Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी जबानी Textbook Exercise Questions and Answers.
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Class 11 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे?
उत्तर :
मकबूल फिदा हुसैन ने अपने जिन पाँच मित्रों के शब्द-चित्र अपनी आत्मकथा में प्रस्तुत किए हैं, उनके इन शब्द-चित्रों में उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। इस पर भी वे घनिष्ठ मित्र इसलिए हैं कि उनमें कुछ वैचारिक समानताएँ मिलती हैं। जैसे लगभग सभी मित्र प्रसन्नचित्त हैं। हँसते चेहरे आदि से युक्त हैं। ये सभी विशेषताएँ इन मित्रों के प्रसन्नचित्त रहने वाले स्वभाव को प्रदर्शित करती हैं, जो घनिष्ठ मित्रता के लिए आवश्यक है। लगभग सभी मित्र शारीरिक विकास के प्रति जागरूक रहने के कारण शारीरिक सौष्ठव से युक्त हैं। स्वयं लेखक यह स्वीकार करता है कि इन मित्रों से दो साल की नजदीकी पूरी उम्र कभी दिल की दूरी में नहीं बदल पाई अर्थात् उनके दिल आपस में एक-दूसरे से इस निकटता व गहनता से जुड़े थे कि वे आपस में एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठता रखते थे।
Class 11 Antral Chapter 2 Question Answer प्रश्न 2.
'प्रतिभा छुपाये नहीं छुपती' कथन के आधार पर मकबूल फिदा हुसैन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त होती है। जो धीरे-धीरे सबके सामने प्रकट हो जाती है। मकबूल हुसैन में भी चित्रकारी की कला जन्मजात थी। जिसमें उनका अधिकतर समय व्यतीत होता था। उनके व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएँ द्रष्टव्य होती हैं मकबूल हुसैन जनरल स्टोर में बैठे-बैठे अपने सामने से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्केच हूबहू उतार देते थे। उनका ध्यान हिसाब-किताब की बजाय स्केच बनाने में ज्यादा लगता था। मकबूल अपनी चित्रकारी को लेकर दृढ़ निश्चयी थे।
उन्होंने फिल्मी इश्तिहार को देखकर ऑयल पेंटिंग बनाने का निश्चय किया। इस निश्चय को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी किताबों को बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद कर ऑयल पेंटिंग बनाई। मकबूल बचपन में स्कूल के मास्टरजी द्वारा बनाई गई चिड़िया को ज्यों का त्यों अपनी स्लेट पर उभार देते हैं। उसी दिन मास्टरजी को आभास हो गया था कि ये बड़ा होकर प्रसिद्ध कलाकार बनेगा। इस तरह आते-जाते लोगों के स्केच तैयार करते-करते मकबूल हुसैन की प्रतिभा पूरे विश्व में फैल गई।
कक्षा 11 अंतराल पाठ 2 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3.
'लेखक जन्मजात कलाकार है।' इस आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है?
उत्तर :
आत्मकथा के प्रथम अंश 'बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल' में मकबूल फिदा हुसैन लिखते हैं कि जब ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अतहर ने ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से अपनी-अपनी स्लेट पर उसकी नकल करने को कहा तो मकबूल की स्लेट पर हूबहू वही चिड़िया ब्लैकबोर्ड से उड़कर आ बैठी अर्थात् मकबूल ने उस चिड़िया के चित्र को अपनी स्लेट पर ज्यों का त्यों बना दिया और उसे दस में से दस नम्बर मिले। यह घटना यह प्रदर्शित करती है कि लेखक जन्मजात कलाकार है।
Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral प्रश्न 4.
दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर :
यद्यपि मकबूल को दुकान पर इसलिए बिठाया जाता था कि वे व्यवसाय के अनुभवों को ग्रहण करें, परन्तु मकबूल के भीतर का कलाकार विभिन्न कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता था। जैसे शाम को हिसाब में दस रुपये लिखते तो किताब में बीस स्केच मजदूर की बनाते थे। वे दुकान पर बैठे-बैठे मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मजदूर, पेचवाली पगड़ी का स्केच आदि बनाया करते थे। जब उनकी दुकान के सामने से फिल्मी इश्तिहार का वाटर कलर का पोस्टर ताँगे में रखकर निकाला गया तो उन्होंने तुरन्त ही उसकी ऑयल पेंटिंग बनाने का निश्चय कर लिया और उन्होंने चाचा की दुकान पर बैठकर ही पहली ऑयल पेंटिंग बना डाली।
Class 11 Hindi Hussain Ki Kahani Question Answer प्रश्न 5.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फर्क आया है? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर :
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीके अत्यन्त सामान्य थे। पाठ के आधार पर देखें तो पहले फिल्मों का प्रचार करने के लिए रंगीन कागज पर वाटर कलर से फिल्म के हीरो, हीरोइन की तस्वीरों को पोस्टर, के रूप में बनाया जाता था। इस फिल्मी इश्तिहार या विज्ञापन के लिए प्रयुक्त पोस्टर को एक ताँगे में रखकर ब्रास बैण्ड के साथ शहर के बाजार व गली-कूचों में से निकाला जाता था। यह फिल्मी प्रचार-प्रसार का पुराना तरीका था। वर्तमान में प्रचार-प्रसार के लिए रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र, इण्टरनेट, मोबाइल सन्देश जैसे अत्याधुनिक तरीकों को प्रयोग में लाया जाता है। आज प्रचार-प्रसार के नए-नए तरीके प्रचलन में हैं, जिन पर उत्पादकों व विक्रेताओं द्वारा भारी धनराशि व्यय की जाती है।
Class 11th Hindi Antral Chapter 2 Question Answer प्रश्न 6.
कला के प्रति लोगों का नजरिया पहले कैसा था? उसमें अब क्या बदलाव आया है?
उत्तर :
कला के प्रति पहले लोगों का नजरिया आज से भिन्न था। पहले कला को राजा-महाराजाओं और अमीर व्यक्तियों की रुचि की वस्तु माना जाता था। ये राजा-महाराजा व धनवान लोग कला के विभिन्न नमूनों को अपनी विलासितापूर्ण दीवारों पर लटकाकर अपना शौक पूरा करते थे। पहले कला आम आदमी की रुचि से बहुत दूर थी। अब इस नजरिये में काफी बदलाव आ चुका है। अब कला राजा-महाराजाओं व अमीरों के महलों से नीचे उतरकर आम आदमी की रुचि की वस्तु बन गई है। आज कलाकारों का भारी सम्मान है और कला ने औद्योगिक विकास व धनोपार्जन की अपार सम्भावनाओं को बढ़ाया है।
Antral Chapter 2 Class 11 प्रश्न 7.
मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की तुलना अपने पिता के व्यक्तित्व से कीजिए।
उत्तर :
मकबूल के पिता का व्यक्तित्व बहुआयामी गुणों से युक्त था। वे शिक्षा के प्रति जागरूक व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्र मकबूल को उस युग में बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए प्रवेश दिलाया। वे अपने भाइयों के प्रति सहयोग व सद्भाव से युक्त व्यक्ति थे। उन्होंने अपने भाइयों को जनरल स्टोर की दुकान खुलवाई। जब वह दुकान नहीं चली तो उन्होंने रेस्तराँ खुलवाया। वे कला के पारखी व्यक्ति थे तथा कला के प्रति मकबूल को प्रोत्साहन देते थे।
जब उनके छोटे भाई ने मकबूल द्वारा किताबें बेचकर ऑयल पेंट की ट्यूब खरीदने व ऑयल पेंटिंग बनाने की बात उनसे कही तो वे नाराज नहीं हुए, अपितु उन्होंने अपने पुत्र की कला को देखकर प्रसन्न होकर उसे गले से लगा लिया। उन्होंने बेन्द्रे की सलाह पर अपने पुत्र के लिए बम्बई से ऑयल कलर की ट्यूब व कैनवस मँगवाए। मकबूल के पिता जैसे आम आदमी द्वारा अपने पुत्र को उस युग में कला के प्रति प्रोत्साहित करना कला के प्रति उनके सकारात्मक व प्रेरक सोच को प्रदर्शित करता है। वास्तव में मकबूल के पिता अनेक गुणों से युक्त व्यक्तित्व के धनी थे। मेरे पिता का व्यक्तित्व में भी उक्त सभी गुणों का समावेश जो एक पिता के सर्वमान्य गुण होते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न -
Husain Ki Kahani Apni Jubani Class 11 Question Answer प्रश्न 1.
