहुँचाया। लेखक के अनुसार कर्जन स्वयं सुख से नहीं रह पाया, न उसने यहाँ के लोगों को सुखी रहने दिया। वह एक विफल शासक सिद्ध हुआ। उसका सारा अहंकार और बड़बोलापन नष्ट हो गया। उसे अपमानित होकर भारत से जाना पड़ा।
विशेष - गुप्त जी ने अपने व्यंग्य प्रहार से लॉर्ड कर्जन को आइना दिखाया है।
प्रश्न :
1. लॉर्ड कर्जन ने मुंबई में क्या इरादे प्रकट किए थे ?
2. कर्जन अपने कितने इरादे पूरे कर पाया ?
3. कर्जन के बाद आने वाले वायसरायों की क्या दशा होनी थी?
4. लॉर्ड कर्जन ने भारतवासियों के साथ कैसा व्यवहार किया था ?
उत्तर :
1. लॉर्ड कर्जन ने मुंबई में कहा था कि वह भारत से जाने से पहले अपने कठोर शासन से ऐसा वातावरण बना जाएमा कि आगे आने वाले वायसराय चैन से सोयेंगे उन्हें शासन चलाने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
2. कर्जन अपने अधिकांश इरादे पूरे नहीं कर सका। उसके अन्यायपूर्ण और निरंकुश शासन तथा बंगाल के विभाजन के कारण भारत के लोग उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। उसे भारत से विफल और अपमानित होकर जाना पड़ा।
3. लेखक ने कहा कि कर्जन के बा५ आने वाले शासक कभी भी चैन से शासन नहीं कर पायेंगे। वे न चैन से खा पायेंगे न चैन से सो पायेंगे। ऐसा ही हुआ भी।
4. लॉर्ड कर्जन ने जनता और देशी राजाओं पर अपने मनमाने आदेश लागू करके उनको घोर कष्ट दिए। जैसे गर्म तवे पर डाली गई पानी की बूंदें छटपटाती हैं, उसी प्रकार भारतीय जनता भी कर्जन के अत्याचारों से त्रस्त रही।
4. विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई ! कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे! अलिफ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह दूसरे।
इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा 'था; हौदा, चँवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का एक दर्जा था। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीचे आ रहे! आपके स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ नीचा देखना पड़ा! पद-त्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुन्द गुप्त द्वारा लिखित व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक ने लॉर्ड कर्जन की शान-बान दिखाते हुए उसके द्वारा सेनापति से मुकाबला करने पर हुई अपमानपूर्ण पराजय का उल्लेख किया है।
व्याख्या - लॉर्ड कर्जन को घोर अपमान झेलते हुए अपना वायसराय का पद छोड़ना पड़ा था। इंग्लैंड की सरकार ने उनकी इस्तीफा देने की धमकी और मनमानी की उपेक्षा करते हुए उसे वायसराय पद से मुक्त कर दिया था। लेखक इसी ओर संकेत करते हुए कहता है-कर्जन साहब ! आपकी इस देश (भारत) में कैसी निराली शान और ठाट-बाट थे। आपका दुर्भाग्य है कि आपने जितनी उन्नति की आज आप उतने ही नीचे आ गिरे हैं।
अलिफ लैला की कहानी के पात्र अलादीन ने अपने जादुई चिराग को रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के शासक खलीफा के सिंहासन को पाकर भी ऐसी शान नहीं पाई होगी जो शान आपने दिल्ली दरबार के जश्न में पाई थी। उस दरबार में आप और आपकी पत्नी सोने की कुर्सियों पर बैठे थे। जबकि इंग्लैंड के राजा के भाई (जो राजा के प्रतिनिधि के रूप में आये थे) और उनकी पत्नी की कुर्सियाँ चाँदी की थी। उस समय आप राजा एडवर्ड के दाहिने हाथ के समान थे.
