Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल Textbook Exercise Questions and Answers.
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पाठ के साथ -
प्रश्न 1.
पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
उत्तर :
सत्यजित राय को प्रारम्भ में यह अनुमान नहीं था कि फिल्म की शूटिंग ढाई साल के लम्बे समय में सम्पन्न हो सकेगी। इतना लम्बा समय शूटिंग में इसलिए लगा क्योंकि एक तो आर्थिक तंगी के कारण शूटिंग बीच में रोक देनी पड़ती और जब पैसे दुबारा इकट्ठे हो जाते तो शूटिंग प्रारम्भ करते। दूसरा कारण लेखक उस समय एक विज्ञापन कम्पनी में काम करता था। जब उसे फुर्सत मिलती तभी शूटिंग का काम हो पाता। तीसरा कारण शूटिंग के दौरान आने वाली कठिनाइयाँ थीं। इन सभी के कारण 'पथेर पांचाली' की शूटिंग का काम ढाई साल के लम्बे अन्तराल में पूरा हो सका।
प्रश्न 2.
अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से कंटिन्युइटी' नदारद हो जाती-इस कथन के पीछे क्या भाव है ?
उत्तर :
फिल्म के दृश्य हमें तभी प्रभावित करते हैं जब उनमें 'कंटिन्युइटी' (निरन्तरता) हो। निरन्तरता के अभाव में दर्शक पर . उस दृश्य का वांछित प्रभाव नहीं पड़ता। 'काशफूलों की पृष्ठभूमि में रेल के इंजिन से निकलते धुएँ का आधा सीन 'शूट' हो चुका था। शेष आधे सीन की शूटिंग के लिए जब फिल्म यूनिट उस स्थान पर एक सप्ताह बाद पहुंची तो वहाँ एक भी काशफूल न था। जानवरों ने वे सब चर लिए थे। अब नये काशफूल तो अगली शरद ऋतु में ही आ सकते थे इसलिए फिल्मकार का चिन्तित होना स्वाभाविक था कि अब हमें अगले सीजन तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अच्छा कलाकार कला से कभी समझौता नहीं करता और इसलिए वह प्रत्येक दृश्य में पूर्णता, निरन्तरता पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है।
प्रश्न 3.
किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर :
पथेर पांचाली में अपू-दुर्गा का जो पालतू कुत्ता भूलो है वह एक दृश्य में अपू को माँ के हाथों भात खाता हुआ देख रहा है। अपू तीर-कमान के खेल में व्यस्त हो गया। अत: सर्वजया (माँ) ने वह भात गमले में डाल दिया जहाँ भूलो कुत्ता उसे खाता है। बाद में फिर से इस दृश्य का बचा भाग शूट किया जाना था तब पता चला कि 'भूलो' कुत्ता तो मर गया है। खैर उसी से मिलता-जुलता दूसरा कुत्ता तलाशा गया। बचे हुए सीन को इस कुत्ते पर फिल्माया गया। इसी प्रकार श्रीनिवास मिठाई वाले का अभिनय करने वाले पात्र की मृत्यु हो जाने पर उसी कद-काठी के दूसरे व्यक्ति पर बचा सीन फिल्माया गया। एक नम्बर का श्रीनिवास बाँसबन से बाहर आता है और अगले शाट में दो नम्बर श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के गेट के अन्दर जाता है।
प्रश्न 4.
भूलो' की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया ? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया ?
उत्तर :
'पथेर पांचाली' में 'अपू-दुर्गा' का पालतू कुत्ता भूलो दिखाया गया है। अपू-दुर्गा के साथ 'भूलो' कुत्ते का जो सीन शूट किया जाना था वह आधा ही शूट हो पाया था कि फिल्म यूनिट को आर्थिक अभाव में वापस लौटना पड़ा। बाद में जब पैसे इकट्ठे हो जाने पर फिल्म यूनिट गाँव में पहुँची तो पता चला कि भूलो कुत्ता तो मर गया है। तब उसी रंग का और वैसी ही पूँछ वाला दूसरा कुत्ता खोजा गया। अपू की माँ जो भात अपू के न खाने पर गमले में डाल देती है, उसे इस दूसरे कुत्ते ने ही खाया है, लेकिन फिल्म देखते समय दर्शक यह नहीं पहचान पाते कि फिल्म में भूलो की भूमिका एक कुत्ते ने नहीं अपितु दो कुत्तों ने निभाई है।
प्रश्न 5.
फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?
उत्तर :
फिल्म में श्रीनिवास मिठाई बेचने वाले व्यक्ति की भूमिका में थे। जो सज्जन यह भूमिका कर रहे थे उन पर आधा सीन ही शूट हो पाया था कि पैसों के अभाव में शूटिंग बन्द करनी पड़ी। बाद में जब फिल्म यूनिट अधूरे सीन को शूट करने कुछ दिनों बाद दोबारा गाँव में पहुँची तो पता चला कि श्रीनिवास तो गुजर चुके हैं। तब उसी कद-काठी का एक अन्य व्यक्ति तलाशा गया और उसकी पीठ पर कैमरा फोकस करके बचे हुए सीन को फिल्माया गया। फिल्म देखने वाला कोई भी.दर्शक यह नहीं पहचान सका कि . श्रीनिवास की इस भूमिका का निर्वाह दो व्यक्तियों ने किया है।
प्रश्न 6.
बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
'पथेर पांचाली' की शूटिंग पैसों के अभाव में प्राय: रुक जाया करती थी। बारिश के दिन आकर चले गए पर पैसों के अभाव में शूटिंग नहीं हो सकी। जब हाथ में पैसे आए तब तक बारिश का मौसम चला गया। शरद ऋतु में आसमान एकदम साफ था। आकाश में एक भी काला बादल दिखने पर फिल्म यूनिट पानी बरसने की आशा में जाकर बैठ जाती। कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद एक दिन झमाझम बरसात हुई, जिसमें यह दृश्य फिल्माना था कि दुर्गा बारिश में भीगती हुई आती है, और पेड़ के नीचे बैठे भाई अपू से आकर चिपक जाती है। उस दिन हुई मूसलाधार बरसात के कारण अपू को सर्दी लग गई, बदन काँपने लगा। शॉट पूरा करने के बाद दूध में ब्रांडी डालकर भाई-बहिन को दी गई, जिससे उनके शरीर में गर्मी आई।
प्रश्न 7.
किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर :
फिल्मों की शूटिंग करते समय फिल्मकारों को अनेक समस्याओं का सामना व ना पड़ता है, यथा
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1.
तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियों की हैं कि दर्शक पहचान नहीं पाते किया फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि इत्यादिाये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म देखते समय कैसे छिप जाती है?
