Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 वे आँखें Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 11 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 11 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts.
कविता के साथ -
प्रश्न 1.
अंधकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन।
(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?
(ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?
(ग) कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है ?
(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है ?
(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?
उत्तर :
(क) आमतौर पर हमें अन्धकार से डर लगता है। प्रियजनों की मृत्यु, निर्धनता की पीड़ा, सामाजिक-शोषण और प्रताड़ना भी जीवन में अन्धकार के समान ही भयानक होते हैं।
(ख) उन आँखों से किसान की पीड़ा और निराशा को व्यक्त करने वाली आँखों की ओर संकेत किया गया है। किसान का . घर-द्वार, पशु, भूमि और सम्पत्ति सब नीलाम हो चुका है। पत्नी, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू की मृत्यु हो चुकी है। वह बेबसी और निराशा में जी रहा है, पीड़ा और शोषण सह रहा है। इस सबकी छाया उसकी आँखों में दिखाई देती है।
(ग) किसान की आँखों में स्वाभाविकता नहीं है। धन-सम्पत्ति की हानि तथा परिजनों के वियोग ने उसकी आँखों की चमक छीन ली है। उनमें भरी हुई निराशा और पीड़ा कवि को हिला देती है। उन आँखों में उसे अँधेरा-ही-अँधेरा दिखाई देता है। अत: उन आँखों में झाँकने में कवि को डर लगता है।
(घ) कवि किसान की निराशा से भरी आँखों में आँखें डालकर देखने से डरता है। डरते हुए भी कवि ने किसान की पीड़ा को समझा है। किसान साहूकारों, जमींदारों, पुलिसवालों तथा समर्थ लोगों के शोषण का शिकार है। उसकी मेहनत का फल और जायज हक उसको नहीं मिलता। कवि ने किसान के दुःख-दर्द को तथा अत्याचारियों के शोषण को समाज के सामने लाने के लिए ही कविता लिखी है, आँखें तो केवल एक माध्यम है। कवि को किसान से सहानुभूति है और वह स्वयं शोषण के विरुद्ध है।
(ङ) रचना के लिए आवश्यक है कि कवि अथवा लेखक के मन में गहराई से भाव जाग्रत हो-~-यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता तो संभवत: वह कविता नहीं लिख पाता। किसान की आँखों में दुःख-दर्द और उत्पीड़न की कथा पढ़कर ही कवि की सहानुभूति किसान के प्रति जागती है और उसको प्रेरणा मिलती है कि वह इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाये। कवि के मन में भाव जाग्रत करने में किसान की निराशा भरी आँखों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
प्रश्न 2.
कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है ?
उत्तर :
कविता में किसान की पीड़ा के लिए सूदखोर महाजन, जमींदार तथा पुलिस कोतवाल को जिम्मेदार बताया गया है। जमींदार किसान से लगान वसूलता है तथा महाजन अपने मूलधन पर ब्याज। जब खेत में फसल अच्छी नहीं होती तो किसान लगान और ब्याज नहीं चुका पाता। फलत: किसान का खेत, मकान और पशु नीलाम करा दिये जाते हैं। विरोध करने पर उसके युवा पुत्र की हत्या करा दी जाती है। झूठी शिकायतों पर नगर कोतवाल उसके पुत्र की विधवा को थाने में उठवा लेता है और उसके साथ अशोभनीय व्यवहार करता है। लोक-लाजवश वह कुएँ में कूदकर अपनी जान दे देती है।
प्रश्न 3.
'पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षणभर एक चमक है लाती!' इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
किसान वर्तमान सूदखोरों, महाजनों और पुलिस अधिकारियों के अत्याचार और शोषण का शिकार है। उसका सब कुछ लुट चुका है। जब कभी उसको अपने अतीत की स्मृति होती है तो उसकी आँखों में प्रसन्नता और आशा की चमक दिखाई देती है, परन्तु वह स्थायी नहीं होती। कुछ क्षणों में ही वह निराशा में डूब जाता है।
किसान को याद आता है कि उसके पास काफी भूमि थी। उसके खेत हरे-भरे थे तथा उनमें लाभदायक फसलें उगती थीं। उस समय वह आत्म-निर्भर था तथा किसी का कर्जदार नहीं था। खेतों से प्राप्त आमदनी से उसके परिवार का भरण-पोषण सरलता से हो जाता था। उसका अपना मकान था तथा हल-बैल और अन्य पशु भी थे। दूध देने वाली सफेद गाय तो उसको ही दूध दुहने देती थी।
उसके परिवार में उसकी पत्नी थी और एक दुधमुंही बच्ची भी थी। उसका पुत्र विवाहित,था तथा किसान की पुत्रवधू लक्ष्मी के समान शुभ और कल्याणी थी। सभी उसका आदर करते थे तथा वह भी आत्म-सम्मान के साथ जीवन बिताता था। उपर्युक्त पंक्ति में इन्हीं पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है। समय के फेर से अब सब कुछ नष्ट हो गया है और वह अकेला निराशापूर्ण जीवन जी रहा है।
प्रश्न 4.
सन्दर्भ सहित आशय स्पष्ट करें -
(क) उजरी उसके सिवा किसे कब पास दुहाने आने देती ?
(ख) घर में विधवा रही पतोहू लछमी थी, यद्यपि पतिघातिन
(ग) पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षणभर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन तीखी नोक सदृश बन जाती।
उत्तर :
(क) संदर्भ - इन पंक्तियों में सूदखोर महाजन के शोषण के शिकार किसान एवं उसकी उजरी गाय का चित्रण हुआ है।
आशय - किसान के पास एक सफेद गाय थी। वह किसान को तथा किसान उसको बहुत चाहता था। वह दूध दुहाने हेतु किसान के सिवाय किसी को भी अपने पास नहीं आने देती थी। दुष्ट, निर्दयी सूदखोर ने उस गाय को भी किसान से छीन लिया था।
(ख) सन्दर्भ - किसान की पुत्रवधू जो विधवा थी, उसके पति की हत्या जमींदार के कारिंदों ने कर दी थी।
आशय - पति की हत्या होने से किसान की पुत्रवधू विधवा हो गई थी। पति की हत्या में उसका कोई दोष नहीं था, परन्तु लोग अपमानवश उसे पति हत्यारी कहते थे। वैसे तो वह परिवार के लिए लक्ष्मी के समान शुभ और कल्याणी थी।
(ग) संदर्भ - स्मृतियाँ मनुष्य का साथ नहीं छोड़तीं। दीन-दुःखी एकाकी किसान भी कभी-कभी अपने अतीत के बारे में सोचने लगता है।
आशय - जब किसान को अपने अतीत की याद आती है तो अपने सुखमय जीवन को याद करके उसकी आँखें क्षणभर को चमक उठती हैं। परन्तु जल्दी ही वह सूने आकाश में ताकने लगता है और उसकी वह निराशा भरी चितवन पैनी कील की तरह उसके हृदय में चुभने लगती है।
प्रश्न 5.
"घर में विधवारही पतोहू.....खैर पैर की जूती जोलाएकन सही दूजी आती।"न पंक्तियों में ध्यान रखते हुए 'वर्तमान समाज और स्त्री' विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
छात्र अध्यापक महोदय की सहायता से स्वयं करें।
कविता के आस-पास -
प्रश्न :
किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।
उत्तर :
किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। वे खेती करना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि कोई अन्य सम्मानजनक व्यवसाय आरम्भ करें। इस विषय में परिचर्चा छात्र अपने शिक्षक के मार्गदर्शन में आयोजित कर सकते हैं और पता कर सकते हैं कि इस पलायन के क्या कारण रहे होंगे?
छात्रों की सुविधा के लिए नीचे कुछ कारण दिये जा रहे हैं -
कृषि सम्मान का व्यवसाय नहीं है। कृषि ऐसा व्यवसाय भी नहीं है जो कृषक के परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर सके। उससे किसान को पर्याप्त आय नहीं होती। किसान को निर्धनता और अभावों में जीना होता है। खेती में धन लगाने के पश्चात् उसका ठीक प्रतिफल नहीं मिलता। परिवार की वृद्धि के साथ कृषि का क्षेत्र नहीं बढ़ता और भूमि का बँटवारा होने से वह उत्पादन तथा आय में बाधक बन जाता है। किसान के पास खाद, बीज तथा कृषि यंत्रों को खरीदने के लिए धन नहीं होता। किसान के बच्चे शहर में जाकर पढ़ाई करने के बाद वहाँ की चकाचौंध में फंस जाते हैं तथा खेती-किसानी का व्यवसाय करना नहीं चाहते।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
'हँसती थी उसके जीवन की हरियाली जिसके तण-तण में का आशय क्या है?
उत्तर :
हँसती थी उसके जीवन की हरियाली जिनके तन-तन में'-का आशय यह है कि किसान के खेत हरे-भरे थे, उनमें फसलें लहलहा रही थीं। उधर उसका जीवन भी सम्पन्न और सुखी था।
प्रश्न 2.
'पैर की जूती जोर-किस सामाजिक मानसिकता को व्यक्त करता है?
