Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 13 पथिक Textbook Exercise Questions and Answers.
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कविता के साथ -
प्रश्न 1.
पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है ? .
उत्तर :
पथिक समुद्र-तट पर खड़ा है। नीचे नीला सागर तथा ऊपर नीला आकाश है। कवि इस दृश्य पर मुग्ध है। उसका मन चाहता है कि वह बादलों पर बैठकर इन दोनों के बीच अंतरिक्ष में विचरण करे।
प्रश्न 2.
सूर्योदय-वर्णन के लिए किस तरह के बिम्बों का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर :
कवि ने सूर्योदय-वर्णन के लिए काल्पनिक बिंबों का प्रयोग किया है। समुद्र के जल की सतह उदय होते सूर्य को लक्ष्मीजी के सोने से निर्मित महल का कँगूरा कहा है। सूर्य की किरणों से स्वर्णिम हुए जल को 'कमला का कंचन मंदिर' बताया है तथा जल के तल पर फैले प्रकाश को 'स्वर्ण-सड़क' कहा है। आधे उदित हुए सूर्य के यह सभी बिंब की कल्पना की सृष्टि है।
प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट करें -
(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनें विश्व की बानी॥
उत्तर :
(क) सायंकाल के पश्चात् सर्वत्र अँधेरा छा जाता है, तारे आकाश में चमक उठते हैं। तब अस्त होता हुआ सूर्य अपनी लालिमारूपी मुस्कराहट होठों पर लिए धीरे-धीरे वहाँ आता है और समुद्र के जल में झिलमिलाती आकाश-गंगा के सौन्दर्य को धीमे तथा मधुर शब्दों में गुनगुनाता है। आशय यह है कि संध्याकाल में सूर्य धीरे-धीरे अस्त होता है, वह लाल होता है तथा समुद्र के जल में तारों की परछाई दिखाई देने लगती है।
(ख) कवि को प्रकृति में सर्वत्र एक प्रेम-व्यापार चलता दिखाई देता है। प्रकृति का यह गम्भीर प्रेम सुख-शान्ति देने वाला है। यह अत्यन्त सुन्दर और पवित्र है। कवि चाहता है कि वह इस पावन-प्रेम को अपनी वाणी में विश्व को सुनाए, जिससे वह प्रकृति में अन्तर्निहित सच्चे-प्रेम को समझ सके।
प्रश्न 4.
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।
उत्तर :
कविता में अनेक स्थलों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं -
(क) प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
भाव-स्पष्टीकरण - यहाँ सूर्य को राजा तथा बादलों के समूह को रंग-बिरंगे वस्त्रधारी नर्तकियाँ बताया गया है, जो उसके सामने नाच रही हैं। 'सूर्य' तथा 'बादलों का मानवीकरण हुआ है।
(ख) रत्नाकर गर्जन करता है।
भाव-स्पष्टीकरण - समुद्र का मानवीकरण है। समुद्र को तेज आवाज में गरजता हुआ कहा है।
(ग) जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
भाव-स्पष्टीकरण - इस पद्य में 'अंधकार' तथा 'सूर्य' का मानवीकरण है। अन्धकार को संसार को ढकते हुए तथा अंतरिक्ष की छत पर तारों को बिखरने वाला चित्रित किया गया है। सूर्य को मुस्कराते हुए, धीमी गति से चलते हुए तथा मधुर स्वर में गाते हुए दिखाया गया है।
(घ) उससे ही विमुग्ध हो नभ में चन्द्र विहँस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सजा लेता है।
पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं।
भाव-स्पष्टीकरण - चन्द्रमा, वृक्ष, पक्षी तथा फूल का मानवीकरण हुआ है। चन्द्रमा को हँसते हुए, वृक्ष को अपना शरीर सजाते हुए, पक्षी को हँसते हुए तथा फूल को सुख की साँस लेते हुए दिखाया गया है। ये सभी मनुष्यों जैसी ही क्रियाएँ हैं।
कविता के आस-पास -
प्रश्न 1.
समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं ? लगभग 200 शब्दों में लिखें।
उत्तर :
प्रकति की वस्तओं में सौन्दर्य होता है। सागर अथवा समदं भी प्रकति का ही. एक अंग है। इस धरती पर दो-तिहाई भाग जल है। इस प्रकार हमारा भू-भाग चारों ओर समुद्र से घिरा है। समुद्र को देखने पर हमारे मन में अनेक भाव उठते हैं। समुद्र को देखकर हम उसकी विशाल और विस्तृत जलराशि से आकर्षित होते हैं। उसके अन्दर उठने वाली ऊँची-नीची, गर्जना करती हुई एक के बाद एक तट की ओर आती हुई लहरें हमें रोमांचित करती हैं। वे हमें सुन्दर लगती हैं, किन्तु वे हमें भयभीत भी करती हैं। सूर्य के प्रकाश में चमकीला सागर-जल भी हमें अच्छा लगता है, किन्तु रात के अंधेरे में यह भयावह प्रतीत होता है।
समुद्र.. को देखकर जिज्ञासा का भाव भी हमारे मन में उठता है। उसकी विस्तृत जलराशि के बारे में हम जानना चाहते हैं। समस्त नदियों का जल अपने में ग्रहण करके भी समुद्र अपनी सीमा नहीं तोड़ता। आखिर क्यों और कैसे वह यह कर पाता है? हम जानना चाहते हैं कि समुद्र में कौन-कौन से जीव-जन्तु रहते हैं ? उनका पोषण कैसे होता है? समुद्र से कौन-से खनिज प्राप्त होते हैं? हमारे मन में यह भाव भी उठते हैं कि इस सागर की गहराई कितनी है ? इसका जल खारा क्यों है तथा नदियों का मीठा पानी भी उसमें मिलकर खारा क्यों हो जाता है ?
भारतीय शास्त्रों में सागर को देवता क्यों माना है ? क्या इसलिए कि समुद्र में जल ही जल है और जल जीवन का आवश्यक तत्व है ? समुद्र से अनेक पदार्थ तथा जीव-जन्तु प्राप्त होते हैं तथा हमारे काम आते हैं। समुद्र की प्राकृतिक सीमा हमारी सुरक्षा करती है। समुद्र-मार्ग से यात्रा करके हमारे व्यापारी धन कमाते रहे हैं। इस तरह समुद्र को देखकर हमारे मन में अनेक विचार ठठते हैं। इनमें प्रमुख भाव जिज्ञासा, आश्चर्य, भय और प्रशंसा ही हैं।
प्रश्न 2.
प्रेम सत्य है, सुन्दर है-प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें।
उत्तर :
प्रेम के विभिन्न रूप हैं। आत्मा और परमात्मा का प्रेम, जीव और ब्रह्म का प्रेम तथा भक्त या उपासक और ईश्वर या आराध्य का प्रेम, आध्यात्मिक प्रेम के अन्तर्गत आता है। सांसारिक या भौतिक प्रेम के भी अनेक रूप हैं। जीव-जन्तुओं, वृक्ष-वनस्पतियों, नदियों, पर्वतों आदि के प्रति प्रेम मानवता से भरा प्रेम होता है। पति और पत्नी के प्रेम को दाम्पत्य प्रेम कहते हैं। स्त्री-पुरुष का स्वाभाविक आकर्षण भी प्रेम है।
प्रेमी और प्रेयसी का प्रेम इसी प्रकार का है। इनमें वासना नहीं पवित्रता होती है, जैसे राधा-कृष्ण का प्रेम। संसार में एक प्राणी को दूसरा अच्छा लगे, वह उसका हित चाहे यह भी प्रेम का एक रूप है। मित्र-मित्र का आपसी प्रेम इसी प्रकार का है। भाइयों, बहनों, परिवार के सदस्यों तथा माता-पिता के प्रति प्रेम उच्चकोटि का प्रेम होता है। बड़ों का छोटों के प्रति प्रेम स्नेह तथा सन्तान के प्रति प्रेम वात्सल्य कहलाता है। प्रेम का भाव सभी रूपों में सत्य और सुन्दर है।
नोट - अपनी कक्षा के कुछ छात्रों का एक दल बनाकर अपने शिक्षक के मार्ग-दर्शन में इस विषय पर परिचर्चा करें। .