और उनका छोटा भाई बायें हाथ के समान लग रहा था। दरबार में भारत के राजा-रईसों ने पहले आपको सर झुकाया था और भाई को बाद में। उस अवसर पर निकली शोभायात्रा में आपका हाथी सबसे ऊँचा था। उसका हौदा, चँवर और छत्र सभी एक से एक बढ़कर थे। उस समय ईश्वर और इंग्लैंड के राजा के बाद अगर किसी का स्थान था तो वह आपका ही था। ऐसे ऐश्वर्य और धाक वाले आप, एक सैन्य अधिकारी के पद से मुकाबला करते हुए जमीन पर जा गिरे। सार्वजनिक अपमान झेलना पड़ा। इग्लैंड की सरकार ने पद में उस सैन्य अधिकारी को ही ऊपर माना। आपको लज्जाजनक पराजय झेलनी पड़ी। आपकी इस्तीफा देने की धमकी. भी काम नहीं आई। आपको बेआबरू होकर इस देश से जाना पड़ रहा है।
प्रश्न :
1. दिल्ली दरबार में लॉर्ड कर्जन की क्या शान थी, स्पष्ट करें।
2. लॉर्ड कर्जन का दर्जा भारत में किस प्रकार का था ? अवतरण के आधार पर उत्तर दीजिए।
3. इस अवतरण में आए मुहावरों को लिखिए और उनके अर्थ बताइए।
4. इस अवतरण के आधार पर दिल्ली-दरबार में भारत के वायसराय को मिले सम्मान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
1. दिल्ली दरबार में वायसराय लॉर्ड कर्जन की वह धाक थी जो अलिफ लैला कहानी के पात्र अलादीन ने, जिसके कब्जे में चिराग का जिन्न था और बगदाद के खलीफा की गद्दी पर विराजमान अबुलहसन ने भी न देखी थी। आपकी और आपकी पत्नी की कुर्सी सोने की थी; आपको ब्रिटेन के महाराज की दायीं ओर स्थान मिला था।
2. लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय थे। ईश्वर के बाद राजा का दर्जा होता है, वह ब्रिटेन के शासक महाराज एडवर्ड को जनता ने दिया और उसके बाद का दर्जा भारत की जनता ने आपको प्रदान किया।
3. इस अवतरण में आए मुहावरे हैं-पटखनी खाना, सिर के बल नीचे आ जाना (नीचा देखना)। इनका अर्थ है-परास्त होना या पराजित होना तथा अपमानित होना।
4. दिल्ली-दरबार में भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन की शान देखते ही बनती थी। उन्हें और उनकी पत्नी को सोने की कुर्सी पर महाराज एडवर्ड के दायीं ओर स्थान मिला जबकि महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी को चाँदी की कुर्सी पर महाराज के बायीं ओर बिठाया गया। देशी राजाओं ने पहले कर्जन को सलाम किया। जुलूस में कर्जन का हाथी सबसे आगे और उसका हौदा, चँवर, छत्र आदि सब बढ़-चढ़कर थे। उसका दर्जा इस देश में महाराज एडवर्ड के बाद माना गया जबकि महाराज के भाई का दर्जा उससे छोटा माना गया। ऐसी शान उसकी दिल्ली दरबार के समय थी।
5. आप बहुत धीर-गम्भीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गम्भीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गम्भीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाजिर होते थे।
आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजाओं को मिट्टी के खिलौनों की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया आह, इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका। और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा, उल्टा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला !
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुन्द गुप्त की व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने वे कारण बताये हैं जिनके कारण लॉर्ड कर्जन की सारी प्रतिष्ठा धूल में मिल गई।
व्याख्या - भारत पर शासन करने भेजे गए वायसरायों में लॉर्ड कर्जन को बड़ा दूरदर्शी, कुटिल शासक और धीर-गम्भीर अधिकारी माना जाता है। लेकिन बार कौंसिल में एक मनमाना कानून पारित कराने के प्रयास में उनकी बड़ी फजीहत हुई। इसके साथ ही एक दीक्षान्त समारोह में ऐसा भाषण दिया कि उनकी भाषण कुशलता का दिवाला निकल गया। अपनी बात मनवाने के लिए इंग्लैंड की सरकार को बार-बार इस्तीफे की धमकी देते रहने के कारण वहाँ भी उनके घमण्ड का दिवाला निकल गया। उनका सरकार पर प्रभाव ढीला हो गया।
इतना ही नहीं भारत में भी जनता ने देख लिया कि वायसराय की सारी धीरता और गम्भीरता की हवा निकल चुकी थी। एक समय लॉर्ड कर्जन की भारत में ऐसी तूती बोलती थी कि बड़े से बड़े राज अधिकारी आपके इशारों पर कठपुतलियों की भाँति नाचा करते थे। इनके भौहें टेढ़ी करते ही राजा-महाराजा हाथ जोड़े हाजिर हो जाया करते थे। इनके संकेत मात्र से प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाता था। आपके रोष से भारत के अनेक राजा-महाराजा मिट्टी के खिलौनों की तरह ध्वस्त हो गये। अनेक काठ के उल्लू आपकी कृपा से बड़े-बड़े अधिकारी बन गए।
कर्जन के अहंकार और हठ से भारत में शिक्षा और स्वाधीनता की भावना नष्ट हो गई। कर्जन की कुटिलतापूर्ण सनक के कारण ही बंगाल का विभाजन हुआ। ऐसे प्रतापी शासक की ऐसी दुर्दशा हुई कि वह जिस सैन्य पद पर अपना व्यक्ति नियुक्त कराना चाहते थे, उस पदं पर उसकी नियुक्ति नहीं हो सकी। लॉर्ड कर्जन ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अपना इस्तीफा पेश कर दिया। दुर्भाग्य यह कि इस्तीफा इस बार मंजूर हो गया। सारी धीरता और गम्भीरता धरी रह गई। इतने बड़े पदाधिकारी (वायसराय) का इतना बड़ा अपमान शायद ही किसी अंग्रेज का हुआ होगा।
विशेष - लेखक ने लॉर्ड कर्जन को अपने मधुर व्यंग्यों के प्रहार से नंगा कर दिया है।
प्रश्न :
1. लॉर्ड कर्जन की धीरता-गम्भीरता का पर्दाफाश कैसे हो गया ?
2. विलायत में किस घटना से लॉर्ड कर्जन की साख को बट्टा लगा?
3. लॉर्ड कर्जन के रौब-रुतबे को इस अवतरण में किस प्रकार व्यक्त किया गया है?
4. लॉर्ड कर्जन के भारत-विरोधी उन कार्यों का विवरण दीजिए, जिनका उल्लेख इस अवतरण में किया गया है।
उत्तर :
1. लॉर्ड कर्जन की धीरता-गम्भीरता मात्र दिखावा थी। इसका पर्दाफाश कौंसिल में गैर-कानूनी कानून पास करते समय तथा कनवोकेशन भाषण देते समय हो गया। धीर-गम्भीर व्यक्ति अहंकार और आत्मप्रशंसा से दूर रहता है।