उत्तर :
जिन तीन प्रसंगों का उल्लेख सत्यजित राय ने इस पाठ में किया है वे हैं -
1. भूलो कुत्ते के मर जाने पर दूसरे कुत्ते पर फिल्माया गया आधा दृश्य। दूसरा कुत्ता भूलो के रंग का और उसी जैसी पूँछ वाला था। इसमें आधा दृश्य तो मूल कुत्ते 'भूलो' पर फिल्माया जा चुका था। किन्तु शेष आधा दृश्य भूलो की मृत्यु हो जाने के कारण दूसरे कुत्ते पर फिल्माया गया।
2. काशफूल के जंगल वाले दृश्य में भी शूटिंग दो बार में की गयी। पहले आधी शूटिंग जिन काशफूलों के साथ की गयी उन्हें जानवर चर गए। अतः तब तक आधा सीन शूट न किया जा सका जब तक अगले सीजन में जंगल फिर से सफेद काशफूलों से न भर गया। धुआँ छोड़ती रेल भी एक से अधिक यानी तीन थीं पर दृश्य को इतनी कुशलता से फिल्माया गया कि दर्शकों को यह पता नहीं चल पाता।
3. श्रीनिवास मिठाई वाले पर आधा सीन शूट किया जा चुका था शेष आधे सीन की शूटिंग के लिए कुछ समय बाद जब फिल्म यूनिट गाँव पहुंची तो पता चला कि श्रीनिवास की मृत्यु हो चुकी है। तब उसी कद-काठी के एक अन्य व्यक्ति को तलाश कर कैमरा पीठ की तरफ ले जाकर दृश्य इस तरह शूट किया गया जिससे उस व्यक्ति का चेहरा दिखाई न दे।
प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको अपने विद्यालय पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनानी है। इस तरह की फिल्म में आप किस तरह के दृश्यों को चित्रित करेंगे? फिल्म बनाने से पहले और बनाते समय किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर :
यदि हमें अपने विद्यालय पर डॉक्यूमैंट्री फिल्म बनानी हो तो हम उसे अपने विद्यालय के भवन के भव्य दृश्य से प्रारम्भ करेंगे। इसके पश्चात् विद्यालय में चलने वाले शैक्षिक कार्यक्रम को प्रदर्शित करेंगे। कक्षा में अध्ययनरत छात्रों, गुरुजन का सामूहिक चित्रांकन, पाठ्येत्तर क्रियाकलाप तथा विद्यालय में आयोजित होने वाले सामयिक उत्सवों का भी फिल्मांकन करेंगे। फिल्म निर्माण से पहले हम निर्देशक, उद्घोषक, कैमरामैन तथा कार्यदल के लिए योग्य छात्रों की व्यवस्था करेंगे तथा इस डॉक्यूमैन्ट्री पर होने वाले सम्भावित व्यय के लिए धन का प्रबन्ध भी करेंगे।
प्रश्न 3.
पथेर पांचाली फिल्म में इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकी। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।
उत्तर :
पथेर पांचाली फिल्म बनने में लगभग ढाई वर्ष का लम्बा समय लगा। इस फिल्म में एक चरित्र इन्दिरा ठाकरुन का है। जिसे चुन्नीबाला देवी कर रही थीं, जो 80 वर्ष की वृद्धा थीं। सत्यजित राय को यह आशंका थी कि कहीं इस वृद्धा की इस दौरान अचानक मृत्यु न हो जाए। अगर आधी फिल्म बनने के बाद उनकी अचानक मौत हो जाती तो निश्चय ही निर्देशक को शेष काम पूरा करने के लिए उनसे मिलती-जुलती कद-काठी वाली किसी वृद्धा को तलाशना पड़ता और उनकी वेश-भूषा वैसी ही रखी जाती जैसी चुन्नीबाला देवी की फिल्म में है।
प्रश्न 4.
पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं।
उत्तर :
बॉलीवुड के फिल्मकार दो प्रकार की फिल्में बनाते हैं-कला-फिल्में, व्यावासायिक-फिल्में। इनमें से व्यावसायिक फिल्मों का एकमात्र उद्देश्य धन कमाना होता है जबकि कला-फिल्मों का उद्देश्य अन्य कलाओं की भाँति आत्म-सन्तुष्टि माना जाता है। - सत्यजित राय दूसरे वर्ग के फिल्मकार हैं, जो फिल्म को कला माध्यम मानकर ऐसी कला-फिल्मों का निर्माण करते रहे हैं जो उन्हें आत्म-सन्तोष देती हैं साथ ही वे अपना सन्देश फिल्म के द्वारा जनता तक पहुँचाते हैं। सत्यजित राय को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति उनकी कला-फिल्मों के कारण ही प्राप्त हुई है, धन कमाने के लिए. उन्होंने इस पेशे को नहीं अपनाया।
भाषा की बात -
प्रश्न 1.
पाठ में कई स्थानों पर तत्सम, तद्भव, क्षेत्रीय सभी प्रकार के शब्द एक साथ सहज रूप में आए हैं। ऐसी भाषा का प्रयोग करते हुए अपनी प्रिय फिल्म पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 2.
हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है। जैसे-'अपू के साथ ढाई साल पाठ में फिल्म से जुड़े शब्द शूटिंग, शॉट,सीन आदि। फिल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
उत्तर :
शूटिंग, सीन, साइट, साउंड रिकार्डिस्ट, कैमरामैन, फिल्म, तकनीशियन, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री।
प्रश्न 3.
नीचे दिए शब्दों के पर्याय इस पाठ में दूँढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा
उत्तर :
इश्तहार-विज्ञापना प्रयोग-उस समय वे एक इश्तहार कम्पनी में काम करते थे। खुशकिस्मती-सौभाग्य। प्रयोग-यह मेरी खुशकिस्मती थी कि आप से भेंट हो गई।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
अपू के साथ ढाई साल' के अन्तर्गत किस व्यक्ति ने किसके बारे में बताया है ?
उत्तर :
इस पाठ में प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजित राय ने यह बताया है कि 'पथेर पांचाली' नामक फिल्म की शूटिंग ढाई साल में पूरी हुई और शूटिंग के दौरान किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 2.
अपू कौन है ? उसकी खोज कैसे की गई ?
उत्तर :
'अपू' पथेर पांचाली नामक फिल्म का प्रमुख पात्र है। अपू की भूमिका का निर्वाह करने के लिए एक छह साल के लड़के की आवश्यकता थी। विज्ञापन के द्वारा इसकी खोज की गई पर सफलता न मिली, तब लेखक की पत्नी ने पड़ोस में रहने वाले लड़के सुबीर बनर्जी का नाम सुझाया और उसी ने इस भूमिका को निभाया।
प्रश्न 3.
सत्यजित राय की तीन फिल्मों के नाम बताइए?
उत्तर :
पथेर पांचाली (बांग्ला), शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति (हिन्दी)।
प्रश्न 4.
सत्यजित राय किस प्रकार की फिल्मों के निर्माता थे?
उत्तर :
सत्यजित राय कला-फिल्मों के निर्माता थे।
प्रश्न 5.
भूलो कौन था?
उत्तर :
पथेर पांचाली के भाई-बहन 'अपू-दुर्गा के पालतू कुत्ते का नाम भूलो था।
प्रश्न 6.
इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निर्वाह करने वाली महिला की उम्र कितनी थी?
उत्तर :
इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निर्वाह करने वाली महिला चुन्नीबाला देवी की उम्र 80 वर्ष थी।
प्रश्न 7.
सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि पर काला धुआँ छोड़ती रेल का सीन शूट करने के लिए कितनी रेलगाड़ियों की आवश्यकता पड़ी?
उत्तर :
इस सीन को शूट करने के लिए तीन रेलगाड़ियों की जरूरत पडी।
प्रश्न 8.
भूपेन बाबू की बोलती क्यों बन्द थी ?
उत्तर :
साउंड रिकार्डिस्ट भूपेन बाबू की बोलती इसलिए बन्द थी, क्योंकि उस कमरे की खिड़की से एक बड़ा साँप कमरे में उतर रहा था।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
अपू की भूमिका करने वाले बालक को सत्यजित राय ने कैसे खोजा?
उत्तर :
अपू की भूमिका करने वाले बालक को खोजने के लिए सत्यजित राय ने अखबार में विज्ञापन दिया। रोज अनेक बच्चे अपने अभिभावकों के साथ आते पर उनमें से कोई उन्हें उपयुक्त नहीं लगता। एक बार तो एक सज्जन अपनी बेटी के बाल कटवाकर उसे बालक बनाकर ले आए पर भेद खुल गया। अन्त में अपू की भूमिका करने वाला बालक उनकी पत्नी ने ही सुझाया। यह पड़ोस में रहने वाला सुबीर बनर्जी था। उसी ने अपू का अभिनय फिल्म में किया है।
प्रश्न 2.
'भूलो' कौन था? उसके कारण लेखक को क्या परेशानी शूटिंग में आई?
