RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 11 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 11 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts.

RBSE Class 11 Hindi Solutions Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

RBSE Class 11 Hindi आवारा मसीहा Textbook Questions and Answers

Class 11 Hindi Antral Chapter 3 Question Answer प्रश्न 1. 
"उस समय वह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दुख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है।" लेखक ने ऐसा क्यों कहा? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उदेश्य हो सकते हैं? 
उत्तर : 
शरत्चन्द्र अपने बाल्यकाल में उस समय दुर्गाचरण एम. ई. स्कूल में पढ़ते थे। उन्हें इस विद्यालय में 'सीता-वनवास', 'चारू-पाठ', 'सद्भाव-सद्गुरु' और 'प्रकाण्ड व्याकरण' आदि पढ़ने पड़ते थे तथा स्वयं पण्डितजी के सामने खड़े होकर परीक्षा देनी पड़ती थी। चूँकि शरत्चन्द्र ने अब तक केवल 'बोधोदय' ही पढ़ा था। अतः पण्डितजी द्वारा परीक्षा लेने पर जब शरत्चन्द्र उत्तर नहीं दे पाते थे तो उनको या तो पिटाई से या पिटाई के डर से आँसू बहाने पड़ते थे। अतः उनका साहित्य से प्रथम परिचय आँसुओं के माध्यम से हुआ था। उस समय बालक शरत्चन्द्र यह सोच भी नहीं सकता था कि क्या मनुष्य को दुख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई अन्य उद्देश्य हो सकता है। हमारे विचार से साहित्य के निम्न उद्देश्य हो सकते हैं : 

  1. महान् जीवन मूल्यों व उदात्त गुणों की स्थापना। 
  2. सभी का हित चिन्तन। 
  3. समाज के यथार्थ को प्रस्तुत कर आदर्श की स्थापना करना। 
  4. व्यक्ति को बहुआयामी ज्ञान व जीवन अनुभव प्रदान करना। 
  5. धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष आदि चारों पुरुषार्थों की सम्प्राप्ति में सहयोग आदि। 

Awara Masiha Question Answer प्रश्न 2. 
पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने के तौर-तरीकों में क्या अन्तर और समानताएँ हैं? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन-से तौर-तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों? 
उत्तर : 
उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में यह अन्तर है कि उस समय बच्चों की शिक्षा किसी एक ही शिक्षक पर निर्भर रहती थी जबकि वर्तमान में प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए अलग-अलग शिक्षक होते हैं। उस समय रटने पर जोर दिया जाता था। विद्यार्थी को अपने पाठ को रटकर गुरुजी को सुनाना पड़ता था, न सुनाने पर उसकी पिटाई होती थी जबकि वर्तमान में रटने की बजाय समझ, कौशल विकास व अनुभवों के अर्जन पर छात्र का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित कर सकते हैं। इस कारण हम पढ़ने-पढ़ाने के वर्तमान तौर-तरीकों के पक्ष में हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

Class 11 Antral Chapter 3 Question Answer प्रश्न 3. 
पाठ में अनेक अंश बालसुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन-सा अंश अच्छा लगा और क्यों? वर्तमान समय में इन बालसुलभ क्रियाओं में क्या परिवर्तन आये हैं? 
उत्तर : 
इस पाठ में शरत्चन्द्र के बचपन की अनेक बालसुलभ चंचलताओं और शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर किया गया है। जहाँ तक हमें अच्छा लगने वाले अंश का प्रश्न है तो हमें पण्डित जी की चिलम में से तम्बाकू निकालकर उसमें ईंट के टुकड़े रख देना सबसे अच्छी बालसुलभ शरारत लगी क्योंकि इसमें एक बहुत अच्छा सन्देश भी छिपा हुआ है। शिक्षक हमेशा विद्यार्थियों के सामने एक आदर्श की स्थापना के लिए आदर्श व्यवहार करता है। शिक्षक द्वारा विद्यालय में हुक्का या चिलम पीना बुरी आदत है, जो विद्यालय में वर्जित होनी चाहिए। 

बालक शरत् द्वारा की गई इस शरारत के पीछे लेखक विष्णु प्रभाकर का उद्देश्य शिक्षक की इसी बुरी आदत की ओर संकेत करना है ताकि बच्चे की शरारत से पण्डित जी इस बुरी आदत को छोड़ने के लिए अग्रसर हो सकें। वर्तमान समय में इन बालसुलभ क्रियाओं में बहुत परिवर्तन आ गया है। अब बच्चे सामान्य शरारत, यथा-प्लास्टिक की छिपकली या साँप से डराना, साथी विद्यार्थी को चिढ़ाना आदि करते हैं। 

Class 11 Antral Chapter 3 Question Answer प्रश्न 4. 
नाना के घर किन-किन बातों का निषेध था? शरत् को उन निषिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय था? 
उत्तर : 
शरत् के नाना के घर पर कठोर अनुशासन था, वहाँ बालकों को स्वतन्त्र रूप से घूमने-फिरने की छूट नहीं थी। बच्चे गंगा पर घूमने नहीं जा सकते थे। नाना के घर में पतंग उड़ाना, लटू घुमाना, गोली और गुल्ली-डण्डा खेलना आदि निषिद्ध था। पतंग उड़ाना तो इतना निषिद्ध था जितना कि शास्त्र में समुद्र यात्रा करना। इन सभी निषिद्ध कार्यों को करने पर बच्चों को कठोर दण्ड मिलता था। शरत् इन निषिद्ध कार्यों को करता था क्योंकि उसकी पसन्द इन्हीं निषिद्ध कार्यों से सम्बन्धित थी। वह अपने बाल्यकाल में किसी बंधन, निषेध या कठोर अनुशासन में बँधकर रहना नहीं चाहता था। 

आवारा मसीहा पाठ के प्रश्न उत्तर प्रश्न 5. 
आपको शरत और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या समानताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
शरत् और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में सौन्दर्यबोध की समानता थी। शरत् सौन्दर्य बोध के कारण.पढ़ने के कमरे को खूब सजाकर रखता था तथा अपने पढ़ने-लिखने की वस्तुओं को सुन्दरता से रखता था। इसी प्रकार उसके पिता मोतीलाल में भी सौन्दर्य बोध कम नहीं था। वे सुन्दर कलम में नया निब लगाकर बढ़िया कागज पर मोती जैसे अक्षरों में रचना आरम्भ करते थे। शरत् के पिता घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे तथा किसी भी कार्य से बँधकर नहीं रह पाते थे। इसी प्रकार शरत् को भी घूमने में बहुत रुचि थी तथा उसके प्रारम्भिक जीवन में भी हमें अस्थिरता ही दिखाई देती है। 

दोनों ही स्वप्नदर्शी व कल्पनालोक में विचरण करने वाले थे। शरत् के पिता निषिद्ध कार्यों को करते थे तथा उनका समर्थन करते थे। वे हुक्का पीते थे। बड़े होकर बच्चों के साथ बराबरी का व्यवहार करते थे। इसी प्रकार शरत् भी गुल्ली-डण्डा खेलना, घूमना-फिरना, पतंग उड़ाना, गोली खेलना जैसे निषिद्ध कार्यों को करता था। शरत् के पिता व शरत् दोनों को साहित्य के पठन-पाठन में रुचि थी। दोनों पिता-पुत्र अत्यन्त संवेदनशील व कल्पनाशील व्यक्ति थे। शरत् के पिता साहित्य सृजन में रुचि रखते थे, उनके द्वारा लिखित अधूरी कहानियों से प्रेरणा लेकर ही शरत् ने कहानी लिखना आरम्भ किया था। इस प्रकार शरत् और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में अनेक समानताएँ थीं। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

आवारा मसीहा के प्रश्न उत्तर प्रश्न 6. 
क्या अभाव, अधूरापन मनुष्य के लिए प्रेरणादायी हो सकता है? 
उत्तर :
जीवन में अभाव, अधूरापन मनुष्य के लिए सदैव प्रेरणादायी रहे हैं। अभाव में जीवन व्यतीत करना, कठिनाइयों। और परेशानियों को झेलना, कुछ नया करने की इच्छा को जन्म देती है। शरत्चन्द्र का बचपन अभावों में गुजरा। पिता द्वारा कोई कार्य न करने के कारण उन्हें ननिहाल में रहना पड़ा। नाना के परिवार के कठोर अनुशासन के विरुद्ध लेखक कामना करता कि मैं किसी से छोटा नहीं बनूँगा। पिता द्वारा लिखी कहानियों को पढ़ना लेकिन उनकी अधूरी कहानी उन्हें विचलित कर देती थी और पिता का यही अधूरापन उसके लिए प्रेरक शक्ति बन गया। 

घोर दारिद्र्य व अभाव के जीवन ने शरत्चन्द्र को जीवन के प्रति संवेदनशील बना दिया था। यही संवेदनशीलता उन्हें लेखकीय दुनिया में शिखर तक ले गई। उनकी रचित देवदास, सुभदा, श्रीकांत आदि श्रेष्ठ रचनाएँ इसका उदाहरण हैं। बचपन से ही गरीब, दुखियों के दुःख में स्वयं को कुंठित पाते थे। लिखने-पढ़ने के स्वभाव ने उन्हें इस दु:ख को समीप से महसूस किया। शरत्चन्द्र के जीवन को समीप से देखने पर यही सिद्ध होता है कि अभाव और अधूरापन मनुष्य के लिए प्रेरणादायी होता है। 

आवारा मसीहा के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 प्रश्न 7. 
"जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा।" अघोर बाबू के मित्र की इस टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए। 
उत्तर : 
एक दिन शरत के नाना अवकाश प्राप्त अध्यापक अघोरनाथ अधिकारी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। शरत भी उनके साथ था। एक टूटे-फूटे घर से आते एक स्त्री के रोने के करुण स्वर को सुनकर अधिकारी महोदय ने पूछा कौन रोता है? शरत् ने बताया कि यह नारी अपने अन्धे स्वामी के मरने पर रो रही है। शरत् ने इस रुदन का सूक्ष्म विवेचन करते हुए कहा कि "दुखी लोग बड़े आदमियों की तरह दिखाने के लिए जोर-जोर से नहीं रोते। उनका रोना दुख से विदीर्ण प्राणों का क्रन्दन होता है। मास्टर मुशाई! यह सचमुच का रोना है।" 

अघोरनाथ ने शरत् की यह बात अपने एक मित्र को बताई तो अघोर बाबू के मित्र ने टिप्पणी की "जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा।" अघोर बाबू के मित्र की यह टिप्पणी शत-प्रतिशत सही थी। शरत् रुदन के विभिन्न रूपों का सूक्ष्म विवेचन करके अपनी गहन संवेदना, सूक्ष्म अवलोकन और विवेचन शक्ति को प्रदर्शित कर रहा था। इसी संवेदनशीलता व मानवीय भावों की गहन विवेचना करने की शक्ति के कारण शरत्चन्द्र बड़े होकर एक महान् कथाशिल्पी बने। वे मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध हुए। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

आवारा मसीहा पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 प्रश्न 8. 
क्या आप अपने गाँव और परिवेश से कभी मुक्त हो सकते हैं? 
उत्तर : 
कोई भी व्यक्ति जहाँ जन्म लेता है, उस मिट्टी और अपने परिवेश से कभी मुक्त नहीं हो सकता है। जीविकायापन के लिए भले ही उसे गाँव, परिवेश छोड़ना पड़े किन्तु उसके अन्तर्मन में सदैव ही अपने गाँव और परिवेश की याद बसी रहती है। यह बात और है कि कोई व्यक्त नहीं कर पाता है तो कोई अपनी किसी-न-किसी कला के माध्यम से अपने अन्तर्मन की यादों को उँडेल देता है। शरतचन्द्र की रचनाओं में पायेंगे कि उसका बचपन, परिवेश, मित्र सभी किसी-न-किसी रूप में उपस्थित हैं। बचपन की संगिनी धीरू को आधार बनाकर शरत्चन्द्र ने कई उपन्यासों की नायिकाओं का सजन किया। 

'देवदास' की पारो, 'बड़ी दीदी' की माधवी और श्रीकांत को राजलक्ष्मी, ये सब धीरू का ही विकसित और विराट रूप हैं। शरत् का बचपन, मछली पकड़ना, चोरी करना, गरीबों में ना, नाव खेना, प्रकृति का विविध स्वरूप सभी कुछ उसने 'श्रीकांत' उपन्यास में प्रस्तुत किया है। शरत्चन्द्र ने 'शुभदा' में दरिद्रता के जो भयानक चित्र खींचे उसके पीछे उसका गाँव देवानंदपुर था। जहाँ वह फिर नहीं लौटा। इस यातना की नींव में ही उसकी साहित्य साधना का बीजारोपण हुआ। वे कभी अपने गाँव और परिवेश से मुक्त नहीं हो सके। 

RBSE Class 11 Hindi आवारा मसीहा Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
सुन्दर कलम में नया निब लगाकर बढ़िया कागज पर मोती जैसे अक्षर कौन लिखता था? 
(अ) शरत्चन्द्र 
(ब) सुरेन्द्र 
(स) मोतीलाल 
(द) बाबू अघोरनाथ। 
उत्तर :
(स) मोतीलाल 

प्रश्न 2. 
दीपक की बत्ती बुझाने का दण्ड किसे भुगतना पड़ा? 
(अ) मणि 
(ब) शरत्चन्द्र 
(स) सुरेन्द्र 
(द) देवी। 
उत्तर :
(द) देवी। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 3. 
गांगुली परिवार में किस कार्य को शास्त्र में समुद्र यात्रा के समान काल माना जाता था? 
(अ) पतंग उड़ाना 
(ब) लट्टू घुमाना 
(स) गोली खेलना 
(द) गुल्ली-डण्डा खेलना। 
उत्तर :
(अ) पतंग उड़ाना 

प्रश्न 4. 
जिस समय शरत् के छोटे नाना मणि को मार रहे थे उस समय शरत् कहाँ जाकर छिप गया? 
(अ) तपोवन में 
(ब) गोदाम में 
(स) पास के टूटे-फूटे महल में 
(द) गंगा के किनारे। 
उत्तर :
(ब) गोदाम में 

प्रश्न 5. 
शरत् को जनमेजय की तरह नाग यज्ञ करने की प्रेरणा कहाँ से मिली? 
(अ) संसार कोश नामक पुस्तक से 
(ब) मृत्यंजय सपेरे से 
(स) विषाक्त साँप के काटने से 
(द) तपोवन से। 
उत्तर :
(अ) संसार कोश नामक पुस्तक से 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 6. 
रामरतन मजूमदार के कितने पुत्र थे?
(अ) पाँच 
(ब) छह 
(स) सात 
(द) आठ। 
उत्तर :
(स) सात 

प्रश्न 7. 
'देवदास' की पारो, 'बड़ी दीदी' की माधवी और 'श्रीकान्त' की जलक्ष्मी' ये सब किस पात्र के विकसित और विराट रूप हैं? 
(अ) भुवनमोहिनी 
(ब) धीरू 
(स) बाल-विधवा 'दीदी' 
(द) विंध्यवासिनी। 
उत्तर :
(ब) धीरू 