मकबूल अब लड़का नहीं रहा क्योंकि -
(अ) वह 18 वर्ष का हो गया
(ब) उसे बोर्डिंग स्कूल में प्रवेश दिला दिया
(स) उसके दादा चल बसे।
(द) वह चित्रकारी करने लग गया।
उत्तर :
(स) उसके दादा चल बसे।
Antral Class 11 Chapter 2 Question Answer प्रश्न 2.
बड़ौदा शहर में दाखिल होने पर दूर से क्या दिखाई देता था?
(अ) बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल
(ब) साफ-सुथरी सड़कें
(स) रानीपुर बाजार
(द) 'हिज हाइनेस' की घोड़े पर सवार मूर्ति।
उत्तर :
(द) 'हिज हाइनेस' की घोड़े पर सवार मूर्ति।
हुसैन की कहानी अपनी जुबानी प्रश्न 3.
बोर्डिंग स्कूल में मकबूल के क्लास टीचर कौन थे?
(अ) केशवलाल
(ब) मेजर अब्दुल्ला पठान
(स) हकीम अब्बास तैयब जी
(द) मौलवी अकबर।
उत्तर :
(अ) केशवलाल
प्रश्न 4.
मेजर अब्दुल्ला पठान बोर्डिंग स्कूल में क्या कार्य करते थे?
(अ) बैण्ड मास्टर
(ब) स्काउट मास्टर
(स) बाबर्ची
(द) ड्राइंग मास्टर।
उत्तर :
(ब) स्काउट मास्टर
प्रश्न 5.
मकबूल के मित्रों में बात में बात मिलाने में उस्ताद कौन था?
(अ) अरशद
(ब) अब्बास अहमद
(स) हामिद कंवर हुसैन
(द) अब्बास अली फिदा।
उत्तर :
(स) हामिद कंवर हुसैन
प्रश्न 6.
निम्न में से अब्बास अली फिदा की विशेषता थी -
(अ) स्वभाव से बिजनेसमैन
(ब) गाने व खाने का शौकीन
(स) खुशमिजाज
(द) वक्त का पाबंद।
उत्तर :
(द) वक्त का पाबंद।
प्रश्न 7.
रानीपुर बाजार में चाचा मुराद अली को उनके बड़े भाई ने सर्वप्रथम किसकी दुकान खुलवाई?
(अ) जनरल स्टोर
(ब) रेस्तराँ
(स) कपड़े की दुकान
(द) ऑयल पेंट की दुकान।
उत्तर :
(अ) जनरल स्टोर
प्रश्न 8.
मकबूल ने पहली ऑयल पेंटिंग बनाने का निश्चय किसे देखकर किया?
(अ) मेहतरानी को देखकर
(ब) फिल्मी इश्तिहार को देखकर
(स) पेंचवाली पगड़ी को देखकर
(द) बेन्द्रे की पेंटिंग देखकर।
उत्तर :
(ब) फिल्मी इश्तिहार को देखकर
प्रश्न 9.
मकबूल ने अपनी पाठ्य-पुस्तकें क्यों बेच डालीं?
(अ) वह पढ़ना नहीं चाहता था
(ब) उसे किताबों से प्रेम नहीं था
(स) वह उन्हें बेचकर ऑयल ट्यूब खरीदना चाहता था
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(स) वह उन्हें बेचकर ऑयल ट्यूब खरीदना चाहता था
प्रश्न 10.
बेन्द्रे साहब की मकबूल के पिता से मुलाकात का क्या परिणाम निकला?
(अ) मकबूल के पिता क्रोधित हो गए
(ब) उन्होंने मकबूल की चित्रकारी बंद करा दी
(स) उन्होंने मकबूल को दुकान खुलवा दी
(द) उन्होंने मकबूल के लिए ऑयल ट्यूब व कैनवस मँगवाने का आदेश दिया।
उत्तर :
(द) उन्होंने मकबूल के लिए ऑयल ट्यूब व कैनवस मँगवाने का आदेश दिया।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
मकबूल के पिता के अनुसार मकबूल बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में क्या-क्या सीख सकता था?
उत्तर :
मकबूल के पिता के अनुसार वह बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के साथ मजहबी तालीम, रोजा, नमाज, अच्छे आचरण के चालीस सबक तथा पाकीजगी या पवित्रता के बारह तरीके सीख सकता था।
प्रश्न 2.
बड़ौदा शहर में स्थापित मूर्ति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बड़ौदा शहर में महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ की मूर्ति स्थापित थी, जो पाँच धातुओं से बनी थी। इसमें महाराजा एक शानदार घोड़े पर सवार थे। उनके तने हुए सीने पर 'दौलते बरतानिया' के मैडल लटके हुए थे।
प्रश्न 3.
बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में लड़कों की वेशभूषा क्या थी और क्यों?
उत्तर :
बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में लड़के खादी का कुरता-पायजामा पहनते थे। उनके मुंड़े सिरों पर गाँधी टोपी रहती थी, क्योंकि इस स्कूल के संचालक हकीम अब्बास तैयब जी थे, जो नेशनल काँग्रेस और गाँधीजी के अनुयायी थे।
प्रश्न 4.
मकबूल के मित्र मोहम्मद इब्राहीम गौहर अली के बारे में लिखिए।
उत्तर :
मकबूल का मित्र मोहम्मद इब्राहीम गौहर अली डभोई का इत्र बेचने वाला व्यापारी बना। उसका कद छोटा था तथा नजरें ठहरी हुई थीं। वह अम्बर व मुश्क के इत्रों में डूबा रहता था एवं अनेक गुणों का भण्डार था।
प्रश्न 5.
मकबूल की खेलकूदों में कैसी स्थिति थी? आत्मकथा के आधार पर बताइए।
उत्तर :
मकबूल ने विद्यालय में खेलकूद में भी भाग लिया। उन्होंने हाई जंप अर्थात् ऊँची कूद में पहला इनाम प्राप्त किया, परन्तु वे दौड़ में फिसड्डी रह गए।
प्रश्न 6.
दो अक्टूबर के दिन अब्बास तैयब जी मकबूल की किस बात पर प्रसन्न हुए?
उत्तर :
दो अक्टूबर को बोर्डिंग स्कूल में गाँधीजी का जन्म-दिन मनाया जा रहा था। मकबूल फिदा हुसैन ने ब्लैकबोर्ड पर गाँधीजी क पोर्टेट बनाया, जिसे देखकर स्कूल के संचालक अब्बास तैयब जी अत्यन्त प्रसन्न हुए।
प्रश्न 7.
क्या मकबूल गणित विषय में दक्ष थे? कारण सहित उत्तर लिखें।
उत्तर :
मकबूल गणित विषय में दक्ष थे, क्योंकि उन्हें मुराद चाचा के होटल में घूमती हुई चाय की प्यालियों की गिनती और पहाड़े मौखिक याद रहते थे। वे गल्ले या तिजोरी का हिसाब-किताब भी सही रखते थे।
प्रश्न 8.
मकबूल की बेन्द्रे साहब से मुलाकात कहाँ और कैसे हुई?
उत्तर :
मकबूल की बेन्द्रे साहब से मुलाकात तब हुई जब मकबूल इन्दौर सर्राफा बाजार के निकट ताँबे-पीतल की दुकानों की गली में लैण्डस्केप बना रहा था। वहाँ मकबूल की बेन्द्रे साहब से मुलाकात हुई।
प्रश्न 9.
हिन्दुस्तानी आर्ट का पहला क्रान्तिकारी कदम कौन-सा था?
उत्तर :
सन् 1933 में प्रमुख चित्रकार बेन्द्रे साहब ने केनवस पर एक बड़ी पेंटिंग बनाई जिस पर 'बम्बई आर्ट सोयायटी' ने चाँदी का मैडेल पुरस्कारस्वरूप प्रदान किया। यह हिन्दुस्तानी आर्ट का पहला क्रान्तिकारी कदम था।
प्रश्न 10.
'बेटा जाओ और जिन्दगी को रंगों से भर दो' ये शब्द किसने, किससे और क्यों कहे?