उत्तर :
पत्नी को पैर की जूती कहने का आशय है कि पुरुष-प्रधान समाज में नारी का महत्व नहीं है। पैर की जूती के समान उसको बार-बार बदला जा सकता है। इससे नारी के प्रति तिरस्कार का भाव व्यक्त होता है। यह पंक्ति सामन्तवादी समाज की कुत्सित मानसिकता को व्यक्त करती है।
प्रश्न 4.
पंत प्रकृति के चतुर-चितेरे के रूप में प्रसिद्ध है, परन्तु प्रस्तुत कविता में कवि ने कौन-सा विषय चुना है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पंत जी ने प्रकृति को विषय बनाकर अत्यन्त लोकप्रिय रचनाएँ की हैं। अत: उनको प्रकृति का चतुर-चितेरा कहा जाना उचित है। किन्तु प्रस्तुत कविता 'वे आँखें में कवि ने समाज के शोषित, उत्पीडित और निर्धनता भोग रहे मनुष्यों को कविता का विषय बनाया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
'अन्धकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन, उपर्युक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने किसान की आँखों को गहरी अँधेरी गुफा के समान कहा है। गुफा का अँधेरा भयानक होता है। उसी प्रकार किसान की आँखों में जो गहरी निराशा है, पीड़ा के भाव हैं, शोषण की झलक है-वह सब उसके कष्टमय जीवन को व्यंजित करने. वाली बातें हैं। उनमें भयंकर दीनता और दुःख का मौन रुदन भरा हुआ है। किसान की इस दशा को देखकर कवि भयभीत हो जाता है। वह उसकी आँखों में झाँकने का साहस नहीं दिखा पाता।
प्रश्न 2.
किसान को अपने जीवन में किस बात का अभिमान होता है ?
उत्तर :
किसान स्वाभिमानी (गर्वयुक्त) होता है। वह बहुत धनवान नहीं होता, किन्तु अपनी मेहनत के बल पर धन कमाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। वह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता। वह किसी का ऋणी नहीं होना चाहता। उसका अपना छोटा सुखी परिवार होता है, मकान होता है, हरे-भरे खेत होते हैं और प्यारा पशु-धन होता है। अपनी इस आत्म-निर्भरता पर किसान गर्व से सिर ऊँचा उठाकर चलता है। परन्तु प्राकृतिक आपदाएँ तथा पारिवारिक समस्याएँ उसे ऋण लेने को मजबूर करती हैं। साहूकार का ऋण न चुकाने पर वह बर्बाद हो जाता है तथा उसका स्वाभिमान नष्ट हो जाता है।
प्रश्न 3.
पंतजी ने 'वे आँखें कविता में समाज के शोषित और उत्पीडित वर्गका सजीव चित्र अंकित किया है। कविता से उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
पंतजी की कविता 'वे आँखें प्रगतिवादी धारा की रचना है। इस वाद के काव्य में समाज की शोषण-पूर्ण व्यवस्था के अनेक चित्र मिलते हैं। पूँजीवादी तथा सामंतवादी व्यवस्था शोषण पर ही आधारित होती है। भारतीय किसान भी इस व्यवस्था के हमेशा से शिकार रहे हैं। इस शोषण-पूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध वे आवाज भी नहीं उठा पाते और घुट-घुटकर मरने को मजबूर होते हैं।
हमारी कविता के किसान ने भी कभी दुर्दिन में साहूकार से ऋण लिया था। समय से मूल तथा ब्याज न चुका पाने पर दुष्ट महाजन ने उसका खेत, घर-द्वार, गाय-बैल सभी कुछ नीलाम करा दिया। उसके युवा पुत्र ने इस अत्याचार का विरोध किया तो साहूकार के कारकुनों ने लाठियों से पीटकर उसको मार डाला। पास में पैसा न होने से वह अपनी बीमार पत्नी का इलाज नहीं करा पाया। वह भगवान को प्यारी हो गई। माँ के मरने पर दो दिन बाद ही देख-रेख के अभाव में उसकी दुधमुंही बेटी भी मर गई। कोतवाल के दुर्व्यवहार से आहत उसकी पुत्रवधू ने आत्महत्या कर ली। उसका हँसता-खेलता परिवार नष्ट हो गया। किसी मनुष्य ने, किसी कानून ने, किसी समाज ने, किसी धर्म ने इस अनाचार का विरोध नहीं किया, क्योंकि पूरी सामाजिक-व्यवस्था ही किसान-मजदूर विरोधी, गरीब विरोधी है।
प्रश्न 4.
वे आँखें' कविता के आधार पर किसान के जीवन की करुण घटनाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
वे आँखें' कविता भारतीय किसान के करुणापूर्ण जीवन का चित्र है। साहकार का कर्ज चुकाने में असमर्थ किसान का खेत, मकान, पशु आदि कुर्क हो जाते हैं। पास में पैसा न होने से इलाज के अभाव में पत्नी मर जाती है। अबोध पुत्री माता के बिना जीवित नहीं रह पाती। अत्याचार का विरोध करने पर युवा पुत्र की हत्या कर दी जाती है। बहू कोतवाल की वासना का शिकार हो जाती है। सुख-शान्ति सब नष्ट हो जाती है। सामाजिक-व्यवस्था ही ऐसी है कि कोई इसका विरोध नहीं कर पाता है।
प्रश्न 5.
क्या कुएं में कूदकर आत्महत्या करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प किसान की पुत्रवधू के सामने नहीं था ?
उत्तर :
किसान की विधवा पत्रवध को अपनी मान-मर्यादा का ध्यान था। कोतवाल की वासना का शिकार बनने के बाद इस कुत्सित सामाजिक व्यवस्था में जीने का उसे कोई अधिकार नहीं रह गया था। शक्तिशाली राज्याधिकारियों, धनवान जमींदारों और महाजनों के विरुद्ध वह कर भी क्या सकती थी? कानून भी उनके ही साथ था, जिनके पास पैसा और अधिकार थे। एक कलंकिनी विधवा कहलाने से. तो उसके लिए आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प था। बार-बार मरने से तो एक बार में ही मर जाना अच्छा था।
प्रश्न 6.
'लछमी थी, यद्यपि पतिघातिन' में किसान की विधवा पुत्रवधू के लिए दो परस्पर विरोधी विशेषणों का प्रयोग हुआ है। इसमें भारतीय-समाज की किस मानसिकता का परिचय मिलता है?
उत्तर :
किसान की विधवा पुत्रवधू को लक्ष्मी समान परिवार के लिए शुभ तथा कल्याणी बताया गया है। किसान के पुत्र के साथ विवाह करके घर में आने पर परिवार की सुख-समृद्धि बढ़ी तो सबने उसको गृहलक्ष्मी कहकर सम्मान दिया। यह सम्मान हदय से तो संभवतः नहीं था। हाँ, एक सामाजिक परम्परा का निर्वाह था, जिसमें लोग किसी स्त्री को लक्ष्मी कहकर उसका सम्मान नहीं, अपना बड़प्पन अवश्य सिद्ध करते हैं। पति की मृत्यु में उसका कोई दोष नहीं था। वह तो अत्याचार के विरोध का शिकार हुआ था। उसने व्यवस्था को ललकारा था, उसको तो मरना ही था। परन्तु समाज की रीति देखिए-इसका दोष भी उसकी अशुभ दर्शनी बहू के सिर मड़ा गया। उसको पति की हत्यारी कहा गया। हमें नहीं लगता कि दोनों विशेषण परस्पर विरोधी है। दोनों ही में नारी के प्रति व्यंग्यमय आचरण छिपा है।
प्रश्न 7.
'अह , आँखों में नाचा करती।
उजागई जो सुख की खेतीन पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'वे आँखें' शीर्षक कविता में किसान के जीवन के दुःख-दी का वर्णन किया गया है। साहूकार का कर्ज न चुकाने के कारण उसका घर-बार, खेत, पशु सभी छिन जाता है। उसकी पत्नी, बेटा, बेटी और पुत्रवधू परिस्थितिवश मर जाते हैं। किसान निराश और पीड़ित होकर मौन रह जाता है। बस कभी-कभी उसके मन में उसके सुखद जीवन का चित्र अवश्य प्रकट हो जाता है। अतीत की सुखदायिनी यादें उसे क्षणिक प्रसन्नता देती हैं। इसकी आँखों में वह दृश्य आते रहते हैं, जो उसके भरे-पूरे परिवार से सम्बन्धित थे।
प्रश्न 8.
'खैर, पैर की जूती जोरू न सही एक, दूसरी आती।' -उपर्युक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
किसान की पत्नी इलाज के अभाव में मर गई थी। किसान को इसका बड़ा दःख था। इससे पूर्व उसके पत्र की भी साहूकार के कारकुनों ने हत्या कर दी थी। इसका शोक भी किसान को गहरा चुभा करता था। भारतीय समाज में स्त्री को पैर की जूती कहकर उसका तिरस्कार किया जाता है तथा उसको महत्वहीन बताया जाता है। हमारे समाज में पुत्र की महत्ता कुछ अधिक ही मानी गई है।
किसान सोचता है कि पत्नी के मरने पर दूसरी स्त्री से विवाह करके उसे घर में लाया जा सकता है। परन्तु पुत्र का शोक मरणपर्यन्त सताने वाला है। किसान उसको सहन नहीं कर पा रहा है। इन पंक्तियों में समाज में स्त्री-पुरुषों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार भी व्यंजित हुआ है। अपनी पत्नी की मृत्यु से दुःखी किसान भी इस सामाजिक मान्यता से अलग नहीं हो पाता।
प्रश्न 9.