प्रश्न 8. 
शरत्चन्द्र ने अपने अल्पकालिक डेहरी प्रवास को किस कृति में अमर किया है? 
(अ) गृहदाह 
(ब) श्रीकान्त 
(स) काकबासा 
(द) चरित्रहीन। 
उत्तर :
(अ) गृहदाह 

प्रश्न 9. 
नयन बागड़ी शरत्चन्द्र की दादी से पाँच रुपये माँगने क्यों आया? 
(अ) शरत् के लिए बाँस लाने हेतु 
(ब) पुस्तकें लाने के लिए
(स) बाँस की कमचियाँ लाने हेतु 
(द) गाय लाने हेतु। 
उत्तर :
(द) गाय लाने हेतु।

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 10. 
पाठ में 'पाबड़ा' किसे कहा गया है? 
(अ) मछली पकड़ने का साधन 
(ब) गंगा किनारे का एकान्त स्थान 
(स) मेहमान 
(द) बाँस का दो-तीन फीट का डण्डा। 
उत्तर :
(द) बाँस का दो-तीन फीट का डण्डा। 

अति लयूत्तरात्मक प्रश्न -

Awara Masiha Class 11 Question Answer प्रश्न 1. 
बालक शरत् को जब उसकी माँ पहली बार उसके नाना के घर ले गई तो उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया? 
उत्तर : 
बालक शरत् को उसकी माँ द्वारा पहली बार उसके नाना के घर ले जाने पर नाना-नानियों द्वारा उस पर धन और अलंकारों की वर्षा की गई। नाना केदारनाथ ने कमर में सोने की तगड़ी पहनाकर उसे गोद में उठाया था। उसे सभी ने बहुत स्नेह प्रदान किया था। 

अंतराल भाग 1 Class 11 Chapter 3 प्रश्न 2. 
बालक शरत्चन्द्र को घर पर पढ़ाने के लिए नियुक्त किये गये अक्षय पण्डित की क्या विशेषता थी? 
उत्तर : 
बालक शरत्चन्द्र को घर पर बनाने के लिए नियुक्त किये गये अक्षय पण्डित मानो यमराज के सहोदर अर्थात् सगे भाई थे। उनका मानना था कि विद्या का निवास गुरु के डण्डे में होता है अर्थात् गुरु द्वारा दण्ड प्रयोग के बिना विद्या प्राप्ति असम्भव है। 

Class 11 Hindi Awara Masiha Question Answer प्रश्न 3. 
शरत् के विद्यालय की घड़ी अक्सर समय से आगे कैसे चलने लगती थी? 
उत्तर : 
शरत् के विद्यालय की घड़ी अक्सर समय से आगे चलने लगती थी क्योंकि उस घड़ी को शरत् की प्रेरणा से दूसरे छात्र या उसके सहपाठी आगे कर देते थे। वह घड़ी उनके द्वारा कभी दस मिनट, कभी आधा घण्टा और कभी एक घण्टा आगे कर दी जाती थी। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

कक्षा 11 अंतराल पाठ 3 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 4. 
पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि शरत स्वभाव से अपरिग्रही था। 
उत्तर : 
शरत् स्वभाव से अपरिग्रही अर्थात् किसी से आवश्यकता से अधिक ग्रहण न करने वाला था। पाठ के अनुसार दिनभर में वह जितनी गोलियाँ और लटू जीलता था संध्या को वह उन सबको छोटे बच्चों में बाँट देता था। उसे किसी को कुछ देने में आनन्द आता था। 

आवारा मसीहा Mcq Class 11 प्रश्न 5. 
पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि शरत् अपने शरीर का बड़ा ध्यान रखता था।
उत्तर : 
शरत् अपने शरीर का बड़ा ध्यान रखता था। शरत् ने अपने नाना के घर के पास एक एकान्त व बड़े महल के आँगन में अभिभावकों से छुपाकर कुश्ती लड़ने का अखाड़ा तैयार किया था तथा वहाँ वह गोला फेंक आदि ऐसे खेल खेलता था जिससे शारीरिक सौष्ठव बने। 

Class 11 Hindi Chapter 3 Question Answer Antral प्रश्न 6. 
आप कैसे कह सकते हैं कि बालक शरत् अपने स्कूल में प्रतिभाशाली विद्यार्थी था? 
उत्तर : 
बालक शरत् अपने स्कूल में एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी था। उसने अपने स्कूल में बहुत से बच्चों को पीछे । छोड़कर अपनी गिनती अच्छे बच्चों में करा ली थी। उसने अंकगणित में सौ प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे। अंग्रेजी स्कूल के प्रथम वर्ष में उसने परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। वह बीच में ही एक वर्ष लाँघकर ऊपर की कक्षा में पहुँच गया था।

अंतराल भाग-1 Class 11 Chapter 3 प्रश्न 7.
केदारनाथ के चौथे भाई अमरनाथ के रूप का चित्रण कीजिए। 
उत्तर : 
केदारनाथ के चौथे भाई अमरनाथ शौकीन तबीयत के व्यक्ति थे। वे कबूतर पालते थे और उस युग में कंघा, शीशा और ब्रुश इत्यादि का प्रयोग करते थे। वे अपने सिर पर अंग्रेजी फैशन के बाल रखते थे। घर के सभी बालक अमरनाथ के रूप को देखकर प्रसन्न होते थे। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

कक्षा 11 अंतराल के प्रश्न उत्तर प्रश्न 8. 
पाठ के आधार पर उस युग में स्त्रियों के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर : 
उस युग में स्त्रियों का मुख्य कार्य रसोई का जुगाड़ करना और घर-गृहस्थी के दूसरे कार्य सँभालना था। उससे समय बचा तो जीवन को जीवन्त बनाने के लिए कलह करना या सोना स्त्रियों के कार्य बताए गए हैं। पाठ के अनुसार स्त्रियाँ जागने पर दूसरों की बुराई करने में रस लेती थीं।

Class 11 Hindi Chapter 3 Question Answer प्रश्न 9. 
रामरतन मजूमदार के परिवार में ऐसी कौन-सी बातें थीं जो पुरातनपंथी बंगाली समाज के विपरीत थीं? 
उत्तर : 
रामरतन मजूमदार का परिवार चीनी मिट्टी के प्यालों में खाना खा लेता था। उन्हें मुसलमान बैरे से काँच के गिलास में पानी लेने और छोटे भाई की विधवा पत्नी, से बातें करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वे मोजे पहनते, दाढ़ी रखते, क्लब जाते और बातों में दर्शन का पुट देते थे। ये सभी बातें पुरातनपंथी बंगाली समाज के विपरीत थीं। 

प्रश्न 10. 
लेखक ने शरत् को रॉबिनहुड के समान दुस्साहसी व परोपकारी क्यों कहा है? 
उत्तर :
शरत् आधी रात के घोर अँधेरे में जब मनुष्य क्या कुत्ते भी बाहर निकलने में डरते थे। चुपचाप निकलकर अपना काम कर लाता था। वह गरीबों, बीमारों, उपेक्षितों व अनाश्रितों की भरपूर सहायता करता था। अतः लेखक ने शरत् को रॉबिन हुड के समान दुस्साहसी व परोपकारी कहा है। 

लयू एवं दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -

प्रश्न 1. 
स्कूल की आधी छुट्टी होने पर शरत् ने क्या किया? 
उत्तर : 
स्कूल की आधी छुट्टी होने पर शरत् ने अपने मामा सुरेन्द्र गांगुली से कहा-"चलो पुराने बाग में घूम आयें।" उस समय खूब गर्मी थी। बाग में न फूल थे न फल, परन्तु पेड़ों की सघन छाया में निस्तब्धता में बैठना अच्छा लगता था। नाना के घर से जाने के विचार से शरत् दुःखी था पर कहता कुछ नहीं था। सुरेन्द्र उससे आयु में छोटा किन्तु नाते से मामा था, परन्तु दोनों में ही मित्रता का सम्बन्ध था। बाग में पहुँचकर पेड़ों के पास घूमते-घूमते मन में ही व उनसे विदा लेने लगा। अचानक वह एक पेड़ की डाल पर चढ़ गया और बातें करने लगा। 

उसकी बातों का न कोई अन्त था, न कोई सूत्र। विदा होने के दुःख को छिपाने के लिए वह बोलता ही जा रहा था। उसने सुरेन्द्र से कहा कि वह दुःखी न हो, वह फिर भागलपुर वापस आयेगा। अच्छा लगता था। वह शरत् के नाना का घर था। वहाँ गंगा के घाट के टूटे स्तूप से गंगा में कूदने में उसे मजा आता था। झाऊ के वन उसे प्रिय थे। कुछ क्षण चुप रहने के बाद शरत् ने कहा-'पेड़ पर चढ़ना बड़ा जरूरी है। यदि जंगल में रात हो जाये, अन्धेरा हो जाये, जंगली पशुओं का खतरा हो तो पेड़ पर चढ़कर बचा जा सकता है।' सुरेन्द्र के कहने पर कि यदि गिर पड़े तो शरत् और ऊपर चढ़ गया। उसने एक कपड़े से कमर को मोटी शाखा से बाँध लिया और बोला-'गिरेंगे कैसे? इस तरह सोकर रात काटी जा सकती है।'

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 2. 
शरत् अपने नाना के घर कब आया था? पहली बार आने पर नाना ने क्या किया था? 
उत्तर : 
शरत् तीन वर्ष से अपने नाना के यहाँ रह रहा था। वह तीन वर्ष पूर्व यहाँ आया था। जब पहली बार शरत् अपने नाना के घर आया था, उस समय वह बहुत छोटा था। उस समय उसकी माँ उसे लेकर आई थी। तब उसके नाना-नानी ने उसको खूब भेंट दी थीं। उस पर धन की वर्षा कर दी थी। उसको अनेक अलंकार प्रदान किये गये थे। उसके नाना केदारनाथ ने उसकी कमर में सोने की तगड़ी.पहनाई थी और प्यार से उसको अपनी गोद में उठा लिया था। ननिहाल में इतना प्यार मिलने का कारण यह था कि इस परिवार में जन्म लेने वाला नई पीढ़ी का वह पहला लड़का था। तब से वह अनेक बार अपने नाना के घर आ चुका था, परन्तु तीन साल पहले वहाँ आना कुछ भिन्न प्रकार का था। 

प्रश्न 3. 
शरत् के पिता मोतीलाल का व्यक्तित्व किस प्रकार का था? 
उत्तर : 
शरत् के पिता मोतीलाल स्वप्नदर्शी स्वभाव के मनुष्य थे। उनको इधर-उधर घूमना-फिरना पसन्द था। घुमक्कड़ी उनकी प्रकृति में थी। वह साहित्यिक रुचि के व्यक्ति थे। कविता लिखने के साथ-साथ वह कहानी, उपन्यास, नाटक सभी कुछ लिखते थे। चित्रकला में भी उनकी रुचि थी। उनमें सौन्दर्यबोध भी कम नहीं था। सुन्दर कलम में नया निब लगाकर बढ़िया कागज पर वह मोती जैसे सुन्दर अक्षरों में रचना आरम्भ करते थे। 

रचना आरम्भ तो होती थी, किन्तु उसका अन्त कभी नहीं होता था। एक को बीच में छोड़कर दूसरी नई रचना आरम्भ कर देते थे। शायद उनका आदर्श बहुत ऊँचा था अथवा शायद अन्त तक पहुँचने की उनमें क्षमता ही नहीं थी। उनकी कोई भी रचना पूरी नहीं हो सकी। एक बार उन्होंने भारतवर्ष का विशाल मानचित्र बच्चों के लिए बनाना आरम्भ किया, किन्तु मन में प्रश्न उठा-क्या इसमें हिमाचल की गरिमा का ठीक-ठीक अंकन होगा? बस, फिर वह काम आगे बढ़ ही नहीं सका। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 4. 
शरत् द्वारा अपने परिवार के साथ नाना के घर आकर रहने का क्या कारण था? 
उत्तर :
शरत् के पिता घुमक्कड़ी प्रकृति के थे। साहित्य में भी उनकी रुचि थी। अपनी प्रकृति के अनुसार वह कोई भी रचना पूरी नहीं कर सके। जीविका का कोई भी धन्धा उन्हें बाँधकर नहीं रख सका। चारों ओर से लांछित होकर वह बार-बार काम तलाश करते थे। नौकरी मिल भी जाती थी, परन्तु उनके साहित्यकार मन को दासता का वह बन्धन अच्छा नहीं लगता था। परिणाम होता था बड़े साहब से झगड़ा और नौकरी का परित्याग। 

फिर बेकारी और परिवार के पालन की समस्या। जब परिवार का पालन-पोषण उनके लिए असम्भव हो गया तो शरत् की माँ भुवनमोहिनी ने पहले तो अपने पति से बुरा-भला कहा फिर अपने पिता केदारनाथ से याचना की और अपने पूरे परिवार के लेकर वह भागलपुर आ गई। मोतीलाल एक बार फिर घर जवाँई बनकर रहने लगे। इन परिस्थितियों में तीन वर्ष पूर्व शरत् भागलपुर आया था। 

प्रश्न 5. 
भागलपुर में शरत् की शिक्षा किस प्रकार हुई? 
उत्तर : 
शरत् अपने माता-पिता के साथ भागलपुर आकर नाना के घर रह रहा था। भागलपुर में शरत् को दुर्गाचरण एम. ई. स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती कर दिया गया। नाना स्कूल के मन्त्री थे। अतः उसकी शिक्षा-दीक्षा की खोज-खबर, किसी ने नहीं ली। उसने अब तक ‘बोधोदय' ही पढ़ा था। यहाँ पर उसको 'सीता-वनवास', 'चारु पाठ', 'सद्भाव-सद् और प्रकांड व्याकरण पढ़ना पड़ा। पढ़ाई के साथ ही प्रतिदिन पंडित जी के सामने खड़े होकर परीक्षा भी देनी पड़ती थी। इससे निःसन्देह शरत् को बहुत कष्ट उठाना पड़ता था और भूल होने पर दण्डित होना पड़ता था। 

उसकी आँखों से आँसू टपकने लगते थे। जल्दी ही शरत् को यह बात समझ में आ गई कि वह क्लास में बहुत पीछे है। उसको यह बात सहन नहीं हुई। उसने कठोर परिश्रम करना आरम्भ कर दिया। देखते-देखते अन्य अनेक बच्चे पढ़ाई में उससे पीछे रह गये और शरत् की गिनती अच्छे बच्चों में होने लगी। नाना के परिवार के अन्य बच्चों के साथ शरत् घर पर भी अक्षय पण्डित से पढ़ा करता था। 

प्रश्न 6. 
'बीच-बीच में सिंह-गर्जना के साथ-साथ रुदन की करुण ध्वनि भी सुनाई देती रहती थी।' उपर्युक्त कथन किस सन्दर्भ में कहा गया है? 
उत्तर : 
स्कूल के बाद शरत् घर पर भी पढ़ाई करता था। वहाँ उसके साथ मणीन्द्र भी पढ़ता था। शरत् के नाना कई भाई थे। वह एक संयुक्त परिवार में रहते थे। इसलिए शरत् के मामाओं तथा मौसियों की संख्या काफी थी। मणीन्द्र छोटे नाना अघोरनाथ का बेटा था। वह मणीन्द्र का सहपाठी था। नाना ने उन दोनों को घर पर पढ़ाने के लिए अक्षय पण्डित को नियुक्त कियां था। अक्षय पण्डित का स्वभाव अत्यन्त कठोर था। वह यमराज के सहोदर थे। 