2. लॉर्ड कर्जन एक फौजी अफसर को अपने इच्छित पद पर नियुक्त करना चाहते थे, किन्तु उनकी यह बात ब्रिटिश सरकार ने नहीं मानी। उसी गुस्से के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। बार-बार त्यागपत्र की धमकी दिए जाने से लॉर्ड कर्जन की साख को ब्रिटेन में भी बट्टा लगा। लोग उनके बारे में यह राय बनाने लगे कि ये धीर-गम्भीर व्यक्ति नहीं हैं।
3. लॉर्ड कर्जन का रौब और रुतबा उनकी प्रशासन पर पकड़ से व्यक्त हुआ है। सरकारी अधिकारी उनके हर आदेश को सिर झुकाकर स्वीकार करते थे और उनके इशारों पर नाचते थे। इसके अतिरिक्त देश के राजा-महाराजा उनके संकेत मात्र पर उनके सामने हाथ जोड़कर उपस्थित हो जाते थे।
4. लॉर्ड कर्जन ने भारत की शिक्षा-व्यवस्था को चौपट कर दिया और बंगाल को दो टुकड़ों में बाँट दिया, जबकि वहाँ की . जनता इसका विरोध कर रही थी।
6. जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर बने रहना कहाँ तक पसंद है-यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशा पर आप को कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों को अवसर नहीं मिला, पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। लेखक लॉर्ड कर्जन के पद से हटने पर उसकी मनोदशा का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या - लॉर्ड कर्जन ने पद के अहंकार में भारतवासियों पर मनमाने निर्णय थोपे और कठोर शासन द्वारा उनका दमन भी किया। प्रारंभ में कर्जन ने अपनी शान-शौकत खुब बढ़ाई लेकिन बाद में अपने घमंड के कारण अपना पद भी गंवा दिया। लेखक व्यंग्य कर रहा है कि भारतीयों को कर्जन का ऊँचा चढ़कर नीचे आ गिरना जैसा दुखी कर रहा था, उससे भी अधिक दुख उनको यह देखकर हो रहा था कि कर्जन कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
वह असहाय होकर अपनी दुर्दशा को सहन कर रहा था। उसका पद तो छिन गया लेकिन फिर भी परेशानियाँ उसका पीछा नहीं छोड़ रही थीं। लेखक कहता है कि साधारण पद पर रहने वाले लिपिक (क्लर्क) को यदि एक महीने में नौकरी समाप्त किए जाने का नोटिस मिल जाए तो वह उस एक मास के समय को बड़ी घृणा के साथ बिताता है। कर्जन की भी यही अवस्था थी। उसे अब अपने पद पर बने रहना शोभा नहीं देता था।
उसके मन पर क्या बीत रही थी यह वही जानता होगा। इतना अपमानित होकर पद पर बने रहना उसे कैसा लग रहा था यह बात भारतवासी नहीं जान पाए, लेकिन घोर अपमान के बाद भी आदमी पद से चिपका रहे। कोई निर्णय न ले पाए ऐसी दशा में लॉर्ड कर्जन के अतिरिक्त और किसी को नहीं देखा था।
विशेष - लेखक ने बड़ी शिष्ट भाषा में लॉर्ड कर्जन को धिक्कार का पात्र बताया है। पद से हटाये जाने के आदेश के बाद भी वह भारत से विदा होने का निर्णय नहीं ले पा रहा था।
प्रश्न :
1. 'गिरकर पड़ा रहना' का क्या आशय है.?
2. लॉर्ड कर्जन का किससे पीछा नहीं छूट रहा था?
3. भारतवासी क्या नहीं जान पाये?