'तुरत शून्य में गड़ वह चितवन, तीखी नोक, सदृश बन जाती।'
उपर्युक्त पंक्तियों का आशय क्या है ?
उत्तर :
अपना सर्वस्व लुटा चुका किसान शोषण और दमन का सामना नहीं कर पाता। कोई उसके साथ खड़े होने तक का साहस नहीं करता। राज्याधिकारी, धर्माध्यक्ष, सभी सामंती और पूँजीवादी व्यवस्था का ही साथ देते हैं। निराश किसान मौन रहकर अपनी पिछले सुखद-सम्पन्न जीवन पर दृष्टि डालता है तो उसकी आँखें क्षणभर को चमक उठती हैं, परन्तु यह चमक अस्थायी होती है। उसकी निगाहें शीघ्र ही सूने आकाश में गड़ जाती हैं और सुई की पैनी नोक के समान उसके हृदय में चुभने लगती हैं। किसान अपनी वर्तमान दुर्दशा को भुला नहीं पाता और गहरे शोक में डूब जाता है।
प्रश्न 10.
वे आँखें' शीर्षक कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय किसान शोषण और उत्पीड़न झेलता रहा है। क्या भारत में जनतंत्र होने के बाद उसकी अवस्था में कोई अन्तर आया है ?
उत्तर :
'वे आँखें' कविता में पन्तजी ने स्वतन्त्रता से पूर्व के भारतीय किसान के शोषण और उत्पीड़न का सजीव चित्र अंकित किया है। स्वतन्त्रता से पूर्व किसान जमींदारों तथा सूदखोरों के जाल में फंसकर अपनी धन-सम्पत्ति गँवा बैठते थे। उनको परिवार सहित गरीबी झेलनी पड़ती थी तथा भीषण कष्ट उठाने पड़ते थे।
जमींदार तथा साहूकार अपना मूल तथा ब्याज वसूल करने के लिए उनकी खेती, मकान तथा पशुओं को कुर्क करा लेते थे। न रहने का ठिकाना होता तथा न खाने को अन्न, न पहनने को वस्त्र। बीमार होने पर दवा की व्यवस्था नहीं होती थी। बच्चों की शिक्षा नहीं हो पाती थी। अनेक निराश किसान आत्महत्या कर लेते थे। शोषण और उत्पीड़न उनकी नियति बन गयी थी।
आज भारत स्वतंत्र है और यहाँ प्रजातन्त्र-शासन है। यद्यपि किसानों की अवस्था में कुछ सुधार हुआ है, किन्तु हमारी अर्थव्यवस्था में जी रहे किसान सदा घाटे में ही रहते हैं। आज भी किसान शोषण के शिकार हैं और मजबूरी में आत्महत्याएँ कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं आदि विपत्तियों के शिकार कृषक एवं उसके परिवार आज भी भूख एवं धनाभाव के कारणं त्रासदी भोग रहे हैं।
प्रश्न 11.
किसान के जवान बेटे को महाजन के कारकुनों ने क्यों मार डाला?
उत्तर :
किसान को अपने युवा पुत्र की मृत्यु का शोक बहुत सताता है। महाजन के कारकुनों ने लाठियों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी थी। कविता में हत्या का कोई कारण नहीं बताया गया है। परन्तु महाजन ने जब बलपूर्वक उसके पिता की खेती, मकान और पशुओं को छीना होगा तो उसको यह दादागिरी बर्दाश्त नहीं हुई होगी। उसने सामने आकर विरोध किया होगा। महाजन के उद्दण्ड कारकुनों ने लाठी मार-मारकर उसकी हत्या कर दी होगी। स्वतंत्रता से पूर्व महाजन और जमीदार गुण्डों के बल पर आतंक फलाते थे। पुलिस भी उनका ही साथ देती थी। किसान के पुत्र के साथ भी यही हुआ होगा।'
प्रश्न 12.
'वे आँखें' के आधार पर पंतजी की भाषा-शैली पर प्रकाश गलिए।
उत्तर :
वे आँखें' पंतजी की प्रगतिवादी प्रभाव वाली कविता है। कविता का वय-विषय भारतीय किसान का शोषणपूर्ण जीवन है। कवि ने विषय के अनुरूप ही भाषा-शैली को अपनाया है। कविता की रचना खड़ी बोली में हुई है। पतजी की भाषा खड़ी बोली है और विषय के अनुकूल बदलती रहती है। कवि ने प्रामीण परिवेश के शब्दों को तथा मुहावरों को भी सफलतापूर्वक अपनाया है। इससे भाषा के सौन्दर्य तथा प्रभाव में वृद्धि हुई है। पंत जी शब्द-चित्र अंकित करने में अत्यंत कुशल है। पंतजी स्वीकार करते है-'कविता के लिए चित्रभाषा की आवश्यकता पड़ती है, उसके शब्द सस्वर होने चाहिए, जो बोलते हों, ...' पंतजी की शैली। वर्णनात्मक तथा प्रतीकात्मक है। उनमें सजीवता, चित्रात्मकता तथा ध्वन्यात्मकता है।
प्रश्न 13.
'वे आँखें'शीर्षक कविता में दिए गए संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पंतजी की कविता 'वे आँखें हिन्दी कविता की प्रगतिवादी धारा की रचना है। कवि ने इसमें भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त होने से पूर्व के भारतीय-किसान के जीवन को चित्रित किया है। उस समय किसान मजदूर पूँजीवादी और सामंतवादी शोषण के शिकार थे। कर्ज न चुका पाने की दशा में साहूकार ने किसान के खेत और घर को उससे छीन लिया है। इस अत्याचार का विरोध करने पर उसके पुत्र की हत्या कर दी गई है।
इलाज के अभाव में पत्नी मर गई है। देख-रेख की कमी से उसकी दुधमुंही बच्ची भी जीवित नहीं बची। कोतवाल की वासना का शिकार होकर उसकी पुत्रवधू आत्महत्या कर चुकी है। यह किसान समस्त किसानों का, मजदूरों का, निर्धनों का, साधनहीनों का, सर्वहारा वर्ग का प्रतीक है। पंतजी कविता के माध्यम से संदेश देना चाहते हैं कि समाज के सक्षम वर्ग द्वारा दुर्बलों का शोषण और उत्पीड़न इस स्थिति का मुख्य कारण है। कवि का उद्देश्य लोगों को किसान की दशा से परिचित कराना तथा उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न करना है। कवि किसान मजदूरों को भी सजग करना चाहता है। वह संदेश देना चाहता है कि इन सबकी एकता ही इस शोषण से उनको बचा सकती है।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न :
वे आँखें कविता में प्रगतिशील काव्यधारा का प्रभाव दिखाई देता है , कविता से उदाहरण देकर इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता 'वे आँखें' पंतजी की प्रगतिवादी काव्यधारा से सम्बन्धित रचना है। कवि ने शोषण का शिकार हुए किसान का करुणापूर्ण सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। वर्गभेद पर आधारित यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था ही दुर्बलों, पिछड़ों और उपेक्षितों के शोषण का कारण है। पूँजीवाद का यह निन्दनीय स्वरूप आज स्वतन्त्र भारत में भी कायम है। 'वे आँखें' कविता इसी दुश्चक्र में फँसे किसानों के व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक संकटों की परतों को खोलती है।
निराश किसान- कवि शोषण से आहत और निराश किसान की ओर देखता है तो उसकी आँखों से झाँकती पीड़ा उसे डरा देती है देती है -
अन्धकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन।
पूँजीवादी शोषण-पूँजीवादी व्यवस्था के प्रतिनिधि जमींदार और साहूकार किसान को हमेशा से सताते रहे हैं। इनकी समृद्धि किसान मजदूरों के शोषण पर ही टिकी है। कर्ज लेकर उसे चुका न पाने के फलस्वरूप किसान का घर-द्वार, खेत और पशु कुर्क कर लिये जाते हैं। वह उसके लिए सपना बनकर रह जाते हैं -
लहराते वे खेत दृगों में हुआ बेदखल वह अब जिनसे
नौजवान पुत्र जब विरोध करता है तो साहूकार के कारकुन लाठियों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर देते हैं। ब्याज वसूल करने के इरादे से महाजन उसके गाय-बैल भी छीन लेता है -
बिका दिया घर द्वार, महाजन ने नव्याज की कौड़ी छोड़ी.......