उनका मानना था कि विद्या गुरु के डण्डे में निवास करती है। भूल उनको सहन नहीं थी। उसकी कोई क्षमा भी नहीं थी। पढ़ाते समय वह बहुत तेज आवाज में चिल्लाते तथा डाँट लगाते थे। वह अपने शिष्यों को कठोरतापूर्वक दण्ड देते थे। वह तेज आवाज में डाँटते जाते थे, उधर दण्ड के कारण उनके शिष्य रोते रहते थे। बाहर से सुनने वालों को उनकी कठोर-कर्कश आवाज के साथ शिष्यों के रोने की करुणाजनक आवाज भी सुनाई देती थी।

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 7.
पढ़ाई करने के साथ-साथ शरत् के शरारत करने से सम्बन्धित घटना का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर :
पढ़ाई के साथ शरारत भी चलती थी। शरत् इसमें अग्रणी था। तेल के जलते दिये के चारों ओर बैठकर शरत् और उसके मामा पढ़ा करते थे। एक दिन वहाँ एक चमगादड़ आ गया और बच्चों के सिर पर मँडराने लगा। छोटा मामा देवी सोया पड़ा था क्योंकि नाना पहले ही सो गये थे। तब बाकी बच्चे कैसे पढ़ते? चमगादड़ को देखकर शरत् और मणीन्द्र ने लाठियाँ उठा ली और वे उसे पकड़ने दौड़ पड़े। इस काम में जो युद्ध मचा, उसमें चमगादड़ तो जंगल में निकलकर भाग गया, किन्तु लाठी दिये में जा लगी। 

इससे दिये का तेल चादर पर फैल गया और दिया बझकर नीचे गिर पड़ा। यह मणीन्द्र वहाँ से भाग गये। नाना की आँख खुली तो अन्धेरा देखकर नौकर को पुकारा। उसके आने पर पूछा-"बाती कैयूं बुत्त गया?" दियासलाई जलाकर नौकर मुशाई ने देखा तो वहाँ शरत् और मणि नहीं थे। देवी सोया पड़ा था। उसने बताया-मणि और शरत् खाना खाने गये हैं; देवी ने बत्ती गिरा दी है। केदारनाथ ने देवी को कान पकड़कर उठाया और मुशाई को आदेश दिया-इसे ले जाकर अस्तबल में बन्द कर दो।। 

प्रश्न 8. 
स्कूल की घड़ी समय से आगे किस कारण चला करती थी? इसका कारण कैसे पता चला? 
उत्तर : 
स्कूल की घड़ी को ठीक रखने का भार अक्षय पण्डित पर था। दो घण्टे खूब कसकर काम करने के बाद तम्बाकू खाने के लिए वह कमरे से बाहर चले जाते थे। उसी समय शरत् की प्रेरणा से दूसरे छात्र उस घड़ी को आगे कर देते थे। कई दिन उनकी चोरी न पकड़ी गई तो उनका साहस बढ़ गया। अब घड़ी आधा घण्टा एक घण्टा आगे चलने लगी। एक बार तीन का समय था मगर घड़ी में चार बजे थे। अभिभावकों के मन में सन्देह होने लगा। 

शंका तो पण्डित जी के मन में भी थी। एक दिन तम्बाकू खाने के बाद वह जल्दी ही लौट आये। उन्होंने देखा कि बच्चे एक-दूसरे के कन्धों पर चढ़कर घड़ी को आगे कर रहे थे। वह जोर से चिल्लाये तो लड़के वहाँ से भाग गये मगर शरत् भले लड़के का अभिनय करता हुआ . वहाँ बैठा रहा। उसने कहा "पण्डित जी मैं आपके पैर छूकर कहता मुझे कुछ पता नहीं। मैं तो सवाल निकाल रहा था।" अपने असीम साहस तथा सूझबूझ के कारण वह घर में मामाओं तथा स्कूल में विद्यार्थियों का दलपति बन गया था। 

प्रश्न 9. 
शरत् को किन बातों का शौक था? 
उत्तर : 
शरत् के अनेक शौक थे। उसे पक्षी पालना, पशु पालना और उपवन लगाने का शौक था। उनमें सबसे प्रमुख शौक था तितली-उद्योग। विभिन्न प्रकार तथा रंगों वाली तितलियाँ एक काठ के सन्दूक में रखी गई थीं। शरत् यत्नपूर्वक उनकी देखभाल करता था, उनकी रुचि के अनुसार उनको भोजन देता था। उनके युद्ध का प्रदर्शन भी होता था। उसके साथी इस कारण उसकी सहायता करके अपने को धन्य मानते थे। 

उसके साथियों में घर-परिवार के बच्चों के साथ नौकरों के बच्चे भी शामिल थे। इनमें वह कोई भेदभाव नहीं करता था। अपने उपवन में शरत् ने अनेक प्रकार के फूलों के पौधे तथा लतायें लगा रखी थीं। ऋतु के अनुसार जूही, बेला, चन्द्रमल्लिका और गेंदा आदि के फूल खिलते थे। शरत् और अन्य बच्चे उन्हें देखकर प्रसन्न हो उठते थे। इस उपवन में गड्ढा खोदकर एक तलैया बनाई गई थी। उस पर शीशे का आवरण था। शीशे पर मिट्टी का लेप रहता था। कोई विशिष्ट व्यक्ति आता तो मिट्टी हटाकर उसे दिखाया जाता था, जिससे वह चकित हो उठता था। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 10. 
शरत् के नानाओं के बच्चों की पढ़ाई के बारे में क्या विचार थे? 
उत्तर : 
शरत् के नानाओं के बच्चों की पढ़ाई के बारे में परम्परावादी विचार थे। वे बच्चों के खेलकूद तथा जिज्ञासा के कारण होने वाले अन्य क्रिया-कलापों को पसन्द नहीं करते थे। उनका अनुशासन कठोर था। शरत् तथा उसके साथियों को बहुत से काम उनसे छिपाकर करने होते थे। पकड़े जाने पर कठोर दण्ड मिलना निश्चित था। उनकी मान्यता थी कि बच्चों को केवल पढ़ने का ही अधिकार है। खेलने-कूदने, प्यार, आदर देने से उनका जीवन नष्ट हो जाता है। 

सबेरे स्कूल जाने से पहले घर के बरामदे में उन्हें चिल्ला-चिल्लाकर पढ़ना चाहिए। शाम को स्कूल से लौटकर रात के भोजन तक चण्डी मण्डप में दिये के चारों ओर बैठकर पाठ याद करना चाहिए। इससे ही वे प्रसन्न होते थे। इस नियम को भंग करने पर कठोर दण्ड मिलता था। उन्हें घण्टों एक पैर पर खड़ा रहना पड़ता था। अनुशासन के बीच खेलने का समय मिलना कठिन था, परन्तु शरत् को आँखों में धूल झोंकने की कला आती थी।

प्रश्न 11. 
अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई के अतिरिक्त शरत् को किन बातों में अधिक आनन्द आता था? 
उत्तर : 
अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते समय भी शरत् की प्रतिभा में कोई कमी नहीं हुई थी। उसको पढ़ाई के अतिरिक्त पतंग । उड़ाने, गुल्ली-डण्डा खेलने, गोली खेलने, लटू घुमाने आदि खेल पसन्द थे। गांगुली परिवार में इनका प्रबल निषेध था। पतंग उड़ाना तो ऐसे वर्जित था जैसे शास्त्रों में समुद्र यात्रा वर्जित थी। वह पतंग उड़ाने में प्रवीण था। विरोधी की पतंग को क्षणभर में काट देता था। उसका माँझा विश्वविजयी था। 

शून्य में लटू मारकर वह उसे आसानी से हथेली पर उठा लेता था। बाग से फल चुराने की कला भी उसे आती थी। मालिकों की तमाम कोशिशों के बाद भी वह बाग से फल चुरा लाता था। पकड़े जाने पर वीरों की तरह दण्ड भुगतता था। शिकायत आने पर माँ उसे एक पैर पर खड़े होने की सजा देती होगी जिसे शरत् ने बिना प्रतिवाद के स्वीकार किया होगा। वह खिलाड़ी था। उसे विद्रोही भी कह सकते हैं। उस समय के मापदण्ड के अनुसार उसको बदमाश की उपाधि मिली हुई थी, परन्तु वह किसी भी दृष्टि से बदमाश नहीं था।

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 12. 
शारीरिक सौष्ठव तथा स्वास्थ्य के लिए शरत् क्या करता था? 
उत्तर : 
स्कूल में पढ़ते समय शरत् को अपने शरीर का भी ध्यान रहता था। नाना के घर के.पास गंगा के ठीक ऊपर एक सुनसान मकान था। लोगों की मृत्यु होने पर उसे अभिशाप मानकर उसे छोड़ दिया गया था। उस भूतावास में शरत् ने छिपाकर कुश्ती लड़ने का एक अखाड़ा तैयार किया था। गोला फेंकने के लिए गंगा में से गोल बड़े पत्थर लाये गये थे। संध्या के झुटपुट में चार-पाँच लड़कों ने बाँस काटकर रात में ही 'पैरेलल बार' तैयार की। 

शरत् का विश्वास था कि तैरने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। गंगा घर के पास थी। कभी-कभी वह दूर चली जाती थी। उस साल भी ऐसा ही हुआ था। बीच-बीच में छोटे-छोटे ताल बन गये थे। उनमें लाल लाल जलभर गया था। एक दिन वह मणि के साथ ताल में स्नान करने गया। अघोरनाथ को जब यह पता चला तो मणि की बहुत पिटाई हुई। वह सात-आठ दिन में ठीक हो पाया। शरत् तीन दिन तक गोदाम में छिपा रहा। तीसरे दिन जब नाना घोड़े पर सवार होकर चले गये तभी वह गोदाम से बाहर निकला। 

प्रश्न 13. 
शरत् को कैसी पुस्तकें पढ़ने का शौक था?
उत्तर : 
खेलकूद के साथ-साथ शरत् को पुस्तकें पढ़ने का भी शौक था। वह अपने स्कूल की पुस्तकें ही नहीं पढ़ता था, पिता के संग्रहालय में जो भी पुस्तक उसके हाथ लग जाती उसे वह छिपकर पढ़ता था। वह स्कूल के पुस्तकालय से लेकर भी पुस्तकें पढ़ता था। उसने अपने युग के प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ यहाँ से ही प्राप्त करके पढ़ी थीं। पिता के संग्रह में उसे एक दिन ऐसी पुस्तक मिली जिसमें दुनिया भर के विषयों की चर्चा थी। पुस्तक का नाम था-"संसार कोश।" 

विपत्ति में गुरुजनों के दण्ड से बचने का मंत्र भी इस पुस्तक में था। मंत्र था-'ओम, हं, धू, , रक्ष रक्ष, स्वाहा।' साँपों को बस में करने का एक मंत्र भी उस पुस्तक में मिला। शरत् ने उसकी परीक्षा करनी चाही। बहुत तलाश करने पर अमरूद के पेड़ के नीचे साँप का एक बच्चा मिला। छेड़ने पर उसने फन ऊपर उठा लिया। उसे जड़ी दिखाई गई मगर उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। सिर झुकाने की बजाय वह जड़ी को बार-बार डसने लगा। तब शरत् की मण्डली ने उस बाल सर्प को मार डाला। उस समय शरत् को यह नहीं पता था कि जड़ी दिखाने से पहले गरम लोहे की सींग से साँप का मुँह दाग दो तो वह जड़ी दिखाते ही भाग जाता है।

प्रश्न 14. 
शरत् का तपोवन कैसा था तथा कहाँ था? 
उत्तर : 
घोष परिवार के मकान के उत्तर में गंगा के पास एक कमरे के नीचे जीम और करोंदे के पेड़ों से घिरा एक अन्धेरा स्थान था। अनेक लताओं से ढका होने के कारण वहाँ प्रवेश करना मुश्किल था। उसके अन्दर शरत् ने साफ करके थोड़ी-सी जगह बना ली थी। उसमें एक पत्थर रखा था। शरत् वहाँ एकान्त की कामना से जाकर बैठता था। वह वहाँ बैठकर सोच-विचार करता था। बड़ी-बड़ी बातें वहाँ उसके दिमाग में आती थीं। वहाँ दूर से शरारत करते हुए बच्चों की आवाजें आती थीं और गंगा की कल-कल ध्वनि से मिलकर एक रहस्यमय वातावरण का निर्माण करती थीं। 

वह स्थान प्रकृति के सौन्दर्य से युक्त था। उसके अन्दर हरी लताओं से छनकर सूर्य की उज्ज्वल किरणें आती थीं, जिससे वहाँ एक कोमल हरित प्रकाश फैल जाता था। एकान्त और स्तब्ध स्थान शरत् को अत्यन्त प्रिय था। एक बार बहुत आग्रह करने पर वह सुरेन्द्र को वहाँ ले गया था। इससे पूर्व उसने सुरेन्द्र से प्रतिज्ञा ले ली थी कि उस बारे में वह किसी को कुछ नहीं बतायेगा। इस स्थान को देखकर मुग्ध होकर सुरेन्द्र ने कहा था-यह स्थान बहुत सुन्दर है। ऐसा लगता है कि जैसे मैं तपोवन में आ गया हूँ। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 15. 
"अपराजेय कथाशिल्पी शरत्चन्द्र के निर्माण में कुसुमकामिनी का जो योगदान हैं, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।"इस कथन से शरत् के जीवन की किस घटना का पता चलता है? 
उत्तर : 
नाना के परिवार में शरत् की प्रतिभा को पहचानने वाला कोई नहीं था। नाना के चौथे भाई केदारनाथ ही उसको कुछ समझते थे। दुर्भाग्यवश उनकी असमय मत्यु हो गई। उनकी कमी किसी प्रकार सबसे छोटे नाना अघोरनाथ की पत्नी कुसुमकामिनी ने पूरी की। छात्रवृत्ति परीक्षा पास करने पर उनको ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के हाथों पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उनकी रुचि साधारण घरेलू स्त्रियों से भिन्न थी। रसोई बनाने की अपनी बारी न होने पर वह उस दिन अपनी बैठक में गोष्ठी करती थीं। वहाँ वह 'बंगदर्शन' के अतिरिक्त 'मृणालिनी', 'वीरांगना', 'मेघनाद वध', 'नील दर्पण' आदि पढ़कर सुनाती थीं। 

बालक शरत् यह सुनकर साहित्यकार की महानता के प्रति आदर और आश्चर्य से भर जाता था। एक दिन शरत् को 'बंगदर्शन' में कविगुरु की युगान्तरकारी रचना 'आँख की किरकिरी' पढ़ने को मिली। शरत् को उसे पढ़कर गहरा आनन्द आया। उसने कविगुरु को अपना गुरु मान लिया। शरत् की शिक्षा का आदिपर्व कुसुमकामिनी की इसी पाठशाला से आरम्भ हुआ था। यहाँ शरत् के मन में लेखक बनने का विचार तो नहीं आया, परन्तु साहित्यकार के प्रति महान् श्रद्धा उनके मन में जाग उठी। शैशव से यौवन तक यह क्रम बिना व्यवधान के चलता रहा। "अपराजेय कथाशिल्पी शरत्चन्द्र के निर्माण में कुसुमकामिनी का जो योगदान है उसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।" 