प्रश्न 3.
वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं-इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर :
वर्तमान सभ्यता मनुष्य को प्रकृति से दूर ले जा रही है। उससे जीवन अप्राकृतिक हो गया है। मनुष्य का रहन-सहन, खान-पान, आदतें, पहनावा सब प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। उदाहरणार्थ-रात में देर तक जागना तथा सुबह देर तक सोना प्रकृति के विरुद्ध है जो वर्तमान सभ्यता की ही देन है। जंक फूड अप्राकृतिक है। कृषि तथा अन्य कार्यों के लिए रसायनों का प्रयोग अप्राकृतिक है। ये सब वर्तमान सभ्यता की देन हैं। प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं -
प्रश्न 4.
सागर सम्बन्धी दस कविताओं का संकलन करें तथा पोस्टर बनायें।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें तथा अपने शिक्षक से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
प्रकृति के प्रति प्रेम का पथिक पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर :
प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न होने पर पथिक को उसके सामने अपनी पत्नी का प्रेम भी तुच्छ प्रतीत होता है और वह उससे दूर हो सकता है।
प्रश्न 2.
सूर्य के बिंब को सुन्दर कँगूरा क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
समुद्र के जल पर सूर्य की किरणें पड़कर उसे सुनहरा बना रही हैं, कवि ने उसमें महादेवी लक्ष्मी के सोने के महल की कल्पना की है। जल के ऊपर आधा चमकता सूर्य बिंब कवि को महल के कँगूरे जैसा लगता है।
प्रश्न 3.
'कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी' ? इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि प्रकृति की सुन्दरता के दर्शन से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है, वह सर्वश्रेष्ठ है। संसार की अन्य चीजें ऐसा अनुपम सुख उसे नहीं दे सकतीं।
प्रश्न 4.
कवि को मधुर कहानी कहाँ लिखी हुई दिखाई देती है?
उत्तर :
कवि को मधुर कहानी सागर की लहरों, तटों, तृणों, वृक्षों, पर्वतों, आकाश, सूर्य-चन्द्रमा की किरणों में तथा बादलों में लिखी हुई दिखाई देती है।
कविता की विषय वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
सूर्योदय के कारण समुद्र के जल-तल के मनोहर सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कवि समद्र-तट पर खड़ा हआ सर्योदय का मनोरम दृश्य देख रहा है। सर्य का बिंब अभी आधा ही पानी के ऊपर दिखाई दे रहा है। समुद्र का जल सूर्य के प्रकाश के कारण सुनहरा हो गया है। कवि कल्पना करता है कि यह धन की देवी लक्ष्मी का सोने से निर्मित राजमहल है, जिसके ऊपर का कँगूरा आधा निकले सूर्य के रूप में दिखाई दे रहा है। समुद्र के जल की सतह सूर्य के प्रकाश से स्वर्णिम हो गई है। इस सम्बन्ध में कवि की कल्पना है कि समुद्र ने महादेवी लक्ष्मी की सवारी अपनी पुण्य-भूमि पर लाने के लिए इस सोने की सड़क का निर्माण किया है।
प्रश्न 2.
'मेरा आत्म-प्रलय होता है नयन-नीर झड़ते हैं।' का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि समद्र-तट पर खडा हआ प्रकृति की मनोरम शोभा के दर्शन कर रहा है। रात्रि के अन्धकार में आकाश में चमकते तारे, अस्तगत सूर्य, खिला हुआ चन्द्रमा, पत्र-पुष्पों से सुसज्जित वृक्ष, प्रसन्नता के साथ चहचहाते पक्षी और साँस लेते हुए सुगंध को बिखेरने वाले पुष्प, वन-उपवनों, पर्वतों आदि पर बरसते हुए बादल-ये सभी प्राकृतिक दृश्य कवि को आत्मविभोर कर देते हैं। प्रकृति के इन रम्य स्वरूपों को देखते हुए कवि उनमें तल्लीन हो जाता है। वह सागर-तट पर अपना अस्तित्व ही भूल जाता है। तल्लीनता की इस चरम स्थिति को ही कवि ने 'आत्म-प्रलय' कहा है। प्रकृति के विविध सुन्दर रूप उसको इतना प्रभावित करते हैं कि . उसके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू टपकने लगते हैं।
प्रश्न 3.
प्रकृति के मनोरम रूप के सम्बन्ध में कवि अपनी पत्नी से क्या करने को कहता है ?
उत्तर :
कवि समुद्र-तट पर खड़ा हुआ प्रकृति के रम्य रूप को देख रहा है, जो उसको प्रेम का संदेश.देता हुआ प्रतीत होता है। प्रकृति की यह प्रेमभरी कहानी समस्त संसार को मोहित करने वाली है। यह कहानी लहरों, तटों, तृणों, वृक्षों, पर्वतों, आकाश, सूर्य की किरणों तथा बादलों पर लिखी हुई है। कवि चाहता है कि उसकी पत्नी इस मनोहर उज्ज्वल प्रेम-कहानी को पढ़े। वह प्रकृति के सौन्दर्य के आकर्षण को कवि के समान ही समझे और अनुभव करे। वह जाने कि नर-नारी के सौन्दर्य की तुलना में प्रकृति का यह सौन्दर्य कितना अधिक आनन्ददायक है तथा सुख-शान्ति प्रदान करने वाला है।
प्रश्न 4.
प्रेम का राज्य' कैसा है ? कवि की इच्छा इस सम्बन्ध में क्या है ? .
उत्तर :
प्रकृति का प्रत्येक अंग और घटना मनुष्य को प्रेम का संदेश देता है। उसकी यह प्रेम-कहानी अत्यन्त मोहक, सुन्दर तथा निष्कलंक है। कवि ने उसकी सुन्दरता को 'अतिशय' तथा 'परम' विशेषणों का प्रयोग करके प्रकट किया है। जिसका तात्पर्य यही है कि प्रेम का राज्य अतीव मनोहर है। उसे देखकर कवि के मन में यह इच्छा उत्पन्न हो रही है कि वह इस कहानी के शब्द बनकर विश्व की वाणी बन जाय अर्थात् कवि इस प्रकृति-प्रेम की कथा को अपने शब्दों में व्यक्त करे तथा अपनी कविता के माध्यम से समस्त विश्व को प्रकृति के प्रेम-राज्य का महत्व बताये।
प्रश्न 5.
'पथिक' शीर्षक कविता में पथिक के मन में तीन बार कुछ करने की इच्छा उठी है। वह इच्छा क्या है ?