अधिकारियों की करता - पास में पैसा न होने से इलाज के अभाव में पली मर जाती है। उसकी दुधमुंही बेटी भी दो दिन बाद माँ के न रहने से जाती रहती है। महाजन और जमींदार ही नहीं, समस्त व्यवस्था ही किसान-विरोधी है। कोतवाल भी झूठे बहाने से उसकी पुत्र-वधू को पकड़वाकर बुलवा लेता है और उसकी वासना का शिकार होकर लोकलाज-वश वह कुएँ में छलाँग लगा देती है -
घर में विधवा रही पतोहू लछमी थी, यद्यपि पति-घातिन
पकड़ मंगाया कोतवाल ने, डूब कुएं में मरी एक दिन।
रचना का उद्देश्य - इस प्रकार वे आँखें कविता किसान के शोषण को साकार कर देती है। कवि इसके माध्यम से समाज और शासन का ध्यान किसानों की समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता है। वह यह भी संकेत देना चाहता है कि किसानों के संगठन ही इस शोषण का अन्त कर सकते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त के अन्तर्गत किए गए विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि वे आँखें' कविता में प्रगतिशील काव्यधारा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
कवि परिचय :
छायावाद के प्रमुख स्तम्भ, प्रकृति के अनुपम चित्रकार और महान् चिन्तक 'पन्त' हिन्दी भाषा के गौरव हैं।
जीवन-परिचय - कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई. में कौसानी, जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) में हुआ था। इनका मूल नाम गोसाईं दत्त है। इनके पिता का नाम गंगादत्त पंत है। जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया था। अल्मोड़ा में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त पन्त ने काशी से मैट्रिक उत्तीर्ण की। सन् 1921 में इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में इण्टर में पढ़ रहे थे तभी गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर पढ़ाई छोड़ दी।
बाद में स्वाध्याय द्वारा अंग्रेजी, संस्कृत और बंगला साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। बाल्यावस्था से ही पन्त जी ने काव्य-रचना आरम्भ कर दी थी। वह जीवनभर अविवाहित रहे। उनकी साहित्य-सेवा के लिए उनको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उनको ‘पद्म भूषण' से सम्मानित किया। 28 दिसम्बर, सन् 1977 को इस महाकवि की मृत्यु हो गई।
साहित्यिक-परिचय - पन्तजी प्रकृति के अनुपम चितेरे थे। वह छायावाद के प्रमुख स्तम्भ थे। वह कविता में बदलाव के पक्षधर थे। छायावाद के पश्चात् उन्होंने प्रगतिवाद के प्रभाव में 'ताज' और 'वे आँखें जैसी कविताएँ भी लिखीं। वह अरविन्द के मानवतावाद से भी प्रभावित हुए। पन्तजी ने कविता के साथ ही नाटक, कहानी, उपन्यास, आत्मकथा और आलोचना के क्षेत्र में भी काम किया। उन्होंने 'रूपाभ' नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। वह आकाशवाणी में अधिकारी भी रहे।
पन्तजी भाषा के प्रति बहुत सचेत थे। उनकी रचनाओं में प्रकृति का जो मनोरम स्वरूप व्यक्त हुआ है, उसकी भाषा को पन्त जी ने चित्रभाषा कहा है। 'पल्लव' की भूमिका में पन्त ने लिखा है-“कविता के लिए चित्रभाषा की आवश्यकता पड़ती है, उसके शब्द सस्वर होने चाहिए, जो बोलते हों .......।" ब्रज भाषा और खड़ी बोली के विवाद में पन्त जी खड़ी बोली के समर्थक थे।
हिन्दी कविता में प्रकृति को विषय बनाने वाले पन्तजी पहले कवि हैं। आपकी कविता पर अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव है। मानवीकरण, सम्बोधन तथा ध्वन्यात्मकता अलंकारों का प्रयोग आपके साहित्य पर इस प्रभाव का प्रमाण है। छन्द के क्षेत्र में वह नवीनता के पक्षधर हैं। प्रकृति के कोमल और कठोर दोनों ही रूप उनकी कविता में मिलते हैं। इन्होंने मुक्तक कविताओं के साथ प्रबन्धकाव्य की भी रचना की है।
रचनाएँ - पन्तजी की लगभग एक दर्जन काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। उनके प्रमुख कविता-संग्रह निम्नलिखित हैं .(1) वीणा, (2) पल्लव, (3) ग्रन्थि, (4) गुञ्जन, (5) युगान्त, (6) युगवाणी, (7) ग्राम्या, (8) स्वर्ण किरण, (9) स्वर्ण धूलि, (10) युगपथ, (11) उत्तरा और (12) अतिमा।
'लोकायतन' पन्तजी द्वारा रचित महाकाव्य है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस महाकाव्य पर दस हजार रुपये के पुरस्कार से सम्मानित किया है। उनके कविता-संग्रहों से चुनकर कुछ अन्य कविता-संग्रह 'चिदम्बरा', 'कला और बूढ़ा चाँद' तथा 'रश्मिबंध' इत्यादि भी प्रकाशित हुए हैं। 'चिदम्बरा' पर पन्तजी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
सम्पादन-पन्तजी ने 'रूपाभ' पत्रिका का सम्पादन किया। इसमें प्रगतिवादी साहित्य पर विस्तार से चर्चा होती थी।
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण तथा सौन्दर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर -
1. अंधकार की गुहा सरीखी
भरा दूर तक उनमें दारुण
उन आँखों से डरता है मन,
दैन्य दःख का नीरव रोदन!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें' से ली गयी हैं। इन पंक्तियों से भारतीय किसान की दीनता और घोर निराशा से भरी आँखों का हृदयस्पर्शी चित्रण है।
व्याख्या - कवि कहता है कि भारत के किसान की आँखें किसी अँधेरी गुफा के समान हैं। इन आँखों में झाँकने पर वैसा ही डर लगता है, जैसे अँधेरी गुफा में देखने पर लगा करता है। इन आँखों में दूर तक भयंकर दीनता और दुःख भरा हुआ है। इन आँखों को देखकर किसान की भयानक निराशा, पीड़ा और शोषण का पता चलता है। बेचारा किसान चुपचाप गरीबी के कष्टों और शोषण की पीड़ा को सहता है, वह मन ही मन रोता है। उसके हृदय में होता मौन रुदन उसकी शून्य आँखों से झाँक रहा है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान की आँखों को किसके समान बताया गया है ?
उत्तर :
किसान की आँखों में घनी निराशा भरी हुई दिखाई देती है। कवि ने उसकी आँखों की तुलना गहन अन्धकार से परिपूर्ण गुफा से की है।
प्रश्न 2.
किसान की आँखों में झाँकने पर क्या दिखाई देता है ?
उत्तर :
किसान की आँखों में झाँकने पर उनमें गहन निराशा का अँधेरा भरा हुआ दिखाई देता है। उनमें किसान के भयंकर दुःख तथा दीनता भरे हुए भाव दिखाई देते हैं।
प्रश्न 3.
'इन आँखों से डरता है मन'-कवि को किन आँखों से डर लगता है ?
उत्तर :
कवि जब किसान की आँखों में देखता है, तो उसको उसके गहरे दुःखों और दीनता का पता चलता है। किसान की आँखों से उसकी विवशता तथा निराशा का परिचय मिलता है। यह सब जानकर कवि को उसकी आँखों में झाँकने से डर लगता है।
प्रश्न 4.
'दारुण दैन्य दुःख का नीरव रोदन' से क्या आशय है ?
उत्तर :
कवि को.किसान की आँखों में आँखें डालकर देखने से किसान की भयंकर दीनता तथा दु:खों का पता चलता है। किसान अपने कष्टों के कारण मन ही मन रोता रहता है परन्तु उसके रोने की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती। शोषण से किसान का मन कराह उठता है। परन्तु वह किसी से कुछ कह नहीं पाता।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'अन्धकार की गुहा सरीखी'- में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
कवि ने किसान की निराशा भरी आँखों की तुलना अँधेरी गुफा से की है। इसमें किसान की आँखें उपमेय, अँधेरी गुफा उपमान, निराशा का अँधेरा समान धर्म तथा 'सरीखी' वाचक शब्द हैं। इस प्रकार इस पंक्ति में उपमा अलंकार है। जैसे गुफा में अँधेरा छाया हुआ है, वैसे ही किसान की आँखों में घनी निराशा भरी हुई है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत काव्यांश के आधार पर इस पद्यांश को आप किस साहित्यिक वाद से सम्बन्धित मानेंगे?