प्रश्न 16. 
राजू कौन था? शरत् के साथ उसकी मित्रता किस प्रकार हुई? 
उत्तर : 
गांगुली परिवार के मकान के पास राजू के पिता रामरतन मजूमदार का घर था। वे भागलपुर में डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर थे। उनके परिवार में कुछ ऐसी बातें थीं कि पुरातनपंथी बंगाली समाज उन्हें र वार में कछ ऐसी बातें थीं कि परातनपंथी बंगाली समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता था। चीनी मिटटी के बर्तनों में खाना, मुसलमान बैरे से काँच के गिलास में पानी ले लेना, छोटे भाई की विधवा से बातें करना, मोजे पहनना, दाढ़ी रखना, क्लब जाना आदि से उनको आपत्ति न थी। राजू ने अपने पिता की तरह स्वाधीन चेतना की परम्परा को चरम सीमा तक पहुँचा दिया था। 

पतंग उड़ाने में राजू शरत् की तरह पारंगत था। वे दोनों एक-दूसरे को हराने की स्वाभाविक कामना रखते थे। पैसे के बल पर राजू पतंग का बढ़िया-से-बढ़िया सामान खरीद लेता था। शरत् के पास पैसा नहीं था मगर वह बोतल के काँच को मैदा की तरह पीसकर बढ़िया माँझा तैयार कर लेता था। शनिवार संध्या समय आसमान में शरत् की गुलाबी पतंग उड़ रही थी। राजू की सफेद पतंग उसकी ओर बढ़ रही थी। द्वन्द्वयुद्ध आरम्भ हुआ। पेंच लड़े जाने लगे। 'वह मारा' 'वह काटा' की कर्णभेदी आवाजें आने लगी। सहसा सफेद पतंग कटकर धरती पर आ पड़ी। शरत् की प्रसन्नता असीम। उसी दिन राजू ने पतंग का सभी सामान गंगा में बहा दिया। इसी घटना के बाद वे दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए और दोनों में मित्रता हो गई। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 17. 
देवानन्दपुर कैसा गाँव था? शरत् का उससे क्या सम्बन्ध था? 
उत्तर : 
देवानन्दपुर बंगाल का एक साधारण गाँव था। वहाँ हरियाली खूब थी। ताल-तलैया और नारियल तथा केले के पेड़ थे। मलेरिया भी खूब फैलता था। नबाबी शासन में वह फारसी भाषा की शिक्षा का केन्द्र था। डेढ़ सौ साल पहले रायगुणाकर कवि भारतचन्द्र राय ने किशोरावस्था में यहाँ रहकर फारसी सीखी थी। इसकी गणना सप्त ग्रामों में होती थी। 

शरत् के पिता मोतीलाल चौबीस परगना जिले में कांचड़ापाड़ा के पास मामूदपुर के रहने वाले थे। उनके पिता बैकुण्ठनाथ चट्टोपाध्याय थे। वहाँ के जमींदार के पक्ष में गवाही न देने के कारण उनकी हत्या कर दी गई थी। मोतीलाल तब बहुत छोटे थे। उनकी माँ अत्यन्त दु:खी हुई। जमींदार के भय के कारण जल्दी-जल्दी पति की अन्तिम क्रिया समाप्त करके रातोरात वह अपने भाई के पास देवानन्दपुर चली आई। मोतीलाल का विवाह भागलपुर से केदारनाथ गंगोपाध्याय की पुत्री भुवनमोहिनी से हुआ था। मोतीलाल नौकरी करते थे। मामा द्वारा दी गई जमीन पर उन्होंने दक्षिणद्वारी दो कोठरियों का पक्का एक मंजिला घर बनवा लिया था। यहाँ पर ही 15 सितम्बर, 1876 ई. शुक्रवार की शाम शरत् का जन्म हुआ था। 

प्रश्न 18. 
शरतचन्द्र के प्रसिद्ध उपन्यास 'देवदास' की 'पारो' के चरित्र में शरत् के बचपन की किस घटना का प्रतिबिम्ब है? 
उत्तर : 
शरत् के उपन्यास 'देवदास' की 'पारो' के चित्रण में शरत् के बचपन में घटी घटनाओं तथा उसके सम्पर्क में आई उसकी सहपाठी धीरू का गहरा योगदान है। देवानन्दपुर में शरत् प्यारी (बंधोपाध्याय) पण्डित की पाठशाला में पढ़ता था। वह बचपन में अत्यन्त शरारती था। पाठशाला में पण्डितजी का बेटा काशीनाथ भी पढ़ता था। वह शरत् का परम मित्र था। उसी स्कूल में उसके एक मित्र की बहन धीरू भी पढ़ती थी। न जाने उससे शरत् की मित्रता कैसे हुई? वे अक्सर साथ-साथ घूमते थे। नदी या तालाब पर मछली पकड़ना, नाव द्वारा नदी में सैर करना, बाग से फल चुराना, पतंग का सामान तैयार करना, जंगल में घूमना आदि कार्यों में वह शरत् के साथ रहती थी। 

वह एक-दूसरे को जितना चाहते थे उतना झगड़ते भी थे। धीरू करौंदों की माला तैयार करके शरत् को देती थी। शायद उस समय वह माल्यार्पण का अर्थ नहीं जानती थी, परन्तु बड़ी होने पर समझ गई थी। एक दिन शरत् देवदास की तरह पाठशाला के कमरे में फटी चटाई पर बैठा था। पण्डित जी सो रहे थे उनकी टूटी बैंच पर कक्षा का प्रमुख छात्र भोलू बैठा था और स्वयं को पण्डितजी ही समझ रहा था। शरत् इस समय पतंग उड़ाना चाहता था। वह सवाल समझ में न आने का बहाना बनाकर उसके पास गया और उसे चूने के ढेर में धकेल दिया। भोलू रोने लगा। धीरू उसे देखकर हँसने लगी। पण्डित जी जाग गये परन्तु शरत् वहाँ से भाग चुका था। उसको पकड़ने के सभी प्रयास व्यर्थ हुए। 

धीरू को पता था कि वह कहाँ होगा। अपने आँचल में कुछ भूड़ी बाँधकर वह जमींदार के आम के बाग में गई। वहाँ शरत् बाँस के भिढ़ा के पास हुक्का पी रहा था। उसने धीरू के आँचल से लेकर भूड़ी खाई और पानी माँगा। पानी था नहीं। शरत् स्वयं पानी पीने जाना नहीं चाहता था उसने धीरू को पानी लाने का आदेश दिया। वह नहीं गई तो उसकी पीठ पर एक चूंसा मारा। धीरू ने धमकी दी कि वह शरत् की माँ को उसके हुक्का पीने की बात बता देगी। उस दिन माँ ने शरत् को खूब पीटा। धीरू भी पीटी, परन्तु दोनों की मित्रता में कमी नहीं आई। यह घटना 'देवदास' में साकार हो उठी है। देवदास तथा पारो के वर्णन में इसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब है। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 19. 
शरत् बसंतपुर जाना क्यों चाहता था? मार्ग में क्या घटना हुई? 
उत्तर : 
शरत् के मोहल्ले का नयन बागदी बसन्तपुर गाय लेने जा रहा था। शरत् ने सोचा कि बसन्तपुर में छीप बनाने के लिए बढ़िया बाँस मिलता है। वह चुपचाप नयन के पीछे चल दिया। एक मील चलने पर उसने शरत् को देखा। लौटने के लिए तैयार न होने पर वह शरत् को पकड़कर दादी के पास लाया। रास्ता खतरनाक है, यह जानकर दादी ने शरत् को जाने से मना किया। नयन चला गया। शरत् भी पोखर में नहाने का बहाना करके घर से निकल पड़ा। नदी किनारे दो-ढाई मील दौड़कर वह ऐसे स्थान पर पहुंचा, जहाँ गाँव का कच्चा रास्ता जी. टी. रोड से मिलता था। 

मजबूर होकर नयन को उसे साथ लेना पड़ा। बसन्तपुर पहुँचने पर नयन की बुआ ने खूब खातिर की। नयन को गाय तथा शरत् को बाँस की कमचियाँ मिलीं। रुपये भी बुआ ने लौटा दिये। लौटते समय दिन डूबने लगा था, दो कोस भी नहीं चले थे कि चाँद निकल आया। रास्ते में घने पेड़ों के कारण अन्धेरा था। कच्चे रास्ते पर घना जंगल था। इस जगह लुटेरे आदमी को मारकर गाड़ देते थे। सहसा उन्हें कुछ दूर किसी की चीख सुनाई दी। लाठियों के बरसने की आवाज हुई, फिर सन्नाटा छा गया। नयन सावधान होकर आगे बढ़ा। कुछ आगे एक भिखारी मरा पड़ा था। नयन को क्रोध आ रहा था। 

उसने शरत् से कहा कि वह हत्यारों को मारकर ही आगे बढ़ेगा। उसने वहाँ पड़े हुए पाबड़ों में से एक स्वयं उठा लिया और एक शरत् को दे दिया। वे पेड़ के पीछे छिप गये। लुटेरे भिखारी की तलाशी लेने आये। उनमें से एक ने नयन को देख लिया। उसके चिल्लाने पर वे सब भाग गये। मगर वह अकेला पकड़ा गया। नयन उसे मार डालना चाहता था, परन्तु शरत् के कहने पर उसे बेहोशी की अवस्था में छोड़कर वे आगे बढ़ गये। 

प्रश्न 20. 
शरत् के कारण देवानन्दपुर के लोग क्यों दःखी थे? 
अथवा 
शरत की तलना रॉबिनहड से क्यों की गई है? 
उत्तर : 
शरत् शरारती था। देवानन्दपुर आने के बाद भागलपुर के नाना का अनुशासन भी नहीं रहा था। घर में घोर निर्धनता थी। पढ़ाई के लिए फीस नहीं थी। शरत् वहाँ शरारती बच्चों के साथ दिन काट देता था। धीरे-धीरे वह उन बालकों का सरदार बन गया। विद्या पीछे छूट गई और हाथ में आ गई दुधारी छुरी। उसे लेकर वह-दिन रात घूमता था। उसके भय के कारण उसके दल के सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी। वह दूसरे के बागों से फल-फूल चोरी करता था, दूसरे के तालों से मछलियाँ पकड़ता था, परन्तु उनको गरीब लोगों में बाँट देता था। 

फल और मछली को छोड़कर वह और किसी चीज को हाथ भी नहीं लगाता था। कुछ इस कारण और कुछ भयवश कोई उसका विरोध नहीं कर पाता था। बहुत से निर्धन व्यक्ति उसकी लूट पर पलते थे। गाँव में निर्धनों की संख्या बहुत थी। भूख और बीमारी थी। शरत् का दल चोरी के फलों और मछलियों को बेचकर बीमारों के लिए दवा-दारू की व्यवस्था कर देते थे। वे स्वयं बीमारों की सेवा भी करते थे। अन्धेरी रात में लाठी और लालटेन लेकर मीलों दूर शहर से वे दवा और डॉक्टर को ले आते थे। 

जहाँ गाँव के कुछ लोग उनसे परेशान थे वहाँ अधिकांश . लोग मन-ही-मन उनको प्यार करते थे। शरत् चोर नहीं था। घर में भयंकर गरीबी थी परन्तु उसने अपने घर की कभी चिन्ता नहीं की। आधी रात के घने अन्धेरे में जब मनुष्य तो क्या कुत्ते भी निकलने में डरते थे, वह चुपचाप निर्दिष्ट बाग में या ताल में जाकर फल या मछली चुरा लाता था और उन्हें जरूरतमंदों में बाँट देता था! वह रॉबिनहुड के समान दुस्साहसी और परोपकारी था। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 21. 
नीरू कौन थी? उसके सम्बन्ध में किस निषेध को शरत ने नहीं माना था? 
उत्तर : 
गाँव में एक ब्राह्मण की बाल विधवा पुत्री थी. नाम था नोख बत्तीस साल की उम्र तक कोई कलंक उसके चरित्र को छू भी नहीं पाया था। वह सुशील, परोपकारिणी, धर्मशीला जार होने के कारण प्रसिद्ध थी। वह रोगी की सेवा करने, दुःखी को सान्त्वना देने, जरूरतमंद की सहायता करने और आवश्यकता होने पर महरी का काम करने में भी पीछे नहीं रहती थी। शरत् उसे दीदी कहता था। वह भी शरत् को चाहती थी, दीदी का अचानक बत्तीस वर्ष की उम्र में पदस्खलन हुआ।

गाँव के स्टेशन पर परदेशी स्टेशन मास्टर उसको कलंकित करके भाग गया। गांव के लोग उसके सभी उपकारों को भूल गये और इस अपराध के लिए उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। असहाय नीरू मरणासन्न हो गई, परन्तु कोई उसके पास नहीं आया। शरत् को भी वहाँ जाने की मनाही थी, परन्तु उसने निषेधों की कभी परवाह की थी जो अब करता? रात में वह छिपकर वहाँ जाता, उसके हाथ-पैर सहलाता, कहीं से लाकर एक-दो फल उसे खिला देता। 

नीरू ने इस सामाजिक बहिष्कार का कभी विरोध नहीं किया। शरत् जानता था कि दीदी ने यह दण्ड स्वयं ही अपने को दिया है। जब वह मरी तो किसी भी व्यक्ति ने उसके शव को नहीं छुआ। लोग उसे उठाकर जंगल में फेंक आये। सियार-कुत्तों ने उसे नोंच-नोंचकर खा लिया। 

प्रश्न 22. 
शरत्चन्द्र के प्रसिद्ध उपन्यास 'चरित्रहीन' के आधार में शरत् के जीवन कौन-सी घटनाएँ थीं? 
उत्तर : 
एक परिवार से अक्षयनाथ आदि का घनिष्ठ परिचय था। उसकी स्वामिनी शरत् से आयु में बड़ी थी। वह शरत् को बहुत स्नेह करती थी। वह अचानक बीमार हो गई। किशोर शरत् ने अपने स्वभाव के अनुसार उसकी खूब सेवा-सुश्रूषा की। तभी एक ऐसी घटना हुई कि वह उसे गलत समझ बैठा। उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह घर से निकल पड़ा। चलते-चलते वह थक गया। खाने-पीने और ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं थी। न कोई सुख-सुविधा ही थी। परिणामस्वरूप उसे तीव्र ज्वर हो आया। विवश होकर वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। उसी समय एक विधवा उधर से गुजरी। शायद वह कराह रहा था, उसने पानी माँगा था। 

वह तुरन्त उसके पास गई। छूकर देखा तो उसका हाथ तबे के समान तप रहा था। विधवा करुणा से द्रवित होकर उसे अपने घर ले गई। उसकी अनेक दिनों की ममताभरी सेवा के बाद वह ज्वर से मुक्त हुआ। उस विधवा का एक देवर था तथा एक बहनोई भी था। दोनों उस पर अपना-अपना अधिकार समझते थे तथा उसे अपने साथ रखना चाहते थे। विधवा उनके साथ रहना नहीं चाहती थी। दुःखी होकर एक दिन उसने शरत् से कहा-"तुम ठीक हो गये हो, चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।" 