उत्तर :
अपू-दुर्गा के पालतू कुत्ते का नाम 'भूलो' है। एक बार एक सीन की आधी शूटिंग हो पाई कि शाम हो गयी और शूटिंग रोक देनी पड़ी। पैसे भी तब तक खत्म हो गए, अत: जब दुबारा पैसे इकट्ठे हुए और शूटिंग के लिए फिल्म की यूनिट गाँव में पहुँची तो पता चला कि 'भूलो' मर गया है। तब वैसे ही आकार-प्रकार, रंग का दूसरा कुत्ता खोजा गया।
प्रश्न 3.
सत्यजित राय ने किस दृश्य को सबसे अच्छा कहा है, और क्यों?
उत्तर :
सत्यजित राय ने बारिश में भीगते हुए अपू और दुर्गा के दृश्य को सबसे अच्छा कहा है, क्योंकि इस दृश्य में वे सचमुच ठण्ड से ठिठुर रहे थे। उनके ठिठुरने में वास्तविकता थी, अभिनय न था, इसलिए वह दृश्य बहुत सजीव बन पड़ा है।
प्रश्न 4.
सत्यजित राय की पथेर पांचाली' की शूटिंग के लिए कौन-सा गाँव अच्छा लगा? और क्यों?
उत्तर :
सत्यजित राय को पथेर पांचाली की शूटिंग के लिए 'बोडाल' गाँव अच्छा लगा, क्योंकि यहाँ शूटिंग के लिए उन्हें अपू-दुर्गा का घर, स्कूल, खेल के मैदान, खेत, तालाब, आम के पेड़, बाँस के झुरमुट आदि सभी आसानी से उपलब्ध हो गए थे। वे सब इस गाँव में पहले से ही विद्यमान थे। अत: शूटिंग में सरलता हो गयी थी।
प्रश्न 5.
फिल्मांकन के समय धोबी से क्या समस्या फिल्म-यूनिट को हुई ? और उसका समाधान कैसे किया गया?
उत्तर :
गाँव के जिस घर में फिल्म-यूनिट वाले शूटिंग करते थे, उसके पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह थोड़ा-सा पागल था और कभी भी 'भाइयो और बहनो' कहकर किसी भी मुद्दे को लेकर लम्बा भाषण शुरू कर देता था। फुर्सत के समय तो उसके भाषण पर इन लोगों को कोई आपत्ति न थी, किन्तु अगर शूटिंग के समय वह भाषण शुरू करता तो ध्वन्यांकन का काम प्रभावित हो सकता था। वह धोबी सचमुच ही हमारे लिए सिरदर्द बन जाता। यदि उसके रिश्तेदारों ने हम लोगों की मदद न की होती। ऐसा : निर्देशक सत्यजित राय का मत है।
लेखक परिचय :
भारत के प्रमुख फिल्मकार सत्यजित राय का जन्म 1921 ई. में कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में हुआ और उन्होंने बांग्ला और हिन्दी भाषा में कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण किया। कला फिल्मों के निर्माता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सत्यजित राय की फिल्में प्रायः प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों पर आधारित हैं। अपनी फिल्मों के माध्यम से सार्थक सन्देश प्रदान करने के साथ ही भारतीय सिनेमा को कलात्मक ऊँचाई भी दी। इनके निर्देशन में बनी पहली फीचर फिल्म 'पथेर पांचाली थी, जो बांग्ला भाषा में थी और 1955 में प्रदर्शित हुई। इस फिल्म ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्रदान की और वे भारतीय फिल्म निर्देशकों की अग्रिम पंक्ति में गिने जाने लगे। इस महान् फिल्मकार का निधन 1992 ई. में हो गया।
प्रमुख फिल्में - (क) बांग्ला फिल्में-अपराजिता, अपू का संसार, जलसाघर, देवी चारुलता, महानगर, गोपी गायेन बाका बायेन, पथेर पांचाली।
(ख) हिन्दी फिल्में-शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति। "
प्रमुख रचनाएँ - प्रो. शंकु के कारनामे, सोने का किला, जहाँगीर की स्वर्ण मुद्रा, बादशाही अंगूठी आदि।
प्रमुख सम्मान - सत्यजित राय को अनेक सम्मान प्राप्त हुए जिनमें प्रमुख हैं-पूरे जीवन की उपलब्धियों पर ऑस्कर सम्मान, जो फिल्म क्षेत्र का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ सम्मान माना जाता है, भारत रत्न, फ्रांस का लेजन डी अनार तथा भारतीय फिल्म जगत का हर महत्वपूर्ण सम्मान।
सत्यजित राय के पसंदीदा लेखक हैं-बांग्ला में विभूति भूषण वंद्योपाध्याय, शरतचन्द्र, रवीन्द्रनाथ टैगोर और हिन्दी में मुंशी प्रेमचन्द। फिल्मों में पटकथा लेखन, संगीत संयोजन एवं निर्देशन के अतिरिक्त सत्यजित राय ने बच्चों एवं किशोरों के लिए बांग्ला भाषा में बहुत कुछ लिखा है। इनकी लिखी कहानियों में जासूसी रोमांच के साथ-साथ पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों का सहज संसार भी है। 'पथेर पांचाली' के निर्माण में सत्यजित राय को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इसका विवरण यहाँ संकलित पाठ 'अपू के साथ ढाई साल में दिया गया है।
पाठ-सारांश :
'पथेर पांचाली' सत्यजित राय की प्रसिद्ध फिल्म है जो बांग्ला भाषा में बनाई गई है। इस फिल्म की शूटिंग में ढाई साल का लम्बा समय लगा। फिल्म-निर्माण के दौरान इसके निर्देशक सत्यजित राय को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उन पर कैसे नियन्त्रण पाया गया? इसका लेखा-जोखा इस पाठ में प्रस्तुत किया गया है।
यह पाठ मूलत: बांग्ला भाषा में लिखा गया है तथा इसका हिन्दी रूपान्तरण 'विलास गिते' ने किया है। इस पाठ का सारांश निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता है पथेर पांचाली की शूटिंग-पथेर पांचाली की शूटिंग ढाई वर्ष तक चली। उस समय निर्देशक सत्यजित राय के लिए रोज़ शूटिंग करना सम्भव न था। क्योंकि तब वे एक विज्ञापन कम्पनी में काम करते थे। उन्हें जब नौकरी से फुर्सत मिलती तब वक्त निकालकर शूटिंग करते। यही नहीं अपितु जब पैसे समाप्त हो जाते तब शूटिंग स्थगित करनी पड़ती और दोबारा तभी शुरू होती जब काम लायक पैसे जमा हो जाते।
अपूकी तलाश-फिल्म में अपू की भूमिका के लिए 6 वर्ष के एक लड़के की तलाश थी। इसके लिए अखबारों में विज्ञापन दिया गया। बहुत से लड़के इण्टरव्यू के लिए आए पर कोई अँचा नहीं। एक सज्जन तो अपनी लड़की के बाल कटवाकर इस भूमिका के लिए ले आये। जब सत्यजित ने उसका नाम पूछा तो महीन आवाज में उत्तर मिला 'टिया'। सही लड़का न मिल पाने से जब निर्देशक परेशान थे तभी उनकी पत्नी ने पड़ोस में रहने वाले लड़के सुबीर बनर्जी के बारे में बताया। उन्होंने उसे बुलाया और उसे अपू की भूमिका के लिए उपयुक्त पाया।
फिल्म निर्माण का काम ढाई साल के लम्बे अरसे तक चला। अत: निर्देशक को यह चिन्ता होनी स्वाभाविक थी कि कहीं अपू और दुर्गा (जो फिल्म के प्रमुख पात्र थे) ज्यादा बड़े न दिखने लगे। यह उनकी खुशकिस्मती थी कि बच्चे इस उम्र में जितने बढ़ते हैं उतने अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे नहीं बढ़े। यही नहीं अपितु इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली 80 साल की वृद्धा चुन्नीबाला देवी भी ढाई साल तक काम कर सकी।