4. क्या कर्जन के पतन पर भारतवासी सचमुच दुखी थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. 'गिरकर पड़ा रहना' का आशय है कि कर्जन अपने सम्मान और पद की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर पा रहा था। उसे तुरंत त्यागपत्र देकर चला जाना चाहिए था।
2. लॉर्ड कर्जन को उसके पद से हटाने का आदेश इंग्लैंड की सरकार ने दे दिया था। कर्जन का पद तो छिन गया लेकिन पद जाने के बाद भी परेशानियाँ उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।
3. भारतवासी यह नहीं जान पाये कि पद छिन जाने का नोटिस दिये जाने के बाद कर्जन को अपने पद पर बने रहने से । घृणा हो रही थी या नहीं।
4. जिन भारतवासियों को अपने कार्यकाल में कर्जन ने चैन से नहीं रहने दिया था, भला वे उसके अपमानपूर्ण विदाई पर दुखी क्यों होते ? लेखक ने व्यंग्यमयी भाषा का प्रयोग किया है। सच तो यह था कि कर्जन जैसे अहंकारी और निरंकुश शासक का अपमानित होकर जाना हर भारतवासी को प्रसन्न कर रहा था।
7. माई लॉर्ड, एक बार अपने कामों की ओर ध्यान दीजिए। आप किस काम को आए थे और क्या कर चले। शासक-प्रजा के प्रति कुछ तो कर्तव्य होता है, यह बात आप निश्चित मानते होंगे। सो कृपा करके बतलाइए, क्या कर्त्तव्य आप इस देश की प्रजा के साथ पालन कर चले! क्या आँख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिह से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और ज़ार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश. हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त की व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में लेखक लॉर्ड कर्जन को उसकी गम्भीर भूलों का स्मरण करा रहा है।
व्याख्या - बालमुकुंद गुप्त ने लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में ही 'शिवशंभू का चिट्ठा' नाम से कुछ व्यंग्यमय लेकिन गंभीर लेखन किया था। अतः लॉर्ड कर्जन को उसकी विदाई के अवसर पर वह उसकी गंभीर भूलों और हठी स्वभाव का स्मरण करा रहे हैं। गुप्त जी अपने लेख में कर्जन से अनुरोध करते हैं कि वह एक बार अपने शासन काल में किये गये कामों को ध्यान में लाए। लॉर्ड कर्जन को इंग्लैंड की सरकार ने भारत के सर्वोच्च शासक का पद प्रदान करके भेजा था। क्या लॉर्ड ने अपने कर्तव्यों का उचित प्रकार से निर्वहन किया था? उसे जिस काम के लिए भेजा गया था वे कार्य उसने पूरे नहीं किये।
मनमानी, हठ और अहंकार से ग्रस्त होकर कर्जन ने भारतीय प्रजा की सदा उपेक्षा की। लेखक के अनुसार कर्जन ने अपने सारे शासन में मनमाने हुक्म चलाए। किसी से परामर्श या किसी की प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया। एक शासक के नाते, उसे प्रजा के सुख-दुख का पता करके सुशासन की व्यवस्था करनी चाहिए थी। कर्जन ने ऐसा नहीं किया। कर्जन ने प्रजा को सदा अपने आतंक से दबाये रखा। उसके शासन में प्रजा के कष्ट बढ़ते गये।
लेखक का मानना है कि लॉर्ड ने एक बार भी अपनी जिद छोड़कर प्रजा की उचित प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया। गुप्त जी कहते हैं कि कैसर (जर्मन तानाशाह) जार (रूसी तानाशाह) जैसे हृदयहीन शासकों को भी बार-बार घेरा जाए, पुकार सुनाई जाये तो एक बार वे भी जनता की पुकार अवश्य सुन लेंगे। लेकिन कर्जन ने अपने शासनकाल में एक बार भी पुकार सुनाने के लिए अपने सामने आने की अनुमति नहीं दी। उसी पाप का परिणाम उसे पदच्युत होकर भोगना पड़ा।
विशेष - लेखक ने शालीनता के साथ लॉर्ड कर्जन को बड़ी खरी-खरी और चुभती हुई सच्चाइयाँ सुनाई हैं।
प्रश्न :
1. एक शासक के नाते लॉर्ड कर्जन के क्या कर्तव्य थे? क्या उसने उनका पालन किया ?
2. लॉर्ड कर्जन के व्यक्तित्व की किस कमी की ओर इस अवतरण में संकेत किया गया है ?
3. 'कैसर' और 'जार' का क्या आशय है तथा उनसे लॉर्ड कर्जन की तुलना करते हुए किसे श्रेष्ठ बताया है ? .. क्यों ?
4. इस अवतरण में लेखक ने लॉर्ड कर्जन को किस प्रकार का शासक दिखाया है ?