कहीं जाने के इरादे से वह चुपचाप शरत् के साथ चल पड़ी! निकलने के पीछे मुक्ति पाना ही उसकी चाह थी। वे कुछ दूर ही पहुँचे थे कि उस विधवा के वे दोनों प्रेमी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने किसी से कुछ भी नहीं पूछा। शरत् को खूब पीटा और चीखती-चिल्लाती विधवा को अपने साथ ले गये। शरत को नहीं पता कि उसका फिर क्या हुआ? वह इतना ही समझ पाया कि तुच्चे--लफंगों में एकता होती है और भले लोग अधिक होते हुए भी एक-दूसरे से छिपके रहते हैं। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 23. 
राजू कौन था? शरत् के साथ उसकी मित्रता किस प्रकार हुई? 
उत्तर : 
'आवारा मसीहा' बाँग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार शरत् चन्द्र की जीवनी है। 'दिशाहारा' इसका प्रथम पर्व है। लेखक विष्णु प्रभाकर ने इसमें शरत् की बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था का चित्रण किया है। 'दिशाहारा' के आधार पर शरत्चन्द्र के चरित्र के कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं 

सचमुच दिशाहारा - शरत् का जीवन दिशाहीन है। उसका उद्देश्य क्या है, यह पता नहीं। कुछ भी पहले से निश्चित नहीं है। जीवन निरुद्देश्य है। वह इधर-उधर भटकता है। निश्चय ही वह आवारा है। जब जीवन की कोई दिशा ही नहीं है तो दिशाहारा तो वह है ही। शरत को इसी अवस्था में हम बचपन से किशोरावस्था तक देखते हैं। 

अभाव भरा जीवन - शरत् के पिता जब छोटे ही थे, उसके बाबा की हत्या हो गई थी। उसकी दादी उसे लेकर अपने भाई के पास देवानन्दपुर में जाकर रहने लगी थी। मोतीलाल बड़े हुए तो छोटी-मोटी नौकरी करने लगे। वह स्वतन्त्र विचारों के व्यक्ति थे। कोई काम-धन्धा लगकर नहीं कर पाते थे। घर में हमेशा धन का अभाव रहता था। वह शरत् के स्कूल की फीस भी नहीं दे पाते थे। उन पर ऋण बढ़ता जा रहा था। इसी धनाभाव के कारण शरत् को अपने नाना के यहाँ बहुत समय तक रहना पड़ा था। 

शरारती व चंचल - शरत् बचपन में शरारती और चंचल था। वह स्कूल में भी शरारतें किया करता था। वह अपने समवयस्क मामाओं और स्कूल तथा गाँव के बच्चों का दलपति बन गया था। शरारत तो वह करता था, परन्तु दण्ड से प्रायः बच जाया करता था। 

कुशाग्र बुद्धि - शरत् की बुद्धि कुशाग्र थी। वह परिश्रमी भी था। कक्षा में पढ़ाई में पिछड़ापन उसे स्वीकार नहीं था। वह कक्षा की पुस्तकों के अतिरिक्त पिता के संग्रह से तथा पुस्तकालय से लेकर पुस्तकें पढ़ता था। 

एकान्तप्रेमी, विचारशील - शरत् एकान्त-प्रेमी था। उसने गंगा के किनारे एक सघन कुंज तलाश ली थी। उसको वह तपोवन कहता था। वहाँ बैठकर वह एकान्त में विचार करता था। धीरे-धीरे उसका स्वभाव अन्तर्मुखी होता जा रहा था। 

विद्रोही व्यक्तित्व - शरत् का व्यक्तित्व बहुआयामी था। पशु-पक्षी पालना, उपवन लगाना, तितली पालना, मछली पकड़ना, तैरना, कुश्ती लड़ना और व्यायाम करना, दीन-दुखियों की सहायता करना, रोगियों की सेवा करना इत्यादि कार्य वह रुचिपूर्वक करता था। शरत् की इन विशेषताओं ने ही उसे एक महान कथाशिल्पी बनाया था। 

प्रश्न 24. 
शरत् की माँ भुवनमोहिनी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर : 
शरत् के पिता मोतीलाल का विवाह भागलपुर के केदारनाथ गंगोपाध्याय की दूसरी बेटी भुवनमोहिनी से हुआ था। वह शरत् की माँ थीं। उनके चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

मन की सुन्दरता - भुवनमोहिनी शरीर से नहीं मन से सुन्दर थीं। जीवनी लेखक के अनुसार 'वह सुन्दर नहीं थी, परन्तु वैदूर्य मणि की तरह अन्तर के रूप से रूपसी निश्चित ही थी।' 

पवित्रता - भुवनमोहिनी शान्त प्रकृति की निर्मल चरित्र और उदारवृत्ति की महिला थीं। वह पतिव्रता थीं और अपने पति को गहरा प्रेम करती थीं। 

आत्मत्यागी - त्याग उनके चरित्र का गुण था। उनके पति मोतीलाल अधिक धन नहीं कमाते थे। वह जानती थी कि गृहस्थी कैसे चलती है? 'उन्होंने न कभी गहनों की माँग की न कीमती पोशाक की। आत्मोत्सर्ग ही उनका मूल्य था।'

सेवाभावी एवं परिश्रमी-भुवनमोहिनी परिश्रमी नारी थी। वह सबकी सेवा करती थी तथा सभी का ध्यान रखती थी। पिता के घर रहने पर सारा दायित्व उनका ही था। उनको साँस लेने की भी फुर्सत नहीं होती थी। हमेशा यही आवाज वहाँ गूंजती रहती थी-'कहाँ है भुवन? अरे भुवन बेटी।' कभी-कभी भुवनमोहिनी पति की अकर्मण्यता पर क्षुब्ध हो उठती थी, परन्तु ऐसे अवसर कम ही आते थे। वह बहुत सहनशील थी। एक आदर्श भारतीय महिला के अनेक गुण उनमें थे। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 25. 
शरत् के पिता मोतीलाल के चरित्रगत गुणों पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर : 
'आवाहा मसीहा' जीवनी के नायक शरत् के पिता थे मोतीलाल। मोतीलाल के चरित्र के प्रमुख गुण निम्नलिखित थे -
यायावर एवं स्वप्नदर्शी - मोतीलाल प्रकृति से यायावर तथा स्वप्नदर्शी थे। वह कल्पना जगत में विचरण करते थे। कोई धन्धा उन्हें बाँध नहीं सका। वह नौकरी शुरू करते फिर उसे छोड़ भी देते थे। उनका कलाकार मन दासता स्वीकार नहीं कर पाता था।

दृढ़ता का अभाव - मोतीलाल में दृढ़ता की कमी थी। कहानी, उपन्यास, नाटक सभी कुछ लिखने का शौक था, परन्तु लिखना आरम्भ करके उसे पूरा नहीं करते थे। सम्भवतः उनके आदर्श बहुत ऊँचे थे अथवा पूर्णता की ओर पहुँचने की क्षमता ही उनमें नहीं थी। 

अभाव और निर्धनता - मोतीलाल का जीवन अभावों और निर्धनता में बीता था। परिवार का पोषण भी वह अच्छी तरह नहीं कर पाते थे। शरत् की पढ़ाई का खर्च तथा फीस भी जुटाना उनके लिए कठिन था। उनकी अकर्मण्यता से भुवनमोहिनी भी क्षुब्ध रहती थी। उसको अपने पिता का आश्रय लेना पड़ा था। 

उदार मानव - मोतीलाल एक अच्छे इंसान थे। उनमें सौन्दर्य बोध था। वह उदार थे। वह बच्चों से प्रेम करते थे। उनके लिए कागज के खिलौने बनाते थे। स्लेट पर पेंसिल से उनको सुन्दर अक्षर लिखना सिखाते थे। बच्चों को गंगातट पर घुमाने ले जाते थे। 

घर जवाई - मोतीलाल अपने ससुर के घर जंवाई थे। वहाँ का अनुशासन उनको कचोटता था। लगता था जैसा उनका शरीर भी उनका अपना न हो। उनके गुण भी वहाँ अवगुण हो जाते थे। वह दयालु थे तथा बच्चों को मिली कठोर अमानवीय सजा उन्हें द्रवित कर देती थी। इस प्रकार मोतीलाल गुण और अवगुणों से युक्त एक सामान्य मानव थे। 

प्रश्न 26. 
'जीवनी' किसे कहते हैं। 'आवारा मसीहा' के 'दिशाहारा' पर्व को जीवनी की दृष्टि से इसे आप कैसी रचना मानते हैं? 
उत्तर : 
जीवनी' गद्य-साहित्य की एक विधा है। इसमें किसी एक इतिहास प्रसिद्ध पुरुष अथवा नारी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का चयन करके उसके व्यक्तित्व के बाह्य तथा आंतरिक स्वरूप को स्पष्ट किया जाता है। किसी मनुष्य के जीवन का घटनाओं का तथ्यपरक किन्तु साहित्यिक सरसतापूर्ण वर्णन जीवनी में पूर्ण आत्मीयता के साथ किया जाता है। जिसकी जीवनी लिखी जाती है, वह इतिहास, समाज, कला, साहित्य इत्यादि किस भी क्षेत्र से सम्बन्धित व्यक्ति हो सकता है। 

'आवारा मसीहा' के प्रथम पर्व 'सर्वहारां' में बांग्ला के महान् उपन्यासकार शरत् चन्द्र की जीवनी प्रस्तुत की गई है। लेखक विष्णु प्रभाकर ने जीवनी के नायक शरत् के जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं को इसमें चित्रित किया है। प्रस्तुत अंश में शरत् के बाल्यकाल एवं किशोर अवस्था को ही लेखन का लक्ष्य बनाया गया है। शरत् एक ओर कुशाग्र बुद्धि तथा पढ़ने-लिखने में तेज थे वहीं वह खूब शरारती ,थे, चंचल भी थे। अपनी प्रखर बुद्धि से वह अपने मामाओं, स्कूल के साथियों तथा गाँव के लड़कों के मार्गदर्शक तथा दलपति बन जाते थे। शरारतें करते अच्छा लगता था।

धीरे-धीरे अन्तर्मुखी होने की प्रवृत्ति उनमें बढ़ रही थी और यही उनको एक सफल लेखक बनाने के लिए उत्तरदायी भी थी। साहित्यकार के बनाने में उनके एक अन्य गुण का भी योगदान था। वह परम्परा विरोधी थे तथा अनुचित निषेधों के प्रति विद्रोही थे। समाज के दलितों, पीड़ितों तथा उपेक्षितों के प्रति उनके मन में प्रेम तथा सहानुभूति थी। प्रभाकर जी ने अत्यन्त आत्मीयता के साथ शरत् के इन गुणों को उभारा है। शरत् के व्यक्तित्व को 'सर्वहारा' में प्रस्तुत करने में लेखक को पूर्ण सफलता मिली है। 'आवारा मसीहा' हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण तथा सफल जीवनी है। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 27.
'आवारा मसीहा' के शीर्षक के औचित्य पर विचार कीजिए। 
उत्तर : 
विष्णु प्रभाकर की 'आवारा मसीहा' का हिन्दी के जीवनी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें लेखक नेला भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार शरत् चन्द्र चट्टोपाध्याय के जीवन का सजीव लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। शरत् का जन्म एक अभावग्रस्त निर्धन परिवार में हुआ था। उनके पिता के पास इतना धन नहीं था कि वह शरत् की पढ़ाई की ठीक व्यवस्था कर पाते। वह स्वयं यायावर प्रकृति के थे तथा स्वप्नदर्शी थे। उनके पास इतना समय तथा क्षमता भी नहीं थी कि वह शरत् का ठीक-ठीक मार्गदर्शन करते। शरत् बचपन में अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि था। 

अत: उसकी बुद्धि उसे जहाँ ले जाती वह वहाँ जाता था। उसके जीवन की दिशा क्या है, उसके जीवन का क्या उद्देश्य है, यह कुछ भी पहले से पता नहीं था। वह दिशाहीन इधर-उधर भटक रहा था। कोई मार्गदर्शक नहीं था। सहानुभूति के साथ बात करने वाला भी कोई नहीं था। नाना के घर का कठोर अनुशासन उसे दिशाहीनता की ओर धकेल रहा था। निषेध उसे जीवन की सच्चाई से दूर ले जा रहे थे। दिशाहारा का नायक वास्तव में दिशाहारा ही था। आवारा से तात्पर्य यहाँ सचमुच आवारा से ही है। उचित मार्गदर्शन तथा पूर्व निश्चित लक्ष्य के अभाव में व्यक्ति दिशाहारा और आवारा तो होगा ही। 

इस आवारगी के अन्दर भी कुछ ऐसी बातें हैं जो शरत् को मसीहा का दर्जा दिलाती हैं। वह उदार, स्नेही, मानवता-प्रेमी तथा लोगों की सहायता और सेवा को सदा तत्पर रहने वाला मनुष्य था। नीरू की सामाजिक प्रतिबन्धों और निषेधों को . तोड़कर सेवा-सहायता करना जैसे कार्य एक आवारा को मसीहा की श्रेणी में रख सकते हैं। यह एक जीवनी है और स्वयं शरत् ही इसके केन्द्रबिन्दु हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि विष्णु प्रभाकर की इस जीवनी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। 

प्रश्न 28.
'आवारा मसीहा' में लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर : 
'आवारा मसीहा' बांग्ला उपन्यासकार तथा कथाशिल्पी चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित कालजयी रचना है। हिन्दी के जीवनी साहित्य में इस कृति का एक महत्वपूर्ण स्थान है। लेखक ने इसमें कथाशिल्पी शरत् के जीवन के बचपन तथा किशोरावस्था का वर्णन किया है। कोई भी अच्छी रचना कभी उद्देश्यहीन नहीं हुआ करती। प्रस्तुत रचना में भी शरत् के जीवन के आन्तरिक तथा बाह्य स्वरूप का सफल चित्रण है। अभावों, कठिनाइयों तथा बाल मन के नासमझ लोगों के बीच रहकर ही शरत् बड़े हुए थे। भावी जीवन का आदर्श रूप दिखाने वाला कोई मार्गदर्शक नहीं था। 

प्रेम और स्नेह के साथ उस बालक को समझने और समझाने वाला भी कोई नहीं था। हाँ, कठोर अनुशासन के नाम पर व्यक्तित्व के दमन का वातावरण अवश्य घर में था। ऐसी कठोर एवं विपरीत परिस्थितियों में भी शरत् एक महामानव बन सके और एक संवेदनशील साहित्यकार बन सके, इसके पीछे उनकी लगन तथा अवसर का लाभ उठाने की क्षमता थी। उनके मन की उदारता, सेवा भाव, स्नेहवृत्ति, मानव प्रेम आदि उनको इस ओर ले गये। 