उत्तर :
सागर-तट पर खड़े प्रकृति के मनोहर स्वरूप का दर्शन कर रहे पथिक के मन में तीन बार उठी इच्छा निम्नवत् है
1. नीचे नीला सागर तथा ऊपर नीला आकाश देखकर कवि के मन में आता है कि वह बादलों पर बैठकर दोनों के मध्य अन्तरिक्ष में विचरण करे।
2. कवि के मन में सदा यह हौसला रहता है कि वह सागर की लहरों पर बैठकर विशाल, विस्तृत और महिमामय समुद्र के घर के कोने-कोने में भ्रमण करे।
3. कवि प्रकृति में प्रेम का राज्य देखता है। प्रकृति की मनोहर प्रेम कहानी को देखकर कवि चाहता है कि वह इस प्रेम कहानी को अपनी कविता के माध्यम से विश्व तक पहुँचाये।
प्रश्न 6.
पथिक'कविता के आधार पर त्रिपाठी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
'पथिक' रामनरेश त्रिपाठी के द्वारा रचित खण्डकाव्य है। त्रिपाठी की भाषा-शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. भाषा - त्रिपाठी ने इस काव्य की रचना खड़ी बोली में की है। काव्य की भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है। संस्कृत तत्सम शब्दों का मुक्त भाव से प्रयोग हुआ है तथा कोमलकांत पदावली का प्रयोग हुआ है।
2. शैली - कवि ने प्रसाद गुण युक्त शैली को अपनाया है। शैली में वर्णनात्मकता तथा चित्रांकन शैली का सुंदर मिश्रण है। प्रकृतिगत दृश्यों के चित्रण में ऐसा हुआ है। शैली में सर्वत्र एक प्रवाह है, जो पाठक को अपने साथ बाँधे रखता है।
प्रश्न 7.
पथिक' शीर्षक खण्डकाव्य द्वारा कवि ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर :
पथिक' काव्य का नायक संसार के दुःखों से विचलित होकर प्रकृति की सुन्दरता पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। किसी साधु के उपदेश से वह देश-सेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदण्ड देता है किन्तु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है। इस खण्डकाव्य में कवि यह संदेश देना चाहता है कि व्यक्ति प्रेम से प्रकृति-प्रेम अच्छा है और प्रकृति-प्रेम पर मुग्ध होने की अपेक्षा देश-प्रेम में पड़कर देश-जाति की सेवा करना अधिक उत्तम है।
प्रश्न 8.
'प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। पथिक' शीर्षक कविता के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पथिक' संसार के कष्टों से पीड़ित होकर घर त्याग देता है। वह भ्रमण करते हुए प्रकृति के विविध सुन्दर रूपों को देखता और मुग्ध होता है। उसको लगता है कि संसार में कष्ट है किन्तु प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर सुख-शान्ति प्राप्त होती है। प्रकृति का यह सौन्दर्य उसकी पत्नी के मानवीय सौन्दर्य से अधिक आकर्षक है। वह अपनी पत्नी को सम्बोधन करके उससे इस बात का अनुभव करने को कहता है। वह कहता है कि 'कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?' स्पष्ट है कि पत्नी की अपेक्षा प्रकृति पथिक को अधिक सुख दे रही है और उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर कर रही है।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न :
'पथिक' कविता में वर्णित प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
'पथिक' कविता में कवि ने प्राकृतिक सौन्दर्य के विविध रूपों को मनोहारी शैली में प्रस्तुत किया है। आकाश में सूर्य उदय हो रहा है। बदलियाँ रंग-बिरंगे वेश में उसके सामने नर्तकियों के समान नाच रही हैं। नीचे नीला समुद्र और ऊपर नीला आकाश फैला है। सागर गरज रहा है, मलय पवन बह रहा है। समुद्र तल पर आधा सूर्य ही उदय हुआ है जो लक्ष्मी महारानी के महल का सुन्दर कँगूरा प्रतीत हो रहा है।
सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ने से समुद्र का जल सुनहरा हो गया है। ऐसा लगता है कि लक्ष्मी की सवारी निकालने के लिए समुद्र ने सोने की सड़क बना दी है। वृक्ष पत्तों और पुष्पों से अपना शृंगार कर लेते हैं। पक्षी हर्षातिरेक में चहचहाने लगते हैं। फूल, सुख की साँस लेकर महकने लगते हैं। सर्वत्र बादल बरसने लगते हैं। कवि ने प्रकृति के इस सौन्दर्य को. एक अद्भुत प्रेम कहानी बताया है।
कवि-परिचय - रामनरेश त्रिपाठी की कविता में द्विवेदी युग के आदर्शवाद तथा छायावाद के सूक्ष्म सौन्दर्य का सफल समन्वय दिखाई देता है। कवि होने के साथ-साथ त्रिपाठी जी आदर्श कहानीकार, निबन्धकार, नाटककार तथा समालोचक भी हैं।
जीवन-परिचय - रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1881 ई. में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर ग्राम में हुआ। आपके पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी सारस्वत ब्राह्मण थे। वे धार्मिक विचारों के पुरुष थे। भक्ति-भाव सम्पन्न अपने पिता का प्रभाव रामनरेश जी पर बचपन से ही पड़ा था। रामनरेश जी की विधिवत् शिक्षा कक्षा 9 तक ही हो सकी। उसके पश्चात् अपने स्वाध्याय से ही हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला तथा उर्दू भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। साहित्य के प्रति त्रिपाठी जी की रुचि बचपन से ही थी। त्रिपाठी जी ने साहित्य .. के माध्यम से ही देश-सेवा करने का निश्चय किया। सन् 1962 ई. में हिन्दी साहित्य के इस यशस्वी कवि. का देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय - साहित्य के प्रति बचपन से ही त्रिपाठी जी की रुचि थी। उस समय देश में गाँधीजी का सुधारवादी युग था। कविगण समाज-सुधार को ही साहित्य का विषय बना रहे थे, परन्तु त्रिपाठी जी ने अपनी कविता के लिए रोमांटिक प्रेम को चुना। उनकी कविता में वैयक्तिक प्रेम के साथ-साथ देश-प्रेम का भी भव्य चित्रण मिलता है। अपनी काव्य-रचना त्रिपाठी जी ने खड़ी बोली में ही की है।
लोक - साहित्य के संकलन की दृष्टि से 'कविता कौमुदी' (आठ भाग) त्रिपाठी जी का पहला मौलिक कार्य था। त्रिपाठी जी ने बाल-साहित्य की भी रचना की है। उनके साहित्य में मौलिकता है तथा वह पाठकों के मन को छू लेने वाली है।
रचनाएँ - त्रिपाठी जी ने अपनी अनेक रचनाओं से हिन्दी साहित्य की कोष-वृद्धि की है। आपकी रचनाएँ नाटक, कहानी, कविता, निबन्ध और आलोचना से सम्बन्धित हैं।
खण्डकाव्य - 'पथिक', 'मिलन' तथा 'स्वप्न' आपके द्वारा रचित खण्डकाव्य हैं। इनकी रचना खड़ी बोली में हुई है। इनमें काल्पनिक कथाओं के माध्यम से देश-प्रेम, त्याग और लोकसेवा के आदर्श की स्थापना की गई है। इन कृतियों से कवि की अपूर्व कल्पना तथा मौलिक उद्भावना-शक्ति का परिचय मिलता है।
कविता-संग्रह - 'मानसी' आपकी फुटकर कविताओं का संग्रह है। इनमें देश-प्रेम और मानव-सेवा का संदेश दिया गया है।
गद्य-लेखन-आपकी गद्य रचनाओं में 'प्रेम-लोक' (नाटकतथा 'गोस्वामी तुलसीदास तथा उनकी कविता' (समालोचना) प्रमुख हैं।
सम्पादन एवं संकलन - 'कविता कौमुदी' के आठ भागों में आपने हिन्दी, उर्दू तथा संस्कृत की कविताओं का संकलन किया है। इसमें लोकगीतों का संकलन भी है। आपने 'वानर' नामक बाल पत्रिका का सम्पादन भी किया है।
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण तथा सौन्दर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर -
1. प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचौं यही चाहता मन है।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। इस अंश में कवि ने प्रकृति के सुन्दर दृश्य का शब्दचित्र अंकित किया है।
व्याख्या - पथिक प्रकृति की मनोहर शोभा पर विमुग्ध है। सूर्य के सामने बादलों का समूह हर समय रंग-बिरंगा तथा अनोखा रूप धारण करके नृत्य कर रहा है। सूर्य किसी राजा के समान है तथा बदलियों की टुकड़ियाँ रंगीन वस्त्रधारी नर्तकियों के समान हैं। नीचे सुन्दर नीला समुद्र लहरा रहा है तथा ऊपर विशाल नीला आकाश फैला है। पथिक की इच्छा हो रही है कि वह बादलों पर बैठकर अन्तरिक्ष में विचरण करे। . विशेष-काव्यांश में कवि का प्रकृति प्रेम और शब्दचित्रमय शैली कथन को आकर्षक बना रही है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
वारिद-माला' का क्या अर्थ है ? कवि ने उसको किस रूप में प्रस्ततं किया है?