उत्तर :
1. एक शासक के नाते लॉर्ड कर्जन का कर्त्तव्य था कि वह भारत की प्रजा को सब प्रकार से सुखी और सुरक्षित बनाता लेकिन उसने किसी की न सुनकर मनमाने आदेश दिए। उसने प्रजा के कष्टों को कभी नहीं सुना। इस प्रकार उसने एक शासक के कर्तव्यों का पालन नहीं किया।
2. लेखक को लॉर्ड कर्जन के व्यक्तित्व में 'अहंकार' एवं 'जिद' की प्रमुखता दिखाई पड़ती है। वे एक जिद्दी आदमी थे और आँख बन्द करके बिना सोचे-विचारे मनमाने हुक्म चलाते थे। प्रजा की बात पर ध्यान न देकर अपनी मर्जी चलाना उनका सबसे बड़ा दोष था।
3. 'कैसर' जर्मनी का तानाशाह और 'जार' रूस का तानाशाह माना जाता है। लॉर्ड कर्जन की तुलना कैसर और जार से करके लेखक ने उसकी तानाशाही प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है। कैसर और ज़ार तो दबाव बनाने पर कभी-कभार प्रजा की बात मान भी लेते थे पर लॉर्ड कर्जन ने एक बार भी प्रजा की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी जिद पर अड़कर वही किया जो निश्चय पहले कर लिया।
4. इस अवतरण में लेखक ने लॉर्ड कर्जन को एक निरंकुश शासक दिखाया है जो मनमाने आदेश देता है। प्रजा की आवाज को दबाकर उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करता है। केवल अपना रौब-दाब दिखाना ही वह.अपनी शान समझता है।
8. नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी दम रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेदन करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद है। क्या समझते हैं कि आपकी जिद से प्रजा के जी में दुख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देश को छोड़ न जाती ?'
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में लेखक लॉर्ड कर्जन को नादिरशाह से भी अधिक निर्दय बता रहा है।
व्याख्या - नादिरशाह एक निर्दयी आक्रमणकारी था। उसने जब दिल्ली पर आक्रमण किया तो किसी बात पर नाराज होकर शहर में कत्लेआम (नरसंहार) की आज्ञा दे दी। तब अपनी प्रजा की दुर्दशा से अत्यंत व्यथित होकर दिल्ली के शासक आसिफजाह ने अपनी तलवार गले में लटकाकर नादिरशाह से निदोष लोगों का वध न करने की प्रार्थना की थी। नादिरशाह जैसे क्रूर आदमी ने भी आसिफजाह की प्रार्थना स्वीकार करते हुए अपना आदेश वापस ले लिया था।
लेखक का कहना है कि लॉर्ड कर्जन तो नादिरशाह से भी बढ़कर हठी था। आठ करोड़ बंगालवासी गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करते रहे कि बंगाल का विभाजन न किया जाय लेकिन अहंकारी और निष्ठुर कर्जन ने उनकी प्रार्थना पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। इतना ही नहीं जब उसका शासन समाप्त हो गया तब भी वह बंगाल का विभाजन करने पर अड़ा रहा। विभाजन करके ही वह घर जाना चाहता था। कर्जन के हठ और घोर अन्याय से भारत की प्रजा को बड़ा दुख पहुँचा था।
लेखक कर्जन से कहता है कि एक आदमी को किसी पद पर नियुक्त करने की उसकी बात नहीं मानी गई, तो, उसने अपना इस्तीफा देकर घर चलने का निश्चय कर लिया। भारत की जनता का उसने बात-बात पर अपमान किया। अत्याचार किए। अगर भारत की जनता के पास भी कहीं जा सकने की जगह होती तो क्या वह भारत को नहीं छोड़ जाती। जनता को हर तरह असहाय जानकर ही उसने (कर्जन ने) उस पर मनमाने निर्णय थोपे थे।
विशेष - लेखक का भाव यही है कि कर्जन को जो घोर अपमान झेलना पड़ रहा था, वह उसके निंदनीय कार्यों का ही परिणाम था।
प्रश्न :
1. आसिफजाह की प्रार्थना पर नादिरशाह ने क्या किया ?
