Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 8 उसकी माँ Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
क्या लाल का व्यवहार सरकार के विरुद्ध षड्यंत्रकारी था ?
उत्तर :
लाल की विचारधारा को देखकर यह स्पष्ट होता है कि वह षड्यंत्रकारी नहीं था अपितु सच्चा देशभक्त था। सरकार ने उसे षड्यंत्रकारी मानते हुए फाँसी की सजा दे दी। जमींदार चाचा से बात करते हुए उसने कहा कि उसके विचार स्वतंत्र हैं। वह, देश की दुरवस्था पर उबल उठता है। वह कट्टर राज-विद्रोही है। उसने अपनी कल्पना बताई कि जो व्यक्ति समाज या राष्ट्र के नाश पर जीता हो, उसका सर्वनाश हो जाएगा। उसने निर्भीक होकर कहा कि आवश्यकता पड़ने पर वह षड्यंत्र, विद्रोह और हत्या भी करेगा। स्पष्ट है कि वह षड्यंत्रकारी नहीं था।
प्रश्न 2.
पूरी कहानी में जानकी न तो शासन-तंत्र के समर्थन में है न विरोध में, किन्तु लेखक ने उसे केन्द्र में ही नहीं रखा बल्कि कहानी का शीर्षक बना दिया। क्यों ?
उत्तर :
कहानी में आदि से अन्त तक जानकी का व्यक्तित्व और कृतित्व ही छाया रहता है। वह एक सच्ची माँ थी। वह लाल के मित्रों को सच्चा स्नेह देती थी। जो लाल को देती थी। उसके मित्र भी उसे माँ कहकर ही पुकारते। एक मित्र ने तो उसे भारत माता का रूप बना दिया। वह जेल में डाले गए लाल और उसके साथियों के लिए खाना ले जाती। वह सभी लड़कों को घर पर भी बड़े प्यार से खिलाती। वह वकीलों से मिलती और उन्हें निर्दोष बताती। लाल की मृत्यु के बाद उसका अन्तिम पत्र जमींदार के पास लेकर आई। उसे सुनकर जमींदार की पत्नी तो रोने लगी लेकिन जानकी भावहीन आँखों से उसे देखती रही। एक वीरांगना माँ की तरह उसने पत्र सुनकर आँसू नहीं बहाए। किन्तुं सच्ची माँ होने के कारण उसने पुत्र के साथ ही अपने प्राण भी त्याग दिए। वास्तव में वह कहानी की मुख्य पात्र है। इस कारण लेखक ने उसे कहानी का शीर्षक बना दिया।
प्रश्न 3.
चाचा जानकी तथा लाल के प्रति सहानुभूति तो रखता है किन्तु वह डरता है। यह डर किस प्रकार का है और क्यों है ?
उत्तर :
जमींदार को लाल 'चाचा' से सम्बोधित करता था। लाल के पिता रामनाथ लेखक की जमींदारी के मैनेजर थे। इस कारण लाल और उसकी माँ जानकी के प्रति जींदार की सहानुभूति थी। वह चाहता था कि लाल राज-विद्रोह के चक्कर में न पड़े। लाल के गिरफ्तार होने के बाद उसने जानकी से मिलना बन्द कर दिया था। वह जमींदार था और सरकार विरोधी नहीं बनना चाहता था। उसे डर था कि कहीं उसकी जमींदारी न छीन ली जाए। उसकी जानकी से बहुत सहानुभूति थी। परंतु एक विद्रोही की माँ होने के कारण वह उससे दूर ही रहना चाहता था। उसे अपनी सुख-सुविधाओं के छिनने का डर था। उसे यह भी डर था कि कहीं उसे षड्यंत्रकारियों का हितैषी समझकर गिरफ्तार न कर लिया जाए।
प्रश्न 4.
इस कहानी में तरह की मानसिकताओं का संघर्ष है, एक का प्रतिनिधित्व लाल करता है और दूसरे का उसका चाचा। आपकी नजर में कौन सही है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
कहानी में दो तरह की मानसिकता के संघर्ष को दिखाया है। एक तत्कालीन राजसत्ता का विरोधी है दूसरा सत्ता भक्त है। कहानी का युवक पात्र लाल राजविद्रोही है। लाल के चाचा राजसत्ता के पक्षधर हैं, सरकार के चाटुकार हैं। लाल स्वतंत्र विचारधारा का है। उसके सभी साथी भी उसकी विचारधारा के हैं। वह देश की दुरवस्था पर उबल पड़ता है। वह अपने को राजविद्रोही बताता है। उसने चाचा से कहा कि जो व्यक्ति समाज या राष्ट्र के नाश पर जीता हो, उसका सर्वनाश होना चाहिए। दुष्ट व्यक्ति-नाशक, राष्ट्र के सर्वनाश करने वालों का वह साथ देने को तैयार है।
लाल ने चाचा से स्पष्ट कह दिया कि 'मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। वह षड्यंत्र, विद्रोह और हत्या करने को तैयार है।' चाचा जमींदार है और किसी भी परिस्थिति में सरकार का विरोध करने को तैयार नहीं है। वह सुविधा भोगी है और चाटुकार है। वह राजसत्ता के तलवे चाटने को तैयार है। चाचा पुलिस सुपरिंटेंडेंट से कहता है-"हम तो सात पुश्तों से सरकार के फरमाबरदार हैं।" चाचा तत्कालीन सरकार को धर्मात्मा, विवेकी और न्यायप्रिय बताता है। वह जानकी और लाल के प्रति सहानुभूति तो दिखाता है पर उनका साथ देने को तैयार नहीं है। उसे अपनी जमींदारी छिनने का डर है।
हम लाल के समर्थक हैं। हमारी दृष्टि में देश प्रधान है, देश की स्वतंत्रता प्रधान है, गलामी और स्वार्थान्धता स्वीकार नहीं है। हम शोषणकारी सरकार का विरोध करना चाहते हैं। लाल भी दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट्र का सर्वनाश चाहता था। लाल की मानसिकता देश और राष्ट्रहित में थी। हम उसी के समर्थक हैं।
प्रश्न 5.
उन लड़कों ने कैसे सिद्ध किया कि जानकी सिर्फ माँ नहीं भारतमाता है ? कहानी के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
लाल के मित्रों में एक साथी बड़ा हँसोड़ था, खूब तगड़ा और बली था। उस हँसोड़ लड़के ने ही जानकी को भारत माता बताया था। उसका मानना था भारत माँ जानकी की तरह बूढ़ी है। भारत माता का हिमालय माँ का उच्च भाल जैसा है जो सफेद बर्फ से ढका है। जानकी के माथे की दो गहरी लकीरें हिमालय से निकलने वाली गंगा-यमुना नदियाँ हैं। जानकी माँ की नासिका विंध्याचल पर्वत है और ठोढ़ी कन्याकुमारी की तरह है। माँ के केशों को आगे कंधे पर डालकर उसे वर्मा बना दिया। इस प्रकार उसने जानकी माँ को भारत माता बना दिया।
प्रश्न 6.