उत्तर :
ये शब्द मकबूल फिदा हुसैन के पिता ने अपने पुत्र मकबूल से कहे। मकबूल के पिता ने ये शब्द इसलिए कहे क्योंकि वे अपने खुले विचारों के कारण अपने पुत्र को कला के प्रति प्रेरित व प्रोत्साहित करना चाहते थे। वे उसकी सभी बंदिशों या नियन्त्रणों को तोड़कर उसे अपनी रुचि के अनुसार चित्रकारी करने की स्वतन्त्रता देना चाहते थे।
लघु एवं दीर्य उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
मकबूल के पिता ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में दाखिल कराने के बारे में क्यों सोचा?
उत्तर :
मकबूल अपने दादा से बहुत प्यार करता था। अभी वह लड़कपन की अवस्था से आगे बढ़ा ही था कि उसके दादा इस दुनिया से चल बसे। दादा की मृत्यु से मकबूल को बहुत दु:ख हुआ। वह किसी से बात नहीं करता था तथा हमेशा ही गुमसुम बना रहता था। वह दिनभर अपने दादा के ही कमरे में बन्द रहता था। कमरे से बाहर निकलना उसको अच्छा नहीं लगता था। वह अपने दादा के कमरे में उनके ही बिस्तर पर सोता था। वह अपने दादा की भूरे रंग की अचकन को ओढ़ लेता।
अचकन के साथ सोने पर उसको ऐसा लगता था जैसे कि वह अपने दादा की बगल में ही उनके बिस्तर पर सो रहा हो। उसको दादा के लिये इस तरह दु:खी और गमगीन देखकर उसके पिता ने सोचा कि उसको इस दु:ख से बाहर लाया जाये। बहुत सोचने के बाद उसके पिता इस निश्चय पर पहुँचे कि मकबूल को बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिया जाये। वहाँ नई जगह में अपनी उम्र के लड़कों के साथ रहकर वह गम से बाहर आ सकेगा। पढ़ाई के साथ उसको वहाँ मजहबी तालीम भी मिल जायेगी तथा वह रोजा, नमाज, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीजगी के बारह तरीके सीख जायेगा।
प्रश्न 2.
मकबूल ने आत्मकथा में बड़ौदा शहर की क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर :
मकबूल ने लिखा है कि बड़ौदा एक साफ-सुथरा तथा बड़ा शहर था। वह महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का शहर था। महाराज सियाजीराव गायकवाड़.वहाँ के शासक थे। वह मराठी थे किन्तु बड़ौदा शहर के रहने वाले गुजराती थे। शहर में घुसते ही 'हिज हाईनेस' अर्थात् महाराज सियाजीराव गायकवाड़ की मूर्ति वहाँ लगी हुयी दिखाई देती थी। यह मूर्ति पाँच धातुओं को मिलाकर बनाई गयी थी। मूर्ति में महाराजा एक शानदार घोड़े पर सवार दिखाई देते थे। उनका सीना तना हुआ था तथा उनके गले में 'दौलते बरतानिया' के मेडेल लटके हुये थे। यह दृश्य शहर में प्रवेश करते ही दूर से दिखाई देता था।
प्रश्न 3.
मकबूल ने बोर्डिंग स्कूल के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर :
मकबूल को बड़ौदा के जिस बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था, वह दारुलतुलबा (छात्रावास) मदरसा हुसामिया सिंह बाई मातारोड, गौडी गेट पर स्थित था। सुलेमानी जमात का यह बोर्डिंग स्कूल तालाब के किनारे पर था। हकीम तैयब जी इसके प्रबन्धक थे। वह यूनानी पद्धति से दवायें बनाते थे। उनकी यूनानी दवा 'अरके तिहाल' पूरे गुजरात में मशहूर थी और अपनी इसी दवा के कारण हकीम तैयब जी भी प्रसिद्ध थे। तैयब जी नेशनल कांग्रेस तथा महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। इस कारण छात्रावास में छात्रों को अपने सिर के बाल कटवाकर तथा उस पर गाँधी टोपी पहनकर रहना पड़ता था। उनको अपने शरीर पर खादी का कुर्ता और पायजामा पहनना होता था।
बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में मौलवी अकबर कुरान और उर्दू साहित्य पढ़ाया करते थे। वे इस्लाम धर्म के विद्वान थे। मकबूल के कक्षाध्यक्ष केशवलाल गुजराती भाषा के शिक्षक थे। मेजर अब्दुल्ला पठान स्काउट मास्टर थे। बैंड मास्टर थे गुलजमा खान। मोहम्मद अतहर ड्राइंग पढ़ाते थे। वहाँ बावर्ची गुलाम रोटियाँ पकाते थे ओर बीवी नरगिस गोश्त की रसेदार तरकारी तैयार करती थीं।
प्रश्न 4.
बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में रहते हुये मकबूल की दोस्ती जिन लड़कों से हुयी, उनके बारे में आत्मकथा में क्या बताया गया है?
उत्तर :
बड़ौदा के स्कूल में मकबूल की दोस्ती छः लड़कों से हुई। दो साल का यह साथ जीवनभर की दोस्ती बन गया। स्कूल के बाद ये सभी अलग हो गये। उनमें से एक डभोई का अत्तर (इत्र) व्यापारी बन गया। दूसरे की आवाज सियाजी रेडियो पर सुनाई देने लगी। उनमें से एक कराची शहर में जाकर बस गया। एक अन्य मोती की तलाश करते हुये कुवैत जा पहुँचा। उनमें से एक लड़का बंबई (मुम्बई) चला गया और वहाँ अपना कोट, पतलून और पीली धारीदार टाई उतारकर अबा-कबा पहन लिया और मस्जिद का मेम्बर बन गया। एक अन्य अर्थात् छठवाँ लड़का उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर पैर रकाब में डालकर कलाकार बना और दुनिया की लम्बाई-चौड़ाई में चक्कर मार रहा है।
प्रश्न 5.
मकबूल के बोर्डिंग स्कूल के पाँच दोस्तों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिये। उत्तर : बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में रहते हुये मकबूल की दोस्ती पाँच लड़कों से हुई थी। ये दोस्त निम्नलिखित थे
1. मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली-इसका कद छोटा था तथा नजरें ठहरी हुई थीं। वह गुणों का भंडार था तथा हमेशा अंबर और मुश्क के इत्र में डूबा रहता था। वह डभोई का इत्र-व्यापारी था।
2. अरशद-डॉ. मनव्वरी का लड़का था। वह सदा हँसता रहता था तथा गाने और खाने का शौकीन था। उसका शरीर भरा हुआ और पहलवानों के समान पुष्ट था।
3. हामिद कँवर हुसैन-खुशमिजाज और बातून था। वह बात में बात मिलाने में चतुर था। दंड-बैठक और कुश्ती का शौकीन था। 4. अब्बास जी अहमद-शरीर गठा हुआ, रंग साफ तथा आँखें जापानियों जैसी कुछ खिंची हुई थीं। उसकी हँसी मोहक
थी तथा वह स्वभाव से व्यापारी था।
5. अब्बास अली फिदा-लहजा नरम तथा माथा ऊँचा था। वह खामोश रहता था तथा वक्त का पाबंद था। उसके हाथ में किताब हमेशा रहती थी।
प्रश्न 6.
मकबूल फिदा हुसैन ने उस्तादों की अनुमति के बिना स्कूल में अपने तस्वीरें किस प्रकार खिंचवाईं ?
उत्तर :
मकबूल जिस मदरसे में पढ़ता था उसका वार्षिकोत्सव हो रहा था। ग्रुप फोटोग्राफ उतारा जा रहा था। कैमरा तिपाही पर टिका था और उस पर काला कपड़ा ढका हुआ था। मुगलबाड़े के मशहूर फोटोग्राफर उसमें अपना चेहरा घुसाकर कैमरे को सैट कर रहे थे और उसका फोकस देख रहे थे। मकबूल दूर लड़कों की भीड़ में खड़ा था। वह अपना फोटो खिंचवाना चाहता था और मौके की तलाश में था। जैसे ही लकमानी ने कैमरे का फोकस जमाया और 'रैडी' कहा, मक दौड़कर ग्रुप के कोने में जा खड़ा हुआ। इस तरह बिना अपने उस्तादों की अनुमति के ही उसने अपनी कई तस्वीरें खिंचवाईं।
प्रश्न 7.