उत्तर :
'वारिद-माला' का अर्थ है-बादलों की पंक्ति अथवा समूह। आकाश में रंग-बिरंगे बादलों के अनेक समूह उमड़-घुमड़ रहे हैं। सूर्य आकाश में उदित हो चुका है। कवि ने बादलों को रंग-बिरंगे परिधान धारण करने वाली नर्तकियों के रूप में प्रस्तुत किया है। जो सूर्य के सामने नृत्य कर रही हैं।
प्रश्न 2.
वारिद-माला को नर्तकियाँ मानने का क्या कारण है ?
उत्तर :
वारिद-माला में सूर्य उदय हो चुका है। उसकी किरणें सर्वत्र बिखरकर उसकी आभा का परिचय दे रही हैं। सूर्य कवि को सिंहासन पर विराजमान किसी राजा के समान लगता है। अतः कवि ने प्रतिक्षण नए और रंग बिरंगे वेश धारण करने वाले बादलों को सूर्य के सामने नृत्य करने के लिए रंग-बिरंगे, निराले, नवीन वस्त्रों में सुसज्जित नर्तकियाँ मान लिया है।
प्रश्न 3.
'पथिक' कहाँ बैठा है? वह क्या देख रहा है?
उत्तर :
पथिक' समुद्र-तट पर बैठा है। उसके सामने प्रकृति का मनोहर दृश्य है। नीचे नीले रंग के जल वाला महासागर लहरा रहा है तो ऊपर नीला आकाश फैला हुआ है। आकाश में रंग-बिरंगे बादलों की पंक्तियाँ उमड़-घुमड़ रही है।
प्रश्न 4.
समुद्र-तट पर उपस्थित पथिक के मन में क्या इच्छा उत्पन्न हो रही है?
उत्तर :
कवि समुद्र-तट पर बैठा है। उसके नेत्रों के सामने प्रकृति का रम्य स्वरूप बिखरा हुआ है। नीचे विशाल नीला वर्षा के जल से युक्त सागर लहरा रहा है तो ऊपर नीला आकाश दूर-दूर तक फैला हुआ है। यह देखकर कवि के मन में इच्छा हो रही है कि वह बादलों को वायुयान की तरह प्रयोग करे और उन पर बैठकर आकाश में विचरण करे।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्न -
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद्यांश में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में 'रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला'-में मानवीकरण अलंकार है। यहाँ सूर्य को एक राजा तथा बादलों को रंग-बिरंगे वस्त्र धारण किए हुए नर्तकियाँ माना गया है। जब निर्जीव पदार्थों, प्राकृतिक दृश्यों तथा अमूर्त वस्तुओं का वर्णन उनको सजीव मनुष्य का रूप प्रदान किया जाता है तो वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। सूर्य में किसी राजा तथा बादलों में उसके दरबार में नृत्य करने वाली नर्तकियों का रूप देखने से यहाँ मानवीकरण अलंकार है। 'नीचे नील' तथा 'बीच में बिचरूं' में 'न' तथा 'ब' वर्गों की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश के भाषा-शैलीगत सौन्दर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सरल, प्रवाहपूर्ण तथा भावाभिव्यक्ति में समर्थ खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इसमें प्रकृति के सुन्दर स्वरूप का वर्णन किया गया है। कवि ने इसके लिए वर्णनात्मक तथा आलंकारिक शैली का प्रयोग किया है। भाषा में तत्सम शब्दावली को अपनाया गया है। वह वर्ण्य विषय के अनुकूल है।
2. रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये ! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के -
घर के कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँजी भर के॥
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। पथिक (कवि) के मन में समुद्र की लहरों पर सवार होकर सारे समुद्र में भ्रमण करने की इच्छा उत्पन्न हो रही है।
व्याख्या - समुद्र के तट पर खड़ा उसकी शोभा से आह्लादित पथिक अपनी प्रियतमा को सम्बोधन करते हुए कहता है-यहाँ. सागर अपनी ऊँची उठती लहरों के तट पर टकराने के कारण होने वाली तेज आवाज के कारण गरजता हुआ-सा लगता है। चन्दन की गंध से सिक्त शीतल-मंद-सुगंधित पवन यहाँ प्रवाहित होती है। प्रकृति के इस रम्य प्रदेश में मेरा हृदय प्रत्येक क्षण साहस की भावना से भरा रहता है। मैं चाहता हूँ कि इस दूर-दूर तक फैले हुए महिमाशाली विशाल समुद्र के प्रत्येक कोने तक, इसके प्रत्येक स्थल तक मैं इसकी ही लहरों की सवारी करके जी भरकर भ्रमण करूँ। सागर-भ्रमण के लिए मेरा मन सदैव साहस से भरा रहता है।
अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
समुद्र-तट का दृश्य कैसा है ?
उत्तर :
पथिक समुद्र के तट पर उपस्थित है। वह देख रहा है कि उसके सामने अपनी ऊँची-नीची लहरों की टकराहट के माध्यम से समुद्र गरज रहा है। वहाँ मलय पर्वत से आने वाली शीतल सुगन्धित वायु प्रवाहित हो रही है। समुद्र तट का यह सुन्दर दृश्य कवि को उल्लासित कर रहा है।
प्रश्न 2.
'मलयानिल' कहने से क्या आशय है ?
उत्तर :
मलयानिल शब्द मलय और अनिल शब्दों में सन्धि होने से बना है। मलय साहित्य में स्वीकृत एक पर्वत है, जहाँ से चंदन-वन में प्रवाहित होकर आने वाली वायु अत्यन्त शीतल और सुगन्धित होती है। मलयानिल कहने का आशय शीतल और सुगन्धित वायु से है। समुद्र-तट पर शीतल और सुगन्धित वायु प्रवाहित हो रही है।
प्रश्न 3.