विद्रोही की माँ से संबंध रखकर कौन अपनी गरदन मुसीबत में डालता ? इस कथन के आधार पर उस शासन-तंत्र और समाज-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
'सुख के सब साथी दुःख में न कोई' कथन पूर्णतः सत्य है। सभी को अपने स्वार्थ की चिंता रहती है। कहानी 'उसकी माँ' में इसे भलीभाँति स्पष्ट किया गया है। लाल का पिता चाचा की जमींदारी का मैनेजर था। उसने जमींदार के पास रुपए जमा भी कराए थे। जमींदार की उस परिवार के प्रति सहानुभूति थी। किन्तु लाल के पकड़े जाने पर वह उनसे दूर रहने लगा। उसने उनसे सम्बन्ध ही तोड़ दिया। जानकी अकेली ही उनके लिए लड़ती रही
कहानी में शासन तंत्र की क्रूरता को दिखाया है। शासन कर्ता अन्याय करते हैं, पर विरोधियों और जनता के मुँह पर ताला लगा देते हैं। तत्कालीन शासन व्यवस्था ने लाल और उसके साथियों पर अनेक दोषारोपण किये पर किसी ने उसका विरोध नहीं किया। लाल और उसके साथियों की पैरवी करने के लिए कोई वकील तैयार नहीं हुआ। प्रशासन की कठोरता और अपने ऊपर दोष न लगे, इसलिए कोई सामने नहीं आया।
समाज-व्यवस्था में भी दोष था। लाल के पकड़े जाने के बाद शहर या मुहल्ले का कोई व्यक्ति डर के कारण मिलने नहीं आया। लेखक का भी उनके प्रति अपा प्रेम था, पर वह भी दूर रहा। उसने कहा-"कौन अपनी गरदन मुसीबत में डालता, विद्रोही की माँ से सम्बन्ध रखकर।" स्पष्ट है 'बनी के सब साथी हैं बिगड़ी का कोई नहीं।
प्रश्न 7.
चाचा ने लाल का पेंसिल-खचित नाम पुस्तक की छाती पर से क्यों मिटा डालना चाहा ?
उत्तर :
चाचा ने पुस्तक से लाल के नाम को दो कारणों से मिटाना चाहा। चाचा का लाल के प्रति अपार स्नेह था परन्तु जब-जब चाचा मेजिनी की पुस्तक खोलता और उस पर लाल का नाम देखता तो लेखक को दुःख होता, उसके प्रति स्नेह उत्पन्न होता। उसकी माँ और पिता की याद आती उसे लाल की विद्रोही बातें याद आतीं। दूसरी ओर उसे सरकार का डर था। पुलिस सुपरिटेंडेंट का कथन याद आ जाता जिससे लेखक ने उस परिवार से सावधान और दूर रहने के लिए कहा था। कहीं सरकार यह सोच कर कि लेखक का लाल के परिवार से सम्बन्ध है उसे भी षड्यंत्र में शामिल न मान ले और जमींदारी चली जाए। इसलिए लेखक ने पुस्तक से लाल का नाम मिटा दिया। उसे खतरे की संभावना थी।
प्रश्न 8.
भारत माता की छवि या धारणा आपके मन में किस प्रकार की है ?
उत्तर :
हमारे देश में प्राचीन समय से ही धरती (जन्म भूमि) के प्रति माता का भाव रहा है। 'माता भूमिः पुत्रोऽहम् पृथिव्याः' (भूमि माता है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ।) जो 'भारत माता' जन्म देने वाली माता की भी माता है, उसके प्रति श्रद्धा की भावना हमारा स्वाभाविक और परम पावन कर्तव्य है। मेरे मन में भी भारत माता की यही छवि और धारणा है। मैं भारत माता का पुत्र हूँ। उसकी प्राकृतिक शोभा, उसका गर्व प्रदायक इतिहास, उसका अनुपम भूगोल, सभी मुझे प्राणों से भी प्यारे हैं। भारत के कोटि-कोटि जन मेरे भाई-बहिन है। भारत माँ की सेवा और सुरक्षा में यदि मेरा यह नश्वर शरीर काम आ जाए, इससे बढ़कर मेरे लिए सौभाग्य की और क्या बात हो सकती है ?
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की निम्नलिखित पंक्तियों में प्रदर्शित भारत माता की छवि ही, मेरे मन में समाई हुई है नीलांबर परिधान हरितपट पर सुंदर है। नदियाँ प्रेम प्रवाह, मेखला रत्नाकर है। करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेश की। हे मातृ भूमि तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
प्रश्न 9.
जानकी जैसी भारतमाता हमारे बीच बनी रहे, इसके लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के संदर्भ में विचार कीजिए।
उत्तर :
जानकी 'उसकी माँ' कहानी की सर्वप्रमुख पात्र है। उसके चारित्रिक गुण पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। वह एक आदर्श माँ ही नहीं बल्कि भारत माता की वात्सल्यमयी, जीती-जागती प्रतिमूर्ति है। एक आदर्श माता में जो गुण होने चाहिए, वे सभी जानकी में विद्यमान हैं। वह सरल हृदय माता है। लाल का ही नहीं बल्कि उसके सभी सहपाठियों का मंगल चाहती है। उनको सजा हो जाने पर वह जेल में खाना पहुँचाती है। वकीलों के चक्कर काटती है। अपना सब कुछ बच्चों को सजा से बचाने में दाव पर लगा देती है। लाल के पत्र को सुनकर भी वह विलाप नहीं करती बल्कि ऐसी हृदय विदारक घटना को मौन भाव से सहन कर जाती है। अपनी संतान को देश के लिए बलिदान कर देती है।
आज भी देश को जानकी जैसी माताओं की आवश्यकता है। ऐसी स्वाभिमानिनी वात्सल्यमयी माताएँ देश को तभी प्राप्त हो सकती हैं जब हमारा राष्ट्र नारियों का सम्मान करने और उन्हें अच्छे संस्कार देने की परंपरा बनाए रखे। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' की भावना के पीछे यही यथार्थ बात छिपी हुई है। जब बेटियाँ सुरक्षित रहेंगी और सुशिक्षित बनेंगी, तो देश की भावी पीढ़ियाँ भी स्वाभिमानी देशभक्त और आत्मबलिदानी बनेंगी। 'भारत माता' पुनः संसार में अपना भव्य गौरव प्राप्त करेंगी।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) “पुलिस वाले केवल संदेह पर भले आदमियों के बच्चों को त्रास देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा को, परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे घुलाना-मिटाना है।"
उत्तर :