काशफूलों की शूटिंग-कोलकाता से 70 मील दूर ‘पालसिट' नामक स्थान पर काशफूलों से भरा एक मैदान था। अपू और दुर्गा यहाँ पहली बार रेलगाड़ी देखते हैं। इस सीन की शूटिंग में काशफूलों की आवश्यकता थी। दुर्गा के पीछे दौड़ता अपू काशफूलों के वन में पहुँचता है। इसकी शूटिंग एक दिन में पूरी होनी सम्भव नहीं थी। आधा सीन शूट करने के बाद शेष शूटिंग पूरी करने हम सात दिनों बाद ही जा पाए, लेकिन तब तक फूल गायब हो चुके थे। अब अगले सालं शरद ऋतु तक फूलों का इन्तजार करना पड़ा क्योंकि सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि में रेल के इंजन से निकलता काला धुआँ हमें दिखाना था। एक रेलगाड़ी के धुएँ से दृश्य में वह प्रभाव उत्पन्न नहीं किया जा सकता था, अत: शूटिंग के लिए तीन रेलगाड़ियों का इस्तेमाल किया गया।
भूलो नामक कुत्ते की समस्या-मूल उपन्यास में अपू और दुर्गा के पालतू कुत्ते भूलो का उल्लेख है। एक कुत्ते को भूलो बनाया गया। कुत्ता दरवाजे पर बैठा आँगन में भात खाते अपू को देख रहा है। अपू के हाथ में तीर कमान है,खाने में उसका पूरा ध्यान नहीं है। वह माँ की ओर पीठ किए बैठा है और तीर-कमान खेलने को उतावला है। खाते-खाते वह कमान से तीर छोड़ता है और खाना छोड़कर तीर लेने जाता है। उसकी माँ सर्वजया बायें हाथ में थाली और दायें हाथ में निवाला लेकर बच्चे के पीछे दौड़ती है। लेकिन बच्चे का भाव देखकर जान जाती है कि अब यह खाएगा नहीं।
इसके बाद का शाट यह था कि सर्वजया वह भात गमले में डाल देती है और भूलो कुत्ता उस भात को खाता है, किन्तु तभी अँधेरा घिर आया और यह शाट न लिया जा सका। छह महीने बाद जब पैसे इकट्ठे हुए तो हम इस शाट की शूटिंग करने फिर उसी गाँव में गए किन्तु तब तक भूलो मर चुका था। खैर किसी तरह भूलो से मिलता-जुलता कुत्ता तलाशा गया और तब वह शाट पूरा किया जा सका। फिल्म में यह पता नहीं चलता कि भूलो की भूमिका दो अलग-अलग कुत्तों से करवाई गई।
श्रीनिवास नामक पात्र की समस्या-श्रीनिवास एक मिठाई बेचने वाला पात्र है। अपू और दुर्गा के पास मिठाई खरीदने को पैसे नहीं हैं, किन्तु मुखर्जी साहब अमीर आदमी हैं। वे मिठाई जरूर खरीदेंगे और उनका मिठाई खरीदना देखने में ही अपू और दुर्गा की खुशी है। इस सीन का कुछ अंश शूट हो जाने के बाद शूटिंग कुछ महीनों के लिए स्थगित हो गई और जब हम दोबारा उस गाँव में शूटिंग करने गए तब पता चला कि श्रीनिवास की तो मृत्यु हो चुकी है। खैर उन्हीं की कद-काठी के एक सज्जन को तलाशा गया और कैमरे की ओर उनकी पीठ करके शाट लिया गया। पूरे सीन में दो व्यक्तियों ने श्रीनिवास की भूमिका अदा की पर फिल्म देखने वालों को इसका पता नहीं चला।
बारिश का दृश्य-पैसों की कमी के कारण बारिश का दृश्य फिल्माने में भी हमें परेशानी हुई। रोज हम लोग कलाकारों एवं तकनीशियनों को साथ लेकर देहात में जाकर बैठ जाते और वर्षा की प्रतीक्षा करते। आखिर कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद शरद ऋतु में भी आसमान में बादल छा गए, मूसलाधार बारिश हुई। बारिश में भीगती दुर्गा भागती हुई आई और भाई-बहन एक-दूसरे से चिपककर बैठे। बरसात, ठण्ड एवं अपू का खुला बदन। अपू काँप रहा था, शाट पूरा होने के बाद दूध में ब्रांडी डालकर भाई-बहन को देकर उनका शरीर गर्म किया गया।
बोडाल गाँव के सबोध दा-शूटिंग की दृष्टि से बोडाल गाँव हमें अधिक उपयुक्त लगा। अपू दुर्गा का घर, अपू का स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, पुकुर, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट ये सभी वहाँ थे। उस गाँव में हमें कई बार जाना पड़ा, बहुत बार रहना भी पड़ा अत: वहाँ के लोगों से हमारा परिचय हुआ। उन्हीं में से एक थे 'सुबोध दा'। वे साठ-पैंसठ साल के मँजे व्यक्ति थे, अकेले ही एक झोपड़ी में रहते और दरवाजे पर बैठे खुद से कुछ-न-कुछ बड़बड़ाते रहते। हमें देखकर चिल्लाते फिल्म वाले आए हैं, मारो उनको लाठियों से। वे मानसिक रूप से बीमार थे। बाद में वे हमें बुलाकर वायलिन पर लोकगीतों की धुनें बजाकर सुनाते तथा रुजवेल्ट, हिटलर, चर्चिल एवं खान अब्दुल गफ्फार खाँ को गालियाँ सुनाते।
पास में रहने वाला एक धोबी भी कुछ पागल-सा था। कभी भी भाइयों और बहनों कहकर किसी सरकारी मुद्दे पर लम्बा भाषण शुरू कर देता, जिससे शूटिंग के समय हमें बहुत परेशानी होती। उस धोबी के रिश्तेदारों ने हमारी मदद न की होती तो वह निश्चय ही हमारे लिए सिरदर्द बन जाता।
भूपेन बाबू और साँप-पथेर पांचाली की शूटिंग के लिए जो घर किराए पर लिया था उसके मालिक कोलकाता में रहते थे। उस घर की मरम्मत करके उसे शूटिंग के लिए तैयार किया गया था। उस घर के कुछ कमरों में हम अपना सामान रखते थे। शूटिंग में वे हमने इस्तेमाल नहीं किए थे। एक कमरे में रिकार्डिंग मशीन लेकर फिल्म के साउण्ड रिकार्डिस्ट भूपेन बाबू बैठते थे। शूटिंग के समय वे हमें दिखाई नहीं देते, किन्तु हम उनकी आवाज सुन सकते थे। हर शाट के बाद हम उनसे पूछते-'साउण्ड ठीक है न?' भूपेन बाबू 'हाँ' या 'ना' में जवाब देते। - एक दिन शाट के बाद जब भूपेन बाबू से साउण्ड के बारे में पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला। हम लोग जब उनके कमरे में गए तो देखा एक बड़ा साँप उस कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था, जिसे देखकर भूपेन बाबू की बोलती बन्द हो गई थी। स्थानीय लोगों के मना करने पर हमने उस साँप को नहीं मारा।
इस प्रकार अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए ढाई वर्ष की लम्बी अवधि में ‘पथेर पांचाली' की शूटिंग सम्पन्न हो सकी।
कठिन शब्दार्थ :
सप्रसंग व्याख्यायें एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
1. विज्ञापन देकर भी अपू की भूमिका के लिए सही तरह का लड़का न मिलने के कारण मैं तो बेहाल हो गया। आखिर एक दिन मेरी पत्नी छत से नीचे आकर मुझसे बोली, "पास वाले मकान की छत पर एक लड़का देखा, जरा उसे बुलाइए तो!" आखिर हमारे पड़ोस के घर में रहने वाला लड़का सुबीर बनर्जी ही पथेर पांचाली' में 'अपू' बना। फिल्म का काम आगे भी ढाई साल चलने वाला है, इस बात का अन्दाजा मुझे पहले नहीं था।