अनीति और अनुचित प्रतिबन्धों का विरोध और निषेधों के प्रति विद्रोह ने उनको सफल साहित्यकार बनाया। शरत् ने मन ही मन प्रतिज्ञा की थी-'मैं सूर्य, गंगा और हिमालय को साक्षी हूँ कि मैं जीवन भर सौन्दर्य की उपासना करूँगा, कि मैं जीवन भर अन्याय के विरुद्ध लडूंगा, कि मैं कभी छोटा काम नहीं करूँगा।" इसी दृढ़ संकल्प ने उनको महान मानव बनाया था। प्रस्तुत जीवनी से यह संदेश मिलता है कि दृढ़ निश्चय से ही मनुष्य आगे बढ़ता है। 

ईमानदारी तथा सम्बन्ध निर्वाह जैसे मूल्यों से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। प्रतिभा के विकास का अवसर हर समय नहीं मिलता परन्तु जब अवसर मिलता है तो उसका बिना चूके उपयोग करना चाहिए। मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर सकता किन्तु विशेष क्षेत्र में। अच्छा प्रदर्शन भी उसके श्रेष्ठ व्यक्तित्व का प्रमाण हो सकता है। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 29. 
भाषा-शैली शिल्प की दृष्टि से 'आवारा मसीहा' कैसी रचना है? 
उत्तर :
'आवारा मसीहा' विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित प्रसिद्ध बंगाली साहित्यकार शरत्चन्द्र की जीवनी है। इस रचना को हिन्दी के जीवनी साहित्य-क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। 'जीवनी' हिन्दी गद्य की एक नई विधा है, जिसका आरम्भ छायावादी युग से माना जाता है। धीरे-धीरे इस विधा का विकास हुआ है।

भाषा-शैली - 'आवारा मसीहा' की भाषा तत्सम प्रधान सरल खड़ी बोली है। लेखक ने इसमें तत्सम शब्दों के साथ ही लोक प्रचलित शब्दों को अपनाया है। रचना का सम्बन्ध बाँग्ला साहित्यकार से है। अतः उसने इसमें बांग्ला भाषा के शब्दों तथा लघु वाक्यों को भी स्थान दिया है। अंग्रेजी भाषा के शब्द भी इसकी भाषा के अन्तर्गत प्रयुक्त हुए हैं। यत्र-तत्र मुहावरेदार प्रयोग भी हैं। भाषा में प्रवाह है तथा वह वर्णित विषय के सर्वथा अनुकूल है। 

लेखक ने इसमें वर्णनात्मक शैली का प्रयोग प्रधानतः किया है। पात्रों के व्यक्तित्व तथा घटनाओं के चित्रण में चित्रात्मक शैली का प्रयोग भी हुआ है। यत्र-तत्र सुन्दर सूक्तियों का प्रयोग है, इसमें सूक्ति शैली है। कुछ स्थानों पर व्यंग्य-विनोदपूर्ण शैली भी प्रयुक्त हुई है। 

शिल्प - 'आवारा मसीहा' एक जीवनी है। प्रभाकर जी ने अत्यन्त आत्मीयता के साथ जगत् के गुणों-अवगुणों को . चित्रित किया है। शरत् के जीवन की विभिन्न घटनाओं को उसके विभिन्न गुणों को प्रकट करने के लिए तथा विभिन्न उद्देश्यों से प्रस्तुत किया गया है। जीवनी की रचना में लेखक ने पूरी तटस्थता बरती है तथा शरत् के बाह्य तथा आन्तरिक व्यक्तित्व को पूरी सफलता के साथ प्रस्तुत किया है। 

भाषा - शैली तथा शिल्प-विधान की दृष्टि से आवारा मसीहा एक सफल रचना है। 

प्रश्न 30. 
पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि शरत्चन्द्र अपने बाल्यकाल में प्रकृति प्रेमी व सौन्दर्य बोध से युक्त था।
उत्तर : 
शरत्चन्द्र अपने बाल्यकाल में प्रकृति-प्रेमी था। उसके प्रमुख शौक पशु-पक्षी पालना एवं उपक्न लगाना थे। वह अनेक प्रकार की तितलियों की देखभाल करता था तथा उनकी रुचि के अनुसार उनकी भोजन-व्यवस्था करता था। उसने अपने उपवन में अनेक प्रकार के फूल-घास और लता-गुल्म लगाए थे। शरत् के द्वारा लगाए गए उपवन में ऋतु के अनुसार जूही, बेला, चन्द्रमल्लिका और गैंदा आदि के फूल खिलते थे। 

यद्यपि उपर्युक्त सभी कार्यों को करना उसके नाना के अनुसार निषिद्ध था परन्तु अपने प्रकृति-प्रेम के कारण यह इन सबको अवश्य करता था। वह प्राय: गंगा के किनारे घूमने जाया करता था तथा प्रकृति की सुरम्य गोद में विचरण करना उसे अच्छा लगता था। उसने गंगा के किनारे नीम और करौंदे व अनेक लताओं से ढके एक एकान्त व निर्जन स्थान को अपने तपोवन के रूप में चुन रखा था। वह इस सुरम्य स्थान पर जाकर एकान्त में बैठा करता था तथा मंद-मंद शीतल पवन की मृदु हिलोरों और सूर्य के स्निग्ध हरित प्रकाश का आनन्द लिया करता था। 

पाठ के अनुसार शरत्चन्द्र सौन्दर्य बोध से भी युक्त था। लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि शरत् में अपने पिता की तरह प्रचुर मात्रा में सौन्दर्य बोध था। वह अपने पढ़ने के कमरे को खूब सजाकर रखता था। वह अपनी पढ़ने की चौकी, तिपाही, डैस्क, पुस्तकें, कापियाँ, कलम आदि को बड़ी सुन्दरता से सजाकर रखता था जो उसके सौन्दर्य बोध की सूचक थीं। वह अपनी कापियों को स्वयं करीने से काटकर सुन्दरतापूर्वक ऐसे तैयार करता था कि देखते ही बनता था। प्रकृति का सौन्दर्य शरत् के थके मन को सहलाता था। लेखक के अनुसार शरत् ने मन ही मन प्रतिज्ञा की होगी कि 'मैं सूर्य, गंगा और हिमालय को साक्षी करके प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं जीवनभर सौन्दर्य की उपासना करूँगा।" इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शरत्चन्द्र अपने बाल्यकाल में प्रकृति प्रेमी व सौन्दर्य बोध से युक्त था।

प्रश्न 31. 
मोतीलाल चट्टोपाध्याय कौन थे? उनकी प्रमुख विशेषताएँ क्या थी? 
उत्तर : 
मोतीलाल चट्टोपाध्याय शरत् के पिता थे। उनके पिता का नाम बैकुण्ठनाथ चट्टोपाध्याय था। मोतीलाल का विवाह भागलपुर के केदारनाथ गंगोपाध्याय की पुत्री भुवनमोहिनी से हुआ था। मोतीलाल अधिकांश समय घर जॅवाई बनकर रहे। उन्होंने ससुराल में रहते हुए ही मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे जीवनभर अभावों में पले थे। वे प्रायः कल्पनाओं में डूबे रहते थे। उन्होंने कहीं भी स्थिरतापूर्वक कोई धंधा नहीं किया। 

वे एक नौकरी को शीघ्र ही छोड़कर दूसरी की तलाश में जुट जाते थे। उन्हें कहानी, नाटक, उपन्यास सभी कुछ लिखने का शौक था परन्तु वे अपनी किसी भी रचना को पूरा नहीं कर पाए, उनकी चित्रण में भी रुचि थी। उनमें सौन्दर्य बोध भी था। वे अत्यन्त सुन्दर अक्षरों में रचना आरम्भ करते परन्तु उसे बीच में ही छोड़ देते क्योंकि उनका आदर्श ऊँचा रहता था। रचना के अन्त तक पहुँचने की क्षमता उनमें नहीं थी। वे हक्का पीते थे और बच्चों की शरारतों में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते थे। कुल मिलाकर मोतीलाल चट्टोपाध्याय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 32. 
भुवनमोहिनी कौन थीं? उनको अपने जीवन में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? 
उत्तर : 
भुवनमोहिनी भागलपुर के केदारनाथ गंगोपाध्याय की पुत्री व मोतीलाल चट्टोपाध्याय की पत्नी थी। शरत् की माँ भुवनमोहिनी को अपने पति की गरीब आर्थिक स्थिति के कारण अपने पीहर में परिवार सहित रहना पड़ा था। भुवनमोहिनी शान्त प्रकृति, निर्मल चरित्र और उदार प्रवृत्ति की नारी थी। वह अपने पिता के घर पर संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का पूरा-पूरा ध्यान रखती थी। उसका पूरा समय परिवार के सभी सदस्यों की सेवा, देखभाल व उन्हें स्नेह आदि प्रदान करने में व्यतीत हो जाता था। 

उसने अपने पति से कभी कोई शिकायत नहीं की व गहनों, पोशाक आदि की माँग नहीं की। उसने आत्मोत्सर्ग को ही अपना जीवन लक्ष्य बना रखा था। पति की निर्धनता व अकर्मण्यता के कारण भुवनमोहिनी को अपने पुत्र व पति के साथ अपने पीहर में संयुक्त परिवार के सदस्यों की सेवा करते हुए समय बिताना पड़ा। वास्तव में वह एक आदर्श, सेवाभावी, पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली, गुणशील, चरित्रवान महिला थी। 

प्रश्न 33. 
शरत् की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं? पाठ के आधार पर विवेचना कीजिए। 
उत्तर : 
शरत् की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं। काशीनाथ शरत् का बाल्यकाल का सहपाठी है, जिसे आधार बनाकर 'काशीनाथ' नामक कहानी में शरत् के पिता की घर जवाई के रूप में भोगी गई पीड़ा का सजीव वर्णन मिलता है। 'शुभदा' के हारानबाबू का चरित्र शरत् के पिता का ही प्रतीकात्मक रूप है। वहीं शुभदा उनकी माँ भुवनमोहिनी के रूप में प्रकट हुई हैं। 'देवदास' में शरत् का ही रूप सजीव हो उठा है। 

उसकी एक अन्य कृति 'गृहदाह' में शरत् ने 'डेहरी आन सोन' के अपने अल्पकालीन प्रवास का वर्णन किया है। श्रीकान्त के चतुर्थ पर्व का आधा पागल कवि शरत् का मित्र गौहर है जो कृष्णपुर गाँव में रघुनाथ गोस्वामी के अखाड़े में शरत् को मिला था। एक बार शरत् की लम्बी यात्रा के दौरान उसे रास्ते में बुखार आने पर एक विधवा उसे घर ले गई थी। शरत् ने अपने 'चरित्रहीन' उपन्यास में इस विधवा के चरित्र को ही जीवन्त किया है। इस प्रकार शरत् के बाल्यकाल की अनेक घटनाएँ और पात्र उनकी रचनाओं में यत्र-तत्र सजीव रूप में प्रस्तुत हो गये हैं।

आवारा मसीहा Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

महान कथा-शिल्पी शरत्चन्द्र की जीवनी 'आवारा मसीहा' के लेखक विष्णु प्रभाकर का जन्म 20 जुलाई सन् 1912 को उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के मोरपुर गाँव में हुआ था। पहले इन्होंने प्रेम बन्धु एवं विष्णु नाम से लेखन प्रारम्भ किया था। बाद में प्रभाकर जुड़ने से वह विष्णु प्रभाकर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद तथा माता का नाम महादेवी था। इन्होंने बी. ए. तक शिक्षा ग्रहण कर नाटक कम्पनी में अभिनय करना प्रारम्भ किया। इनके जीवन पर आर्य समाज तथा महात्मा गाँधी के जीवन-दर्शन का गहन प्रभाव देखने को मिलता है। 

इन्होंने मौलिक लेखन के अलावा 60 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन कर एवं आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र पर नाटक-निदेशक के रूप में कार्य करके अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने गद्य की अनेक विधाओं, यथा-कहानी, उपन्यास, जीवनी, रिपोर्ताज, नाटक आदि में कुशलतापूर्वक मौलिक लेखन किया। इन्हें शरत्चन्द्र की जीवनी 'आवारा मसीहा' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी रचनाओं में स्वदेश-प्रेम, राष्ट्रीय चेतना तथा समाज-सुधार जैसे उदात्त जीवनादर्शों को प्रमुखता से स्थान मिला है-आवारा मसीहा (शरत्चन्द्र की जीवनी); प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अशोक (एकांकी संग्रह), नव प्रभात, डॉक्टर (नाटक); ढलती रात, स्वप्नमयी (उपन्यास); जाने-अनजाने (संस्मरण) आदि इनकी प्रसिद्ध रचनायें हैं। विष्णु प्रभाकर ने गद्य की अनेक विधाओं में सार्थक व प्रभावी लेखन कर साहित्य की अतुलनीय सेवा की है। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

जावना पारचय :

विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित महान् कथाशिल्पी शरत्चन्द्र की जीवनी 'आवारा मसीहा' के प्रथम पर्व 'दिशाहारा' में शरत्चन्द्र के अभावोंयुक्त जीवन संघर्षों को प्रदर्शित किया गया है। अपने पिता की कमजोर आर्थिक स्थिति, अकर्मण्यता व अस्थिर प्रकृति के कारण शरत् को अपना अधिकांश समय अपने माता-पिता के साथ अपने नाना के यहाँ भागलपुर में बिताना पड़ा, उनका विशद् वर्णन जीवनी में मिलता है। लेखक ने शरत की बालसुलभ चंचलताओं व उद्दण्डताओं का भी प्रभावी वर्णन करते हुए उसके सौन्दर्य बोध, प्रकृति प्रेम, संवेदनशील व्यक्तित्व, परोपकारी स्वभाव, प्रतिभा सम्पन्न जीवन, दुस्साहसी व्यवहार, दृढ़ निश्चय एवं साहित्य प्रेम को प्रमुखता के साथ उद्घाटित किया है। 

जीवनी में शरत् के बाल्यकाल के उन अनेक पात्रों व घटनाओं का वर्णन किया गया है जो उसके परवर्ती (बाद के) साहित्य में कहीं न कहीं किसी-न-किसी रूप में। प्रकट हुए हैं। लेखक ने उसके व्यक्तित्व व कृतित्व (साहित्य) पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न पात्रों एवं घटनाओं का वर्णन किया है। इससे इस महान् कथाशिल्पी के साहित्य सृजन की प्रेरणा देने वाली शक्ति व स्रोत में झाँकने का अवसर मिलता है। वास्तव में लेखक ने इस जीवनी में तत्कालीन युग के यथार्थ चित्रण के साथ युगीन मान्यताओं, चरित्रों व जीवन संघर्षों को भी प्रभावी रूप से उद्घाटित किया है और शरत्चन्द्र के प्रारम्भिक जीवन संघर्षों का प्रभावशाली वर्णन किया है। 

सारांश :

भागलपुर से शरत् का लगाव-भागलपुर शरत्चन्द्र के नाना का गाँव था, जहाँ वह अपने पिता मोतीलाल व माता भुवनमोहिनी के साथ तीन वर्ष तक रहा था। वह अपने मामा सुरेन्द्र के साथ बाग में घूमने-फिरने गया क्योंकि उसे लौटकर पुनः अपने मूल गाँव देवानंदपुर जाना था। 