आशय-जानकी ने चाचा से कहा कि वे लड़के जो मुँह में आता है बक देते हैं। उस दिन वे कह रहे थे कि पुलिस वाले शक के आधार पर ही भले आदमियों के बच्चों को डराते हैं, धमकाते हैं और मारते हैं। वे पहले अच्छी तरह छानबीन नहीं करते और व्यर्थ में सन्देह करके उन्हें पकड़ लेते हैं। व्यर्थ में सताते हैं। यह क्रूर और अत्याचारी पुलिस की अमानवीय व्यवस्था है। ऐसे अत्याचारी शासन को सहन करना और विरोध न करने का अर्थ है धर्म, कर्म, आत्मा और परमात्मा को भूलना। जो धर्म में विश्वास करेगा वह शासन के अत्याचार को सहन नहीं करेगा। जो शासन धर्म से डरेगा, परमात्मा में विश्वास करेगा वह ऐसे अत्याचार नहीं करेगा। ऐसे अत्याचारी, धर्म विरोधी शासन का विरोध न करना अपने को मिटाना है। अपने अस्तित्व को खोना है।
(ख) चाचाजी, नष्ट हो जाना तो यहाँ का नियम है जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना कना चाहिए। कर्म के समय हमारी भजाएँ दर्बल नहीं, भगवान की सहस्र भजाओं की सखियाँ हैं।" आशय-चाचा जी ने लाल को समझाया कि सरकार के हाथ लम्बे होते हैं। तुम उनसे पंगा नहीं ले सकते। तुम्हारे पास ताकत नहीं है, शक्ति नहीं है, तुम्हें मिटना पड़ेगा। लाल ने साहस के साथ चाचाजी से कहा कि प्रकृति का नियम है, जो अंकुरित हुआ वह मिटेगा।
जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी है, विकास के पीछे विनाश है। साहसी व्यक्ति जिसमें लगन है वह रुकावटों और विरोधों को देखकर पीछे नहीं हटता। अपने को दुर्बल समझकर अपना काम नहीं रोकना चाहिए। हमें करणीय कार्य करते रहना चाहिए। कर्म करते समय अपनी भुजाओं को कमजोर नहीं समझना चाहिए। हिम्मत से कार्य करने पर हमारी भुजाएँ भगवान की भुजाएँ बन जाती हैं। अर्थात् दृढ़ता से कर्म करने पर हमारी भुजाओं में भगवान की सी शक्ति आ जाती है। अतः विनाश की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मिटना एक दिन सबको है।
योग्यता-विस्तार -
प्रश्न 1.
पुलिस के साथ दोस्ती की जानी चाहिए या नहीं ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
हमें बताया जाता है कि पुलिस के साथ दोस्ती या दुश्मनी दोनों ही संकट का कारण बन सकती हैं। यदि दोस्ती करेंगे तो हम पर सदा पुलिस का साथ देने का दबाव बना रहेगा। पुलिस हमारी दोस्ती का अनुचित लाभ भी उठा सकती है। हमें झूठी गवाही देने को मजबूर कर सकती है। यदि दुश्मनी रखेंगे तो वह हमें झूठे केसों में फंसा सकती है। आजकल पुलिस के बारे में लोगों की ऐसी ही धारणा बनी हुई है।
प्रश्न 2.
लाल और उसके साथियों से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर :
लाल और उसके साथी अत्याचारी विदेशी सरकार के विरोधी और देशभक्ति के मतवाले युवा हैं। वे उस समय के क्रान्तिकारियों भगतसिंह, आजाद, राम प्रसाद 'बिस्मिल' आदि के समान देश के लिए मिट जाने पर उतारू हैं। इनके चरित्र से हमें अत्याचार का विरोध करने और देश के लिए प्राणों का बलिदान कर देने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
प्रश्न 3.
'उसकी माँ' के आधार पर अपनी माँ के बारे में एक कहानी लिखिए।
उत्तर :
इस प्रश्न का उत्तर छात्र स्वयं लिखें।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
लाल के पिता का नाम था -
(क) राम कुमार
(ख) रामनाथ
(ग) राम किशोर
(घ) राम प्रसाद
उत्तर :
(ख) रामनाथ
प्रश्न 2.
लाल उबल उठता था -
(क) अपमानित किए जाने पर
(ख) धोखा दिए जाने पर
(ग) देश की दुरवस्था देखकर
(घ) पुलिस का क्रूर व्यवहार देखकर
उत्तर :
(ग) देश की दुरवस्था देखकर
प्रश्न 3.
"जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही।" यह कथन है -
(क) जमींदार चाचा का
(ख) लाल का
(ग) जानकी का
(घ) लाल के मित्र का
उत्तर :
(ख) लाल का
प्रश्न 4.
हँसोड़ लड़के ने जानकी को बताया -
(क) बूढ़ी और कमजोर
(ख) ममतामयी
(ग) भारत माता के समान
(घ) स्वाभिमानिनी
उत्तर :
(ग) भारत माता के समान
प्रश्न 5.
मेजिनी की पुस्तक पर हस्ताक्षर थे -
(क) जमींदार चाचा के
(ख) लाल के
(ग) रामनाथ के
(घ) अज्ञात व्यक्ति के
उत्तर :
(ख) लाल के
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
जमींदार चाचा अपने घर के पुस्तकालय में खड़े होकर क्या सोच रहे थे ?
उत्तर :
जमींदार चाचा किसी महान लेखक की कोई रचना पढ़ने के बारे में सोच रहे थे।
प्रश्न 2.
लाल के पिता रामनाथ जमींदार के यहाँ किस पद पर काम करते थे?
उत्तर :
रामनाथ जमींदार के मुख्य मैनेजर के पद पर काम करते थे।
प्रश्न 3.
पलिस सपरिंटेंडेंट ने जमींदार साहब को किस बारे में सतर्क किया?
उत्तर :
सुपरिंटेंडेंट ने उनसे रामनाथ के परिवार से सावधान और दूर रहने को कहा।
प्रश्न 4.
जमींदार चाचा से बात करते समय लाल का रंग क्यों मुरझा गया?
उत्तर :
जमींदार चाचा ने कहा कि वह सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र करने वालों का साथी बन गया था। यह सुनकर उसका रंग मुरझा गया।
प्रश्न 5.
लाल जमींदार चाचा से किस विषय पर विवाद नहीं करना चाहता था ?
उत्तर :
लाल को जमींदार चाचा ने समझाया कि वह पहले पढ़े और घर को सम्हाले, तब देश के बारे में सोचे। इसी विषय पर वह विवाद नहीं करना चाहता था
प्रश्न 6.
लाल की माँ की तुलना भारत माता से किसने की ?
उत्तर :
लाल के एक हँसोड़ और शरारती सहपाठी ने लाल की माँ की तुलना भारत माता से की थी।
प्रश्न 7.
"इस देश के लोगों के हिए की आँखें मूंद गई हैं।" यह कथन किसका है ?
उत्तर :
यह कथन लाल के एक सहपाठी का है।
प्रश्न 8.
पुलिस ने लाल पर कौन-कौन से अपराध लगाए थे ?
उत्तर :
पुलिस ने लाल पर हत्या, षड्यंत्र, राजद्रोह आदि के अपराध लगाए थे।
प्रश्न 9.