स्कूल में अपने क्रिया-कलापों तथा चित्रकारी के सम्बन्ध में मकबूल ने क्या लिखा है?
उत्तर :
स्कूल में मकबूल खेलकूद में हिस्सा लेता था। उसको हाई जंप (ऊँची कूद) में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। परन्तु दौड़ में वह कोई इनाम प्राप्त न कर सका और फिसड्डी सिद्ध हुआ।
एक बार ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अतहर ने ब्लैक बोर्ड पर सफेद चाक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से उसकी नकल अपनी-अपनी स्लेट पर करने का आदेश दिया। मकबूल ने अपनी स्लेट पर चिड़िया बनाई। उसे देखकर ऐसा लगा जैसे हूबहू वही चिड़िया ब्लैकबोर्ड से उतरकर उसकी स्लेट पर आ बैठी हो। इस चित्र पर उसको दस में दस नम्बर मिले। एक बार दो अक्टूबर को गाँधी जी की जयन्ती स्कूल में मनाई जा रही थी। क्लास शुरू होने से पहले ही मकबूल ने ब्लैकबोर्ड पर गाँधी जी का पोट बना दिया था। उसे देखकर अब्बास तैयब जी बहुत खुश हुये थे।
मदरसे के जलसे के मौके पर मौलवी अकबर ने मकबूल को इल्म (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण याद कराया था। उसे अभिनय के साथ भाषण देना था। उसमें एक फारसी शेर था, जिसका अर्थ था जिसने किसी हुनर में कमाल हासिल किया, वह पूरी दुनिया का चहेता बन गया। जिसके पास कोई हुनर का कमाल नहीं है, वह दुनिया के दिलों को कभी भी नहीं जीत सकता। आगे चलकर मकबूल के हुनर (चित्रकला) का कमाल दुनिया में फैला। उसे दुनिया का प्यार तथा प्रसिद्धि मिली परन्तु उस समय यह किसी को पता नहीं था।
प्रश्न 8.
मकबूल के पिता ने अपने चाचा मुराद अली को व्यापार में क्या सहायता की? वह मकबूल से क्या चाहते थे?
उत्तर :
मकबूल फिदा हुसैन के पिता ने अपने भाई मुराद अली को रानीगंज बाजार में एक जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी थी। फिदा साहब सर करीम भाई की 'मालवा टैक्सटाइल' में टाइमकीपर थे किन्तु व्यापार में उनकी दिलचस्पी थी। उनका छोटा भाई मुराद अली पहलवानी करता था। पहलवानी छुड़वाकर दुकान कराई। उसके न चलने पर फिर कपड़े की दुकान खुलवाई और वह भी नहीं चली तो तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्तराँ खुलवाया।
फिदा साहब चाहते थे कि उनका बेटा छुट्टी वाले दिन दुकान पर बैठे और व्यापार के गुन सीखे। मकबूल उन दुकानों पर बैठा अवश्य परन्तु उसका ध्यान सदा ड्राइंग और पेंटिंग पर ही लगा रहता था। उसे चीजों की कीमतें याद नहीं थीं, न कपड़ों की पहनाई का पता था। उसे होटल में घूमती चाय की प्यालियों की गिनती और पहाड़े जबानी याद रहते थे। गल्ले का हिसाब-किताब सही रहता था। शाम को हिसाब में दस रुपये लिखता था तो किताब में बीस स्केच बनाता था। इस तरह उसका ध्यान ड्राइंग में ही लगा रहता था।
प्रश्न 9.
जनरल स्टोर की दुकान पर बैठते समय मकबूल ने चित्रकारी के प्रति अपने रुझान को किस तरह प्रकट किया?
उत्तर :
मकबूल अपने चाचा की जनरल स्टोर की दुकान पर बैठता था। उसके पिताजी का आदेश था कि वह छुट्टी के दिन यहाँ बैठकर व्यापार के गुन सीखे। परन्तु मकबूल का रुझान तो कला की ओर था। उसका ध्यान सदा स्केच बनाने में लगा रहता था। जनरल स्टोर के सामने से अक्सर एक मेहतरानी चूँघट डाले गुजरा करती थी। वह कपड़े धोने के साबुन की टिकिया लेने दुकान पर आया करती थी। चाचा को देखकर वह चूँघट हटा देती थी और प्रायः मकबूल की नाक पकड़कर खिलखिलाकर हँसा करती थी। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाये थे। एक स्केच उसके हाथ लग गया, जिसको उसने फुर्ती से अपनी चोली में छिपा लिया। मकबूल ने बड़ी चतुराई से एक पिपरमिंट की गोली उसे देकर स्केच उससे प्राप्त कर लिया। इसके अतिरिक्त उसने गेहूँ की बोरी उठाये मजदूर, पेंचवाली पगड़ी, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान, बुरका पहने औरत तथा बकरी के बच्चों इत्यादि के स्केच भी दुकान पर रहते हुये ही बनाये थे।
प्रश्न 10.
मकबूल को ऑयल कलर का प्रयोग चित्रकारी में करने का विचार कब आया?
उत्तर :
मकबूल अब तक अनेक चित्र बना चुका था। इन चित्रों को बनाने के लिये उसने रंगीन चॉक अथवा वाटर कलर्स का ही प्रयोग किया था। एक दिन वह दुकान पर बैठा था। उसने सामने एक ताँगे को गुजरते देखा, जिस पर फिल्मी विज्ञापन लटका हुआ था। उस समय मूक फिल्में बना करती थीं। उनके विज्ञापन के लिये ताँगे पर इश्तिहार लगाकर ब्रास बैंड की ध्वनि के साथ उसे शहर की गलियों-सड़कों पर घुमाया जाता था। पतंग के कागज पर बने हीरो-हीरोइनों के चित्र वाले पर्चे बाँटे जाते थे। मकबूल ने देखा कि रंगीन कागज पर छपा कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म 'सिंहगढ़' का पोस्टर ताँगे पर लगा था। उसमें एक मराठा योद्धा हाथ में नंगी तलवार तथा ढाल लिये खड़ा दिखाई दे रहा था। मकबुल के मन में तुरन्त यह विचार आया कि ऑयल कलर का इस्तेमाल करके इसकी ऑयल पेंटिंग बनायी जाये।
प्रश्न 11.
मकबूल ने ऑयल कलर प्राप्त करने के लिये क्या तरीका अपनाया?
उत्तर :
मकबूल ने फिल्मी पोस्टर को देखा तो उसको ऑयल कलर में बनाने का विचार उसके मन में आया। यह विचार बार-बार उसके मन में उठने लगा मगर उसके पास आयल कलर थे ही नहीं। अब तक तो वह वाटर कलर अथवा रंगीन चॉक का प्रयोग करके ही चित्रकारी करता रहा था। ऑयल कलर खरीदने के लिये मकबूल के पास पैसे नहीं थे। अब्बा से भी वह पैसे नहीं माँग सकता था क्योंकि अब्बा तो मकबूल को एक सफल बिजनेसमैन बनाना चाहते थे।
वह उसको पैसे क्यों देते? मकबूल को एक उपाय सूझा। वह सीधा अली हुसैन रंग वाले की दुकान पर पहुंचा और ऑयल कलर्स की ट्यूबें खरीद डाली। इसके लिये उसने अपनी स्कूल की दो किताबें, जो संभवतः भूगोल और इतिहास की थीं, बेच डाली। उसने अपनी पहली ऑयल पेंटिंग चाचा की दुकान पर बैठकर ही बनाई। इससे चाचा बहुत नाराज हुये और इसकी शिकायत अपने बड़े भाई से की। जब मकबूल के पिता ने पेंटिंग देखी तो अपने बेटे को गले से लगा लिया।
प्रश्न 12.
बेंद्रे कौन थे? मकबूल के पिता से उनकी जान-पहचान कैसे हुई?