इसलिए जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, वैसे-वैसे मुझे डर लगने लगा। अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे अगर ज्यादा बड़े हो गए, तो फिल्म में वह दिखाई देगा! लेकिन मेरी खुशकिस्मती से उस उम्र में बच्चे जितने बढ़ते हैं, उतने अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे नहीं बढ़े। इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल उम्र की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकी, यह भी मेरे सौभाग्य की बात थी।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित सत्यजित राय की फिल्म पथेर पांचाली' के फिल्मांकन से संबंधित लेख 'अपू के साथ ढाई साल से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने फिल्म के मुख्य पात्र अपू का चयन किस प्रकार किया ? इसका वर्णन किया है।
व्याख्या - सत्यजित राय के अपनी फिल्म 'पथेर पांचाली' के लिए एक लड़के अपू की आवश्यकता थी। राय जो कि फिल्म के निर्देशक थे, इस समस्या के कारण बड़े बेचैन रहते थे। समाचार पत्रों में विज्ञापन दिये जाने पर भी 'अपू' की भूमिका निभाने वाला पात्र नहीं मिल रहा था। एक दिन राय साहब की पत्नी छत से उतरकर आई और पड़ोस में एक लड़के के बारे में बताया। लड़के सुबीर बनर्जी को बुलवाया गया। निर्देशक महोदय ने उसे 'अपू' पात्र की भूमिका निभाने के लिए उपयुक्त पाया। सत्यजित राय को.यह अंदाजा नहीं था कि फिल्म की शूटिंग आगे ढाई साल तक चलने वाली थी।
इसी कारण ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, राय का डर बढ़ता गया। उनके मन में यह आशंका रहती थी कि कहीं इस बीच दोनों बच्चे अपू और दुर्गा उम्र में बड़े न दिखाई देने लगे। यह बात फिल्म की कहानी को प्रभावित कर सकती थी। लेकिन यह सत्यजित राय का सौभाग्य था कि वे बच्चे उतने नहीं बढ़े जितना उस उम्र में बच्चे बढ़ जाते हैं। इसके साथ ही 'इन्दिरा' का अभिनय करने वाली अस्सी वर्ष की वृद्धा चुन्नीबाला देवी भी ढाई साल तक अभिनय करती रही। इस तरह 'पथेर पांचाली' फिल्म की शूटिंग करते हुए सत्यजित राय को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
विशेष - प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजित राय धैर्य और दूरदर्शिता के कारण ही इतनी श्रेष्ठ फिल्मों का निर्माण कर पाए।
प्रश्न :
1. लेखक किस समस्या के कारण बेहाल था? वह कैसे हल हुई ?
2. दिन बीतने के साथ लेखक को क्या डर सताने लगा?
3. लेखक किस बात को अपनी खुशकिस्मती मानता है ?
4. इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली चुन्नीबाला देवी के सम्बन्ध में लेखक को क्या आशंका थी?
उत्तर :
1. सत्यजित राय को फिल्म के लिए एक अपू नामक लड़के की आवश्यकता थी। समाचारपत्रों में विज्ञापन दिए जाने पर भी सही लड़का नहीं मिला। इसी कारण राय बहुत चिन्तित थे। अन्त में एक दिन इनकी पत्नी ने उन्हें पड़ोस के एक लड़के के बारे में बताया और संयोगवश वह 'अपू' की भूमिका के लिए सही बैठा।
2. दिन बीतने के साथ ही लेखक को यह डर सताने लगा कि अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे ढाई साल के अन्तराल में कहीं बड़े न दिखने लगें।
3. लेखक ने इस बात को अपना सौभाग्य माना कि इस उम्र में बच्चे जितने बढ़ते हैं, उतने अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे नहीं बढ़े और उनको बदलकर अन्य पात्रों की व्यवस्था नहीं करनी पड़ी।
4. चुन्नीबाला देवी 80 वर्ष की वृद्धा थी और वे पथेर पांचाली में इन्दिरा ठाकरुन की भूमिका कर रही थीं। ढाई साल की शूटिंग-अवधि में कहीं उनका निधन न हो जाए, यह आशंका लेखक को परेशान कर रही थी।
2. सुबह शूटिंग शुरू करके शाम तक हमने सीन का आधा भाग चित्रित किया। निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता-अभिनेत्री हम सभी इस क्षेत्र में नवागत होने के कारण थोड़े बौराए हुए ही थे, बाकी का सीन बाद में चित्रित करने का निर्णय लेकर हम घर पहुँचे। सात दिन बाद शूटिंग के लिए उस जगह गये, तो वह जगह हम पहचान ही नहीं पाए, लगा, ये कहाँ आ गए हैं हम? कहाँ गए वे सारे काशफूला बीच के सात दिनों में जानवरों ने वे सारे काशफूल खा डाले थे। अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से 'कंटिन्युइटी' नदारद हो जाती।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित सत्यजित राय के लेख 'अपू के साथ ढाई साल से लिया गया है। इस अंश में राय की फिल्म 'पथेर पांचाली' की शूटिंग में आने वाली कुछ समस्याओं का उल्लेख है। .
व्याख्या - जब पथेर पंचाली फिल्म का छायांकन (शूटिंग) आरंभ हुआ तो पहले दिन सुबह से शाम तक दृश्य का आधा ही भाग पूरा हो पाया। फिल्म में काम करने वाले निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता और अभिनेत्री शूटिंग के स्थान पर पहली बार आए थे। अत: वे कुछ असमंजस से ग्रस्त थे। सभी ने निर्णय लिया कि फिल्म के बाकी दृश्य की शूटिंग बाद में की जाएगी। इसके बाद सभी लोग घरों को चले गए।
जब एक हफ्ते बाद सभी लोग उस स्थान पर पहुँचे तो वह स्थान उन्हें अनजाना-सा लगा। उन्हें भ्रम हुआ कि वे किसी और स्थान पर आ पहुँचे थे। सात दिनों के बीच वहाँ चारों ओर उगे काश के फूल गायब हो गए थे। लगता था कि उन्हें पशु चर गए थे। इससे एक समस्या सामने आ गई। अगर अब उस स्थान पर शेष आधे भाग की शूटिंग की जाती तो उसका पहले आधे भाग के दृश्यांकन से मेल नहीं बैठता। दृश्य में निरंतरता और समानता नहीं रहती। अत: आगे की शूटिंग स्थगित करनी पड़ गई।
विशेष - एक निर्देशक के रूप में सत्यजित राय छोटी-छोटी बातों का भी पूरा ध्यान रखते थे। इसी कारण ‘पथेर पांचाली' की शूटिंग में ढाई वर्ष का समय लग गया।
प्रश्न :
1. काशफूल समाप्त क्यों हो गए थे? और उनकी क्या जरूरत थी?
2. फिल्म वाले उस जगह को पहचान क्यों नहीं पा रहे थे ?
3. काशफूल न होने से क्या समस्या उत्पन्न हो गई थी?
4. आधा सीन अगली बार शूट करने का निश्चय क्यों किया गया था ?