जानकी को मुकदमे के बारे में अंत तक क्या विश्वास बना रहा ?
उत्तर :
उसे पक्का विश्वास था कि सभी लड़के निर्दोष थे और वे सभी छूट जाएँगे।
प्रश्न 10.
जमींदार चाचा मेजनी के पुस्तक पर से लाल के हस्ताक्षरों को क्यों मिटा देना चाहते थे ?
उत्तर :
उन्हें डर था कि पुस्तक अगर पुलिस के हाथ पड़ गई तो उनको भी षड्यंत्रकारियों का साथी मान लिया जाएगा।
लयूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
पुलिस सुपरिटेंडेंट लेखक के पास क्यों आए थे और लेखक ने उन्हें कैसे सन्तुष्ट किया ?
उत्तर :
पुलिस सुपरिटेंडेंट अपने साथ एक तस्वीर लाए थे, जिसे उन्होंने जमींदार चाचा को दिखाया और उसके सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासा व्यक्त की। जमींदार साहब ने चित्र को देखकर कहा यह 'लाल' है। इसका पिता रामनाथ मेरी जमींदारी का मैनेजर था। सात-आठ वर्ष पूर्व उसका देहान्त हो गया था। घर में लाल और उसकी बूढ़ी माँ जानकी है। रामनाथ ने मेरे पास कुछ हजार रुपये जमा किये थे उन्हीं से खर्च चलता था। अब रुपया समाप्त हो गए हैं। लाल नवयुवक है और कॉलेज में पढ़ता है। इस प्रकार पुलिस सुपरिंटेंडेंट की जिज्ञासा शान्त की।
प्रश्न 2.
जमींदार की मनोवृत्ति का वर्णन करते हुए बताइए कि वह किस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है ?
उत्तर :
जमींदार चाचा सरकार भक्त और अपनी जमींदारी की सुरक्षा चाहने वाला है। वह लाल के परिवार से सहानुभूति तो रखता है किन्तु किसी झंझट में फँसना नहीं चाहता। वह सुविधाभोगी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। जमींदारी बचाने के लिए वह सरकार की चाटुकारिता में लगा रहता है। उसका यह कथन "हम तो सात पुश्तों से सरकार के फरमावदार हैं।" इसी मनोवृत्ति का परिचायक है।
प्रश्न 3.
“तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो।" जमींदार चाचा ने यह बात लाल से कब कही ?
उत्तर :
जमींदार चाचा ने जब लाल से कहा कि वह बिगड़ रहा है और सरकार के विरुद्ध षड्यंत्रों में सम्मिलित है तो लाल ने इससे इनकार कर दिया। जमींदार चाचा ने लाल से कहा कि चलो मान लिया कि वह किसी षड्यंत्र में शामिल नहीं है परन्तु वह व्यर्थ की बक-बक क्यों करता है? इससे न तो देश स्वतंत्र हो जाएगा न उसकी दुर्दशा दूर होगी। पहले उसे पहले पढ़कर अपने परिवार की जिम्मेदारी उठानी होगी। पहले घर को सम्हालना होगा। तब देश की बात होगी।
प्रश्न 4.
जानकी ने लाल के मित्रों के सम्बन्ध में क्या बताया?
उत्तर :
जानकी ने बताया कि लाल के सभी साथी उसे प्यार देते हैं, माँ कहते हैं। उसने कहा कि वे सब लापरवाह हैं। वे हँसते, गाते और हल्ला मचाते हैं। एक लड़का जो बहुत हैंसोड़ है मुझे भारत माता बताता है। जो मुँह में आता है वही बक देते हैं। एक दिन उत्तेजित होकर पुलिस प्रशासन की बुराई कर रहे थे। ये विदेशी अंग्रेजी सरकार को भी विरोध करते हैं। वे सरकार को मनुष्यत्वहीन और नीति-मर्दक कहते हैं। लड़कों की सारी बातें जानकी ने लेखक को बताई हैं।
प्रश्न 5.
मुकदमे के दौरान जानकी ने एक सच्ची,माँ का कर्तव्य कैसे कर दिखाया ? लिखिए।
उत्तर :
जानकी बढ़ी हो चुकी थी। शरीर साथ नहीं देता था। इतने पर भी वह लड़कों के खान-पान आदि का पूरा ध्यान रखती थी। उसने लोटा, थाली, जेवर बेच-बेचकर बच्चों के भोजन का प्रबंध किया। वकील की फीस चुकाई। सबके सामने लड़कों की रक्षा के लिए गिड़-गिड़ाती रही। फटकार और धक्के भी खाती रही।
प्रश्न 6.
लाल ने अपने पत्र में माँ के लिए क्या लिखा था ?
उत्तर :
लाल एक निर्भीक, देशभक्त और मृत्यु से भी न घबराने वाला युवक था। उसने अपनी माँ को अंतिम क्षणों में जो पत्र लिखा, उससे उसकी अपूर्व मातृभक्ति और भावुकता के दर्शन होते हैं। पत्र में उसने लिखा कि पत्र मिलने से पहले ही वह प्रात:कालीन सूर्य के किरणों के रथ पर सवार होकर संसार के पार चला जाएगा। उसने पूर्ण विश्वास के साथ लिखा कि वह (माँ) जन्म-जन्मांतरों तक उसकी माँ रहेगी। कभी भी और कोई भी उसे उसकी करुणामयी माँ की गोद से अलग नहीं कर सकेगा। पत्र में बेटे ने अपना हृदय उड़ेल कर रख दिया। पत्र की पंक्ति-पंक्ति बड़ी मर्मस्पर्शी है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
जमींदारी से लौटने के बाद जमींदार चाचा ने क्या समाचार सुना और उन पर उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
जमींदारी से लौटने पर जमींदार को पत्नी ने लाल के सम्बन्ध में बताया। उसने कहा कि लाल को पुलिस पकड़कर ले गई है। उसकी माँ पर विपत्ति टूट पड़ी है। पुलिस ने लाल के घर को घेर लिया। बारह घंटे तलाशी चली। उसके घर से दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस और पत्र मिले हैं। उसके मित्र भी पकड़े गए हैं। सबके घरों से भयानक चीजें मिली हैं। सुना है उन पर हत्या, षड्यंत्र और सरकारी राज्य पलटने का आरोप है। यह सुनकर जमींदार चाचा निराश हो गया और दुःख से टूट कर चारपाई पर गिर पड़ा। उन्होंने ठंडी साँस ली और कहा कि वह तो पहले ही कह रहे थे कि लौंडा धोखा देगा। जानकी पागल है, भोगेगी।
प्रश्न 2.