कवि ने रत्नाकर की कौन-कौन सी विशेषतायें बताई है?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि रत्नाकर अपनी ऊँची-नीची लहरों की ध्वनि के रूप में गर्जना कर रहा है। उसके तट पर बहने वाली हवा शीतल और सुगन्धित है। वह अत्यन्त विशाल और विस्तृत है। वह अत्यन्त महिमाशाली है। उसमें निरन्तर लहरें आती रहती हैं।
प्रश्न 4.
कवि ने अपनी प्रियतमा को अपने किस होसले के बारे में बताया है?
उत्तर :
कवि सागर तट पर बैठा गरजते समुद्र को देख रहा है। शीतल सुगन्धित पवन उसे उत्साहित कर रही है। समुद्र में उठने वाली लहरों को देखकर कवि के मन में विशाल, विस्तृत और महिमाशाली सागर के कोने-कोने में उसकी लहरों पर बैठकर विचरण करने का विचार उठता है। कवि अपनी प्रेयसी को बताता है कि उसमें अब भी विस्तृत महासागर में विचरण करने का आत्मविश्वास और साहस है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
रत्नाकर गर्जन करता है' में कौन-सा अलंकार है तथा क्यों?
उत्तर :
रत्नाकर गर्जन करता है' में मानवीकरण अलंकार है। यह छायावादी कवियों का प्रिय अलंकार है। किसी अमूर्त पदार्थ, प्राकृतिक दृश्य तथा निर्जीव वस्तु को जब सजीव मनुष्य की तरह कार्य करते हुए चित्रित किया जाता है तो वहाँ मानवीकरण । अलंकार होता है। मानवीकरण का अर्थ है-मानव बनाना। यहाँ कवि ने किसी वीर पुरुष की तरह समुद्र को गरजते हुए बताया है, अत: मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्न 2.
काव्य-गुण की दृष्टि से उपर्युक्त पद्यांश पर विचार कीजिए।
उत्तर :
जिस गुण से कविता अनायास ही पाठक के हृदय में व्याप्त हो जाती है, उसे प्रसाद गुण कहा जाता है। प्रसाद गुण वाली रचना का अर्थ जानने के लिए विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने समुद्र-तट के सुन्दर प्राकृतिक दृश्य का वर्णन किया है, जो पहले ही हमारी समझ में आ जाता है। सरल-सरस भाषा इसमें सहायक है। अतः इस पद्यांश में प्रसाद गुण की स्थिति मानना ही उचित है।
3. निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा।
कमला के कंचन-मंदिर का मानो. कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी॥
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। इस अंश में कवि ने सूर्योदय के सुन्दर दृश्य का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।
व्याख्या - पथिक कहता है कि समुद्र की सतह पर सूर्य की आधी ही परछाई दिखाई दे रही है। आधा सूर्य अभी समुद्र के जल में डूबा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे समुद्र महादेवी लक्ष्मी का सोने से निर्मित महल है तथा आधा चमकता हुआ सुनहरा सूर्य उसका सुन्दर शिखर है। सूर्य की किरणों के समुद्र के जल पर पड़ने के कारण, उसकी ऊपरी सतह सुनहरी हो गई है। ऐसा लग रहा है जैसे समुद्र अपनी पवित्र भूमि पर धन की देवी लक्ष्मीजी की सवारी निकालना चाहता है। इसी कारण उसने अपनी सतह पर अत्यन्त सुन्दर सोने की सड़क बना दी है।
विशेष - आलंकारिक भाषा-शैली के द्वारा कवि ने सूर्योदय और सागर का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत किया है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश की प्रथम पंक्ति में किस दृश्य का वर्णन है?
उत्तर :
पथिक समुद्र तट पर खड़ा हुआ है। प्रथम पंक्ति में उदित होते हुए सूर्य का वर्णन है। पथिक देख रहा है कि सूर्य का। गोला अभी आधा ही समुद्र के पानी की सतह से ऊपर उठ पाया है अर्थात् अभी आधा सूर्योदय हुआ है।
प्रश्न 2.
रत्नाकर द्वारा निर्मित स्वर्ण-सड़क किसको कहा गया है ?
उत्तर :
प्रात:काल है, सूर्योदय हो रहा है। उदित होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें समुद्र के जल की सतह पर पड़ रही हैं। उससे समुद्र का तल सुनहरा हो गया है। जो देखने पर समुद्र के पानी के ऊपर बनी हुई सोने की सड़क-सा प्रतीत होता है। इसी को कवि ने रत्नाकर द्वारा निर्मित स्वर्ण-सड़क कहा है।
प्रश्न 3.
आधा उदित हुआ सूर्य का बिम्ब कैसा लग रहा है ?
उत्तर :
समुद्र तट से पथिक सूर्योदय का दृश्य देख रहा है। आधा सूर्य-बिम्ब जल की सतह से ऊपर उठ आया है। समुद्र महादेवी लक्ष्मी का निवास स्थान है। सूर्य की किरणों के पड़ने से वह सोने से निर्मित महल जैसा लग रहा है तथा सूर्य का आधा उदय हुआ बिंब उस सोने के महल के ऊपर के कैंगरे-सा दिखाई दे रहा है।
प्रश्न 4.
रत्नाकर ने सोने की सुन्दर सड़क क्यों बनाई है ?
उत्तर :
समुद्र धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत करना चाहता है। वह अपनी पुण्यभूमि पर लक्ष्मीजी की सवारी निकालना चाहता है। महादेवी लक्ष्मी की सवारी सुगमता से निकल सके, इसीलिए समुद्र ने अपने जल की सतह पर सोने की सुन्दर सड़क का निर्माण किया है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश की दो काव्यगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की दो काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1. इस पद्यांश की भाषा संस्कृतनिष्ठ कोमल पदावली युक्त है। वह सरल, प्रवाहपूर्ण तथा भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।
2. प्रस्तुत पद्यांश की शैली चित्रात्मक है तथ प्रसाद गुण से युक्त है। समुद्र-तट पर सूर्योदय के दृश्य-चित्रण अत्यन्त सजीव हैं
प्रश्न 2.
'कमला के कंचन-मन्दिर का मानों कांत कँगूरा'-इस पंक्ति में आए अलंकारों का परिचय दीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में 'कमल, कंचन, कांत, कँगूरा (शिखर) में 'क' वर्ण की आवृत्ति हुई है। अत: इसमें अनुप्रास अलंकार है। समुद्र के सुनहरी जल से ऊपर निकला.आधा सूर्य लक्ष्मी जी के सोने के महल का मानो कँगूरा है। जहाँ सामान्यत: एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना प्रकट की जाती है, वहीं वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ सूर्य में लक्ष्मी जी के सोने के महल के कँगूरे की सम्भावना होने से उत्प्रेक्षण (हेतूत्प्रेक्षा) अलंकार है।
4. निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
लहरों पर लहरों का आना संदर, अति संदर है।
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी।।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। इस अंश में पथिक अपनी पत्नी को सागर के गंभीर गर्जन और लहरों की सुन्दरता अनुभव करने को कह रहा है।
व्याख्या - पथिक कहता है-हे कल्याण भावना से युक्त हृदयवाली मेरी प्यारी प्रेमिका, देखो, मैं समुद्र के तट पर खड़ा हुआ । उसके मनोहर स्वरूप को देख रहा हूँ। समुद्र निडर, अडिग तथा गम्भीर लग रहा है। वह गरज रहा है। उसके गर्जन से उसकी दृढ़ता, गम्भीरता तथा निर्भीकता प्रकट हो रही है। एक लहर के पीछे दूसरी लहर आ रही है। लहरों का यह आना-जाना लगातार चल रहा है। यह दृश्य अत्यन्त सुन्दर लग रहा है। प्रकृति के इस मनोरम स्वरूप के दर्शन से जो सुख मनुष्य को मिलता है, उससे अधिक सुख संसार में उसे कहीं नहीं मिल सकता। तुम इस सुख की कल्पना करो और इसको मन-ही-मन अनुभव करो।
विशेष - प्रकृति दर्शन ही कवि के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
समुद्र-तट पर उपस्थित पथिक को सागर कैसा लग रहा है ?