उत्तर :
1. काशफूलों के जंगल में अपू और दुर्गा के दौड़ने का सीन केवल आधा ही शूट हो पाया। यह निश्चय किया गया कि आधा बचा सीन बाद में शूट करेंगे। सात दिन बाद जब उस स्थान पर पहुंचे तो काशफूल नदारद थे। जानवरों ने वे सारे काशफूल चर लिए थे।
2. फिल्म वाले उस स्थान को इसलिए नहीं पहचान पा रहे थे क्योंकि पहले जब वे आए थे तब वह स्थान काशफूलों से भरा हुआ था, किन्तु अब जानवरों द्वारा काशफूल चर लिए जाने पर वहाँ एक भी काशफूल नहीं बचा था। अत: वहाँ का दृश्य ही पूरी तरह बदल गया था।
3. अपू और दुर्गा ने यहीं पर रेल को पहली बार देखा था। सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि में काला धुआँ छोड़ती रेल का दृश्य फिल्म में शूट करना था। आधा सीन शूट हो गया था और शेष बचे सीन को बाद में शूट करने का निश्चय किया गया किन्तु सात दिन बाद जब फिल्म यूनिट वहाँ पहुँची तो सारे फूल जानवरों ने चर लिए थे। अब काशफूलों के अभाव में शूटिंग नहीं हो सकती थी। अत: उनके लिए यह समस्या उत्पन्न हो गई।
4. आधा सीन सुबह से शाम तक शूट हो पाया था और सूरज की रोशनी समाप्त हो गई। इसके अतिरिक्त बिना काशफूलों के शूटिंग करने पर पहले आधे दृश्य से उसका मेल न बैठता। इसी कारण शेष दृश्य की शूटिंग बाद में करने का निश्चय किया गया।
3. श्रीनिवास नामक घूमते मिठाईवाले से मिठाई खरीदने के लिए अपू और दुर्गा के पास पैसे नहीं हैं। वे तो मिठाई खरीद नहीं सकते, इसलिए अपू और दुर्गा उस मिठाईवाले के पीछे-पीछे मुखर्जी के घर के पास जाते हैं। मुखर्जी अमीर आदमी हैं। वे तो मिठाई जरूर खरीदेंगे और उनका मिठाई खरीदना देखने में ही अपू और दुर्गा की खुशी है।
इस दृश्य का कुछ अंश चित्रित होने के बाद हमारी शूटिंग कुछ महीनों के लिए स्थगित हो गयी। पैसे हाथ में आने पर फिर जब हम उस गाँव में शूटिंग करने के लिए गए, तब खबर मिली कि श्रीनिवास मिठाईवाले की भूमिका जो सज्जन कर रहे थे, उनका देहांत हो गया है। अब पहले वाले श्रीनिवास का मिलता-जुलता दूसरा आदमी कहाँ से मिलेगा? आखिर श्रीनिवास की भूमिका के लिए हमें जो सज्जन मिले उनका चेहरा पहले वाले श्रीनिवास से मिलता-जुलता नहीं था, लेकिन शरीर से वे पहले श्रीनिवास जैसे ही थे।
उन्हीं पर हमने दृश्य का बाकी अंश चित्रित किया। फिल्म में दिखाई देता है कि एक नम्बर श्रीनिवास बाँसबन से बाहर आता है और अगले शाट में दो नम्बर श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अन्दर जाता है। पथेर पांचाली' फिल्म अनेक लोगों ने एक से अधिक बार देखी है, लेकिन श्रीनिवास के मामले में यह बात किसी के ध्यान में आई है, ऐसा मैंने नहीं सुना!
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित सत्यजित राय के संस्मरणात्मक लेख 'अपू के साथ ढाई साल से लिया गया है। इसमें श्रीनिवास नामक फेरी लगाकर मिठाई बेचने वाले पात्र से संबंधित दृश्यांकन में आई समस्या का वर्णन हुआ है।
व्याख्या - प्रस्तुत दृश्यांकन में फेरी लगाकर मिठाई बेचने वाले श्रीनिवास का दृश्यांकन होना है। अपू और दुर्गा उससे मिठाई खरीदना चाहते हैं लेकिन उनके पास पैसे नहीं हैं। स्वयं तो ये बच्चे मिठाई नहीं खरीद सकते थे। अत: वे उस मिठाई वाले के पीछे-पीछे चलते हुए मुखर्जी के घर तक जाते हैं। मुखर्जी धनवान व्यक्ति हैं। अत: वह तो मिठाई जरूर खरीदेंगे ही। बच्चे उन्हें मिठाई खरीदते हुए देखना चाहते हैं। इसी में उनको बहुत प्रसन्नता होगी।
इस दृश्य का थोड़ा ही अंश चित्रित हो पाया था कि फिल्म की शूटिंग कुछ महीनों तक रुक गई। पैसे समाप्त हो गए थे। जब राय दूसरी बार शूटिंग करने उस गाँव में पहुँचे तो पता चला कि श्रीनिवास का अभिनय करने वाले सज्जन का देहावसान हो गया था।
अब एक और समस्या सामने आ गई कि श्रीनिवास से मिलता-जुलता व्यक्ति कहाँ से लाया जाय ? काफी खोज के बाद जिस व्यक्ति को श्रीनिवास की भूमिका के लिए चुना गया, उसका मुख तो श्रीनिवास से नहीं मिलता था लेकिन कद-काठी में वह श्रीनिवास जैसा ही लगता था। अत: शेष शूटिंग उन्हीं सज्जन को श्रीनिवास बनाकर की गई। इससे दृश्य योजना में कुछ फेर-बदल करना पड़ा।
फिल्म में दिखाई देता है कि पहले वाला श्रीनिवास बाँसबन से बाहर आता है और अगले दृश्य में नया वाला श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर में जाता है। इस प्रकार समस्या का हल निकाला गया था। यह परिवर्तन इतनी सफाई और सावधानी से किया गया था कि “पथेर पांचाली' फिल्म कई बार देखने वाले व्यक्ति भी इस अंतर को नहीं पहचान पाए।
विशेष - एक कुशल और अनुभवी निर्देशक के रूप में संत्यजित राय की प्रतिष्ठा ऐसी ही सूझ-बूझ के कारण स्थापित हुई थी।
प्रश्न :
1. फिल्म में मिठाई वाले से सम्बन्धित कौन-सा दृश्य शूट किया जाना था ?
2. मिठाई वाले की भूमिका करने वाले सज्जन का देहान्त हो जाने पर किस युक्ति से बाकी सीन की शूटिंग की गयी?
3. मिठाई वाले की भूमिका में दो सज्जनों ने काम किया है, यह बात दर्शकों के ध्यान में क्यों नहीं आई?
4. फिल्म की शूटिंग बार-बार स्थगित होने के दो प्रमुख कारण कौन-कौन से थे?
उत्तर :
1. फिल्म में फेरी लगाकर मिठाई बेचने वाले श्रीनिवास से संबंधित दृश्य शूट किया जाना था। इस दृश्य में अपू और दुर्गा पैसे न होने से मिठाई खरीदने में असमर्थ थे। अत: वे उसके पीछे मुखर्जी नामक धनी व्यक्ति के घर तक जाते ' हैं और उसे मिठाई खरीदते हुए देखते हैं।
2. पैसे इकट्ठे हो जाने पर जब फिल्म यूनिट के लोग दृश्य की शूटिंग करने उस गाँव में पहुंचे, तो पता चला कि वे सज्जन तो मर चुके हैं जो श्रीनिवास मिठाई वाले की भूमिका कर रहे थे। आधा सीन पहले ही शूट हो चुका था। अत: उनकी जैसी कद-काठी वाला एक दूसरा आदमी गाँव में खोजा गया और वे कैमरे की ओर पीठ करके खड़े हुए। कैमरे ने पीछे से दृश्य शूट किया, जिससे लोगों को यह पता न चले कि यह दृश्य दो व्यक्तियों पर शूट किया गया है। फिल्म के दर्शक यह जान भी न पाए कि पूरे दृश्य में श्रीनिवास मिठाई वाले की भूमिका वाला व्यक्ति बदल गया है।
3. मिठाई वाले की भूमिका में दो सज्जनों ने काम किया है। श्रीनिवास नम्बर एक बाँसबन से बाहर आता है और अगले शॉट में श्रीनिवास नम्बर दो कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अन्दर जाता है। क्योंकि दूसरे सज्जन का चेहरा नहीं दिखाया गया। अत: दर्शकों को यह बात पता नहीं चल सकी कि मिठाई वाले की भूमिका दो कलाकारों ने की है।
4. फिल्म की शूटिंग बार-बार स्थगित करनी पड़ती थी इसके पीछे दो प्रमुख कारण थे
(i) आर्थिक तंगी इसका प्रमुख कारण था। जब पैसे समाप्त हो जाते तो शूटिंग अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो जाती और तभी दुबारा शुरू होती जब हाथ में पैसे आ जाते।
(ii) शूटिंग स्थगित होने का एक कारण यह भी था कि शूटिंग सूरज की रोशनी में होती। संध्या हो जाने पर रोशनी कम हो जाती और शूटिंग स्थगित करनी पड़ती।
4. लेकिन मुश्किल यह कि यह कुत्ता कोई हॉलीवुड का सिखाया हुआ नहीं था। इसलिए यह बताना मुश्किल ही था कि वह अपू-दुर्गा के साथ भागता जाएगा या नहीं। कुत्ते के मालिक से हमने कहा था-'अपू-दुर्गा जब भागने लगते हैं तब तुम अपने कुत्ते को उन दोनों के पीछे भागने के लिए कहना।' लेकिन शूटिंग के वक्त दिखाई दिया कि वह कुत्ता मालिक की आज्ञा का पालन नहीं कर रहा है। इधर हमारा कैमरा चालू ही था। कीमती फिल्म जाया हो रही थी और मुझे बार-बार चिल्लाना पड़ रहा था-'कट्! कट!'