लाल के पकड़े जाने के बाद लोगों ने जानकी के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर :
निरंकुश सरकार और पुलिस के अत्याचारों से सभी डरते हैं। इसी कारण जानकी के प्रति लोगों के व्यवहार में अन्तर आ गया था। लाल और उसके सभी साथी सरकार विरोधी षड्यंत्र और हत्या के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। लोगों को अपने फँसने का भी डर था। इसलिए लोगों ने उसके घर आना-जाना बन्द कर दिया। उससे मिलने में भी डर लगता था। उन्हें डर था कि कहीं षड्यंत्रकारियों का साथी समझकर उन्हें भी पुलिस न पकड़ ले। ये उससे कन्नी काटते थे। जमींदार लाल के परिवार से अपनत्व का भाव रखता था, पर वह भी उससे दूर रहता था। सत्य है सब 'बनी के साथी हैं बिगड़ी का कोई नहीं।
प्रश्न 3.
फाँसी की सजा के बाद अदालत से निकलते हुए लड़कों ने क्या कहा और जानकी पर क्या प्रभाव पड़ा होगा ? कल्पना से लिखिए।
उत्तर :
फाँसी की सजा सुनने के बाद वे सच्चे शहीदों की तरह मस्ती में झूमते हुए बाहर आए। उनके चेहरों पर चिन्ता की रेखाएँ नहीं थीं। बंगड़ ने मुसकरा कर कहा कि “हमें हलवा खिलाकर गधे-सा तगड़ा कर दिया, ऐसा कि फाँसी की रस्सी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें, मगर तू सूखकर काँटा हो गई है।" लाल ने माँ से कहा कि तू भी जल्दी वहाँ आना, जहाँ हम जा रहे हैं। बंगड़ ने भी लाल की बात दोहराई। जानकी उनकी ओर टुकुर-टुकुर देखती रही और कहा “तुम कहाँ जाओगे पगलो ?" उसने सोचा होगा कैसी निर्दयी सरकार है जिसने इन मासूमों को फाँसी दी है। अन्याय का विरोध करना भी पाप है। ये लोग कैसे हैं जिन्होंने इन्हें बचाने का प्रयत्न नहीं किया। वह अन्दर ही अन्दर आँसुओं को पी रही होगी। कहीं मेरे बच्चे आँसुओं को देखकर दुखी न हों।
प्रश्न 4.
लाल का पत्र पढ़ने के बाद जमींदार चाचा की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
जानकी को पत्र लौटाने के बाद जमींदार चाचा निर्जीव-सा होकर धम्म से कुर्सी पर गिर पड़ा। माथा चकराने लगा। उसने लाल और सरकार की क्रूरता के बारे में कुछ नहीं सोचा। उसे उस बूढ़ी माँ की चिन्ता थी जिसे उसके बेटे ने धोखा दिया था और अपनी हठ नहीं छोड़ी थी। उसे लगा जैसे हरारत हो गई हो। वह रातभर कुर्सी पर बैठा रहा। मेजिनी की लाल के हस्ताक्षर मिटाने का प्रयास किया। तभी जानकी के घर से कराहने की आवाज आई। मानो वह रो रही हो। लेखक ने जानकी के प्रयासों के सम्बन्ध में भी सोचा। वह जानकी के हाल जानने का इच्छुक था। नौकर ने आकर जानकी के मरने की सूचना दी।
प्रश्न 5.
"हाय री माँ ! अभागिनी वैसे ही पुकार रही है।" लेखक के कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लाल का पत्र सुनने के पश्चात् बूढ़ी जानकी लकड़ी पर झुकी ज्यों-की-ज्यों खड़ी रही और भावहीन आँखों से जमींदार को देखती रही फिर पत्र लेकर वह चुपचाप कमरे से बाहर चली गई। जानकी की इस स्थिति को देख कर जमींदार भावुक हो गया। वह कैसे अभागिनी माँ है जिसने अपने बेटे को बड़े स्नेह से पाला वही अन्त में दु:ख देकर, रुलाकर चला गया। उसके इस रुदन को सुनने वाला आज कोई नहीं है। वह बेटा भी नहीं है जिसके कारण आज वह असहाय होकर रो रही है और यह कठोर समाज भी आकर उसे सान्त्वना नहीं दे रहा है। शायद वह इसलिए भी रो रही है कि उसके रोने की आवाज सुनकर किसी का दिल तो पसीजेगा।
प्रश्न 6.
'उसकी माँ' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कहानी का मुख्य उद्देश्य देश की दुरवस्था से चिन्तित युवा पीढ़ी के विद्रोह को प्रकट करना है। यह पीढ़ी तत्कालीन शासन-तंत्र को देश की दुरवस्था का कारण मानती है। कहानीकार का उद्देश्य नई पीढ़ी को यह प्रेरणा देना है कि वह दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के पैर उखाड़ दे। नई पीढ़ी को अन्याय के विरुद्ध ताल ठोककर खड़े हो जाना चाहिए और आवश्यकता पड़े तो अपनी कुर्बानी भी दे देनी चाहिए। कहानीकार का उद्देश्य तत्कालीन अंग्रेजी शासन की निरंकुशता और निर्दयता का भण्डा फोड़कर माँ की ममता का चित्रण करना भी है। कहानी की संवेदना भी यही है। अंग्रेजी शासन में नई पीढ़ी विद्रोह का स्वर फूंक रही थी और पुरानी पीढ़ी सरकार के तलवे चाट रही थी। इन दोनों के बीच विवश बूढ़ी माँ खड़ी थी। इसे दिखाना भी कहानीकार का उद्देश्य है।
प्रश्न 7.
उसकी माँ कहानी के पात्र लाल की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
ल कहानी का वह यवा पात्र है जो किसी दबाव में आकर अन्याय को सहन नहीं करता बल्कि सदैव संघर्ष के लिए तैयार रहता है। उसकी कतिपय चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
क्रान्तिकारी - लाल कहानी का क्रान्तिकारी पात्र है। वह जमींदार चाचा के समझाने पर भी अपने ध्येय से डिगता नहीं है। उसने लेखक से स्पष्ट कह दिया कि मैं दुष्ट और व्यक्ति-नाशक राष्ट्र का सर्वनाश देखना चाहता हूँ। चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े।
स्पष्टवादी - लाल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह स्पष्टवादी था। जमींदार ने उसे समझाने का प्रयत्न किया, शासन के प्रति विद्रोह न करने के लिए समझाया, पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा परन्तु उसने लेखक से स्पष्ट कह दिया-मेरे आपके विचार नहीं मिलते। मैं राजविद्रोह के सम्बन्ध में आपसे विवाद करना नहीं चाहता।
स्वतंत्रता का प्रेमी - अंग्रेजी शासन की गुलामी से उसे चिढ़ थी। इसलिए वह उनका साथ देने को तैयार था जो अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति चाहते थे। उसने जमींदार चाचा से स्पष्ट कह दिया था कि उसके विचार स्वतंत्र हैं। पराधीनता के विषय में उसने स्पष्ट कह दिया था कि मेरे और आपके विचार एक दूसरे के विपरीत हैं। चाचा राजभक्त थे और वह राजविद्रोही। स्वतंत्रता के लिए वह षड्यंत्र, विद्रोह और हत्या करने को भी तत्पर था।
निर्भीक - लाल जानता था कि अंग्रेजी शासन का विरोध करने पर उसे फाँसी भी हो सकती है पर वह डरा नहीं। उसने पशु-हृदय परतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उसने उन लोगों का साथ देने का निश्चय कर लिया जो व्यक्ति नाशक राष्ट्र का सर्वनाश करने पर तुले थे। फाँसी की सजा सुनने पर भी वह प्रसन्न ही रहा। उसने माँ से कहा कि हम जहाँ जा रहे हैं तू भी वहाँ आना। हम स्वतंत्रता से मिलेंगे। फाँसी का फन्दा सभी को डरा देता है लेकिन लाल पर उसका भय व्याप्त नहीं हुआ।
प्रश्न 8.