2. भारत की आठ करोड़ प्रजा ने लॉर्ड कर्जन से क्या प्रार्थना की थी?
3. अपने घर इंग्लैंड लौटने से पहले लॉर्ड कर्जन क्या चाहता था ?
4. लॉर्ड कर्जन ने किस बात पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था ?
उत्तर :
1. आसिफजाह की प्रार्थना पर नादिरशाह ने तुरंत कत्लेआम को बंद करा दिया।
2. भारत की प्रजा ने लॉर्ड कर्जन से प्रार्थना की थी कि वह बंगाल का दो भागों में विभाजन न करे।
3. लॉर्ड कर्जन इतना हठी था कि इंग्लैंड लौटने से पहले वह अपने सामने ही बंगाल का विभाजन करा देना चाहता था।
4. लॉर्ड कर्जन ने अपने एक कृपापात्र को किसी मनचाहे पद पर नियुक्त कराना चाहा था। लेकिन उसकी बात न माने जाने पर उसने अपने को बड़ा अपमानित माना और पद से त्यागपत्र दे दिया।
9. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीजों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जावेगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माइ लॉर्ड ! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त की व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने लॉर्ड कर्जन की नासमझी और हठ पर खेद व्यक्त किया है। वह भारत की शांतिप्रिय, धैर्यवान और ईश्वर के न्याय में विश्वास रखने वाली जनता की उपेक्षा करता रहा।
व्याख्या - लॉर्ड कर्जन के हठी और अहंकारी स्वभाव और उपेक्षापूर्ण व्यवहार ने भारत की प्रजा को अनेक कष्ट दिया लेकिन अपनी जिद का फल स्वयं कर्जन को भी भुगतना पड़ा। अपनी हठ के कारण ही उसे घोर अपमान का शिकार होना पड़ा। भारतीय संस्कृति ने यहाँ की जनता को सिखाया है कि दुख और कष्टों का धैर्यपूर्वक सामना करो। हर अत्याचार के परिणाम को ध्यान में रख कर चलो।
जो भी दूसरों को पीड़ित करता है उसका कुपरिणाम उसे भोगना पड़ता है। भारत की जनता का विश्वास है कि संसार में कोई भी समय स्थायी रूप से नहीं रहता। दुख का भी एक दिन अंत होना निश्चित है। यही कारण कि भारत की प्रजा सारे कष्टों को धैर्यपूर्वक सहन करती है। वह पराधीनता को भी सह लेती है। ऐसी सुसंस्कृत जनता की महानता को लॉर्ड कर्जन नहीं समझ पाया। अच्छा होता कि कर्जन यहाँ की जनता की श्रद्धा और प्रेम लेकर घर लौटता परंतु अपने हठ और अहंकार के कारण वह इससे वंचित रह गया। उसे अपमानित होकर जाना पड़ रहा था।
विशेष - लेखक की इस रचना को कर्जन पढ़ पाता तो निश्चय ही उसे अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप होता। चलते समय अपने विदाई संभाषण में भारतीय जनता से अपने कृत्यों के लिए क्षमा माँग लेता।
प्रश्न :
1. भारत की प्रजा ने लॉर्ड कर्जन की हठ का फल किस रूप में देखा ?
2. लॉर्ड कर्जन अपनी हठ का शिकार कैसे हुआ ?
3. भारत की प्रजा किस बात का अधिक ध्यान रखती है ?
4. लॉर्ड कर्जन अपने साथ क्या नहीं ले जा सका?
उत्तर :
1. भारत की प्रजा ने कर्जन के हठी स्वभाव के कारण अनेक कष्ट और अपमान झेले।
2. लॉर्ड कर्जन को अपनी हठ के कारण ही अपना वायसराय का पद गँवाना पड़ा।
3. भारत की प्रजा दुखों और कष्टों पर अधिक ध्यान न देकर अन्याय के परिणाम का अधिक ध्यान रखती है।
4. लॉर्ड कर्जन अपने साथ भारतीय प्रजा की श्रद्धा और प्रेम नहीं ले जा सका।
10. क्या आप कह सकेंगे, "अभागे भारत ! मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिए कुछ कर सकूँ। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझें।" आप कर सकते हैं, और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माइ लॉर्ड में कहाँ ?