उत्तर :
पथिक समुद्र-तट पर खड़ा हुआ सागर के प्राकृतिक सौन्दर्य को देख रहा है। उनको समुद्र निर्भय, दृढ़ तथा गम्भीर लग रहा है। उसमें लहरें एक के बाद एक उठ रही हैं जो तट की ओर आती और विलीन हो जाती हैं। समुद्र लहरों के माध्यम से गरजता हुआ लग रहा है।
प्रश्न 2.
पथिक को समुद्र में उठने वाली लहरें कैसी लग रही हैं?
उत्तर :
पथिक समुद्र-तट पर खड़ा है। समुद्र के जल में एक के बाद एक लहरें उठ रही हैं। ये लहरें एक के पीछे एक समुद्र के तट की ओर आती हैं और विलीन हो जाती हैं। लहरों का यह निरन्तर आना पथिक को अत्यन्त सुन्दर प्रतीत हो रहा है।
प्रश्न 3.
'कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी' में कवि ने किस सुख के बारे में बताया है ?
उत्तर :
पथिक सागर-तट पर खड़ा होकर प्रकृति के सुन्दर दृश्य को देख रहा है। समुद्र निर्भीक, दृढ़ और गम्भीर मन से गरज रहा है। एक के बाद एक सुन्दर लहरें उठ रही हैं। पथिक इस रूप को देखकर अभिभूत हो जाता है। उसे प्रकृति का यह मनोरम दृश्य अत्यन्त सुखदायक लगता है। प्रकृति के सौन्दर्य अवलोकन से प्राप्त सुख उसे संसार का सबसे बड़ा सुख लगता है।
प्रश्न 4.
प्राकृतिक दृश्य की सुन्दरता को देखने से मिलने वाले सुख का अनुभव कवि किसको कराना चाहता है ?
उत्तर :
पथिक समुद्र-तट के सुन्दर प्राकृतिक दृश्य को देखकर परम सुख का अनुभव करता है। उसको यह सुख संसार के सभी सुखों से बढ़कर प्रतीत होता है। पथिक चाहता है कि उसकी प्रियतमा भी इस सुख को अनुभव करे और जाने कि यह सुख उसके प्रेम से प्राप्त सुख से भी कहीं अधिक है। इसलिए वह प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव चित्रण कर कहता है कि इसे तुम भी अपने हृदय में अनुभव करो।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश में लहरों का आना सुन्दर, अति सुन्दर है' में क्या पुनरुक्ति दोष है ?
उत्तर :
जब किसी काव्य रचना में एक ही अर्थ वाले शब्दों को अनावश्यक ही दोहराया जाता है तो पुनरुक्ति दोष होता है। 'लहरों का आना सुन्दर, अति सुन्दर' में 'सुन्दर' शब्द की आवृत्ति हुई है। परन्तु वह अनावश्यक नहीं है। कवि यहाँ समुद्र के जल में उठने वाली लहरों की सुन्दरता पर बल देना चाहता है। अत: उसने 'सुन्दर' शब्द के साथ 'अति सुन्दर' शब्द को दोहराया है। दृश्य के सौन्दर्य को उभारने के लिए यह आवश्यक है। अत: यहाँ पुनरुक्ति दोष नहीं है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश में प्रथम पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की प्रथम पंक्ति निर्भय, दृढ़, गम्भीर भाव से गरज रहा सागर है-में मानवीकरण अलंकार है। जहाँ किसी अमूर्त पदार्थ, प्राकृतिक दृश्य अथवा निर्जीव वस्तु का वर्णन सजीव मनुष्य की तरह होता है वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। यह छायावादी कवियों का प्रिय अलंकार है, जो अंग्रेजी साहित्य से ग्रहण किया गया है। इस पंक्ति में समुद्र को मनुष्य की तरह निर्भीक, दृढ़ तथा गम्भीर भावों के साथ गरजता हुआ बताया गया है-अत: इसमें मानवीकरण अलंकार है।
5. जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी की कविता 'पथिक' से लिया गया है। कवि सूर्यास्त के बाद आने वाली रात्रि और उसके बाद होने वाले सूर्योदय का वर्णन आलंकारिक भाषा शैली में प्रस्तुत कर रहा है।
व्याख्या - पथिक कहता है कि जब आधी रात हो जाती है तो चारों ओर घना अँधेरा छा जाता है और पूरा संसार इस घने । अँधेरे में छिप जाता है। उस समय वह आकाशरूपी छत पर तारों को बिखेर देता है अर्थात् आधी रात के अंधेरे में आकाश में तारे चमचमाने लगते हैं। आकाश में स्थित आकाश-गंगा में असंख्य तारे टिमटिमाने लगते हैं और सुन्दर प्रतीत होते हैं। उस समय संसार के स्वामी सूर्य के मुख पर हँसी बिखर उठती है और वह मुस्कराने लगता है। वह धीमी गति से चलकर आता है और आकाश-गंगा के किनारे खड़ा होकर मीठी वाणी में गीत गाने लगता है। कवि कल्पना करता है कि रात में छिपा हुआ.सूर्य आकाश में तारों के मनोहर सौन्दर्य से प्रसन्न होकर उनकी प्रशंसा में मधुर गीत गाता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और सूर्योदय हो जाता है।
विशेष - कवि ने सूर्योदय से पूर्व एक नई कल्पना के द्वारा उसकी प्रस्तावना प्रस्तुत की है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
जब आधी रात होती है तो संसार में क्या होता है?
उत्तर :
धीरे-धीरे सूर्य अस्त होता है और रात हो जाती है। आधी रात होने पर चारों ओर घना अँधेरा छा जाता है। संसार इस घने अंधकार से ढक जाता है। आकाश में चमकते तारे इस समय और अधिक सुन्दर लगते हैं।
प्रश्न 2.
अन्धकार के कारण अंतरिक्ष का दृश्य कैसा लगता है?
उत्तर :
सूर्यास्त होने पर अँधेरा छा जाता है, आधी रात होने पर वह अँधेरा समस्त संसार को ढक लेता है। तब अन्तरिक्ष की छत पर तारे चमकने लगते हैं अर्थात् अँधेरा छा जाने के कारण अंतरिक्ष में तारों के चमकने से उसकी सुन्दरता बढ़ जाती है।
प्रश्न 3.
'जगत का स्वामी' कौन है? वह क्या करता है?
उत्तर :
जगत का स्वामी सूर्य है। वह धीरे-धीरे चलकर मुस्कराते हुए (प्रकाश फैलाते हुए) आता है। आशय यह है कि जैसे-जैसे रात बीतती है, प्रभात होता है और धीरे-धीरे सूर्योदय हो जाता है।
प्रश्न 4.
जगत के स्वामी सूर्य द्वारा गीत गाने का क्या आशय है ?