जानकी के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर :
कहानी की 'माँ' जानकी एक आदर्श माँ का जीता-जागता स्वरूप है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित कही जा सकती हैं -
सरल हृदय नारी - जानकी अत्यन्त सरल हृदय माँ है। उसे दुनियादारी की और गंभीर बातों की स्पष्ट समझ नहीं है। उसे अपने पुत्र और उसके साथियों के क्रियाकलापों की गंभीरता का ज्ञान नहीं। जमींदार उसे समझाने का प्रयास भी करता है परन्तु वह समझ ही नहीं पाती।
कष्ट-सहिष्णु - जानकी विधवा थी और अपने पति की मृत्यु के बाद उसने गरीबी को भोगा था। लाल के जेल चले जाने पर उसने बड़े कष्ट उठाए। वह खाना पहुँचाने जेल जाती। वकीलों के चक्कर काटती। वृद्धावस्था में भी वह लाल के लिए काफी दौड़-भाग करती। लाल की फाँसी और उसके पत्र को सुनकर उसने अन्दर-ही-अन्दर कष्ट सहन किया पर किसी से कहा नहीं।
सच्ची माँ - जानकी माँ का आदर्श थी। उसके हृदय में वात्सल्य का सागर लहरता रहता था। लाल के मित्र जब घर पर आते तो वह उन्हें लाल की तरह जलपान कराती। जेल में उनके लिए खाना ले जाती। एक माँ की तरह वह सभी लड़कों को निर्दोष बताती। उनकी पैरवी में जाती। वह बूढ़ी होकर भी इन कष्टों को कष्ट नहीं मानती थी।
गम्भीर - स्वभाव से जानकी गम्भीर थी। उसने अपना दु:ख किसी के सामने प्रकट नहीं किया। लेखक ने जब लाल का पत्र उसे पढ़कर सुनाया तो वह कुछ बोली नहीं और अपने दुःख को हृदय में ही सहन करती रही। उसने खुली भावहीन आँखों से लेखक की ओर देखा, पर कुछ कहा नहीं। उसके हृदय पर चोट लगी और अन्तिम साँस गिनकर लाल के पास चली गई।
लेखक परिचय :
पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' का जन्म सन् 1900 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के चुनार गाँव में हुआ था। परिवार में अभावों के कारण उनकी शिक्षा व्यवस्थित ढंग से नहीं हुई। परन्तु अपनी लगन, नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से उन्होंने अपना साहित्यकारों में अग्रणी स्थान बना लिया था। सन् 1967 में आपका देहान्त हो गया।
उग्र जी की भाषा.सरल, अलंकृत और व्यावहारिक है। इनकी भाषा में उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। व्यंग्यपूर्ण लेखन भी आपने भलीभाँति किया है। समसामयिक जीवन की समस्याओं को उग्र जी ने अपने लेखन में कुशलतापूर्वक समाहित किया है। उग्र जी प्रेमचंद के समकालीन हैं और प्रेमचंद की कहानियों की तरह ही समाज सुधार इनकी रचनाओं में उपस्थित दिखाई देता है। 'उसकी माँ' कहानी देश की दुर्व्यवस्था में चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को एक नये रूप में प्रस्तुत करती है।
'उग्र जी' का पत्रकारिता से सक्रिय संबंध था। 'आज', 'विश्वमित्र', 'स्वदेश', 'वीणा', 'स्वराज्य' और 'विक्रम' के संपादक रहे और 'मतबाला मंडल' के प्रमुख सदस्य रहे। 'पंजाब की महारानी', 'रेशमी', 'पोली इमारत', 'चित्र-विचित्र', 'कंचन-सी-काया' 'काल कोठरी', 'ऐसी होली खेली लाल', 'कला का पुरस्कार' कहानी संग्रह हैं।
आपने 'चंद हसीनों के खतूत', 'बुधुआ की बेटी', 'दिल्ली का दलाल' और 'मनुष्यानंद' आदि यथार्थवादी उपन्यास लिखे। 'अपनी खबर' आत्मकथा है। 'महात्मा ईसा' नाटक और 'ध्रुवधारण' खण्ड काव्य है।
पात्र जमींदार अलमारियों में से किसी महान पुरुष की कृति खोज रहा था तभी पुलिस सुपरिटेंडेंट उसके पास आए। उन्होंने एक तस्वीर दिखाकर लेखक से उसके बारे में कुछ जानना चाहा। जमींदार ने लड़के का नाम बताया और उसके परिवार का परिचय भी दिया। पुलिस अफसर के जाने के बाद लेखक ने जानकी को समझाया कि वह लाल को समझाए। जमींदार चाचा ने लाल को भी समझाने का प्रयास किया पर उसने उनकी बात नहीं मानी। उसने कह दिया कि मैं दुष्ट व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के सर्वनाश करने वालों का र साल और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। लाल को फाँसी हुई तथा अन्य साथियों को जेल हुई। लाल ने अन्तिम पत्र अपनी माँ को लिखा। लेखक ने वह पत्र पढ़कर सुनाया जिसे सुनकर लेखक की पत्नी रो पड़ी और जानकी शान्त रही। अगले दिन पता लगा कि जानकी मर गई।
कहानी का सारांश :
पुस्तक की खोज कहानी का पात्र जमींदार अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में अलमारियों में से किसी महान लेखक की कृति को खोज रहा था। उसे अलमारियों में सभी पुस्तकें महान लेखकों की दिख रही थीं। लेकिन वह यह निश्चय नहीं कर पाया कि किसकी पुस्तक पढ़े। वह लेखकों का नाम ही पढ़ता रहा।
पुलिस अधिकारी का आना-जमींदार पढ़ने-लिखने के कमरे में था तभी पुलिस अधिकारी आए। उन्होंने एक तस्वीर जमींदार को दिखाकर पूछा 'क्या आप इसे पहचानते हैं ? लेखक ने कहा कि मैं इसे 'लाल' नाम से जानता हूँ। इसका असली नाम मुझे मालूम नहीं है। यह मेरे घर के सामने रहता है, इसके पिता नहीं हैं, अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता है। माँ का नाम 'जानकी' है। पुलिस अधिकारी ने लेखक से उस परिवार से सावधान और अलग रहने के लिए कहा।
लाल के परिवार का परिचय - सात-आठ वर्ष पहले लाल के पिता का देहान्त हो गया था। उसका नाम रामनाथ था और वह लेखक की जमींदारी का मुख्य मैनेजर था। उसकी बूढ़ी माँ का नाम जानकी था। घर में दो ही सदस्य थे लाल कालेज में पढ़ रहा था।
जानकी को समझाना - पुलिस अफसर के जाने के बाद जमींदार को कुछ चिन्ता हुई। उसने जानकी को समझाया। तुम्हारा बेटा लाल आजकल पाजीपन करता है। तुम उसे प्यार ही करती हो, उसे समझाओ अन्यथा दुःख भोगोगी।