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में पन्त जी ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व के भारतीय किसान को दीनता, दुःख तथा शोषण का चित्रण किया है। पन्त जी छायावाद के स्तम्भ थे परन्तु वह किसी वाद से नहीं बँधे। यहाँ व्यक्त विचारों के आधार पर इस पद्यांश को प्रगतिवादी विचारधारा से सम्बन्धित माना जायेगा।
2. वह स्वाधीन किसान रहा,
छोड़ उसे मँझधार आज
अभिमान भरा आँखों में इसका,
संसार कगार सदृश बह खिसका!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की रचना 'वे आँखें से ली गयी है। कवि भारतीय किसान के स्वाभिमानी स्वभाव का लोप हो जाने पर दुःख व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या - कवि कहता है कि यह किसान पहले स्वतन्त्र था तथा आज की भाँति पराधीन नहीं था। उस समय उसके नेत्रों से स्वाभिमान प्रकट हुआ करता था। उस समय समाज में उसकी प्रतिष्ठा थी तथा वह दूसरों पर निर्भर नहीं था। परन्तु आज उसके स्वाभिमान ने उसका साथ छोड़ दिया है। निर्धनता और दीनता के कारण संसार में आज किसान की घोर उपेक्षा हो रही है। जिस प्रकार नदी का रेतीला तट नदी के प्रवाह के साथ टूटकर बह जाता है, उसी प्रकार संसार ने किसान को सम्मान देना और उसका साथ देना छोड़ दिया है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
वह स्वाधीन किसान रहा'-इस पंक्ति में स्वाधीनता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
पहले भारतीय किसान किसी पर आश्रित नहीं था। वह अपनी भूमि और संसाधनों का स्वयं ही स्वामी होता था। (यहाँ किसान के स्वाधीन होने का तात्पर्य देश से विदेशी सत्ता के जाने से नहीं है।) इसका तात्पर्य है कि पहले किसान अपने घर, खेती तथा पशुधन का स्वामी था, उस पर किसी का कोई ऋण नहीं था, तब वह स्वाधीन था।
प्रश्न 2.
जब किसान स्वाधीन था, तब उसकी दशा कैसी थी?
उत्तर :
जब किसान स्वाधीन था उस समय वह अत्यन्त सुखी था तथा प्रसन्न था। उसकी आँखों में गर्व की चमक थी। वह अपने घर-द्वार, हल, बैल तथा कृषि-भूमि का मालिक था।
प्रश्न 3.
आज किसान की कैसी दशा है ?
उत्तर :
आज किसान स्वाधीन नहीं है। महाजन ने उसके खेत, घर और बैल छीन लिये हैं। वह दुःखी और निराश है। संसार ने उसको मँझधार में छोड़ दिया है। कोई भी दुःख में उसका साथ नहीं दे रहा है। आज किसान की दशा अत्यन्त दयनीय है।
प्रश्न 4.
मैंझधार में छोड़ने का क्या आशय है ?
उत्तर :
संसार ने किसान को मँझधार में छोड़ दिया है। इसका आशय यह है कि आज किसान सूदखोरों के ऋण से दबे हैं। उन्होंने उसकी कृषि-भूमि, मकान तथा गाय-बैल छीन लिये हैं। वह अत्यन्त दु:खी है। कोई भी व्यक्ति इस शोषण के विरुद्ध उसका साथ नहीं दे रहा है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद्यांश में काव्य-गुण की स्थिति पर विचार कीजिए। .
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में स्वाधीनता पूर्व के भारतीय किसान के दुःख-दैन्य का वर्णन है। शैली वर्णनात्मक है तथा भाषा सरल, भावव्यंजना में समर्थ खड़ी बोली है। वर्णित विषय को समझने में पाठक को विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। इसमें कविता का भावार्थ शब्दों से ही झलकता है। इसमें किसान की करुण दशा का वर्णन हुआ है। इसी दशा में इसमें प्रसाद गुण.की ही समानताएँ हैं।
प्रश्न 2.
'संसार कगार सदृश बह खिसका' में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर :
'संसार कगार सदृश बह खिसका'–में उपमा अलंकार है। इसमें उपमा अलंकार के अंग निम्नलिखित हैं-वह खिसका तथा वाचक शब्द सदृश है। जिस प्रकार नदी में पानी बढ़ने पर उसका किनारा भी नदी का साथ छोड़ देता है और बह जाता है उसी प्रकार किसान के दु:ख के दिनों में संसार के लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया है।
3. लहराते वे खेत दृगों में
हँसती थी उसके जीवन की।
हुआ बेदखल वह अब जिनसे
हरियाली जिनके तृन-तृन से!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कविं सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें' से ली गयी है। इन पंक्तियों में कवि ने सूदखोर महाजनों तथा जमींदारों द्वारा उसकी भूमि पर कब्जा कर लिए जाने का वर्णन किया है।
व्याख्या - कवि कहता है कि किसान का आज अपने ही खेतों पर अधिकार नहीं रहा है। जमींदारों तथा सूदखोरों ने उसको उसके खेतों से वंचित कर दिया है। किसान को अपने हरे-भरे खेत, जिनमें फसलें लहराती थीं, आज भी याद आते हैं। इनकी शोभा उसकी आँखों में तैरती रहती है। उन खेतों के प्रत्येक तृण में किसान के जीवन की हरियाली हँसा करती थी अर्थात् हरे-भरे खेतों को देखकर किसान के होठों पर हँसी फूट पड़ती थी।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
दुर्दशाग्रस्त किसान को आज किसकी याद आती है ? .
उत्तर :
आज किसान की खेती महाजन द्वारा छीनी जा चुकी है। कभी उन खेतों में हरी-भरी फसलें लहराया करती थीं। उन्हें देखकर उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठता था। आज किसान को लहराती फसलों वाले अपने उन्हीं खेतों की याद आती है।।
प्रश्न 2.
किसान को अपने लहराते हुए खेत आज क्यों याद आते हैं ?
उत्तर :
कभी किसान अपने खेतों का मालिक था। उस समय वह खूब परिश्रम करता था और उसके खेतों में हरी-भरी फसलें लहराया करती थीं। आज उन खेतों पर उसका अधिकार नहीं रहा है। अपने ऋण के बदले महाजन उन खेतों पर कब्जा कर चुका है। निराशा की अवस्था में किसान को अब अपने लहराते हुए खेत याद आ रहे हैं।
प्रश्न 3.
अपने खेतों में खड़ी हुई हरी फसलों को देखकर किसान को कैसा लगता था?
उत्तर :
पहले किसान जब अपने खेतों में खड़ी हुई हरी-भरी फसलों को देखता था तो गर्व से उसका सिर उठा होता था। उसको अपने जीवन की स्वतन्त्रता तथा प्रसन्नता अपने खेतों में लहराती फसलों के रूप में दिखाई देती थी।
प्रश्न 4.
जीवन की हरियाली' का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पहले किसान किसी का कर्जदार नहीं था। उसके खेत, मकान और गाय-बैलों पर उसका ही अधिकार था। उसके खेत हरे-भरे थे। वह स्वाधीन और सम्पन्न था। उसका परिवार सुखी और प्रसन्न था। यही वह हरियाली थी जो उसके जीवन को प्रसन्नता से भर दिया करती थी।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौष्ठव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में सरल भाषा तथा वर्णनात्मक शैली में किसान के जीवन को प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रसाद गुण की प्रधानता है। जीवन की हरियाली एक लाक्षणिक प्रयोग है। इससे किसान की जीवन की समृद्धि और प्रसन्नता व्यक्त हुई है। इस पद्य में कवि ने किसान की दीन-दशा का सजीव चित्रण किया है। इसका स्थायी भाव शोक है तथा करुण रस है। इसमें स्मरण अलंकार है।
प्रश्न 2.
'तृन-तृन' में निहित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'तृन-तृन' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। किसान के खेतों में उगने वाले प्रत्येक तृण से उसकी समृद्धि व्यक्त होती थी तथा उसका चित्त प्रसन्न होता था। खेतों के हरे-भरे पादपों से होने वाली किसान की समृद्धि की पुष्टि के लिए 'तृन' शब्द को दोहराया। गया है। जब किसी की पुष्टि के लिए किसी शब्द की आवृत्ति होती है तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।
4. आँखों ही में घूमा करता
कारकुनों की लाठी से जो
वह उसकी आँखों का तारा,
गया जवानी ही में मारा!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें से लिया गया है। यहाँ महाजन के लठैतों द्वारा पीट-पीटकर मार दिए गए अपने जवान बेटे की याद किसान को कितना व्याकुल किए रहती है, यह कवि ने बताया है।
व्याख्या - कवि कहता है कि किसान जमींदारों तथा सूदखोर महाजनों के अत्याचारों का शिकार है। वह किसान की मेहनत की कमाई को छीन लेते हैं। जब किसान का जवान बेटा इस अनाचार-अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाता है तो जमींदारों और सूदखोरों के कारिंदे लाठियाँ लेकर पिल पड़ते हैं और उसकी हत्या कर देते हैं। किसान का बेटा जवानी में ही मारा जाता है। अपने प्यारे बेटे की छवि किसान के नेत्रों में सदा घूमती रहती है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान को सदा किसकी याद सताती है?
उत्तर :
किसान का एक पुत्र था जो युवा और विवाहित था। वह अपने पिता का सहयोगी और सहारा था। पिता के साथ होते हुए अनाचार का विरोध करते हुए वह मारा गया था। किसान को अपने उसी पुत्र की याद हमेशा सताती है।
प्रश्न 2.
'आँखों का तारा' का क्या आशय है ?
उत्तर :
आँखों का तारा का अर्थ है-अत्यन्त प्रिय होना। किसान को अपना युवां पुत्र अत्यन्त प्रिय लगता था। वह उसको बहुत चाहता था तथा उसको देखकर उसका मन प्रसन्न हो उठता था। आँखों का तारा एक मुहावरा है तथा यहाँ इसका प्रयोग किसान के प्रिय पुत्र के लिए हुआ है।
प्रश्न 3.