शरत् के पिता मोतीलाल का व्यक्तित्व-शरत् के पिता मोतीलाल घुमक्कड़ प्रकृति के व्यक्ति थे; वे किसी भी धन्धे में टिककर नहीं रहे। साहित्य व कला में उनकी रुचि थी परन्तु किसी भी साहित्यिक रचना को उन्होंने पूरा नहीं किया। भागलपुर आने पर शरत् का स्कूल में प्रवेश-भागलपुर में शरत् को दुर्गाचरण एम. ई. स्कूल में प्रवेश कराया गया जहाँ उसने साहित्य से प्रथम परिचय प्राप्त किया। अक्षय पण्डित के द्वारा शरत् व उसके छोटे नाना के पुत्र मणीन्द्र को घर पर पढ़ाया जाता था। वहाँ बड़े मामा ठाकुरदास बच्चों की शिक्षा की देखभाल करते थे। वहाँ शरत् की उद्दण्डता के कई किस्से वर्णित हैं। वह परिवार में निषिद्ध कार्यों को करने में आनन्द,लेता था, यथा- पतंग उड़ाना, ताल पर नहाना, लटू घुमाना, गंगा पर घूमना-फिरना आदि। साँप को वश में करने व तपोवन के किस्से शरत् की बालसुलभ उद्दण्डताओं को प्रस्तुत करते हैं। 

शरत् की प्रतिभा - शरत् ने स्कूल के पुस्तकालय का सारा साहित्य पढ़ डाला था। बंकिम चन्द्र की बंग दर्शन का अध्ययन सर्वप्रथम परिवार में उन्होंने ही किया। छोटे नाना की पत्नी कुसुम मोहिनी ने उनके अध्ययन में बहुत सहयोग किया।

शरत् का पुनः देवानंदपुर लौटना - शरत् के नाना केदारनाथ की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनके कहने पर शरत् के माता-पिता को पुनः अपने गाँव देवानंदपुर लौटना पड़ा। वहाँ पतंगबाज राजू मजूमदार से उसकी मित्रता हुई। 

मोतीलाल चट्टोपाध्याय का प्रारम्भिक जीवन - मोतीलाल के पिता बैकुण्ठनाथ एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे। झूठी गवाही न देने पर जमींदार ने उनकी हत्या करा दी थी। मोतीलाल का विवाह भागलपुर के केदारनाथ गंगोपाध्याय की पुत्री भुवनमोहिनी से हुआ। 15 सितम्बर सन् 1876 को शरत् का जन्म हुआ था। 

देवानंदपुर में शरत् का जीवन - देवानंदपुर बंगाल का साधारण-सा गाँव था। पतिव्रत धर्म-पालन करने वाली शरत् की माँ की विशेषताओं व गुणों का विशद् वर्णन इस जीवनी में मिलता है। शरत् को पाँच वर्ष की अवस्था में प्यारी बंदोपाध्याय की पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया जहाँ उसकी मित्रता काशीनाथ के मित्र की बहन धीरू से हुई जो शरत् की सबसे प्रिय बालसंगिनी थी। उसका वर्णन शरत् के साहित्य में मिलता है। 

शरत् का बांग्ला स्कूल में प्रवेश व गाय को लाने का प्रकरण-शरत् सिद्धेश्वर भट्टाचार्य के बांग्ला स्कूल में भर्ती हो गया जहाँ उसे मछली पकड़ने का शौक लग गया। वह नयन बागड़ी के साथ घर से छिपकर गाय लेने बसंतपुर चला गया, जहाँ लौटते समय उनकी डाकुओं से मुठभेड़ हो गई। 

शरत् की शिक्षा में बाधा व पथभ्रष्टता - बार-बार स्थान परिवर्तन से शरत् की पढ़ाई बाधित हुई। घर की दयनीय आर्थिक स्थिति के बाद वह शरारती बालकों की कुसंगति में पड़कर उनके दल का सरदार बन गया। उसके उपद्रवों से गाँव वाले बहुत तंग हो गए परन्तु वह गरीबों, रोगियों, उपेक्षितों व अनाश्रितों की सहायता भी करता था। 

शरत् का कहानी लेखन - स्थानीय जमींदार गोपालदास मुंशी के स्नेह व उनके पुत्र अतुलचन्द्र द्वारा कहानी पढ़ने के लिए देने व थिएटर ले जाने के कारण शरत् कहानी लिखने लगा। इसी तरह लिखते-लिखते शरत् ने मौलिक कहानी लिखनी प्रारम्भ कर दी। 

बाल विधवा शरत् की मुँहबोली दीदी नीरू का प्रसंग-गाँव में नीरू नामक एक बाल विधवा थी, जो निष्कलंक, सेवाभावी, धर्मशीला व परोपकारिणी थी। 32 वर्ष की आयु में उसका पदस्खलन होने पर लोगों ने उसका बहिष्कार कर दिया परन्तु शरत् उसकी सहायता करने अवश्य जाता था। वह अनाथों की तरह मृत्यु को प्राप्त हो गई। 

शरत् की कहानी लेखन की प्रेरणा व यात्राएँ-शरत् को कहानी लिखने की प्रेरणा अपने पिता की अलमारी की पुस्तकों व आधी-अधूरी कहानियों से मिली। इसके बाद वह पुरी की यात्रा पर गया जहाँ अनेक विचित्र घटनाये हुई।

शरत् का देवानंदपुर से पुनः भागलपुर प्रस्थान-परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण शरत् की माता ने अपने छोटे काका अद्योनाथ को पत्र लिखवाया, उनके स्वीकृति देने पर शरत् पुनः भागलपुर आ गया. और कभी देवानंदपुर नहीं गया। पूरी जीवनी में शरत के अभावपूर्ण जीवन के संघर्षों की कहानी है, जिसने उसे साहित्य सृजन की प्रेरणा व शक्ति दी। 

RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

कठिन शब्दार्थ : 