जमींदार चाचा और लाल वार्तालाप - जब जमींदार चाचा जानकी से बात कर रहा था तभी लाल आ गया। जानकी ने लाल से कहा कि तेरे चाचाजी शिकायत कर रहे हैं। उसमें लाल से कहा कि वह बुरा होता जा रहा था। सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र करने वालों का साथ दे रहा था। उसकी बक-बक से देश की दशा नहीं सुधरेगी और पराधीनता दूर नहीं होगी। लाल ने उसकी बात नहीं मानी और स्पष्ट कह दिया कि ऐसे दुष्ट व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में वह भी भागीदार बनना चाहता था।
जानकी का कथन - जमींदार ने जानकी से लाल और उसके साथियों के सम्बन्ध में कुछ जानना चाहा। जानकी ने कहा कि सभी लापरवाह हैं पर सभी मुझे प्यार करते हैं। एक लड़का लम्बा और हँसोड़ है। वे आपस में हल्ला करते रहते हैं। वै सभी तरह की बातें करते हैं। एक दिन वह लड़कों को पकड़ने की बात कर रहे थे। वे सरकार की बुराई कर रहे थे। ऐसी ही सरकार विरोधी अंट-संट बक रहे थे।
लड़कों की गिरफ्तारी - जमींदार को काम से लौटने के बाद पता चला कि लाल और उसके साथियों को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया है। उन पर कई दोषारोपण किए गए थे और उन्हें जेल में डाल दिया। वात्सल्यमयी माँ जानकी उनके लिए भोजन ले जाती। वकीलों के चक्कर लगाती थी। वह सूखकर काँटा हो गई थी। कोई उससे मिलने और सहयोग करने में डरता था। लाल को फाँसी हुई और उसके साथियों को सजा हुई।
लाल का पत्र और जानकी की मृत्यु-जानकी जमींदार के पास लाल का पत्र लेकर आई। उस समय वह एक किताब पर लाल के हस्ताक्षर देख रहा था और उन्हें मिटाने का प्रयत्न कर रहा था। उसने पत्र पढ़ा, उनकी पत्नी विकल हो गई और अपनी करुणा से कमरे को कँपा दिया। जानकी शान्त रही और भावहीन आँखों से लेखक को देखती रही। प्रातः होते ही लेखक के नौकर ने जानकी के मरने की सूचना दी।
कठिन शब्दार्थ :
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्यारव्याएँ -
1. “तुम षड्यंत्र में नहीं, विद्रोह में नहीं, पर यह बक-बक क्यों ? इससे फायदा ? तुम्हारी इस बक-बक से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न उसकी पराधीनता। तुम्हारा काम पढ़ना है, पढ़ो। इसके बाद कर्म करना होगा, परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो, तब सरकार के सुधार का विचार करना।"
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कहानी 'उसकी माँ' से लिया गया है। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है।
प्रसंग - पुलिस सुपरिटेंडेंट द्वारा लाल के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने पर जमींदार को पता चला कि लाल किसी षड्यंत्र में फँस गया है। उसने लाल को समझाया है। इसी प्रसंग में लेखक का यह कथन है।
व्याख्या - जमींदार ने लाल से कहा था कि वह बुरा होता जा रहा था और षड्यंत्रकारियों का साथ दे रहा था तब लाल ने अस्वीकार करते हुए कहा था कि मैं स्वतंत्र विचार वाला हूँ, षड्यंत्र में नहीं फँसा हूँ। चाचा जमींदार ने कहा कि उसकी बात मान लें कि वह किसी षड्यंत्र में नहीं फँसा है और न विद्रोह करे रहा है परन्तु वह व्यर्थ की बक-बक करता है। इस व्यर्थ की बक-बक से कोई लाभ नहीं। इस प्रकार की व्यर्थ की बातें करने से और उबल पड़ने से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न देश पराधीनता से मुक्त हो सकेगा। इस कार्य में व्यर्थ समय गँवाने से कोई फायदा नहीं। इस समय उसका काम पढ़ना है।
पढ़ाई पूरी करके ही उसे अपनी इच्छानुसार कार्य करना चाहिए। तभी परिवार और देश की मर्यादा बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। पहले अपने घर के बारे में सोचे। परिवार की दशा सुधारने का प्रयास करे, उसका उद्धार करो। उसके बाद सरकार को सुधारने की बात सोचना। जब वह अपने छोटे से परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं सुधार सकता तो इस सरकार को कैसे सुधार सकेगा। अतः पहले घर को देखे तब सरकार के सम्बन्ध में सोचना।
विशेष :
2. इस पराधीनता के विवाद में, चाचा जी, मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कट्टर राजभक्त, मैं कट्टर राज-विद्रोही। आप पहली बात को उचित समझते हैं कुछ कारणों से, मैं दूसरी को-दूसरे कारणों से। आप अपना पद छोड़ नहीं सकते-अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए, मैं अपना भी नहीं छोड़ सकता।
संदर्भ - यह अवतरण 'अंतरा भाग-1' में संकलित पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कहानी 'उसकी माँ' से उद्धृत है।
प्रसंग - जमींदार चाचा और लाल दोनों में देश की दुर्व्यवस्था और पराधीनता को लेकर वाद-विवाद होता है। चाचा उसे झंझट से दूर रहने की सलाह देते हैं। किन्तु लाल उनसे असहमति व्यक्त करता है। वह अपनी बात चाचा के सम्मुख रखता है।
व्याख्या - लाल जमींदार चाचा का सम्मान करता है, किन्तु उसके विचार उनसे मेल नहीं खाते। वह चाचा से कहता है कि देश की पराधीनता का जहाँ प्रश्न है वहाँ वे दोनों अलग-अलग विचारधारा वाले हैं। इसलिए वह पराधीनता के विषय में उनसे कोई विवाद नहीं करना चाहता। वह बात नहीं मानेंगे और वह भी उनकी बात नहीं मानेगा। क्योंकि वह कट्टर राजभक्त हैं, राष्ट्र के दोष उनको दिखाई नहीं देते और मैं कट्टर राजविद्रोही हूँ। वह सरकार की हर बात को अच्छा समझते हैं। सरकार की भक्ति करने को महत्त्व देते हैं। वह सरकार के कार्यों का विरोध करना उचित समझता है।
अत: दोनों के विचार नहीं मिल सकते। आप अपने स्वार्थ के कारणों से राजभक्ति को उचित समझते हैं। वह सरकार को व्यक्ति- नाशक समझता है। इसलिए विरोध करता है। वह जमींदारी का पद नहीं छोड़ सकते, वह सुविधाभोगी हैं। इस कारण उनको सरकार की बुराई नहीं दिखती, जबकि उसकी कल्पना है कि देश पराधीनता से मुक्त हो। अतः वह राजविद्रोह नहीं छोड़ सकता। वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का नाश करने वालों का सर्वनाश करना चाहता है।