किसान को अपने बेटे की याद क्यों सताती है ?
उत्तर :
किसान का पुत्र युवक था। वह परिश्रमी था और अपने पिता का हाथ बँटाता था। उसने महाजन के कारिंदों से अपने पिता के प्रति अपमानजनक व्यवहार का विरोध किया था, परिणामस्वरूप उसकी हत्या कर दी गई थी। इस घटना के कारण किसान
को अपने प्रिय पुत्र की याद सताती है।
प्रश्न 4.
किसान के युवा पुत्र की मृत्यु का क्या कारण था? .
उत्तर :
किसान महाजन का ऋण नहीं चुका सका था। महाजन के कारकुनों ने किसान को अपमानित और परेशान करना शुरू कर दिया। युवा पुत्र से अपने पिता का यह अपमान नहीं देखा गया। उसने विरोध किया तो कारकुनों ने लाठी के प्रहारों से उसकी हत्या कर दी।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
आँखों में ही घूमा करता। वह उसकी आँखों का तारा'-में निहित काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि ने 'आँखों में घूमना' तथा 'आँखों का तारा' मुहावरों का प्रयोग किया है। 'आँखों का तारा' किसान का प्रिय पुत्र है, जिसकी हत्या हो चुकी है। उसकी छवि किसान की आँखों में घूमती रहती है अर्थात् वह अब भी किसान को याद आता है। कवि ने लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया है, जो भावाभिव्यक्ति की सफलता में सहायक है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा काव्य-गुण है?
उत्तर :
काव्य-गुण तीन होते हैं-1. ओज, 2. माधुर्य और 3. प्रसाद। जब किसी काव्य-रचना का भाव बिना विशेष प्रयास : किये ही पाठक के हृदय में स्पष्ट हो जाय तो वहाँ प्रसाद गुण माना जाता है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसान के मन में अपने युवा पुत्र की स्मृति का सरल भाषा में वर्णन किया है। किसान का पुत्र महाजन के अत्याचार का विरोध करने के कारण जवानी में ही मारा गया था। कवि ने इस तथ्य को सरल भाषा में व्यक्त किया है, जिससे पद्यांश का भाव स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है। अत: इस पद्यांश में प्रसाद गुण है।
5. बिका दिया घर द्वार,
रह-रह आँखों में चुभती वह
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें' से लिया गया है। इस अंश में क्रूर महाजन द्वारा किसान से अपनी कौड़ी-कौड़ी वसूलने की निर्दयता का वर्णन है। उस नीच ने उसके बैलों को भी हथिया लिया।
व्याख्या - कवि कहता है कि ऋणग्रस्त किसान भयानक पीड़ा से गुजरता है। निर्दय सूदखोर महाजन और जमींदार का कर्ज जब वह नहीं चुका पाता तो वे कानून का सहारा लेकर उसके घर-द्वार को नीलाम करवा देते हैं। वह अपने मूलधन के साथ ही ब्याज का पैसा-पैसा वसूल कर लेते हैं। इतना ही नहीं वे किसान की प्राणों से भी अधिक प्रिय बैलों की जोड़ी को भी जब्त करवाकर उससे छीन लेते हैं। यह कुर्की की कार्यवाही किसान को बहुत दुःख देती है। वह कुछ कर नहीं पाता, बस पीड़ा से छटपटाता रह जाता है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान का घर-द्वार क्यों बिक गया ?
उत्तर :
किसान पर महाजन का कर्ज था। किसान प्रयत्न करके भी उस ऋण को नहीं चुका सका था। महाजन ने अपने धन को वसूल करने के इरादे से किसान का घर-द्वार कुर्क कर लिया था। मूलधन तथा ब्याज चुकाने के लिए किसान को अपना सब कुछ बेचना पड़ा था।
प्रश्न 2.
किसान को रह-रहकर क्या बात बुरी लगती है ?
उत्तर :
महाजन ने किसान को हर तरह से बर्बाद कर दिया था। उसने अपने ऋण की कौड़ी-कौड़ी वसूल करने के लिए उसका सब कुछ कुर्क करा लिया था। किसान को अपने बैलों की जोड़ी से गहरा प्यार था। बैलों की जोड़ी को कुर्क कराना किसान को बहुत बुरा लगा था, क्योंकि बैल ही उसकी खेतीबारी में सहायक थे। आज भी यह बात रह-रहकर उसकी आँखों में चुभती है।
प्रश्न 3.
महाजन का व्यवहार किसान के साथ कैसा था? क्या आप इसे उचित मानते हैं ?
उत्तर :
किसान के साथ महाजन का व्यवहार अत्यन्त क्रूरतापूर्ण था। उसने किसान के प्रति कोई दया अथवा उदारता नहीं दिखाई। उसने अपनी ब्याज की एक-एक कौड़ी वसूल कर ली। उसने किसान के घर-द्वार तथा उसके प्यारे बैलों की जोड़ी को कुर्क करा लिया। हम महाजन के इस प्रकार के व्यवहार को कदापि उचित नहीं मानते।
प्रश्न 4.
'बरधों' शब्द का क्या अर्थ है ? कवि ने इसका प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर :
'बरधों' ग्रामीण भाषा का प्रचलित शब्द है। इसका अर्थ है-बैलों। यह बैल शब्द का बहुवचन है। वर्णन में स्वाभाविकता लाने के उद्देश्य से कवि ने गाँवों में प्रचलित शब्द 'बरधों का प्रयोग किया है। इससे भाषा की सजीवता और स्वाभाविकता में वृद्धि हुई है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश पर 'रस' की दृष्टि से विचार कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारतीय किसान के दुखद जीवन का चित्रण किया है। पद्यांश को पढ़कर अभावग्रस्त भारतीय कि के कष्ट हमारे सामने स्पष्ट हो जाते हैं। इस पद्यांश में करुण रस का विवेचन हुआ है। इसका स्वामी भाव शोक है। आश्रय न हैं। आलम्बन महाजन है। घर-द्वार का बिकना उद्दीपन है
प्रश्न 2.
'रह-रह आँखों में चुभती वह कुर्क हुई बरधों की जोड़ी! उपर्युक्त पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति में महाजन द्वारा किसान के प्रिय बैलों की जोड़ी को कुर्क कराये जाने का करुणापूर्ण वर्णन है। यह दृश्य किसान को बार-बार कष्ट देता है। किसान के दुःख की पुष्टि हेतु तथा उस पर बल देने के विचार से कवि ने 'रह' शब्द की आवृत्ति की है। इस तरह रह-रह' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। किसी कथन की पुष्टि करने अथवा बल देने के लिए शब्द की पुनरावृत्ति हो, वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।
6. उजरी उसके सिवा किसे कब
अह, आँखों में नाचा करती
पास दहाने आने देती?
उजड़ गई जो सुख की खेती!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह में संग्रहीत, कवि सुमित्रानन्दन पंत की रचना 'वे आँखें' से लिया गया है। इस अंश को अपनी सफेद गाय और सुख भरी खेती की याद में खोए किसान का वर्णन हुआ है।
व्याख्या - किसान को अपने पुराने दिन याद आते हैं। जब उसकी गृहस्थी सुख से चल रही थी। उसके पास जो सफेद रंग की गाय थी, वह उसको बहुत चाहती थी। दूध दुहाने के लिए वह उसके अलावा किसी को भी पास नहीं फटकने देती थी। अब तो उस गाय को भी महाजन उससे छीनकर ले जा चुका है। वह गाय उसको अत्यन्त प्रिय थी। उसके जाने के बाद तो उसके जीवन का सारा सुख ही उसे छोड़कर चला गया है। उसकी वह सुख की फसल उजड़ गई है। वे दिन किसान को बार-बार याद आते हैं। स्मृतियों पर तो उसका कोई नियंत्रण नहीं हो सकता।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'उजरी कौन है ?
उत्तर :
उजरी' किसान की गाय है। वह सफेद रंग की है। सफेद रंग की होने के कारण किसान उसको प्यार से उजरी(उजली) कहकर पुकारता है। महाजन ने किसान के घर-द्वार के साथ उजरी को भी कुर्क करा लिया है।
प्रश्न 2.
'उजरी' अपना दूध किसको दुहने नहीं देती?
उत्तर :
'उजरी' किसान की सफेद रंग की गाय है। वह किसान को बहुत चाहती है। दूध दुहाने के लिए वह किसी को भी अपने पास नहीं आने देती। केवल किसान ही उसका दूध दुह सकता था।
प्रश्न 3.
इस पद्यांश में उजरी का उल्लेख करने का क्या कारण है?
उत्तर :
किसान कभी सम्पन्न था। उसके पास अपना मकान था, खेती तथा गाय-बैल इत्यादि थे। उसका पुत्र-पुत्रियों का भरा पूरा खुशहाल परिवार था। महाजन का ऋण न चुकाने के कारण उसका सभी कुछ कुर्क हो गया। उजरी गाय भी इस कुर्की से नहीं बच सकी। आज भी उसकी स्मृति किसान को व्याकुल करती है।
प्रश्न 4.