अब यहाँ धीरज रखने के सिवा और दूसरा उपाय न था। अगर कुत्ता बच्चों के पीछे दौड़ा, तो ही वह उनका पालतू कुत्ता लग सकता था। आखिर मैंने दुर्गा से अपने हाथ में थोड़ी मिठाई छिपाने के लिए कहा, और वह कुत्ते को दिखाकर दौड़ने को कहा। इस बार कुत्ता उनके पीछे भागा और हमें हमारी इच्छा के अनुसार शॉट मिला।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित सत्यजित राय लिखित 'अपू के साथ ढाई साल' पाठ से लिया गया है। इस अंश में अपू और दुर्गा के पालतू कुत्ते से संबंधित दृश्यांकन का वर्णन हुआ है।
व्याख्या - फिल्म के एक दृश्य में 'भूलो' नाम का एक कुत्ता था जिसे अपू और दुर्गा के पीछे दौड़ना था। लेकिन वह कोई फिल्मों में काम करने वाला हॉलीवुड फिल्मों का प्रशिक्षित कुत्ता नहीं था। वह एक गाँव का साधारण कुत्ता था। इस कारण राय साहब को यह चिंता लगी थी कि वह दृश्यांकन के समय अपू और दुर्गा के पालतू कुत्ते की तरह उनके पीछे भागता जाएगा या नहीं। निदेशक महोदय ने कुत्ते के मालिक से कह दिया था कि जब अपू और दुर्गा भागे तो वह कुत्ते को उनके पीछे दौड़ने को कहे। जब शूटिंग आरंभ हुई तो कुत्ता अपने मालिक की आज्ञा का पालन नहीं कर रहा था। कैमरा निरंतर शाट ले रहा था। कुत्ते के सही काम न करने के कारण कीमती फिल्म बेकार जा रही थी।
सत्यजित राय को बार-बार 'कट् ! कट् !' की आवाज लगानी पड़ रही थी। जिसका अर्थ था कि शाट फिर से लिया जाएगा। लेकिन डाइरेक्टर महोदय के पास धैर्यपूर्वक प्रयास करते रहने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था। कुत्ते को फिल्म में अपू और दुर्गा के पालतू कुत्ते के रूप में दिखाया जाना था। यह तभी सम्भव था जब कुत्ता उनके पीछे-पीछे दौड़ता जाए। तब राय साहब को एक उपाय सूझा। उन्होंने दुर्गा से कहा कि वह अपने हाथ में थोड़ी-सी मिठाई लेकर भागे और कुत्ते को मिठाई दिखाती रहे। ऐसा करने पर कुत्ता उनके पीछे भागा और बड़ी कठिनाई से फिल्म का यह शाट सफल हो पाया।
विशेष - इस गद्यांश से पता चलता है कि फिल्म को सफल बनाने के लिए कितना धैर्य, सूझ-बूझ और परिश्रम आवश्यक होता है।
प्रश्न :
1. हॉलीवुड से क्या अभिप्राय है ?
2. कुत्ते को अपू-दुर्गा के पीछे दौड़ने का दृश्य फिल्माने में क्या कठिनाई आई ?
3. इस कठिनाई का निवारण किस प्रकार किया गया ?
4. लेखक का मूल उद्देश्य इस अवतरण के द्वारा क्या बताना है ?
उत्तर :
1. हॉलीवुड अमेरिका का वह नगर है जहाँ सबसे ज्यादा फिल्में बनाई जाती हैं, जैसे भारत में मुम्बई में। इसीलिए मुम्बई को हॉलीवुड के स्थान पर बॉलीवुड कहने लगे हैं।
2. अपू-दुर्गा का पालतू कुत्ता 'भूलो' था। इस दृश्य में उसे अपू-दुर्गा के पीछे-पीछे भागना था, किन्तु जब शूटिंग प्रारम्भ हुई तो कुत्ता उनके पीछे नहीं भागा। इससे दृश्य को फिल्माया नहीं जा सका।
3. निर्देशक ने दुर्गा से अपने हाथ में थोड़ी मिठाई छिपाकर कुत्ते को दिखाने के लिए कहा और जब दुर्गा के हाथ में छिपी मिठाई कुत्ते को दिखी तो वह उनके पीछे-पीछे भागने लगा और तब इस दृश्य को फिल्माकर कठिनाई का निवारण किया जा सका।
4. लेखक इस अवतरण के द्वारा यह बताना चाहता है कि फिल्म-निर्माण के दौरान किस-किस प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं? और किस तरह उनका समाधान निकाला जाता है ?
5. पैसों की कमी के कारण ही.बारिश का दृश्य चित्रित करने में बहुत मुश्किल आई थी। बरसात के दिन आए और गए, लेकिन हमारे पास पैसे नहीं थे, इस कारण शूटिंग बन्द थी। आखिर जब हाथ में पैसे आए, तब अक्टूबर का महीना शुरू हुआ था।शरद ऋतु में निरभ्र आकाश के दिनों में भी शायद बरसात होगी, इस आशा से मैं अपू और दुर्गा की भूमिका करने वाले बच्चे, कैमरा और तकनीशियन को साथ लेकर हर रोज देहात में जाकर बैठा रहता था। आकाश में एक भी काला बादल दिखाई दिया, तो मुझे लगता था कि बरसात होगी। मैं इच्छा करता, यह बादल बहुत बड़ा हो जाए और बरसने लगे।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित श्री सत्यजित राय द्वारा लिखित पाठ 'अपू के साथ ढाई साल से लिया गया है। फिल्म 'पथेर पांचाली' में वर्षा का दृश्य दिखाया जाना था लेकिन पैसों के कारण काम बंद रहा। जब पैसा हाथ में आया तो बारिश का मौसम समाप्त हो गया। गद्यांश में इसी समस्या का वर्णन है।
व्याख्या - फिल्म ‘पथेर पांचाली' के दृश्यांकन में सदा पैसों की कमी बनी रही और चित्रण बीच-बीच में रोकना पड़ता था। फ़िल्म के लिए वर्षा का दृश्य चित्रित करते समय भी यही हुआ। बरसात का मौसम आया और चला गया लेकिन निर्देशक सत्यजित राय धन का प्रबंध नहीं कर पाए। शूटिंग बंद रही। अक्टूबर के महीने में जाकर धन का प्रबंध हो सका। शरद ऋतु आ गई। आकाश में बादलों का दूर-दूर तक दर्शन नहीं हो रहा था। किन्तु राय साहब को फिर भी आशा बनी हुई थी कि शायद बरसात हो जाय।
इसी कारण वह अपू और दुर्गा का अभिनय करने वाले बच्चों को और कैमरामैन तथा तकनीशियन को साथ लेकर रोज गाँव में जाते थे और दिनभर वर्षा की आशा में बैठे रहते थे। अगर कभी कोई काला बादल दिखाई पड़ जाता था तो उन्हें लगता था कि शायद बरसात हो जाए। राय महोदय मन ही मन चाहते रहते थे कि यह बादल बहुत बड़ा हो जाये और बरसने लगे।
विशेष - गद्यांश से ज्ञात हो रहा है कि निर्देशक सत्यजित राय धुन के पक्के थे और यही कारण था कि वह फिल्म जगत को 'पथेर पांचाली' जैसी श्रेष्ठ फिल्म दे पाए।
प्रश्न :
1. बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या कठिनाई सामने आई और क्यों ?