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित श्री बालमुकुंद गुप्त की व्यंग्य रचना 'विदाई संभाषण' से लिया गया है। इस अंश में गुप्त जी ने अहंकारी लॉर्ड कर्जन से आशा की है कि वह भारत से अपनी विदाई के अवसर पर अपने अनुचित और निंदनीय कार्यों के लिए खेद प्रकट करे।
व्याख्या - गुप्त जी ने गर्वीले और हठी लॉर्ड कर्जन की विदाई पर यह व्यंग्य रचना की है। उन्होंने लॉर्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहा है कि कर्जन को चाहिए कि वह अपने विदाई संभाषण में भारत से क्षमा माँगे। वह कहे कि उसने भारत के शासक के रूप में सब प्रकार के लाभ उठाये और ऐसा शान-शौकत से रहा जो जीवन में प्राप्त होना असंभव लगता है। भारत तो कर्जन का कोई अहित न कर सका लेकिन उसने भारत को दुर्दशा में पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कर्जन कहे कि भारत संसार का सबसे प्राचीन देश है।
लेकिन उसने शासक रहते हुए इस देश की कोई भलाई नहीं की। अब शक्तिहीन होकर वह भारत का कुछ भी भला नहीं कर सकता। लेखक कहता है कि कर्जन जाते समय शुभकामना ही प्रकट कर दे कि भारत अपने पुराने वैभव और गौरव को फिर से प्राप्त करे। आगे जो शासक आयें वे भारत के गौरव को समझें। अंत में लेखक कहता है कि कर्ज़न चाहे तो ऐसा कर सकता है लेकिन उससे आशा नहीं कि वह इतनी उदारता दिखाएगा।
विशेष - गुप्त जी ने लॉर्ड कर्जन जैसे अंग्रेज शासकों को व्यंग्यमयी भाषा-शैली में वास्तविकता से परिचित कराया। उन्हें सुधरने की चेतावनी भी दी है।
प्रश्न :
1. लेखक लॉर्ड कर्जन से क्या अपेक्षा करता है ?
2. लॉर्ड कर्जन ने भारत के साथ क्या किया? इस अवतरण के आधार पर उत्तर दीजिए।
3. भारत के लोग कब लॉर्ड कर्जन को माफ कर सकेंगे?
4. 'पर इतनी उदारता माइ लॉर्ड में कहाँ से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
1. लेखक लॉर्ड कर्जन से यह अपेक्षा करता है कि वह यहाँ से विदा होते समय अपने दोषों को स्वीकार करें और भारत के हित की कामना करे।
2. लॉर्ड कर्जन ने भारत से हर प्रकार का लाभ उठाया और इसकी बदौलत वह शान देखी जो इस जीवन में असम्भव थी। किन्तु उन्होंने अपने क्रिया-कलापों से भारत को बिगाड़ने में कोई कमी न छोड़ी। भारत की भलाई की इच्छा रंच मात्र भी उनके मन में न थी।
3. यदि अपनी गलतियाँ स्वीकार करते हुए यहाँ से विदा लेते समय लॉर्ड कर्जन भारत के कल्याण की कामना करे तो भारत के लोग उसे माफ कर सकते हैं।
4. लेखक जानता है कि लॉर्ड कर्जन में इतनी उदारता नहीं है कि वह अपनी गलतियाँ मान ले और भारत के प्रति यह शुभेच्छा करे कि यह अपने खोए हुए गौरव एवं गरिमा को पुनः प्राप्त करे लेकिन लॉर्ड कर्जन जैसे अहंकारी व्यक्ति से लेखक को ऐसी आशा नहीं है।