'सुख की खेती का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
किसान का परिवार सम्पन्न था और सुखी था। उसके पास अपना मकान, खेती, गाय-बैल सब कुछ था। उसकी गृहिणी कुशल थी, प्रिय पुत्र-पुत्री तथा पुत्र-वधू भी थी। महाजन का ऋण न चुकाने के कारण उसका समस्त सुख नष्ट हो गया। मकान, खेत तथा पशु कुर्क हो गये। पुत्र, पुत्री व पत्नी दिवंगत हो गये। इस प्रकार उसका सुखद जीवन नष्ट हो गया।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद्यांश की भाषा-शैली आपको कैसी लगती है? ।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश की भाषा अत्यंत सरल तथा भावानुकूल है। 'आँखों में नाचना' मुहावरे का प्रयोग भाषा के प्रभाव की वृद्धि करने वाला है। कवि ने इस पद्यांश में भावात्मक तथा प्रश्न-शैली का प्रयोग किया है। प्रगतिवादी रचना के अनुरूप ही भाषा की सरलता तथा सम्प्रेषणीयता का ध्यान रखा गया है।
प्रश्न 2.
अलंकार की दृष्टि से इस पद्यांश की विशेषता प्रकट कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है, काव्य कुशलता दिखाने के लिए नहीं। इसमें 'उजरी उसके', 'किसे कब' तथा 'अह आँखों शब्दों में 'उ', 'क' तथा 'अ' वर्ण की आवृत्ति हुई है। अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। अलंकारों के बिना भी पद्यांश में भावाभिव्यक्ति प्रभावपूर्ण है।
7. बिना दवा-दर्पन के घरनी
देख-रेख के बिना दुधमुंही,
स्वरग चली, आँखें आती भर,
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की रचना 'वे आँखें' से लिया गया है। इसमें दवा और देखभाल के अभाव में किसान की पत्नी और पुत्री के मृत्यु हो जाने का करुण वर्णन हुआ है।
व्याख्या - कवि कहता है कि किसान के कष्टों का अन्त नहीं है। घर-द्वार, पशु और पुत्र तो पहले ही जा चुके थे, अब उसकी घरवाली भी उसे छोड़कर स्वर्ग सिधार चुकी है। गरीबी के कारण उसके बीमार होने पर वह उसकी उचित दवा-दारू भी नहीं करा सका। अब भी जब यह बात उसको याद आती है तो उसकी आँखों से आँसू टपकने लगते हैं। उसकी एक दूध पीती छोटी बेटी थी। माँ के मरने के पश्चात् उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। देख-रेख के अभाव में माँ की मृत्यु के दो दिन बाद ही उसकी भी मृत्यु हो गई।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान की पत्नी की मृत्यु का क्या कारण था ?
उत्तर :
किसान का घर-द्वार, पशु और खेती सब महाजन ने कुर्क करा लिये थे। उसके पास धन का अत्यन्त अभाव था। कोई सहायक भी नहीं था। पत्नी के बीमार पड़ने पर वह उसकी दवा-दारू की उचित व्यवस्था नहीं कर सका। इलाज के अभाव में किसान की पत्नी की मृत्यु हो गई।
प्रश्न 2.
उसकी दुधमुंही बेटी की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
किसान की पत्नी दवा के अभाव में मर चुकी थी। वह अपने पीछे एक दुधमुंही बेटी छोड़ गई थी। माँ की मृत्यु के पश्चात् कोई उसकी देखभाल करने वाला नहीं था। परिणाम यह हुआ कि माँ की मृत्यु के दो दिन पश्चात् उसकी दुधमुंही बेटी भी भगवान् को प्यारी हो गई।
प्रश्न 3.
परिवार के लोगों की अकाल मृत्यु का किसान पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
परिवार में पुत्र, पत्नी तथा अबोध पुत्री की मृत्यु ने किसान को हिला दिया। वह अत्यन्त दुखी हुआ। उसकी आँखों में आँसू भर आये। अपनी विवशता पर वह अत्यन्त व्याकुल हुआ। धन की कमी होने के कारण वह कुछ न कर सका।
प्रश्न 4.
उपर्युक्त पद्यांश में किसान-जीवन का कैसा चित्र अंकित हुआ है?
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में किसान के जीवन का करुणापूर्ण चित्रण हुआ है। कर्ज में दबे होने के कारण किसान का घर-द्वार, खेती तथा पशु कुर्क हो गये थे। पुत्र, पुत्री तथा पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। धन के अभाव में वह उनका इलाज भी नहीं करा सका था। कवि ने भारतीय किसान के जीवन तथा समस्याओं का चित्रण यथार्थवादी शैली में किया है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्न -
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद्यांश के काव्यगत सौन्दर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में भारतीय किसान के जीवन का करुणापूर्ण चित्रण होने से इसमें करुण रस का परिपाक हुआ है। इसका स्थायी भाव शोक है। ‘दवा-दर्पन' में 'द' वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद्यांश की भाषा कैसी है?
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने सरल, प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जो भावाभिव्यक्ति में सहायक है। भाषा में मुहावरों के प्रयोग ने उसको सशक्त बनाया है। 'धरती', "स्वरग', 'बिटिया' इत्यादि लौकिक शब्दों के प्रयोग ने भाषा में स्वाभाविकता की वृद्धि की है।
8. घर में विधवा रही पतोहू,
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
डूब कुएँ में मरी एक दिन!
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की रचना 'वे आँखें से ली गई हैं। इन पंक्तियों में किसान की विधवा पुत्रवधू की करुण आत्महत्या का वर्णन है।
व्याख्या - कवि कहता है कि किसान के मृतपुत्र की विधवा पत्नी उसके साथ घर में रह रही थी। वह लक्ष्मी के समान शुभ तथा कल्याणकारिणी थी। यद्यपि पति की हत्या हो जाने के कारण उसको पति की हत्यारी कहकर लांछित किया जाता था। एक दिन किसी झूठी शिकायत पर शहर के कोतवाल ने उसको सिपाहियों से पकड़वाकर कोतवाली बुला लिया। उस बेचारी को यह अपमान सहन नहीं हुआ। लोक-लाज के भय से वह एक दिन कुएँ में डूबकर मर गई। इस प्रकार किसान की पत्नी, पुत्री, पुत्र तथा पुत्रवधू सभी असमय उसका साथ छोड़ गये।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान की पतोहू को पति-घातिन क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
हमारे समाज में एक निंदनीय अंधपरंपरा चली आ रही है कि यदि पति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो इसका कारण उसकी पत्नी को माना जाता है। इसलिए यहाँ पर किसान की पुत्र-वधू को पति-घातिन कहा गया है।
प्रश्न 2.
किसान की पतोहू ने आत्महत्या क्यों की थी?
अथवा
किसान की पुत्र-वधू की मृत्यु का क्या कारण था ?
उत्तर :
किसान की पुत्र-वधू अर्थात् उसके दिवंगत पुत्र की पत्नी को नगर के कोतवाल ने झूठे आरोप लगाकर कुछ सिपाहियों द्वारा पकड़वा लिया था। सिपाही उसको कोतवाल के पास ले गये थे। वहाँ दुराचरण से आहत होकर उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
प्रश्न 3.
क्या किसान की पुत्रवधू अपने पति की मृत्यु के लिए उत्तरदायी थी?
उत्तर :
किसान की पुत्र-वधू अपने पति की मृत्यु के लिए उत्तरदायी नहीं थी। उसका पति तो महाजन के शोषण का विरोध करने के कारण मारा गया। दूषित सामाजिक मान्यताओं के कारण उसे अकारण ही पतिघातिन कहा गया है।
प्रश्न 4.
किसान की पुत्रवधू को एक तरफ लक्ष्मी तथा दूसरी तरफ पतिघातिन कहा गया है। इसका क्या कारण है ?