उत्तर :
जगत का स्वामी सूर्य है, जो आकाश-गंगा के किनारे पर खड़ा होता है। सूर्य तारों के मनोहर सौन्दर्य पर मुग्ध होकर आकाश गंगा के तट पर प्रकट होता है और उनकी प्रशंसा में मधुर स्वर में गीत गाता है। आशय यह है कि सूर्य आकाश-गंगा से धीरे-धीरे नीचे उतरता है इस प्रकार सूर्योदय हो जाता है। सूर्य द्वारा गीधारे सूर्योदय स्कराते हुए।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
उपर्युक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों में सूर्य को संसार का स्वामी बताया गया है। उसको मुस्कराते हुए मंद गति से चलकर आकाश-गंगा के तट पर आकर मधुर गीत गाते हुए चित्रित किया गया है। इन पंक्तियों में चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। प्रकृति के एक नक्षत्र सूर्य को सजीव मनुष्य की तरह मुस्कराते तथा मंद गति से चलते और गीत गाते हुए चित्रित किये जाने के कारण पंक्तियों में मानवीकरण अलंकार है। गगन-गंगा में अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है। गीत गाता में भी अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2.
'अन्तरिक्ष की छत' में अलंकार बताइये।
उत्तर :
अंतरिक्ष में छत का आरोप है। भिन्नता होते हुए भी उपमेय पर उपमान का अभंग आरोप होने पर रूपक अलंकार होता है। 'अंतरिक्ष की छत' में भी इस कारण रूपक अलंकार है। तारे अंतरिक्ष में उसी प्रकार छिटके हैं जिस प्रकार छत पर कोई वस्तु बिखरी हुई हो।
6. उससे ही विमुग्ध हो नभ में चन्द्र विहँस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।
पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सानन्द महक उठते हैं।।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी की कविता 'पथिक' से लिया गया है। कवि ने आकाश में चन्द्रमा के उदय, वृक्षों के पत्तों और फूलों से भर जाने और पुष्पों की सुगंध से वातावरण महकने का वर्णन लिखा है।
व्याख्या - रात्रि में आकाश-गंगा के जिस मनोहर रूप से प्रभावित सूर्य उसके तट पर खड़ा होकर मधुर गीत गाता है, उसी आकाश-गंगा के सौन्दर्य पर मोहित होकर चन्द्रमा आकाश में हँसने लगता है। वन में वृक्ष अनेक पत्तों तथा फूलों से अपने शरीर को सजा लेते हैं। इसके सौन्दर्य को देखकर पक्षी अपनी प्रसन्नता पर नियन्त्रण नहीं रख पाते और मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं। फूल सुख की साँस लेते हैं और सुख तथा आनन्द के कारण अपनी सुगन्ध को बिखरा देते हैं।
विशेष - प्रात:काल का एक लघु शब्द चित्र काव्यांश की सुंदरता बढ़ा रहा है। छोटे से दृश्य द्वारा कवि ने वृक्ष, पत्ते, फूल, पक्षी और सुगंध आदि प्रात:काल की सारी सामग्री प्रस्तुत कर दी है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश में किस दृश्य का वर्णन हुआ है?
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में आकाश-गंगा के मनोरम दृश्य का वर्णन किया गया है। रात्रि के अंधकार में उसके मोहक सौन्दर्य को देखकर सूर्य मधुर गीत गाता है। उसी पर मुग्ध होकर चन्द्रमा हँसने लगता है। पक्षी प्रसन्नता से चहचहाने लगते हैं और फूल सुख की साँस लेकर महकने लगते हैं।
प्रश्न 2.
प्रथम पंक्ति में कवि ने चन्द्रमा के बारे में क्या बताया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की प्रथम पंक्ति में कवि ने बताया है कि आकाश-गंगा में चमकते तारों के सौन्दर्य को देखकर चन्द्रमा भी बरबस हँसने लगता है।
प्रश्न 3.
पशु-पक्षियों पर रात्रिकालीन मनोरम सौन्दर्य का क्या प्रभाव होता है।
उत्तर :
रात्रि के अन्धकार में आकाश-गंगा जब जगमगाती है तो उसका अनुपम सौन्दर्य पशु-पक्षियों को भी प्रभावित करता है। वृक्ष अनेक प्रकार के पत्तों तथा पुष्पों से अपने शरीर को ढक लेते हैं। पक्षी भी इस दृश्य से आनन्दित होकर मुग्ध भाव से चहचहाने लगते हैं।
प्रश्न 4.
पुष्यों पर अंतरिक्ष में तारों की जगमगाहट का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर :
आकाश-गंगा में तारे जगमगाते हैं तो उनकी सुन्दरता से पुष्प भी प्रभावित होते हैं। फूल सुख की साँस लेते हैं। वे इतने प्रसन्न होते हैं। इनकी सुगन्ध चारों ओर फैलने लगती है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
फूल साँस लेकर सुख की सानन्द महक उठते हैं' में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
फूल साँस लेकर सुख की सानन्द महक उठते हैं-में प्रमुख अलंकार मानवीकरण है। जब किसी अमूर्त पदार्थ, प्राकृतिक दृश्य अथवा निर्जीव वस्तु को सजीव मनुष्य का स्वरूप प्रदान करके उसको मनुष्य की तरह काम करते दिखाया जाता है तो वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। प्रस्तुत पंक्ति में फूलों को सजीव मनुष्य की तरह सुख की साँस लेते तथा आनन्दित होते हुए चित्रित किया गया है। इस पंक्ति में साँस, सुख, सानन्द शब्दों में 'स' वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौन्दर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश में रात्रिकालीन मनोरम प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण है। हँसते हुए चन्द्रमा, प्रसन्नता व्यक्त करते पक्षियों, तन को सजाते.वृक्षों तथा सुखी होते पुष्पों का मानवीकरण होने से मानवीकरण अलंकार है। भाषा संस्कृतनिष्ठ, सरल, प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है। शैली वर्णनात्मक है तथा प्रसाद गुण युक्त है। प्रकृति का आलम्बन रूप में चित्रण हुआ है।
7. वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी॥
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। कवि इस अंश में वर्षा ऋतु के सौन्दर्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या - पथिक अपनी प्रियतमा को बता रहा है कि प्रकृति का सौन्दर्य अत्यन्त मोहक है। वन, उद्यान, पर्वत, समतल भूमि और घनी कुंजों पर आकाश से बादल पानी बरसाते हैं, तो यह दृश्य अत्यन्त मनोहर लगने लगता है। इस दृश्य की मोहकता इतनी प्रबल है कि पथिक अपने आपको भूलकर उसमें तल्लीन हो जाता है तथा उसके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू टपकने लगते हैं।
हे प्रिये! समुद्र की लहरों, समुद्र के किनारों, तृणों, वृक्षों, पर्वत, आकाश, सूर्य और चन्द्रमा की किरणों तथा बादलों पर संसार को मोहित करने वाली प्रकृति की जो सुन्दर कहानी लिखी हुई है, तुम उसको पढ़कर देखो। आशय यह है कि प्रकृति का प्रत्येक अंग सौन्दर्य के कारण अत्यन्त आकर्षक प्रतीत हो रहा है।
विशेष :
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
कवि ने मेघों के बरसने का क्या कारण बताया है ?
उत्तर :
रात्रि के मनोरम प्राकृतिक दृश्य का प्रभाव मेघों पर भी पड़ता है। इससे प्रभावित होकर बादल वन, उपवन, पर्वत, समतल भूमि तथा संघन कुंजों में जल की वर्षा करने लगते हैं। इससे दृश्य और अधिक आकर्षक हो जाता है।
प्रश्न 2.