उत्तर :
बेंद्रे एक चित्रकार थे जो बाद में बड़ौदा जाकर फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट के डीन बन गये। एक बार मकबूल इंदौर के सर्राफा बाजार के पास ताँबे-पीतल की दुकानों वाली गली में लेंडस्केप बना रहा था। वहाँ बेन्द्रे साहब भी ऑन स्पॉट पेंटिंग करते मिले। मकबूल को बेंद्रे साहब की तकनीक बहुत पसंद आई। इसके बाद वह अक्सर बेंद्रे के साथ 'लैंडस्केप' पेंट करने जाया करता था। मकबूल ने अपनी पेंटिंग की शुरुआत इंदौर में की थी। वहाँ बेंद्रे के सिवाय उसके पास कोई नहीं था। मकबूल वहाँ अक्सर बेंद्रे के पास चला जाता था। घर पर उसने उनको अपने अब्बा से मिलवाया। इस तरह बेंद्रे की मुलाकात मकबूल के अब्बा से हुई।
प्रश्न 13.
बंबई आर्ट सोसाइटी ने बेंद्रे को किस कलाकृति के लिये पुरस्कृत किया था?
उत्तर :
बेंद्रे इंदौर के सर्राफा बाजार में ऑन स्पॉट पेंटिंग करते हुये मकबूल को मिले थे। वह 'टिंटेड पेपर' पर 'गोआश वॉटर कलर' का प्रयोग किया करते थे। सन् 1933 में बेन्द्रे ने कैनवास पर एक बड़ी पेंटिंग घर में ही पेंट करना शुरू किया था। इस पेंटिंग का नाम 'बैग बांड' था। बेंद्रे ने इसके लिये अपने छोटे भाई को अपना मॉडल बनाया था। उसको एक नौजवान पठान के कपड़े पहनाये गये। उसके सिर पर हरा रूमाल बाँधा गया। उसके कंधे पर कम्बल तथा हाथ में डंडा था। इस पेंटिंग में फ्रेंच इंप्रेशन की झलक थी। रॉयल अकादमी का रूखा रियालिज्म, उस पर एक्सप्रेशनिस्ट ब्रश स्ट्रोक का ढाँचा। इस पेंटिंग पर बंबई आर्ट सोसायटी ने बेंद्रे को चाँदी का मेडेल प्रदान किया था। यह हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट का पहला क्रान्तिकारी कदम था।
प्रश्न 14.
मकबूल को अपने पिता की किस बात पर आश्चर्य होता है?
उत्तर :
बेंद्रे मकबूल के घर गये और उनके अब्बा से मुलाकात की। बेंद्रे से बातें करने के बाद दूसरे दिन अब्बा ने बंबई से 'विनसर न्यूटन' ऑयल ट्यूब और कैनवास मँगवाने का आदेश दे दिया। वह दूसरी तरह का जमाना था। मकबूल के पिता इंदौर के कपड़ा मिल में काम करते थे। वहाँ का माहौल कला के अनुकूल नहीं था। काजी और मौलवी उनके पड़ोसी थे। वे भी कला को अच्छा काम नहीं समझते थे। परिस्थिति पूरी तरह मकबूल की पसंद-कला के प्रतिकूल थी।
तब कला को राजा-महाराजाओं और अमीरों की अय्याशी का साधन माना जाता था। महलों से उतरकर कारखानों तक पहुँचने के लिये कला को अभी आधी शताब्दी की जरूरत थी। मकबूल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उपर्युक्त परिस्थितियों में उसके पिता अपने पुत्र को आर्ट के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिये किस प्रकार राजी हो गये। उनकी स्वतंत्र विचारधारा ने पचास वर्ष बाद की स्थिति की कैसी कल्पना कर ली? बेंद्रे की सलाह पर उन्होंने अपने बेटे मकबूल के रास्ते के सभी पारंपरिक अवरोधों की उपेक्षा की और मकबूल को कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दे दिया।
प्रश्न 15.
आत्मकथा किसे कहते हैं? मकबूल फिदा हुसैन की 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' कैसी रचना है?
उत्तर :
आत्मकथा हिन्दी गद्य की एक विधा है। इसमें लेखक अपने जीवन के विषय में स्वयं लिखता है। इस लेखन में वह पक्षपात से निरपेक्ष रहता है। इसमें वह अपने गुणों और अवगुणों का चित्रण तटस्थ रहकर करता है। यह वर्णन संतुलित और व्यवस्थित होता है। आत्मकथा उस लेखक के जीवन का क्रमबद्ध विवरण होता है। वह अपने जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं तथा बातों को एक उद्देश्य के अनुरूप पाठकों के समक्ष निष्पक्ष होकर रखता है।
'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' एक आत्मकथा है। इसके लेखक प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन हैं। इस आत्मकथा के यहाँ इस पाठ्य-पुस्तक में केवल दो अंश प्रस्तुत किये गये हैं। पहला अंश-बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल है। इसमें लेखक ने बड़ौदा स्थित बोर्डिंग स्कूल के शिक्षकों, दो वर्ष वहाँ रहने पर बने अपने मित्रों तथा अपने जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं का वर्णन किया है। इस वर्णन से पता चलता है कि चित्रकला के प्रति रुचि हुसैन में प्रारम्भ से ही थी तथा उसको विकसित होने का अवसर इस स्कूल में उनको प्राप्त हुआ था।
इसका दूसरा अंश है-'रानीगंज का बाजार'। इस अंश में लेखक ने लिखा है कि उनके पिता उनको व्यापार की ओर मोड़ना चाहते थे। परन्तु दुकान पर बैठते हुये भी हुसैन का झुकाव चित्रकला के प्रति बराबर बना रहा। यहाँ बेंद्रे से उनकी भेंट तथा उसके कारण मकबूल को चित्रकला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये प्राप्त पिता के समर्थन का चित्रण है। हुसैन की आत्मकथा के ये अंश अत्यन्त आकर्षक हैं तथा उनके अन्दर स्थित चित्रकला के रुझान को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 16.
'हुसैन की कहानी अपनी जबानी-एक उद्देश्पूर्ण रचना है।' इस कथन पर पाठ के आधार पर विचार कीजिये।
उत्तर :
आत्मकथा हिन्दी गद्य की एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक अपने जीवन की कहानी स्वयं कहता है। इसमें वह अपने जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं का वर्णन एक उददेश्य के अन्तर्गत करता है। उददेश्य को ध्यान में रखते हये ही लेखक अपने जीवन से कुछ घटनाओं का चयन करता है। वह उन घटनाओं को चुनता तथा प्रस्तुत करता है जिनसे लेखक के व्यक्तित्व का विकास दिखाई दे सके। मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा के प्रस्तुत दो अंशों में उनके विद्यार्थी-जीवन का वर्णन है।
पहले अंश में उनके बोर्डिंग स्कूल में रहकर पढ़ने का तथा दूसरे 'रानीगंज का बाजार' में व्यापार को करते हुये भी उनके चित्रकला के प्रति झुकाव का। इन दोनों ही अंशों से प्रकट होता है कि लेखक की रुचि चित्रकला के प्रति आरम्भ से ही थी। स्कूल में उसने ब्लैकबोर्ड पर बनाये गये चिड़िया के स्कैच को हूबहू अपनी स्लेट पर उतार दिया था। उसके द्वारा ब्लैकबोर्ड पर बनाये गये गाँधी जी के स्कैच को देखकर अब्बास तैयब जी बहुत खुश हुये थे।
दूसरे अंश 'रानीगंज का बाजार' में हुसैन के चित्रकला के प्रति रुझान का वर्णन है। वह दकान पर बैठे-बैठे मेहतरानी, मजदूर की पगड़ी, बुर्का वाली औरत तथा बकरी आदि बनाता था। दस रुपये का हिसाब लिखता था तो कापी में बीस स्कैच भी बनाता था। आत्मकथा के इन अंशों का उद्देश्य मकबूल की इसी चित्रकला के प्रति गहन रुचि को प्रदर्शित करता है। वह कहना चाहता है कि प्रतिभा के विकास के लिये प्रतिभा के विकास का सही अवसर तथा उचित मार्गदर्शन मिल जाये तो सफलता असंदिग्ध हो जाती है।
प्रश्न 17.