उत्तर :
परिवार की पुत्रवधू होने तथा शुभ गुणों से युक्त होने के कारण उसे 'लक्ष्मी' जैसी माना गया। दूसरी ओर पति की मृत्यु में निरपराध होने पर भी उसको पतिघातिन कहा गया है। इन दोनों ही बातों से समाज का जड़तापूर्ण दृष्टिकोण ही इसका कारण दिखाई देता है।
काव्य-सौन्दर्य बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद्यांश में किस रस की निष्पत्ति हुई है ? इसका स्थायी भाव भी लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में किसान की विधवा पुत्र-वधू के अपमान तथा अन्त में विवश होकर उसके द्वारा आत्महत्या करने का वर्णन है। इसमें करुण रस की निष्पत्ति हुई है। इसका स्थायी भाव शोक है। किसान की पुत्र-वधू आश्रय है। पति की मृत्यु आलम्बन तथा समाज द्वारा पति-घातिन कहना और कोतवाल द्वारा पकड़कर मँगवाना उद्दीपन विभाव है। कुएँ में डूब मरना अनुभाव तथा ग्लानि संचारी भाव है।
प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने सरल, प्रवाहपूर्ण तथा विषयानुरूप खड़ी बोली का प्रयोग किया है, भाषा विषयगत भावों को व्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ है। इसमें वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। पद्यांश में व्यक्त भाव अनायास ही पाठक के मन में उतर जाते हैं।
9. खैर, पैर की जूती, जोरू
पर जवान लड़के की सुध कर
न सही एक, दूसरी आती,
साँप लोटते, फटती छाती।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें' से लिया गया है। कवि ने इसमें पत्नी को 'पैर की जूती' समझने वाली निन्दनीय मानसिकता पर तीखा व्यंग्य किया है।
व्याख्या - कवि कहता है कि पत्नी की मृत्यु हो गई तो कोई बात नहीं। स्त्री तो पैर की जूती होती है। एक फट गई तो दूसरी पहन ली। स्त्री का परिवार में अधिक महत्त्व नहीं होता। अत: उसकी मृत्यु के दुःख को तो सहन किया जा सकता है, मन को किसी तरह समझाया जा सकता है। परन्तु जब किसान को याद आती है कि उसके जवान बेटे की किस प्रकार निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई थी तो उसका हृदय फटने लगता है, उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं अर्थात् मृत पुत्र को स्मरण करते ही किसान का कष्ट दुगना-चौगुना हो जाता है। आशय यह है कि किसान अपनी पत्नी की मृत्यु के कारण होने वाले दुःख को तो किसी प्रकार सहन कर लेता है, परन्तु पुत्र का शोक उसे असहनीय प्रतीत होता है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'खैर ,पैर की जूती , जोरू'-कहने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
किसान को अपनी मृत पत्नी तथा मृत पुत्र की याद आती है। पत्नी की अपेक्षा पुत्र की मृत्यु उसको अधिक त्रासद लगती है। वह पत्नी को पैर की जूती मानने की सामाजिक त्रुटिपूर्ण अवधारणा का सहारा लेकर अपने मन को समझाता है कि पत्नी की मृत्यु के दुःख से पुत्र की मृत्यु का दुःख अधिक कष्टदायी है।
प्रश्न 2.
पैर की जूती किसको कहा है तथा क्यों?
उत्तर :
पैर की जूती पत्नी को कहा गया है। पत्नी की मृत्यु के बाद पति दूसरा विवाह कर लेता है और अन्य स्त्री पत्नी का स्थान ले लेती है। पैर की जूती फटने पर उसके स्थान पर दूसरी नई जूती पहन ली जाती है। पत्नी को पैर की जूती कहने का कारण पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के प्रति तुच्छता का भाव है, जो उसकी तुलना पैर की जूती से कराता है। अशिक्षित और अहंकारी व्यक्ति ही . ऐसी निन्दनीय सोच रख सकता है।
प्रश्न 3.
पत्नी को पैर की जूती मानने से समाज की किस मनोदशा का परिचय मिलता है ?
उत्तर :
पत्नी को पैर की जूती मानने से हमारे समाज की दयनीय सोच का परिचय मिलता है। सिद्धान्त में स्त्री को पुरुष की सहधर्मिणी, पूजनीय और सम्मान की पात्र माना जाता है। परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं है। व्यवहार में तो वह उपेक्षा तथा तिरस्कार ही झेलती है। किसान भी अशिक्षित और पिछड़े होने के कारण इस प्रकार की सोच रखता है। वह दोषपूर्ण मानसिकता से त्रस्त है। वह पत्नी के बिछुड़ने के दुःख से पुत्र-वियोग को अधिक असहनीय मानता है।
प्रश्न 4.
अपने जवान लड़के को याद करके किसान की कैसी दशा होती है ?
उत्तर :
महाजन के अनाचार का विरोध करने पर किसान के बेटे को महाजन के कारकुनों ने लाठियों से पीटकर मार डाला था। जब किसान को अपने जवान बेटे की मृत्यु का स्मरण आता है तो उसका हृदय फटने लगता है तथा उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली की विशेषता पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की भाषा सरल तथा भावपूर्ण खड़ी बोली है। वह किसान की मनोदशा को व्यंजित करने में पूरी तरह समर्थ है। पैर की जूती होना, साँप लोटना, छाती फटना इत्यादि मुहावरे के प्रयोग ने भाषा की शक्ति में वृद्धि की है। यहाँ भाषा लाक्षणिक है। यहाँ वार्तालाप शैली का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 2.
खैर, पैर की जूती, जोरू' में निहित काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'खैर, पैर की जती, जोरू' में जती तथा जोरू शब्दों में 'ज' वर्ण की आवत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। जब किसी वर्ण की एक या अधिक बार आवृत्ति होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। 'खैर' और 'पैर' में स्वर-मैत्री है।
10. पिछले सुख की स्मृति आँखों में
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
क्षण भर एक चमक है लाती,
तीखी नोक सदृश बन जाती।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'वे आँखें से लिया गया है। इस पद्यांश में किसान को पहले के सुख की याद से प्रसन्नता उत्पन्न होती है और वर्तमान दशा को देखकर वह प्रसन्नता चुभने वाली सच्चाई बन जाती है।
व्याख्या - कवि कहता है कि समाज के उत्पीड़न का शिकार किसान जब अपने अतीत में झाँकता है, तो उसे अपना भरा-पूरा सुखदायी परिवार दिखाई देता है। अतीत के सुखदायक दिनों की याद आते ही किसान के नेत्रों में क्षणभर के लिए आशा की ज्योति चमक उठती है। थोड़ी देर के लिए उसका मन प्रसन्नता और सुख से भर उठता है, परन्तु यह सब अस्थायी होता है। क्षणभर पश्चात् ही वह दुःख और निराशा के सागर में डूब जाता है। वर्तमान दशा को स्मरण करते ही उसकी निगाहें सूने आकाश में गढ़ जाती हैं।
निराशा और दुःख उसे फिर से घेर लेते हैं। अपने दिवंगत पत्नी, पुत्री, पुत्र तथा पुत्रवधू की यादें आते ही उसकी वह चितवन उसके हृदय में पैनी कील के समान चुभने लगती है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
किसान की आँखों में 'क्षणभर चमक' आने का क्या आशय है?
उत्तर :
किसान सामाजिक अनाचार से पीड़ित है। उसका घर, खेती, पशु सब छीन लिए गए हैं। परिवार के लोग दिवंगत हो चुके हैं। परन्तु पहले वह भी समृद्ध और प्रसन्न था। अतीत की उस सुख-समृद्धि की स्मृति मात्र से किसान की आँखों में चमक आ जाती है। परन्तु आशा की यह चमक स्थायी नहीं होती। स्मृतियों से मिलने वाला सुख अस्थायी तथा क्षणिक है।
प्रश्न 2.
चितवन के शून्य में गड़ने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
अतीत के सुख की स्मृति से किसान कुछ समय के लिए प्रसन्न हो उठता है। परन्तु यह प्रसन्नता शीघ्र ही स्थायी निराशा में बदल जाती है। वह निराश होकर सूने आकाश में देखने लगता है। उस समय उसकी दृष्टि में उसकी गहन पीड़ा साकार हो उठती है।
प्रश्न 3.
'चितवन के तीखी नोक सदृश बनने का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
सामाजिक उत्पीड़न के शिकार किसान की सुख-समृद्धि जाती रही। उसके परिवार के प्रियजन शोषण और निर्धनता के कारण एक-एक करके उसका साथ छोड़ गए। अब जब कभी उनकी यादें किसान के मन में उठती हैं, तो वह सूनी दृष्टि से आकाश में ताकने लगता है। वह सूनी दृष्टि उसके हृदय में पैनी कील बनकर चुभने लगती है।
पश्न 4.
किसान किस पुराने सुख को याद करता है ?
उत्तर :
किसान अपने पुराने सुखी दिनों को याद करता है, जब वह सुखी और सम्पन्न था, उसका मकान था, खेती थी, गाय-बैल थे। उसके परिवार में उसकी पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू तथा दुधमुंही बेटी थी। वह आत्मनिर्भर था। घर में प्रसन्नता का वातावरण - था।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन तीखी नोक सदृश बन जाती।' उपर्युक्त पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति में उपमा अलंकार है। इसमें 'चितवन' उपमेय है तथा नोक' उपमान है। 'सदृश' वाचक-शब्द है। तीखी (पैनी) साधारण धर्म है। इस तरह उपमा.के समस्त अंग होने के कारण यह पूर्णोपमा अलंकार है। कवि ने आकाश में गड़ी किसान की दृष्टि की उपमा हृदय में चुभने वाली नुकीली कील से की है।
प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद्यांश में रसात्मकता पर विचार कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश अत्यन्त सरस है तथा पाठकों को द्रवित करने वाला है। इसमें स्थायी भाव शोक है, जिसका करुण रस के रूप में परिपाक हुआ है। किसान के उत्पीड़न की कथा सहृदयजनों के अन्तर्मन को छूने वाली है। इसमें आश्रय किसान है। पिछले सुख की स्मृति आलम्बन तथा सूनी चितवन उद्दीपन है।