'मेरा आत्म-प्रलय होता है' का क्या आशय है?
उत्तर :
प्रकृति का मनोरम दृश्य प्रकृति के अंग सूर्य, चन्द्रमा, पुष्प, वृक्ष, पशु-पक्षियों को ही नहीं, स्वयं पथिक को भी प्रभावित करता है। वह अनुपम प्राकृतिक दृश्य को देखकर आत्मविभोर हो उठता है तथा आनन्द के अतिरेक में उसके नेत्रों से आँसू टपकने लगते हैं। कवि ने इसमें पथिक के हृदय में प्रकृति के रमणीय रूप के प्रभाव के कारण उत्पन्न भावुकता का चित्रण किया है। प्रकृति के अतिशय मनोरम दृश्य को देखकर पथिक स्वयं को भी भूल जाता है। यहाँ आत्म-प्रलय से यही आशय है।
प्रश्न 3.
पथिक किस मधुर कहानी के बारे में बता रहा है ?
उत्तर :
पथिक ने यहाँ प्रकृति के सुन्दर दृश्यों को मधुर कहानी कहा है। वह प्रकृति के सुन्दर दृश्यों के बारे में बता रहा है। प्रकृति की यह मधुर कहानी लहरों, समुद्र-तट, आकाश, सूर्य-चन्द्रमा की किरणों तथा हरे-भरे तृणों पर लिखी हुई है।
प्रश्न 4.
प्राकृतिक सौन्दर्य की यह कहानी कैसी है ? पथिक ने इसको पढ़ने के लिए किसको प्रेरित किया है ?
उत्तर :
प्राकृतिक सौन्दर्य की यह कहानी अत्यन्त मधुर है। इस कहानी को पढ़कर समस्त विश्व के सभी प्राणी विमुग्ध हो जाते हैं। यह स्थावर तथा जंगम सभी प्राणियों को आकर्षित करती है। पथिक ने अपनी प्रियतमा को प्रेरित किया है कि वह इस मधुर कहानी को अवश्य पढ़े।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
नयन-नीर झड़ते हैं'- में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति में नयन तथा नीर शब्दों में 'न' वर्ण की आवृत्ति हुई है। जब किसी वर्ण की दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। इस पंक्ति में इस प्रकार अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2.
काव्य-गुण की दृष्टि से इस पद्यांश की भाषा-शैली पर विचार कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की भाषा संस्कृतनिष्ठ, प्रवाहपूर्ण, सरस एवं सरल खड़ी बोली है। शैली वर्णनात्मक है, इसकी. भाषा-शैली प्रसाद गुण के अनुरूप है, पद्यांश का अर्थ पाठक अनायास ही ग्रहण कर लेता है. एवं रचना उसके हृदय में व्याप्त हो जाती है। पद्यांश की स्पष्टता उसकी भाषा-शैली के ही. कारण संभव हुई है। निस्संदेह यह प्रसाद गुण युक्त रचना है। लघु शब्दों के प्रयोग से आई तीव्र गति प्रभावशाली है।
8. कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है. यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनें विश्व की बानी।
स्थिर , पवित्र , आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है।
अहा! प्रेम का राज्य परम सुन्दर , अतिशय सुंदर है।
शब्दार्थ :
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी की रचना 'पथिक' से लिया गया है। प्रकृति से प्राप्त होने वाले प्रेम-संदेश के प्रति कवि अत्यंत आकर्षित है।
व्याख्या - पथिक कहता है कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु मनोहर है और उनमें एक अव्यक्त प्रेम-व्यापार सदा चलता रहता है। प्रकृति के बीच चलने वाली यह प्रेम-कहानी अत्यन्त सुन्दर, मोहक, पवित्र तथा निष्कलंक है। पथिक के मन में यह इच्छा उत्पन्न हो रही है कि वह इस प्रेम-कथा के अक्षरों का रूप धारण कर संसार की वाणी बन जाय। आशय यह है कि कविं प्रकृति में निहित इस पवित्र प्रेम को अपनी बोली में समस्त संसार को सुनाये। प्रकृतिगत यह प्रेम स्थायी तथा पावन है। यह लोगों के मन में आनन्द की धारा प्रवाहित करता है। यह सदैव शांति तथा सुख देने वाला है। प्रकृति में व्याप्त प्रेम का यह राज्य अत्यन्त सुन्दर है, इसकी सुन्दरता अनुपम है।
विशेष - कवि ने प्रकृति में व्याप्त प्रेम कहानी को अनेक विशेषणों से सजाया है और पाठकों को इसे पढ़ने की प्रेरणा प्रदान की है।
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
कवि ने प्रेम-कहानी किसको बताया है?
उत्तर :
प्रकृति के दृश्य अत्यन्त प्रभावशाली तथा रमणीक होते हैं। प्रकृति के उपादानों में जो प्रेम-व्यापार चला करते हैं, कवि ने उनको मनोहर प्रेम कहानी की संज्ञा दी है। सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना, वायु का प्रवाहित होना, समुद्र में लहरों का उठना, पुष्पों का खिलना, पक्षियों का कलरव करना आदि बातें प्रकृति की सुन्दर प्रेम कहानी है।
प्रश्न 2.
प्रकृति की मनोहर प्रेम कहानी का कवि पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर :
प्रकृति की मनोहर प्रेम कहानी का प्रभाव कवि के हृदय पर पड़ता है। कवि चाहता है कि वह इस कहानी के अक्षरों का रूप धारण करे और इसको समस्त विश्व को सुनाये अर्थात् कवि प्रकृति द्वारा प्रदत्त प्रेम के संदेश को समस्त संसार में व्यापक बनाना चाहता है।
प्रश्न 3.
कवि ने प्रकृति में स्थित प्रेम-राज्य की क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर :
कवि के अनुसार प्रकृति की प्रेम कहानी अत्यन्त मधुर मनोहर एवं उज्ज्वल है। प्रश्न 4. कवि प्रेम के राज्य की किस विशेषता से आत्मविभोर हो उठा है?
अथवा
प्रकृति में स्थित प्रेम-कहानी कैसी है?
उत्तर :
कवि देख रहा है कि प्रकृति की प्रेम कहानी अत्यन्त मधुर और उज्ज्वल है। प्रकृति के प्रेमराज्य में स्थिरता, पवित्रता, शांति तथा सुख-सभी कुछ है। प्रेम का राज्य अत्यन्त सुन्दर है। प्रेम के राज्य की इन विशेषताओं के कारण ही कवि इस पर मुग्ध है।
काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पद्यांश किस काव्य-गुण के अन्तर्गत आता है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश की भाषा सरल तथा भावानुकूल है। शैली वर्णनात्मक है। पद्यांश का भाव सहज ही पाठक के हृदय में उतर जाता है। भाषा-शैली की सरलता के कारण अर्थ-ग्रहण करने में कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। इन बातों को देखते हुए इस रचना को प्रसाद गुण के अन्तर्गत ही माना जायेगा।
प्रश्न 2.
'मधुर मनोहर' तथा 'सदा शांति सुखकर' में अलंकार बताइए।
उत्तर :
'मधुर' तथा 'मनोहर' शब्दों में 'म' वर्ण की आवृत्ति हुई है। 'सदा', 'शान्ति' तथा 'सुखकर' शब्दों में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है। जब किसी वर्ण की आवृत्ति दो या अधिक बार होती है, तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। उपर्युक्त पंक्ति में भी अनुप्रास अलंकार है।