'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' आत्मकथा की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' के लेखक एक प्रसिद्ध चित्रकार हैं। इस आत्मकथा के प्रस्तुत दो अंशों का सम्बन्ध हुसैन के विद्यार्थी जीवन से है। लेखक ने यहाँ अपनी चित्रकला के प्रति बचपन में ही प्रकट हई रुचि के बारे में बताया है।
भाषा-प्रस्तुत आत्मकथा में लेखक ने अपनी बात कहने के लिये खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इसमें अरबी-फारसी . के शब्दों का प्रयोग निर्बाध रूप में किया गया है। तत्सम शब्दावली का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। यत्र-तत्र आचरण, धातु, ख्याति, अनुयायी, साहित्य, स्वभाव इत्यादि तत्सम शब्द मिलते हैं।
बहुलता अरबी-फारसी शब्दों की है। अंग्रेजी के शब्दों यथा लैंडस्केप, पेंटिंग, ऑयल कलर, सोसायटी, स्लेट, ब्लैक बोर्ड, बोर्डिंग स्कूल, ट्राइपाड, ग्रुप फोटोग्राफ, फोकश, रैडी इत्यादि की भरमार है। यूँघट के पट खुलना, खिलखिला उठना, सपने देखना आदि मुहावरों का प्रयोग भी लेखक ने किया है। कुल मिलाकर इस आत्मकथा की भाषा सशक्त तथा प्रभावपूर्ण है। वह वर्णित विषय को व्यक्त करने में समर्थ है। यह आत्मकथा देवनागरी लिपि में लिखित उर्दू भाषा की रचना ही अधिक जान पड़ती है।
शैली - लेखक ने इस आत्मकथा के लिये वर्णनात्मक शैली को अपनाया है। प्रधानता इसी की है। वैसे इसमें प्रतीकात्मक शैली तथा व्यंग्यपूर्ण शैली भी प्रयुक्त हुई है। अपने दोस्तों के वर्णन में चित्रात्मक शैली को अपनाया गया है, उदाहरणार्थ-खिंची-सी आँखें, स्वभाव से बिजनेसमैन, हँसने का अंदाज दिलकश। आत्मकथा. के लिये प्रायः आत्मकथन शैली को अपनाया जाता है। इसमें 'मैं', 'हम' इत्यादि सर्वनाम वाक्य में कर्ता होते हैं। परन्तु प्रस्तुत आत्मकथा में लेखक ने अन्य पुरुष अर्थात् वर्णनात्मक शैली को अपनाया है। यहाँ मैं के स्थान पर अपना नाम मकबूल ही क्रिया का कर्ता है।
प्रश्न 18.
आत्मकथा का वर्गीकरण कीजिये। प्रस्तुत आत्मकथा 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' किस प्रकार की '
उत्तर :
आत्मकथा लेखक द्वारा लिखी अपनी जीवनकथा होती है। इसमें लेखक अपने जीवन से कुछ घटनाओं को चुनकर एक निश्चित उद्देश्य के साथ प्रस्तुत करता है। गोविन्द त्रिगुणायत ने आत्मकथा साहित्य को तीन वर्गों में विभाजित किया है -
उपर्युक्त वर्गीकरण से स्पष्ट है कि सन्तों, साधुओं, संन्यासियों अथवा धार्मिक महापुरुषों द्वारा वर्णित आत्मकथायें इस श्रेणी में आती हैं। 'मेरा जीवन प्रवाह' (वियोगी हरि), 'प्रवासी की आत्मकथा' (स्वामी दयाल संन्यासी), 'साधना के पथ पर' (हरिभाऊ उपाध्याय) आदि आत्मकथायें इसी वर्ग की हैं। राजनैतिक जीवन की समस्याओं का वर्णन दूसरे वर्ग की आत्मकथाओं में पाया जाता है। महात्मा गाँधी की 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' तथा जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' इसी वर्ग की रचनायें हैं। कला क्षेत्र से सम्बन्धित आत्मकथाओं के लेखक चित्रकार, कवि, लेखक, संगीतकार इत्यादि हुआ करते हैं। उनके वर्णन कलात्मक होते हैं। इस श्रेणी में देवेन्द्र सत्यार्थी की 'सूरज-चाँद के बीच' तथा कन्हैया लाल मुंशी की 'स्वप्न सिद्धि की खोज में' में आत्मकथाओं को रखा जा सकता है।
प्रस्तुत आत्मकथा 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' को हम तीसरे वर्ग के अन्तर्गत रखेंगे। इस आत्मकथा के लेखक एक प्रसिद्ध चित्रकार हैं। लेखक ने इसमें अपने जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं को प्रस्तुत किया है। लेखक द्वारा प्रस्तुत स्कूल का वर्णन, पाँच मित्रों का वर्णन, बड़ौदा शहर का वर्णन इत्यादि में चित्रालक्षण है। विद्यार्थी जीवन से सम्बन्धित इन दोनों ही अंशों में लेखक ने स्पष्ट किया है कि बचपन से ही चित्रकला के प्रति उसकी जो रुचि थी, वह उसके जीवन में हर . अवस्था तथा परिस्थिति में बनी रही। प्रस्तुत अंशों में जो वर्णन है वह अत्यन्त सजीव तथा कलात्मक है। लेखक ने अपनी बात प्रतीकात्मक शैली में भी कही है, जो अत्यन्त रोचक है-'अब्बा की रोशनख्याली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नजरअंदाज कर गयी..............'।
प्रश्न 19.
प्रस्तुत आत्मकथा के आधार पर मकबूल फिदा हुसैन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर :
'हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी' के आधार पर पता चलता है कि उसके लेखक हुसैन एक लगनशील तथा परिश्रमी व्यक्ति हैं। आत्मकथा के अनुसार उनके जीवन की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं -
जन्मजात कलाकार हुसैन जन्मजात कलाकार हैं। बचपन से ही उनकी रुचि चित्रकला में रही है। बोर्डिंग स्कूल में रहते समय तथा रानीगंज के बाजार में दुकान देखते समय उनकी रुचि का प्रमाण बार-बार मिलता है। वह ब्लैक बोर्ड से चिड़िया की नकल हूबहू कर लेते हैं तथा ब्लैकबोर्ड पर गाँधी जी का सजीव चित्र बना देते हैं। दुकान पर काम करते हुये ही मेहतरानी, मजदूर की पगड़ी, बुर्का पहने स्त्री तथा बकरी इत्यादि का स्केच वह आसानी से बना देते थे। हिसाब-किताब में दस रुपये लिखते थे तो कापी में बीस स्कैच बनाते थे।
लगनशील-मकबूल अपनी धुन के पक्के तथा लगनशील थे। फिल्म का वाटर कलर में निर्मित चित्र देखकर मकबूल ने उसे ऑयल कलर में बनाना चाहा। ऑयल कलर खरीदने के लिये उसने अपनी स्कूल की किताबें बेच दी। ही मित्र-मकबल स्नेही मित्र था। स्कल में जिन लड़कों के साथ दो साल रहकर उनकी मित्रता हयी थी, वह कभी नहीं टूटी और जीवनभर बनी रही। उन्होंने लिखा है-"दो साल की नजदीकी तमाम उम्र कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई।"
पिता के प्रिय-मकबूल के पिता उनको बहुत चाहते थे। दादा की मृत्यु के शोक से बाहर निकालने तथा अच्छी तालीम के लिये उन्होंने मकबल को बड़ौदा के स्कूल में भेजा। उन्होंने मकबूल की चित्रकला के प्रति रुचि देखकर उसे हर प्रकार प्रोत्साहित किया। दादा से प्रेम-मकबूल दादा से बहुत प्रेम करते थे। उनके मरने पर वह उन्हीं के कमरे में उनकी अचकन ओढ़कर उनके बिस्तर पर सोते थे। वह हमेशा दुःखी रहते तथा रोते रहते थे। इन गुणों के अतिरिक्त मकबूल खेलकूद में कुशल थे। स्कूल में वह कभी-कभी शरारत भी करते थे। वह कला के प्रति। समर्पित थे। चित्रकला की नई तकनीकें सीखने की उनमें लगन थी।
प्रश्न 20.