  • नवासा = पुत्री का पुत्र। 
  • निस्तब्धता = शान्ति। 
  • मन भारी होना = मन दुःखी होना। 
  • नाते में = रिश्ते में। 
  • स्तूप = मिट्टी या पत्थर का ऊँचा दूह, शिखर। 
  • सूत्र = पूर्वापर सम्बन्ध। 
  • झाऊ = एक जंगली घास। 
  • दीर्घ निःश्वास = लम्बी साँस। 
  • सहसा = अचानक। 
  • हठात् = जबर्दस्ती। 
  • हिंसक = हिंसा करने वाले या मांसाहारी। 
  • महाविपद् = बड़ा संकट या विपत्ति। 
  • अलंकार = आभूषण।
  • तगड़ी = कमर में पहने जाने वाला आभूषण। 
  • यायावर प्रकृति = घुमक्कड़ स्वभाव। 
  • स्वप्नदर्शी = कल्पना लोक में जीने वाला। 
  • जीविका = जीवन निर्वाह का साधन या आय। 
  • लांछित = आरोपित, अपमानित, कलंकित। 
  • तलाश = खोज। 
  • बंधन = रुकावट। 
  • सामंजस्य = तालमेल।
  • सौन्दर्य-बोध = सौन्दर्य की परख, अनुभूति या ज्ञान। 
  • महत्वहीन = बिना महत्व का। 
  • विशाल = बड़ा। 
  • गरिमा = गौरव, महिमा या महत्व। 
  • अंकन = चित्रण। 
  • व्यर्थता = निरर्थकता, बिना अर्थ के।
  • याचना = प्रार्थना करना, माँगना। 
  • घर जवाई = ससुर के घर पर रहने वाला दामाद। 
  • निस्संकोच = बिना संकोच के। 
  • परिश्रमपूर्वक = मेहनत या परिश्रम के साथ। 
  • सहपाठी = साथ पढ़ने वाला। 
  • सहोदर = एक ही माँ के गर्भ से उत्पन्न या सगे भाई। 
  • रुदन = रोना। 
  • करुण ध्वनि = करुणा से युक्त आवाज। 
  • अग्रणी = आगे रहने वाला। 
  • समवेत = सामूहिक, मिला हुआ। 
  • दीवे = दिया या दीपक। 
  • पलायन करना = भाग जाना।
  • घोर = अत्यधिक। 
  • अस्तबल = घोड़ों को बाँधने का स्थान।
  • कट्टरता = अपने मत का कठोरता से पालन करना। 
  • अक्षम्य = क्षमा न करने योग्य। 
  • मुक्ति पाना = छूट जाना।
  • अभिभावक = माता-पिता, संरक्षक। 
  • असमय = निर्धारित समय पर नहीं। 
  • निमिष मात्र = क्षणभर में। 
  • अभिनय करना = नाटक करना। 
  • निदेशक = निदेश देने वाला, डायरेक्टर। 
  • मुखभंगी = मुख-मुद्रा या मुखाकृति। 
  • असीम = जिसकी कोई सीमा न हो। 
  • दलपति = दल का मुखिया या नेता। 
  • अनायास = अचानक या बिना प्रयास के। 
  • उपवन = बगीचा या बाग। 
  • गद्गद् = अत्यन्त प्रसन्न। 
  • तलैया = छोटा तालाब। 
  • आवरण = ढक्कन या परदा। 
  • विशिष्ट = विशेष या महत्वपूर्ण।  
  • गुर = तरीका या उपाय। 
  • अनुशासन = नियमों में बँधा हुआ आचरण। 
  • निष्णात = कुशल। 
  • प्रतिभा = योग्यता या कुशलता। 
  • वर्जित = निषिद्ध या मना। 
  • निषिद्ध = वर्जित, जिनके लिए मनाही हो। 
  • हृदय नाचना = प्रसन्न होना।
  • माँझा = पतंग उड़ाने का धागा। 
  • पेंच मारना = पतंग लड़ाना। 
  • मुग्ध = मोहित या प्रसन्न। 
  • तीक्ष्ण = तेज, तीव्र। 
  • कलमुँहे = एक गाली, बुरे मुँह वाला। 
  • तत्कालीन = उस समय के। 
  • मापदण्ड = मापने का स्तर।
  • प्रचुर मात्रा = अत्यधिक मात्रा। 
  • अपरिग्रही = किसी से कुछ ग्रहण न करने वाला। 
  • भार मुक्ति = बोझ या उत्तरदायित्व से छुटकारा। आहार 
  • स्वल्पाहारी = कम भोजन करने वाला।
  • कथाशिल्पी = कथा या कहानी सृजित या गढ़ने वाला। 
  • भूतावास = भूतों का निवास, जिसमें कोई न रहता हो। 
  • झटपटे = थोड़ा-थोड़ा अँधेरा हो जाने का समय। 
  • लहूलुहान = खून से सनी, घायल अवस्था। 
  • उत्फुल्ल = प्रसन्नता से युक्त। 
  • कष्ट = कठिनाई या कष्टपूर्वक किया जाने वाला। 
  • लोभ संवरण करना = मन की इच्छा को रोकना। 
  • दुर्भाग्य = बुरा भाग्य। 
  • अकारण = बिना कारण के।
  • दुर्गति = बुरी गति। 
  • अचरज = आश्चर्य। 
  • परामर्श = सलाह या मशविरा। 
  • संग्रहालय = संग्रह के लिए प्रयुक्त स्थान। 
  • विपद = विपत्ति या संकट। 
  • आतुर = उत्सुक। 
  • जनमेजय का नाग यज्ञ = महाभारतकालीन नागों का विनाश करने से सम्बन्धित कथा।
  • विर्षाक्त = जहरयुक्त। 
  • निर्जीव = मृत, बिना जीव के। 
  • गोखरू साँप = जहरीले साँप की एक प्रजाति। 
  • क्षब्ध = क्रोधित या कोपित। 
  • निस्तेज = तेज रहित। 
  • डसने = काटने। 
  • भयातुर = डर से व्याकुल। 
  • सनातन रीति = परम्परागत तरीका। 
  • संहार करना = मारना। 
  • दागना = जलाना। 
  • कथाशिल्पी = कथा या कहानी की रचना करने वाला। 
  • गैरहाजिर = अनुपस्थित। 
  • हाजिर = उपस्थित। 
  • तपोवन = तपस्या करने के लिए अनुकूल वन। 
  • पटना = सामंजस्य बैठना। 
  • शैशव = शिशु अवस्था का समय। 
  • अनुनय-विनय = विनयपूर्वक प्रार्थना करना। 
  • साक्षी = गवाह। 
  • आच्छन्न = घिरा हुआ। 
  • नाना = अनेक, बहुत। 
  • उज्ज्वल = सफेद, चमकीला, कान्तियुक्त। 
  • स्निग्ध = प्रेमयुक्त व शीतल। 
  • हरित प्रकाश = हरा प्रकाश। 
  • आँखें जुड़ाने लगीं = आँखों में संतोष उत्पन्न होने लगा।
  • स्वप्नलोक = कल्पना का लोक या संसार। 
  • खर स्रोता = तेज धार वाली। 
  • मंद-मंद = धीरे-धीरे। 
  • मृदु = मीठी या कोमल। 
  • हिलोरें = पानी की लहरें।
  • पुलक = प्रसन्नता या रोमांच। 
  • रहस्यमय = रहस्य से भरी। 
  • सहलाना = प्यार भरा हाथ फेरना। 
  • उपासना = पूजा।
  • प्रतिध्वनि = ध्वनि से परिवर्तित होकर आने वाली ध्वनि या गूंज। 
  • दाखिल = प्रविष्ट। 
  • सहज = आसान।
  • प्रतिष्ठा = सम्मान। 
  • आश्वस्त = सन्तुष्ट, आशा से युक्त। 
  • युग सन्धि = दो युगों या कालों के मिलने का समय। 
  • वय = उम्र या आयु। 
  • ठिठकना = अचानक रुक जाना, सहम जाना। 
  • स्वामी = पति। 
  • विदीर्ण = टूटा हुआ। 
  • क्रन्दन = रुदन। 
  • विस्मित = आश्चर्यचकित। 
  • मनस्तत्व = मन के गहन तत्व। 
  • नवयुग = नया युग। 
  • तबीयत = स्वभाव। 
  • दफ्तर = ऑफिस या कार्यालय। 
  • अप्रसन्न = नाराज। 
  • हाली = वर्तमान। 
  • घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध = व्यक्ति का अपने घर या गाँव में सम्मान नहीं होता बल्कि बाहर वाले का सम्मान होना। 
  • तनिक = जरा। 
  • संदेशवाहक = संदेश लाने-ले जाने वाले। 
  • अपार व्यथा = अत्यधिक दुख। 
  • स्वर्गवासी होना = मृत्यु हो जाना। 
  • पारितोषिक = इनाम या पुरस्कार। 
  • जुगाड़ करना = व्यवस्था करना। 
  • कलह करना = क्लेश या झगड़ा करना। 
  • परनिंदा = दूसरों की बुराई। 
  • रस लेना = रुचि लेना। 
  • बारी = अवसर या क्रम। 
  • मर्मस्पर्शी = हृदय को स्पर्श करने या छूने वाली। 
  • निस्पंद = शान्त। 
  • उपार्जन = उत्पन्न करना, कमाना।
  • युगान्तरकारी = दूसरा युग लाने वाली। 
  • अनुभूति = अनुभव। 
  • आतंकित = भय से युक्त। 
  • आदि = प्रारम्भ। 
  • यौवन = युवावस्था या जवानी। 
  • व्यवधान = रुकावट। 
  • अपराजेय = किसी से भी नहीं हारने वाला। 
  • योगदान = सहयोग। 
  • क्रान्ति = पूर्ण परिवर्तन। 
  • वर्जित = निषिद्ध, मना। 
  • दिलचस्पी = रुचि। 
  • स्वप्नदर्शी = कल्पना के संसार में रहने वाला या कल्पना के स्वप्न देखने वाला। 
  • अपरोक्ष = प्रत्यक्ष। 
  • लोकप्रिय = सभी को प्रिय। 
  • यत्न = कोशिश, प्रयास। 
  • मरुस्थल = रेगिस्तान।
  • शाद्वल = नई घास। 
  • अपरिसीम = जिसकी कोई सीमा नहीं हो। 
  • बर्ताव = व्यवहार।
  • व्यक्तित्व = व्यक्ति की विशेषता। 
  • देह = शरीर। 
  • दुर्घटना = बुरी घटना। 
  • व्ययसाध्य = खर्चीली। 
  • पितहीन = बिना पिता के, जिसका पिता मर गया हो। 
  • अपवाद = बदनामी या लांछन। 
  • अनायास = अचानक या बिना प्रयास के। 
  • प्रतिस्पर्द्धा = मुकाबला। 
  • श्यामवर्ण = काला या साँवला रंग। 
  • आजानबाह = जिसकी बाँहें या भुजा घुटनों तक हो। 
  • मतभेद = मत या सोच-विचारों में अन्तर। 
  • त्यागपत्र = इस्तीफा, किसी कार्य को छोड़ने का पत्र। 
  • पुरातनपंथी = प्राचीन परम्पराओं को मानने वाला। 
  • बैरा = भोजन परोसने वाला। 
  • पुट = मिश्रण, मिलाना। 
  • स्वाधीनचेता = स्वतन्त्रता की चेतना से युक्त। 
  • चरम सीमा = अन्तिम सीमा। 
  • द्वन्द्व युद्ध = पारस्परिक संघर्ष। 
  • पारंगत = कुशल या चतुर।
  • सरंजाम जुटानां = साधन जुटाना।
  • कर्णभेदी = अत्यन्त तेज स्वर कान को फोड़ने जैसा। 
  • डोलायमान = विचलित। 
  • पारावार = सीमा। 
  • अर्पित = भेंट। 
  • अमित = अत्यधिक। 
  • अपूर्व = जैसी पहले न हो। 
  • प्रत्युत्पन्नमति = हाजिर जवाब, शीघ्र उत्पन्न होने वाली बुद्धि।
  • दुर्ग = किला। 
  • दुस्साहसिक = बुरे या गलत साहस से युक्त। 
  • मंत्रदाता = शिक्षा देने वाला। 
  • सदाचार = अच्छा आचरण। 
  • सराहना = प्रशंसा। 
  • सर्वांगीण = सभी अंगों का। 
  • प्रारम्भिक = शुरुआत का। 
  • विद्यमान = उपस्थित। 
  • संभ्रांत = महत्वपूर्ण, सम्मानित। 
  • निर्भीक = भयहीन। 
  • इनकार करना = मना करना। 
  • क्रुद्ध = क्रोधित। 
  • हतप्रभ-विमूढ़ = अवाक् या हैरान, कुछ समझ में न आना। 
  • आतंक = डर। 
  • दारिद्रय = दरिद्रता या गरीबी। 
  • तंग आना = परेशान होना। 
  • जीविका = रोजी-रोटी। 
  • वरण करना = चयन करना, चुनना। 
  • कुलीनता = उच्च कुल का होना। 
  • सवंश = अच्छा वंश। 
  • मैट्रिक = दसवीं कक्षा। 
  • चचिया ससुर = ससुर का छोटा भाई। 
  • कर्मठ = मेहनती या कर्मशील। 
  • खरे = ईमानदार। 
  • स्पष्टवादी = स्पष्ट बोलने वाला। 
  • घनिष्ठता = निकट का प्रेम।
  • दक्षिणद्वारी = जिसका मुख्य दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर हो। 
  • सुगृहिणी = अच्छी गृहिणी। 
  • उदारवृत्ति = उदार प्रवृत्ति वाली। 
  • अंतर = हृदय। 
  • रूपसी = सुन्दरी, रूपवती। 
  • पातिव्रत्य = पतिव्रत धर्म। 
  • यायावर = घुमक्कड़। 
  • बंगाब्द = बंगाली संवत। 
  • आश्विन = क्वार का महीना। 
  • कृष्णा द्वादशी = कृष्ण पक्ष की बारहवीं तिथि। 
  • शकाब्द = शक संवत। 
  • कैशोर्य = किशोरावस्था।
  • गणना = गिनती। 
  • समृद्ध = सम्पन्न, धनी। 
  • बाल्यकाल = बचपन। 
  • आत्मोत्सर्ग = स्वयं का बलिदान। 
  • दाय = दिए जाने योग्य।
  • असंख्य = अनगिनत।
  • फुरसत = अवसर या खाली समय। 
  • द्रवित = पिघलना। 
  • सेवापरायणता = सेवा भावना। 
  • लालायित = चाह या लालसा रखने वाले। 
  • कृपण = कंजूस। 
  • अकर्मण्यता = काम न करने की प्रवृत्ति। 
  • ठेस = दुःख। 
  • क्षुब्ध = क्रोधित, नाराज। 
  • वाकायदा = रीति या नियमपूर्वक। 
  • भर्ती = प्रवेश। 
  • चीत्कार करना = चिल्लाना। 
  • कपाल = मस्तक, माथा। 
  • मति = बुद्धि। 
  • न्याड़ा = शरत् का पुकारने का नाम। 
  • भला मानस = भला व्यक्ति। 
  • संगिनी = साथिन। 
  • सुभीते = सुविधा। 
  • माल्यार्पण = गले में माला पहनाना। 
  • जमुहाई लेना = उबासी लेना। 
  • गुड्डी = पतंग।
  • युक्ति = तरीका या योजना। 
  • नाना = बहुत। 
  • चेष्टा = प्रयास, कोशिश। 
  • हरामजादा = एक गाली।
  • आक्रमण = हमला। 
  • मूड़ी = मुरमुरे या भुने चावल। 
  • आँचल = पल्ला, ओढ़ने वाले कपड़े का छोर। 
  • प्रगाढ़ = पक्की झा गहरी। 
  • सृजन = रचना। 
  • विराट = बड़ा, व्यापक। 
  • आमोद = खुशी या प्रसन्नता। 
  • निरुद्वेग = बिना उद्वेग के, शान्त। 
  • तिरस्कार = उपेक्षा या अपमान। 
  • प्रहार = चोट। 
  • यथेष्ट = पर्याप्त या काफी। 
  • शागिर्द = शिष्य या चेला। 
  • निरुद्देश्य = बिना उद्देश्य की। 
  • आवभगत = स्वागत, सत्कार। 
  • शागिर्दी = शिष्यत्व। 
  • डोंगी = छोटी नाव। 
  • ख्याल = विचार। 
  • खिरनियाँ = खिरनी के पेड़ पर लगने वाले पीले फल। 
  • अन्तर्मुखी = अन्तर्लीन, आन्तरिक चिन्तन में रत। 
  • निरन्तर = लगातार। 
  • प्रगति = विकास। 
  • अल्पकालिक = थोड़ा या कम समय का। 
  • प्रवास = परदेश में या अन्य स्थान पर रहना। 
  • नगण्य = बहुत कम, जो गिना जाने योग्य न हो।
  • उथली = कम गहरी। 
  • पाट = चौड़ाई। 
  • मील = दूरी नापने की एक इकाई, 1760 गज की दूरी। 
  • असर = प्रभाव। 
  • गऊ = गाय। 
  • पोखर = गाँवों में पाए जाने वाले कच्चे व छोटे तालाब। 
  • हतप्रभ = आश्चर्य-चकित। 
  • खातिर = स्वागत, सत्कार या मेहमाननबाजी। 
  • दिन डूबना = सूर्यास्त होना या शाम होना। 
  • कमचियाँ = बाँस की पतली टहनी या टुकड़े।
  • राह = रास्ता। 
  • आफत = परेशानी। 
  • सन्नाटा = शान्ति। 
  • धुंध = अँधेरा। 
  • पाबड़ा = बाँस का बना हुआ दो-तीन फीट का डण्डा जो फेंककर दुश्मन के पाँव पर मारा जाता है। 
  • जीता = जीवित। 
  • एक तारा = एक तार का वाद्य यंत्र। 
  • क्रुद्ध = क्रोधित। 
  • वैष्णव = विष्णु का उपासक। 
  • आड़ = ओट। 
  • सोटा = डण्डा। 
  • कालिख = काला रंग। 
  • पोतना = पुताई करना। 
  • टिपकी = बिन्दी। 
  • ताककर = निशाना साधकर या देखकर। 
  • खतम = समाप्त। 
  • व्याघात = रुकावट। 
  • कामना = इच्छा। 
  • अन्ततः = अंत में। 
  • आत्मचिंतन = स्वयं के बारे में विचार करना। 
  • वर्ण श्यामता = साँवला रंग। 
  • तीक्ष्ण = तीखी या पैनी। 
  • दिशाहीन = बिना दिशा के। 
  • पथभ्रष्टता = उचित मार्ग या व्यवहार से विमुख होना। 
  • निपट = व्यवस्था। 
  • प्रथम श्रेणी = वर्तमान 10वीं श्रेणी या कक्षा। 
  • गिरवी रखना = रुपया लेकर किसी सम्पत्ति को दूसरे के अधिकार में जमानत के रूप में रखना। 
  • भात = चावल। 
  • शरारती = उपद्रवी, दुधारी, दोनों ओर पैनी धार वाली। 
  • तंग आना = परेशान होना। 
  • निर्धन = गरीब। 
  • आखिर = अन्त में। 
  • उपेक्षित = जिसकी कोई परवाह न करे व उपेक्षा करे। 
  • अनाश्रित = बिना आश्रय वाला। 
  • यथाशक्ति = शक्ति या सामर्थ्य के अनुसार। 
  • कंगाली = अत्यन्त गरीबी। 
  • परोपकारी = दूसरों का उपकार करने वाला। 
  • अर्द्धरात्रि = आधी रात। 
  • निविड़ = घने या घोर। 
  • पूर्व-निर्दिष्ट = पहले से निर्देशित किया या बताया गया। 
  • सहचर = साथी, संगी। 
  • उत्पात = उपद्रव। 
  • निषेध = मनाही। 
  • स्फुरण = फड़कना, स्फुरित होना। 
  • साहित्य सृजन = साहित्य रचना। 
  • संकीर्ण = सँकरे, पतले। 
  • शूल = काँटा। 
  • जनश्रुति = जनता द्वारा सुनी गई बात, समाज में प्रचलित विश्वास। 
  • वक्त = मय। 
  • लायक = योग्य। 
  • जनहीन = आदमियों से रहित। 
  • एकाकी = अकेला। 
  • निःशब्द = बिना, बोले मौन। 
  • साक्षात = सम्मुख या सामने। 
  • बन्धु = भाई। 
  • आत्मीय = अत्यधिक प्रिय या अपने। 
  • गल्प = गप्प या कल्पित कहानी। 
  • जन्मजात = जन्म से उत्पन्न। 
  • पल्लवित = विकसित। 
  • पारंगत = कुशल, सिद्धहस्त। 
  • ख्याति = प्रसिद्धि। 
  • थिएटर = नाटकीय मंचन का स्थान जहाँ से दर्शक उसे देख सकें। 
  • मौलिक = नवीन, जैसी दूसरी न हो। 
  • गुरुभाई = अपने ही गुरु का दूसरा शिष्य। 
  • नायक = कथा या नाटक का मुख्य पात्र। 
  • कथानक = कथा। 
  • क्रूर = कठोर। 
  • पर्यवेक्षण = निगरानी करने का कार्य। 
  • अभिज्ञता = जानकारी, कुशलता। 
  • सुशीला = अच्छे शील वाली। 
  • परोपकारिणी = दूसरों की भलाई करने वाली। 
  • धर्मशीला = धर्म के अनुसार आचरण करने वाली। 
  • कर्मठ = कर्मशील, काम करने वाली। 
  • सान्त्वना = तसल्ली देना, ढाढस बाँधना। 
  • महरी = बर्तन माँजने का काम करने वाली। 
  • परदुखकातर = दूसरे के दुख में दुखी होना। 
  • पदस्खलन = पथ से भटक जाना, सही रास्ते से पतित हो जाना। 
  • बहिष्कार = बाहर निकालना, दूर करना। 
  • मरणासन्न = मृत्यु के समीप। 
  • पैशाचिक = राक्षसी, पिशाच जैसा। 
  • खिलाफ = विरुद्ध। 
  • चिन्तातुर = चिन्ता से व्यग्र। 
  • डोम = एक पिछड़ी जाति जो श्मशान में मृतकों को आग देते हैं। 
  • ओझा = मन्त्रों से भूत-प्रेत आदि का इलाज करने वाला व्यक्ति। 
  • प्रायश्चित = पछतावा। 
  • मृत्युंजय = मृत्यु पर विजय पाने वाला। 
  • डसना = डंक मारना या काटना।
  • साध्वी = स्त्री साधु। 
  • अक्षय = जो कभी नष्ट या क्षय न हो। 
  • शैयागत = बिस्तर पर लेटे हुए। 
  • तुच्छ = छोटा। 
  • कब्जा = अधिकार।
  • सम्पदा = सम्पत्ति। 
  • मामूली = सामान्य-सी। 
  • तिरस्कार = उपेक्षा या अपमान। 
  • संवेदन = सुख-दुःख आदि संवेदनाओं की अनुभूति। 
  • अपाठ्य = न पढ़ने योग्य। 
  • आश्रय = सहारा या आसरा। 
  • गढ़ता = रचना करता, बनाता। 
  • प्रेरक = प्रेरणा देने वाला। 
  • गंतव्य = गमन वाला स्थान। 
  • अकारण = बिना कारण के। 
  • घनिष्ठ = निकट का आत्मीय। 
  • ग्लानि = खेद या दुख। 
  • तीव्र ज्वर = तेज बुखार। 
  • विवश = मजबूर। 
  • सेवा-सुश्रूषा = सेवा-परिचर्या विशेषकर रोगी की। 
  • बहनोई = बहन का पति या ननद का पति।
  • देवर = पति का छोटा भाई। 
  • एका = संगठन या एकता। 
  • आतिथ्य लाभ = अतिथि होने का लाभ या मेहमान नबाजी का लाभ। 
  • विकृत = बुरा या बिगड़ा हुआ। 
  • निष्णात = कुशल 
  • बड़ा शून्य = बहुत कमी या अभाव।
  • अतिक्रमण = उल्लंघन, सीमा तोड़ना। 
  • छिन्न-भिन्न होना = बिखर जाना। 
  • उत्साहजनक = उत्साह उत्पन्न करने वाली। 
  • भयानक = भय उत्पन्न करने वाले। 
  • यातना = कष्ट। 
  • बीजारोपण = शुरुआत, प्रारम्भ।
Prasanna
Last Updated on Nov. 14, 2023, 9:43 a.m.
Published Nov. 13, 2023