विशेष :
3. माँ ! तू तो ठीक भारत माता-सी लगती है। तू बूढ़ी, वह बूढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश। हाँ, नक्शे से साबित करता हूँ...तू भारत माता है। सिर तेरा हिमालय...माथे की दोनों गहरी बड़ी रेखाएँ गंगा और यमुना, यह नाक विंध्याचल, ठोढ़ी कन्याकुमारी तथा छोटी-बड़ी झुर्रियाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियाँ हैं। जरा पास आ मेरे ! तेरे केशों को पीछे से आगे बाएँ कंधे पर लहरा दूं, वह बर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शुद्ध न होगा।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कहानी 'उसकी माँ' से अवतरित है।
प्रसंग - लाल की माँ लाल के मित्रों में से एक बहुत शरारती लड़के के बारे में जमींदार चाचा को बता रही है।
व्याख्या - लाल के कॉलेज का एक सहपाठी बहुत हँसोड़ और शरारती था। एक दिन उसने लाल की बूढ़ी माँ को भारत माता के समान बताया। वह माँ से कहने लगा कि वह बिल्कुल भारत माता जैसी लगती थी। माँ बूढ़ी थी और भारत माँ भी बहुत प्राचीन देश थी। भारत माँ के सिर पर श्वेत हिमालय शोभा पाता था और बूढ़ी माँ के सिर पर सफेद बाल सुशोभित थे। लडका कहने लगा कि वह भारत के नक्शे से सिद्ध कर सकता था कि वह भारत माता जैसी ही थी। उसका सिर हिमालय जैसा था।
माथे की दोनों रेखाएँ, गंगा और यमुना के समान थीं। उसकी नाक को लड़के ने विंध्याचल पर्वत बताया। लाल के मित्र ने कहा कि माँ की ठोढ़ी, कन्याकुमारी जैसी थी और चेहरे पर पड़ी हुई झुर्रियाँ, भारत माता के पहाड़ और नदियों के समान थे। लड़के ने माँ से कहा कि वह उसके बालों को बाएँ कंधे पर बाहर की ओर लटका देगा। ये बाल वर्मा (म्यांमार) जैसे लगने लगेंगे। वर्मा से ही तो वह पूरी तरह भारत माता जैसी लगेगी।
विशेष :
4. "अजी, ये परदेसी कौन लगते हैं हमारे, जो बरबस राजभक्ति बनाए रखने के लिए हमारी छाती पर तोप कर मुँह लगाए अड़े और खड़े हैं। उफ ! इस देश के लोगों के हिये की आँखें मुंद गई हैं। तभी तो इतने जुल्मों पर भी आदमी आदमी से डरता है। ये लोग शरीर की रक्षा के लिए अपनी-अपनी आत्मा की चिता सँवारते फिरते हैं। नाश हो इस परतंत्रवाद का।
संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कहानी 'उसकी माँ' से ली गई हैं। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है।
प्रसंग - लाल की माँ जानकी ने जमींदार चाचा को बताया कि सभी लड़के जो मुँह में आता है वही बक देते हैं। उनमें से एक लड़के ने अंग्रेजों की बुराई की। उसने अंग्रेजी शासन के अत्याचार को बताते हुए यह बात कही।
व्याख्या - जानकी ने कहा कि लाल के साथियों में से एक साथी ने उत्तेजित होकर कहा कि ये अंग्रेज हमारे कौन लगते हैं ? ये परदेशी हैं, इनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। अगर ये अपने होते तो हमारे साथ अत्याचार नहीं करते। ये अपने होते तो हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाकर मौत का भय दिखाकर बरबस राजभक्ति का पाठ नहीं पढ़ाते। वे नहीं जानते कि आती, स्वेच्छा से आती है। उसने देशवासियों के प्रति दःख प्रकट करते हुए कहा कि देशवासियों को अपना भला-बुरा दिखाई नहीं दे रहा है। यदि उनकी हृदय की आँखें खुली होती तो वे उनका विरोध अवश्य करते। उनके अत्याचारों को चुपचाप सहन नहीं करते। वे अपनी मृत्यु से भयभीत हैं। इस कारण उनका विरोध नहीं करना चाहते। वे केवल आत्मरक्षा की चिंता में लगे हुए हैं। उन्हें देशवासियों की चिंता नहीं है। जिसने देशवासियों को इतना स्वार्थी और कायर बना दिया है।
विशेष :
5. लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यताहीन नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पर पले हुए पशुओं को शराब से, कबाब से, मोटा-ताजा रखती है यह सरकार। धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे धर्म, प्राण और धन चूसती चली जा रही है यह शासन-प्रणाली।
संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' कहानी 'उसकी माँ' से ली गई हैं। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है।
प्रसंग - लाल के दूसरे साथी ने अंग्रेजी सरकार की देश विरोधी शिक्षा नीति को नंगा कर दिया है। अंग्रेजी सेना को देशभक्तों के दमन के लिए शक्तिशाली बनाने पर व्यंग्य किया है।
व्याख्या - लाल के मित्र ने आवेग में आकर कहा कि अंग्रेज सरकार हमें अशिक्षित रखना चाहती है ताकि हम शिक्षित होकर अधिकार की माँग न कर सकें। इसलिए उसने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों में पुस्तकों में ऐसी बातें भर दी हैं जिससे हम अज्ञानी ही रह जायें। हम ज्ञानी न हो सकें। उसने ऐसी शिक्षा-नीति बनाई जिससे हम शूरवीरों की भाँति साहसी न बन सकें। स्वाधीनता की कल्पना भी न करें। इस सरकार ने ऐसे अपमानजनक, मनुष्यताहीन और नीति का विनाश करने वाले कानून बनाए हैं कि हम कायर और पराधीन बने रहें।
सरकार ने गरीबों से धन वसूलकर उस पैसे को सेना पर खर्च किया। वे सैनिक जनता के साथ पशुतुल्य व्यवहार करते हैं। सरकार गरीबों के पैसे से उन क्रूर सैनिकों को शराब और कबाब पिलाती और खिलाती है। इन सैनिकों के सहारे वह हमारा शोषण करती है। वह देश के धर्म, प्राण, जीवनी-शक्ति और धन का विनाश कर रही है। वह जोंक की तरह हमारा खून चूसती है। अंग्रेजों की शासन प्रणाली हमारे देश को सदा पराधीन और निर्धन बना रही है।
विशेष :