प्रस्तुत आत्मकथा के आधार पर मकबूल के पिता का चरित्र-चित्रण कीजिये।
उत्तर :
मकबूल ने अपनी आत्मकथा में अपने पिता के गुणों का भी उल्लेख किया है। उनके पिता के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
वात्सल्यमय-पिता का हृदय वात्सल्य से पूर्ण था। वह अपने.पुत्र को बहुत चाहते थे। उसके कला प्रेम को प्रोत्साहित करते थे। उसकी शिक्षा-दीक्षा का पूरा ध्यान रखते थे। वह मकबूल को व्यापार के गुरु सिखाना चाहते थे परन्तु उसकी रुचि चित्रकला में जानकर उन्होंने अपनी इच्छा पर कभी जोर नहीं दिया।
मिल में नौकर-मकबूल के पिता इंदौर में 'मालवा टैक्सटाइल' में टाइमकीपर थे। मगर बिजनेसमैन में उनकी दिलचस्पी थी। उन्होंने मिल में सालों नौकरी की। मकबूल ने लिखा है-'खुद तो नौकरी के जाल में फंसे कि अट्ठाईस साल की 'कैद वामशक्कत' भुगतनी पड़ी।' स्नेही भाई-मकबूल के पिता अपने भाई को भी बहुत चाहते थे। उन्होंने अपने भाई मुबारक अली की पहलवानी छुड़वाकर उसे जनरल स्टोर खुलवाया। फिर कपड़े की दुकान खुलवाई और बाद में एक शानदार रेस्तराँ खुलवाया। इस तरह वह एक सुयोग्य और समझदार इंसान थे तथा अपने परिवार को प्यार करते थे।
प्रश्न 21.
प्रस्तुत आत्मकथा के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर :
'हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी' मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा है। इसके प्रस्तुत अंशों में लेखक ने चित्रकला के प्रति अपनी रुचि का वर्णन किया है। चित्रकला की ओर बचपन से ही झुकाव था तथा उनकी यह लगन दिन-व-दिन बढ़ती गयी थी। इसका प्रदर्शन वह बोर्डिंग स्कूल में भी कर चुके थे।
रानीगंज के बाजार में चाचा की दुकान पर बैठते समय तथा हिसाब-किताब देखते समय भी उनका ध्यान इसी ओर रहता था। वह वाटर कलर प्रयोग करते थे। एक बार सिनेमा का पोस्टर देखकर उन्होंने उसे ऑयल कलर में बनाने का विचार किया। ऑयल कलर खरीदने के लिये उन्होंने अपने स्कूल की दो किताबें बेच दी।
इसकी शिकायत पिता के पास पहुँची परन्तु पेंटिंग देखकर पिता ने अपने पुत्र को गले से लगा लिया। मकबूल को बेंद्रे से भी कला के सम्बन्ध में सहयोग और प्रोत्साहन मिला। उनकी सलाह पर पिता ने मकबूल के लिये बंबई से ऑयल कलर की ट्यूबें तथा कैनवास मँगवा दिये। इस तरह मकबूल का कला की ओर बढ़ने का मार्ग पूरी तरह खुल गया।
इस आत्मकथा के द्वारा लेखक ने संदेश दिया है कि सच्चा परिश्रम तथा लक्ष्य के प्रति समर्पण कभी बेकार नहीं जाता। ऐसे संघर्षशील व्यक्ति को साधन तथा प्रोत्साहित करने वाले व्यक्ति स्वतः ही उपलब्ध हो जाते हैं। प्रतिभा के विकास का सही अवसर तथा सही मार्गदर्शन मिलने से सफलता अवश्य मिलती है परन्तु इसके लिये व्यक्ति के मन में गहरी लगन होना आवश्यक होता है।
प्रश्न 22.
आत्मकथा के आधार पर मकबूल के पाँचों मित्रों की समान विशेषताओं को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आत्मकथा में मकबूल फिदा हुसैन के पाँच मित्रों की विशेषताओं का वर्णन किया गया है, जिनमें निम्न समानताएँ प्रतीत होती हैं। इन समानताओं का सोदाहरण प्रस्तुतीकरण निम्न प्रकार है -
शारीरिक सौष्ठव या ताकतवर शरीर - मकबूल के अधिकतर मित्र ताकतवर शरीर वाले थे। उनका शारीरिक विकास उनके शारीरिक सौष्ठव को प्रदर्शित करता है। उदाहरणार्थ-डॉक्टर मनव्वरी के लड़के अरशद का भरा लेकिन कसा पहलवानी जिस्म था। हामिद कँवर हुसैन का शौक कुश्ती और दण्ड-बैठक था। अब्बास जी अहमद का गठा जिस्म था।
प्रसन्नचित्त स्वभाव - मकबूल के लगभग सभी मित्रों का व्यवहार प्रसन्नतायुक्त था। उनकी प्रसन्नचित्त प्रकृति का आत्मकथा में स्पष्ट वर्णन मिलता है। जैसे-डॉक्टर मनव्वरी के लड़के अरशंद का चेहरा हमेशा हँसता हुआ रहता था। हामिद कँवर खुश मिजाज थे। अब्बास जी अहमद का हँसने का अंदाज दिलकश अर्थात् दिल को आकर्षित करने वाला था।
गुणों से युक्त व्यक्तित्व - मकबूल के मित्र किसी-न-किसी प्रभावी गुण से युक्त थे, जिसका वर्णन आत्मकथा में मिलता है। जैसे मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली गुणों के भण्डार थे। अब्बास जी अहमद स्वभाव से बिजनेसमैन थे। अब्बास अली फिदा वक्त के पाबन्द थे तथा शान्त स्वभाव वाले व्यक्ति थे।
प्रश्न 23.
आत्मकथा के आधार पर मकबूल फिदा हुसैन के व्यक्तित्व की जो विशेषताएँ स्पष्ट रूप से प्रकट हुई हैं, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आत्मकथा के आधार पर मकबल फिदा हसैन के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट हई हैं -
दादाजी के प्रति स्नेह व लगाव - मकबूल फिदा हुसैन का अपने दादाजी के प्रति विशेष स्नेह व लगाव था। अपने दादाजी की मृत्यु के बाद मकबूल को अत्यन्त दुःख हुआ और वह उनकी याद में गुमसुम बैठा रहता था तथा उनके कमरे से बाहर नहीं निकलता था। वह उनकी वस्तुओं से भी विशेष प्रेम करने लगा था।
घनिष्ठ व आत्मीय मित्रता की प्रवृत्ति - मकबूल अपने पाँच दोस्तों से विशेष आत्मीयता व घनिष्ठ मित्रता रखता था। उसने आत्मकथा में स्वयं स्वीकार किया है कि दो साल की नजदीकी पूरी उम्र दिल की दूरी में नहीं बदल पाई। उसने अपनी आत्मकथा में अपने पाँचों मित्रों का अत्यन्त प्रभावी व लगावपूर्ण वर्णन किया। जो उसकी अपने मित्रों के प्रति आत्मीयता को प्रदर्शित करता है।
चित्रकारिता के जन्मजात गुणों से युक्त - मकबूल फिदा हुसैन में एक सफल चित्रकार के जन्मजात गुण थे, जिसकी झलक हमें उस समय अनुभव होती है, जब मोहम्मद अतहर द्वारा ब्लैकबोर्ड पर चौक से बनाई गई चिड़िया की मकबूल ने अपनी स्लेट पर ज्यों की त्यों नकल कर दी थी तथा दस में से दस नम्बर प्राप्त किए थे।
चित्रकारी के प्रति विशेष रुचि, लगन व समर्पण - मकबूल फिदा हुसैन की बचपन से ही चित्रकारी के प्रति विशेष रुचि, लगन व समर्पण की भावना प्रदर्शित होती है। वे दुकान पर बैठे-बैठे भी हिसाब-किताब की कॉपी में स्केच बनाया करता था। मेहतरानी का स्केच इस बात का जीवन्त उदाहरण है।
धुन का पक्का व दृढ़ निश्चयी - मकबूल फिदा हुसैन अपनी धुन का पक्का व दृढ़ निश्चयी था। उसे फिल्मी इश्तिहार के पोस्टर को देखकर ऑयल पेंटिंग बनाने की धुन सवार हो गई और उसने अपने दृढ़ निश्चय को पूरा करने के लिए अपनी पाठ्य-पुस्तकों तक को बेचकर ऑयल ट्यूब खरीदी और ऑयल पेंटिंग बनाने के अपने दृढ़ निश्चय को पूरा किया।
पिता के प्रति विशेष अनुराग व सम्मान की भावना - मकबूल फिदा हुसैन में अपने पिता के प्रति विशेष अनुराग व सम्मान की भावना थी। उसने पहली ऑयल पेंटिंग बनकर सबसे पहले अपने पिताजी को ही दिखाई। मकबूल ने बेन्द्रे को अपने पिता से मिलाया तथा पिता की प्रेरणा से ही उसने महान चित्रकार बनने की राह में प्रभावी कदम बढ़ाया।