2. फिल्म-निर्माता को किस प्रकार प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ा? इस पर टिप्पणी कीजिए।
3. बारिश का दृश्य लेखक ने कैसे और कब फिल्माया?
4. क्या आज भी प्राकृतिक दृश्यों के फिल्मांकन में ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं ?
उत्तर :
1. पैसों की कमी के कारण बारिश का दृश्य चित्रित करने में कठिनाई हुई। शरद ऋतु में अपू और दुर्गा की भूमिका करने वाले बच्चों को साथ लेकर फिल्म यूनिट रोज देहात में जाकर बारिश की प्रतीक्षा करती और लौट आती। जब वर्षा ऋतु थी तब पैसों का अभाव था और अब जब पैसे इकट्ठे हो गए तो बारिश नदारद थी।
2. फिल्म-निर्माता को प्रकृति पर इसलिए निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि प्राकृतिक दृश्यों में वास्तविकता लाने के लिए उसे वर्षा आदि की प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ती है। इसी प्रकार सूरज छिप जाने पर भी उसे शूटिंग रोक देनी पड़ती है।
3. अक्टूबर के महीने में जब शरद ऋतु प्रारम्भ हो गयी थी तब लेखक पैसे इकट्ठे कर पाया और शूटिंग का प्रबन्ध किया गया। आकाश में जैसे ही काला बादल दिखता सारी यूनिट वर्षा की आशा में देहात में शूटिंग स्थल पर जा पहुँचती और हम वर्षा की प्रतीक्षा करते। कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद एक दिन मूसलाधार पानी पड़ा। वर्षा में भीगती दुर्गा एक पेड़ के पास बैठे अपने भाई अपू का आश्रय लेती है और दोनों भाई-बहन चिपककर बैठ जाते हैं। इस दृश्य को लेखक ने लम्बी प्रतीक्षा के उपरान्त फिल्माया।
4. आजकल फिल्में करोड़ों की लागत से बनती हैं। अत: फिल्म निर्माता देश-विदेश में कहीं भी उपयुक्त प्राकृतिक स्थल का चयन कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे साधन-सम्पन्न स्टूडियो उपलब्ध हैं जहाँ अनेक प्राकृतिक दृश्यों के सैट लगाकर फिल्मांकन किया जा सकता है।
6. उस घर के एक हिस्से में एक के पास एक ऐसे कुछ कमरे थे। वे हमने फिल्म में नहीं दिखाए। उन कमरों में हम अपना सामान रखा करते थे। एक कमरे में रिकॉर्डिंग मशीन लेकर हमारे साउण्ड-रिकॉर्डिस्ट भूपेन बाबू बैठा करते थे। हम शूटिंग के वक्त उ देख नहीं सकते थे, फिर भी उनकी आवाज सुन सकते थे। हर शॉट के बाद हम उनसे पूछते, 'साउंड ठीक है न?' भूपेन. 'बू इस पर 'हाँ' या 'ना' में जवाब देते।
एक दिन शॉट के बाद मैंने साउण्ड के बारे में उनसे सवाल किया, लेकिन कुछ भी जवाब नहीं आया। फिर एक बार पूछा-'भूपेन बाबू साउण्ड ठीक है न?' इस पर भी जवाब न आने पर मैं उनके कमरे में गया, तो देखा एक बड़ा-सा साँप उस कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। वह साँप देखकर भूपेन बाबू सहम गए थे और उनकी बोलती बन्द हो गई थी। वह साँप हमने वहाँ आने पर कुछ ही दिनों के बाद देखा था। उसे मार डालने की इच्छा होने पर भी स्थानीय लोगों के मना करने के कारण हम उसे मार नहीं सके। वह 'वास्तुसर्प' था और बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित पाठ 'अपू के साथ ढाई साल से लिया गया है। इसके लेखक सत्यजित राय हैं। फिल्म की शूटिंग के समय जो मकान किराये पर लिया गया था। उसके उपयोग के बारे में इस अंश में बताया गया है।
व्याख्या - शूटिंग के लिए किराये पर लिए गये मकान के एक हिस्से में पास-पास बने हुए कुछ कमरे थे। उन कमरों को फिल्म में नहीं दिखाया गया। इन कमरों का उपयोग शूटिंग से संबंधित अलग-अलग कार्यों के लिए होता था। एक कमरे में रिकार्डिंग की मशीन लगाई गई थी। इसमें फिल्म की साउन्ड रिकार्डिंग करने वाले भूपेन बाबू बैठते थे। शूटिंग के समय वह बाहर से दिखाई नहीं देते थे लेकिन उनकी आवाज बाहर सुनाई देती थी। हर शाट के बाद पूछा जाता था कि 'साउंड ठीक है न ?' और वह इसका उत्तर 'हाँ' या 'ना' में दिया करते थे।
एक दिन शाट पूरा होने के बाद जब सत्यजित राय ने उनसे यही प्रश्न दो बार पूछा लेकिन उनका कोई उत्तर नहीं आया। जब लेखक उनके कमरे में गया तो देखा एक बड़ा साँप कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। उसे देखकर भूपेन बाबू डर गए थे और उनके मुख से आवाज तक नहीं निकल रही थी। उस साँप को मारने का विचार हुआ लेकिन पड़ोस के लोगों ने मना कर दिया। पता चला कि वास्तुसर्प' था जो भवन का रक्षक माना जाता है।
प्रश्न :
1. भूपेन बाबू कौन थे ? उनसे लेखक क्या प्रश्न करता था ?
2. भूपेन बाबू की बोलती क्यों बन्द हो गयी थी ?
3. वास्तुसर्प किसे कहते हैं ?
4. सर्प को क्यों नहीं मारा गया ?
उत्तर :
1. भूपेन बाबू 'पथेर पांचाली' फिल्म के साउंड रिकार्डिस्ट' थे। वे जिस कमरे में रिकार्डिंग मशीन लेकर बैठते, वहाँ से हम उनकी आवाज तो सुन सकते थे, किन्तु उन्हें देख नहीं सकते थे। हर शाट के बाद लेखक उनसे पूछता-साउंड ठीक है न ? भूपेन बापू 'हाँ' या 'ना' में जवाब देते।
2. भूपेन बाबू से जब पूछा गया कि 'साउंड ठीक है. न ?' तो कोई जवाब नहीं आया। क्या बात है ? भूपेन बाबू बोलते क्यों नहीं? यह जानने के लिए जब लेखक कमरे में गए तो देखा कि एक बड़ा साँप खिड़की के रास्ते कमरे में उतर रहा था, जिसे देखकर डर के कारण भूपेन बाबू की बोलती बन्द हो गई थी।
3. वास्तुसर्प के विषय में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। इन सर्पो को कुछ लोग पितर या पूर्वज मानते हैं, जो यदा-कदा प्रकट होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन का शिलान्यास करते समय उसकी नींव में चाँदी के बने सर्यों को स्थापित करने की परम्परा है। इन सर्पो को घर का रक्षक माना जाता है जो कभी-कभी प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं और हानि नहीं पहुँचाते।
4. सर्प के बारे में मान्यता थी कि वह उस भवन का वास्तुसर्प था और वह बहुत दिनों से उस भवन में रह रहा था। वास्तुसर्प के प्रति पूज्य भाव होने के कारण स्थानीय लोगों ने उसे मारने से रोका। इसी कारण उसे नहीं मारा गया।