लवक-परिचय :
चित्रकारी के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त मकबूल फिदा हुसैन का जन्म सन् 1915 में महाराष्ट्र में शोलापुर नामक स्थान पर। हुआ था। बचपन से ही कला के प्रति विशेष रुचि रखने वाले मकबूल ने सिनेमा होर्डिंग के पेंटर के रूप में अपनी चित्रकारिता का प्रारम्भ किया तथा इसी चित्रकारी के कारण वे कई फिल्मों के निर्माण तक की लम्बी यात्रा करने में सफल हो गए। इन्हें इनकी चित्रकारिता के लिए कई पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया। इन्होंने ललित कला अकादमी की प्रथम राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।
सन् 1966 में मकबूल को पद्मश्री तथा सन् 1973 में पद्मभूषण से अलंकृत कर उनकी चित्रकारिता का अतुलनीय सम्मान किया गया। इन्होंने सन् 1967 में 'श्रू द आइज ऑफ ए पेण्टर' नामक वृत्तचित्र का निर्माण किया, जिसे बर्लिन में पुरस्कृत किया गया। सदैव विवादों से घिरे रहने वाले एम. एफ. हुसैन के चित्रों की कीमत करोड़ों रुपयों में आँकी जाती है। इन्होंने परम्परावादी चित्रकारिता से अलग एक। मौलिक चित्रशैली के युग का सूत्रपात किया, जिससे युवा कलाकारों के लिए कला का एक नया व विशाल बाजार खड़ा हो गया।
आत्मकथा परिचय :
प्रस्तुत आत्मकथा 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' में मकबूल फिदा हुसैन ने अपने जीवन के दो विशिष्ट पक्षों को प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया है। इस आत्मकथा के दो भाग हैं। प्रथम भाग में बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में उनके प्रारम्भिक विद्यार्थी जीवन की झलक मिलती है। बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में उनके हुनर (कला) की सर्वप्रथम पहचान की गई। इस भाग में बोर्डिंग स्कूल के कर्मचारियों, मकबूल के घनिष्ट मित्रों के अलावा बड़ौदा शहर की विशेषताओं का भी प्रभावी वर्णन किया गया है। इस भाग में बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल का प्रभावी चित्रण करने के साथ-साथ मकबूल की चित्रकारिता के प्रति अन्तर्निहित रुचि का प्रदर्शन किया गया है।
दूसरे भाग 'रानीपुर बाजार' में उस स्थिति का वर्णन है, जहाँ उन्हें व्यापार की ओर मोड़े जाने का प्रयास किया जा रहा था। परन्तु उन्होंने चित्रकारी का रास्ता ही. चुना। बेंद्रे के साथ उनकी मुलाकात तथा. चित्रकारिता के प्रति उनकी एकनिष्ठ व समर्पित रुचि इस भाग में स्पष्टतः प्रदर्शित की गई है। अपने पिता के खुले विचारों के कारण मकबूल फिदा हुसैन ने एक महान चित्रकार की राह में जो प्रभावी कदम बढ़ाए, उनका प्रारम्भिक व प्रेरणास्पद स्वरूप इस भाग में व्यक्त किया गया है।
साराश :
(क) बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल :
(i) मकबूल के दादा की मृत्यु के बाद उनका बोर्डिंग स्कूल में प्रवेश - मकबूल अपने दादा से अत्यधिक प्रेम करता था। दादा की मृत्यु के बाद परिवारीजनों ने गुमसुम मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में प्रवेश दिलाया।
(ii) बड़ौदा शहर का चित्रण - महाराज सियाजीराव गायकबाड़ के स्वच्छ शहर बड़ौदा का चित्रण तथा 'हिज हाइनेंस' की पाँच धातुओं वाली मूर्ति का प्रभावी वर्णन किया गया है।
(iii) बोर्डिंग स्कूल का चित्रण - दारुल तलुबा (छात्रावास) मदरसा हुसामिया, सिंह बाई माता रोड, मेट। तालाब किनारे सुलेमानी जमात का बोर्डिंग स्कूल था। जी. एम. हकीम अब्बास तैयवजी इसको देख-रेख करते थे। वह गाँधी जी के अनुयायी थे। अत: छात्र भी मुँडे सिरों पर गाँधी टोपी और शरीर पर कुर्ता-पायजामा पहनते थे। मौलवी अकबर कुरान तथा उर्दू साहित्य के मास्टर थे। केशव लाल क्लास टीचर थे। मेजर अब्दुला पठान स्काउट मास्टर थे। बैंड मास्टर थे गुलजमा खान। रोटियाँ बनाने वाले थे बावर्ची गुलाम तथा सालन गोश्त बनाती थी बीवी नरगिस। इसी बोर्डिंग स्कूल में मकबूल को छोड़ा गया था।
(iv) मकबूल के घनिष्ठ मित्रों का वर्णन-यहाँ मकबूल के घनिष्ठ मित्र बने-मोहम्मद इब्राहीम, गोहर अली डभोई के .. अत्तार, डॉक्टर मनव्वरी का लड़का अरशद, हामिद कंवर हुसैन, अब्बा जी अहमद एवं अब्बास अली फिदा। यहाँ पाँचों के शारीरिक स्वरूप, रुचियों, गुणों एवं विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
(v) मकबूल की चित्रकारिता के प्रति रुचि व हुनर की पहचान - इसके बाद विद्यार्थी जीवन में मकबूल की खेलकूद के प्रति रुचि, ब्लैकबोर्ड से नकल कर स्लेट पर हूबहू चिड़िया बनाने तथा गाँधीजी का पोर्टेट बनाने जैसी घटनाओं का वर्णन कर चित्रकारिता के प्रति उनकी रुचि व हुनर की पहचान को प्रस्तुत किया गया है।
(ख) रानीपुर बाजार :
(i) मकबूल को व्यापार की ओर मोड़ने का असफल प्रयास-आत्मकथा के इस भाग में मकबूल को एक व्यापारी के गुण सिखाने व व्यापार का अनुभव प्रदान करने के लिए जनरल स्टोर की दुकान, कपड़े की दुकान और रेस्तराँ पर बैठाया गया, परन्तु उनका ध्यान ड्राइंग व पेंटिंग में ही रहता था। वह दुकान पर बैठे-बैठे स्केच बनाया करते थे।
(ii) दुकान पर मेहतरानी के स्केच को बनाकर चित्रकारिता का परिचय देना-जनरल स्टोर पर मकबूल ने मेहतरानी के कई श्रेष्ठ स्केच बनाए, वे इतने प्रभावी थे कि मेहतरानी स्वयं उन्हें देखकर उनको प्राप्त करने के लिए लालायित दिखाई दी।
(iii) फिल्मी इश्तिहार का पोस्टर व ऑयल पेंटिंग के प्रति मकबूल की रुचि-बाजार में फिल्मी प्रचार के लिए रंगीन पतंग के कागज पर बने वाटर कलर के चित्रों को देखकर मकबूल ने इन्हें ऑयल कलर के द्वारा बनाने का निश्चय किया और अपनी किताबें बेचकर आयल पेण्ट की ट्यूबें खरीर्दी तथा पहली ऑयल पेंटिंग बनाई, जिसे देखकर उनके पिता ने उन्हें गले से लगा लिया।
(iv) लेण्डस्केप पेंटिंग व बेंद्रे से मुलाकात-इन्दौर के बाजार में लेण्डस्केप पेंटिंग करते समय मकबूल की बेंद्रे साहब से मुलाकात हुई। उनकी पेंटिंग की तकनीक व शैली से मकबूल अत्यन्त प्रभावित हुआ। बेन्द्रे की पेंटिंग की विशेषताओं का वर्णन करने के साथ-साथ उसने बेंद्रे को एक ऐसे महान चित्रकार के रूप में प्रदर्शित किया।
(v) बेंद्रे की प्रेरणा से मकबूल की चित्रकारिता के महत्वपूर्ण युग की शुरुआत-मकबूल फिदा हुसैन बेन्द्रे के साथ पेंटिंग करने लगे और बेंद्रे की प्रेरणा, निर्देशन तथा मकबूल के पिता के स्वतन्त्र विचारों के परिणामस्वरूप वे एक महान चित्रकार बनने की राह पर बढ़ चले।
कठिन शब्दार्थ :